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आस्तिनास्तिवाद
हैं। बीजसे अंकुर, अंकुरसे छोटा पौधा, पौधेसे बढ़कर वृक्ष होता है । प्रत्येक अवस्थामें वृद्धि और विकास है तथा इसके साथ-साथ प्रत्येक अंगके कार्य में परिवर्तन भी है । यहां एकही अंगि वृक्षमें सतत परिवर्तन है किन्तु अंगि अपरिवर्तित और अवस्थित ही रहता है। कोई भी जामुनका वृक्ष अपनी सब पर्यायोंको पूर्ण करता हुआ परिपूर्ण जामुन वृक्ष हो सकता है किन्तु अपनी वृद्धि के समयमें ऐसा परिवर्तन नहीं ही कर सकता.कि अकस्मात् जामुनसे अामका वृक्ष हो जाय । देखा जाता है कि आमके बीजसे श्राम और जामुनके बीजसे जामुनका ही वृक्ष होता है । फलतः कह सकते हैं कि प्रत्येक वस्तु अपनी वृद्धिके क्रमसे पर्याएं बदलकर भी अपने विशेष व्यापक रूपको स्थायी रखती है, जो कि अस्थायी नहीं होती है । यदि जामुनकी वृद्धि रुक जाय, नये अंकुर न निकलें, पुरानी पत्तियां न गिरें तथापि उसके जीवनमें उस अवस्था को स्थायी रखनेका प्रयत्न होता रहेगा। किन्तु स्थायित्व प्राप्तिका यह प्रयत्न भी मृत्युमें परिणत हो जाता है । क्योंकि यदि कोई भी सजीव अंगी जब किसी विशेष अवस्थाको सुदृढ़ करना चाहता है तो यह प्रयत्न मृत्युका आमन्त्रण ही होता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सजीव अंगीमें प्रतिपल परिवर्तन (पर्याय) होते हैं, प्रत्येक पर्याय पूर्व तथा आगामी पर्याय से भिन्न होती है तथापि अंगीकी एकता स्थायी रहती है। वृद्धिकी प्रक्रिया द्वारा मूल प्रकृति नहीं बदली जा सकती है । फलतः एक ही वृक्षके जीवनमें अभेद ( एकता ) और भेद (विषमता ) देखते हैं । वास्तव में यही वस्तु स्वभाव है जिसे जैनाचार्यों ने उचित रूपसे समझा था। पर्यालोचन
प्रत्येक सत् वस्तुमें व्यापक तथा स्थायी रुपसे भेद या परिवर्तन होता है तथा सब पर्यायोंमें एक अभेद सूत्र भी रहता है । पदार्थों के स्वभावका ही यह वैचित्र्य है कि हम उन्हें अस्तिनास्ति, भेद-अभेद, नित्य-अनित्य, आदि ऐसी परस्पर विरोधी दृष्टियोंसे देखते हैं । यह मौलिक तत्त्व दृष्टि ही जैन-चिन्ताकी
आधार शिला है तथा यही जैन दर्शनको भारतीय तथा योरुपीय दर्शनोंसे विशिष्ट बनाती है। किसी भारतीय दर्शनने इसे अंगीकार नहीं किया है। प्रत्येक भारतीय दर्शन वस्तु के एक पक्षको लिये है तथा अन्य पक्षों की उपेक्षा करके उसीका समर्थन करता है । वेदान्त ब्रह्मके नित्य रूपका ही प्रतिपादन करता है, उसे परिवर्तनहीन नित्य कहता है। इसका प्रतिद्वन्दी बौद्ध क्षणिकवाद है जो सब सत् पदार्थोंको अनित्य ही कहता है तथा पदार्थों में व्याप्त एकताकी उपेक्षा करता है । बौद्धके लिए प्रत्येक पदार्थ क्षणिक या अनित्य है,उसके अनुसार वस्तु एक क्षणमें उत्पन्न होती है तथा दूसरेमें नष्ट । उनकी दृष्टि से बाह्य संसार या अन्तरंग चेतनामें ऐसी कोई अवस्था नहीं है जो स्थायी या नित्य हो । एक पक्षको प्रधान करके अन्य पक्षोंके लोपकी इस विचारधाराको जैनाचार्यों ने 'एकान्तवाद' माना हैं तथा अपनी क्रियाको अनेकान्तवाद ( सब पक्षोंसे विचार ) कहा है वस्तुतः अस्ति नास्तिवाद सत् पदार्थों का स्वभाव हैं क्योंकि प्रत्येक पदार्थ अनेक गुण तथा पर्यायोंका समूह है अतः उसे जाननेके लिए उसके विविध पक्षों (अनेक-अन्तों) को