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अनगार
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यः शृणोति यथा धर्ममनुवृत्त्यस्तथैव सः।
भजन पथ्यमपथ्येन बालः किं नानुमोद्यते॥१८॥ जो धर्मके माहात्म्यसे अनभिज्ञ है वह जिस तरहसे सुन सकता हो उसको उसी तरहसे सुनाना चाहिये । श्रोता बदि लाभ पूजादिको चाहता है तो धर्मका वह फल भी बताकर उस श्रोताको धर्मका उपदेश देना चाहिये। अपथ्य-मुनक्क' चाशनी आदिके साथ, पथ्य-रोगको दूर करनेवाली कडवी कसैली औषधके सेवन करनेवाले बालककी क्या उसके माता पिता अनुमोदना नहीं करते हैं? " तू बहुत अच्छा कर रहा है, वाह " ऐसा कह कर क्या अपथ्यके साथ भी पथ्य सेवनकेलिये उसको उत्साहित नहीं करते हैं ? करते ही हैं।
विनयका फल दिखाते हैं । वृद्धेष्वनुद्धताचारो नामहिम्नानुबध्यते ।
कुलशैलाननुत्क्रामन् सरिद्भिः पूर्यतेर्णवः ॥ १९ ॥ उस पुरुषमें लोकोत्तर महिमाएं आकर नित्य ही निवास करने लगती हैं, जो कि वृद्धोंके साथ-तप और ज्ञानादिककी अपेक्षा ज्येष्ठ तथा श्रेष्ठ पुरुषोंके साथ उद्धृतताको छोडकर विनीतताका व्यवहार करता है । समुद्र कुलपर्वतों-सौ, दो सा, और चार चार सौ योजन ऊंचे हिमवदादिकोंका उल्लंघन नहीं करता-उनके साथ औद्धत्यपूर्ण व्यवहार नहीं करता । यही कारण है कि उन पर्वतोंसे उत्पन्न हुई गङ्गादिक नदियां आकर उसका पूर्ण करती हैं।
जो व्युत्पन्न है वह उपदेशका पात्र नहीं है, यह बात ऊपर बता चुके हैं । अब उसी बातका दृष्टांत देकर समर्थन करते हैं।
अध्याय