Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १३-१४
गुणस्थान/१७ समाधान—ऐसी शङ्का ठीक नहीं है, क्योंकि कुछ कषायों के उपशमन किये जाने से उत्पन्न - हुआ है उपशम परिणाम जिसके ऐसे अनिवृत्तिकरण बादरसाम्पराय और सूक्ष्मसाम्पराय संयत के उपशमभाव का अस्तित्व मानने में कोई विरोध नहीं है।
शङ्का-अपूर्वकरणगुणस्थान में किसी भी कषाय का उपशम नहीं होता अतः उसके औपशमिकभाव कसे सम्भव है ?
समाधान-क्योंकि अपूर्वकरण गुणस्थान में अपूर्वकरण परिणामों के द्वारा प्रतिसमय असंख्यातगुणवेणीरूप से कर्मस्कन्धों की निर्जरा करने वाले तथा स्थिति व अनुभागकाण्डकघात द्वारा कम से कषायों की स्थिति और अनुभाग को असंख्यात और अनन्तगुरिणत हीन करने वाले तथा उपशमन क्रिया प्रारम्भ करने वाले ऐसे अपूर्वकरणसंयत के उपशमभाव के मानने में कोई विरोध
शङ्का-कर्मों के उपशमन से उत्पन्न होने वाला भाव औपशमिक होता है, किन्तु अपूर्वकरण संयत के कर्मों के उपशम का अभाव है, इसलिए उसके औपशमिकभाव नहीं माना जा सकता?
समाधान-क्योंकि उपशमन शषित से समन्वित अपूर्वकरणसंयत के प्रौपशमिकभाव के अस्तित्व को मानने में कोई विरोध नहीं है ।
इस प्रकार कर्मों का उपशम होने पर उत्पन्न होने वाला और उपशमन होने योग्य कर्मों के उपशम सम्बना हुआ भी भात्र निन्द कहना है, यह वात सिद्ध हुई । अथवा भविष्य में होने वाले उपशमभावों में भूतकाल का उपचार करने से अपूर्वकरण औपशमिक भाव बन जाता है । जैसे सर्वप्रकार के असंयम में प्रवृत्तमान चक्रवर्ती तीर्थंकर के 'तोर्थङ्कर' यह व्यपदेश बन जाता है ?'
क्षपकश्रेणी के चारों क्षपकों, सयोगकेवली और प्रयोगकेवली के क्षायिकभाव हैं ।
शा--वातिया कर्मों का क्षय करने वाले सयोगकेवली और अयोगकेवली के क्षायिकभाव भले ही हों; क्षीणकषायवीतराग छयस्थ के भी क्षायिकभाव हो सकता है, क्योंकि उसके भी मोहनीयकर्म का क्षय हो गया है, किन्तु सुक्ष्मसाम्पराय आदि शेष क्षपकों के क्षायिकभाव मानना युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि उनमें किसी भी कर्म का क्षय नहीं होता?
समाधान-ऐसी शंका ठीक नहीं, क्योंकि मोहनीयकर्म का एकदेश क्षपग करने वाले बादरसाम्पराय और सूक्ष्मसाम्पराय क्षपकों के भी कर्मक्षयजनित भाव पाया जाता है ।
शङ्का-किसी भी कर्म को नष्ट नहीं करने वाले अपूर्वकरणसंयत के क्षायिकभाव कैसे हो सकता है ?
समाधान-अपूर्वकरणसंयत के भी कर्मक्षय के निमित्तभूत परिणाम पाये जाते हैं. प्रतः उसके भी क्षायिकभाव बन जाता है।
यहाँ भी कर्मों के क्षय होने पर उत्पन्न होने वाला भाव क्षायिक है तथा कर्मों के क्षय के लिए
१. प. पू. ५ पृ. २०४-२०५ ।