Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुघा टीका स्था०३उ०३ सू०५९ मिथ्यात्वस्वरूपनिरूपणम्
१७५ तद्यथा-मत्यज्ञानक्रिया, श्रुताज्ञानक्रिया, विभङ्गाज्ञानक्रिया५ । अस्नियस्त्रिविधः मज्ञप्तः, तद्यथा-देशत्यागी, निरालम्बनता, नानाप्रेमद्वेषम् ६। अज्ञानं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-देशज्ञानं, सर्वाज्ञानं, भावाज्ञानम् ।। मू० ५९॥ ____टीका-'तिविहे ' इत्यादि, मिथ्यात्वम् । अत्र-विपर्यस्तश्रद्धानरूपं मिथ्यात्वं न विवक्ष्यते, वक्ष्यमाणानां प्रयोगक्रियादि तभेदानामसम्बन्ध्यमानत्वात् , अतोऽत्र मिथ्यात्वमिति-क्रियादीनामसम्यग्रूपता, दुष्टत्वमशोभनत्वमिति भावः । तत्रिविधम्-अक्रिया, अविनयः, अज्ञानम् । तत्र 'अक्रिया' इत्यत्र नञ्-दुःशब्दार्थः, है, अज्ञानक्रिया-मत्यज्ञानक्रिया, श्रुतज्ञानक्रिया और विभंगाज्ञानक्रिया के भेद से तीन भेद वाली कही गई है अविनय तीन प्रकार का कहा गया है-जैसे देशत्यागी, निरालम्बनता और नानाप्रेमद्वेष, अज्ञान भी तीन प्रकार का कहा गया है जैसे-देशाज्ञान, सर्वाज्ञान, और भावाज्ञान,
टीकार्थ-यहां मिथ्यात्वसे विपर्यस्तश्रद्धानरूप मिथ्यात्व विवक्षित नहीं हुआ है क्योंकि कही जानेवाली प्रयोगक्रिया आदिकों के साथ इसका संबंध नहीं बैठता है इसलिये यहां क्रियापदों की जो असम्यक्पता है, उनकी दुष्टता है, अशोभनता है वह मिथ्यात्व है ऐसा जानना चाहिये वह मिथ्यात्व अक्रिया आदि के भेद से जो तीन प्रकार का कहा गया है उसका तात्पर्य ऐसा है कि मिथ्यात्व आदि से उपहत हुए व्यक्ति का जो संसारवृद्धिसाधक अनुष्ठान है वह अक्रिया है अक्रिया में जो नजू का प्रयोग हुआ है वह दुःशब्दार्थ में हुआ है जैसे आशीलापद में।
प्रभारी अ ले ह्या छ-(१) मत्यज्ञान लिया, (२) श्रुतज्ञान जिया मने (3) विज्ञान लिया. अविनयना प्रा२ ४ छ-(१) देशत्यासी, (२) नि.
मनता अन (3) नानाभद्वेष. मज्ञानना प ३ २ ४ -(१) Bाज्ञान, (२) सज्ञान अन (3) मावाशान.
ટીકાર્ચ–અહીં મિથ્યાત્વ પદ દ્વારા વિપર્યસ્ત શ્રદ્ધારૂપ મિથ્યાત્વનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું નથી, કારણ કે પ્રગકિયા આદિની સાથે તેને સંબંધ સંભવી શકતું નથી. કિયાદિકની અસમરૂપતા, તેમની દષ્ટતા, અને અશભનતાને જ અહીં મિથ્યાત્વરૂપે ઓળખાવવામાં આવેલ છે, એમ સમજવું. તે મિથ્યાત્વને અકિયા આદિના ભેદથી જે ત્રણ પ્રકારનું પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે તેનું તાત્પર્ય એ છે કે મિથ્યાત્વથી ઉપહત (સંપન્ન) થયેલી વ્યક્તિનું જે સંસારવૃદ્ધિ સાધક અનુષ્ઠાન છે તે અક્રિયા છે. અક્રિયામાં જે નકારવાચક “અને પ્રયોગ
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨