Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 763
________________ ७४८ स्थानाङ्गसूत्रे स्थितिका:=पल्योपमकालपर्यन्तस्थायिनो द्वारनामसदृशनामकाः परिवसन्ति, तेच विजयः १, वैजयन्तः २, जयन्तः ३, अपराजितः ४, इति, उक्तं च-' पलिभोवमहिइया, सुरगणपरिवारिया सदेवीया। एएसु दारनामा, वसंति देवा महिड्डीया ॥ १॥" छाया-" पल्योपमस्थितिकाः मुरगणपरिवृताः सदेवीकाः। एतेषु द्वारनामानो वसन्ति देवा महर्द्धिकाः ॥१॥” इति । सू० ६३ अनन्तरं जम्बूद्वीपस्य द्वाराणि निरूपितानि, सम्पति जम्बूद्धीपस्थान् अन्तर द्वीपान् निरूपयितुमाह मूलम्-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पवयस्स दाहिजेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुदं तिन्नि तिन्नि जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि अंतरदोया पण्णत्ता, तं जहा-एगूरुयदीवे१, आभासियदीवे२,वेसाणियदीवे ३, णंगोलियदीवे४ । तेसुणं दीवेसु चउबिहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-एगूरुआ१, आभासिआर, वेसाणिया३, गंगोलिया। तेसिणं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं चत्तारि२, जोय. णसयाइं ओगाहेत्ता एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं महाबलाः, महायशसाः, महासौख्याः" इसपाठका संग्रह हुवाहै । इन चार द्वारोंपर जो चार देव रहते हैं उनके नाम छारके नामानुसार हैं। इस तरह उन देवोंके नाम क्रमशः विजय-वैजयन्त-जयन्त और अपराजित हैं। कहाभी है-" पलिओवमहिइया" इत्यादि, वे देव पल्यो पमकी स्थिति वाले हैं द्वारमें रहने वाला प्रत्येक देव सुरगणोंसे सदा परिवृत रहता है और अपनी-२ देवियोंसे युक्त बना रहताहै ।।०६३॥ સંપન્ન આ ચાર વિશેષણે ગ્રહણ કરવા જોઈએ. તે ચાર દ્વાર પર જે ચાર દે રહે છે તેમનાં નામ પણ દ્વારેનાં નામાનુસાર છે. એટલે કે વિજય, वैश्यन्त, यन्त भने अपराजित छ. ४थु ५ छ है “पलिओवमट्रिइया" ઈત્યાદિ. એક પોપમની સ્થિતિ છે. તે દેવ સદા સુરગણે અને દેવીઓના परिवारथी परिवृत्त २२ छ. ॥ सू. १३ ॥ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨

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