Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३८६
स्थानाङ्गसूत्रे __ " एवं जहा" इत्यादि-एवम् इत्थम् “ ऋजुर्नामैकः ऋजुः" इत्यादिनाऽनन्तरोपदर्शितक्रमेण, यथा येन प्रकारेण परिणतरूपत्वादि नव विशेषण-दानेनेत्यर्थः, उन्नत-परिणताभ्यामन्योऽन्यं प्रतिपक्षभूताभ्यां, गमः सदृशवाक्यपद्धतिरूपः पाठो विहितः तथा तेन प्रकारेण अर्थात् परिणत-रूप-मनः-संकल्पप्रज्ञा-दृष्टि - शीलाऽऽचार - व्यवहार - पराक्रमरूपनवविशेषणयोजिताभ्याम् , ऋजु-चक्राभ्यामपि जुशब्देन वक्रशब्देन चापि भणितव्यः गमः पठनीयः, स गमः कियान् भणितव्यः ? इत्यवधिं प्रदर्शयितुमाह-" जाव परक्कमे" इति, ऋजुववृक्षसूत्रादारभ्य त्रयोदशं सूत्रं यावद् गमो भणितव्य इत्यर्थः।-तत्र च ऋजु २ ऋजु परिणत २ ऋजुरूप २ लक्षणानि षट् सूत्राणि वृक्षदृष्टान्त पुरुषदाष्टीन्तिकरूपाणि बोध्यानि, तदतिरिक्तानि सप्त मनःप्रभृतिघटितानि दृष्टान्तरहि. है जो बाहर से शारीरिक चेष्टादि द्वारा कुटिल होता है और-भीतर से
भी कपट जाल युक्त शठ की तरह कुटिल होता है यह चतुर्थभंग है-४ ___ "एवं जहा" इत्यादि-इस सूत्र द्वारा अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि-जिस प्रकार उन्नत और प्रणत सम्बन्धी सूत्रों के साथ उन्नत प्रणत परिणतरूप जोडकर दृष्टान्त और दार्शन्तिक सम्बन्धी छह ६ सूत्र बनाये हैं, तथा-इनकी उन्नत प्रणत शब्दों के साथ मन सङ्कल्प प्रज्ञा दृष्टि शीलाचार व्यवहार शब्द जोडकर ७ सूत्र वृक्ष दृष्टान्त रहित करके और बनाये गये हैं, इस प्रकार से ये तेरह सूत्र बनाये गये है। जैसे-उन्नत उन्नत-१ उन्नत प्रणत-२ प्रणत उन्नत-३ और प्रणत प्रणत ४ ये चार भंग वृक्ष सम्बन्धी हैं, यह प्रथम १ सूत्र है, और इसी सूत्र को दान्तिक में उन्नत प्रणत को योजित करके द्वितीय सूत्र पुरुष હોય છે અને અંદરથી પણ કપટ જાળયુકત દુજનના જે કુટિલ જ હોય છે, અથવા તે પહેલાં પણ કુટિલ હોય છે અને પછી પણ કુટિલ જ રહે છે.
" एवं जहा" त्या-241 सूत्र द्वारा हवे सूत्रा२ मे ५४८ ४२ छ કે–જેમ ઉનત અને પ્રણત વિષયક સૂત્રેની સાથે ઉન્નત પ્રણત પરિણત રૂપ જોડીને દષ્ટાન્ત રાષ્ટ્રન્તિક સંબંધી ૬ સૂત્રે બનાવવામાં આવ્યા છે, એ જ प्रभागनत प्रत' शहानी साये मन, ६५, प्रज्ञा, हष्ट, शीतयार, વ્યવહાર અને પરાક્રમ, આ સાત પદ જેડીને વૃક્ષના દૃષ્ટત રહિત બીજા સાત સૂત્ર પણ બનાવવામાં આવ્યાં છે. આ પ્રમાણે કુલ ૧૩ સૂત્રો બનાपामा माया छे म...(१) उन्नत-उन्नत, (२) अन्नत-प्राशत, (3) प्रयत ઉન્નત અને (૪) પ્રભુત-પ્રણત, આ ચાર ભાંગા વૃક્ષને અનુલક્ષીને બનાવ્યા છે. આ રીતે વૃક્ષના દુષ્ટાતવાળું આ પ્રથમ સૂત્ર છે.
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨