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महान् सचमुच महान्
तर्कशास्त्र विद्वान कहते हैं कि कार्य-कारण तथा परिणाम इनमें परस्पर बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है । एक साहित्यिक होनेके नाते तो मैं शायद ही इसपर विश्वास कर सकता किन्तु....। यह एक किन्तु विगत कुछ वर्षोंके इतिहासके पृष्ठ खोल कर रख देता है । स्मरण कर उठता हूं एकाएक बड़ोंका वह उपदेश कि महापुरुषोंके दर्शन कदाचित् विगत कई जन्मों के पुण्यकर्म स्वरूप ही सुलभ होते हैं । सो इसे अपने सौभाग्यका मैं प्रथम चरण ही अभी तक मान सका हूं कि जब अति अस्वस्थ होने पर भी मुझे जैन हाईस्कूल सागर में एक शिक्षक की भांति जाना पड़ा था ।
यों तो प्रवास मेरे जीवनका एक अंश रहा है किन्तु सन् १९२४ के प्रारम्भ से ही मन में प्रवासके प्रति एक विरक्ति सी उभर उठी है। फिर भी छत्तीसगढ़ छोड़ कर जीविका अर्जन के हेतु मुझे सागर जाना पड़ा । इस प्रवासके पूर्व सागरके सम्बन्ध में कई बातें सुना करता था । सागरकी प्राकृतिक छटा, वहां की स्वास्थ्यकर जलवायु इनके विषय में बहुत कुछ सुन चुका था । अतएव रखते हुए मुझे सागर में ही रहना रुचिकर एवं हितकर प्रतीत हुआ ।
अपने हीन स्वास्थ्यका ख्याल
तब मुझे यह पता नहीं था कि सागरका जैन समाज एक महत्त्व पूर्ण मात्रा में सागर के सार्वजनिक जीवनमें प्रवेश कर गया है। तो, एक प्रश्न मेरे सामने अवश्य था मैं कान्यकुब्ज कुलोत्पन्न ब्राह्मण हूं। सुन रक्खा था 'न गच्छेत् जैन मन्दिरम्', यादि और उसके प्रतिकूल मैं उसी स्थान पर चाकरी करने जा रहा था । मेरे समाज वालोंको यह बात खटक गयी। लेकिन मैं स्वभावतः ही विद्रोही रहा हूं गुण ग्रहण करने में मैंने रूढ़िका ध्यान कभी नहीं किया ।
सो जैन हाईस्कूल में एक शिक्षककी हैसियत से कार्य शुरू करनेके कुछ समय पश्चात् ही यदा-कदा मेरे कान में मोराजी संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा सम्बोधित शब्द 'बाबाजी' पड़ जाया करते थे। और मनमें यह भावना उठती थी कि आखिर वह कौनसा व्यक्तित्व है जो इन विद्यार्थियोंके बीच 'बाबाजी' के रूपमें सदैव चर्चाका विषय बन जाता है ! जिज्ञासा यद्यपि मन ही में थी पर उभरने लगी थी। फिर एक दिन जैनसमाजके कुछ वयस्क व्यक्तियोंको मैंने 'वर्णीजी' का नाम लेते सुना अत्यन्त आदर एवं समुचित श्रद्धा के साथ ! तत्क्षण मेरा मन दुहरा उठा -- बाबाजी, वर्णीजी ये दोनों एक ही तो नहीं हैं ! आखिर वह कौन व्यक्तित्व है जो सम्पूर्ण जैनसमाजके द्वारा इतनी श्रद्धाके साथ पूजनीय है ! श्रतएव एक दिन संस्कृत पाठशालाके भाई पन्नालालजीसे मैंने इस सम्बन्ध में प्रश्न किया
एकसठ