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यात्म और अनात्म
रहा है। हम शक्करके मिठासकी शक्करसे पृथक क्या कोई कल्पना कर सकते हैं ? और शक्करके स्वरूपको वह परिवर्तित स्वरूप ही क्यों न हो-पृथक करके भी क्या शक्करके मिठासका अाभास पाया जासकता है ? कोई कहे कि नमकके दृढ़ फड़कीले ठोस स्वरूपको खोकर उसके सलोनेपनको हमारे सामने लाइये ! क्या सम्भव है ऐसा होना किसी भी वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा ?
___और शक्ति-चैतन्य-श्रात्म-क्या इसे भी हम स्थूल–ठोस-अचेतन कहे जानेवाले पदार्थोंसे पृथक निकालकर कहीं रख सकते हैं ? विद्युत शक्तिको वैज्ञानिक शक्तिका एक अत्यंत उग्रस्वरूप मानता है। लेकिन क्या ईथरके-अाकाशके ठोस परिमाणु के विना भी उसका अस्तित्व हो सकेगा?
जड़ और चेतन--यात्म और अनात्म, मैंने ऊपर लिखा- महात्मकी अभिव्यक्तिकी दो साधनाएं, एक कलाकारको दो कृतियाँ हैं । एक गद्य तो दूसरी पद्य ! और भावोंके विचारों के सामंजस्यके रूपमें कलाकारके व्यक्तित्वकी जो अभिव्यक्ति है वह क्या गद्य और पद्य दोनोंमें व्यक्तरूपोंके मेलसे ही परिपूर्ण नहीं होती ? कवीन्द्रकी अात्मा केवल डाकघरमें हो–केवल गोरामें हो केवल गीतांजलिमें हो-उसे कौन कहेगा ? वह तो गोरा, गीतांजलि और उर्वशी सभीकी सीमा में हिलोरें मारती हुई अपने समस्त कृतित्वमें व्यक्त होती है !
श्रात्म और अनात्म, गोरा और गीतांजलि जैसी स्थूल रूपमें पृथक दिखनेवाली चीजें नहीं ! यों गोरा और गीतांजलि भी पृथक चीजें नहीं हैं !-वे एक व्यक्तित्वकी अभिव्यक्तिकी परम्परा की दो कड़िया हैं । जिसे हम अनात्म कहते हैं उसके वह 'महात्म' की अभिव्यक्ति हैं और जिसे आत्म कहते हैं वह भी वही चीज है । हमारी इन्द्रियोंमें--हमारे प्रयोगोंमें अाज यह शक्ति नहीं है कि हम उनकी अभिन्नताको समझ सकें, लेकिन वस्तुतः ये दोनों एक हैं।
एक लौह दण्डको लीजिये । चुम्बकके एक सिरेको लेकर लोह दण्डके एक छोरसे लेकर दूसरे छोर तक अनेक बार सीधा चलाइये । अब देखेंगे कि लौह दण्डमें चुम्बककी शक्ति आगयी। अाखिर यह शक्ति अायी कहाँ से ? क्या चुम्बकने यह शक्ति लौह दण्डको देदी ? जरा चुम्बककी परीक्षा कीजिये । वया उसकी आकर्षण शक्तिमें कोई कमी श्रागयी ? हम देखते हैं कि उसकी शक्ति ज्यों की त्यों मौजूद है । फिर यदि शक्तिके अविनाशकत्वका सिद्धान्त सही है तो लौह दण्डमें यह शक्ति कहांसे अायी ? अब लौह दण्डको जरा गर्मकर दीजिये कायवा पूर्व पश्चिम रखकर हथौड़ेसे पीट दीजिये। देखिये क्या अब भी
आकर्षण शक्ति विद्यमान है ? यदि नहीं तो वह गयी कहां ? क्या हथौड़ेने उस शक्तिको ग्रहण कर लिया ? परीक्षा करनेसे ज्ञात होगा कि उसने शक्ति नहीं पायी ! तब आखिर यह है क्या ?
विज्ञानका छोटेसे छोटा विद्यार्थी भी जानता है कि लौह दण्डके प्रत्येक परमाणुमें चुम्बकीय शक्ति विद्यमान है। चुम्बक द्वारा बार बार स्पर्शित किये जानेसे वह शक्ति नियंत्रित होजाती है अतएव