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वर्णी अभिनन्दन-ग्रन्थ
उनके उत्तरसे मुझे ज्ञात हुआ कि वे जैनसमाजकी एक महान् श्रादरणीय विभूति हैं । विरक्त होते हुए भी जनहिताय, लोक मंगलकारी भावनाओंके प्रसारमें जुटे हुए हैं शिक्षा उनका प्रियतम विषय है।
इस अल्प परिचयके बलपर मेरे मनकी कल्पना उनके स्वरूपका ताना-बाना बुनने लगी काफी वृद्ध होंगे, ऊंचे पूरे, श्मश्रु-युक्त, साथमें अनेकों व्यक्ति होंगे, बड़ी शान के साथ रहते होंगे, वस्त्रोंका सम्भवतः त्याग कर दिया होगा, आदि-आदि । ऐसा ही कुछ उनका काल्पनिक स्वरूप मेरे मन में उभर उठा था। और उसी समय एक नहीं अनेक प्रश्न उठ पड़े थे। क्या ये वैसे ही विरक्त साधुओं में नहीं हैं जैसे कि वर्तमान कालमें भारतवर्ष में पाये जाते हैं ? इस जिज्ञासाका भला कौन उत्तर दे? नवागन्तुक अथवा यों कहिए कि प्रवासी होने के नाते किसीसे कुछ पूंछनेमें हिचक लगती थी। फिर अपने एक स्वजातीय बन्धुसे उपरोक्त प्रश्न उपस्थित करने पर मुझे उत्तर मिला था-अच्छा तो क्या आप भी जैन धर्ममें दिक्षित होना चाहते हैं ? सच कहूं, यह उत्तर बड़ा बेढंगा सा लगा मुझे । क्या वर्णीजी के बारेमें जानना एक अन्य जातीय व्यक्तिके लिए गुनाह है ? कौन उत्तर देता इन प्रश्नों का ?
फिर जनवरीके महिने में मुझे सुननेको मिला कि मार्चमें वर्णीजी सागर पधार रहे हैं । यह समाचार मेरे लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ। उनकी अनुपस्थितमें जैनसमाजके श्राबाल वृद्धकी अखण्ड निष्ठाको देखकर मेरे मनमें उनके प्रति उस समय अादर तो नहीं कुतूहल अवश्य हुआ था । किन्तु उसी दिन कक्षामें पढ़ाते समय जब मेरे एक प्रिय जैन छात्रने कहा कि मास्टर साहेब, वर्णाजी गयासे पैदल पा रहे हैं । वे आवागमनके आधुनिक साधनोंका प्रयोग नहीं करते और न जता ही पहनते हैं-तब जैसे आप ही आप किसीने उनके प्रति श्रद्धाका बीज मेरे मन में अंकुरित कर दिया । मन हो मन ऐसी विभूतिके दर्शन के लिए व्याकुल हो उठा था मैं ।
इसी बीच नगरके जैनसमाजमें एक अद्भुत जागृतिके लक्षण मुझे दृष्टिगोचर हुए । विशाल पैमानेपर तयारियां प्रारंभ हो गयीं-मुझे लगा कि जैसे किसी अखिल भारतीय संस्थाका अधिवेशन होने जा रहा हो। और इसी प्रकार दिन व्यतीत होते गये-जैसे जैसे तयारियां बढ़ती गयीं वैसे वैसे मेरा मन आश्चर्य से भरता गया । कौन सा ऐसा व्यक्तित्व है कि जिसके लिए ऐसा शाही प्रबन्ध ? कौन से ऐसे विशेष गुण हैं जिनके कारण ये विशाल तयारियां ? हो सकता है. .... नहीं, नहीं, होगा कोई परम पावन श्रादर्श व्यक्तित्व ! होगी निश्चय ही कोई महान् प्रेरक विभूति ! तभी; तभी तो यह सब कुछ हो रहा है।
.. एक दिन संध्याकाल यह सुननेको मिला कि वर्णीजी निकटस्थ ग्राममें आ गये हैं और
बासठ