Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुधा टीका स्था०३उ० ३सू०४९ वचनमनसो तन्निषेत्रित्यनिरूपणम् १०१ ___ छाया-त्रिविधं वचनं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-तद्वचनं, तदन्यवचनं, नो अवचनम् १। त्रिविधमवचनं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-नोतद्वचनं, नोतदन्यवचनं, अवचनम् २। त्रिविधंमनः प्रज्ञप्तं, तद्यथा-तन्मनः, तदन्यमनः, नो अमनः ३। त्रिविधममनः प्रज्ञप्तं, तद्यथा नोतन्मनः नोतदन्यमनः, अमनः ४॥ सू० ४९ ॥ .. टीका-'तिविहे चरणे ' इत्यादि, सूत्र चतुष्टयस्य संक्षिप्ता व्याख्यात्रिविधं वचनम् । तदेवाह-तद्ववचनम्-तस्य विवक्षितार्थस्य घटादेवचनं-भणनं तद्वचनं घटार्थापेक्षया घटवचनवत् । तदन्यवचनम्-तस्माद् विवक्षितघटादेरन्यः पटादिः, तस्य वचनं तदन्यवचनम् , घटापेक्षया पटवचनवत् । नो अवचनम्-अभजननिवृत्तिर्वचनमात्र डि त्यादिवदिति । [ अथवा सः-शन्दव्युत्पत्तिनिमित्त-धर्महुए चारसूत्र का कथन करते हैं-(तिविहे वयणे पण्णत्ते ) इत्यादि । ____ सूत्रार्थ-वचन तीन प्रकारका कहा गयाहै जैसे-तद्वचन, तदन्यवचन
और नो अपचन, अवचन भी तीन प्रकारका कहा गया है-जैसे-नो तर चन, नो तदन्यवचन और अवचन, मन भी तीन प्रकार का कहा गया है जैसे तन्मन, तदन्य मन और नोअमन, अमन भी तीन प्रकार का कहा गया है-जैसे नोतन्मन, नोतदन्यमन और अमन ।
टीकार्थ-इस सूत्रकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकारसे है-घटादिरूपायिव. क्षित अर्थ का कहनेवाला वचन तद्वचन है जैसे घटादि अर्थ की अपेक्षा घटयचन तद्वचन होता है विवक्षित घटादि से अन्य जो पटादि है वह अन्य है उनका कहने वाला वचन तदन्यवचन है जैसे घटापेक्षा से पटवचन तदन्यवचन होता है, वचनमात्र का नाम नो अपचन है यह नो पाहन ४२di या२ सूत्रानु थन ४२ छ-"तिविहे वयणे पण्णत्ते" त्याह
वयन g xstori sai छ-(१) तपयन, (२) तहन्यवयन भने () ને અવચન, અવચનના પણ નીચે પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર છે-(૧) નેતદ્વવચન, (२) नातहन्यवयन, मन (3) अपयन. भन ५५ त्रण रखें युं छे-(१) तन्मन, (२) तहन्यभन, मन (3) नाममन. समान पत्र प्रा२नु ४छु छ-(1) नो तन्मन, (२) न तह-यमन मन (3) मभन.
આ સૂત્રનું સંક્ષિપ્ત વિવેચન આ પ્રમાણે છે-(૧) ઘટાદરૂપ અમુક અર્થને કહેનારા વચનને તવચન કહે છે. જેમકે ઘટાદિ અર્થની અપેક્ષાએ ઘટરૂપ વચનને તદ્રવચન કહેવાય છે. વિવણિત (અમુક) ઘટાદિ સિવાયના જે પટાદિ છે, તે અન્ય પદાર્થરૂપ હોવાથી તેમનું કથન કરનાર વચનને તદન્ય વચન કહે છે. જેમકે ઘટની અપેક્ષાએ પટરૂપ વચન તદન્ય વચન ગણાય છે.
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨