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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
भिन्न धर्मोंकी ओर संकेत करते हैं। एक बच्चा पुरुष होनेके कारण देवदत्त कहा जाता है वह यदि लड़कियों का सा वेश कर ले तो कुटुम्बी जन उसे देवदत्त' न कहकर 'देवदसा' कह उठते हैं। अतः लिंग भेदसे भी अर्थभेदका सम्बन्ध है । यह सब शब्दनयकी दृष्टि है । यहां इतना विशेष जानना चाहिये, यदि एक ही अर्थके वाचक भिन्न भिन्न शब्दों में भी लिंगभेद या वचनभेद हो तो यह नय उनके वाच्यको भिन्न भिन्न दृष्टिकोणोंसे ही स्वीकार करेगा ।
शब्दनयके उक्त लक्षण के समर्थन में अब हम कुछ ग्रन्थकारों का मत देते हैं अनन्तवीर्य लिखते हैं— 'कारक' श्रादिके भेद से अर्थको भेदरूप समझने वाला शब्दनय है" ।
विद्यानन्दि खुलासा करते हुए लिखते हैं- "जो वैयाकरण व्यवहारनय के अनुरोधसे काल, कारक, व्यक्ति, संख्या, साधन, उपग्रह, श्रादिका भेद होने पर भी पदार्थ में भेद नहीं मानते हैं परीक्षा करने पर उनका मत ठीक नहीं जंचता, यह शब्दनयका अभिप्राय है, क्योंकि काल, आदिका भेद होने पर भी अर्थमें भेद न माननेसे अनेक दोष पैदा होते है" ।
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आचार्य श्री देवनन्दि प्रभाचन्द्र वादिराज" अभयदेव और अनन्तवीर्य द्वितीय भी उक्त मतका अनुसरण करते हैं ।
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१ - [भेद:- विशेषैः शब्दस्यार्थः वजन पर्यायः तस्य भेद-जानाल, नयः प्रविपतुरभिप्रायः वाच्यः कथनीयः किंभूतेदेरिति आह कारक या लिखित सिद्धिविनिश्चय टीका
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२- कालादिभेदतोऽर्थस्य भेदं यः प्रतिपादयेत् । सोऽत्र शब्दनयः शब्दप्रधानत्वादुदाहृतः ।। ६८ ।।
विश्वश्वा अनिता सुनुरित्येकमाहृताः पदार्थ कामेदेऽपि व्यवहारानुरोधताः । ६९ ।।
करोति क्रियते पुण्यस्तारकाऽऽर्पोऽभ इत्यपि । कारक व्यक्ति संख्यानां भेदेऽपिं च परे जनाः ॥ ७० ॥ एहि मन्ये रथेनेत्यादिक साधनभयपि संतिष्ठेतापतिष्टे वायुपद्मभेदने॥ ६१ ॥
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तन्न श्रेयः परीक्षायामिति शब्दः प्रकाशयेत् । कालादिभेदनेऽप्यर्थभेदनेऽति प्रसंगतः ||७२ || - श्लोकहाकि ० १७१
१३- जो वट्टणं णा मणणइ एयत्थे भिण्णलिंगआईणं । सोसद्दणाओं भणिओ ओ पसाइआण जहा || १३ ||
नयचक्र पृ० ७७ ।
४-काल कारक लिंग संख्या साधनोपग्रह भेदादभिन्नमर्थं शपतीति शब्दनयः ततोऽपस्तं वैयाकरणानां मतम् । ते
० २०६ पूर्वी ।
हि कामेऽप्येक पदार्थमादृताः इत्यादि प्रमे ५-कासादिमेदादर्थभेदकारी शब्दः कालभेदात् अभूत् देहि । न्यायविनिश्चयटीका लि० पृ० ५९७ उत्त० ।
भवति भविष्यति कारकभेदात्-पृश्च पश्य वृक्षाय
६- तत्र काल कारक लिंगभेदादर्शभेदकृद् शब्दनयः । लघीयत्रयवृत्ति पृ० २२ ।
७- काल कारक लिंगानां भेदाच्छब्दस्य कथञ्चिदर्थभेदकथनं शब्दनयः । प्रमेयरन० पृ० ३०७ ।
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