Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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स्थानासो " जाव वेमाणियाणं " इति-वैमानिकपर्यन्तं तत्तद्दण्डकं पठनीयम् ।
"एवमेकेके पदे " इत्यादि-एवम् उक्तमकारेण यथाऽचिन्वन्नादिपघटित तत्तद्दण्डकत्रयमुक्तं तथा अवघ्नन्नादिपदघटितमपि तत्तदण्डकं पठनीयम् , एतदेव स्पष्टयति-" एकेके पदे " इत्यादिना, एककस्मिन् प्रत्येकम्, इत्यर्थः, अयं भावः" अवनन् " इति पदे योजिते सति त्रीणि दण्डकानि, पुनः ‘वध्नन्ति ' इति पदे योजिते सति त्रीणि दण्डकानि । तथा 'भंस्यन्ति ' इति पदे योजिते सति त्रीणि दण्डकानि, अनेन क्रमेण · उदेश्यन्, उदीरयन्ति उदीरयिष्यन्ति ' इत्यादि भूतवर्तमानभविष्यत्कालिकतत्तत्पयोगयोजनयैकस्मिन्नेकस्मिन् पदे त्रीणि हुई है, सर्वनिर्जरा नहीं गृहीत हुई है। क्यों कि-चतुर्विंशति दण्डकों में इस निर्जरा का असद्भाय है। " जीव वेमाणियाणं" वैमानिक पर्यन्त वह दण्डक पठनीय है।" एचमेकेक्के पदे-" जैसे-"अचिन्वन्" आदि पदघटित दण्डकत्रय कहे गये हैं वैसे ही " अबन्नन् " आदि पदघटित भी दण्डकत्रय कल्पना से बनाना चाहिये। इसी का स्पष्टीकरण सूत्रकार अब “ एक्के क्के पदे-" इत्यादि सूत्र द्वारा करते हैं, इसमें उन्हों ने कहा है कि-" अवनन् " इस पद को योजित करने पर मान माया और लोभ सम्बन्धी पद के आधार पर भूतकाल को लेकर ३-३ दण्डक होते हैं। जैसे-जीवों ने मान से भूतकाल में अष्ट प्रकृतियों का पन्ध किया हैं १ माया से इनका भूतकाल में बन्ध किया है २, और लोभ से इनका बन्ध भूतकाल में किया है ३। इस प्रकार से “ अबગૃહીત થઈ છે, સર્વનિર્જરા ગૃહીત થઈ નથી, કારણ કે ચોવીશ દંડકના છમાં સર્વનિજેરાને સદ્ભાવ નથી.
___“जाव वेमाणियाणं " वैमानि पय-तन वामi Anीनु थन थन. “ एवमेक्केक्के पदे " म “ अचिन्वन् " माह पटित ऋण ६४ ४वामां माव्या छ, मेघir “अबध्नन् " माह पहचाटत ५ त्रा त्रण ४ ४६पनाथी मनापी सेवा नये. सन वात सूत्रा२ २ " एकेके पदे" छत्यादि सूत्रया द्वा२१ २५ष्टी४२ ४२ छ
___ या सूत्रा४ १२॥ सूत्र२ अम ४ छ है “ अबध्नन् " पहने ચેજિત કરીને માન, માયા અને લેભ સંબંધી પદને આધારે ભૂતકાળની અપેક્ષાએ ત્રણ ત્રણ દંડક થાય છે. જેમકે (૧) જીએ માનને કારણે ભૂતકાળમાં આઠ કર્મપ્રકૃતિએને બન્ધ કર્યો છે. (૨) એ જ પ્રમાણે માયાના કારણે પણ તેમને ભૂતકાળમાં બન્ધ કર્યા છે, અને (૩) લાભને કારણે પણ ભૂતआमा तन मन्य छे. मा प्रभारी “ अबन्धन " मा भूतनु ३५
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨