Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...... nuinnar ॐ नम: सिंद्धं १०८ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज कृत । चौदह ग्रन्थ रत्न । श्री तारणतरण अध्यात्मवाणीजी :प्रकाशक: श्री तारण तरण जैन तीर्थक्षेत्र निसई जी ट्रस्ट मल्हारगढ़ (अशोकनगर) म.प्र. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : वन्दे श्री गुरू तारणम् : श्री तारण तरणअध्यात्मवाणीजी "श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ग्रंथ सोलहवीं शताब्दी में हुए महान क्रांतिकारी संत आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा रचित चौदह ग्रंथों का संग्रह है। इस ग्रंथ की प्रत्येक गाथा में आचार्य देव ने मानव मात्र के लिये आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। ग्रंथ में आगम, अध्यात्म, सिद्धांत, स्वानुभव, आत्म साधना, चारों अनुयोगों से संबंधित विषय वस्तु का विस्तृत विवेचन किया गया है। अखिल भारतीय तारण समाज की श्रद्धा का केन्द्र यह ग्रंथ श्री चैत्यालय जी की वेदियों पर विराजमान किया जाता है। तथा महिमा पूर्वक वाचन स्वाध्याय किया जाता है। मानव मात्र के जीवन को अध्यात्म साधना, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र से अलंकृत करने वाला यह महान ग्रंथ सृजित कर आचार्य देव ने हम सभी भव्यात्माओं पर महान-महान उपकार किया है।" %89%B8%B8%8*83%B3%83% जय तारण तरण 發發發發發發醫醫醫發發發發器樂器樂醫醫醫验 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय अणुक्रमणिका श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री तारणतरण अध्यात्मवाणीजी ( विषय अनुक्रमणिका) क्र. विषय वस्तु पृष्ठ संख्या पृष्ठ संख्या क्र. विषय वस्तु ११. श्री ज्यान समुच्चय सार जी भूमिका ४-१ १३-१४ २. १०-११ पाँच मत - चौदह ग्रन्थ दर्शन एवं श्री श्रावकाचार जी विषयानुक्रम १२. श्री उपदेश शुद्ध सार जी १५-१२१ १३. श्री त्रिभंगीसार जी १२२-१२१ श्री ज्यान समुच्चय सार जी विषयानुक्रम १२ - १४ १४. श्री चौबीस ठाणा जी १२१ - १५० ४. श्री उपदेश शुद्ध सार जी विषयानुक्रम १५ - १७ १५. श्री ममलपाहुइ जी १५१-४२८ ५. ६. ७. श्री ममलपाहुइ जी - फूलना सूची श्री ममलपाहुइ जी - विषय वस्तु श्री मालारोहण जी १६. श्री षातिका विसेष जी ઇરલ - જરૂર १७. श्री सिद्ध सुभाव जी ४३२ - ४३३ ८. श्री पंडित पूजा जी १८. श्री सुन्न सुभाव जी ४३३-४३४ १. श्री कमल बत्तीसी जी १५. श्री छग्रस्थवाणी जी ४३५-४१२ १०. श्री श्रावकाचार जी २०. श्री जाममाला जी ४१३-४६१ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका भूमिका आचार्य श्री जिन तारण स्वामी का जन्म मिति अगहन सुदी सप्तमी विक्रम संवत् १५०५ में कटनी के निकट पुष्पावती नगरी में हुआ था, जो आज बिलहरी के नाम से जानी जाती है। आपके पिताजी का नाम श्री गढ़ाशाह जी और माताजी का नाम श्री वीरश्री देवी था। पूर्व के उत्कृष्ट शुभ संस्कार आपके साथ में आये थे अतः बचपन से ही आश्चर्य में डाल देने वाली घटनायें घटने लगीं। उसी क्रम में आपके माता - पिता पाँच वर्ष की बाल्यावस्था में ही आपको लेकर सेमरखेडी आ गये और तारण स्वामी माता - पिता सहित मामा श्री लक्ष्मण सिंघई के यहाँ रहने लगे। 'बाल्यकालावति प्राई' बाल्यकाल से ही आप अत्यंत प्रज्ञावान थे। 'मिध्या चिली वर्ष म्यारह' श्री छास्थवाणी जी ग्रन्थ के इस सूत्रानुसार श्री तारण स्वामी को ग्यारह वर्ष की अवस्था में सम्यग्दर्शन हो गया था। थोड़े ही समय में आपने जिनशासन के गंभीर रहस्यों को जान लिया तथा तदनुरूप ज्ञान वैराग्यमय जीवन बनाते हुए आत्म कल्याण के लक्ष्य से आत्म साधना में रत हो गये । संसार शरीर भोगों से बढ़ती हुई विरागता और मुक्ति पाने की प्रबल भावना ने आत्मबल इतना बढ़ाया कि मां की ममता भी संसार के बंधन में नहीं बांध सकी और २१ वर्ष की किशोरावस्था में आपने अखण्ड बाल ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण करके अपने शुद्धात्म स्वरूप की साधना में तल्लीन हो गए । सहज और प्रबल वैराग्य सहित मात्र ज्ञान ध्यान ही आपका कार्य था। शुद्ध स्वभाव की साधना की भावनाओं से ओतप्रोत श्री जिन तारण स्वामी सेमरखेड़ी के निर्जन वन की गुफाओं में अपनी साधना में लीन रहते थे। वीतराग स्वभाव की साधना से दिनों दिन बीतरागता बढ़ती गई और ३० वर्ष की उम्र में सप्तम ब्रह्मचर्य प्रतिमा की दीक्षा ग्रहण की। श्री तारण स्वामी का जीवन निश्चय - व्यवहार से समन्वित था, उनकी कथनी करनी एक थी। इस उम्र तक उन्होंने आगम और अध्यात्म ज्ञान के उपार्जन के साथ-साथ संयम की साधना में वैराग्यपूर्ण द्रढ़ता जाग्रत कर ली थी। इस बीच उन्होंने देव, गुरू, धर्म के नाम पर चल रहे आडम्बर और जड़वाद को भी समझ लिया था। उन्हें श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उसमें मार्ग विरुद्ध क्रियाकाण्ड की भी प्रतीति हुई, अत:उन्होंने ऐसे मार्ग पर चलने का निर्णय लिया जिस पर चलकर धर्म के नाम पर होने वाले क्रियाकाण्ड की अवधार्थता को समाज हृदयंगम कर सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने सत्य धर्म शुद्ध अध्यात्म की साधना करने और जगत के जीवों को भी सत्य धर्म के स्वरूप को बताने का संकल्प किया | धर्म की यथार्थ साधना से तथा उनकी वीतरागता की देशना से जीवों में आत्म कल्याण की भावना जागी, सच्चे और झूठे का निर्णय करने का विबेक प्रगट हुआ। परन्तु उस समय क्रियाकांडों को ही सर्वस्व माननेवाले आत्म धर्म से अपरिचित भट्टारक, पांडे, पंडितों को यह सत्यता का प्रकाश सहन नहीं हुआ और योजना बद्ध ढंग से तारण स्वामी को जहर दिया गया, बेतवा नदी में डुबाया गया परन्तु वे अपने ममल स्वभाव की साधना में इतने तन्मय हो गये थे कि इन घटनाओं का उनके ऊपर प्रभाव नहीं हुआ बल्कि स्वभाव साधना द्वारा मुक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिये अधिक प्रबलता से आत्म शक्ति जाग गई तथा साधना में दृढता पूर्वक आगे बढ़ने लगे | आत्म चिंतन, मनन, ध्यान आदि में रत रहते हुए आपने जाति-पांति से परे मनुष्य मात्र को धर्म का यथार्थ स्वरूप बताया जिससे अनेकों आत्माओं ने कल्याण का मार्ग ग्रहण किया । अनादि कालीन संसार के जन्म-मरण आदि दुःखों से मुक्त होने और आनन्द परमानन्दमयी परम पद प्राप्त करने की उत्कृष्ट भावना से ६० वर्ष की आयु में मिति माघ सुदी पंचमी (बसन्त पंचमी) विक्रम संवत् १५६५ में आपने निर्गन्ध वीतरागी साधु पद धारण किया । पश्चात् १५१ मण्डलों के आचार्य होने से मण्डलाचार्य पद से अलंकृत हुए। आचार्य श्री जिन तारण स्वामी सोलहवीं शताब्दी में हुए महान अध्यात्मवादी बीतरागी संत थे। वे अपने ममल स्वभाव की साधना में ऐसे लीन हुए कि संसार शरीरादि से मोह टूट गया और चार-चार दिन तक आत्म समाधि में लीन रहने लगे। उन्होंने अपने ज्ञान की किरणों से समस्त विश्व को आलोकित किया। उनके ज्ञान के प्रकाश में लाखों जीवों ने आत्म कल्याण का मार्ग अपनाया। आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज मुनि पद पर ६ वर्ष ५माह १५ दिन रहे । इस प्रकार उनकी पूर्ण आयु ६६ वर्ष ५ माह १५ दिन की थी। अंत में श्री निसई जी क्षेत्र (मल्हारगढ़) के बन में विक्रम संवत् १५७२ मिति ज्येष्ठ वदी ६ को समाधि धारण कर सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त हुए। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका महत् पुरुष की जीवनी, देत चितावनि टेर। तुमहू अपने चरित को, करौ महत् का ढेर | संत पुरुषों की बाणियां जगत के कोने-कोने में मनुष्य को प्रभावित कर रही हैं, क्योंकि उनका मन अनंत ज्ञान और आनंद के समुद्र परम ब्रह्म परमात्मा सिद्धों में लीन रहता है। इससे उनका कुल पवित्र होता है और माता जो जन्म देने वाली है वह भी कृतार्थ हो जाती है और वह नगरी धन्य कहलाती है, जहाँ उनका जन्म होता है । जो उनके सत्संग से लाभ लेते हैं वे धन्यवाद के पात्र बन जाते हैं, उनके स्वार्थ का त्याग होता है, इससे उनकी बात को सब स्वीकार कर लेते हैं। उनके दर्शन से, उनके आचरण और गुणों का प्रभाव भी सब पर पड़े बिना नहीं रहता है। उनमें जो दया, क्षमा, शांति, समता, संतोष, संयमादि गुण होते हैं उनका भी असर जनसमूह पर पड़ता है। उनके यहां कोई भोजन कर जावे या वे किसी के घर आहार कर आवें तो दोनों घर पवित्र हो जाते हैं ; इसीलिये विधिद्रव्य दात्र पात्र विशेषात् तद् विशेष: कथन किया है, कारण कि उनका अन्न, धन, तन, मन और वाणी सब पवित्रता से ओतप्रोत रहती है। गृहस्थाश्रम में भी ज्ञानवान योगी होते हैं। उच्चकोटि के ज्ञानी, योगी, गृहस्थ के घर में जन्म लेते हैं, ऐसा जन्म अतिशय दुर्लभता से प्राप्त होता है । ज्ञानी योगी के घर भी उनके उच्चादर्श के प्रभाव से उच्चकोटि की ही संतान हुआ करती है। उनके संसर्ग से लोग ज्ञानी महात्मा बन जाते हैं। सत्संग की अग्नि से पाप कर्म भस्म हो जाते हैं, तभी तो 'जानाम्नि बन्ध कर्माणां' कहा है। जैसे घास व आग के ढेर पास-पास होने पर आग घास को अपने रूप कर लेता है पर घास में शक्ति नहीं कि वह आग को अपने रूप कर सके, इसी प्रकार संसारी मनुष्यों के अज्ञान व पाप में वह सामर्थ्य नहीं कि जीवन मुक्त महान आत्मा को अज्ञानी बना सके । साधारण मनुष्यों पर अज्ञानियों के संग का असर भले ही हो जावे परन्तु ज्ञानी पर नहीं, इसके विपरीत ज्ञानी के सत्संग से अज्ञानी व पापी पवित्र हो जाते हैं तथा ज्ञानी और महात्मा बन जाते श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सबके प्रति समान दृष्टि रखते हैं, उनके मन में किसी के भी प्रति राग द्वेष नहीं होता ऐसे व्यक्ति ही संत होते हैं। संत पुरुषों की महिमा और गुणगरिमा का महापुरुष स्वयं भी वर्णन नहीं कर सकते, फिर दूसरा कौन कर सकता है ? जो यत्किंचित् कहा जाता है वह आभास मात्र है। जो भी द्वादशांग रूप प्ररूपित किया गया है, शास्त्रों में जिन महापुरुषों की महिमा गाई गई है वे आज संसार में नहीं है और मिलना भी कठिन है। महापुरुषों में जातिगत, भाषागत भेद नहीं होता, चारों वर्गों में महात्मा पुरुषों का जन्म होता है। उनकी तेजस्वी मुद्रा को देखकर ही जीवन बदल जाता है, उनके नेत्रों से देखी चीज पवित्र हो जाती है, वे ऋद्धि-सिद्धि के धारी होते हैं, उनकी दृष्टि जहाँ तक विचरती है वहाँ तक पवित्रता का प्रसार करती है,उनकी दृष्टि द्वारा हृदयगत भावों के परमाणु फैल जाते हैं, जिससे सूखे वृक्ष हरे और सूखे तालाब भी जल से भर जाते हैं ऐसा ग्रंथों में गाया गया है, फिर उनके आज्ञानुवर्ती चलने वालों का कल्याण हो जाये इसमें क्या आश्चर्य है ? उच्चकोटि के महापुरुष कभी अपने को महात्मा नहीं बतलाते, उनका ज्ञान और चारित्र उनका आदर्श होता है, क्रिया भी उनकी निष्फल नहीं होती। महापुरुषों की आज्ञा मानकर यदि हम चलें तो हमारा कल्याण हो जाये इसमें कोई शंका की बात नहीं है। यदि उच्चादर्श के पुरुषों के साथ हमारा सम्मिलन हो जाय तो शीघ्र लाभ होता है। जैसे-जानने वाले राहगीर के साथ पथ का श्रम नहीं जाना जाता; कारण कि सारे पथ का वह जानकार होता है और हर सुविधाओं के प्रति बह सजग होता है, इसी तरह शास्त्रज्ञाता या परमात्मा के जिज्ञासु के सत्संग से हमारा कल्याण शीघ्र हो सकता है। हम लोगों में जो निराशा है वह श्रद्धा और आत्मबल की कमी के कारण से है। हमको कभी निराश नहीं होना चाहिये; कारण जो शक्तिहीन हैं वे भी श्रद्धा से बलशाली देखे जाते हैं, उनके शरीर में जोश आता है, फिर अबल बनकर अज्ञानी क्यों बनते हो, तत्त्वदर्शी महात्माओं की आज्ञा मानने से व उनके संग करने से पापी मनुष्य भी पवित्र हो जाता है, फिर पुण्यात्माओं को सब साध्य है। संसारी मनुष्यों और परमात्म शक्ति के बीच १. आलस्य, २. कुटुम्ब मोह, ३. विषयों की प्रीति, ४.अभिमान, ५. विश्व ममता यह पाँच रुकावटें होती हैं। महापुरुष पहले आलस्य को महापुरुषों के चरणों के स्पर्श से भूमि भी पवित्र होकर तीर्थ स्वरूप हो जाती है। संसार में जितने भी तीर्थ हैं वे महापुरुषों की संगति से ही तीर्थ बने हैं। उनकी तीर्थ संज्ञा महापुरुषों का ही प्रभाव है । महापुरुषों में स्त्री पुरुष सभी को स्थान है, ऐसे महापुरुषों को किसी की अपेक्षा नहीं रहती, वे संसार से विरत होकर निरन्तर अपनी आत्मा में तल्लीन रहते हैं, बैर भाव रहित Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका त्याग कर सबको छिन्न-भिन्न कर डालता है और अपने घट में बैठे परमात्मा का दर्शन किया करता है। वह यह जानता है कि इस कायारूपी धर्मशाला में रहकर अधिकार कैसा? और अपने को नहीं सुधारा तो बुद्धिमानी कैसी ? जन्म हुआ है तब मरना भी पड़ेगा फिर चिंता क्यों ? अंदर बसने वाले परमात्मा को नहीं देखा तो भक्ति कैसी? इसलिये आलस्य को त्याग कर सजग व सचेत रहता है। महापुरुषों के पाँच मित्र व पाँच शत्रु होते हैं - १. धर्म मित्र और झूठ शत्रु, २. बुद्धि मित्र और क्रोध शत्रु, ३. संतोष मित्र और लोभ शत्रु ४. विद्या मित्र और अभिमान शत्रु, ५. उदारता से मित्रता और पछतावा से शत्रुता । महापुरुषों का जीवन ही कर्मक्षेत्र बन जाता है परन्तु प्रारब्ध कर्मों का भोग इसमें भी आ उपस्थित होता है और ज्ञानी ज्ञान भाव से सभी कर्मों को निर्जरित कर देता है। देवयोनि में समस्त शुभ कर्मों के भोग समाप्त हो जाने तथा तिर्यंच योनि में किसी पुण्योदय के प्राप्त हो जाने पर यह मनुष्य पर्याय प्राप्त हुई है, इसको पाकर भी शास्त्रानुसार पुरुषार्थ करने में अवहेलना करे और भाग्य पर निर्भर रहे तो उसकी नितान्त भूल हो जाती है, ऐसे जीव न तो वर्तमान जीवन में उन्नति कर पाते हैं, न भावी जीवन उनका सुखदाई होता है, उनमें भीरुता अकर्मण्यता आ जाती है, इसलिये शास्त्रानुसार पुरुषार्थ करके परमार्थ की सिद्धि करना कर्तव्य है जिससे संसार सागर से पार पा जाते हैं। प्रारब्ध कर्मों पर विजय प्राप्त करने तथा आत्मानंद की प्राप्ति का सहज उपाय कामना रहित सत्पुरुषार्थ ही है। आचार्य प्रवर संत तारण स्वामी जो सोलहवीं शताब्दी में अगहन शुक्ला सप्तमी विक्रम् संवत् १५०५ को जन्म लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने इन चौदह ग्रन्थों में अपने अनुभव से स्व पर उपकारक ज्ञान की गंगा बहाई है, उनके अनुभवपूर्ण ग्रंथ समुदाय का नाम ही श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी है, जिसमें चौदह ग्रन्थ हैं, इन चौदह ग्रन्थों में निम्न प्रकार विवेचन पूर्वक कथन किया गया है। १. श्री मालारोहण जी - इस ग्रन्थ में आत्म गुणमाला और उसकी प्राप्ति का उपाय बताया गया हैं, इसमें ऊंकार स्वरूप परमात्मा का कथन किया है कि परमात्मा कोई जुदी चीज नहीं है, परमात्मा अपनी ही आत्मा के शुद्ध स्वरूप का नाम है। उसका वर्ण मात्राओं में ओं या ॐ स्वरूप आंका गया है, जिसके द्वारा ही ऋषि मुनियों ने अपना अनुभव पाया है। ओंकार को ६ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जानकर कोई भी जिस पदार्थ को चाहे देख सकता है, ओंकार ब्रह्मप्राप्ति का एक अद्वितीय साधन है। योग सूत्रों में भी परमेश्वर का मुख्य वाचक ओंकार शब्द माना गया है, ओंकार के जाप या अर्ध चिंतन से अध्यात्म मार्ग पर चलने वाला साधक सरलता से एकाग्रता और अंतर्मुखता को प्राप्त कर सकता है और उसके मार्ग में आने वाले सर्व प्रकार के विघ्न स्वयं नष्ट हो जाते हैं वह अनंत चतुष्टय युक्त रत्नत्रय को प्राप्त कर लेता है। जिस प्रकार कोई बालक झूले में बैठकर झूलता हुआ अपने माता-पिता के अनुरूप आनन्द मग्न होकर गीत गाता है और प्रसन्न रहता है इसी प्रकार ज्ञानी योगी साधक श्वास-प्रश्वास रूपी योग की दो डोरियों से युक्त चित्त की स्थिरता रूपी झूले में बैठकर आत्मा के ध्यान में झूलता हुआ परम ब्रह्म परमात्म स्वरूप के आनंद में मन्न रहता है और अपने मधुराक्षर ओंकार रूपी संगीत को गाता है। समस्त भूमण्डल से नमस्कृत ऋषि मुनियों से गाई गई, सब शास्त्रों में वर्णन की गई जगत की मातृशक्ति जिनवाणी है, ओंकार उसका आह्वान है, जो अपनी आत्मानुभूति करने का अनुपम साधन है। अनेकानेक आपदाओं से संतापित मैं उसी ओंकार का आश्रय लेता हूँ, इस भावना का वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है। ओम् के गान करने वाले आचार्यों का कथन है कि परमात्म स्वरूप शाश्वत भगवत् पद की प्राप्ति की अद्भुत सीढ़ी एक ओंकार ही है, जो योगियों को दुर्गम और भक्तों को दुर्लभ, ज्ञानियों को दुश्चिंत है। इस ओंकार को जो अपना आध्यात्मिक कवच बनाता है वह संसार के त्रय तापों से बचकर ओंकार स्वरूप हो जाता है। इस प्रकार ओंकार ज्ञान विज्ञान रूपी वृक्ष का एक सुन्दर सुगन्धित पुष्प है। जैसे-फूलने वाले वृक्ष का सौन्दर्य पुष्प में प्रगट होता है वैसे ही मानव जीवन रूपी वृक्ष का सुन्दर और सुमनोज्ञ पुष्प ओंकार जप से ही प्राप्त अहंत सर्वज्ञ पद ही है। ओंकार ही समस्त प्रकाशमय पदार्थों का प्रकाश है, ओंकार ही सर्वज्ञ आत्माओं का अमृतमय भोज्य है। मनुष्य भव में अपने पूर्णपने की ओर ले जाने की भूख और उसकी तृप्ति इसी ओम् से ही प्राप्त होती है। मनुष्यों के अंदर जो पापों की राशि घर किये हुए हैं उसको भस्मसात् करने को ओंकार रूपी अग्नि ब्रह्म ज्ञानियों ने पाई है, इसी से यह शक्ति ब्रह्मास्त्र कहलाती है। इस ग्रंथ में ३२ गाथायें हैं। सम्यक्दर्शन की प्रमुखता से इसमें वर्णन किया गया है। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका सम्यकदर्शन क्या है ? सम्यक्दृष्टि कैसा होता है ? सच्चा पुरुषार्थ किसे कहते हैं ? मुक्ति को प्राप्त करने का मार्ग क्या है ? इन सभी प्रश्नों के समाधान और सम्यकदर्शन की महिमा बताई है। समवशरण में राजा श्रेणिक ने भगवान महावीर से ज्ञान गुण माला प्राप्त करने का उपाय पूछा था । कल्याण मार्ग में स्थित करने वाला वह प्रसंग भी बहुत सुंदरता से प्रतिपादित किया गया है। इस ओंकार गुणमाला में आत्मब्रह्म के एकसौ आठ गुणों की माला का वर्णन है। २. श्री पंडित पूजा जी - यह ग्रन्थ आत्म आस्तिक्यादि का दिग्दर्शन कराता है और अपने कर्तव्य योग्य इस मानव जीवन को सफल बनाने के लिये षट्कर्मों का उपदेश देता है। जिसमें आत्म देव का दर्शन, निर्गन्ध गुरू की सेवा, जिनवाणी का स्वाध्याय, मनन, अनुभवन, इंद्रिय संयम, आत्मज्ञान की प्राप्ति, सुख प्राप्ति हेतु कर्म दाहक क्रियायें निहित हैं, जिन क्रियाओं से साधक साध्य को सिद्ध कर तत्स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। सम्यकुदृष्टि ही आस्तिक है; कारण कि उसे आत्मा और परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान भले प्रकार विदित है । जो अपने पूर्णत्व की शरण लेकर पूर्णत्व प्राप्त करने की जिज्ञासा रखता है उसके कोई अभाव नहीं है, वह ज्ञानी उत्पत्ति. विनाश जडता के दोष से रहित है. चिंता और भय से मुक्त है, शाश्वत अविनाशी सत्य का अनुभवी होता है, अखंड आनंद और शांति का अनुभवी साधक आत्मा की पवित्र दशा का उपासक अन्तर्मुखी बुद्धि से सत्यदर्शी हो जाता है, आत्मशांति और चेतना की गहराई का अनुभवी है, उसका संबंध वर्तमान से होता है। आस्तिक में बुद्धि और दृष्टि की प्रधानता होती है तब ही वह गुणस्थान और मार्गणा से अपनी उन्नति करता है, दोषों का त्यागी और गुणों का प्रेमी आस्तिक ही होता है। आत्मानुभव का रसिक होता है, त्याग और ज्ञान के द्वारा पूर्ण योग ही उसके जीवन की पूर्णता है, निर्दोष जीवन के कारण प्रत्येक परिस्थिति में स्वस्थ व शांत रहता है। सेवा, सदाचार, इंद्रिय दमन, समता, दान सहित होते हुए भी निरपेक्षता, निर्मोहता, आत्म निर्भरता, निस्पृहता, निष्कामवृत्ति, बैर रहित पना आदि दैवी गुणों की विशेषता आस्तिक में ही होती है। सच्चा आस्तिक ही पूर्ण ज्ञानी और असत्य से विरक्त होता है। आस्तिक संयोग की दासता त्याग कर वियोग का अंत योग में देखता है। आस्तिक सत्य का ज्ञान प्राप्त कर दुःख का अंत नित्य में देखता है और नित्य जीवन को जानकर मृत्यु का अंत मुक्ति में देखता है और नास्तिक की दशा इसके विपरीत ही होती है। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी इस ग्रंथ में ३२ गाथायें हैं। सम्बज्ञान इस ग्रंथ का प्रमुख विषय है। ज्ञानी कौन होता है? ज्ञानी कैसा होता है ? पण्डित सच्चे देव, गुरू, शास्त्र की किस प्रकार पूजा करता है ? यह बताकर आध्यात्मिक पूजा का स्वरूप और उसका फल बताया है। ज्ञानी की विशेषता, आत्म ज्ञान की महिमा तथा निश्चय - व्यवहार से समन्वित शाश्वत मुक्ति मार्ग का कथन आदि सभी वर्णन विशेष रूप से इस ग्रंथ में किया गया है। ३.श्री कमल बत्तीसी जी - इस ग्रन्ध में यह बताया गया है कि जिनवाणी के स्वाध्याय द्वारा आत्मा परमात्म शक्ति में एकाकार होकर पुरुषार्थ के मार्ग पर चलकर उन्नति को पाता है, तत्त्व स्वरूप में मिल जाता है । वर्तमान में अपनी संभाल करता है और निरन्तर आत्म निरीक्षण में संलग्न रहता है, इसके बिना भविष्य का सुधार होता ही नहीं है। यह आस्तिक्यता की पूर्ति का अमोघ उपाय है, इसके बिना जीवन अपूर्ण है उसमें आज के लिये - १. वर्तमान में जीने की कोशिश करना- व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति पाना, २. सुखी और प्रसन्न रहना - अपने को सर्व शक्तिमान बनाने का उपाय प्राप्त करना, ३. अपने मन को कोमल रखना - वर्तमान समयानुसार चलने की आदत होना, ४. संसार को रंगमंच समझना-मिले हए संयोग को नाटकीय पात्र समझकर मोह का क्षय करना, ५. अपने आत्मा के प्रेरक मन को तीन कामों में लगाना, अ-परोपकार, ब- अच्छे कार्य करने में प्रमाद न करना, स-सहनशील रहने की आदत बनाना, ६. आडम्बर - विलासिता से दूर रहना, ७. कर्तव्य निष्ठा-जल्दबाजी से व अनिर्णयता से रहित होना, ८. निडर-भय, शंका, राग-द्वेष का अभाव करना | उक्त बातों के आचरणसहित आनंद युक्त आत्मा ही संसार में पुरुषत्व को प्राप्त कर सकती है,अन्य भवभ्रमण के पात्र बने बिना रहते ही नहीं है। यही इस ग्रंथ का मुख्य विषय है सो मनन योग्य है। इस ग्रंथ में ३२ गाथायें हैं। सम्यक्चारित्र की मुख्यता से इसमें विशेष कथन किया गया है। स्वभाव में लीनता ही सम्यक्चारित्र है, इससे कर्मों की निर्जरा और मुक्ति की प्राप्ति होती है। व्यवहार से व्रत,समिति, गुप्ति आदि का आचरण सम्यक्चारित्र कहलाता है। सम्यक्चारित्र साक्षात् मुक्ति का द्वार है, यह समस्त शल्यों और पर पर्यायों से मुक्त कर आनंद परमानंदमयी सिद्ध परम पद प्राप्त कराने वाला है। ऐसा महिमावान सम्यक्चारित्र का इस ग्रंथ में वर्णन है। मोर- उक्त विचार मत के तीनों ग्रंथ (तारण त्रिवेणी) एक-एक जीव अपेक्षा कथन करते हैं, जो जितना - जितना इनका मंधन करेगा उतना-उतना अपने में प्रकाश पायेगा, उतना Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ही पुरुषार्थी बनेगा, समय पाय भवाटवी से निकल जायेगा। ४. श्री श्रावकाचार जी- इस ग्रन्थ में नाना जीवों की अपेक्षा कथन है। इसमें आस्तिकपने की सिद्धि के उपायों का ज्ञान कराया गया है। आस्तिक ही सच्चा श्रावक होता है। श्रावक को पांच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत निर्विघ्न निरतिचार पूर्वक पालने की क्रिया बतलाई है तथा उन मिथ्या क्रियाओं के जिनके करने पर जीव का पतन होता है जो एक नास्तिक का कर्तव्य है, उसे त्याग देना पड़ता है। इस संमिक्त क्रिया के करने को तत्पर जीव अंत में जीवन सफल बनाने को समाधि तक धारण कर लेता है, इससे ही उसका कल्याण है। इस ग्रंथ में ४६२ गाथायें हैं। अव्रत सम्यक्रष्टि के लिये यह ग्रंथ कहा गया है, इसमें बैराग्य भाव जगाने के लिये संसार,शरीर,भोगों का स्वरूप बताकर जीव के अनादिकालीन संसार में भ्रमण का कारण तथा अव्रत सम्यक्दृष्टि श्रावक और व्रती श्रावक के आचार का कथन किया है। साम्बाम मयंपूर्व 'आदि कहकर श्रावक की विशेषता दर्शाई है। श्रावक दशा के आगे साधुपद का भी स्वरूप इस ग्रंथ में बताया गया है,निश्चय - व्यवहार के समन्वय पूर्वक श्रावकचर्या का दिग्दर्शन करानेवाला यह विशेष ग्रंथ है। ५. श्री न्यानसमुच्चयसार जी - इस ग्रंथ में ९०८ गाथायें हैं। ग्रंथ के नाम के अनुसार द्वादशांग वाणी रूप ज्ञान के समुच्चय का सारभूत कथन, ११ अंग, १४ पूर्व का वर्णन, ज्ञानी की महिमा, साधुपद का विशद् विवेचन, सत्ताईस तत्त्व, १४ गुणस्थान, पंचाचार आदि सभी अध्यात्म और आगम के सैद्धान्तिक विषयों का गहन गंभीर वर्णन किया गया है । सम्पूर्ण जिनवाणी (ज्ञान के समुच्चय) का सार क्या है ? यह भी बहुत सुगमता से इस ग्रंथ में बताया श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी संबंधित यह अपूर्व ग्रंथ है | साधना मार्ग में आने वाले बाधक कारण कौन-कौन से हैं, उनका निराकरण कैसे होता है ? कर्म के उदय निमित्त से होने वाले रागादि भावों से एवं कर्मों से छूटने का उपाय, चिदानंद चैतन्य स्वभाव की महिमा, सिध्दि मुक्ति को प्राप्त करने की विधि तथा जिनेन्द्र भगवान के उपदेश का शुध्द सार क्या है ? ऐसे अनेक रहस्यों का इस ग्रंथ में विशेष रूप से वर्णन किया गया है। आत्मा को आत्मा या परमात्मस्वरूप समझना ही उपादेय है ऐसी दृष्टि सहित इसमें सुदेव, कुदेव, सुगुरू, कुगुरू, जिनस्वरूप, प्रणवमंत्र, निश्चय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्रचारित्र आदि अनेकों आध्यात्मिक रहस्यों का कथन किया गया है। ७.श्री त्रिभंगीसार जी- इस ग्रंथ में २ अध्याय हैं और ७१ गाथायें हैं। तीन-तीन भंग के द्वारा जिन भावों से कर्मों का आश्रव होता है, ऐसे कर्माश्रव के कारण भूत १०८ प्रकार के परिणामों का वर्णन प्रथम अध्याय में किया है तथा जिन भावों से आश्रव का निरोध होता है, ऐसे संवर रूप परिणामों का विवेचन दूसरे अध्याय में किया गया है। विशेष रूप से शुभाशुभ भावों से दूर होकर अपने शुध्द सच्चिदानंद स्वरूप का ध्यान धारण करने की प्रेरणा दी गई है। ग्रंथ के प्रारंभ में बताया है कि आयु के त्रिभाग में जीव के लेश्या रूप परिणामों के अनुसार आयु का बंध होता है इसलिये निरंतर अपने परिणामों की सम्हाल करना चाहिये। ८. श्री चौबीस ठाणा जी - इस ग्रंथ में सत्ताईस गाथायें तथा ५ अध्याय गद्यमय हैं। अज्ञान मोहवश संसार में जन्म-मरण के चक्र में फंसा हुआ जीव किसी न किसी स्थान में अवश्य पाया जाता है, वे स्थान चौबीस हैं, जिनका इस ग्रंथ में वर्णन किया गया है । गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेझ्या, भव्य, सम्यक्त्व, संझी, आहार, गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, उपयोग, ध्यान, आश्रव, जाति और कुलकोडि इन चौबीस स्थानों का वर्णन करते हुए बताया है कि अपने स्वरूप को भूलने से जीव की क्या दशा होती है ? इस संसार का स्वरूप क्या है ? तथा इससे छूटने का उपाय क्या है इत्यादि अनेक रहस्य स्पष्ट किये गये हैं। ९. श्री ममल पाहुड जी - इस ग्रंथ में ३२०० गाथायें हैं। चौदह ग्रंथों में यह सबसे बड़ा और अनेक आध्यात्मिक रहस्यों से भरा हुआ ग्रंथ है। अपने उपयोग को अपने ममल स्वभाव में लगाने की साधना और परमानंद मय रहना इस ग्रंथ का मूल अभिप्राय है । १६४ फूलनाओं में श्री गुरू महाराज ने आगम और अध्यात्म के विशेष अनुभव का रस उड़ेल दिया है। लोग कहते हैं परमानंद पद की प्राप्ति में सहायक एक ज्ञान ही है। उस ज्ञान की प्राप्ति के लिये आर्त रौद्र ध्यान को त्याग कर, धर्म शुक्ल ध्यान का अभ्यास और जिनवाणी का स्वाध्याय आवश्यक है, जिससे सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हो सके | इसकी पूर्ति हेतु ११ अंग, १४ पूर्व का पठन पाठन मनन करना चाहिये । सारांश यह है कि बिना ज्ञान के कोई भी क्रिया सफल नहीं हो सकती । सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान पूर्वक सम्यक्चारित्र होता है, यह रत्नत्रय की एकता ही मोक्ष का मार्ग ६. श्री उपदेश शुद्ध सार जी- इस ग्रंथ में ५८९ गाथायें हैं। साधक की साधना से Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका कि अध्यात्म नीरस विषय है, परन्तु ममल पाहुड ग्रन्थ की फूलनाओं में अध्यात्म को संगीत में भरकर इतना सरस बना दिया कि सहज में ही हृदयंगम हो जाता है। इस ग्रन्थ में आगम और अध्यात्म के अनेकों रहस्यों को गुरू महाराज ने बहुत ही सरलता से स्पष्ट कर दिया है। - १०. श्री पातिका विशेष जी इस ग्रंथ में १०४ कारिकायें (सूत्र) हैं, इसमें संसार का स्वरूप बताया है। यह संसार एक 'खातिका विशेष' अर्थात् विशेष गड्ढा है, जिसमें जीव अपनी अज्ञानता से चार गति चौरासी लाख योनिरूप संसार में रुल रहा है, दुःखी हो रहा है। मोह राग आदि के कारण हमेशा भयभीत रहता है। चौदह राजू रूप संसार में जीव की क्या दशा हो रही है तथा इससे कैसे छूटें? यह उपाय इस ग्रंथ में विशेष रूप से समझाया गया है। ११. श्री सिद्ध सुभाव जी - इस ग्रन्थ १में २० कारिकायें हैं। साधक कैसा होता है, वह कैसी साधना करे, सिद्ध स्वभाव को प्राप्त करने का उपाय तथा सिद्ध स्वभाव की महिमा आदि अनेकों रहस्यों को इस ग्रंथ में स्पष्ट किया गया है। १२. श्री सुन्न सुभाव जी - ३२ कारिकाओं का यह ग्रन्थ अपने आपमें बहुत महत्त्वपूर्ण है। सूत्रों में वह रहस्य भरा हुआ है, जो अपने शून्य स्वभाव का दर्शन तथा समाधि दशा को उपलब्ध कराता है। विशेष रहस्यपूर्ण विधि से शून्य स्वभाव समाधि दशा का वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। १३. श्री छद्मस्थवाणी जी - इस ग्रन्थ में १२ अध्याय हैं, जिनमें ५६५ सूत्र हैं, इन सूत्रों में विशेष रूप से चार प्रकार का वर्णन मिलता है१. भगवान महावीर स्वामी के समवशरण का वर्णन | २. श्री जिन तारण स्वामी के जीवन परिचय और साधना संबंधी वर्णन । ३. शिष्यों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के समाधान । ४. समय-समय पर आई हुई अनुभूतियां । इस प्रकार श्री छद्मस्थवाणी जी ग्रंथ में चार प्रकार के सूत्र हैं। सद्गुरू से पूछे गये प्रश्नों के उत्तरों में तथा अन्य विशेष महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं, गुरू महाराज का अंतिम उद्बोधन भी इस ग्रंथ में है। इस प्रकार श्री छद्मस्थवाणी जी अपने आपमें आध्यात्मिक रहस्यों से भरा हुआ विशाल और महिमामय ग्रन्थ है। १४. श्री नाममाला जी इस ग्रन्थ में श्री गुरू महाराज के उपदेशग्राही भव्यात्माओं की संख्या व नामावली का वर्णन है। इसमें उनके उच्चादर्श की झांकी मिलती है। उनके उपदेश में जातिगत, पदगत, धर्मगत, भाषागत, देशगत कोई भेद भाव नहीं था। सर्व भव्यात्मायें सब जगह एकसा आत्म कल्याण के मार्ग का उपदेश पाते थे, उनका उपदेश सरल भाषा में होता ९ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी था, जिसमें व्यथित संसारी मानव शांति प्राप्त करता था । यह गद्य ग्रन्थ है, जिसमें आचार्य श्री जिन तारण स्वामी के शिष्य मण्डल का परिचय है। राजा महाराजाओं के कुटुम्ब के कुटुम्ब और अन्य ग्रामों से आये जितने जीव तारण पंथी बने, उन सबके नाम ठाम (स्थान) संख्या आदि का विस्तृत वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है। जो भव्य जीव अत्यन्त श्रद्धा भक्तिपूर्वक आत्म कल्याण का मार्ग स्वीकार करते थे, उन्हें सद्गुरू तारण स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त होता था अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो वह भी इस ग्रन्थ में आया है तथा श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज की शिष्य संख्या ४३४५३३१ श्री यह भी इस ग्रन्थ से प्रमाणित है। तारण समाज के श्रद्धास्पद केद्र तीर्थक्षेत्र सीर्थक्षेत्र वार्षिक महोत्सव की तिथि तारण जंयती (अगहन सुदी सप्तमी) बसन्त पंचमी (माघ सुदी पंचमी) कार्तिक सुदी पूर्णिमा फाग फूलना (चैत्र वदी अष्टमी) इन चारों तीर्थक्षेत्रों पर प्रतिवर्ष धर्म प्रभावना के महोत्सव आयोजित होते हैं। क्र. क्र. १ २. श्री पुष्पावती जी (बिलहरी) श्री सेमरखेडी जी ३ श्री सूखा निसई जी ४. श्री निसई जी (मल्हारगढ़) १. शाश्वत तीर्थधाम श्री सम्मेदशिखर जी में स्थापित अध्यात्म केन्द्र तारण भवन में समय-समय पर श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज की वाणी की प्रभावनार्थ कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पाँच मत में चौदह ग्रंथ दर्शन एवं ग्रन्थ के नाम विचार मत १. २. ३. - श्री मालारोहण जी श्री पंडित पूजा जी श्री कमल बत्तीसी जी - गाथा संख्या . ३२ गाथा ३२ गाथा ३२ गाथा Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदह ग्रन्थ दर्शन २. - ४६२ गाथा आचार मत ४. श्री श्रावकाचार जी सार मत ५. श्री ज्यान समुच्चय सार जी ६. श्री उपदेश शुद्ध सार जी ७. श्री त्रिभंगीसार जी - १०८ गाथा - ५८१ गाथा - ७१ गाथा ममलमत ८. श्री चौबीस ठाणा जी १. श्री ममलपाहुइ जी - २७गाथा (अध्याय गद्य, सूत्र) - ३२०० गाथा (१६४ फूलना) केबल मत १०. श्री षातिका विसेष जी ११. श्री सिद्ध सुभाव जी १२. श्री सुन्न सुभाव जी १३. श्री छद्मस्थवाणी जी - १०४ सूत्र - २० सूत्र - ३२सूत्र - ५६५ सूत्र (१२ अध्याय) - गद्य ग्रंथ (शिष्यों की नामावली) श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी को उनके स्वरूप सहित नमस्कार किया गया है। * गाथा १५ से १७ तक- संसार, शरीर, भोग का स्वरूप और उनसे वैराग्य की भावना। * गाथा १८ से ३० तक- जीव के अनादिकालीन संसार परिभ्रमण का कारण। * गाथा ३१ से ३३ तक- वैराग्य भावों का जागरण। * गाथा ३४ से ४६ तक- सम्यक्दृष्टि ज्ञानी जीव की दशा का विशेष महत्वपूर्ण कथन। द्वितीयखण्ड गाथा ४७ से १९४ तक- आत्मा के तीन रूप एवं सुगुरू, कुगुरू, धर्म-अधर्म आदि का वर्णन। * गाथा ४७ से ५१ तक- आत्मा के तीन रूप- परमात्मा, अंतरात्मा, बहिरात्मा का स्वरूप। * गाथा ५२ से ६४ तक- कुदेव, अदेव की पूजा भक्ति मान्यता का परिणाम। गाथा ६५ से ७४ तक - सच्चे गुरू का स्वरूप। * गाथा ७५ से १४ तक - कुगुरू का स्वरूप और उनकी मान्यता का परिणाम। * गाथा ९५ से १६७ तक - अधर्म के लक्षणों के अंतर्गत-आर्त रौद्र ध्यान, ४ विकथा, ७ व्यसन, ८ मद, ४ अनन्तानुबंधी कषाय का वर्णन। * गाथा १६८ से १९४ तक - शुद्ध धर्म का स्वरूप कथन । तृतीय खण्ड गाथा १९५ से ३७७ तक-अंतरात्मा सम्बदृष्टि के तीन लिंग और बेपन क्रिया का वर्णन, जघन्य लिंग अवत १४. श्री नाममाला जी * ॐनमः सिद्ध श्री तारण तरण श्रावकाचार जी प्रथम खण्ड गाथा से ४६ तक- मंगलाचरण, वैराग्य भावना, संसार में परिषमण का कारण, सम्बदष्टि ज्ञानी जीव की दशा का वर्णन। गाथा १ से १४ तक - मंगलाचरण के रूप में सच्चे देव, गुरू, शास्त्र (१०) Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी-विषयानुक्रम सम्यकदी की अठारह क्रियाओं का विवेचन तथा शुद्ध-अशुबपद् कर्म का वर्णन। * गाथा १९५ से २०२ तक- जिनागम में वर्णित तीन लिंग अव्रत सम्यक् दृष्टि, व्रती श्रावक, महाव्रती साधु और उनकी त्रेपन क्रियाओं का विवेचन । * गाथा २०३ से २२४ तक - अव्रती की अठारह क्रियाओं में सम्यक्त्व का स्वरूप। गाथा २२५ से २३४ तक - अष्ट मूल गुणों का वर्णन। गाथा २३५ से २५५ तक - रत्नत्रय की साधना का स्वरूप। गाथा २५६ से २९० तक - चार दान का वर्णन। गाथा २९१ से २९६ तक - सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का स्वरूप कथन । गाथा २९७ से ३०३ तक - रात्रि भोजन त्याग का वर्णन । * गाथा ३०४ से ३०६ तक - पानी छानकर पीने का महत्व । गाथा ३०७ से ३१९ तक - अशुद्ध षट् कर्म का स्वरूप। गाथा ३२० से ३७७ तक - शुद्ध षट् कर्म का विवेचन। (देव आराधना, गुरू उपासना, शास्त्र स्वाध्याय, संयम, तप, दान) चतुर्थखण्ड गाथा ३७८ से ४४४ तक- मध्यम लिंगवती पावक की ग्यारह प्रतिमा और पांच अणुव्रतों का वर्णन । * गाथा ३७८ से ३८१ तक - ग्यारह प्रतिमा, पाँच अणुव्रतों के नाम । * गाथा ३८२ से ४०४ तक - १. दर्शन प्रतिमा का स्वरूप २५ दोषों से रहित । गाथा ४०५ - २. व्रत प्रतिमा का स्वरूप। * गाथा ४०६ से ४०७ तक - ३. सामायिक प्रतिमा का स्वरूप। (११) श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी 100 गाथा ४०८ से ४१४ तक - ४. प्रोषधोपवास प्रतिमा का स्वरूप। * गाथा ४१५ से ४१७ तक - ५. सचित्त प्रतिमा का स्वरूप । * गाथा ४१८ से ४१९ तक - ६. अनुराग भक्ति प्रतिमा का स्वरूप। * गाथा ४२० से ४२५ तक - ७. ब्रह्मचर्य प्रतिमा का स्वरूप । * गाथा ४२६ से ४३१ तक - ८. आरंभ त्याग प्रतिमा का स्वरूप। * गाथा ४३२ - ९. परिग्रह त्याग प्रतिमा का स्वरूप । * गाथा ४३३ - १०.अनुमति त्याग प्रतिमा का स्वरूप । * गाथा ४३४ से ४३६ तक - ११.उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा का स्वरूप। * गाथा ४३७ से ४४४ तक - पाँच अणुव्रतों के नाम और उनका स्वरूप। पंचमखण्ड गाथा ४५ से ४६२ तक- उत्तम लिंग महाव्रती वीतरागी निर्गन्ध साधु पद का स्वरूप तथा अरिहन्त सिड पद की सिदि। * गाथा ४४५ से ४५४ तक - साध पद, रत्नत्रय की साधना से मनःपर्यय ज्ञान की प्रगटता। * गाथा ४५५ से ४५९ तक - अरिहन्त, सिद्ध ध्रुव पद की सिद्धि। * गाथा ४६० - सम्यक्त्व की महिमा। * गाथा ४६१ से ४६२ तक - ग्रंथ कहने का अभिप्राय । *ऊँ नम: सिद्ध श्री ज्यान समुच्चय सार जी श्री न्यान समुच्चय सार जी ग्रंथ में सम्पूर्ण जिनवाणी ग्यारह अंग चौदह पूर्व रूप द्वादशांग वाणी का सार रूप कथन आगम और अध्यात्म के समन्वय पूर्वक वर्णन किया है। सम्पूर्ण ज्ञान का सार एक मात्र निज शुद्धात्म स्वरूप की Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री न्यान समुच्चय सार जी विषयानुक्रम भेदज्ञान पूर्वक स्वानुभूति और पुरुषार्थ साधना द्वारा उपलब्धि- अरिहन्त और सिद्ध पद की प्राप्ति है। इसके लिये इस ग्रंथ में आचार्य श्री जिन तारण स्वामी जी ने स्वानुभव पूर्वक ज्ञान और चारित्र के क्रमशः विकास का अपूर्व वर्णन किया है। प्रथम खण्ड वस्तु स्वरूप - गाथा १ से १६ तक गाथा १७ से १८ तक गाथा १९ से ३७ तक - - परमानंद परम ज्योतिर्मय निज शुद्धात्म स्वरूप, सच्चे देव, गुरू, शास्त्र, चौबीस तीर्थंकर आदि को मंगलाचरण रूप नमस्कार किया है तथा न्यान समुच्चयसार ग्रंथ कथन का उद्देश्य स्पष्ट किया है। - जो जीव संसार के दुःख से भयभीत हैं, मुक्ति चाहते हैं वह जिनवाणी के कहे अनुसार जिनेन्द्र के वचनों पर श्रद्धान करें, भेदज्ञान पूर्वक निज शुद्धात्मानुभूति करें । अनादि काल से जीव के संसार परिभ्रमण का कारण तथा शुद्ध सम्यक्त्व के गुण, शुद्धात्म स्वरूप का वर्णन । ( अज्ञान के कारण अर्थात् अपने को भूला हुआ जीव संसार में परिभ्रमण कर रहा है और जब तक इस दशा में रहेगा अर्थात् स्वयं का बोध, सम्यक्दर्शन नहीं होगा तब तक संसार में ही रुलता रहेगा; इसलिये सच्चे देव गुरू धर्म के माध्यम से भेदविज्ञान पूर्वक स्व स्वरूप का निर्णय करे तो मुक्ति का मार्ग बने।) १२ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्वानुभूति का विषय रत्नत्रय मई निज शुद्धात्म तत्त्व ध्रुव स्वभाव | " ममात्मा ममलं सुद्धं ममात्मा सुद्धात्मनं । देहस्थोपि अदेही च ममात्मा परमात्मं भुवं ।। ४४ ।। ऐसे निज स्वरूप का अनुभवन करना ही मुक्ति का मार्ग है, यही धर्म है। ग्यारह अंग, चौदह पूर्व का संक्षेप कथन तथा शब्द ज्ञान का प्रयोजन । गाथा ४६ से ७६ तक - चार आराधनाओं की साधना का वर्णन । कारण कार्य परमात्मा का कथन, जैसा कारण होता है वैसा कार्य होता है। ज्ञानी और ज्ञान, अज्ञानी और अज्ञान की महिमा, अज्ञान सहित व्रत, तप आदि क्रियायें सब व्यर्थ हैं, आत्म ज्ञान ही कार्यकारी और इष्ट है। गाथा ३८ से ४५ तक - गाथा ७७ से ७९ तक - गाथा ८० से ८१ तक गाथा ८२ से १५ तक - गाथा ९६ से १०४ तक - मन और भावों की शुद्धि, अशुद्ध भावों से कर्मों का भोग उपभोग करना। शुद्ध उपभोग से ज्ञान पूर्वक मुक्ति का मार्ग बनता है और अशुद्ध उपभोग मन और भावों की अशुद्धि से जीव संसार में परिभ्रमण करता है। असुद्ध तिक्त पराङ्गमुषं । उपभोगं तिक्त मनः सुतं ।। ९६ ।। प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण का कथन । गाथा ११० से १५१ तक सम्यक्त्व घातक सप्त प्रकृति- तीन मिथ्यात्व, चार अनंतानुबंधी कषाय का वर्णन | प्रथमं भाव सुद्धं च परिनाम बंध मुक्तं च गाथा १०५ से १०९ तक - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी * * तृतीय खण्ड प्रतिमा धारी व्रती श्रावक का स्वरूपगाथा ३०१ से ३३७ तक - श्रावक धर्म, ग्यारह प्रतिमाओं का स्वरूप। गाथा ३३८ से ३६६ तक - पाँच अणुव्रतों के स्वरूप सहित साधना तथा व्रतों की शुद्धि का उपाय। श्री ज्यान समुच्चय सार जी-विषयानुक्रम इनका उन्मूलन कर निज आत्मस्वरूप की प्रतीति कर अव्रत सम्यक्दृष्टि होना, यही सम्यक् पुरुषार्थ है। द्वितीय खण्ड अव्रत सम्यक्दृष्टि का स्वरूप - * गाथा १५२ से १६८ तक - अव्रत सम्यक्दृष्टि हेय-ज्ञेय का ज्ञाता और उपादेय गुणों से संयुक्त। * गाथा १६९ से १७४ तक - जिनोपदेश में अव्रत सम्यक्दृष्टि की महिमा तथा त्रिविधि आत्मा-परमात्मा, अंतरात्मा, बहिरात्मा का कथन। गाथा १७५ से १७६ तक - प्रथम उपदेश-सम्यक्त्व की प्राप्ति करना है। | गाथा १७७ से २१६ तक - २५ दोषों का स्वरूप तथा पच्चीस मल दोष रहित शुद्ध सम्यक्दृष्टि की महिमा।। * गाथा २१७ से २४० तक - अष्ट मूलगुण - संवेग, निर्वेद, निंदा, गर्दा, उपशम, भक्ति, वात्सल्य, अनुकम्पा आदि का पालन करना। गाथा २४१ से २४७ तक - आठ मूल अवगुण (दोष) पांच उदम्बर, तीन मकार के त्याग की प्रेरणा। * गाथा २४८ से २६४ तक - रत्नत्रय की आराधना। * गाथा २६५ से २८९ तक - त्रिविध पात्र को चार दान देना। * गाथा २९० से ३०० तक - जल गालन,रात्रि भोजन के त्याग सहित अठारह क्रियाओं का पालनकर्ता अव्रत सम्यक्दृष्टि । चतुर्थखण्ड वीतरागी महाव्रती साधु का स्वरूप - * गाथा ३६७ से ३७३ तक- दश धर्मों का स्वरूप तथा व्रत तप और भावनाओं का महत्व। * गाथा ३७४ से ३८५ तक - महाव्रत आदि अट्ठाईस मूलगुणों सहित साधु पद की तैयारी। * गाथा ३८६ से ४०१ तक - पंच चेल का निश्चय व्यवहार पूर्वक अपूर्व कथन। गाथा ४०२ से ४२९ तक - दिगम्बरत्व का स्वरूप वर्णन । गाथा ४३० से ४६९ तक - चौबीस परिग्रह का स्वरूप तथा इनसे रहित वीतरागी साधु। * गाथा ४७० से ५०० तक - वीतरागी साधु की साधना, पंच महाव्रत और वैराग्य भावना की साधना। * गाथा ५०१ से ५४८ तक - बारह तप का सम्यक् स्वरूप वर्णन । (१३) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी के अस्तित्व आदि छह सामान्य गुणों का वर्णन। * गाथा ८३३ से ८७५ तक - चार ध्यान -आर्त, रौद्र, धर्म, शुक्ल ध्यान का विशेष वर्णन तथा ध्यान समाधि की साधना। * गाथा ८७६ से ८८५ तक -आज्ञा, वेदक, उपशम, क्षायिक और शुद्ध सम्यक्त्व का स्वरूप। * गाथा ८८६ से ८९६ तक - दर्शनाचार आदि पंचाचारों का स्वरूप कथन। • गाथा ८९७ से ९०८ तक - न्यान समुच्चय सार की महिमा। श्री ज्यान समुच्चय सार जी-विषयानुक्रम * गाथा ५४९ से ५७४ तक - दस प्रकार के सम्यक्त्व का कथन । * गाथा ५७५ से ५९८ तक - पाँच इन्द्रिय, मन आदि का संयम, बारह व्रतों की साधना। गाथा ५९९ से ६३० तक - तेरह प्रकार के चारित्र का स्वरूप। * गाथा ६३१ से ६३४ तक - द्रव्य की स्वतंत्रता, ऋजुमति विपुलमति मनः पर्यय ज्ञान की उत्पत्ति तथा इन ज्ञानों के जानने योग्य क्षेत्र का कथन। * गाथा ६३५ से ६५७ तक - साधु पद से अरिहन्त पद की प्राप्ति, १८ दोष रहित अरिहन्त सर्वज्ञ होना तथा सर्व कर्म रहित शुद्ध सिद्ध पद की प्राप्ति। पंचमखण्ड चौदह गुणस्थान, सत्ताईस तत्व, अक्षर,स्वर-व्यंजन से ॐनमः सिद्ध मंत्रकी सिदिऔर ध्यान समाधि। • गाथा ६५८ से ७०४ तक - चौदह गुणस्थानों का वर्णन । * गाथा ७०५ से ७११ तक - सिद्ध परमात्मा का स्वरूप और पंचाक्षरी 'ऊँ नमः सिद्धं' मंत्र की सिद्धि । * गाथा ७१२ से ७२८ तक - अकारादि चौदह स्वरों के माध्यम से सिद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा की महिमा। * गाथा ७२९ से ७६४ तक - कवर्गादि व्यंजनों के माध्यम से निज ज्ञान स्वभाव की महिमा और उसकी प्राप्ति । • गाथा ७६५ से ८३२ तक - सत्ताईस तत्त्वों का विशद् विवेचन तथा द्रव्य * ऊँ नम: सिद्धं * श्री उपदेश शुद्ध सार जी श्री उपदेश शुद्ध सार ग्रंथ में साधक की साधना की अपेक्षा कथन किया गया है, इसमें जिनेन्द्र परमात्मा के उपदेश का शुद्ध सार दर्शाया है। रत्नत्रय मई निज शुद्धात्मा की साधना ही एक मात्र लक्ष्य है। जिनवाणी में सभी जिनेन्द्र परमात्माओं की एक ही देशना-उपदेश है कि हे भव्य जीवो! भेद विज्ञान पूर्वक इस शरीरादि समस्त पर द्रव्यों से भिन्न मैं एक अखण्ड अविनाशी चैतन्य तत्त्व भगवान आत्मा हूँ, ऐसा निश्चय नय पूर्वक स्वीकार करो और अपने शुद्धात्म तत्त्व की साधना-आराधना में लग जाओ, इससे पूर्व बद्ध कर्म सब गल जायेंगे, विला जायेंगे। साधक के जीवन में मोह-राग की भूमिका में जनरंजन राग, कलरंजन Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी-विषयानुक्रम दोष, मनरंजन गारव आते हैं तथा दर्शन मोहंध, अज्ञान, पाप, कषाय, प्रमाद आदि पाँचों इंन्द्रियों के विषय भ्रमित करते हैं। साधक अपने श्रद्धान और ज्ञान के बल से भेद विज्ञान, तत्त्व निर्णय का निरन्तर अभ्यास करता है और अपने निज सत्ता स्वरूप की नि:शंकितादि गुणों सहित साधना करता है जिससे यह सब मोह राग आदि दोष छूट जाते हैं और साधक अपने निज शुद्धात्म स्वरूप की साधना के बल से अरिहन्त और सिद्ध पद प्रगट करता है, स्वयं सिद्ध परमात्मा हो जाता है। प्रथम खण्ड उपदेश का शुसार, निज शुखात्मा की महिमा और उसका सत्स्व रूप। गाथा १ मंगलाचरण, आत्मा ही शुद्धात्मा निर्मल परमात्मा है, ऐसे सिद्ध स्वरूपी, देवों के देव निज शुद्धात्म स्वरूप को नमस्कार है। * गाथा २ से ३ तक- जिनेन्द्र परमात्मा का उपदेश- (यह आत्म तत्त्व अनादि से शुद्ध है, अपने अज्ञान के कारण संसार में परिभ्रमण कर रहा है, निज स्वभाव की श्रद्धा करे और अपने शुद्ध स्वभाव की साधना में रत रहे तो सब कर्मों को क्षय कर संसार से मुक्त हो सकता श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी आश्रय सेजीव मुक्त हो सकता है। * गाथा २८ से ३१ तक- अक्षर, स्वर, व्यंजन के माध्यम से पंच ज्ञान की उत्पत्ति का कथन । * गाथा ३२ से ३३ तक - पंडित या ज्ञानी का लक्षण। * गाथा ३४ से ४० तक- जिनेन्द्र परमात्मा के उपदेश का सार भेदज्ञान पूर्वक नि:शंक रहो, निज शुद्धात्मानुभूति करो तो सब कर्मों को क्षय कर संसार से मुक्त हो जाओगे। * गाथा ४१ से ७३ तक - पंच ज्ञान मई शुद्ध स्वरूपी निज शुद्धात्मा की महिमा तथा निज शुद्धात्मा की साधना से क्रमश: मति श्रुत अवधि मनःपर्यय और केवलज्ञान प्रकट होते हैं और सिद्धि की सम्पत्ति प्राप्त होती है। * गाथा ७४ से ७९ तक- जिन स्वरूप निज अंतरात्मा ही परम देव, गुरू, धर्म है - ऐसी श्रद्धा से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति तथा उसकी महिमा। * गाथा ८० से ८९ तक- मिथ्यादृष्टि का लक्षण, पर्याय दृष्टि संसार का कारण, ज्ञान स्वभाव की दृष्टि एवं आत्म साधना मुक्ति का कारण । द्वितीय खण्ड रागादि की उत्पत्तिका कारण । * गाथा ९० से १२२ तक- पर्याय दृष्टि से रागादि की उत्पत्ति-जनरंजन राग के ९भेदों का विशेष कथन । * गाथा १२३ से १५६ तक - कलरंजन दोष का स्वरूप तथा दोष निवारण करने का उपाय। * गाथा १५७ से १७० तक - मनरंजन गारव कथन । है।) ॐ गाथा ४ से ९ तक ऐसे साधक विरले ही होते हैं क्योंकि मनुष्य भव मिलने के बाद मन की चंचलता से भटक जाते * गाथा १० से २७ तक - सच्चे देव, सच्चे गुरू, सच्चे धर्म का सत्संग मिल जाये तो मन परमात्मा में लग सकता है; और आनंद सहजानंद मय होता हुआ धर्म के (१५) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी-विषयानुक्रम * गाथा १७१ से २५३ तक - दर्शन मोहांध दृष्टि के कारण - सच्चे देव, गुरू, शास्त्र - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, संसार, शरीर, भोग की विपरीत मान्यता होती है और इससे जीव संसार में रुलता है, ज्ञान दृष्टि होने पर ही इससे छुटकारा होता * * ॐ गाथा २५४ से २६५ तक - मन की चंचलता से पर्याय और इन्द्रिय विषयों की प्रगटता, इनसे छूटने का उपाय, ज्ञान दृष्टि और मन का संयम। गाथा २६६ से २७४ तक- शब्द की कीमत और विशेषता, इष्ट और अनिष्ट शब्द का प्रभाव। गाथा २७५ से २८३ तक - रसना और स्पर्शन इन्द्रिय का निकट सम्बन्ध, रसना इन्द्रिय के दो काम- स्वाद लेना और बोलना। गाथा २८४ से २९४ तक - कृत, कारित, अनुमति से कर्मोत्पत्ति और कर्मों का स्वभाव। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी * गाथा ३५६ से ३९१ तक - ज्ञानावरणादि घातिया कर्मों के क्षय से अनन्त चतुष्टय अरिहन्त पद की प्रगटता । * गाथा ३९२ से ३९९ तक - अनन्त चतुष्टय धारी परमात्मा की अंतरंग दशा और मुक्ति गमन। चतुर्थखण्ड कर्मावरण मत देखो, ज्ञान स्वभाव से सब विला जाते हैं - सिख स्वरूप का वर्णन। * गाथा ४०० से ४५९ तक - इन्द्रिय विषय, कषाय, संज्ञा, कृत आदि, आशा आदि दोष, तथा मोह मान माया रूप जो कर्मोदायिक परिणमन है, इसकी ओर मत देखो, अपने ममल स्वभाव में रहो तो यह सब गल जायेंगे, विला जायेंगे। आवरनं नहु पिच्छई, विमल सहावेन कम्म संषिपनं । * गाथा ४६० से ४६८ तक- चौदह प्राण - (पांच इन्द्रिय, तीन बल, आयु और स्वासोच्छ्वास) यह दश प्राण तो सामान्य हैं ही। विशेष - सुख, सत्ता, बोध और चेतना, यह चार प्राण विशिष्ट अनुभूति है। चैतन्य स्वरूप का अनुभवन आनन्द परमानंद मय करता हुआ आत्मा को परमात्मा बनाता है। * गाथा ४६९ से ४८७ तक - सम्यग्दर्शन के नि:शंकित आदि आठ अंगों का स्वरूप वर्णन। * गाथा ४८८ से ५२६ तक - सिद्ध परमात्मा और सिद्ध स्वरूप का वर्णन। * गाथा ५२७ से ५४२ तक - उपदेश का शुद्ध सार-परम जिनेन्द्र परमात्मा ने कहा है कि तुम अपने ज्ञान स्वभाव में रहो * तृतीय खण्ड चिदानंद चैतन्य स्वभाव की महिमा और केवलज्ञान स्वरूप । * गाथा २९५ से ३२४ तक - चिदानंद चैतन्य स्वभाव की महिमा- उसमें लीनता से समस्त कर्मावरणों का क्षय और अरिहंत पद की प्राप्ति। * गाथा ३२५ से ३३५ तक - अक्षर, स्वर, व्यंजन के माध्यम से परम तत्त्व की साधना। * गाथा ३३६ से ३५५ तक - परम तत्त्व परमेष्ठी पद की साधना और प्राप्ति ही अर्थ भूत (प्रयोजनीय ) है ; तथा शब्दों के माध्यम से निज में लीनता की महिमा। (१६) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ श्री उपदेश शुद्ध सार जी-विषयानुक्रम तो यह सब कर्म मल अपने आप विला जायेंगे। क्षायिक भाव की साधना करो, ध्यान समाधि लगाओ, अरिहंत सर्वज्ञ पद अपने आप प्रगट होगा। * गाथा ५४३ से ५५४ तक - आत्म स्वभाव की सर्वोच्च श्रेष्ठता,परम तत्त्व परमेष्ठी पद को प्रगट करने का उपाय। * गाथा ५५५ से ५६३ तक- बारह प्रकार का तप। छह बाह्य और छह आभ्यंतर तप करने से परमात्म पद की प्राप्ति। * गाथा ५६४ से ५८४ तक - ग्रंथराज की चूलिका स्वरूप उपदेश शुद्ध सार का सार। * गाथा ५८५ से ५८९ तक - उपदेश शुद्ध सार की महिमा और ग्रंथ लिखने का प्रयोजन। जिन उत्तं जिन वयनं, जिन सहकारेन उवएसनं तंपि। बं जिन तारन रइयं, कम्म षय मुक्ति कारनं सुद्धं ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी - फूलना सूची क्र. फूलना पृष्ठ संख्या ०१. देव दिप्ति गाथा १५१ ०२. मुक्ति श्री फूलना ०३. गुरू दिप्ति गाथा ०४. ध्यावहु फूलना धर्म दिप्ति गाथा ०६. तत्तुसार फूलना ०७. विनती फूलना ०८. पात्र गर्भ गाथा गर्भ चौबीसी फूलना १०. पात्र तीन दान चार रासौ गाथा ११. चेतक हियरा फूलना १२. दान पात्र विसेष फूलना १३. अन्यानी अन्यान मऊ फूलना १४. उत्पन्न छंद गाथा दर्सन चौविहि गाथा १६. कमल छंद गाथा १७. गिरा छंद गाथा १८. विंदरऊ फूलना १९. चषु दर्शन गाथा वैराग्य फूलना २१. जकड़ी फूलना २२. कमल सुभाव गाथा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी पृष्ठ संख्या पृष्ठ संख्या २१७ २८. श्री ममल पाहुइ जी-विषयानुक्रम क्र. फूलना २३. इस्ट छंद गाथा २४. इस्ट उत्पन्न छंद गाथा २५. तालु छंद गाथा कंठ छंद गाथा हींकार संसर्ग गाथा अन्मोय चौबीसी गाथा नंद मऊ फूलना ३०. जिन इच्छ लषु फूलना ३१. अचष्य दर्सन गाथा जिनेन्द विंद छंद गाथा ३३. पय संजोय छंद गाथा ३४. सब्द वियार अचष्य दर्शन गाथा सर्वार्थ सिद्धि छंद गाथा ३६. अचष्य मनरंजन गाथा ३७. हो जोगी फूलना ३८. हम गंमि मऊ फूलना ३९. न्यान अन्मोय पचीसी फूलना ४०. अचष्य शब्द गाथा ४१. बड़ौ बिजौरो फूलना जिन आयरो फूलना अवहि दर्शन गाथा सुह गम्य रमन फूलना सूषिम रासौ फूलना ४६. केवल दर्शन गाथा क्र. फूलना ४७. तरन विवान विजौरो फूलना ४८. बड़ो बधाऊ फूलना ४९. विवान अर्क गाथा ५०. सेहरौ फूलना नंद आनंदह फूलना ५२. दिप्ति विवान गाथा ५३. सन्यानी मुक्ति पऊ फूलना ५४. जिनवर उत्तो न्यानीय फूलना ५५. शब्द प्रियो विवान गाथा ५६. पनविवि बधाऊ फूलना हितकार श्रेणी फूलना भवियन राछडो फूलना ठहकार फूलना ६०. उत्पन्न साहि विवान गाथा ६१. जयमाला छन्द गाथा ६२. हिययार रमन फूलना ६३. उवन विंद रस बधाऊ फूलना ६४. न्यान रमन फूलना ६५. ऊँ लषनो फूलना फाग फूलना ६७. पदवी फूलना ६८. नृत सुवा फूलना सिय धुव गाथा ७०. सिय धुव छंद गाथा ५९. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी-विषयानुक्रम क्र. फूलना श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पृष्ठ संख्या पृष्ठ संख्या २६० ७१. उमाहो फूलना ७२. मेवाड़ी छंद गाथा संसर्ग सोलही फूलना ७४. कल्यानक फूलना जिन अनिवारा फूलना ७६. फुटकर गाथा चितनौटा फूलना फुटकर चाल फूलना कलसों की गाथा चतुर्विधि संघ गाथा हिय डोरिनी फूलना ८२. संजोय मुक्ति पचीसी फूलना परमिस्टी बत्तीसी गाथा ८४. ग्यारह अंग फूलना चौदा पूर्व रासौ फूलना संमिक्त अस्ट गुण फूलना ८७. धम्म आयरन फूलना ८८. तप विसेष फूलना अवयासीक छह फूलना ९०. साधु गुन दह दंसन भेद फूलना न्यान रमन फूलना तेरह विधि चारित्र फूलना ९३. अतिसय चौतीस फूलना ९४. अस्ट प्रतीहार फूलना क्र. फूलना ९५. अर्हत सर्वन्य रमन फूलना ९६. सिद्ध पचीसी फूलना ९७. परमिस्टि तीसी गाथा ९८. धुव उवन साहि सिय अर्क गाथा पयोगसी अर्क गाथा १००. जाकी उवन सेज फूलना १०१. जय जय छंद गाथा १०२. उत्पन्न श्रेनि बधाऊ फूलना १०३. तार कमल सोहरौ गाथा १०४. जनगन बावलो फूलना १०५. पूर्व जय पूजा गाथा १०६. मुक्ति पैतालो गाथा १०७. उवन मिलन प्रिय चौबीसी फूलना १०८. अन्मोय गाथा १०९. विन्यान रमन फूलना ११०. दोहा बसंत फूलना १११. जिन बत्तीसी फूलना ११२. उवन इस्ट समयसार फूलना ११३. अर्क चौतीसी फूलना ११४. सुयं कमल जिन फूलना ११५. चौबीस अर्क सिय रलि फूलना ११६. उपयोग सार फूलना ११७. बंध जिनाई फूलना ११८. जोगी जोग फूलना ८३. परामर ११. (१९) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी विषयानुक्रम क्र. फूलना ११९. उत्पन्न रत्नी गाथा १२०. उवन विंद सुभाव फूलना १२१. चिंता करो फूलना १२२. कीतड़ी फूलना १२३. उवन मिलन पचीसी फूलना १२४. जिनवर फूलना १२५. धुव केवलि बनजारी फूलना १२६. जय रंजसी अर्क फूलना १२७. रंज रमन नंद फूलना १२८. सु रमन चिंतामनि फूलना १२९. स्वामी तारन देवा फूलना १३०. अर्क उवन फूलना १३१. गद्य गाथा १३२. उवन कमल बत्तीसी फूलना १३३. तार कमल फूलना १३४. न्यान बनिजारो फूलना १३५. उपयोग बत्तीसी फूलना १३६. न्यानास्टक फूलना १३७. कमल चतुर्दशी फूलना १३८. व उवन अर्क सोलही फूलना १३९. जै जै मेल समय फूलना १४०. दिसि अंग फूलना १४१. समय उवन फूलना १४२. उवन पिय रमन फूलना पृष्ठ संख्या ३६२ ३६४ ३६६ ३६७ ३६८ ३७० ३७१ ३७३ ३७५ ३७७ ३७९ ३८० ३८३ ३८३ ३८७ ३८८ ३९१ ३९४ ३९६ ३९७ ३९९ ४०१ ४०३ ४०६ २० क्र. १४३. १४४. १४५. १४६. १४७. मिलन रमन फूलना १४८. जिनय लड़ी फूलना १४९. वर उवन लड़ी फूलना १५०. १५१. १५२. १५३. १५४. १५५. १५६. १५७. १५८. १५९. १६०. १६१. फूलना उवन जिन पयोग फूलना हिय उवन समय फूलना अर्क पिय फूलना साधु सिद्ध फूलना १६२. १६३. १६४. समय उवन मिलन फूलना जिनेली फूलना सुन्न रमन चौतीसी गाथा जयना ले फूलना परमानंद विलासी फूलना मुक्ति विलास फूलना रमन प्रवेश फूलना अर्क फूलना मिलन समय फूलना तार कमल फूलना जिन तार फूलना जै जै नंदिनी फूलना सून्य उवन फूलना सून्य प्रवेस फूलना तारन तरन फूलना 吳卐卐卐 श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पृष्ठ संख्या ४०७ ४०९ ४१० ४११ ४१२ ४१४ ४१४ ४१५ ૪૨૭ ४१८ ४२० ४२१ ४२२ ४२२ ४२३ ४२४ ४२५ ४२५ ४२६ ४२७ ४२७ ४२८ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी-विषयवस्तु अर्क धृति * वन्दे श्री गुरु तारणम् * श्री ममलपाहुड जी ग्रन्थ के प्रत्येक फूलना में विषय वस्तु दी गई है। एक विषय एक से अधिक फूलनाओं में भी आया है, यहां विषय वस्तु के भेद - प्रभेद स्वाध्यायी, आत्मार्थी, जिज्ञासु भव्यजीवों के प्रबोध हेतु दिये गये हैं। यह विषय वस्तु विक्रम संवत् १९४३ के ठिकानेसार की प्रति के आधार पर दी गई है। श्री गुरु महाराज की आत्म साधना के आध्यात्मिक अनुभूतिपूर्ण रहस्य इस विषय वस्तु में गर्भित हैं। विज्ञजन इस विषय वस्तु के संबंध में अवश्य ही चिंतन मनन करके फूलनाओं के यथार्थ अभिप्राय को समझते हुए आत्म ज्ञान की प्राप्ति रूप लक्ष्य को प्राप्त करेंगे इसी भावना से विषय वस्तु प्रस्तुत है। श्री ममालपाइजी बन्धकी विषय वस्तु के मेड-प्रोड तिअर्थ- उत्पन्न अर्थ - सम्यग्दर्शन, हितकार अर्थ - सम्यग्ज्ञान, सहकार अर्थ - सम्यक्चारित्र। नंद५- नंद, आनंद, चेयननंद, सहजानंद, परमानंद। ज्ञान ५- मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान, केवल ज्ञान । दर्शन ४ - चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन, केवल दर्शन । दान ४- आहार दान, ज्ञान दान, औषधि दान, अभय दान। पात्र ३- उत्तम पात्र - वीतरागी साधु, मध्यम पात्र - देशव्रती श्रावक, जघन्य पात्र - अविरत सम्यक्दृष्टि श्रावक। सक १७ - आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम, जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्शन मोहंध, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह आवरण, अंतराय सहकार। विवान ५-१. हित हुँत औकास, अर्थ विंद, नन्द आनन्द, रंज रमन, जान जैन कलन उत्पन्न। २. विजय, वैजयन्त, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ३. दिप्ति विवान, दिष्टि विवान, सब्द विवान, प्रियौ विवान, उत्पन्न साहि विवान। विवान ४ - दिस्टि विवान, अदिस्टि विवान, सब्द विवान, असब्द विवान । षट् सरोवर षट् कमल षट् देवियां षट् रमन पदम सरोवर उत्पन्नसिर कमल श्री महापदम सरोवर पदम कमल बिंद तिगिंछ सरोवर कंठ कमल आगंतु केसरी सरोवर हितकार कमल कीर्ति हिय पुंडरीक सरोवर गहिर कमल बुद्धि हुंतकार महापुंडरीक सरोवर गुहिज कमल लक्ष्मी रमन परिनाम भेद बारलक्षण परिनाम, कलस परिनाम, भौ हरित परिनाम, जुगल नेत्र परिनाम । लक्षण परिनाम - १०३२ सहकार अर्क ३६, तीन अर्थ-३६ ४ ३-१०८४५ अर्थ = ५४०+ ६ कमल - ५४६ । स्वर १४x ३३ व्यंजन = ४६२, (तीन ठिकाने-५४० +६+४६२) = १००८ + उत्पन्न चतुस्टय २४ % १०३२। कलस परिनाम-१००८ चतुष्टय ४ + परमेष्ठी ५%९, अंग८ + दिशा १०% १८, (१८४९% १६२) षट्कमल में इनकी स्थापना - सिर कमल - १६२, पदम कमल - १६२, कंठ कमल - १६२, हितकार कमल - १६२, गहिर कमल-१६२, गुहिज कमल -१६२ (१६२ x ६ = ९७२) ९७२ + ३६ अर्क = १००८। भी हरित परिनाम-९७२ अर्थति अर्थह नौ भय विलयं। उत्पन्न दिस्टि भय - दिस्टि, मन भय - आकर्न, झड़प भय - कमल । (२१) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी विषयवस्तु - दिस्टि भय हरन दह दंसन के भेद, मन भय हरन न्यान पांच, झड़प भय हरन - तेरा विधि चारित्र । - १० दंसन + ५ न्यान + १३ विधि चारित्र के ३ ठिकाने १. पाँच महाव्रत, २. पाँच समिति, ३. तीन गुप्ति १८ दिशा १० + अंग ८ = १८ (१८ X १८ = ३२४) तीन अर्थ के तीन गुने उत्पन्न अर्थ ३२४ + हितकार अर्थ ३२४ + सहकार अर्थ ३२४ = ९७२ । - जुगल नेत्र परिनाम १००८ षट् कमल नेत्र १२, एक-एक दिस्टि के १४-१४ भेद - १२x१४ = १६८ षट् कमल विशेष - १६८६ = १००८ । बाणी बारह देव वाणी, दिवि वाणी, दिवि धुनी वाणी, अनहद वाणी, सरसुती वाणी, अमृत वाणी, छद्यस्थ वाणी, गिरा वाणी, ममल वाणी, न्यान वाणी, निर्वाण वाणी, जिनराइ वाणी । अक्षर आदि का अभिप्राय - . · अक्षर अक्षय पद, व्यंजन व्यक्त स्वरूप, - स्वर - सूर्य के समान केवलज्ञान स्वभाव, पद अपना ममल स्वभाव, कमल दल (कमल चतुर्दशी के ठिकाने) - मसुडो लवनु २, इष्ट उष्ट २, इष्ट कंठ उत्पन्न कंठ तालु २, इष्ट दर्स उत्पन्न दर्स२, गिरा आवाहनं करोति रमन ३ १४ । ( जिस प्रकार कमल कीचड़ और पानी में रहते हुए निर्लिप्त और न्यारा रहता है इसी प्रकार अपना चैतन्य ज्ञायक कमल है, कमल चतुर्दशी के इन १४ भेंदों के द्वारा अपने कमल स्वभाव की साधना का अभिप्राय है) विषय १७ - दिस्टि के वर्न ५ काला, पीला, नीला, लाल, सफेद । - अर्थ प्रयोजन। - - २, इष्ट तालु उत्पन्न - १, कलन चरन २२ नासिका के विषय २ - सुगंध, दुर्गंध । - शरीर के विषय ८ कमल (रसना) के विषय ५ खट्टा मीठा, कड़वा, चरपरा, कषायला । आकर्न के विषय ७- रसनि, कसनि, तंति, तार, फूक, सब्द, असब्द । हरउ, गरड, रूषी, नरम, गरम, चिकना, कड़ा, ठंडा । रसनि दृष्टि, कसनि आकर्न, तंति हित, तारस्वयं अस्कंध, सब्द -- कमल असब्द इष्ट उत्पन्न, अशब्द सर, इष्ट उत्पन्न, गुहिज सर, गुपित सर, शाह । आकर्म के विषय ७ तत्काल फूक सर ७- शब्द सर, कमल सर । = - अक्षर स्वर व्यंजन अक्षर ५ ॐ नमः सिद्धं । सुर १४ अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः । व्यंजन ३३ कु, चु, टु, तु, पु ५x५ २५, य, र, ल, व, श, स, ष, ह८ २५ = ३३ । ३६ अर्क " - · १. कमल सी अर्क ४. हंस सी अर्क ७. दिप्ति सी अर्क - ३४. भद्र सी अर्क ५ शब्द की भाषा ललित चरण । १०. सुर्क सी अर्क १३. नन्द सी अर्क १६. हिय रमन सी अर्क १९. सहबार सी अर्क २२. सुइ उवन सी अर्क २५. विन्द सी अर्क २८. हिययार सी अर्क ३१. जैन सी अर्क २. - चरन सी अर्क सुवन सी अर्क श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी - ३. ६. - ५. ८. सु दिप्ति सी अर्क ११. अर्थ सी अर्क १४. आनन्द सी अर्क १७. अलष सी अर्क २०. रमन सी अर्क २३. षिपन सी अर्क २६. समय सी अर्क २९. जान सी अर्क ३२. लषन सी अर्क ३५. मय उवन सी अर्क ३६. पय उवन सी अर्क । - हित हित ही, मित दिस्टि, परिनड़ आकर्न, कोमल कोमल, कर्न सी अर्क अवयास सी अर्क अभय सी अर्क ९. १२. विंद सी अर्क १५. समय सी अर्क १८. अगम सी अर्क २१. सुइ रंज सी अर्क २४. ममल सी अर्क २७. सुनन्द सी अर्क ३०. सहज सी अर्क ३३. लीन सी अर्क Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी विषयवस्तु संज्ञा ४ आहार, भय, मैथुन, परिग्रह । - - चतुष्टय ४ अनंत दर्सन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत बल । अर्थ ५ - उत्पन्न अर्थ, हितकार अर्थ, सहकार अर्थ, जान (ज्ञान) अर्थ, पय अर्थ । तीन अर्थ की महिमा - १. उत्पन्न अर्थ - आसा विली न्यान उत्पन्न, अस्नेह विली दर्सन उत्पन्न, गारव विली दान उत्पन्न । - - २. हितकार अर्थ- आलस विली लाभ उत्पन्न, परपंच विली भोग उत्पन्न, विभ्रम विली उपभोग उत्पन्न । ३. सहकार अर्थ - लाज विली वीर्ज उत्पन्न, लोभ विली संमिक्त उत्पन्न, भय विली चारित्र उत्पन्न । दिस्टि १४ दिस्टि, इस्टि, रिस्टि, रस्टि, सिस्टि, सस्टि, उत्पन्न इस्टि, सहकार इस्टि, अवकास इस्टि, समय इस्टि, अन्मोद इस्टि, षिपक इस्टि, मुक्ति इस्टि, सुष इस्टि । दिति १४, नदी १४ - - गम्य अगम्य दिप्ति - गंगा, सुयं ध्रुव दिप्ति सिंधु, हितकार रमन दिप्ति रोहित, क्रांति रमन दिप्ति हरिकांता, सित सांति दिप्ति सीता, सित उत्पन्न सांति दिप्ति सीतोदा, न्यान दिप्ति नारी, न्यान अर्क सुभाव दिप्ति नरकान्ता, सुयं रूप्यकूला, कमल उत्पन्न रक्ता, रमन कमल रमन - - रमन सुभाव दिप्ति स्वर्णकूला, रुचि प्रिये कांति दिप्ति कांति दिप्ति रोहितास्य, रमन कमल तत्काल दिप्ति दिप्ति रक्तोदा, सहकार रमन सहजोपनीत दिप्ति सिद्धि रमन १४ - दिस्टि रमन, श्रुत रमन, स्वाद रमन, सुर्य अस्कंध रमन, सिधि रमन, सहज रमन, मन गुप्ति रमन, वैन गुप्ति रमन, कांति गुप्ति रमन, उत्पन्न रमन, आर्ध रमन, सुयं षिपक रमन, साता रमन औकास, न्यान अनंत रमन । - - - - हरित । २३ क्र. १. २. ३. रमण नंद नंद आनंद चिदानंद सहजानंद ४. परमानंद ५. पदवी सतक्षरी तारण पंथ अर्थात् मोक्षमार्ग की आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान आचार सम्ययस्व रंज दर्शनाचार आज्ञा उत्पन्न भय चिपक ज्ञानाचार वेदक हितकार अमिय बीर्याचार उपशम सहकार वैदिप्ति मन:पर्यय तपाचार क्षायिक विन्यान जिन सिद्ध केवल चारित्राचार शुद्ध जिन जिनय जिननाथ विशेष- श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा विरचित श्री भय घिपनिक ममलपाहुड़ जी ग्रंथ के ६७ वें पदवी फूलना के आधार पर यह पदवी सतक्षरी प्रस्तुत की गई है। श्री ठिकानेसार में भी इसका उल्लेख है। यह तारण पंथ अर्थात् मोक्षमार्ग की आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान है, जो श्री गुरू तारण स्वामी ने दिया है। यहाँ विशेष बात यह है कि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु यह पाँच पद परम इष्ट हैं। यह देव के गुण पाँच पद हैं जो पूज्यता की अपेक्षा हैं तथा यह उपरोक्त पाँच पदवी साधना की अपेक्षा से हैं। श्री गुरुदेव स्वयं आत्म साधक थे, उन्होंने इस पदवी सतक्षरी के अनुसार आध्यात्मिक आत्म साधना का वर्णन श्री ममलपाहुड़ जी ग्रंथ के अनेक फूलनाओं में तथा श्री श्रावकाचार जी, श्री न्यान समुच्चयसार जी ग्रंथ में विशेष रूप से किया है, जो सुधीजनों द्वारा चिंतन-मनन योग्य विषय है। यह अपूर्व साधना पद्धति है जो हमें अपने आत्म कल्याण के मार्ग में दृढ करते हुए सिद्धि और मुक्ति को प्राप्त करने में साधन है। इसकी विशेष शोध-खोज हमें अपने मार्ग का बोध कराने के साथ-साथ सभी अर्थों में हितकारी होगी। पदवी उपाध्याय मति आचार्य श्रुत साधु अवधि अरिहंत ज्ञान · श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ך ध्यान ४ आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान । - आर्त ध्यान के ४ भेद - इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, पीड़ा चिंतवन, निदान बन्ध । हिंसानंदी, मृषानंदी, चौर्यानंदी, परिग्रहानंदी | रौद्र ध्यान के ४ भेद आज्ञा विचय, अपाय विचय, विपाक विचय, संस्थान धर्म ध्यान के ४ भेद विचय | शुक्ल ध्वान के ४ भेद पृथकत्व वितर्क वीचार, एकत्व वितर्क वीचार, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति, व्युपरत क्रिया निवृत्ति । लब्धि ९ केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, · - Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी-विषयवस्तु क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र। सम्यग्दर्शन के ८ अंग - निःशंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ दृष्टि, उपगृहन, स्थितिकरण, वात्सल्य, प्रभावना। सम्यग्दर्शन के गुण-संवेग, निर्वेद, निन्दा, गर्हा, उपशम, भक्ति, वात्सल्य, अनुकंपा। सिडक ८ गुण - क्षायिक सम्यक्त्व, केवल दर्शन, केवल ज्ञान, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, वीर्यत्व, निराबाधत्व। उत्पन्न सोलही-निवंतरे ९ - न्यान, दर्सन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, संमिक्त, चारित्र । पंचोत्तरे ५ - दिस्टि, शब्द, कमल, सुयं अस्कंध, अमिय । ग्रीवक ३- कलन, चरन, रमन । हितकार सोलही-वे काए -२, वे फासे -२, चौ रूवे - ४, चौ शब्दे - ४, चौ मन पर्जये-४। विपक सोलही - अस्कंध धुरा - ३, कुन्यान हनित -३, विन्यान वाह - १, पद उत्पन्न चेत -३, हितकार उत्पन्न ठहकार -३। । जान सोलही- कमल लंकृत लीन -३, चेत जान टल - ३, अटल धन अस्मूह - ३, छाया रहित तत्काल -२, अंकुर पांच - ५। इंछ सोलही - उत्पन्न हितकार सहकार -३, दर्शन ज्ञान चारित्र - ३, ऊर्ध मध्य अर्ध-३, उवन ठिदि-१, मुक्ति ठिदि-१, न्यान ठिदि-१। इस प्रकार सोलही का उल्लेख श्री ममलपाहुड जी ग्रन्थ में मिलता है जो अध्यात्म साधना का विषय है। सोलहनाते-बाप, पिता, माता, जननी, अइया (आई), महतारी, भइया, बहिन, बेटा, बेटी, सास, ससुर, स्त्री, ग्रहिनी, सारी, मित्र । कल्याणक-५-गर्भ कल्याणक - हृदय, जन्म कल्याणक- कमल, तप कल्याणक - आकर्न, न्यान कल्याणक-दिष्टि, निर्वाण कल्याणक-सुर्य अस्कंध। तत्व २७-७ तत्त्व - जीव, अजीव, आसव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष । ९पदार्थ - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आम्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष । ६ द्रव्यजीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल । ५ अस्तिकाय - जीवास्तिकाय, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अजीवास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय।। धर्म के लक्षण १० - उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य। विशा १०-पूर्व (उत्पन्न सिर), आग्नेय (सुर्क), दक्षिण (दिस्टि), नैरित्य (कमल), पश्चिम (हृदय), वायव्य (गुपित), उत्तर (गहिर), ईसान (साह), आर्ध (पद), ऊर्थ (तालु)। अंग ११ - अर्थांग (आचारांग), श्रुतांग (सूत्रकृतांग), सब्दांग (ज्ञातृकथांग), अस्थानांग (स्थानांग),वै सम अंग (समवायांग), विनय पद अंग (व्याख्या प्रज्ञप्ति अंग), समै अंग (उपासकाध्ययन), अनंतानंत अंग (अंत:कृत दशांग), नंत रंग (अनुत्तरोपपादक दशांग), प्रशम अंग (प्रश्न व्याकरणांग), श्रुत समै अंग (विपाक सूत्रांग)। पूर्व १४ - विर्जाम पूर्व (उत्पाद पूर्व), विश्व पूर्व (अग्रायणी पूर्व), अस्ति पूर्व (वीर्यानुवाद पूर्व), नास्ति पूर्व (अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व), प्रन्यान पूर्व (ज्ञान प्रवाद पूर्व), प्रत्याख्यान पूर्व (कर्म प्रवाद पूर्व), अनंत धर्म पूर्व (सत् प्रवाद पूर्व), विद्यानुवाद पूर्व (आत्म प्रवाद पूर्व), कल्याण पूर्व (प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व), मध्य पद पूर्व (विद्यानुवाद प्रवाद पूर्व),समय पूर्व (कल्याण प्रवाद पूर्व), मध्य पद अर्थ पूर्व (प्राणानुवाद पूर्व), क्रिया विशाल पूर्व (क्रिया विशाल पूर्व), लोक बिंदु पूर्व (लोक बिन्दुसार पूर्व)। तप १२- बाह्य तप ६- अनशन, अवमौदर्य, वृत्ति परिसंख्यान, रस परित्याग, विविक्त सय्यासन, काय क्लेश । अंतरंग तप ६ - प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, ध्यान। अववासीक ६ (६ आवश्यक) - अस्तित्व, वस्तुत्व, अप्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, अरूपत्व, चेतनत्व। सम्बग्दर्शन के भेद १०- न्यान, उपदेश, अर्थ, बीज, संक्षेप, सूत्र, व्यवहार, अवगाहन, प्रवचन केवलि, परम । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी-विषयवस्तु अनुयोग ४ - प्रथमानुयोग - दिस्टि, करनानुयोग - आकर्न, चरनानुयोग - कमल, दिव्यानुयोग - सुर्य अस्कंध। अतिशय ३४ - जन्म के १०- जित निषित (खेद का अभाव), निर्मलत्व (मल का अभाव), पिरि गौरामु (दूध रुधिर सम), आदि संहरन (वजषभनाराच संहनन), आदि संस्थान (सम चतुरस्र संस्थान), सुंदर रूप (सुंदर रूप), सुगंधता (सुगंधतन), सुइ लक्षण (क्षायिक गुण, १००८ लक्षण), अनंत वीर्य (अतुल्य बल), हितमित अस्तौतिक (मिष्ट वचन) । केवलज्ञान के १०- गौसति चरिय सुभिष्यं (चहुं ओर सुभिक्ष), अभय बाधा रहित (जीव वध नहीं), गगन गमनं च (आकाश में गमन), आहार रहित (कवलाहार नहीं), चतुर्मुखं (चतुर्मुख पना), सर्व विधि स्वामी (ईश्वरत्व), छायारहित (छायारहित), देवदिष्टि (अपलक दृष्टि), दिप्ति दिस्टि (उपसर्ग का अभाव), नष केस अविधं (नख केश वृद्धि का अभाव)। देवकृत १४ - मन अधिमोय (अर्धमागधी भाषा), सर्व न्यान सुइ मैत्री (वैर रहित पना), सिध रतौ पुहप फलियं (सर्व ऋतु के फल फूल होना), महिय देसवंत (पृथ्वी दर्पण सम), वाय सुगंध (सुगंधित हवा), परम आनंद (जन मन हर्ष), धूलि कंटक रहित (धलि कंटक रहित भूमि), तिन रहित भूमि (तृण रहित भूमि), गंधोदक वृष्टि (गंधोदक की वर्षा), परम आनंद पद विंद (कमलों पर गमन), अवयास निर्मल (निर्मल आकाश), दिग देस निर्मल (जल की वर्षा), देवता अन्याकारी (आठ मंगल द्रव्य, धर्म चक्र), धर्म औकास (जय जय शब्द)। प्रातिहा - अशोक वृष - दिष्टि, सुर पुहप वृष्टि - आकर्न, दिव्य धुनि - सुर्य अस्कंध, चवर चरन - कमल, आसन सिंहासन - कण्ठ, छत्रत्रय - हितकार, भामण्डल- सहकार, दंदही शब्द - गुपित। न्यान श्री लक्षण ५ - हरिष गात्र, मुकिल नेत्र, गलित वस्त्र, उज्ज्वल, ईर्जा सुभाउ (इर्ज प्रकृति)। दूसरे प्रकार से - हरिष गात्र, मुकिल नेत्र, विगसत वदन, गलित वस्त्र, कलित शब्द, उपशम चित्त। परिग्रह २४ - बाह्य १० - सिंहासन, गृह, क्षेत्र, सुवर्ण, धनधान्य, कुप्य, भांड (वर्तन), दुपद, चतुपद, जानस । आभ्यंतर १४ - मिथ्या, समय मिथ्या, राग, दोष, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ । बारह पयोग परिनाम -न्यान ८ - मति न्यान के दस लाष कोडि परिनाम, श्रुत न्यान के बीस लाष कोडि परिनाम, अवधि न्यान के चालीस लाष कोडि परिनाम, मन पर्जय न्यान के चौदह सहस लाष कोडि परिनाम, केवल न्यान के लषि लषि कोडि परिनाम, कमल उत्पन्न मति - सौ लाष कोडि परिनाम, कमल उत्पन्न श्रुत - दो सौ लाष कोडि परिनाम, कमल उत्पन्न औकास निधि - चार सै लाष कोडि परिनाम । दर्सन ४-चष्य दर्सन-सहस लाष कोडि परिनाम, अचष्य दर्सन-दोई सहस लाष कोडि परिनाम, अवधि दर्सन - चारि सहस लाष कोडि परिनाम, केवल दर्सन- अनन्त। दिप्ति - अर्क दिप्ति, विंद दिप्ति, सुवन दिप्ति, अवयास दिप्ति, चरन दिप्ति, कलन दिप्ति, कमल दिप्ति, हितकार दिप्ति, गुपित दिप्ति। कवाय चौकड़ी- जनरंजन राग - चार विकथा, कलरंजन दोष - अब्रह्म १० प्रकार, मनरंजन गारव - आठ मद, दर्शन मोहंध - २५ मल। तत्व चार प्रकार - तत्व - दृष्टि का विषय, पदार्थ - न्यान का विषय, द्रव्य - चारित्र का विषय, अस्तिकाय-तप का विषय । पात्र का लक्षण - चरन चरिय, ममल गात्र, औकास समल न कहै, बोले तो न बोले, तीन अर्थ, षट् कमल। परमेष्ठी २४ - उत्पन्न अर्थ परमेष्ठी १२ - इष्ट, उष्ट, इष्ट दर्स, उत्पन्न दर्स, जीव द्रव्य, गम्य अगम्य, इष्ट नेत्र, उत्पन्न नेत्र, इष्ट भय विली, उत्पन्न भय विली, सुर्क अर्थ विंद। हितकार अर्थ परमेडी - इष्ट विपक, उत्पन्न विपक, इष्ट आयरन, उत्पन्न आयरन, इष्ट संस्थान, उत्पन्न संस्थान । सहकार अर्थ परमेडी-गहिर, गुप्त, इष्ट जिन, उत्पन्न जिन, इष्ट पद, उत्पन्न पद। (परमेष्ठी चौबीस में उत्पन्न अर्थ, हितकार अर्थ, सहकार अर्थ यह सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्र से संबंधित साधना है, रत्नत्रय के विशेष अनुभव उपरोक्त शब्दों द्वारा स्पष्ट किये गये हैं।) Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी-विषयवस्तु सुन्न ५७२ - कोड सुन्न ४८, सौ कोडि सुन्न ७२, उत्पन्न कोड सुन्न १०८, आराध कोड सुन्न ३४२, उत्पन्न १, इष्ट सुन्न १। अक्षर ४८- सुयं जाता उतपनु (८), जंतं उत्तं (४), जं साह सुतं सिधि धू(८), जाऊ ताऊ (४), जु करइ सु पावइ (८), जु जइसउ करइ सु तइसउ पावइ (१६)। पप १२ जिन अर्थ उक्त सब्द, ममल कमल लोन 4 वस। तत्तु लीन सम भावं, ममलं उदेस कम्म पिपिऊनं ॥ जिन पय, अर्थ पय, उक्त पय, शब्द पय, ममल पय (प्रथम), कमल पय, लीन पय (प्रथम), दर्स पय, तत्त्व पय, लीन पय (द्वितीय), ममल पय (द्वितीय), उदेस पय। १.जिनपय - पय तो जिन, जिन तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो अवकास, अवकास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष।। २.अर्थ पप-पय तो अर्थ, अर्थ तो तिअर्थ, तिअर्थ तो समर्थ, समर्थ तो सदर्थ, सदर्थ तो अवकास अर्थ, अवकास अर्थ तो अन्मोद अर्थ, अन्मोद अर्थ तो विपक अर्थ, विपक अर्थ तो मुक्ति अर्थ, मुक्ति अर्थ तो सुष अर्थ । ३.उक्त पप-पय तो उक्त, उक्त तो सुद्ध, सुद्ध तो मुक्त, मुक्त तो रमन, रमन तो समय, समय तो लीन, लीन तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ४.सब्द पव-पय तो सब्द, सब्द तो श्रुत, श्रुत तो विंद, विंद तो न्यान, न्यान तो विन्यान, विन्यान तो सहकार, सहकार तो अवकास, अवकास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ५.ममल पय (प्रथम)-पय तो ममल, ममल तो समय, समय तो रमन, रमन तो लंकृत, लंकृत तोन्यान, न्यान तो विन्यान, विन्यान तो मइ, मइ तो मइमूरति, महमूरति तो अनंत, अनंत तो नाना प्रकार, नाना प्रकार तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, विपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ६.कमल पच-पय तो कमल, कमल तो कारन, कारन तो कार्ज, कार्ज तो उक्त, उक्त तो परिनइ, परिनइ तो प्रमान, प्रमान तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अवकास, अवकास तो अन्मोद,अन्मोद तो विपक,षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। ७.लीन पथ (प्रथम)-पय तो लीन, लीन तो अर्थ, अर्थ तो तिअर्थ, तिअर्थ तो समर्थ, समर्थ तो दिप्ति, दिप्ति तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो अवयास, अवयास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष । ८.दर्स पय- पय तो दर्स, दर्स तो लंकृत, लंकृत तो लोक, लोक तो न्यान, न्यान तो विन्यान, विन्यान तो ममल, ममल तो केवल, केवल तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष।। ९.तत्व पय-पय तो तत्त्व, तत्त्व तो न्यान, न्यान तो उत्पन्न, उत्पन्न तो विन्यान, विन्यान तो सहकार, सहकार तो विंद, विंद तो दिप्ति, दिप्ति तो अवकास, अवकास तो प्रमान (या परमप्पु), प्रमान तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। १०.लोन पब (दितीय)-पय तो लीन, लीन तो उक्त, उक्त तो मुक्त, मुक्त तो अनंत, अनंत तो नृत, नृत तो सिद्ध, सिद्ध तो पत्त। ११. ममल पय - शुद्धि पय (द्वितीय) - पय तो ममल, ममल तो पत्र, पत्र तो कथन, कथन तो रमन, रमन तो शुद्ध, शुद्ध तो मित्र, मित्र तो दिस्टि, दिस्टि तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। १२.उदेस पय-पय तो उदेस, उदेस तो परिनइ, परिनइ तो प्रमान, प्रमान तो न्यान, न्यान तो मुक्त, मुक्त तोरमन, रमन तो समय, समय तो सहकार, सहकार तो अवकास, अवकास तो अन्मोद, अन्मोद तो विपक, षिपक तो मुक्ति, मुक्ति तो सुष। बारह माह के अनुसार फूलनाके १२ रागकुंवार - अनबोलना, कार्तिक - बिलवारी, अगहन - चितनौटा, पूष - धमार, माघ - बसंत, फागुन - होली, चैत - गनगौर, बैसाख - दिनड़ी, ज्येष्ठ - ढोला, आषाढ़ - मल्हार, श्रावण - झूला, भादों - बंजारा। पालकी जी के समय-निरंजन निराकार ज्योति स्वरूप चिंतामणि तारण स्वामी दाता विधाता के उपदेश से तारण पंथ में बढ़े चलो-बढ़े चलो। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री मालारोहण जी विचार मत ॐ श्री मालारोहण जी (उपजाति छन्द) उर्वकार वेदंति सुद्धात्म तत्त्वं, प्रनमामि नित्यं तत्त्वार्थ साधं । न्यानं मयं संमिक दर्स नेत्वं, संमिक्त चरनं चैतन्य रूपं ॥१॥ नमामि भक्तं श्री वीरनार्थ, नंतं चतुस्टं त्वं विक्त रूपं । माला गुनं बोछन्ति त्वं प्रवोधं, नमामिहं केवलि नंत सिद्धं ॥ २ ॥ काया प्रमानं त्वं ब्रह्मरूपं, निरंजनं चेतन लष्यनेत्वं । भावे अनेत्वं जे न्यान रूपं, ते सुद्ध दिस्टी संमिक्त वीज ॥ ३ ॥ संसार दष्यं जे नर विरक्तं, ते समय सुखं जिन उक्त दिस्ट । मिथ्यात मय मोह रागादि षंडं, ते सुद्ध दिस्टी तत्वार्थ साधं ॥ ४ ॥ सल्यं त्रयं चित्त निरोध नित्वं, जिन उक्त वानी हिदै चेतयत्वं ।। मिथ्यात देवं गुरु धर्म दूरं, सुद्धं सरूपं तत्वार्थ साध ॥ ५ ॥ जे मुक्ति सुष्यं नर कोपि साध, संमिक्त सुद्धं ते नर धरेत्वं । रागादयो पुन्य पापाय दूरं, ममात्मा सुभावं धुव सुद्ध दिस्टं ॥ ६ ॥ श्री केवलं न्यान विलोकि तत्त्वं, सुद्धं प्रकासं सुद्धात्म तत्त्वं । संमिक्त न्यानं चरनंत सुष्यं, तत्वार्थ सार्धं त्वं दर्सनेत्वं ॥ ७ ॥ संमिक्त सुद्धं ह्रिदयं ममस्तं, तस्य गुनमाला गुथतस्य वीज । देवाधिदेवं गुरु ग्रंथ मुक्तं, धर्म अहिंसा षिम उत्तमाध्यं ॥ ८ ॥ तत्त्वार्थ साधं त्वं दर्सनेत्वं, मलं विमुक्तं संमिक्त सुद्धं । न्यानं गुनं चरनस्य सुद्धस्य वीज, नमामि नित्वं सुद्धात्म तत्त्वं ॥ ९ ॥ जे सप्त तत्त्वं षट् दर्व जुक्तं, पदार्थ काया गुन चेतनेत्वं । विस्वं प्रकासं तत्त्वानि वेदं, श्रुतं देव देवं सुद्धात्म तत्त्वं ॥ १०॥ देवं गुरं सास्त्र गुनानि नेत्वं, सिद्धं गुनं सोलहकारनेत्वं । धर्म गुनं दर्सन न्यान चरनं, मालाय गुथतं गुन सस्वरूपं ॥ ११ ॥ पडिमाय ग्यारा तत्त्वानि पेष, व्रतानि सीलं तप दान चेत्वं । संमिक्त सुद्धं न्यानं चरित्रं, स दर्सनं सुद्ध मलं विमुक्तं ॥ १२ ॥ मूलं गुनं पालंति जे विसुद्धं, सुद्धं मयं निर्मल धारयेत्वं । न्यानं मयं सुद्ध धरति चित्तं, ते सुद्ध दिस्टी सुद्धात्म तत्त्वं ॥ १३ ॥ संकाय दोषं मद मान मुक्तं, मूढं त्रयं मिथ्या माया न दिस्ट ।। अनाय षट् कर्म मल पंचवीसं, तिक्तस्य न्यानी मल कर्म मुक्तं ॥ १४ ॥ सुद्धं प्रकासं सुद्धात्म तत्त्वं, समस्त संकल्प विकल्प मुक्तं । रत्नत्रयं लंकृत विस्वरूपं, तत्त्वार्थ साध बहुभक्ति जुक्तं ॥ १५ ॥ जे धर्म लीना गुन चेतनेत्वं, ते दुष्य हीना जिन सुद्ध दिस्टी । संप्रोषि तत्त्वं सोइ न्यान रूपं, ब्रजंति मोष्यं षिनमेक एत्वं ॥ १६ ॥ जे सुद्ध दिस्टी संमिक्त सुद्धं, माला गुनं कंठ हिदयं विरुलितं ।। तत्त्वार्थ साधं च करोति नित्वं, संसार मुक्तं सिव सौष्य वीज ॥ १७॥ न्यानं गुनं माल सुनिर्मलेत्वं, संषेप गुथितं तुव गुन अनंतं । रत्नत्रयं लंकृत स स्वरूपं, तत्त्वार्थ साध कथितं जिनेन्द्रं ॥१८॥ श्रेनीय पृच्छंति श्री वीरनाथं, मालाश्रियं मागंति नेयचक्रं । धरनेन्द्र इन्द्रं गन्धर्व जष्यं, नरनाह चक्रं विद्या धरेत्वं ॥ १९ ॥ किं दिप्त रत्नं बहुविहि अनंतं, किं धन अनंतं बहुभेय जुक्तं । किं तिक्त राजं बनवास लेत्वं, किं तव तवेत्वं बहुविहि अनंतं ॥ २० ॥ श्री वीरनार्थ उक्तंति सुद्धं, सुनु श्रेनिराया माला गुनार्थ ।। किं रत्न किं अर्थ किं राजनार्थ, किं तव तवेत्वं नवि माल दिस्टं ॥ २१ ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मालारोहण जी किं रत्न कार्ज बहुविहि अनंतं, किं अर्थ अर्थं नहिं कोपि कार्ज । किं राज चक्रं किं काम रूपं, किं तव तवेत्वं बिन सुद्ध दिस्टी ॥ २२ ॥ जे इन्द्र धरनेन्द्र गंधर्व जष्यं, नाना प्रकारं बहुविहि अनंतं । ते नंतं प्रकारं बहुभेय कृत्वं, माला न दिस्टं कथितं जिनेन्द्रं ॥ २३ ॥ जे सुद्ध दिस्टी संमिक्त जुक्तं,जिन उक्त सत्यं सु तत्त्वार्थ साधं । आसा भय लोभ अस्नेह तिक्तं, ते माल दिस्टं हिदै कंठ रुलितं ॥ २४ ।। जिनस्य उक्तं जे सुद्ध दिस्टी, संमिक्तधारी बहगुन समिद्धं । ते माल दिस्टं हिदै कंठ रुलितं, मुक्ति प्रवेसं कथितं जिनेन्द्रं ॥ २५ ।। संमिक्त सुद्धं मिथ्या विरक्तं, लाजं भयं गारव जेवि तिक्तं ।। ते माल दिस्ट ह्रिदै कंठ रुलितं, मुक्तस्यगामी जिनदेव कथितं ॥ २६ ॥ जे दर्सनं न्यान चारित्र सुद्धं, मिथ्यात रागादि असत्यं च तिक्तं । ते माल दिस्टं हिंदै कंठ रुलितं, संमिक्त सुद्धं कर्म विमुक्तं ॥ २७ ।। पदस्त पिंडस्त रूपस्त चेत्वं, रूपा अतीतं जे ध्यान जुक्तं । आरति रौद्रं मय मान तिक्तं, ते माल दिस्टं हिंदै कंठ रुलितं ॥ २८ ।। अन्या सु वेदं उवसम धरेत्वं, प्यायिक सुद्धं जिन उक्त साध ।। मिथ्या त्रिभेदं मल राग षंडं, ते माल दिस्टं हिदै कंठ रुलितं ॥ २९ ।। जे चेतना लष्यनो चेतनित्वं, अचेतं विनासी असत्यं च तिक्तं । जिन उक्त सार्धं सु तत्त्वं प्रकासं, ते माल दिस्टं हिंदै कंठ रुलितं ॥ ३०॥ जे सुद्ध बुद्धस्य गुन सस्वरूपं, रागादि दोषं मल पुंज तिक्तं । धर्म प्रकासं मुक्ति प्रवेसं, ते माल दिस्ट ह्रिदै कंठ रुलितं ॥ ३१ ।। जे सिद्ध नंतं मुक्ति प्रवेसं, सुद्धं सरूपं गुन माल ग्रहितं । जे केवि भव्यात्म संमिक्त सुद्ध, ते जांति मोयं कथितं जिनेन्द्रं ॥ ३२ ॥ ॥ इति श्री मालारोहण नाम ग्रंथ जी...आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विचार मत श्री पंडित पूजा जी (अनुष्टुभ छन्द) उर्वकारस्य ऊर्धस्य, ऊर्ध सद्भाव सास्वतं । विंद स्थानेन तिस्टंते, न्यानं मयं सास्वतं धुवं ॥ १ ॥ निरू निश्चै नय जानंते, सुद्ध तत्त्व विधीयते । ममात्मा गुनं सुद्धं, नमस्कारं सास्वतं धुवं ॥ २ ॥ उवं नम: विन्दते जोगी, सिद्धं भवति सास्वतं । पंडितो सोपि जानते, देव पूजा विधीयते ॥ ३ ॥ ह्रियंकारं न्यान उत्पन्नं, उवंकारं च विन्दते । अरहं सर्वन्य उक्तं च, अचष्य दरसन दिस्टते ॥ ४ ॥ मति श्रुतस्य संपूरनं, न्यानं पंचमयं धुवं । पंडितो सोपि जानंति, न्यानं सास्त्र स पूजते ॥ ५ ॥ उवं ह्रियं श्रियंकारं, दरसनं च न्यानं धुवं । देवं गुरं सुतं चरनं, धर्म सद्भाव सास्वतं ॥ ६ ॥ वीज अंकुरनं सुद्धं, त्रिलोकं लोकितं धुवं । रत्नत्रयं मयं सुद्ध, पंडितो गुन पूजते ॥ ७ ॥ देवं गुरुं सुतं वन्दे, धर्म सुद्धं च विन्दते । ति अर्थ अर्थ लोकं च, अस्नानं च सुद्धं जलं ॥ ८ ॥ चेतना लष्यनो धर्मो, चेतयन्ति सदा बुधैः । ध्यानस्य जलं सुद्धं, न्यानं अस्नान पंडिता ॥ ९ ॥ सुद्ध तत्त्वं च वेदन्ते, त्रिभुवनं न्यानं सुरं । न्यानं मयं जलं सुद्धं, अस्नानं न्यान पंडिता ॥ १० ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पंडित पूजा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी संमिक्तस्य जलं सुद्ध, संपूरनं सर पूरितं । अस्नानं पिवते गनधरनं, न्यानं सर नंतं धुवं ॥ ११ ॥ सुद्धात्मा चेतना नित्वं, सुद्ध दिस्टि समं धुवं । सुद्ध भाव स्थिरी भूतं, न्यानं अस्नान पंडिता ॥ १२ ॥ प्रषालितं त्रिति मिथ्यातं, सल्यं त्रयं निकंदनं । कुन्यानं राग दोषं च, प्रषालितं असुह भावना ॥ १३ ॥ कषायं चत्रु अनंतानं, पुन्य पाप प्रषालितं । प्रषालितं कर्म दुस्ट च, न्यानं अस्नान पंडिता ॥ १४ ॥ प्रषालितं मनं चवलं, त्रिविधि कर्म प्रषालितं । पंडितो वस्त्र संजुक्तं, आभरनं भूषन क्रीयते ॥ १५ ॥ वस्त्रं च धर्म सद्भावं, आभरनं रत्नत्रयं । मुद्रिका सम मुद्रस्य, मुकुटं न्यान मयं धुवं ॥ १६ ॥ दिस्टतं सुद्ध दिस्टी च, मिथ्यादिस्टी च तिक्तयं । असत्यं अनृतं न दिस्टंते, अचेत दिस्टि न दीयते ॥ १७ ॥ दिस्टतं सुद्ध समयं च, संमिक्तं सुद्धं धुवं । न्यानं मयं च संपूरनं, ममल दिस्टी सदा बुधै ॥ १८ ॥ लोकमूदं न दिस्टंते, देव पाषंड न दिस्टते । अनायतन मद अस्टं च, संका अस्ट न दिस्टते ॥ १९ ॥ दिस्टतं सुद्ध पदं साधं, दरसनं मल विमुक्तयं । न्यानं मयं सुद्ध संमिक्तं, पंडितो दिस्टि सदा बुधै ॥ २० ॥ वेदिका अग्र स्थिरस्चैव, वेदतं निरग्रंथं धुवं । त्रिलोकं समयं सुद्ध, वेद वेदन्ति पंडिता ॥ २१ ॥ उच्चरनं ऊर्ध सुद्धं च, सुद्ध तत्त्वं च भावना । पंडितो पूज आराध्यं, जिन समयं च पूजतं ॥ २२ ॥ पूजतं च जिनं उक्तं, पंडितो पूजतो सदा । पूजतं सुद्ध सार्धं च, मुक्ति गमनं च कारनं ॥ २३ ॥ अदेवं अन्यान मूई च, अगुरं अपूज पूजतं । मिथ्यातं सकल जानते, पूजा संसार भाजनं ॥ २४ ॥ तेनाह पूज सुद्धं च, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । पंडितो वन्दना पूजा, मुक्ति गमनं न संसया ॥ २५ ॥ प्रति इन्द्रं प्रति पूर्नस्य, सुद्धात्मा सुद्ध भावना । सुद्धार्थं सुद्ध समयं च, प्रति इन्द्रं सुद्ध दिस्टितं ॥ २६ दातारो दान सुद्धं च, पूजा आचरन संजुतं । सुद्ध संमिक्त हृदयं जस्य, अस्थिरं सुद्ध भावना ॥ २७ सुद्ध दिस्टी च दिस्टंते, साधं न्यान मयं धुवं । सुद्ध तत्त्वं च आराध्यं, वन्दना पूजा विधीयते ॥ २८ ॥ संघस्य चत्रु संघस्य, भावना सुद्धात्मनं । समय सरनस्य सुद्धस्य, जिन उक्तं साधं धुवं ॥ २९ ॥ सार्धं च सप्त तत्त्वानं, दर्व काया पदार्थकं । चेतना सुद्ध धुवं निस्चय, उक्तंति केवलं जिनं ॥ ३० ॥ मिथ्या तिक्त त्रितियं च, कुन्यानं त्रिति तिक्तयं । सुद्ध भाव सुद्ध समयं च, साधं भव्य लोकयं ॥ ३१ ॥ एतत् संमिक्त पूजस्या, पूजा पूज्य समाचरेत् ।। मुक्ति श्रियं पथं सुद्ध, विवहार निस्चय सास्वतं ॥ ३२ ॥ ॥ इति श्री पंडित पूजा नाम संथ जी...आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कमल बत्तीसी जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विचार मत य श्री कमल बत्तीसी जी (आर्या छन्द) तत्त्वं च परम तत्त्वं, परमप्पा परम भाव दरसीये । परम जिनं परमिस्टी, नमामिहं परम देव देवस्या ॥ १ ॥ जिनवयनं सद्दहनं, कमलसिरि कमल भाव उववन्नं । अर्जिक भाव सउत्तं, ईर्ज सभाव मुक्ति गमनं च ॥ २ ॥ अन्मोयं न्यान सहावं, रयनं रयन सरूव विमल न्यानस्य । ममलं ममल सहावं, न्यानं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ ३ ॥ जिनयति मिथ्याभावं, अत्रित असत्य पर्जाव गलियं च । गलियं कुन्यान सुभावं, विलय कम्मान तिविह जोएना ॥ ४ ॥ नंद अनंदं रूवं, चेयन आनंद पर्जाव गलियं च । न्यानेन न्यान अन्मोयं, अन्मोयं न्यान कम्म षिपनं च ॥ ५ ॥ कम्म सहावं विपनं, उत्पत्ति षिपिय दिस्टि सभावं । चेयन रूव संजुत्तं, गलियं विलयंति कम्म बंधानं ॥ ६ ॥ मन सुभाव संषिपनं, संसारे सरनि भाव विपनं च । न्यान बलेन विसुद्ध, अन्मोयं ममल मुक्ति गमनं च ॥ ७ ॥ वैरागं तिविह उवन्नं, जनरंजन रागभाव गलियं च । कलरंजन दोस विमुक्कं, मनरंजन गारवेन तिक्तं च ॥ ८ ॥ दर्सन मोहंध विमुक्कं, रागं दोसं च विषय गलियं च । ममल सुभाव उवन्न, नंत चतुस्टय दिस्टि संदर्स ॥ ९ ॥ तिअर्थ सुद्ध दिस्ट, पंचार्थ पंच न्यान परमिस्टी । पंचाचार सुचरनं, संमत्तं सुद्ध न्यान आचरनं ॥ १० ॥ दर्सन न्यान सुचरनं, देवं च परम देव सुद्धं च । गुरं च परम गुरुवं, धर्मं च परम धर्म सभावं ॥ ११ ।। जिनं च परम जिनयं, न्यानं पंचामि अषिरं जोयं । न्यानेन न्यान विधु, ममल सुभावेन सिद्धि संपत्तं ।। १२ ।। चिदानंद चितवनं, चेयन आनंद सहाव आनंदं । कम्म मल पयडि षिपनं, ममल सहावेन अन्मोय संजुत्तं ।। १३ ।। अप्पा परु पिच्छंतो, पर पर्जाव सल्य मुक्तानं । न्यान सहावं सुद्धं, सुद्धं चरनस्य अन्मोय संजुत्तं ।। १४ ।। अबंभं न चवन्तं, विकहा विसनस्य विषय मुक्तं च । न्यान सहाव सु समय, समयं सहकार ममल अन्मोयं ।। १५ ।। जिन वयनं च सहावं, जिनियं मिथ्यात कषाय कम्मानं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा ममल दर्सए सुद्धं ॥ १६ ॥ जिन दिस्टि इस्टि संसुद्धं, इस्टं संजोय तिक्त अनिस्टं। इस्टं च इस्ट रूवं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ १७ ॥ अन्यानं नहु दिस्टं, न्यान सहावेन अन्मोय ममलं च । न्यानंतरं न दिस्टं, पर पर्जाव दिस्टि अंतरं सहसा ॥ १८ ॥ अप्पा अप्प सहावं, अप्पा सुद्धप्प विमल परमप्पा । परम सरूवं रूवं, रूवं विगतं च ममल न्यानस्य ॥ १९ ।। विमलं च विमल रूवं, न्यानं विन्यान न्यान सहकारं । जिन उत्तं जिन वयनं, जिन सहकारेन मुक्ति गमनं च ॥ २० ॥ षट्काई जीवानं, क्रिपा सहकार विमल भावेन । सत्व जीव समभावं, क्रिपा सह विमल कलिस्ट जीवानं ॥ २१ ।। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कमल बत्तीसी जी एकांत विप्रिय न दिस्टं, मध्यस्थं विमल सुद्ध सभावं । सुद्ध सहावं उत्तं, ममल दिस्टी च कम्म षिपनं च ।। २२ ।। सत्वं किलिस्ट जीवा, अन्मोयं सहकार दुग्गए गमनं । जे विरोह सभावं, संसारे सरनि दुष्य वीयंमी ।। २३ ।। न्यान सहाव सु समयं अन्मोयं ममल न्यान सहकारं । न्यानं न्यान सरूवं, ममलं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २४ ॥ इस्टं च परम इस्टं, इस्टं अन्मोय विगत अनिस्टं । पर पर्जावं विलियं, न्यान सहावेन कम्म जिनियं च ।। २५ ।। जिन वयनं सुद्ध सुद्धं, अन्मोयं ममल सुद्ध सहकारं । ममलं ममल सरूवं, जं रयनं रयन सरूव संमिलियं ॥ २६ ॥ सेस्टं च गुन उववन्नं, स्टं सहकार कम्म संषिपनं । सेस्टं च इस्ट कमलं, कमलसिरि कमल भाव ममलं च ।। २७ ।। जिन वयनं सहकारं, मिथ्या कुन्यान सल्य तिक्तं च । विगतं विषय कषायं न्यानं अन्मोय कम्म गलियं च ।। २८ ।। कमलं कमल सहावं, षट् कमलं तिअर्थ ममल आनंदं । दर्सन न्यान सरूवं, चरनं अन्मोय कम्म संषिपनं ।। २९ ।। संसार सरनि नहु दिस्टं, नहु दिस्टं समल पर्जाव सभावं । न्यानं कमल सहावं, न्यानं विन्यान कमल अन्मोयं ॥ ३० ॥ जिन उत्तं सद्दहनं, सद्दहनं अप्प सुद्धप्प ममलं च । परम भाव उवलब्धं परम सहावेन कम्म विलयंति ॥ ३१ ॥ जिन दिस्टि उत्त सुद्धं, जिनयति कम्मान तिविह जोएन । न्यानं अन्मोय विन्यानं, ममल सरूवं च मुक्ति गमनं च ।। ३२ ।। ॥ इति श्री कमल बत्तीसी नाम ग्रंथ जी.. आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। 9 ३१ आचार मत श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी * श्री श्रावकाचार जी १ २ || ३ || न्यानं अनंत || देव देवं नमस्कृतं लोकालोक प्रकासकं । त्रिलोकं भुवनार्थं जोति, उवंकारं च विन्दते ॥ उवं हियं श्रियं चिन्ते, सुद्ध सद्भाव पूरितं । संपून सुयं रूपं, रूपातीत विंद संजुतं ॥ नमामि सततं भक्तं, अनादि आदि सुद्धये । प्रतिपूर्त तिअर्थं सुद्धं, पंचदिप्ति नमामिहं ॥ परमिस्टी परंजोति, आचरनं नंत चतुस्टयं । पंचमयं सुद्धं, देव देवं नमामिहं ॥ ४ 11 दर्सनं न्यानं, वीज नंत अमूर्तयं । विस्व लोकं सुर्य रूपं नमामिहं ध्रुव सास्वतं ॥ ५ नमस्कृतं केवलं महावीरं, दिस्टि दिस्टितं । विक्त रूपं अरूपं च सिद्ध सिद्धं नमामिहं ॥ केवली नंत रूपी च सिद्ध चक्र गर्न नमः । बोच्छामि त्रिविधि पात्रं च, केवल दिस्टि जिनागमं ॥ साधऊ साधु लोकेन, ग्रंथ चेल विमुक्तयं । रत्नत्रयं मयं सुद्धं, लोकालोकेन लोकितं ॥ संमिक्तं सुद्ध धुवं दिस्टा, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । ध्यानं च धर्म सुक्लं च न्यानेन न्यान लंकृतं ॥ आरति रौद्र परित्याजं, मिथ्या त्रिति न दिस्टिते । सुद्ध धर्म प्रकासी भूतं, गुरं त्रैलोक वंदितं ॥ १० ॥ ६ ८ ९ ७ 11 || 11 || || Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = = = = सरस्वती सास्वती दिस्टं, कमलासने कंठ स्थितं । उवं हियं श्रियं सुद्धं, तिअर्थं प्रति पूर्नितं ॥ ११ ॥ कुन्यानं त्रि विनिर्मुक्तं, मिथ्या छाया न दिस्टते । सर्वन्यं मुष वानी च, बुद्धि प्रकास सास्वती ॥ १२ ॥ कुन्यानं तिमिरं पूर्न, अंजनं न्यान भेषजं । केवलि दिस्टि सुभावं च, जिन कंठं सास्वती नम: ॥ १३ ॥ देवं गुरं श्रुतं वन्दे, न्यानेन न्यान लंकृतं । बोच्छामि श्रावकाचार, अविरतं संमिक दिस्टितं ॥ १४ ॥ संसारे भय दुष्यानि, वैरागं जेन चिंतये । अनृतं असत्यं जानते, असरनं दुष भाजनं ॥ १५ ॥ असत्यं असास्वतं दिस्टा, संसारे दुष भीरुहं । सरीरं अनृतं दिस्टा, असुचि अमेव पूरितं ॥ १६ ॥ भोगं दुषं अती दुस्टा, अनर्थं अर्थ लोपितं । संसारे सवते जीवा, दारुनं दुष भाजनं ॥ १७ ॥ अनादि भ्रमते जीवा, संसार सरन संगते । मिथ्या त्रिति संपूर्न, संमिक्तं सुद्ध लोपनं ॥ १८ ॥ मिथ्या देव गुरं धर्म, मिथ्या माया विमोहितं । अनृतं अचेत रागं च, संसारे भ्रमनं सदा ॥ १९ ॥ अनृतं विनासी चिंते, असत्यं उत्साहं कृतं । अन्यानी मिथ्या सद्भावं, सुद्ध बुद्धं न चिंतए ॥ २० ॥ मिथ्या दर्सनं न्यानं, चरनं मिथ्या उच्यते । अनृतं राग संपूर्न, संसारे दुष वीर्जयं ॥ २१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मिथ्या संजम हृदयं चिंते, मिथ्या तप ग्रहनं सदा । अनंतानंत संसारे, भ्रमते अनादि कालयं ॥ २२ ॥ मिथ्या दिस्टि च संगेन, कसायं रमते सदा । लोभं क्रोधं मयं मानं, गृहितं अनंत बंधनं ॥ २३ ॥ लोभं कृतं असत्यस्या, असास्वतं दिस्टते सदा । अनृतं कृत आनंदं, अधर्म संसार भाजनं ॥ २४ कोहाग्नि प्रजुलते जीवा, मिथ्यातं घृत तेलयं । कोहाग्नि प्रकोपनं कृत्वा, धर्म रत्नं च दग्धये ॥ २५ ॥ मानं अनृतं रागं, माया विनास दिस्टते । असास्वतं भाव विद्धंते, अधर्म नरयं पतं ॥ २६ जदि मिथ्या माया संपूर्न, लोक मूढ़ रतो सदा । लोक मूढस्य जीवस्य, संसारे दुष दारुनं ॥ २७ ॥ लोक मूढ रतो जेन, देव मूढस्य दिस्टिते । पाषंडी मूढ संगानि, निगोयं पतितं पुन: ॥ २८ ॥ अनायतन मद अस्टं च, संकादि अस्ट दूषनं । मलं संपूर्ण जानते, सेवनं दुष दारुनं ॥ २९ मिथ्यात मति रतो जेन, दोसं अनंतानंतयं । सुद्ध दिस्टि न जानते, असुद्धं सुद्ध लोपनं ॥ ३० ॥ वैराग भावनं कृत्वा, मिथ्या तिक्त त्रि भेदयं ।। कसायं तिक्त चत्वारि, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ ३१ ॥ मिथ्या समय मिथ्या च, समय प्रकृति मिथ्ययं । कसायं चत्रु अनंतानं, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ ३२ ॥ = = = = (३२) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = = श्री श्रावकाचार जी सप्त प्रकृति विछिदो जत्र, सुद्ध दिस्टि च दिस्टते । श्रावकं अविरतं जेन, संसार दुष परान्मुषं ॥ ३३ ॥ संमिक दिस्टिनो जीवा, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । परिनामं सुद्ध समिक्तं, मिथ्या दिस्टि परान्मुषं ॥ ३४ ॥ संमिक देव गुरं भक्तं, संमिक धर्म समाचरेत् । संमिक तत्त्व वेदंते, मिथ्या त्रिविधि मुक्तयं ॥ ३५ ॥ संमिक दर्सनं सुद्धं, न्यानं आचरन संजुतं । सार्द्ध त्रिति संपूर्न, कुन्यानं त्रिविधि मुक्तयं ॥ ३६ ॥ संमिक संजमं दिस्टा, संमिक तप सार्द्धयं । परिनै प्रमानं सुद्धं, असुद्धं सर्व तिक्तयं ॥ ३७ ॥ षट् कर्म संमिक्तं सुद्धं, संमिक अर्थ सास्वतं । संमिक्तं धुवं सार्द्ध, समिक्तं प्रति पूर्नितं ॥ ३८ ॥ संमिक देव उपाद्यंते, राग दोष विमुक्तयं । अरूपं सास्वतं सुद्धं, सुयं आनंद रूपयं ॥ ३९ ॥ देव देवाधिदेवं च, नंत चतुस्टै संजुतं । उवंकारं च वेदंते, तिस्टितं सास्वतं धुवं ॥ ४० ॥ उर्वकारस्य ऊर्धस्य, ऊर्ध सद्भाव तिस्टितं । उवं हियं श्रियं वन्दे, त्रिविधि अर्थं च संजुतं ॥ ४१ ॥ देवं च न्यान रूपेन, परमिस्टी च संजुतं । सो अहं देह मध्येषु, यो जानाति स पंडिता ॥ ४२ ॥ कर्म अस्ट विनिर्मुक्तं, मुक्ति स्थानेषु तिस्टिते । सो अहं देह मध्येषु, यो जानाति स पंडिता ॥ ४३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी परमानंद सा दिस्टा, मुक्ति स्थानेषु तिस्टिते । सो अहं देह मध्येषु, सर्वन्यं सास्वतं धुवं ॥ ४४ ॥ दर्सन न्यान संजुक्तं, चरनं वीर्ज अनंतयं । मय मूर्ति न्यान संसुद्धं, देह देवलि तिस्टिते ॥ ४५ ॥ अरिहंत देव तिस्टंते, हींकारेन सास्वतं । उवं ऊर्ध सद्धावं, निर्वानं सास्वतं पदं ॥ ४६ आत्मा त्रिविधि प्रोक्तं च, परु अंतरु बहिरप्पयं । परिणामं जं च तिस्टंते, तस्यास्ति गुन संजुतं ॥ ४७ ॥ आत्मा परमात्म तुल्यं च, विकल्पं चित्त न क्रीयते । सुद्ध भाव स्थिरी भूतं, आत्मनं परमात्मनं ॥ ४८ ॥ विन्यानं जेवि जानंते, अप्पा पर परषये । परिचये अप्प सद्भावं, अंतर आत्मा परषये ॥ ४९ ।। बहिरप्पा पुद्गलं दिस्टा, रचनं अनंत भावना । परपंचं जेन तिस्टंते, बहिरप्पा संसार स्थितं ॥ ५० बहिरप्पा परपंच अर्थं च, तिक्तते जे विचषना । अप्पा परमप्पयं तुल्यं, देव देवं नमस्कृतं ॥ ५१ ॥ कुदेवं प्रोक्तं जेन, रागादि दोस संजुतं । कुन्यानं त्रिति संपून, न्यानं चैव न दिस्टते ॥ ५२ माया मोह ममत्तस्य, असुह भाव रतो सदा । तत्र देवं न जानते, जत्र रागादि संजुतं ॥ ५३ ॥ आरति रौद्रं च सद्धावं, माया क्रोधं च संजुतं । कर्मना असुह भावस्य, कुदेवं अनृतं परं ॥ ५४ ॥ = = Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = = = = श्री श्रावकाचार जी अनंत दोष संजुक्तं, सुद्ध भाव न दिस्टते । कुदेवं रौद्र आरूढ़, आराध्यं नरयं पतं ॥ ५५ ॥ कुदेवं जेन पूजंते, वंदना भक्ति तत्परा । ते नरा दुष साहंते, संसारे दुष भीरुहं ॥ ५६ ॥ कुदेवं जेन मानते, स्थानं जेवि जायते । ते नरा भयभीतस्य, संसारे दुष दारुनं ॥ ५७ ॥ मिथ्या देवं च प्रोक्तं च, न्यानं कुन्यान दिस्टते । दुरबुद्धि मुक्ति मार्गस्य, विस्वासं नरयं पतं ॥ ५८ ॥ जस्स देव उपाद्यंते, क्रियते लोकमूढ़यं । तत्र देवं च भक्तं च, विस्वासं दुर्गति भाजनं ॥ ५९ ॥ अदेवं देव प्रोक्तं च, अंधं अंधेन दिस्टते । मार्ग किं प्रवेसं च, अंध कूपं पतंति ये ॥ ६० ॥ अदेवं जेन दिस्टंते, मानते मूढ़ संगते । ते नरा तीव्र दुष्यानि, नरयं तिरयं च पतं ॥ ६१ ॥ अनादि काल भ्रमनं च, अदेवं देव उच्यते । अनृतं अचेत दिस्टंते, दुर्गति गमनं च संजुतं ॥ ६२ ॥ अनृतं असत्य मानं च, विनासं जत्र प्रवर्तते । ते नरा थावरं दुषं, इन्द्री इत्यादि भाजनं ॥ ६३ ॥ मिथ्यादेव अदेवं च, मिथ्या दिस्टी च मानते । मिथ्यातं मूढ दिस्टी च, पतितं संसार भाजनं ॥ ६४ ॥ संमिक गुरू उपाद्यंते, संमिक्तं सास्वतं धुवं । लोकालोकं च तत्त्वार्थं, लोकितं लोक लोकितं ॥ ६५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ऊर्ध आर्ध मध्यं च, न्यान दिस्टि समाचरेत् । सुद्ध तत्त्व स्थिरी भूतं, न्यानेन न्यान लंकृतं ॥ ६६ ॥ सुद्ध धर्म च सद्धावं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । सुद्धात्मा चेतना रूपं, रत्नत्रयं लंकृतं ॥ ६७ ॥ न्यानेन न्यानमालंब्यं, कुन्यानं त्रिविधि मुक्तयं । मिथ्या माया न दिस्टंते, संमिक्तं सुद्ध दिस्टितं ॥ ६८ संसारे तारनं चिंते, भव्य लोकैक तारकं । धर्मस्य अप्प सद्धावं, प्रोक्तं च जिन उक्तयं ॥ ६९ ॥ न्यानं त्रितिय उत्पन्नं, ऋजु विपुलं च दिस्टते । मनपर्जयं च चत्वारि, केवलं सिद्धि साधकं ॥ ७० रत्नत्रयं सुभावं च, रूपातीत ध्यान संजुतं । सक्तस्य विक्त रूपेन, केवलं पदमं धुवं ॥ ७१ कर्म त्रि विनिर्मुक्तं, व्रत तप संजम संजतं । सुद्ध तत्त्वं च आराध्यं, दिस्टतं संमिक दर्सनं ॥ ७२ ।। तस्य गुनं गुरुस्चैव, तारनं तारकं पुनः । मान्यते सुद्ध दिस्टि च, संसारे तारनं सदा ॥ ७३ जावत् सुद्ध गुरं मान्ये, तावत् गत विभ्रमं । सल्यं निकंदनं जेन, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ७४ कुगुरुस्य गुरुं प्रोक्तं, मिथ्या रागादि संजुतं । कुन्यानं प्रोक्तं लोके, कुलिंगी असुह भावना ॥ ७५ ॥ कुगुरुं राग संबंध, मिथ्या दिस्टी च दिस्टितं । राग दोष मयं मिथ्या, इन्द्री इत्यादि सेवनं ॥ ७६ ॥ = = = = Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी Innlatine मिथ्या समय मिथ्यं च, प्रकृति मिथ्या प्रकासये । सुद्ध दिस्टी न जानते, कुगुरु संग विवर्जितं ॥ ७७ ॥ कुगुरुं कुन्यानं प्रोक्तं, सल्यं त्रि दोष संजुतं । कसायं वर्धनं नित्यं, लोक मूढस्य मोहितं ॥ ७८ ॥ इंन्द्रियानां मनोनाथा, पसरंतं प्रवर्तते । विसयं विषम दिस्टं च, ममतं मिथ्या भूतयं ॥ ७९ ॥ अनृतं उत्साहं कृत्वा, अभावं असुहं परं । माया अनृत असत्यस्य, कुगुरुं संसार स्थितं ॥ ८० ॥ आलापं असुहं वाक्यं, आरति रौद्र संजुतं । क्रोध लोभ अनंतानं, कुलिंगी कुगुरुं भवेत् ॥ ८१ ॥ कुगुरुं पारधी संजुक्तं, संसारे वन आश्रयं । लोक मूढस्य जीवस्य, अधर्म पासि बंधनं ॥ ८२ ॥ आरंडते वनं जीवा, वृष डाल पारधी करं । विस्वासं अहं बंधे, लोकमूढस्य किं पस्यते ॥ ८३ ॥ कुगुरुं अधर्म पस्यंतो, अदेवं कृत ताडकी । विकहा राग दंड जालं, पास विस्वास मूढ़यं ॥ ८४ ॥ वनं जीवा गणं रुदनं, अहं बंधंति जन्मयं । अगुरुं लोकमूढस्य, बंधते जन्म जन्मयं ॥ ८५ ॥ अगुरस्य गुरुं मान्ये, मूढ दिस्टि च संगता । ते नरा नरयं जांति, सुद्ध दिस्टी कदाचना ॥ ८६ ॥ अनृतं अचेतं प्रोक्तं, जिन द्रोही वचन लोपनं । विस्वासं मूढ जीवस्य, निगोयं जायते धुवं ॥ ८७ ॥ दर्सन भ्रस्ट गुरुस्चैव, अदर्सनं प्रोक्तं सदा । मानते मिथ्या दिस्टी च, न मानते सुद्ध दिस्टितं ॥ ८८ ॥ कुगुरुं संगते जेन, मानते भय लाजयं । आसा स्नेह लोभं च, मानते दुर्गति भाजनं ॥ ८९ ॥ कुगुरुं प्रोक्तं जेन, वचनं तस्य विस्वासतं । विस्वासं जेन कर्तव्यं, ते नरा दुष भाजनं ॥ ९० कुगुरु ग्रंथ संजुक्तं, कुधर्म प्रोक्तं सदा । असत्य सहितो हिंसा, उत्साहं तस्य क्रीयते ॥ ९१ ।। ते धर्म कुमति मिथ्यातं, अन्यानं राग बंधनं । आराध्यं जेन केनापि, संसारे दुष कारनं ॥ ९२ अधर्मं धर्म प्रोक्तं च, अन्यानं न्यान उच्यते । अचेतं असास्वतं वंदे, अधर्म संसार भाजनं ॥ ९३ कुगुरुं अधर्म प्रोक्तं च, कुलिंगी अधर्म संचितं । मानते अभव्य जीवस्य, संसारे दुष कारनं ॥ ९४ अधर्म लक्षणस्चैव, अनृतं अचेतं श्रुतं । उत्साहं सहितो हिंसा, हिंसानंदी जिनागमं ॥ ९५ हिंसानंदी अनृतानंदी, स्तेयानंद अबंभयं । । रौद्र ध्यानं च संपूर्न, अधर्म दुष दारुनं ॥ ९६ ॥ आरति रौद्र संजुक्तं, ते धर्म अधर्म संजुतं । रागादि मिश्र संपून, अधर्म संसार भाजनं ॥ ९७ ॥ विकहा राग संबंध, विसयं कषायं सदा । अनृतं राग आनंद, ते धर्म अधर्म उच्यते ॥ १८ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी विकहा प्रमानं असुहं च, नंदितं असुह भावना । ममतं काम रूपेन, कथितं वर्न विसेषितं ॥ ९९ ॥ स्त्रियं काम रूपेन, कथितं वन विसेषितं । ते नरा नरयं जांति, धर्म रत्नं विलोपितं ॥ १०० ॥ राज्यं राग उत्पाद्यन्ते, ममतं गारव स्थितं । रौद्र ध्यानं च आराध्यं, राज्यं वर्न विसेषितं ॥ १०१ ॥ हिंसानंदी च राज्यं च, अनृतानंद असास्वतं । कथितं असुह भावेन, संसारे भ्रमनं सदा ॥ १०२ ॥ भयस्य भयभीतस्य, अनृतं दुष भाजनं । भावं विकलितं जांति, धर्म रत्नं न सूझते ॥ १०३ ॥ चौरस्य उत्पाद्यते भावं, अनर्थ सो संगीयते । असुद्ध परिनाम तिस्टंते, धर्म भाव न दिस्टते ।। १०४ ।। चौरस्य भावनं दिस्टा, आरति रौद्र संजुतं । स्तेयानंद आनंद, संसारे दुष दारुनं ॥ १०५ ॥ चोरी कृत व्रतधारी च, जिन उक्तं पद लोपनं । असास्वतं अनृतं प्रोक्तं, धर्म रल विलोपितं ॥ १०६ ॥ विकहा अधर्म मूलस्य, विसनं अधर्म संचितं । जे नरा भाव तिस्टंते, दुष दारुनं पुन: पुन: ॥ १०७ ।। जूआ असुद्ध भावस्य, जोइतं अनृतं मुतं । परिणय आरति संजुक्तं, जूआ नरय भाजनं ॥ १०८ ॥ मासं रौद्र ध्यानस्य, संमूर्छन जत्र तिस्टते । जलं कंद मूलस्य, साकं संमूर्च्छनस्तथा ॥ १०९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्वादं विचलितं जेन, संमूर्छनं तस्य उच्यते । जे नरा तस्य भुक्तं च, तिर्यंच नरय स्थितं ॥ ११० ॥ विदल संधान बंधानं, अनुरागं जस्य गीयते । मनस्य भावनं कृत्वा, मासं तस्य न सुद्धये ॥ १११ ।। फलं संपूर्न भुक्तं च, संमूर्च्छन त्रस विभ्रमं । जीवस्य उत्पन्नं दिस्टा, हिंसानंदी मांस दूषनं ॥ ११२ ॥ मद्यं ममत्व भावेन, राज्यं आरूढ़ चिंतनं । भाषा सुद्धि न जानते, मद्यं तस्य विसंचितं ॥ ११३ ॥ अनृतं असत्य भावं च, कार्याकार्य न सूझये । ते नरा मद्यपा होति, संसारे भ्रमनं सदा ॥ ११४ ।। जिन उक्तं न सार्धन्ते, मिथ्या रागादि भावना । अनृतं नृत जानंति, ममतं मान भूतयं ॥ ११५ ॥ सुद्ध तत्त्वं न वेदंते, असुद्धं सुद्ध गीयते । मद्यं ममत्त भावस्य, मद्य दोषं जथा बुधैः ॥ ११६ ॥ जिन उक्तं सुद्ध तत्त्वार्थ, जेन साधं अव्रतं व्रती । अन्यानी मिथ्या ममत्तस्य, मद्ये आरूढ़ ते सदा ॥ ११७ ॥ विस्वा आसक्त आरक्तं, कुन्यानं रमते सदा । नरयं जस्य सद्धावं, ते भाव विस्वा दिस्टितं ॥ ११८ ।। पारधी दुस्ट सद्भाव, रौद्र ध्यानं च संजुतं । आरति आरक्तं जेन, ते पारधी च संजुतं ॥ ११९ ॥ मान्यते दुस्ट सद्भावं, वचनं दुस्ट रतो सदा । चिंतनं दुस्ट आनंद, ते पारधी हिंसा नंदितं ॥ १२० ॥ (३६) Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी विस्वासं पारधी दुस्टा, मन कूड वचन कूडयं । कर्मना कूड कर्तव्यं, विस्वासं पारधी संजुतं ।। १२१ ।। जे जीव पंथ लागते, कुपंथं जेन दिस्टते । विस्वासं दुस्ट संगानि, ते पारधी दुष दारुनं ।। १२२ ।। संसार पारधी विस्वासं, जन्म मृत्युं च प्राप्तये । जे जीव अधर्म विस्वासं, ते पारधी जन्म जन्मयं ।। १२३ ।। मुक्ति पंथं तत्त्व सार्धं च, लोकालोकं च लोकितं । पंथ भ्रस्ट अचेतस्य विस्वासं जन्म जन्मयं ॥ १२४ ॥ पारधी पासि जन्मस्य, अधर्म पासि अनंतयं । जन्म जन्मं च दुस्टं च, प्राप्तं दुष दारुनं ।। १२५ ।। जिन लिंगी तत्त्व वेदंते, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । कुलिंगी तत्त्व लोपंते, परपंचं धर्म उच्यते ॥ १२६ ॥ ते लिंगी मूढ दिस्टी च, कुलिंगी विस्वासं कृतं । बुद्धि]] पासि बंधते, संसारे दुष दारुनं ।। १२७ । पारधी पासि मुक्तस्य, जिन उक्तं सार्धं धुवं । सुद्ध तत्त्वं च सार्धं च अप्प स्तेयं अनर्थ मूलस्य, विटंबं सद्भाव चिन्हितं ।। १२८ ।। असुह उच्यते । संसारे दुष सद्भावं, स्तेयं दुर्गति भाजनं ।। १२९ ।। भावना । दुर्गति मनस्य चिंतनं कृत्वा स्तेयं कृतं असुद्ध कर्मस्य, कूड सद्भाव रतो सदा ॥ १३० ॥ स्तेयं अदत्तं चिंते, हीनकृत कूड भावस्य वयनं असुद्ध सदा । स्तेयं दुर्गति कारणं ।। १३१ ।। ३७ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्तेयं दुस्ट प्रोक्तं च जिन वयन विलोपितं । अर्थ अनर्थ उत्पाद्यंते, स्तेयं व्रत खंडनं ॥ १३२ ॥ सर्वन्यं मुष वानी च सुद्ध तत्त्व समाचरेत् । जिन उक्तं लोपनं कृत्वा स्तेयं दुर्गति भाजनं ।। १३३ ।। दर्सनं न्यान चारित्रं, मय मूर्ति न्यान संजुतं । सुद्धात्मा तत्त्व लोपंते, स्तेयं दुर्ग भाजनं ।। १३४ ।। परपंचं कृतं सदा । आलापं कूड उच्यते ।। १३५ ।। मन वचनस्य क्रीयते । काम परदारा रतो भावं, ममतं असुद्ध भावस्य, अबंभं कूड सद्भावं, ते नरा व्रत हीनस्य, संसारे दुष दारुनं ।। १३६ ।। कषायं जेन विकहस्य, चक्र इन्द्र नराधिपा । भावनं तत्र तिस्टंते, पर दारा रतो नरा ।। १३७ । कथा च वर्नत्वं वचनं आलाप रंजनं । ते नरा दुष साहंते, पर दारा विकहा अश्रुत प्रोक्तं च कामार्थं श्रुतं अन्यान मयं मूढा, व्रत षंड परिणामं जस्य विचलंते, विभ्रमं रूप आलापं श्रुत आनंद, विकहा परदार मनादि काय विचलंति, इन्द्रिय विषय व्रत पंड सर्व धर्मस्य, अनृत अचेत विषयं रंजितं रतो सदा ।। १३८ । श्रुत उक्तयं । दारा रंजितं ।। १३९ ॥ चिंतनं । सेवनं ।। १४० ।। रंजितं । सार्धयं ॥ १४१ ॥ जेन, अनृतानंद पुन्य सद्भाव उत्पादंते, दोषं आनंदनं संजुतं । कृतं ।। १४२ ।। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी सदा । पतं ।। १४३ ।। रतो । पुनः दुर्गति भाजनं ।। १४४ ।। अधिकारं न्यानं तपं । अस्टं संसार भाजनं ।। १४५ ।। अनृतं नृत उच्यते । आरूढ रतो सदा ।। १४६ ।। ब्रिद्धंति जे नरा । एतानि राग संबंधं, मद अस्टं रमते ममतं असत्य आनंद, मद अस्टं नरयं असत्यं असास्वतं रागं, उत्साहं परपंच सरीरे राग ब्रिद्धंते, ते जाति कुल सुरूपं च बलं सिल्प आरूढं, मद जातिं च राग मयं चिंते, ममतं स्नेह आनंदं, कुल रूपं अधिकारं दिस्टा, रागं ते अन्यान मयं मूढ़ा, संसारे दुष दारुनं ।। १४७ ।। कुन्यानं तप तप्तं च रागं ब्रिद्धंति ते तपा । ते तानि मूढ सद्भावं अन्यानं तप श्रुतं क्रिया ॥ १४८ ॥ अनेय तप तप्तानं, जन्मनं कोड कोडिभि । अनेय जानंते, राग मूढ मयं सदा ।। १४९ ॥ राग संबंधं, तप दारुनं नंतं श्रुतं । सुद्ध तत्त्वं न पस्यंति, ममतं दुर्गति भाजनं । १५० ।। कषायं जेन अनंतानं रागं च अनृतं कृतं । विस्वासं दुर्बुद्धि चिंते, ते नरा दुर्गति भाजनं ।। १५१ ।। लोभं अनृत सद्भावं उत्साहं अनृतं कृतं । तस्य लोभं प्राप्तं च तं लोभं नरयं पतं ।। १५२ ।। लोभं कुन्यान सद्भावं अनाद्यं भ्रमते सदा । अति लोभ चिंतते येन श्रुतं मानं " तं लोभं दुर्गति कारनं ।। १५३ ।। " ३८ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी असास्वतं लोभ कृत्वं च चेतना लक्ष्यनो हीना, मानं असत्य रागं च परपंचं चिंतते येन, सुद्ध तत्त्वं न पस्यते ।। १५५ ।। मानं असास्वतं कृत्वा, अनृतं राग नंदितं । अनेय कष्टं कृतं सदा । लोभं दुर्गति बंधनं ।। १५४ ।। हिंसानंदी च दारुनं । तप असत्यं आनंद मूढस्य, रौद्र ध्यानं च तिस्टते ।। १५६ ।। मानं पुन्य उत्पाद्यंते, दुर्बुद्धि अन्यानं श्रुतं । मिथ्या मय मूढ दिस्टी च, अन्यान रूपी न संसयः ।। १५७ ।। मानस्य चिंतनं दुर्बुद्धि, बुद्धि हीनो न संसया । अनृतं नृत जानंते, दुर्गति पस्यति ते नरा ॥। १५८ ।। मानं बंधं च रागं च, अर्थं विचिंतनं नंतयं । हिंसानंदी च दोषं च अनृतं उत्साहं कृतं ।। १५९ ।। मानं राग संबंधं, दारुनं नंतं श्रुतं । अनृतं अचेत सद्भावं कुन्यानं संसार भाजनं ।। १६० ।। माया अनृत रागं च असास्वतं जल विंदुवत् । धन यौवन अभ्र पटलस्य, माया बंधन किं करोति ।। १६९ ।। माया असुद्ध परिणामं, असास्वतं संग संगते । दुस्ट नस्टं च सद्भावं, माया दुर्गति कारनं ।। १६२ ।। माया अनंतानं कृत्वा, असत्ये राग रतो सदा । मन वचन काय कर्तव्यं, मायानंदी च ते जड़ा ।। १६३ ।। माया आनंद संजुक्तं, अनृतं अचेत भावना । मन वचन काय कर्तव्यं दुर्बुद्धि विस्वास दारुनं ।। १६४ ।। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी माया अचेत पुन्यार्थं, पाप कर्म च विद्धते । सुद्ध दिस्टि न पस्यंते, मिथ्या माया नरयं पतं ॥ १६५ ॥ कोहाग्नि असास्वतं प्रोक्तं, सरीरं मान बंधनं । असास्वतं तस्य उत्पाद्यंते, कोहाग्नि धर्म लोपनं ॥ १६६ ॥ एतत् भावनं कृत्वा, अधर्मं तस्य पस्यते । रागादि मल संजुक्तं, अधर्म सो संगीयते ॥ १६७ ॥ सुद्ध धर्मं च प्रोक्तं च, चेतना लष्यनो सदा । सुद्ध द्रव्यार्थिक नयेन, धर्म कर्म विमुक्तयं ॥ १६८ ॥ धर्मं च आत्म धर्म च, रत्नत्रयं मयं सदा । चेतना लष्यनो जेन, ते धर्म कर्म विमुक्तयं ॥ १६९ ।। धर्म ध्यानं च आराध्यं, उवंकारं च स्थितं । हींकारं श्रींकारं च, त्रि उवंकारं च संस्थितं ॥ १७० ॥ धर्म ध्यानं त्रिलोकं च, लोकालोकं च सास्वतं । कुन्यानं त्रि विनिर्मुक्तं, मिथ्या माया न दिस्टते ॥ १७१ ॥ उत्तम षिमा उत्पाद्यंते, उत्तम तत्त्व प्रकासकं । ममलं अप्प सद्धावं, उत्तम धर्मं च निस्चयं ॥ १७२ ॥ मिथ्या समय मिथ्या च, रागादि मल विवर्जितं । असत्यं अनृतं न दिस्टंते, ममलं धर्म सदा बुधैः ॥ १७३ ॥ धर्मं उत्तम धर्म च, मिथ्या रागादि पंडितं । चेतनाचेतनं द्रव्यं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं ॥ १७४ ॥ धर्म अर्थ तिअर्थं च, तिअर्थ वेदंति जत्पुनः । षट् कमलं त्रि उवंकारं, धर्म ध्यानं च जोइतं ॥ १७५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी धर्म च अप्प सद्धावं, मिथ्या माया निकंदनं । सुद्ध तत्त्वं च आराध्यं, ह्रींकारं न्यान मयं धुवं ॥ १७६ ॥ पदस्तं पिंडस्तं जेन, रूपस्तं विक्त रूपयं । चतु ध्यानं च आराध्यं, सुद्धं संमिक दर्सनं ॥ १७७ ।। पदस्तं पद वेदंते, अर्थ सब्दार्थ सास्वतं । व्यंजनं तत्त्व सार्धं च, पदस्तं तत्र संजुतं ॥ १७८ ॥ कुन्यानं त्रि न पस्यंते, छाया मिथ्या विषंडितं । विंजनं च पदार्थं च, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ १७९ ॥ पदस्तं सुद्ध पदं सार्धं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । सल्यं त्रयं निरोधं च, माया मिथ्या न दिस्टते ॥ १८० ॥ पदस्तं लोकलोकांतं, लोकालोक प्रकासकं । विजनं सास्वतं साधु, उर्वकारं च विंदते ॥ १८१ ।। अंग पूर्वं च जानते, पदस्तं सास्वतं पदं । अनृतं अचेत तिक्तं च, धर्म ध्यान पदं धुवं ॥ १८२ ।। पिंडस्तं न्यान पिंडस्य, स्वात्म चिंता सदा बुधैः । निरोधनं असत्य भावस्य, उत्पाद्यं सास्वतं पदं ॥ १८३ ।। आत्म सद्भाव आरक्तं, पर द्रव्यं न चिंतये । न्यान मयो न्यान पिंडस्य, चेतयंति सदा बुधैः ॥ १८४ ।। रूपस्तं सर्व चिद्रूपं, आर्ध ऊर्धं च मध्ययं । सुद्ध तत्त्व स्थिरी भूतं, ह्रींकारेन जोइतं ॥ १८५ ।। चिद्रूपं सर्व चिद्रूपं, धर्म ध्यानं च निस्चयं । मिथ्यात राग मुक्तं च, ममलं निर्मलं धुवं ॥ १८६ ॥ (३९) Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी रूपस्तं अर्हत रूपेन, ह्रींकारेन दिस्ट | उकारस्य ऊर्धस्य, ऊर्ध च सुद्धं धुवं ।। १८७ ।। रूपातीत विक्त रूपेन, निरंजनं न्यान मयं धुवं । मति श्रुत अवधिं दिस्टा, मनपर्जय केवलं धुवं ॥ १८८ ॥ अनंत दर्सनं न्यानं, वीर्जं नंत सौष्ययं । सर्वन्यं सुद्ध द्रव्यार्थं सुद्धं संमिक दर्सनं ॥ १८९ ॥ प्रति पूर्वं सुद्ध धर्मस्य, असुद्धं मिथ्या तिक्तयं । सुद्ध संमिक संसुद्धं, सार्धं संमिक दिस्टितं ।। १९० ।। देव गुरु धर्म सुद्धस्य, सार्धं न्यान मयं धुवं । मिथ्या त्रिविध मुक्तं च संमिक्तं सुद्धं धुवं ॥ १९९ ॥ देव देवाधिदेवं च, गुरू ग्रंथ च मुक्तयं । धर्म सुद्ध चैतन्यं, सार्धं संमिक्तं धुवं ।। ९९२ ।। संमिक्तं जस्य जीवस्य दोषं तस्य न पस्यते । 2 न तु संमिक्त हीनस्य, संसारे भ्रमनं सदा ।। ९९३ ।। संमिक्तं जस्य हृदयं सार्धं, व्रत तप क्रिया संजुतं । सुद्ध तत्त्वं च आराध्यं, मुक्ति गामी न संसयः ॥ ९९४ ॥ लिंगं च जिनं प्रोक्तं त्रिय लिंग जिनागमं । " उत्तम मध्यम जघन्यं च उत्तमं जिन रूवी च जघन्यं तत्त्व सार्धं च लिंगं त्रिविधं उक्तं चतुर्थ लिंग न उच्यते । जिन सासने प्रोक्तं च संमिक दिस्टि विसेषतं ।। ९९७ ॥ क्रिया त्रेपन संजुतं ।। ९९५ ।। मध्यमं च मति श्रुतं । अविरतं संमिक दिस्टितं । १९६ ॥ ४० श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जघन्यं अव्रत नामं च जिन उक्तं जिनागमं । सार्धं न्यान मयं सुद्धं, दस अष्ट क्रिया संजुतं । ९९८ ।। संमिक्तं सुद्ध धर्मस्य मूल गुनस्य उच्यते । दानं चत्वारि पात्रं च, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ १९९ ॥ दर्सन न्यान चारित्रं, विसेषितं गुन पर्जयं । अनस्तमितं सुद्ध भावस्य फासू जल जिनागमं । २०० ।। एतत् क्रिया संजुक्तं, सुद्ध संमिक्त धारना । प्रतिमा व्रत तपस्चैव, भावना कृत सार्धयं ॥ २०९ ॥ अन्या संमिक्त संमिक्तं, भाव वेदक उपसमं । क्षायिकं सुद्ध भावस्य, संमिक्तं सुद्धं धुवं ॥ २०२ ।। उपादेय गुण पदवी च सुद्ध संमिक्त भावना । पदवी चत्वारि सार्धं च जिन उक्तं सुद्ध दिस्टितं ।। २०३ ।। मति न्यानं च उत्पादंते, कमलासने कंठ स्थितं । उवंकारं सार्धं च तिअर्थं सार्धं धुवं ॥ २०४ ॥ कुन्यानं त्रि विनिर्मुक्तं, छाया मिथ्या तिक्तयं । उवं ह्रियं श्रियं सुद्धं, सार्धं न्यान पंचमं ॥ २०५ ॥ देवं गुरूं धर्म सुद्धस्य, सुद्ध तत्त्व सार्धं धुवं । संमिक दिस्टि सुद्धं च संमिक्तं संमिक्तं जस्य सुद्धं च अनेय गुन तिस्टंते, जस्य संमिक्त हीनस्य, संजम क्रिया अकार्ज च, संमिक दिस्टितं ॥ २०६ ॥ व्रत तप संजमं सदा । संमिक्तं सार्धं बुधै ॥ २०७ ॥ उग्रं तव व्रत संजुतं । मूल बिना वृक्षं जथा ।। २०८ ।। 3 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी संमिक्तं जस्य मूलस्य, साहा व्रत डाल नंतनंताई ।। अवरेवि गुणा होति, संमिक्तं जस्य ह्रिदयस्य ॥ २०९ ।। संमिक्त बिना जीवा, जानै अंगाई श्रुत बहुभेयं । अनेयं व्रत चरनं, मिथ्या तप वाटिका जीवो ॥ २१० ॥ सुद्ध संमिक्त उक्तं च, रत्नत्रयं संजुतं । सुद्ध तत्त्वं च सार्धं च, संमिक्ती मुक्ति गामिनो ॥ २११ ॥ संमिक्तं जस्य तिक्तं च, अनेय विभ्रम जे रता । मिथ्या मय मूढ दिस्टी च, संसारे भ्रमनं सदा ॥ २१२ ॥ संमिक्तं जेन उत्पादंते, सुद्ध धर्म रतो सदा । दोषं तस्य न पस्यंते, रजनी उदय भास्करं ॥ २१३ ॥ संमिक्तं जस्य न पस्यंते, अंध एव मूढं त्रयं । कुन्यानं पटलं जस्य, कोसी उदय भास्करं ॥ २१४ ।। संमिक्तं जस्य मूवंते, श्रुत न्यान विचष्यनं । न्यानेन न्यान उत्पादंते, लोकालोकस्य पस्यते ॥ २१५ ॥ संमिक्तं जस्य न पस्यंते, असार्धं व्रत संजमं । ते नरा मिथ्या भावेन, जीवितोपि मृतं भवेत् ॥ २१६ ॥ उदयं संमिक्त हृदयं जस्य, त्रिलोकं मुदमं सदा । कन्यानं राग तिक्तं च, मिथ्या माया विलीयते ॥ २१७ ॥ संमिक्त सहित नरयम्मि, संमिक्त हीनो न चक्रियं । संमिक्तं मुक्ति मार्गस्य, हीन संमिक्त निगोदयं ॥ २१८ ।। संमिक्त संजुत्त पात्रस्य, ते उत्तमं सदा बुधै । हीन संमिक्त कुलीनस्य, अकुली अपात्र उच्यते ॥ २१९ ।। श्री श्रीसारसमणज्यमबाणी जी तिअर्थं संमिक्तं सार्धं, तीर्थंकर नाम सुद्धये । कर्म षिपति त्रिविधं च, मुक्ति पंथ सिद्धं धुवं ॥ २२० । संमिक्तं जस्य चिंतते, बारंबारेन सार्धयं । दोषं तस्य विनस्यंति, सिंघ मतंग जूथयं ॥ २२१ ॥ संमिक्तं सुद्ध धुवं सार्धं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । तिअर्थं सुद्ध संपूर्न, संमिक्तं सास्वतं पदं ॥ २२२ ।। जस्स हृदयं संमिक्तस्य, उदयं सास्वतं स्थिरं । तस्य गुनस्य नाथस्य, असक्य गुण अनंतयं ॥ २२३ ।। संमिक्तं दिस्टते जेन, उदयं त्रि भुवनत्रयं । लोकालोक त्रिलोकं च, आलबाले मुषं जथा ।। २२४ ॥ मूलगुनं च उत्पादंते, फलं पंच न दिस्टते । बड़ पीपल पिलषुनी च, पाकर उदंबरस्तथा ॥ २२५ ।। फलानि पंच तिक्तंति, सस्य रष्यनार्थयं । अतीचार उत्पादंते, तस्य दोष निरोधनं ॥ २२६ ।। अन्नं जथा फलं पुहपं, बीजं संमूर्छनं जथा । तथाहि दोष तिक्तंते, अनेय उत्पाद्यते जथा ॥ २२७ ।। मद्यं च मान संबंधं, ममतं राग पूरितं । असुद्धं आलापं वाक्यं, मद्य दोष संगीयते ॥ २२८ ॥ संधानं संमूर्छनं जेन, तिक्तंति जे विचष्यनं । अनंत भाव दोषेन, न करोति सुद्ध दिस्टितं ॥ २२९ ।। मासं भष्यते जेन, लोनी मुहूर्त गतस्तथा । न भुक्तं न उक्तं च, व्यापारं न च क्रीयते ॥ २३० ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी दो दारिया मही दुग्धं, जे नरा भुक्त भोजनं । स्वादं विचलिते जेन, भुक्तं मांस दोषनं ॥ २३१ ॥ मधुरं मधुरस्चैव, व्यापार न च क्रीयते । मधुरं मिस्रिते जेन, द्वि मुहूर्तं संमूर्च्छनं ॥ २३२ ॥ संमूर्छनं जथा जानते, साकं पुहपादि पत्रयं । तिक्तंते न च भुक्तं च, दोषं मांस उच्यते ॥ २३३ ॥ कंदं बीजं जथा नेयं, संमूर्छनं विदलस्तथा । व्यापारे न च भुक्तं च, मूलगुनं प्रति पालये ॥ २३४ ॥ दर्सनं न्यान चारित्रं, सार्धं सुद्धात्मा गुनं । तत्त्व नित्य प्रकासेन, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ २३५ ॥ दर्सनं तत्त्व सार्धं च, तिअर्थं सुद्ध दिस्टितं । मय मूर्ति संपून च, स्वात्म दर्सन चिंतनं ॥ २३६ ॥ दर्सनं सप्त तत्त्वानं, दर्व काय पदार्थकं । जीव द्रव्यं च सुद्धं च, सार्धं सुद्धं दरसनं ॥ २३७ ॥ दर्सनं आर्ध ऊर्धं च, मध्य लोकेन दिस्टते । षट् कमलं ति अर्थं च, जोयं संमिक दर्सनं ॥ २३८ ॥ दर्सनं जत्र उत्पादंते, तत्र मिथ्या न दिस्टते । कुन्यानं मलस्चैव, तिक्तं जोगी समाचरेत् ॥ २३९ ॥ मलं विमुक्त मूढादि, पंच विसति न दिस्टते । आसा स्नेह लोभं च, गारव त्रि विमुक्तयं ॥ २४० ॥ दर्सनं सुद्ध दर्वार्थ, लोक मूह न दिस्टते । जस्य लोकं च सार्धं च, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ २४१ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी देव मूई च प्रोक्तं च, क्रीयते जेन मूढयं । दुर्बुद्धि उत्पादते जीवा, तावत् दिस्टि न सुद्धये ॥ २४२ ॥ अदेवं देव उक्तं च, मूढ़ दिस्टि प्रकीर्तितं । अदेवं असास्वतं येन, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ २४३ ।। पाषंडी मूढ जानते, पाषंड विभ्रम रतो सदा । परपंचं पुद्गलार्थं च, पाषंडी मूढ न संसय: ॥ २४४ ।। अनृतं अचेत उत्पादंते, मिथ्या माया लोकरंजनं । पाषंडी मूढ़ विस्वासं, नरयं पतंति ते नरा ॥ २४५ ॥ पाषंडी वचन विस्वासं, समय मिथ्या प्रकासये । जिन द्रोही दुर्बुद्धि जेन, आराध्यं नरयं पतं ॥ २४६ ॥ पाषंडी कुमति अन्यानी, कुलिंगी जिन उक्त लोपनं । जिनलिंगी मिश्रेन य, जिन द्रोही वचन लोपनं ॥ २४७ ॥ पाषंडी उक्त मिथ्यातं, वचनं विस्वास न क्रीयते । उक्तं च सुद्ध दिस्टी च, दरसनं मल विमुक्तयं ॥ २४८ ॥ मद अस्टं मान संबंध, कषायं दोष विमुक्तयं । दर्सनं मलं न दिस्टंते, सुद्ध दिस्टि समाचरेत् ॥ २४९ ।। न्यानं तत्त्वानि वेदंते, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । सुद्धात्मा तिअर्थ सुद्धं, न्यानं न्यान प्रयोजनं ॥ २५० ॥ न्यानेन न्यानमालंब, पंच दीप्ति प्रस्थितं । उत्पन्नं केवलं न्यानं, सुद्धं सुद्ध दिस्टितं ॥ २५१ ॥ न्यानं लोचन भव्यस्य, जिन उक्तं साधं धुवं । सुयं एतानि विन्यानं, सुद्ध दिस्टि समाचरेत् ॥ २५२ ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी आचरनं स्थिरी भूतं, सुद्ध तत्त्व तिअर्थकं । उवंकारं च वेदंते, तिस्टते सास्वतं धुवं ॥ २५३ ॥ आचरनं द्विविधं प्रोक्तं, संमिक्तं संयम धुवं । प्रथमं संमिक्त चरनस्य, स्थिरी भूतस्य संजमं ॥ २५४ ॥ चारित्रं संजमं चरनं, सुद्ध तत्त्व निरीष्यनं । आचरनं अवधिं दिस्टा, सार्धं सुद्ध दिस्टितं ॥ २५५ ॥ पात्रं त्रिविधि जानते, दानं तस्य सुभावना । जिन रूवी उत्कृष्टं च, अव्रतं जघन्यं भवेत् ॥ २५६ ॥ उत्तमं जिन रूवी च, जिन उक्तं समाचरेत् । तिअर्थ जोयते जेन, ऊर्ध आधं च मध्यमं ॥ २५७ ।। षट् कमलं त्रि उर्वकारं, झानं झायंति सदा बुधै । पंच दीप्तं च वेदंते, स्वात्म दरसन दरसनं ॥ २५८ ।। अवधं जेन संपूर्न, ऋजु विपुलं च दिस्टते । मनपर्जय केवलं च, जिन रूवी उत्तमं बुधै ॥ २५९ ॥ उत्कृष्टं श्रावकं जेन, मध्य पात्रं च उच्यते । मति सुत न्यान संपून, अवधं भावना कृतं ॥ २६० ॥ अन्या वेदक संमिक्तं, उपसमं सार्धं धुवं । पदवी द्वितीय आचार्य च, मध्य पात्र सदा बुधै ॥ २६१ ।। उवंकारं च वेदन्ते, हींकारं मृत उच्यते । अचष्यु दर्सन जोयंते, मध्य पात्र सदा बुधै ।। २६२ ॥ प्रतिमा एकादसं जेन, व्रत पंच अनुव्रतं । सार्धं सुद्ध तत्त्वार्थ, धर्म ध्यानं च ध्यायते ॥ २६३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अव्रतं त्रितिय पात्रं च, देव सास्त्र गुरु मानते । सद्दहति सुद्ध संमिक्तं, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ २६४ ।। सुद्ध दिस्टि च संपूर्न, मल मुक्तं सुद्ध भावना । मति कमलासने कंठे, कुन्यानं त्रिविधि मुक्तयं ॥ २६५ ॥ मिथ्या त्रिविधि न दिस्टंते, सल्यं त्रयं निरोधनं । सुद्धं च सुद्ध दर्वार्थ, अविरत संमिक दिस्टितं ॥ २६६ ॥ त्रिविधि पात्रं च दानं च, भावना चिंतते बुधै । सुद्ध दिस्टि रतो जीवा, अट्ठावन लष्य तिक्तयं ॥ २६७ ।। नीच इतर अप तेजं च, वायु पृथ्वी वनस्पती । विकलत्रयस्य जोनी च, अट्ठावन लष्य तिक्तयं ॥ २६८ ।। सुद्ध संमिक्त संजुक्तं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । ते नरा दुष हीनस्य, पात्र दान रतो सदा ॥ २६९ ॥ पात्र दानं च चत्वारि, न्यानं आहार भेषजं । अभयं च भयं नास्ति, दानं पात्र सदा बुधै ॥ २७० ॥ न्यान दानं च न्यानं च, आहार दान आहारयं । अवधं भेषजस्चैव, अभयं अभय दानयं ॥ २७१ ।। पात्र दानं च सुद्धं च, कर्म षिपति सदा बुधै। जे नरा दान चिंतते, अविरतं संमिक दिस्टितं ॥ २७२ ॥ पात्र दानं वट बीजं, धरनी विद्धंति जेतवा । न्यान विद्धंति दानं च, दानं चिंता सदा बुधै ॥ २७३ ॥ पात्र दान मोष्य मार्गस्य, कुपात्रं दुर्गति कारनं । विचारनं भव्य जीवानं, पात्र दान रतो सदा ॥ २७४ ।। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री श्रावकाचार जी कुगुरू कुदेव उक्तं च, कुधर्म प्रोक्तं सदा । कुलिंगी जिन द्रोही च, मिथ्या दुर्गति भाजनं ॥ २७५ ॥ तस्य दानं च विनयं च, कुन्यानी मूढ दिस्टितं । तस्य दान चिंतनं येन, संसारे दुष दारुनं ॥ २७६ ॥ पात्र अपात्र विसेषत्वं, पन्नग गवं च उच्यते । तृण भुक्तं च दुग्धं च, दुग्ध भुक्तं विषं पुनः ॥ २७७ ॥ पात्र दानं च भावेन, मिथ्या दिस्टी च सुद्धये । भावना सुद्ध संपून, दानं फलं स्वर्ग गामिनो ॥ २७८ ॥ पात्र दान रतो जीवा, संसार दुष्य निपातये । कुपात्र दान रतो जीवा, नरयं पतितं ते नरा ॥ २७९ ॥ पात्र दानं च प्रतिपून, प्राप्तं च परमं पदं । सुद्ध तत्त्वं च साधं च, न्यान मयं साधं धुवं ॥ २८० ॥ पात्रं प्रमोदनं कृत्वा, त्रिलोकं मुद उच्यते । जत्र जत्र उत्पाद्यंते, प्रमोदं तत्र उच्यते ॥ २८१ ॥ पात्रस्य अभ्यागतं कृत्वा, त्रिलोकं अभ्यागतं भवे । जत्र जत्र उत्पाद्यंते, तत्र अभ्यागतं भवेत् ॥ २८२ ॥ पात्रस्य चिंतनं कृत्वा, तस्य चिंता स चिंतये । चेतयंति प्राप्तं वृद्धिं, पात्र चिंता सदा बुधै ॥ २८३ ॥ कुपात्रं अभ्यागतं कृत्वा, दुर्गति अभ्यागतं भवेत् । सुगति तत्र न दिस्टंते, दुर्गतिं च भवे भवे ॥ २८४ ॥ कुपात्रं प्रमोदनं कृत्वा, इन्द्री इत्यादि थावरं । तिरियं नरय प्रमोदं च, कुपात्र दान फलं सदा ॥ २८५ ॥ पात्र दानं च सुद्धं च, दात्रं सुद्ध सदा भवेत् । तत्र दानं च मुक्तस्य, सुद्ध दिस्टी सदा मयं ॥ २८६ ।। पात्र सिध्यां च दात्रस्य, दात्र दानं च पात्रयं । दात्र पात्रं च सुद्धं च, दानं निर्मलतं सदा ॥ २८७ ॥ दात्रं सुद्ध संमिक्तं, पात्रं तत्र प्रमोदनं । दात्र पात्रं च सुद्धं च, दानं निर्मलतं सदा ॥ २८८ पात्रं जत्र सुद्धं च, दात्रं प्रमोद कारनं । पात्र दात्र सुद्धं च, उक्तं दान जिनागमं ॥ २८९ ॥ मिथ्या दिस्टी च दानं च, पात्रं न गृहिते पुनः । जदि पात्रं गृहिते दानं, पात्रं अपात्र उच्यते ॥ २९० ॥ मिथ्या दान विषं प्रोक्तं, घृत दग्धं विनासये । नीच संगेन दुग्धं च, गुणं नासन्ति जत्पुनः ॥ २९१ ।। मिथ्या दिस्टी संगेन, गुणं च निर्गुनं भवेत् । मिथ्या दिस्टी जीवस्य, संगं तिजंति सदा बुधैः ॥ २९२ ।। मिथ्याती संगते जेन, दुर्गति भवति ते नरा । मिथ्या संग विनिर्मुक्तं, सुद्ध धर्म रतो सदा ॥ २९३ ।। मिथ्या संग न कर्तव्यं, मिथ्या वास न वासितं । दूरेहि त्यजंति मिथ्यात्वं, देसो त्यागं च तिक्तयं ॥ २९४ ।। मिथ्या दूरेहि वाचंते, मिथ्या संग न दिस्टते । मिथ्या माया कुटुम्बस्य, तिक्ते विरचे सदा बुधै ॥ २९५ ।। मिथ्यातं परम दुष्यानी, संमिक्तं परमं सुषं । तत्र मिथ्या माया त्यक्तंति, सुद्धं संमिक्त सार्धयं ॥ २९६ ।। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी अनस्तमितं बे घड़ियं च, सुद्ध धर्म प्रकासये । सार्धं सुद्ध तत्त्वं च, अनस्तमितं रतो नरा ॥ २९७ ॥ अनस्तमितं कृतं जेन, मन वच कायं कृतं । सुद्ध भावं च भावं च, अनस्तमितं प्रतिपालये ॥ २९८ ।। अनस्तमितं जेन पालंते, वासी भोजन तिक्तये । रात्रि भोजन कृतं जेन, भुक्तं तस्य न सुद्धये ॥ २९९ ॥ षादं स्वादं पीवं च, लेपं आहार क्रीयते । वासी स्वाद विचलंते, तिक्तं अनस्तमितं कृतं ॥ ३०० ।। अनस्तमितं पालते जेन, रागादि दोष वंचितं । सुद्ध तत्त्वं च भावं च, संमिक दिस्टी च पस्यते ॥ ३०१ ।। सुद्ध तत्त्वं न जानंते, न संमिक्तं सुद्ध भावना । स्रावगं तत्र न उत्पादंते, अनस्तमितं न सुद्धये ॥ ३०२ ॥ जे नरा सुद्ध दिस्टी च, मिथ्या माया न दिस्टते । देवं गुरं सुतं सुद्धं, संमत्तं अनस्तमितं व्रतं ॥ ३०३ ॥ पानी गालितं जेनापि, अहिंसा चित्त संकये। विलछितं सुद्ध भावेन, फासू जल निरोधनं ॥ ३०४ ॥ जीव रष्या षट् कायस्य, संकये सुद्ध भावनं । नावगं सुद्ध दिस्टी च, जलं फासू प्रवर्तते ॥ ३०५ ॥ जलं सुद्धं मन: सुद्धं च, अहिंसा दया निरूपनं । सुद्ध दिस्टी प्रमाणं च, अव्रतं स्रावग उच्यते ॥ ३०६ ॥ अविरतं स्रावगं जेन, षट् कम प्रतिपालये । षट् कर्म द्विविधस्चैव, सुद्धं असुद्धं पस्यते ॥ ३०७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुद्धं षट् कर्म जेन, भव्य जीव रतो सदा । असुद्धं षट् कर्म जेन, अभव्य जीव न संसयः ॥ ३०८ ॥ सुद्धं असुद्धं प्रोक्तं च, असुद्धं असास्वतं कृतं । सुद्धं मुक्ति मार्गस्य, असुद्धं दुर्गति कारनं ॥ ३०९ ॥ असुद्धं प्रोक्तस्चैव, देवलि देवंपि जानते । षेत्रं अनंत हिंडते, अदेवं देव उच्यते ॥ ३१० ॥ मिथ्या मय मूढ़ दिस्टी च, अदेवं देव मानते । परपंचं जेन कृतं सार्धं, मानते मिथ्या दिस्टितं ॥ ३११ ।। ग्रंथं राग संजुक्तं, कषायं च मयं सदा । सुद्ध तत्त्वं न जानते, ते कुगुरुं गुरू मानते ॥ ३१२ ॥ मिथ्या माया प्रोक्तं च, असत्यं सत्य उच्यते । जिन द्रोही वचन लोपंते, कुगुरुं दुर्गति भाजनं ॥ ३१३ ॥ अनेक पाठ पठनंते, वंदना श्रुत भावना । सुद्ध तत्त्वं न जानते, सामायिक मिथ्या मानते ॥ ३१४ ॥ संजमं असुद्धं जेन, हिंसा जीव विरोधनं । संजम सुद्ध न पस्यंते, ते संजम मिथ्या संजमं ॥ ३१५ ।। असुद्ध तप तप्तं च, तीव्र उपसर्ग सह । सुद्ध तत्त्वं न पस्यंते, मिथ्या माया तपं कृतं ॥ ३१६ ॥ दानं असुद्ध दानस्य, कुपात्रं दीयते सदा । व्रत भंगं कृतं मूढा, दानं संसार कारनं ॥ ३१७ ॥ ये षट् कर्म पालंते, मिथ्या अन्यान दिस्टते । ते नरा मिथ्या दिस्टी च, संसारे भ्रमनं सदा ॥ ३१८ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी ये षट् कर्म जानते, अनेय विभ्रम क्रीयते । मिथ्यात गुरू पस्यंते, दुर्गति भाजन ते नरा ॥ ३१९ ॥ षट् कर्म सुद्ध उक्तं च, सुद्ध समय सुद्धं धुवं । जिन उक्तं षट् कर्म च, केवलि दिस्टि संजुतं ॥ ३२० ॥ देव देवाधिदेवं च, गुरु ग्रंथं मुक्तं सदा । स्वाध्याय सुद्ध ध्यायंते, संजमं संजमं श्रुतं ॥ ३२१ ॥ तपं च अप्प सद्धावं, दानं पात्रस्य चिंतनं । षट् कर्म जिनं उक्तं, सार्धं सुद्ध दिस्टितं ॥ ३२२ ॥ देवं च जिनं उक्तं, न्यान मयं अप्प सुद्ध सद्धावं । नंत चतुस्टय जुत्तो, चौदस प्रान संजदो होई ॥ ३२३ ॥ देवो परमिस्टी मइयो, लोकालोक लोकितं जेन । परमप्पा ज्ञानं मइयो, तं अप्पा देह मझूमि ॥ ३२४ ।। देह देवलि देवं च, उवइट्ठो जिनबरिंदेहि । परमिस्टी च संजुत्तो, पूजं च सुद्ध संमत्तं ॥ ३२५ ॥ देवं गुनं विसुद्ध, अरहंतं सिद्ध आचार्य जेन । उवज्झाय साधु गुनं, पंच गुनं पंच परमिस्टी ।। ३२६ ॥ अरहंतं ह्रियंकार, न्यान मयी तिलोय भुवनस्य । नंत चतुस्टय सहियं, ह्रियंकारं जानि अरहंतं ॥ ३२७ ।। सिद्धं सिद्ध धुवं चिंते, उर्वकारं च विंदते । मुक्तिं च ऊर्ध सद्भावं, ऊर्धं च सास्वतं पदं ॥ ३२८ ॥ आचार्य आचरनं सुद्धं, तिअर्थं सुद्ध भावना । सर्वन्यं सुद्ध ध्यानस्य, मिथ्या तिक्तं त्रि भेदयं ॥ ३२९ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उपाय देव उपयोगं जेन, उपाय लष्यनं धुवं । अंगं पूर्व उक्तं च, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ ३३० ॥ साधुस्च सर्व सार्धं च, लोकालोकं च सुद्धये । रत्नत्रयं मयं सुद्धं, ति अर्थं साधु जोइतं ॥ ३३१ ।। देवं पंच गुनं सुद्ध, पदवी पंचामि संजदो सुद्धो । देवं जिन पण्णत्तं, साधु सुद्ध दिस्टि समयेन ॥ ३३२ ।। अरहंत भावनं जेन, षोडस भावेन भावितं । तिअर्थं तीर्थंकरं जेन, प्रति पूर्न पंच दीप्तयं ॥ ३३३ ।। तस्यास्ति षोडसं भावं, तिअर्थं तीर्थंकरं कृतं । षोडस भावनं भावं, अरहतं गुण सास्वतं ॥ ३३४ ॥ सिद्धं च सुद्ध संमत्तं, न्यानं दरसन दरसितं । वीर्ज सुहं समं हेतुं, अवगाहन अगुरुलघुस्तथा ॥ ३३५ ।। संमत्तं आदि गुनं सार्धं, मिथ्या मल विमुक्तयं । सिद्धं गुनस्य संजुत्तं, सार्धं भव्य लोकयं ॥ ३३६ ॥ आचार्य आचरनं धर्म, तिअर्थं सुद्ध दरसनं । उपाय देव उवदेसन कृत्वा, दस लष्यन धर्म धुवं ।। ३३७ ॥ सार्धं चेतना भावं, आत्म धर्म च एकयं । आचार्य उपाय देवेन, धर्म सुद्धं च धारिना ॥ ३३८ ॥ ते धर्म सुद्ध दिस्टी च, पूजितं च सदा बुधै । उक्तं च जिनदेवं च, श्रूयते भव्य लोकयं ॥ ३३९ ।। साधओ साधु लोकस्य, दर्सनं न्यान संजुतं । चारित्रं आचरनं जेन, उदयं अवहि संजुतं ॥ ३४० ।। A Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी ऊर्ध आर्ध मध्यं च, दिस्टितं संमिक दरसनं । न्यान मयं च सर्वन्यं, आचरनं संजुतं धुवं ॥ ३४१ ।। साधु गुनस्य संपून, रत्नत्रयं लंकृतं । भव्य लोकस्य जीवस्य, रत्नत्रयं पूजितं ॥ ३४२ ॥ देव गुनं पूज सार्धं च, अंगं संमिक्त सुद्धये । सार्धं न्यान मयं सुद्ध, संमिक दरसन उत्तमं ॥ ३४३ ॥ न्यानं च न्यान सुद्धं च, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । न्यानं मयं च संसुद्धं, न्यानं सर्वन्य लोकितं ॥ ३४४ ॥ न्यानं आराधते जेन, पूजा तत्र च विंदते । सुद्धस्य पूज्यते लोके, न्यान मयं सार्धं धुवं ॥ ३४५ ॥ न्यानं गुनं च चत्वारि, श्रुतं पूजा सदा बुधै । धर्म ध्यानं च संजुक्तं, श्रुतं पूजा विधीयते ॥ ३४६ ॥ प्रथमानुयोग करनानं, चरनं द्रव्यानि विंदते । न्यानं तिअर्थ संपून, सार्धं पूजा सदा बुधै ॥ ३४७ ॥ प्रथमानुयोग पद वेदंते, विंजनं पद सब्दयं । तिअर्थं पद सुद्धस्य, न्यानं आत्मा तुव गुनं ॥ ३४८ ॥ विजनं च पदार्थं च, सास्वतं नाम सार्धयं । उर्वकारस्य वेदंते, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ ३४९ ॥ करनानुयोग संपूर्न, स्वात्म चिंता सदा बुधै । स्व स्वरूपं च आराध्यं, करनानुयोग सास्वतं ॥ ३५० ॥ सुद्धात्मा चेतनं जेन, उवं हियं श्रियं पदं । पंच दिप्ति मयं सुद्धं, सुद्धात्मा सुद्धं गुनं ॥ ३५१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सल्यं मिथ्या मयं तिक्तं, कुन्यानं त्रि विमुक्तयं । ऊर्धं च ऊर्ध सद्भावं, उवंकारं च विंदते ॥ ३५२ ॥ दिव्य दिस्टी च संपूर्न, सुद्धं संमिक दर्सनं । न्यान मयं साधं सुद्ध, करनानुयोग स्वात्म चिंतनं ॥ ३५३ ।। चरनानुयोग चारित्रं, चिद्रूपं रूप द्रिस्यते । ऊर्ध आधं च मध्यं च, संपूरनं न्यान मयं धुवं ।। ३५४ ॥ षट् कमलं त्रिलोकं च, सार्धं धर्म संजुतं । चिद्रूपं रूप दिस्टंते, चरनं पंच दीप्तयं ॥ ३५५ ॥ दिव्यानुयोग उत्पादंते, दिव्य दिस्टी च संजुतं । अनंतानंत दिस्टंते, स्वात्मानं विक्त रूपयं ॥ ३५६ ॥ दिव्यं दिव्य दिस्टी च, सर्वन्यं सास्वतं पदं । नंतानंत चतुस्टं च, केवलं पदमं धुवं ॥ ३५७ ॥ चत्वारि गुण जानते, पूजा वेदंति जं बुधै । संसार भ्रमण मुक्तस्य, सुद्धं मुक्ति गामिनो ॥ ३५८ ॥ श्रियं संमिक दर्सनं च, संमिक दर्सनमुद्यमं । संमिक्तं संपून सुद्धं च, तिअर्थं पंच दीप्तयं ॥ ३५९ ।। श्रियं संमिक दर्सनं सुद्धं, श्रियंकारेन उत्पादते । सर्वन्यं च मयं सुद्ध, श्रियं संमिक दर्सनं ॥ ३६० ॥ न्यानं च संमिक्तं सुद्धं, संपूरनं त्रिलोकमुद्यमं । सर्वन्यं पंच मयं सुद्धं, पद विंदं केवलं धुवं ॥ ३६१ ॥ श्रियं संमिक न्यानं च, श्रियं सर्वन्य सास्वतं । लोकालोकं च मयं सुद्धं, श्रियं संमिक न्यान उच्यते ॥ ३६२ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी श्रियं संमिक चारित्रं, संमिक उत्पन्न सास्वतं । अप्पा परमप्पयं सुद्धं, श्रियं संमिक चरनं भवेत् ॥ ३६३ ।। श्रियं सर्वन्य सार्धं च, स्वरूपं विक्त रूपयं । श्रियं संमिक्त धुवं सुद्धं, श्री संमिक चरनं बुधै ॥ ३६४ ॥ पचहत्तर गुन वेदंते, सार्धं च सुद्धं धुवं । पूजतं स्तुतं जेन, भव्यजन सुद्ध दिस्टितं ॥ ३६५ ॥ एतत् गुन सार्धं च, स्वात्म चिंता सदा बुधै । देवं तस्य पूजस्य, मुक्ति गमनं न संसयः ॥ ३६६ ।। गुरस्य ग्रंथ मुक्तस्य, राग दोषं न चिंतए । रत्नत्रयं मयं सुद्धं, मिथ्या माया विमुक्तयं ॥ ३६७ ॥ गुरं त्रिलोक वेदंते, ध्यानं धर्मं च संजुतं । तद्गुरं सार्धं नित्यं, रत्नत्रयं लंकृतं ॥ ३६८ ॥ स्वाध्याय सुद्ध धुवं चिंते, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । सुद्ध संपूर्न दिस्टं च, न्यानं मयं सार्धं धुवं ॥ ३६९ ॥ स्वाध्याय सुद्ध चिंतस्य, मन वचन काय निरोधनं । त्रिलोकं तिअर्थ सुद्ध, स्थिरं सास्वतं धुवं ॥ ३७० ॥ संजमं संजमं कृत्वा, संजमं द्विविधं भवेत् । इन्द्रियानां मनोनाथा, रष्यनं त्रस थावरं ॥ ३७१ ॥ संजमं संजमं सुद्ध, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । तिअर्थ न्यान जलं सुद्धं, स्नानं संजमं धुवं ॥ ३७२ ॥ तपं अप्प सद्भावं, सुद्ध तत्त्व सचिंतनं । सुद्ध न्यान मयं सुद्धं, तथाहि निर्मलं तपं ॥ ३७३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दानं पात्र चिंतस्य, सुद्ध तत्त्व रतो सदा । सुद्ध धर्म रतो भावं, पात्र चिंता दान संजुतं ॥ ३७४ ॥ ये षट् कर्म सुद्धं च, जे सार्धति सदा बुधै । मुक्ति मार्ग धुवं सुद्ध, धर्म ध्यान रतो सदा ॥ ३७५ ॥ ये षट् कर्म च आराध्यं, अविरतं स्रावगं धुवं । संसार सरनि मुक्तस्य, मोषगामी न संसय: ॥ ३७६ ।। एतत् भावनं कृत्वा, स्रावगं संमिक दिस्टितं । अविरतं सुद्ध दिस्टी च, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ ३७७ ॥ स्रावग धर्म उत्पादंते, आचरनं उत्कृष्टं सदा । प्रतिमा एकादसं प्रोक्तं, पंच अनुव्रत सुद्धये ॥ ३७८ ।। दंसन वय सामाइ, पोसह सचित्त चिंतनं । अनुरागं बंभचर्य च, आरंभं परिग्रहस्तथा ॥ ३७९ ॥ अनुमतं उदिस्ट देसं च, प्रतिमा एकादसानि च । व्रतानि पंच उत्पादंते, श्रूयते जिनागमं ॥ ३८० ॥ अहिंसा नृतं जेन, स्तेयं बंभ परिग्रहं । सुद्ध तत्त्व हृदयं चिंते, सार्धं न्यान मयं धुवं ॥ ३८१ ॥ प्रतिमा उत्पादंते जेन, दर्सनं सुद्ध दर्सनं । उर्वकारं च वेदंते, मल पच्चीस विमुक्तयं ॥ ३८२ ।। मूढ़त्रयं उत्पादंते, लोक मूद न दिस्टते । जेतानि मूढ दिस्टी च, तेतानि दिस्टि न दीयते ॥ ३८३ ॥ लोक मूर्चा देव मूढं च, अनृतं अचेत दिस्टते । तिक्तते सुद्ध दिस्टी च, सुद्ध संमिक्त रतो सदा ॥ ३८४ ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी पाषंडी मूढ उक्तं च, असास्वतं असत्य उच्यते ।। अधर्म च प्रोक्तं जेन, कुलिंगी पाषंड तिक्तयं ॥ ३८५ ॥ अनायतन षट्कस्चैव, तिक्तते जे विचष्यना । कुदेवं कुदेव धारी च, कुलिंगी कुलिंग मानते ॥ ३८६ ॥ कुसास्त्रं विकहा रागं च, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं । कुसास्त्रं राग ब्रिद्धंते, अभव्यं च नरयं पतं ॥ ३८७ ॥ अन्यानी मिथ्या संजुक्तं, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं । सुद्धात्मा चेतना रूपं, सार्धं न्यान मयं धुवं ।। ३८८ ॥ मद अस्टं ससंक अस्टं च, तिक्तते भव्यात्मनं । सुद्ध पदं धुवं सार्धं, दर्सनं मल विमुक्तयं ॥ ३८९ ।। जे केवि मल संपूर्न, कुन्यानं त्रि रतो सदा । ते तानि संग तिक्तंते, न किंचिदपि चिंतए ॥ ३९० ॥ मल मुक्तं दर्सनं सुद्धं, आराधते बुधै जनै । संमिक दर्सन सुद्धं च, न्यानं चारित्र संजुतं ॥ ३९१ ॥ दर्सनं जस्य हृदयं सार्धं, दोषं तस्य न पस्यते । विनासं सकल जानंते, स्वप्नं तस्य न दिस्यते ॥ ३९२ ॥ संमिक दर्सनं सुद्धं, मिथ्या कुन्यान विलीयते । सुद्ध समयं च उत्पादंते, रजनी उदय भास्करं ॥ ३९३ ।। दर्सनं तत्त्व सार्धं च, तत्त्व नित्य प्रकासकं । न्यानं तत्त्वानि वेदंते, दर्सनं तत्त्व सार्धयं ॥ ३९४ ॥ संमिक दर्सनं सुद्धं, उवंकारं च विंदते । धर्म ध्यानं च उत्पाद्यंते, ह्रियंकारेण तिस्टते ॥ ३९५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उवंकारं ह्रींकारं च, श्रींकारं प्रति पूर्नयं । ध्यायंति सुद्ध ध्यानस्य, अनुव्रतं साध धुवं ॥ ३९६ ॥ अन्या वेदकस्चैव, पदवी दुतिय आचार्य । न्यानं मति श्रुतस्चैव, धर्म ध्यानं रतो सदा ॥ ३९७ ॥ अनेय व्रत कर्तव्यं, तप संजमं च धारनं । दर्सन सुद्धि न जानते, विथा सकल विभ्रमः ॥ ३९८ ॥ अनेय पाठ पठनं च, अनेय क्रिया संजुतं । दर्सन सुद्धि न जानते, ब्रिथा दान अनेकधा ॥ ३९९ ॥ दर्सनं जस्य हृदयं दिस्टा, सुयं न्यानं उत्पादते । कमठी दिस्टि जथा डिंभं, सुयं विद्धंति जं बुधैः ॥ ४०० ।। दर्सनं जस्य ह्रिदं श्रुतं, सुयं न्यानं च संभवे । मच्छिका अंड जथा रेतं, सुर्य ब्रिद्धन्ति जं बुधैः ॥ ४०१ ।। दर्सन हीन तपं कृत्वा, व्रत संजम पठं क्रिया । चपलता हिंडि संसारे, जह जल सरनि ताल कीटऊ ॥ ४०२ ।। दर्सनं स्थिरं जेन, न्यानं चरनं च स्थिरं । संसारे तिक्त मोहंधं, मुक्ति स्थिरं सदा भवेत् ॥ ४०३ ।। एत्त दर्सनं दिस्टा, न्यानं चरन सुद्धए । उत्कृष्टं व्रतं सुद्धं, मोष्यगामी न संसयः ॥ ४०४ ॥ दर्सनं सार्धनं जस्य, व्रत तपस्य उच्यते । व्रत तप नेम संजुक्तं, सार्धं स्वात्म दर्सनं ॥ ४०५ ॥ सामायिकं नृतं जेन, सम संपूर्न सार्धयं । ऊर्ध आर्ध मध्यं च, मन रोधो स्वात्म चिंतनं ॥ ४०६ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रावकाचार जी आलापं भोजनं गच्छं, श्रुतं सोकं च विभ्रमं । मनो वय काय हिदं सुद्धं, सामाई स्वात्म चिंतनं ॥ ४०७ ॥ पोसह प्रोषधस्चैव, उववासं जेन क्रीयते । संमिक्तं जस्य हृदयं सुद्धं, उववासं तस्य उच्यते ॥ ४०८ ।। संसारं विरतिते जेन, सुद्ध तत्त्वं च सार्धयं । सुद्ध दिस्टी स्थिरी भूतं, उववासं तस्य उच्यते ॥ ४०९ ।। उववासं इच्छनं कृत्वा, जिन उक्तं इच्छनं जथा । भक्ति पूर्वं च इच्छंते, तस्य हृदय समाचरेत् ॥ ४१० ।। उववासं व्रतं सुद्धं, सेसं संसार तिक्तयं । पछितो तिक्त आहारं, अनसन उववास उच्यते ॥ ४११ ।। उववासं फलं प्रोक्तं, मुक्ति मार्गं च निस्चयं । संसारे दुष नासंति, उववासं सुद्धं फलं ॥ ४१२ ॥ संमिक्त बिना व्रतं जेन, तपं अनादि कालयं । उववासं मास पाषं च, संसारे दुष दारुनं ॥ ४१३ ॥ उववासं एक सुद्धं च, मन सुद्धं तत्त्व सार्धयं । मुक्ति श्रियं पथं सुद्धं, प्राप्तं तत्र न संसया ॥ ४१४ ॥ सचित्त चिंतनं कृत्वा, चेतयंति सदा बुधैः । अचेतं असत्य तिक्तं च, सचित्त प्रतिमा उच्यते ॥ ४१५ ॥ सचित्तं हरितं जेन, तिक्तंते न विरोधनं । चेत वस्तु संमूर्छनं च, तिक्तते सदा बुधैः ॥ ४१६ ॥ सचित्त हरित तिक्तं च, अचेत सार्धं च तिक्तयं । सचित्त चेतना भावं, सचित्त प्रतिमा सदा बुधैः ॥ ४१७ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनुराग भक्ति दिस्टं च, राग दोषं न दिस्टते । मिथ्या कुन्यान तिक्तं च, अनुरागं तत्र उच्यते ॥ ४१८ ।। सुद्ध तत्त्वं च आराध्यं, असत्यं तस्य तिक्तये । मिथ्या सल्य तिक्तं च, अनुराग भक्ति सार्धयं ॥ ४१९ ।। बंभ अबंभं तिक्तं च, सुद्ध दिस्टि रतो सदा । सुद्ध दर्सन समं सुद्धं, अबंभं तिक्त निस्चयं ॥ ४२० ।। जस्य चितं धुवं निस्चय, ऊर्ध आधं च मध्ययं । जस्य चितं न रागादि, प्रपंचं तस्य न पस्यते ॥ ४२१ ।। विकहा विसन उक्तं च, चक्र धरनेन्द्र इन्द्रयं । नरेन्द्र विभ्रमं रूपं, वर्नते विकहा उच्यते ॥ ४२२ ।। व्रत भंग राग चिंतंते, विकहा मिथ्यात रंजितं । अबंभं तिक्त बंभं च, बंभ प्रतिमा स उच्यते ॥ ४२३ जदि बंभचारिनो जीवो, भाव सुद्धं न दिस्टते । विकहा राग रंजंते, प्रतिमा बंभ गतं पुनः ॥ ४२४ ॥ चितं निरोधतं जेन, सुद्ध तत्त्वं च सार्धयं । तस्य ध्यान स्थिरीभूतं, बंभ प्रतिमा स उच्यते ॥ ४२५ ।। आरंभं मन पसरस्य, दिस्टं अदिस्ट संजुतं । निरोधनं च कृतं तस्य, सुद्ध भावं च संजुतं ॥ ४२६ ॥ अनृत अचेत असत्यं, आरंभं जेन क्रीयते । जिन उक्तं न दिस्टंते, जिनद्रोही मिथ्या तत्परा ॥ ४२७ ॥ अदेवं अगुरं जस्य, अधर्म क्रीयते सदा । विस्वासं जेन जीवस्य, दुर्गतिं दुष भाजनं ॥ ४२८ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आरंभं परिग्रहं दिस्टा, अनंतानंत चिंतये । ते नरा न्यान हीनस्य, दुर्गति पतितं न संसयः ॥ ४२९ ॥ आरंभं सुद्ध दिस्टी च, संमिक्तं सुद्धं धुवं । दर्सनं न्यान चारित्रं, आरंभं सुद्ध सास्वतं ॥ ४३० ॥ आरंभं सुद्ध तत्त्वं च, संसार दुष तिक्तयं । मोष्यमार्ग च दिस्टंते, प्राप्तं सास्वतं पदं ॥ ४३१ ॥ परिग्रहं पर पुद्गलार्थं च, परिग्रहं नवि चिंतए । ग्रहणं दर्सनं सुद्धं, परिग्रहं नवि दिस्टते ॥ ४३२ ॥ अनुमतं न दातव्यं, मिथ्या रागादि देसनं । अहिंसा भाव सुद्धस्य, अनुमतं न चिंतए ॥ ४३३ ।। उद्दिस्टं उत्कृष्ट भावेन, दर्सनं न्यान संजुतं । चरनं सुद्ध भावस्य, उद्दिस्टं आहार सुद्धये ॥ ४३४ ॥ अंतराय मनं कृत्वा, वचनं काय उच्यते । मन सुद्धं वच सुद्धं च, उद्दिस्टं आहार सुद्धये ॥ ४३५ ॥ प्रतिमा एकादसं जेन, जिन उक्तं जिनागमं । पालंति भव्य जीवस्य, मन सुद्धं स्वात्म चिंतनं ॥ ४३६ ॥ अनुव्रतं पंच उत्पादंते, अहिंसा नृत उच्यते । अस्तेयं बंभ व्रतं सुद्धं, अपरिग्रहं स उच्यते ॥ ४३७ ॥ हिंसा असत्य सहितस्य, राग दोष पापादिकं । थावरं स आरंभं, तिक्तंते जे विचष्यना ॥ ४३८ ॥ अनृतं अनृतं वाक्यं, अनृत अचेत दिस्टते । असास्वतं वचन प्रोक्तं च, अनृतं तस्य उच्यते ॥ ४३९ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अस्तेयं स्तेय कर्मस्य, चौर भावं न क्रीयते । जिन उक्तं वचन सुद्धं च, अस्तेयं लोपनं कृतं ॥ ४४० ।। ब्रह्मचर्यं च सुद्धं च, अबंभं भाव तिक्तयं । विकहा राग मिथ्यात्वं, तिक्तं बंभ व्रतं धुवं ॥ ४४१ ।। मन वयन काय हृदयं सुद्धं, सुद्ध समय जिनागमं । विकहा काम सद्धावं, तिक्तंते ब्रह्मचारिना ॥ ४४२ ।। परिग्रह प्रमानं कृत्वा, पर द्रव्यं नवि दिस्टते । अनृत असत्य तिक्तं च, परिग्रह प्रमानस्तथा ॥ ४४३ ।। एतत् क्रिया संजुक्तं, सुद्ध संमिक्त सार्धयं । ध्यानं सुद्ध समयं च, उत्कृष्टं स्रावगं धुवं ॥ ४४४ ।। साधऊ साधु लोकेन, रत्नत्रयं च संजुतं । ध्यानं तिअर्थ सुद्धं च, अवधिं तेन दिस्टते ॥ ४४५ ॥ न्यानं चारित्र संपूर्न, क्रिया त्रेपन संजुतं । तपं च व्रत समिदि च, गुप्ति त्रय प्रतिपालये ॥ ४४६ ।। चारित्रं चरनं सुद्धं, समय सुद्धं च उच्यते । संपूर्न ध्यान जोगेन, साधओ साधु लोकयं ॥ ४४७ ।। संमिक दर्सनं न्यानं, चारित्रं सुद्ध संजमं । जिन रूवी सुद्ध दर्वार्थं, साधओ साधु उच्यते ॥ ४४८ ॥ ऊर्ध आर्ध मध्यं च, लोकालोक विलोकितं । आत्मनं सुद्धात्मनं, महात्मं च महाव्रतं ॥ ४४९ ॥ धर्म ध्यानं च संजुत्तं, प्रकासनं धर्म सुद्धयं । जिन उक्तं जस्य सर्वन्यं, वचनं तस्य प्रकासनं ॥ ४५० ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी परमानंद आनंद, जिन उक्तं सास्वतं पदं । एकोदेस उवदेसं च, जिन तारण मुक्ति पंथं श्रुतं ॥ ४६२ ।। ॥ इति श्री श्रावकाचार नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ श्री श्रावकाचार जी मिथ्यातं त्रिति सल्यं च, कुन्यानं त्रिति उच्यते । राग दोषं च जेतानि, तिक्तंते सुद्ध साधवा ॥ ४५१ ॥ अप्पं च तारनं सुद्धं, भव्य लोकैक तारकं । सुद्धं लोकलोकांतं, ध्यानारूढं च साधवा ॥ ४५२ ॥ मनं च सुद्ध भावं च, सुद्ध तत्त्वं च दिस्टते । संमिक दर्सनं सुद्धं, सुद्धं तिअर्थ संजुतं ॥ ४५३ ॥ रत्नत्रयं सुद्ध संपूर्न, संपूर्न ध्यानारूढ़यं । रिजु विपुलं च उत्पादंते, मनपर्जय न्यानं धुवं ॥ ४५४ ॥ वैराग्यं त्रितियं सुद्धं, संसारे तजंति तृनं । भूषन रयनत्तयं सुद्धं, ध्यानारूढ़ स्वात्म दर्सनं ॥ ४५५ ॥ केवलं भावनं कृत्वा, पदवी अर्हन्त सार्धयं । चरनं सुद्ध समयं च, नंत चतुस्टय संजुतं ॥ ४५६ ॥ साधओ साधु लोकेन, तव व्रत क्रिया संजुतं । साधओ सुद्ध ध्यानस्य, साधओ मुक्ति गामिनो ॥ ४५७ ।। अहँतं अरहो देवं, सर्वन्यं केवलं धुवं । अनंतानंत दिस्टं च, केवलं दर्सन दर्सनं ॥ ४५८ ॥ सिद्ध सिद्धि संजुक्तं, अस्ट गुनं च संजुतं । अनाहतं विक्त रूपेन, सिद्धं सास्वतं धुवं ॥ ४५९ ॥ परमिस्टी साधनं कृत्वा, सुद्ध संमिक्त धारना । ते नरा कर्म विपनं च, मुक्ति गामी न संसयः ॥ ४६० ॥ त्रिविध ग्रंथं प्रोक्तं च, सार्धं न्यान मयं धुवं । धर्मार्थ काम मोष्यं च, प्राप्तं परमेस्टी नमः ॥ ४६१ ॥ (२) Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी सार मत श्री न्यान समुच्चय सार जी = = = श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी गुरुं गगन गमनस्य, दिस्टि संपर्न सास्वतं । ऊर्धं च सुद्ध समं सुद्धं, रत्नत्रयं लंकृतं ॥ १० ॥ जिन उक्तं च उक्तं च, मिथ्या तिक्तं त्रिभेदयं । सुद्ध धर्म ति अर्थं च, भव्यलोक प्रकासनं ॥ ११ ॥ आरति रौद्र न दिस्टंते, धर्म सुक्लं च संजुतं । संमिक दर्सनं सुद्धं, गुरुं त्रिलोक वंदितं ॥ १२ ॥ सरस्वती ऊर्ध आर्धं च, मध्यलोक समं धुवं । संपूर्न सुद्ध सर्वन्यं, न्यानमूर्ति अमूर्तयं ॥ १३ ॥ सास्वती सर्व दर्स च, सम संपूर्न संजुतं । लोकालोक प्रकासं च, दिनयर किरन संजुतं ॥ १४ ॥ उत्पन्नं जिन कंठं च, कमलासने च संस्थितं । न्यानं पंचमयं सुद्धं, सर्वन्यं सास्वती नमः ॥ १५ देवं गुरुं श्रुतं जेन, नमस्कृतं सुद्ध भावना । संसार भयभीतस्य, तिक्तते न्यान दिस्टितं ॥ १६ ॥ जिन उक्तं वयन सुद्धस्य, न्यानेन न्यान लंकृतं । संसार सरनि मुक्तस्य, मुक्ति पंथं सुद्धं धुवं ॥ १७ ॥ जिन उक्तं मुक्ति मार्गस्य, कर्म षिपति जं बुधैः । तेनाहं सुद्ध सार्धं च, संसार मुक्तस्य कारणं ॥ १८ ॥ अनादिकाल भ्रमणं च, कुन्यानं पस्यते वटुः । न्यानं तत्र न दिस्टंते, कोसी उदय भास्करं ॥ १९ ॥ न्यानं कुन्यान जोगेन, उत्पन्नं अस्थान संजुतं । न्यान दिस्टि न उत्पादंते, कुन्यानं रमते सदा ॥ २० ॥ परमानंद परं जोति:, चिदानंद जिनात्मनं । सुयं रूपं समं सुद्धं, विंदस्थाने नमस्कृतं ॥ १ ॥ ॐ नम: ऊर्ध सुद्धं च, परमिस्टी च संजुतं । तिअर्थ सुद्ध सुयं रूपं, पदविंदं च संस्थितं ॥ २ ॥ न्यानं च सुद्ध सद्धावं, दर्सनं भुवनत्रयं । सहजानंद सुयं रूपं, विंद संजुक्त सास्वतं ॥ ३ ॥ ममात्मा परमं सुद्धं, मय मूर्ति ममलं धुवं । विंद स्थानेन तिस्टंति, नमामिहं सिद्धं धुवं ॥ ४ ॥ नमामि सततं भक्तं, सिद्ध चक्रं सिद्धं धुवं । केवलि दिस्टि सुभावं च, नमामिहं धुव सास्वतं ॥ ५ ॥ रिसहादि वीरनाथं च, भक्तिपूर्वं नमस्कृतं । केवलि दिस्टि समं उक्तं, सार्धं च भव्यलोकयं ॥ ६ ॥ न्यान समुच्चय सारं, लोकसारं समं धुवं । बोच्छामि जिन उक्तं च, केवलि दिस्टि जिनागमं ॥ ७ ॥ जिनवाणी हृदयं चिंते, संपूर्न न्यान संजुतं । किंचिन्मात्र कहतेन, भव्यलोक प्रबोधनं ॥ ८ ॥ गुरं त्रिलोक अर्थं च, ग्रंथ चेल न दिस्टते । मय मूर्ति समं सुद्धं, ध्यानारूढ़ गुरु स्थिरं ॥ ९ ॥ = = = = = Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी न्यानं कुन्यान एकत्वं, रजनी दिनकर जथा । जदि रजनी उत्पादंते, दिनकरं अस्तंगता ॥ २१ ॥ जदि रजनी च संपून, उत्पन्नं भानु भास्करं । रजनी विलयं जांति, न्यानं कुन्यान विलीयते ॥ २२ ॥ न्यान दिस्टि जथा भावं, कुन्यानं तत्र न दिस्टते । न्यानेन न्यान मयं सुद्धं, सुयं कुन्यान विलीयते ॥ २३ ॥ तस्यास्ति न्यान सद्भावं, जिन उक्तपि सार्धयं । संसार भ्रमण मुक्तस्य, मुक्ति गमनं न संसय: ॥ २४ ॥ जिन उक्तं सुद्ध संमत्तं, सार्धं भव्यलोकयं । तस्यास्ति गुण निरूपं च, सुद्धं सार्धं बुधै जनै ॥ २५ ॥ तं संमत्तं उक्तं सुद्ध, केरिसं केन रूवं ।। तं संमत्तं तिस्टियत्वं, कथ्यवासं वसंतं ॥ उत्पन्नं कोपि स्थानं, श्रेष्ठ प्रौढ़ मानं प्रमानं । तं संमत्तं कस्य क्रान्तं, कस्य दिस्टि प्रयोजनं ॥ २६ ॥ तं संमत्तं सुद्ध बुद्धं तिहवन गुरुवं अप्प परमप्प तुल्यं । अव्वावाह अनंतं अगुरुलघु सुयं सहज नंद स्वरूपं ॥ रूपातीतं व्यक्त रूपं विमल गुणनिहि न्यान रूपं स्वरूपं । तं संमत्तं तिस्टियत्वं तिअर्थ समयं संपूर्न सास्वतं पदं ॥ २७ ॥ संमत्तं सांत दांतं वसंति भवनिहिं उड्ढगामी सहाऊ । उत्पन्नं नंत रूपं ममल गुणनिहि सुर्य स्वयमेव तत्त्वं ॥ संमत्तं स्थान सुद्धं निवसंति भुवने पंचदीप्ति परस्थितं । संमत्तं ऊर्ध ऊर्धं कदलि पुलिनं गगन गमनं सुभावं ॥ २८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तं संमत्तं कलस ससिनं सयल गुणनिहि भवन विंद प्रविंदं । संमत्तं क्रांति क्रान्त्यं त्रिभुवन निलयं जोतिरूपस्य क्रांति ॥ तं संमत्तं तिस्टियत्वं परम पयं धुवं सुद्ध बुद्धं चतुस्टं । जोयंतो जोग जुक्तं समयं धुव पदं तत्त्व विंदं सविंदं ॥ २९ ॥ संमत्तं सुद्ध गुनं साधं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । सुद्धात्मा सुद्ध चिद्रूपं, सुद्धं संमिक्दर्सनं ॥ ३० ॥ संमत्तं सार्धनं भव्यं, सुद्ध तत्त्व समाचरेत् । संमत्तं जस्य तिस्टंते, ति अर्थ न्यान संजुतं ॥ ३१ संमत्तं उत्पादते भावं, देव गुरु धर्म सुद्धयं । विन्यानं जेवि जानते, संमत्तं तस्य उच्यते ॥ ३२ ॥ देव देवाधिदेवं च, देवं त्रिलोक वंदितं । तिअर्थ समयं सुद्धं, सर्वन्यं पंच दीप्तयं ॥ ३३ उवं ऊर्ध सद्धावं, परमिस्टी च संजुतं । सर्वन्यं सुद्ध तत्त्वं च, विंदस्थाने नमस्कृतं ॥ ३४ ॥ परमिस्टी उत्पन्नं सुद्धं, सुद्ध संमत्त संजुतं । तस्यास्ति गुण प्रोक्तं च, न्यानं सुद्ध समं धुवं ॥ ३५ ॥ पय कमले कदलं कदले पुलिनं जं जानुस्थितं । पुलिने गगनं गगने कलसं तं ऊर्धगुनं ॥ कलसे ससिनं ससिने भवनं तं पर्मपदं । परमिस्टी पदं तं पंचदितं धुव केवलि उवनं ॥ ३६ ॥ उपाद्यो उपयोगं जेन, धर्म सद्भाव संजुतं । पदविंदं धुवं निस्चय, उदितं परमं पदं ॥ ३७ ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = = = श्री ज्यान समुच्चय सार जी अयं आत्म तत्त्वं च, तिअर्थं सुद्ध समं धुवं । आचरनं सुद्ध सर्वन्यं, लोकालोकेन लंकृतं ॥ ३८ ॥ ऊर्धं आर्ध मध्यं च, साधओ सुद्धार्थ धुवं । पंच दीप्तिं च उत्पादंते, सर्वन्यं सर्व दर्सितं ॥ ३९ ॥ ह्रियंकारं च स्थिरीभूतं, अहं सर्वन्यमुद्यमं । लोकालोकं स्थानं च, पदविंदं केवलं धुवं ॥ ४० ॥ सर्वन्यं सर्वदर्सी च, लोकालोक समं धुवं । पंच स्थान मयं सुद्धं, विंद स्थिर सिद्धं धुवं ॥ ४१ ॥ परमिस्टी च संजुक्त, उर्वकारं सिद्धं धुवं । विंद स्थानेषु तिस्टंते, स्थिरं सास्वतं पदं ॥ ४२ ॥ नंतानंत चतुस्टं च, दर्सनं न्यान अनंतयं । वीर्ज नंत सुषं सुद्धं, नंतानंत गुनं धुवं ॥ ४३ ॥ ममात्मा ममलं सुद्धं, ममात्मा सुद्धात्मनं । देहस्थोपि अदेही च, ममात्मा परमात्मं धुवं ॥ ४४ ॥ त्रि अष्यरं च एकत्वं, ॐ नमापि संजुतं । नमं नमामि उत्पन्नं, नमामिहं विंद संजुतं ॥ ४५ ॥ उपाध्ये गुन प्रोक्तं च, सुद्ध संमत्त भावना । अंगं पूर्व जानते, सार्धं च सुद्धात्मनं ॥ ४६ ॥ अर्थांगं तिअर्थ सुद्धं च, सम संपूर्न सार्धयं । सुद्ध तत्त्वं च सार्धं च, अर्थं च विंजनं पदं ॥ ४७ ॥ श्रुतांगं श्रुत जानाति, सास्वतं अस्ति तं श्रुतं । न्यानेन न्यान सद्भावं, श्रूयते सास्वतं पदं ॥ ४८ ॥ सब्दार्थं सब्द वेदंते, विजनं पद विंदते । अप्पा परमप्पयं तुल्यं, सब्द न्यान प्रयोजनं ॥ ४९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्थानांग सुद्ध स्थानं च, पंच दीप्ति निरूपनं । न्यान पंच उत्पाद्यते, स्थानं सर्वन्य संजुतं ॥ ५० ॥ वय सम अंग सुद्धं च, व्रतं च समय संजुतं । उवं हियं श्रियं सुद्ध, ध्यानारूढ़ समं धुवं ॥ ५१ ॥ विनय पदानं सुद्धं च, विन्यानं न्यान जोइते । रत्नत्रयं मयं सुद्धं, सार्धनं च उवएसनं धुवं ॥ ५२ ॥ समयं संपूर्न सार्धं च, तिअर्थं च ऊर्धं पदं । पंच दीप्तिं च सुद्धं च, न्यानं चरन दर्सनं ॥ ५३ ॥ अनंतानंत दिस्ट च, नंत चतुस्टयं धुवं । आदि अनादि सुद्धं च, आत्मनं परमात्मनं ॥ ५४ ।। नंत रंग तरंग तरलं, सुद्धं जिन उक्त सार्धयं । सुद्ध तत्त्वं समं सुद्धं, ममलं निर्मलं धुवं ॥ ५५ ॥ परम समयंग सुद्धं च, परम तत्त्वं च सार्धयं । तत्त्व काय पदार्थं च, दवं सुद्धं समं धुवं ॥ ५६ श्रुतं च सुद्ध सार्धं च, अर्थांगं ऊर्धं जुतं । ऊर्ध आर्ध मध्यं च, त्रिभुवनं विंद संजुतं ॥ ५७ ॥ अंगं पूर्व जानाति, भावनं सुद्ध भावना । सुद्धात्म चेतनं नाम, सुद्धं सार्द्ध सदा बुधैः ॥ ५८ ॥ सुद्धं च सर्व सुद्धं च, सर्वन्यं सास्वतं पदं । सुद्धात्मा सुद्ध ध्यानस्य, सुद्धं संमिक्दर्सनं ॥ ५९ ॥ पूर्वं पूर्व परं जिनोक्त परमं, पूर्वं परं सास्वतं । पूर्वं धर्मधुरा धरंति मुनयो, सुद्धं च सुद्धात्मनं ॥ = = = Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = = = श्री ज्यान समुच्चय सार जी सुद्धं संमिक् दर्सनं च समयं, प्रोक्तं च पूर्व जिनं । न्यानं चरन समं सुयं च ममलं, संमिक्त बीज बुधैः ॥ ६० ॥ विस्व पूर्वं च सुद्धं च, सुद्ध तत्त्वं समं धुवं । सुद्धं न्यानं च चरनं च, लोकालोकं च लोकितं ॥ ६१ ॥ लोकितं सुद्ध तत्त्वं च, सुद्ध ध्यान समागमं । विस्व लोकं तिअर्थं च, आत्मनं परमात्मनं ॥ २ ॥ अस्ति अस्तिं च सुद्धं च, आत्मनं सुद्धात्मनं । परमात्मा परमं सुद्धं, अप्पा परमप्प समं बुधैः ॥ ६३ ।। नास्ति घाति कर्मस्य, नास्ति सल्यं च रागयं । दोषं नास्ति मलं मुक्तं, नास्ति कुन्यान देसनं ॥ ६४ ॥ प्रन्यान पूर्व सुद्धं च, परम न्यान समागमं । परमात्मा परमं सुद्धं, सुद्ध ध्यान समं बुधैः ॥ ६५ ॥ प्रत्याष्यानं च पूर्वं च, परोष्यं प्रत्यष्यं धुवं । प्रत्याष्यानं ममलं सुद्धं, कर्म षिपति बुधै जनैः ॥ ६६ ॥ नंतानंत स्वयं दिस्टं, धरयंति धर्म धुवं । धर्म सुक्लं च ध्यानं च, सुद्ध तत्त्वं सार्धं बुधैः ॥ ६७ ॥ वेदंति वेद वेदांगं, वेदंते भुवनत्रयं । तिअर्थ रत्नत्रयं सुद्ध, विद्यमान लोकं धुवं ॥ ६८ ॥ अनुक्रमं ममलं सुद्धं, बारंबारं च सार्धयं । सुद्ध तत्त्व दर्सनं नित्यं, आत्मनं परमात्मनं ॥ ६९ ॥ कल्यानं कल्पयं सुद्धं, पूर्व कल्पंति सास्वतं । न्यानं मयं च तत्त्वार्थं, कल्यानं ध्यान संजुतं ॥ ७० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मध्य स्थान सयं रूपं, पद विंदं च विंदते । त्रिलोकं तिअर्थ सुद्धं च, न्यानं चरनं तं धुवं ॥ ७१ ॥ समयं च समयं सुद्धं, पंच दीप्ति समं पदं । त्रिलोकं त्रिभुवनं च, अप्पा परमप्पयं धुवं ॥ ७२ ॥ मध्यं च पद विंदं च, पदार्थं पद विंदते । विजनं च पदार्थं सुद्धं, ममात्मा ममलं धुवं ॥ ७३ ॥ विसल्यं सल्य मुक्तस्य, क्रीयते ध्यान सुद्धयं । परमानंद आनंद, परमात्मा परमं पदं ॥ ७४ लोकालोकं च वेदंते, विस्वमानो सुर्य प्रभो । कुन्यानं विलयं जांति, न्यानं भुवन भास्करं ॥ ७५ ॥ पूर्वं पूर्व उक्तं च, द्वादसांगं समुच्चयं । ममात्मा अङ्ग सार्धं च, आत्मनं परमात्मनं ॥ ७६ ॥ संमिक् दर्सन सुद्धं च, न्यानं सुद्ध मयं धुवं । चरनं सुद्ध पदं सार्धं, सहकारेण तपं धुवं ॥ ७७ आराहनं च चत्वारि, भावनं सुद्ध चेयनं । मय मूर्ति समं सुद्धं, अप्पा परमप्प संजुतं ॥ ७८ ।। अप्पा परमप्प तुल्यं च, परमानंद नंदितं । परमात्मा परमं सुद्धं, ममलं निर्मलं धुवं ॥ ७९ ॥ कारणं कार्ज सिद्धं च, जं कारणं कार्ज उद्यमं । स कारणं कार्ज सिद्धं च, कारणं कार्ज सदा बुधैः ॥ ८० कारणं दर्सनं न्यानं, चरनं सुद्ध तपं धुवं । सुद्धात्मा चेतना नित्यं, कार्ज परमात्मा धुवं ॥ ८१ ॥ = = = = Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री न्यान समुच्चय सार जी उपादेय संमत्त भावना । सुद्धं मिथ्या तं ॥ ८४ ॥ क्रिया ॥ ८५ ॥ संजुतं । क्रिया ॥ ८६ ॥ अनुव्रतं । गुन जानाति, राग दोषं न दिस्टंते, माया विलीयते ॥ ८२ ॥ मिथ्या समय मिथ्या च प्रकृति मिथ्या न दिस्टते । कुन्यानं सल्य तिक्तं च न्यानेन न्यान लंक्रितं ॥ ८३ ॥ मिथ्या मिथ्यामयं दिस्टं, असत्य सहित भावना । अनृतं अचेत दिस्टंते, मिथ्यातं निगोयं सुद्ध तत्त्व सुयं रूपं, मुक्ति पंथं जिन भाषितं । अन्यो अन्यान सद्भावं मिथ्या व्रत तपं न्यान सहकारिनो जेन, व्रत तप क्रिया जदि न्यान बिना भावं, मिथ्या व्रत तपं मतिन्यानं उवएसनं कृत्वा श्रुत न्यानं अवधिन्यान तपं सुद्धं, न्यान सहकारि न्यान हीनो व्रतं जेन, व्रत तप कस्टं निरोह सेसानि, मिथ्या विषय रंजितं ॥ ८८ ॥ न्यान सहकार सुद्धं च, न्यान हीनो असुद्धयं । न्यान सह मुक्ति मार्गस्थ, न्यान हीनो मिथ्या संजुतं ॥ ८९ ॥ मिथ्या विषय संजुक्तं, संसार सरनि रंजितं । थावर विकल अदेवं च विषयं न्यान सहकारिनो जीवः, आत्म परमात्मा परमं सुद्धं, निस्चय न्यानं च दर्सनं सुद्धं, न्यानं न्यानं सह तपं सुद्धं, न्यानं लब्धयं ॥ ८७ ॥ क्रिया अनेकधा । व्रत तपं श्रुतं ॥ ९० ॥ सुद्धात्म सार्धयं । न्यान सहावनं ॥ ९१ ॥ संजुतं । लोचनं ॥ ९२ ॥ चरन केवल ५७ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी लोकलोकितं । दर्सनं दर्सते सुजं न्यानं दर्सनं न्यान जोगेन, चरनं व्रत तपं श्रुतं ॥ ९३ ॥ अनेय श्रुत जानाति, व्रत तप क्रिया अनेकधा । अनेय कस्ट कर्तव्यं न्यानहीनो ब्रिथा भवेत् ॥ ९४ ॥ आत्मा सुद्धात्म भावेन, सुद्ध दिस्टि समाचरेत् । अनो मिथ्यामयं प्रोक्तं, विषयं लोकरंजनं ॥ ९५ ॥ प्रथमं भाव सुद्धं च असुद्धं तिक्त पराङ्गमुषं । परिनाम बंध मुक्तं च उपभोगं तिक्त मनः स्रुतं ।। ९६ ।। उपभोगं असुद्ध भावस्य संसार विषय रंजितं । मनसि उत्पादते जीवः, उपभोगं तत्र निस्चयं ॥ उपभोगं मन विचलंते, भोगं तस्य प्रवर्तते । विकहा राग विषम जेन, उपभोगं भोग उच्यते ॥ ९८ ॥ ९७ ॥ " हावभाव उत्पाद्यंते, विभ्रम अनेय चिंतनं । कटाप्यं निरीष्यनं जीवा, उपभोगं तस्य उच्यते ॥ ९९ ॥ स्वप्नं जस्य न सुद्धं च उपभोगं तस्य संजुतं । मनस्य विकलितं जेन, उपभोगं भाव समं जुतं ।। १०० ।। उपभोगं विविह जानते, सुद्धं असुद्धं परं । सुद्धं मुक्ति मार्गस्य, असुद्धं निगोयं सुद्धं उपभोगयं जेन, मति स्रुत न्यान चिंतनं । अवधि मनपर्जयं सुद्धं, केवलं भाव संजुतं । १०२ ।। अष्यर स्वर विंजनं जेन, पद श्रुत चिंतनं सदा । अवकासं न्यान मयं सुद्धं, उपभोगं न्यान उच्यते ।। १०३ ।। पतं ।। १०१ ।। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :111 = = = श्री ज्यान समुच्चय सार जी जस्य उपभोग चित्तार्थ, तस्य भोगं समाचरेत् । सुद्धं मुक्ति पथं जेन, असुद्धं दुर्गति भाजनं ॥ १०४ ॥ प्रमाणं दुविहं प्रोक्तं, जिनसासने च समं धुवं । परोष्यं आदि जानाति, प्रत्यष्यं परमं बुधैः ॥ १०५ ॥ जस्य परोष्यं चिंतंते, प्रत्यष्यं तस्य दिस्टते । जिन उक्तं समं सुद्धं, प्रमाणं भाव समाचरेत् ॥ १०६ ॥ परोष्यं न्यान सद्भावं, प्रत्यष्यं न्यान उच्यते । परोष्यं दिस्टते जीवा, दर्सनं तव सुनिस्चयं ।। १०७ ॥ परोष्यं आचरणं नित्यं, प्रत्यष्यं चरन संजुतं । परोष्यं तप सहावेन, प्रत्यष्य तप न्यानं धुवं ॥ १०८ ॥ उपभोगं परोष्यं जानाति, सुद्ध भावं सुयं धुवं । निर्गुनं गुनं न जानाति, मिथ्यात्वं सहकारिनं ॥ १०९ ।। मिथ्या मयं न दिस्टंते, समय मिथ्या न देसनं । राग दोष विषयं जेन, समय मिथ्या संगीयते ॥ ११० ॥ समयं सुद्ध जिनं उक्तं, तिअर्थं तीर्थंकरं कृतं । समयं प्रवेस जेनापि, ते समयं सार्धं धुवं ॥ १११ ।। धुव समयं च जानाति, अनेयं राग बंधनं । दुर्बुद्धि विषया होति, समय मिथ्या स उच्यते ॥ ११२ ॥ समयं च सुद्ध सार्धं च, असमय भावनं कृतं । समय मिथ्या जिनं उक्तं, संसारे दुष बीर्जयं ॥ ११३ ॥ समयं सर्वन्य सुद्धं च, सार्धं भव्यलोकयं । अन्यान व्रत क्रिया जेन, समय मिथ्या समाचरेत् ॥ ११४ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी समयं दर्सनं न्यानं, चरनं तप सहकारिनो । समयं प्रवेस अन्यानं, व्रत तप मिथ्या संजुतं ॥ ११५ ।। सुद्धं च जिन उक्तं च, अप्पा परमप्प सुद्धयं । षिउ उवसमं न सुद्धं च, प्रकृति मिथ्या समं धुवं ॥ ११६ ॥ अनेय तप तप्तानां, व्रत संजम क्रियासमं । षिउ उवसमं न सार्धंते, मिथ्या छाया प्रकीर्तते ॥ ११७ ॥ आसा स्नेह लोभं च, लाज भय गारव स्थितं । विषयं राग समं छाया, षिउ उवसमं न सुद्धए ॥ ११८ ॥ विकहा विमुक्त रागं च, उवसम संसार स्थितिं । जदि विपनं न सार्धति, प्रकृति मिथ्या स उच्यते ॥ ११९ ॥ मिथ्या समय मिथ्या च, प्रकृति मिथ्या न दिस्टते । राग दोषं न चिंतन्ते, कषायं तिक्तंति जं बुधैः ॥ १२० कषायं जिन उक्तं च, चत्वारि अनंत बंधनं । तिक्तंते सुद्ध दिस्टी च, मुक्ति गमनं च कारणं ॥ १२१ लोभं क्रोधं च मानं च, माया मिथ्या न दिस्टते । कषायं चतु अनंतानं, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ १२२ ।। लोभं असुद्ध परिणाम, चिंतनं अनंत न स्थितं । उपभोगं लोभ तिक्तंति, सुद्ध दिस्टि समाचरेत् ॥ १२३ ॥ लोभं पुन्यार्थं जेन, परिनामं तिस्टते सदा । अनंतानुलोभ सद्भावं, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ १२४ ।। लोभं श्रुतं तपं कृत्वा, व्रत क्रिया अनेकधा । न्यानहीनो अनंतानं, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ १२५ ॥ = = ५८ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री न्यान समुच्चय सार जी अनेकधा । साधवा ।। १२६ ।। अनर्थयं 1 लोभं मूल असुहस्य, श्रुतं भेद विस्वासं लोभ अनंतानं, तिक्तंते सुद्ध लोभं अनृत असत्यस्य, अचेतं असुह अनंतानु लोभ भावेन तिक्तंते सुद्ध साधवा ।। १२७ ।। लोभं श्रुतं अनेकार्थं, चक्र इन्द्र नराधिपं । अनेय भाव उत्पाद्यंते, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ १२८ ॥ लोभं कृतं जिन उक्तस्य सुद्ध धर्म सुद्धं धुवं । आत्मा परमात्म लब्धं च, तं लोभं मुक्ति गामिनो ।। १२९ ।। क्रोधं कूड भावेन, आरति रौद्र समं जुतं । असत्य सहितो हिंसा, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ॥ १३० ॥ क्रोधं अनंतान दिस्टंते, असुहं सुह समं जुतं । सरीरं दुष्य उत्पाद्यंते, थावर क्रोधानि तिक्तयं ॥ १३१ ॥ अप तेज वायुं च, पृथ्वी वनस्पती जथा । विकलत्रयं उत्पाद्यंते, क्रोधं तिक्तंति साधवा ।। १३२ ।। उवसग्गं थावरं दिस्टा, विकलत्रय उत्पाद्यते । साधवा ।। १३३ ।। क्रीयते । असुद्ध भाव न कर्तव्यं तिक्तते सुद्ध कोहं अनेय उत्पाद्यंते, भावं असुहं न जदि भावं विचलंति, तिक्तते सुद्ध साधवा ॥ १३४ ॥ कोहाग्नि प्रजुलते जेन, उवसमं जल सिंचते । षि उवसमं च सद्भावं, जोगिनो कम्म षयं कुरु ।। १३५ ।। जिन उक्तं कोहं समनं, क्रीयते बुधै जनैः । उन्मूलितं कर्म त्रिविधं च, जिन सासने मुक्ति गामिनो ।। १३६ ।। 3 ५९ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी असुह भावना । जेतानि राग दोषानि, तेतानि मिथ्या सल्य निकंदंति, उन्मूलितं कोह जोगिनः ।। १३७ ।। मानं असत्य न दिस्टंते, असास्वतं मान बंधनं । मानं अनृत सहितेन, उन्मूलितं मान जोगिनः ।। १३८ ।। मान बंधं च रागं च क्रीयते असुहं सुहं । जेतानि मान सद्भावं तिक्तंति सुद्ध दिस्टितं ।। १३९ ।। मानं च जिन उक्तं च मानं प्रमान चिंतनं । अप्पा परमप्पयं तुल्यं, मानं प्रमान उच्यते ॥ १४० ॥ लोकलोकांतं, त्रिलोकं भुवनत्रयं । मानं केवलदर्सन न्यानं च मानं सर्वन्य पूजते ।। १४१ ।। माया अनृत अचेतस्य असत्य माया समं जुतं । माया सत्यं सुद्ध न जानाति, तिक्तते सुद्ध दिस्टितं ।। १४२ ।। माया कुन्यान समं प्रोक्तं मिथ्या राग समं जुतं । असुहं सुहं नवि जानाति, माया दुर्गति भाजनं ।। १४३ ।। असुद्ध भावस्य, परपंच रमते सदा । पर दव्वं पर पुद्गलार्थं च तिक्तंति सुद्ध दिस्टितं ॥ १४४ ॥ माया कूड कर्मस्य, कूड दिस्टि कूड भावना । कूड कर्मानि कर्तव्यं, तिक्तंति सुद्ध माया दुर्गति उत्पन्नं, माया थावरं पुनः । माया तिर्यंच जोनी च माया तजंति जोगिनः ।। १४६ ।। असैनी संजुक्तं, अचेत बंधनं । माया कुदेव उत्पन्नं, माया तजंति जोगिनः ।। १४७ ।। दिस्टितं ।। १४५ ।। माया माया Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी माया सुद्धं जिनं प्रोक्तं, त्रिलोकं त्रिभुवन मयं । तिअर्थं षट् कमलस्य, पंच दीप्ति प्रस्थितं ॥ १४८ ॥ माया न्यान समं जुक्तं, माया दर्सति दर्सनं । अप्पा परमप्पयं तुल्यं, माया मुक्ति पथं धुवं ॥ १४९ ।। त्रि मिथ्या चतु कषायं च, असुद्धं तिक्तंति जोगिनः । अविरतं च जिनं प्रोक्तं, श्रावगं सुद्ध दिस्टितं ॥ १५० ॥ सप्त प्रकृति विच्छेदो जत्र, सुद्ध दिस्टि समाचरेत् । सुद्धं च सुद्ध पिच्छंतो, अविरत संमिक् दिस्टितं ॥ १५१ ।। अविरतं सुद्ध दिस्टी च, सुद्ध तत्त्व प्रकासए । सुद्धात्मा सुद्ध भावस्य, असुद्धं सर्व तिक्तयं ॥ १५२ ॥ सुद्ध दिस्टि जथा प्रोक्तं, दिस्टते सास्वतं पदं । दिस्टते मोष्यमार्गस्य, आत्मानं परमात्मनं ॥ १५३ ॥ दिस्टते देवदेवं च, दिस्टते ममलं धुवं । दिस्टते सुद्ध सर्वन्यं, दिस्टते न्यान मयं धुवं ॥ १५४ ।। दिस्टते तिअर्थ सुद्धं च, षट् कमलं पंच दीप्तयं । आरति रौद्र परित्याज्यं, धर्म सुक्लं च दिस्टते ॥ १५५ ।। दिस्टते च स्वयं रूपं, परमानंद नंदितं । चिदानंद मयं सुद्धं, अप्पा परमप्प दिस्टते ॥ १५६ ।। दिस्टते जिन उक्तं च, प्रोक्तं च भव्यलोकयं । दिस्टतं सुद्ध समं सुद्धं, सुद्ध दिस्टी च उच्यते ॥ १५७ ॥ देवं गुरुं श्रुतं दिस्टं, जिन उक्तं जिनागमं । दिस्टतं सयल विन्यानं, सुद्ध दिस्टि समं धुवं ॥ १५८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी असुद्ध दिस्टि न दिस्टंते, कुदेवं कुगुरुस्तथा । कुसास्त्रं कुन्यानं जेन, न दिस्टते सुद्ध दिस्टितं ॥ १५९ ॥ मिथ्या देव गुरुं धर्म, मिथ्या माया न दिस्टते । सल्यं त्रिति मिथ्यातं, न दिस्टते सुद्ध दिस्टितं ॥ १६० ॥ अदेवं अगुरुं जेन, अधर्म असुहं पदं । संसार सरनि सरीरस्य, न दिस्टते सुद्ध दिस्टितं ॥ १६१ राग दोषं न दिस्टंते, विकहा विसन न दिस्टते । अबंभ भाव न दिस्टंते, न दिस्टते संसार कारणं ॥ १६२ ॥ कर्म त्रिविधि न पस्यंते, दोषं नंत न पस्यते । न पस्यते मन पसरस्य, इन्द्री सुषं न पस्यते ॥ १६३ ॥ जेतानि कर्म संजुक्तं, प्रकृति भाव न दिस्टते । न दिस्टते घाति कर्मस्य, पुण्यं पापं न दिस्टते ॥ १६४ ॥ न पस्यते त्रि कुन्यानं, कषायं विषय न पस्यते । न पस्यते इन्द्री न्यानं, न पस्यते बंध चौविहं ॥ १६५ ॥ ठिदि अनुभागं न पस्यंते, प्रकृति प्रदेस न पस्यते । चौविहि बंध न पस्यंते, संसार सरनि न दिस्टते ॥ १६६ ।। अन्यानं व्रत क्रिया जेन, श्रुतं अन्यान तपं कृतं । अनेय कस्ट न दिस्टंते, न्यानहीनो न दिस्टते ॥ १६७ ।। अविरतं सुद्ध दिस्टी च, उपादेय गुन संजुतं । मति न्यानं च संपूर्न, उवएसं भव्यलोकयं ॥ १६८ ॥ उवएसं च जिनं उक्तं, सुद्ध तत्त्व समं धुवं । मिथ्या माया न दिस्टंते, उवएसं सास्वतं पदं ॥ १६९ ।। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री न्यान समुच्चय सार जी संजमं ।। १७० ॥ दसानि च । दर्सनं संमिक्तं न्यान संजुतं ।। १७९ ।। सास्वतं पदं । उवएसं धर्म सुद्धं च उवएसं काय पंचास्तं, उवएसं तपं सुद्धं, प्रतिमा एक देव गुरू धर्म सुद्धं च उवएसं न्यान मयं सुद्धं उवएस सयल विन्यानं, न्यान सहकार उदेसनं ॥ १७२ ॥ आत्मा त्रिविधि प्रोक्तं च परु अंतर बहिरप्पयं । आत्मानं सुद्धात्मानं, परमात्मा परमं पदं ।। १७३ ।। मिथ्या त्रिति कुन्यानं च, सल्यं त्रिति न दिस्टते । कषायं विषय दुटं च, राग दोषं न चिंतए ।। १७४ ।। प्रथमं उवएस संमत्तं, सुद्ध सार्धं सदा बुधैः । दर्सनं न्यान मयं सुद्धं, संमत्तं सास्वतं धुवं ।। १७५ ।। संमिक् दर्सनं सुद्धं, मिथ्यामोह विवर्जितं । मूढत्रयादि मलं मुक्तं संमत्तं संमिक् मूढ त्रयं कथं जेन, संसारे भ्रमनं कुन्याने राग संबंधं, मूढं दुर्गति बंधनं ।। १७७ ॥ प्रथमं लोक मूढस्य, पाष्यिक धर्म संजुतं । असत्यं अनृत जानाति, जिनद्रोही दुर्गति भाजनं ।। १७८ ।। कुदेवं कुगुरुं कुधर्मं बंधनं । कुन्यानं सल्य संजुक्तं, मान्यते लोकमूढयं ।। १७९ ।। लोकमूढ रतो जेन, पष्य धर्म प्रकासये । सुद्ध धर्मं न जानाति मिथ्या मूढ व्रतं तपं ।। १८० ।। दर्सनं ।। १७६ ।। सदा । राग जेन, तत्त्व दर्व पदार्थकं । उवएसं व्रत ६१ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उच्यते । देव मूढं उत्पाद्यंते, अदेवं देव असास्वतं अनृतं जेन, कुन्यानं रमते सदा ।। १८१ ।। देव मूढं च मूढत्वं राग दोषं च संजुतं । मान्यते जेन केनापि दुर्गति भाजन ते नरा ।। १८२ ।। देव मूढं च मूढं च न्यानं कुन्यान पस्यते । मान्यते लोकमूढस्य, मिथ्या मय निगोयं पतं ॥ १८३ ॥ नराः ।। १८५ ।। श्रुतं । पाषण्डी मुपि जानाति, पाषण्ड विभ्रम जे रता: । प्रपंच पर पुद्गलार्थं च जिन द्रोही दुर्गति भाजनं ।। १८४ ।। पाषण्डी मूढ विस्वासं, लोकमूढं च दिस्टते । विस्वासं जेवि कर्तव्यं दुर्गति भाजन ते पाखंडी वचन विस्वासं प्रोक्तं अधर्मं अदेवं देव उक्तं च, विस्वासं नरयं पतं ।। १८६ ।। पाषंडी मूढ प्रोक्तं च, विकहा राग संजुतं । दुर्बुद्धि जिनद्रोही च, विस्वासं संसार भाजनं ।। १८७ ।। पाखंडी मूढ संगानि, अनुमोयं वचन विभ्रमं । कुन्यानं भाव संजुक्तं, दुर्गति गमनं न संसया ।। १८८ ।। अनायतन षट्कस्चैव, कुदेवं कुदेव धारिनं । कुसास्त्र कुसास्त्र धारी च कुलिंगी कुलिंग धारिनं ।। १८९ ।। कुदेवं जिनं उक्तं राग दोष असुद्ध भावना । मिथ्या माया संजुक्तं कुन्यानं कुदेव जानेहि ॥ १९० ॥ इन्दियमयं कुदेवं विषम विष सहिऊ जानि नियमेन । कषायं वर्धनं नित्यं ध्यान रौद्रं च संजोगिनः ॥ १९९ ॥ " Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी मिथ्यादेव अदेवं च, न्यानं कुन्यान पस्यते सर्व । सुह असुहंपि न बुझं, नहु जानदि लोयविवहारं ॥ १९२ ॥ उत्पत्ति नत्थि अदेवं, कृत कारित मूढ़ लोयस्य । जे देवपि कहतेन, ते सव्वे मूढ़ दुर्बुद्धीः ॥ १९३ ।। कुदेव धारी पुरिसा, हिंडंति संसार दुष्य संजुत्तं । थावर वियलेन्द्रीया, नरयं गच्छेह दुष संतत्ता ॥ १९४ ॥ अदेवं जो वंदे, पूजै आराहि भत्तिभारेन । सो दुग्गैपि सहता, निगोयवासं मुनेयव्वा ॥ १९५ ॥ कुदेवं अदेवयत्वं, जो चिंतेइ कुमय मयमंता । चिंता सायर बूडं, संसारे सरनि ना लहे थाहं ॥ १९६ ॥ कुलिंगी जे जीवा, ते अन्यान भासियं लोये । मिथ्यात राग दोषं, सल्यं संजुत्त दुर्बुद्धी ॥ १९७ ॥ इन्द्री सुह संतुष्टा, कुलिंगी असुहभाव पयडत्था । विकहा विसन सहावं, कुलिंगी एरिसो होई ॥ १९८ ॥ दुर्बुद्धी जिन द्रोही च, पयडै अन्यान लोक रंजेई । सहिओ असुद्ध झानं, कुलिंगी कुगुरु जानेहि ॥ १९९ ।। अप्पा परु न पिच्छई, मिच्छादिट्ठि असुह भावस्य । दर्सन सुद्धि न जानै, परपंचं पर पुद्गलासत्तो ॥ २०० ।। जो तस्स भत्ति भारे, मानै मिच्छादिट्ठि ससहाओ । सो मिच्छदिट्टि सहिओ, अन्मोयं निगोय वासम्मि ॥ २०१ ॥ कुलिंग संग जुत्तो, स्थानं जंति आयरो भत्ती । सो मिच्छा मय अन्यानी, थावर वियलिंदि नरय वासंमि ॥ २०२ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कलिंग वयन सवनं, आलापं लोक रंजनं भत्ती। ते मूढा अन्यानी, दुग्गड़ गई भावनो हंति ॥ २०३ ॥ कुसास्त्रंपि साधं, विकहा विसनं च पुन्य पावं च । परिनामं जं असुद्धं, अस्तिति बंध कुसास्त्र जानेहि ॥ २०४ ।। जेवि कुसास्त्रं पठनं, इंद्री सुह जानि असुह लेस्याओ । संसार सरनि हिंडे, जह जल सरनि ताल कीटाओ । २०५ ॥ अनायतन षट्कस्चैव, जो मानै मिच्छादिट्ठि सभावं । सो मिच्छा मयेहि भारिऊ, संसारे दुहकारणं तंपि ॥ २०६ ।। संसय अस्ट दोसं, संका कंष्या चिंतनं चित्तं । विविदिगंच्छायमूढा, दिठि उवगोहनं दोसं ॥ २०७ ॥ ठिदिकरनं वाछिलं, पहावना संसया हुंति । सहकारं कुन्यानं, संसय दोस नरय वासंमि ॥ २०८ जे संसयरा जीवा, मनवयकायेन संसये जुत्ता । ते असुह मिच्छ भावे, संसारे भ्रमन वीयम्मि ॥ २०९ ।। संसय दोसं मिच्छा, संसैयारोपि दोष संजुत्ता । ते दंसनं च भट्टा, संसेयि न कहमि सिझंतो ॥ २१० ॥ मद्यं अस्ट स उत्तं, जाइ कुली स्वर रूप सहियानं । अभिमानं अन्यानं, अतपं बल सिलपि संतुटुं ॥ २११ ।। मद्यपि असुह भावं, रागादि दोष असुह पयडत्थो । सो मद्यपा स उत्तं, स किरिया नरय वासंमि ॥ २१२ ।। मल पच्चीस वियानं, तिक्तंति भाव सुद्ध परिनाम । सो सुद्ध दिट्टि भनिऊ, दंसनमल विवज्जिओ सुद्धो ॥ २१३ ।। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी सम्मत्तरयन सुद्धो, जानै पिच्छेइ दंसनं सुद्धं । सो सुद्ध दिट्ठि जीवो, अचिरेन लहंति निव्वानं ॥ २१४ ।। दंसन दिठि संजुत्तं, जानै पिच्छेइ सुद्ध संमत्तं । सो भव्यजीव सुद्धं, अचिरेन निव्वुए जंति ॥ २१५ ॥ अप्पा परु पिच्छंतो, परचवैवि अप्प सुद्ध सभावं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा लहै निव्वानं ॥ २१६ ॥ मूलगुनं ए अट्ठा, संव्वेओ निव्वेय सम संजुत्ता । निंदा गरुहा नाए, उवसम संजुत्त भत्तिभारेन ।। २१७ ।। वाच्छिल्लं अनुकम्पा, अट्ठ गुनं संजुत्त सम्मत्तं । सद्दहै सुद्ध भावं, सम्मत्तं निम्मलं सुद्धं ॥ २१८ ॥ संवेओ सुद्धार्थं, जानै पिच्छेइ दंसनं सहसा । चरनंपि दुविह भेयं, सहकारेन तवंपि संवेओ ॥ २१९ ॥ संवेउ सुयं वेगी, घिउ उवसमंपि सुद्ध संवेओ । सम्मत्त सुयं चरनं, संवेओ सुद्धमप्पानं ॥ २२० । निव्वेओ निस्सल्लो, लोयायासेहि सुद्ध अवयासो । दंसन न्यान पहानो, चरनं सुद्धपि हवे निव्वेओ ॥ २२१ ।। निव्वेओ निरु निस्चय, जानइ पिच्छेइ सुद्ध संमत्तं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा निवेउ निव्वानं ॥ २२२ ॥ निव्वेओ निर्देदो, नि:लोहो निम्वियार निकलेसो । सुद्ध सहावे सुरदो, संमत्त गुनं जानि निव्वेओ ॥ २२३ ॥ कुन्यानं निंदंतो, सल्यं निंदंति कसाय मिच्छत्तं । निंदति असुहभावं, अनृत असत्य सयल निंदंति ॥ २२४ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी निंदति असह वयनं, इंदी विषयम्मि सयल निंदति । निंदति राय दोसं, परिनामं असुह निंदति ॥ २२५ ।। निंदंति गरुह नाए, सरीरं असुहं च सरनि संसारे । दुबुहि असत्यं सहियं, अन्यानं व्रत तप क्रियं च ॥ २२६ ।। जस्स न न्यान सहावं, व्रत तप क्रियं च सहन उवसग्गं । न्यान सहावेन बिना, सयलंपि अनेय निंदंति ॥ २२७ ।। उवसम ऊर्ध सहावं, उवसम संजुत्त सुद्ध सम्मत्तं । घिउ उवसमंपि सुद्धं, उवसम गुन लहंति निव्वानं ॥ २२८ ॥ उवसम सहिओ जीवो, संसार सरीर भोग विरदोय । मिच्छा मय कुन्यानं, रागं दोसंपि विषय उवसंतो ।। २२९ ॥ कषायं उवसंतो, रागादि दोष सयल परिचत्तो । संसार सरनि विरदो, उवसंतो विविह असुहाए ॥ २३० ॥ उवसंत पीन मोहो, मिथ्या दंसनेहि उवसमो चरनो । चौगई गमनागमनो, उवसंतो लहै निव्वानं ॥ २३१ ॥ भत्ती दंसन न्यानं, चरनं चारित्र दुविहि भत्तीए । तव भत्ती सहकारं, सम्मत्तं सुद्ध भत्तीओ ॥ २३२ ॥ भत्ती अनंत न्यानं, मल रहिओ सुद्ध दंसनं भत्ती । भत्ती सुद्ध सहावं, सुद्धं सम्मत्त भत्ति सो दिट्ठी ॥ २३३ ।। न्यानमयी भत्तीनं, अप्पा परमप्प सुद्ध भत्तीए । मिच्छात दोष रहियं, भत्ती पुन लहंति निव्वानं ॥ २३४ ॥ वाच्छल्लं विन्यानं, न्यानं विन्यान सरूव सम्मत्तं । अप्पा पर विन्यानं, परचवैवि अप्प सुद्ध सभावं ॥ २३५ ।। (६३) Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुत्यय सार जी अप्पा सुद्धप्पानं, विन्यानं करंति भावमय गहनं । लब्धं परमप्पानं, विन्यानं लहंति निव्वानं ॥ २३६ ॥ अनुकंपा जीवानं, थावर वियलेन्दिय सयलमप्पानं । अनुकंप भाव विसुद्धं, असत्य सहितोपि विवरीदो ॥ २३७ ॥ अनुकंप भाव विसुद्ध, अप्प सरूवं च चेयना भाव । अनृत असत्य सहियं, तिक्तंति अनुकंप भावेन ॥ २३८ ॥ दर्सति सुद्ध तत्त्वं, अयं च अप्प गुनेहि दर्सति । अप्पा परमप्पानं, अनुकंपा लहंति निव्वानं ॥ २३९ ॥ मुलगुनं ए अट्ठा, जानै पिच्छेइ सुद्ध सम्मत्तं । मिच्छात राग रहियं, अप्पा परमप्पयं सुद्धं ॥ २४० ॥ तिक्तंति मूल अट्ठा, पंचुम्बर मद्य मांस मधु पेयं । तिक्तंति भव्य जीवा, क्रिया मल विवज्जिओ सुद्धो ॥ २४१ ।। बड़ पीपल पिलषून, पाकर उदंबरं जाने । जस जीवा उप्पत्ती, तिक्तंति सव्व सावया हंति ॥ २४२ ॥ मद्यं च असुह भावं, असुहं आलाप विकह सभावं । मोह मय मान सहियं, मद्यं मानं च असुह मयमंतं ॥ २४३ ॥ तिक्तंति मद्यपानं, ममता भावेन मिच्छ सहियानं । पुन्यं भोय निमित्तं, करंति ममता मद्यपा हंति ॥ २४४ ॥ मासं च असुह भावं, भावं पंचम्मि थावरं सहियं । असुद्धं परिनामं, मांस दोस विरहिओ जीवो ॥ २४५ ॥ पुग्गला एइन्दीया, भरितं आहारपान एइन्दी । मांस दोष बेइंदी, रष्यंतो सुद्ध भावेन ॥ २४६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी महुरं मधुर सहावं, स्वादं विचलंति महुर उप्पत्ती । तिक्तंति सुद्ध भावं, मूलं अवगुनंपि तिक्तंति ॥ २४७ ॥ रयनत्तयंपि जोई, दंसन न्यानेन सुद्ध चरनानि । चिंतंति भव्य जीवा, अप्पा समयं च सुद्ध दिट्ठीऊ ॥ २४८ ॥ दंसन भेय चउक्कं, चष्यं अचष्य अवहि संजुत्तं । केवलदंसन सुद्ध, दंसन धरनं च सुद्ध संमत्तं ॥ २४९ ।। दंसेइ मोष्य मग्गं, मल रहियं राग मिच्छ परिचत्तं । दंसेड़ अप्प रूवं, अप्पा परमप्पयं सुद्धं ॥ २५० ।। संमिक् दर्सन सुद्धं, अदंसन सयल दोष परिचत्तं । दंसेड़ तिहवनग्गं, विंदस्थं दंसनं सुद्धं ॥ २५१ ।। अनंत दर्सन दर्स, केवलदर्सन तिलोय संजुत्तं । लोय अवलोय दर्स, अनंत दर्सन दर्सनं सुद्धं ॥ २५२ ।। ममलं दंसन दिही, मलं न पिच्छेड सयल दोस परिचत्तं । पिच्छै परमप्पानं, तिविहं कम न पिच्छेड़ ॥ २५३ ॥ दंसन दिट्टि सदिटुं, कम्ममल मिच्छ दोस परिगलियं । गलियं कुन्यान राग, जं तिमिरं दिनकर तेजं ॥ २५४ ।। दंसनदिट्टि स दिटुं, विहडै कम्मान मिच्छ सुह असुहं । विहडै मान कषायं, ज सीहं दिट्ठि गयंद जूहेहि ॥ २५५ ॥ दंसन सुद्धि निमित्तं, दंसन दिट्टि धरेहि भावेन । दंसेइ तिहुवनम्गं, दंसन धरनं च मुक्ति गमनं च ॥ २५६ ॥ न्यानमयं अप्पानं, न्यानं तिलोय सयल संजुत्तं । अन्यान तिमिर हरनं, न्यान उदेसं च सयल विलयंमि ॥ २५७ ॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी न्यानं तिलोय सारं, न्यानं दंसेड़ दसनं मग्गं । जानदि लोयपमान, न्यान सहावेन सुद्धमप्पानं ॥ २५८ ॥ न्यानं न्यान सरूवं, जानदि पिच्छेइ सुद्धमप्पानं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा न्यान संजुत्तं ॥ २५९ ॥ न्यान बलेन जीवो, अप्पा सुद्धप्प हवेइ परमप्पा । न्यान सहावं जानदि, मुक्ति पंथ सिद्धि ससरूवं ॥ २६० ॥ न्यानं जिनेहि भनियं, रूवातीतं च विक्त लोयस्य । न्यानं तिलोय सारं, नायव्वो गुरूपसाएन ॥ २६१ ॥ न्यानं दंसन सम्मं, सम भावना हवदि चारित्तं । चरनंपि सुद्ध चरनं, दुविहि चरनं मुनेयव्वा ॥ २६२ ॥ सम्मत्त चरन पढम, संजम चरनंपि होइ दुतियं च । सम्मत्त चरन सुद्धं, पच्छादो संजमं चरनं ॥ २६३ ॥ सम्मत्त चरन चरियं, दंसन न्यानेन सुद्ध भावं च । कम्ममल पयडि मुक्कं, अचिरेन लहंति निव्वानं ॥ २६४ ।। उत्तं दान चउक्कं, न्यानं आहार भेषजं भनियं । अभयं भयं न दिटुं, दानं चत्तारि पत्त दातव्यं ॥ २६५ ।। पत्तं तिविह पयारं, जिनरूवी उत्किट्ठ सावम्मि । अविरतिया विन्नेयं, दानं पत्तस्स भावना सुद्धं ॥ २६६ ॥ जिनरूवी जिनलिंगं, कर्म विपति तिविह जोएन । तारन तरन समत्थं, जिन उवट्ठ पयत्तेन ॥ २६७ ॥ रयनत्तय संजुत्तं, झानं झायंति सुद्धमप्पानं । आरति रौद्र न दिटुं, धर्म सुक्कं च झान संजुत्तं ॥ २६८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी षिउ उवसम संजत्तं, अवधिं दिस्टंति न्यान सभावं । मनपज्जय चिंतंतो, रिजु विपुल मइ न्यान संपन्नं ॥ २६९ ॥ कम्मं घाय विमुक्कं, मुक्कं मिच्छत्त दोस अन्यानं । संमिक् दर्सन सुद्ध, केवल भावं च भावेन ॥ २७० ॥ उत्किस्ट सावयानं, पडिमा एकादसं च वय पंचं । पालंति सुद्ध भावं, सुद्ध सम्मत्त भावना सुद्धं ॥ २७१ ।। अविरतिया विन्नेयं, सुद्धं दिट्ठी च सुद्ध भावेन । मिच्छत्तं अन्यानं, परिहारो पुन्न पावं च ॥ २७२ ॥ पत्तं तिविहि स उत्तं, दानं चत्वारि दिति भावेन । विन्यान न्यान सुद्धं, दत्तं पत्तं मुनेयव्वा ॥ २७३ ॥ पत्तं च सुद्ध भावं, दत्तं सुद्ध सहाव संजुत्तं । दत्तं पत्तं च समं, दानं सुद्धं च मुनेयव्वा ।। २७४ न्यानं दान समत्थं, अन्यानं तिक्त सव्वहा सव्वे । आलाप वचन असुह, तिक्तंति असुद्ध भावेन ॥ २७५ ।। मतिन्यानी मति दत्तं, सुतन्यानं च भावना जुत्तं । दत्तं पत्त विसेषं, दानं ममलबुद्धि संपन्नं ॥ २७६ ॥ न्यानी न्यान सरूवं, अन्मोयं दत्त पत्त विसेष । अन्यानी अलहंतो, न दत्तं न्यान दान अपत्तं ॥ २७७ ।। दानं न्यान स उत्तं, न्यानी पत्तस्य दान संजुत्तं । दत्तं पत्तं च सुद्धं, ममलं दानं च दत्त पत्तं च ॥ २७८ ॥ अन्यान मयं अपत्तं, वचनं आलाप रंजनं जाने । नवि दत्तं न सुपत्तं, दत्तं पत्तं च समायरहि ॥ २७९ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री न्यान समुच्चय सार जी जे सुद्ध दिट्ठि सुद्धं, जानदि पिच्छेड़ सुद्ध सम्मत्तं । दत्तं पत्तं तं पिय, अन्मोयं सुग्गए लहई ॥ २८० ॥ भेषज दान स उत्तं, संसारे सरनि व्याधि मुक्तस्य । भेषज जिन उवएस, जिनवयनंपि सार्धं तंपि ।। २८१ ॥ भेषज दान जिनुत्तं, दव्वं षट् काय पंचत्थं । नव पयत्थ पदार्थं तत्तं सप्तं च सुद्ध जानत्थं ॥ २८२ ॥ एरिस गुनेहि सुद्धं, जानदि रूव भेय विन्यानं । सद्दति जिन उत्तं, भेषज दान पयासेई || २८३ ।। पत्त कुपत्त न जानदि, भेषज उवएस सुद्धमप्पानं । जे भव्य जीव साहं, ते जर मरन विनासेई ॥ २८४ ॥ आहारदान सुद्धं, न्यानं आहार दिंति पत्तस्य । तिक्तंति जीव आहारं, न्यानं आहार कुनय भव महनं ।। २८५ ।। आहार दान सुद्धं, पत्तं जो देई भाव सुद्धीये । सो भव दुष्य विनासै, पत्तं आहार न्यान ससहावं ।। २८६ ॥ अभयं च दान जुत्तं, पत्तं जो देइ भाव सुद्ध संजुत्तं । सो संचियं विनासै, अभयदानं च भय रहियं ॥ २८७ ।। अभयं दानं उत्तं, अभयं दानंपि भाव संजुत्तं । चिंतंति अभय दानं दानं फलं मुक्ति गमनं च ।। २८८ ।। ए चारि दान उत्तं, जानिवि जो देइ पत्त कुपत्तं । जो देइ जस्य अत्थिं दानं उवएस जिनवरिंदेहि ॥ २८९ ॥ जल गालन उवएसं प्रथमं सम्मत्त सुद्ध भावस्स । चित्तं सुद्ध गलंतं, पच्छिदो जलं च गालम्मि ।। २९० ॥ ६६ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मन सुद्धं चित गालं, भाव सुद्धं च चेयना भावं । चेयन सहित सुभावं, जलगालन तंपि जानेहि ॥ २९९ ॥ अनस्तमितं उवएसं, पढमं सम्मत्त चरन संजुत्तं । 9 जस्य न अनस्तं दिहं तस्ययं मिथ्यादि भावमप्पानं ।। २९२ ॥ अप्पानं अप्पानं, सुद्धप्पा भाव विमल परमप्पा । एयं जिनेहि भनियं, अनस्तमितं तंपि जानेहि ।। २९३ ।। एवं आहार जुत्तं न्यानं आहार नेय संजुत्तं । अनस्तमितं बेघड़ियं, निस्चय विवहार संजदो सुद्धो ॥ २९४ ॥ अठ दह किरियानं, अविरइ सम्माइट्ठि संकलियं । उवएस उज्झायं, अविरइ पालंति सुद्ध भावेन ।। २९५ ।। उज्झायं उवएसं, जिन उत्तंपि जिनवरिंदेहि । जे साहंति जिनुत्तं, अचिरेन निव्वुए जंति ॥ २९६ ।। उज्झायं उवएसं न्यान सहावेन जिनवर मएन । जिन उत्तं सुत जुत्तं, उज्झायं उवएसनं तंपि ।। २९७ ।। उज्झाय पयडि जुत्तं, आचरनं पयडि भाव संजुत्तं । मति न्यान सुद्ध सुद्धं, स्रुत न्यानं च चिंतनं तंपि ॥ २९८ ॥ मइ सुइ न्यान उवन्नं, न्यान सहावेन भावना जुत्तं । जं चिय न्यान सहावं, तं चिय सुद्धपि भावना हुंति ।। २९९ ।। स्रुतं न्यान उववन्नं, अनुमात्र व्रत भावना एन । सुद्ध सहाव संजुत्तं, अनुव्रती व्रत संग्रहनं ॥ ३०० ॥ दंसन वय सामाई, पोसह सचित्त राय भत्तीए । बंभारंभ परिग्रह, अनुमन उद्दिस्ट देस विरदोय ।। ३०१ ।। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी पडिमा एक दसयं, पडिमा संसार दुष्य षय करनं । पडिमा सुद्धप्पानं, दंसन दंसेइ सुद्धमप्पानं ॥ ३०२ ॥ पडिमा नाम स उत्तं, ति अर्थं सुद्धं च परम तत्त्वानं । ममात्मा सुकिय सुभावं, अप्पा परमप्प सुद्ध सं पडिमा || ३०३ ॥ पडिमा नाम स उत्तं, दण्ड कपाटेन तिअर्थ संजुत्तं । विंद स्थान सविंदं, अप्पा परमप्प सुद्ध पडिमानं ॥ ३०४ ।। पडिमा नाम विसेषं, दंसन पडिमा च दंसए सुद्धं । दंसेइ मोष्य मग्गं, दंसन पडिमा इमो भनियं ॥ ३०५ ॥ दंसन सहाव सुद्धं, पिच्छइ जानेइ सुद्ध सम्मत्तं । दंसेइ न्यान रूवं, लोयालोयं च दंसनं पडिमा ॥ ३०६ ।। दंसन पडिमा दंसइ, केवल दंसेइ न्यान संजुत्तं । लोयालोय पयासं, अवलोयं दंसनं पडिमा ॥ ३०७ ॥ दंसन अनंत न्यानं, अनंत वीरिय अनंत सुषाई । दंसेइ तिहुवनग्गं, दंसन पडिमा इमो भनियं ॥ ३०८ ॥ वय पडिमा उवएस, व्रतं जानेहि अप्प सभावं । अप्पा अप्पे सुरई, वय पडिमा संजदो सुद्धो ॥ ३०९ ।। वयं च व्रत संजुत्तं, भाव विसुद्ध विमुक्क वावारे । अप्प सरूवे सुरदो, अप्पानं झान सुरदोयं ॥ ३१० ॥ परपंच नहु दिदि, पर पुग्गलं च भाव तिक्तंति । अन्यान मिच्छ भावं, तिक्तं सयल दोस सभावं ॥ ३११ ॥ अप्पानं व्रत पिच्छदि, अप्पा परमप्प सुद्ध सभावं । न्यानमई ससहावं, अत्थि धुवं चेयना पडिमा ॥ ३१२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सामाइयं च उत्तं, अप्पा परमप्प सम्म संजुत्तं । समय तिअर्थ सुद्धं, समतं समाइयं जाने ॥ ३१३ ॥ तिअर्थं सुद्ध सुद्धं, सम सामाइयं च संसुद्धं । परिनै सुद्ध तिअर्थ, परिनामं सुद्ध समय सुद्धं च ॥ ३१४ ।। समरूवं सम दिटुं, सम सामाइयं च जिन उत्तं । मन चवलं सुद्ध थिरं, अप्प सरूवं च सुद्ध सम समयं ॥ ३१५ ।। पोसह पडिमा उत्तं, पूर्व सहकार कारनं सुद्ध । जिन उत्तं सुद्ध दिलु, अप्प सहावेन भावना सुद्धं ॥ ३१६ ॥ पूर्वं जिनेहि भनियं, सहकारेन पोसहं सुद्धं । जं करेइ चितवन, झानं झायंति धम्म सुक्कानं ॥ ३१७ ॥ पोसह पडिमा एसो, पूर्व सहकार सुद्ध चरनानि । चेयन भाव संजुत्तं, पोसह पडिमा इमो भनियं ॥ ३१८ ।। सचित्त चित्त सुद्धं, चेयन भावेन सुद्ध सम्मत्तं । सचित्त चेयनत्वं, धम्मं झानं सचित्त भावेन ॥ ३१९ ।। चेयन सुद्ध सहावं, अप्पा परमप्प चेयना रूवं । गय संकप्प वियप्पं, चेयन पडिमा धुवं लोए ॥ ३२० ॥ मिथ्या मय कुन्यानं, रागादि दोष विषय मुक्तानं । हरितं सचित्त सवनं, तिक्तं सुद्ध भाव संजुत्तं ॥ ३२१ ।। अनुरागं अप्पानं, रागादि मिच्छ भाव परिहरनं । अप्पा परमप्पानं, अनुरागं पडिमा संसुद्धं ॥ ३२२ ।। अनुरागं भत्तीए, सुद्ध सरूवेन भत्तिभारेन । अनुराग भत्ति एसा, उवइटुं जिनवरिंदेहिं ॥ ३२३ ॥ (६७) Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी बंभं बंभ सरूवं, अप्पा परमप्प तुल्य संसुद्धं । तिक्तं अबंभ रूवं, दहविहि अबंभ भाव तिक्तंति ॥ ३२४ ।। हाव भाव स उत्तं, विभ्रम कटाष्य निरीष्यनं सव्वं । उमयन मयन स उत्तं, मोहन वसीकरन भाव तिक्तंति ॥ ३२५ ॥ विकहा विसन स उत्तं, उवभोगं च भाव अनंतानं । तिक्तंति असुद्ध भावं, बंभं प्रतिमा मुनेयव्वा ॥ ३२६ ॥ बंभं चरित्त सुद्ध, चेयनवंतोय न्यान संपन्नो । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा परम जोएन ॥ ३२७ ॥ आरम्भं सुद्ध सहावं, सुद्धं सम्मत्त न्यान संजुत्तं । आरंभं अप्पानं, सुद्धं झानं च सुद्ध भावेन || ३२८ ॥ सुद्धं सुद्ध सरूवं, अप्पा परमप्प अप्पयं सुद्धं । आरंभं धम्म झानं, आरंभ प्रतिमा मुनेयव्वा ॥ ३२९ ॥ आरंभं तिक्तंति, मिथ्या कुन्यान सयल दुर्बुद्धि । तिक्तंति मनस्य पसरो, सर्वं असुहस्य तिक्तंति ॥ ३३० ।। असत्य सहित आरम्भं, अनृत अचेत आरम्भ तिक्तंति । तिक्तंति राय दोसं, संसारे सरनि तिक्तं च ॥ ३३१ ।। आरम्भं देव गुरुं, धम्म झानं च ममल सुद्धं च । आरंभं न्यान मइओ, आरम्भ प्रतिमा धुवं निस्चं ॥ ३३२ ॥ पर पुग्गलं न ग्रहनं, मिच्छा पर भाव दोस विवरीदो । ग्रहनं दंसन न्यानं, चरनंपि दुविह संजदो ग्रहनं ॥ ३३३ ।। पुग्गल प्रमान करनं, सेसं संसार सरनि विवरीदो । अप्प सहावे निलऊ, सद्धप्पा सुद्ध विमल भावेन ॥ ३३४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्यान मती न दत्तं, मिच्छा दर्बुद्धि सयल विवरीदो । मति न्यानं उवएसं, केवल भावे मुनेयव्वा ॥ ३३५ ।। उद्दिढे सुद्ध दिटुं, दंड कपाटेन भावना सुद्धं । लब्धं जं च सहावं, अप्पा झानं च चिंतनं सुद्धं ॥ ३३६ ।। प्रतिमा दहएकत्वं, सुद्ध भावं च सुद्ध झानस्य । अप्पा परमप्पानं, ममलं धुव दंसनं सुद्धं ॥ ३३७ ॥ हिंसा तिक्त अहिंसा, अनृत तिक्तं च नितं ससहावं । स्तेयं अदत्त तिक्तं, दत्तं जानेहि सुद्ध सम्मत्तं ॥ ३३८ ।। तुरियं अबंभ तिक्तं, बंभ चरनस्य चेयनं सुद्धं । पर पुग्गल परिमानं, न्यान सहावं च अप्प सभावं ॥ ३३९ ।। एयं अनुव्वयाई, जानै ममलं च न्यान मय सुद्धं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा लहै निव्वानं ॥ ३४० ॥ असत्य सहितो हिंसा, अन्यानं सहित मिच्छपरिनामो । रागादि दोष सहियं, हिंसायरो च दुष्य संजुत्ता ॥ ३४१ ॥ मय मान विषयरूवं, न्यान बिना कस्टं च तवयरनं । व्रत संजम किरियानं, हिंसायं सयल दोष तिक्तं च ॥ ३४२ ।। अहिंसा सुद्ध स उत्तं, अयं अप्पा परमप्प जान सम तुल्यं । हींकारं थिर भावं, न्यान सहावेन अहिंसओ सुद्धं ॥ ३४३ आगम पुरान सुद्ध, अष्यर सुर विजनं पद सरूवं । चिंतंति सुद्ध भावं, अप्प सहावेन अहिंसओ भनियं ॥ ३४४ ।। थावर वियलिंदीया, असेनि सेनि सयल उपपत्ती । ससंक न्यान रूवं, अहिंसओ लहै निव्वानं ॥ ३४५ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी अनृत अचेत भावं, अलियं जानेहि असुद्ध ससहावं । जिन उत्तं नवि दिद्वं, अनृत तिक्तंति सव्वहा सव्वे ॥ ३४६ ॥ न्यानेन बिना भावं, अनेय विभ्रम अनेय श्रुत जाने । उच्छाह कस्ट अनेयं, अनृत तिक्तंति सरनि संसारे ॥ ३४७ ॥ त्रितं उवएस उत्तं, न्यानमई सुद्ध दंसनं सुद्धं । मिथ्यात राग रहियं, व्रितं जानेहि सयल दोष चड़ उवनं ॥ ३४८ ॥ नितं अनेय भेयं, सारं संसार सरनि मुक्तस्य । नितं तिलोय मइओ, नंत चतुस्टय मुक्ति संजुत्तं ॥ ३४९ ॥ स्तेयं पद रहियं, जिन उक्तं च लोपनं जाने । अनेय व्रत धारी, स्तेयं ससहाव रहिएन ॥ ३५० ॥ स्तेयं अन्यानं, न्यानमइ अद सहाव गोपंति । अन्यानं मिच्छत्तं, तिक्तं अस्तेय विषय सुहरहियं ॥ ३५१ ॥ स्तेयं तिक्तंति सुद्धं, वर सम्मत्त न्यान दंसन समग्गं । सहकारे तव जुत्तं, चौविहि आराहना मयं सुद्धं ॥ ३५२ ॥ न्यान सहावे निस्चं, लोकालोकेन लोकितं सुद्धं । जिन उत्तं सद्दहनं, मिथ्या मय षण्डनं सुद्धं ॥ ३५३ ॥ अप्प सरूवं दिलु, अप्पा परमप्प न्यान ससरूवं । रागादि विषय विरयं, संसुद्धं चेयना रूवं ॥ ३५४ ॥ अबंभ तिक्तं च उत्तं, दहविहि परिनाम विकह सहाव संजुत्तं । मनमक्कड चवल सहावं, अबंभ जानेहि नरय वासंमि ॥ ३५५ ॥ मिथ्यात राग जुत्तं, विषय च विसन संजुत्तं नेयं । परिनामं विचलंतो, तिक्तं च मन वयन कायेन ॥ ३५६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी बंभं बंभ सरूवं, वर दंसन न्यानेन सुद्ध चरनानि । अप्पा परमप्पानं, न्यान सहावेन बंभचरनानं ॥ ३५७ ।। बंभं अबंभ तिक्तं, मिथ्या मय सयल दोस विरयं च । बंभं सुद्ध सरूवं, अप्प सहावं च जिन दिढें ॥ ३५८ ॥ बंभं चरन समत्थं, दुविहि चारित्त चरन मयमेयं । आद सहाव सरूवं, बंभंचरन अनुव्वया हुंति ॥ ३५९ ॥ पर पुग्गल परमानं, पुग्गलभावेन सयल तिक्तं च । भावे एकं दुतियं, पुग्गल परमान सेष संसारे ॥ ३६० ॥ मय मिथ्यात विमुक्कं, मुक्कं संसार सरनि जे भावं । मुक्कं कषाय विषयं, मुक्कं अन्यान सयल दोष परिचत्तं ॥ ३६१ ।। अप्प सहावं निलयं, वर सम्मत्त न्यान दंसनं सुद्धं । न्यानेन न्यान समयं, पुग्गल परमान सव्वहा सव्वे ।। ३६२ ।। परदव्वं नहु दिट्ठदि, पर पुग्गल परमान चिंतंति । मिथ्या सल्य निकंदं, षिउ उवसम संजदो सुद्धो || ३६३ ।। अप्पा अप्प सरूवं, अप्पा परमप्प जानि सभावं । पर पुग्गल परमानं, न्यानमइ नंत चतुस्ट संजुत्तं ॥ ३६४ ।। एयं अनुव्वयाई, परम सरूवेन अद सहाव संजुत्तं । अप्पा अप्पम्मि रओ, अनुव्वयं धरंति सुद्ध ससहावं ॥ ३६५ ।। भावे च धम्म संजुत्तं, भावे तव अवयास संपन्नो। भावेन भाव सुद्धं, अनुव्वया एरिसो सुद्धो ॥ ३६६ ॥ दहविहि धम्मं झायदि, वर उत्तमषिमा न्यान संजुत्तं । मद्दव अज्जव सुद्धं, सत्तं सउच्च संजम तप त्यागं ॥ ३६७ ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी आकिंचन बंभवयं, दहविहि धम्मं च सुद्ध चरनानि । झायंति सुद्ध झानं, न्यान सहावेन धम्म संजुत्तं ।। ३६८ ॥ उत्तं ऊर्ध सहावं, षिम षिपनिक ट्रेणिलय सभावं । मद्दव मग उवएस, अज्जव उवसमइ सरनि संसारे ॥ ३६९ ॥ सत्तं सद्भाव रूवं, सौचं विमल निम्मलं भावं । संजम मन संजमनं, तव पुन अप्प सहाव निद्दिढं ॥ ३७० ॥ त्यागं न्यान सहावं, आकिंचन धम्म धुरा वर धरनं । बंभं बंभ सरूवं, न्यानमयं दह विहि धम्मं ॥ ३७१ ॥ दह विहि धम्म उवएस, धरयति धम्मं च जान परमत्थं । परिनाम सुद्ध करनं, धरयति धम्म मुनेयव्वा ॥ ३७२ ॥ तव वय भावन जुत्तं, भावन भावंति दोष परिचत्तं । अनुवय वयं च धरनं, षयकरनं सव्व दुष्यानं ॥ ३७३ ॥ अनुवयं च धरनं, अयं वय तव क्रिया विसेषं । सेषंपि भावना सुद्धं, महावयं भावना भावं ॥ ३७३-१ प्रक्षेप ।। न्यान सहावं सुद्धं, मति श्रुत न्यान संजदो सुद्धो । अवहि उवन्नं भावं, महावय भाव संकरनं ॥ ३७४ ॥ अप्पं अप्प सहावं, अप्पा परमप्प झान संजुत्तं । चिन्तन्तो परमप्पयं, अहिंसा वयं महावयं हुंति ॥ ३७५ ॥ एकं जिनं सरूवं, जिन रूवं जिनवरं दिट्ठि सभावं । जिनयतिकं मति सुद्धं, सुद्धं सम्मत्त सुद्ध ससरूवं ॥ ३७६ ।। जिनयं घाय चउक्कं, जिनयं संसार सरनि मोहंधं । कम्ममल पयडि जिनयं, अप्पा परमप्प सुद्ध ससरूवं ॥ ३७७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिनयं कुन्यान सुभावं, मय मिथ्यात सल्य तिविहं च । जिनयं कषाय भावं, जिनरूवी सुद्ध साधओ निस्चं ॥ ३७८ ।। न्यान सहाव स उत्तं, न्यानं न्यानेन न्यान संसुद्धं । न्यानं ममल सरूवं, जं रयनं दिनयरं तेजं ॥ ३७९ ।। रूवं अरूव सुद्धं, रूवातीतं च विगत रूवेन । विन्यान न्यान रूवं, जिनरूवी साधओ सुद्धं ॥ ३८० ॥ मूलगुनं संसुद्धं, उत्तरगुन सुद्ध धरंति साहूनं । साहू साधंतिअर्थ, पंचा) पंच न्यान संसुद्धं ॥ ३८१ ।। पंच न्यान ससहावं, दह धम्म सम्मत्त सुद्ध संसुद्धं । तेरह विहस्य चरनं, सम्मत्तं संजमेन सुद्ध संजुत्तं ॥ ३८२ ।। गुन रूव भेयविन्यानं, न्यान सहावेन संजुत्त धुव निस्चं । मूलगुनं संसुद्धं, उत्तरगुन धरइ निम्मलं विमलं ॥ ३८३ ॥ उत्तर ऊर्ध सहावं, ऊर्धं तव विमल निम्मलं सहसा । सुद्ध सहावं पिच्छदि, उत्तर गुन धरंति सुद्ध ससहावं ॥ ३८४ ॥ मूल उत्तर संसुद्धं, सुद्धं सम्मत्त सुद्ध तवयरनं । तिक्तंति चेल सहावं, सुद्धं सम्मत्त धरन संसुद्धं ॥ ३८५ ॥ चेलं पंच सहावं, तिक्तं परिनाम चेलजं रसियं । अंडज बुंडज उत्तं, वंकज चरमज रोम विरयंति ॥ ३८६ ॥ अंडज चेल स उत्तं, हृदयं असुद्ध भावजं रसियं । परिनाम असुद्ध सहियं, तिक्तंति चेल अंडजं भनियं ॥ ३८७ ।। अंडज अनर्थ रूवं, आलापं परपंच विभ्रमं सहियं । रंजन लोक सहावं, तिक्तंति सयल साधऊ सुद्धं ॥ ३८८ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी आभिंतर असुह सुभावं, सल्यं सहकार विभ्रमं उत्तं । अनेय भेय अनर्थं, अन्यानं भाव सयल तिक्तंति ॥ ३८९ ।। वुण्डज भाव स उत्तं, वचनं असुहाइ नंद सहकारं । गुन दोसं नवि पिच्छदि, वुण्डज सुभाव सयल तिक्तंति ॥ ३९० ॥ वुण्डज पुन्य सरूवं, हिंसा अनृत असत्य आनंदं । दहविहि अबंभ नंद, वयनं तिक्तंति कुंडजं भनियं ॥ ३९१ ॥ वंकज सहाव उत्तं, न्यानं विन्यान वंकजं रूवं । दर्सन असुद्ध दर्स, वंकज भावेन सयल तिक्तंति ॥ ३९२ ॥ वंकज असुद्ध भावं, न्यानावरनादि घाय उववन्नं । न्यान सहाव न दिटुं, वंकज तिक्तंति साधवा सुद्धं ॥ ३९३ ॥ कप्प वियप्पं जानदि, सुद्धं ससहाव वंकजं रूवं । वंकज विमल सहावं, वंकज तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ३९४ ॥ चरमज सहाव उत्तं, जं चरनं चरंति नेय कालं । चरनं विभ्रम रूवं, संसारे सरनि चरन तिक्तं च ॥ ३९५ ॥ चरनं विप्रिय भावं, आरति रौद्रं च चरन सभावं । अनेय चरन चरियं, चरनं तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ३९६ ॥ चरनं असुद्ध भमियं, चौगय संसार सरनि ने कालं । विषय वसन संचरनं, चरनं चेल तिक्त न्यान ससहावं ॥ ३९७ ।। रोमज सहाव उत्तं, रुचियं नो कम्म दव्व कम्मेन । भावं रुचित असुद्धं, रोमज तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ३९८ ।। रुचियं कुन्यान मइओ, रुचियं मिथ्या विषय सल्य सभावं । रुचियं पुग्गल रूवं, रोमज तिक्तंति चेयना भावं ॥ ३९९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ए पंच चेल उत्तं, तिक्तं मन वयन काय सभावं । विन्यान न्यान सुद्धं, चेलं तिक्तंति निव्वुए जंति ॥ ४०० ।। चेलं वाहिज उत्तं, चेलं पंचंमि तिक्त मोहंधं । चेल सहाव न ग्रहनं, वस्त्रं तिक्तंति चेल उत्पन्नं ॥ ४०१ ।। दिगंबर वयन उत्तं, दिग दिसा अंबरेन सभावं । अंबर चेल विमुक्कं, दिगंबरेन न्यान सहकारं ॥ ४०२ ।। पूर्वं पूर्व उक्तं, पूर्व सहकार परम भत्तीए । पूर्वं न्यान सहावं, पूर्वं उत्तं च निम्मलं विमलं ॥ ४०३ ॥ पूर्वं परम सरूवं, अप्पा सुद्धप्प हवे परमप्पा । न्यानेन न्यान ममलं, न्यान सहावेन पूर्व उवएसं ॥ ४०४ ।। नंत चतुस्टय पूर्व, नंतानंतं च न्यान सहकारं । रागादि दोस तिक्तं, अंबर पूर्वं च न्यान उक्तं च ॥ ४०५ अग्निं च अग्रभावं, अगं अवयास सुद्ध अवयास । अग्रं ममल सहावं, अग्नि दिसा च अंबरं ममलं ॥ ४०६ ।। अग्निं च अग्र तेजं, जोति ससहाव रूव संसुद्धं । अग्रं तिलोय मइओ, लोका अवलोक लोकनं अग्रं ॥ ४०७ ॥ दषिन दिसि अंबरयं, वर दंसन न्यान चरन सहकारं । दंसेड़ मोष्यमगं, नंतानंतं च दिस्टि संदर्स ॥ ४०८ दंसेइ तिहुवनग्गं, दंसन दंसेइ नंत सहकारं । विपिऊन तिविह कम्म, न्यान सहावेन सुदर्सनं ममलं ॥ ४०९ ॥ दष्यन दिसि अंबरयं, दिस्टं न्यान पंच सभावं । षिपनिक रूव सुदिढ़, अंबर दिसियं च न्यान सहकारं ॥ ४१० ।। = = ७१ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी रित्यं उवएस, नितं जानेहि सुद्ध ससहावं । अनृत असरन तिक्तं, नितं लोयालोयं च धुव निस्चं ॥ ४११ ।। नितं अनंत रूवं, चेयन संजुत्त नितं सहकारं । नैरित्यं नित दिटुं, नैरित्यं नित न्यान अंबरयं ॥ ४१२ ॥ पच्छिम पिच्छदि सुद्धं, असुद्धं संसार सरनि नहु पिच्छं । पिच्छदि अप्प सहावं, अप्पा सुद्धप्प न्यान परमप्पा ॥ ४१३ ।। पिच्छदि अनंत रूवं, विन्यानं न्यान पिच्छि सभावं । मिथ्या सल्य विमुक्कं , पच्छिम पिच्छेइ अंबरं विमलं ॥ ४१४ ।। पिच्छेइ अप्पु अप्पं, वर दंसन न्यान चरन पिच्छेई । पिच्छेइ मोष्य मग्गं, न्यान सहावेन अंबरं पिच्छं ॥ ४१५ ॥ वाइव दिसि स उत्तं, विगतं रूवेन अविगतं ममलं । विगतं संसार सुभावं, अविगत रूवेन सुद्ध सहकारं ॥ ४१६ ॥ अविगत परमानंद, विगतं संसार सरनि सहकारं । अविगत रूवे रूवं, अविगत परम केवलं न्यानं ॥ ४१७ ॥ उत्तर दिसि उवएस, वर दंसन न्यान चरन तव सुद्धं । उत्तर गुनानि धरनं, अप्पा परमप्प निम्मलं विमलं ॥ ४१८ ।। उत्तर गुन संजुत्तं, मय मिच्छात भाव परिचत्तं । उत्तर ऊर्ध सहावं, षिउ उवसम मेनि उत्तरं सुद्धं ॥ ४१९ ॥ उत्तर दिसि ऊर्ध सहावं, अवगाहन गुन धरति साहूनं । उत्तर षिपनिक रूवं, अंबर सुद्धं च न्यान सहकारं ॥ ४२० ।। ईसान दिसि उवएस, ईसं तिलोयमत्त सुपएसं । ईसं इस्ट संजोयं, अनिस्ट रूवं च सयल तिक्तं च ॥ ४२१ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ईर्जा पंथ निवेदं, ईर्ज इत्यादि समिदि संजुत्तं । इस्टं च इस्ट रूवं, न्यान सहावेन ईसं तियलोयं ॥ ४२२ ॥ ईसं सुद्ध सहावं, असुद्ध परिनाम सयल तिक्तं च । ईसं तिलोय ईसं, ईसं अंबर विसुद्ध सहकारं ॥ ४२३ ॥ ऊर्ध दिसा स उत्तं, ऊर्धं ससहाव निम्मलं सुद्धं । ऊर्धं ऊर्ध सरूवं, ऊर्ध झापि केवलं सुद्धं ॥ ४२४ ॥ सुद्धं च भाव सुद्ध, असुद्ध परिनाम सयल तिक्तं च । सुद्धं जिन उवएस, ऊर्धं अम्बर विन्यान सहकारं ॥ ४२५ ।। आध दिसि उवएस, झानं न्यानं च दिस्टि सभावं । आधु ऊर्थ सभावं, अप्पा परमप्प विगत रूवेन ॥ ४२६ ।। उर्वकारं ह्रियंकारं, श्रियंकारं तिअर्थ ऊर्ध सुद्धं च । पंच स्थान संजुत्तं, सम्मत्तं सुद्ध समय सर्वन्यं ॥ ४२७ ॥ दिसि अम्बर संसुद्ध, दिगम्बर न्यान झान सहकारं । अम्बर दिग् दिस्ट च, न्यान सहावेन अम्बरं भनियं ॥ ४२८ ॥ नि:चेल सुद्ध सुद्ध, अम्बर सुद्धं च निम्मलं विमलं । विमलं विमल सहावं, न्यान सहावेन सुद्ध वयधरनं ॥ ४२९ ।। ग्रन्थं सहाव उत्तं, जं ग्रहनं असुद्ध भाव परिनाम । ग्रन्थं विमुक्त तिविहं, कम्मानं मुक्क सरनि संसारे ॥ ४३० ॥ वाहिज भिंतर ग्रंथा, मुक्कं संसार सरनि वावारे । मुक्कं राग कषायं, मुक्कं पुग्गल सहाव संबंधं ॥ ४३१ ।। सिंहासन ग्रह छित्तं, जानहि सभाव असुह परिनाम । पुग्गल सहाव रूवं, न्यान सहावेन तिक्त संसारे ॥ ४३२ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी सिंहासनं स उत्तं, चौ गइ संसार आसनं सहसा । बंधं चौविहि उत्तं, न्यान सहावेन आसनं मुक्कं ॥ ४३३ ॥ आसन सहाव सहियं, आसवै कम्मान पुन्य पावं च । आसवै दव्व कम्मं, न्यान बलेन आसनं मुक्कं ॥ ४३४ ।। ग्रहनं संसार सुभावं, दुविहि कुन्यान ग्रहन उत्पन्न । पुग्गल सहाव ग्रहनं, तिक्तं मन वयन काय संसुद्धं ॥ ४३५ ॥ उत्पाद्यं विवग्रहनं, संबंधं सरनिबंध मित्तानं । ग्रहनं कम्म सहावं, न्यान सहावेन तिक्त ग्रहभेयं ।। ४३६ ॥ छित्तं सहाव उत्तं, छित्तं अनादि काल सभावं । चौगइ गमन सहावं, असयनं सयन छित्त परिनामं ॥ ४३७ ।। छित्तं उवनं उत्तं, छित्तं संसार सरनि सभावं । छित्तं भवन सहावं, न्यान सहावेन छित्त तिक्तंति ॥ ४३८ ॥ सुवर्न भाव स उत्तं, सुरयं अनृत भाव अथिरनं । चंचल सहाव सुवन, तिक्तंति न्यान सुद्ध सहकारं ॥ ४३९ ॥ धन धान्य अभ्र पटलं, विनास रूवेन चेयना रहियं । अनृत असत्य सहियं, धन धान्य तिक्त सुद्ध सहकारं ॥ ४४० ।। कुप्पं कुधर्म जुत्तं, अंधं अधुवं च अधुव ससहावं । अन्यान मिच्छ सहियं, न्यान बलेन कुप्प तिक्तंति ॥ ४४१ ।। भाजन मिथ्य सहावं, संसारे दुष्य भाजनं उत्तं । भाजन विकह स उत्तं, भाजन तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ४४२ ।। दुपदं दुबुहि जुत्तं, अन्यानं न्यान सुद्ध पद रहियं । दुपदं अनिस्ट दिस्टं, इस्ट विओय दुपद तिक्तं च ॥ ४४३ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दुपदं दुर्मति जुत्तं, हिंसानंदी च दुर्बुधिं जुत्तं । दुपदं निगोय भावं, न्यान सहावेन दुपद तिक्तं च ॥ ४४४ ॥ चतुपद चौगड़ सहियं, चौ गड़ चौ कषाय संजुत्तं । घाय चवक्कय सहियं, चौविहि बंधं च बंध सहकारं ॥ ४४५ ॥ ठिदि अनुभाग स उत्तं, प्रकृति प्रदेस बंध सुह असुहं । चौपद बंध सहावं, न्यान बलेन चौपदं तिक्तं ॥ ४४६ ।। जानस कुमय सहावं, कुश्रुति कुअवधि दिस्टि संचरनं । व्रत संजम तव उत्तं, न्यान विन्यान जानसं तिक्तं ॥ ४४७ ।। वाहिज ग्रंथ सुभावं, संसारे सरनि दुष्य वीयंमि । तिक्तंति साधु सुद्ध, न्यान बलेन कम्म विलयंति ॥ ४४८ ॥ आभिंतर ग्रंथ स उत्तं, मनवयकायेन ग्रंथ संवरनं । ग्रंथ सहावं पिच्छदि, न्यान बलेन सयल तिक्तं च ॥ ४४९ ।। मिच्छात वेवि कहियं, मिच्छातं समय मिच्छ संजुत्तं । कुन्यानं सयल सहावं, मिच्छा तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ४५० ।। मिच्छा मिच्छ सहावं, जिन वयनं च लोपनं उत्तं । अनृत असत्य सहियं, असरनं दुष भाजनं मिथ्या ॥ ४५१ ।। मिच्छा असत्य उत्तं, अप्पा परमप्प भाव नहु पिच्छं । प्रपंच विभ्रम सहियं, न्यान सहावेन मिच्छ तिक्तंति ॥ ४५२ ।। मिच्छा समय स उत्तं, समयं संजुत्त मिच्छ उवएसं । विस्वासं तव मूढा, निगोयवासं च मिच्छ तिक्तते ॥ ४५३ ॥ रागादि भाव कहियं, रागं संबंध सरनि संसारे । रागं आरति पुन्यं, न्यान सहावेन राग विलयंति ॥ ४५४ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी दोषं रौद्र सहावं, हिंसानंदी अनित असत्य नंदीओ । अबंभ नंद नंदं, दोषं तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ४५५ ॥ हास्य विकहा सुभावं, रागादि मिथ्या कषाय संजुत्तं । हास्यानंद सुभावं, हास्यं तिक्तंति न्यान उवएसं ॥ ४५६ ॥ हास्यं अबंभ रूवं, रति संसार सरनि ठिदिकरनं । आरति दुर्बुहि रूवं, न्यान बलेन तिक्त सव्वानं ॥ ४५७ ॥ अस्त्री अस्तिति रूवं, पुंसह पूर्व सहकार मिच्छातं । नपुंसय गुनहीनं, न्यान सहावेन सयल तिक्तं च ॥ ४५८ ॥ कषायं उवएसं, चौगइ संसार सरनि संजुत्तं । जहं जहं कम्म सहावं, तह तहं कषाय रसिय मिच्छातं ॥ ४५९ ।। लोभं अनृत रूवं, अनृत असत्य सहित जो मिथ्या । तं लोभं नहु पिच्छदि, जं लोभं दुष कारणं सहियं ॥ ४६० ॥ लोभं पुन्य सहावं, असत्य सहित राइ जं मिथ्या । न्यान बिना वय धरनं, तं लोभं तिक्त न्यान सहकारं ॥ ४६१ ।। कोहं कोहाग्नि उत्तं, कोहं थावर त्रस अभाव संजुत्तं । कोहं कम्म उवन्नं, तिविहि कम्मान वर्धनं कोहं ॥ ४६२ ।। कोहं उवनं भावं, कोहं उत्पन्न मिच्छ सहकारं । कोहाग्नि अनृत रूवं, कोहं तिक्तंति न्यान सहकारं ॥ ४६३ ॥ मानं असत्य रूवं, व्रत तप क्रियं च गहिय सभावं । मानं च न्यान हीनं, मानं रागादि असुह तिक्तं च ॥ ४६४ ॥ मानं पुग्गल रूवं, गलंति पूरयंति सभावं । मानं अनृत रूवं, न्यान सहावेन मान तिक्तं च ॥ ४६५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी माया अनृत रूवं, विषयं अहिलास माय उत्पन्न । माया बंधति सल्यं, माया मिथ्यात रूव सहकारं ॥ ४६६ ।। माया परिनाम बंधं, परिनामं असत्य अनृतं दिटुं । माया संसार मइओ, माया तिजंति न्यान सहकारं ॥ ४६७ ।। आभिंतर ग्रंथ स उत्तं, संसारे सरनि तिक्त मोहंधं । ग्रंथं चौगइ समयं, न्यान सहावेन सयल तिक्तंति ॥ ४६८ ॥ वाहिज भिंतर ग्रंथा, मुक्कं जे दट्ट कम्म संजुत्ता । तिक्तंति भव्य जनयं, न्यान सहावेन ग्रंथ विमुक्कं ।। ४६९ ।। ग्रहनं जिनवर वयनं, ग्रहनं च अप्प भाव संजुत्तं । ग्रहनं तिअर्थ भावं, जोयंतो जोय जुत्तेही ॥ ४७० ॥ ग्रहनं दंसन न्यानं, चरनं चारित्र ग्रहण दु भेयं । ग्रहनं न्यान सहावं, अप्पा सुद्धप्प न्यान सभावं ॥ ४७१ ॥ संमत्तं संग्रहनं, न्यानं पंचंमि भाव उवलब्धं । अप्पा परमप्पानं, न्यान सहावेन मुक्त संचरनं ॥ ४७२ ।। व्रत तव संजम ग्रहनं, तिअर्थं तीर्थंकरेन संसुद्धं । सुद्धं सुद्ध सहावं, सुद्धं झानम्मि झाय परमप्पा ॥ ४७३ ।। पिच्छदि अप्प सरूवं, पिच्छदि नंत दंसनं ममलं । न्यानं च न्यान ममलं, अप्पा परमप्प केवलं भावं ॥ ४७४ ।। महावयं व्रत ग्रहनं, न्यान मयी न्यान सुद्ध सभावं । न्यानेन न्यान सुद्धं, महावय सुद्ध धरंति साहूनं ॥ ४७५ ॥ अप्पं अप्प सहावं, अप्पा परमप्प झान संजुत्तं । चिंतंतो परमप्पयं, अहिंसओ महावयं हुंति ॥ ४७६ ।। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी अनृत मयं न दिस्टं, त्रितं जानंति अप्प सभावं । सून्यं झान संजुत्तं, नितं ससहाव महावयं हुंति ॥ ४७७ ॥ स्तेयं नह दिदि, जिन उत्तं उत्त सव्वहा सव्वे । जिनरूवं जिन वयनं, न्यान सहावेन भाव उवएसं ॥ ४७८ ॥ बंभं बंभ सरूवं, अबंभ भाव सयल दोस परिचत्तो । अप्पा परमानंद, बंभ वयं महावयं हुंति ॥ ४७९ ।। पर पुद्गल परमानं, पुग्गल ससहाव सयल दोस परिचत्तो । अप्पा परमप्प रूवं, पुग्गल सहकार सेष परमानं ॥ ४८० ॥ पंच महावय सुद्ध, अप्पा अप्पेन अप्प ससरुवं । न्यानं अवहि संजुत्तं, मनपर्जय केवलं भावं ॥ ४८१ ।। दिग्व्रत सुद्धं सुद्धं, दिगम्बर परिनाम सुद्ध ससहावं । न्यानं न्यान सरूवं, दिव्रत महावयं हुंति ॥ ४८२ ।। देसो सुद्ध सहावं, उदेसनं तंपि दंसनं न्यानं । देसो उद्देस सुद्धं, देसव्रती महावयं हुंति ॥ ४८३ ॥ अन्यान अर्थ न दिट्ठदि, न्यान सहावेन भव्य उवसंतो । कील अप्प सहावं, अप्पा परमप्पओ हवई ॥ ४८४ ॥ मिच्छा भावे विरदो, विरदो संसार सरनि वावारे । अन्यान अर्थ विरदो, सुरदो सुद्ध चेयना भावो ॥ ४८५ ।। सिष्यावय चत्वारि, सिष्या दिष्या च न्यान संजुत्तो । सुरदो चेयन भावो, सिध्या वय उवएसनं तंपि ॥ ४८६ ॥ भोग उपभोग पडिमा, अतिथि सुयं विभाग संलेहनावंतो । विन्यानं जानंतो, सुद्ध सरूवं च न्यान संजुत्तो ॥ ४८७ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी भोगो संसार मइयो, अनृत असत्य सहिय जो मिथ्या । रागादि दोष विषयं, तिक्तंति अभाव सिध्ययं भनियं ॥ ४८८ ।। रागादिय उववंनं, पुन्यं पावं च दुष्य ससहावं । अन्यानं संतुह्र, भोगं सहकार सयल तिक्तं च ॥ ४८९ ॥ भोगं जिनेहि उत्तं, सुद्धं भोगं च सयल दोष परिचत्तो । मति न्यानं संतुटुं, भोगं सुद्धं संसार सरनि विरदोय ॥ ४९० ॥ आगम पुरान सुद्ध, अष्यर सुर विजनस्य पद अर्थ । अप्प सरूव सदिहूँ, अप्पा परमप्प सुद्ध संतुटुं ॥ ४९१ ।। उवभोग दुट्ठ भनियं, संसारे सरनि साधनं नित्यं । मिथ्यात राग सहियं, कुन्यानं विषय चिंतनं तंपि ॥ ४९२ ॥ जस्य मनस्य पसरो, तस्य परिनाम असुह सव्वेही । तिक्तंति सयल दोसं, न्यान सहावेन तिक्त उवभोगं ॥ ४९३ ।। जिन उत्तं उवभोगं, संसारे सरनि तिक्त अन्यानं । अध्यर पदं न जानदि, अवयासं अप्प सुद्ध परमप्पा ॥ ४९४ ॥ अवयास सुद्ध सुद्धं, दंसन न्यानेन सुद्ध चरनानं । चिंतंति भाव सुद्धं, उवभोगं च चेयना भावं ॥ ४९५ ।। अतिथि सुयं विभागं, मिथ्या मय राग दोस विरयंतो । अन्यानं नहु पिच्छ, सुद्ध सहावं च पिच्छए अप्पा ॥ ४९६ ।। सुयं विभागी सुद्धं, अन्यो पुग्गल विआनु अप्पानं । विविक्त सरूव सुद्धं, अप्पानं परमप्पयं जानं ॥ ४९७ ।। संलेहना सरीरो, इन्द्री मन पसरो दोस सलिहेई । सलिहई राय दोसं, मिथ्या अन्यान सल्य सलिहेई ॥ ४९८ ।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी सलिहई सयल विभावं, अप्पा अप्पेन चेयना सुद्धं । अप्पा परमप्पानं, निस्चय ठियं दंसनं सुद्धं ॥ ४९९ ।। बारह वय उवएस, धरंति भावे विसुद्ध सभावं । आसन्न भव्य पुरिसा, न्यान बलेन निव्वुए जंति ॥ ५०० ॥ तव बारह उवएसं, अप्प सहावं च दंसनं सुद्धं । चरनं चरित्तवंतं, साहति जे भव्य पुरिसस्या ॥ ५०१ ॥ वाहिज तव संसुद्धं, सुद्धं संमत्त सुद्ध ससहावं । सुद्धं दंसन न्यानं, सुद्धं चरनंपि सहाव तवयरनं ॥ ५०२ ॥ अनसन सयनं सुद्धं, मन वय कायेन सुद्ध तवयरनं । सयनं अप्प सहावं, परिनामं सुद्ध साधवा जुत्तं ॥ ५०३ ॥ अनसन अप्प सहावं, रागादि सयल दोस परिहरनं । मिथ्या कुन्यान सहावं, तिक्तंति सयन असुद्ध ससहावं ॥ ५०४ ।। अनसन अरूव रूवं, रूवातीतं च भाव चिंतंति । न्यान मई ससहावं, न्यान सहावेन अनसनं सुद्धं ॥ ५०५ ।। विरई संसार सुभावं, विरइ मिच्छात दोस परिनामं । रइयं सुद्ध सहावं, न्यान सहावेन अनसनं सुद्धं ॥ ५०६ ॥ न्यानेन न्यान सुद्धं, कुन्यानं तिजंति सव्वहा सव्वे । इन्द्री विषय विमुक्कं, न्यान सहावेन अनसनं ममलं ॥ ५०७ ।। अप्प सहावं निलयं, मम अप्पा निम्मलं च परमप्पा । संमिक् दंसन दर्स, आमोदर्ज सुद्धमप्पानं ॥ ५०८ ॥ संमिक् न्यानं जानदि, संमिक् चरनं चरंति भावेन । संमिक् परिनै सुद्धं, आमोदर्ज सुद्धमप्पानं ॥ ५०९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनंत दर्सन दरसै, जानदि पिच्छेई न्यान ससहावं । तवयरनं संजुत्तं, आमोदर्ज न्यान सहकारं ॥ ५१० ।। वस्तु संष्य परमानं, वासं संसार तिक्त मोहंधं । मिच्छा तव वय विरयं, रागादि दोस विषय विरयंति ॥ ५११ ।। विरइ परिनाम असुद्धं, वासं विरयंमि न्यान सहकारं । जं चिय असुह परिनामं, विरइ परमाद न्यान सहकारं ॥ ५१२ ।। तवयरनं न्यान सहावं, उग्र तवयरन ऊर्ध सभावं । दिति सुदंसन सुद्धं, घोरानव संसार सरनि मुक्तस्य ॥ ५१३ ।। वासं तिक्त सुयं मे, न्यान बलेन तिक्त संसारे । दंसन न्यान सु समयं, न्यान बलेन सुद्ध तवयरनं ॥ ५१४ ।। अप्प सरूवं पिच्छदि, जानदि न्यानेन दव्व पजावं । न्यानेन न्यान सुद्धं, वासं तिक्तंति इत्थु संसारे ॥ ५१५ ।। रसियं मिथ्यात मइयं, रसियं संसार सरनि वासंमि । कुन्यानं रसियानं, न्यान सहावेन सयल तिक्तंति ॥ ५१६ ।। रसियंति मूढ भावं, मल पचीस रसिय सभावं । रसियं संसार वने, न्यान सहावेन सयल तिक्तंति ॥ ५१७ ।। विकहा वसन सहावं, आरति रौद्रस्य रसिय सभावं । परपंच विभ्रम रसियं, न्यान सहावेन सयल तिक्तंति ॥ ५१८ ।। सुद्धं रसिय सुन्यानं, दंसन वर न्यान सुद्ध तवयरनं । अप्पा परमप्पानं, न्यान सहावेन सुद्ध तवयरनं ॥ ५१९ ।। विविक्त आसन सेज्जा, पुग्गल जीवान विविक्तं सुद्धं । पुग्गल सरनि विमुक्कं, अप्पा अप्पेन दंसनं सुद्धं ॥ ५२० ।। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी विविक्तं घाय चउक्कं . विविक्त कम्मान तिविह जोएन । मिथ्यात राग विगतं, सुह असुहं विगत परिनय हुंति ॥ ५२१ ॥ विविक्त सेज्जासन, विविक्त मन चवल इन्द्रि विषयानं । न्यान बलेन विमुक्कं , अप्पा परमप्प न्यान स सरूवं ॥ ५२२ ॥ काय कलेसं उत्तं, कल लंक्रित कम्म तिजंति संसारे । सुद्ध सरूवं पिच्छदि, न्यान सहावेन काय अकलेसं ॥ ५२३ ॥ काय कलेस असुद्धं, सरीर सहकार इंद्रियं विषयं । अप्प सहावं विमलं, न्यान सहावेन काय अकलेसं ॥ ५२४ ॥ अप्प सहावं सुद्धं, पर दव्वं विरय सव्वहा सव्वे । अप्प सहावे रूवं, न्यान सहावेन हुंति तवयरनं ॥ ५२५ ।। वाहिज तव उवएस, आभिंतर तव सुद्ध ससहावं । अप्प सरूवं पिच्छदि, अप्पा परमप्प तिविह जोएन ॥ ५२६ ॥ प्रायच्छित विनयेनं, वैयाव्रिति सुद्ध ध्याय उवएसं । उत्सर्ग उवएसं, झानं झायंति सुद्धमप्पानं ॥ ५२७ ॥ प्राच्छितं नहु पिच्छदि, अप्राच्छितं सुद्ध परमप्पानं । मिच्छा मयं न दिस्टदि, सुद्ध सहाव सरूव पिच्छंति ॥ ५२८ ॥ रागादि दोस रहियं, धम्म झान झायंति तं मुनिना । कुन्यान सल्य रहियं, रूवत्थं सरूव झानत्थं ॥ ५२९ ॥ इंदी विषय विमुक्कं, अप्प सरूवं च चेयना सुद्धं । मन चवलं रुंधतो, संमिक् दर्सन दर्सनं सुद्धं ॥ ५३० ॥ असुद्ध परिनय विरयं, सुद्ध परिनमई सरूव पिच्छंति । अप्पा अप्पम्मि रओ, न्यान सहावेन सुद्ध तवयरनं ॥ ५३१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विन्यानं स सहावं, अप्पा पर पिच्छि विरय बहिरप्पा । विन्यान न्यान झायदि, अप्पा परमप्प सुद्ध विन्यानं ॥ ५३२ ।। विनयेन सुद्ध भावं, मय मिच्छात दोस विरयंमि । आद सहावं विनयं, सल्यं कुन्यान दोस विरयंति ॥ ५३३ ।। विनय पदानं अंगं, असुद्धं संसार सरनि विरदो यो । परिनाम सुद्ध भावं, न्यान सहावेन जोइ तवयरनं ॥ ५३४ ।। वैयाव्रतं स उत्तं, वय संजम वृत्ति सुद्ध सम्मत्तं । वैयाव्रत न्यान सहावं, मिच्छा कुन्यान सयल विरयंमि ॥ ५३५ ॥ अप्पा परमप्पानं, पिच्छै लोयालोयंमि अवयासं । रूवत्तं रूवातीतं, झानं झायंति सुद्धमप्पानं ॥ ५३६ ॥ लिंगं च जिनवरिंद, धम्मं सुक्कं च भावना सुद्धं । झायंति झान जुत्तं, वैयाव्रतं च सुद्ध ससरूवं ॥ ५३७ ॥ षिउ उवसम संजुत्तं, षिपनिक भावेन सयल दोस परिचत्तं । ऋजु विपुलं च उवन्नं, न्यान सहावेन हुँति तवयरनं ॥ ५३८ ॥ सुद्धं सुद्ध सरूवं, सुद्धं झायंति सुद्धमप्पानं । मिच्छा कुन्यान विरयं, सुद्ध सहावं च सुद्ध झानत्थं ॥ ५३९ ।। सुद्धं जिनेहि उत्तं, असुद्धं संसार सरनि विरदोयं । सुद्धं परमानंद, सुद्ध सहावं च निम्मलं सुद्धं ॥ ५४० ॥ सुद्धं ध्याय स उत्तं, विभ्रम परपंच तिक्त मोहंधं । सुद्धं दंसन सुद्धं, अप्पा सुद्धप्प परम सुद्धं च ॥ ५४१ ।। कायोत्सर्ग स उत्तं, उत्सर्ग ऊर्ध सुद्ध सभावं । वेदंति विंद रूवं, आद सहावं च निम्मलं झानं ॥ ५४२ ।। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी संमिक दर्सन सुद्ध, उत्सर्ग ऊर्ध चेयना भावं । गय संकप्प वियप्पं, अप्पा परमप्प तुल्य संकलियं ॥ ५४३ ।। तिअर्थं समय सुद्धं, जानंति रिजु विपुल न्यान सभावं । उत्सर्ग ऊर्ध गुनं, न्यान सहावेन सुद्ध तवयरनं ॥ ५४४ ॥ ध्यानं झान समत्थं, तुढे तह आसवेवि दुवियप्पो । घाय चवक्कय मुक्कं , अप्पानं सुद्ध चेयना रूवं ॥ ५४५ ॥ सुक्लं झानं झायदि, परिनाम संसार सरनि मुक्तस्य । सक्तिं च विक्त रूवं, अइसइवंत सुरिद्धि संजुत्तं ॥ ५४६ ।। झानं अप्प सरूवं, अप्पा परमप्प चेयना सुद्धं । झायंति ऊर्ध सुद्धं, झान समत्थं च न्यान तवयरनं ॥ ५४७ ॥ बारह विहि उवएसं, झानं झायंति सुद्ध तवयरनं । जे साहति स पुरिसा, तत्तो पुन लहइ निव्वानं ॥ ५४८ ॥ दह विहि संमत्तेनय, न्यान उवदेस अर्थ वीजंमि । संषेप सुत्त उत्तं, विवहार अवगाहनेन संजुत्तं ॥ ५४९ ।। प्रवचन केवलि उत्तं, परमं संमत्त सुद्ध सभावं । दह विहि न्यान सरूवं, अप्पा अप्पेन सुद्ध संमत्तं ॥ ५५० ॥ न्यानं न्यान सरूवं, अन्यानं तजंति मिच्छ संजुत्तं । संसार सरनि तिक्तं, न्यानेन न्यान अप्प सभावं ॥ ५५१ ॥ न्यानं सुद्ध सहावं, रागादि दोस सयल विरयंमि । विरयं असुद्ध भावं, अप्पा परमप्प न्यान संमत्तं ॥ ५५२ ॥ उवएसं संसुद्धं, सुद्धं अप्पान अप्पनो सुद्धं । सुद्धं जिनेहि कहियं, सुद्धं संमत्त सुद्ध उवएसं ॥ ५५३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुद्धं जिन उत्त परं, असुद्ध तिक्तं च सव्वहा सव्वे । सुद्धं उवएस न्यानं, चरनं जिन उत्त उवएस ॥ ५५४ ॥ सुद्धं च सुद्ध झानं, असुद्धं संसार सरनि मुक्तस्य । सुद्धं परमानंद, उवएसं सुद्ध संमत्तं ॥ ५५५ ॥ अर्थ तिअर्थं सुद्धं, सम संमत्त दंसनं सुद्धं । अर्थ समय तिअर्थ, उवएसं अर्थ अर्थ समर्थ ॥ ५५६ ॥ अर्थ अप्प सरूवं, अनर्थं अन्यान मिच्छ विरयंमि । अनेय अनर्थं भावं, तिक्तंते सुद्ध न्यान सहकारं ॥ ५५७ ।। अर्थ न्यान सरूवं, तिलोयं त्रिभुवन तिअर्थ संसुद्धं । विंदस्थं विदंतो, सुद्ध सरूवं तिअर्थ संमत्तं ॥ ५५८ ।। वीजं च न्यान सुद्धं, सुद्धप्पा न्यान दंसन समग्गं । चरनं दुविहि सहावं, सहकारे तवं सुद्ध वीयंमि ॥ ५५९ ॥ देव गुरु धम्म सुद्धं, मिथ्या कुन्यान सयल विरयंमि । संसार सरनि विरयं, वीयं संमत्त सुद्धमप्पानं ॥ ५६० ।। संषेप सुद्ध मइयो, सुयं षिपति नंत संसारे । कम्म मल षिपति भावं, न्यान सहावेन सुयं संषेपं ॥ ५६१ ॥ दंसन न्यान सहावं, अप्प सहावेन सुद्ध सभावं । सुद्धं सुद्ध सरूवं, संमत्तं सुद्ध ममल संषेपं ॥ ५६२ ॥ सूत्रं सुद्ध सहावं, संसूत्रं सास्वतेन चेयना भावं । विकहा वसन असूत्रं, संसारे सरनि सयल विरयंमि ॥ ५६३ ॥ सूत्रं जं जिन उत्तं, तं सूत्रं सुद्ध भाव संकलियं । असूत्रं नहु पिच्छदि, सूत्रं ससरूव सुद्धमप्पानं ॥ ५६४ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी विवहारं संमत्तं, देव गुरू सुद्ध धम्म संजुत्तं । दंसन न्यान चरित्तं, मल मुक्कं विवहार संमत्तं ॥ ५६५ ॥ न्यानेन न्यान दिट्ट, कुन्यानं मिच्छ असह विरयंमि । विरयं सुह असुहं च, विवहारं सुद्धमप्पानं ॥ ५६६ ॥ अवगाहन संमत्तं, अवगहइ अंग पुव्व वित्थरनं । अवगहै सुद्ध भावं, असुद्धं सर्वं च विवरीदो ॥ ५६७ ॥ अवगहइ सुद्ध झानं, आरति रौद्रं च सयल विवरीदो । अवगहइ अप्प अप्पं, संमिक् दंसनं च अवगहनं ॥ ५६८ ॥ पदस्तं पिंडस्तं, रूवस्तं रूवतीत झानत्थं । अवगहै धम्म सुक्कं, अवगाहन न्यान झान संमत्तं ॥ ५६९ ॥ प्रवचन केवलि उत्तं, जे उत्तं केवलि नंत दिस्टि संदर्स । तं वयन सुद्ध वयनं, असुद्ध वयनंपि समय विवरीदो ॥ ५७० ॥ जं केवलि उवएस, तं वयनं सुद्ध सार्धं निस्चय । तं आलाप चवंतं, जं केवल विमल केवलं सुद्धं ॥ ५७१ ॥ परमं संमत्त उत्तं, परमं झानस्य परम भत्तीए । परमं परमप्पानं, अप्पा परमप्प केवलं सुद्धं ॥ ५७२ ।। परमं परमप्पानं, अप्प सरूवं च सुद्धमप्पानं । रागादि दोस विरयं, झानं झायंति परम संमत्तं ॥ ५७३ ॥ सम्मत्तं उवएस, दह विहि संमत्त अप्प अप्पानं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा लहइ निव्वानं ॥ ५७४ ॥ पंच इंद्री संवरनं, रागादि दोसं च विषय संवरनं । मन गारव संवरनं, थावर रष्या च संजमं सुद्धं ॥ ५७५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिह्वा स्वाद असुद्धं, स्वादं पंच भेय विरयंतो । विरयं असुद्ध भावं, स्वादं पंच न्यान ममल वित्थरनं ॥ ५७६ ।। कुन्यान वयन तिक्तं, कुच्छिय आलाप मिच्छ विरयंमि । वयनं जिन उवएस, सुद्ध सरूवं च वयन उवएसं ॥ ५७७ ॥ असुद्धं न चवंतो, रागादि दोस असत्य विरयंमि । इन्द्री विरय अतींद्री, अतींद्री न्यान स्वाद स सहावं ॥ ५७८ ॥ सपरसन इन्द्रि असुद्धं, मयमत्त अबंभ भाव विरयंति । विरयं परिनाम असुद्धं, सुद्धं भावं अतीन्द्रियं सुद्धं ॥ ५७९ ॥ घ्रानेन्द्री गंध सुगंधं, संसारे सरनि प्रान विरयंमि । घ्रानं अप्प सहावं, सुद्धं स सहाव घ्रान अतीन्दी ॥ ५८० ॥ दिट्ठदि असुद्ध भावं, दिट्ठदि पंच वरन असुह अवियारं । तिक्तंति भाव असुद्धं, दिदि सुद्ध दंसनं ममलं ॥ ५८१ ।। दिट्ठदि न्यान सहावं, दिट्ठदि न्यान पंच विन्यानं । दिट्ठदि चरन सरूवं, अप्पा परमप्प अतीन्द्रिया दिट्ठी ।। ५८२ ॥ सूत्रं सवन असुद्धं, सब्दं सप्तमि असुद्ध विरयंमि । सब्दं न्यान सरूवं, जिन उत्तं सवन सुद्ध सद्दहनं ।। ५८३ ॥ असद्ध सब्द तिक्तंति, संसारे सरनि सब्द तिक्तं च ।। सब्दं सुद्ध विसुद्ध, न्यान मयो सब्द सुद्ध अतीन्द्री ॥ ५८४ ॥ पंचेन्द्री संवरनं, पंच विय भाव विषय संवरनं । पुग्गल सुभाव विरयं, न्यान सहावेन अतीन्द्रिया सव्वे ॥ ५८५ ॥ पुग्गल विषयं जानदि, हलुवं गरुवं च रुष्य चिक्कनयं । तप्तं सीत सुभावं, कठिनं कोमल असुद्ध विरयंमि ॥ ५८६ ।। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी विन्यानं जानंतो, हलुवं कम्मं विमुक्त संसारे । गरुवं च कम्म भारं, तं विरयं सुद्ध न्यान सहकारं ॥ ५८७ ॥ रुष्यं न्यान सहावं, चिक्कन धन कम्म सयल विरयंमि । न्यान सहावं जानदि, ससरीरं न्यान निम्मलं सुद्धं ॥ ५८८ ॥ उन्हं च कम्म डहनं, सीयं संसार भाव तिक्तं च । कठिनं परिनाम विरयं, कोमल परिनाम अप्प ससरूवं ॥ ५८९ ।। गुन दोसं विन्यानं, जानदि न्यानेन दव्व पज्जायं । विन्यान न्यान सहावं, ससरीरं विमल अप्पनो सुद्धं ॥ ५९० ॥ पुग्गल सुभाव जाने, संवरनं सव्व ममल न्यानस्य । तम्हा मन संजमनं, अप्पा परमप्प सुद्ध मनु धरनं ॥ ५९१ ।। मन संजमनं उत्तं, असुहं परिनाम सयल विरयं च । विरयं मिच्छ सुभावं, विरयं संसार सरनि दुष्यानं ॥ ५९२ ॥ रागादि दोस विरयं, विरयं ममत्त पुन्य पावं च । परिनाम असुह विरयं, इंद्री विषयं च सव्व विरयंमि ॥ ५९३ ॥ रइयं सुद्ध सहावं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं । रइयं दंसन न्यानं, चारित्तं चरन रइय विविहं च ॥ ५९४ ॥ संमत्त सुद्ध भावं, न्यान सहावेन विमल भावं च । मल मुक्कं दंसन धरनं, न्यानं वरताई मनुव संवरनं ॥ ५९५ ॥ थावर रष्या सहियं, असुहं भावं च सयल तिक्तं च । मैत्री कृपा स उत्तं, षट्काई रष्यनं सुद्धं ॥ ५९६ ॥ गुनवंतोय प्रमोदं, अवरे सव्वस्स मैत्री कृपानं । सुद्ध सहावं पिच्छदि, षट्काई रष्यना इंति ॥ ५९७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी वारह अव्रत कहियं, सुद्ध भाव विमल न्यान संवरनं । सुद्ध सरूवं पिच्छदि, न्यान सहावेन सयल संवरनं ॥ ५९८ ॥ तेरह विहस्य चरनं, महावय पंच गुत्ति तिनोयं । समिदी पंच विहवं, चारित्तं उवएसनं तंपि ॥ ५९९ ।। अहिंसा ब्रित अस्तेयं, बंभापरिग्रहं पंच वय सुद्धं । जे पालंति विसुद्ध, चारित्तं चरन सुद्ध संजुत्तं ॥ ६०० ॥ हिंसा असत्य सहियं, अत्रित नितं न जानदि सुद्धं । स्तेयं पद लोपं, बंभं च अबंभ तिक्तं च ॥ ६०१ ॥ पर पुग्गल परमानं, पुग्गल ग्रहनं च सेष संवरनं । भाव दुतिय संजोयं, पार्छतो लहइ निव्वानं ॥ ६०२ ॥ पंच महावय धरनं, तद्भव संसार कम्म विमुक्कं । पुग्गल प्रमान सुद्धं, अप्पा परमप्प लहइ निव्वानं ॥ ६०३ ॥ मन गुत्ती उवएसं, मन असुहं च असुद्ध परवेसं । मन परिनै तिक्तं च, मन सुद्धप्पा प्रवेस मिलियं च ॥ ६०४ ।। जहं जहं मन परवेसं, तहं तहं न्यान क्रिनि संचरियं । गुपितस्य चरन सुद्धं, मन अप्पा परमप्प ममल एकत्वं ॥ ६०५ ।। तम्हा मन गुत्तीए, जम्हा सुद्ध झान स सरूवं । कम्मे घनानि डहनं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं ॥ ६०६ ।। वयनं गुत्ति समासं, जं वयनं कहंपि नहु दिहें । तं वयन भावलद्धी, जिन उवएसं समायरहिं ॥ ६०७ ॥ वयनं सुद्ध सहावं, वयनं जं केवल न्यान ससरूवं । तं वयन गुत्ति जानदि, वयनं प्रवेस सुद्ध संमत्तं ॥ ६०८ ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी वयनं अविचल सुद्धं, वयनं भासेइ सुद्ध संमत्तं । अहं वयन सहावं, अर्ह वयनं च केवलं सुद्धं ॥ ६०९ ॥ वय गुत्ति जं पिच्छदि, जानदि पिच्छेइ दंसनं सुद्धं । वयनंपि सुद्ध न्यानं, वय गुत्ति चरन सुद्ध संजुत्तं ॥ ६१० ॥ काई गुत्ति विसुद्धं, क्रित कारित विसुद्ध परिनाम । क्रितं च कम्म डहनं, कारित तं तिविह कम्म विवरीदो ॥ ६११ ॥ क्रितं च सुद्ध झानं, न्यानं पंचंमि क्रितं मन सुद्धं । व्रत संजम तवयरनं, काया क्रितं च सुद्ध सभावं ॥ ६१२ ॥ कारित सुद्ध उवएस, जं क्रित कारित जिनवरिंदेहिं । तं भाव सुद्ध करनं, काय गुत्ती च मुक्ति गमनं च ॥ ६१३ ॥ समिदी समदर्सीए, सम दंसन न्यान चरन समभावं । सम अप्पा परमप्पा, संमत्तं सुद्ध समय दर्सीए ॥ ६१४ ।। ईर्जा समिदि स उत्तं, ईर्ज भावेन दंसनं न्यानं । चरनंपि थान सुद्धं, तिअर्थं ईर्ज पंथ निवेदं ॥ ६१५ ॥ उर्वकारं ह्रियंकारं, श्रियंकारं तिअर्थ संजुत्तं । पदार्थ पद विंद, ईर्ज भावेन दर्सए मगं ॥ ६१६ ॥ संमिक् दर्सन सुद्धं, उवंकारेन विंद स्थान संदिढं । ह्रियंकारं अरहतं, न्यान मयो न्यान सुद्ध सम्मत्तं ॥ ६१७ ॥ श्रींकारे च सुभावं, अवधि संजुत्त न्यान ससरूवं । मन पर्जय जानंतं, पद विंदं सुद्ध केवलं ईज ॥ ६१८ ॥ पंच न्यान संसुद्ध, कुन्यानं मिच्छ भाव विलयंति । ईर्जा पंथ निवेदं, ईर्जा समिदिं च अप्प परमप्पं ॥ ६१९ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी भाषा समिदि स उत्तं, जं उत्तं जिनंद केवलं न्यानं । तं भाषा परमानं, न्यान सहावेन भाष्य संजुत्तं ॥ ६२० ॥ भाषा अविचल सुद्धं, मय मिच्छात दोस परिहरनं । भाषा जिन उवएसं, तं भाषा समिदि सुद्ध जानेहि ॥ ६२१ ।। एषन समिदि स उत्तं, ईर्ज पंथं च पिच्छनं सुद्धं । विन्यान न्यान रूवं, पिच्छंतो सुद्ध दंसनं विमलं ॥ ६२२ ॥ पिच्छै न्यान सरूवं, पिच्छै चरनंपि सुद्ध संमत्तं । पिच्छै अप्प सहावं, अप्पा परमप्प विमल पिच्छेइ ।। ६२३ ।। आदानं निषेपं, आद सहावेन दसए सुद्धं । निवष्यवड़ कम्म तिविहं, आद सहावेन सयल दोस निषेपं ॥ ६२४ ।। आद सहावं झानं, अप्पं च अप्प दंसनं न्यानं । चरनं दुविहि संजुत्तं, कम्मं निषवै लहइ निव्वानं ॥ ६२५ ॥ प्रतिस्ठापन समिदीओ, झानं धम्मं च सुक्क झायति । प्रतिस्ठापना संजुत्तं, झान सरूवेन अप्प संतुटुं ॥ ६२६ ॥ झानेन न्यान जुत्तो, मल रहिओ सयल दोस परिचत्तो । गय संकप्प वियप्पो, पंचम समिदी सु झान संजुत्तो ॥ ६२७ ।। समिदी पंच विसुद्धं, तेरह विहि चरन संजमं भनियं । सम्मत्त चरन चरनं, संजम संजुत्त लहइ निव्वानं ॥ ६२८ ।। चरनं सुद्ध सहावं, चरनं संसार सरनि तिक्तं च । चरनंपि सुद्ध अप्पा, परमप्पा परम मोण्यस्य ।। ६२९ ।। ऐयं संजोगे नय, अवध्यं चिंतेइ लेइ गुरू भारं । अप्पा परमप्पानं, महावयं हुंति साहूनं ॥ ६३० ॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी जंमन मरन विमुक्कं, अप्पा अप्पेन अप्पयं सुद्धं । परमप्पा परमप्पयं, परम सरूवं च चेयना सुद्धं ॥ ६३१ ।। सून्यं झान समिद्धं, झानं झायंति निम्मलं सुद्धं । अप्पा परमप्पानं, मन पर्जय न्यान निम्मलं दि8 ।। ६३२ ॥ रिजुमति सुद्ध सरूवं, रूवातीतं च विगत रूवेन । जम्बूदीव सुदिह्र, मनपर्जय निम्मलं विमलं ॥ ६३३ ॥ विपुल मति सुद्ध सहावं, विमलं च सुद्ध केवलं न्यानं । दीव अढाई सुद्धं, मन पर्जय न्यान सुद्ध उववनं ॥ ६३४ ।। अरहतं सर्वन्यं, केवल भावेन सुद्ध ससरूवं । अप्पा परमानंद, अठारह दोस विवज्जिओ विमलं ॥ ६३५ ॥ अठदह दोस वियानं, दोसं गुन रूव भेय विन्यानं । रूवं रूव समत्थं, विन्यानं न्यान जानि सभावं ॥ ६३६ ॥ षुधा त्रिषा परिहरनं, संसारे सरनि भाव तिक्तं च । न्यान सहावं सुद्धं, न्यान अहारेन अन्नपान सहकारं ॥ ६३७ ।। भयं च दोषाईनं, भयं च संसार सरनि तिक्तं च । न्यान सहाव सरूवं, भय अभयं दोष तिक्त ससरूवं ॥ ६३८ ॥ रागो मोह सचित्तं, संसारे तजंति सुद्ध ससरूवं । न्यानं राग सहावं, न्यानं मोहेन तजंति मोहंधं ॥ ६३९ ॥ न्यान सहावे चिंतं, चिंता संसार तिजंति परिनाम । चिंतं अप्प सहावं, अप्पा परमप्प केवलं सुद्धं ॥ ६४० ॥ वृद्धं तु अल्प मृत्युं, चौगइ भावेन तिजंति सभावं । न्यानेन न्यान सहावं, अजरामर सासयं ठानं ॥ ६४१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्वेदं षेद संजुत्तं, भय कारनेन सयल तिक्तं च । न्यान सहाव सरूवं, स्वेदं च परम केवलं न्यानं ॥ ६४२ ॥ मदो रति संजुत्तं, संसारे सरनि सयल तिक्तं च । न्यान बलेन विसुद्धं, ममात्मा सुद्ध दंसनं विमलं ॥ ६४३ ।। विस्मय जननी निद्रा, संसारे सुभाव तिक्त मन विचलं । न्यान सहावे सुद्धं, जंमन मरनं च उवसमं भनियं ॥ ६४४ ॥ अठ दह दोस विमुक्कं, न्यान सहावेन दोस परिचत्तं । न्यानं न्यान सरूवं, उत्पन्नं विमल केवलं न्यानं ॥ ६४५ ।। सजोगे केवलिनो, तेरहमे गुनठान न्यान संजुत्तो । अप्पा अप्प सरूवं, अरुहो देओ मुनेअव्वो ॥ ६४६ ॥ आहारो ससरीरो, अतीन्द्री न्यान आहार संजुत्तो । चौदस प्रान सरूवं, अप्पा परमप्प लद्ध सभाओ ॥ ६४७ ।। वाहिज दोस रहिओ, आहार निहार विवज्जिओ सुद्धो । न्यान आहार संजुत्तो, न्यानेन न्यान अप्प परमप्पा ॥ ६४८ ॥ एरिस गुनेहि सुद्धो, अइसय वर न्यान दंसनं समग्गं । पडिहारं संजुत्तं, भावन भावंति विमल अरहंतं ॥ ६४९ ॥ अरहंतो अरुहो देओ, रहिओ संसार सरनि विगतोयं । विगतं अन्यान मयं, न्यान सहावेन तिलोय दर्संतो ॥ ६५० ॥ अरुहं अरुह सरूवं, न्यान बलेन तिलोय सम सुद्धं । संमिक् दर्सन दर्स, उत्पन्नं विमल केवलं न्यानं ॥ ६५१ ॥ अरुहो देओ झायदि, ह्रींकारे सुद्ध दंसनं विमलं । विमलं विमल सहावं, अरुहो देओ सुद्ध झान संजुत्तो ॥ ६५२ ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी सिद्धं सिद्धि संपत्तं, अट्ठ गुनं न्यान केवलं सुद्धं । अटुंमि पुहमि समिधं, सिद्ध सरूवं च सिद्धि संपत्तं ॥ ६५३ ।। संमत्त न्यान दंसन, बल वीरिय सुहम हेवं च । अवगाहन गुन समिधं, अगुरुलघु तिलोय निम्मलं विमलं ॥ ६५४ ॥ सिद्धं सहाव सुद्धं, केवल दंसन च न्यान संपन्नं । केवल सुकिय सुभावं, सिद्धं सुद्धं मुनेयव्वा ॥ ६५५ ॥ षट् दव्व दव्व सुद्धं, काया पंचत्थि विमल सुपसिद्धं । तत्त्वं सप्त सरूवं, पदार्थं पद विंद केवलं न्यानं ॥ ६५६ ॥ चौदस प्रान पसिद्धं, अतीन्द्रिय न्यान सयल संमिद्धं । नंत चतुस्टय सहियं, सिद्धं सुद्धं च सिद्धि संपत्तं ॥ ६५७ ॥ मिच्छा सासन मिस्रो, अविरै देसव्रत सुद्ध संमिद्धं । प्रमत्त अप्रमत्त भनियं, अपूर्व करन सुद्ध संसुद्धं ॥ ६५८ ॥ अनिवर्त सूक्ष्मवंतो, उवसंत कषाय पीन सुसमिद्धो । सजोग केवलिनो, अजोग केवली हुंति चौदसमो ॥ ६५९ ।। ए चौदस गुनठानं, हुंति ससहाव सुद्धमप्पानं । अप्प सरूवं पिच्छदि, अप्पा परमप्प केवलं न्यानं ॥ ६६० ॥ तत्त्वं च दव्व कायं, पदार्थं सुद्ध परमप्पानं । हेय उपादेय च गुनं, वर दंसन न्यान चरन सुद्धानं ॥ ६६१ ॥ टंकोत्कीर्न अप्पा, दंसन मल मूढ़ विरय अप्पानं । अप्पा परमप्प सरूवं, सुद्धं न्यान मयं विमल परमप्पा ॥ ६६२ ॥ रूव भेय विन्यानं, नय विभागेन सद्दहं सुद्धं । अप्प सरूवं पिच्छदि, नय विभागेन सार्धं दिढें ॥ ६६३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उग्ग वत तवादि जुत्तं, तव वय क्रिया सूतं च अन्यानं । मिच्छात दोस सहियं, मिच्छत्त गुनस्थान व्रत संजुत्तं ॥ ६६४ ।। एवं च गुन विसुद्धं, असुहं अभाव संसार सरनि मोहंधं । अप्प गुनं नहु पिच्छदि, संसय रूवेन दुभाव संजुत्तं ।। ६६५ ॥ अप्पा परु पिच्छंतो, संसय रूवेन भावना जुत्तो । अंतराल वृतीओ, न भवनि न सिहरि वैसंतो ॥ ६६६ ॥ संसय रूव सहावं, मिच्छा कुन्यान न्यान जानंतो । व्रत संजमं च धरतो, सासादन गुनठान व्रत संजुत्तो ।। ६६७ ।। मिनं मिश्र सहावं, षट् दर्सन सुभाव संजुत्तो । अप्पा परु जानंतो, जिनोक्त दंसन न्यान चरन बूझंतो ।। ६६८ ॥ न्याइक बौद्ध संजुत्तो, चारवाक सिव भट्ट पिच्छंतो । षट् दर्सन मिस्रतो, दव्व काय तत्त जानंतो ॥ ६६९ ॥ व्रत क्रिया संजुत्तो, तव संजम मिच्छ भाव पिच्छंतो । कुऔधि कुरिधि संजुत्तो, दधि गुड मिस भाव मिनंतो ॥ ६७० ॥ राग मय मोह सहिओ, मिच्छा कुन्यान सयल संजुत्तो । पुन्य सहावे उत्तो, रागमय मिन गुनस्थान संजुत्तो ।। ६७१ ।। अविरै सम्माइट्ठी, जानै पिच्छेई सुद्ध संमत्तं । षट् दव्व पंच कायं, नव पयत्थ सप्त तत्तु पिच्छंतो ॥ ६७२ ।। अप्प सरूवं पिच्छदि, वर दंसन न्यान चरन पिच्छंतो । सहकारे तव सुद्ध, हेय उपादेय जानए निस्चं ॥ ६७३ ॥ सुद्धं सुद्ध सहावं, देवं देवाधि सुद्ध गुरू धम्मं । जानै निय अप्पानं, मल मुक्कं विमल दंसनं सुद्धं ॥ ६७४ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी पंचाचार वियानदि, परिनय सुद्ध भाव संमत्तं । जिन वयनं सद्दहनं, सद्दहनं सुद्ध ममल संमत्तं ॥ ६७५ ॥ रागादि दोस विरयं, असुद्ध परिनाम भाव विरयंतो । विरह पमाइ सव्वं, विरयं संसार सरनि मोहंधं ॥ ६७६ ॥ मिच्छात समय मिच्छा, समय प्रकृति मिच्छ सभावं । कषायं अनंतानं, तिक्तंति प्रकृति सप्त सभावं ॥ ६७७ ।। जिन वयनं सद्दहनं, सद्दहै अप्प सुद्ध सभावं । मति न्यान रूव जुत्तं, अप्पा परमप्प सद्दहै सुद्धं ॥ ६७८ ।। आरति रौद्रं च विरयं, धम्म ध्यानं च सद्दहै सुद्धं । अविरय सम्माइट्ठी, अविरत गुनठान अव्रितं सुद्धं ॥ ६७९ ॥ देस ब्रिति संजुत्तं, एको उद्देस वय गहई सुद्धं । अविरय गुन संजुत्तं, सुत न्यानं च भाव उववनं ॥ ६८० ॥ दंसन वय सामाई, पोसह सचित्त रायभत्तीए । बंभारंभ परिग्गह, अनुमनु उद्दिस्ट देस विरदोय ॥ ६८१ ॥ पंच अनुव्वयाई, व्रत तप क्रियं च सुद्ध सभावं ।। न्यान सहावदि सुद्धं, सुद्धं च अप्प परम पद विंदं ॥ ६८२ ॥ अप्पा अप्प सरूवं, विरइ मिच्छात दोस संकाई । अवयास सुद्ध धरनं, मनरोहो निय अप्पानं ॥ ६८३ ॥ मन वयन काय सुद्धं, उक्तं सभाव निस्च जिनवयनं । दत्तं पत्त विसेषं, एको उद्देस देसव्रत ग्रहनं ॥ ६८४ ।। अविरय भाव संजुत्तं, अनुवय भाव सुद्ध संधरनं । धम्मं झानं झायदि, मति सुत न्यान संजुदो सुद्धो ॥ ६८५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अवहि उवन्नो भावो, वय गहनं भाव संजदो सुद्धो । वैरागं संसार सरीरं, भोगं तिजंति भोग उवभोगं ॥ ६८६ ।। संमत्त सुद्ध चरनं, अवहिं चिंतेड़ सुद्ध ससरूवं । अप्पा परमप्पानं, परमप्पा निम्मलं सुद्धं ॥ ६८७ ।। ग्रंथं बाहिर भिंतर, मुक्कं संसार सरनि सभावं । महावयं गुन धरनं, मूलगुनं धरंति सुद्ध भावेन ॥ ६८८ ।। दंसन दह विहि भेयं, न्यानं पंच भेय उवएसं । तेरह विहस्य चरनं, न्यान सहावेन महावयं हुंति ॥ ६८९ ।। ध्यानं च धम्म सुक्कं, आरति रौद्रं न दिस्टि दिस्टंतो। अप्पा परमप्पानं, न्यान सहावेन महावयं हुंति ॥ ६९० ॥ अप्रमत्त अप्रमानं, धर्म सुक्कं च झान निम्मलं सुद्धं । अवहि रिधि संजुत्तो, घिउ उवसम भाव संसुद्धं ॥ ६९१ ।। विक्त रूव स दिट्ठी, विगतं संसार सरनि भावं च । सुद्धं परमानंद, न्यान सहावेन सुद्ध तवयरनं ॥ ६९२ ।। अपूर्व करण अपूर्वं, अवधिं संजुत्त निम्मलं सुद्धं । न्यान सहावं नित्यं, अप्पा परमप्प भाव संजुत्तं ।। ६९३ ।। अनिवरतं ससहावं, सुद्ध सहावं च निम्मलं भावं । षिउ उवसमं सदर्थं, न्यान सहावेन अनिवर्तयं सुद्धं ॥ ६९४ ।। सूष्यम भेय संजुत्तं, घिउ उवसम भाव संजदो सुद्धो । निम्मल सुद्ध सहावं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं ॥ ६९५ ।। घाय चवक्कय विरयं, नंत चतुस्टय भावना सुद्धं । कम्म मल पयडि तिक्तं, न्यान सहावेन सूष्यम परमं ॥ ६९६ ॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी उवसंतोय कषायं, दर्सन मोहंध उवसमं सुद्धं । संसार सरनि तिक्त, उवसंतो पुनः सव्वहा सव्वे ।। ६९७ ॥ सुद्धो सद्धोदेसो, सुद्धो परमप्प लीन संजुत्तो । षिउ उवसम संसुद्धो, न्यान सहावेन चरन्ति तवयरनं ॥ ६९८ ।। षीन कषायं उत्तं, पीनं घाय कम्म मल मुक्कं । षीयंति षीन मोहो, न्यान सहावेन संजुत्त तवयरनं ।। ६९९ ।। मनपर्जय उववन्नं, धम्मं सुक्कं च निम्मलं रूवं । रूवातीत सहावं, न्यान सहावेन अप्प परमप्पं ॥ ७०० ॥ सजोगे केवलिनो, आहार निहार विवज्जिओ सुद्धो । केवल न्यान उवन्नो, अरहंतो केवली सुद्धो ॥ ७०१ ।। अजोगे केवलिनो, परमप्पा निम्मलो सुद्ध ससहावं । आनंदं परमानंद, नंत चतुस्टय मुक्ति संपत्तो ॥ ७०२ ॥ सिद्धं सिद्ध सरूवं, सिद्धं सिद्धि सौष्य संपत्तं । नंदो परमानंदो, सिद्धो सुद्धो मुनेयव्वा ॥ ७०३ ॥ ए चौदस गुनठानं, रूवं भेयं च किंचि उवएसं । न्यान सहावे निपुनो, कमेनय विमल सिद्ध नायव्वो ॥ ७०४ ॥ उर्वकारं च ऊर्धं, ऊर्ध सहावेन परमिस्टि संजुत्तो । अप्पा परमप्पानं, विंद स्थिरं जान परमप्पा ॥ ७०५ ।। न्यानं सुद्ध सहावं, न्यान मयं परमप्प संसुद्धं । न्यानं न्यान सरूवं, अप्पा परमप्प सुद्धमप्पानं ॥ ७०६ ॥ ममात्मा ममलं सुद्धं, सुद्ध सहावेन तिअर्थ संजुत्तं । संसार सरनि विगतं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं ॥ ७०७ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उवं नमः एकत्वं, पद अर्थं नमस्कार उत्पन्न । उवंकारं च विंद, विंदस्थं नमामि तं सुद्धं ॥ ७०८ ॥ सिद्ध सिद्धि सदर्थं, सिद्धं सुद्धं च निम्मलं विमलं । दर्सन मोहंध विमुक्कं, सिद्धं सुद्धं समायरहि ॥ ७०९ ।। धमं च चेयनत्वं, चेतन लष्यनेहि संजुत्तं । अचेत असत्य विमुक्कं, धर्म संसार मुक्ति सिव पंथं ॥ ७१० ।। पंच अष्यर उत्पन्नं, पंचम न्यानेन समय संजुत्तं । रागादि मोह मुक्तं, संसारे तरंति सुद्ध सभावं ॥ ७११ ।। अप्प सहावं सुद्धं, अप्पा सुद्धप्प सद्दहइ सुद्धं । संसार भाव मुक्कं, अप्पा परमप्पयं च संसुद्धं ॥ ७१२ ।। आदि अनादि सुद्धं, सुद्धं सचेयन अप्प सभावं । मिथ्यात राग विमुक्कं, आकारे विमल निम्मलं सुद्धं ॥ ७१३ ।। इस्ट संजोयं सुद्ध, इय दंसन न्यान चरन सुद्धानं । मिथ्या सल्य विमुक्कं, अप्पा परमप्पयं च जानेहि ॥ ७१४ ।। ईर्जा पंथ निवेदं, तिअर्थं संजुत्त न्यान संपन्नं । कुन्यान मोह विरयं, ईर्जा पंथ सु निम्मलं सुद्धं ॥ ७१५ ।। उत्पन्न न्यान सुद्धं, न्यान मई निस्च तत्त ससरूवं । तत्तु अतत्तु निवेदं, मल मुक्तं च दंसनं ममलं ॥ ७१६ ॥ ऊर्धं ऊर्ध सभावं, ऊर्धं संजुत्त दिट्टि दंसनं ममलं । विषय कषाय विमुक्कं, ऊर्धं संमत्त सुद्ध संवरनं ॥ ७१७ ।। ऋजु विपुलं च सहावं, सुद्ध झानेन न्यान संजुत्तं । संसार सरनि विरयं, अप्पा परमप्प सुद्ध सभावं ॥ ७१८ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी रीनं कम्म कलंक, रीनं चौगई संसार सरनि मोहंधं । रुचियंति ममल झानं, धम्मं सुक्कं च ममल अप्पानं ॥ ७१९ ।। लिंगं च जिनवरिंदं, छिन्नं परभाव कुमय अन्यानं । अप्पा अप्प संजुत्तं, परमप्पा परम भावेन ॥ ७२० ॥ लीला अप्प सहावं, पर दव्वं चवई सव्वहा सव्वे । अप्पा परमप्पानं, लीला परमप्प निम्मलं न्यानं ॥ ७२१ ।। एवं सुद्ध सहावं, एवं संसार सरनि विगतोयं । एयं च सुद्ध भावं, सुद्धप्पा न्यान दंसनं सुद्धं ॥ ७२२ ॥ ऐयं इय अप्पानं, अप्पा परमप्प भावना सुद्धं । रागं विषय विमुक्कं, सुद्ध सहावेन सुद्ध सम्मत्तं ॥ ७२३ ॥ उवं ऊर्ध सहावं, अप्पा परमप्प विमल न्यानस्य । मिथ्या कुन्यान विरयं, सुद्धं च ममल केवलं न्यानं ॥ ७२४ ।। औकासं उवएसं, औकासं विमल झान अप्पानं । संसार विगत रूवं, औकासं लहन्ति निव्वानं ॥ ७२५ ॥ अप्पा परमप्पानं, घाय चवक्कय विमुक्क संसारे । रागादि दोस विरयं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं ॥ ७२६ ।। अह अप्पा परमप्पा, न्यान संजुत्त सुदंसनं सुद्धं । संसार सरनि विमुक्कं, परमप्पा लहै निव्वानं ॥ ७२७ ॥ सुर चौदस संसुद्ध, नंत चतुस्टय विमल सुद्धं च । सुद्धं न्यान सरूवं, सुर विंदं ममल न्यान ससहावं ॥ ७२८ ॥ विंजन स एन सुद्धं, सुद्धप्पा न्यान दंसनं परमं । परमं परमानंदं, न्यान सहावेन विंजनं विमलं ॥ ७२९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कका कम्म षिपनं, कका वर झान केवलं न्यानं । कका कमल सुवन्नं, कम्मं षिपति सुद्ध झानत्थं ॥ ७३० ॥ षषा षिपति सुकम्मं, षिपक सेनि षवह संसारं । मिथ्या कुन्यान षिपनं, अप्प सरूवं च न्यान सहकारं ॥ ७३१ ।। गगा गमन सहावं, न्यानं झानं च अप्पयं विमलं । तिक्तंति सयल मोहं, विक्त रूवेन भावना निस्चं ॥ ७३२ ।। घ घाय कम्म मुक्कं, घन अस्मूह कम्म निहलनं । घन न्यान झान सुद्धं, सुद्ध सरूवं च सुद्धमप्पानं ॥ ७३३ ॥ नाना प्रकार सुद्ध, न्यानं झानं च सुद्ध ससरूवं । निदलंति कम्म मलयं, नंतानंत चतुस्टयं ममलं ॥ ७३४ ॥ चेयन गुन संजुत्तं, चित्तं चिंतयंति तियलोयं । गय संकप्प वियप्पं, चेयन संजुत्त अप्प ससरूवं ॥ ७३५ ।। छै काय क्रिया जुत्तं, क्रिया ससहाव सुद्ध परिनामं । संसार विषय विरयं, मल मुक्कं दंसनं ममलं ॥ ७३६ ।। जैवंतं जिनवयनं, जयवंतं विमल अप्प सहावं । कम्म मल पयडि मुक्कं, अप्प सहावेन न्यान ससहावं ॥ ७३७ ।। झान सहावं सुद्धं, धम्मं सुक्कं च झान निम्मलयं । कम्म कलंक विमुक्कं, न्यानमइ झानारूढ़ संजुत्तो ॥ ७३८ ।। नंतानंत सुदिटुं, नंतं संसार सरनि विलयन्ति । विलयंति कम्म मलयं, न्यान सहावेन सुद्ध भावं च ।। ७३९ ।। टंकोत्कीनं ममलं, मल संसार सरनि विलयं च । अप्प सहाव सुदिटुं, निद्दिष्ठं संजदो रूवं ॥ ७४० ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी ठानं झानं झायदि, झायदि सुद्धं च ममल न्यानस्य । झायंति सुद्ध भावं, कम्म मल तिक्त असुह संसारे ॥ ७४१ ॥ डंड कपाटं दिटुं, दि8 विमल दंसनं सुद्धं । मिथ्यात राग विलयं, संसारे तजंति मोहंधं ॥ ७४२ ।। ढ परमप्पा झानं, न्यान सरूवं च अप्प सभावं । विकहा कषाय विरयं, अप्पा परमप्प भावना सुद्धं ॥ ७४३ ॥ नाना प्रकार दिटुं, न्यानं झानेन सुद्ध परमिस्टि । न्यानेन न्यान सुद्धं, न्यान सहावेन सुद्ध ससहावं ॥ ७४४ ॥ तरंति सुद्ध भावं, तिक्तं तिय भाव सयल मिच्छत्तं । अप्पा परु पिच्छंतो, तरंति संसार सायरे घोरे ॥ ७४५ ॥ थानं च सुद्ध झानं, तिअर्थं पंच दीप्ति थान सुद्धं च । मिथ्या कुन्यान तिक्तं, न्यान सहावेन थान सुद्धं च ॥ ७४६ ॥ दर्सन सुद्धि निमित्तं, भावं सुद्धं च निम्मलं चिंतं । न्यानेन न्यान रूवं, जिन उत्तं न्यान निम्मलं सुद्धं ॥ ७४७ ॥ धरयंति धम्म संजुत्तं, मन पसरन्त न्यान सह धरनं । झायं सुद्ध सहावं, न्यान सहावेन निम्मलं चित्तं ॥ ७४८ ॥ न्यान मयं अप्पानं, छिंदंति दुट्ठ कम्म मिच्छत्तं । छिन्नं कषाय विषयं, अप्प सरूवं च निम्मलं भावं ॥ ७४९ ॥ परमप्पय चितवनं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं । कुन्यान सल्य विरयं, तिक्तं संसार सरनि मोहंधं ॥ ७५० ।। फटिक सरूवं अप्पा, चेयन गुन सुद्ध निम्मलं भावं । कम्म मल पयडि विरयं, विरयं संसार सरनि मोहंधं ॥ ७५१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी वर सुद्ध झान निस्चं, बंभं चरनं अबंभ तिक्तं च । तिक्तं असुद्ध भावं, सुद्ध सहावं च भावना सुद्धं ॥ ७५२ ॥ भद्रं मनोन्य सुद्धं, भद्रं जाती च निम्मलं सुद्धं । संसार विगत रूवं, अप्प सहावं च निम्मलं झानं ।। ७५३ ॥ मम आत्मा सुद्धानं, सुद्धप्पा न्यान दंसन समग । रागादि दोस रहियं, न्यान सहावेन सुद्ध सभावं ।। ७५४ ॥ जयकारं जयवंतं, जयवंतो सुद्ध निम्मलं भावं । मिच्छत्त राग मुक्तं, न्यान सहावेन निम्मलं चित्तं ॥ ७५५ ॥ रयनत्तय संजुत्तं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं । मय मान मिच्छ विरयं, संसारे तरंति निम्मलं भावं ॥ ७५६ ॥ लंक्रित न्यान सहावं, कुन्यानं तिजंति सयल मिच्छातं । परमानंद सरूवं, न्यान मयं परम भाव सुद्धीए ॥ ७५७ ॥ बारापार महोघु, तरंति जे न्यान झान संजुत्तं । भावंति सुद्ध भावं, न्यान सहावेन संजमं सुद्धं ॥ ७५८ ॥ सहकारे जिन उत्तं, सुतं संसार तारने निस्चं । संसार सरनि विरयं, न्यान सहावेन भावना सुद्धं ॥ ७५९ ॥ षिपनिक भाव निमित्तं, षिपिओ संसार सरनि मोहंधं । षिउ उवसम संजुत्तं, अप्पा परमप्प निम्मलं सुद्धं ॥ ७६० ॥ सहकार धम्म धरनं, सहजोपनीत सहज नंद आनंदं । संसार विक्त रूवं, अप्पा परमप्प सुद्धमप्पानं ॥ ७६१ ।। ह्रींकारं अरहंतं, तेरह गुनठान संजदो सुद्धं । चौतीस अतिसय जुत्तो, केवल भावै मुनेअव्वो ॥ ७६२ ॥ ८७ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी षिपतं कम्म सुभावं, षिपियं संसार सरनि सुभावं । अप्पा परमानंद, परमप्पा मुक्ति संजुत्तं ॥ ७६३ ॥ अयर सुर विजन रूवं, पद विंदं सुद्ध केवलं न्यानं । न्यानं न्यान सरूवं, अप्पानं लहति निव्वानं ॥ ७६४ ॥ तत्त्वं तत्तु सहावं, जीवाजीवं च तत्तु जानेहि । आसव बंध निरोधं, संवर निज्जर विमल न्यानस्य ॥ ७६५ ॥ मोष्यं षिपति ति कम्म, तत्त्वं जानेहि सयल विन्यानं । पदार्थं पद विंदं, जीवाजीवस्य विंद विन्यानं ॥ ७६६ ॥ पुन्य पाप आसवनं, बंधं संवर ति न्यान ससहावं । निज्जर मोष्य सुभावं, पदार्थं न्यान सहाव निम्मलयं ॥ ७६७ ॥ दव्वं दव्व सरूवं, जीव दव्व अजीव दव्व विन्यानं । धर्म अहंम जाने, आकासं काल दव्व दव्वार्थं ॥ ७६८ ॥ काया जीवास्ति सुद्धं, अजीवास्ति अतीन्द्रियं च सभावं । धम्मास्ति धम्म चेयनयं, अहमास्ति सयल काल ठिदिकरनं ॥ ७६९ ।। अवकास्ति दान अवयासं, कालं काये न संजदो हुँति । पंचास्तिकाय कहियं, सुद्ध सहावेन विमल तव न्यानं ॥ ७७० ।। तत्तु पय दव्व कहियं, काया ससरूव उवएसनं सुद्धं । गुन रूव भेय विन्यानं, एको उवएस न्यान सहकारं ॥ ७७१ ॥ जीओ जीवंपि जीवं, जीवन्तो न्यान दंसन समग्गं । बीजं सुद्ध सु चरनं, न्यानमयोपि नन्त सुह निलयं ॥ ७७२ ।। जीवो उड्ढगमओ, जीव सहाओ सुनिम्मलो सुहमो । अतींद्री न्यान सहावं, चौदस प्रान अतीन्द्रिया सुहमो ॥ ७७३ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जीओ जयं च रूवं, जाता उत्पन्न न्यान ससहावो । आदि अनादि असंध्यं, उववन्नं न्यान दंसन समग्गं ॥ ७७४ ।। नादु न विंदु नकारं, नहि उत्पत्ति षिपति धुव सुद्धं । सुद्धं सुद्ध सहावं, सुद्धं तियलोयमंत निम्मलयं ॥ ७७५ ॥ जीओ रूव विमुक्को, विक्त अरूवं च चेयना विमलं । लोयंति लोयपमानं, नंत सरूवं च विमल न्यानस्य ।। ७७६ ॥ मन सुभाव उववन्नं, तत्त्वं पंचंमि परिनाम संजुत्तं । षिदि जल मरूं च पवनं, आकासं सुक्र स्रोनि मूर्छनयं ॥ ७७७ ।। मन लेस्सा उत्पन्नं, इन्द्री ब्रिद्धि प्रान सुह असुहं । पुग्गल सहाव उर्वनं, कम्म निबंधाइ जीव संचरनं ॥ ७७८ ॥ सहकारेन संजुत्तं, रुचियं पुग्गल सुभाव संजुत्तं । सरीरं उवभासं, परिनै सहाव विद्धि संपुस्टं ॥ ७७९ ॥ कम्म उवनं भावं, इन्द्री मन विषय विद्धि सभावं । अप्प सहाव न सुद्ध, कम्म निबंधाय जीव तं भनियं ॥ ७८० ॥ जीव सहाव अजीवं, कम्म निबंधाय सक्ति रूवेन । गुन दोसं मइओनं, जंमन मुंचनं च कम्म बंधानं ॥ ७८१ ।। अचेतं असहावं, असत्यं असास्वतंपि जानेहि । अजीव तत्तु भनियं, पुग्गल भावेन सरनि संसारे ॥ ७८२ ।। इन्द्री सरीर सुभावं, अतीन्द्रि न्यान जीव सहकारं । गुन दोसं नवि जानई, अजीव तत्त्वं च मनंपि सहकारं ॥ ७८३ ।। जीव अजीवं एकं, कम्म निबंधाइ सरनि संसारे । पुन्यं पाव उवन्नं, मन सहकारं आसवै कर्म ॥ ७८४ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EUW श्री ज्यान समुच्चय सार जी देव गुरुं नवि जानै, नहु धम्मं च सुद्ध चेयना सुद्धं । कुगुरुं कुदेव दिवं, कुधम्मं विकहा राग संबंध ॥ ७८५ ॥ अनृत अचेत सहियं, मिथ्या कुन्यान संजदो भावं । परिनै असुह सहावं, मन सहकारेन सयल संजुत्तं ।। ७८६ ॥ जीवो कम्म निबद्धं, आसव कम्मं विविह भावेन । आसव तत्तु समिद्धं, मन सहकारेन आसवो भनियं ॥ ७८७ ॥ जीवो अप्प सहावं, मन सुद्धं सुद्ध दिस्टि अप्पानं । मनु चेयनं सुभावं, बन्धै आसव सुहं असुहं च ॥ ७८८ ।। देव गुरू धम्म सुद्ध, अप्प सरूवं च निम्मलं विमलं । मिथ्या कुन्यान विरयं, बंध तत्त्वं च चेयना भावं ॥ ७८९ ।। चिंतइ अप्प सहावं, दंसन न्यानेन सुद्ध चरनानं । अप्पा परमप्पानं, संवर तत्त्वं च सुद्ध जानेहि ॥ ७९० ॥ पंच इन्द्री संवरनं, अतीन्द्रिय भाव सुद्ध परिनाम । मिथ्या विषय निरोधं, अप्पा न्यान दंसनं समग्गं ॥ ७९१ ।। निज्जरइ भाव सुद्धं, सुद्धं वर न्यान दंसन समग्गं । अप्पा परमप्पानं, सुद्ध सहावेन केवलं न्यानं ॥ ७९२ ॥ मोष्यं मुक्ति सुभावं, संसारे सरनि सयल विगतोयं । अप्पा अप्प सहावं, मोष्यं विमल न्यान झानत्थं ॥ ७९३ ॥ तत्तु सुभाव निरूपं, एको उद्देस किंचितं कहियं । न्यानं न्यान सरूवं, तत्त्व सरूवं च दंसनं ममलं ॥ ७९४ ॥ पदार्थं पद विंदं, जीव पदार्थ पद विंद संजुत्तं । उवं विंद संजुत्तं, न्यान मयं च दंसनं चरनं ॥ ७९५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अयर सुर विजनयं, पदार्थं सुद्ध न्यान निम्मलयं । अप्पा परमप्पानं, नंत चतुस्टय सरूव निम्मलयं ।। ७९६ ॥ न्यान सरूव सुभावं, अप्पा विमल निम्मलं सुद्धं । न्यानं न्यान सहावं, न्यान सहावेन पदार्थ सुद्धं ।। ७९७ ॥ अजीवं अचेतं, इन्द्री विषय राग दोस संजुत्तं । मन सुद्धं न्यान सहावं, अतीन्द्री विषय पदार्थ सुद्धं ॥ ७९८ ॥ आसवै पुन्य पावं, भावं असुहं च विविह कम्मानं । चेयन सुद्ध स उत्तं, पदार्थं तंपि पुन्य पावं च ॥ ७९९ ॥ पदार्थं पद विदंतो, सुद्ध सहावेन निम्मलं सरूवं । मिथ्या सल्य विमुक्क, संसारे सरनि बंध जानेहि ॥ ८०० ।। संवरन राय दोसं, मिथ्या संसार सरनि संवरनं । न्यान मई अप्पानं, झान सहावेन संवरं भनियं ॥ ८०१ ।। निज्जर पुन्य पावं, भावं असहं च विविह कम्मान । अप्प सहावं पिच्छदि, परमप्पा निज्जरं विमलं ॥ ८०२ ।। मोष्य पदार्थं सुद्धं, अविगत रूवेन विगत भावेन । अप्पा परमानंद, परमप्पा न्यान निम्मलं सुद्धं ॥ ८०३ ।। पदार्थं संसुद्धं, सुद्धं ससहाव चेयना सहियं । संसार विगत रूवं, न्यान सहावेन सुद्ध पद विंदं ॥ ८०४ ।। पदार्थं परमं धुवं, परमप्पा न्यान निम्मलं सरूवं । पदं पदार्थं सुद्धं, रागादि सयल दोस विवरीदो ॥ ८०५ ॥ पद सुद्धं मन सुद्धं, मनु अप्पा परमप्प सुद्ध निम्मलयं । पद विंदं ससहावं, न्यान सरूवं च लहइ निव्वानं ॥ ८०६ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी दव्वं दव्व सहावं, जीव दव्वं च तिलोय संसुद्धं । छह गुन निवास सुद्धं, दो गुन अनाइ एक संजुत्तं ॥ ८०७ ।। अस्ति अस्तिति लोकं, वर दंसन न्यान चरन संजुत्तं । दंसेइ तिहुवनग्गं, न्यान मयो न्यान ससरूवं ॥ ८०८ ॥ अस्ति चरन संजुत्तं, अस्ति सरूवेन सहाव निम्मलयं । विगतं अविगत रूवं, चेयन संजुत्त निम्मलो सुद्धो ॥ ८०९ ॥ वस्तुत्वं वसति भुवने, वस्तुत्वं न्यान दंसन अनंतो । नंतानंत चतुस्टं, वस्तुत्वं तिलोय निम्मलो सुद्धो ॥ ८१० ॥ अप्रमेयं अप्रमानं, अप्पा परमप्प दिट्टि अप्रमेयं । सुद्ध सरूवं रूवं, न्यानं विमल केवलं सुद्धं ॥ ८११ ॥ गुरु तियलोय पमानो, लघु वित करित अप्प सुद्ध सभावो । गुरुत्वं लघु स उत्तं, न्यान मयो सुद्ध दंसनं ममलं ॥ ८१२ ॥ चेयन सुद्ध सहावं, चेयन संसार विगत रूवेन । कम्म मल पयडि षयंतो, चेयन रूवेन निम्मलो सुद्धो ॥ ८१३ ॥ रूवं विगत अरूवं, विगत रूवेन निम्मलो सुद्धो । अप्पा परमप्प मइओ, न्यान मई रूव निम्मलो सुद्धो ॥ ८१४ ।। ऊर्धं ऊर्ध सहावं, सुद्धं सर्वन्य चेयना सहियं । ऊर्ध अविगत रूवं, सुद्धं सुयमेव परम आनंदं ॥ ८१५ ॥ एकेन एकवंतो, एको संसार सरनि विगतोयं । एको तियलोय संजुत्तो, परमानंद नंद संजुत्तो ॥ ८१६ ॥ जीवं दव्व स उत्तं, संसारे विषय राग परिचत्तो । दंसन न्यान सहावो, चरनंपि जीव दव्व चेयना जुत्तो ॥ ८१७ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अज्जीवं पिच्छंतो, अनित अचेत इंदिया सहिओ । मन सुभाव संचरतो, अतींद्री प्रान दव्व संजुत्तो ॥ ८१८ ॥ धम्मं चेयन रूवं, अचेयन भाव सयल विवरीदो । चेयन सहाव सुद्धो, धम्मं झानेहि अप्प परमप्पो ॥ ८१९ ।। अहंम असुद्ध भावो, संसार सरनि सयल संजुत्तो । स्थिति बन्ध संजुत्तो, ठिदिकरनोय अस्थिरी भूतो ॥ ८२० ।। अहंम सुद्ध सहाओ, चित्तं चिंतंति अप्प सभावं । । न्यान झान थिर सुद्धो, स्थिरं मुक्ति नंत काल संजुत्तो ॥ ८२१ ।। काल दव्व ससहावं, अन्तर गर्भओ परिनमै असंष्यं । परिनाम अनंतानन्तु, निस्चै विवहार काल ससहावं ।। ८२२ ॥ अवयास दान सुद्धो, सुद्धं अवयास दिस्टि नंत दसतो । न्यानं अनंत रूवं, चरनं सुद्ध चेयना अवयासो ॥ ८२३ ।। दव्व भाव उवएस, दव्व सहाव सरूव पिच्छंतो । अप्पा अप्प सरूवं, दव्व सहाव जीव संसुद्धो ॥ ८२४ ।। काया काय प्रमानो, जीवास्तिकाय जिनवरे उवएसो । चौविहि बंध विमुक्को, जीओ तियलोयमंत सुपएसो ॥ ८२५ ।। नंत चतुस्टय सहिओ, नंतानंत सुद्ध दिस्टि दसतो । पर भाव मुक्क समओ, न्यान संजुत्त काय उवएसो ॥ ८२६ ॥ अजीव काय भनियं, इन्द्री बल प्रान अतीन्द्रिया जुत्तो । सहकारे इन्द्रिय उत्तो, अतीन्द्रि सहाव अजीव काय संजुत्तो ॥ ८२७ ॥ धम्मास्ति धम्म संजुत्तो, चेयन परिनाम सरूव सहकारो । चेयन सुद्ध सहाओ, संजुत्तो धम्मास्तिकाय विमलोय ॥ ८२८ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी अहंम काय स उत्तं, ठिदिकरन सयल असुह सुह सुद्धं । सुद्धं काया बंध, न्यान झान तव दंसनं दिह्र ॥ ८२९ ॥ अवयासं उवएस, अप्पा परमप्प अवयास संसुद्धं । विलसइ परमानंद, न्यान सरूवं च अवयास संसुद्धं ॥ ८३० ॥ कालं काय न जुत्तं, अनंत परिनमै बंध नहु जुत्तं । परिनमै अनंतानंतं, कालं काया नत्थि उवएसं ॥ ८३१ ॥ तत्तु पदार्थं उत्तं, दव्वं काय भाव उत्तं च । अप्प सरूवं पिच्छदि, अप्पा परमप्प सुद्ध सुह निलयं ॥ ८३२ ॥ इस्ट अरूवं रूवं, कम्म विमुक्क निम्मलं भावं । तस्य विओयं दिस्टदि, आरति पाए सुदुग्गए जाए ॥ ८३३ ॥ अनिस्ट मिथ्या भावं, संसारे सरनि सरंति सभावं । रागादि दोस जुत्तं, आरति पाएन सरनि संसारे ॥ ८३४ ॥ पीड़ा अत्रित दिटुं, असत्य असास्वतेन सभावं । मिथ्या सल्य संजुत्तं, आरति पाएन दुग्गए गमनं ।। ८३५ ॥ निदान बंध संसारे, संसारे सरनि सरइ मोहंधं । मन मक्कड पसरंतो, आरति संजोय निगोय वासंमि ॥ ८३६ ॥ आरति ध्यान स उत्तं, आरति संसार वीर्ज संजुत्तं । आरति कुन्यान सहावं, आरति संसार भावना हुंति ॥ ८३७ ।। आरति अप्प सहावं, अप्पा परमप्प निम्मलं भावं । आरति न्यान अवयासं, न्यान सहावेन निव्वुए जंति ॥ ८३८ ॥ हिंसानंद सुभावं, पर पुग्गल उत्पाद पुन्य सहकारं । पुन्य पाव उववन्नं, मिथ्या कुन्यान संजदो होई ॥ ८३९ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनित दिस्टि सहावं, अत्रित पिच्छंति नितं तिक्तं च । अनित नंत सरौद्र, रौद्र झानेन नरय वासंमि ॥ ८४० ।। स्तेयानंद नंदितं, पद लोपन विकह भाव संजुत्तं । मिथ्या असुह सुभावं, सल्यं विषयं च रौद्र झानत्थं ॥ ८४१ ।। अबंभ भाव जुत्तो, मिथ्या कुन्यान असुह परिनस्य । चिंतंति विषय रागं, मन सहकारेन रौद्र नरयंमि ॥ ८४२ ।। रौद्र ध्यान सुभावं, नरयं तिरयं कुदेव दुह सहनं । अन्यान मूढ भावं, रौद्र झानंमि नरय वीयंमि ॥ ८४३ ॥ अप्पा अप्प सरूवं, कम्म निकंदंति तिविह जोएन । न्यान सहाव स रौद्रं, मिथ्यामय कम्म निद्दलै साहू ॥ ८४४ ।। अन्या अप्प सहावं, अप्पा परमप्प भाव संजुत्तं । जिन वयनं सद्दहनं, न्यान सहावेन अन्या संजुत्तं ॥ ८४५ ॥ अप्पा परमप्पानं, चेयन रूवेन धम्म झानत्थं । मल मुक्कं दंसन धरनं, न्यान झानेन धम्म सहकारं ॥ ८४६ ॥ विसुद्ध सुद्ध भावं, मिथ्या रागादि विषय विरयंमि । रयनत्तय न्यान सहावं, कम्मानि डहै धम्म झानत्थं ॥ ८४७ ॥ संस्थानं पंच सुभावं, चिंतइ वर न्यान दंसनं सुद्धं । न्यान उवन्नं पिच्छदि, पद विंदं केवलं न्यानं ॥ ८४८ ॥ धम्मं झानं झायदि, अविगत रूवेन दंसनं सुद्धं । अप्पा परमानंद, परमप्पा लहै निव्वानं ॥ ८४९ ॥ गय संकप्प वियप्पं, अप्पा परमप्प विमल न्यानस्य । विगतं अविगत रूवं, सून्य सहावेन अप्प परमप्पं ॥ ८५० ।। (९१) Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी एकं जिनं सरूवं, मल मुक्कं अनंत दंसनं सुद्धं । न्यानं न्यान सरूवं, न्यान सहावेन निव्वुए जंति ॥ ८५१ ॥ सूष्यम भाव स उत्तं, सूष्यिम प्रतिपाद सूष्यमं चरनं । सूष्यम धर्म झानं, न्यान सहावेन झान संजुत्तं ॥ ८५२ ॥ प्रियो अप्प संजुत्तं, विप्रिय मुक्तस्य सुद्ध ससहावं । न्यान झान संजुत्तं, अविगत रूवेन सिद्धि संपत्तं ॥ ८५३ ॥ झानं चौविहि उत्तं, विन्यानं जानंति सुद्ध ससहावं । विन्यान न्यान सुद्धं, कम्मं विमुक्क लहइ निव्वानं ।। ८५४ ।। आरति रितिय सुभावं, आरति संसार कारनं निस्चं । आरति कुन्यान संजुत्तं, दंसन मोहंध आरति सुद्धं ॥ ८५५ ॥ तंबोलं तव जुत्तं, आरति सभाव सयल परिनाम । कुसुमं कुन्यान संजुत्तं, न्यान सहावेन कदाचि उववन्नं ॥ ८५६ ॥ लेपं लिपत सुभावं, लिप्तं कम्मान राग विषयं च । भूषन पुन्य सहावं, सल्यं संजुत्त आरति भनियं ।। ८५७ ।। रौद्रं रौद्र स दिटुं, रौद्रं परिनाम कठिन संजुत्तं । असत्य अनित भावं, उदमादं परम रौद्र झानत्थं ॥ ८५८ ।। बंधं असुद्ध बंधं, असुहं भावं च असुह परिनाम । बंधति विविह भावं, बंधं कम्मान तिविहि संजुत्तं ॥ ८५९ ॥ डहनंति असुह भावं, डहिओ सुह कम्म समल भावं च । षट्काई जीवानं, विराहनं विदारनं भनियं ॥ ८६० ॥ मारन जीव अभावं, अजीव असुद्धस्य सहाव संजुत्तं । रौद्र भाव ससहावं, रौद्र ध्यानं च संजदो भनियं ॥ ८६१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी धरयंति धम्म झानं, चेयन रूवेन मनुव संवरनं । सुद्ध सहावं उत्तं, चेयन चेयंति धम्म झानत्थं ॥ ८६२ ॥ पदस्तं पद विंदंतो, अयर सुर विंजनस्य ससरूवं । पदं पदार्थ सुद्ध, अप्पा परमप्प निम्मलं विमलं ॥ ८६३ ॥ सुद्ध सरूव चिंतवनं, असुहं मिच्छात राग विरयंमि । विषयं ति सल्य तिक्तं, पद विंदं सुद्ध निम्मल ससरूवं ॥ ८६४ ।। पिंडं न्यान सपिंडं, न्यान सहावेन पिंड सभावं । तिक्तंति असुह पिंडं, अवित असरन असत्य तिक्तंति ॥ ८६५ ।। पिंड सरूवं सुद्धं, रूवं संजुत्त पिंड विरयंमि । न्यान मयो पिंडस्थं, नित्यं सास्वतं पिंड चिंतनं विमलं ॥ ८६६ ॥ रूवस्तं चेयन रूवं, चिद्रूपं विमल निम्मलं सुद्धं । वर्न रूव विरयंतो, ससरीरं रूव चिंतनं सुद्धं ॥ ८६७ ॥ रूवं रूव स सुद्धं, असुद्धं परिनाम सयल विरयंमि । सुद्ध सरूवं पिच्छदि, रूवस्तं विमल निम्मलं सुद्धं ॥ ८६८ ।। रूवातीत स उत्तं, तिक्तं रूवेन विगत रूवं च । अविगत परमानंद, विगतं संसार सरनि मोहंधं ॥ ८६९ ॥ गय संकप्प वियप्पं, मिच्छा कुन्यान विगत विरयंमि । चेयन सहाव सुद्धं, रूवातीतं च धम्म ध्यान ससहावं ॥ ८७० ।। सून्यं सुद्ध सहावं, सून्यं संसार सरनि मिच्छातं । विषय राग मइ सून्यं, अप्पा परमप्प भाव निम्मलयं ॥ ८७१ ।। आन्या आकीर्णत्वं, अनित तिक्तंति असुद्ध परिनाम । आन्या सुद्ध सहावं, जिन उवएस विमल निम्मलं भावं ॥ ८७२ ॥ (९२) Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्यान समुच्चय सार जी अपायं परमं न्यानं, अप्पानं परम सुद्ध सभावं । विरयं मूढ सुभावं, सुद्धं ससरूव निम्मलं सुद्धं ॥ ८७३ ॥ विचयं विमल सहावं, विमल न्यानेन केवलं निस्चै ।। केवल दंसन सुद्धं, अप्पा परमप्प जंति निव्वानं ॥ ८७४ ।। धम्म रयन संजुत्तं, धम्मं धरयंति मनस्य सहकारं । न्यानं न्यान सहावं, परमप्पा परम झानेहि संजुत्तं ॥ ८७५ ॥ आन्या समय जिनुत्तं, जिन दिटुं परम केवलं न्यानं । न्यान दिस्टि उवएस, निस्चय रूवेन विमल न्यान सद्दहनं ॥ ८७६ ॥ जिन उत्तं अप्पानं, मिच्छा भावं च तिक्त कुन्यानं । उत्तं चेयन भावं, विन्यान अप्प सुद्ध सद्दहनं ॥ ८७७ ॥ आन्या सुद्ध सरूवं, सुद्धं देवं च सुद्ध गुरु धर्म । मिच्छा अनित तिक्तं, आन्या सम्मत्त निम्मलं भावं ॥ ८७८ ॥ वेदक वेद संजुत्तं, वेद वेदांग विंदतो नित्यं । अप्पा पर बुज्झंतो, परचवैवि अप्प सुद्ध सभावं ॥ ८७९ ।। पद विजन विंदंतो, असरन संसार सयल दोस विवरीदो । अप्पा अप्पम्मि रओ, अप्पा परमप्प निव्वुए जंति ॥ ८८० ।। उवसम उवसंत कषायं, उवसम राग दोष विषय भावं च । मिच्छा कुन्यान तिक्तं, उवसमनं सुह असुहस्य परिनामं ॥ ८८१ ॥ षिउ उवसम संजुत्तं, षिपनिक रूवेन अप्प सभावं । अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा सुद्ध निम्मलं चित्तं ॥ ८८२ ।। प्याइक षिपनिक रूवं, षिपियो संसार सरनि मोहंधं । राग दोस मिच्छातं, कम्म मल पयडि सयल षिपिऊनं ॥ ८८३ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी षिउ उवसम सुद्ध सहावं, अप्पा अप्पेन अप्पनो निस्चं । गय संकप्प वियप्पं, प्याइक संमत्त सुद्ध धुव निस्चं ॥ ८८४ ॥ सुद्धं सुद्ध सहावं, सुद्ध सरूवं च निम्मलं भावं । अप्पा परमप्पानं, परमप्पा लहै निव्वानं ॥ ८८५ ।। दरसन सुद्ध सहावं, दर्स तिलोय न्यान सहकारं । न्यानेन न्यान सुद्धं, दरसन चरनस्य निम्मलं विमलं ॥ ८८६ ॥ दर्सन अनंत रूवं, अनंत दर्सन विमल सुद्ध दरसेई । मिच्छात कम्म विलयं, दर्सन चरनस्य जंति निव्वानं ॥ ८८७ ।। न्यानचरन संसुद्धं, न्यानं आचरन केवलं ममलं । विषयं च राग विरयं, अप्पा परमप्प न्यान आचरनं ॥ ८८८ ।। न्यानं न्यान सरूवं, कुन्यानं तिजंति मिच्छ सभावं । अप्प सरूव सहावं, परमप्पा सुद्ध न्यान आचरनं ॥ ८८९ ।। वीर्ज वीज सुद्ध, वीर्ज अंकुरनं च न्यान सहकारं । चरनं अप्प सरूवं, चरनं वीर्ज च सुद्धमप्पानं ॥ ८९० ।। अप्पानंमप्पानं, अप्पा सुद्ध झान न्यान निरू पिच्छं । परम पय सुद्ध सरूवं, वीर्ज आचरन निव्वुए जंति ॥ ८९१ ॥ तव आचरन सहावं, अप्प सहावेन सुद्ध तवयरनं । सुद्धं सुद्ध सरूवं, तव आचरनं निम्मलं भावं ॥ ८९२ ॥ कम्म मल मुक्क रागं, मिथ्या विषयं च तिक्त कषायं । अप्पा अप्प सरूवं, सहकारेन चरन तवयरनं ॥ ८९३ ।। चरनंपि सुद्ध भावं, चरनं अप्पान निम्मलं रूवं । थिर दिठि दंसन ममलं, चारित्र चरन सुद्ध संजमं रूवं ॥ ८९४ ।। (९३) Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी न्यान समुच्चय सारं, जिनवर उवएस कहिय सहकारं । एको उवएस उत्तं, कम्म षय कारनं निमित्तं ॥ ९०६ ॥ जिन उवएसं सारं, किंचित् उवएस कहिय सभावं । तं जिन तारन रइयं, कम्म षय मुक्ति कारनं सुद्धं ॥ ९०७ ।। भावेन भाव सुद्धं, अप्पा परमप्प विमल ससहावं । तं भव्य जीव सरनं, आराहन जुत्तु निव्वुए जंति ॥ ९०८ ॥ ॥ इति श्री न्यान समुच्चय सार नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। श्री ज्यान समुच्चय सार जी चरनं अप्प सहावं, चरनं परम पर भाव सुद्धानं । घाय चउक्कं मुक्कं, चरनं चारित्र परम निव्वानं ॥ ८९५ ॥ पंचाचार स उत्तं, पंचाचरन तिक्त संसारे । गय संकप्प वियप्पं, पंचाचरनं च सुद्ध निव्वानं ॥ ८९६ ॥ न्यान समुच्चय सारं, उवइटुं जिनवरेहि जं न्यानं । जिन उत्तं न्यान सहावं, सुद्धं ध्यानं च न्यान समुच्चय सारं ॥ ८९७ ।। न्यान समुच्चय भनियं, सद्दहनं रूव भेय विन्यानं । न्यानं न्यान सरूवं, षवड़ संसार सरनि मोहंधं ॥ ८९८ ।। न्यानेन न्यान जोयं, जोयं थिर दिट्टि दंसनं ममलं । जोयं निय अप्पानं, अप्पा परमप्प सुद्ध निव्वानं ॥ ८९९ ॥ जानै दिदै समतं, पिच्छै विमल दंसनं सुद्धं । तं थिर भाव सवन्नं, चरनं चारित्र सुद्धमप्पानं ॥ ९०० ॥ दव्व काय पिच्छंतो, तत्त पदार्थं च सुद्ध संजुत्तं । संसार सहाव विमुक्को, अप्पा परमप्प केवली सुद्धो ॥ ९०१ ॥ न्यान समुच्चय सारं, आसव भाव सयल तिक्तं च । सारं सुद्ध सहावं, सारं ससरूव निम्मलं सद्धं ॥ ९०२ ॥ न्यानेन न्यान सहावं, कुन्यानं तिजंति सयल मिच्छातं । न्यान समुच्चय सुद्ध, न्यान सहावेन जंति निव्वानं ॥ ९०३ ॥ सयल जन बोहनत्थं, जिनमग्गे जिनवरेंद्र जं उत्तं । जिन उत्तं सहकारं, न्यानं संजुत्त लहइ निव्वानं ॥ ९०४ ॥ दंसेइ मोष्य मग्गं, न्यान सहावेन दंसनं ममलं । चरनं संजम जुत्तं, संजुत्तो लहइ निव्वानं ॥ ९०५ ॥ जो AUR ज Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी सार मत 8 श्री उपदेश शुद्ध सार जी अप्पानं सुद्धप्पानं, परमप्पा विमल निम्मलं सरूवं । सिद्ध सरूवं पिच्छदि, नमामिहं देव देवस्य ॥ १ ॥ आद्यं अनादि सुद्ध, उवइ8 जिनवरेहि सेसानं । संसार सरनि विरयं, कम्म षय मुक्ति कारनं सुद्धं ॥ २ ॥ उवएस सुद्ध सारं, सारं संसार सरनि मुक्तस्य । सारं तिलोय मइओ, उवइ8 परम जिनवरिंदेहिं ॥ ३ ॥ जिनवयन उवएस, केई पुरिसस्य मनि रयन वित्थरनं । मनुवा पंषि अनेयं, चंचु आक्रिनि लेवि सं उड़ियं ॥ ४ ॥ तस्य सहावं उत्तं, नीचं संगेन कुमय उववनं । नीचं चरइ सुचरियं, मनि रयनं विमुक्कियं तंपि ॥ ५ ॥ मनुवा मनुव सहावं, असुह संगेन रयनि मनि मुक्कं । जे जान मनुव षिपनं, रयनं मन रूव भेय संकलियं ॥ ६ ॥ जे जे सहाव उत्तं, ते ते अनुभवड़ असुह सुह जननं । जे केवि न्यान सुद्ध, विन्यानं जानंति अप्प परमप्पं ॥ ७ ॥ रयनं रयन सरूवं, चिंतामनि सुद्ध दंसनं विमलं । विन्यान न्यान सुद्ध, चरनं संजुत्त सहाव तवयरनं ॥ ८ ॥ मनुवा मन उववन्नं, मन सहकारेन दुग्गए पत्तं । मनु विलयं ससहावं, ग्रहनं उववन्न चेयना जुत्तं ॥ ९ ॥ देवं ऊर्थ सहावं, ऊर्थं स सहाव विगत अधुवं च । विगतं कुन्यान सहावं, न्यान सहावेन उवएसनं देवं ॥ १० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उवएस नंतनंतं, नंत चतुस्ट सुदिस्टि विमलं च ।। मलं सुभाव न दिढे, विमल दिट्ठि च देइ अषयं च ॥ ११ ॥ परम देव सुभावं, अन्मोयं देइ न्यान सहकारं । न्यानेन न्यान विद्धं, जं श्रुति विद्धंति मच्छ अंडानं ॥ १२ ॥ षिपनिक भाव स उत्तं, षिपिओ कम्मान तिविहि जोएन । अन्यान मिच्छ विपनं, मल मुक्कं नंत दंसनं न्यानं ॥ १३ ॥ परम देव परमिस्टी, इस्टी संजोय विओय अनिस्टी। इस्टी अनन्त दिस्टी, विगतं अनिस्ट सरनि नहु दिढें ॥ १४ ॥ गुरुं सहाव स उत्तं, गुरुं तिलोय भाव सुपएसं । गुपितं गुनं सरूवं, गुपितं रुचियंति उवएसनं गुरुवं ॥ १५ ॥ गुरुं विसेषं दिटुं, सूषिम सभाव कम्म संषिपनं । उवएसं पिपिऊन, मिथ्या कुन्यान सल्य मुक्कं च ॥ १६ ॥ गुरुं च गुन उवएसं, न्यान सहावेन उवएसनं सुद्धं । गुरुं च गगन सरूवं, जं सूरं तिमिर नासनं सहसा ॥ १७ ॥ परम गुरुं उवएस, न्यान सहावेन अन्मोय संजत्तं । न्यानांकुरं च दिठें, अन्मोयं न्यान सरूव विन्यानं ॥ १८ ॥ अंकुर सुद्ध सरूवं, असुद्ध अंकुर उन्मूलनं तंपि । सुद्धं न्यान सहावं, अंकुर न्यानस्य विद्धि सहकारं ॥ १९ ॥ जं उववनं च माली, दिट्ठी दिवेइ सुद्ध अन्मोयं । सिंचति जल सहावं, न्यानं जलं सिंचए गुरुवं ॥ २० ॥ माली तं सीचंते, आदं आदं च मिलिय जल सुद्धं । परम गुरुं अन्मोयं, न्यानं न्यानेन ममल मिलियं च ॥ २१ ॥ एसन सुद्ध । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = = = श्री उपदेश शुद्ध सार जी न्यानांकुरं च दिटुं, अन्यानांकुर उन्मूलनं तंपि । मिच्छांकुर उन्मूलं, उन्मूलं अगुरु उवएसं ॥ २२ ॥ न्यानं च परम न्यानं, मिलियं च सुद्ध सहाव सुइ रूवी । कम्म मल सुयं च विपनं, न्यान सहावेन विद्धनं न्यानं ॥ २३ ॥ परम गुरुं च सरूवं, परम सुभाव परम दरसीए । अप्पानं सुद्धप्पानं, परमप्पा दर्सए विमलं ॥ २४ ॥ धर्म धरयति सुद्धं, धम्मं तियलोय सुद्ध सुपएसं । चेयन अनंत रूवं, कम्म मल षिपति तिविहि जोएन ॥ २५ ॥ धम्मं च सुद्ध विपनं, धम्मं सहकारि चेयना सुद्धं । धर्म तिलोय संजुत्तं, लोयालोयं च धरइ सुद्धं च ॥ २६ ॥ धम्मं सहाव उत्तं, चेयन संजुत्त विपन ससरूवं । आनंदं सहजानंदं, धर्म ससहाव मुक्ति गमनं च ॥ २७ ॥ अष्यर सुर विंजनयं, न्यान सहावेन पंच न्यानम्मि । जदि अभ्यर उववन्न, पंडित विन्यान सुद्ध संजोयं ॥ २८ ॥ अष्यर मति उववन्नं, षट् त्रि त्रि उववंन न्यान सभावं । सुतं च अभ्यर मइओ, एकादस जानि सुद्ध सहकारं ॥ २९ ॥ अवहि उर्वनं भावं, दिसि संजोय अध्यरं जोयं । मन पर्जय संजुत्तं, रिजु विपुलं च अभ्यरं दिसिमो ॥ ३० ॥ केवल भाव संजुत्तं, विमल सहावेन अष्यरं सुद्धं । न्यानेन न्यान विमलं, दिसि विन्यानं च ममल न्यानं च ॥ ३१ ॥ पण्डिय विवेय सुद्धं, विन्यानं न्यान सुद्ध उवएसं । संसार सरनि तिक्तं, कम्म षय ममल मुक्ति गमनं च ॥ ३२ ॥ बावन अष्यर सुद्धं, न्यानं विन्यान न्यान उववन्नं । सुद्धं जिनेहि भनियं, न्यान सहावेन भव्य उवएसं ॥ ३३ ॥ जिन उवएसं सारं, सारं तिलोयमंत सुपएसं । चेयन रूव संजुत्तं, चेयन आनंद कम्म विलयंति ॥ ३४ ॥ जिनयति मिथ्या भावं, रागं दोषं च विषय विलयंति । कुन्यान न्यान आवरनं, जिनियं कम्मान तिविहि जोएन ।। ३५ ॥ जिनियं अभाव सुभावं, भय रहियं निसंक संक विलयंति । सहज सरूवं पिच्छदि, जिनियं अनित पर्जाव उववन्नं ॥ ३६ ॥ जिनियं कषाय भावं, पर दव्वं परिनाम सुद्ध अवयासं । सुद्धं सुद्ध सरूवं, जिन उत्तं जिनवरिंदेहि ॥ ३७ ॥ संसार सरनि विलयं, असरन अनित अनिस्ट विलयंति । पर पर्जाव न दिढ, परम सहावेन अवयास विमलं च ॥ ३८ ॥ न्यानेन न्यान सुद्धं, न्यान विन्यान सहाव सुइ रूवी । कम्म मल सुयं च विपनं, अप्पा परमप्प सुद्ध अन्मोयं ॥ ३९ ॥ न्यानंकुरं च सहावं, न्यानं विन्यान अध्यरं जोयं । विंजन सहाव दिडं, पद विंदं विमल न्यान उववन्नं ॥ ४० ॥ मति सुभाव स उत्तं, अष्यर सुर विंजनस्य पद अर्थ । षट् त्रि त्रि अभ्यर उवनं, तस्य परिनाम न्यान सुद्धं च ॥ ४१ ॥ इस्टं संजोय दिटुं, इस्टं सुभाव भाव परिनाम । ईर्जा पंथ निवेदं, ईर्ज सुभाव सुद्ध न्यान उववन्नं ॥ ४२ ॥ कमल सुभावं दिटुं, केवल सुभाव परम जोएन । षिपनिक भाव संजुत्तं, षिपिओ कम्मान तिविहि जोएन ॥ ४३ ।। = = = = (९६) Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी = = = गगन सुभाव उवन्नं, गन अस्मूह दिस्टि सुद्धं च । आनंदं परमानंद, परमप्पा परम भाव जोएन ॥ ४४ ॥ घन घाय कम्म विलयं, घन समूह नंत संसारे । जिनं सुभाव उववन्न, न्यान सहावेन जिनवरिंदेहि ॥ ४५ ॥ जाता उववन्न रूवं, जोयंतो न्यान सुद्ध ससहावं । रयनं रयन सहावं, अप्पा परमप्प ममल न्यानं च ॥ ४६ ॥ लंक्रित परमानंद, लीनं सुद्धं च केवलं न्यानं । मति न्यान सुद्ध सुद्ध, नंत चतुस्टय सुद्ध ससरूवं ॥ ४७ ॥ सिद्ध सरूवं पिच्छदि, चेतन परिनाम न्यान संजुत्तं । चिदानंद आनंद, श्रुत न्यानं च चेयना रूवं ॥ ४८ ॥ छत्रत्रय संजुत्तं, छीनं संसार सरनि सुभावं । जाता उववंन परमं, जैवंतो नंत दंसनं चरनं ॥ ४९ ॥ झानं च सुद्ध झानं, झानं न्यानं च परिनाम परमप्पं । नंतानंत चतुस्ट, न्यान सहावेन कम्म विलयंति ॥ ५० ॥ परम भाव परमिस्टी, परम जिनेहि नंत ममल सभावं । वरं प्रेस्ट इस्टी, इस्टी दिस्टी च ममल सुद्ध परमिस्टी ॥ ५१ ॥ ममात्मा सुकिय सुभावं, ममात्मा सुद्धात्म ममल मिलियं च । सहकार न्यान समय, सर्वन्यं सुद्ध समय अन्मोयं ॥ ५२ ॥ षिपनिक विमल सुभावं, षिपिओ कम्मान सरनि विलयं च । षिपिओ अन्यान प्रमोदं, न्यान सहावेन अन्मोय ममलं च ॥ ५३ ॥ नाना प्रकार दिट्ठी, न्यान सहावेन इस्टि परमिस्टी । लिंगं च जिनवरिंद, लिंगं सुद्धं च कम्म विलयंति ॥ ५४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी लीनं अनंतनंतं, लीनं सुभाव न्यान सहकारं । एयं च गुन विसुद्धं, एयं तिक्तंति सरनि संसारे ॥ ५५ ॥ टंकोत्कीर्न अप्पा, टूट कम्मान तिविहि जोएन । ठानं कुनसि सहावं, न्यान सहावेन मुक्ति ठिदि सुद्धं ॥ ५६ ॥ न्यानं च परम न्यानं, न्यान सहावेन समय सुद्धं च । दण्ड कपाट तिअर्थ, लोयालोयेन न्यान समयं च ॥ ५७ टंकार झान सुद्धं, ढलिओ कम्मान तिविह विलयंति । फटिक सुभावं सुद्ध, फटिक सुभावेन कम्म गलियं च ॥ ५८ ॥ मन पर्जय सुभावं, मन विलयं सुद्ध झान सभावं । रिजु विपुलं च सहावं, चिंतामनि सुद्ध रयन ममलं च ॥ ५९ ॥ धम्मं अनंत ममलं, धम्मं धरयंति लोय अवलोयं । रिजु विपुलं च उवन्नं, कम्म मल तिविह भाव विलयंति ॥ ६० ॥ रीनं संसार सुभावं, रीनं अन्मोय अन्यान विलयंति । ऐकार नंतनंतं, ऐ उववन्न मुक्ति गमनं च ॥ ६१ तत्काल कम्म विलयं, तत्कालं राय विषय मय गलियं । थानंत नंतनंतं, थानं सुद्धं च गारवं विलयं ॥ ६२ ॥ दंसन अनंत दर्स, दंसन दंसेड़ लोय अवलोयं । धुवं च निस्चय सहावं, धुव निस्चय परम केवलं न्यानं ॥ ६३ ॥ नंतानंत सुदिट्ठ, नंत चतुस्टय सु दिस्टि विमलं च । भद्र मनोयं सुद्धं, भद्र जातीय मुक्ति गमनं च ॥ ६४ उर्व ऊर्ध सहावं, ऊर्धं ऊर्धं च परमिस्टि संसुद्धं । उवंकारं च दिटुं, विन्यानं दर्सए पद विंदं ॥ ६५ ॥ = = = = Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = - भाव । = श्री उपदेश शुद्ध सार जी ममात्मा सुकिय सुभावं, ममलं दिस्टि च अन्मोय सहकारं । आदि अनादि सुद्ध, अन्मोयं षिपति कम्म तिविहं च ॥ ६६ ॥ अयं च अप्प सरूवं, अयं च विषम कम्म गलियं च । अयं च सुद्ध सरूवं, अयं च सुद्ध ममल मिलियं च ॥ ६७ ॥ उत्पाद्य नंतनंतं, उववनं न्यान सुद्ध सहकारं । ऊर्धं ऊर्ध संसुद्धं, ऊर्धं ससहाव कम्म गलियं च ॥ ६८ ॥ उवं नमापि सुद्धं, उवलष्यं लष्य नंत ससरूवं । अवकास दान विद्धिं, अवकास विमल केवलं न्यानं ॥ ६९ ॥ अन्मोय नंतनंतं, अनंत चतुस्टं च विमल ससरूवं । आलंबं अवलंब, अनंतानंत सुदिस्टि विमलं च ॥ ७० ॥ वारापार अनंतं, अनंत संसार सरनि विलयं च । वरं विमल सहावं, चिंतामनि सुद्ध अन्मोय सर्वन्यं ॥ ७१ ॥ ह्रींकारं उववन्नं, उववन्नं नंत दंसनं न्यानं । वीज चर नंत सौष्यं, सर्वन्यं विमल न्यान समयं च ॥ ७२ ।। न्यानं पंच उवनं, परम जिनं परम विमल सुभावं । परमं परमानंद, अन्मोयं ममल न्यान सिद्धि संपत्तं ॥ ७३ ।। देवं च परम देवं, गुरुं च परम गुरुं च संदिढें । धम्मं च परम धम्मं, जिनं च परम जिनं निम्मलं विमलं ॥ ७४ ॥ तस्सय विन्यान न्यानं, न्यान सहावेन रूव भेय संरुचियं । रुचितंपि उर्व विमलं, सम्मत्तं तस्य सुद्ध विमलं च ॥ ७५ ॥ सम्मत्त सुद्ध सुद्धं, सुद्धं दर्सेड विमल रूवेन । कर्म तिविहि विमुक्कं, रागं दोषं च गारवं विपनं ॥ ७६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विपिऊ मिथ्यात सुभावं, पुन्नं पावं च विषय संषिपनं । कुन्यान तिविहि विपनं, षिपियं संसार सरनि मोहंधं ॥ ७७ ॥ पिपिऊ कम्म उवन्नं, षिपिऊ मन चवल उवन संषिपनं । मन संन्या षिपि मिलियं, षिपियं नंत नंत सरनि संबंधं ॥ ७८ ॥ पिपिऊ कषाय सुभावं, कषाय उववन्न दबुहि संजुत्तं । जे दुर्बुद्धि विसेषं, कषायं षिपिय नंत परिनामं ॥ ७९ असत्य अनित वयनं, आलापं लोकरंजनं भावं । विन्यानं नहु पिच्छदि, संसार भ्रमन वीय संजुत्तं ॥ ८० ॥ विमल सहाव उवन्नं, समल परिनाम पर्जाव नह दिटुं । पर्जाव विविह भेयं, न्यान सहावेन पर्जाव विलयंति ॥ ८१ ।। अन्यान दिहि नह पिच्छदि, अन्यान भाव सयल विलयंति । न्यान सहाव उवन्नं, अन्मोयं विमल पर्जाव नहु पिच्छं ॥ ८२ ॥ अन्यान संग विलयं, न्यान सहावेन विन्यान संजुत्तं । न्यानं न्यान उवन्न, न्यान समयं च पर्जाव नहु पिच्छं । ८३ ॥ जस्सय सुद्ध सहावं, असुद्ध सहावेन दिस्टि नहु वयनं । सुद्धं च विमल न्यानं, सुद्ध समयं च पर्जाव नहु पिच्छं ॥ ८४ ॥ जस्सय विमल सहावं, अन्मोयं न्यान पर्जाव नहु पिच्छं । जइ पज्जावं दिडं, समलं सहकार निगोय वासम्मि ॥ ८५ न्यान सहावं सुद्ध, सुद्धं ससहाव विमल दिहीओ। न्यान सहाव सुसमयं, पर्जाव ससंक नरय वासम्मि ॥ ८६ ॥ न्यानेन न्यान मिलियं, विमल सहावेन न्यान उप्पत्ती । तह पज्जावं दिढे, पर्जय ससंक निगोय वासम्मि ॥ ८७ ।। = = = Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी जह पज्जावं दिव, अप्पा समयं च मुक्त न्यानं च ।। पज्जावं परु पिच्छदि, संसारे सरनि दुष्य वीयंमि ॥ ८८ ॥ पज्जाव नहु दिढदि, पर सहाव उप्पत्ति पज्जाव विलयंति । न्यानेन न्यान समयं, विमल सहावेन निव्वुए जंति ॥ ८९ ॥ रागादि उववन्नं, राग सहावेन चौगए भमियं । रागं च विषय जुत्तं, राग विलयंति विमल सहकारं ॥ १० ॥ जनरंजन राग उपत्ति, जन उत्तं जन रंजनानि सद्दिट्टी । पर सुभाव पर समयं, तिक्तंति राग ममल न्यानस्य ॥ ९१ ।। राग सहावं उत्तं, जन रंजन पुन्य भाव संजुत्तं । अनित असत्य सहिओ, राग संजुत्त नरय वासम्मि ॥ ९२ ।। राग सहावं पिच्छदि, अन्यान सहकार श्रुतं बहु भेयं । मिच्छात विषय सहियं, रागं विलयंति न्यान सहकारं ॥ ९३ ॥ राग सहावं उत्तं, अन्यानं तव तवंति संजुत्तं । जनरंजन मूढ सहावं, जन उत्तं राग नरय वासम्मि ॥ ९४ ।। रागं च राग जुत्तं, मिथ्या तव तवेहि संचरनं । कुन्यानं संजुत्तं, राग सहावेन दुग्गए पत्तं ॥ ९५ ॥ रागं च राग सहियं, जनरंजन विकहा भाव संजुत्तं । जिन द्रोही जिन उत्तं, राग सहावेन दुग्गए पत्तं ॥ ९६ ॥ विन्यान न्यान रहियं, राग सहावेन पज्जाव पर दिखै । न्यान सहावं विरयं, जनरंजन राग नरय वासम्मि ॥ ९७ ॥ रागं असुद्ध दिट्ठी, संसय सहकार अंतरं न्यानं । संक सहाव न विरयं, न्यानं आवरन चउ गए भमनं ॥ १८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी रागं च लोक मूद, जनरंजन पर्जाव दिट्टि संदर्स । न्यान सहाव न पिच्छं, विभ्रम संजुत्त दुग्गए सहियं ॥ ९९ ॥ रागं च भाव जुत्तं, पर पर्जाव पुरुषस्य स्त्री संदिस्टं । न्यान विन्यान विमुक्तं, न्यान आवरन सु सहिय मूढं च ॥ १०० ।। रागं च राग जुत्तं, स्त्री पर्जाव पुरुष मल सहियं । अन्यान न्यान मूढा, संसय सहिय नरय वासम्मि ॥ १०१ ।। जनरंजन स दिट्ठी, जन उत्तं राग सहिय अन्यानी । लाज भय गारव सहियं, राग संजुत्त भ्रमन वीयम्मि ॥ १०२ ।। रागं च सहिय सल्यं, दुबुहि उववंन मिच्छ परिनामं । जनरंजन जन उत्तं, जिनद्रोही निगोय वासम्मि ॥ १०३ ॥ रागं च भाव उत्तं, न्यानं आवरन रंजनं लोयं । प्रपंच विभ्रम सहियं, विमल सहावेन राग मुक्कं च ॥ १०४ ॥ रागं संसार सहावं, जन उत्तं लोक मूढ़ सुपएसं । जन रंजन लोक सहावं, न्यान सहावेन राग विलयंति ॥ १०५ ॥ रागं उवन्न भावं, रागं संसार सरनि सभावं । पर्जाव दिट्टि दिट्ठ, विमल सहावेन राग संषिपनं ॥ १०६ ॥ जन उत्तं उत्त दिटुं, जामन मुंचनं च सरनि संसारे । मूढ लोय स सहावं, न्यान विन्यान राग विलयंति ॥ १०७ ॥ पाषिक राग स उत्तं, संसारे पषि राग सभावं । संसार विद्धि सहियं, दंसन विमलं च राग गलियं च ॥ १०८ ।। सरीर राग जुत्तं, सहकारं रितियंति अन्यान अन्मोयं । मिच्छात सल्य सहियं, अनुमोये निगोय वासम्मि ॥ १०९ ।। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी कुल रागं च उवन्नं, अकुलं सहकार न्यान विरयंमि । अन्यान विषय विद्धं, अन्मोयं निगोय वासम्मि ॥ ११० ।। सहकार राग जुत्तं, अन्यानं सल्य विषय सहकारं । अन्मोयं अन्यानं, सहकारं संसार भावना हुंति ॥ १११ ॥ परिनाम राग सहियं, परिनइ परिनवई मिच्छ अन्यानं । पर पज्जावं पिच्छदि, परिनाम राग नरय वासम्मि ॥ ११२ ॥ रागस्य राग जुत्तं, विकहा विसनस्य अबंभ रूवेन । धम्मं च अधम्म उत्तं, उत्तं रागं च दुग्गए पत्तं ॥ ११३ ॥ अन्मोय राग उत्तं, अन्यानं अन्मोय सल्य अन्मोयं । विषयं च अगुरु वयनं, आलापं अन्मोय निगोय वीयम्मि ॥ ११४ ।। प्रकृति राग सहियं, न्यानं विन्यान अन्मोय पर पिच्छं । बहिर सुभाव न मुक्कं, प्रकृति रागं च नरय वीयम्मि ॥ ११५ ॥ अवयास राग जुत्तं, अवयासं न्यान विन्यान पर पिच्छं । पर पुग्गल सहकारं, अवयास राग दुग्गए पत्तं ॥ ११६ ।। जिन उत्तं नहु दिटुं, जन उत्तं जन रंजनस्य सभावं । न्यान विन्यान न रुचियं, अन्यानं अन्मोय न्यान विरयंमि ॥ ११७ ।। राग सहाव न गलियं, नहु गलियं मिच्छ विषय सल्यं च । जिन उत्त ससंक निसंकं, अगुरु अजिन सरनि संसारे ॥ ११८ ॥ जिन उत्त भाव नहु लष्यं, जन उत्तं भाव अन्मोय संजुत्तं । जनरंजन राग सहावं, रागं अन्मोय सरनि भावना हुंति ॥ ११९ ॥ रागं जिनेहि उत्तं, अप्पा सुद्धप्प परम अन्मोयं । संसार सरनि विरयं, न्यानं अन्मोय मुक्ति गमनं च ॥ १२० ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अंकुर न्यान सहावं, अन्मोयं भाव कम्म विलयंति । न्यानं च परम न्यानं, रागं समयं च कम्म संषिपनं ॥ १२१ ॥ न्यान मई अन्मोयं, दंसन सहकार चरन अन्मोयं । तव अन्मोय सहावं, अवयास अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ १२२ ।। कलरंजन दोस उवन्नं, कल सहकारं च विद्धि संजुत्तं । परिनइ कलुस सहावं, कल लंक्रित कर्म तिविहि उववन्नं ॥ १२३ ॥ जदि कलुस भाव दिटुं, दोषं उववन्न नंतनंताई । तदि दुग्गड़ गइ गमनं, कलरंजन भाव नरय बीयम्मि ॥ १२४ ॥ कलं च किलि किलि सहियं, कलं च कर्म भावना जाने । अगुरुं च कल सहावं, कलरंजन दोस निगोय वासम्मि ॥ १२५ ॥ कलुस भाव स उत्तं, क्रित सहकार कर्म ब्रिद्धं च । तह धम्म उवएस, विस्वासं अगुरु नरय वासम्मि ॥ १२६ ॥ कल इस्टं स दिढें, कल संजोय नि:कलं विरयं । न्यानंतर अन्यानं, अन्मोयं अनिस्ट दुग्गए पत्तं ॥ १२७ ।। कल इस्ट अनिस्ट दिस्टं, इस्ट विओय न्यान विन्यानं । अनिस्ट रूव रूवं, अन्मोयं अनिस्ट दुग्गए पत्तं ॥ १२८ ॥ कलं सुभाव स उत्तं, कलियं विन्यान अन्यान संजोयं । सुतं च विकह सहावं, अन्मोयं अजित सरनि संसारे ॥ १२९ ।। सुतं च अनेय भेयं, वयनं आलाप भेय अभेयं । कल सहाव विन्यानं, अनिस्ट अन्मोय सरनि संसारे ॥ १३० ॥ गाहा दोह छंदानं, सामुद्रिक व्याकरन जोयसं जुत्तं । सुरं च स्वास नि:स्वासं, चंदं सूरं च गहन पज्जलियं ॥ १३१ ।। (१००) Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ELLER LILIT श्री उपदेश शुद्ध सार जी प्रपंच विभ्रम सहियं, अनेय भेय सरनि संसारे । लोक मूढ कल रंज, कलुस भाव नंत सरनि संसारे ॥ १३२ ॥ तवं च वय संजुत्तं, कल सहकार अनिस्ट दिस्टि संजुत्तं । तव वय कुमय संजुत्तं, अनेय विभ्रम नरय वीयम्मि ॥ १३३ ।। कलं सुभाव न नितं, नितं जानेइ अन्यान सहकारं । कल रंजन दुबुहि जुत्तं, अनित सहकार दुग्गए पत्तं ॥ १३४ ।। कलं सहाव समलयं, निम्मल जानेहि सौचि सहकारं । मलं च मल उववन्न, कलरंजन अन्यान सरनि संसारे ॥ १३५ ॥ कलं सहाव असुद्धं, स्नानं सौचि सुद्ध जानेहि । ते मूढा अन्यानी, कल सहकारेन दुग्गए पत्तं ॥ १३६ ॥ कलं च असुचि सहावं, एवंदी पुग्गलं सौचि जानेहि । दोषं दोष उपत्ति, अन्मोयं संसार सरनि वीयम्मि ॥ १३७ ॥ कलं च विप्रिय रूवं, स्थानं सर्वस्य असुद्ध जानेहि । न्यान सहाव न पिच्छं, अन्मोयं अनंत दृष्य वीयम्मि ॥ १३८ । कलं च रूव संजुत्तं, कल इस्टी अन्यान अन्मोय संजुत्तं । न्यानंकुर अंतरयं, कल सहकारेन सरनि संसारे ॥ १३९ ॥ गलं च पूरन भावं, अनित असरन असुचि जानेहि । न्यानं अंतर दिट्ठी, अन्मोयं कल दुग्गए पत्तं ॥ १४० ॥ कल संबंध सरूवं, ग्रह परिवार सयल संमिलियं । जिन वयनं अंतरयं, कल सुभाव नरय वीयम्मि ॥ १४१ ।। कल संबंध स उत्तं, पर अप्पा भाव सुपएसं । न्यानंतरं स दिटुं, पर अन्मोय सरनि संसारे ॥ १४२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कल संबंध सुभावं, पर पज्जाव अप्प स उत्तं । अन्यानं मिच्छातं, अन्मोय नरय दृष्य वीयम्मि ॥ १४३ ।। कल अन्मोय स उत्तं, पर पर्जाव वयन अप्पानं । पर विद्धं च स उत्तं, न्यानंतरं नरय दुष्य वीयम्मि ॥ १४४ ।। कल संकप्प वियप्पं, कल दिस्टी च अनिस्ट संजुत्तं । न्यान सहाव न दिट्ठ, न्यानं आवर्न दुष्य संतत्ता ॥ १४५ ।। कल परिनाम उवन्नं, लाज भय गारवेन दिढेई । ससंक न्यान सहकार, कल संजोय दुष्य वीयम्मि ॥ १४६ ।। कलं च उत्साह दिटुं, अन्यानं सहाव अन्मोय संदिहूँ । न्यानंकुरं न लहियं, न्यानं आवर्न नरय वीयम्मि ॥ १४७ ।। कलरंजन दोष उवन्नं, असुद्धं अन्यान अन्मोय सहकारं । पर पुग्गलं सरूवं, कलरंजन दोष दुग्गए पत्तं ॥ १४८ ॥ कलरंजन जिन उवएस, सुद्धं सम्मत्त न्यान सहकारं । दंसन अनंत दर्स, अप्पा परमप्प लष्य सुभावं ॥ १४९ ॥ चरनंपि दुविह भेयं, सहकारेन तवंपि विमलं च । दंसन चौविहि जुत्तं, न्यानं अवयास तजंति अन्यानं ॥ १५० ।। सुद्ध सहावं पिच्छदि, अप्पा सुद्धप्प विमल झानत्थं । विन्यान न्यान सुद्धं, न्यान सहावेन सयल तं भनियं ॥ १५१ ॥ अन्यानं नहु पिच्छदि, न्यान सहावेन रूव रूवं च । दुबुहि रूव नहु दिटुं, सुद्धं न्यानं च रूव मिलियं च ॥ १५२ ॥ जायि कुलं नहु पिच्छदि, सुद्धं संमत्त दंसनं पिच्छइ । न्यान सहाव अन्मोयं, अन्यानं सल्य मिच्छ मुंचेइ ॥ १५३ ॥ (१०१) Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी न्यानस्य न्यान रूवं, दंसन दंसेइ न्यान सहकारं । अन्यान मिच्छ तिक्तं, न्यानं अन्मोय रूव रूवं च ॥ १५४ ॥ लहु दीरघ नहु पिच्छड़, न्यान सहावेन अन्मोय संजुत्तं । हितमित परिनइ सुद्धं, कोमल परिनाम अन्मोय संजुत्तं ॥ १५५ ॥ सम्मत्त सहित दंसन, न्यान सहित चरन तवयरनं । ममलं ममल सहावं, अन्मोयं न्यान सुग्गए जंति ॥ १५६ ।। मनरंजन गारव उत्तं, मन सहकारेन सहाव संजुत्तं । मन उववन्न सहावं, मन आनंद गारवं भनियं ।। १५७ ॥ गारव मन संजुत्तं, गारव संसार सरनि मोहंधं । मन विषयं च सहावं, मन सहकारेन गारवं दिढें ॥ १५८ ॥ वय तव गहन उवन्नं, छाया कुन्यान संजुत्त वय गहनं । कुन्यानं च उवन्न, गारव अन्मोय नरय वासम्मि ॥ १५९ ॥ संजम सम्मत्त सुभावं, छाया मिच्छत्त सल्य दुर्बुद्धि । मिच्छा मय ससहावं, गारव उववन्न दुष्य वीयम्मि ॥ १६० । सुतं च अनेय भेयं, अंग पुव्वाइ मिच्छ संजुत्तं । गारव मएहि रइयं, मनरंजन राग नरय वासम्मि ॥ १६१ ॥ तवं च तीव्र सहियं, सम्मत्तं सुद्ध मिच्छ सभावं । पर पिच्छंतो गारव, पर पज्जाय नंत दुष्य वीयम्मि ॥ १६२ ।। मन उववन्न सहावं, मन ससहावं च सहनि उवसगं । अन्यानं पिच्छंतो, तव षंडं नरय दुष्य वीयम्मि ॥ १६३ ॥ मनरंजन सुभावं, सोभा सहकार जलस्य सुचि चित्तं । अन्यानं मिच्छत्तं, जलं सहावेन थावरं पत्तं ॥ १६४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सचित्त सहावं धरनं, चित्त सहावेन अन्मोय पर पिच्छं । पज्जावस्य उवन्नं, पज्जय रत्तो तिरिय दुष्य वीयम्मि ॥ १६५ ।। मन मूलं चंचल उत्तं, चंचल सभाव सरनि संसारे । जिन उत्तं नहु पिच्छं, जन उत्तं सहाव गारवं भनियं ॥ १६६ ॥ मनरंजन स सहावं, सचित्त चित्तस्य भाव संजदो होति । मन सुभाव पर पिच्छं, पज्जय रत्तो सुदुग्गए सहियं ॥ १६७ ।। तव वय किरिय स उत्तं, मुत सभाव सयल विन्यानं । अनेय कस्ट अनिस्टं, गारव भावेन निगोय वासम्मि ॥ १६८ ॥ गलिय सुभाव न दिढ़, चेयन आनंद चित्त नहु पिच्छं । सूषम सुभाव रहियं, गारव सहकार दुष्य वीयम्मि ॥ १६९ ।। परपंच वित्ति पिच्छंतो, विभ्रम सुभाव सयल उपपत्ती । विन्यान न्यान नहु पिच्छं, गारव सहकार निगोय वीयम्मि ॥ १७० ॥ दंसन मोहंध स उत्तं, दर्सइ अन्नं च मोहए अंधं । दंसन मोहंध कहियं, अन्यानं नरय दुष्य वीयम्मि ॥ १७१ ।। दर्सइ दंसन उत्तं, अदर्सन सहकार रूव सहियानं । उत्तं जिन उत्त परं, मोहंधं दिस्टि रूव कलिदानं ॥ १७२ ।। देवं देवाधिदेव, देवं वर न्यान दंसनं समग्गं । चरनं अनंत वीज, दर्सन मोहंध अदेव देवं च ॥ १७३ देवं अरूव रूवं, रूवातीतं च विगत रूवेन । न्यानमई ससहावं, दर्सन मोहंध रूव देवं च ॥ १७४ ॥ देवं ऊर्ध सहावं, देवं तिलोयमंत सुपएसं । देवं अनंत नंतं, दर्सन मोहंध अनितं देवं ॥ १७५ ॥ (१०२) Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी देवं अनंत दिस्टी, इस्टी संजोय सहाव परमिस्टी । आनंदं परमानंद, दर्सन मोहंध असत्य देवं च ॥ १७६ ।। अनंत चतुस्टय सहियं, आचरनं चरन सयल सुइ रूवी । सहजानंद सुभावं, दर्सन मोहंध अदेव देवं च ॥ १७७ ।। देवं च सल्य रहियं, देवं परिनाम सयल सुइ रुवी । देवं च परम देव, दर्सन मोहंध अनिस्ट देवं च ॥ १७८ ॥ देवं अलष्य लष्यं, देवं संसार सरनि विगतोयं । मिथ्या राग विमुक्कं, दर्सन मोहंध मिथ्य देवं च ॥ १७९ ॥ दर्सन मोहंध सुभावं, अनित असत्य देव उत्तं च । आचरनं संसार मइओ, दर्सन मोहंध दुग्गए पत्तं ॥ १८० ॥ मोहंधं च सुभावं, कुदेवं देव सयल सहकारं । अदेवं अन्मोयं, दर्सन मोहंध निगोय वासम्मि ॥ १८१ ।। गुरुं च गुपित उवएसं, गुरुं च अप्प सुद्ध सभावं । दंसन न्यान पहानं, दर्सन मोहंध अगुरु गुरुवं च ॥ १८२ ।। गुरु उवएस स उत्तं, सूष्यम परिनाम कम्म संषिपनं । गुरुं च विमल सहावं, दर्सन मोहंध समल गुरुवं च ॥ १८३ ॥ गुरुं च मग उवएस, अमगं सयल भाव गलियं च । गुरुं च न्यान सहावं, दर्सन मोहंध अन्यान गुरुवं च ॥ १८४ ।। गुरुं च लोय पयासं, चेलं ससहाव ग्रंथ मुक्कं च । ममल सहावं सुद्धं, दर्सन मोहंध समल गुरुवं च ॥ १८५ ॥ गुरुं सहाव स उत्तं, रागं दोसं पि गारवं तिक्तं । न्यानमई उवएसं, दर्सन मोहंध राइ मय गुरुवं ॥ १८६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी गुरुं च दर्सन मइओ, गुरुं च न्यान चरन संजुत्तो । मिथ्या सल्य विमुक्कं , दर्सन मोहंध सल्य गुरुवं च ॥ १८७ ।। दर्सन मोहंध अदर्स, गुरु अगुरुं च न्यान विन्यानं । गुरुं च गुनं नहु पिच्छं, अगुरुं अन्मोय दुग्गए पत्तं ॥ १८८ ॥ गुरुं च लष्य अलष्यं, अगुरुं संसार सरनि उक्तं च । गुन दोसं नवि जानइ, दर्सन मोहंध नरय वीयम्मि ॥ १८९ ।। गुरुं च षिपनिक रूवं, अगुरुं अभाव सयल उक्तं च । तस्य गुनं अन्मोयं, दर्सन मोहंध निगोय वासम्मि ॥ १९० ॥ श्रुतं च श्रुत उववन्नं, श्रुतं च न्यान दंसन समग्गं । श्रुतं च मग उवएस, दर्सन मोहंध कुश्रुत अन्मोयं ॥ १९१ ॥ श्रुतं च अष्यर मइओ, श्रुतं च सुर विंजनस्य पद सहियं । श्रुतं च जिनयति वयनं, दर्सन मोहंध विकह श्रुतं च ॥ १९२ ।। श्रुतं च षिपनिक रूवं, षिपिओ कम्मान तिविहि जोएन । विकहा विसन अश्रुतं, दर्सन मोहंध अश्रुतं पिच्छह ॥ १९३ ।। सास्वतय रूव संश्रुतं, अनित असत्य अश्रुतं जानेहि । श्रुतं जिन उत्त परं, दर्सन मोहंध अश्रुत परिनामं ॥ १९४ ।। श्रुत अश्रुतं न पिच्छदि, गुन दोसं नवि बुज्झए अंधं । अंधं अंध सहावं, दर्सन मोहंध निगोय वासम्मि ॥ १९५ ।। दर्सन अनंत दर्स, सूषम दर्सेइ कम्म विलयंति । दसति नंतनंतं, दर्सन मोहंध अदर्सनं दिढें ॥ १९६ ॥ दर्सन अरूव रूवं, दर्सन दर्सेइ मोष मग्गस्य । दर्सन ममल सहावं, दर्सन मोहंध समल दर्सति ॥ १९७ ।। (१०३) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी दर्सन दिवि स दिटुं, इस्टं संजोय दर्सए सुद्धं । सुद्धं च ममल दर्स, दर्सन मोहंध अनिस्ट दर्सति ॥ १९८ ॥ दर्सेड इस्ट दर्स, इस्टं दर्सेड लोय अवलोयं । इस्टं अनंतनंतं, दर्सन मोहंध मिच्छ दर्सति ॥ १९९ ॥ दर्सन मोहंध सहावं, अत्रित अनिस्ट असहाव संजुत्तं । कलं सहावं रसियं, पज्जय दिस्टि सरनि संसारे ॥ २०० ॥ दसति असुद्ध दर्स, रूव सहावेन सरनि संसारे । अनित अचेत सहावं, दर्सन मोहंध दुग्गए पत्तं ॥ २०१ ॥ दर्सन मोहंध असुद्धं, कल लंक्रित कर्म दर्स दर्सेई । पज्जावं पिच्छंतो, अन्यानं अन्मोय निगोय वासम्मि ॥ २०२ ॥ न्यानं च परम न्यानं, न्यानं सहकार मिच्छ तिक्तं च । न्यानं च ममल सहावं, दर्सन मोहंध पज्जाव आवरनं ॥ २०३ ॥ न्यानं च सुकिय सुभावं, न्यानं च षिपिय तिविहि कम्मानं । न्यानं अनंत रूवं, दंसन मोहंध न्यान आवरनं ॥ २०४ ॥ न्यान सहाव स उत्तं, न्यानं दर्सेइ नंत सहकारं । दर्सन मोहंध पज्जावं, अन्मोयं पज्जाव दुग्गए पत्तं ॥ २०५ ॥ न्यानं च विद्धि अवयासं, लोयालोयं च ममल सभावं । मल मुक्कं न्यान अन्मोयं, दर्सन मोहंध न्यान आवरनं ॥ २०६ ॥ न्यानं नंत विसेषं, न्यानं न्यानं च विद्धि सभावं । अन्मोयं वयन सहावं, दर्सन मोहंध वयन आवरनं ॥ २०७ ॥ न्यान सहावं उत्तं, सहकारे न्यान सहाव आयरनं । न्यानं अनंतनंतं, दर्सन मोहंध सहाव आवरनं ॥ २०८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी न्यानं परिनइ उत्तं, परिनवइ न्यान लोकलोकांतं । परिनइ प्रमान सुद्धं, दर्सन मोहंध परिनए आवरनं ॥ २०९ ॥ न्यानं हेय संजुत्तं, हितमित परिनवइ नंतनंताई। एयं ममल सहावं, दर्सन मोहंध हेय आवरनं ॥ २१० ॥ न्यानं कोमल रूवं, कोमल परिनवइ ममल सहकारं । ममलं ममल सहावं, दर्सन मोहंध कोमल आवरनं ।। २११ ।। न्यानं च दिस्टि ममलं, ममल सहावेन केवलं न्यानं । दिस्टं च नंत दिस्टिं, दर्सन मोहंध दिस्टि आवरनं ॥ २१२ ॥ दर्सन मोहंध सहावं, न्यानं आवरन सुकिय सुभावं । दुषिय कम्म उववन्नं, दुग्गड़ गइ भावना होई ॥ २१३ ।। दर्सन मोहंध विसेषं, पज्जय रत्तो पज्जाव संजुत्तो । आवरनं न्यान सहावं, पज्जय आवरन बे इंदिया जुत्तं ॥ २१४ ।। दर्सन मोहंध स उत्तं, अवयासं न्यान आवर्न सहकारं । अवयास नहु पिच्छइ, थावर उप्पत्ति अनेय कालम्मि ॥ २१५ ।। दर्सन मोहंध सुसमयं, न्यानं आवरन वयन सभावं । सो वयनं नवि पिच्छड़, नरयं बे इंदि अनेय कालम्मि ॥ २१६ ।। दर्सन मोहंध अंध, न्यानं आवरन देइ सहकारं । असहावं च उवन्नं, विकलत्तय नंत नंत कालम्मि ॥ २१७ ।। दर्सन मोहंध सुभावं, परिनइ आवर्न अन्यान सहकारं । परिनइ सहाव न दिढं, तिरिय गए कुदेव जानेहि ॥ २१८ ॥ दर्सन मोहंध सुभावं, हितकारस्य अन्यान सहकारं । हेयं कहंपि न दिटुं, विकलत्तय अनेय कालम्मि ॥ २१९ ।। (१०४) Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी दर्सन मोहंध अंधं, कोमल परिनाम न्यान आवरनं । कोमल सहाव न दिठें, निगोय वासं अनेय कालम्मि ॥ २२० । दर्सन मोहंध सहियं, न्यानं आवर्न देई दिस्टं च । दिस्टि सहाव न दिस्टं, थावर गइ अनेय कालम्मि ॥ २२१ ॥ न्यान आवरन स उत्तं, दर्सन मोहंध देई सहकारं । संसार सरनि बूडं, चौगइ संसार भावना होई ॥ २२२ ॥ दर्सन संमिक् दर्स, संमिक न्यानं च दर्सए सुद्धं । न्यानं दंसन चरनं, दर्सन मोहंध चरन आवरनं ॥ २२३ ।। दर्सन न्यान संजुत्तो, चरनं दुविहंपि संजदो होइ । दर्सन मोहंध असत्यं, चरनं आवरन सरनि संसारे ॥ २२४ ॥ दर्सन न्यान अनंतं, अनंत वीरी अनंत चरनानि । दर्सन मोहंध पज्जावं, चरनं आवरन दुग्गए पत्तं ॥ २२५ ॥ दर्सन अरूव रूवं, न्यानं च रूव चरन चारित्तं । सम्मत्त चरन चरनं, संजम चरनानि सुद्ध संजुत्तं ॥ २२६ ।। तस्य दिस्टि आवरनं, आवरनं मुक्ति ममल मग्गस्य । व्रत तव किरियं च अनिस्टं, चरनं आवरन थावरं पत्तं ।। २२७ ॥ चरनं चरिय तवत्तं, चरनं संसार सरनि मुक्तस्य । दर्सन मोहंध सुभावं, अनित चरनं नरय वासम्मि ॥ २२८ ।। चरनंपि सद्ध चरनं, पाषिक चरन पषि मोहंधं । पषि प्रवेस उवन्नं, चरनं आवरन पषि उववन्नं ॥ २२९ ।। दर्सन मोहंध स उत्तं, चरनं आवरन अनितं दिस्टं । अनाचार अन्यानं, चरनं आवरन निगोय वासम्मि ॥ २३० ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चरनंपि ममल चरनं, चरनं संजुत्त मुक्ति गमनं च । दर्सन मोहंध अभावं, चरनं आवरन दुष्य वीयम्मि ॥ २३१ ॥ चरनं सुद्ध सहावं, सुद्धं सहकार कम्म षिपनं च । दर्सन मोहंध असुद्धं, चरनं आवरन सरनि संसारे ॥ २३२ ॥ चरनं इस्ट संजोयं, इस्टं संजोइ नंत दरसेई । दर्सन मोहंध अनिस्टं, चरनं आवरन नरय वीयम्मि ।। २३३ ।। तवंपि अप्प सहावं, न्यान सहावेन चरन सहकारं । दर्सन मोहंध असत्यं, तव आवरन सरनि संसारे ॥ २३४ ॥ तप पुन इस्ट संजोयं, इस्टं सहकार कम्म विलयंति । दर्सन मोहंध अनिस्टं, तव आवरन विषय नरयम्मि || २३५ ।। अप्प सहावे निलयं, पर सहकार विमुक्त तव उत्तं । कस्टं अनिस्ट रूवं, दर्सन मोहंध दुग्गए पत्तं ।। २३६ ॥ तवं च अलष्य लष्यं, लषतो सहाव सुद्ध ममलं च । संसार सरनि विरयं, दर्सन मोहंध सरनि संजुत्तं ॥ २३७ ।। संसारे विरयंतो, संसारे सरनि सरंति नहु पिच्छं । न्यानी ससंक मुक्कं , दर्सन मोहंध ससंक ससरूवं ॥ २३८ ।। संसार सरनि अनितं, हिंडति संसार पषिनो भावं । न्यानी ससंक विरयं, दर्सन मोहंध संक उप्पत्ति ॥ २३९ ।। सरनि भाव उवलष्यं, व्रत तप किरियं च अन्यान सहकारं । न्यानी तं विरयंतो, अप्प सहावेन निसंक रूवेन ॥ २४० ॥ सरनस्य अनेय भावं, दानं किरियं च विकह रूवेन । न्यानी तं विरयंतो, ममल सहावेन निसंक सहकारं ॥ २४१ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी संसार मंत्र तंत्रं, टोटक सुभाव टेक नंताई । न्यानी विमुक्त भावं, न्यान सहावेन संक रहियं च ॥ २४२ ॥ दर्सन मोहंध भावं, संसार सरनि धरंति सभावं । जिन वयन नहु दिद्वं, अनंत संसार दुष्य वीयम्मि ॥ २४३ ।। संसार भाव उवलष्य, लाज भय गारवेन सभावं । जिन उत्तं नहु लष्यं, संसारे सरनि भावना होइ ॥ २४४ ॥ संसार सरनि सोधं, अभावं भाव सरनि सुविसुद्धं । जिन समय नहु पिच्छइ, दर्सन मोहंध दुग्गए पत्तं ॥ २४५ ॥ सरीरं विरयंतो, सरीर भाव असुह मुक्कं च । न्यानेन न्यान सुद्धं, दर्सन मोहंध सरीर सहकारं ॥ २४६ ॥ अनित असत्य सहियं, असुचि अमेय भाव अनंतानं । तं नितं जानंतो, दर्सन मोहंध अनिस्ट रूवेन ॥ २४७ ॥ सरीर भाव सहिओ, जिन उत्तं सुद्ध वयन नहु पिच्छं । मिच्छा कुन्यान सहिओ, दर्सन मोहंध दुग्गए पत्तं ॥ २४८ ॥ भोगं अनिस्ट रूवं, अनिस्ट भावेन सरनि संसारे । अनित भाव स भोग, दर्सन मोहंध अनित भोगं च ॥ २४९ ॥ भोगं संसार सुभावं, उवभोगं अभाव भाव उवलष्यं । अनिस्ट भोग स उत्तं, दर्सन मोहंध सुस्ट भोगं च ॥ २५० ।। भोग भोग सुभावं, विकहा विसन विषय भाव उवभोग । आलापं असुद्ध भावं, दर्सन मोहंध अनित भोगं च ॥ २५१ ॥ भोगं नंत विसेषं, अन्यानं तव वय किरिय विकह संजुत्तं । वयनं न सुद्ध वयनं, अनिस्ट रूवेन अंध अंधानि ॥ २५२ ॥ 'EEEEEEEEEEEEEEEEEEEE श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अंधं अंध सुभाव, दर्सन मोहंध दुष्य वीयम्मि । दुष्यं अनंत नंतं, संसारे नरय निगोय वासम्मि ॥ २५३ ।। उत्पन्नं मन चवलं, अनंत विसेषेन पर्जाव संदिहें । चेयन नंद सरूवं, अप्प सहावेन कम्म षिपिऊनं ॥ २५४ ।। मन चवलं उववन्नं, संसार सुभाव पर्जाव अनुरत्तं । अप्प सरूवं पिच्छदि, पर्जय विरतस्य कम्म षिपिऊनं ॥ २५५ ।। पर्जय सहाव उत्तं, सरीर संस्कार भाव उववन्नं । क्रित कारित अनुमतयं, पज्जय विवरिउ कम्म विरयंति ॥ २५६ ॥ इंदी सुभाव दिटुं, अनिस्ट संजोय सरनि संसारे । जिन वयनं पिच्छंतो, अतींदी भाव इंदि विरयंति ॥ २५७ ॥ जं इंदी च सहावं, तं जानेहि सयल मोहंधं । जिन उवएस लहतो, अतींदी सहकार कम्म विरयंति ॥ २५८ ।। दिस्टी दिस्टतु इंदी, दिस्टी संसार सरनि सभावं । जिन वयनं पिच्छंतो, दिस्टि अदिस्टि कम्म विरयंतु ॥ २५९ ॥ दिट्ठी प्रपंच भावं, दिट्ठी उववन्न पर्जाव सभावं । जिन सुभाव सहावं, अतींदी दिट्टि कम्म विरयंतो ॥ २६० ।। दिट्ठी विभ्रम रूवं, उत्साह उच्छाह दिट्टि ससहावं । जनरंजन जन उत्तं, अतींदी भाव कम्म विरयंति ॥ २६१ ।। दिट्ठी अनंत रूवं, जनरंजन कल सहाव संदिट्ठी । न्यान सहाव स उत्तं, अप्प सहावेन कम्म विरयंति ॥ २६२ ।। दिट्ठी मन उपपत्ती, दिट्टी दिटेइ अभाव भय उत्तं । न्यान सहाव उवन्न, अप्प सहावेन दुष्य विरयंति ।। २६३ ॥ | 1921 111111111111111 (१०६) Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी दिट्ठी नंत विसेषं, अन्मोयं पज्जाव भाव सभावं । न्यान सहावं सुद्धं, दिट्ठी विसेष कम्म विरयंति ॥ २६४ ॥ दिट्ठी अनंत रूवं, पज्जय सुभाव दिट्टि अन्मोयं । दुग्गड़ गमन सहावं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २६५ ॥ अदिस्ट सद्भाव उत्तं, सब्दं संसार सरनि पिच्छतो । कम्म उवन्नं भावं, अतींदी सहकार कम्म विरयंति ॥ २६६ ॥ सब्दं च सब्द रूवं, रसनि कसनि तंति तार फूकं च । सब्द सहाव सकम्म, अतिंदी सहकार कम्म विरयंति ॥ २६७ ॥ रसनस्य रसन भावं, कसनस्य कम्म भाव उपपत्ती । तंती अनंत भावं, अतिंदी सहकार कम्म विरयंति ॥ २६८ ॥ तारं नंत विसेषं, फूकं कम्मान भाव उववन्नं । सब्द सहाव असुद्धं, अतिंदी भाव कम्म विपनं च ॥ २६९ ।। सब्दं असब्द दिट्ठी, सब्दं सुह असुह कम्म बंधानं । संसार सरनि बूड, अप्प सहावेन कम्म षिपिऊनं ॥ २७० ।। सब्द च सुहं दिढे, पुन्य सहकार कम्म उपपत्ती । पुन्य पाव उववन्न, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७१ ॥ सब्दं पर आनंदं, सब्दं पज्जाव भाव उवलष्यं । सब्दं कम्म अनेयं, अप्प सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७२ ।। असब्दं च स उत्तं, असब्द कोह लोह संजुत्तं । असब्द अनर्थ रूवं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७३ ॥ असब्द अन्यान सुभावं, असब्द कम्मान तिविहि बंधानं । असब्द असुद्ध रूवं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिह्वा स्वाद अनंतं, जिह्वा विचलंति स्वाद सहियानं । स्वादं अनंत भावं, अप्प सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७५ ।। जिह्वा स्वाद सुभावं, स्वादं सुभाव कम्म उववन्न । कम्मान बंध बंधं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७६ ।। सरीर सुभाव उववन्नं, अबंभ भावेन कम्म बंधानं । दोसं अनन्त दिडं, अतिंदी सहाव कम्म विरयंति ॥ २७७ ।। एवं अनेय भावं, मन पज्जाव कम्म बंधानं । मन विलयं न्यान सहावं, अप्प सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७८ ।। वयनं असुद्ध वयनं, असुद्ध आलाप कम्म बंधानं । जनरंजन स सहावं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २७९ ।। वयनं असुद्ध वयनं, पज्जावं रंजेइ वयन सहकारं । जनरंजन मूढ सहावं, न्यान सहावेन वयन तिक्तंति ॥ २८० ॥ अन्यान सुभाव सुभावं, आलापं देइ कम्म उववन्नं । अन्यानं सहकारं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८१ ॥ वयनं कम्म उववन्नं, नंत विसेषेन नंतनंताई। गलियति पूरति उत्तं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८२ ।। वयनं सहाव उत्तं, नंत विसेषेन पज्जाव संजुत्तं । वयनं विरयंति सुद्धं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८३ ।। क्रितस्य कम्म उववन्न, क्रितस्य पुग्गल सहाव अनेयं । क्रितस्य बंध संबंध, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८४ ।। क्रितस्य असुद्ध कम्म, गृह बालेन ग्रही कर्म क्रितं च । अबंभ भाव अभावं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८५ ।। (१०७) Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी नो कर्म उववन्नं, भाव कम्मं च सयल असहावं । कम्म कम्म कलंक, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८६ ॥ पुन्य पाउ उववन्नं, हिंसानंदी च दोस संजुत्तं । अनित असत्य सहियं, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८७ ।। अत्रित नंद आनंद, स्तेय अबंभ नंद सहकारं । पुग्गल पज्जाव दिढे, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २८८ ॥ विषय सहाव स उत्तं, व्रत तप किरियं च कस्ट अनेयं । अन्यानं पिच्छंतो, न्यान बलेन कम्म विरयंति ॥ २८९ ॥ पुग्गल सहाव उत्तं, पज्जय अनिस्ट इस्ट सभावं । अन्यानं कम्म परं, न्यान बलेन कम्म विरयंति ॥ २९० ।। कम्मं कम्म विसेषं, भाव कुभाव कम्म उपपत्ति । संसरइ कम्म विरयं, पुन्नं कम्मं च भाव सुह उत्तं ॥ २९१ ॥ एकम्म कम्म जाने, जीव विरोह जीव घातं च । सरनस्य कम्म विरोहं, नंदं कम्मं च घाइ संजुत्तं ॥ २९२ ।। कम्म सहावं उत्तं, क्रित विरयं च कारितं विरयं । अनुमय विरयति सुद्ध, न्यान सहावेन कम्म विरयंति ॥ २९३ ॥ उत्पत्ति षिपति स कम्मं, न्यान सहावेन विरय कम्मान । न्यानेन न्यान सुद्ध, चेयन आनंद कम्म विरयंति ॥ २९४ ।। चिदानंद ससहावं, कम्मं न पिच्छेई नंद सहकारं । सुकिय सुभाव सुसमयं, न्यानानंदेन कम्म नहु पिच्छं ॥ २९५ ॥ चिदानंद चेतनयं, षिपनिक रूवेन कम्म संषिपनं । कम्म सहाव न पिच्छं, चिदानंद नंद ससरूवं ॥ २९६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चिदानंद लष्यनयं, लष्यंतो न्यान झान विन्यानं । अलषं लपंतु रूवं, लष्यंतो कम्म नहु पिच्छं ॥ २९७ ।। चिदानंद चिंतवनं, चिंतंतो न्यान ममल सभावं । मलं सुभाव न दिडं, चेयन आनंद कम्म संषिपनं ॥ २९८ ॥ चिदानंद संदिटुं, दंसन दंसेइ न्यान सहकारं । चरनं दुविहि संजोयं, न्यान सहावेन कम्म संषिपनं ॥ २९९ ।। चिदानंद सहकारं, न्यान विन्यान सहाव संजुत्तं । अंकुर न्यान सहावं, नंदं आनंद कम्म संषिपनं ॥ ३०० ।। चिदानंद संदिढे, दिट्ठी दिट्टेइ न्यान अन्मोयं । पज्जाव नहु पिच्छदि, दिट्ठी आनंद कम्म संषिपनं ॥ ३०१ ।। चिदानंद सुभावं, अन्मोयं देइ न्यान विन्यानं । पज्जावं नहु दिद्वं, सुकिय सुभाव कम्म विपनं च ॥ ३०२ ॥ पिपिओ संसार सभावं, षिपिओ नंत नंत कम्मान । अन्मोयं न्यान सभावं, कम्मं षिपिऊन तिविहि जोएन ॥ ३०३ ।। चिदानंद आनंद, न्यान सहावेन सभाव आनंदं । न्यानेन न्यानमालंब्यं, अन्मोयं कम्म नंत संषिपनं ॥ ३०४ ॥ चिदानंद परिनामं, परिनवै न्यान विन्यान सहकारं । पर पर्जाव न दिलु, परिनवै अन्मोय कम्म विपनं च ॥ ३०५ ।। चिदानंद षिपिऊन, षिपिओ कम्मान तिविहि जोएन । न्यान विन्यान सुभावं, लघु गुरुवं च न्यान अन्मोयं ॥ ३०६ ॥ न्यानं न्यान सहावं, न्यानं विन्यान कम्म संषिपनं । ममल सहावं उत्तं, न्यानेन न्यान ममल मिलियं च ॥ ३०७ ॥ (१०८ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी चिदानंद सभावं, उवट्ठ परम जिनवरिंदेहि । परम सहावं सुद्धं, चेयन आनंद निव्वुए जंति ।। ३०८ ॥ चिदानंद आनंद, परम सभावेन कम्म संषिपनं ।। सीह सभाव सुदिटुं, जं गयंद जूहेन दिट्टि विरयंति ॥ ३०९ ॥ तं सुभाव स भावं, परमं आनंद चेयनं सहियं । कम्मं तिविहि विमुक्कं, ममलं न्यानेन सिद्धि संपत्तं ॥ ३१० ॥ गलियं सभाव उत्तं, गलियं कम्मान तिविहि जोएन । गलियं परिनाम असुद्धं, गलियं विषयं च मिच्छ सभावं ॥ ३११ ॥ गलियं कुन्यान स उत्तं, गलियं परिनाम गलिय मोहंधं । न्यान सहावं सुद्धं, ममल सुभाव मुक्ति गमनं च ॥ ३१२ ॥ गलिय सहावं उत्तं, गलियं सल्लं च राग दोसं च । गारव गलिय अनिटं, न्यान सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ३१३ ॥ गलियं घाय चउक्कं, गलियं संसार सरनि सहकारं । गलियं कम्म स उत्तं, न्यान सहावेन जंति निव्वानं ।। ३१४ ॥ गलियं अर्थ अनर्थं, गलियं अन्मोय अन्यान सहकारं । गलियं पुग्गल रूवं, न्यान सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ३१५ ॥ गलियं मनस्य रुचियं, गलियं वचनस्य असुह सुह जननं । कल लंक्रित कम्मसुगलियं, गलियं सभाव कम्म नहु पिच्छं ॥ ३१६ ॥ गलियं गमनागमनं, गलियं च कप्प वियप्प सम्बंधं । गलियं मान कषायं, गलियं कम्मान सव्वहा सव्वे ॥ ३१७ ॥ चौदस प्रान उववन्नं, उववन्नं ममल केवलं न्यानं । केवल दर्सन दर्स, नंत चतुस्टय सुभाव संतुस्टं ॥ ३१८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी नंतानंत सुदिटुं, लोयं अवलोय लोकनं भावं । आनंदं परमानंदं, परमप्या परम निव्वुए जंति ॥ ३१९ ।। विलय सुभाव स उत्तं, कम्म निबंधाइ कम्म विलयंति । ममल सुभावं दिलु, अन्मोयं ममल सिद्धि संपत्तं ।। ३२० ॥ कम्म सुभावं विलयं, सिद्ध सहावेन ममल न्यानस्य । अन्मोयं उवएस, परम जिनं ममल सिद्धि संपत्तं ॥ ३२१ ॥ ममलं ममल सहावं, ममलं ममलं च लब्ध सभावं । अन्मोयं ममल स उत्तं, ममल सहावेन सिद्धि संपत्तं ॥ ३२२ ॥ नंत चतुस्टय जुत्तं, अयसय पडिहार ममल न्यानं च । चौदस प्रान संजुत्तं, न्यानं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ ३२३ ॥ न्यानं दंसन सम्म, दानं लाभं च भोय उवभोयं । वीर्ज सम्मत्त सुचरनं, लब्धि संजुत्त सिद्धि संपत्तं ॥ ३२४ ।। न्यानं च परम न्यानं, न्यानं विन्यान न्यान सहकारं । अध्यर सुर विजन रूवं, विन्यानं जानंति अप्प परमप्पं ॥ ३२५ ॥ अण्यर अषयं रूवं, अषय पदं अषय सुद्ध सभावं । अषयं च ममल रूवं, ममल सहावेन निव्वुए जंति ॥ ३२६ ॥ न्यानं अष्यर सुरयं, न्यानं संसार सरनि मुक्कं च । अन्यान मिच्छ सहियं, न्यानं आवरन नरय वासम्मि ॥ ३२७ ।। सुरं च सुयं सरूवं, सुरं च सुद्ध समय संजुत्तं । जइ जनरंजन सहियं, न्यानं आवरन थावरं पत्तं ॥ ३२८ ।। सुरं च सुर्य सुलष्यं, अलषं लषियं च सुरं ससहावं । जइ कलरंजन विषयं, न्यानं आवरन नरय वीयम्मि ॥ ३२९ ।। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी सुरं च सुद्ध उवन्नं, सुरं च षिपिओ हि सुर्य कम्मानं । मनरंजन गारव सहियं, न्यानं आवरन थावरं वीयं ।। ३३० ॥ सुरं च सुयं विपनं, सूषम सभाव ममल न्यानं च । पज्जय सहाव रुचियं, न्यानं आवरन नरय संजुत्तं ॥ ३३१ ॥ सुरं च सूषम रूवं, सुरं च संसार विषय विरयंमि । जदि पज्जय सरनि संजुत्तं, न्यानं आवरन थावरं पत्तं ॥ ३३२ ॥ विंजन सहाव विन्यानं, विन्यानं जानंति अलष लष्यं च । न्यान हीन पज्जावं, न्यानं आवरन दुग्गए पत्तं ॥ ३३३ ।। विंजन विन्यान जनयं, लोकं अवलोक लोकनं सुद्धं । जड़ पज्जाव संजुत्तं, न्यानं आवरन दुग्गए पत्तं ॥ ३३४ ।। अष्यर सुर विंजनयं, पदं च परम तत्त परमिस्टी । पद लोपन पज्जावं, न्यानं आवरन नरय गइ सहियं ॥ ३३५ ॥ पदं च अर्थ संजुत्तं, अर्थ तिअर्थं च न्यान सहकारं । पद विनस्ट पर पिच्छं, न्यानं आवरन थावरं सहियं ॥ ३३६ ।। पदं च सब्द संजुत्तं, पदं च परम भाव संदर्स । सब्दं विनस्ट रूवं, पर पर्जाव न्यान आवरनं ॥ ३३७ ।। पद अर्थ सब्द सुभावं, न्यान विन्यान भाव सुइ रूवी । रागं जन रंजनयं, न्यानं आवर्न दुष्य वीयम्मि ॥ ३३८ ॥ पद रहियं अन्यानं, श्रुत उत्तं पज्जाव दिट्टि संदर्स । व्रत तव क्रिय अन्यानं, न्यानं आवरन सरनि संसारे ॥ ३३९ ।। पदं च पद वेदंतो, पद दर्स विन्यान विंदु दर्संतो । पद विन्यान विहीनो, न्यानं आवरन निगोय वासम्मि ॥ ३४० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पद विंदं सर्वन्यं, पद विंदं परम केवलं न्यानं । पद विंद रहिय अनिस्ट, न्यानं आवरन दुष्य वीयम्मि ॥ ३४१ ।। पद विंदं च सहावं, पदर्थं परम अर्थ ससरुवं । जइ पज्जाव सहावं, न्यानं आवरन सरनि संसारे ॥ ३४२ ।। पद विंदं परमानंद, दिग अंगं सर्वन्य सुद्ध ससरूवं । जइ परमानंद पज्जावं, न्यानं आवरन दुष्य वीयम्मि ॥ ३४३ ।। पद विंदं परमिस्टी, इस्टी संजोग कम्म विपनं च । जड़ पज्जावं सहियं, न्यानं आवरन दुग्गए पत्तं ॥ ३४४ ।। पद विंदं च उवन्नं, परमं परम तत्त परमप्पं । जइ इस्ट विओय अनिस्टं, न्यानं आवरन चउ गए भमियं ॥ ३४५ ।। अर्थं च अर्थ सुद्धं, अर्थं तिअर्थ सुद्ध परमत्थं । अर्थ विरय अनर्थं, न्यानं आवर्न अनितं दिटुं ॥ ३४६ ॥ अर्थ तिअर्थं सुद्ध, सम सम्पूर्न न्यान समयं च । न्यान विहीन अनर्थं, पज्जय सहकार न्यान आवरनं ॥ ३४७ ।। अर्थ अवयास अर्थ, अवयासं सुद्ध ममल न्यानस्य । अवयास रहिय अन्यानं, न्यानं आवर्न नरय वीयम्मि || ३४८ ।। अवयासं सुद्ध सहावं, अवयासं परम भाव उवलद्धं । अवयास कम्म षिपनं, अवयासं रहिय न्यान आवरनं ॥ ३४९ ।। अवयास नंतनंतं, नंत चतुस्टय च ममल सभावं । अवयास हीन का पुरिसा, न्यानं आवरन सरनि संसारे ॥ ३५० ॥ सदर्थं अर्थ सहावं, सहकारेन सदर्थ विन्यानं । अनितं अचेत अनर्थं, अन्यान कस्ट न्यान आवरनं ॥ ३५१ ।। (११०) Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी सहकार अर्थ ससहावं, सहजोपनीत सहाव सदर्थ । अनेय विभ्रम सहियं, न्यानं आवरन दुग्गए पत्तं ॥ ३५२ ॥ सब्दं सदर्थ रूवं, सब्दं षिपिऊन कम्म तिविहेन । सब्दं अलष्य लष्यं, सब्दं अनिस्ट न्यान आवरनं ॥ ३५३ ॥ वयनं च कम्म जिनियं, वयनं च सुद्ध सहाव निम्मलयं । वयनं सास्वय रूवं, अनिस्ट वयनं च न्यान आवरनं ॥ ३५४ ॥ वयनं च नितं वयनं, नितं सहकार अनितं विरयं । जड़ अजित उवएस, न्यानं आवरन दुष्य वीयम्मि ॥ ३५५ ॥ न्यानं च ममल न्यानं, न्यानं सहकार कम्म संषिपनं । पज्जावं नहु पिच्छदि, न्यान सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ३५६ ॥ दर्सन अनंत दर्स, दर्सन विन्यान न्यान सहकारं । दर्सन भेय चउक्कं, दंसन दंसेइ अप्प परमप्पं ॥ ३५७ ।। चष्यं दर्सति सुद्ध, अचष्य दर्सन दर्सयति सुद्धं । अवधे अवहि संजुत्तं, केवल दंसेड़ नंतनंताई ॥ ३५८ ॥ चष्यं च सुद्ध भावं, चष्यं च ममल दिस्टि सभावं । संसार सरनि विरयं, पज्जय रत्तं च चषु आवरनं ॥ ३५९ ॥ वरन विसेष न दिस्टं, नह दिट्ट असुद्ध भाव अनिस्टं । इस्टं संजोय दिटुं, पर्जय रूवं च चषु आवरनं ॥ ३६० ।। चष्यं ममल सहावं, दंसन न्यानेन अन्मोय संजुत्तं । अन्मोयं अंतरयं, चष्यं आवरन दुग्गए पत्तं ॥ ३६१ ॥ चष्यं च दिस्टि इस्टं, अतींदी सभाव न्यान सहकारं । दंसन सुद्ध अन्मोयं, दंसन आवरन पज्जाव संदिट्ठ ॥ ३६२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दंसेइ मोष मग, मल रहिओ सुद्ध दंसनं ममलं । असत्यं असरन तिक्तं, दंसन सहकार कम्म विलयति ॥ ३६३ ॥ अचष्यं दंसन उत्तं, सब्दं सहकार न्यान विन्यानं । कम्म मल सुयं च विपनं, अचषु दर्सन दर्सए सुद्धं ॥ ३६४ ।। दर्सति लोय अवलोयं, दंसन दंसेइ मुक्ति सहकारं । पज्जावं पर उत्तं, दंसन आवरन सरनि संसारे ॥ ३६५ ।। दंसन अनंत रूवं, दंसन दिट्ठी च कम्म विपिऊनं । जदि पज्जय अनुरतं, दंसन आवरन बेन्द्रिया पत्तं ॥ ३६६ ।। दंसेइ तिहुवनग्गं, दंसन न्यानं च अन्मोय संजुत्तं । जदि पज्जाव सुभावं, दंसन आवरन दुष्य वीयम्मि || ३६७ ।। दंसन षिपनिक रूवं, दंसन सहकार कम्म विलयंति । जदि पज्जाये रत्तं, दंसन आवरन सरनि संसारे ॥ ३६८ ।। दंसन ममल सहावं, न्यान विन्यान दंसनं सुद्ध । जं सरनि भाव सहकारं, दंसन आवरन दुष्य संतत्तं ॥ ३६९ ।। दंसन अरूव रूवं, रूवातीतं च निम्मलं ममलं । जदि कल इस्ट सुभावं, दंसन आवरन नंत संसारे ॥ ३७० ॥ इस्ट संजोयं दिस्टं, इस्ट षिपिऊन कम्म तिविहेन । जदि अनिस्ट दिस्ट सहकारं, दंसन आवरन वितरं पत्तं ॥ ३७१ ॥ दंसन परिनै उत्तं, अनंत चतुस्टय ममल सहकारं । आनंदं परमानंद, दंसन धरनं च मुक्ति गमनं च ॥ ३७२ ॥ मोहं पमान उत्तं, अप्पा परमप्प लोक लोकं च । जदि सरनि भाव मोहंधं, चौ गइ संसार सरनि मोहं च ॥ ३७३ ॥ (१११) Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी मोहं च परम मोहं, न्यानं अन्मोय मोह सहकारं । जदि कल इस्ट विमोहं, पुग्गल सभाव नंतनंताई ॥ ३७४ ॥ मोहं दंसन सुद्ध, सुद्धं न्यानं च कम्म षिपिऊनं ।। जदि पज्जय मोह सहावं, पज्जायं लिंति नंतनंताई ॥ ३७५ ।। मोहं न्यान मइओ, इस्टं मोहं च विगत संसारे । जदि कल मोह सहावं, कल सहकार नंत संसारे ॥ ३७६ ॥ मोहं दंसन न्यानं, चरनं तव सहाव इस्टं च । जदि अनिस्ट मोहंधं, अनिस्ट संसार सरनि वीयम्मि ॥ ३७७ ॥ मोहं परमप्पानं, मोहं न्यान परंपराइ सौष्याई । जदि मोहं पज्जावं, पज्जय रत्तं संसार दुष्य वीयम्मि ॥ ३७८ ।। आनंदं परमानंद, परमप्पा परम भाव दरसेई । हितमित न्यान सहावं, ममल सहावेन निव्वुए जंति ॥ ३७९ ।। न्यानं च न्यान रूवं, न्यान सहावेन दंसनं ममलं । अन्मोयं पज्जावं, न्यानंतरं च नरय वीयम्मि ॥ ३८० ।। न्यानं न्यान सुसमयं, न्यानी अन्मोय ममल सहकारं । जदि पज्जय अन्मोयं, अंतर आवरन दुग्गए पत्तं ॥ ३८१ ।। न्यानं च सुद्ध भावं, सुद्धं अवयास नंतनंताई। जदि पज्जय सहकारं, पज्जय अन्मोय निगोय वासम्मि ॥ ३८२ ।। नंत चतुस्टय जाने, न्यानंकुर अन्मोय ममल मिलियं च । जदि पज्जाव सुभावं, न्यानं अंतर दुष्य वीयम्मि ॥ ३८३ ॥ पज्जावं पर पिच्छं, पज्जाव नंत विसेष संदिहुँ । पज्जावं विरयंतो, न्यानं अन्मोय कम्म संषिपनं ॥ ३८४ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जदि कस्टं च अनेयं, श्रुतं तवं च नंतनंताई। जदि पज्जावं पिच्छदि, न्यानंतरं दुष्य वीयम्मि ॥ ३८५ ।। न्यान सहावं जानदि, न्यानं विन्यान मनुव रंजेई । न्यान अन्मोय अंतरयं, अन्यानं सहकार नरय वासम्मि ॥ ३८६ ।। न्यानं दंसन सम्म, चरनं चरन्ति मनुव रंजेई । जदि पज्जाव सदिटुं, नवि न्यानं नवि दंसनं चरनं ॥ ३८७ ।। अन्यानं भत्तीए, अन्यानं सहकार न्यान विरयंतो । तव वय क्रिय पज्जावं, अन्यानं सहकार दुष्य वीयम्मि ॥ ३८८ ।। नो कम्मं पिच्छंतो, भाव कम्मं च पिच्छ विरयंतो । दव्व कम्म नहु पिच्छदि, न्यानंतरं अनन्त संसारे ॥ ३८९ ॥ पज्जावं च अनंतं, पज्जाव सरूव न्यान अन्मोयं । जदि अंतरं न दिट्ठ, न्यानं ममल सहाव सिद्धि संपत्तं ॥ ३९० ॥ इय घाय कम्म मुक्कं, मुक्कं संसार सरनि सल्यं च । कम्मं तिविहि विमुक्कं, ममल सहावेन सिद्धि संपत्तं ॥ ३९१ ।। अन्यान भाव मुक्कं, मिच्छा विषयं च राग संषिपनं । विपियं नंत अभावं, न्यानं अन्मोय कम्म विपनं च ॥ ३९२ ।। परिनाम अन्यानं, जनरंजन राग सहाव विपनं च । कलरंजन दोष विलयं, मनरंजन गारवं च विलयंति ॥ ३९३ ॥ एयं अनेय रूवं, रूवातीतं च कम्म मोहंधं । उत्पन्नं षिपिऊनं, षिपिओ कम्मानि नंतनंताई ॥ ३९४ ।। विपिओ नंत विसेषं, षिपिओ सभाव पुन्न पावं च । मन सहकारं षिपिनं, मन उववन्न कम्म संषिपनं ॥ ३९५ ॥ (११२) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी षिपिओ समल विसेषं, षिपिओ कषाय विषय संबंधं । पिपिओ नंत अभावं, षिपिओ पज्जाव दिट्ठि अनिस्टं ॥ ३९६ ॥ विपिओ ति मूढ भावं, षिपिओ परिनाम अजीव पज्जावं ।। विपिओ कम्मनिबंध, षिपिओ संसार सरनि संबंधं ॥ ३९७ ।। ममल सहावं दिटुं, ममल परिनाम नंतनंताई । ममल सहाव सुसमय, ममलं उत्पन्न मुक्ति गमनं च ॥ ३९८ ॥ अन्मोयं न्यान सहावं, न्यानं अन्मोय ममल न्यानं च । ममलं च दंसनत्वं, नंत चतुस्टय मुक्ति गमनं च ॥ ३९९ ।। षिपिओ कम्म सुभावं, ममल सुभाव सयल षिपिऊनं । आवरनं नहु पिच्छइ, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४०० ।। संसार सरनि सहियं, संसारे सरंति परिनाम विरयति । न्यानावरन न दिढे, न्यान सहकार सरनि मुक्कं च ॥ ४०१ ॥ पर भावं पर सहियं, पर सहकार नंत विरयंति । आवरनं नहु पिच्छदि, न्यान सहावेन पर भाव षिपनं च ॥ ४०२ ॥ पज्जावं नंत विसेषं, अनंत परिनाम पज्जाव विरयंति । आवरनं नह दिट्ठ, दंसन दिट्ठी च कम्म षिपिऊनं ॥ ४०३ ॥ नो कम्म उववन्नं, नो कम्म भाव सयल विरयंति । आवरनं नहु दिढ, न्यानं दिट्ठी च कम्म विलयंति ॥ ४०४ ।। भाव कम्म उववन्नं, भाव परिनाम सयल विरयंति । आवरनं नह सहियं, न्यान सहावेन कम्म विपनं च ॥ ४०५ ॥ कम्मं स कम्म पिच्छं, कम्म सहावेन सयल विरयंति । आवरनं न उवन्नं, दंसन दिट्ठी च कम्म विरयंति ॥ ४०६ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी आरति रति सहकारं, आरति परिनाम नंत विरयंति । आवरनं नहु पिच्छदि, न्यानं अन्मोय कम्म षिपनं च ॥ ४०७ ।। रौद्रं सहाव जुत्तं, रौद्रं सहकार नंत विरयंति । आवरनं नहु दिडं, दंसन दिट्ठी च कम्म विलयंति ॥ ४०८ ।। मिथ्यात सहिय सहकारं, मिथ्या परिनाम सयल विरयंति । आवरनं नहु दिलु, न्यानं अन्मोय मिथ्य गलियं च ॥ ४०९ ।। अबंभ सहाव संजुत्तं, अबंभ परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, न्यान सहावेन अबंभ विलयंति ॥ ४१० ॥ न्यानी अन्मोय अन्यानं, अन्यान परिनाम नंत विरयंति । आवरनं नहु उत्तं, न्यानं अन्मोय कम्म विलयंति ॥ ४११ ॥ अनिस्ट सहाव सहियं, अनिस्ट परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, न्यान सहावेन अनिस्ट विलयंति ॥ ४१२ ॥ कम्मस्स कम्म जुत्तं, कम्म सहकार कृत्य नहु पिच्छं । आवरन भाव तिक्तं, न्यान सहावेन कम्म विलयंति ॥ ४१३ ।। रागं च राग जुत्तं, राग परिनाम सयल गलियं च । आवरन भाव नहु दिह्र, दंसन दिट्ठी च राग गलियं च ॥ ४१४ ॥ दोषं च भाव जुत्तं, दोषं सहकार नंत गलियं च । आवरनं न उपत्ति, न्यान बलेन दोस विलयंति ॥ ४१५ ।। मन सुभाव संजुत्तं, मन सहकार परिनाम गलियं च । आवरनं नहु पिच्छइ, न्यान सहावेन कम्म गलियं च ॥ ४१६ ।। वयनं असुह सहावं, वयन परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, न्यान सहावेन कम्म गलियं च ॥ ४१७ ॥ (११३) Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी क्रितं च भाव संजुत्तं, क्रितं च कम्म गलिय सुह असुहं । आवरन संक तिक्तं, न्यान परिनाम संक गलियं च ॥ ४१८ ॥ कारित सहाव संजुत्तं, कारित सहाव दोष गलियं च । आवरनं नह पिच्छं, न्यान सहावेन कारितं विलयं ॥ ४१९ ।। अनुमय सहाव सहियं, अनुमय सहकार भाव गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, न्यान सहावेन कम्म संगलियं ॥ ४२० ॥ भोगं सहाव सहियं, भोगं परिनाम भाव गलियं च । आवरनं नहु उत्तं, न्यान सहावेन भोग गलियं च ॥ ४२१ ॥ उवभोग भाव जुत्तं, उवभोग परिनाम सव्व गलियं च । आवरनं नहु पिच्छं, न्यान सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४२२ ।। परिनाम असत्य सहियं, असत्य भाव भाव गलियं च । आवरनं नहु सहियं, न्यान सहावेन परिनाम गलियं च ॥ ४२३ ॥ माया सहाव संजुत्तं, माया सहकार सयल गलियं च । आवरन भाव तिक्तं, न्यान सहावेन मिच्छ गलियं च ॥ ४२४ ॥ कषायं संजुत्तं, कषाय भाव नंत गलियं च । आवरनं नहु पिच्छं, न्यान सहावेन कम्म गलियं च ॥ ४२५ ॥ पज्जाव भाव संजुत्तं, पज्जय सहकार सर्व गलियं च । आवरनं नहु दिद्वं, दंसन दिट्ठी च पज्जाव विलयंति ॥ ४२६ ॥ सल्यं च भाव सहियं, सल्यं परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु दिटुं, न्यान सहावेन सल्य तिक्तं च ॥ ४२७ ॥ लोभ सहाव संजुत्तं, लोभं सहकार परिनाम गलियं च । आवरनं नहु पिच्छं, न्यान सहावेन कम्म गलियं च ॥ ४२८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कोह सहाव संजुत्तं, कोहं परिनाम नंत विरयंति । आवरनं नहु पिच्छं, न्यान सहावेन कोह विलयंति ॥ ४२९ ।। मान सहाव संजुत्तं, मानं सहकार नंत विरयति । आवरनं नहु जुत्तं, न्यानं संजुत्त मान विलयंति ॥ ४३० ॥ माया सहाव सहियं, माया परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नह दिट्ट, न्यानं अन्मोय कम्म षिपनं च ।। ४३१ ॥ मोहं संसार सहियं, मोहं परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नह दिटुं, दर्सन दिस्टि च मोह गलियं च ॥ ४३२ ।। विसनं सहाव संजुत्तं, विसनं सहकार नंत गलियं च । आवरनं नहु पिच्छदि, न्यान सहावेन कम्म विलयंति ॥ ४३३ ॥ विकहा सहाव सहियं, विकहा सभाव दोष गलियं च । आवरनं नहु पिच्छदि, न्यानं संजुत्त विकह विलयंति ॥ ४३४ ॥ इंदी सहाव सहियं, इंदी परिनाम दोस विरयंति । आवरनं नहु पिच्छदि, न्यान सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४३५ ॥ रसन सहाव संजुत्तं, रसनं परिनाम भाव विरयंति । आवरनं नहु दिटुं, अतींदी न्यान कम्म संषिपनं ॥ ४३६ ॥ स्पर्सन सहाव सहियं, स्पर्सन परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, अतींदी न्यान कम्म गलियं च ॥ ४३७ ।। घ्रान सुभाव संजुत्तं, घ्रानं परिनाम नंत गलियं च । आवरनं न उवन्नं, अतींदी परिनाम घ्रान विलयंति ॥ ४३८ ।। चष्यं सहाव सहियं, चष्यं परिनाम सयल विरयंति । आवरनं नहु पिच्छदि, अतींदी सभाव चष्य विरयंति ॥ ४३९ ।। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी स्रोत्रं सहाव सहियं, स्रोत्रं सहकार परिनाम विरयंति । आवरनं नहु उत्तं, अतींदी परिनाम स्रोत्र विरयंति ॥ ४४० ॥ सरीर भाव सहियं, सरीर परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु पिच्छदि, न्यान सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४४१ ॥ सन्या सहाव सहिओ, सन्या परिनाम नंत गलियं च । आवरनं नहु उत्तं, सुद्ध सहावेन कम्म विलयंति ॥ ४४२ ॥ आहार भाव सहियं, आहार परिनाम सयल विरयंति । आवरनं न उपत्ती, सम भावेन कम्म गलियं च ॥ ४४३ ॥ षादं विसेष जुत्तं, पादं परिनाम नंत गलियं च । आवरन भाव तिक्तं, अप्प सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४४४ ॥ स्वादं सहाव सहियं, स्वादं अनिस्ट श्रुत बह भेयं । आवरनं नहु जुत्तं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ।। ४४५ ।। पीयं सहाव जुत्तं, पीयं अनिस्ट परिनाम वय विरयं । आवरन भाव तिक्त, प्रिये सहाव कम्म विपनं च ॥ ४४६ ॥ लेपं सहकार सहियं, लेपं परिनाम नंत गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, सुद्ध सहावेन कम्म गलियं च ॥ ४४७ ॥ निद्रा सहाव जुत्तं, निद्रा परिनाम नंत गलियं च । आवरनं नहु दिव, अप्प सरूवं च कम्म नह पिच्छं ॥ ४४८ ॥ भयं च भय संजुत्तं, भय सुभाव अनिस्ट गलियं च । आवरनं न उपत्ति, न्यान सहावेन कम्म संगलियं ॥ ४४९ ॥ मैथुन सहाव जुत्तं, मैथुन परिनाम सयल गलियं च । आवरनं न उपत्ति, ममल सहावेन कम्म विलयंति ॥ ४५० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी आसा अनित सहियं, आसा परिनाम नंत गलियं च । आवरनं नहु दिटुं, अप्प सहावेन कम्म गलियं च ॥ ४५१ ॥ अस्नेहं असत्य सहियं, अस्नेहं परिनाम पज्जाव मुक्कं च । आवरनं न उपत्ती, ममल सहावेन अस्नेह विलयंति ॥ ४५२ ॥ लाजं अनित दिटुं, अनित सहकार लाज गलियं च । आवरनं नहु उत्तं, सुद्ध सहावेन लाज गलियं च ।। ४५३ ।। लोभं अनित भावं, लोभं परिनाम सयल गलियं च । आवरनं नहु जुत्तं, लोभं गलियं च न्यान सहकारं ॥ ४५४ ॥ भयं च अत्रित सहियं, भय परिनाम नंत गलियं च । आवरनं नहु जुत्त, सुद्ध सहावेन कम्म गलियं च ।। ४५५ ।। मनरंजन गारव उत्तं, गारव परिनाम कलिस्ट गलियं च । आवरनं नहु दिद, न्यान सहावेन कम्म संषिपनं ।। ४५६ ।। आलस अनिस्ट रूवं, आलस परिनाम अनित तिक्तं च । आवरनं नहु उत्तं, अप्प सहावेन आलसं मुक्कं ॥ ४५७ ॥ परपंचं पर पिच्छं, पर पज्जाव परिनाम मुक्कं च । आवरनं नहु पिच्छं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४५८ ॥ विभ्रम विप्रिय भावं, विप्रिय परिनाम अनिस्ट गलियं च । आवरनं नहु पिच्छं, न्यान सहावेन कम्म संषिपनं ।। ४५९ ॥ दह पाना पज्जत्ती, सुद्धं ससहाव हंति चौदसमो। ममल सहावं दिटुं, चौदस प्रान भाव उप्पत्ती ॥ ४६० ॥ दह संजुत्तं सहियं, अतींदी सहकार सहाव संजुत्तं । न्यान सहाव स उत्तं, सुष साता बोध चेयना रूवं ॥ ४६१ ॥ (११५) Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी सुषं च भाव उपत्ती, सुष षिपनिक भाव परिनाम संजुत्तं । कम्म मल सुयं च विपनं, सुष प्रानं सहाव उवनं च ॥ ४६२ ॥ सातानंत विसेष, सहकारे न्यान ममल सहकारं । सहकार कम्म विपनं, साता प्रान ममल दिट्ठीओ ॥ ४६३ ॥ बोधं न्यान सहावं, न्यान विन्यान ममल न्यानस्य । परिनाम न्यान सुसमयं, प्रानं बोधं च ममल मल रहियं ॥ ४६४ ॥ चेयन अनंत रूवं, चेयन आनंद कम्म संषिपनं । चिदानंद आनंद, परमं आनंद सुद्ध दिट्ठीओ ॥ ४६५ ॥ चौदस प्रान सुभावं, सुद्धं सहकार सुद्ध दिट्ठीओ । ममल सहाव संजुत्तं, अप्पा परमप्प ममल न्यानस्य ॥ ४६६ ॥ विपिओ कम्मं तिविहं, षिपिओ परिनाम असुद्ध बंधानं । सुद्ध सहावं पिच्छदि, ममल सहावेन ममल न्यानस्य ॥ ४६७ ॥ ए अतीचार कम्मानं, न्यान सहावेन कम्म विलयंति । ममलं ममल सहावं, न्यान विन्यान मुक्ति गमनं च ॥ ४६८ ॥ दंसन अंग स उत्तं, संमिक दंसनस्य सुद्ध सभावं । अनंत दंसन दिट्ठी, सुद्ध सहावेन ममल दिट्ठीओ ॥ ४६९ ॥ निसंकिय निकंषिय, निविदिगिच्छा अमूढ़ दिट्ठीओ । उवगूहन ठिदिकरनं, वाछिल पहावना अंग अस्टंमि ॥ ४७० ।। निसंक संक रहिओ, नय सभाव रहिय ससंक विरयंति । निसंक न्यान अन्मोयं, पज्जय अन्यान संक विलयंति ॥ ४७१ ।। अन्यानं नहु पिच्छदि, अन्यान भाव सयल तिक्तं च । न्यान सहाव अन्मोयं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ४७२ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पर पज्जाव न पिच्छं, पज्जय परिनाम सयल गलियं च । न्यान सहाव सुसमयं, निसंक भाव कम्म विलयति ॥ ४७३ ॥ कंच्या रहित सुभावं, इंद धरनिंद पज्जाव नहु पिच्छं । चक्रं पज्जाव विमुक्कं , पज्जावं अन्यान सुयं विपनं च ॥ ४७४ ।। पज्जाव अनिस्ट रूवं, कंष्या रहित ममल ससरूवं । पज्जाव कंष्य विलयं, न्यानं अन्मोय कंष्य रहिएन ॥ ४७५ ।। विदि संसार सुभावं, विदं न पिच्छेइ परिनाम विरयंति । विदि च अनंत अनिस्टं, विदं न पिच्छेड़ कम्म विलयंति ॥ ४७६ ।। विदिं न अप्प सहावं, दंसन न्यानं च अन्मोय ममलं च । अन्यान विदि नह पिच्छं, सुद्धं सहकार निव्विदं पिच्छं ॥ ४७७ ।। मूढ़ सहावं तिक्तं , मूढ निगोयं च पज्जाव संदिहें । पर सुभाव पज्जावं, मूढ दिट्ठी च गलिय परिनामं ॥ ४७८ ॥ अमूढ अरूव रूवं, दिद्वं ममलं च न्यान विन्यानं । अमूढ दिहि भनियं, दंसन अंगं च कम्म विलयंति ॥ ४७९ ।। उवगृहनं सभावं, न्यानी दोसं न दिस्यते भावं । पज्जावं पर विलयं, न्यानी अन्मोय दोष विलयंति ॥ ४८० ॥ गुन रूवं उवएसं, न्यानी सभाव कम्म षिपनं च । दोसं नंत न पिच्छं, उवगृहन अन्मोय न्यान ममलं च ॥ ४८१ ॥ स्थितिकरन स उत्तं, न्यानी न्यानं च अन्मोय समयं च । पज्जावं नहु पिच्छं, स्थिति अंगं च कम्म विलयंति ॥ ४८२ ।। विन्यानं वाच्छल्लं, न्यानं विन्यान न्यान सहकारं । दंसन न्यान सुसमय, ममल सहावेन चरन संजुत्तं ॥ ४८३ ॥ (११६ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी चरनंपि सुद्ध चरनं, संजम चरनस्य सुद्ध ससहावं । विलयंति कम्म मलयं, वाछिल अंगं च विन्यान न्यान अन्मोयं ॥ ४८४ ।। प्रभावना सहाव उत्तं, परम तत्त्वं च भाव ममलं च । अप्पा परमप्पानं, ममल सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ४८५ ॥ अंगं अस्ट स उत्तं, निसंक भाव सयल विन्यानं । संक सहावं तिक्तं, निसंक अंग सयल संजुत्तं ॥ ४८६ ।। निसंक संक विलयं, अंगं अस्टं च निम्मलं ममलं । इस्टं संजोय सुद्ध, कम्मं षिपिऊन मुक्ति गमनं च ॥ ४८७ ॥ सिद्धं सहाव उत्तं, सिद्धं मुक्ति भाव सुद्ध सुपएसं । विन्यान सहावं उत्तं, न्यानं सभाव जान ममलं च ॥ ४८८ ॥ एवं भाव स उत्तं, अप्पं परिनाम मुक्ति सहकारं । सुर्य सुभावं दिई, सूषम परिनाम कम्म संषिपनं ॥ ४८९ ।। न्यान सहावं अप्पा, न्यानं विन्यान न्यान संजुत्तं । दंसन दर्स अनंतं, अवगाहनं अप्प सुद्ध परमप्पं ॥ ४९० ॥ अप्पं च वेदियत्वं, अप्पं च चेयन सहाव न्यानं च । आनंदं परमानंद, अप्प सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ४९१ ।। अप्पं च अप्प तारं, नाव विसेषं च पार गच्छंति । अप्पं ममल सरूवं, कम्मं षिपिऊन तिविहि जोएन ॥ ४९२ ।। एकं जिनं सरूवं, सुयं विपनं च कम्म बंधानं । अनंत चतुस्टय सहियं, ममल सहावेन सिद्धि संपत्तं ॥ ४९३ ॥ वीजं च सिद्ध सिद्धं, तारन तरनं च अन्मोय सहकारं । हितमित परिनइ जुत्तं, कोमल परिनाम न्यान सहकारं ॥ ४९४ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सिद्धं च सव्व सिद्धं, सिद्धं अंगं च दिगंतरं दिढें । सिद्धं अर्थ तिअर्थ, समर्थ्य समय दिस्टि अन्मोयं ॥ ४९५ ।। तारन तरन समर्थं, उवइ8 इस्ट दिस्टि सुद्धं च । अन्मोयं सहकारं, उवएसं विमल कम्म गलियं च ॥ ४९६ ॥ दसति सव्व दर्स, दर्सयंति सुद्ध ममल मल मुक्कं । अन्मोयं न्यान सहकारं, उवएसं च कम्म गलियं च ॥ ४९७ ।। इच्छंति मुक्ति पंथं, इच्छायारेन सुद्ध पंथ दर्सति । विपिऊन तिविहि कम्मं, षिपनिक सहकार कम्म विलयंति ॥ ४९८ ।। चेतंति सुद्ध सुद्धं, सुद्धं ससहाव चेत उवएसं । रुचितं ममल सहावं, रुचियंतो न्यान निम्मलं ममलं ॥ ४९९ ।। उत्तं च सुद्ध सुद्धं, उत्तायंतु ममल कम्म विलयं च । परषे परम सुभावं, परषंतो सुद्ध कम्म विलयंति ॥ ५०० बोलतो कम्म जिनियं, बोलतो सुद्ध कम्म विलयति । धरयति धम्म सुक्कं, धरयंतो सूषम कम्म विपनं च ॥ ५०१ ।। पीओसि परम सिद्ध, पीवंतो ममल झान सुद्धं च । रहिओ संसार सुभावं, रहिओ सरनि कम्म गलियं च ॥ ५०२ ।। दिस्टंति तिहुवनगं, दिस्टंतो ममल कम्म मुक्कं च । जिनियं च तिविहि कम्मं, जिनयंतो अनिस्ट कम्म बंधानं ॥ ५०३ ।। लेतं सुद्ध सहावं, लेयंतो विमल कम्म गलियं च । कलियंति अप्प सहावं, कलयंतो सुद्ध कम्म गलियं च ॥ ५०४ ॥ लष्यंतु अलष लषियं, लष्यंतो लोयलोय ममलं च । अन्मोय विन्यान न्यानं, अन्मोयंति सुद्ध कम्म गलियं च ॥ ५०५ ।। (११७) Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी जानंति न्यान ममलं, जानंतो अप्प परमप्प कम्म गलियं च । कहंतु ममल झानं, कहयंतो न्यान विन्यान ससरूवं ।। ५०६ ॥ अमडेइ मुक्ति मग्गं, अमडाए मुक्ति न्यान सहकारं । साहंति न्यान अवयासं, साहंति ममल कम्म विलयंति ॥ ५०७ ।। पेषंतु न्यान विन्यानं, पेषयंति विन्यान कम्म षिपनं च । सिद्धत् कम्म विपन, सिद्धति कम्म तिविहि मुक्कं च ॥ ५०८ ॥ गर्म च अगमं दिस्टं, गमयं च अनंतनंत ससरूवं । सुनियं च मुक्ति मगं, सुनियं च न्यान कम्म गलियं च ॥ ५०९ ॥ अनुभवंति अरूव रूवं, अनुभावंति संसार सरनि विगतं च । लीनं च परम तत्त्वं, लीनायंति मुक्ति कम्म गलियं च ॥ ५१० ॥ गहियं च सुद्ध सुद्धं, गहयंतो ममल सुद्ध सभावं । जोयंतो जोग जुक्तं, जोयंतो न्यान दंसन समग्गं ॥ ५११ ॥ मानंतु अप्प मानं, मानंतो सुद्धप्प कम्म विपनं च । रचयंति विगत रूवं, रचयंतो अविगत कम्म गलियं च ॥ ५१२ ।। परिनइ परिनय सुद्धं, परिनाए सुद्ध ममल परिनामं । पूरंति कम्म षिपन, पूरयंतो तिविहि कम्म विपनं च ॥ ५१३ ॥ साधंति अर्थ सुद्ध, साधयंति पंच दित्ति परमिस्टी । नितंति नितं रूवं, नितायंति ममल कम्म गलियं च ॥ ५१४ ॥ सुद्धं च परम सुद्धं, सुद्धायं परम भाव ममलं च । अवयास नंतनंतं, अवयासं संसार सरनि मुक्तं च ।। ५१५ ॥ इस्टं संजोय दिस्टं, इस्टाए इस्ट नंत दिस्टं च । गंजंतु कम्म तिविहं, गंजंतु कम्म भाव उववन्नं ॥ ५१६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दमनं कम्म सहावं, दमनाए नो कम्म दव्व कम्मेन । गलंतु परिनाम अभावं, गलयंति मिच्छ कम्म विलयंति ॥ ५१७ ॥ विरयं संसार सुभावं, विरयंतो कम्म तिविहि जोएन । तिक्तंतु कम्म तिविहं, तिक्ततो असुह कम्म विलयंति ॥ ५१८ ।। विन्यान न्यान जुत्तं, विन्यानं न्यान कम्म षिपनं च । अनंत चतुस्टय सहियं, अनंताए नंत दिस्टि ममलं च ॥ ५१९ ॥ एयं अनेय भावं, तरंति तारयंति सुद्ध सभावं । सिद्धं च सर्व सिद्ध, अन्मोयं परिनाम सुद्ध ममलं च ॥ ५२० ॥ सिद्धं च अनंत रूवं, रूवातीतं च विगत रूवं च । ममलं च ममल रूवं, कम्मं षिपिऊन मुक्ति गमनं च । ५२१ ।। सिद्धं च सुद्ध सिद्धं, ममल सहावेन कम्म गलियं च । अप्पा परमानंद, परमप्पा मुक्ति सिद्धि संपत्तं ॥ ५२२ ।। परम भाव दरसीए, परमं परमप्प अप्प ममलं च । न्यानं च न्यान अन्मोयं, सिद्धं सुद्धं च सिद्धि संपत्तं ॥ ५२३ ॥ तारन तरन उवन्नं, नंतं अन्मोय न्यान सहकारं । जिनियं जिनयति रूवं, जिनियं कम्मान सिद्धि संपत्तं ॥ ५२४ ।। न्यान सहाव उवन्नं, अन्मोयं सहकार न्यान ससरूवं । न्यानं अन्मोय सहावं, समयं संजुत्त सिद्धि संपत्तं ।। ५२५ ॥ अट्ठ गुनं संजुत्तं, अट्ठइ पुहमी च वास समयं च । कम्मं तिविहि विमुक्कं, ममल सहावेन सिद्धि संपत्तं ॥ ५२६ ।। उवएस सुद्ध सारं, उवइ8 परम जिनवर मएन । विलयं च कम्म मलयं, न्यान सहावेन उवएसनं तंपि ॥ ५२७ ।। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी षिपनिक भाव संजुत्तं, दण्ड कपाटेन ईर्ज पंथ सुसमयं । विन्यान न्यान सुद्ध, सिद्धं संसार सरनि विलयं च ॥ ५२८ ॥ षिपिऊन कम्म तिविहं, षडी सुभावेन न्यान उववन्नं । सुद्ध सहावं पिच्छदि, कम्मानं बंध नंत विलयंति ॥ ५२९ ॥ कमल सुभाव संजुत्तं, षिपिओ कम्मान तिविहि जोएन । गगनं तु नंत दिलु, घन नंत दिट्ठि कम्म विलयंति ॥ ५३० ॥ नंत प्रकारं जाने, चरनं चरंति सुद्ध दंसनं ममलं । नंदं परमानंद, जाता उववन्न कम्म विपनं च ॥ ५३१ ॥ झानारूढ़ सुभावं, नाना प्रकार नंत परिनाम । टूटेति मिच्छ भावं, टंकारं मुक्ति कम्म विपनं च ॥ ५३२ ॥ ममात्मा सुकिय सुभावं, ममात्मा सुद्धात्म राग विपनं च । निम्मल ममल सहावं, कम्मं षिपिऊन निव्वुए जंति ॥ ५३३ ॥ कमल सुभाव स उत्तं, कम्मं षिपिऊन सरनि संसारे । अनेय प्रकार सुदिट्ठी, कल लंक्रित कम्म राग षिपनं च ।। ५३४ ॥ कारन कार्ज उपत्ती, नंतानंत दिट्टि सम दिट्ठी । न्यानं ममल सुसमयं, उववन्नं इस्ट अनिस्ट विलयं च ॥ ५३५ ।। दीर्घ सहाव सुसमय, दीर्घ सुभाव राग विलयं च । नेयं च न्यान रूवं, पादं स्वादं च कम्म विपनं च ॥ ५३६ ।। माया सरनि अनंतं, माया कम्मान अनंत मोहंधं । छीनंति न्यान रूवं, छीनंति अनिस्ट सरनि संसारे ॥ ५३७ ॥ नो लष्य लष्य लष्यं, नो कम्मान पज्जाव गलियं च । रितियं आद सहावं, गिरा उववन्न नंत विमलं च ॥ ५३८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी गगन सुभाव उवन्न, गलंति पर भाव पज्जाव अनिस्टं । हलवं ति कम्म भारं, दण्ड कपाटेन नंत दंसनं चरनं ॥ ५३९ ।। उत्पन्न ऊर्ध सुद्धं, उवलष्यं आद सहाव पर विलयं । रिजु विपुलं च सहावं, दिस्टं इस्टी संजुत्त अनिस्ट नहु दिदं ॥ ५४० ॥ लब्धं ममल सहावं, लंक्रित सदव्व परदव्व नहु पिच्छं । ह्रींकारं सुद्ध उवन्न, हुंत पर भाव षिपिय मोहंधं ॥ ५४१ ॥ दण्ड कपाटं ममलं, नासंति तिविहि कम्मान नेय बंधानं । रेहंति इस्ट रूवं, नू उत्पन्न न्यान नट्ठ कम्मानं ॥ ५४२ ।। वरं च आद सहावं, वर दंसन न्यान चरन ममलं च । दुट्ठ नट्ठ कम्म, डेभं परभाव परमुहो जोगी ॥ ५४३ ।। हंतून कम्म दोसं, अनंत विसेषेन आद सहकारं । चेयन अनंत रूवं, उत्पन्नं पर दव्व भाव विलयं च ॥ ५४४ इस्ट संजोय सरूवं, इस्टं परिनाम अनिस्ट विरयंमि । कमलस्य सहज आनंद, कल लंक्रित कर्म क्रित विलयंति ॥ ५४५ मन विलयं ससहावं, ममात्मा सुद्ध सहाव ममलं च । तत्काल कम्म गलियं, दोषं परदव्व परमहो तंपि ॥ ५४६ ॥ दुबुहि उवन्नं विरयं, दुकृत पर दव्व भाव गलियं च । मान परमान सुद्धं, ममात्मा न्यान सहाव समयं च ॥ ५४७ ॥ तत्त्वं च तत्त्व रूवं, तत्त्वं च परम तत्त्व परमिस्टी । जिन वयनं जयवंतं, जयवंतं लोयलोय ममलं च ॥ ५४८ ।। कारन कज्ज उपत्ती, कलुस भाव अनिस्ट नहु दिहूँ । नेयं निरुपम सुद्धं, नेयं परदव्व सहाव गलियं च ॥ ५४९ ।। = = = = Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी ममात्मा ममल सरूवं, मल मुक्कं नंत दंसनं ममलं । तेयं च तिक्त असुह, तेयं च अप्प परमप्प संदर्स ॥ ५५० ॥ दुर्लष्य लष्य रूवं, दुबुहि सहकार कम्म विलयंति । वयनं च सुद्ध वयनं, चेयन संजुत्त कम्म षिपनं च ॥ ५५१ ॥ कलं सुभाव न दिढं, न्यान विन्यान समय संजुत्तं । नंतानंत सुभावं, उववन्नं सुद्ध परम न्यानं च ॥ ५५२ ॥ ममलं दंसन दिट्ठी, मलं न पिच्छेइ पज्जाव अनिस्टी । सहकारं न्यान उवन्नं, तेयं पर दव्व भाव गलियं च ॥ ५५३ ।। विन्यान न्यान सरूवं, दुबुहि पर भाव दोस विलयं च । दो गुन अनाइ सुद्धं, टंकोत्कीर्न नंत दंसनं सुद्धं ॥ ५५४ ।। द्वादस तप आयरनं, दोष भाव दुबुहि पर भाव गलियं च । सहकार सुद्ध आचरनं, सल्यं मुक्कं च पर दव्व गलियं च ॥ ५५५ ॥ विषयं च राय दोषं, दुबुहि षिपनं च सुद्ध सहकारं । दुर्लष्य लष्य रूवं, वारापारं च नंत कम्म विपनं च ॥ ५५६ ॥ टंकारं सिद्ध रूवं, टंकारं झानारूढ़ ममलं च । कमलं केवल सहियं, कम्मं षिपिऊन मुक्ति गमनं च ॥ ५५७ ॥ कमलं अनंत दिट्ठी, छेयं कम्मान दव्व बंधानं । छेयं जदि चेयनयं, कमल सुभावेन केवलं सहियं ॥ ५५८ ।। षादं षिपनिक रूवं, जैवन्तो परदव्व परमुहो तंपि । जइ जइवंत सहावं, पादं षिपिऊन पज्जाव गलियं च ॥ ५५९ ॥ मानापमान सुद्धं, माया मानं च सरनि विलयं च । छिंदंति विविहि कम्मं, छिंदतो पर दव्व भाव सभावं ॥ ५६० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ग्रहनं चरन विसेषं, झानं ठानं च मिच्छ गलियं च । झानं उववन्न भावं, गिर उववन्न निम्मलं ममलं ॥ ५६१ ॥ घन घाय कम्म मुक्कं, ईर्ज सभाव मग्ग दिस्टंति । नो उववन्न सहावं, नो सभाव दिस्टि इस्टं च ॥ ५६२ ।। नो क्रित उत्पन्न सहावं, टंकोत् नंत अनंत परिनाम ।। जइ टंकोतं सहियं, नो उत्पन्न कम्म विलयंति ॥ ५६३ ॥ चू ऊर्ध सुद्ध सहियं, ठंकारं मुक्ति झान ममलं च ।। जइ ठान झान सहावं, चू संसार सरनि गलियं च ।। ५६४ ॥ चूकं च कम्मवल्ली, छेयं पर भाव कम्म तिविहं च । जदि छेय भाव पिच्छदि, चूकं कम्मान मुक्ति गमनं च ॥ ५६५ ।। नो कृत कम्म विपनं, जैवन्तो न्यान दंसनं चरनं ।। जै जैवन्त उवन्नं, नो क्रित पर दव्व भाव गलियं च ॥ ५६६ ।। धी ईर्ज पंथ सुद्धं, झान समत्थेन ऊर्ध सुद्ध सभावं । जै झान ठान सुद्धं, धी ईर्ज सभाव मुक्ति गमनं च ।। ५६७ ।। गिर उववन्न अनंतं, नो क्रित कम्म उववन्न विलयंति । जै नो सुभाव सुद्धं, ग्रहनं षिपिऊन कम्म बंधानं ।। ५६८ ॥ षस्टं इस्टं च सुद्धं, टंकोत्कीर्न भाव उवनं च । जै टंकोत् सुभावं, षिनं विपनं च कम्म बंधानं ॥ ५६९ ॥ कमल सुभाव संसुद्ध, ठंकारे सुभाव मुक्ति सहियं च । जै ठंकार ममल सहियं, कल लंक्रित कम्म भाव मुक्कं च ॥ ५७० ॥ कमल सुभाव जिनुत्तं, षादं पंच न्यान कम्म तिक्तं च । गिरा सहाव संजुत्तं, धी ईर्ज सभाव मिच्छ विलयंति ।। ५७१ ।। (१२०) Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेश शुद्ध सार जी नु लष्यं उवलयं, चू चेतहि आसवेवि दवियप्पो । छेयंति विषय मलयं, जैवन्तो नंत दंसनं न्यानं ॥ ५७२ ॥ झोयं झान सहावं, झो ऊर्ध सहाव पर दव्व षिपनं च । टंकोत्कीर्न सहियं, ठिदिकरनं मुक्ति नंत कालम्मि ॥ ५७३ ॥ ठंकार भाव सुद्ध, टं नंतनंत दिस्टि दिस्टंतो । नो कम्म कम्म विलयं, धी ऊर्ध सहाव कम्म विपनं च ॥ ५७४ ।। जैवन्तो जैकारं, छेयं पर भाव पर्जाव गलियं च । चूरंति विषय रागं, नु क्रित उववन्न दंसनं चरनं ॥ ५७५ ।। धी ईर्ज भाव संजुत्तं, गिर उववन्न भाव लष्य उवलष्यं । षलु निस्चै च सहावं, कम्मं गलयंति केवलं सुद्धं ॥ ५७६ ।। षडी विसेषं उत्तं, लषिज्जइ लष्यनेहि संजुत्तं । सूषम सुभाव सुद्ध, कम्मं षिपिऊन सरनि संसारे ॥ ५७७ ॥ अप्प सहावं दिटुं, पर पज्जाव विषय विरयंति । मिच्छात राग विपनं, सूषम सभाव मुक्ति गमनं च ॥ ५७८ ॥ अन्यान भाव सहियं, कम उववन्न नंतनंताई । अनेय काल भ्रमनं, न्यान सभाव कम्म षिपनं च ॥ ५७९ ।। अन्यानं पज्जावं, सहियं उववन्न कम्म विविहं च । न्यान सहावं दिलु, कम्म गलियं च अंतर्मुहूर्तस्य ॥ ५८० ॥ अन्यान उत्त जुत्तं, कम्मं तव सहाव अनेयं च । न्यान बलेन मुनिवरा, पिन विलय कम्म तिविहं च ॥ ५८१ ॥ अन्यान परिनइ सहियं, परिनवइ कम्मान अनंत भावेहि । न्यान दिस्टि विलयंतो, जं रयनं तिमिर नासनं सहसा ॥ ५८२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्यानं समयेना, कम्मं उप्पत्ति नंत जमाई । न्यान समय उववन्नं, गलियं कम्मान तिविह जोएन ॥ ५८३ ॥ न्यानं दंसन सम्म, चरनं दुविहंपि सहाव तव जुत्तं । आराहन भत्तीओ, नंत चतुस्टं च मुक्ति गमनं च ॥ ५८४ ।। उवएस सुद्ध सहियं, सुद्धं अवयास ममल न्यानस्य । कम्म मल सुयं च विपनं, उवएसं सुद्ध मुक्ति गमनं च ॥ ५८५ ।। उवएसं जिन उत्तं, सम्मत्तं सुद्ध सहाव संजुत्तं । कम्मं तिविहि विमुक्कं, उवइटें परम जिनवरिंदेहि ॥ ५८६ ॥ उवएसं जिन वयनं, जिन सहकारेन न्यान मई सुद्धं । आनंदं परमानंद, परमप्पा विमल निव्वुए जंति ॥ ५८७ ।। भव्यजन बोहनत्थं, अत्थ परमत्थ सुद्ध बोधं च । जिन उत्तं स दिढं, किंचित् उवएस कहिय भावेन ॥ ५८८ ।। जिन उत्तं जिन वयनं, जिन सहकारेन उवएसनं तंपि । तं जिन तारन रइयं, कम्म षय मुक्ति कारनं सुद्धं ॥ ५८९ ।। ॥ इति श्री उपदेश शुद्ध सार नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। (१२१) Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सार मत ___ श्री त्रिभंगी सार जी मंगलाचरण नमस्कृतं महावीरं, भवोद्भय विनासनं । त्रिभंगी दलं प्रोक्तं च, आस्रव निरोध कारनं ॥ १ ॥ आबु कर्म का बंध विभाग में - त्रिभंगी दल अस्मूह, जिन उक्तं जिनागमं । आयु त्रिभागं कृत्वा, त्रिभंगी त्रिति अस्तितं ॥ २ ॥ आयुयं जिनं उक्तं, वर्ष षष्टानि निस्चयं । भव्यात्मा हृदये चिंते, त्रिभंगी दल स्मृतं ॥ ३ ॥ तस्यास्ति त्रिविधि क्रित्वा, दसास्ति त्रितिय उच्यते । मुहूर्तं जिनं प्रोक्तं, तस्यास्ति समयं त्रियं ॥ ४ ॥ त्रिभंगी प्रवेसं प्रोक्तं, समयादि त्रितिय स्तितं । भव्यात्मा चिंतनं भावं, सुद्धात्मा सुद्धं परं ॥ ५ ॥ १०८ जीवाधिकरणत्रिभंगी प्रवेसं प्रोक्तं, भावं सय अठोत्तरं । मिथ्यात मय सम्पून, रागादि मल पूरितं ॥ ६ ॥ सम्यक्दर्शन की भावना आम्रव निरोधक हैत्रिभंगी निरोधनं क्रित्वा, संमिक्तं सुद्ध भावना । भव्यात्मा चेतना रूपं, संमिक् दर्सनमुत्तमं ॥ ७ ॥ प्रथम अध्याय त्रिभंगी प्रवेस भाव (१) सुभ, असुभ, मिस्र - तीन भाव सुहस्य भावनं क्रित्वा, असुहं भाव तिस्टते । मिस्र भावं च मिथ्यात्वं, त्रिभंगी दल संजुतं ॥ ८ ॥ (२) मन, वचन, काय - तीन भाव मनस्य चिंतनं क्रित्वा, वचनं विपरीत उच्यते । कर्मनं क्रित मिथ्यात्वं, त्रिभंगी दल स्मृतं ॥ ९ ॥ (३) क्रित, कारित, अनुमति - तीन भाव क्रितं असुद्ध कर्मस्य, कारितं तस्य उच्यते । अनुमति तस्य उत्पाद्यंते, त्रिभंगी दल उच्यते ॥ १० (४) कुमति, कमति, कअबधि-तीन भाव कुन्यानं त्रिविधि प्रोक्तं, जिह्वा अग्रेन तिस्टते । छाया त्रि उर्वकारं, मिथ्या दिस्टि तत्परा ॥ ११ ॥ कुमतिं क्रित्वा मिथ्यात्वं, कुश्रुतं तस्य पस्यते । कुअवधि तस्य दिस्टंते, मिथ्या माया विमोहितं ॥ १२ ॥ (६) आर्त, रौद्र, मिन-तीन भाव आर्त ध्यान रतो भावं, रौद्र ध्यान समं जुतं । मिस्रस्य राग मयं मिथ्या, त्रिभंगी नरयं पतं ॥ १३ ॥ (६) मिथ्यात, समय मिथ्यात, समय प्रकृति मिथ्या - तीन भाव मिथ्या समयं च संपून, समय मिथ्या प्रकासए । अनितं नितं जानंति, प्रकृति मिथ्या निगोदयं ॥ १४ ॥ (१२२ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (७) मिथ्यादेव, मिथ्यागुरू, मिथ्याधर्म - तीन भाव मिथ्या देव गुरुं धर्म, अनितं नित उच्यते । असत्यं असास्वतं प्रोक्तं, त्रिभंगी निगोयं दलं ॥ १५ ॥ (८) मिथ्यादर्सन, मिथ्यान्यान, मिथ्याचारित्र - तीन भाव मिथ्या दर्सनं न्यानं, चरनं मिथ्या दिस्टते । अलहंतो जिनं उक्त, निगोयं दल पस्यते ॥ १६ ॥ (९) मिथ्या संजम, मिथ्या तप, मिथ्या परिनै - तीन भाव मिथ्या संजमं क्रित्वा, तव परिनै मिथ्या संजुतं । सुद्ध तत्त्वं न पस्यंते, मिथ्या दल निगोदयं ॥ १७ ॥ (१०) माया, मिथ्या, निदान - तीन भाव माया अनितं राग, मिथ्यात मय संजुतं । असत्यं निदान बंध, त्रिभंगी नरयं दलं ॥ १८ ॥ (११) राग, द्वेष, निदान - तीन भाव रागादि भावनं क्रित्वा, दोषं निदान विद्धते । अनितं उत्साहं भावं, त्रिभंगी थावरं दलं ॥ १९ ॥ (१२) मद, मान, माया - तीन भाव मदस्टं मान संबंध, माया अनितं क्रितं । भावं असुद्ध सम्पून, त्रिभंगी थावरं दलं ॥ २० ॥ (१३) कुदेव, कुगुरू, कुसास्त्र - तीन भाव कुदेवं कुगुरुं वन्दे, कुसास्त्रं चिंतनं सदा । विकहा अनित सद्भावं, त्रिभंगी नरयं दलं ॥ २१ ॥ (१४) कुल, अकुल, कुसंग - तीन भाव कुल भावं सदा रुस्टं, अकुलं कुसंग संगते । अभावं तत्र अन्यानी, त्रिभंगी दल संजुतं ॥ २२ ॥ (१५) अनित, अचेत, परिनाम - तीन भाव अनित अचेत दिस्टंते, परिनामं जत्र तिस्टते । अन्यानी मूढ दिस्टी च, मिथ्या त्रिभंगी दलं ॥ २३ ॥ (१६) असुद्ध, अभाव, मिस्र - तीन भाव असुद्ध भाव संजुत्तं, मिस्र भाव सदा रतो । संसार भ्रमनं बीजं, त्रिभंगी असुह उच्यते ॥ २४ ॥ (१७) आलस, प्रपंच, बिनास दिस्टि - तीन भाव आलसं प्रपंचं क्रित्वा, विनास दिस्टि रतो सदा । सुद्ध दिस्टि न हृदये चिंते, त्रिभंगी थावरं पतं ॥ २५ ॥ (१८) संग, कुसंग, मिन - तीन भाव संग मूढ मयं दिस्टा, कुसंगं मिस्र पस्यते । अलहंतो न्यान रूपेन, मिथ्यात रति तत्परा ॥ २६ ॥ (१९) आसा, स्नेह, लोभ - तीन भाव आसा स्नेह आरक्त, लोभं संसार बंधनं । अलहंतो न्यान रूपेन, मिथ्या माया विमोहितं ॥ २७ ॥ (२०) लाज, भय, गारव - तीन भाव लाजं भय हृदयं चिंते, गारव राग मोहितं । संमिक्तं सुद्ध तिक्तंति, मिथ्या मय त्रिभंगयं ॥ २८ ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी (२१) गम, अगम, प्रमान - तीन भाव गमस्य अगमं क्रित्वा, प्रमानं मिथ्या उच्यते । भवस्य भय दुष्यानं, भाजनं त्रिभंगी अस्तितं ॥ २९ ॥ (२२) अनित, स्तेय, काम - तीन भाव अन्त्रितं नितं माने, स्तेयं पद लोपनं । कर्मना असुह भावस्य, त्रिभंगी नरय पतं ॥ ३० ॥ (२३) अन्यान, रति, मिन-तीन भाव अन्यानी मिथ्या भावस्य, रतिं मूढ मयं सदा । मिस्रस्य दिस्टि मोहंधं, त्रिभंगी दुर्गति कारनं ॥ ३१ ॥ (२४) कर्मादि, असमाधि, अस्थिति - तीन भाव कर्मादि कर्म करतानि, असमाधि मिथ्या मयं जुतं । अस्थिति असुद्ध परिनाम, त्रिभंगी संसार कारनं ॥ ३२ ॥ (२५) हास्य, रति, आर्त - तीन भाब हास्यं राग विद्धंते, रति मिथ्यात भावना । आर्त रौद्र संजुत्तं, त्रिभंगी दल पस्यते ॥ ३३ ॥ (२६) स्त्री, पुरुष, नपुंसक - तीन भाब स्त्रियं काम ब्रिद्धंते, पुंसं मिथ्यात संजुतं । नपुंसक व्रत षंडस्य, त्रिभंगी दल तिस्टते ॥ ३४ ॥ (२७) मनुष्यनी, तिथंचनी, देवांगना - तीन भाव मनुष्यनी व्रत हीनस्य, तिर्यंचनी असुह भावना । देवांगनी मिच्छ दिस्टी च, त्रिभंगी पतितं दलं ॥ ३५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (२८) कास्ट चित्र, पाषान चित्र, लेप चित्र - तीन भाब कास्ट पाषान दिस्टं च, लेपं दिस्टि अनुरागतः । पाप कर्म च विद्धंति, त्रिभंगी असुहं दलं ॥ ३६ ॥ (२९) रूप, अरूप, लावण्य - तीन भाव रूपं अरूप लावण्यं, दिस्टितं असुह भावना । ते नरा दुष्य साहंति, त्रिभंगी दल मोहिनं ॥ ३७ ॥ (३०) माया, मोह, ममत्व - तीन भाव माया मोह ममत्तस्य, प्रमानं असुह चिंतनं । ममतं मिथ्या संजुत्तं, त्रिभंगी नरयं पतं ॥ ३८ ॥ (३१) कषाय, राग, मिस्र - तीन भाव अनंतानु कषायं च, रागादि मिन भावना । दुष्य कर्म ब्रिद्धंते तत्र, त्रिभंगी दुर्गति कारनं ॥ ३९ ॥ (३२) कारन, कार्य, दचित्त - तीन भाव कारनं मिथ्या मयं प्रोक्तं, कार्यं दुर्गति बंधनं । दुचित्तं अनितं वन्दे, त्रिभंगी नरय स्तितं ॥ ४० ॥ (३३) आलाप, लोकरंजन, सोक-तीन भाव आलापं असुहं वाक्यं, मिथ्या मय लोक रंजनं । सोकं अनितं दिस्टा, त्रिभंगी नरयं पतं ॥ ४१ ॥ (३४) रसना, स्पर्सन, घ्रान - तीन भाब रसनं स्पर्सनं भावं, घ्रानं घ्रान संजुतं । __ असुहं कर्म संप्रोक्तं, त्रिभंगी दल पस्यते ॥ ४२ ॥ (१२४ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी (३५) चष्यु, स्रोत्र, उछाह - तीन भाव चष्यु अनितं दिस्टा, श्रुतं विकह रागयं । उच्छाह मिच्छ मयं प्रोक्तं, त्रिविधं त्रिभंगी दलं ॥ ४३ ॥ (३६) आहार, निद्रा, भय - तीन भाव आहारं असुद्धं भावं, निद्रा मिथ्यात भूतयं । भावं सुद्ध तिक्तं च, त्रिभंगी संसार भाजनं ॥ ४४ ।। ॥ इति प्रथमोऽध्यायः समाप्तम् ॥ द्वितीय अध्याय त्रिभंगी आसव क्ल भाव निरोधन भाव प्रतिज्ञात्रिभंगी प्रवेसं प्रोक्तं, भव्यात्मा ह्रिदयं चिंतनं । तेनाऽहं निरोधनं कृत्वा, जिन उक्तं सुद्ध दिस्टितं ॥ ४५ ॥ (१) देव, गुरू, धर्म (सास्त्र)- तीन भाव देव देवाधिदेवं च, गुरू ग्रंथस्य मुक्तयं । धर्म अहिंसा उत्पाद्यं, त्रिभंगी दल निरोधनं ॥ ४६ ॥ (२) व्यवहार सम्यकदर्सन, न्यान, चारित्र - तीन भाव दर्सनं तत्त्व सर्धानं, न्यानं तत्त्वानि वेदनं । स्थिरं तत्त्व चारित्रं, त्रितियं सुद्धात्मा गुनं ॥ ४७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (३) निस्चय सम्यकदर्सन, न्यान, चारित्र - तीन भाव संमिक् दर्सनं न्यानं, चारित्रं सुद्धात्मनं । स्व स्वरूपं च आराध्यं, त्रिभंगी समय षण्डनं ॥ ४८ ॥ (४) संमिक् संजम, संमिक् तप, संमिक् परिन - तीन भाव संमिक् संजमं तवं चिंते, संमिक् परिनै तं धुवं । सुद्धात्मा चेतना रूवं, जिन उक्तं सुद्ध दिस्टितं ॥ ४९ ॥ (५) भाव सुद्ध, श्रद्धान, प्रमान - तीन भाव भावए भाव सुद्धं च, प्रमानं स्वात्म चिंतनं । जिन उक्तं हृदयं सार्धं, त्रिभंगी दल पंडितं ॥ ५० ॥ (६) आत्म चिंतन, उपादेय, सास्वत - तीन भाव चिंतनं चेतना रूपं, उपादेय सास्वतं धुवं । जिन उक्तं सुद्ध चैतन्यं, त्रिभंगी दल निरोधनं ॥ ५१ ॥ (७) मति, मुत, अबधि न्यान - तीन भाब मति कमलासनं कंठं, जिन उक्तं स्वात्म चिंतनं । उवंकारं च विदंते, सुद्ध मति सास्वतं धुवं ॥ ५२ ॥ श्रुतस्य ह्रिदयं चिन्ते, अचष्यु दर्सन दिस्टितं । उवंकारं ह्रियंकारं च, साधु न्यान मयं धुवं ॥ ५३ ॥ मति श्रुतं च उत्पाद्यंते, अवधं चारित्र संजुतं । षट् कमलं त्रि उवंकारं, उदयं अवधि न्यानयं ॥ ५४ ॥ (८) रिजु बिपुल - मनपर्जय, केबल, स्वरूप - तीन भाव मति श्रुत अवधिं चिंते, रिजु विपुलं च जानु स्तितं । स्वात्म दर्सनं न्यानं, सुचरनं मन पर्जयं ॥ ५५ ॥ (१२५ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चत्रु न्यानं च एकत्वं, केवलं पदमं धुवं । अनंतानंत दिस्टंते, सुद्धं संमिक् दर्सनं ॥ ५६ ॥ (९) स्वस्वरूप - मूल, अन्या, बेदक - तीन भाव (१०) उपसम, प्याइक, सुद्ध- तीन भाव स्वस्वरूपं सुद्ध दर्वार्थ, अन्या वेदक उवसमं । ष्याइकं सुद्ध धुवं चिंते, कर्मादि मल मुक्तयं ॥ ५७ ॥ (११) पदस्थ, पिण्डस्थ, रूपस्थ - तीन भाब (१२) रूपातीत, अन्या, अपाय - तीन भाब (१३) विपाक, संस्थान, शुक्ल ध्यान - तीन भाव पदस्थं सुद्ध पदं सार्धं, सुद्ध तत्त्व प्रकासकं । पिण्डस्थं न्यान पिण्डस्थ, स्वात्म चिंता सदा बुधै ॥ ५८ ॥ रूपस्थं सर्व चिद्रूपं, रूपातीतं विक्त रूपयं । स्व स्वरूपं च आराध्यं, धर्म चक्रं न्यान रूपयं ॥ ५९ ॥ धर्म ध्यानं च संजुक्तं, औकास दान समर्थयं । अन्या पाय विचय धर्म, सुक्ल ध्यानं स्वात्म दर्सनं ॥ ६० ॥ (१४) द्रव्य, भाव, सुद्ध - तीन भाव (१५) तत्त्व, नित्य, प्रकासकं - तीन भाव दर्वस्य भाव सुद्धस्य, तत्त्व नित्य प्रकासकं । सुद्धात्मा भावए नित्यं, त्रिभंगी दल पंडितं ॥ ६१ ॥ (१६) तत्त्व, द्रव्य, काय, - तीन भाब तत्त्वादि सप्त तत्त्वानां, दर्व काय पदार्थकं । सार्धं करोति सुद्धात्मानं, त्रिभंगी समय किं करोति ॥ ६२ ।। (१७) समय, सुद्ध, साधं - तीन भाव (१८) समय, साधं, धुब - तीन भाब समयं दर्सनं न्यानं, चरनं सुद्ध भावना । सार्धं सुद्ध चिद्रूपं, तस्य समय सार्धं धुवं ॥ ६३ ॥ (१९) संमत्त, बंदना, स्तुति - तीन भाव संमत्त सुद्ध दिस्टिं च, वंदना नित्य सास्वतं । अस्तुतिं सुद्ध दर्वस्य, त्रिभंगी दल निरोधनं ॥ ६४ ॥ (२०) पदार्थ, व्यंजन, स्वरूप - तीन भाब पदार्थं पद विंदंते, विजनं न्यान दिस्टितं । स्वरूपं सुद्ध चिद्रूपं, विजनं पद विंदकं ॥ ६५ ॥ (२१)नंद, आनंद, सहजानंद - तीन भाव आनंद नंद रूवेन, सहजानंद जिनात्मनं । सुद्ध स्वरूप तत्त्वानं, नंत चतुस्टय संजुतं ॥ ६६ ॥ (२२) बिबहार, निस्चय, सुद्ध - तीन भाव (२३) दर्सनाचार, न्यानाचार, तपाचार - तीन भाव (२४) चारित्राचार, बीर्याचार इत्यादि भेद (२५ से ३६ पर्यन्त) गाथा ६७ से ७१ तक में व्यवहार - निश्चय रूप से वर्णन किये गये हैं। जो ३६ x ३ = १०८ भेद निरोध अर्थात् १०८ आम्रब के लिये संबर रूप हैं। विवहारं दर्सनं न्यानं, चारित्रं सुद्ध दिस्टितं । निस्चये सुद्ध बुद्धस्य, द्रिस्यते स्वात्म दर्सनं ॥ ६७ ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी नोट - यदि आठवें समय में गति बंध का योग न मिले तो नवमीं बार, मरण के अन्तर्मुहूर्त पहले तो अवश्य ही गति बंध हो जाता है । एक त्रिभाग में आयु बंध हो जाने पर आगे के त्रिभागों में गति बंध तो वही रहेगा, किन्तु परिणामों के आधार पर आयु की स्थिति कम या अधिक हो जायेगी। श्री त्रिभंगी सार जी आचरनं दर्सनाचारं, न्यानं चरनस्य वीर्जयं । तपाचार चारित्रं च, दर्सनं सुद्धात्मनं ॥ ६८ ॥ एतत् भावनां क्रित्वा, त्रिभंगी दल निरोधनं । सुद्धात्मा स्व स्वरूपेन, उक्तं च केवलं जिनं ॥ ६९ ॥ जिनवाणी ह्रिदयं चिंते, जिन उक्तं जिनागमं । भव्यात्मा भावये नित्यं, पंथं मुक्ति श्रियं धुवं ॥ ७० ॥ जिन उत्तं सुद्ध तत्त्वार्थ, सुद्धं संमिक् दर्सनं । किंचित् मात्र उवएसं च, जिन तारण मुक्ति कारनं ॥ ७१ ॥ ॥ इति द्वितीयोऽध्यायः समाप्तम् ।। विभाग में गति (आय)बंध का मानचित्र गाथा ३ में 'बर्ष पष्टानि निस्वयं' अर्थात् यदि ६० वर्ष की आयु मानी जाय तो गति बंध का समय निम्न प्रकार आएगा - पहला- ४० वर्ष बीत जाने पर, २० वर्ष शेष रहने पर। दूसरा-६ वर्ष ८ माह शेष रहने पर। तीसरा-२ वर्ष, २ माह, २० दिन शेष रहने पर। चौथा -८ माह, २६ दिन, १६ घंटे शेष रहने पर। पाँचा -२ माह, २८ दिन, २१ घंटे, २० मिनिट शेष रहने पर। छटवा - २९ दिन, १५ घंटे, ६ मिनिट, ४० सेकेण्ड शेष रहने पर। सातवा - ९ दिन, २१ घंटे, २ मिनिट, १३ सेकेण्ड शेष रहने पर। आठवा - ३ दिन, ७ घंटे, ० मिनिट, ४४५ सेकेण्ड शेष रहने पर। भोग भूमि, देव और बारकियों का आयुबंध भोग भूमि में ९ माह पहले, देव और नारकियों की ६ माह पहले से आठ त्रिभागों में गति (आयु) का बंध होता है। देव की आयु ६ माह शेष रहने पर पहला अवसर गति आयु के बंधने का आता है, दूसरा २ माह, तीसरा २० दिन शेष रहने पर समय आता है। इसी क्रम से जीवन के अन्त समय पर्यन्त का जानना। कर्माश्रव के १०८ मेवसमरंभ, समारंभ, आरंभ -३, मन, वचन, काय - ३, कृत, कारित, अनुमोदना-३, क्रोध, मान, माया, लोभ-४, इस प्रकार ३४३ % ९४३% २७४ ४ = १०८ भेद शुभ अशुभ कर्माश्रव के होते हैं। कर्माश्रव के अनुसार आयु के त्रिभाग में गति बन्ध होता है ; तथा गति बंध के समय के परिणामों के अनुसार गति बंध की स्थिति में न्यूनाधिकता हो जाती है। ॥ इति श्री त्रिभंगी सार नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ (१२७) Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी आश्रव-बन्ध के सम्बन्ध में विशेष (१) गति - आयु बंध होने पर फिर वह गति टूटती नहीं, उस गति में जाना ही पड़ता है। हाँ गति बन्ध होने के पश्चात् शुभाश्रव के द्वारा उस गति के दुःख भोग कम हो जाते हैं, उसकी अवधि कम हो जाती है और विशेष शुभाश्रव के योग से सुख साता की सामग्री का योग मिलने के साथ-साथ अल्पतम आयु उस गति की रह जाती है। यदि कदाचित् गति बन्ध होने के पश्चात् अशुभाश्रव किया जाय तो दुःखों के साथ-साथ वहाँ की आयु की अवधि भी बढ़ जाती है। (२) रौद्र भावों रूप सरल भावों से पुण्य, तप, त्याग से प्राप्ति होती है। से नरकगति, आर्तध्यान से तिर्यंचगति, धर्म मनुष्य गति तथा व्रत, नियम, शील, संयम, दान, देवगति तथा आत्म ध्यान से पंचम गति मोक्ष की (३) रौद्र भावों तथा आर्त ध्यान में कृष्ण, नील, कापोत यह अशुभ लेश्यायें तथा धर्म रूप सरल भावों में व व्रतादि उत्तम साधनाओं में पीत, पद्म, शुक्ल यह शुभ लेश्यायें रहती हैं; जबकि आत्मध्यान की प्रखरता होने पर आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान से सयोग केवली तेरहवें गुणस्थान पर्यंत मात्र एक शुक्ल लेश्या ही रहती है। (लेश्याओं का विशेष भेद गुणस्थानों के वर्णन से यथावत् जानना चाहिये ) १२८ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (४) नित्य निगोद, इतर निगोद, पंच स्थावर काय तथा दो इन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पर्यन्त के समस्त जीव तिर्यंचगति वाले जीव जानना । - (५) श्री त्रिभंगीसार जी ग्रंथ में आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने उन १०८ परिणाम भेद का वर्णन किया है - जिन परिणामों के प्रवाह में रहता हुआ यह जीव समरंभ, समारंभ, आरंभ से मन, वचन, काय द्वारा कृत, कारित, अनुमोदना पूर्वक क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों की प्रेरणा के कारण (३ x ३ x ३ x ४ = १०८) एक सौ आठ भेद से निरंतर कर्माश्रव किया करता है । इन भेदों को प्रथम अध्याय में बताकर दूसरे अध्याय में उन १०८ परिणामों के भेद बताये हैं जिन आत्मचिंतन रूप भावों द्वारा जीव उन आश्रव भावों का निरोध कर सके। ६० वर्ष की आयु के त्रिभाग में गति बंध होने का अवसर ८ बार आता है; यदि उन अवसरों में गति बंध न हो तो नवमीं बार अन्त समय में अन्तर्मुहूर्त पहले नियम से गति बंध होता ही है। ऐसा जानकर विवेकवान आत्म हितैषी मानव का परम कर्तव्य है कि हर समय अपने अन्तर भावों की संभाल रखता हुआ अशुभाश्रव से सर्वथा बचा रहकर शुभाश्रव को भी हेय जानता हुआ, आत्मचिंतन के द्वारा संवर रूप रहे, तभी अपनी आत्मा चारों गति के भ्रमण से मुक्त हो सकेगी; अन्यथा शुभाशुभ आश्रव करने के कारण यह जीव अनादि काल Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री त्रिभंगी सार जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ममल मत से भटक रहा है और ऐसे ही आश्रव बंध में प्रवृत्त रहा तो अनन्तकाल तक भटकता रहेगा। इस बात का विचार भव दुःख से भयभीत होकर त्रियोग की स्थिरता करके संवर रूप रहता हुआ शुभगति बन्ध और परम्परा गति बन्ध से सर्वथा मुक्त होने की अपनी भावना रखे। तात्पर्य यह है कि संवर का पुरुषार्थ करना ही सच्चा पुरुषार्थ है। शेष समस्त संसारी पुरुषार्थ, पुरुषार्थ नहीं बिडंबना मात्र है। इससे अपनी आत्मा को पाप-पुण्य के चक्कर में डालकर चारोंगतियों का पात्र बनाना है; अत: परिपूर्ण विवेक बल के द्वारा जैसे बने वैसे आत्म हित की साधना और अपने आत्म कल्याण के लिये “संवर" की प्राप्ति करना चाहिये। एक मात्र यही मनुष्य भव पाने का प्रयोजन है। इस प्रकार प्राप्त सुअवसर एवं पाई हुई इस पर्याय को सार्थक करना चाहिये। मनुष्य भव ही एक मात्र मुक्ति पाने का द्वार है। श्री चौबीसठाणा जी उवं उवन उवन विंद विंद भवनं, विन्यानं विनयं सुर्य । उत्पन्नं नंतानंत सुयं च सुरयं, सुद्धं च सुद्धात्मनं ॥ उवनं उवन सुभाव मनस्य ममलं, मै मूर्ति न्यानं धुर्व । लोकालोक सुर्य सुरं च सुरयं, सुन्नं सहावं सुरं ॥ १ ॥ मनुवा मन उववन्न उवन उवनं, विंदस्य त्रितियं सुयं । आवर्न तं न्यान सुद्ध ममलं, दर्स च अदर्स सुयं ॥ दर्स नंतानंत सुद्ध ममलं, आवर्न दर्स सुयं । मानं नंत विसेष सुद्ध ममलं, परमप्पा परमं धुवं ॥ २ ॥ आवन तं मान सूर्य सुरं च सरयं, विंदस्य रमनं परं । न्यानं न्यान विन्यान न्यान ममलं, अंतर सुरं अंतरं ॥ विंदं त्रितिय विसेष सुयं च रमनं, सद्भाव भावं सुरं । संसारं सरयंति सहस्य रवनं, आवर्न न्यानं परं ॥ ३ ॥ उवनं उवन स विंद विंद भवनं, विन्यान न्यानं मयं । उत्पन्नं उववन्न उवन उवनं, उत्पन्नं श्रियं सास्वतं ॥ उत्पन्नं हिय हेय एय ममलं, हितकारं श्रियं सुरं । उत्पन्नं सहयार रंज रमनं, सहयारं श्रियं परं ॥ ४ ॥ ROHIBA Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उत्पन्नं तं जान नंत ममलं, पयं च पद विंदं सुरं । उत्पन्नं तं दिस्ट इस्ट ममलं, सब्दं असब्दं सुरं ॥ उत्पन्नं उत्पन्न प्रान प्रान ममलं, इन्द्री अतीन्द्री सुरं । उत्पन्नं नंत विसेष भाव सहज, सहजं सहावं परं ॥ ५ ॥ उववन्नं गय इन्द्रि काय रवनं, जोगं च वेयं सुरं । उववन्नं कषाय न्यान ममलं, दर्स अदर्स परं ॥ दंसन संजम लेस्य भव्य भवनं, भयस्य विलयं परं । सम्मत्तं सहकार नंत ममलं, सैनं असयनं सुरं ॥ ६ ॥ आहारं गुनठान न्यान ममलं, जीवस्य पज्जावं सुरं । प्रानं संज्ञोपयोग ध्यान चपलं, कम्मस्य रमनं परं ॥ झानं चिय पंच पयं विहं च रमनं, जाई कुल कोटि सुरं । सुर विजन संजोय तव तवेन ममलं, चौबीस ठानं सुरं ॥ ७ ॥ उत्पन्नं तं षिपति मुक्ति रवनं, न्यानं च उवनं सुरं । उत्पन्नं तं न्यान नंत ममलं, उत्पन्न कम्मं विलं ॥ भुक्तं न्यान विसेष नंत ममलं, भुक्तस्य कम्मं विलं । संसारे सरयं विनंद विलयं, न्यानं च न्यानं सुरं ॥ ८ ॥ उव उवनं उववन्न न्यान रखनं, उत्पन्न कम्मं विलं । उववन्नं हितकार न्यान रवनं, हिययार कम्मं विलं ॥ उववन्नं सहकार न्यान चरनं, सहयार कम्मं गलं । उववन्नं नंत जान न्यान उवनं, जानं अनिस्टं विलं ॥ ९ ॥ उववन्नं पय पयं च न्यान ममलं, पयं च कम्मं विलं । उववन्नं नंत सुकिय सुभाव विपनं, कम्मस्य भावं विलं ॥ उववन्नं नंत विसेष न्यान रवनं, कम्मस्स नंतं विलं । जं जं कम्म उवन्न असेस रवनं, न्यानस्य तं तं विलं ॥ १० ॥ अन्मोयं तं न्यान नंत अबलं, विषयस्य विलयं सुर्य । जं विषयं चरन सहाव उवनं, अन्मोद न्यानं विलं ।। न्यानं न्यान सुर्य सुरं च रवनं, बाधस्य विलयं सुर्य । अव्वावाह अनंत न्यान रवनं, चरनं सुयं सासुतं ॥ ११ ॥ अर्कत्वं जु विसेष नंत ममलं, सुद्धं च सुद्धात्मनं । न्यानं न्यान सुयं समं च ममलं, चरनं च सुद्धं धुवं ।। तत्काल रवनं रूवं च ममलं, संमिक्तं साधं धुवं । नंतानंत चतुस्टयं तिसु समयं, अन्मोयं मुक्तिं धुवं ॥ १२ ॥ प्रथम अध्याय नरक गति निरूपनं अर्क न दिस्यते नर्क, अर्क स्य अनंत सुभाव ।। अर्क उत्पन्न अर्क १, कंठ कमल ठहकार अर्क २, हितकार अर्क ३, गहिर अर्क ४, गुपित गुहिज अर्क ५॥ अर्कस्य विशेष - उत्पन्न अर्क, उत्पन्न उत्पन्न नो उत्पन्न, दर्स उत्पन्न, न्यान विन्यान उत्पन्न, दर्स उत्पन्न सूष्यम सुभाव, सूष्यम क्रांति, सुष्येन रमन, सुष्येन षिपक, दुष्येन विलयं गतः ।। (१३०) Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी उत्पन्न न्यान मिलन रंज रमन, भय विनस्य नंद सनंद रूव । उत्पन्न न्यान अप्यर, सुर, विंजन, पद, अर्थ तिअर्थ समर्थ । समय अर्थ सहकार सदर्थ । अवकास अन्मोद। दिस्टि, अदिस्टि, दिस्टि । इस्टि, अइस्टि, इस्टि । इस्टि उत्पन्न इस्ट दर्स उत्पन्न दर्स इस्ट इस्ट उत्पन्न इस्ट सब्द उत्पन्न । इस्ट सब्द असब्द उत्पन्न । असब्द गुपित सब्द उत्पन्न । गुपित सब्द हितकार इस्ट । हितकार हितकार उत्पन्न हितकार लक्ष्य इस्ट लक्ष्य उत्पन्न लक्ष्य । इस्ट जीवस्य आह्वान । तत्काल रमन । दर्स, अदर्स, दर्स । सब्द, असब्द, सब्द । वयन, अवयन, वयन । इच्छ, अइच्छ, इच्छ । लक्ष्य, अलष्य, लक्ष्य । पेषु, अपेषु, पेषु । रमनु, अरमनु, रमनु । गहनु, अगहनु, गहनु । धरनु, अधरनु, धरनु सहनु, असहनु, सहनु । साहनु, असाहनु, साहनु । औकास, अनंत औकास। समय, असमय, समय । अन्मोद, परम अमोद । षिपक, परम षिपक। मुक्ति, परम मुक्ति । सौष्य, परम सौप्य ॥ तत्काल उत्पन्न न्यान विन्यान भय विनस्य, भय, सल्य, संक विलयंति । दिस्टि इस्टि भय विलयं, उत्पन्न भय विलयं, झड़प भय विलयं । चेत, अचेत, चेत । गम्य, अगम्य, गम्य । अनंत गुपित रमन, सर्वार्थ, सर्वन्य, सर्व दिस्टि अर्थ अर्थस्य, सप्त अर्थ । विन्यान विंद I सहकार, सुन्य प्रवेस, मुक्ति पंथ सुयं ॥ - - अर्कस्य अर्क सुभाव - सुयं रमन, सुर्य दर्स, सुयं दिस्टि, सुयं इस्टि, सुर्य न्यान विन्यान अर्क, मुक्ति सुभाव सुर्य अर्क ॥ १ ॥ १३१ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उत्पन्न प्रगटस्य कमल अर्क- १, कमल ठकार कंठ अर्क- २, ठहकारस्य मुक्ति सूषिम परिनाम सुकीय सुभाव, सुयं दर्स, दर्स, मुक्ति सुभाव दर्स, मुक्ति रमन दर्स, उत्पन्न श्री दर्स, उत्पन्न मुक्ति श्री दर्स । समय सहकार ठकार मुक्ति सुभाव दर्स, कल लंक्रित कम्म विली, कम्म विली कमल ठकार मुक्ति, सुकीय सूषिम सुर्य, कलन ठकार मुक्ति, अर्क सुद्ध सुभाव उत्पन्न, इस्ट उत्पन्न प्रमान, उद्देस परिनै प्रमान । उत्पन्न उद्देस, उत्पन्न परिनै, उत्पन्न प्रमान। गम्य, अगम्य प्रमान गम्य अर्क, अर्क इस्ट अर्क । उत्पन्न अर्क प्रमान, अर्क अर्कस्य कण्ठ अर्क ॥ २ ॥ - हितकार अर्क - हितमित परिनै कोमल अर्क सुभाव। अर्क हितकार अर्क, अर्क विंद विन्यान अर्क ॥ आगंतु अर्क- आर्ध, ऊर्ध अर्क, हितकार अर्क, हुंतकार अर्क, रमन अर्क, अर्क सुभाव, हितकार अर्क। रंज हितकार रंज जिन रमन, अमिय रमन । जिननाथ नंद, आनंद, परमानंद अर्क सुभाव । सहकार दिस्टि हितकार उत्पन्न, रमन हितकार अर्क, हितकार मुक्ति, हितकार सिद्धि, हितकार सुद्ध - बुद्ध, हितकार अर्क केवल सुभाव । हितकार तव तत्काल उत्पन्न न्यान हितकार। व्रिति उत्पन्न न्यान हितकार | परम तत्तु तिअर्थ प्रमान दिस्टि हितकार। दर्स, अदर्स, दर्स हितकार । दिस्टि, अदिस्टि, दिस्टि हितकार । इस्टि, अइस्टि, इस्टि । लब्धि, अलब्धि लब्धि । अर्क सुभाव केवल लब्धि, मुक्ति लब्धि । अर्कस्य हितकार अर्क ॥ ३ ॥ - Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी अर्कस्य गहिर अर्क गम्य, अगम्य, गम्य अर्क। इच्छ, अइच्छ, इच्छ अर्क । ग्रहन, अग्रहन, ग्रहन अर्क। लष्य, अलष्य, लष्य अर्क । धुवस्य उत्पन्न धुव अर्क। रहन उत्पन्न रहन अर्क । सहन, असहन, सहन उत्पन्न अर्क । सहन, असहन उत्पन्न अर्क। रिस्टि, अरिस्टि, रिस्टि उत्पन्न अर्क। रिस्टि, अरिस्टि, रिस्टि अर्क। समय इस्टि, असमय इस्टि, समय इस्टि अर्क। सह इस्टि, असह इस्टि, सह इस्टि उत्पन्न अर्क। उत्पन्न इस्टि अर्क, उत्पन्न उत्पन्न इस्टि अर्क। पद, अपद, पद उत्पन्न अर्क । अर्थ, तिअर्थ, अर्थ उत्पन्न अर्क। अर्थ, समर्थ, अर्थ उत्पन्न अर्क । अर्थ, समय अर्थ,असमय समय उत्पन्न अर्क। सहकार अर्थ, असहकार. सहकार उत्पन्न अर्क। अर्थ औकास, अनंत औकास, उत्पन्न औकास अर्क। अर्थ, असदर्थ, उत्पन्न सदर्थ अर्क । अर्थ, अन्मोद अर्थ । अर्थ अन्मोद, अन्मोद अर्थ उत्पन्न अर्क। अर्थ विपक,अषिपक उत्पन्न षिपक उत्पन्न अर्क। मुक्ति हितकार, उत्पन्न मुक्ति उत्पन्न अर्क। हितस्य उत्पन्न हित अर्क हितकार अर्क ॥ ४॥ सहकार गुपित अर्क गुहिज गुपित न्यान - उत्पन्न अर्क । गपित विन्यान - उत्पन्न अर्क । गुपित कमल - उत्पन्न अर्क। गपित रमन रंज नंद चिदानंद परमानंद - उत्पन्न अर्क । जिन रमन जिन रंज जिननाथ रमन - उत्पन्न अर्क । तीर्थकर प्रभवति तिअर्थ आयरन रमन अन्मोद अबलबली। इस्टि परमिस्टी चौबीस, रत्नत्रय चौबीस, चतुस्टै चौबीस अन्मोद। रमन अबल, विषय अनंत विली - उत्पन्न अर्क । सहकार सहजोपनीत, सहज सुकीय सूषिम - उत्पन्न अर्क । आचरन चरन, न्यान चरन, दर्स अवहि, सम्मत्त श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उपसम, बीजं अनंत- उत्पन्न अर्क । विन्यान वीय पय पदार्थ वीय - उत्पन्न अर्क। अंगदि अंग स्थान दिप्त, दिस्टि - उत्पन्न अर्क। दिप्ति अनंत विसेष दिस्टि अनंत विसेष - उत्पन्न अर्क । लष्य अलप्य लष्य - उत्पन्न अर्क। तिअर्थ अर्थ उत्पन्न तीर्थकर सुभाव अर्क। पदवी साधु - उत्पन्न अर्क । नयोग आचरन - उत्पन्न अर्क । श्री अनंत श्री संमिक चरन - उत्पन्न अर्क। अर्कस्य गुपित गुहिज- उत्पन्न अर्क ॥५॥ अर्कस्य पंच अर्क सुभाव - उत्पन्न अर्क । अर्क सुभावेन अनंत चतुस्टय, छयाल गुन, सिद्ध सुद्ध तीर्थंकर उत्पन्न अर्क सुभाव । अर्क न दिस्यते सुभाव, सर्व सुभाव अर्कन दिस्यते नर्क गतः । पंचम, छट्टम, सप्तम नर्क गति, नीच इतर सुभाव नरक प्रथम, द्वितीय, त्रितिय, चतुर्थ प्रभवनं भवति ।। नर्क सात (७)॥ अर्क सुभाव दिस्टि-इस्टि सुभाव अनंत दिस्टि, एको उद्देस मुहूर्त समय, भय, सल्य, संक, आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम, जनरंजन, कलरंजन, मनरंजन, आवरन न्यान, दर्सन मोहांध, अंतर सुभाव सहितं, जेन केनापि अर्क सुद्ध औकास, संक सल्य, एको उद्देस न दिस्यते, सर्व भाव सहित एको उद्देस सहित प्रथम नरय प्रवेसं भवति॥ सुद्ध दिस्टि अर्क पंच भाव सम्पूर्न, मुहूर्त भय विलिय कछु संका जे जीव सुद्ध दिस्टि अर्क सुभाइ एको उद्देस न दिस्यते, सर्व सहकार प्रथम नरय मुहूर्त समय सुद्ध दिस्टि॥ सुद्ध दिस्टि छीन सुभाइ नर्क सुभाव अनंत अंतर रहित दुष्य असहनी (१३२) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री चौबीस ठाणा जी अर्कन दिस्यते नर्क। जे जीव अर्क अनंत सुभाइ सुद्ध दिस्टि एको उद्देसन दिस्यते ते प्रथम नर्क। नर्क अस्तिति आयुगलन तुच्छु रहै, भुक्तस्य दिस्टि आयु छिनि मनुष्य गति । अर्क सुभाव ग्रहनं अनंत विसेष नाना प्रकार न्यान विसेष सुद्ध सद्भाव निरूपनं ॥ अर्क सुभाव दर्स, अदर्स, दर्स - उत्पन्न अर्क। दर्स सर्व परिनाम - उत्पन्न अर्क। दर्स कमल सुभाव - उत्पन्न अर्क। दर्स कमल कंद अग्र - उत्पन्न अर्क। दर्स गिरा कंद अग्र परिनाम - उत्पन्न अर्क । भय विनस्य परिनाम सुभाव - उत्पन्न अर्क । दर्स अंगदि अंग सर्वन्य परिनाम सुभाव - उत्पन्न अर्क। दर्स कमल कलन न्यान विन्यान परिनाम - उत्पन्न अर्क। न योग दर्स - उत्पन्न अर्क। इस्टि परमिस्टि- उत्पन्न अर्क। अवधि लै - उत्पन्न अर्क । अन्यान अन्मोद उत्पन्न षिपक अर्क । अन्यान विरोध दिस्टि विलयंति - उत्पन्न अर्क । न्यानेन न्यान अन्मोद रमन - कम्म विलयं गतः ।। उत्पन्न मिली, उत्पन्न कम्म विली - उत्पन्न अर्क। सुभाव उत्पन्न, दर्स हितकार, सहकार दिस्टि- उत्पन्न अर्क । मन पर्जय सुभाव उक्त दर्स - उत्पन्न अर्क । लब्धि केवल न्यान विमल अर्क - न्यान अनंत दर्स, अनंत लब्धि - उत्पन्न अर्क । दान, लाभ, लब्धि अनंत - उत्पन्न अर्क। भोग, उपभोग लब्धि मुक्ति - उत्पन्न अर्क। वीर्ज विन्यान, संमिक्त सुभाव, समय सहकार, समय बाधा रहित सहकार - उत्पन्न अर्क । राग जनरंजन विली - उत्पन्न अर्क । कलरंजन दोस विली- उत्पन्न अर्क। मनरंजन गारव विली - उत्पन्न अर्क। दर्सन मोहांध विली- उत्पन्न अर्क। न्यान आवर्न विली- उत्पन्न अर्क। दर्सन आवर्न विली- उत्पन्न अर्क। मोहन आवर्न विली- उत्पन्न अर्क। न्यान अंतर विली - उत्पन्न अर्क। आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम विलयं गत:- उत्पन्न अर्क। मिथ्या कषाय मल दोस विली- उत्पन्न अर्क। भय, सल्य, संक विलयंति - उत्पन्न अर्क। दर्स अनन्त सदर्स सुभाव - उत्पन्न अर्क। अनंत सुभाव दर्स नित अन्मोद न्यान - उत्पन्न अर्क । अनंत दर्स विसेष नित अन्मोद न्यान - उत्पन्न अर्क । लष्य अलष्य लष्य अन्मोद न्यान - उत्पन्न अर्क। जावत् अनंत परिनाम नित धुव न्यान अन्मोद, तदि अनंत न्यान अन्मोद चरन सुभाव अर्क । दर्सन, न्यान, चरन भेद उत्पन्न अर्क । संमिक दर्सन, लोय, अवलोय संमिक उत्पन्न अर्क। लोकालोक नित धुवन्यान संमिक् उत्पन्न अर्क। लोक नित आचरन चरन न्यान अन्मोद उत्पन्न अर्क । तं संमिक् चरन लोक अवलोक संमिक चरन अनंत दर्स अर्क॥ अनंतानंत दर्स नितंति अनंत न्यान- उत्पन्न अर्क। अनंत जित सुभाव आचरन चरन न्यान अन्मोद अबलबली विषय गली, नंत चरन बीर्ज विन्यान संजुक्त - उत्पन्न अर्क। श्री नंतानंत उत्पन्न, श्री हितकार, श्री सहकार, श्री मुक्ति, श्री समदर्स, श्री संमिक दर्स - उत्पन्न अर्क। श्री सम नित धुव रमन न्यान जिननाथ अन्मोद न्यान - उत्पन्न अर्क । श्री संमत्त चरन चरियं गुपित न्यान अन्मोद अबल चरन श्री संमिक चरन नंतानंत चतुस्टय सहित - उत्पन्न अर्क । विमल केवल न्यान विमल सभाव अर्क। श्री मुक्ति, श्री अन्मोद न्यान, श्री सुभाव मुक्ति, श्री अर्थ तिअर्थ, श्री अन्मोद न्यान तीर्थंकर भवति । तिअर्थ आयरन तीर्थकर मुक्ति प्रवेस सिद्ध तीर्थकर अर्क सुभावेन न्यान विन्यान सुद्ध अर्क, सुर्य षिपक भाव (१३३) Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी नो उत्पन्न नंतानंत अनंत चतुस्टै सहित अर्क, हितकार न दिस्यते स नर्क गतः। अनंतानंत दृष्य दारुन असहनी संसारिनो सुभाव। नर नारकादि दुष्य संतत अनंत विसेष नरक दुतिय ॥ जे जीव सुद्ध दिस्टिनो उत्पन्न अर्कस्य सर्व विसेष अनंतानंत हितकार उत्पन्न न्यान, सुद्ध न्यान, समय न्यान, परिनै न्यान, उत्पन्न न्यान, हितकार न्यान, सहकार न्यान विन्यान, न्यान पद न्यान, अर्थ न्यान, तिअर्थ न्यान, समर्थ न्यान, समय अर्थ न्यान, सहकार न्यान, औकास न्यान, अन्मोद न्यान, कम्म षिपक न्यान, मुक्ति सुभाव अर्क विसेष दिस्टते । सर्व सर्वे हितकार अर्क। किंछ विसेष किंछ ससंक सक सत्रह इत्यादि - आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम, जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्सन मोहांध, न्यानावन, दर्सनावर्न, मोह आवर्न, अंतर सहकार किंछु सुभाइ, अर्क सुभाव मुहूर्त दोई अर्क सुभाव विस्मरते स भव्य नर्क गत: दुतिय नर्क पतनं भवति ।। जावत् नर्क दूजे, तावत् अर्क सुभाव सहित दिस्टि दुष्य असहनी सहितं, अस्तिति आयु विलीयते, तुच्छ आयु प्रवर्तते आऊगति चय मनुष्य गति ॥ अवधि लै उत्पन्न अर्क सुभाव सहकार - सर्व हितकार न्यान अन्मोद, सुयं उत्पन्न । अन्यान अन्मोद षिपक अन्यान, विरोध दिस्टि, न्यान अन्मोद अबलबली विषय गली। अन्मोद न्यान अबलबलीन्यान, अन्मोद न्यान, समय न्यान, औगाह न्यान, बाधा रहित अवगाहन, अगुरुलघु सुकीय श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुभाव समय सहकार । तारन तरन हितमित परिनत कोमल विसेष अर्क सुभाव । उक्त अन्मोद अनंतानंत - सक सल्य विवर्जित, राग विक्त, दोष विली, गारव षिपक । दर्स, अदर्स, दर्स- माया, मिथ्या, निदान सल्य रहित कषाय मल विली। कषाय जिन कषाय, राग जिन रंज, रंज रमन आनंद सहित विषय विली । दर्स अनंत दर्स, न्यान अनंत, नित चरन, अनंत चरन चारित्र, श्री समय दर्स, श्री समय हिययार, नित श्री संमिक चरन, चारित्र हितकार। अस्थान जस्स कर्मादि सहित, तस्य स्थान न्यान अन्मोद कम्म विलयंति । हितकार न्यान, अन्मोद न्यान, दिस्टि न्यान, इस्टि न्यान, रस्टि न्यान, रिस्टिन्यान, सम इस्टि न्यान, सस्टि न्यान, उत्पन्न दिस्टि न्यान, सहकार दिस्टि न्यान, औकास दिस्टि न्यान, अनंत इस्टि न्यान, अन्मोद इस्टि न्यान, कम्म विली तं मुक्ति । इस्टि न्यान - सब्द सर न्यान, असब्द सर न्यान, गुपित सर न्यान प्रगट सर । कमल हितकार, स्थान हितकार, अर्थ हितकार, परिनाम हितकार, उद्देस उत्पन्न हितकार, परिनै उत्पन्न हितकार, प्रमान उत्पन्न हितकार, उत्पन्न उत्पन्न हितकार, उत्पन्न हितकार हितकार, उत्पन्न सहकार हितकार, उत्पन्न विन्यान हितकार , उत्पन्न पय हितकार, उत्पन्न जिन हितकार, उत्पन्न परम जिन हितकार, हितकार कोडाकोडी, हितकार सुन्य सुन्य प्रवेस, कोडाकोडी सहकार हित कोडि अन्मोद न्यान ।। सक, सल्य, भय विली, उत्पन्न केवल सभाव । मन पर्जय दिस्टि केवल अन्मोद न्यान । तिअर्थ आयरन तीर्थंकर भवति, तिअर्थ हितकार आयरन तीर्थकर, सुयं कलित सुक्ल लेश्या तीर्थकर भवति । अर्कस्य (१३४) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनंत विसेष दिस्टते न्यान विन्यान, अर्क सुभाव, किंछु, सक, सल्य, संक, राग, दोष, बंधान, सहकार न्यान उत्पन्न अर्क सुभाव, किंछ विसेष मुहूर्त तीनि:३: अंतरं न्यान उत्पन्न अर्क न दिस्यते, विस्मरनं भवति तदि त्रितिय नरय पतनं भवति॥ जदि त्रितिय नर्क तदि अर्क सुभाव सहित दुष्य दिस्टि उत्पन्न सहित अनंतानंत सहित अर्कस्य न्यान सहकार अस्तिति आऊ बंधान विपक तुच्छ उत्पन्न भुक्त अर्क सुभावेन चय-मनुष्य गति उत्पन्न ॥ अरमन न्यान सहकार अर्क । न्यान कमल अर्क । न्यान उक्त अर्क । न्यान परिनै अर्क। न्यान प्रमान अर्क। न्यान कमल प्रमान अर्क। न्यान वयन अर्क । न्यान दर्स अर्क । न्यान सुभाव अर्क । न्यान रंज अर्क । न्यान रमन अर्क। न्यान आनंद अर्क । न्यान अन्मोद अर्क । न्यान हितकार अर्क। न्यान सहकार अर्क । न्यान प्रियो अर्क। न्यान दिस्टि अर्क । न्यान कमल अर्क । न्यान कलन अर्क । न्यान मिलन अर्क । न्यान इस्टि अर्क । न्यान रस्टि अर्क। न्यान रिस्टि अर्क। न्यान समड इस्टि अर्क। न्यान सह इस्टि अर्क। न्यान उत्पन्न इस्टि अर्क । न्यान सहकार अर्क । न्यान औकास अर्क । न्यान अनंत अर्क । न्यान अन्मोद अर्क। षिपक अर्क। अर्क न्यान लंक्रित अर्क । न्यान विन्यान न्यान अर्क । न्यान मई अर्क । न्यान अर्क। अर्क अनंत प्रकार । अर्क सुर्य रमन अर्क। अर्क सुर्य मिलन अर्क । अर्क अन्मोद मुक्ति अर्क। आचरन न्यान अंतर रहित अर्क । सहकार हितस्य अर्क। सल्य रहित अर्क। भय रहित अर्क । मल रहित अर्क। कषाय रहित अर्क। मिथ्यात रहित अर्क। विषय रहित अर्क । विलीमान विषय अर्क। अन्यान विली अर्क । न्यान अन्मोद तीर्थकर । तिअर्थ आयरन तीर्थंकर । सहकार अर्क तीर्थंकर । त्रिलोकनाथ तीर्थकर अन्मोद न्यान ।। अकस्य अकं सुभाव अस्थान अस्थान न्यान विन्यान विंद अर्क। षिपक अर्क। सुर्य अस्कंध अर्क। धुव रमन अर्क । कुन्यान विली अर्क । अस्थान हितकार अर्क। पद उत्पन्न अर्क । उत्पन्न उत्पन्न अर्क चेत उत्पन्न अर्क । अस्थान आयरन अर्क। इच्छ गम्य अगम्य गुपित रमन अर्क। पद ईर्ज जाता उत्पन्न तिअर्थ अर्क । मध्यम पद षट् रमन अर्क । उत्पन्न उत्पन्न न्यान विन्यान अर्क। अर्कस्य इस्ट दर्स अर्क । जदि सुभाव इस्ट अर्क तदि उत्पन्न अर्क सुभाव इस्ट । तदि षिपक अर्क। जान विन्यान अर्क। अर्क सुभाव भय विलय। विषय विलय अर्क। अर्कस्य मुक्ति अर्क । जदि अर्क सुभाव न दिस्टते तदि नर्कस्य वीय पततं भवति । जदि अर्क सुभाव सम्पून न दिस्टंति तदि नर्क, अंतर रहित दुष्य अनंत सहित संसारिनो जीव, जदि अर्क अर्क सुभावेन अनंत विसेष प्रतिपून दिस्टयंति॥ जदि कौन एक सुभाव संमिक्ती जीव संक, सल्य, भय, कषाय, राग, दोस, गारव, दर्सन मोहांध विसेषं पर्जाव अर्क मुहूर्त चौ : ४ : न दिस्टति, विस्मरनं भवति तदि नर्क चौथे पतनं करोति ॥ अर्क सुभाव दिस्टि सम्पूर्न लै उत्पन्न नर्क अस्तिति छीन आऊ, तुच्छ आऊ भुक्त, मानसिक दिस्टि सुभाव, दुष्य सहित चय उत्पन्न मनुष्य गति भवतु॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी द्वितीय अध्याय श्री चौबीस ठाणा जी अर्क सुभाव उत्पन्न उत्पन्न अर्क। हितकार उत्पन्न उत्पन्न हितकार अर्क। कमल ठकार अर्क। षिपक इस्ट अर्क। षिपक उत्पन्न अर्क। जान इस्ट अर्क। जान उत्पन्न अर्क। पद परम तत्तु परम उत्पन्न। परम तत्तु विसेष उत्पन्न । अवधि न्यान सुयं रमन । मुक्ति सुभाव । संसार सरनि । न्यान विन्यान सरयंति सरनि॥ मुक्ति सुभाव न्यानस्य अंतरं विमुक्त विलयंति। मुक्त स्वभाव भय, सल्य, संक, राग, दोष, गारव, दर्स मोहांध, आवरन, घाति कम्म मल, कषाय, मिथ्या विलीयते॥ सुद्ध बुद्ध विमल केवलं न्यान विसेष न्यान सुभाव, न्यान अन्मोद, बंधन मुक्ति, न्यान अन्मोद अबलबली विषय विलयंति ।। न्यानेन न्यान अन्मोद मुक्ति गर्ने । मुक्ति सुभाव मुक्ति सिदं भवति । तथाहि अर्कन दिस्यते नर्क । जीव अनंतानंत संसारु भ्रमनं करोति। अनंत दुष्यः । जदि अर्क सुभाव भ्रमत - भ्रमत अर्क सुभाव उत्पन्न तदि मनुष्य भवतु । मनुष्य मन षिपत-अर्क सुभाव - न्यान विन्यान कालांतर विली॥ अर्क सुभाव ग्रहनं मुक्ति गामिनो भवतु ॥ नर्कस्य सुभाव भेद गति -१॥ थावर सुभाव विसेष निरूपन - अस्थान परिनाम, अनंत न्यान मई। न्यान सुभाव । न्यान रमन । न्यान नंद। न्यान रंज। न्यान लब्धि दर्स । अनंत दर्स । न्यान दर्स । विन्यान दर्स। सुभाव दर्स। उत्पन्न दर्स। हितकार दर्स। सहकार दर्स। षिपक दर्स। इस्ट दर्स । उत्पन्न इस्ट दर्स। जान दर्स। पद परम तत्तु दर्स। लष्य दर्स। अलष्य दर्स । गुपित दर्स । चष्य, अचष्य, अवधि, केवल दर्स । लब्धि दर्स । सुर्य लब्धि नितंति न्यान कमल सुभाव।। कमल रमन । कमल उक्त । कमल परिनै । कमल प्रमान । कमल अर्थ। कमल तिअर्थ । कमल समर्थ । कमल समय अर्थ । कमल सहकार अर्थ । कमल औकास अर्थ । कमल अन्मोद अर्थ । कमल षिपक अर्थ । कमल मुक्ति अर्थ। कमल रमन । कमल लंक्रित । कमल विन्यान । कमल मई कमल । न्यान कमल । नाना प्रकार कमल । अनंत कमल परिनाम कंद अग्र, गिरा कंद अग्र परिनाम । भय विलय परिनाम । अस्थान अंगदि अंग। अस्थान अस्थान न्यान विन्यान, उत्पन्न कमल । कंठ मति कमल। हितकार श्रुति कमल । गुपित अवहि कमल । जान मनपर्जय कमल । पय केवल परिनाम । ममल अनंत तिअर्थ आयरन तीर्थकर । तिअर्थ आवर्न थावर । अस्थान अर्थ लोक अवलोक अनंत परिनाम । न्यान विन्यान अनंतानंत केवल सुभाव । अनंत चतुस्टै सरीर अस्थान परिनाम । दिप्ति अनंत । जं दिप्ति तं दिस्टि। जं अनंत दिप्ति तं अनंत दिस्टि। तस्य आवरन थावर पंच भेद उत्पन्न। ॥ इति थावर सुभाव विसेष निरूपनं ॥ ॥ इति प्रथमोऽध्यायः समाप्तम् ॥ (१३६) Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी अथ अपकाय निरूपन - अप सुभाव उत्पन्न लब्धि । गम्य अगम्य परिनाम । अनंत न्यान दर्स विन्यान षिपक सूषिम रमन । न्यान सुर्य सुर परिनाम उत्पन्न । न्यान रमन सुभाव कमल ठकार रमन परिनाम । ठहकार मुक्ति परिनाम । रेह रमनु इस्ट परिनाम । रेह रमनु उत्पन्न परिनाम । अनंत रेह रमनु न्यान परिनाम । नित निवंतर रमन परिनाम । तत्काल रमन परिनाम । इस्ट उस्ट इस्टि परिनाम । उत्पन्न उस्ट परिनाम । इस्ट दर्स सुर रमन परिनाम । उत्पन्न दर्स परिनाम। इस्ट लष्य परिनाम। उत्पन्न लष्य परिनाम । दर्स लष्य न्यान परिनाम । जीव उत्पन्न आह्वान परिनाम । जिन अर्क रमन उत्पन्न रमन परिनाम । अनंत रमन कमल कन्द परिनाम । कमल अग्र परिनाम । गिरा कंद परिनाम । गिरा अग्र परिनाम । मूल इच्छा परिनाम । गुपित इच्छा परिनाम । जाता उत्पन्न धुव ऊर्ध परिनाम । गम्य अगम्य लंक्रित इस्ट परिनाम । गम्य अगम्य लंक्रित उत्पन्न परिनाम । रमन न्यान सहकार सिद्धि रमन परिनाम । सुर्य स्कंध रमन परिनाम । दुरस्कंध विली सुयं स्कंध परिनाम । न्यान थुति इस्ट उत्पन्न परिनाम । न्यान थुति उत्पन्न इस्ट परिनाम । रमन वरं सेस्ट सहकार उत्पन्न परिनाम । दिस्टि इस्टि: १४ ॥ परिनाम दिस्टि उत्पन्न इस्ट: १४ : परिनाम। झड़प इस्ट उत्पन्न न्यान परिनाम। भय विलय इस्ट उत्पन्न झड़प इस्ट न्यान परिनाम । भय विलय, भय इस्ट विलय, भय उत्पन्न विलय परिनाम । रमन न्यान सुयं रमन अर्क परिनाम । रमन सर्वन्य, सर्व दिसि, सर्व अर्थ, नंत विसेष, अर्थ तिअर्थ, समर्थ, अध्यर, सुर, विंजन, पद, सब्द, अर्थ, सदर्थ, सहकार अर्थ, औकास, अन्मोद विपक, मुक्ति सौष्य अनंत सर्व अर्थ परिनाम । रमन इस्ट उत्पन्न विंद विन्यान अस्मूह परिनाम । सून्य सुभाव रमन । सूष्यम सरि इस्ट रमन । सरि उत्पन्न रमन । मै मूर्ति गम्य अगम्य मुक्ति रमन । सर्वन्य श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सु रमन । मूल उत्पन्न कमल टंकोत्कीर्न रमन । कमल न्यान परम तत्त टंकोत् ईर्ज रमन । इस्ट कमल न्यान परम तत्तु टंकोत् ईर्ज रमन । सुर स्ववर्न उत्पन्न रमन । मै मूरति श्री सास्वत कमल रमन । विन्यान न्यान नित ईर्ज सुभाव रमन । केवल सहकार रमन । इस्ट उत्पन्न उत्पन्न उवंकार रमन । विंद विन्यान नय, उत्पन्न न्यान नय, जिन सुभाव मइ मूर्ति उत्पन्न न्यान, उत्पन्न न्यान परिनाम । अनंत श्री सहकार श्री न्यान श्री मुक्ति सुभाव । मुक्ति श्री धुव रमन न्यान अंतर रहित धुव समयं न अंतर सिय सहकारनो धुव सिद्धं । अप्प परमप्प हितकार षिपक जान इस्ट उत्पन्न इस्ट मुक्ति रमन । न्यान आयरन तीर्थंकर मुक्ति सिद्ध अप्प सहकार न्यान रमन ।। जदि केन विसेष पथ्य जनरंजन, कलरंजन, मनरंजन, दर्सन मोहांध, आवर्न न्यान, भय, सल्य, संक, कषाय मल, मिथ्या सहकार न्यान रमन आवर्न, अंतराइ रहित, रमन अस्थान न्यान परमिस्टी, चतुस्टै, रयनत्रय, अन्मोद सहकारेन विसेष आवर्न, अंतर समय मुहूर्त आवर्न, अंतर सुभाइ अंतर हितकार आवर्न, सहकार आवर्न, हितकार आवर्न, जानु आवर्न, रमन न्यान आवर्न, तदि अप्प काय जीव उत्पन्न पयोग चतुस्टै हीन तदि सुभाव अंतर्मुहूर्त बारह सहस चौबीस (१२०२४) बार भ्रमनं करोति । अनंत काल कलन विसेष न दिस्यते । भ्रमत-भ्रमत जदि कदि परिनाम रमन न्यान अस्थान उत्पन्न होई, तदि काल तदि मुहूर्त तदि समय अप्प सुभाव न्यान रमन उत्पन्न होई, तदि अपकाय मुहर्त षिपनिक लै जस्य परिनाम आयरन अस्थान जदि काल आयरन उत्पन्न रमन भवति । तदिन्यान रमन विसेष कम्म षिपति मुक्ति जन्ति । ॥ इति अपकाय निरूपनं ॥ (१३७) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी अथ तेज काय निरूपन एकेंदी निरूपनं - थावर गति - अस्थान न्यान आवर्न थावर । तेजकाय निरूपनं - गति त्रिजंच । अस्थान न्यान आवर्न थावर । आयरन आयरन सुद्ध मुक्ति गामिनो । कस्य आयरन उत्पन्न ? उत्पन्न आयरन उत्पन्न विंद । उत्पन्न विन्यान । उत्पन्न पद । उत्पन्न अर्थ । उत्पन्न औकास। उत्पन्न अन्मोद। उत्पन्न विपक। उत्पन्न मुक्ति रमन । उत्पन्न न्यान रमन । आनंद नंद उत्पन्न । दिस्टि इस्टि उत्पन्न । सूषिम सुयं विपन सुभाव उत्पन्न । श्री रमन आयरन श्री मुक्ति सुभाव । जदि विसेष उत्पन्न सर्वेपि अप्प सहकार उत्पन्न उत्पन्न हितकार । आयरन हितकार उत्पन्न हितकार अस्थान इस्टभय विनस्य। हितकार उत्पन्न भय विनस्य। हितकार अचष्य भय इस्ट विनस्य । अचष्य रूव उत्पन्न भय इस्ट विनस्य । सुर्य न्यान रमन आयरन रमन काय रमन । क्रांति - इस्ट न्यान विन्यान श्री आयरन क्रांति । उत्पन्न इस्ट पूर्व सहकार पुरिस क्रांति । रमन आयरन फास अस्फटिक । फास अस्फटिक अन्यान विली। न्यान अन्मोद स्वरूप सुभाव न्यान प्रियो । न्यान इस्ट। न्यान कमल । न्यान रमन । श्री अनंत न्यान फटिक सुभाव रमन । आयरन उत्पन्न अस्फटिक सिय सुभाव। फास स्वरूपं सूष्यम अवगाहन। हितमित परिनै कोमल क्रांति सिद्ध सरूव। श्रीन्यान मुक्ति श्री सिद्ध सुभाव । फास आयरन रूव अरूव रूपी विलय । अरूव रूव - रूव विविक्त । अनंत रुचि प्रियो । न्यान रुई प्रियो । न्यान विन्यान रमन । आयरन न्यान सुद्ध सुकीय सुभाव । दिस्टि आयरन उत्पन्न औकास अन्मोद विपक अरूवे तदि मुक्ति सौष्य : ४ : ।। अन्मोद न्यान हितकार आयरन । सब्दस्य श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विसेष (४) सब्दस्य जिन सब्द असब्द न्यान । असब्द गुपित सब्द न्यान उत्पन्न । सब्द न्यान सरूव न्यान विन्यान आयरन । लब्धि, अलब्धि, लब्धि । सुर्य लब्धि । विसेष न्यान विन्यान श्री मुक्ति श्री सुभाव। पुरिस सिद्ध सुभाव अव्वावाह औगाह हितकार रमन आयरन सुद्ध बुद्ध सुभाव। मन विसेष - (४) इस्ट मन । न्यान मन । उत्पन्न मन । न्यानरंज रमन, न्यान रमन मन । न्यान विन्यान रमनस्य । श्री न्यान सुभाव मुक्ति श्री सहकार सिद्ध अर्क उत्पन्न । हितकार विंद विन्यान उत्पन्न । हितकार आगंतु न्यान । हितकार हित न्यान। उत्पन्न हित हंतकार न्यान । उत्पन्न हितकार रंज । जिन रंज रमन । जिननाथ रमन । अचष्य दर्स दर्स न्यान परिनाम । अनंत अलष्य सुरस्य सर उत्पन्न । न्यान रमन विसेष । षिपक विसेष । जान पद विन्यानन्यान रमन । ग्राह अनंत बाधा रहित आयरन तीर्थकर सुभाव॥ जदि तेन्द्रिय सुभाव केन विसेष-मनरंजन गारव सुभाव । जनरंजन सुभाव । तदि सुभाव मान रमन सुभाव । कलरंजन सुभाव । कषाय मल सुभाव । पर्जाव दिस्टि सुभाव । पर्जाव इस्टि सुभाव । दर्स अदर्स अंध सूष्यम सुभाव न दिस्टंति। मिथ्यात सुभाव प्रकृति राग प्रकृति दोष तेन्द्रिय उत्पन्न । तेन्द्रिय सुभाव । तेन्द्रिय मिलन । तेन्द्रिय रमन । तेन्द्रिय रंज । तेन्द्रिय आनंद । तेन्द्रिय वास । तेन्द्रिय उक्त । तेन्द्रिय वयन । तेन्द्रिय दिस्टि । तेन्द्रिय इस्टि। तेन्द्रिय गम्य । तेन्द्रिय अगम्य । तेन्द्रिय सुभाव । तेन्द्रिय आहार । तेन्द्रिय ठिदि । तेन्द्रिय चलन । तेन्द्रिय बलन । तेन्द्रिय निद्रा । तेन्द्रिय आसन । तेन्द्रिय सुर सब्द । तेन्द्रिय अदिस्ट सुर सब्द। तेन्द्रिय गुपित सर । तेन्द्रिय उत्पन्न सर । तेन्द्रिय कमल सर । तेन्द्रिय आयरन । तेन्द्रिय अचष्य । तेन्द्रिय चष्य । तेन्द्रिय गुपित । तेन्द्रिय मन। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी तेन्द्रिय वचन । तेन्द्रिय क्रांति । तेन्द्रिय सयनासन । तेन्द्रिय ग्राह । तेन्द्रिय हितकार । तेन्द्रिय औगाह । तेन्द्रिय बाधा सुभाव । तेन्द्रिय भय । तेन्द्रिय उत्पन्न भय । तेन्द्रिय दिस्टिभय । तेन्द्रिय झड़प भय । तेन्द्रिय न्यान रमन। तेन्द्रिय विन्यान रमन । तेन्द्रिय प्रियो। तेन्द्रिय रूव। तेन्द्रिय अध्यर। तेन्द्रिय सुर । तेन्द्रिय विंजन । तेन्द्रिय मात्रा। तेन्द्रिय कानो। तेन्द्रिय पद । तेन्द्रिय अर्थ । तेन्द्रिय तिअर्थ । तेन्द्रिय सहकार । तेन्द्रिय समय । तेन्द्रिय औकास । तेन्द्रिय रमन । तेन्द्रिय लंक्रित । तेन्द्रिय मई । तेन्द्रिय नाना प्रकार । तेन्द्रिय सुभाव, अस्थान आयरन भवतु । अनंत तेन्द्रिय सुभाव, तेन्द्रिय अनंतानुबंध । तेन्द्रिय सुभाव तेजकाय जीव उत्पत्ति, पयोग हीन, संजोग चतुस्टै हीन, भ्रमन अंतर्मुहूर्त बारह सहस्र चौबीस (१२०२४) बार अंतर्मुहूर्त तेजकाय मरई जन्मई। अनन्त काल कालंतर जामन मरनं भवतु अनंत काल तेन्द्रिय सुभाव । जदि कालंतर तेन्द्रिय विरच, कोमल सहकार, न्यान अवगाह, दर्सन, न्यान, अदर्स, अचष्य, न्यान गुपित रमन, न्यान अनंतानंत, मल विली. विषय विली, विनंद विली, तेन्द्रिय उत्पन्न विली, तेन्द्रिय भुक्त विली, तेन्द्रिय अन्मोद विली, न्यान रमन उत्पन्न अन्मोद विली विषय विलयं गता, तदि मुक्त सुभाव रमन न्यान मुक्ति गामिनो भवतु ॥ ॥ इति तेजकाय निरूपनं ॥ अथ वातकाय सुभाव निरूपनं - ___उत्पन्न उत्पन्न इस्ट। उत्पन्न उत्पन्न उस्ट इस्ट। दर्स दर्स इस्ट । उत्पन्न दर्स दर्स इस्ट । इस्ट उत्पन्न इस्ट इस्ट रमन । उत्पन्न इस्ट मय मूर्ति । इस्ट रंज उत्पन्न रंज इस्ट। लष्य उत्पन्न लष्य इस्ट। चेय उत्पन्न चेय इस्ट। वेय श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उत्पन्न वेय इस्ट । इच्छ उत्पन्न इच्छ इस्ट। पिऊ उत्पन्न पिऊ इस्ट । इस्ट रहनि उत्पन्न रहनि इस्ट । ग्रहनि उत्पन्न ग्रहनि इस्ट। मिलनि उत्पन्न मिलनि इस्ट । सहनि उत्पन्न सहनि इस्ट । पेषु उत्पन्न पेषु इस्ट । हित उत्पन्न हित इस्ट। औगाह उत्पन्न औगाह इस्ट । अगुरुलघु उत्पन्न अगुरुलघु इस्ट। अवाधा उत्पन्न अवाधा इस्ट । षिपक उत्पन्न षिपक इस्ट । जानु उत्पन्न जानु इस्ट । गुपित उत्पन्न गुपित इस्ट । गुहिज उत्पन्न गुहिज इस्ट । पद उत्पन्न पद इस्ट । विंद उत्पन्न विंद इस्ट । अस्थान उत्पन्न अस्थान इस्ट। आयरन उत्पन्न आयरन इस्ट । लब्धि उत्पन्न लब्धि सुयं । षिपक उत्पन्न षिपक इस्ट । अस्कंध उत्पन्न अस्कंध इस्ट । धुव उत्पन्न धुव इस्ट । मै रमन उत्पन्न मै रमन । मौ औकास रमन मौ उत्पन्न औकास रमन । गम्य अगम्य रमन, रमन गम्य अगम्य उत्पन्न रमन । कुन्यान विली उत्पन्न कुन्यान विली इस्ट । कुमति विली उत्पन्न कुमति विली इस्ट । कुमुति विली उत्पन्न कुस्रति विली इस्ट । कुऔधि विली उत्पन्न कुऔधि विली हितकार। अस्थान थुति पद उत्पन्न हितकार अस्थान थति पद । इस्ट उत्पन्न पद । उत्पन्न उत्पन्न रमन । उत्पन्न उत्पन्न इस्ट इस्ट रमन । चेत औकास इस्ट रमन । चेत औकास उत्पन्न रमन । अस्थान इस्ट आयरन, अस्थान उत्पन्न आयरन । रमन रंजनंद आनंद इच्छ गुपित न्यान आयरन रमन। इस्ट इच्छ गुपित उत्पन्न इस्ट न्यान रमन । पद ईर्ज तिअर्थ इस्ट रमन । पद ईर्ज तिअर्थ उत्पन्न रमन । मध्य गुपित अनंत इस्ट रमन । मध्य गुपित अनंत इस्ट उत्पन्न रमन । उत्पन्न विमल इस्ट रमन । उत्पन्न सुद्ध विमल उत्पन्न रमन । आत्म गुन गुपित ठकार इस्ट रमन । आत्म गुन गुपित ठकार Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी मुक्ति उत्पन्न रमन । अस्थान अस्थान इस्ट उत्पन्न आयरन मुक्ति तीर्थंकर उत्पन्न सुभाव तस्य अस्थान अस्थान आयरन न्यान इस्ट उत्पन्न आयरन करोति । किं विसेष - जथा अनिस्ट वय तव क्रिया क्लिस्ट । अनिस्ट तव दान पूजा क्लिस्ट अर्थ, विद्या, व्याकरन, सांख्य, तर्क, नैयायिक, ज्योतिष, वेदांग, छन्द, वेद अनिस्ट । मीमांसा, न्याय अनिस्ट । धर्म, अधर्म अनिस्ट । पुराण, विकथा, कलाप अनिस्ट । काव्य अनिस्ट उच्चाटन, मोहन, स्थंभन, विषय विसेष प्रपंच, विभ्रम अनंत । अमर, भरह, पिंगल, अनेक अर्थ, सूर चंद्र संक्रमन, अग्नि पंचाग्नि नट, नाट्य, सुत अनंत । जिनय जिन पद लोपं । कषाय मल, मिथ्या, सल्य, भय, जनरंजन, कलरंजन, मनरंजन, दर्सन मोहांध, मोह, माया, आरति रौद्र अनंत विषय इस्ट उत्पन्न सहित वातकाय विसेष अस्थान उत्पन्न । हितकार सहकार जान पद विंद अनंत आवर्न, न्यान आवर्न, दर्सन आवर्न, मान आवर्न, अंतराय आवर्न, जं अस्थान न्यान उत्पन्न ते तं अस्थान आवर्न न्यान । वातकाय सुभाव वातकाय जीव उत्पन्न प्रवेस भवतु । वातकाय विसेष ॥ जदि कदि विसेष कालंतर भ्रमन सहकार भ्रमत पयोग रहित दुष्य अंतर्मुहूर्त मध्य बारह सहस्र चौबीस (१२०२४) बार जामन मरन भवति ॥ जदि कदि कालंतर अस्थान आयरन विसेष सुभाव उत्पन्न लब्धि भवति, तदि कालंतर निकलै अस्थान आयरन सुभाव ग्रहन ग्रहन ग्रहितं अनंत चतुस्टै सुभाव दर्सन, न्यान, चरन, संमिक् दर्सन, संमिक् न्यान, संमिक् चरन, अनंत दर्सन, अनंत न्यान, अनंत वीर्ज, अनंत सौष्य, श्री संमिक् दर्सन, श्री संमिक् न्यान, श्री संमिक् चारित्र, बल वीर्ज विन्यान, १४० श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सक, सल्य, भय, गारव, राग, दोस रहित घाति कम्म आवर्न विली, उत्पन्न विली, भुक्तविली, विनंद विली, सुपन विली, अन्मोद न्यान अबलबली विषय गली, जेन केन अस्थान आयरन सुभाव उत्पन्न उत्पन्न सुभाव न्यान अन्मोद। जेन केनापि जीव आयरन सुभाव मुक्ति गतः ॥ ॥ इति बातकाय निरूपनं ॥ अथ प्रिथी काय निरूपनं - अस्थान आवर्न थावर जेन केनापि अस्थान आयरन जिनवर आयरन विसेष | अस्थान उत्पन्न उत्पन्न न्यान अन्मोद दिस्टि । इस्टि प्रियो दिस्टि | उत्पन्न प्रियो इस्टि इस्ट प्रियो । इस्टि उत्पन्न प्रियो । दर्स इस्ट प्रियो । दर्स उत्पन्न प्रियो । लक्ष्य इस्ट प्रियो । लक्ष्य उत्पन्न प्रियो । अर्थ इस्ट प्रियो । अर्थ उत्पन्न प्रियो । सुयं अर्क इस्ट रमन सुर रमन प्रियो । सुयं अर्क इस्ट सुयं रमन उत्पन्न प्रियो । कमल इस्ट प्रियो । कमल उत्पन्न इस्ट प्रियो । तत्काल रै रमन प्रियो । तत्काल इस्ट उत्पन्न उत्पन्न प्रियो । कमल ठकार इस्ट प्रियो । कमल ठकार उत्पन्न इस्ट प्रियो । प्रियो उत्पन्न प्रियो । प्रिय ठकार मुक्ति प्रियो । दिस्टि इस्टि चेत प्रियो । दिस्टि ईर्ज उत्पन्न चेत प्रियो । न्यान सहकार इस्ट कलन प्रियो । न्यान सहकार इस्ट कलन उत्पन्न प्रियो । विन्यान षिपक डंड उत्पन्न इस्ट प्रियो । विन्यान षिपक डंड उत्पन्न उत्पन्न प्रियो । रति ईर्ज इस्ट रमन प्रियो । रति ईर्ज इस्ट उत्पन्न रमन प्रियो । कांष्या कमल कम्म षिपक इस्ट प्रियो। कांष्या कमल कम्म षिपक उत्पन्न न्यान अन्मोद प्रियो । निसंक न्यान इस्ट प्रियो । निसंक न्यान इस्ट उत्पन्न प्रियो । सक, सल्य, संक, भय विली इस्ट प्रियो । संक, सल्य, भय विली इस्ट उत्पन्न प्रियो । व्रिति सरनि विली, व्रित सरनि व्रिति, - Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी न्यान अन्मोद प्रियो, गम्य अगम्य इच्छ इस्ट प्रियो । गम्य अगम्य इच्छ इस्ट उत्पन्न प्रियो । मूढ सुभाव विलयंति प्रियो । अमूढ दिस्टि इस्टि प्रियो, अमूढ दिस्टि इस्टि उत्पन्न न्यान अन्मोद प्रियो । न्यानी दोसं अनंत विलियं प्रियो । इस्ट न्यानी दोसं उत्पन्न विली इस्ट प्रियो । न्यानी विमल सुभाव इस्ट प्रियो । न्यानी विमल सुभाव अन्मोद उत्पन्न प्रियो । न्यान विन्यान अस्तिति इस्ट प्रियो । न्यान विन्यान अस्तिति उत्पन्न न्यान अन्मोद प्रियो । न्यान विन्यान इच्छ इस्ट प्रियो । न्यान विन्यान इच्छ उत्पन्न प्रियो । परम तत्तु इस्ट सुभाव प्रियो । परम तत्तु उत्पन्न इस्ट सूण्यम सुभाव अमोद न्यान प्रियो । दिस्टि कमल सब्द अचष्य हितकार गुपित गुहिज न्यान विन्यान पद विंद इस्ट अन्मोद प्रियो । दिस्टि कमल सब्द अचय • हितकार गुपित गुहिज न्यान विन्यान पद विंद इस्ट उत्पन्न अनंत न्यान अन्मोद परमिस्टी चतुस्टै, रयनत्रय रमन अनंत अन्मोद रमन विषय गलन अन्मोद न्यान प्रियो । जान इस्ट उत्पन्न लब्धि प्रियो । रमन प्रियो । रमन सुभाव प्रियो । रमन कमल प्रियो । रमन दिस्टि प्रियो । रमन इस्टि प्रियो । रमन इस्टि इस्टि प्रियो । रमन रिस्टि इस्ट प्रियो । रमन दिस्टि इस्टि रिस्ट उत्पन्न न्यान प्रियो । रमन समय रमन सह इस्टि प्रियो । रमन समय रमन सह इस्ट उत्पन्न न्यान प्रियो । रमन उत्पन्न सहकार औकास दिस्टि इस्टि प्रियो । रमन उत्पन्न सहकार औकास उत्पन्न न्यान प्रियो । रमन अनंत अन्मोद षिपक दिस्टि इस्टि प्रियो । रमन अनंत अन्मोद पिषक दिस्टि उत्पन्न रमन न्यान अन्मोय प्रियो । रमन मुक्ति रमन जिननाथ रंज जिन नंद परमनंद नंत सौष्य इस्ट प्रियो । रमन मुक्ति रमन जिननाथ रंज जिन नंद परमनंद उत्पन्न उत्पन्न हितकार सहकार गुपित गुहिज इस्ट वज्रवृषभ वज्रनाराच संघरन सुभाव चतुस्टय चेत उत्पन्न तत्काल उत्पन्न रमन चतुस्टय १४१ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुयं रमन कमल दिस्टि सौष्य अनंत सुयं कम्म विलय सुयं बुद्ध न्यान रमन सुयं चेत ऊर्ध तिअर्थ मिलन परिनाम न्यान अन्मोद उत्पन्न प्रियो । उत्पन्न हितकार रमन, उत्पन्न सहकार रमन, जिननाथ प्रियो । प्रियो प्रमान प्रियो । जान विवान प्रियो । इच्छ प्रमान प्रियो । पय परम पय प्रियो । मुक्ति सौष्य विंद विन्यान प्रियो । अनंत चतुस्टय सुभाव अस्थान प्रयो । प्रीति प्रियो । उत्पन्न अन्मोद अबलबली प्रियो । विनंद विली उत्पन्न नंद आनंद प्रियो । अस्थान आयरन जिन परम जिन जिननाथ मुक्ति सुभाव सिद्धं धुवं । तस्य अस्थान न्यान आवरन न्यान प्रियो अप्रियो भवति । केन विसेष राग, दोष, गारव, दर्सन मोहंध, न्यान आवर्न, मिथ्या सल्य, संक, भय, इस्ट उत्पन्न विसेष कषाय मल, अनंत विभ्रम प्रपंच, सक सुभाव अस्थान विप्रियो भवतु । आवर्न सुभाव जदि आवर्न अस्थान उत्पन्न हितकार सहकार विन्यान पद विंद दिगंत अनंत अस्थान न्यान उत्पन्न विषय सक प्रपंच विभ्रम सहकार अस्थान आवर्न अप्रियो भवतु । तस्य सुभाव थावर प्रिथी काय संमूर्छन उत्पन्न भवति । पयोग उत्पन्न न भवति । तस्य सुभाव भ्रमन बारह सहस्र चौबीस (१२०२४) बार अंतर्मुहूर्त मध्ये जामन मरन सुभाव भ्रमनं करोति ॥ जदि कदि कालांतर भ्रमन किं विसेष अस्थान आयरन सुभाव उत्पन्न । आयरन न्यान अन्मोद प्रियो । अस्थान रमन रंज अन्मोद आनंद रमन अस्थान प्रियो । उत्पन्न उत्पन्न हितकार । उत्पन्न उत्पन्न सहकार । उत्पन्न उत्पन्न न्यान विन्यान । उत्पन्न उत्पन्न पद परम पद दिगंत दिस्टि इस्टि । सब्द असब्द गुपित गुहिज न्यान अस्थान प्रियो । आवर्न विली, जनरंजन, कलरंजन, मनरंजन, दर्सन मोहांध विली । आसा, अस्नेह, Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम विली। मिथ्या सक, सल्य,भय, इस्ट उत्पन्न विली। भुक्त विनंद विली। न्यान अन्मोद अबलबली विषय गली। अनेय अनिस्ट व्रत, तव, क्रिया, अनिस्ट सुत अनंत विली। अस्थान न्यान अन्मोद । अस्थान आयरन न्यान प्रियो । अनंत जिनरंज जिननाथ रमन नंद तं परमानंद । अस्थान आयरन सुभाव। जेन केनापि जीव निकलै अनंत चतुस्टय सुष, साता, बोध, चैतन्य अस्थान आयरन । अनंत विसेष जिन उत्त, जिन वयन, जिन दर्स, जिन लष्य, जिन अलष्य, जिन इच्छ, जिन रंज, जिन रमन, जिन सुभाव, जिन सूष्यम सुभाव, कम्म सुयं विली। अस्थान न्यान आयरन सुभाव जेन केन निव्वानं पदं सिद्धं धुवं॥ ॥ इति प्रथीकाय निरूपनं ॥ अथ वनस्पति काय निरूपन - अथ वनस्पतिकाय उत्पत्ति अस्थान विन्यान सहकार पतनं करोति। तिअर्थ विन्यान आवर्न करोति वनस्पतिकाय जीव भवति ।। विन्यान न्यान सुद्ध निरूपनं - उत्पन्न न्यान विन्यान विंद । परिनै प्रमान इस्ट उत्पन्न उत्पन्न न्यान विन्यान विंद। उत्पन्न इस्ट उत्पन्न दिस्टि इस्टि इस्ट विन्यान विंद। इस्ट इस्टयंति उत्पन्न उत्पन्न दिस्टि इस्टि विन्यान विंद । उत्पन्न उत्पन्न सब्द असब्द सब्द गुपित सब्द कमल विन्यान विंद। इस्ट उत्पन्न सर सात (७) । विन्यान विंद सब्द उत्पन्न दिस्टि इस्टि चौदह । इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद । सुयं कमल इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद। उत्पन्न सुयं कमल दर्स इस्ट दर्स उत्पन्न विन्यान विंद । कमल इस्ट इस्ट उस्ट इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद । सुयं उत्पन्न सुयं लब्धि इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद । सुयं हितकार रमन षट् इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद । हितकार सुयं लब्धि इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद। सुयं हितकार काय २, फासे २, रूवे ४, सब्दे ४, मनपर्जय ४, सोलही सुयं लब्धि इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद । सुयं सुद्ध लब्धि षिपक इस्ट उत्पन्न विन्यान विंद । सुयं विपक अस्कंध धुव गुन कुन्यान तीनि:३: विली॥ अस्थान हितकार पद उत्पन्न चेत। अस्थान आयरन इच्छ गम्य अगम्य पद । ईज तिअर्थ मध्य रमन अरुह उत्पन्न उत्पन्न अर्थ गुपित ठकार मुक्ति । इस्ट उत्पन्न विसेष विन्यान सुयं उत्पन्न । गहिर गुपित गुहिज रमन । जिननाथ कमल रमन । वजनाराच संघरन रंज जिन रंज नंद परम विन्यान न्यान इस्ट उत्पन्न । विसेष विन्यान सुयं सद्भाव प्रियो । अनंत मय अवकास रमन । ठकार मुक्ति विन्यान । कंष्या कम्म विली न्यान। निकंध्या इस्ट उत्पन्न विन्यान । कमल दंड हितकार तत्काल रेह टंकोत्कीर्न इस्ट उत्पन्न । विन्यान प्रियो । रमन कमल दंड रमन इस्ट उत्पन्न । दिस्टि इस्टि विन्यान । सुयं सुभाव न्यान चरन, वीर्ज अनंत, सम उवसम, पदवी साधु, आचरन वीर्ज, दर्स अवहि, न्यान अवहि, लेस्या पीत इत्यादि:३:॥ इस्ट उत्पन्न न्यान विन्यान । विन्यान सुयं सूषिम सुभाव चेत उत्पन्न । दंड कपाट इस्ट उत्पन्न । सूषिम सुयं न्यान विन्यान जाता उत्पन्न नो उत्पन्न न्यान टंकोत्कीर्न कमल कलन । इच्छ न्यान उत्पन्न न्यान विन्यान । सुयं सूषिम घन अस्मूह उत्पन्न टंकोति पद परम पद । तत्काल रमन पद । इच्छ गुपित रमन पद। पय उत्पन्न तिअर्थ ईर्ज मध्य रमन पद। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न पद कमल रमन । आत्म गुन गुपित उत्पन्न ठकार मुक्ति इस्टि। इस्टि उत्पन्न इस्ट उत्पन्न न्यान विन्यान । सुर्य सूष्यम सुभाव विन्यान विन्यान विंद । सुयं पद विंद परम तत्तु परम सुकीय सुभाव । सूष्यम क्रांति सुयं लब्धि अलब्धि लब्धि विन्यान विंद । अंग उत्पन्न । दिस्टि इस्टि सुर्क षिपक। ह्रिदय गहिर गुहिज जान पद विन्यान विंद। परिनाम कलित विन्यान। दिस्टि पूर्व सिर, अग्र सुर्क दिस्टि, दर्स विपन, न्यान नित कमल प्रियो । इच्छ हृिदय, पच्छिम विक्त रूव गुपित। वायव गुहिज रमन, उत्पन्न रमन । उत्तर ईर्ज सहकार गुहिज सहकार न्यान । ईसान उत्पन्न ऊर्ध रमन धुव उत्पन्न । अर्ध आर्ध रमन दिस्टि दिप्ति । इस्ट उत्पन्न दिस्टि । उत्पन्न दिप्ति रमन । इस्ट उत्पन्न रमन विन्यान सिद्धं धुवं तीर्थंकर रमन मुक्ति । सिद्धं धुवं रोम रोम प्रियो रमन । न्यान विन्यान मुक्ति रमन सिद्धं धुवं॥ तस्य विन्यान केन सुभावेन - जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्सन मोहांध, न्यान आवर्न, दर्सन आवर्न, मोहन आवर्न, अंतर न्यान, सक, सल्य, संक, भय, सहकार भय, मन, वचन, क्रांति भय, मन दिस्टि झडप सहकार कषाय मल मिथ्या त्रिति :३: समल उत्पन्न सहकार मिथ्या देव, मिथ्या गुरू, मिथ्या धर्म, कुदेव, कुगुरू, कुधर्म, कुतप, कुसंजम, कुपरिन, मिथ्या प्रमान, मिथ्या उदेस, मिथ्या परिनै, मिथ्या प्रमान, मिथ्या संजम, मिथ्या तप, मिथ्या परिनै विसेष विन्यान पतनं करोति । विन्यान लब्धि न भवति । विन्यान न्यान पतनं परान्मुष तस्य सहकार वनस्पति काय उत्पन्न भवति । विन्यान पतति वनस्पति काय भवतु । पयोग कमलं न भवतु पतनं करोति । तस्य सहकार अठारह सहस्र छत्तीस (१८०३६) बार अंतर्मुहूर्त मध्ये जामन मरनं भवतु ॥ भ्रमतं अनंत काल कालंतर जेन केनापि जीव विन्यान न्यान सहकार उद्देस परिनै प्रमान दिस्टि उत्पन्नं भवतु । तदि निकलै-इन्द्री अतेन्द्री, राग जिन राग, दिस्टि जिन दिस्टि, मान जिन मान, वयन जिन वयन, उक्त जिन उक्त, सहकार जिन औकास, जिन अन्मोद, जिन विपक, जिन मुक्ति, जिन सौष्य, जिन कमल, जिन रमन, जिन न्यान, जिन लंक्रित, जिन विन्यान, जिन न्यान विसेष। जिन विषय, जिन मिथुन, जिन उत्पन्न, जिन हितकार उत्पन्न, जिन सहकार उत्पन्न, जिन जान विन्यान, जिन पद परम तत्तु, जिन सुभाव, जिन सर्वार्थ, जिन अष्यर, जिन सुर रमन, जिन विंजन, जिन पद, जिन अर्थ, जिन रमन, जिन तिअर्थ, जिन समर्थ, जिन समय अन्मोद, जिन सहकार, जान जिन, जिन औकास, अर्थ जिन, अनंत जिन, अन्मोद जिन, विपक जिन, मुक्ति जिन, सुर्य लब्धि जिन, तस्य सुभाव सुद्ध सार्धं करोति । तस्य जीवस्य न्यान विन्यान सहकार निकले सुद्धं विसेष - अनंत चतुस्टय, सुष, साता, बोध, चैतन्य प्रान लब्धि । विसेष-विषय राग दोष विलयंति, आवर्न घाति कम्म विलयंति, मिथ्या, कषाय, सल्य, संक, भय विलयंति, उत्पन्न विली, भुक्त विली, विनंद विली, सुपन विली, संसरनि विली, संसय विली, पुग्गल विली, पर्जाव विली, पर सुभाव विली, अन्यान विली- न्यान आचरन परमिस्टी न्यान विन्यान अन्मोद अबलबली, विषय गली, अन्मोद न्यान अबलबली अनंत चतुस्टै सूषिम प्रतिपाद न्यान अन्मोद मुक्ति सुद्ध सिद्धं भवति ।। ॥ इति बनस्पतिकाय निरूपनं ॥ (१४३) Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी अथ नित्य निगोद सुभाव निरूपनं - नीच निगोद सुभाव जिन उक्तं न दिस्टते। जिन उक्त सुद्ध बुद्ध विन्यान विंद । जिन उक्त उत्पन्न उत्पन्न हितकार न्यान । उत्पन्न सहकार न्यान । उत्पन्न न्यान विन्यान पद । उत्पन्न न्यान न दिस्टंति। नीच सुभावेन नीच (नित्य) निगोद । जिन उक्त सम्मत्त सम । उक्त समय सम दिस्टि न्यान अंकुर । सम दिस्टि दर्सि न्यान । सम दिस्टि वीर्ज न्यान । सम दिस्टि सद्ध सुभाव । सम दिस्टि न्यान अन्मोद । हितमित परिनै कोमल । अवगाहन न्यान जिन बली दिस्टि । अवगाहन न्यान सुयं रमन । जिन विजन सुर अगुरुलघु न दिस्टते । बाधा विलय सरीर बाधा रहित । एवं प्रभाव जिन उक्तं । जिन उक्तं न दिस्टई, न समई, न सहकारई, न दिस्टर्ड, विप्रियो कर, विप्रियो बोले। जिन समय, जिन सुभाव, जिन मिलन, न्यान रमन न दिस्टई, न रमई, न सुभावई, न समई, न सहहई, असहनी नीच सुभाव जिन उक्त विली करै नीच निगोद, जिन उक्त गुन मूल संवेग इत्यादि आठ-(८)॥न्यान व्रत अहिंसा इत्यादि । सूषिम सुभाव तत्काल उत्पन्न पय आचरन चरन । कुन्यान विवर्जितं आयरन । सुद्ध पडिमा प्रतिपून तिअर्थ -११॥ दान अनंत दर्स- ४॥ पात्र विक्त रूप-३॥ जाता उत्पन्न लंक्रित गम्य अगम्य । अन्यान असुत न्यानं न सुत रमन । दर्स रमन, न्यान रमन, चरन रमन, त्रय रमन रत्नत्रय । जिन उक्त सूष्यम सुभाव सूष्यम क्रांति । तस्य प्रभाव न दिस्यंते, न सहइ, न समइ, न सहकारइ - जनरंजन राग बंधान क्रांति कारन क्रिया । उक्त व्रत करन गुन छंडै । तव करन, पडिमा करन, दान करन, पानी गालन करन, अन्यान थुति करन, रयनत्तय करन, नीच (नित्य) मिथ्या सुभाव, भय सुभाव, सल्य सुभाव, संक सुभाव, सूण्यम करन उवएसनं करोति, जिन वयनं लोपनं करोति । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी नीच करन, नीच सुभाव, नीच दिस्टि करन - सहकार, नीच बुद्धि, नीच सुभाव जिन उक्त लोपनं। नीच निगोद जिन उक्त - जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, न्यान आवर्न, दर्सि आवर्न, मोहन आवर्न, न्यान अंतर, सक, सल्य, संक, भय, कषाय, मिथ्या कुन्यान, तिविहि कम्म, अन्मोय विरोध विलय । न दिस्टि, न सब्द, न उत्पन्न, न सहकार, न औकास, न अन्मोद, न विषय, न काया, न माया, सहकार सुभाव न करोति । केन सुभावेन - जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्सन मोहांध सुभाव-जिन उक्त न दिस्टते। न उक्त, न समई, न सहाई, न सहकार, जिन उक्त पद लोपनं नीच सुभाव -नीच निगोद ।। जिन उक्त अध्यरं - अषय रमन, परम अयर । परम सुर रमन । विजन रमन । पद रमन । अर्थ रमन । तिअर्थ रमन । समर्थ रमन । समय रमन । सहकार रमन । औकास रमन । अन्मोद रमन । न्यान षिपक रमन । मुक्ति रमन । सूष्यम सौष्य रमन । रंज रमन उत्पन्न रंज। उत्पन्न सुर्य लब्धि रंज। सोलही रंज । जं भव षिपिय रमन तं नंद रूव-१॥ हितकार रंज । हितकार सुर्य लब्धि रंज । सोलही रंज कमल परिनाम । ममल अनंत तं अमिय रमन । रोम प्रियो रमन । तं नंद आनंद -२॥ सहकार रंज । सुयं लब्धि षिपक इस्ट उत्पन्न सोलही । गुपित गुहिज परिनाम विमल अनंत नंत रंज । तं चिदानंद वैदिप्ति दिप्ति नंत दिप्ति रमन । तं नंद, आनंद, चिदानंद -३॥ (१४४) Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी विन्यान रंजु जानु । सुयं लब्धि इस्ट अर्क उत्पन्न सोलही । परिनाम इस्ट उत्पन्न विमल नंतानंत रंज तं रमन। जिन रमन तं नंद, आनंद, चिदानंद, सहजानंद ४ ॥ - रंज जिन रंज समर्थ । अंगदि अंग अनंत नंत पद विंद सर्वन्य लोक अवलोक अनंतानंत परिनाम। जिन उक्त मुक्ति । तस्य सुभाव मनरंजन गारव, बंधान, मोहंध दर्स, दिस्टि जनरंजन, कलरंजन, विषय दिस्टि करन क्रिया, उद्देस करन क्रिया, गारव करन क्रिया, राग करन क्रिया, दर्सन मोहंध करन क्रिया, वय करन क्रिया, तव करन क्रिया, गारव जिन उक्त लोपनं । नीच सहकार पर्जाव गारव, जिन उत्तु न दिस्टई, न सहई, न वयन, न उक्तइ, न समई, न सहकार, नीच सुभाव मिथ्या भयभीय जिन उक्त लोपनं करोति तं नीच निगोद। जिन उत्तु नंत चतुस्टय गारव सहकार लोपनं करोति । नीच सहकार नीच उत्पन्न • मन नीच, सब्द नीच, वयन नीच । क्रिया सहकार क्रांति नीच जाति उत्पन्न नीच । कलन नीच । रुचि नीच । प्रिये नीच मान अभिमान नीच न्यान नीच । करन तव नीच । बल वीर्ज नीच सहकार नीच । पद नीच स्पर्सन नीच । रसन नीच । प्रान नीच । चष्यु नीच । श्रोत्र नीच। सब्द नीच । नीच सुभाव इन्द्री इस्ट विषय नीच । श्रेनी नीच। चरन नीच राग नीच भय नीच पद ग्रहन नीच । जोयनी नीच । न समय मै मूर्ति नीच। सुर रमन विषय नीच । विस्वास विषय नीच । पर्जाव दिस्टि सहकार विषय रिद्धि नीच नीच सुभाव। नीच चेत । नीच उत्पन्न पर्जाव ग्रहन अन्मोद । विषय प्रपंच पर्जाव विभ्रम सहकार रमन । सेष असेष उत्पन्न उपाय नीच। नीच सब्द। नीच आलाप । सुभावेन अनंत नीच सुभाव नीच निगोद भ्रमनं करोति । इतर सुभावेन जिन उत्तु | 1 - १४५ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी लोपनं इतर निगोद नीच इतर सुभाव जिन उत्तु लोपनं नीच इतर गति अनादि काल भ्रमनं करोति । नीच लब्धि- लोभ नीच। क्रोध अनंत नीच मान अनंत नीच । माया पर्जाव अनंत विसेष । तागा मिलै नीच विसेष अनंत पर्जाव मिले तागा पर्जाव मिलन अनंत पर्जाव, न मिलै विषय मिलन त्रि विषय पर्जाव रष्यनार्थं करोति । विषय रमन सुभाव नीच मिलन मिथ्या जव । तागा मुक्त पर्जाव। अतागा पर्जाव ग्रहन। नीच रमन समय तागा पर्जाव । समय अतागा । न समय समय। मिथ्या रमन प्रकृति । मिथ्या प्रकृति राग मुक्त अप्रकृति पर्जाव । तागा अमुक्त ग्रहन समय प्रकृति । मिथ्या रमन एकांत तागा सुभाव रमन अनेकांत पर्जाव । तागा न मुक्त ग्रहनं करोति । एकान्त मिथ्या रमन । विप्रिय मिथ्यात प्रिये । तागा मिलन अनंत जव तागा विप्रियो भवतु। विप्रिय मिथ्या रमन नीच बुद्धि । नीच पर्जाव रमन । नीच निगोद पतनं भवतु ॥ जिन उक्त न्यान रमन प्रथम न्यान पद श्रेष्ठ पदर्थ न्यान विन्यान सहकार मिलन । मिलन आहार न्यान सहकार आहार । बाधा रहित आबाधा अभय दान आहार । इच्छंति न्यान रमन बाधा विमुक्त भेषज । भेषज बाधा पर्जाव अनंत मिलन। संसार, सरीर, भोग, उपभोग, मन, वचन, क्रांति, क्रित, कारित, अनुमत। बाधा उपदेस परिनै प्रमान । बाधा इन्द्रिय विषय । दिस्टि, अदिस्टि, रस्टि, रिस्टि, समय इस्टि, सह इस्ट उत्पन्न इस्टि इत्यादि मुक्ति इस्ट सर सब्द असब्द गुपित । सर कमल उत्पन्न धन धान्य सुवर्न मनि रन रमन ।। बाधा रहित अबाधा बाध मुक्त मिलन भेषज-३ ।। अभय प्रियो सुयं रूपी सरूपी सुभाव । स्वरूप अभय रूवेन संक सल्य रहित । न्यान । न्यान रमन तागा मुक्ति सरूपी भय विनस्य भय सल्य संक विलयंतु Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी निरूह तागा स्वरूपी । तागा मुक्त । जदि दात्र लष्य तदि पात्र तागा मुक्ति सुभाव प्राप्तं भवति । तदि विसेष-जिन उक्त नीच सुभाव इतर सुभाव जिन उक्त लोपनं ॥ नंद तागा पर्जाव मुक्त रमन तागा। मुक्त न्यान आहार भेषज अनंत विसेष तागा ग्रहन मुक्तं न भवतु । नीच सुभाव नीच विसेष रमन जिन उक्त लोपनं करोति । नीच पर्जाव रमन विषय रमन सहकार। जिन उक्त, जिन वयन, जिन दर्स, जिन लष्य, जिन अलष्य लष्य, जिन सुभाव सूष्यम । नीच सुभाव भयभीत नीच इतर तेन्द्रिय सहकार गारव सुभाव नीच सहकार जिन उक्त लोपनं करोति, तदि नीच निगोद, इतर निगोद पतनं करोति, अनंत संसारिनो जीवा। जेन केनापि तागा मिलन विषय स्वरूप, विषय मन, विषय वचन, विषय क्रांति, विषय सुभाव रमन तागा मिले और पर्जाव सैनी असैनी सहन अनंत पर्जाव रूव ग्रहन सुभाव निधि रंज स्यन, मनि, सुवर्न, मुक्ता, मनि विसेष । पर्जाव दिस्टि न मिलै, अन्मोद आनंद न्यान अन्मोद, एक समय पर्जाव दिस्टि - विनंद भवति । नीच सुभाव जिन वयन लोपन करोति । नीच पर्जाव सुभावेन न्यान अन्मोद विनंद समय मात्रेन नीच इतर सहकार, नीच इतर पर्जाव लब्धिं भवतु । परिभ्रमनं नीच इतर निगोद तत्क्षण भवतु॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तृतीय अध्याय विकलत्रय सुभाव विसेष निरूपन - जदि सुभावेन जिन उक्त । जिन वयन । जिन दर्स। जिन सहकार। जिन समय । जिन परिनै । जिन प्रमान । जिन अभ्यर । जिन सुर । सुर्य रमन । जिन विन्यान । जिन पद । जिन अर्थ । जिन तिअर्थ । जिन समय अर्थ । जिन समय सहकार अर्थ । जिन मिलन। जिन कमल। जिन रमन। जिन रंज। जिन नंद । जिन आनंद । जिन चेयानंद। जिन सहजानंद । जिन परमानंद। जिन सदर्थ । जिन लंक्रित । जिन औकास । जिन इच्छ। जिन पिच्छ। जिन गम्य। जिन अगम्य। जिन चेय। जिन वेय। जिन पेष्य। जिन सिष्य। जिन धरन। जिन रहन । जिन ठान । जिन ढलन। जिन दिस्टि। जिन इस्टि। जिन रस्टि। जिन रिस्टि। जिन समय इस्टि। जिन सह इस्टि। जिन उत्पन्न इस्टि । जिन समय इस्टि । जिन सहकार इस्टि । जिन औकास इस्टि। जिन अन्मोद इस्टि। जिन षिपक इस्टि। जिन सर। जिन सब्द सर। जिन असब्द सर। जिन गुपित सर। जिन कमल सर। जिन लष्य । जिन अलष्य । जिन दर्स इस्टि। जिन उत्पन्न दर्स। जिन गुन । जिन मूल गुन संवेग इत्यादि। जिन व्रत अहिंसा इत्यादि। जिन तव अनसन इत्यादि। जिन दर्सन पडिमा इत्यादि। जिन दान न्यान दान इत्यादि। जिन दर्स। जिन न्यान । जिन चरन । जिन उत्पन्न । जिन उत्पन्न हितकार । जिन उत्पन्न सहकार । जिन न्यान विन्यान जिन पद विंद। जिन सिद्ध गुन । जिन दर्स लष्य गुन । जिन सुर्य लब्धि । जिन कारन सोलह । जिन सोलही। उत्पन्न हितकार सहकार षिपक । जान इस्ट सोलही। उत्पन्न सुयं लब्धि । जिन इस्टि परमिस्टी। ॥ इति नित्य, इतर निगोद सुभाव निरूपनं ॥ (इति स्थावर काय, पंच स्थावर तथा नीच - इतर निगोद सुभाव निरूपन करने वाला द्वितीय अध्याय समाप्तम्) (१४६) Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी जिन उत्पन्न परमिस्टी। जिन चतुस्टय इस्ट । जिन चतुस्टय उत्पन्न इस्ट । जिन रमन इस्ट । जिन उत्पन्न सुयं रमन । जिन रयनत्तय उत्पन्न इस्ट। जिन नंतानंत विसेष । जिन दिप्ति । जिन दिस्टि। जिन अनंत । जिन चरन दर्स इत्यादि । जिन सम्मत्त अन्या इत्यादि। जिन सुयं सुभाव सूष्यम अतींद्री सुभाव । तत्तु दर्व काय पदार्थ सुभाव । सूष्यम विंद विन्यान सुर्य विपक। सूष्यम क्रिया क्रांति प्रतिपाद। जिन समय सहकार रमन जिन। जिननाथ अन्मोद न्यान कम्मस्य विलयं गतः । उत्पन्न न्यान उत्पन्न कम्म विली । उत्पन्न भुक्त न्यान भुक्त कम्म विलयंति । जिन उत्पन्न नंद आनंद। विनंद उत्पन्न विलयंति।न्यान उत्पन्न अन्मोद अबलबली, विषय सुयं विलयं गत: अन्मोद न्यान मुक्ति गतः । तस्य सुभावेन जिन उत्पन्न, जिन परिनै, जिन समय, दिस्टि इस्टि, दर्स सहन सहकार विकलं जांति। विकल सुभाव। विकल दिस्टि। विकल इस्टि। विकल स्थान । विकल रयनत्तय । विकल सयनासन । विकल मिलन । विकल अन्मोद । जिन उक्त स्थान विकलं जांति । विकल उत्पन्न । विकल हितकार । विकल सहकार। जिन उक्त विकलं जांति॥ केन सुभावेन - जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्सन मोहांध, न्यान आवरन, दर्सन आवरन, मोहन आवरन, अंतर विसेष, सक, आसा, स्नेह, आदि। मिथ्या आदि तीन सल्य, तीन कुन्यान, कषाय मल, मद्य, मान, विषय, विसन, मिथ्या रमन, दष्येन सुभाव । अनिस्ट व्रत, अनिस्ट तप, अनिस्ट गुन, अनिस्ट पडिमा, अनिस्ट दान, अनिस्ट पात्र, अनिस्ट रयनत्तय, अनिस्ट गुन सिद्ध, अनिस्ट सुयं लब्धि, अनिस्ट दर्स, अनिस्ट लष्य, अनिस्ट अलष्य, अनिस्ट उक्त, अनिस्ट औकास, अनिस्ट अन्मोद-जिन उक्त विकलं जांति । जिन उक्त दात्र पात्र विसेष श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विकलं जांति । जिन उक्त दात्र पात्र न्यान अन्मोद, न्यान सहकार, न्यान अन्मोद, न्यान मिलन, न्यान परिन, न्यान श्री न्यान, पुरुष न्यान अन्मोद, असहनी सहकार विकलं जांति । विकलत्रय - बे इन्द्री, ते इन्द्री, चौ इन्द्री विकलत्रय उत्पन्न काय जोनीभ्रमन करोति। जिन उक्त विकल विकलत्रय भ्रमन अनंतकाल भ्रमनं करोति । प्रति विकलत्रय बंभ अबंभ रष्य निरोध। अन्यान, न्यान अन्मोद न दिस्टंति विकल । एय विसेष विकलत्रय जोनी भ्रमनं करोति ॥ जदि कदि कालांतर विसेष सभाव सुद्ध जिन उक्त, जिन वयन, जिन दर्स सुभाव, जिन समय, जिन सहकार, जिन औकास, जिन अन्मोद सुभाव उत्पन्नं भवति । तदि काल विसेष निकलै, मन प्राप्तं भवति । जदि कदि कालांतर अनेक बार जदि कलनं सुभाव परिनाम भवति । कलन सहकार कलन सुभाव । न्यान अन्मोद सहकार परिनाम दर्स, न्यान, चरन सुभाव, स्त्री पुंवेद उत्पन्नं भवति॥ अन्मोद न्यान कलन सुभाव निकलै-बीर्ज न्यान सहकार कलन कलित सुभाव । केतीक बार सुभाव कलन उत्पन्न परिनाम भवति । जदि काल जिन उत्तु, जिन परिनै । जिन प्रमान । जिन समय । जिन सहकार । जिन औकास । जिन अन्मोद। जिन षिपक। जिन मुक्ति सुष्य । जिन कमल। जिन रमन। जिनरंज। जिननंद। जिन न्यान। जिन विन्यान। जिन अनंत । जिन नाना प्रकार । जिन अन्मोद न्यान । जिन षिपक । जिन मुक्ति। जिन अषय। जिन सुरय सुयं रमन। जिन विंजन। जिन पद। जिन अर्थ । जिन तिअर्थ । जिन उत्पन्न उत्पन्न जिन । उत्पन्न हितकार रमन । जिन अर्क। जिन विंद। जिन आगंतु । जिन हितकार। जिन हुंतकार। जिन रमन । जिन उत्पन्न । सहकार इस्ट । सहकार जिन सुभाव । सहकार (१४७ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन लष्य । सहकार जिन गुपित अलष्य । सहकार जिन गुहिज गुपित अन्मोद । सहकार जिन सुयं लब्धि उत्पन्न । आदि न्यान जिन सूष्यम सुभाव । अनंत अन्मोद । इन्द्री प्रान चतुर्दस सुभाव । अनंत विसेष न्यान अन्मोद रंज-५। रमन -५। नंद चरन-५ । इस्टि परमिस्टि न्यान-५ । सम्मत्त अर्क-५॥ भय विनस्य भय विली - चतुस्टय नंत अरहंत सुभाव । अंगदि अंग दर्स, संमिक दर्स, अनंत दर्स, श्री संमिक दर्स, न्यान, चरन संजुक्त । दात्र पात्र सुभाव सहकार । संकल्प विकल्प मुक्त । रमन न्यान अन्मोद अनंत विसेष कलन सुभाव । अनंत विसेष कलन, न्यान अन्मोद कलन, कलन सहकार कलन सुभाव । कलन न्यान उत्पन्न अनादि कम्म उत्पन्न विली । न्यान मुक्त रमन । न्यान अनंत काल भुक्तं कम्म विली। न्यान अन्मोय नंद आनंद - विनंद कम्म विली, सुपन विली। न्यान अन्मोद अबलबली - विषय गली, कलन जिन उत्तं समय सहकार। अनंत विसेष कलनं भवतु । न्यान अन्मोद मुक्ति गामिनो भवतु ॥ ॥ इति तृतीयोऽध्यायः समाप्तम् ॥ चतुर्थ अध्याय दर्स, जिन इस्ट लषु, जिन उत्पन्न लषु, जिन उत्पन्न रमन, जिन इस्ट रमन, जिन जीव आह्वान। जिन षिपक जिन । धुव रमन जिन । जिन इस्ट उत्पन्न सुर्य लब्धि । जिन उत्पन्न इस्ट लब्धि सुयं । जिन हितकार सुर्य । इस्ट लब्धि जिन उत्पन्न हितकार । उत्पन्न इस्ट सुयं सुर्ग सुभाव रमन । क्रांति २, अस्फटिक २, रूवे ४, सब्द ४, मनपर्जय ४, षिपक सुयं इस्ट लब्धि, इस्ट षिपक सुर्य उत्पन्न इस्टि हितकार रमन अर्क इत्यादि-६॥ जानु इस्ट उत्पन्न सुर्य लब्धि रमन सुभाव जिननाथ ।। जिन उक्त, जिन दर्स, जिन वयन अतीन्द्रिय सुभाव इन्द्रिय विली। विषय विलय। राग जनरंजन विलय, दोष कलरंजन विलय, गारव मनरंजन विलय, दर्सन मोहांध विलय, आवर्न विलय, मिथ्या विलय, कषाय विलय, अन्यान वय, तप, क्रिया कस्टं विलय । जिन उक्त केवल सुभाव । उक्त केवल न्यान सहकार न्यान औकास न्यान । अन्मोद अबलबली अतेन्दिय सुभाव । भय इस्ट भय उत्पन्न विलय । अभय भय विनस्य । दात्र पात्र न्यान रमन । न्यान विन्यान रमन । न्यान इस्ट रमन । इस्टि न्यान उत्पन्न रमन । इस्टि रमन न्यान कलन रमन । न्यान गम्य रमन । न्यान अगम्य रमन । रंज रमन । आनंद रमन । अतेन्दी सहकार जिन उक्तं न दिस्टते । केन विसेष - इंदी सुभाव इन्दी इस्ट सुभाव । इंदी उत्पन्न इंदी विषय । इस्टि विषय उत्पन्न इस्टि- मिथ्या राग दोष कषाय इस्ट आवरन न्यान, दर्सन मोहांध, सक, सल्य, संक, भय सहित भयभीत इंदी सुभाव दिस्टते । इंदी निरोध विरोध । अन्मोद इंदी विषय सहकार, इंदी सुभाव अन्यान वय तव क्रिया ससंक भाव, इंदी सुभाव अन्मोद, इंदी प्रभाव अनंत भाव इंदी अन्मोद, अतेन्दी भाव न दिस्टते । इंदी सभाव पंचेनिय सुभाव निरूपन - जिन उक्त, जिन वयन, जिन दिस्टि, जिन इस्टि, जिन रस्टि, जिन रिस्टि. जिन समय इस्टि, जिन सह इस्टि, जिन उत्पन्न इस्टि, जिन सहकार इस्टि, जिन औकास इस्टि, जिन अन्मोद न्यान दिस्टि, जिन षिपक दिस्टि, जिन मुक्त, जिन इस्टि, जिन उत्पन्न इस्टि, जिन इस्ट दर्स, जिन उत्पन्न (१४८) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्मोद पंचेन्दिय सुभाव जीव उत्पन्न भ्रमनं करोति। अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद विन्यान न्यान अन्मोद न दिस्टते । अन्यान अन्मोद इंदी सुभाव पंचेन्दी सुभाव संसार सरनि भ्रमनं करोति । जदि कदि कालांतर सुकीय सुभाव न्यान अन्मोद अतेन्दी सुभाव, अतेन्दी सहकार, अतेन्दी इस्ट, अतेन्दी उत्पन्न न्यान, इस्ट न्यान, इस्टि न्यान, वयन आलाप न्यान, परिनै न्यान.समय न्यान.दर्स न्यान. औकास न्यान, अन्मोद अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद कम्म षिपति । इंदी विषय विलय, रंज रमन आनंद अतेन्दी न्यान अन्मोद । राग, दोष, गारव, दर्सन मोहांध, न्यान आवर्न, घाति कम्म, मिथ्या कषाय, सक, सल्य, संक, भय विलयंति । न्यान विन्यान अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद कम्म षिपति । नंत चतुस्टय परमिस्टी रयनत्तय सुर्य लब्धि -६ । रमन हितकार सहकार अनंत विसेष न्यान अन्मोद जिननाथ सुद्ध बुद्ध केवल सुभाव न्यान आचरन, संमत्त, वीर्ज, अनंत सौष्य, उवसम गुपित रमन । न्यान गुन व्रत, तव, दान, पडिमा, रयनत्तय, सिद्धि सुयं, लब्धि दर्स, लष्य रयनत्तय परमिस्टी। नयोग श्री, रयनत्तय श्री, सुभाव चतुस्टय रमन, जिननाथ रमन सुभाव विमल रयनत्तय, संकल्प विकल्प विलय, अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद, कम्म विलय मुक्तिं गता सिद्ध धुवं सिद्धं भवति । पंचम अध्याय जिन सुभाव से मुक्ति गति निरूपन - जिन उक्तं जिन वयनं, जिन दर्स दर्सयंति जिन समयं । जिन सुभाव जिन ग्रहनं, जिन अन्मोय न्यान निव्वानं ॥ १ ॥ जिन रहनं जिन गहनं, जिन उवन हिययार सद्ध सड़ मिलनं । जिन सहयार सु रमनं, जिन विन्यान न्यान सुइ उवनं ॥ २ ॥ जिन अषयं जिनसुरयं, जिन पय जिनसमै जिनय जिन जिनयं । जिन सहकार सु ममलं, जिन अवयास नंत जिन वयनं ॥ ३ ॥ जिन कमलं जिन ममलं, जिन उत्तं जिन अर्थ तिअर्थ । जिन समय अर्थ सदर्थ, जिन सहयार नंत सुइ ममलं ॥ ४ ॥ जिन परिनै जिन प्रमानं, जिन उवएस नंतनंताए । जिन अन्मोद सु ममलं, जिन षिपनं जिनयति जिनंद विंदानं ॥ ५ ॥ जिन परमिस्टि सु चरनं, जिन संमत्त हृवं अवगहनं । जिन लंक्रित जिन विन्यानं, जिन जिनयति नंत कम्म बंधानं ॥ ६ ॥ जिन तत्तु दव्व पयत्थं, जिन दिळं दव्व दिस्टि इस्टं च । जिन काय क्रांति जिन उवनं, जिन अन्मोद न्यान निव्वानं ॥ ७ ॥ जिन उत्त नंतनंतायं, नंत सुभावेन कम्म विलयंति । जिन नन्तानन्त सु दिटुं, जिन उत्पन्न नंत सिद्धि सिद्धानं ॥ ८ ॥ तस्य जिनय जिन वयनं, षलु सुभावेन किं सहकारेन किंकरि जानाति । ॥ इति चतुर्थोऽध्यायः समाप्तम् ॥ (१४९ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चौबीस ठाणा जी षल सुभाव पल प्रियो, षल संस्थित पल सुभाव जिन वयनं ॥ ९ ॥ किं कारनं जानाति, किं विसेषनं रमनं पल प्रिथी सुभाव उत्पन्न, किन्नर किं पुरिस सुभाव, जिन उत्तं न रमनं किंकरि जानंति । षल सुभाव वयन पल सुभाव । जनरंजन राग जन सुभाव, जिन वयनं न रमति, तं सुभावेन किन्नर किं पुरुष उत्पन्नं भवति । जदिकदिकालांतर अनंत काल भ्रमत-भ्रमत सुद्ध बुद्ध सुद्ध सुभावेन जिनोक्त जिन न्यान अन्मोद न्यान रमन, न्यान विन्यान रमन सुभाव । सुयं लब्धि सोलही - सुभाव जनरंजन राग विलयं गतः, सक सत्रह (१७) विलयं गतः । निसंक रूव भय सल्य संक विलयं । निसंक सुभाव जिन अन्मोद, जिन रमन प्रतिपाद सूष्यम क्रिया प्रतिपात । जदि काल सुभाव ग्रहनं तदि काल उत्पन्न मनुष्य कल। जिन उक्त कलन कलित जिन उक्त ग्रहन अन्मोद न्यान, उत्पन्न न्यान वजनाराच रमन सुभाव, न्यान विन्यान मुक्त सुभाव मुक्ति गतः ।। पंक प्रिथी निरूपनजिन उत्तं सुह विमलं, जिन सहकारेन न्यान अन्मोयं । भय सल्य संक विलयं, अभय सहावेन सिद्धि संपत्तं ॥ १ ॥ जिन उक्त, जिन पद, जिन अभ्यर, जिन सुर रमन, जिन विन्यान, जिन पद, जिन सब्द, जिन दिस्टि, जिन उक्त, जिन समय, जिन परिनै, जिन प्रमान, जिन उक्त, जिन सहकार, जिन औकास, जिन अनंत चतुस्टय, जिन अन्मोद, जिन विपक, जिन मुक्ति, जिन उक्त, जिन वयन, जिन दर्स, जिन लष्य, जिन अलष्य, जिन गम्य, जिन अगम्य, जिन जिनयति जिन पद न दर्सते। अपद पद अनिस्ट अपकरन अप अनिस्ट पद, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनिस्ट व्रत, तव, क्रिया, अनिस्ट व्रती. अनिस्ट राग बंध, न्यान रमन न दिस्टते, न सार्धं करोति ॥ मिस राग बंध, राग सुभाव पंक प्रियो - पंक प्रिथी, महोरग, गंधर्व, जष्य, जय षिपक सुभाव जष्य वृत्ति उत्पन्न अजय ग्रहन जय विलय। जष्य सब्द जै षिपति, जष्य त्रि जाति उत्पत्ति अनंत संसार भ्रमनं, भवनवासिनो उत्पत्ति अस्तिति (स्थिति) भवति । जदि कदि अनंत काल भ्रमत-भ्रमत जदि न्यान उत्पन्न, केन सहकार- उत्पन्न न्यान रमन, न्यान अन्मोद जीव निकलै मनुष्य काल लब्धि प्राप्ति भवति ।। जं विपकं जं मलयं, मनस्य उववन्न सहाइ विलयति । विलयं कम्मनि बंधं, न्यानं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २ ॥ अनिस्ट इस्ट नहु पिच्छं, इस्टं अन्मोय उववन्न सुइ रमन । इस्ट इस्टंति न्यानं, उत्पन्नं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ ३ ॥ उवनं उवन सहावं, उवन हिययार न्यान विन्यानं । अर्क विंद हिय हुवयं, आगंतु रमन हिययार सिद्धि सम्पत्तं ॥ ४ ॥ उववन्न हिययार संजुत्तं, उववन्नं सहकार रमन विन्यानं । भय सल्य संक विलयं, पज्जय भय विलय न्यान उववन्नं ॥ ५ ॥ पज्जय सुभाव विलयं, न्यानं अन्मोय नंद जिन नंदं । न्यानं न्यान सु उवनं, उववन्नं अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ६ ॥ ॥ इति पंचमोऽध्यायः समाप्तम् ॥ ॥ इति श्री चौबीस ठाणा नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ (१५०) Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी ममल मत श्री ममल पाहुड़ जी (१) श्री देव विप्नि गाथा गाथा १ से १७ तक (विषय : देव को स्वरुप सहित नमस्कार, शुद्धात्म स्वरूप की महिमा) तत्त्वं च नंद आनंद मउ, चेयननंद सहाउ । परम तत्त्व पद विंद पउ, नमियो सिद्ध सुभाउ ॥ १ ॥ जिनवर उत्तउ सुद्ध जिनु, सिद्धह ममल सहाउ । न्यान विन्यानह समय पउ, परम निरंजन भाउ ॥ २ ॥ परम पयं परमानु मुनि, परम न्यान सहकार । परम निरंजन सो मुनहु, ममलह ममल सहाउ ॥ ३ ॥ भय विनासु भवु जु मुनहु, परमानंद सहाउ । परम निरंजन सो मुनहु, ममलह सुद्ध सहाउ ॥ ४ ॥ देव जु दिट्ठह जिनवरहं, उवनउ दाता देउ । न्यान विन्यानह ममल पउ, सु परम पउ जोउ ॥ ५ ॥ दिप्त दिप्ति तं दिस्ट समु, दिप्त दिस्ट सम भेउ । दिस्टि सब्द विवान सुइ, उत्पन्नउ दाता देउ ॥ ६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिप्त दिस्ट सुइ नंत मुनि, कमल इस्टि परमिस्टि । सुर्य लब्धि तं स्यन पउ, दिपि नंत चतुस्टै संजुत्तु ॥ ७ ॥ अंगदि अंगह दिपि दिस्ट मउ, सब्द हिययार संजुत्तु । अर्थ तिअर्थ जु कमल रुइ, गिर दिप्त दिस्टि संजुत्तु ॥ ८ ॥ दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द मउ, हिय हुवयार संजुत्तु । अर्क विंद तं रमन पउ, उव उवनउ दाता देउ ॥ ९ ॥ उव उवन उवन हिययार पउ, सहयार दिप्ति संजोई । न्यान विन्यान जु दिस्टि मउ, दिपि दिस्टि देइ सुइ देउ ॥ १० ॥ जं जं उवन सहाव जिनु, दिपि दिस्टि उवन उव उत्तु । सब्द उनउ उवन मउ, उव उवन दिस्टि दर्सतु ॥ ११ ॥ जं दर्सिउ नंतानंत मउ, न्यान वीर्य विन्यानु । नंत सौष्य सुइ परम पउ, तं देइ देउ उववंनु ॥ १२ ॥ परम न्यान तं परम पउ, परम भाव सोई भेउ । नंतानंत सु देउ पउ, परम देउ सोई देउ ॥ १३ ॥ नो उत्पन्न तं सो जिनई, जिनियो नंतानंतु । नंत उवन सुइ रमन मउ, जिन जिनवर सुइ उत्तु ॥ १४ ॥ परम उवन जो रमन मउ, परम न्यान सुइ जुत्तु । परम उवन जु जिनय जिनु, उववंन विली जिन उत्तु ॥ १५ ॥ परम सुभावह परम रउ, परम परम जिन उत्तु । परम लष्य गम अगम पउ, परम परम जिन उत्तु ॥ १६ ॥ ममलं ममल उर्वनं, भय षिपिय ससंक विलयंति । कम्मं उवनं विलियं, भय षिपनिक ममल पाहुडं बोच्छं ॥ १७ ॥ (१५१) Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 龙响而阿 श्री ममल पाहुइ जी (२) मुक्ति श्री फूलना गाथा १८ से २७ तक (विषय : औकास, ज्ञान स्वभाव में मुक्ति, ज्ञान स्वभाव की महिमा और उदय) चलि चलहुन हो, मुक्ति सिरी तुम्ह न्यान सहाए । कल लंक्रित हो, कम्म न उपजै ममल सुभाए ॥ जिन जिनवर हो, उत्तो स्वामी परम सुभाए । मुनि मुनहु न हो, भवियनगन तुम्ह अप्प सहाए ॥ १ ॥ तुम्हरी अषय रमन रै नारी हो, न्यानी भौहौ भौर विनट्ठी । मन हरषिय लो जिन तारन को, ___ जब सब मुक्ति पहुंते हो न्यानी ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ सो मनियो हो, उत्तउ जिनु हो ममल सुभाए । धरि धरियो हो, अर्थ तिअर्थह न्यान सहाए । कलि कलियो हो, ममल दिस्टि यहु कमल सुभाए । रै रमियो हो, पंच दिप्ति यहु आद सहाए ॥ ३ ॥ ॥तुम्हरी.॥ उदि उदियो हो, इस्ट संजोगे परम सुभाए । दिपि दिपियो हो, परम जोति यह अप्प सहाए । लहि लहियो हो, अंगदि अंगह सुद्ध सुभाए । मै मइयो हो, अंग सर्वगह ममल सहाए ॥ ४ ॥ ॥ तुम्हरी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी रहि रहियो हो, सुष्यम सहियो ममल सुभाए । गहि गहियो हो, नंतानंत सु गगन सहाए ॥ उगि उगियो हो, ऊर्धह सुद्धह मुक्ति सुभाए । मल रहियो हो, ममल बुद्धि यह विपक सहाए ॥ ५ ॥ ॥ तुम्हरी.॥ उव उवनो हो, दिस्टि देइ सो देव सुभाए । सहकारे हो, देइ अनंतु जु अन्मोय सुभाए । दर दरसिउ हो, देइ सु दर्सन न्यान सहाए । औकासह हो, उपजै न्यानु सु रयन सुभाए ॥ ६ ॥ ॥तुम्हरी.॥ गुरु गुरुवति हो, लोयालोय सु ममल सुभाए । गुरु गुपित सु हो, दिट्ठउ दीन्हउ चरन सहाए । चरि चरियो हो, ममल दिस्टि यह अप्प सुभाए । तव यरियो हो, सहकारे जिनु सहज सुभाए ॥ ७ ॥ ॥तुम्हरी.॥ उप उपजै हो, कम्मु अनंतु अनिस्ट सुभाए । बिपि षिपियो हो, न्यान दिस्टि यहु ममल सहाए ॥ नंद नंदियो हो, चिदानंद जिनु कमल सुभाए । आनंदिउ हो, परम नंद सु मुक्ति सहाए ॥ ८ ॥ ॥ तुम्हरी.॥ यहु जानहु हो, भय विनासु सु भव्व सुभाए । पर परजय हो, दिस्टि न देइ सु ममल सुभाए ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी अन्मोयह हो, मिलियो जोति सु षिपि कम्मु जु हो, मुक्ति पहुंते रयन ममल सहाए । सहाए ॥ ९ ॥ ॥ तुम्हरी ॥ सहाए । सुभाए ॥ अन्मोय दिपि दिपियो हो, देउ लंक्रित सो भय षिपनिक हो, मिलियो रमियो षिपक आनंदिउ हो, परमानंद यहु परम सुभाए । अन्मोयह हो, मिलियो जोति सु सिद्ध सुभाए ।। १० । ॥ तुम्हरी ॥ (३) श्री गुरू दिप्ति गाथा गाथा २८ से ४५ तक १ ॥ २ (विषय गुरू को स्वरूप सहित नमस्कार, अंतरात्मा की महिमा और बहुमान) गुरु उवएसिड गुपित रुइ, गुपित न्यान सहकार । तारन तरन समर्थ मुनि, गुरु संसार निवार ॥ संसय सय विमुक्कु गुरू, भय विलय अभय जिन उत्तु । अभय न्यान सुइ गुपित रुइ, न्यान विन्यान संजुत्तु ॥ गुरु गरुवो गुरु नंत पउ, गुरु दिप्ति दिस्टि दर्संतु । सब्द संजोए अमिय रसु, भय षिपिय ममल उवसु ॥ दिप्ति उवंनि न्यान मइ, दिस्टि इस्टि संजुत्तु । दिप्ति विन्यान सु गुपित मउ, दिस्टि रिस्टि सं उत्तु ॥ दिप्ति सहाउ सु समय पउ समय ममल जिन उत्तु । दिस्टि रिस्टि सुइ अमिय रसु, भय षिपिय ममल संजुत्तु ॥ ३ || ४ II ५ || 11 १५३ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ६ ८ ॥ दिप्ति विसेष निसंक पउ, कंप्या रहित जिनुत्तु । भय षिपिय सल्य सक विलय सुई, तं अमिय रमन विष भंजु ॥ दिप्तिस उतउ व्रिति विलिय पड, ब्रिव्रिति दिप्ति जिन उत्तु । दिस्टि सिस्टि सह दिस्टि मउ, गुरु अमिय रमन रस जुत्तु ॥ दिप्ति रमनु जिन उवन पउ, उवन सहाउ संजुत्तु । दिस्टि उवन सहकार जिनु, भय षिपिय ममल जिन उत्तु ॥ दिप्ति क्रांति षट् कमल जिनु, अवयास दिस्टि दिस्टंतु । उवन हिययार सहयार रउ, ममल दिस्टि दतु ॥ दिप्ति दिप्ति सुइ दिप्ति पउ, दिस्टि नंत जिन उत्तु । भय सल्य संक विलयंतु गुरु, अमिय ममल सिद्धि रत्तु ॥ १० ॥ दिप्ति अनंत जिनुत्तु जिनु, जनरंजन रागु विलंतु । अन्मोय दिस्टि भय षिपक जिनु, अन्मोय ममल दतु ।। ११ ।। जं षिपियो नंत सु कम्मु सुइ, तं मुक्ति इस्टि इस्टंतु । ९ जं अमिय रमन विष विलय गुरू, तं ममल मुक्ति दस्तु ॥ १२ ॥ जं सहाइ चउ रह गमनु, तं साधु समय जिन उत्तु । पर्जय भय सल्य संक गलियं तं न्यान दिप्ति दतु ॥ १३ ॥ अनदिदु अनसुतु गुपित गुरू, अनहंतु दर्स दस्तु । गुपित गुहिज जै रमन मउ, तं गुपित मुक्ति जिन उत्तु ॥ १४ ॥ उवन उवन दिपि दिस्टि जिनु उवनउ दाता देउ । गुरु गुपितह सुइ रमन पउ, तं अमिय रमन रस जुत्तु ॥ १५ ॥ देउ दिप्ति हिययार सुइ, गुरु ग्रंथ सल्य भय चत्तु । गुपित रमन दस्तु सुड़, गुरु सिद्धि मुक्ति सुइ उत्तु ।। १६ ।। ७ ॥ ॥ II Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी परम गुपित परमप्प जिनु, पर पर्जय विलयतु । भय षिपनिक भव्वु जु अमिय मउ, ममल परम गुरु उत्तु ॥ १७ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, गुरु परम मुक्ति दर्सतु । उवन हिययार सहयार सिरी, गुरु परम मुक्ति विलसंतु ॥ १८ ॥ (४) श्री ध्याबहु फूलना गाथा ४६ से ६२ तक (विषय : अन्तरात्मा गुरू और परमात्मा परम गुरु का ध्यान करने की प्रेरणा, धर्म - कर्म का मर्म) ध्यावहु रे गुरु, गुरह परम गुरु, भव संसार निवारै । न्यान विन्यानह केवल सहियो, आप तिरे पर तार ॥ १ ॥ ॥आचरी॥ परम गुरह उवएसिउ लोयह, न्यान विन्यानह भेउ । भय विनासु भव्वु तं मुनि है, उव उवनउ दाता देउ ॥ २ ॥ ॥ ध्या, ॥ देउ उर्वनउ दिट्टर दीन्हउ, लोयालोय उवएसु । परम देउ परम सुइ उवने, परम ममल सुपएसु ॥ ३ ॥ ॥ ध्या.॥ परम देउ परमप्पा सहियो, नंतानंत सु दिट्ठी ।। नंत गुपित विन्यान उर्वनउ, ममल दिस्टि परमिस्टी ॥ ४ ॥ ॥ ध्या. ॥ जिन उवएसिउ भव्यह लोयह, अर्थति अर्थह जोउ ।। षट् कमलह तं विमल सुनिर्मल, जिम सूषम कम्म गलेइ ॥ ५ ॥ ॥ ध्या, ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चिदानंद जिनु कहिउ परम जिनु, सुकिय सुभाव सुदिट्ठी । अर्थति अर्थह कमलह सहियो, सहजनंद जिन दिट्ठी ॥ ६ ॥ ॥ ध्या. ॥ जिनवर उत्तर सुद्ध परम जिनु, मर्म कम्मु स जिनेई ।। जह जह समयह कम्मु उपज्जइ, न्यान अन्मोय षिपेई ॥ ७ ॥ ॥ ध्या. ॥ जह जह थानह कम्मु ऊपजड़, कम्मह कम्म सहाई । न्यान अन्मोयह तं तं विलियउ, मर्म कर्म सु जिनेई ॥ ८ ॥ ॥ ध्या. ॥ परम जिनं परमष्यरु गहिओ, परमानंद सहाई । परम सुभावह न्यान विन्यानह, केवल सहियो सोई ॥ ९ ॥ ॥ ध्या. ॥ धम्मु जु धरियउ जिनवर उत्तउ, न्यान विन्यान सुभाउ । जह जह कम्मु उपति स दिट्ठी, तह तह षिपन सहाउ ॥ १० ॥ ॥ ध्या. ॥ परम धम्म परमप्पय सहियो, परम भाउ उवलद्धी । परम निरंजनु अंजन रहिओ, ममल भाव सिव सिद्धी ॥ ११ ॥ ॥ ध्या. ॥ दर्सन सहियो दिस्टि अन्मोयह, परिनै न्यान सहाउ । परमानह सो चरनु उपज्जै, अन्मोयह ममल सहाउ ॥ १२ ॥ ॥ ध्या. ॥ चष्य अचष्यह अवहि जु सहियो, न्यान विन्यान संजुत्तु । कम्मु उपत्तिहि कम्मु जु विलियो, न्यान अन्मोय स उत्तु ॥ १३ ॥ ॥ ध्या. ॥ (१५४) Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी परम गुपित परमप्प जिनु, पर पर्जय विलयतु । भय षिपनिक भव्वु जु अमिय मउ, ममल परम गुरु उत्तु ॥ १७ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, गुरु परम मुक्ति दर्सतु । उवन हिययार सहयार सिरी, गुरु परम मुक्ति विलसंतु ॥ १८ ॥ (४) श्री ध्याबहु फूलना गाथा ४६ से ६२ तक (विषय : अन्तरात्मा गुरू और परमात्मा परम गुरु का ध्यान करने की प्रेरणा, धर्म - कर्म का मर्म) ध्यावहु रे गुरु, गुरह परम गुरु, भव संसार निवारै । न्यान विन्यानह केवल सहियो, आप तिरे पर तार ॥ १ ॥ ॥आचरी॥ परम गुरह उवएसिउ लोयह, न्यान विन्यानह भेउ । भय विनासु भव्वु तं मुनि है, उव उवनउ दाता देउ ॥ २ ॥ ॥ ध्या, ॥ देउ उर्वनउ दिट्टर दीन्हउ, लोयालोय उवएसु । परम देउ परम सुइ उवने, परम ममल सुपएसु ॥ ३ ॥ ॥ ध्या.॥ परम देउ परमप्पा सहियो, नंतानंत सु दिट्ठी ।। नंत गुपित विन्यान उर्वनउ, ममल दिस्टि परमिस्टी ॥ ४ ॥ ॥ ध्या. ॥ जिन उवएसिउ भव्यह लोयह, अर्थति अर्थह जोउ ।। षट् कमलह तं विमल सुनिर्मल, जिम सूषम कम्म गलेइ ॥ ५ ॥ ॥ ध्या, ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चिदानंद जिनु कहिउ परम जिनु, सुकिय सुभाव सुदिट्ठी । अर्थति अर्थह कमलह सहियो, सहजनंद जिन दिट्ठी ॥ ६ ॥ ॥ ध्या. ॥ जिनवर उत्तर सुद्ध परम जिनु, मर्म कम्मु स जिनेई ।। जह जह समयह कम्मु उपज्जइ, न्यान अन्मोय षिपेई ॥ ७ ॥ ॥ ध्या. ॥ जह जह थानह कम्मु ऊपजड़, कम्मह कम्म सहाई । न्यान अन्मोयह तं तं विलियउ, मर्म कर्म सु जिनेई ॥ ८ ॥ ॥ ध्या. ॥ परम जिनं परमष्यरु गहिओ, परमानंद सहाई । परम सुभावह न्यान विन्यानह, केवल सहियो सोई ॥ ९ ॥ ॥ ध्या. ॥ धम्मु जु धरियउ जिनवर उत्तउ, न्यान विन्यान सुभाउ । जह जह कम्मु उपति स दिट्ठी, तह तह षिपन सहाउ ॥ १० ॥ ॥ ध्या. ॥ परम धम्म परमप्पय सहियो, परम भाउ उवलद्धी । परम निरंजनु अंजन रहिओ, ममल भाव सिव सिद्धी ॥ ११ ॥ ॥ ध्या. ॥ दर्सन सहियो दिस्टि अन्मोयह, परिनै न्यान सहाउ । परमानह सो चरनु उपज्जै, अन्मोयह ममल सहाउ ॥ १२ ॥ ॥ ध्या. ॥ चष्य अचष्यह अवहि जु सहियो, न्यान विन्यान संजुत्तु । कम्मु उपत्तिहि कम्मु जु विलियो, न्यान अन्मोय स उत्तु ॥ १३ ॥ ॥ ध्या. ॥ (१५५) Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री ममल पाहुइ जी रहनु विलय जिन रहनु रहिउ, रहि पर्जय विलयतु । दिप्ति दिस्टि सुइ न्यान पउ, विन्यान मुक्ति दर्सतु ॥ १५ ॥ रमनु विलय जिन रमनु रमिउ, रमियो उवनु हिययार । सहयार रमनु साहिउ ममलु, अमिय रस रमन हिययार ॥ १६ ॥ दंसु गलिय जिन दर्स धरिउ, दिस्टि गलिय जिन दिस्टि । तारन तरन सहाउ लई, धम्मु इस्टि परमिस्टि ॥ १७ ॥ लषु गलिय जिन लषु लषिउ, जिनयति कम्म सहाउ । भय विनासु भवु जु मुन', अमिय ममल सुभाउ ॥ १८ ॥ अलष गलिय जिन अलषु लषिउ, लषतउ ममल सहाउ । भय षिपनिकु पर्जय विलयं, विषु विलय अमिय रस भाउ ॥ १९ ॥ गंमु गलिय जिन गमु गमिऊ, गम दिप्ति दिस्टि उव उत्तु । सब्द इस्टि सुइ अमिय मउ, भय षिपिय ममल दर्सतु ॥ २० ॥ अगमु गलिय जिनु अगमु गमिउ, गमियो नंतानंतु । विंद विन्यान सु समय मउ, धम्मु रमनु सिव पंथु ॥ २१ ॥ लब्धि गलिय जिन लब्धि पउ, जिनियो कम्मु सहाउ । पर्जय भय विलयंतु सुइ, अमिय रस ममल सुभाउ ॥ २२ ॥ परम परम परिनामु धरि, परम न्यान सहकार । पर पर्जय भय सल्य विली, परम धर्म सहकार ॥ २३ ॥ (६) तत्तु सार फूलबा गाथा ८६ से १०२ तक (विषय : १७ सक, तत्त्व का सार) उव उवनौ हो, न्यान विन्यानह तत्तु सहाए । सो तत्तु जु हो, उत्तउ जिनवर ममल सहाए । मल रहियो हो, उवनु जु दाता देव सहाये । तत्कालह हो, उवनु जु समइ तत्तु सुभाये ॥ १ ॥ दिपि दिस्टि जु हो, देव सहाए सब्द सहाए । तं सब्द विवान प्रियो, सुइ मुक्ति सहाए ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ तत्कालह हो, समय उवनउ न्यान सहाये । सो न्यान विन्यान, उनउ तत्तु सहाये ॥ सहकारह हो, तत्काल उनउ अवयास सहाये । अवयासह हो, तत्काल उर्वनउ अन्मोय सहाये ॥ ३ ॥ ॥दिपि दिस्टि.॥ अन्मोयह हो, न्यान विन्यानह षिपक सहाये । सो षिपनिकु हो, उवनउ स्वामी ममल सुभाये ॥ सो तत्तु जु हो, परम तत्तु यहु परम सुभाये । जिन कहियो हो, परम तत्तु उत्पन्न सहाये ॥ ४ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ तत्कालह हो, उवनउ स्वामी ममल सुभाए । सहकारे हो, उवनउ स्वामी परम सुभाए । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी परम पय हो, परम सुभावह सहज सुभाए । अन्मोय जु हो, उपजिउ मिलियो परम सुभाए ॥ ५ ॥ || दिपि दिस्टि. ॥ सो तत्तु जु हो, परम तत्तु जिन उत्तु सहाए । जिन जिनियो हो, कम्मुनि बंधउ न्यान सुभाए । चिदानंद जु हो, चेयन सहियो ममल सुभाए । जिन जिनियो हो, कम्मु जु स्वामी जिनय सुभाए ॥ ६ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ जिन जिनवर हो, उत्तउ सहजे सुकिय सहाए । जिनि कम्मु जु हो, मर्म जु जिनियो परम सुभाए ॥ अन्मोय जु हो, उवनउ स्वामी ममल सहाये । जिन परम जिनेसुर हो, उत्तउ स्वामी मुक्ति सुभाये ॥ ७ ॥ ॥ दिपि दिस्टि, ॥ जह कम्मु जु हो, उपजिउ नंतु अन्यान सहाए । जनरंजन हो, रागु जु उवनउ समल सुभाए ॥ पर पर्जय हो, दिस्टि जु सहियो अनिस्ट सहाए । सो न्यान अन्मोयह, विलियो स्वामी ममल सुभाए ॥ ८ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ कलरंजन हो, कम्मु उपत्तिहि समल सहाए । मनरंजन हो, गारव सहियो राग सुभाए । जं कम्मु जु हो, नंतानंतु अनंतु भवाए । तं कम्मु जु हो, विलियो स्वामी अन्मोय सहाए ॥ ९ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ जं दर्सन हो, मोहे अंधउ भमन सहाए । सो भमियो हो, आदि अनादि जु कम्म सहाए । अनेयह हो, विभ्रम सहियो पर्जय दिट्ठी । तं न्यान अन्मोयह, विलियो दर्सन दिट्ठी ॥ १० ॥ ॥दिपि दिस्टि. ॥ तं न्यान आवर्न जु, सहियो कम्मु अनंतु । पर पर्जय हो, दिस्टि संजोए अनिस्ट सहाए । सो कम्मु जु हो, घाइ संउत्तो जिनवर इस्टी । सो कम्मु जु हो, विलियो स्वामी न्यान स दिट्ठी ॥ ११ ॥ ॥दिपि दिस्टि. ॥ जह कम्मु जु हो, उपजिउ स्वामी अर्थ अनिट्ठी । सो न्यान अन्मोयह, विलियो ममल स दिट्ठी ॥ जो चष्य अचष्यह, उवनउ समल सहाए । सो न्यान अन्मोयह, विलियो ममल सुभाए ॥ १२ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ जं अवहिहि हो, कम्मु स उत्तउ अनिस्ट सहाए । सो न्यान अन्मोयह, विलियो इस्ट सुभाए । जं गुहिज स दिस्टिहि, दिट्ठिउ कम्मु उपत्ती । सो न्यान अन्मोयह, विलियो दर्सन दिस्टि ॥ १३ ॥ ॥दिपि दिस्टि. ॥ तं जह जह हो, कम्मु उनउ समल सहाए । सो न्यान अन्मोयह, विलियो ममल सुभाए ॥ (१५७) Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी मनपर्जय हो, जानु उनउ ममल सहाए । रिजु विपुल संजोए, सहियो न्यान सुभाए ॥ १४ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ षट् कमल तिअर्थ, संजोए दिप्ति उपत्ती । दिपि दिपियो हो, न्यान विन्यानह ममल स उत्तु ॥ पद दर्सिउ हो, परम तत्तु परमिस्टि सहाए । विन्यानह हो, विंदु जु दर्सिउ ममल सुभाए ॥ १५ ॥ ॥ दिपि दिस्टि. ॥ सर्वंग जु हो, सर्व सु दर्सिउ ममल सहाए । तं नंता हो, नंत चतुस्टय सहज सुभाए ॥ सो केवल हो, सहियो स्वामी ममल सहाए । विपि कम्मु जु हो, मुक्ति पहुंतउ न्यान सहाए ॥ १६ ॥ || दिपि दिस्टि. ॥ सो पत्तह हो, दत्त विसेषे परम सुभाए । सो तारन हो, तरन समर्थ जु ममल सुभाए ॥ सो निर्मलु हो, ममल जु केवलु न्यान संजुत्तु । सो न्यान अन्मोयह, स्वामी मुक्ति पहुंतु ॥ १७ ॥ ॥ दिपि दिस्टि.॥ (७) विनती फूलना गाथा १०३ से १११ तक (विषय | औकास, नंद ५, प्रश्नोत्तर शैली में साधना सिद्धांत, चक्षु-अचक्षु दर्शन, तारण तरण स्वभाव की महिमा) भने विरमु तारन तरन जिन उवने, विनती एक सुनीजै । तुम्ह अन्मोय भव्य जिय उवने, तिन्ह उवएसु कहीजै ॥ १ ॥ हां जू तरन जिन विनती एक सुनीजै ॥ नंद अनंदह चिदानंद जिनु, कम्मु उर्वनु विलीजै । हां जू तरन जिन विनती एक सुनीजै ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ चौ गै भमत दुष भौ भारी, सुष न कहईं पायौ । ऐसे काल तरन जिन उवने, मुक्ति पंथु दरसायौ ॥ ३ ॥ ॥हां जू.॥ कालु पंचमी चपल अनिस्ट है, इस्टि दिस्टि नह उपजै । न्यान बलेन इस्ट संजोए, भय षिपनिक कम्म विलीजै ॥ ४ ॥ ॥हां जू.॥ संसय सरनि नंत भी भारी, भयहं दिस्टि भी भमिजै । भय विनासु तं भव्य उवंनऊ, कम्मु उवन्नु विलीजै ॥ ५ ॥ ॥हां जू.॥ दव्व कम्मु आवरन ऊपजै, सल्य संक भय उत्तं । न्यान आवर्नु न्यान तं विलियो, भय षिपिय सिद्धि संपत्तं ॥ ६ ॥ ॥ हां जू.॥ १५८ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी वज नराच संहनन जं सहिउ, भउ विनासु सुपएसं । तं सरीर औदारिक सहियो, भय षिपिय तरन सुपएसं ॥ ७ ॥ ॥हां जू.॥ चष्य अचष्यह जं भौ उपजै, गुहिजह भौ जु अनंतु । तारन तरन सहावह जिनियो, न्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ८ ॥ ॥हां जू.॥ तारन तरन सहावह विलियो, सल्य संक विलयतु । न्यान विन्यानह ममल सरूवे, भय षिपनिक मुक्ति पहुंतु ॥ ९ ॥ ॥हां जू.॥ जिन वयनु उत्तु जिन परिनमउ, जिन उत्तु प्रमान संजुत्तु । जिन दिस्टि इस्टि जिन दिप्ति मउ, जिन दर्स नंत जिन पत्तु ॥ ५ ॥ जिन रस्टि इस्टि जिन सिस्टि मउ, जिन सह इस्ट उवन संजुत्तु । जिनु समय सहाव जिनु समय मउ, सहयार नंत जिन उत्तु ॥ ६ ॥ जिन अन्मोय जिन षिपक पर, जिन मुक्त मुक्ति दर्सतु । जिन अर्थह अवयास पउ, अन्मोय अर्थ दिपि जुत्तु ॥ ७ ॥ जिन मुक्ति अर्थ जिन कमल मउ, जिनु रमन लंक्रित जिन उत्तु । जिन विन्यान सु समय मउ, जिन न्यान नंत सम चित्तु ॥ ८ ॥ जिन नाना प्रकार सु समय मउ, जिन अन्मोय सुभाव सु इस्टु । जिन षिपक रमन रै रमिय पर, जिन मुक्त मुक्ति दर्सतु ॥ ९ ॥ जिन उवएसिउ उवन मउ, जिन उवनौ उवन सहाउ । उव उवन सहाव परमिस्टि मउ, जिन नै उवन (८) पात्र गर्भ गाथा गाथा ११२ से १२९ तक (विषय : पय १२) पात्रं उवन विसेषु मुनि, पत्त सुयं जिन उत्तु । पत्त सहाउ सु न्यान मउ, पत्त गर्भ सम उत्तु ॥ १ ॥ जब जिनु गर्भवास अवतरियो, ऊर्ध ध्यान मनु लायो । दर्सन न्यान चरन तव यरियौ, सिद्धि मुक्ति फलु पायो ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जिन उत्तु जिन वयनु मुनि, जिन दर्स सहाउ संजुत्तु । जिन लषु अलषु जिन इस्ट पउ, जिन उवनु उवनु इस्टंतु ॥ ३ ॥ जिन गंमु अगंमु जिन जिनय पउ, जिन अर्थतिअर्थ संउत्तु । जिनु समय सहाउ सु समय मउ, जिनु अवयास दर्स दर्संतु ॥ ४ ॥ जिन नै जिन मै जिन सिय रमनु, जिन धुव ममल सुभाउ । भय षिपनिक भव्वु स उत्तु सुई, अमिय रमन संजुत्तु ॥ ११ ॥ तारन तरन सहाव लई, ममल रमन सिवसंतु । भय षिपनिकु अमिय सु रमन पउ, जिनु पौ उवनु सहंतु ॥ १२ ॥ जिन उवएसिउ सुर रमनु, विंजन विन्यान संजुत्तु । विंजन रमनह सुर रमिउ, पय दर्स परम पय उत्तु ॥ १३ ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिन उवन उवन सुइ सहै पउ, जिन हिय रमन सहंतु । हिययार उवनु जु रमन पउ, षट् रमन ममल साहंतु ॥ १४ ॥ अर्क विंद आगंतु मुनी, जिन हिय हवयार संजुत्तु । जिन रमनु जिन गमनु मुनी, पत्तु भरहु लाहंतु ॥ १५ ॥ उवन सहाव जिन उत्तु पउ, हिययार उवन दर्सतु । उवन हिययार सह सहइ पउ, जिन पत्तु गर्भ सुइ उत्तु ॥ १६ ॥ जिन उववन्न पौ साहियउ, जिन दर्स दस साहंतु । जिन समय सहाव जिन समय मउ, जिन गम अगम पिछंतु ॥ १७ ॥ जिन उत्तु उवन पउ भरिय मउ, सुइ लै गर्भिउ जिन उत्तु । जं भरियौ तं आयरिऊ, तं गर्भ उवन जिन उत्तु ॥ १८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ न्यान रमन सुरयं, उत्पन्न न्यान रमनं । स्रोवर सु सहज उवनं, तं नंत नंत गमनं ॥ ४ ॥ ॥स न्यानी.॥ तं पदम परम सुरयं, तं पदम कमल धुरयं । पद विंद परम मिलियं, तं नंत कम्मु गलियं ॥ ५ ॥ ॥स न्यानी.॥ महा पद्म सुरं सुरयं, मै सहज न्यान उवनं । हिययार कमल कलनं, तं सिद्धि मुक्ति गमनं ॥ ६ ॥ ॥स न्यानी.॥ तिअर्थ अर्थ मिलनं, तं गम्य अगम्य गमनं । तं चरन सहज चरनं, अन्मोय मुक्ति मिलनं ॥ ७ ॥ ॥स न्यानी.॥ केवल सुभाव कलियं, तं कमल कंठ मिलियं । हिययार कमल रैयं, तं नंत कम्मु विलयं ॥ ८ ॥ ॥स न्यानी.॥ सहयार ईर्ज रितियं, पुंडरिय भाव धुरियं । तं गहिर कमल गहियं, हिययार रमन रमियं ॥ ९ ॥ ॥स न्यानी.॥ तं अर्क रवन रवनं, विन्यान विंद भवनं । आगंतु अर्थ मिलनं, जिन अरुह रमन रमनं ॥ १० ॥ ॥स न्यानी.॥ हिय हवयार सुरयं, सर्वन्य रमन अयरं । पुंडरिय महा सुरयं, तं गुहिज कमल अयरं ॥ ११ ॥ ॥स न्यानी.॥ (९) गर्भ चौबीसी फूलना गाथा १३० से १५४ तक (विषय : षट् सरोवर, षट् कमल, षट् देवियां, षट् रमन) जिन जिनयति जिन उवनं, उववंन न्यान रमनं । विन्यान विंद भवन, सुइ ममल मुक्ति मिलनं ॥ १ ॥ स न्यानी जिननाथ रमन रमनं, भय षिपिय भव्यु मिलनं ।। स न्यानी अमिय कमल कलनं, जिन रंजु सिद्धि गमनं ॥ २ ॥ स न्यानी ममल अमिय वयनं ॥ आचरी ॥ जिन गर्भ उत्तु जिनयं, परिनामु नंत ममलं । तं नंत कम्मु गलनं, सुइ न्यान गर्भ मिलनं ॥ ३ ॥ ॥ स न्यानी.॥ (१६०) Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी स्रोवर सु कमल उवनं, सुइ रमन सिद्धि रमनं । तं गुपित न्यान मिलनं, तं तिविहि कम्मु गलनं ॥ १२ ॥ ॥सन्यानी.॥ तं नंत लष्य लषनं, परिनामु ममल मिलनं । परिनवै गर्भ ग्रहनं, तित्थयर रमन रमनं ॥ १३ ॥ ॥सन्यानी.॥ स्रोवर सु कमल उवनं, षट् दिप्ति ममल भवनं । तिअर्थ अर्थ रहनं, अस्थान थान मिलनं ॥ १४ ॥ ॥सन्यानी.॥ श्री दिप्ति सिद्धि सुरयं, परिनामु नंत ममलं । श्री सांति सुद्ध सुवनं, श्री दिप्ति मुक्ति मिलनं ॥ १५ ॥ ॥सन्यानी.॥ ही दिप्ति हिययार हियं, हिय नंत न्यान रखनं । दरसै सु नंत मइयं, हिय चरन न्यान चरियं ॥ १६ ॥ ॥सन्यानी.॥ ध्रिति धुवं ममल मिलियं, तं लोय लोय अवलं । कीर्ति सुक्रित कम्मु गलनं, तं क्रांति उवन ममलं ॥ १७ ॥ ॥सन्यानी.॥ बुधि बुधि न्यान उवनं, तं नंत नंत गमनं । लषियं अलष्य लषनं, मै ममल न्यान भवनं ॥ १८ ॥ ॥ सन्यानी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी षट् दिप्ति दिप्ति दिपनं, तं नंत नंत गमनं । दसैंति न्यान सयनं, तं नंत नंत ममलं ॥ १९ ॥ ॥सन्यानी.॥ तित्थयर गर्भ उवनं, तं नंत न्यान भवियं । परिनामु नंत लषियं, तं सिद्धि मुक्ति मिलियं ॥ २० ॥ ॥सन्यानी.॥ सिर कमल दिप्ति उवनं, सुइ सहज गम्य गमनं । जोजन सतु सहसं, तं लष्य भाव सुवनं ।। २१ ।। ॥स न्यानी.॥ तं दुग्न दुग्न उवनं, लष्यन लषियं भवनं । बत्तीस लष्य लषियं, संजोय चरन चरियं ॥ २२ ।। ॥सन्यानी.॥ चौसठि चरन चरियं, तित्थयर गर्भ मिलनं । परिनामु नंत ममलं, उव उवन मुक्ति मिलनं ॥ २३ ॥ ॥स न्यानी.॥ तं समय उत्तु उवनं, सम समय साधु मिलनं । तं नंत कम्मु गलनं, अन्मोय मुक्ति मिलनं ॥ २४ ।। ॥स न्यानी.॥ तं समय सुद्ध सजनं, सहकार विंद मिलनं । विन्यान न्यान रवनं, अन्मोय सिद्धि गमनं ॥ २५ ॥ ॥ सन्यानी.॥ (१६१) Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१०) पात्र तीन दान चार रासौ गाथा गाथा १५५ से १८४ तक (विषय : पात्र तीन, दान चार, पात्र की विशेषता) तं पय उवन तं उवन मउ, उववंन न्यान सुई उत्तु । उत्तम अवहि उवन पऊ, मधिम सुइ न्यान संजुत्तु ॥ १ ॥ जं जहिन पत्तु उववंन पउ, मति समय संजुत्तु स उत्तु । सहयार समय सुइ उत्तियउ, हिय उवन सब्द दर्सतु ॥ २ ॥ उवनु उवनु जु देइ पउ, हिययार उवन हिय जुत्तु । सहयार उवनु सहाउ लई, हिय उवनु दिप्ति दर्सतु ॥ ३ ॥ उवन दिप्ति सुइ न्यान पउ, तं दिप्ति दिस्टि दसँतु । हिययार दिप्ति तं दिस्टि मउ, हिय उवन उवन जिन उत्तु ॥ ४ ॥ उव उवन दिप्ति सहयार सुड़, सहयार दिस्टि दर्सतु । सहयार सहाउ उववंन रुई, सहयार पंथु जिन उत्तु ॥ ५ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, उत्पन्न उवनु दर्सतु । जन कल मन रंज विलंतु सुइ, दर्सन मोहंध विमुक्कु ॥ ६ ॥ जिन वयनं जिन दर्स मउ, जिन समय सहाउ संजुत्तु । जिन अवयास अन्मोय मउ, जिन षिपक मुक्ति दर्सतु ॥ ७ ॥ मधिम पत्तु हिययार मउ, सहयार उवनु दर्सतु । सहइ संजुत्तउ ममल पउ, पर्जय भय सल्य विलंतु ॥ ८ ॥ हिययार दिप्ति सहयार रई, तं दिस्टि इस्टि दसैंतु । उव उवन दिप्ति सुइ दिप्ति मउ, सहयार उवनु जिन उत्तु ॥ ९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सहयार दिप्ति हिय उवन पउ, तं दिस्टि इस्टि सुइ संतु । हिययार उवंनु सुभाउ लई, पर पर्जय विलयंतु ॥ १० ॥ जहिन पत्तु उववंन मउ, हिय दिप्ति दिस्टि दर्सतु । उवन हिययार सु समय पउ, तं नंत कम्मु विलयंतु ॥ ११ ॥ जहिन सुभाव स उत्त मउ, पत्त दत्त जिन उत्तु । सुभाइ हिययार उन पउ, दान भाउ जिन उत्तु ॥ १२ ॥ दानं चौविहि उत्तु जिनु, न्यान अहार संजुत्तु । भेषज दानु जु उत्तु जिनु, अभयं भय विलयंतु ॥ १३ ॥ उत्तम पत्तु विसेषु मुनि, उववंनु देइ सुइ नंतु । पर पर्जय विलयंतु सुइ, उववंनु मुक्ति दर्सतु ॥ १४ ॥ जहिन ग्रहन जं न्यान श्री, दान समत्थु संजुत्तु । उववनु पत्तु जं विहसमउ, उवन दिस्टि विगसंतु ॥ १५ ॥ नंद भाउ जो पय पयडै, पद पषलन जिन उत्तु । आहार दानु सुइ नंद मउ, उववंन पत्तु संजुत्तु ॥ १६ ॥ उवन दिस्टि तं दिप्ति मउ, तागा ममल सुभाउ | उत्पन्न भाउ सुइ रमन पउ, उत्पन्न मुक्ति दर्सतु ॥ १७ ॥ मधिम पत्तु जिन उत्तु सुइ, हिययार दिप्ति दिस्टंतु । उवनु देइ सुइ न्यान पउ, पर्जय उववंनु विलंतु ॥ १८ ॥ मधिम पत्तु सु दान मउ, आहार दान जिन उत्तु । पत्त दान सुइ सुष्य मउ, सुइ सूषिम कम्मु विलंतु ॥ १९ ॥ जहिन पत्तु जिन उत्तियउ, दत्त पत्त विन्यानु । विन्यान विंद सुइ सयन पउ, पत्त दत्तु सुइ उत्तु ॥ २० ॥ (१६२) Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी दत्तु भाउ सुइ नंत समु, दिप्ति दिस्टि दर्सतु । दिस्टि मिलै दिप्तिहि सहिउ, दिस्टि विगस विगसंतु ॥ २१ ॥ दिप्ति दिस्टि तं सुइ रमनु, सब्द उत्तु जिन उत्तु । पय आचरनु सुभाउ मुनि, आहार विन्यान संजुत्तु ॥ २२ ॥ भेषज दानु जु भय रहिउ, बाधा विलय सुभाउ । संसार सरीर सु भोउ मउ, उवभोउ बाध विलयंतु ॥ २३ ॥ अभय दानु तं भय रहिउ, भय विनासु तं भव्वु । अभय रमनु भय विलय सुइ, अभय भय पर्जय विलयंतु ॥ २४ ॥ दत्तु देइ तं ममल पउ, ममल उत्तु जिन उत्तु । पत्त सुभाउ जिन समय मउ, सहयार सिद्धि संपत्तु ॥ २५ ॥ विगसिय जिन पय विहस मउ, पयाचरनु पद विंद । आहारह सुइ मुक्ति दलु, भेषज अव्वावाहु ॥ २६ ॥ अभय दानु सुइ अभय पउ, अभय मुक्ति दर्सतु । पत्त दिस्टि सुइ दिप्ति मउ, सहयार सिद्धि संपत्तु ॥ २७ ॥ पत्तु स उत्तउ विक्त रुइ, न्यान विन्यान स उत्तु ।। विक्त रूव सहकार जिनु, सह समय सिद्धि संपत्तु ॥ २८ ॥ सक्ति रूव अपत्तु मुनि, सहयारह नहु जुत्तु । धुव अधुव सुइ उत्तु समु, सिहु समय नरय संपत्तु ॥ २९ ॥ पत्तु विक्त पर्जय गलिउ, भय सल्य संक विलयतु । पत्तह दत्त सुभाउ मुनि, सह समय सिद्धि संपत्तु ।। ३० ॥ (११)चेतक हियरा फूलना गाथा १८५ से १९३ तक (विषय : लक्षण परिणाम, अर्थ पय) उर्वकार उन उन पउ, सुइ नंद अनंदे । विन्यान विंद रस रमनु है, जिन जिनय जिनंदे ॥ जिन जिनियौ कम्मु अनंतु है, जिन रमन सनंदे । सुइ चेयन नंद सनंदु, कमल जिन सहज सनंदे ॥ १ ॥ सो न्यानी तू चाहिलै, हो चेतक हियरा । विन्यान विंद रस रमनु, विपक जिन वेदक हियरा ॥ षट् रमन कमल रस रमनु है, हो चेतक हियरा । तं अमिय रमनु विष गलनु, सुयं जिन वेदक हियरा ॥ भय षिपनिक भवु स उत्तु है, हो चेतक हियरा । लषिमेव रमन परमत्थु, जिनय जिन वेदक हियरा ।। वैदिप्ति हियार रस रमन पउ, हो चेतक हियरा । सिह समय सिद्धि संपत्तु, ममल रस वेदक हियरा ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उत्पन्न कमल जिन उत्तु है, उव उवन स उत्तं । परिनामु नंतानंत सुयं सुइ, पिपक स उत्तं ॥ तं कमल कंद जिन उत्तु है, जिन जिनय जिनंदं । तं विंद रमनु विन्यान चरनु, सुइ सहज जिनंदं ॥ ३ ॥ ॥सोन्यानी.॥ (१६३) Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्मोय अर्थ सुइ अर्थ जिनु, सुइ कमल सनंदे । तं षिपियो नंतानंत पयडि, जिन परम जिनंदे ॥ ८ ॥ ॥सोन्यानी.॥ सुइ षिपक भाउ सुइ उत्तु जिनु, सुइ जिनय जिनंदे । तं मुक्ति रमनि सिद्धि रत्तु, परम जिन परम सनंदे ॥ तं तरन विवान सहाउ मउ, सम समय सनंदे । सिहु समय सिद्धि संपत्तु, जिनय जिन सहज जिनंदे ॥ ९ ॥ ॥सोन्यानी.॥ श्री ममल पाहुइ जी विन्यान न्यान रस रमनु जिनु, सुइ परम सनंदे । तं विंद रमनु विन्यान गमनु, सुइ सहज सविंदे ॥ सुइ अर्क सु अर्क सु अर्क पउ, सुइ लषिय सलष्ये । सर्वार्थ सिद्धि सुइ समय मउ, सुइ परम परिष्ये ॥ ४ ॥ ॥सो न्यानी.॥ सो अर्थति अर्थ समर्थ पउ, सम अर्थ सु भवने । सम समय संमत्तु जिनुत्तु, जिनय जिन न्यान श्रवने ।। सहयार अर्थ जिन उत्तु सुइ, अवयास अनंते । तं नंतानंतु अनंतु, अलष जिन जिनय जिनुत्ते ॥ ५ ॥ ॥सो न्यानी.॥ अन्मोय अर्थ सुइ ममल पउ, सुइ रमन संजोए । तं षिपियौ नंतानंतु, जिनय जिन न्यान अन्मोए । सुइ रमन सुयं सुइ रमन पउ, सुइ सहज जिनंदे । तं विंद कमल रस रमन, परम जिन परम सनंदे ॥ ६ ॥ ॥सो न्यानी.॥ कमल सुभाव जिनुत्तु सुइ, जिन जिनय स उत्ते । सुइ नंतानंतु जिनुत्तु है, कलि कमल पयत्ते ॥ जिन उत्तु जिनुत्तु सु समय मउ, सुइ परिनै उत्ते । सुइ साहिय नंतानंत विसेष, परम जिनु परम पयत्ते ॥ ७ ॥ ॥सो न्यानी.॥ सुइ समय सहाउ जिनुत्तु जिनु, सहयार जिनुत्ते । अवयासह नंतानंतु है, तं कमल पयत्ते ॥ (१२) दात्र पात्र विसेष फूलना गाथा १९४ से २२० तक (विषय : ३ पात्र, ४ दान का आध्यात्मिक विवेचन) न्यानी न्यान विन्यान मुनी, न्यानी न्यान स उत्तुरिना । न्यान सहावे दर्सियउ, वीरज अप्प सहाउरिना ॥ १ ॥ सूष्यम सहियो सो मुनहु, सूष्यम ममल सहाउरिना । नंत चतुस्टै न्यान मउ, सिद्ध सहाउ स उत्तुरिना ॥ २ ॥ पत्तह दत्त विसेष मुनी, दानह नंत विसेषुरिना । पत्त जु उत्तउ जिनवरहं, दत्तु जु दान संजुत्तुरिना ॥ ३ ॥ पत्तह दत्तु विसेष मुनी, रयनं रयन सरूवरिना । न्यान विन्यान सु समय मउ, पत्त दत्तु जिन उत्तुरिना ॥ ४ ॥ कमल सहावे पत्तु जई, सिद्ध सरूव स उत्तुरिना । कारन कार्जह कमल रुई, दत्तु सहाउ स उत्तुरिना ॥ ५ ॥ (१६४ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी रमियौ न्यान सहाउ लई, जिनियो कम्मु अनंतुरिना । रमने रमियो ममल पउ, तिविहि कम्मु विलयंतुरिना ॥ ६ ॥ लंकृत सहियो पत्तु जई, लीन सहाव सु दत्तुरिना । सुद्धह सुद्ध सहाउ लई, मुक्ति पंथु दरसंतुरिना ॥ ७ ॥ जइ विन्यान संजुत्तु सुइ, ममल सहाउ सु पत्तुरिना । परिनै सहियो दत्तु सुई, परमानह केवलु दिस्टिरिना ॥ ८ ॥ मै मूर्ति पत्तु जु न्यान मउ, समय सहाउ सु दत्तुरिना । नंतानंत सु पत्तु मुनी, सहकारह नंत सु दत्तुरिना ॥ ९ ॥ नाना प्रकार न्यान सहियो, पत्तु जिनेन्दह उत्तुरिना । दत्तु सहाव विन्यान मउ, अवयासह नंतानंतुरिना ॥ १० ॥ दत्तह पत्तु विसेष मुनी, अन्मोयह संजुत्तुरिना । न्यान विन्यानह परम पउ, सिद्धह मुक्ति सुभाउरिना ॥ ११ ॥ अन्मोयह नंत विसेष मुनी, पत्त दत्तु सम भाउरिना । दिस्टि दिप्ति अन्मोय मउ, नंद अनंद संजुत्तुरिना ॥ १२ ॥ सयनासन सम भाउ समु, सहजानंद संजुत्तु रिना ।। न्यानी न्यान अन्मोय मऊ, ममल सु दर्सन दिस्टिरिना ॥ १३ ॥ आहार न्यान सो ममल पऊ, सहकारह संजुत्तुरिना । विजन विन्यानह सहियौ, दुद्धर धरिउ सहाउरिना ॥ १४ ॥ हृदयह दर्सिउ ममल पऊ, ममल न्यान सहकारुरिना । पत्तह दत्तु विसेषु मुनि, न्यानी न्यान अन्मोयरिना ॥ १५ ॥ सिद्ध सरूवे पत्त मुनी, न्यान सहावे सु दत्तुरिना । सिद्ध सरूवे सिद्ध पऊ, न्यान सरूवे मुक्तिरिना ॥ १६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्मोयह ससहाउ मुनी, सिद्धह मुक्ति सहाउरिना । कमलह कमल सहाउ लई, अर्थ तिअर्थ संजुत्तुरिना ॥ १७ ॥ पंच न्यान परमिस्टि पउ, न्यान अन्मोय विसेषुरिना । न्यानं न्यान सु विद्धि पउ, ममल न्यान परमथुरिना ॥ १८ ॥ चष्यह मिलियो दिस्टि मऊ, अचष्यह न्यान स उत्तुरिना । अवहि मिलियो गुपित रुई, ममल न्यान सहकारुरिना ॥ १९ ॥ पत्तह दत्तु विसेषु मुनी, लषन रूव संजुत्तुरिना । पत्तु जु उत्तउ जिनवरहं, दत्तु जु दान संजुत्तरिना ॥ २० ॥ पत्तह दत्तु विसेषियऊ, विक्त सरनि संसारुरिना । जनरंजन राग जु विक्त मऊ, कलरंजन दिस्टि गलंतुरिना ॥ २१ ॥ मनरंजन गारव विक्त रुई, दर्सन मोहंध विमुक्कुरिना । न्यानावरनु न पेषियऊ, दर्सन ममल सहाउरिना ॥ २२ ॥ कल लंकृत कम्मु जु सै गलिऊ, गलिय सरनि संसारुरिना । कुन्यान दिस्टि मै सुइ गलियं, तिविहि कम्मु विलयतुरिना ॥ २३ ॥ न्यानी न्यान सहाउ मुनी, न्यान विन्यान संजुत्तरिना । ममल न्यान अन्मोद लई, सरूवे मुक्ति स उत्तुरिना ॥ २४ ॥ न्यान दान विन्यान मऊ, परम न्यान संजुत्तुरिना । आहार न्यान आहार मऊ, ममल भाव संतुस्टुरिना ॥ २५ ॥ भेषज दानु जु जिन कहिउ, बाधा रहित संजुत्तुरिना । अभय दान तं जिन भनिऊ, भय विनासु तं भव्युरिना ॥ २६ ॥ दानु चउ विहि उत्तियउ, ममल भाउ जिन दिस्टुरिना । पत्तह दत्तु सु ममल मुनी, ममल न्यान सिव संतुरिना ॥ २७ ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१३) अन्यानी अन्याब मऊ फूलना गाथा २२१ से २३७ तक (विषय। औकास, अज्ञानी, अज्ञानता, संभाल, चेतावनी) अन्यानी अन्यान मऊ, मिथ्या सल्य संजुत्तुरिना । मुक्ति मुक्ति तू चिंतवही, मूढा मुक्ति न होइरिना ॥ १ ॥ मिथ्या दिस्टिहि पर सहियो, पर पर्जय संजतरिना ।। न्यान उवएसु न संपजइ, अन्यानी नरय निवासुरिना ॥ २ ॥ जनरंजन राग जु समय मऊ, जन उत्तह नंत विसेषरिना ।। आरति ध्यानह तू सहियो, थावर गै विलसंतुरिना ॥ ३ ॥ दर्सन मोहे अंध तु हूँ, अदर्सन समय संजुत्तरिना । न्यान विन्यान विवर्जियऊ, नरय वीय संजुत्तुरिना ॥ ४ ॥ अन्यानी असमय सहियो, समय सहाउ न दिट्टरिना । पर पर्जय दिस्टिहि सहियो, तिरिय गइ संजुत्तुरिना ॥ ५ ॥ पत्त विसेषु न जानियऊ, दत्तह भेउ अभेउरिना । अन्यानी मिथ्या सहियो, नरय तिरिय भमेइरिना ॥ ६ ॥ कलरंजन दोषह सहियो, पर्जय दिस्टि अनंतुरिना । मोह महामय पूरियउ, भव संसार भमंतुरिना ।। ७ ॥ मनरंजन गारव सहियो, श्रुत अन्यानु अनंतुरिना । न्यान सहाउ न चिंतियउ, थावर सरनि संजुत्तुरिना ॥ ८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पर्जय मोहंधह सहियो, अप्प सहाउ न दिटुरिना । समले सहियो नरय गऊ, सरनि अनंत भमंतुरिना ॥ ९ ॥ न्यान सहाउ न दर्सियऊ, अन्यानह सहकारुरिना । परपंचह पर्जय सहियो, दुषु अनंत सहंतु रिना ॥ १० ॥ घाय कम्मु संतुस्ट परा, वय तव क्रिय अन्यानुरिना । गारव सहियौ तव कियऊ, नरयह दषु अनंतरिना ॥ ११ ॥ उवएसिउ अन्यान पऊ, कल लंकृत क्रिया संजुत्तुरिना । न्यान भेउ नवि जानियऊ, अंधु जु कुवा पडतुरिना ॥ १२ ॥ राय सहिउ गारव सहिउ, मिथ्यामय उवएसुरिना । अन्मोय विरोहु न जानियऊ, दुग्गड़ गमनु संजुत्तुरिना ॥ १३ ॥ देउ न दिट्ठउ अमिय मउ, परम देउ नहु भेउरिना । अंधउ बहिरंधउ मुनहु, चौगइ दुषु सहंतुरिना ॥ १४ ॥ गुरु नवि जानिउ गुपित रुई, परम गुरह नहु भेउरिना । मिथ्या मय सल्यह सहियो, दुषु अनंत सहंतुरिना ॥ १५ ॥ धम्मह भेउ न जानियऊ, कम्मह किय उवएसुरिना । अन्यानी वय तव सहियो, भमियौ काल अनंतरिना ॥ १६ ॥ अवकिन मूढा चिंतवही, न्यान सिरी सिहु भेउरिना । न्यान विन्यानह समय पऊ, कम्मु विसेषु गलंतुरिना ॥ १७ ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी (१४) उत्पन्न छंदगाथा गाथा २३८ से २६२ तक (विषय: सक १७) उव उवनह उवन सहाउ लई, उव उवन भाउ संसुद्ध पऊ । उव उवनउ केवल समय पउ, सिहु समय सिद्धि संपत्तऊ ॥ १ ॥ उबंकार जिनुत्तु पऊ, न्यान विन्यान संजुत्तऊ । उव उवन सहावे दर्सियऊ, उव उवन सिद्धि संपत्तऊ ।। २ ॥ उवन उवन जुत्तऊ, उन भय गलंतऊ। उवन न्यान रत्तऊ, उवन मिथ्या चत्तउ ॥ ३ ॥ उवन पंथ दर्सिऊ, उवन मल विलंतऊ । उवन मुक्ति रत्तऊ, सु पर्जय रय गलंतऊ ।। ४ ।। उवन सिद्धि पंथऊ, कम्मान बंध चत्तऊ । उवन विक्त रूवऊ, सो कम्म षिपक सूरऊ ॥ ५ ॥ लष्य लष्यनो, उवन पय वियष्यनो। उवन दिस्टि दर्सिऊ, उवन इस्टि रस्टिऊ ॥ ६ ॥ उवन उत्त जुत्तऊ, ससंक भय विलंतऊ। उवन परिनै जुत्तऊ, उन कम्म चत्तऊ ॥ ७ ॥ समय सत्तऊ, अन्यान विलय रत्तऊ । न्यानेन न्यान जुत्तऊ, अन्यान भय गलंतऊ ॥ ८ ॥ उवन परम इस्टिऊ, सुयं सुभाव दिस्टिऊ । सहयार सुद्ध साहिऊ, अन्मोय इस्टि ग्राहिऊ ॥ ९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उवन रमन रत्तऊ, उवन उत्त जुत्तऊ । उवन वयन रत्तऊ, उवन समय स उत्तऊ ॥ १० ॥ संमत्त सुद्ध साहिऊ, सम समय दिस्टि राहिऊ । सो षिपक भाव पिषकऊ, सो ममल भाव ममल पऊ ।। ११ ।। सो अषय रूव रूवऊ, सो सुरस दिस्टि सूरऊ । उवन नंत दर्सिऊ, उत्पन्न न्यान सरसिऊ ॥ १२ ॥ उवन राग पंडनो, जनरंजन भय विहण्डनो । कलरंजन दोष गलि गऊ, सु विंद रमन उर्वन पऊ ॥ १३ ॥ मोहंध दर्स अदर्सिऊ, उत्पन्न दर्स दर्स मऊ । निसंक रूव रयन पऊ, ससंक भय विलंतऊ ॥ १४ ॥ न्यानेन न्यान समय मऊ, आवर्न न्यान विलय गऊ । सुदर्सन नंत दर्सिऊ, आवर्न दर्स गलंतऊ ॥ १५ ॥ उत्पन्न मोह उवन पऊ, सो मोह मय विलंतऊ । विन्यान न्यान समय पऊ, अंतर सुभाउ विलय गऊ ॥ १६ ॥ सो न्यान वंक अर्वकऊ, अन्यान वंक सुवंकऊ । सो सरनि भय विरत्तऊ, सो मुक्ति पंथ रत्तऊ ॥ १७ ॥ अवयास यास जुत्तऊ, आसा सुभाव विरत्तऊ। अन्मोय न्यान सत्तऊ, अस्नेह भय विलंतऊ ॥ १८ ॥ सो राग सर्म चत्तऊ, सो लाज भय विलंतऊ । सो अलब्धि लब्धि जुत्तऊ, सो लब्धि सुह विरत्तऊ ॥ १९ ॥ सो अभय भय गलंतऊ, सो भय ससंक विलंतऊ । सो न्यान ग्राह वजऊ, सो गारव भय गलंतऊ ॥ २० ॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी सो न्यान रमन सूरऊ, सो आलस सुह गलंतऊ । सो परम तत्तु दर्सिऊ, परपंच भय विनासिऊ ॥ २१ ॥ विन्यान न्यान विभ्रऊ, विभ्रम सुरय विलंतऊ । उवन विंद विंदऊ, उवन नंद नंदिऊ ॥ २२ ॥ सो नंद नंद जुत्तऊ, सो चेयननंद संजुत्तऊ। तं सहजनंद सहज मऊ, सो परमनंद परम पऊ ॥ २३ ॥ उन भाव लषिऊ, सो रमन रय परिषिऊ । सो रमन मुक्ति रमन पऊ, सो रमन रयन सिद्ध पऊ ॥ २४ ॥ - घत्ताउव उवन सहाउ सु उवन पऊ, उव उवन समय संजुत्तऊ । सु तरन विवान सु समय मऊ, सिहु समय सिद्धि संपत्तऊ ॥ २५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मन भय उवन उपाइ लई, अदिस्टि इस्ट भय उत्तु । भयभीउ विपर्जय दिस्टि रमु, न्यान सहाइ विलंतु ॥ ५ ॥ मन भय उवन हिययार मउ, सहयार गुपित भय उत्तु । भय सहाइ ससंक पउ, निसंक न्यान विलयंतु ॥ ६ ॥ मन सहाइ भय पर्जय रऊ, अभय लब्धि नौ उत्तु । अस्नेहं भय लाज रऊ, न्यान लब्धि विलयंतु ॥ ७ ॥ दिस्टिहि भय संजुत्तु सुइ, पर पर्जय रत्तउ जुत्तु । पर सहाव पर्जय रमन, न्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ८ ॥ पर दिस्टिहि पर्जय सहिउ, लोभह भयभीउ संजुत्तु । गारव भय गुरु लघु दिस्टियऊ, न्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ९ ॥ जनरंजन रागु जु दिस्टि मउ, कलरंजन दोस भय जुत्तु । दर्सन मोहे भय सहिऊ, न्यान दर्स विलयंतु ॥ १० ॥ दिस्टि दर्स भयभीउ सुइ, पर्जय दिस्टि रमंतु । परह दिस्टि भयभीउ सुइ, तं न्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ११ ॥ उत्पन्न दिस्टि भयभीउ सुई, हिययार अस्थान भय उत्तु । गुपित दिस्टिहि भय सहिउ, निसल्य न्यान विलयंतु ॥ १२ ॥ दिस्टि भयह सुइ झड़प मउ, दिस्टि न सहै ससंकु । भयभीउवि संसय सहिउ, चौ गइ दुष्य सहंतु ॥ १३ ॥ भय उवन दिस्टि सुइ झड़प मउ, हिय गुहिज लष्य अलष्य । भयह सहावे भमन पउ, अभय न्यान विलयंतु ॥ १४ ॥ कमलह भय संजुत्तु मउ, वयन असुद्ध चवंतु । विवर सहाव जु भय सहिउ, न्यान सहाइ गलंतु ॥ १५ ॥ भयभीउ सुइ, तं न्यान अस्थान भय उन (११) वर्सन चौविहि माथा गाथा २६३ से २८८ तक (विषय भय १, सक १७) दर्सन चौविहि उत्तियउ, चष्य अचष्य संजुत्तु । अवहिहि केवल ममल पउ, भय विनासु तं भव्वु ॥ १ ॥ उवन सु मन भय उत्तियउ, उववन्न न्यान विलयतु । उवन सहावे ममल पउ, भय गलिय सुयं सुइ भव्वु ॥ २ ॥ मन विसेषु सुइ नंत भउ, पर पर्जय संजुत्तु । पर्जय रत्तउ मूढ मई, उववंन न्यान विलयंतु ॥ ३ ॥ मन भय संक ससल्य मउ, संकउ सर पसर संजुत्तु । सरनि सहावे सरि गयऊ, उववन्न न्यान विलयंतु ॥ ४ ॥ (१६८) Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी विवरह वयनह भय सहिउ, भयभीउ वयन सुइ उत्तु । जीवह गुन भूली जी भुली, न्यान सहाइ विलंतु ।। १६ ।। भयभीउ विपर्जय सहिउ श्रुत अनंत अनिस्ट | अनिस्ट सहावे भय सहिउ तव क्रिया नरय संजुत्तु ।। १७ ।। वय तव श्रुत अन्यान पउ, विवरह मुंह बोलंतु । भयभीउ विपर्जय सहिउ, भव संसार भमंतु ।। १८ ।। इस्ट सहाउ न उपजई, अनिस्ट इस्ट दरसंतु । संक कंप्य सुइ मूढ मई, भय सहिय नरय संपत्तु ॥ १९ ॥ कमल सुभाउ स उत्तु जिनु, भय सल्य संक विलयंतु । पर्जय विलय सु सरनि विली, न्यान रमन रस उत्तु ॥ २० ॥ भय षिपनिकु तं अमिय मउ, ममल रमन रस उत्तु । कमल सहावे न्यान पउ विन्यान विंद दरसंतु ॥ २१ ॥ कमलह कलियाँ न्यान पउ, सक सल्य पर्जय विलयंतु । पर्जय विलय सु राग मउ, कमल जिनुत्तु संजुत्तु ॥ २२ ॥ मन भय दिस्टि सु झड़प भउ, विवर मुषं भय उत्तु । जीभ जी भुली भय भमन मउ, सुइ न्यान कमल विलयं ॥ २३ ॥ उवन हिययार सहयार भउ, संक सल्य पर्जय रय उत्तु । भौ भय विलय सुन्यान पउ, न्यान कमल विलयं ॥ २४ ॥ कमल कलिय जिन उत्तु पउ न्यान विन्यान संजुत्तु । भय षिपनि सुइ अमिय रसं, उव उवन विंद सम उत्तु ॥ २५ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, उवन उवन संजुत्तु । उवन समय सुइ उवन पउ, तं विंद सुन्न सम उत्तु ।। २६ । १६९ (१६) कमल छंद गाथा गाथा २८९ से ३०२ तक (विषय अर्थ पय, कमल की महिमा) कमलं कमल विसेषु मुनी, कमल भाव संसुद्ध पऊ । कमलह केवल उत्तु समु, मुक्ति पंथ सिव सुष्य मऊ ॥ १ ॥ कमलं उवनं कमलं सुवनं, कमलं अषयं कमलं सुरयं । कमलं विन्यान पयोहरयं, कमलं पय परम पदं ममलं ॥ कमलं पय अर्थ समुच्चियऊ, २ ॥ कमलं सम भाउ परिषियऊ । कमलं सुइ सयन स उत्तियऊ, अर्थह जिन अर्थ तिअर्थ पऊ ॥ ३ ॥ सम अर्थ सुयं परमर्थ पऊ, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलं सम समय संजुत्तियऊ । कमलह सहकार अर्थ ममलो, कल लंकृत कम्मु सुयं विलऊ ॥ कमलह अवयास स उत्तियऊ, अवयासह नंतानंत कमलह कम्मानु बंध विलऊ, कमलह उववंनु वि रयन पऊ, पऊ । कमलह सिव सासय सुष पऊ ॥ कमलह कम्मान सौ गलि गयऊ । ४ ॥ ५ ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी कमलह जिन उत्तउ कमलह परिनवै सु परम पऊ, परमानह कमलह लंकृत तं लीन पऊ, ममल पऊ, कमलह भय सल्य संक विलऊ || कमलह सम समय सु दिस्टि मऊ, कमलह विन्यान न्यान समऊ ॥ कल लंकृत कम्मु नंत विलऊ, कमलह कमलह सहकार सु नंति पऊ । कमलह कलियाँ सुइ न्यान पऊ, कमलह नंतानंतियऊ । कमलह परम पुनंतु ममलु ॥ नाना प्रकार अवयास जिनुत्तियऊ, अन्मोय विरोह कमलह कम्मानु न उत्तियऊ, विन्यान कमलह उववन्न संजुत्तियऊ, कमलह मऊ । विलंतियऊ ॥ कमलह पर्जाव विलंतियऊ । सुइ नंतानंत ६ ॥ ७ ॥ कमलह परु सयन न उत्तियऊ, कमलह परिनामु जिनुत्तियऊ ॥ १० ॥ कमलह हिययार स उत्तियऊ, पर्जाव विरंतियऊ । ८ ॥ ९ ॥ पऊ ।। ११ ।। १७० कमलह अन्मोय न्यान ममलु, कमलह पर्जाव सुयं विलऊ । कमलह सुइ सहजानंद मऊ, कमलह जनरंजन सुयं विलऊ ॥ १२ ॥ कमलह अन्मोय सु सिद्धि पऊ, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलह कम्मानु बंध षिपिऊ । कमलह सुइ मुक्ति सु परम पऊ, भय पिषिय भव्य सुई सिद्धि गऊ ॥ १३ ॥ - घत्ता - इय कमलेन सहाओ, परम भाउ सुड़ परम मुनी । तं परमानन्द सहाओ, ममलु मुक्ति संजुत्तु मुनी ।। १४ ।। (१७) मिरा छन्द गाथा गाथा ३०३ से ३१७ तक (विषय सक १७, जिह्वा संयम, गिरा अर्थात् वाणी की महिमा) कमल गिरा स उत्तु जिनु, न्यानेन न्यान सम उत्तियउ । भय विनासु भवुजु मुनहु, ममल न्यान संजुत्तियउ ॥ १ ॥ सु जिनह स उत्तउ न्यान पयत्तु, सु न्यान विन्यानह ममलु मुनंतु । सु भय षिपनिक है भव्वु स उत्तु, सु वानि विसेषह न्यानु कुनंतु ॥ २ ॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सु न्यान विन्यानह भेउ मुनंतु, सु जिह्वा स्वाद अनंतु विलंतु । सु विषय सुभाउ पर्जाउ गलंतु, सु न्यान सहावह तत्तु मुनंतु ॥ ३ ॥ सु जिह्वा ममल संजुत्तु थुनंतु, सु ममल सहाउ अनंतु गलंतु । सु मिथ्या ससंक सल्य विलयंतु, सु न्यान सहावह कम्मु गलंतु ॥ ४ ॥ जिह्वा पर भाउ न उत्तु न जुत्तु, जिह्वा परजावह भाव विलंतु । जिह्वा कुन्यानह देस न उत्तु, जिह्वा संसारह सरनि विरत्तु ॥ ५ ॥ जिह्वा संदर्सन मोह विमुक्कु, जनरंजन राग दोसु विलयंतु । जिह्वा कलरंजन भाव विमुक्कु, जिह्वा मनरंजन गार गलंतु ॥ ६ ॥ जिह्वा आवर्नु न न्यान चवंतु, दर्सन आवर्नु न भाउ कलंतु । मोहन आवर्नु न उवनु गलंतु, जिह्वा न्यानह अंतरु न चवंतु ॥ ७ ॥ आसा स भाउ न लिंतु थुनंतु, अस्नेह दिस्टि नहु दिति मुनंतु । लाजह भयभीउ न संक करंतु, लोभय भय नंतानंतु गलंतु ॥ ८ ॥ गारव गयंद विहडंति सीह, आलस सुइ गलिय वयन समूहु । परपंच पर्जाउ न दिस्टियऊ, विभ्रम भयभीउ विलंतियऊ ॥ ९ ॥ जिह्वा भय षिपिय कम्मु विलयं, पर पर्जय नंतनंत गलियं । संक रहिय निसंक सल्य विलयं, मय मोह प्रमानु न उत्तु सुयं ॥ १० ॥ जिह्वा परमप्पु प्रमान समो, सुइ नंतानंत सु न्यान गमो । जिह्वा पद अर्थह भेउ मुनंतु, अर्थह तिअर्थ परमर्थ मुनन्तु ॥ ११ ॥ जिह्वा सहकार सहाव संजुत्तु, उववन्न अनंतु सु देइ पउत्तु । जिह्वा अवयास अर्थ ममलो, ___जिह्वा परमत्थु प्रमान सवनो ॥ १२ ॥ जिह्वा सम समय सु दिस्टि ममलो, भय षिपनिक रूव उत्तु ममलो । जिह्वा अन्मोय न्यान सहजं, अन्मोयह षिपिय कम्मु तिविहं ॥ १३ ॥ (१७१) Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिह्वा परिनामु नंत विरयं, नाना प्रकार न्यान सुरयं । जिह्वा विन्यान अनंतु ममलो, भय षिपिय भव्वु तं मुक्ति गऊ ॥ १४ ॥ -घत्ताभय षिपिय अभय सुभाउ लइ, न्यान मई अनुरत्तऊ । तं तिविहि कम्मु विलयंतु सुइ, ममल सिद्धि संपत्तऊ ॥ १५ ॥ (१८) विदरऊ फूलबा गाथा ३१८ से ३५२ तक (विषयासक १७, विद स्वभाव की महिमा, निर्विकल्प समाधि, भाव मोक्ष) जिन जिनयति जिनय जिनेंद पऊ । जिन जिनयति नंद अनंद परम जिन विंदरऊ ॥ १ ॥ विन्यान विंद रस रमनु अमिय रस विष विलऊ । भय षिपनिक है भव्वु कमल कलि मुक्ति गऊ ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जिन जिनवर उत्तउ जिनय पऊ । जिन जिनियौ कम्मु अनंतु जिनय जिन विंदरऊ ॥ ३ ॥ ॥ विन्यान.॥ जं कम्मु अनंतु अनंतु भउ । । तं न्यान अन्मोय विलंतु सहज जिन विंदरऊ ॥ ४ ॥ ॥ विन्यान.॥ जं कम्मु उवन उवंन मऊ । उववन्न न्यान विलयंतु परम जिन विंदरऊ ॥ ५ ॥ ॥ विन्यान.॥ जं चरनह चरिय अनिस्ट मऊ । तं न्यान चरन विलयंतु नंद जिन विंदरऊ ॥ ६ ॥ ॥विन्यान.॥ जं वय तव क्रिया अनिस्ट मऊ । तं इस्ट दर्स विलयंतु चेय जिन विदरऊ ॥ ७ ॥ ॥ विन्यान.॥ जनरंजन राग जु रमिय पऊ । जिन रंजन न्यान विलंतु समय जिन विंदरऊ ॥ ८ ॥ ॥ विन्यान.॥ कलरंजन कम्मु स उत्तु पऊ । तं कमल रमन विलयंतु सुयं जिन विंदरऊ ॥ ९ ॥ ॥ विन्यान.॥ मनरंजन गारव कम्मु पऊ। मनरंजन न्यान विलंतु षिपक जिन विंदरऊ ॥ १० ॥ ॥विन्यान.॥ जं दर्सन मोहे अंध पऊ । सुइ परम इस्ट विलयंतु ममल जिन विंदरऊ ॥ ११ ॥ ॥ विन्यान.॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जं न्यान आवर्नह कम्म रऊ। तं न्यान अन्मोय विलंतु मुक्ति जिन विंदरऊ ॥ १२ ॥ ॥विन्यान.॥ जं दर्सन आवर्न अदर्स मऊ । तं दर्सन दिस्टि गलंतु अषय जिन विंदरऊ ॥ १३ ॥ ॥विन्यान.॥ मानापमान आवर्न मऊ। विन्यान अन्मोय विलंतु जिनय जिन विंदरऊ ॥ १४ ॥ ॥विन्यान.॥ जं न्यानह अंतरु समय मऊ । तं समय विन्यान विलंतु कमल जिन विंदरऊ ॥ १५ ॥ ॥ विन्यान.॥ जं न्यानह अंतरु अन्यान मऊ । तं न्यान अन्मोय गलंतु सिद्ध जिन विंदरऊ ॥ १६ ॥ ॥ विन्यान.॥ जं न्यान विओय अनिस्ट पऊ । तं इस्ट अन्मोय गलंतु अषय जिन विंदरऊ ॥ १७ ॥ ॥विन्यान.॥ जं असमय सहियौ कम्म पऊ। तं समय विन्यान विलंतु अमिय जिन विंदरऊ ॥ १८ ॥ ॥विन्यान.॥ जं दिस्टि अनंतु जु कम्मु पऊ । तं न्यान दिस्टि विलयंतु सुयं जिन विंदरऊ ॥ १९ ॥ ॥विन्यान.॥ जं सरह सहाउ सु कम्मु पऊ । तं सरह विन्यान विलंतु अगम जिन विंदरऊ ।। २० ।। ॥ विन्यान.॥ जं असब्द स उत्तउ कम्मु पऊ । विन्यान सब्द विलयंतु नंत जिन विंदरऊ ॥ २१ ॥ ॥विन्यान.॥ अदिस्टि उर्वनु जु कम्मु रऊ। अदिस्टि इस्टि विलयंतु अभय जिन विंदरऊ ॥ २२ ।। ॥ विन्यान.॥ जं गुपित कम्मु सुइ नंत पऊ। अन्मोय न्यान विलयंतु निलय जिन विंदरऊ ॥ २३ ॥ ॥विन्यान.॥ सक सल्य संक भय कम्म रऊ । सक गलिय न्यान विलयंतु सुद्ध जिन विंदरऊ ॥ २४ ॥ ॥ विन्यान.॥ जं कम्म विसेषु अनंत रुई । अन्मोय न्यान विलयंतु ममल जिन विंदरऊ ॥ २५ ॥ ॥ विन्यान.॥ (१७३) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उववन्न हिययार सहयार मऊ । जिनु नंत चतुस्टय संजुत्तु परम जिन विंदरऊ ।। ३३ ।। ॥विन्यान.॥ जिनु न्यान विन्यान सु समय मऊ । सिह समय सिद्धि संपत्तु समय जिन विंदरऊ ॥ ३४ ॥ ॥विन्यान.॥ जिन तारन तरन विवान मऊ । सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु सिद्ध जिन विंदरऊ ।। ३५ ॥ ॥ विन्यान.॥ श्री ममल पाहुइ जी जं जिनवर उत्तउ अमिय जिनु । भय सल्य संक विलयंतु नंद जिन विंदरऊ ।। २६ ॥ ॥ विन्यान.॥ जिन नंद नंद आनंद मऊ । जिन सहजनंद ससहाउ जिनय जिन विंदरऊ ॥ २७ ॥ ॥ विन्यान.॥ जिन परमनंद परमप्प पऊ । जिन परम इस्टि दर्सतु इस्ट जिन विंदरऊ ॥ २८ ॥ ॥ विन्यान.॥ जिन इस्ट सु इस्ट सु इस्ट पऊ। उववन्न इस्ट दर्संतु सुयं जिन विंदरऊ ॥ २९ ॥ ॥ विन्यान.॥ जिन गम्य अगम्य सु नंत पऊ।। जिन नंत नंत दर्संतु रयन जिन विंदरऊ ॥ ३० ॥ ॥ विन्यान.॥ जिन अर्थति अर्थह जिनय पऊ । जिन उवनउ नंतानंतु उवन जिन विंदरऊ ॥ ३१ ॥ ॥ विन्यान.॥ जिन उवन हियार सु जिनय पऊ । सहयार न्यान सुइ उत्तु सुयं जिन विदरऊ ॥ ३२ ॥ ॥ विन्यान.॥ (१९) चषु दर्सन गाथा गाथा ३५३ से ३७८ तक (विषय : चक्षु दर्शन की महिमा) भय विनासु भवियनं, न्यानी अन्मोय नंद आनंदं । अन्यान मिच्छ षिपनं, अनिस्ट अन्मोय विरय रूवेन ॥ १ ॥ चयं दर्सन उत्तं, चेतन सहकार कम्म सड़ षिपनं । भय ससंक षिपिऊनं, षिपिऊ संसार सरनि मोहंधं ॥ २ ॥ मल सुभाव संषिपनं, ममलं दिस्टि च कम्म षिपिऊनं । भय षिपनिक सहकारं, ममल सहावेन ममलन्यानस्य ॥ ३ ॥ ममलं ममल उवन्नं, भय षिपिय ससंक विलयंति । कम्म उवन्न विलयं, भय गलियं ममल न्यान सहकारं ॥ ४ ॥ (१७४) Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी दिस्टं च ममल दिस्टं, दिस्टं रिस्टं च रिस्टि संजुत्तं । ममल सहावे सुद्धं, भय षिपियं ससंक विलयंति ॥ चष्यं दर्सन उत्तं, दर्सन दर्सेइ लोय अवलोयं । भौहं च भय विनस्टं, दर्सन चष्यं च ममल रूवेन ॥ चष्यं दर्सन सहियं, दर्सइ न्यानं च ममल ससहावं । दसैँति इस्ट इस्टं, भय रहियं ससंक विलयंति ॥ चष्यं च सुद्ध दिस्टं, मल मुक्कं मिथ्य सल्य गलियं च । ममलं ममल सहावं, भय षिपियं ससंक विलयंति ॥ दर्सन चष्य विसेषं, विन्यान न्यान दिस्टि संजोयं । इस्टं च ईर्ज भावं, षिपक सहावेन ममल रूवेन ॥ चष्यं चेयन रूवं, तारन तरनं च ममल सहकारं । ८ ९ भय विनस्ट संजोयं, विलयं कम्मान तिविहि जोएन ॥ १० ॥ चष्यं चरंति चरनं, चरनं आचरन ममल दिस्टं च । मलं सहाव न दिस्टं, भय रहियं अभयदान सहकारं ॥ ११ ॥ चष्यं अरूव रूवं सुर विंजन सरूव संजोयं । ससंक सल्य रहियं, भय षिपियं ममल न्यान जोइत्थं ॥ १२ ॥ चष्यं षिपनिक रूवं, षिपिऊ संसार सरनि मोहंधं । षिपिऊ समल उवन्नं, भय षिपियं ममल न्यान सहकारं ।। १३ ॥ चष्यं दर्सन सुद्धं, सुद्धं ससहाव असुद्ध गलियं च । अन्यान मिच्छ गलियं, गलियं अन्यान सल्य गलियं च ॥ १४ ॥ चष्यं दिस्टति इस्टं, अनिस्ट सहकार सल्य विलयंति । भय षिपनिक ससहावं, ममल सहावेन कम्म षिपनं च ॥ १५ ॥ ५ 11 ६ ॥ ७ 11 11 || १७५ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चष्यं ममल सु दिस्टि, इस्टी संजोय विओय अनिस्टी । भय विनासु भवियनं, ममल सुभावेन कम्म विलयंति ।। १६ ।। चष्यं रमन सहावं, रमनं रसियं च ममल सहकारं । भय षिपनिक ससहावं, षिपिउ कम्मान तिविहि जोएन । १७ ॥ षिपिऊ नंत विसेषं, भय षिपियं ससंक विलयंति । विलयं कम्म उवन्नं, ममल सहावेन कम्म षिपनं च ॥ १८ ॥ षिपियं दिस्टि सहावं, दिस्टि सहकार इस्ट संजोयं । इस्टं च इस्ट रूवं, अनिस्ट संसार सरनि विलयंति ॥ १९ ॥ चष्यं अनंत दिस्टं, मल मुक्कं सल्य संक विलयंति । भय विनस्ट संजोयं, ममलं दिस्टि च कम्म षिपनं च ॥ २० ॥ चष्यं दिस्टि सु दिस्टि, पर्जय विलयंति नंतनंताई । रागं जन रंजनयं, भय षिपियं ममल सुद्ध सहकारं ।। २९ ॥ पर पर्जय नंत विसेषं, पर्जय संसर्ग कम्म उप्पत्ती । कम्म विसेषं विलयं, भय षिपियं ममल न्यान सहकारं ॥ २२ ॥ चष्यं च ममल दिस्टि, समलं पर्जाव नंत षिपिऊनं । ससंक कम्म विलयं, भय विलयं ममल न्यान सहकारं ।। २३ ॥ पर्जय अनिस्ट रूवं अन्यानं सहकार कम्म उप्पत्ती । ममल सहावं विलयं, भय षिपनिक भव्य न्यान सहकारं ।। २४ ॥ वयनं उप्पत्ति कम्म सद्भावं । चष्यं सहाव ममलं वयनं च ममल रूवं, भय जिनियं नंत कम्म विलयंति ॥ २५ ॥ कमलं सहाव उत्तं, कमलं कारन जिनेहि उप्पत्ती । कारन कार्ज संजोयं, ममल सहावेन समल भय विलयं ॥ २६ ॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुजी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (२०) वैराग फूलबा गाथा ३७९ से ३९९ तक (विषय: पाँच ज्ञान, चार दर्शन, संसार शरीर भोगों से वैराग्य) उव उवनउ हो न्यान सहाउ, विंद संजोए विदियऊ । लोया हो लोय प्रमानु, नंतानंत विन्यान मऊ ॥ १ ॥ अर्थह हो तिअर्थ संजुत्तु, अर्थति अर्थह पूरियऊ । मइ सुइ हो अवहि सहाऊ, पंच न्यान पद विंद मऊ ॥ २ ॥ न्यानी हो न्यान संजुत्तु, दर्सन दिस्टिहि दिस्टियो। दर्सन हो दर्सिउ लोय, संमिक दर्सन समय मऊ ॥ ३ ॥ अनंतह हो दर्सन दिस्टि, लोयालोय सु न्यान मऊ । अर्थह हो तिअर्थह जोउ, पंच दिप्ति परमिस्टि पऊ ॥ ४ ॥ दर्सिउ हो ममल सहाउ, न्यान विन्यान सु दिस्टि मऊ । अप्पा हो अप्प सहाउ, सहजनंद चेयन सहिऊ ॥ ५ ॥ बारह हो पयोग संजुत्तु, न्यान अन्मोयह ममल पऊ । न्यानी हो न्यान सहाउ, भय विनासु भवु जु मुनहु ॥ ६ ॥ ससंकह हो रहिउ निसंकु, कंष्या रहित सु ममल पऊ। जोइय हो जोउ सु इस्टु, अनिस्टह सरनि विमुक्कु परा ॥ ७ ॥ पर पर्जय हो दिस्टि न देइ, न्यान अन्मोय सु ममल पऊ। परिनै हो न्यान सहाउ, अवयासह नंतानंत पऊ ॥ ८ ॥ जोइय हो जोउ अनंतु, दर्सन दिस्टि सु न्यान मऊ । विंदहि हो लोयालोय, नंतानंत सु ममल सरू ॥ ९ ॥ दर्सन हो चौविहि उत्तु, चष्यह दर्सिउ मल रहिऊ। कम्मह हो उवन सहाउ, दिस्टिहि विलियौ कम्मु सुइ॥ १० ॥ कम्मु जु हो तस्कर उत्तु, चेयन दिस्टिहि गलि गयऊ । अचष्यह हो दिस्टि अनंतु, कम्मु कलंक विवर्जियऊ ॥ ११ ॥ कम्मु जु हो वंदोर संजुत्तु, घाय कम्म सो जिनु भनिऊ । आवर्नह हो न्यान सहाउ, न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १२ ॥ अवहिहि हो दिस्टि सहाउ, गुरु गुपितह रुचियो न्यान समु। अन्यानह हो अन्मोय संजुत्तु, पर्जय रत्तउ सरनि परा ॥ १३ ॥ विरोह हो चयन दिस्टि, अन्मोय संजोउ न दिस्टियऊ । कम्मह हो कम्म सहाउ, न्यान अन्मोयह विलय गऊ ॥ १४ ॥ त्रिविधि हो कम्म उपत्ति, न्यान अन्मोयह अर्थ परा। अर्थह हो तिअर्थह जोउ, न्यान अन्मोयह षिपि गयऊ ॥ १५ ॥ वैरागह हो उवनउ भाउ, संसारह सरनि विमुक्कु परा । सरीरह हो सरड़ सहाउ, न्यान दिस्टि विलयंत परा ॥ १६ ॥ भोगह हो भोउ उवभोउ, कल लंकृत कम्मु जु ऊपजड़ । कम्मह हो कम्म सहाउ, न्यान अन्मोयह विलय गयऊ ॥ १७ ॥ अवहि जु हो देसा उत्तु, न्यान अन्मोयह परिनवै । न्यानी हो न्यान अन्मोय, परम अवहि सो ममलु मुनी ॥ १८ ॥ मन पर्जय हो अंकुर उत्तु, रिजुमति विपुल उवन्न सुई। वैरागह हो तिविहि संजुत्तु, ग्रंथ मुक्कु निग्रंथ मुनी ॥ १९ ॥ (१७६) Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी छद्मस्तह हो घाय विमुक्कु, केवल सहियौ सो मुनहु । ध्यानह हो ध्यान निमित्तु, न्यानी न्यान अन्मोय मऊ ॥ २० ॥ केवल हो दिस्टि सु दिस्टि, न्यान अन्मोय सु ममल पऊ। तारन हो तरन समथु, ममल न्यान सो मुक्ति गऊ ॥ २१ ॥ (२९) जकड़ी फूलना गाथा ४०० से ४१८ तक (विषय । कर्म उत्पत्ति धिपति - जकड़ी अर्थात् जकड़न, उलझन) ऐ जिन उत्तु भवियन हो, न्यान विन्यान सहाउ । जिहि सहाइ भय विनसै, अभय मुक्ति संभाउ ॥ १ ॥ ऐ यह अभय मुक्ति संभाउ स उत्तउ, कम्मु मुक्कु जिनदेउ । जो तियलोयह अर्थति अर्थह, समय मुक्ति संजुत्तु ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ ऐ जिन जिनवर उत्तउ, जं जिनियौ कम्मु अनंतु । ऐ अन्यान जु सहियौ, सो न्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ३ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ जिन उत्तर भवियन हो, ममलह ममल सहाउ । ऐ यहु न्यान दिस्टि सुइ उपजिऊ, सुद्धह सुद्ध सहाउ ॥ ४ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ जह जह कम्मु जु उपजै, समल दिस्टि संभाउ । ऐ तह तह कम्मु जु विलियौ, ममलह ममल सहाउ ॥ ५ ॥ ॥ ऐ यहु.॥ ऐ यहु आदि जु उपजिउ, भय विनासु है भब्यु । ऐ यहु न्यान सहावह, सहियौ नंतानंतु ॥ ६ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यह ममल सहावह, अनादि कम्मु विलयं तु ।। ऐ यहु समय संजुत्तउ, कम्मु मुक्कु जिन उत्तु ॥ ७ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यह उत्तउ जिनु है, जं जिनियाँ कम्मु अनंतु । ऐ यह लोयालोय विसुद्धउ, न्यान दिस्टि सम उत्तु ॥ ८ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यह अप्प सहावह, पर पर्जय विलयंतु । ऐ यहु ममल सरूवह, मुक्ति पंथ दर्सतु ॥ ९ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यह सिद्ध सरूवे पिच्छै, अर्थति अर्थह भेउ । ऐ यहु न्यान सहावह, उवनउ दाता देउ ॥ १० ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु पंच दिप्ति परमिस्टिहि, परम भाउ उवलद्ध । ऐ यहु समय संजुत्तउ, समय सरन जिन उत्तु ॥ ११ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु चष्य अचष्यह, ममल भाउ दर्सतु । ऐ यहु समलु न पिच्छै, अन्यानह विलयंतु ॥ १२ ॥ ॥ ऐ यहु.॥ (१७७) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुड जी ऐ यह न्यान जु सहियौ, सिद्ध सरूव स उत्तु । ऐ यह अवहि विन्यानी, तिविहि कम्मु विलयंतु ॥ १३ ॥ ॥ ऐ यहु.॥ ऐ यहु उवनु जु दाता, देव सहाउ संजुत्तु । ऐ यहु ममलु जु केवल, पद विंदह संजुत्तु ॥ १४ ॥ ॥ऐ यहु.॥ जह जह कम्मु जु उपजै, समल सहाउ संजुत्तु । ये यहु तह तह विलियौ, सुद्ध सहाउ संजुत्तु ॥ १५ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु कम्मु अनंतु जु, अन्यानह संजुत्तु ।। ऐ यह न्यान अन्मोयह, कम्मु उपत्ति विलयंतु ॥ १६ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ये यहु कम्मु जु उपजिऊ, नंतानंत भमंतु । ऐ यहु न्यान सहावह, अनादि कम्मु विलयंतु ॥ १७ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु अन्यान जु सहियौ, अन्मोय विरोह संजुत्तु । ऐ यहु अंतर्मुहूर्त, अन्मोय न्यान विलयंतु ॥ १८ ॥ ॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु ममल सहावह, कम्मु उवनु विलयतु । ऐ यहु भय विनासु है, ममल सिद्धि सम्पत्तु ॥ १९ ॥ ॥ ऐ यहु.॥ (२२) कमल सुभाव माथा गाथा ४१९ से ४४६ तक (विषय : अक्षर, स्वर, व्यंजन, पद और अर्थ शब्द की विशेषता, कमल स्वभाव की महिमा, १७ सक) कमल सुभावं सहियं, अभ्यर सुर विजनस्य पद सहियं । ममल सहाव संजोयं, भय षिपियं अभय दिस्टि ममलं च ॥ १ ॥ कमलं सहज सरूवं, अध्यर रमनं च अषय पद सहियं । भय षिपनिक सुरं च सुरयं, विजन विन्यान ममल सहकारं ॥ २ ॥ कमल संजोय स दिट्ट, पद दर्स परम तत्तु पद विंदं । सर्वन्यं ममल सहावं, भय षिपियं भव्य कम्म संषिपनं ॥ ३ ॥ कमलं कमल सहावं, पद अर्थ परम अर्थ संदर्स । अर्थति अर्थ ममलं, भय षिपियं तिअर्थ दिस्टि ममलं च ॥ ४ ॥ कमलं कमल उपत्ती, समर्थ समय सुद्ध संदिस्टि । हितमित परिनै ममलं, ममलं सहकार अर्थ संदर्स ॥ ५ ॥ कमल सहाव अवयासं, अवयास अर्थ न्यान अवयास । अवयासं नंतानंतं, भय षिपिय भव्वु न्यान विन्यानं ॥ ६ ॥ कमल सहावं रमियं, रमियं समयं च न्यान विन्यानं । न्यानं ममल सहावं, न्यान सहावेन ससंक भय षिपियं ॥ ७ ॥ कमलं लंकृत सहियं, न्यानं विन्यान सुद्ध सहकारं । अन्यान समय विलयं, भय षिपियं ममल न्यान सद्भावं ॥ ८ ॥ (१७८ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी कमलं विन्यान संजुत्तं, कमलं कलियं च अप्प सुद्धप्पा । परमप्प परम पद विंदं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ ९ ॥ कमलं न्यान सहावं, अन्यान सहकार सयल विरयंतो । भय विनस्य भवियनं, ममलं दिस्टं च सल्य विलयं च ॥ १० ॥ कमलं नंत विसेष, कमलं षिपिऊन नंत बंधानं । ममल सहावं सुद्ध, भय षिपियं भव्वु कम्म विरयंति ॥ ११ ॥ कमलं अन्मोय सहियं, अन्मोयं न्यान कम्म षिपिऊनं । पिपिऊ समल विसेषं, ममल सहावेन कम्म गलियं च ॥ १२ ॥ कमलं संजोय सुद्धं, उत्तं जिन उत्त परम सभावं । ससंक कंष्य विलयं, भय षिपियं समल कम्म विलयंति ॥ १३ ॥ कमलं सहज सरूवं, सब्दं सहकार न्यान विन्यानं । सब्द वियार संजुत्तं, भय षिपियं समल सब्द विलयंति ॥ १४ ॥ कमलं न्यान विन्यानं, न्यानं विन्यान सब्द विंदंति । विदंति विंद विंद, वेदंतो मन वयन काय विलयं च ॥ १५ ॥ कमलं कंष्य विमुक्कं, आसा अस्नेह सयल विलयंति । ममल सहाव सु समयं, भय षिपनिक भव्य कम्म गलयंति ॥ १६ ॥ कमलं कलंक रहियं, कल लंकृत कम्म भाव गलियं च । जं पर्जाव विसेष, ममल सहावेन पर्जाव विलयंति ॥ १७ ॥ कमलं कलन पिछतो, लाजं लोभं च षिपिय उप्पत्ती । कमलं पर्जाव विमुक्कं,भय षिपनिक लोभ लाज विलयंति ॥ १८ ॥ कमलं सरनि न उत्तं, सरीर सहकार भयं च भय मुक्कं । गारव गयंद गलियं, सीह सहावेन ममल सहकारं ॥ १९ ॥ कमलं सीह सहावं, नंद आनंद चेयनानंदं । ससरीरं न्यान विन्यानं, आलस पर्जाव सयल विलयंति ॥ २० ॥ कमल सरूवं रूवं, ससरीरं सरनि न्यान विन्यानं । पर्जय प्रपंच विलयं, पर्जय भय षिपिय न्यान दिस्टं च ॥ २१ ॥ कमलं क्रांति सहावं, विभ्रम पर्जाव सयल गलियं च ।। ममलं ममल स उत्तं, भय षिपनिक भव्य विभ्रमं गलियं ॥ २२ ॥ कमलं जिनयति जिनियं, जनरंजन राग सयल विलयंति । कल लंकृत दोष गलंतं, ममल सहावेन भव्य भय विपनं ॥ २३ ।। कमलं मल विलयंतो, मनरंजन गारवेन विपनं च । दर्सन मोहंध विमुक्कं, भय षिपियं ममल न्यान संदिढ ॥ २४ ॥ कमलं दिप्ति उपत्ति, न्यान आवर्न अंध विलयंति । दिप्तिं दर्सन नंतं, आवर्न विलय ममल सहकारं ।। २५ ।। कमलं मोहं स न्यानं, मोहन विलयंति सरनि पर्जावं । भय षिपनिक अंतर विलयं, आवन तिक्त ममल न्यानं च ॥ २६ हितकारं कमल सहावं, हितमित परिनवै कोमलं दर्स । हित हियंकार सु ममलं, भय षिपनिक भव्य कम्म षिपनं च ॥ २७ ॥ हितकारं हियंकारं, कमल सहावेन नंत ममलं च । भय विमुक्क भय रहियं, हित सहकार न्यान ममलं च ॥ २८ ॥ (१७९) Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (२३) इस्ट छंद माथा गाथा ४४७ से ४६५ तक (विषय : पय १२, लक्षण परिणाम - ३२००) जिन जिनवर उत्तउ जिनय पऊ, इस्ट उवन संसुद्ध पऊ । अन्मोय न्यान सुई समय मऊ, मुक्ति पंथ सिव सुष्य मऊ ॥ १ ॥ जिन इस्टि इस्टि इस्टिऊ, उवन इस्टि उवन पऊ। जिन इस्टि सु न्यान उन पऊ, उत्पन्न न्यान सो मुक्ति पऊ ॥ २ ॥ जिन इस्ट लष्य लष्यनो, उत्पन्न इस्ट सु अलष मऊ । जिन लष्य अलष्य सु न्यान मऊ, परिनाम लष्य सु सिद्धि पऊ ॥ ३ ॥ जिन चौसठि चरन सु चरन मऊ, लष्यन सुभाउ सु ममल पऊ । जिन इस्ट विन्यान सु न्यान मऊ, अन्मोय न्यान सो मुक्ति पऊ ॥ ४ ॥ जिन इस्ट गम्य सुइ गमन मऊ, जिन अगम इस्ट सुइ अगम मऊ । गम अगम दिस्टि सुइ सब्द मऊ, तं दिप्ति अमिय पिउ मुक्ति पऊ ॥ ५ ॥ जिन इस्ट कमल सुइ कलन मऊ, उत्पन्न कमल सुइ रमन पऊ । जिन कलन न्यान सुइ रमन मऊ, सुइ कम्मु विलय सो मुक्ति पऊ ॥ ६ ॥ जिन इस्ट रमन सुइ ममल मऊ, उत्पन्न न्यान सुइ कम्म पिऊ । उववन्न उवन सुइ रमन मऊ, ___भय षिपिय अमिय रस सिद्धि पऊ ॥ ७ ॥ जिन इस्ट सु लंकृत लीन मऊ, ___ लंकृत उववन्न सु सिद्धि जिन पर्जय पर्जाव सु विलय मऊ, जिन न्यान रमन सु मुक्ति पऊ ॥ ८ ॥ विन्यान न्यान सु इस्ट पऊ, अन्मोय सहाउ सु उवन मऊ । मै मूरति न्यान सु इस्ट मऊ, मै उवन सहाउ सु उवन पऊ ॥ ९ ॥ इस्ट मऊ, उववन्न अन्मोय सु ममल जिन न्यान रमन सु अनेय मऊ, जिन नेय उवन सु मुक्ति पऊ जिन समय उवन्न सु इस्ट पऊ, उववन्न समय उववन्न मऊ । (१८० Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन जिनय रंज सुइ ममल पऊ, जिननाथ रमन सुइ सिद्धि पऊ । जिन नंद सुयं परमानंद मऊ, जिन अन्मोय अबलबलि मुक्ति पऊ ॥ १७ ॥ जिन रंज रमनु सुइ नंद मऊ, अन्मोय अबलु विष विलय गऊ । जिन तारन तरन सहाउ मऊ, सिहु समय स उत्तु सु मुक्ति पऊ ॥ १८ ॥ श्री ममल पाहुइ जी जिन जित सुयं जिन न्यान मऊ, जिन नंतानंत सु इस्ट पऊ ।। ११ ॥ जिन वयनु जिनुत्तु सु इस्ट मऊ, जिन रमन आलाप सु जिनय पऊ । जिन सब्द इस्ट सुइ न्यान मऊ, जिन सब्द वियार सु दिस्टि पऊ ॥ १२ ॥ जिनुत्तु सु न्यान जिनुत्त मऊ, जिन सब्द सहाउ सु ममल पऊ । जिनुत्तु सब्द उत्पन्न मऊ, जिन दिस्टि सब्द सुइ सिद्धि पऊ ॥ १३ ॥ जिनुत्तु न्यान सुइ परिनमऊ, जिन परिनै जिनयति कम्म पऊ । जिन न्यान अन्मोय सु अषय पऊ, जिन न्यान विन्यान सु मुक्ति पऊ ॥ १४ ॥ जिनुत्तु सब्द सुइ परम पऊ, जिन उत्तु समय परमान मऊ । जिन उत्तु दिप्ति सुइ दिस्टि मऊ, जिन सब्द प्रियं सुइ मुक्ति गऊ ॥ १५ ॥ जिन रंज उवन हिययार मऊ, भय षिपिय अमिय रै रमन पऊ । जिन रंज सहयार विन्यान मऊ, वैदिप्ति रमन जिन रमन पऊ ॥ १६ ॥ -घत्ताजिन जिनयति कम्म उवन्न पऊ, ___ उववन्न न्यान विलसंतऊ । जिन अर्थतिअर्थ सु रमन मऊ, आयरन सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ १९ ॥ (२४) इस्ट उत्पन्न छंद गाथा गाथा ४६६ से ४८० तक (विषय : पय १२) जिन जिनवर उत्तउ जिनय जिनु, जिन वयनु सब्द सहकार मऊ । जिन दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द रऊ, जिन इस्ट दर्स दर्सतऊ ॥ १ ॥ (१८१) Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिन इस्ट सुयं सुइ दर्स मऊ, जिन इस्ट दर्स सुइ लष्य रऊ। जिन इस्ट अलष पौ अलष मऊ, जिन नंतानंत सुर्य सुरऊ ॥ २ ॥ जिन इस्ट गम्य सुइ न्यान मऊ, जिन इस्ट अगम सुइ अगम रऊ। जिन इस्ट अषय सुइ रमन मऊ, जिन सुर्य रमन सुइ उवन पऊ ॥ ३ ॥ जिन इस्ट विन्यान सु उवन समऊ, जिन विंद विन्यान सु रमन पऊ। पय विंद इस्ट सुइ सुन्न मऊ, उववन्न नंतु जिनु समय मऊ ॥ ४ ॥ जिन इस्ट कमल सुइ कमल मऊ, जिन कमल इस्ट जिन उत्त पऊ । उत्तउ परिनमऊ, जिन इस्ट प्रमान सु उवन मऊ ॥ ५ ॥ जिन भय विनासु सु अभय मऊ, जिन सल्य संक विलयंतु पऊ । जिन इस्ट दर्स दसतियऊ, अनिस्ट भाउ सु विलय पऊ ॥ ६ ॥ जिन उवनु इस्ट उत्पन्न मऊ, उववन्न हिययार सु रमन पऊ । जिन सहै सहयार सुदर्स मऊ, जिन समय स उत्तु जिन दिस्टि मऊ ॥ ७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन दिप्ति दिप्ति सुइ रमन मऊ, जिन दिप्ति इस्टि सुइ दिप्ति पऊ । जिन सब्द प्रियो उव रमन पऊ, जिन उवन सहाउ सु मुक्ति पऊ ॥ ८ ॥ जिन दिप्ति दिस्टि रै रमन मऊ, जिन इस्ट सब्द सुइ मुक्ति पऊ । जिन लष्यन कमल सु दर्स मऊ, उत्पन्न दर्स जिन दर्स मऊ ॥ ९ ॥ जिन अर्थ दर्स सुइ सुयं मऊ, जिन अर्थतिअर्थ सु उवन पऊ । जिन समय सहाउ सु रमन मऊ, सहयार उवन अवयास पऊ ॥ १० ॥ जिन दर्स इस्ट उत्पन्न मऊ, जिन नंतानंत सु दिस्टि पऊ। उत्पन्न मऊ, जिन षिपक दर्स सुइ न्यान पऊ ॥ ११ ॥ जिन भय षिपनिक सुइ अमिय मऊ, जिन विंद रमन सुइ ममल पऊ । जिन कमल सु केवल दर्स मऊ, जिन कम्म विलय सुइ मुक्ति पऊ ॥ १२ ॥ जिन तारन तरन सु दिप्ति रऊ, जिन दिप्ति दर्स सुइ दर्स मऊ । जिन इस्ट दर्स उत्पन्न मऊ, अन्मोय तरन जिनु सिद्धि पऊ ॥ १३ ॥ (१८२) Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ इस्ट दर्स जिन अगम मऊ, उत्पन्न दर्स जिन उवन पऊ । भय षिपिय अमिय रस ममल मऊ, अन्मोय तरन विंद मुक्ति पऊ ॥ १४ ॥ -घत्ताइय दर्स इस्ट सुइ ममल पऊ, उत्पन्न अमिय रस दर्स मऊ। सुइ न्यान विन्यान सु पर्म पऊ, विषु विलय अमिय रस मुक्ति गऊ ॥ १५ ॥ (२१) तालु छंद गाथा गाथा ४८१ से ४९७ तक (विषय : अबार पद अर्थ और सम्यक्त्व की महिमा, १७ सक) जिन उवएसिउ ममल पउ, परमानंद सहाउ । परम निरंजनु परम पउ, भय षिपनिक ममल सहाउ ॥ १ ॥ तारन तरन सु समय मऊ, न्यान विन्यान स उत्तु । ममल सहावे ममल पऊ, भय षिपनिक सिद्धि सम्पत्तु ॥ २ ॥ तत्काल उनउ न्यान विन्यानु, सो सुद्ध सचेयनु भव्वु पमानु । तरुवा तं तरनह भेउ संजुत्तु, सो भय षिपनिक है भव्वु स उत्तु ॥ ३ ॥ तरुवा तं उवनऊ उवन सहाउ, सु अष्यर अषयह भेउ सुभाउ । उवंकार उवन्नऊ विंद सहाउ, विन्यान विंद सह नंद सुभाउ ॥ ४ ॥ सु पद अर्थह परमप्पु स उत्तु, सु ममल सहावे सिद्धि संजुत्तु । सु अर्थह दर्सिउ अर्थ समथु, तरुवा तत्कालह कम्मु गलंतु ॥ ५ ॥ जं कमल कलंतउ कलिय स उत्तु, तं कारन कार्जह न्यानु उनु । जं उत्तउ जिनवर ममल सहाउ, तं भय षिपनिक है भव्वु सुभाउ ॥ ६ ॥ संमत्तह सहियौ न्यान विन्यानु, संमत्तह गलियौ कम्मु उवन्नु । संसार निवारनु संसय मुक्कु, निसंक सहावे कम्मु गलंतु ॥ ७ ॥ तरुवा तं नंतानंत नियंतु, सु ममल सहावे कम्मु गलंतु । जं जिनवर उत्तउ भव्वु स उत्तु, तं भय विनासु है कम्मु जिनंतु ॥ ८ ॥ तरुवा जं कमल सहाउ संजुत्तु, तं रमनह रमियौ जिनह पउत्तु । जं जिनवर लंकृत न्यान सहाउ, तं परिनै जुत्तउ भव्य सुभाउ ॥ ९ ॥ (१८३) Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तरुवा तं रुइयौ रूव अरूवं, उत्पन्न हिययार सहयार थुनंतु । सु न्यान विन्यानह समय स उत्तु, अन्मोय संजुत्तऊ मुक्ति पहुंतु ॥ १६ ॥ - घत्ताइय तरुवा संजोयऊ, न्यान विन्यान सु ममल पऊ । तत्काल उवन्न सहाउ, भय षिपिय भव्वु सो मुक्ति गऊ ॥ १७ ॥ श्री ममल पाहुइ जी तरुवा तं तरनह सरनि विमुक्कु, सु न्यान सहावे ममल मुनंतु । आसा अस्नेह सुभाउ गलंतु, सो लाज लोभ भय गार गलंतु ॥ १० ॥ विभ्रम विरोह सुभाव गलंतु, ___ जनरंजन राग दोस विलयतु । कलरंजन पर्जय दिस्टि गलंतु, मनरंजन गारव सरनि विमुक्कु ॥ ११ ॥ दर्सन मोहह मय अंधु विलंतु, तं न्यान सहावे दोस गलंतु । सु न्यान विन्यानह जिनह सउत्तु, सु भय षिपनिक है भव्वु पउत्तु ॥ १२ ॥ अप्पउ परि आनिउ न्यान विन्यानु, पर पर्जय गलियो कम्मु उवन्नु । न्यानेन न्यान विलयंति कम्मु, तं सहज ऊपजई परम धम्मु ॥ १३ ॥ परमप्पय परम सुभाव संजुत्तु, पद अर्थह परम तत्तु जिन उत्तु । सो जिनवर उत्तउ जिनय पउत्तु, सु ममल सहावे कम्मु गलंतु ॥ १४ ॥ सु न्यानावर्नु न दर्सियऊ, पर पर्जय सरनि न पेषियऊ । तरुवा तं तरनह न्यान सहाऊ, सु भय षिपनिक है ममल सुभाऊ ॥ १५ ॥ (२६) कंठ छंद माथा गाथा ४९८ से ५१० तक (विषय : कमल दल और अर्थ पय) कमल कंठ जिन उवन पऊ, उव उवन उवन दर्सतऊ । उव उवन सहावे विंदरऊ, सो कमल विंद सिद्धि रत्तऊ ॥ १ ॥ भय षिपनिक अभय उवन्न पऊ, उव उवन हिययार संजुत्तऊ । सहयार तरन सुइ उवन मऊ, तं अर्क विंद सुइ सिद्ध ॥ २ ॥ सो कंठ रमन जिन उवन सहाऊ, सो भय षिपनिक रस अमिय संजुत्तऊ । सो कमल कंठ सुइ न्यान उर्वनु, सो सुयं सरूवे ममल पर्वनु ॥ ३ ॥ सु कमल उवन्नऊ केवल उत्तु, सो उत्त जिनुत्तउ उवन संजुत्तु । सु उवन उवन हिययार पउत्तु, सो उवनउ ममल सहयार संजुत्तु ॥ ४ ॥ (१८४ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सु कमल कलंतउ कण्ठ सुभाउ, सु कमल ठकारे मुक्ति सहाउ । सु कमल अर्क जिन अर्क सु अर्क, सु अर्क कलिय जिन समय सु अर्क ॥ ११ ॥ सु अर्क सुभावे कलिय जिनुत्तु, सु तरन पयं पय ममल मुनंतु । सु कमल विंद रस रमन कलंतु, सुन्यान अन्मोय सम सिद्धि सम्पत्तु ॥ १२ ॥ - घत्ताइय कमल कण्ठ जिन उत्तियउ, मुक्ति ठकार संजुत्तु । भय षिपनिक सुइ भव्वु मुनी, सुइ अमिय रमन सिद्धि रत्तु ।। १३ ।। श्री ममल पाहुइ जी सो अर्थति अर्थह रमन संजुत्तु, सो न्यान विन्यानह जानु जिनुत्तु । सु अषय रमनु सुर रमन संजुत्तु, सु समय विंद रस कमल जिनुत्तु ॥ ५ ॥ सु कमलह कलियौ अलषु सु लषु, सु गम्य अगम्य पय अर्थ संजुत्तु । सु उत्तु सहावे पय पयडि संजुत्तु, सु पय अगम्य सुइ नंत स उत्तु ॥ ६ ॥ सु पय अर्थह पद परम सहाउ, पद अर्थ सु अर्थ तिअर्थ सुभाउ । सु अर्थह अर्थ सुयं जिन उत्तु, सु अर्थ सहावे समय संजुत्तु ॥ ७ ॥ सु समय सहावे सहज जिनन्दु, अवयास अर्थ सुइ पत्त अनंदु । सु न्यान अन्मोयह दिप्ति संजुत्तु, सुइ दिस्टि सब्द पिऊ सिद्धि संपत्तु ॥ ८ ॥ जिन जिनय संजुत्तउ न्यान विन्यानु, सु कमल सुभावे विंद रखनु । सु अर्क सु अर्क सु अर्क स उत्तु, सु कमल विंद रस रमन संजुत्तु ॥ ९ ॥ सु कमल कलिय जिन उत्तु स उत्तु, सुइ इस्ट इस्ट सुइ उवन स उत्तु । सु दर्सिउ इस्ट सु इस्ट संजुत्तु, उव उवन दर्स सुइ ममल संजुत्तु ॥ १० ॥ (२७) ह्रींकार संसर्ग गाथा गाथा ५११ से ५४४ तक (विषय: हृदयस्थ परमात्मा की विशेषता, हृदय के अनेक रूप, संसार शरीर विषय, संसर्ग की महिमा) हींकारं नंत विसेषं, कोमल परिनाम कमल सहकारं । हींकारं भय विलयं, ममल सहावेन कम्म विलयंति ॥ १ ॥ ह्रींकारं हित सहियं, हृींकारं समल दिस्टि विलयंति । कोमल न्यान सु कमलं, पर्जावं षिपिऊन ममल सहकारं ॥ २ ॥ हींकारं अरुह विसेष, हृिदयं दसति लोय अवलोयं । ममल सहावं सहियं, भय षिपियं अरुह कमल ममलं च ॥ ३ ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अह अरुह स उत्तं, ह्रींकारं हिययार कोमलं वयनं । कठिनं कठोर विलयं, भय विनसिय समल कम्म विलयंति ॥ ४ ॥ हियं च अरुहं सहियं, सहकारं न्यान विन्यान संजुत्तं । अन्यान मिच्छ गलियं, ममल सहावेन कम्म विलयंति ॥ ५ ॥ हृदयं अलष्य लष्यं, लषंतो सुद्ध सरूव सहकारं । समल सहावं विलयं, भय षिपनिक भव्य कम्म विलयंति ॥ ६ ॥ हृदयं अनेय रूवं, रूवं अरूव विक्त रूवं च । ममल सहावं सहियं, मल मुक्कं नंत दर्सनं ममलं ॥ ७ ॥ हृदयं क्रांति संजुत्तं, हींकारं न्यान अंकुरं ममलं । अंकुर विद्धि सहावं, भय षिपनिक नंत कम्म विपनं च ॥ ८ ॥ हृदयं च दिस्टि स उत्तं, हृदयं ममलं च कम्म षिपनं च । भय षिपनिक ससहावं, षिपिऊ संसार सरनि उववन्नं ॥ ९ ॥ ह्रींकारं अर्थति अर्थ, अर्थ तिअर्थ ममल उववन्नं । ससंक भय विपनं, विपनं पर्जाव सरनि मोहंधं ॥ १० ॥ ह्रियं च सहज सरूवं, सहजं आनंद संक विलयंति । भय विनस्ट भवियनं, ममल सहावेन कम्म संगलियं ॥ ११ ॥ हृदयं दिस्टि स दिस्टं, हृदयं सहकार कम्म षिपिऊनं । पर्जय समलन पिच्छं, भय षिपनिक तिविहि कम्म विलयंति ॥ १२ ॥ हृदयं नन्द अनंद, चेयन आनंद कम्म संषिपनं । न्यान सहाव सु सुरयं, ममलं दिस्टि च कम्म विलयंति ॥ १३ ॥ हितं च हियं सु समयं, हियं अवगहइ न्यान ससरूवं । अन्यान सल्य रहियं, भय षिपियं अभय न्यान ममलं च ॥ १४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हितं च सास्वय रूवं, अनृत असास्वतं च विरयंति । नितंति ममल रयनं, भय षिपियं समल कम्म विलयति ॥ १५ ॥ हितं च परम सरूवं, परमं परमप्प परम जोएन । पर्जय सल्य विमुक्कं, भय षिपियं सल्य संक विलयंति ॥ १६ ॥ हितं च चरन संजुत्तं, अन्यानं चरन दोस गलियं च । मिथ्या सल्य विमुक्कं, भय षिपियं ममल सुद्ध सहयारं ॥ १७ ॥ हियं च दर्सन चरनं, अदर्सन अन्यान पाप गलियं च । पर्जय पथ्य विरयंतो, ममल सहावेन सरनि मुक्कं च ॥ १८ ॥ हियं च न्यानं चरनं, हितकारं वीर्ज विन्यान उववन्नं । अन्यानं विलयंतो, भय षिपियं अनिस्ट दोस विलयंति ॥ १९ ॥ हियं च तत्तु विसेषं, तत्काल उववन्न न्यान विन्यानं । तव उववन्न सहावं, चरनं तव विषय दिस्टि विलयंति ॥ २० ॥ हियं च चरन सु चरनं, चरनं षिपिऊन पर्जाव समलं च । षिपिऊ कम्म विसेषं, भय षिपियं ममल न्यान सहकारं ॥ २१ ॥ हियं उवन्नं सहियं, अन्या सम्मत्त वेदक सहकारं । अन्मोय विरोह न पिच्छं, भय गलियं ममल सुद्ध सहकारं ॥ २२ ॥ हियं च उवसम सहियं, षिपनिक षिपिऊन कम्म बन्धानं । षिपिऊ न्यान विसेषं, भय षिपनिक भव्य सुद्ध सम्मत्तं ॥ २३ ॥ हियं च पद संजुत्तं, पदं च परम तत्तु संदर्स । पर पर्जय विलयंतो, ममल सहावेन संक भय विपनं ॥ २४ ॥ हियं च उववन्न उवएस, जिन उत्तं उज्झाय पयडि उत्तं च । भय षिपनिक अनंत चरनं,भय षिपियं तिविहि कम्म विलयेति ॥ २५ ॥ (१८६) Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी हियं च सुद्ध सहावं, अहँ ह्रींकार न्यान विन्यानं । समल कम्म विलयंतो, ममलं दिस्टि च पर्जाव विलयं च ॥ २६ ॥ ह्रींकारं दर्सन दिटुं, दर्सन दर्सेइ कम्म गलियं च । विकहा सरनि विमुक्कं, भय षिपियं ममल न्यान सहकारं ॥ २७ ॥ अहं च उवन उवएस, तारन तरनं च ममल सहकारं । सल्य संक भय षिपनं, कम्म विलयंति मुक्ति गमनं च ॥ २८ ॥ कमल सहाव उपत्ति, केवल उववन्न षिपन ससहावं । पिपिऊ कम्म उवन्नं, उववन्नं सहकार मुक्ति संदर्स ॥ २९ ॥ दरसंति लोय अवलोयं, न्यान विन्यान उववन्न कमलं च । सहकारं उववन्नं, तारन तरनं च मुक्ति संमिलियं ॥ ३० ॥ संसर्ग कम्म षिपनं, सारं तिलोय न्यान विन्यानं । रुचियं ममल सुभावं, संसारं तिरंति मुक्ति गमनं च ॥ ३१ ॥ सहकारं न्यान विन्यानं, रीनं कम्मान तिविहि विलयं च । रुचियं ममल सहावं, तारन सहकार सरीर निर्वानं ॥ ३२ ।। विन्यान न्यान सुद्धं, षिपिऊ कम्मान तिविहि जोएन । इस्ट संजोय सु ममलं, नन्दं आनंद मुक्ति गमनं च ॥ ३३ ॥ संसार सरीर सु विषयं, ममल सहावेन समल विलयंति । तारन तरन सु समयं, न्यान बलेन निव्वुए जन्ति ॥ ३४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (२८) अन्मोय चौबीसी गाथा गाथा ५४५ से ५६९ तक (विषय: पय १२, दिस्टि १४) जिन दिस्टि इस्टि जिन उत्तं, जिन समय सहाव स उत्तं । जिन परिनै समय प्रमानं, जिन कमल उत्त जिन वयनं ॥ १ ॥ जिन लंक्रित जिन विन्यानं, जिन समय न्यान नित समानं । जिन नंतानंत सु दिस्टी, जिन न्यान पयो परमिस्टी ॥ २ ॥ जिन समय सहाव स उत्तं, जिन नंत नंत अवयासं । तं जिन अन्मोय सु ममलं, जिन समय कम्म तं विलयं ॥ ३ ॥ जिन षिपिय कम्म बंधानं, जिन मुक्ति दिस्टि धुव न्यानं । जिन जिनयति कम्म उपत्ती, अन्मोय विरोह विलंती ॥ ४ ॥ तं न्यान अन्मोय स उत्तं, जं नंत कम्म विलयंतं । जं न्यान अन्मोय विओयं, तं सरनि सहाव संजोयं ॥ ५ ॥ तं यह विओय किम सहिये, जं जं विओय दुह लहिये । भय षिपिय मुक्ति सं मिलिए, तं अमिय रमन सिद्धि रमिये ॥ ६ ॥ || आचरी॥ जं न्यान अन्मोय पिओयं, तं भय षिपनिक संजोयं । भय षिपिय रमन आनंद, तं रमन विओय विनंदं ॥ ७ ॥ ॥ तं यहु.॥ जं न्यान अन्मोय अनंतं, तं अमिय रमन रस जुत्तं । जं अमिय रूव आनंद, तं अमिय विओय विनंदं ॥ ८ ॥ ॥ तं यहु.॥ (१८७) Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जं जिन अन्मोय पिओयं, तं भय षिपनिक संजोयं । भय षिपिय पयोहर नंदं, भय षिपिय विओय विनंदं ॥ ९ ॥ ॥ तं यहु.॥ जं न्यान अन्मोय सहावं, तं अमिय रमन रस भावं । जं अमिय रस रूव आनंद, तं अमिय विओय विनंदं ॥ १० ॥ ॥ तं यहु.॥ अन्मोय न्यान विन्यानं, भय षिपिय संजोय सवनं । भय षिपिय सरूव सनंद, भय षिपिय विओय विनंदं ॥ ११ ॥ ॥ तं यह.॥ अन्मोय न्यान ससरूवं, तं अमिय रस रमन सु सुरयं । जं अमिय रूव आनंद, तं अमिय अरूव विनंदं ॥ १२ ॥ ॥ तं यहु.॥ जं न्यान भक्ति अन्मोयं, भय षिपिय भक्ति संजोयं । भय षिपिय भक्ति आनंद, भय षिपिय विओय विनंदं ॥ १३ ॥ ॥तं यहु.॥ जं न्यान दिस्टि अन्मोयं, तं अमिय रमन रस जोयं । जं अमिय दिस्टि आनंदं, तं अमिय अदिस्टि विनंदं ॥ १४ ॥ ॥ तं यहु.॥ जं न्यान दिस्टि अन्मोयं, भय विपनिक रिस्टि संजोयं ।। जं अमिय रस इस्टि आनंद, तं रिस्टि विओय विनंदं ॥ १५ ॥ ॥ तं यहु.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जं तारन तरन सहावं, तं दिस्टि रिस्टि सम भावं । भय षिपिय अमिय रस नंदं, तं रिस्टि विओय विनंदं ॥ १६ ॥ ॥तं यहु.॥ जं उस्टि सस्टि सहकारं, अवयास अन्मोय अपारं । भय षिपिय अमिय रस नंद, तं दिस्टि विओय विनंदं ॥ १७ ॥ ॥ तं यह.॥ अन्मोय न्यान सुइ समयं, तं षिपनिक इस्टि संजोयं । भय षिपिय अमिय रस नंद, तं रमन विओय विनंदं ॥ १८ ॥ ॥ तं यह.॥ जं षिपक इस्ट संजोयं, तं मुक्ति इस्ट परलोयं । भय षिपनिक सहज सहावं, तं अमिय रस रमन सुभावं ॥ १९ ॥ ॥ तं यहु.॥ जं इस्ट संजोयं मिलिये, तं मुक्ति रमन सं चलिये । सुह अंग अमिय रस रवनं, भय षिपिय मुक्ति संमिलियं ॥ २० ॥ ॥ तं यहु.॥ तं न्यान अन्मोय सु ममलं, जं समल सुभाव सु विलयं । भय षिपनिक रूव सहावं, सुह अंग अमिय रस भावं ॥ २१ ॥ ॥ तं यहु.॥ तं ईय विनोय आनंद, जं तारन तरन सनंदं । जं जान सहाव स उत्तं, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २२ ।। ॥ तं यहु.॥ (१८८) Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी दिपि दिपियौ नंतानंतं, लंकृत सुइ न्यान स उत्तं । सहकार नंत संजुत्तं, तं समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २३ ॥ ॥तं यहु.॥ जं तारन तरन स समयं, भय षिपिय अमिय रस ममलं । जं धर्म सहाव संजुत्तं, तं समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २४ ॥ ॥ तं यहु.॥ सुइ तारन तरन सहावं, हिययार सहाव सुभावं । जं न्यान अन्मोय सुभावं, तं समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २५ ॥ ॥ तं यहु.॥ (२९) बन्द मऊ फूलना गाथा ५७० से ५८३ तक (विषय : जिन स्वभाव की महिमा, नन्द ५) जिन जिनयति जिनय जिनेन्द पऊ, जिन सहजनंद ससहाउ । जिन परमनंद तं परम जिनु, जिन केवल ममल सहाउ ॥ १ ॥ जिन नंद मऊ आनंद मऊ, जिन जिनयति कम्म सहाऊ । जिन उत्त जिनं जिन कमल जिनं, जिननाथ रमन ससहाउ ॥ २ ॥ जिनु अमिय रमन तं मुक्ति पऊ ॥ आचरी॥ जिनु लष्य मऊ अलष्य मऊ, जिन सिद्ध सरूव सहाउ । जिन उत्त मउ वैदिप्ति मऊ, जिन न्यान विन्यान सुभाउ ॥ ३ ॥ || जिन. ॥ जिनु अषय रमनु जिनु सिद्धि गमनु, जिन भय षिपनिक ससहाउ । जिन न्यान मई विन्यान मई, जिन सिद्धि मुक्ति सुभाउ ॥ ४ ॥ ॥ जिन.॥ जिन षिपक मऊ जिन ममल पऊ, जिन रंज सिद्धि ससहाउ । जिन अमिय रसं वैदर्स सुयं, जिन कमल ममल सुभाउ ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन राग गलं जिन दोस विलं, जिन दिप्ति दर्स संजुत्तु । जिन कम्म गलं आवर्न विलं, जिन रंज अमिय सम उत्तु ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन गार गलं जिन मोह विलं, वैदर्स अमिय संजुत्तु । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन घाय गलं जिन रंज समं, भय षिपिय मुक्ति संउत्तु ॥ ७ ॥ || जिन. ॥ जिन अर्थ सुयं जिन क्रांति मयं, वैदिप्ति कमल कलयंतु । जिन अमिय रसं जिन रंज मयं, जिन कम्म कलंक विलयंतु ॥ ८ ॥ ॥ जिन. ।। जिन समय मयं जिन परम पयं, जिन लोयालोय दर्सतु । जिन इच्छ मयं इच्छन्तु सुयं, वैदर्स रंज जिन उत्तु ॥ ९ ॥ ॥जिन.॥ जिन पदम सुयं जिन न्यान मयं, भय षिपनिक भव्वु स उत्तु । जिन कण्ठ अमिय वैदर्स समिय, जिन रंज मुक्ति संजुत्तु ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ चेय मई जिन वेय मई, वैदिप्ति हिययार संजुत्तु । जिन हियं ममल जिन रंज रमन, जिन अर्क अमिय रस उत्तु ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन भय षिपियं जिन अमिय पियं, जिन रंज ममल संजुत्तु । जिन धम्म धुरं जिन न्यान सुरं, वैदर्स सिद्धि सम्पत्तु ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन दिस्टि दरसु वैदिप्ति सुरसु, भय षिपिय ममल दर्सतु । जिन रंज रमन जन रंज गलन, जिन अमिय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन सिद्धि सुरं जिन ममल पुरं, जिन रंज अमिय संजुत्तु । जिन भय षिपनिक सुइ तारन तरन मई, वैदरसु सिद्धि सम्पत्तु ॥ १४ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन पदम सुर्य जिन न्याय भयपनिक भव्यु स उनु । (३०) जिन इच्छ लषु फूलना गाथा ५८४ से ६०१ तक (विषय : अक्षर, स्वर, व्यंजन और अर्थ पय दूसरी) जिन दिस्टि इस्टि तं परम पऊ, जिन लषियौ सिद्ध सहाउ । जिन नंत लषु अनंत लषु, जिन नंत नंत लषि भाउ ॥ १ ॥ (१९०) Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी जिन इच्छ लघु इच्छाइ लघु, इच्छंतउ जिन पिच्छ लघु पिच्छाइ लघु, सुभाउ । जिन लषियौ न्यान सहाउ ॥ २ 11 विन्यान समय लषि सिद्धि पऊ ॥ आचरी ॥ जिन अषय लघु जिन सुरय लघु, जिन लक्ष्य पयं पद अर्थ सुयं, सम अर्थ जिन विंजन लषिय सुभाउ । जिन अर्थ लघु तिअर्थ लघु, लप्य जिन लक्ष्य कम्मु विलयंतु ॥ लषंतउ न्यान लघु परमर्थ लघु, विन्यानु । जिन लप्य मयं विन्यानु ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन परिनै लघु परमान लघु, जिन लप्य सहकार लघु जिन उत्तु लघु, जिन लक्ष्य धुवं जिन स सरूवं, ३ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन लप्य कम्मु सहाउ संजुत्तु । गलयंतु ॥ ५ 11 ॥ जिन. ॥ जिन लषि अलष्य अन्मोयं । १९१ अन्मोय लघु तं षिपय लघु, षिपि षिपिय कम्मु सुइ भेउ ॥ जिन षिपक लघु तं मुक्ति सुषु, जिन कमल लघु जिन रमन लघु, जिन अलष लषिय जिन उत्तु । जिन लषियाँ लंकृत उत्तु ॥ जिन लक्ष्य सुद्ध तं नंत बुधु, जिन सहज लघु जिन नंद लघु, जिन नंद श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन राग लघु जन रंज लघु, ६ || ॥ जिन. ॥ जिन लषिय विन्यान सहाउ । लघु कल रंज लघु जिन दोस लघु, ७ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन न्यान लघु जिन नंत लघु, जिन नाना प्रकार स लघु । जिन अन्मोय लषु जिन षिपक लघु, जिन लषिय मुक्ति संजुत्तु ॥ ॥ ८ || ॥ जिन. ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन सल्य राग विलयंतु । जिन लषिय दोस विलयंतु ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन गार लषु मन रंज लषु, जिन लषिय कम्मु विलयतु । जिन मोह लषु जिन अंध लषु, जिन लषियौ मोह गलंतु ॥ ११ ॥ || जिन. ॥ आवरन लषु चौ उवन लषु, जिन लषिय घाय विलयतु । जिन मिच्छ लषु सम मिच्छ लषु, जिन लषिय मिच्छ गलयंतु ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन लोह लषु कोहाग्नि लषु, जिन लषियौ मान सहाउ । जिन माय लषु पर्जाव लषु, जिन लषिय पर्जाव विलंतु ॥ १३ ॥ ॥ जिन.॥ जिन कम्म लषु अन्यान लषु, जिन लषि अन्यान गलंतु । जिन परुवि लषु पर्जाव लषु, जिन लषिय पर्जाव विलंतु ॥ १४ ॥ || जिन. ॥ जिन उत्तु लषु उत्ताइ लषु, जिन चेय सचेय अलषु । जिन लषिय ममल सुई उत्तु सुयं, जिन प्रिये लषु पिय उत्तु ॥ १५ ॥ || जिन. ॥ जिन नंद लषु आनंद लषु, जिन लष्य सहज आनंदु । जिन लष्य तत्तु जिन परम तत्तु, जिन परमनंद दर्सतु ॥ १६ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन लषिय अमिय रस सुइ मिलियं, भय षिपनिक लषिय सुभाउ । जिन लषिय ममल रै धम्म मूल सुई, जिन रंज लषिय जिन उत्तु ॥ १७ ॥ ॥ जिन. ॥ वैदर्स लषिय जिन न्यान समय गन, वैदर्सति जिन उत्तु । जिन लषिय अमिय रस अन्मोय न्यान जस, भय षिपिय सिद्धि संपत्तु ॥ १८ ॥ || जिन. ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (२१) अचव्य वर्सन माथा गाथा ६०२ से ६२८ तक (विषय । परिणाम भेद , कलश परिणाम, लक्षण परिणाम, भव हरित परिणाम) अचष्यं दर्सन उत्तं, सब्दं सहकार न्यान विन्यानं । अचयं अनंत रूवं, रूवातीतं च अचष्य दर्सति ॥ १ ॥ अचष्यं हृदय संजुतं, हितमित परिनवई कोमलं सहियं । अचयं सब्द सहावं, ममल सहावेन सब्द विन्यानं ॥ २ ॥ लष्यन जिन उवएस, लष्यंतो ममल न्यान विन्यानं । भय विनस्य भवियनं, परिनामु लष्यनेहि संजुत्तं ॥ ३ ॥ जिनवर उत्तं दिव, कमल सहावेन पय अर्थ संजुत्तं ।। कमल नंद जिन उत्तं, सौ अट्ठम्मि ममल मल मुक्कं ॥ ४ ॥ कमल मुषा गिर सहियं, चौ उववंन साठि संजुत्तं । षट् कमलं तं सहियं, सहसं बत्तीस विन्यान मल विलयं ॥ ५ ॥ जिन इस्टि दिस्टि संजतं, सहस अठ लष्यनेहि ममल न्यानं च ।। चतुष्टय षट् सुभावं, उववन्नं जिनेन्द विंद चौबीसं ॥ ६ ॥ इय सहाव लष्यनयं, जिन दिट्ट परिनाम लष्यनं उत्तं । भय षिपनिक ममल सहावं, धम्म सहकार मुक्ति संदर्स ॥ ७ ॥ जिह्वा अग्र उवन्नं, दिढ़ जिनेन्द विंद विन्यानं । नंत चतुस्टय जुत्तं, परिनामु विन्यान न्यान चौसठियं ॥ ८ ॥ चौसठि अर्थ जतं, चतस्टय सहकार सहज ठिदि ममलं । मुक्ति सुभावं ठिदियं, ठिदियं मुक्तस्य ममल न्यानं च ॥ ९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिह्वा कंद सु ममलं, सौ अट्ठम्मि परिनाम न्यानं च । कम्मं कलंक विलयं, विन्यानं सरूव संकलियं ॥ १० ॥ सौ अट्ठम्मि स अर्थ, सहकारं उववंन अप्प अस्टांग । अप्पं च मुक्ति ठिदियं, मुक्ति विन्यान न्यान ममलं च ॥ ११ ॥ जिह्वा सहाव जुत्तं, परिनाम सहसट्ठ लष्यनं ममलं । चौबीसं तित्थयरं, भय षिपनिक सहकार न्यान ममलं च ॥ १२ ॥ लष्यन दिप्ति संजुत्तं, लष्यन सहकार विंद विन्यानं । भय षिपियं ममल सहावं, धर्म सहकार मुक्ति गमनं च ॥ १३ ॥ लषियं जिनेन्द विंदं, ति अर्थं अर्थस्य अर्थ परमर्थ । तित्थयर नंत आयरनं, परिनामु तिअर्थ न्यान आयरनं ॥ १४ ॥ भय उत्तं च जिनेन्दं, भय षिपियं च तिअर्थ अर्थ ममलं च । तिअर्थ भय त्रितियं, भय षिपियं अभय न्यान सहकारं ॥ १५ ॥ ममल सहावं उत्तं, परिनामु न्यान सयं च अस्टंमि । नौ सहकार संजुतं, नौ सै बहत्तरम्मि न्यानं च ॥ १६ ॥ तिअर्थ अर्थ सहियं, सौ अट्ठ परिनाम न्यान विन्यानं । लष्यन जिन उवएसं, सहसं अद्भुमि लष्यनं ममलं ॥ १७ ॥ चौबीसं च संजतं, तित्थयरं उववन्न न्यान विन्यानं । भय विनस्ट सहकारं, ममल सहावेन सिद्धि सम्पत्तं ॥ १८ लष्यन जिन उवएस, न्यानं विन्यान सहाव ममलं च । भय षिपनिक ममल सहावं, धम्म ससहाव लष्यनं ममलं ॥ १९ ॥ तारन तरन सु समयं, भय षिपनिक भव्य न्यान विन्यानं । अमिय रस रसिय सु ममलं, न्यानं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २० ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उव उववन्न सु तरनं, भय षिपियं हिययार तारनं ममलं । अमिय पयो सहयारं, कम्मं षिपिऊन निव्वुए जन्ति ॥ २१ ॥ भय विनस्य भवियनं, अमियं अन्मोय न्यान विन्यानं । सह हिययार उवन्नं, तारन रूव सरूव निर्वानं ॥ २२ ॥ भय षिपिय भव्य सहकारं,अमिय रस अन्मोय तारनं मिलियं । तं विओय मुछयनं, भय षिपियं अमिय दिस्टि उवसंतो ॥ २३ ॥ भय षिपिय अमिय रस रवनं, तारन अन्मोय परम पिउ जुत्तं । जं बाधा अयर अबधं, तं रमनं दिस्टि संजोय मिलियं च ॥ २४ ॥ तं विओय किम सहियं, जं अदिस्टं च दिस्टि गलियं च । भय षिपिय अमिय अन्मोयं, दिस्टि सहकार नंत सौष्यं च ॥ २५ ॥ जिन उव सुन्न सहावं, दिप्ति दिस्टं च उववन्न ममलं च । रुइ पिउ परम परमप्पं, तरन विवान मुक्ति गमनं च ॥ २६ ॥ दत्तं पत्त विसेषं, दत्तं जं देइ सुष्य भावेन । पत्तं ममल सहावं, तत्कालं संजोय मुक्ति गमनं च ॥ २७ ॥ जं केवलि नंत नंत संदर्सिऊ, तं उवएसु नंत ममल अन्मोयह । भय विनस्य भव्य नंत नंत तं सहिऊ, __कम्म षय मुक्ति गमन सहकारं ॥ २ ॥ जिनेन्द विंद लोयलोय ऊर्ध सुद्ध उत्तयं, तं न्यान दिस्टि परम इस्टि परम भाव जलपियं ।। तं कम्म घेउ मोष्य हेऊ भव्य लोय पोसियं, आनंद नंद चेयनंद परमनंद नंदितं ॥ ३ ॥ कमट्ठ गट्ठ तं अनिट्ठ ममल भाव छिन्नियं, तं सुद्ध न्यान सुद्ध झान नंतानंत दर्सियं । तं राय दोस मिथ्य भाव सल्य भय निकंदनो, तं परम भाव परम उत्तु परम लष्य लष्यनो ॥ ४ ॥ अनंत रूव पर अभाव रूवतीत विक्तयं, सरूव रूव विक्त रूव विक्त भय निरूपियं । अन्यान भाव मन सुभाव मिच्छ भय निकंदनो, तं न्यान रूव ममल दिस्टि समल भाव विहंडनो ॥ ५ ॥ अन्यान भाव अनिस्ट रूप भय विनस्ट दिस्टियं, तं पर पर्जाव नंत थान नंत न्यान दर्सियं । तं विषय इस्ट अनिस्ट दिस्टि ममल न्यान पंडनो. तं पर पर्जाव समल चित्त न्यान सहाव निकंदनो ॥ ६ ॥ (३२) जिनेन्द विंद छंद माथा गाथा ६२९ से ६३९ तक (विषय : नन्द पांच, आत्म स्वरूप की महिमा) परम पय परम परम जिननाह हो, परम भाव परमिस्टि इस्टि संदर्सियऊ, अप्पा परमप्प ममल न्यान सहकारं ॥ १ ॥ (१९४) Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अनंत नंत न्यान दिस्टि मोह मय विहण्डनो, निसंक रूव ममल भाव कम्म तिविहि गालनो । सरीर भाव मन सुभाव इन्द्रि भय निकंदनो, अतीन्द्रि भाव न्यान दिस्टि कम्म मल विहण्डनो ॥ ७ ॥ तं स्यन रूव रूव रूव अप्प रूव चिंतनं, आनंद नंद सुद्ध नंद परमनंद नंदिनं । अनेय भेय अनिस्ट रूव पर पर्जाव मुक्तयं, तं ममल न्यान ममल झान सिद्धि सुह सम्पत्तयं ॥ ८ ॥ त्वं देव देव परम देव अप्प हियं चिंतनं, पर सुभाव अनिस्ट रूव अप्प सहाव निकंदनं । जो एय भेय अप्प सहाव तिअर्थ अर्थ जोयनं, सो पंच दिमि न्यान इस्टि मुक्ति पंथ सोहिनं ॥ ९ ॥ अन्मोय न्यान गुन अनंत सुद्ध पंथ दर्सियं, तं सुद्ध भाव जिन सहाव विषय राग तिक्तयं । सो भव्य लोय न्यान उत्तु ममल भाव जुत्तयं, सो कम्मु मुक्कु मुक्ति पंथ सिद्धि सुह सम्पत्तयं ॥ १० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (३३) पय संजोय छंद गाथा गाथा ६४० से ६५० तक (विषय : नन्द ५, पय) पय संजोय नंद आनंदह, पय परम न्यान संजुत्तऊ । तं भय षिपिय नन्द आनंदह, ममल सिद्धि संपत्तऊ ॥ १ ॥ उर्वन न्यान ममल झान, विन्यान विंद दर्सिऊ । सो सुर्क उत्तु ऊर्ध जुत्तु, सु मुक्ति रमनि रत्तऊ ॥ २ ॥ सु कमल उत्तु रमन जुत्तु, अमिय रस संजुत्तऊ । सु सल्य तिक्त सल्य मुक्कु, ससंक भय गलंतऊ ॥ ३ ॥ सु नंद नंद चेयनंद, सहजनंद नंदिऊ । सु परम नंद परम उत्तु, सु परम सिद्धि रत्तऊ ॥ ४ ॥ सु राग उत्तु सरनि जुत्तु, भयह भव भमंतऊ । सु भय विनासु भव्वु उत्तु, अमिय रस रसंतऊ ॥ ५ ॥ उर्वकार विंद सहजनंद, विन्यान विंद दर्सिऊ । सर्वार्थ सिद्धि लोयलोय, सु रमन उत्तु जुत्तऊ ॥ ६ ॥ सु अमिय उत्तु रमन जुत्तु, विन्यान विंद दर्सिऊ । सु सुर सहाउ पद संजुत्तु, परम तत्तु रत्तऊ ॥ ७ ॥ तं दिस्टि जुत्तु ममल उत्तु, उत्पन्न रिस्टि रिस्टिऊ । तं विपक दिस्टि मुक्ति रिस्टि, सु भय विनस्य भव्वऊ ॥ ८ ॥ तं कमल उत्तु ममल जुत्तु, अमिय रस रसंतऊ । उर्वन न्यान ममल झान, तिअर्थ अर्थ जुत्तऊ ॥ ९ ॥ - घत्ताइय सहाव संजुत्तऊ, न्यान मई अनुरत्तऊ। न्यानेन न्यान आलम्बनऊ, परमप्पु सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ ११ ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सु रमन उत्तु कमल जुत्तु, सिद्धि सुह सम्पत्तऊ । तं भय विनासु भव्वु उत्तु, ममल सिद्धि संपत्तऊ ॥ १० ॥ -घत्ताइय सहाव उववन्नऊ, परम नंद तं नंद मऊ । भय सल्य संक विलयंतु सुइ, ममलु मुक्ति संपत्तऊ ॥ ११ ॥ (३४) सब्द वियार अचष्य दर्सन गाथा गाथा ६५१ से ६७५ तक (विषय : विकल्प रूप पर पर्याय, सक स्वभाव) सब्द वियार संजुत्तं, सब्दं सहकार उववन्न न्यानं च । तारन तरन सहावं, भय षिपिय अभय न्यान ममलं च ॥ १ ॥ अचष्यं सब्द स उत्तं, अचष्यं परम तत्तु पद विदं । अचष्यं अनंत नंतं, अचष्य सहावेन मुक्ति संदर्स ॥ २ ॥ अचष्यं ममल सहावं, ममलं दिट्ठी च अभय भय रहियं ।। भय विनस्य भवियनं, न्यानं अन्मोय मुक्ति संदर्स ॥ ३ ॥ अचष्य रूव अरूवं, रूवातीतं च विक्त रूवं च । पर पर्जय विलयतो, न्यान बलेन कम्म गलियं च ॥ ४ ॥ अचष्य सहाव स उत्तं, अचयं सहकार समल विलयंति ।। अन्यान दिस्टि विलयंतो, ममल सहावेन मुक्ति संदर्स ॥ ५ ॥ अचष्यं षिपनिक रूवं, विपिऊ संसार सरनि मोहंधं । पर पर्जावं विपनं, न्यान सहावेन निव्वुए जन्ति ॥ ६ ॥ अचष्यं इस्टि स इस्ट, अनिस्टं अन्यान उर्वन विलयंति । विलयं मिथ्य सहावं, इस्टं दिस्टी च कम्म संषिपनं ॥ ७ ॥ अचष्यं अलष्य लषियं, लषियो विन्यान नंत सहकारं । नंतं ममल सहावं, भय षिपनिक नंत कम्म विलयंति ॥ ८ ॥ अचष्यं दर्सन दर्स, अचष्य रूवेन पर्जाव विलयंति । जनरंजन सहाव गलियं, गलियं रागं च न्यान विन्यानं ॥ ९ ॥ अचष्य अदिस्ट स दिस्टं, दिस्टि सहकार अदिस्टि रूवेन । इस्ट सहाव स दिस्ट, अनिस्ट दिस्टी च पर्जाव विलयति ॥ १० ॥ अचष्यं अनेय भेयं, अनेयं सहकार लोय अवलोयं । अचष्य सहाव सु ममलं, ममलं दिस्टि च पर्जाव विलयंति ॥ ११ ॥ अचष्यं चष्य स उत्तं, अदिस्ट दिस्टं च न्यान सहकारं । अनंतानंत पर्जावं, न्यानं दिस्टी च पर्जाव विलयंति ॥ १२ ॥ अचष्यं नंत सुभावं, नंतानंतं च अनंत विषयं च । विषयं च विषय सल्यं, न्यानं अन्मोय विषय विष विलयं ॥ १३ ॥ अचष्यं इन्द्री सहियं, आलस परपंच विभ्रमं सहियं । अन्यान सहाव स दिद, ममलं अन्मोय सयल विलयंति ॥ १४ ॥ आलस सहाव उत्तं, आलस उत्तं च वयन नहु सहियं । जिन उवएस भयभीयं,भय षिपनिक सहकार आलसं विलयं ॥ १५ ॥ आलस विसेष असुद्धं, जिन उत्तं वयन आलसं उत्तं । मिथ्या सहाव सु विषयं, न्यानं अन्मोय आलसं गलियं ॥ १६ ॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी परपंच नंत नंतं, पर्जय सहकार ससंक सल्यं च । पर पर्जय संक सहावं, न्यानं अन्मोय संक विलयंति ॥ १७ ॥ अचष्यं ससंक सहियं, जिन उत्तं भयभीउ ऊसर सर पसरं । दिट्ठी चंचल चवलं, भय षिपनिक सल्य संक विलयंति ॥ १८ ॥ अचष्यं ससंक सहावं, जिन उत्तं वयन अनंत भय उत्तं । दिस्टि अंग पदर्थं, वंकज रूवेन प्रपंच पर्जावं ॥ १९ ॥ वयनं च कम्म सल्यं, उत्पन्नं अनंत वेयनं उत्तं । अन्यानं पर्जय दिट्ठी, न्यानं अन्मोय ससंक विलयंति ॥ २० ॥ अचष्यं विभ्रम सहियं, अनंत रूवेन पर्जाव संक सल्यं च । विभ्रम नंत अनंतं, ममलं अन्मोय विभ्रमं विलयं ।। २१ ।। अचष्यं विभ्रम सहियं, ज्योतिष कलाप प्रपंच दसति । अनेयं भयभीयं, न्यानं अन्मोय विभ्रमं विलयं ॥ २२ ॥ अचयं सहाव स उत्तं, जनरंजन सहाव ससंक उप्पत्ती । जन उत्तं जन सहियं, न्यानं अन्मोय जनरंजनं विलयं ।। २३ ।। अचयं विसेष उत्तं, जन सहकार पर्जाव परु पिच्छं । अचष्यं ममल स उत्तं, न्यानं अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २४ ॥ जन उत्तं सक सहियं, कल पर्जाव दिस्टि संदर्स । जिन उत्तं सुद्ध सारं, न्यानं अन्मोय विकल्पं विलयं ॥ २५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (३५) सर्वार्थ सिद्धि छंद गाथा गाथा ६७६ से ६८९ तक (विषय! न्यान ५, दृष्टि १४, विषय २७) पय उववन्न परम परमिस्टिहि, इस्टी दिस्टि च परम ममल अन्मोयह । पय संजोय अलषु तं लषियो, भय षिपनिक अन्मोय ममल सहकारहं ॥ १ ॥ जं उववन्नु नंत अनंतह, लोयालोय ममल सुद्ध अन्मोयह । तं भय षिपिय नंत जिन उत्तह, पय कलन कमल न्यान सहकारहं ॥ २ ॥ उवन उवन नंत नंत सिद्धि सुद्ध ममल उत्त सुत्तऊ, विन्यान न्यान सुद्ध झान विंद विंद सुद्ध सिद्धि जुत्तऊ । कंमट्ठ गट्ठ तं अनिट्ठ समल चित्त उत्त जुत्तऊ, सु न्यान दिस्टि परम इस्टि ममल न्यान छिनिऊ ॥ ३ ॥ सर्वार्थसिद्धि लोयलोय अर्थ उत्त विंद विंद दर्सिऊ, विन्यान न्यान सहज रूव परम नंद नंदिऊ । ॐकार विंद सहज नंद ममल न्यान उत्तऊ, सु ममल भाव कमल उत्तु सिद्धि कमल जुत्तऊ ।। ४ ।। तं भौह उत्तु भय अनंतु पर पर्जाव जुत्तऊ, तं न्यान उत्तु भय विनासु भौह भय विनट्ठिऊ । सो भव्वु जानि गुन निहानि ममल भाव जुत्तऊ, सरूव रूव विक्त रूव परम रूव जुत्तऊ ॥ ५ ॥ (१९७) Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जं भय विरत्तु षिपक उत्तु सो भय विनासु भव्वऊ, सो अभय उत्तु ममल चित्तु तिविहि कम्म गलंतऊ । जो तत्तु उत्तु परम पत्तु उत्पन्न न्यान संजुत्तऊ, सो कमल उत्तु मुक्ति पंथु सिद्धि सुह सम्पत्तऊ ॥ १२ ॥ -घत्ताइय विसेष संजुत्तऊ, न्यान मई अनुरत्तऊ । तं कमल भाव संजुत्तऊ, ममल मुक्ति सम्पत्तऊ ॥ १३ ॥ नाना प्रकार न्यान सहिउ, नंतानंत सु ममल पऊ । भय विनासु भवु जु मुनहु, भय षिपिय मुक्ति संपत्तऊ ॥ १४ ॥ श्री ममल पाहुइ जी जं भय विनासु सल्य मुक्कु ससंक भय गलंतऊ, निसंक भाउ अप्प सहाउ पर पर्जाव मुक्कऊ । तं नंत न्यान ममल झान कम्म मल विमुक्कऊ, सो भय विनासु भवु उत्तु सिद्धि सुह संजुत्तऊ ॥ ६ ॥ जं भय विनासु भौह मुक्कु अभय दिस्टि दिस्टिऊ, तं दिस्टि इस्टि रिस्टि उस्टि ममल दिस्टि रिस्टि जुत्तऊ । तं दर्स दर्स चष्य दर्स लोयलोय दिस्टि इस्टि दर्सिऊ, सो झान दिस्टि परम इस्टि समल दिस्टि विमुक्कऊ ॥ ७ ॥ सु दिस्टि सुद्ध सुद्ध न्यान ममल दिस्टि इस्टि दर्सिऊ, सु सुद्ध पंथ नंत थान भय विनस्ट दिस्टि दिस्टिऊ । अलषु लषु न्यान सुद्ध सहकार नासिका स उत्तऊ, सुर्य सुद्ध ममल अस्कंध सुद्ध न्यान दर्सिऊ ॥ ८ ॥ दुरिस्ट नस्ट दुरस्कन्ध दुसह भय स उत्तऊ, सो भय विनस्ट न्यान इस्ट ममल भाव जुत्तऊ । सु न्यान रूव रूव अरूव नासिका स उत्तऊ, सहकार न्यान तह विन्यान कमल भाव जुत्तऊ ॥ ९ ॥ सो कमल कलिउ ममल मिलिउ न्यान दिस्टि उत्तऊ, सो कमल उत्तु भय विनासु निसंक रूव जुत्तऊ । सो विवर मुक्कु मुंह विमुक्कु कमल ममल उत्तऊ, सो वयन सुद्ध जिन स उत्त कमल भय विमुक्कऊ ॥ १० ॥ सो उत्त सुद्ध परिनै जुत्तु परम निह कलंकऊ, जो परम भाउ जिन सहाउ ममल भाउ जुत्तऊ । सो कम्मु मुक्कु सल्य तिक्त मिथ्या मय विरत्तऊ, सो न्यान दिस्टि इस्टि इस्टि ममल कमल उत्तऊ ॥ ११ ॥ (३६) अचष्य मनरंजन गाथा गाथा ६९० से ७१९ तक (विषय : लक्षण परिणाम, भव हरित परिणाम, मन रंजन के विषय, शास्त्र के भेद - प्रभेद, शुभाशुभ पर्याय के त्याग से मुक्ति) अचष्य सुभावं सहियं, कल सहकार पर्जाव दिस्टं च । पर्जय सरनि सक सल्यं, न्यानं अन्मोय पर्जाव गलियं च ॥ १ ॥ अचष्यं अनंत विसेषं, कलरंजन दोष दिस्टि सहकारं । जिन उत्त न्यान अन्मोयं, कलरंजन दोष नंत विलयति ॥ २ ॥ मनरंजन अचष्य रूवं, मन सहकारेन विषय पर्जावं । पर पर्जय सल्य सु विषयं, मनरंजन गलिय न्यान अन्मोयं ॥ ३ ॥ मनरंजनं च सहावं, अनेय कस्टं च अन्मोय उत्तं च । तव क्रियं च पर्जावं, मनरंजन विलय न्यान अन्मोयं ॥ ४ ॥ (१९८) Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी मनरंजन श्रुतं च उत्तं, पर्जावं सहकार विकह बंधानं । बंधान रूव विन्यानं, मनरंजन भाव दुग्गए पत्तं ॥ ५ ॥ मनरंजन श्रुतं च भेयं, तर्क व्याकरन निरीष्यनं जोयं । वेदं अन्यान अनर्थं, मनरंजन सहाव निगोय वासम्मि ॥ ६ ॥ मनरंजन गारव उत्तं, मीमांसा सहकार धम्म स उत्तं । पर पर्जय ससहावं, मनरंजन गलिय न्यान अन्मोयं ॥ ७ ॥ मनरंजन अन्यान सहावं, पर्जय सहकार समल पिच्छंतो । सामुद्रिक कोक पर्जावं, मनरंजन विलय न्यान अन्मोयं ॥ ८ ॥ अचष्य सहाव स उत्तं, दर्सन मोहंध नंत नंताई । दर्सन अरूव रूवं, मोहंधं दिस्टि पर्जाव रूवं च ॥ ९ ॥ दर्सन अनंत सु ममलं, पर्जय सहकार दर्सए समलं । दर्सन मोहंध सु विलयं, न्यानं अन्मोय पर्जाव गलियं च ॥ १० ॥ अचष्यं रूव सहियं, न्यानं आवर्न सरनि संसारे । जिन उत्त न्यान नहु दिटुं, न्यानं अन्मोय गलिय आवर्न ॥ ११ ॥ अचष्यं दर्स अनिस्टं, दर्सन आवर्न अनिस्ट सहकारं । पर पर्जय दर्सतो, ममलं अन्मोय विलय आवन ॥ १२ ॥ अचष्यं मोह पर्जावं, मोहन आवर्न न्यान विलयंति । पर पर्जय मोहंधं, भय षिपियं न्यान विलय आवर्न ॥ १३ ॥ अचयं नंत पर्जावं, पर्जय सहकार अंतरं न्यानं । जदि न्यान अन्मोय सु ममलं, भय षिपनिक नंत अंतरं विलयं ॥ १४ ॥ अचयं दर्सन सुद्धं, न्यानं अंतर विलय नंत नंतानं । संमिक् दर्सन दर्स, न्यानं अंतर सयल विलयं च ॥ १५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अंतर अन्यान सहावं, न्यानं भयभीय सल्य सक उत्तं । ममल न्यान अन्मोयं, भय षिपियं न्यान अंतरं विलयं ॥ १६ ॥ अचष्य सहाव स उत्तं, सुह असुहं च अन्मोय संदिट्ट । पर्जय सरनि संजुत्तं, न्यानं अन्मोय पर्जाव गलियं च ॥ १७ ॥ अचष्यं सहाव सु सब्दं, सब्दं सहकार पर्जाव सहियं च । सब्दं सहाव सु समयं, न्यानं अन्मोय सब्द विलयंति ॥ १८ ॥ जिह्वा अग्र उवन्नं, दिस्टं जिनेन्द विंद विन्यानं । नंत चतुस्टय जुत्तं, परिनाम विन्यान न्यान चौसठियं ॥ १९ ॥ चौसठि अर्थ जुत्तं, चतुस्टय सहकार सहज ठिदि ममलं । मुक्ति सुभावं ठिदियं, ठिदियं मुक्तस्य ममल न्यानं च ॥ २० ॥ जिह्वा कंद सु ममलं, सौ अट्टम्मि परिनाम न्यानं च । कम्म कलंक सु विलयं, विन्यानं विंद सरूव संकलियं ॥ २१ ॥ सौ अटुंमि स अर्थ, सहकारं उववन्न अप्प अष्टांग । परम मुक्ति संठिदियं, मुक्तिं विन्यान न्यान ममलं च ॥ २२ ॥ जिह्वा सहाव जुत्तं, परिनाम सहसट्ठ लष्यनं ममलं । चौबीसं तित्थयरं, भय षिपनिक सहकार न्यान ममलं च ॥ २३ ॥ लपिऊ न्यान संजुत्तं, लष्यन सहकार विंद विन्यानं । भय षिपियं ममल सहावं, धम्मं ससहाव मुक्ति गमनं च ॥ २४ ॥ जिह्वा लष्यन सहियं, लष्यन जिनेन्द विंद तित्थयरं । अर्थस्य अर्थ परमर्थं, तिअर्थं आयरन परिनाम तित्थयरं ॥ २५ ॥ भय उत्तं च जिनेन्दं, भय षिपियं ति अर्थ अर्थ ममलं च । तिअर्थ भय त्रितियं, भय षिपियं अभय न्यान सहकारं ॥ २६ ॥ १९९) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी भय विलयं ममल सहावं, परिनाम न्यान सुर्य च अटुंमि ।। नौ सहकार संजुत्तं, नौ सै बहत्तरम्मि न्यानं च ॥ २७ ॥ तिअर्थ अर्थ सहियं, साठिं परिनाम न्यान विन्यानं । लष्यन जिन उवएस, सहसं अटुंमि न्यान ममलं च ॥ २८ ॥ चौबीसं च संजुत्तं, तित्थयरं उववन्न न्यान विन्यानं । भय विनस्ट सहकारं, ममल सहावेन सिद्धि सम्पत्तं ।। २९ ।। लण्यन जिन उवएस, न्यानं विन्यान सहाव ममलं च । भय षिपियं ममल सहावं, धम्मं स सहाव लष्यनं ममलं ॥ ३० ॥ (३७) हो जोगी फूलना गाथा ७२० से ७४४ तक (विषय : अर्थ पय, ॐ हीं श्रीं तीन अर्थ की महिमा, धर्म का स्वरूप, ____जिनमार्ग के योगी की साधना, १४ दृष्टि) जोगी हो जिन मारग जोगी, जोयो न्यान विन्यानं । नंद आनंदह चिदानंद मै, सहजनंद स सहाउ ॥ १ ॥ हो जोगी जिन मारग जोगी जोयौ नंतानंतु । नंत विसेषे दर्सन दर्सइ, वीर्ज सौष्य स उत्तु ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जिन उवएसिउ ममल सरूवे, ममल सिद्धि सभाउ । भय षिपनिक है भव्वु स उत्तउ, सहज मुक्ति ससहाउ ॥ ३ ॥ ॥ हो जोगी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिनियौ जिनवर न्यान सरूवे, कम्मु अनंतानंतु । अमिय पयोहर न्यान विन्यानह, धम्म सहाव संजुत्तु ॥ ४ ॥ ॥हो जोगी.॥ जिनियौ जिनवर उत्तउ सहजे, मुक्ति पंथ सुभाउ । ममल सहावे सिद्धि सरूवे, भय षिपिय सिद्धि ससहाउ ॥ ५ ॥ ॥हो जोगी.॥ जिनवर उत्तउ ममल सरूवे, उवनउ दाता देउ । अमिय रसायन धम्मह सहियौ, मुक्ति पंथु दरसेई ॥ ६ ॥ ॥हो जोगी.॥ देउ उवनउ न्यान सरूवे, दाता देव सहाउ । परम देव जो परम ऊवनौ, ममल सिद्धि स सहाउ ॥ ७ ॥ ॥हो जोगी.॥ न्यान विन्यानह परम न्यान मै, उवनौ दाता सोई। भय षिपनिक तं भव्वु उवएसिउ, परम देउ सम सोई ॥ ८ ॥ ॥ हो जोगी.॥ अमिय हरसियौ परम सुभावह, धम्मु ति अर्थह जोई । देव जु कहियो परम देव सुइ, सिद्धि मुक्ति सम सोई ॥ ९ ॥ ॥हो जोगी.॥ उर्वकार उनु जु सहियौ, उवनउ उवन सहाउ ।। ममल सहावे कम्मु जु विलियौ, भय षिपिय मुक्ति स सहाउ ॥ १० ॥ ॥ हो जोगी.॥ (२००) Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उवनौ विंद विन्यानह सहियौ, परमानंद सहाउ । अमिय सरूवे मुक्ति संजोए, धम्म सिद्धि सभाउ ॥ ११ ॥ ॥हो जोगी.॥ उवनौ नंतानंत चतुस्टै, परम इस्टि परमिस्टि । इस्टि रिस्टि सुइ ममल विन्यानी, भय विनस्य सुइ रिस्टि ॥ १२ ॥ ॥हो जोगी.॥ सिस्टि सहावे उस्टि संजोए, सहकार इस्टि ससहाउ । अवयास इस्टि तं ममल सरूवे, भय षिपिय मुक्ति संभाउ ॥ १३ ॥ ॥हो जोगी.॥ अन्मोय इस्टि तं अमिय सरूवे, षिपक इस्टि जिन उत्तु । धम्म सहावे सिद्धि सरूवे, मुक्ति इस्टि संजुत्तु ॥ १४ ॥ ॥हो जोगी.॥ जिनवर उत्तउ सहज सरूवे, मुक्ति पंथु सह नंदु । दिस्टिहि सहियउ ममल सरूवे, भय षिपिय नंद परमनंदु ॥ १५ ॥ ॥हो जोगी.॥ नन्त सौष्य तं अमिय सरूवे, दिस्टि सहाव स उत्तु । धम्म सरूवे सिद्धि सहावे, सहजे मुक्ति पहुंतु ॥ १६ ॥ ॥हो जोगी.॥ ह्रियंकार हितकारह सहियो, अरुह सुभाउ स उत्तु । हींकारह सु ममल सुभावह, भय विनस्य सिद्धि संपत्तु ॥ १७ ॥ ॥हो जोगी.॥ ह्रींकारह हिययार सु सहियो, अमिय रमन रस उत्तु । अर्थति अर्थह न्यान विन्यानह, धम्मह सिद्धि संजुत्तु ॥ १८ ॥ ॥हो जोगी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हिययारह हिययार उनऊ, हिय हुतकार संजुत्तु । ममल सहावे अर्क विंद है, भय षिपिय सिद्धि संजुत्तु ॥ १९ ॥ ॥हो जोगी.॥ हिययारह तं रमनह सहियौ, अमिय महारस जुत्तु । न्यान सहावे पिपनिक रूवे, धम्मह मुक्ति पहुंतु ॥ २० ॥ ॥हो जोगी.॥ हिययारह उववंन संजुत्तउ, सहयारह सम दिट्ठी । ममलह ममल सहाव संजुत्तउ, भय षिपिय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २१ ॥ ॥हो जोगी.॥ सहयारह ससहाउ संजुत्तउ, अमिय वयन जिन उत्तु । हिययारह उववन्नु सु सहियो, धम्म रमन सिव पंथु ॥ २२ ॥ ॥हो जोगी.॥ सहयारह संजोगे भवियन, हिययार दिस्टि उवएसु । भय विनासु तं भव्वु उवन्नऊ, ममल सिद्धि सम्पत्तु ।। २३ ।। ॥हो जोगी.॥ सहयारह संजोगे जोगी, अमिय रखन रस जुत्तु । तारन तरन सहावह सहजे, धम्म रमन सिवसंतु ॥ २४ ॥ ॥हो जोगी.॥ उववन्नह हिययार स उत्तउ, सहयारह ममल सहाउ । अर्थति अर्थह ममलह सहियौ, भय विपकु सिद्धि सम्पत्तु ।। २५ ॥ ॥ हो जोगी.॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (३८) हम गंमि मऊ फूलना गाथा ७४५ से ७५९ तक (विषय । अष्यर, स्वर, व्यंजन की सहायता से परम तत्त्व का दर्शन) जिन नंद नंद आनंद मऊ, जिन उवनउ सिद्धि सहाउ । जिन समय संजुत्तउ सरन मऊ, जिन दरसिउ ममल सुभाउ ॥ १ ॥ हम गम्य मऊ हम विंदि मऊ, हम परमानंद सहाउ । हम नंद आनंदह नंद मऊ, हम मुक्ति सिद्धि स सहाउ ॥ २ ॥ हम रंजन रमनह परम पऊ ॥ आचरी॥ जिन रमनह जोयो रंज मऊ, जिन न्यान विन्यान संजुत्तु । जिन अर्थति अर्थह रमन पऊ, जिन अमिय रमन दर्सतु ॥ ३ ॥ ॥ हम.गंम.॥ भय षिपिय भव्वु तं रमन पऊ, तं अमिय रमन विहसंतु । तं रंजन जोयो ममल पऊ, तं रंज रमन सिद्धि रत्तु ॥ ४ ॥ ॥हम.गंम.॥ तं न्यान सरूवे रूव मऊ, तं अमिय दिस्टि दर्सतु । तं भय विनासु सहकार मऊ, तं रमन रंज सिद्धि रत्तु ॥ ५ ॥ ॥ हम.गंम.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उववन्न उनऊ न्यान मऊ, तं ममल न्यान सुइ उत्तु । तं अमिय रसायन रंज मऊ, तं समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ ६ ॥ ॥हम.गंम.॥ तं अष्यर सुर विंजन सहिऊ, पद परम तत्तु दर्सतु । भय षिपिय भव्य विन्यान मऊ, तं रंज रमन मुक्ति संजुत्तु ॥ ७ ॥ ॥ हम.गंम.॥ तं पद अर्थह संजुत्तु पऊ, तं अर्थति अर्थ संजुत्तु । तं अमिय कमल जिन समय मऊ, तं रमन रंज सिव पंथु ॥ ८ ॥ ॥ हम.गंम.॥ तं समयह परिनै परिनमऊ, उत्पन्न उवएस संजुत्तु । भय षिपिय अमिय रस ममल पऊ, तं जय जय रंज रमंतु ॥ ९ ॥ ॥ हम.गंम.॥ तं समय सहावह ममल पऊ, सहयार न्यान संजुत्तु । तं अमिय पयोहर रमन पऊ, तं रंज कमल जिन उत्तु ॥ १० ॥ ॥हम.गंम.॥ अवयासह नंतानंत पऊ, तं नंत न्यान दरसंतु । भय षिपिय नंत वीरज सहिऊ, तं रंज रमन सुह नंतु ॥ ११ ॥ ॥हम.गंम.॥ अन्मोय न्यान तं कमल मऊ, तं अमिय पयोहर रत्तु । तं रिस्टि इस्टि विन्यान पऊ, तं रमन रंज सिव संतु ॥ १२ ॥ ॥ हम.गंम.॥ (२०२) Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी तं षिपक भाव भय षिपिय मऊ, तं सल्य संक विलयतु ।। तं नंत कम्मु विलयंतु सुइ, तं रमन रंज सिद्धि रत्तु ॥ १३ ॥ ॥हम.गंम.॥ तं मुक्ति ममल सुइ उवन पऊ, तं अमिय रमन रस जुत्तु । तं नंत कम्मु विलयंतु सुई, तं रमन रंज विहसंतु ॥ १४ ॥ ॥हम.गंम.॥ तं तारन तरन सहाउ मऊ, तं रमन विवान संजुत्तु । भय षिपिय रंज अन्मोय मऊ, सम समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १५ ॥ ॥हम.गंम.॥ (३९) न्यान अन्मोय पचीसी फूलना गाथा ७६० से ७८५ तक (विषय : दिस्टि १४) उव उवन उवन पउ, उवन रमै। उव उवन अन्मोय स न्यानी समय समय ॥ १ ॥ स्वामी देहाले सुइ सिद्धाले भेउ न रहै। जं जाके अन्मोय स न्यानी मुक्ति लहै ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जैसे दिस्टि सहावे न्यानी इस्टि रमै। तैसे विंद विन्यान स न्यानी सिद्धि समै ॥ ३ ॥ ॥ स्वामी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जैसे इस्टि संजोए रस्टि रिस्टि रमै। तैसे कमल अन्मोय स न्यानी मुक्ति गमै ॥ ४ ॥ || स्वामी.॥ जैसे समय सहावे इस्टि सस्टि गमै। तैसे विंद रमन न्यानी मुक्ति रमै ॥ ५ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे उवन उवन दिस्टि समय समय। तैसे तरन विवान अन्मोये मुक्ति गमै ॥ ६ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे दिस्टि सहावे न्यानी सहै समय । तैसे तरन विवान अन्मोये मुक्ति रमै ॥ ७ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे अवयास दिस्टि स न्यानी नंतु गमै। तैसे तरन अन्मोये विंदे मुक्ति गमै ॥ ८ ॥ ॥ स्वामी.॥ जैसे न्यान अन्मोये दिस्टि षिपकु षिपै । तैसे कमल रमन न्यानी केवलु लहै ॥ ९ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे षिपक सु इस्टि स न्यानी मुक्ति रमै। तैसे तरन विवान अन्मोये सिद्धि गमै ॥ १० ॥ ॥स्वामी.॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जैसे मुक्ति सहावे न्यानी सुष्य रमै । तैसे तरन रमन विंदे मुक्ति गमै ॥ ११ ॥ ॥ स्वामी.॥ जैसे कमल रमन जिन उत्तु गमै । तैसे विंद रमन न्यानी मुक्ति रमै ॥ १२ ॥ ॥ स्वामी.॥ जैसे उवन सहावे न्यानी तत्तु रमै । तैसे तारन अन्मोय स न्यानी अगमु गमै ॥ १३ ॥ ॥ स्वामी.॥ जैसे रयन रमन न्यानी रयनि विलै । तैसे तरन अन्मोय स विंदे कम्मु गलै ॥ १४ ॥ ॥ स्वामी.॥ जैसे जोति अन्मोये रमने जोति रमै । तैसे कमल विंद रस न्यानी मुक्ति गमै ॥ १५ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे रमन सहावे न्यानी सुर सुय रमै । तैसे न्यान अन्मोय स न्यानी मुक्ति गमै ॥ १६ ॥ ॥ स्वामी.॥ जैसे जलह सहावे विषु विद्धि करै । तैसे न्यान अन्मोय स न्यानी केवलु सरै ॥ १७ ॥ ॥ स्वामी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जैसे सिद्ध सरूवे सिद्ध सिद्धि गमै । तैसे तारन अन्मोय स न्यानी विंद रमै ॥ १८ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे विंजन रमन सुर सुयं अगमु गमै । तैसे विंद रमन तारन सहज रमै ॥ १९ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे मुक्त सुभावे स न्यानी मुक्ति गमै। तैसे कमल रमन स न्यानी केवलु रमै ॥ २० ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे ममल अन्मोय स न्यानी सिद्धि गमै । तैसे तरन विवान अन्मोये विंद रमै ॥ २१ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे षिपक सुभावे स न्यानी षिपि मुक्ति गमै। तैसे कमल स विंद अन्मोये मुक्ति रमै ॥ २२ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे न्यान विन्यान अन्मोये मुक्ति गमै। तैसे तारन अन्मोये स न्यानी विंद रमै ॥ २३ ॥ ॥स्वामी.॥ जैसे समय सहावे न्यानी केवल रमै । तैसे कमल रमन जिनु अगम गमै ॥ २४ ॥ ॥स्वामी.॥ (२०४) Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जैसे सुयं रमन जिनु अमिय रमै । तैसे तारन अन्मोये स विंदे कमल समै ॥ २५ ॥ ॥स्वामी.॥ जं तारन तरन स न्यानी अमिय गमै । तं तरन स विंद कमल जिनु सिद्धि रमै ॥ २६ ॥ ॥स्वामी.॥ (४०) अचष्य सब्द माथा गाथा ७८६ से८०९ तक (विषय : आकर्न के विषय -७, सर-७) अचयं उवन सहावं, सब्दं सहकार ममल उप्पत्ती । ममलं ममल स उत्तं, कमल सहावेन केवलं उत्तं ॥ १ ॥ अचष्यं उवन सहावं, उवनं संजोय न्यान विन्यानं । हिययार रमन सर्वन्यं, कमलं संजोय ममल न्यानं च ॥ २ ॥ अचष्यं सुयं सु उवनं, उवनं उव उवन हिययार संजुत्तं । सिद्धं सिद्ध सरूवं, न्यानं विन्यान ममल जिन जिनयं ॥ ३ ॥ अचष्यं अचष्य उर्वनं, असब्द सहकार सुर्य जिन जिनयं । कमल ममल जिन उत्तं, सिद्धं सहकार उवन धुव ममलं ॥ ४ ॥ अचष्यं असब्द सहावं, दिस्टं अदिस्टि उवन सुइ उवनं । कमल गिरा सिय सहियं, धुव उवनं उवन कमल वयनं च ॥ ५ ॥ अचष्यं इस्टि सुइ उवनं, इस्ट इस्टंति उवन सुइ रमनं । इस्टं उवन संजोयं, उवन सहावेन सिद्ध धुव वयनं ॥ ६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अचष्यं दर्सन दर्स, इस्टं दसैंति न्यान सभावं । इस्ट दर्स सुइ उवनं, उवनं संजोय सिद्धि धुव वयनं ॥ ७ ॥ अचष्यं रमन सु रमनं, हिय उववन्न रंज जिन उवनं । उववन्न रमन जिन रमनं, सिय धुव संजोय अमिय सुइ वयनं ॥ ८ ॥ अचष्य उवन सहावं, सिय सहकार धुव वयन ममलं च । ममलं उवन उवएस, सिय सहकार सिद्ध धुव रमनं ॥ ९ ॥ सब्द सुयं सुइ उवनं, रमनं रमिऊन ममल न्यानं च । रसिऊ सब्द जिनुत्तं, सिय सहकार कमल धुव रमनं ॥ १० ॥ सब्दं कसनि सहावं, कमल सहावेन सिद्धि धुव रमनं । कमल कलिय जिन वयनं, धुव सब्दं च कसनि ममलं च ॥ ११ ॥ सब्दं तंति तिअर्थ, तत्त्वं सहकार उवन उवनं च । उवनं उवन स उत्तं, सुइ उवन कार्ज च कलिय जिन वयनं ॥ १२ तत्काल सब्द सुइ उवनं, तत्कालं रमन न्यान विन्यानं । रंज रमन जिन उत्तं, नंद आनंद सिद्धि सम्पत्तं ॥ १३ ॥ सब्दं अविक्त रूवं, स्फटिक सुर्य सुइ उवन ममलं च । उवनं उवन सु रमनं, सिय धुव सहकार मुक्ति गमनं च ॥ १४ ॥ सब्द सुर्य सुइ रमनं, सब्दं विन्यान न्यान जिन उत्तं । जिनयति जिनय सरूवं, सिय धुव परिनाम केवलं उत्तं ॥ १५ असब्द सब्द स उत्तं, असब्द विलयंति सब्द जिन उत्तं । __सब्द सुयं उववन्नं, सब्दं संजोय ममल न्यानं च ॥ १६ ॥ सरं सहाव अचष्यं, सब्द संजोय कमल जिन उत्तं । सब्द विंद सर उवनं, अर्क सब्दं च चष्य अचष्यं ॥ १७ ॥ (२०५) Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी असब्द सर संजोयं, अदिस्टं अनश्रुत सब्द जिन उत्तं । गम्य अगम सुइ रमनं, रमनं सिय रमन कमल जिन वयनं ॥ १८ ॥ गुपित सब्द जिन उत्तं, गुपितं अन्मोय गुपित सुइ उवनं । दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द, सहकारं संजोय सब्द पिउ उवनं ॥ १९ ॥ सब्द समय सम उवनं, उवनं सर सब्द न्यान विन्यानं । विन्यान रंज सुइ रमनं, नंदं आनंद जिनय जिन उवनं ॥ २० ॥ सरं सहाव सु ममलं, ममलं सहकार सुयं सुइ कमलं । कमल कलिय जिन उत्तं, कमलं सहकार केवलं ममलं ॥ २१ ॥ अचष्यं सुभाव स उत्तं, अचष्यं उव उवन लष्य लष्यं च । गम अगम्य जिन वयनं, जिन उत्तं उवन अचष्य ममलं च ॥ २२ ॥ अचष्यं सुयं सुइ उवनं, उवन सहावेन कमल सुइ सुवनं । सुयं सुयं सुइ उवनं, जिन उत्तं सहकार मुक्ति गमनं च ॥ २३ ॥ तारन तरन सु रमनं, रंज रमन नंद रयन संजुत्तं । विवान उवन सुइ उत्तं, विवानं तरन सिद्धि सम्पत्तं ॥ २४ ॥ दीजै रमन कि रयन पउ विजौरोदे, कमल रमन जिन उत्तु विजौरोदे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ न्यान डोरि मन राषियौ विजौरोदे, अन्मोय न्यान सिद्धि रत्तु विजौरोदे । न्यानी न्यान सहाउ ले विजौरोदे, जं बाधा अवधौ जुत्तु विजौरोदे ॥ ३ ॥ ॥दीजै.॥ अष्यर रमनह रयन पउ विजौरोदे. सुर रमनह मुक्ति सुभाउ विजौरोदे ।। सुर रमनह मात विसेष ले विजौरोदे, विन्यान रमन सिद्धि रत्तु विजौरोदे ॥ ४ ॥ ॥ दीजै.॥ विजन विन्यानह सहिउ विजौरोदे, विन्यान मुक्ति दर्सतु विजौरोदे । अलष लषिउ सुइ न्यान पउ विजौरोदे, लषियौ लोय अलोय विजौरोदे ॥ ५ ॥ ॥ दीजै.॥ लोय अलोयह ममल पउ विजौरोदे, सहयार सरीर सुभाउ विजौरोदे । अर्थति अर्थह न्यान पर विजौरोदे, षट् कमलह संभाउ विजौरोदे ॥ ६ ॥ ॥ दीजै.॥ (४१) बड़ौ विजौरो फूलबा गाथा ८१० से ८२९ तक (विषय : अष्यर, स्वर, व्यंजन, १७- सक) उवंकार उवन पउ विजौरोदे, उव उवनउ न्यान विन्यान विजौरोदे । विन्यान विंद वीरज सहिऊ विजौरोदे, अहु वीरज ममल सहाउ विजौरोदे ॥ १ ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अंगदि अंगह सुद्ध पर विजौरोदे, चक्र छत्र जिन उत्तु विजौरोदे । छत्र त्रय विन्यान मऊ विजौरोदे, रयन मई सिद्धि रत्तु विजौरोदे ॥ ७ ॥ ॥ दीजै. ॥ न्यान सहाव स सरीर मुनि विजौरोदे, परिनामू नंतानंत विजौरोदे । जिन उवएसिउ मुक्ति पऊ विजौरोदे, अप्पा ममल सहाउ विजौरोदे ॥ ८ ॥ ॥ दीजै. ॥ संसार सरनि तं नंत मुनि विजौरोदे, भमियौ दुष्य सहंतु विजौरोदे । आदि अनादि न जानियौ विजौरोदे, न्यान अन्मोय विलंतु विजौरोदे ॥ ९ ॥ ॥ दीजै.॥ जिन उवएसिउ न्यान मउ विजौरोदे, अनादि कम्मु विलयंतु विजौरोदे । न्यान पयोहर अमिय रसु विजौरोदे, अनंत कम्मु विलयंतु विजौरोदे ॥ १० ॥ ॥ दीजै.॥ न्यान विन्यानह भेउ मुनि विजौरोदे, जनरंजन राग गलंतु विजौरोदे । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जनह सहाउ न उत्तु जिनु विजौरोदे, सह न्यान राग विलयंतु विजौरोदे ॥ ११ ॥ ॥ दीजै.॥ कलरंजन दोष जु स्व गलिउ विजौरोदे, पर पर्जय विलयंतु विजौरोदे । पर्जय दिस्टि अनिस्ट मउ विजीरोदे, न्यान अन्मोय गलंतु विजौरोदे ॥ १२ ॥ ॥ दीजै.॥ मनरंजन गारौ गलिऊ विजौरोदे, वय तव क्रिय अन्यान विजौरोदे । गारौ श्रुत अन्यान मउ विजौरोदे, न्यान अन्मोय विलंतु विजीरोदे ॥ १३ ।। ॥ दीजै. ॥ दर्सन मोहे अंध पउ विजौरोदे, अंधे अंध स उत्तु विजौरोदे । अंधे चौ गइ दुहु सहियौ विजौरोदे, उत्पन्न न्यान विलयंतु विजौरोदे ॥ १४ ॥ ॥ दीजै.॥ रागु दोषु गारौ गलिऊ विजौरोदे, दर्सन मोहंध विलंतु विजौरोदे । न्यान उवनु विन्यान मऊ विजौरोदे, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु विजौरोदे ॥ १५ ॥ ॥ दीजै.॥ (२०७ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उत्पन्न अन्याय विलंतु विजीरोदे ॥ १६ श्री ममल पाहुइ जी न्यानावर्नु न पेषियौ विजौरोदे, दर्सन मोहंध विलंतु विजौरोदे । न्यानंतरू नवि उत्तियौ विजौरोदे, उत्पन्न अन्मोय विलंतु विजौरोदे ॥ १६ ॥ ॥ दीजै.॥ निसंक सहावे न्यान पउ विजौरोदे, सल्य संक विलयंतु विजौरोदे । भय विनासु भवु जु मुनहु विजौरोदे, अमिय रमन जिन उत्तु विजौरोदे ॥ १७ ॥ ॥ दीजै. ॥ उत्पन्न दिस्टि उत्पन्न मउ विजौरोदे, हिय हुवयार संजुत्तु विजौरोदे । सहयारह सहिऊ घनौ विजौरोदे, तिविहि कम्मु विलयंतु विजौरोदे ॥ १८ ॥ ॥ दीजै. ॥ जानु उपजै जानु मउ विजौरोदे, रिजु विपुलह संजुत्तु विजौरोदे । मन पर्जय संजुत्तु पर विजौरोदे, पद विंदह केवल न्यानु विजौरोदे ॥ १९ ॥ ॥ दीजै.॥ ममल सहावे ममल पउ विजौरोदे, समल कम्मु विलयंतु विजौरोदे । न्यान विन्यान सु रमन पउ विजौरोदे, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु विजौरोदे ॥ २० ॥ ॥ दीजै.॥ (४२) जिन आयरो फूलबा गाथा ८३० से८४६ तक (विषय : दिष्टि-१४, पदवी सत अक्षरी, तिअर्थ की महिमा) उवंकार उवन पौ उवन उवन मौ, उव उवन स विंद विन्यान पऊ । जिन जिनयति जिनय जिनय जिन रूवी, जिन नंद सनंद स उत्तु सुयं जिन आयरो ॥ १ ॥ भय षिपनिक भव्वु स उत्तु नंद जिन आयरो, अहु कमल रमन रस रसिय परम जिन आयरो । दिपि दिपिय दिप्ति आयरन सहज जिन आयरो, भय सल्य संक विलयंतु ममल जिन आयरो । अह अमिय रमन विषु गलनु सुयं जिन आयरो, अहु तरन विवान जिनय जिन उत्तु समय जिन आयरो ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जिन जिनवर उत्तउ षिपक रमन जिनु, जिन जिनयति जिनय जिनेन्द पऊ ।। षट् रमन कमल रस अर्क विंद पउ, आगन्तु रमन रस रयन परम जिन आयरो ॥ ३ ॥ हिययार रमन रस रसियौ, हुवयार सब्द रै रमन मऊ । तं रयनं रयन सरूव रमन जिनु, उत्पन्न उवंन उवंन रमन रै॥ उवन उवन उवन निलय जिन आयरो ॥ ४ ॥ (२०८) Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उववन्न इस्टि तं रस्टि रिस्टि जिनु, हिययार रमन रस रयन पऊ । सहयार श्री सुइ रमन सहज जिनु, सुइ नंद सनंद अनंद रमन जिन आयरो ॥ ५ ॥ उव उवन उस्टि हिययार रमन रयन जिनु, सहयार सहज रै समय मऊ । हिययार दिस्टि षट् रमन परम पय, परम नंद तं परम जिनय जिन आयरो ॥ ६ ॥ सहयार रमन हिययार रंजु रै, उववन्न दिस्टि सम समय मऊ । सम समय संजुत्तु विवान परम पऊ, सम समय संजुत्तु सु नंत निलय जिन आयरो ॥ ७ ॥ उत्पन्न रंजु भय षिपक रमन सुइ, नंद सनंद सु ममल पऊ । हिययार रंजु तं अमिय रमन जिनु, नंद अनंद सु नंद रमन जिनु आयरो ॥ ८ ॥ सहयार रंजु वैदिप्ति रमन जिनु, रमिय नंद चेयनंद जिनु । विन्यान रंजु तं रमन जिनय जिनु, सहजनंद तं सहज सुर्य तं परम सुर्य जिन आयरो ॥ ९ ॥ जिन रंजु रमन जिननाथ सुयं जिनु, परमनंद तं परम पऊ । तं तारन तरन विवान समय जिनु, सिहु समय संजुत्ती समय मुक्ति जिन आयरो ॥ १० ॥ जिन जिनयति जिनय जिनेंद जिनय जिनु, नंद सनंद सुयं जिन नंद पऊ । नंद सनंद नंद जिन जिनयति, लष्य सलष्य सलष्य अलष जिन आयरो ॥ ११ ।। लष्य सलष्य सलष्य अलष रुई, अलष्य सलष्य अलष्य परम पय परम पऊ । परम सु परम परम पय पयडिय, परम जिन परमनंद जिन आयरो ॥ १२ ॥ जिन जिनय स उत्तउ जिनय जिनय पऊ, उववन्न उवन उर्वन जिनु उवन उवन जिन उवन पऊ । सुइ सहज सरूवे सहज सहयार जिनु, सुयं सुयं जिन सुयं सु लष्य सु लष्य अलष जिन आयरो ॥ १३ ॥ उववन्न सिरी उववन्न दिस्टि रै, उववंन सब्द रै उवन स उवन उवन पऊ । उववन्न उवन उवन इस्ट तं इस्ट इस्ट पऊ, इस्ट सु इस्ट नंतानंत हिउ, इस्ट सनन्द सनंद नंद जिन आयरो ॥ १४ ॥ हिययार सिरी सिरी उवन उवन जिनु, उवन सनंद सनंद नंद जिनय जिन परम पऊ । (२०९) Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी परम सु परम परम जिन जिनयति. जिनय जिनंद जिनय जिन आयरो ॥ १५ ॥ सहयार सिरी तं सहज रमन पऊ, रमन सु रमन सु रमन पऊ । सहजे सहज सनंद सनंद रमन पऊ, तं गुपित स गुपित स गुहिज रमन रस ॥ रमन सनाथ जिनय जिन, रमन सु रमन रमन जिन आयरो ॥ १६ ॥ उत्पन्न सिरी हिययार रमन रै, रमन सु अर्क सु अर्क अर्क जिन, विन्यान विंद रस रमन पऊ । सहयार सिरी तं लष्य अलष मऊ, श्री समय स रमन सु सिद्ध सु सिद्धि मुक्ति पऊ आयरो ॥ १७ ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी साधु साह स उत्तं, सहयारं अवयास धुवं धुव उवनं । दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द, पिउ संजोय धुवं धुव निस्चं ॥ ३ ॥ धुव उत्तं धुव कन, धुव उवनं अवयास हेय आक्रिनं । धुव बिपि धुव सहयारं, धुव सिय धुव कमल कलन निर्वानं ॥ ४ ॥ धुव हिय धुव हुव जुत्तं, धुव आयरन चरन संजुत्तं । धुव विवान विन्यानं, धुव सिय कमल कलन निर्वानं ॥ ५ ॥ धुव रमनं धुव सुवनं, धुव मय धुव सुवन सब्द संदर्स । धुव लष्य लष्य सुइ उवनं, धुव गम्य अगम कमल निर्वानं ॥ ६ ॥ धुव उत्तं धुव सुवनं, धुव वयनं धुव उवन नंत सुइ न्यानं । धुव रयनं धुव गहनं, धुव पद कोड कमल निर्वानं ॥ ७ ॥ धुव गमनं धुव सहनं, धुव मिलनं रमन नंत हिय रमनं । सह रमनं धुव कलनं, आक्रिनं च कमल निर्वानं ॥ ८ ॥ जं उववन्न सहावं, उवनं सुइ अर्क अर्क सुइ रमनं । अर्क विंद सहकारं, उवनं आक्रिन कमल निर्वानं ॥ ९ ॥ सिय सिय सिय सुइ सुवनं, सिय हिय सिय पिय उवन सुइ रमनं । सिय उवन उवन सुइ गमनं, सिय धुव आक्रिन कमल निर्वानं ॥ १० ॥ सिय धुव उवन सहावं, साहिय साहंति अगम गम रमनं । आक्रिन समय सम समयं, कमलं आक्रिन कलन निर्वानं ॥ ११ ॥ उववन्न निधि उववन्नं, उववन्नं आक्रिन विंद सुइ रमनं । साहंति समय सह सुवनं, कमलं आक्रिन उवन निर्वानं ॥ १२ ॥ (४३) अवहि दर्सन गाथा गाथा ८४७ से ८७३ तक (विषय : विवान-१) चष्यं चष्य स उत्तं, अचष्यं आक्रिन हेय संजुत्तं । चष्यं अचष्य रमनं, कमलं कलनं च सिद्धि सम्पत्तं ॥ १ ॥ अचष्य सुभाव स उत्तं, अवध्यं अवयास ससरूव संजुत्तं । उववंन निधि सं सुवनं, अवहि अवयास गुरुव गुरुवं च ॥ २ ॥ (२१०० Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी दिप्ति नंत सुइ दिस्टं, दिस्टं सुइ नंत दिप्ति सुइ दसैँ । दिप्ति दिस्टि आयरनं, आक्रिनं समय कलन निर्वानं ॥ १३ ॥ कमल सब्द नंतानं, नंतानंत सब्द कर्न आक्रिनं । आनि कलन सुइ कमलं, कमलं सुइ कलिय केवलं न्यानं ॥ १४ ॥ कमल विंद सुइ सब्दं सब्दं आयरन कर्न विंदानं । कर्न विंद सुइ कमलं, कमलं आक्रिन कलन निर्वानं ।। १५ ।। उववन अवहि निहि सुवनं, अवहि सह समय साह धुवं सुइ रमनं । सहकारं धुव गमनं, अगमं सुइ षिपिय विलय कम्मानं ।। १६ । उववन निहि सुइ अर्क, अर्क सुइ दिप्ति दिस्टि सुइ रमनं । अर्क सब्द सुइ कर्नं, कर्नं सुइ सब्द कमल क च ।। १७ ।। हुवयार अर्क हिययारं, हिययारं अर्क विंद विंदानं । अनंत रमन अवयासं, समयं आक्रिन कमल निर्वानं ॥ १८ ॥ हिय रमन अर्क सुइ उवनं, उवन हिय गहिर गमन गुरुवं च । गमन गुपित सुइ सर्वं, आक्रिनं कमल कलन निर्वानं ॥ १९ ॥ गुपित अर्क गुरु गुरुवं, गुरुवं गुहिजं च सब्द सुइ सुवनं । गुरु गुपितह सुइ सब्दं सर्वं आक्रिन कलन निर्वानं ॥ २० ॥ गुपित गुहिज आक्रिनं, सहियं सह समय कमल कलनं च । कमल कलन सुइ अर्कै, साहिय सह विंद कर्न कमलं च ॥ २१ ॥ गुहिज अर्क गम अगमं, जानु पय अर्क नंत नंताई । नंतानंत सु चरनं, चरनं आयरन अर्क कमलं च ॥ २२ ॥ अवहि उवन निहि सहियं समयं संमत्त समय सुइ रमनं जिन अर्क कमल सुइ दसैँ, दर्पं सुइ कमल उवन कलनं च ॥ २३ ॥ । २११ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कलन समय सम समयं कलनं सम कर्न कमल हिययारं । हिययार समय हुवयारं, समयं सह कर्न कमल निर्वानं ॥ २४ ॥ अवहि उवन निहि उत्तं, उवनं निहि समय समय अवयासं । समयं सुइ नंतानंतं, समयं आक्रिन कमल निर्वानं ॥ २५ ॥ समय समय सुइ समयं समयं सम दर्स सब्द आक्रिनं । समय उवन उव उवनं समयं आक्रिन कमल निर्वानं ॥ २६ ॥ नंत नंत सुइ उवनं, उवनं सह अवहि उवन निहि कमलं । केवल कमल उवन्नं, आक्रिनं कर्न कमल निर्वानं ॥ २७ ॥ (४४) सुह गम्य रमन फूलना गाथा ८७४ से ८९४ तक (विषय: पट्टमन, पंचार्थ की महिमा, नन्द-५ चतुष्टय ४, ध्यान- ४ ) जिन उत्तु उवन पौ उवन उवन मौ, जिन न्यान विन्यान संजुत्तु । उव उवन दिस्टि मौ सब्द सहज लई, तं पदम कमल सुइ उत्तु ॥ १ ॥ सुह गम्य रमनु दुह गम्य गलनु, सुष्यम परिनाम स उत्तु । सुह गम्य सहज रुई नंद अनंद मौ, २ || सुइ न्यान विन्यान संजुत्तु ॥ संजोय चतुस्टय मुक्ति पऊ ॥ आचरी ॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री ममल पाहुइ जी सु स्कंध ममल पौ दु स्कंध समल चौ, उत्पन्न कमल संभाऊ । हिययार रमन मौ तं अरुह चलन पौ, तं अर्क विंद स सहाउ ॥ ३ ॥ ॥सुहगम्य.॥ आगंतु अर्ध रुई रमन सहज सुई, _ हिय हुवयार संजुत्तु । उव उवन चष्य मै दिस्टि इस्टि रै, चष्य अचष्य पउत्तु ॥ ४ ॥ ॥सुह गम्य.॥ सहयार समय सुइ नंत ममल मै, ___ तं गुपित न्यान संजुत्तु । तं गुहिज कमल रुई सहजनंद मई, ___ गुरु गुपित हिययार संजुत्तु ॥ ५ ॥ ॥सुह गम्य.॥ गुरु गुपित दिट्ठ मई विवान सहज सुई, पय पद विंद स उत्तु । तं अर्थति अर्थह समय समर्थह, पंचार्थ ममल संजुत्तु ॥ ६ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं परम परम पौ नन्द अनंद मौ, चेयन नंद सहाउ । तं सहजनंद मौ विन्यान न्यान पौ, परमानंद सहाउ ॥ ७ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं नंत न्यान पौ दर्स दर्स मौ, वीर्यानंत सुभाऊ । सुह गम्य रमन रस विन्यान विनय जस, तं नंत सौष्य स सहाउ ॥ ८ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं ध्यान उत्तु जिन समय विलय मन, न्यान विन्यान सुभाउ । जं कम्मु गलिय सुइ सुह गम्य रमन रै, तं परम न्यान स सहाउ ॥ ९ ॥ ॥ सुह गम्य.॥ आरतिहि आरति पौ अनिस्ट संजोय मी, तं इस्ट विओय संजुत्तु । तं पिंड चिंत मै पर पर्जय रै, निदान नरय संजुत्तु ॥ १० ॥ ॥सुह गम्य.॥ आरति हि रयन पौ तं इस्ट संजोय मौ, न्यान विन्यान सचिंतु । तं नंत सहज रुई नंद परम पय, तं पर पर्जय विलयंतु ॥ ११ ॥ । सुह गम्य.॥ तं रौद्र झान सुई सहयार हिययार मै, हिंसानंद स उत्तु । (२१२) Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अनृत पर्जय रै अस्तेय अनृत मौ, तं विषय नरय संजुत्तु ॥ १२ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं रौद्र जिनुत्तय कम्मु विलय सुई, न्यान विन्यान सहाउ । जिन उत्त नंद मौ कम्मु गलिय सुई, विपि कम्मु मुक्ति सभाउ ॥ १३ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं धम्म उत्तु जिन अन्या विचय मन, अपाय विचय सभाउ । विपाक विचय संस्थान विचय तं, ममल धम्म ससहाउ ॥ १४ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं धम्म धरन सुई अर्थ तिअर्थ मउ, लषियौ अलष सुभाउ । तं रमन न्यान पौ चकहर इंछ मौ, जिननाथ रमन ससहाउ ॥ १५ ॥ ॥सुह गम्य.॥ तं सुक्ल झान पौ ममल न्यान मौ, तं नंत नंत सुइ उत्तु । तं कम्म गलिय सुई नंत नंत रै, भय षिपिय मुक्ति सम्पत्तु ॥ १६ ॥ ॥सुह गम्य.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पृथकत्व वितर्क रौ विचार ममल मौ, एकत्त पृथकत्व जिन उत्तु । विचार न्यान मौ विन्यान सहज सुइ, सुह गम्य सिद्धि सम्पत्तु ।। १७ ॥ ॥ सुह गम्य.॥ सुष्यम परिनवे तं ममल सहज रै, __ सूष्यम सुभाउ स उत्तु । भय षिपिय षिपक मौ नंत न्यान पौ, तं मुक्ति रमन संजुत्तु ॥ १८ ॥ ॥सुह गम्य.॥ जिन उत्तु क्रांति मै उत्पन्न न्यान रै, अर्थति अर्थ संजुत्तु । प्रतिपाद परम पय सुह गम्य सहज रय, जिननाथ सिद्धि सम्पत्तु ॥ १९ ॥ ॥ सुह गम्य.॥ विप्रिय भय गलिय कुमय मय विलयं, पर पर्जय विलयंतु । सुह गम्य रमन सुई नंत ममल मई, सुइ सहज सिद्धि सम्पत्तु ॥ २० ॥ ॥ सुह गम्य.॥ तं ध्यान उत्तु जिन न्यान समय गन, तं समय संजुत्तु पउत्तु । उव उवन उत्तु जिन तारन तरन गन, तं समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २१ ॥ ॥ सुह गम्य.॥ (२१३) Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (४१) सूषिम रासौ फूलना गाथा ८९५ से ९१६ तक (विषया परिणाम भेद दो - लक्षण परिणाम, भी हरित परिणाम, ५ ज्ञान के ५२ अक्षर) जिन जिनवर उत्तउ सुद्ध परम जिनु, पर परम मुक्ति दरसीजै । परम तत्तु परमष्यरु दर्सइ, पर परम न्यान सिद्धि रमिजै ॥ १ ॥ भवियन सूष्यम सुइ कम्मु विलीजै, सुह गम्य रमन सिद्धि लहिजै । भवियन सूष्यम सुइ कम्मु विलीजै, भय षिपिय मुक्ति संमिलिजै ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ सूष्यम सुइ षिपिय कम्मु सुइ विलियौ, सुह गम्य रमन रस तं जिनियं । तं ममलह ममल सरूव संजुत्तउ, पर परम मुक्ति तं सुइ मिलियं ॥ ३ ॥ || भवि.॥ परिनामू नंत नंत सुष्यम सुइ, कमल ममल तं सुइ उवनं । तं अंगदि अंगह अर्थ अर्थ हिउ, सुइ परम परम पय सुइ भुवनं ॥ ४ ॥ ॥ भवि.॥ सूष्यम सुइ मिलिय अर्थति अर्थह, सुइ समय अर्थ ममल जिन उत्तं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलं तं कलिय कमल भय विलयं, सुह गम्य रमन सिद्धि तं मिलियं ॥ ५ ॥ ॥ भवि. ॥ कमल कंद सौ अट्ठ ममल पौ, कमल अग्र तं जिन वयनं । चौसठि चरन तं चरन नंत मौ, सुह गम्य रमन सिद्धि रमनं ॥ ६ ॥ ॥ भवि .॥ तं कमल गिरा गिर कंद ममल पौ, परिनाम ममल जिन उत्तु सुयं । सूष्यम सुइ ममल ममल तं उवनं, सुह गम्य रमन सुइ सिद्धि मिलियं ॥ ७ ॥ ॥ भवि. ॥ गिरा अग्र सुई सूष्यम उवनं, चरन ममल जिन उत्तु सुयं । नंतानंत सु सूष्यम ममलं, सुह गम्य मुक्ति तं सुई रमनं ॥ ८ ॥ ॥ भवि. ॥ भौ हरित भौह तं भय विनासु है, भय षिपनिक भवु स उत्तु । सहज सूषिम परिनामु नंत रै, सुह गम्य रमन सिद्धि रत्तं ॥ ९ ॥ ॥ भवि.॥ (२१४) Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी भय विलयं नंत न्यान परिनै सुई, परिनै भौह सुइ ममल सुयं । सुह गम्य रमन तं नंत नंत जिनु, सूष्यम सुइ षिपिय मुक्ति संमिलियं ॥ ॥ अर्थति अर्थ भी हरिय ममल मौ, परिनामु षिपक ममल सुइ षिपनिक, ममल बुद्धि नौ भय विलयं । सुह गम्य रमन सिद्धि मिलियं ॥ सूष्यम परिनवै नौ भौह भय विलयं, झड़प गलिय भी सुयं सहज सुई, दिस्टि गलिय सुह गम्य रयं । परिनामु ममल मुक्ति मिलियं ॥ अर्थति अर्थह जं भौ विलयं, सूण्यम सुइ षिपिय परम जिननाह हो, ११ ॥ ॥ भवि ॥ परिनामु नंत ममल मिलियं । अंगदि अंगह न्यान परम पय, नंतानंत चतुस्टै परम जिनु, १० ॥ भवि ॥ १२ ॥ ॥ भवि ॥ सुह गम्य रमन सुह सिद्धि मिलियं ॥ १३ ॥ ॥ भवि ॥ उत्तं । परम परम जिन सूष्यम सुइ कम्मु विलंतं ॥ १४ ॥ ॥ भवि ॥ २१५ कमल कंद मति न्यान परम पय, कंठ ममल तं जिन भनियं । सूष्यम सुइ ममल न्यान सुइ उवनं, सुह गम्य मुक्ति तं सुइ मिलियं ।। १५ । ॥ भवि ॥ नो उत्पन्न अष्यर सुइ मिलियं, सूष्यम परिनवै सुयं ममलं । भय विपनिक श्रुत न्यान सुवन सुड़, अष्यर सुइ अंग अमिय वनं ॥ १६ ॥ ॥ भवि ॥ गुरु गुहिजह तं भौ हरनं । उलटि गिरा ऊर्ध अवहि न्यान गुरु गुपित रुचिय सुड़, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सूष्यम परिनाम अषय अष्यर सुइ, मन पर्जय तं जानु सहज सुइ, रिजु विपुलह उस्ट इस्ट सुइ अप्यर रवनं, अवधौ अष्यर अषय रमन सुइ, सुयं । संजुत्तु सूष्यम परिनामु न्यान मिलियं ।। १८ । ॥ भवि ॥ गमनं ।। १७ ।। ॥ भवि ॥ सुह गम्यह तं परम रमन सुइ, सूष्यम सभाव भव्वु तं रमनं । सुकिय सुभाव मुक्ति मिलियं ।। १९ ।। ॥ भवि ॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी न्यान विन्यानह सुयं सुइ रमनं, सुइ सूष्यम भाव कम्मु गलियं । सूष्यम सुइ नंत नंत तं रमनं, सुह गम्य रमन मुक्ति मिलियं ॥ २० ॥ ॥ भवि.॥ न्यान सरूवे सहज सुभावे, सिद्ध सरूव सुई रमिजै । सह सूष्यम परिनै परम ममल पय, सुह गम्य रमन सिद्धि जय जय ॥ २१ ॥ ॥ भवि. ॥ नंद अनंदह नंद सु रमनं, सूष्यम सुइ परमानंदं । तारन तरन सुभाउ सहज मिलि, समय जिनु परम जिनंदं ॥ २२ ॥ || भवि. ॥ (४६) केवल दर्सन गाथा गाथा ९१७ से ९३५ तक (विषय : अक्षर, स्वर, व्यंजन, ४-दर्शन, ५-विमान ) चष्यं चेत सहावं, उववंनं उववंन नंत सभावं । अचष्यं नृत आयरनं, आयरनं न्यान नंत नन्ताई ॥ १ ॥ अवहि उवन उवएसं, गुपितं आयरन उवन निहि जुत्तं । तं उवन उवन निहि सहियं, उवनं मन पर्जय केवलं उत्तं ॥ २ ॥ केवल दर्सन उत्तं, केवल सुइ उवन ममल संजुत्तं । कलन कमल सुइ ममलं, कमलं आक्रिन कमल सिद्धं च ॥ ३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी केवल कलन सहावं, कलनं कमलस्य हेय हुव कर्न । तत्काल रमन सुइ दर्स, आक्रिनं कमल निव्वुए जन्ति ॥ ४ ॥ कलनं केवल उवनं, उवनं आक्रिन कमल उत्तं च । कमल ममल सुइ रमनं, रमनं नंत अर्क विंद सिद्धानं ॥ ५ ॥ सिय धुव सिद्ध सहावं, सिय चरनं नंत अर्क विंदानं । नंत न्यान आयरन, धुव कर्न उवन कमल सिद्धानं ॥ ६ ॥ केवल चरनं उवनं, कलन सहावेन कमल सुइ रमनं । कमल चरन आक्रिनं, धुव सिय धुव सिद्ध विंदानं ॥ ७ सिय सुइ उवन सहावं, उवन उववन्न ममल मल विलयं । कलन कमल सुइ चरनं, आक्रिनं कमल केवलं न्यानं ॥ ८ ॥ अष्यर सुर विंजनयं, पद अर्थं अर्थ ममल सह उवनं । अष्यर अषय सहावं, सुर रमनं कलन कमल सिद्धानं ॥ ९ ॥ विंजन विनय स उत्तं, विनयं विन्यान ममल उववन्नं । ममल चरन सुइ कलनं, कर्न आक्रिन कमल सिद्धानं ॥ १० केवल दर्सन उत्तं, अष्यर सुर विजन अनष्यरं जुत्तं । अर्क अर्क सुइ उवनं, अर्क आक्रिन कमल सिद्धानं ॥ ११ ॥ सिय सहाव स उत्तं, सिय नंतानंत अर्क ममलं च । ममल न्यान सुइ उवनं, साहिय सुइ कर्न कमल धुव सिद्धं ॥ १२ ॥ उव उवन उवन उव उवनं, उवनं सुइ सेनि उवन संजुत्तं । उव उवन हिययार सु ममलं, उवनं सह समय सिद्धि संपत्तं ॥ १३ ॥ अन्मोय मेनि सहयारं, साहिय सह समय कलन सिय रमनं । कलन चरन चर चरनं, दिप्ति दिस्टं च सब्द पिउ कलनं ॥ १४ ॥ (२१६) Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सहयार कलन अन्मोयं, दिप्ति दिस्टं च सब्द सुइ सुवनं । विन्यान वीस चौ उवनं, कलनं अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ १५ ॥ तस्य उवन उव उवनं, उवन सुइ सुवन समय संजुत्तं । जिन वयनं जिन चरनं, जिन उत्तं कलन सिद्धि सम्पत्तं ॥ १६ ॥ उव उवन उवन उव उवनं, उवन हिय सहइ जयं ।। उव उवन उवन उव उवन, उवन उव उवन पयं । सुइ अर्क सु अर्क सु अर्क, अर्क सुइ अर्क मयं । अन्मोय कलन सुइ सेनि, कर्न सुइ सिद्धि जयं ॥ १७ ॥ सुइ मिलन सु मिलन सु मिलन, मिलन सुइ मिलन हियं । सुइ रमन सु रमन सु रमन, रमन हिय सहइ मयं ॥ सुइ कलन सु कलन सु कलन, कर्न सुइ कलन जयं । अन्मोय तरन सुइ कमल, कर्न सइ सिद्धि जयं ॥ १८ ॥ केवल ममल सहावं, ममलं सुइ दर्स कर्न सुइ उवनं । कलन कमल सिय चरनं, अकै सुइ कमल केवलं न्यानं ॥ १९ ॥ EEEEEEEEEEEEEE सुइ न्यान विन्यान सु समय मऊ विजौरोदे, सम समय संजुत्तु जिनुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २ ॥ जिन जिनवर उत्तु सु मुक्ति पौ विजौरोदे, जिननाथ रमन दर्सतु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ३ ॥ एक सु एक सु ममल पौ विजौरोदे, षट् रमनहि दिप्ति संजुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ४ ॥ सुइ एक इस्टि परमिस्टि मुनि विजौरोदे, हिय हरसिउ हो हरसि सुनंद । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ५ ॥ सुइ लषियौ अलष सु लषिय मौ विजौरोदे , सुइ लषियौ हो लोय अलोय । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजीरोदे ॥ ६ ॥ लष्यन लषिय सु दिप्ति मौ विजौरोदे, हिय कोड सु नंद अनंद । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ७ ॥ अस्टांग रमनु तं सहज जिनु विजौरोदे. उव उवनउ हो कोड सुभाउ । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ८ ॥ (४७) तरन विवान बिजौरी फूलना गाथा ९३६ से ९६५ तक (विषय | दिप्ति-१४, नदी-१४) उव उवनउ उवन उवन पौ विजौरोदे, उव उवनउ हो न्यान विन्यान । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १ ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ कोड उर्वनउ नंद मौ विजौरोदे, सुइ नंद दिप्ति संजुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ९ ॥ सुइ कोड उर्वनउ उवन पौ विजौरोदे, हर हरसिउ हो दिप्ति संजुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १० ॥ जं कोड उवनउ जिनय जिनु विजौरोदे, तं सुयं लब्धि संजुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ११ ॥ सुयं लब्धि नौ उत्तु जिनु विजौरोदे, तं लब्धि हो परमानंद । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ।। १२ ।। दिपि दिप्ति उवनउ न्यान मौ विजौरोदे, दिपि दिपियो हो नंत अनंतु । ___तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १३ ॥ दिपिय गमन सुइ नंत मौ विजौरोदे, दिपि दिपियो हो गम्य अगम्य । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १४ ॥ सुयं रमन सुइ दिप्ति मौ विजौरोदे, हिययारह हो हरसि संजुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १५ ॥ हिययार दिप्ति तं रमन पऊ विजौरोदे, ___ हिय हरसिउ हो हरसि जिनंदु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १६ ॥ तं क्रांति उवनी दिप्ति मौ विजौरोदे, दिपि दिपियो हो हरसि विन्यान । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १७ ॥ तं दिप्ति सित सांति मई विजौरोदे, हिययारह हो हरसि जिनेन्दु । ___ तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १८ ॥ सुइ सित सांति जिन दिप्ति मौ विजौरोदे.. उत्पन्नह हो हरसि विन्यान । ___ तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ १९ ॥ न्यान रमन सुइ दिप्ति मौ विजौरोदे. हुव हिय हरसि अनंदु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २० ॥ तं न्यान अर्क सुइ दिप्ति मौ विजौरोदे, तं अर्क विन्यान जिनुत्तु । ___ तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २१ ॥ सुर्य रमन सुइ नंद मौ विजौरोदे, तं सुयं हरसि जिन उत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २२ ॥ (२१८ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ तारन तरन सहाउ लै विजौरोदे, सुइ समय सु मुक्ति पहुंतु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ ३० ॥ श्री ममल पाहुइ जी रुचि प्रियौ दिप्ति सुइ नंद जिनु विजौरोदे, तं क्रांति हो हरसि जिनुत्तु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २३ ॥ कमल उत्पन्न सुइ दिप्ति मौ विजौरोदे, तं क्रांति हो कलन सुभाउ । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २४ ॥ रमन कमल सुइ दिप्ति पौ विजौरोदे, तत्कालह हो मुक्ति सुभाउ । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २५ ॥ रमन कमल उत्पन्न मौ विजौरोदे. उत्पन्नह हो दिप्ति विन्यान । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २६ ॥ सहकार रमन तं नंत मुनि विजौरोदे, हर हरसिउ हो जिनय जिनेन्दु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २७ ॥ सहज सुभावे परिनवै विजौरोदे, तं सहजे हो परमानंदु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २८ ॥ दिपि दिप्ति दिप्ति उत्पन्न मौ विजौरोदे, दिपि दिपियौ हो हरसि अनंदु । तरन विवान सु मुक्ति पौ विजौरोदे ॥ २९ ॥ (४८) बड़ो बधाऊ फूलना गाथा ९६६ से ९८६ तक (विषय : देव,गुरू, धर्म, जिन, परम जिन की महिमा, सक सुभाव, संज्ञा-४) उव उवनौ हो समय न्यान विन्यान हो, सुद्ध सरूवे सु समय मऊ। सम समय सउत्तउ अर्थति अर्थह हो, पंच दिप्ति परमिस्टि मऊ॥१॥ परमिस्टिहि सहियउ सुद्ध सरूवे हो, ममलह ममल सहाउ मऊ।। जिनवर उत्तउ सुद्ध सचेयनु, सुद्ध न्यान संसुद्ध पऊ ॥ २ ॥ देव उवंनउ हो दाता हो उत्तउ, न्यान विन्यानह ममल पऊ । गुरु गुपितह रुचियौ दिट्ठउ दाता हो, न्यान सरूवे सु सुद्ध पऊ ॥ ३ ॥ धम्म जु उत्तउ चेयन सहियउ, दर्सन दिस्टि सु ममल पऊ । दर्सन दरसिउ लोय अलोयवि, दर्सिउ अर्थह मल रहिउ ॥ ४ ॥ (२१९) Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी तं उवएसिउ ममल सहावे हो, तत्काल उवन उत्तर कहिऊ । परम देउ परमान सु सहियउ, परम उवनउ देउ पऊ ॥ ५ ॥ जिनवर जिनियौ कम्मु अनंतु जु हो, चेयन नंद सु समय मऊ । परम जिनेन्दह सूष्यम जिनियौ, मर्म कम्म जिनि ममल पऊ ॥ ६ ॥ परम गुरह परमध्यरु उत्तउ, परम गुपित सिव सिद्धि पऊ । परम धम्म परम पय सहियौ, तिविहि कम्मु तं सुइ गलिऊ ॥ ७ ॥ तत्तु जिनेन्दह उत्त समय हो, तत्काल उवंनऊ न्यान मऊ । जं जं समइ हो पुछिऊ भवियन, तं तं उवनऊ ममल मऊ ॥ ८ ॥ तत्तु तत्तु सवु लोय स उत्तउ, तत्तु भेउ नवि जानियऊ । भय विनासु तं भवु जु कहियऊ, तत्तु भेउ गुरु जानियऊ ॥ ९ ॥ तत्काल उवंनउ तत्तु जु जानहु, नंतानंत सु न्यान मऊ। न्यान विन्यानह विमल सु निर्मल, तत्काल उवंनउ तत्तु मुनी ॥ १० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी परम तत्तु परमप्पा हो उत्तर, परम न्यान उत्पन्न समऊ । परमानंदह परम सुभाउवि, ___परम तत्तु परमिस्टि मऊ ॥ ११ ॥ अन्मोय विरोह विजानहु भवियन, कम्मु कलंक स उत्तियउ । कम्म भाउ कम्मान स उत्तउ, न्यान अन्मोयह विलय गऊ ॥ १२ ॥ जं पुनु कम्मु अनंतु भमाये हो, जनरंजन राग जु ऊपजिऊ । कलरंजन दोष जु गारव सहियऊ, __न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १३ ॥ मनरंजन गारव कम्मु स दिट्ठउ, दर्सन मोहे अंध तु हूं। न्यान विन्यानह उवसम सहियउ, कम्मु विलय सो मुक्ति गऊ ॥ १४ ॥ जं पुनु कम्मह भेउ न जानिउ, अन्यान सरूवे ब्रिद्धियऊ । मिथ्या मय सो सल्यह सहियौ, न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १५ ॥ पर पर्जावह दिट्ठि जु सहियउ, पर पर्जय रत्तउ मूढ़ मई । (२२०) Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री ममल पाहुइ जी कललंकृत कम्मु जु दिट्ठउ समई हो, न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १६ ॥ जं अबंभह सरनि हि सहियौ, मेहुन सन्या संसारिऊ । जं पुनु मान कषाय संजुत्तउ, दर्सन दिस्टिहि गलि गयऊ ॥ १७ ॥ मोह महीहर कम्मु ऊपजै, कषायह विषय संजुत्तु समू । अन्यान दिट्ठि पर्जावह सहियो, न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १८ ॥ चष्य अचष्यह चष्यह उत्तउ, अवहि हि कम्मु जु ऊपजई । अन्यान दिस्टि तं कम्मु ऊपजै, न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १९ ॥ जहं जहं कम्मु उपत्ति स दिट्ठउ, जहं जहं कम्मु जु ऊपजई । तहं तहं कम्मु जं विलयौ समई, न्यान अन्मोयह समय मऊ ॥ २० ॥ अप्पहु अप्प सुधप्प संजुत्तऊ, परमप्पह परम सु समय मऊ । न्यान विन्यानह ममल सुभावे हो, परम न्यान सो मुक्ति गऊ ॥ २१ ॥ (४९) विवान अर्क गाथा गाथा ९८७ से १०१५ तक (विषय: कमल दल, पंच शब्द की भाषा, षट् शब्द, वर्ष वृद्धि, समय, घड़ी, पहर, दिन, महिना, वर्ष) विवान विन्यान स उत्तं, विवान दिस्टि नंत संदर्स । विवान न्यान विन्यानं, विवानं वीय नंतनंतानं ॥ १ ॥ विवान सुष्य सुइ नंतं, नंत चतुस्टं च सुयं सुइ सुवनं । नंतानंत अनंतं, अनंत सुभावेन नंत प्रवेसं ॥ २ ॥ विवान अर्क सुइ अर्क, अर्क सुइ अर्क उवन संदर्स । उवन उवन सुइ मिलनं, अकै अर्कस्य मुक्ति गमनं च ॥ ३ ॥ अर्क अर्क अनंत, अनंत सुभावेन नंत प्रवेसं । नंतानंत सु गमनं, गमनं अगमस्य सिद्धि सम्पत्तं ॥ ४ ॥ अर्क अर्क सलयं, लष्यं अकै अलष्य रूवेन । अलषं अलष्य लषनं, कर्न कमलस्य सिद्धि सम्पत्तं ॥ ५ ॥ अर्क गमन सहावं, गमनं अर्क अगम रूवेन । दर्सन उवन सहावं, उवन्न आकिर्न कमल निव्वानं ॥ ६ ॥ अर्क इस्ट उवन्नं, इस्ट अर्क च उवन सुइ रुवं । उवनं उवन सु उवनं, उवनं सुइ कर्न कमल निव्वानं ॥ ७ ॥ अर्क हिययार स उत्तं, हिययारं अर्क हवयार संजतं । उवन सहाइ सु उवनं, उवनं सुइ कलन कर्न उव उवनं ॥ ८ ॥ अर्क मित मित्तानं, मितं प्रवेस मिलन सुइ चरनं । चरनं उवन सहावं, उवनं कमलस्य कर्न सुइ रमनं ॥ ९ ॥ EEEEEEEEEEEEEEEE (२२१) Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अर्क परिनत रूवं, परिनै सहावेन प्रमान दसति । प्रमानं मुक्ति सरूवं, मुक्त कमलस्य कर्न मुक्तं च ॥ १० ॥ अकै कोमल उत्तं, कोमल सहकार ललित सुइ सुवनं । ललित चरन सिय चरनं, चरनं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ ११ ॥ अकै ललित उवन्नं, ललित सहावेन ममल रूवेन । ममल सियं धुव ममलं, ममलं कमलं च केवलं न्यानं ॥ १२ ॥ ममल उवन सुइ सुवनं, ममलं उवन्न अवयास संजुत्तं । अवयास ममल सुइ कलनं, कलनं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ १३ ॥ विवान समय उव उवनं, सुवनं हुव हेय सहयार सुइ सुवनं । सह अवयास सुइ ममलं,साहिय सुइ समय अवयास सिद्धानं ॥ १४ ॥ विवान समय सुइ समयं, समयं उव उवन समय सुइ गमनं । समय अगम सुइ गमनं, समयं सह समय मुक्ति ठिदि रमनं ॥ १५ ॥ विवान अर्क सुइ समयं, समयं सुइ अर्क सिद्धि ठिदि रमनं । समय विवान स चरनं, समय सहावेन महुव सुइ उवनं ॥ १६ ॥ महुव अर्क सुइ साह, कमलं उववन्न कर्न सुइ समयं । समय कलन सुइ उवनं, कलनं कमलं च केवलं न्यानं ॥ १७ ॥ महव अर्क सम साहं, साहं सह समय विवान समयं च । उवन हिययार सहावं, महुव सहावेन प्रहर प्रमानं ॥ १८ ॥ प्रहरं अर्क सु सहियं, अर्क विवान कमल अवयासं । कमलं कलन उवन्नं, साहिय सुइ कर्न कलन कमलं च ॥ १९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विवान अर्क सुइ प्रहरं, प्रहरं सुइ समय उवन निर्वानं । प्रहरं सहाव सु उवनं, दुति प्रहरं च अर्क ममलं च ॥ २० ॥ दुति प्रहरं च विवानं, विवानं समय कमल कन च । दुति सहाव सुइ अर्क, दिप्ति उव उवन दिगन्त नंतानं ॥ २१ ॥ दिप्ति उवन दिपि दिपियं, दिप्ति दिस्टं च दिस्टि दिप्तिं च । दिस्टि दिप्ति सुइ समयं, कलनं कमलं च उवन सुइ उवनं ॥ २२ ॥ कमलं कलन सु चरनं, अर्क समय उवन साहियं कर्न । कमलं कर्न संजोयं, संजोय समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २३ ॥ दिप्ति अर्क सुइ समय, समयं षट् रमन अर्ह सुभावं । दिप्तिं अर्थ सहावं, ति समहि उवन उवन प्रमानं ॥ २४ ॥ तस्य समय विवानं, उववन्न पयोग अर्क सुइ सुवनं । ति अर्थ षट् कमलं, उववन्न पयोग वर्ष सुइ सुवनं ॥ २५ ॥ सौ उव उवन तिअर्थ, कमलं दह दर्स दिप्ति सुइ सयनं । सै तीनि साठि सुव सुवनं, वर्षं सुइ नंत काल सिद्धि रमनं ॥ २६ ॥ विवान समय सुभावं, कलनं सुइ कलिय कमल ममलं च ।। तारन तरन सहावं, कमलं सुइ कर्न सिद्धि सम्पत्तं ॥ २७ ॥ विवान समय सुइ उवनं, उत्तं सुइ उवन केवलं न्यानं । तित्थयर रमन सुइ रमनं, उत्तं तित्थयर समय सिद्धानं ॥ २८ ॥ तारन तरन सु ममलं, ममल सुइ कलन कमल सुइ कन । समय विवान सु समय, समयं सह समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २९ ॥ २२) Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (40) सेहरी फूलना गाथा १०१६ से १०२५ तक (विषय : नंद-१, लब्धि-१, सिध्द की महिमा) उव उवनऊ उवन उवन उवन मौ उवन पऊ । उव उवनऊ नंतानंतु अलष जिन नंद मऊ ॥ तं नंद अनन्द सनंद नंद गम अगम रऊ ॥ १ ॥ न्यानीय न्यान उववन्न अगम जिन जिनय जिनेंद स सेहरौ । तं गम्य अगम्य अगम्य उवन्नु जिनय जिन सेहरा ॥ तं गमियौ नंतानंतु ममल जिन सेहरौ । भय षिपनिक नंद अनंद चेयनंद सेहरौ ॥ तं अमिय रमन रस रसिय सहज जिन सेहरौ ॥ २ ॥ जिनवर उत्तउ जिनय जिनेन्द जिनय जिन नंद मऊ । तं लब्धि अलब्धि सलब्धि जिनय जिन जिनय सनंद पऊ ॥ तं न्यान स न्यान सु न्यान विन्यान ममल रस सुष्य रऊ । न्यानीय सुर्य सुववन्न जिनय जिन जिनय जिनंद स सेहरौ । गमऊ गम्य अगम्य उवनु जिनु जिनय जिन सेहरौ ॥ ३ ॥ ॥ आचरी॥ तं न्यान लब्धि सुइ लब्धि सुयं, सुव सुवन सुयं जिन न्यान पऊ । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तं दर्सिउ नंतानंतु सहज जिन, लब्धि अलब्धि सुलब्धि मऊ ॥ तं दान सु दान सु न्यान सुयं, जिन जिनय जिनय जिनेंद रऊ । न्यानीय निलय तं निलय निलय, जिन जिनय जिनेंद स सेहरौ ॥ ४ ॥ ॥गमऊ गम.॥ तं लब्धि अलब्धि सु लब्धि लब्धि जिन, जिनय जिनेंद सनंद सनंद सनंद मऊ । तं भोय सु भोय अभोय भोय गुन, जिनय जिनेंद सनंद सनंद पऊ ॥ उवभोय सुभोय अभोय भोग रै, नंद सनंद जिन सेहरौ । न्यानीय सुनीय सुनीय सुयं, सुई सहज जिनेंद स सेहरौ ॥ ५ ॥ || गमऊगम.॥ नंत वीय सुइ लब्धि सु लब्धि, सुयं सुव वीय सु नंतानंत पऊ । सम्मत्त सम्मत्त स उत्तु सु समय, सुयं जिन जिनय जिनेंद पऊ ॥ तं चरनह चरिय चरंतु, चरन जिन जिनय जिनेंद रऊ । न्यानीय सु निलय जिनेन्द, जिनय जिन सहज जिनेन्द स सेहरौ ॥ ६ ॥ ॥ गमऊगम.॥ (२२३) Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी नो लब्धि उर्वन उर्वन सु, उवन उवन सु जिनय पऊ । तं लब्धि अनंतानंत सहज रुई, सहज जिनेन्द सनंद पऊ ॥ सुइ नंद सनंद अनंद सु नंद, सु चेयननंद सु समय मऊ । न्यानीय सु न्यान अनंत ममल, जिन जिनय जिनेन्द स सेहरौ ॥ ७ ॥ ॥गमऊगम.॥ संजम सुइ संजमु सुवन सुवन, सुव संजम समय सु सुद्ध पऊ । संजम संजम सुनहु सुर्य सुइ, सुद्ध स सुद्ध सु समय मऊ ॥ गति गम्य अगम्य अनंत, सुसुद्ध सुयं सुइ ममल विन्यान स सेहरौ । न्यानीय सुनीय सुनीय, सुयं सुइ ममल विन्यान स सेहरौ ॥ ८ ॥ ॥गमऊ गम.॥ कषाय अपाय कषाय जिनय, जिन जिनय जिनेन्द पऊ । तं लिंगु अलिंगु सु लिंगु, सुयं जिन लिंग स लिंग सु जिनय पऊ ॥ मिथ्यात सहाव सरूव सुयं, सुइ विलय सुर्य जिन सुर्य रऊ । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी न्यानीय निवासु अवयासु, सु नंत सु नंत सुयं जिन सेहरौ ॥ ९ ॥ ॥गमऊ गम.॥ न्यानेन न्यान विन्यान सु न्यान सु न्यान, सु न्यान सु ममलु सु ममल पऊ । तं सिद्ध सरूव सरूव सुर्य सुइ, रूव अरूव सु मुक्ति पऊ ॥ सुइ तारन तरन विवान, विवान समय सह सहइ रऊ । न्यानीय सुनीय सु निर्त, निलय जिन जिनय सिद्ध जिन सेहरौ ॥ १० ॥ ॥गमऊ गम.॥ (११) बंद आनंदह फूलना गाथा १०२६ से १०३८ तक (विषय : पांच अर्थ की महिमा) नंद आनंदह नंदह पूरिउ, चिदानंद जिन उत्तं । सहजनंद तं सहज सरूवे, परमनंद सिद्धि रत्तं ॥ १ ॥ भवियन भय षिपिय मुक्ति संमिलिज, तं अमिय रमन सिद्धि रमिजै । भवियन तं ममल भाव सिद्धि रमिजै, तं धम्म रमन सिव लहिजै ॥ भवियन तं अमिय रमन सिद्धि रमिजै ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (२२४) Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जानु उवन्नऊ पय संजोए, पयह विंद दर्सतु । अमिय रसायन तारन सहियो, सम सहिय मुक्ति सम्पत्तु ॥ ११ ॥ ॥ भवियन.॥ पय विंदह विन्यान ऊवनऊ, परम तत्तु जिन उत्तं । परम पयत्तह ममल सहावे, अमिय मै मुक्ति पहुंतं ॥ १२ ॥ ॥भवियन.॥ सम अर्थह तं समय संजुत्तऊ, तारन तरन स उत्तु । भय षिपनिक तं अमिय सरूवे, तत्काल सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥ ॥ भवियन.॥ श्री ममल पाहुइ जी जिनवर उत्तउ सुद्ध परम जिनु, सिद्ध सरूव स उत्तं । न्यान विन्यानह केवलु सहियौ, नंत चतुस्टै संजुत्तं ॥ ३ ॥ ॥भवियन.॥ उवंकार उवनह सहियौ, उवनौ दाता देउ । न्यान विन्यानह उवनु जु दाता, परम देउ सम सोइ ॥ ४ ॥ ॥भवियन.॥ हिययारह हिययार उनऊ, ह्रींकारह हिय दिट्ठी। अर्क विंद सो रमनह सहियो, पय कमल गुप्ति सुइ इट्ठी ॥ ५ ॥ ॥भवियन. ॥ हिययारह हुवयारह सहियौ, उत्पन्न दिस्टि जिन उत्तं । भय विनासु तं भव्वु उवन्नऊ, अमिय रमन सिद्धि रत्तं ॥ ६ ॥ |भवियन.॥ श्रींकारह सहयार उवन्नऊ, श्री सिद्धि सहकारं । ममल सरूवे धम्मह सहियौ, सुद्ध दिस्टि हिययारं ॥ ७ ॥ ॥ भवियन.॥ सहयारह हिययार उवन्नऊ, उवन दिस्टि सम उत्तं । भय षिपनिक तं अमिय सरूवे, रमन सिद्धि दर्सतु ॥ ८ ॥ ॥भवियन.॥ सहयारह तं जानु ऊपजई, हिययारह उवन सहाउ । ममल सहावे धम्म सरूवे, सिद्धह मुक्ति सुभाउ ॥ ९ ॥ ॥भवियन. ॥ जानह जान सहाउ संजुत्तऊ, तारन तरन पउत्तु । पय संजोए भय षिपनिक है, भव्वु सिद्धि सम्पत्तु ॥ १० ॥ ॥ भवियन. ॥ (१२) विप्ति विवान गाथा गाथा १०३९ से १०६४ तक (विषय : दिष्टि-१४, विवान-५) दिप्ति विवान स उत्तं, दिप्तिं दिपि दिपिय नंत सुइ रमनं । नंतानंत प्रवेसं, नंत सुभावेन दिप्ति सुइ दरसं ॥ १ ॥ दिप्ति सरूव सु लष्यं, दिप्तिं सुइ नंत नंत सुइ रमनं । नंत दिप्ति सुइ दिपियं, वर्न विसेषेन नंत सुइ रमनं ॥ २ ॥ चित्तं विचित्त दिपियं, सुर रमनं मनि रयन रयन सुइ रमनं । सुयं दिप्ति सुइ दिपियं, दिप्ति सुभावेन नंत दिपि रमनं ॥ ३ ॥ दिप्ति उवन सहावं, दिस्टि सुइ उवन प्रवेस सइ रमनं । दिस्टि अनंत सु गमनं, दिस्टि प्रवेस दिप्ति सुइ मिलियं ॥ ४ ॥ दिस्टि इस्टि सुइ रिस्टं, रिस्ट सिस्टं च सिस्टि सुइ सुवनं । उववन्न दिस्टि सुइ साह, अवयासं दिस्टि नंतनंताई ॥ ५ ॥ (२२५ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अन्मोय दिस्टि सुइ रमनं, अन्मोयं विनंद विली विलयति । अबलबली अन्मोयं, अन्मोयं सुइ षिपिय कम्म बन्धानं ॥ ६ ॥ कम्मं विलय सुभावं, मुक्त सुभावेन मुक्ति सुइ रमनं । मुक्ति अनंत विसेषं, नंत चतुस्टय सुयं सुह रमनं ॥ ७ ॥ दिप्ति अनंत सुभावं, दिस्टि सुइ रमन दिप्ति प्रवेसं । दिस्टि अनंत सुभावं, दिप्ति प्रवेस नंत नंतानं ॥ ८ ॥ दिप्ति न्यान सरूवं, दिप्ति विसेषेन दिस्टि सुइ रमनं । न्यान रमन सुइ रमियं, कमलं आकिर्न कलन निर्वानं ॥ ९ ॥ दिप्ति दिस्टि सुइ दिपियं, दिप्ति सुइ सब्द सुवन सुइ रमनं । अवयासं कलन सु कर्न, कर्न सुइ कमल उवन निर्वानं ॥ १० ॥ दिप्ति रमन सुइ रमनं, दिप्ति उवन रोम सुइ रमनं । रोम रोम सुइ दिपियं, कलियं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ ११ ॥ इस्टि रोम दिपि उवनं, दसैं सुइ दिप्ति उवन दर्सति । मइ दिप्ति सह दिपियं, कलियं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ १२ ॥ दिप्ति उवन सहावं, ढलनं उववन्न नंतनंताई । लष्य अलष्य सु दिपियं, कलनं सुइ कलिय कमल निर्वानं ॥ १३ ॥ तत्काल रमन सुइ दिपियं, दिपियं सुइ चरन रमन सिय चरनं । दिप्ति सब्द सहयारं, कलनं सुइ कमल कर्न निर्वानं ॥ १४ ॥ दिप्ति नेत्र सुइ नृतं, सहसं अट्ठम्मि इस्ट उवनं च । दिप्ति विंद सुइ अर्क, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ १५ ॥ दिप्ति अर्थ सर्वार्थं, दिप्तिं सुइ मार्ग वीय विन्यानं । दिप्ति कर्न सुइ रमनं, दिस्टि उवनं च दिप्ति सुइ रमनं ॥ १६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिप्ति कमल बन्धानं, दिप्ति दिस्टि च उवन सुइ उवनं । दिप्ति षिपन धुरअस्कंध, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ १७ ॥ दिप्ति हितकार पय उवनं, दिप्तिं चेयन्ति ममल आयरनं । दिप्ति इच्छ पय रमनं, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ १८ ॥ अंकुर दिप्ति सु दिपियं, हिययारं दिप्ति अस्थान दिपि उवनं । दिप्ति गहिर सुइ गुपितं, दिप्तिं गुहिजस्य उवन उव उवनं ॥ १९ ॥ दिप्ति जानु सुइ कदलं, पय कमले कलन रमन अंकुरयं । दिप्ति अनंत विसेष, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ २० ॥ दिप्ति सुयं सुइ दिस्टं, दिस्टि सुइ उवन रमन जिन उत्तं । दिप्ति विसेष अनंतं, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ २१ ॥ दिप्ति दिस्टि जिन उत्तं, दिप्ति सहावेन दिस्टि प्रवेसं । न्यानं न्यान उवनं, उवन सहावेन दिप्ति दिस्टं च ॥ २२ ॥ दिप्ति दिस्टि आयरनं, उवनं जै रमन उवन ससहावं । नंद नंद आनंद, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ २३ दिप्ति दिस्टि सुइ उवनं, उवन सहावेन उवन उवएसं । केवल कलन उवएस, कलनं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ २४ दिप्ति दिस्टि जिन उत्तं, उत्तं सुइ समय सुवन सुइ सुवनं । सुवनं श्रवन सहावं, आकीनं कमल कलन निर्वानं ॥ २५ ॥ जं तारन तरन सहावं, कलनं सुइ श्रेनि तरन सुइ कमलं । सहयार उववन्न सु चरनं, समयं सुइ कर्न कमल सिद्धानं ॥ २६ ॥ (२२६) Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी परिनामु अलष्य लषियं, तं तिविहि कम्मु षिपियं ॥ ९ ॥ ॥स न्यानी.॥ सिरी नंद नंद सुरयं, तं सहजनंद रमनं ॥ १० ॥ ॥ स न्यानी. ॥ पर परमनंद जिनुत्तं, तं सिद्धि मुक्ति विलसं ॥ ११ ॥ ॥ स न्यानी.॥ श्री ममल पाहुइ जी (१३) सन्यानी मुक्ति पऊ फूलना गाथा १०६५ से १०७५ तक (विषय : लक्षण परिणाम) उववंन उवन ममलं, तं न्यान रमन सुरयं । स न्यानी मुक्ति पऊ ॥ १ ॥ जिननाथ रमन मिलनं, तं अमिय कमल रमनं । स न्यानी मुक्ति पऊ ॥ भय षिपिय मुक्ति मिलनं, स न्यानी मुक्ति पऊ ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ उर्वकार ऊर्ध गमनं, विन्यान विंद ममलं ॥ ३ ॥ ॥स न्यानी.॥ तं विंद सहज सुरयं, तं नंत कम्मु विलयं ॥ ४ ॥ ॥स न्यानी.॥ उववन्न कमल सुरयं, सिरी कमल सिद्धि रमनं ॥ ५ ॥ ॥स न्यानी.॥ तं कमल कंद भवनं, परिनामु नंत ममलं ॥ ६ ॥ ॥स न्यानी.॥ सौ एक अट्ठ उवनं, तं कंद सहज मिलनं ॥ ७ ॥ ॥ स न्यानी.॥ तं अन कमल कलनं, चौसठि चरन मिलनं ॥ ८ ॥ ॥ स न्यानी.॥ = (१४) जिनवर उत्तो न्यानीय फूलना गाथा १०७६ से ११०८ तक (विषय ज्ञान-५, सम्यकदर्शन के अंग-८, दर्शन के भेद -४) जिनवर उत्तउ न्यानीया, तव आयरना जू । न्यान विन्यानह भेऊ सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १ ॥ अर्थति अर्थह आयरो, तव आयरना जू । षट् कमलह संभाउ सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २ ॥ पंच दिप्ति परमिस्टि मऊ, तव आयरना जू । अर्थ समर्थ संजुत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ।। ३ मति कमलासन कंठ है, तव आयरना जू । हिरदै मृति उर्वनु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ४ गुहजहि अवहि उवन पौ, तव आयरना जू । गुपितह गुर उवएस सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ५ ॥ = = = = (२२७) Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = = = = = = श्री ममल पाहुइ जी मनपर्जय जानु वसै, तव आयरना जू । रिजु विपुलह च सहाव सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ६ ॥ परम तत्तु पद विंद है, तव आयरना जू । पद विंदह केवलु न्यानु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ७ ॥ अंगदि अंगह समय मौ, तव आयरना जू । अर्थ समर्थ संजुत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ८ ॥ मै मूरति सर्वंग है, तव आयरना जू । ममलह ममल सहाव सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू न्यान विन्यान उवन पौ, तव आयरना जू । अन्यानह विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ।। १० ।। सम्मत्तह सम समय मौ, तव आयरना जू । मिथ्या तिविहि गलंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ११ ।। निसंक सहावे न्यान पौ, तव आयरना जू । सल्य संक विलयं सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ।। १२ ।। ससंक रहिऊ कंष्या रहिऊ, तव आयरना जू । व्रिति रहियौ न्यान सहाउ सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १३ ॥ मूढ़ दिस्टि है सर्व गली, तव आयरना जू । अमूढ दिस्टि सहकार सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १४ ॥ न्यानी दोषु न पिच्छई, तव आयरना जू । अन्यान उनु गलंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १५ ॥ उवगोहनु अंग जिनुत्तु है, तव आयरना जू । न्यानी दोषु गलंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १६ ॥ अस्तितिकरनु जिनुत्तु है, तव आयरना जू । अस्तिति न्यान सरूव सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १७ ॥ वाछिलु विन्यानह सहिऊ, तव आयरना जू । न्यान विन्यान संजुत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ १८ ॥ परम तत्तु पद विंद है, तव आयरना जू । परम न्यान संजुत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू दर्सन अंग स उत्तु जिनु, तव आयरना जू । तिविहि कम्मु विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २० ॥ न्यान सहावे दर्सियऊ, तव आयरना जू । अन्यान दिस्टि विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २१ ॥ दर्सन दर्सिउ न्यान मौ, तव आयरना जू । चष्य अचष्यह भेउ सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ।। २२ ।। चष्यह दर्सिउ समय मौ, तव आयरना जू । समयह लोय अलोय सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २३ ॥ अचष्यह सब्द सहाउ लै, तव आयरना जू । सब्द वियार संजुत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २४ ॥ ममल सहावे दर्सियऊ, तव आयरना जू । समल कम्मु विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २५ ॥ अवहिहि दर्सिऊ गुपित रुई, तव आयरना जू । गुपित न्यान विन्यान सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २६ ॥ गुहिजह गुपित उवन पौ, तव आयरना जू । गुप्ति कम्मु विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २७ ॥ = = = = = = = (२२८) Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी न्यान दिस्टि विन्यान मौ, तव आयरना जू । अन्यान दिस्टि विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २८ ॥ जानु उपजै जान पौ, तव आयरना जू । मन पर्जय न्यान सहाउ सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ २९ ॥ रिजु विपुलह संजुत्तु है, तव आयरना जू । परम न्यान संजुत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ।। ममलह ममल उवन पौ, तव आयरना जू । समल कम्मु विलयंतु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ३१ ॥ केवल दिस्टिहि ममल पौ, तव आयरना जू । भय विनासु सो भव्वु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ३२ ॥ न्यान विन्यानह समय मौ, तव आयरना जू । भव्वु मुक्ति सम्पत्तु सर्व नै, न्यानीया तव आयरना जू ॥ ३३ ॥ सब्द सहाव अनन्तं, कर्न आकिर्न न्यान सुइ समयं । कर्न समय सुइ कलनं, अवयासं कमल उवन सिद्धानं ॥ ४ ॥ सब्दं रसनि अनंत, रसियं सुइ कर्न न्यान पिय रमनं । कर्न पियं सुइ कलनं, कलनं सुइ कमल उवन सिद्धानं ॥ ५ ॥ सब्दं कसनि अनेयं, कसियं सुइ कर्न न्यान पिय रमनं । कर्न पियं सुइ कलनं, कलनं सुइ कमल उवन निर्वानं ॥ ६ ॥ सब्दं तंति अलष्यं, लषियं सुइ कर्न कलन अन्मोयं । अन्मोय कलन सुइ कमलं, कमलं अन्मोय न्यान निर्वानं ॥ ७ ॥ सब्दं तार सु तरलं, कलनं सुइ कर्न रमन तत्काल । रमन कर्न सुइ कलनं, कलनं सुइ कमल न्यान निर्वानं ॥ ८ ॥ सब्दं फूंक सु गमनं, गमनं सुइ अगम गमिय सइ कन । अस्फटिक न्यान सुइ कलनं, कलनं अन्मोय कमल निर्वानं ॥ ९ ॥ सब्दं असब्द उवनं, असब्द सुइ सब्द न्यान सुइ कन । कर्न अन्मोय सु कलनं, कलनं अन्मोय कमल निर्वानं ॥ १० ॥ सब्द सब्द सुइ सब्द, सब्दं सुइ उवन सुवन सइ कन । कर्न न्यान अन्मोयं, कर्न अन्मोय कमल निर्वानं ॥ ११ ॥ सब्द प्रियो जिन उत्तं, प्रियो सुइ सब्द नंत अन्मोयं । अन्मोय कर्न सुइ कमलं, कमलं अन्मोय न्यान निर्वानं ॥ १२ ॥ सब्द सरस सहावं, सरस सहावेन सब्द प्रिय कर्न । कर्न पियं सिय चरनं, चरनं सिय कमल सब्द निर्वानं ॥ १३ ॥ सर सब्दं सुइ उवनं, उवनं सर सब्द कर्न सुइ रमनं । कर्न रमन सुइ कलनं, कलनं सुइ रमन कमल निर्वानं ॥ १४ ॥ (44) सब्द प्रियो विवान गाथा गाथा ११०९ से ११३३ तक (विषय ! आकर्न के विषय-७, सर-७) सब्द प्रियो जिन उत्तं, सब्द सुइ उवन कलन कमलं च । सब्द कमल उव उवनं, प्रियो सुइ सवन सुवन आकीनं ॥ १ ॥ सब्द अनंत विसेषं, नंतानंतं च सरनि सुइ उवनं । कर्न सुयं सुइ विलयं, विलयं सुइ कमल कम्म विलयंति ॥ २ ॥ सब्द उववन्न सहावं, उवनं सुइ कमल न्यान उव उवनं । उवन सुवन सुइ कन, कर्न सुइ कमल उवन निर्वानं ॥ ३ ॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी सर सहाव सुइ उवनं, सब्दं असब्द गुप्ति सुइ सब्दं । सब्द कमल सुइ कन, कन सुइ न्यान कमल निर्वानं ॥ १५ ॥ सरं च सब्द सहावं, सब्दं सर कर्न समय सुइ रमनं । कर्न समय सुइ कलनं, कलनं सुइ समय कमल निर्वानं ॥ १६ ॥ असब्द सर उवन सहावं, उवनं अवयास असब्द हिययारं । हिययार कर्न सुइ समयं, कर्न सुइ समय कलन निर्वानं ॥ १७ ॥ गुप्ति सब्द सुइ रमनं, अवध्यं सहाव उवन उवन निहि उत्तं । उवन उवन पिय कन, कन पिय कमल सब्द निर्वानं ॥ १८ ॥ षट् सर उवन अनेयं, अनेयं अन्मोय कमल सुइ उवनं । कमल कर्न सुइ समयं, कर्न सुइ समय कमल निर्वानं ॥ १९ ।। प्रियो सब्द जिन उत्तं, प्रियो सुइ कर्न असब्द सहकारं । कर्न हिययार सु रमनं, रमनं सुइ कर्न कमल निर्वानं ॥ २० ॥ प्रियो दिप्ति सुइ सुवनं, दिप्तिं सुइ प्रियो दिस्टि सुइ रमनं । दिप्ति दिस्टि हिय कन, कर्न हिय कमल सब्द निर्वानं ॥ २१ ॥ असब्द अदिस्टि पिय सवनं, पिय सुइ उवन हिययार सुइ रमनं । हिय प्रियो कर्न सुइ समयं, समयं सुइ कर्न कमल निर्वानं ॥ २२ ॥ असब्द अदिस्टि अनंतं, उवनं हिय रमन हुवयार सुइ रमनं । हिय हुव रमन सु कन, कर्न प्रिय रमन कमल निर्वानं ॥ २३ ॥ सब्द प्रियो जिन उत्तं, प्रियो सब्दस्य जिनय जिन रमनं । जिन उवन रमन सुइ कन, कन सुइ कमल रमन निर्वानं ॥ २४ ॥ जं तारन तरन सहावं, अन्मोयं सम श्रेणि कलन सुइ कनँ । कर्न चरन सिय कमलं, तारन सह समय कमल निर्वानं ॥ २५ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (48) पनविवि बचाऊ फूलना गाथा ११३४ से ११४६ तक (विषय : छह द्रव्य, पय) पन पनविवि परम जिनेन्द स उत्तउ, परम तत्तु पद विंद मऊ । परम देऊ परमष्यरू उत्तउ, परम रमन तं परम जिनु ॥ १ ॥ ऐ परम जिनेन्दह ममल स उत्तउ, ममल दिस्टि तं न्यान मऊ । ऐ न्यान विन्यानह समय सहाउ हो, चंदनु समयह विनय मऊ ॥ २ ॥ ऐ समय स उत्तउ सिद्ध सहाऊ हो, सिद्धह सुद्ध सु समय मऊ । ऐ सुद्ध सरूवे हो सुर्य सुरमियो, चंदनु जिन उत्तु विन्यान मऊ ॥ ३ ॥ ऐ सिद्धह सिद्ध सरूव सु रमनऊ, सिद्ध स उत्तर ममल पऊ । ममल उवएसिउ हो सूष्यम सहियो, ___ चंदनु सूष्यम उव लषिऊ ॥ ४ ॥ सुष्यम सहियौ न्यान विन्यान पौ, कमल रमन तं परम पऊ । (२३०) Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी कमलह रमने रयन सरूवे, चंदनु रमियऊ जिन समई ॥ ५ ॥ जिन समय सु लंकृत सिद्ध सहाउ हो, हितमित परिनै परिनमऊ। कोमल सहियऊ हिय हुवयार हो, चंदनु हियइ जु ममल पऊ ॥ ६ ॥ विन्यान विंद तं समय संजुत्तउ, मय मूरति तं मुक्ति पऊ । ऐ मुक्तिहि मुक्त सुभाउ सहज रुइ, चंदनु सहजह विनय मऊ ॥ ७ ॥ ऐ नंतानंत सु सुद्ध परम जिनु, नंत विसेष सु दिस्टि मऊ । न्यान विन्यानह सुयं सु रमनउ, रमियो सिद्ध सु मुक्ति पऊ ॥ ८ ॥ जिनवर उत्तउ रयन ममल पऊ, परिनै उववन्नु सु मल रहिऊ । कम्मु जु विलयौ मुक्ति जिनेन्दह, चंदनु समय सु मुक्ति पऊ ॥ ९ ॥ परमानु पउत्तउ परम जिनेन्दह, समय सु सहियौ जिनय पऊ । तं साहिउ समयह लोय अलोयवि, सुष्यम सहियो मुक्ति पऊ ॥ १० ॥ सुष्यम परिनामह सुयं सु गलियौ, ___ कम्मु विलय अवयास पऊ । अवयासह नंतानंत ममल पऊ, चंदनु ममल सु विनय मऊ ॥ ११ ॥ अन्मोय न्यान विन्यान सु सहियौ, षिपक दिस्टि तं षिपक पऊ । षिपक दिस्टि तं विपक ममल मौ, मुक्ति इस्टि तं मुक्ति पऊ ॥ १२ ॥ मुक्ति इस्टि तं सिद्ध सहज रुइ, नंतानंत सु सौष्य मऊ । जिन सुद्ध परम जिनु परम सरूववि, चंदनु परम सु विनय मऊ ॥ १३ ॥ (१७) हितकार श्रेणी फूलबा गाथा ११४७ से ११८२ तक (विषय : अर्क-३६) उव उवन उवन वीरू विन्यान रमाई रे, उव उवन समय७ नंत न्यान सहाई रे । तं न्यान विन्यान सहावे उवन रमाई रे, सुइ समय उवने वीरू मुक्ति लहाई रे ॥ १ ॥ (२३१) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उव उवन उवन उव उवन सहाई रे, उव उवन अन्मोय स न्यानी मुक्ति लहाई रे । एहु मुक्ति लहाई कलन सिरी मुक्ति लहाई रे, एहु मुक्ति लहाई चरन सिरि मुक्ति लहाई रे ॥ एहु मुक्ति लहाई जिनय जिन मुक्ति लहाई रे, एहु मुक्ति लहाई उवन जिन मुक्ति लहाई रे । एहु मुक्ति लहाई समय जिन मुक्ति लहाई रे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उवन उवन वीरू श्रेनि सहाई रे, उव उवन अन्मोये श्रेनि उवनु रमाई रे । उव उवन अन्मोये श्रेनि मुक्ति लहाई रे, उव उवन सहाई कलन सिरि श्रेनि रमाई रे ॥ ३ ॥ ॥ उव. ॥ उव उवन उवन श्रेनि कलन सहाई रे, तं कलन उवन उवने रयन सहाई रे । दिपि दिप्ति रमनु रूव रमनु रमाई रे, कम कमल कलन रंजु उवन सहाई रे ॥ ४ ॥ ॥ उव. ॥ तं चरन उवन उवने मै रमन रमाई रे, तं रयन उवन उवने चरन चराई रे । तं रयन रमन रइ सुवन सहाई रे, तं चरन चरिउ सिद्धि मुक्ति लहाई रे ॥ ५ ॥ ॥ उव. ॥ हिययार कलन श्रेनि उवन सहाई रे, पद पदम रमन श्रेनि उवन सहाई रे । तं उवन उवन वय रमन रमाई रे, सुव सुयं रमन सुव रमन सहाई रे ॥ ६ ॥ ॥ उव. ॥ मै मयन चरन तं ममल रमाई रे, गय गमन अगम रै उवन सहाई रे । हिय उवन अगम रै उवन रमाई रे, हंसाहिय रमन कम कमल सहाई रे ॥ ७ ॥ ॥ उव. ॥ जं वज्र गहनु वज्र जै उवन सहाई रे, तं उवन उवने विनि विन्यान रमाई रे । वसु रमन रयन रै रयन सहाई रे, अन्मोय कलन श्रेनि मुक्ति लहाई रे ॥ ८ ॥ ॥ उव. ॥ जं विनय सिरी सुइ वन सहाई रे, तं उवन उवने वै सुवन रमाई रे । Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तं उवन उवने विंने सुइ सुवन सहाई रे, तं गमन लष्यन विंनि अगम रमाई रे ॥ ९ ॥ तं विनय सिरी वज्र सयन सहाई रे, अन्मोय कलन श्रेनि उव उवन रमाई रे । अन्मोय सहावे उव उवन सहाई रे, संजुत्तु उवन अन्मोय मुक्ति लहाई रे ॥ १० ॥ ॥ उव. ॥ जं कर्न सिरी हिय रमन सहाई रे, तं श्रेनि सहावे उव उवन रमाई रे । तं कर्न सिरी उव उवन सहाई रे, पय रमन धरन सिय सुद्ध सहाई रे ॥ ११ ॥ ॥ उव. ॥ जं हियइ रमन श्रेनि रमन रमाई रे, तं उवन उवने षिम रमन सहाई रे । सुइ श्रेनि अन्मोये नंत ममल रमाई रे, अन्मोय कलन सुइ सिद्ध सहाई रे ॥ १२ ॥ ॥ उव. ॥ जं नंद सिरी सुई श्रेनि सहाई रे, तं उवन उवने तं उवन रमाई रे । तं पदम रंजु सह रंजु सुभाई रे, तं ममल रंजु जिन रंजु सहाई रे ॥ १३ ॥ ॥ उव. ॥ सुइ रमनु सुयं सुइ रयन सहाई रे, अन्मोय कलन सिरी नंद सहाई रे । हिययार रमन तं ममल रमाई रे, अन्मोय हिययार कलन सिरि मुक्ति लहाई रे ॥ १४ ॥ ॥ उव. ॥ तं नंद उवंनी विंने सुइ सयन सुभाई रे, तं सहज सिरी आनंद सहाई रे। अन्मोय कलन सुइ रमन रमाई रे, तं नंद संजुत्तु सुइ ममल सहाई रे ॥ १५ ॥ ॥ उव. ॥ आनन्द सिरी हिय श्रेनि सहाई रे, तं उवन उवने विंनि सुवन रमाई रे । जय रमनु पदम रंजु ममल सुभाई रे, विन्यान वीय रै रमन रमाई रे ॥ १६ ॥ ॥ उव. ॥ अन्मोय कलन श्रेनि मुक्ति रमाई रे, कलि कलन अन्मोये सुइ सिद्धि लहाई रे । (२३३) Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जं समय सिरी सुइ श्रेनि सहाई रे, तं उवन उवने सुव उवनु सहाई रे ॥ १७ ॥ ॥ उव. ॥ सुइ अभय रंजु अन्मोय रमाई रे, सुइ उवन उवनी तव सिरीय सहाई रे । जं वज्र सहाई समय सिरी सयन सहाई रे, हिययार सहावे उव उवन रमाई रे ॥ १८ ॥ ॥ उव. ॥ उव उवन उवन उव उवन रमाई रे, हिययार जै रमन सुयं सुव स्रवन सहाई रे । तं उवन सहावे सह सहज सुभाई रे, अन्मोय कलन सिरी मुक्ति लहाई रे ॥ १९ ॥ ॥ उव. ॥ जं समय सिरी सुइ वन सहाई रे, अन्मोय उवन उवने श्रेनि सहाई रे । तं उबन उबने वै रमन सुभाई रे, सुइ सुयं सुवन रंजु उवन सुभाई रे ॥ २० ॥ ॥ उव. ॥ सुइ उवनु सहज रंजु सहज सुभाई रे, उव उवन उवनी सुइ कलन सहाई रे । तं उवन स्यन सिरि रमन रमाई रे, अन्मोय कलन सिरी सिद्धि लहाई रे ॥ २१ ॥ ॥ उव. ॥ कमल चरन सुइ कर्न जिनुत्तं, हंस सुवन अवयास संजुत्तं । दिप्ति सु दिप्ति अभय जिन रमनं, सुर्क अर्थ विंद सिद्धि सु गमनं ॥ २२ ॥ ॥ उव. ॥ नंद अनंद समय सुइ उवनं, हिय अलष अगम्य उवन जिन रमनं । सहयार रमन सुइ रंज जिनुत्तं, उवन षिपन सुइ ममल सिद्धि रत्तं ॥ २३ ॥ ॥ उव. ॥ उवन अर्क सुइ उवन जिनुत्तं, विन्यान बीस चौ उवन संजुत्तं । सहयार हिययार उव उवन सु रमनं, सुइ उवन सहाव सिद्धि सुइ गमनं ॥ २४ ॥ ॥ उव. ॥ कलिय कलन कर्न उवन जिनुत्तं, उवन कमल सुइ चरन संजुत्तं । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ कलन जी सहयार कमल सुव कर्न स रत्तं, अन्मोय कमल सुइ विंद विन्यान समय दिपि सहियं, सु नंद सहिय हिययार जिनुत्तं । वज्र सुइ श्रेनि अन्मोयं, सह समय कमल कलि मुक्ति संजोयं ।। २६ ।। ॥ उव. ॥ जं सुवन सिरी जिन श्रेनि सहाई रे, सिद्धि सम्पत्तं ॥ २५ ॥ ॥ उव ॥ अन्मोय उवन सुइ कलन रमाई रे । सुइ उवनु रंजु जिन श्रेनि सहाई रे, तं दिप्ति रमन जिन रमनु जिनाई रे ।। २७ ।। ॥ उव. ॥ तं उवन उवनी सुइ सुवन सहाई रे, सुइ नयन सिरी तं पड मन लाई रे । जय जयन सिरी जिन रमन रमाई रे, अन्मोय कलन कर्न मुक्ति लहाई रे ॥ २८ ॥ ॥ उव. ॥ अवयास सिरी जं श्रेनि सहाई रे, तं उवन उवने सुव सप्त सहाई रे । २३५ तं सुवन रंजु सुव सुवन सहाई रे, तं कमल रंजु सहज रंजु सहाई रे ॥ २९ ॥ ॥ उव. ॥ तं मयन रंजु कर्न रंजु सहाई रे, तं तं उवन उवने सुई सहज सुभाई रे, तं निलय सिरी तं न्यान सहाई रे ॥ ३० ॥ ॥ उव ॥ तं उवन उवंनी सुइ सहज सुभाई रे, रमन रंजु लषन रंजु सुभाई रे । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तं निलय सिरी तं न्यान सहाई रे । तं सहज सिरी जिन जिनय रमाई रे, अन्मोय कर्न सुइ सिद्धि लहाई रे ।। ३१ ।। ॥ उव. ॥ जं दिप्ति सिरी दिपि दिप्ति रमाई रे, लघन रंजु तं तं तं उवन उवने वय रयन सहाई रे । ममल सुभाई रे, रमन रंजु तं ममल सहाई रे ॥ ३२ ॥ ॥ उव ॥ तं रमन रंज तं सुवन सहाई रे, तं सुवनी उवनी सुइ रमन सहाई रे । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी तं षिपन जयन जय लषन जिनाई रे, अन्मोय कलन कर्न सुइ सिद्धि लहाई रे ॥ ३३ ॥ ॥ उव. ॥ सुदिप्ति सिरी जिन श्रेनि सहाई रे, तं उवन उवने उव उवन सहाई रे। तं विपन श्रेनि गमन रंज सुभाई रे, सुवन श्रेनि रमन रंज सहाई रे ॥ ३४ ॥ ॥ उव. ॥ उवन रंज लषन श्रेनि सहाई रे, परम रंजु पर परम सुभाई रे । सुइ सुवनी उवनी उव उवन सुभाई रे, ___ अन्मोय कर्न तं मुक्ति लहाई रे ॥ ३५ ॥ ॥ उव. ॥ जं मदन गमन उव उवन श्रेनि सहाई रे, ___ सुइ सुवनी उवनी सुइ न्यान सहाई रे । तं न्यान विन्यान सुव सुवन रमाई रे, अन्मोय कलन कर्न सिद्धि लहाई रे ॥ ३६ ॥ ॥ उव. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (40) भवियन राछड़ो फूलना गाथा ११८३ से ११९६ तक (विषय: नन्द-५, अर्थ-३, भय : विली) नंद अनंदह नंद जिनु भवियन, चेयननंद सहाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ सहजनंद ससहाउ लै भवियन, परमानंद सहाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १ ॥ अप्पा अप्पै सो मुनहु भवियन, सुद्धप्पा ममल सरूव । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ परम सुभावह परम मुनि भवियन, नमि परमप्प सहाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ २ ॥ पंच इस्टि परमिस्टि मउ भवियन, श्री सहकार सउत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ लषियो लष्य अलष्य मउ भवियन, षिपनिक रूव अरूव । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ३ ॥ मै मूरति न्यान विन्यान मौ भवियन, नौ उत्पन्न सहाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ समय संजुत्तउ समय मउ भवियन, पं. श्री लषिमन उत्तु ।। भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ४ ॥ उर्वकार उवन मौ भवियन, उत्पन्नह उवन सहाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ममल सरूवे ममल पऊ भवियन, पं. श्री लषिमन भाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ५ ॥ (२३६) Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी ह्रींकारह हिययार मौ भवियन, ह्रीं हुतकार सरूव । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । भय षिपिय भव्यु तं मुक्ति पउ भवियन, पं. श्री लषिमन रूव । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ६ ॥ श्रींकारह ससहाउ मुनि भवियन, सहजनन्द ससरूव । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ अमिय सरूवे ममल पर भवियन, पं. श्री लषिमन उत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ७ ॥ उववंन दिस्टि हिययार मौ भवियन, सहकारह ममल सहाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । धम्मह सहियो तिअर्थ मौ भवियन, पं. श्री लषिमन भाउ । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ८ ॥ हिययारह सुभाउ मुनि भवियन, उत्पन्नह रिस्टि संजुत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ सहकारह ममल सहाउ मौ भवियन, भय षिपिय सिद्धि सम्पत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ९ ॥ सहकार इस्टि हिययार मौ भवियन, उववन्नह अमिय सरूव । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । धम्म सहावे सु सिद्धि पी भवियन, पं. श्री लषिमन सूर । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १० ॥ अर्थति अर्थह ममल पौ भवियन, षट् कमलह संजुत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । कमल सहावे रमन मौ भवियन, भय षिपनिक लंकृत उत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ११ ॥ अर्थति अर्थह भय रहिउ भवियन, भौहह भयह विनासु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ दिस्टि झडप भय गलि गई भवियन, पं. श्री लषिमन सूर । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १२ ॥ जानु उवनौ न्यान पौ भवियन, पद विंदह न्यान विन्यानु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ सर्वन्यह ससहाउ मौ भवियन, भय विनासु तं भव्वु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १३ ॥ अमिय पयोहर परम पौ भवियन, धम्मह ममल विन्यानु । ___ भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ पं.श्री लषिमन लष्य मौ भवियन, भव्वु सिद्धि सम्पत्तु । भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १४ ॥ (५९) ठहकार फूलना गाथा ११९७ से १२०४ तक (विषय : पांच अर्थ, कर्म की उत्पत्ति- पिपति, अार, स्वर, व्यंजन) जिन जिनवर हो उत्तउ भवियन ममल सुभाए । जिन जिनियौ हो कम्मु अनंतु जु धम्म सहाए ॥ धरि धरियो हो झान ठान सो ममल सहाए । ठहकारे हो ममल न्यान सो मुक्ति सुभाए ॥ १ ॥ (२३७) Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कल लंकृत हो कम्मु जु उपजै समल सहाए । सो न्यान अन्मोयह विलयौ ममल सुभाए ॥ ७ ॥ निसंकह हो संक जु विलयौ धम्म सहाए । ठहकारे हो न्यान विन्यानह ममल सुभाए ॥ भय विनसिय हो भव्वु उवन्नउ ममल सुभाए । विपि कम्मु जु हो मुक्ति पहुंतऊ ममल सुभाए ॥ ८ ॥ श्री ममल पाहुइ जी उप उपजिऊ हो भय विनासु ठहकार सुभाए । जिन वयन जु हो उपजिऊ स्वामी ममल सुभाए ॥ उप उपजिऊ हो कम्मु जु विलयौ धम्म सहाए । षिपि कम्मु जु हो मुक्ति संजोये न्यान सहाए ॥ २ ॥ उव उवनउ हो अर्थति अर्थह ममल सहाए । ठहकारे हो न्यान विन्यान सु धम्म सुभाये ॥ जह कम्मु जु हो उपजिऊ भवियन समल सहाए । जो कम्मु जु हो विलयौ स्वामी न्यान सहाए ॥ ३ ॥ जो चष्य अचष्यह उपजिऊ भवियन अन्यान सहाए । सो कम्मु जु हो विलयौ चेयन धम्म सुभाए ॥ जं जानु उपजिऊ समई ममल सहाए । तं न्यान अन्मोयह मिलियौ ममल सुभाए ॥ ४ ॥ जं न्यान विन्यान उवनऊ ममल सहाए । तं न्यान अनंतु जु दर्सिउ धम्म सुभाए ॥ जं अयर सुर विंजन सहियो ठहकार सहाए । तं दर्सिउ हो दर्सन दिट्टिहि ममल सुभाए ॥ ५ ॥ पद दर्सिउ हो परम तत्तु परमप्प सहाए । विन्यानह हो दर्सिउ विंदु जु धम्म सहाए । पद अर्थ उवन्नऊ समई ठहकार सहाए । तं अर्थति अर्थह जोयो ममल सुभाए ॥ ६ ॥ सम अर्थ संजोए जोयो धम्म सहाए । परमर्थह पद अर्थह ठवियौ न्यान सुभाए ॥ (60) उत्पन्न साहि विवान माथा गाथा १२०५ से १२३५ तक (विषय : चार दर्शन की महिमा, विवान पाँच) उव उवन उवन जिन उत्तं, उव उवनं उवन साहि संजुत्तं । उव उवन उवन सुइ रमनं, उवनं सुइ साहि कर्न कमलं च ॥ १ ॥ उवन दिस्टि सुइ रमनं, उवनं सुइ समय समय संजुत्तं । उवन दिस्टि सुइ रमनं, उवनं सुइ कर्न कमल कलनं च ॥ २ ॥ उवन दिस्टि सुइ सुवनं, चौदस संजुत्त कलन जिन रमनं । कलन कर्न अन्मोयं, साहिय सुइ कमल उवन निर्वानं ॥ ३ ॥ दिस्टि चष्य जिन उत्तं, चष्यं सुइ दिस्टि न्यान विन्यानं । विन्यान न्यान सुइ कलनं, कलनं सुइ कर्न कमल जिन उत्तं ॥ ४ ॥ चष्य सुभाव जिनुत्तं, चष्यं सहकार अचष्य जिन भनियं । अचष्य हिययार उवन्न, उवनं सुइ कलन कर्न निर्वानं ॥ ५ ॥ अचष्य अदर्स जिनुत्तं, अदर्स सुइ सरनि कम्म विलयंति । अदर्स सरनि जिन विलयं, दर्सिय सुइ ममल कमल कन च ॥ ६ ॥ (२३८) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अचष्य दिस्टि जिन रमनं, रमनं जिन उवन अनष्यरं रमनं । रमन कर्न हिययार, कर्न हिय उवन कमल कलनं च ॥ ७ ॥ अचष्य सुभाव जिनुत्तं, अचष्यं सहकार अवहि सुइ दर्स । अवहि उवन निहि भनियं, उव उवनं साहि कर्न सुइ कमलं ॥ ८ ॥ अवहि दर्स जिन दर्स, गुपितं सह सहज गुहिज उव रमनं । गुहिज गुप्ति गुरु गुरुवं, सहियं सुइ कर्न कमल अवयासं ॥ ९ ॥ अवहि उवन निहि उत्तं, उत्तं सुइ सुवन उवन जिननाहं । जिननाह दिस्टि सुइ रमनं, सहियं सुइ कमल विंद कन च ॥ १० ॥ अवहि दिस्टि जिन रमनं, अवहि सहावेन केवलं उवनं । केवल ममल सहावं, उव उवनं सुइ कमल कर्न सुइ समयं ॥ ११ ॥ केवल कलन उवन्नं, कलनं सुइ चरन चरन जिन उत्तं । उत्पन्न साहि सुइ कमलं, कमलं सुइ उवन केवलं कर्न ॥ १२ ॥ दिस्टि विवान स उत्तं, उत्तं सुइ ममल केवलं न्यानं । दसति नंत नंतं, दर्स सुइ समय कर्न कमलं च ॥ १३ ॥ केवल दर्सन सहियं, दिस्टि सुइ समय जिनेन्द विंदानं । जिन उवनं जिन उत्तं, समयं सुइ कर्न कमल निर्वानं ॥ १४ ॥ कर्न उवन सुइ उवनं, उवनं सुइ सब्द उवन जिन उत्तं ।। जिन उत्त समय सुइ कर्न, कर्न सुइ कमल केवलं न्यानं ॥ १५ ॥ सब्दं नंत उवन्नं, सब्द सुइ ममल साहियं कर्न । ममल उवन सुइ रमनं, साहिय सुइ ममल केवलं न्यानं ॥ १६ ॥ सब्द साहि सुइ सुवन, सब्द सुइ सरनि नंत विलयंति । न्यान सब्द सम सवनं, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ १७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी न्यान विवान स उत्तं, सब्दं सुइ ममल कर्न सुइ रमनं । कर्न रमन जिन उत्तं, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ १८ ॥ न्यानं न्यान स उत्तं, सब्दं जिन समय सुवन सुइ कन । सब्द समय सुइ ममलं, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ १९ ॥ सब्द सहाव स उत्तं, सब्दं सुइ ममल न्यान जिन रमनं । रमन कर्न सुइ ममलं, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ २० ॥ सब्द हिययार उवन्नं, हिययारं तं उवन हुवयार जिन उत्तं । जिन उत्त कर्न हिय हुवयं, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ २१ ॥ सब्द सयन विवानं, सब्दं हिय उव हुव नंत सुइ रमनं । रमन समय सुई कन, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ २२ ॥ हिय हुव उवन सहावं, उवनं सुइ सरनि कम्म विलयंति । जिन उत्त कर्न हिय हुवनं, साहिय सुइ कलन कमल निर्वानं ॥ २३ ॥ उव उवनं उवन सहावं, उवनं अवयास नंत सुइ ममलं । नंतानंत सु ममलं, साहिय सुइकलन कमल निर्वानं ॥ २४ ।। दिप्ति सब्द सुइ उवनं, उवनं कमलं च साहि अवयासं । विवान साहि अवयासं, विवानं अवयास साहियं कमलं ॥ २५ ॥ जं विवान उवन्न, उव उवनं नंत ममल सुइ रमनं । जिन उत्त साहि सुइ कर्न, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ २६ ।। जं जं उवन सहावं, उवनं सुइ अर्क जिन अर्क ममलं च । अर्क उत्त जिन अर्क, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ २७ ॥ उव उवनं नंत विसेषं, नंतानंतं च ममल उवनं च । ममल रमन सुइ कर्न, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ २८ ॥ (२३९) Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उवनं नंत स गमनं, गमनं सड़ गमिय अगम उव ममलं । ममल उत्तु सम कन, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ २९ ॥ उवनं सुइ दिप्ति दिस्टि, सब्दं सुइ उवन ममल अवयास । जिन उत्त उत्त सुइ कर्न, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ ३० ॥ तारन तरन सहावं, कलनं सुइ कमल कर्न सुइ चरनं । सिय धुव उत्त जिनुत्तं, कमलं सह समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ३१ ॥ (६१)जयमाला छंदगाथा गाथा १२३६ से १२५० तक (विषय! अक्षर, स्वर, व्यंजन) उव उववन्नु उव उवन उववन्नऊ, उववन्न दिस्टि उववन्न पऊ । उववन्न समय सुइ सुद्ध पऊ, उववन्न परम जिन उत्त पऊ ॥ १ ॥ उवन उवन्नऊ उवन पउत्तु, उवन्नु जिनुत्तु सु समय संजुत्तु । उवन्नु पउत्तु सु न्यान पयत्तु, सु अष्यर सुर विन्यान संजुत्तु ॥ २ ॥ सु विजन सुर संजोय थुनंतु, सु अष्यर अषय भाऊ दर्संतु । सु अषय सु रमनह अमिय संजुत्तु, सो विष भंजनु सुइ भब्बु स उत्तु ॥ ३ ॥ सो भय षिपनिक सुर रमन पहानु, सो रमियौ रमनह न्यान विन्यानु । सुर सुर्य उवन्नऊ मंत संमत्तु, जिननाथ रमन सुइ समय संजुत्तु ॥ ४ ॥ सो विजन रमियौ सुरह सहाऊ, न फिटै तासु सुयं सुर ग्राहु । सो रमियौ न्यान अन्मोय अनंतु, सो हितमित परिनै समय संजुत्तु ॥ ५ ॥ अष्यर सुर विंजन रमन सहाऊ, सो पय अर्थह सुइ ममल सुभाऊ । सूष्यम सुर उवनऊ पयह पउत्तु, सो उवनऊ परम तत्तु दसैंतु ॥ ६ ॥ पद दर्सेड़ परम तत्तु दर्संतु, सु परम अमिय रस रसिय पउत्तु । सो भय विनासु है जिनह पउत्तु, सो सल्य ससंक भाउ विलयंतु ॥ ७ ॥ सो अभय सहाव जिनुत्तु पउत्तु, उव उवन सहावे दिस्टि दर्संतु । सो पदह स उत्तउ अर्थ सहाउ, सो अर्थति अर्थह समय सहाऊ ॥ ८ ॥ सो जिनह स उत्तउ ममल सउत्तु, सो कमलह कलियौ मुक्ति पहुंतु । (२४०) Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी -घत्ताइय उवन सहाउ सु सुवन पऊ, अमिय पयोहर सुत्तऊ । भय षिपिय भव्वु तं परम जिनु, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ १५ ॥ श्री ममल पाहुइ जी सो अर्थ उवन्नऊ समय सहाउ, हिययार संजुत्तु सु न्यान सहाऊ ॥ ९ ॥ उवनह दर्सिउ नंत अनंतु, परिनामु न्यान विन्यान संजुत्तु । सो कमलह कमल सहाउ जिनुत्तु, सो कमल रमन जिन मुक्ति संजुत्तु ॥ १० ॥ अवयासह नंतानंत पउत्तु, अन्मोय दिस्टि सम समय संजुत्तु । सो न्यान अन्मोयह रसिय जिनुत्तु, सो अमिय पयोहर मुक्ति संजुत्तु ॥ ११ ॥ संसार सरीर जिन सरनि विमुक्कु, उववन्नु जिनुत्त दरस दसत । सो सूष्यम परिनड़ षिपनिक उत्तु, सो न्यान अन्मोयह मुक्ति दसैंतु ॥ १२ ॥ जिन उवनऊ जिनय सहाउ जिनुत्तु, जिन दर्स वयन जिन समय संजुत्तु । जिनुत्तु निसंक संक विलयंतु, सो समय संजुत्तउ मुक्ति पहुंतु ॥ १३ ॥ जिनुत्तउ तारन तरन सहाउ, सो न्यान अन्मोयह ममल सुभाउ । सो तरन सहावे सु समय पउत्तु, सो न्यान अन्मोयह सिद्धि सम्पत्तु ॥ १४ ॥ (६२) हिययार रमन फूलना गाथा १२५१ से १२९३ तक (विषय: सिध्द के गुण-८, दर्शन के अंग-८, चार दर्शन की महिमा, लक्षण परिणाम- १०३२) उव उवनऊ उवन उवन पऊ, उव उवनऊ न्यान विन्यान, सुर्य जिन ॥ १ ॥ हिययार रमन तं मुक्ति पऊ, तं मुक्तिहि सिद्ध सरूव सहज रूड़ । हिययार रमन तं मुक्ति पऊ ॥ २ ॥ ॥आचरी। जिन जिनयति जिनय जिनेन्द पऊ, जिन जिनियौ कम्मु अनंतु, रमन जिन ॥ ३ ॥ ॥ हिय. जिन जिनवर उत्तउ ममल पऊ, तं ममलह सिद्ध सरूव, सहज जिन ॥ ४ ॥ ॥ हिय. ॥ २४१) Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ सिद्ध सहज गुन नंत मऊ, भय षिपनिक भव्वु स उत्तु, परम जिन ॥ ५ ॥ ॥ हिय. ॥ संमत्त सहिय गुन नंद मऊ, तं नंद अनंद स उत्तु, ममल जिन ॥ हिय. ॥ तं न्यान विन्यान अनंत पऊ, सुइ दर्सन नंत सहाउ, षिपक जिन ॥ ७ ॥ तं अमिय रमन रस सिद्धि पउ, तं रमियौ विंद विन्यान, मुक्ति जिन ॥ ८ ॥ तं हिय हुवयारह रमन पउ, तं अरुह रमन ससहाउ, परम जिन ॥ १२ ॥ ॥ हिय.॥ अवगाहन रमनह सिद्ध पऊ, सुइ गुरूलघु समय सुभाउ, सुर्य जिन ॥ १३ ॥ ॥ हिय. ॥ तं बाधा हो विलय सु समय मउ, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु, परम जिन ॥ १४ ॥ ॥ हिय.॥ निसंक सहावे सु दर्स मउ, भय सल्य संक विलयंतु, जिनय जिन ॥ १५ ॥ ॥ हिय.॥ तं कंष्या रहित सु ममल पउ, तं समल कम्मु विलयंतु, ममल जिन ॥ १६ ॥ ॥ हिय. ॥ तं नृविति वृिति न पिच्छिए, तं मूढ दिस्टि विलयंतु, अनन्द जिन ॥ १७ ॥ ॥ हिय. ॥ उवगूहन अंग जिनुत्तीयो, सुइ न्यानीय दोष गलंतु, परम जिन ॥ १८ ॥ ॥ हिय. ॥ ॥ हिय. ॥ विन्यान वीय तं उवन पर, तं सौष्य सु परमानंद, जिनय जिन ॥ ९ ॥ ॥हिय. ॥ सुहमंतह सुद्ध सरूव पउ, तं हिय हिययार संजुत्तु, सहज जिन ॥ हिय. ॥ तं अर्क सुभाव सु रमन पऊ, तं रमियौ विंद विन्यान, अलष जिन ॥ ११ ॥ ॥ हिय. ॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तं अस्तिति रमनह रयन पउ, तं अस्तिति सिद्ध सरूव, अलष जिन ॥ १९ ॥ ॥हिय. ॥ तं वाछिल विनय संजुत्तु पउ, विन्यान न्यान दर्सतु, सुयं जिन ॥ २० ॥ ॥ हिय. ॥ तं परम तत्तु तं परम जिनु, सुइ भद्र भाउ उवलद्धि, जिनय जिन ॥ २१ ॥ ॥हिय. ॥ तं सिद्ध सहाउ स उत्तु जिनु, जिन हितमित परिनइ जुत्तु, नंद जिन ॥ २२ ॥ ॥हिय. ॥ तं चेयन नंदह नंद मउ, तं सहजनंद ससरूव, जिनय जिन ॥हिय. ॥ तं लष्यन लषियौ अलष पउ, तं लषियौ जिन उवएसु, सहज जिन ॥ २४ ॥ ॥ हिय. ॥ तं कमल कन्द जिन उत्त मउ, परिनामू नंतानंत, सुकिय जिन ॥ २५ ॥ ॥ हिय.॥ सौ एकु अट्ठ तं ममल पउ, तं समल कम्मु विलयंतु, परम जिन ॥ २६ ॥ ॥ हिय. ॥ तं विजन रमनह रयन पउ, सुर रमनह सिद्ध सरूव, जिनय जिन ॥ २७ ॥ ॥ हिय. ॥ तं कमल गिरा जिन उत्त समू, तं चौसठि चरन चरंतु, ममल जिन ॥ २८ ॥ ॥ हिय. ॥ तं परम अमिय रस परम पऊ, तं कमल कलिय जिन उत्तु, सुर्य जिन ॥ २९ ॥ ॥हिय. ॥ जं कमलह कलियौ उत्तु जिनु, तं कलियौ अंगदिगन्त, सहज जिन ॥ ३० ॥ ॥ हिय. ॥ सम अर्थह समय संजुत्तु सुइ, भय षिपिय भव्वु जिन उत्तु, समय जिन ॥ ३१ ॥ ॥ हिय. ॥ जिन जिनय समय तं सहज जिनु, जिन नंद अनंद स उत्तु, अलष जिन ॥ ३२ ॥ ॥ हिय. ॥ = = = = = (२४३) Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = = = = श्री ममल पाहुइ जी जिन सहजनंद ससहाउ लई, जिन परमनंद परमिस्टि, परम जिन ॥ ३३ ॥ ॥ हिय.॥ जिन नंदह नंद सनंद जिनु, जिन जिनयति कम्म सहाउ, जिनय जिन ॥ ३४ ॥ ॥ हिय.॥ जिन षिपक सरूवे षिपक मउ, विपि कम्मु सिद्धि सम्पत्तु, परम जिन ॥ ३५ ॥ ॥ हिय. ॥ विन्यान वीय वाछिल्ल रऊ, तं न्यान वृति पिच्छंतु, ममल जिन ॥ ३६ ॥ ॥हिय. ॥ तं ममलह ममल जिनुत्तु पउ, आगंतु रमन सिद्धि रत्तु, सुर्य जिन ॥ ३७ ॥ तं ममल सुभाउ सु परम पउ, तं अर्थति अर्थह भेउ, अमिय जिन ॥ ४० ॥ ॥हिय. ॥ परमप्पय सहियौ परम पउ, तं चेयन नंद सनंद, परम जिन ॥ ४१ ॥ ॥ हिय. ॥ जिन सिद्ध मुक्ति ससहाउ मउ, अन्मोय सहाउ स लीनु, सहज जिन ॥ ४२ ॥ ॥ हिय. ॥ तं तारन तरनह समय मउ, सुइ समय सिद्धि सम्पत्तु, सिद्ध जिन ॥ ४३ ॥ ॥ हिय. ॥ ॥ हिय. ॥ भय षिपिय भव्वु तं मुक्ति पउ, तं अमिय रमन संजुत्तु, जिनय जिन ॥ ३८ ॥ ॥हिय. ॥ तं नंद आनंदह परम पर, जिन जिनयति जिन उवएसु, सहज जिन ॥ ३९ ॥ ॥ हिय. ॥ (६३) उबम बिंद एस बधाऊ फूलना गाथा १२९४ से १३०२ तक (विषय : विपक सोलही) उव उवनौ हो उवन विंद रस उत्तु जु हो, उव उवनु कमल रस ममल पऊ । उव उवनी हो तारन तरन स उत्तु जु हो, कमल विंद रस परम पऊ ॥ १ ॥ (२४४) Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलह कलियौ हो कमल सरूवे जिनु हो, चौसठि चमर जिन चरन मऊ ॥ ७ ॥ षट् कमलह सहियौ अर्थति अर्थ जु हो, तं अर्क विंद रस रमन पऊ । तं अर्क उवनौ हो अर्क रमन जिनु हो, ऐ विंद विन्यान सु कमल मऊ ॥ ८ ॥ तं ममलह ममलह कमल रमन जिनु हो, ऐ अर्क विंद रस रमन पऊ । तं सहज रमन रस विंद रमन जिनु हो, सिहु समय संजुत्तु तरन जिन मुक्ति जयं ॥ ९ ॥ श्री ममल पाहुइ जी उव उवनौ हो उवन हिययार संजुत्तु जु हो, हुवयार विंद रस रमन पऊ । उव उवनौ हो सुइ सहयार स उत्तु जु हो, कमल रमन रस समय मऊ ॥ २ ॥ समय स उत्तउ सम समय रमन जिनु हो, ऐ समय कमल रस विंद मऊ । रमि रमियौ हो अमिय रमन जिनु उत्तु जु हो, ऐ रमियौ कमलह सिद्ध पऊ ॥ ३ ॥ षिपि षिपियौ हो सुयं षिपक जिनु उत्तु जु हो, सुयं षिपिय सुइ धुव रमनु । सुइ सुर्य अस्कंधह सुयं ममल जिनु हो, __कुन्यान विलय सुइ जिनय जिनु ॥ ४ ॥ पय पयं पउत्तऊ हो सुयं परम जिनु हो, उव उवन सहावे न्यानी सहज जिनु । सुइ सहज सरूवे हो चेय चेयन जिनु हो, चेयन सहियो समय जिनु ॥ ५ ॥ अस्थानह सहियौ सहज रमन जिनु हो, __ आयरन परम जिनु परम पऊ । तं विंद रमन रस कमल रमन जिनु हो, जिन जिनियौ कम्मु अनंतु सुई ॥ ६ ॥ तं गुप्तिह हो गुप्तिह गुहिज रमन जिनु हो, अर्क विंद जिनु कमल जिनु । (६४) न्यान रमन फूलना गाथा १३०३ से १३१३ तक (विषय : विवान-१, अर्थ-३, हितकार सोलही) जिन जिनयति न्यान सहाई जिनु हो, अन्मोय न्यान जिन उत्तु । तं न्यान अन्मोए विंद रमन जिनु, तं कमल रमन सिव संतु ॥ १ ॥ सहज जिन न्यान रमन मुझु भावेगौ, दिपि दिप्ति दिस्टि पिउ सब्द विंद रै । अन्मोय तरन सिद्धि पावै हो, ___मा मुझु न्यान रमन जिन भावेगौ ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (२४५ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममन पाहुइ जी उव उवन हिययार सहाये जिन हो, जिन जिनियौ कम्मु अनंतु । भय षिपनिक तं अमिय रमन जिनु, तं कमल ममल जिन उत्तु हो ॥ ३ ॥ ॥मा मुझु.॥ तं क्रांति इस्ट सुइ उवन जिनय जिनु, अस्फटिक इस्ट उव उत्तु । रूव अरूव तं इस्ट उवन जिनु, तं सब्द वियार संजुत्तु हो ॥ ४ ॥ ॥मा मुझु.॥ हितमित परिनै सब्द इस्ट पऊ, कोमल केवल उत्तु । सब्द इस्ट तं उवन सहज जिनु, तं विंद कमल जिन उत्तु हो ॥ ५ ॥ ॥मा मुझु.॥ मनपर्जय तं इस्ट उवन पौ, गम्य अगम्य दर्संतु । हिययार रमन अन्मोय न्यान मऊ, तं अरुह रमन विहसंतु हो ॥ ६ ॥ ॥मा मुझु.॥ अर्क सु अर्क सु अर्क अमिय रसु, । इस्ट उवन जिन उत्तु । विंद रमन सुइ कमल रमन जिनु, ममल रमन जिन उत्तु हो ॥ ७ ॥ ॥मा मुझु.॥ आगंतु रमन हिययार सहज जिनु, हुवयार रमन सुइ उत्तु । अन्मोय न्यान सुइ षिपक रमन जिनु, तं विंद रमन सिद्धि रत्तु हो ॥ ८ ॥ ॥मा मुझु.॥ आयरन रमन अस्थान रमन जिनु, गुप्ति इच्छ सुइ रमनु । पय पद इस्ट सु अर्थति अर्थह, तं मध्य ममल जिन उत्तु हो ॥ ९ ॥ ॥मा मुझु.॥ मध्य रमन तं उवन उवन पउ, गुप्ति ठकार सु इस्टु । मुक्त सुभावे मुक्ति रमन जिनु, भय षिपिय रमन संजुत्तु हो ॥ १० ॥ ॥मा मुझु.॥ अन्मोय न्यान अस्थान रमन जिनु, जिन तरन विवान स उत्तु । दिपि दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द रमन पिउ, सम विंद कमल सिद्धि रत्तु हो ॥ ११ ॥ ॥ मा मुझु.॥ (२४६) Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (44) ॐ लषनो फूलना गाथा १३१४ से १३४७ तक (विषय: उत्पन्न सोलही) उव उवनौ हो उवनह उवन सहाउ, उव उवनी हो विंद विन्यान सुभाउ । उव उवन सहावे मुक्ति पऊ ॥ उव उवनी हो न्यान विन्यान संजुत्तु, उव उवनौ हो मुक्ति पंथ दसैंतु ।। सिद्ध सरूवे सिद्ध पऊ ॥ १ ॥ सिद्धह सुद्धह ममल सुभाउ, सु भय षिपनिक है भव्य सुभाउ । अमिय पयोहर अमिय मऊ ॥ नंद आनंदह नंद सुभाउ, सु चेयननंदह सहज सहाउ । परमानंद तं मुक्ति पऊ ॥ २ ॥ |आचरी॥ नो उत्पन्न निवंतर जुत्तु, ग्रीवक रेह तिलोय संजुत्तु । सुयं लब्धि तं ममल पऊ ॥ न्यान विन्यानह समय संजुत्तु, सु दर्सन दर्सिउ नंत अनंतु ।। सु उवनउ दाता देउ सुइ ॥ ३ ॥ || सिद्धह.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी लब्धि उवनौ अलब्धि उत्तु, भोय उवभोयह न्यान संजुत्तु । विन्यान वीय तं मुक्ति पऊ ॥ सम सम्मत्तह समय संजुत्तु, हितमित परिनइ कोमल उत्तु । चरन सहावे सिद्धि पऊ ॥ ४ ॥ ॥सिद्धह. ।। कमलह केवलु कलिय सुभाउ, सो जिन रंजनु जन विलय सहाउ । ठकार विन्यान सु मुक्ति पऊ ॥ पंच पंचोत्तर परम उनु, उत्पन्न रमन तं रयन उवंनु । तत्काल रमन तं मुक्ति पऊ ॥ ५ ॥ ॥सिद्धह.॥ दिस्टि इस्ट है रिस्टि संजुत्तु, __ रिस्टि सिस्टि है सस्टि स उत्तु । उत्पन्न इस्ट तं ममल पऊ ॥ सहकार इस्टि है सिद्ध सहाउ, समय संजुत्तउ ममल पउत्तु । हितमित परिनै समय मऊ ॥ ६ ॥ ॥ सिद्धह.॥ (२४७ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मऊ ॥ सुतह भेय है सप्त सउत्तु, सब्द सहावे ममल मुनंतु । सब्द असब्द सुइ समय सब्द विन्यान विनय संजुत्तु, सब्द भेय श्रुत नंतानंतु । असब्द साहन तं विनि है ॥ १० ॥ ॥सिद्धह.॥ मुनहु ॥ श्री ममल पाहुइ जी अवयास इस्ट है नंत अनंतु, उवन अवयासह सहज संजुत्तु । न्यान अन्मोय सु ममल पऊ ॥ अन्मोय इस्ट तं न्यान संजुत्तु, कम्मु गलिय तं नंत अनंतु । षिपक इस्टि तं षिपक मऊ ॥ ७ ॥ ॥सिद्धह.॥ मुक्ति इस्ट है मुक्ति सुभाउ, लोय अलोयह नंत सहाउ ।। मुक्ति सरूवे मुक्ति पऊ ॥ नंत सौष्य तं नंत अनंतु, सुयं विपकु तं सिद्ध स उत्तु । सिद्धि संजुत्तउ ममल पऊ ॥ ८ ॥ ॥ सिद्धह.॥ अष्यर रमनह अषय पउत्तु, सुर रमनह है सिद्धि संजुत्तु । विन्यान रमन तं ममल पऊ ॥ विंजन सहियौ विनय स उत्तु, पय उत्पन्न जु सब्द संजुत्तु । सब्द सहावे ममल पऊ ॥ ९ ॥ ॥ सिद्धह.॥ गुप्ति सब्द है उवन सहाउ, गुहिज गुपित तं सब्द सहाउ । गुरु गुपितह रुचियौ सब्द सहावे कमल मुनंतु, कमल स उत्तउ ममल पउत्तु । कमलह कलियौ मुक्ति पउ ॥ ११ ॥ ॥ सिद्धह.॥ मऊ ॥ सुयं अस्कंधह सहज सरूवं, सुर्य सुभाउ सु ममल अपारू । सुयं सुलष्यन लषिय सुयं सु कलियौ कलस सहाउ, सुयं सरूवे सिद्ध सुभाउ । सुयं अस्कंध सु ममल पऊ ॥ १२ ॥ ॥ सिद्धह.॥ (२४८) Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी दुर अस्कंध दुरबुद्धि संजुत्तु, भय सहाइ तं कम्मु अनंतु । सल्य संक सहकार मऊ ॥ सु न्यान सहावे भय विलयंतु, सल्य संक भय नंत गलंतु । न्यान अन्मोयह मुक्ति पऊ ॥ १३ ॥ ॥सिद्धह.॥ दुरबुद्धि षिपिय सु न्यान स उत्तु, भय षिपनिक है अभय पउत्तु । निसंक संक रहियौ मुनहु ॥ सल्य संक विलयंतु सुभाउ, सु भय षिपनिक है न्यान सहाउ । सु न्यान अन्मोयह मुक्ति पऊ ॥ १४ ॥ ॥सिद्धह.॥ सुयं अस्कंध सु सिद्धि पउत्तु, दुर अस्कंध सु विलय स उत्तु । सुयं सुभाउ सु ममल पऊ ॥ ममलह ममल सहाउ स उत्तु, न्यान विन्यान सु समय संजुत्तु । कमल सहावे मुक्ति पऊ ॥ १५ ॥ ॥ सिद्धह.॥ कमलह कलियौ नंतानंतु, दिस्टि भेउ श्रुत नंत अनंतु ।। सुयं अस्कंधह भेउ सम् ॥ कमलु पउत्तर जिनय स उत्तु, कम्मु गलिय तं नंतानंतु । कमलह परिनै मुक्ति पऊ ॥ १६ ॥ ॥सिद्धह. ॥ कमलह परिनै परम सउत्तु, परमान दिस्टि तं नंतानंतु । कमलह समय संजुत्तु जिनु । समय संजुत्तउ कमल पउत्तु, सहकार नंत विन्यान संजुत्तु । समय सहावे समय मऊ ॥ १७ ॥ ॥सिद्धह.॥ अवयास नंत तं कमल स उत्तु, न्यान विन्यानह समय संजुत्तु । अवयासह नंतानंत पऊ ॥ अन्मोय न्यान तह कमल पउत्तु, अन्मोयह तं कम्मु गलन्तु । अन्मोय सहावे षिपक पऊ ॥ १८ ॥ ॥ सिद्धह.॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी अन्मोय न्यान तं कमल संजुत्तु, पिपियो कम्मु अनंतु विलंतु । कमल सहावे मुक्ति पऊ ॥ मुक्ति संजुत्तऊ सिद्ध सहाउ, हितमित परिनै ममल सुभाउ । कमल सहाउ सु सिद्धि पऊ ॥ १९ ॥ । सिद्धह.॥ कमलह कलियौ रमन रवंतु, रमन सहावे लंकृत जुत्तु । विन्यान वीय तं मुक्ति पऊ ॥ समय मुक्ति तं ममल सुभाउ, नंतानंत सु न्यान सहाउ । न्यान विद्धि विन्यान पऊ ॥ २० ॥ ॥सिद्धह.॥ कमल पउत्तउ नंत प्रकारं, आयरनह तं ममल अपारं । न्यान अन्मोय सु नंत पऊ ॥ अन्मोय सहावे षिपक पउत्तु, नंतानंत सु कम्मु गलंतु । अन्मोय सहावे मुक्ति पऊ ॥ २१ ॥ ॥ सिद्धह.॥ उवनउ उवनउ उवन स उत्तु, भय षिपनिक है भब्वु स उत्तु । भय विलयंतउ ममल पऊ ॥ सुभाव सहावह भय विलयंतु, ___ मन भय गलिय सु नंतानंतु । __ भय विनासु भवु जु मुनहु ॥ २२ ॥ ॥सिद्धह.॥ अमिय दिस्टि तं भय विलयंतु, दिस्टिहि भय उववन्न गलंतु । __ झड़प गलिय विन्यान पऊ ॥ भय विलयंतउ उवन सहाउ, उवनउ न्यान विन्यान सुभाउ । उवनउ अर्थ तिअर्थ हई ॥ २३ ॥ ॥ सिद्धह.॥ उव उवन दिस्टि हितकार संजुत्तु, सहयार समय तं नंतानंतु । हिययार दिस्टि तं उवन मऊ ॥ हिययारह सहयार संजुत्तु, साहियउ न्यान विन्यान संजुत्तु । हियइ दिस्टि तं उवन मऊ ॥ २४ ॥ ॥ सिद्धह.॥ (२५०) Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सहयार दिस्टि तं अमिय संजुत्तु, हिय सहाउ उववन्न संजुत्तु । उव उवन सहाउ सहयार मऊ ॥ सहयारह तं उवन सहाउ, अमिय दिस्टि विष गलिय सुभाउ । उव उवन सहावे मुक्ति पऊ ॥ २५ ॥ ॥ सिद्धह.॥ सिद्ध सरूवह पत्तु स उत्तु, . विक्त रूव उवएसु अनंतु ।। उव उवन देइ हिययारू लै ॥ सक्ति सरूवे दत्त सहाउ, न्यान ऊवनऊ समय सुभाउ । अन्मोय दत्तु तं मुक्ति पऊ ॥ २६ ॥ ॥सिद्धह.॥ पत्तु उवनऊ उवन संजुत्तु, दत्तु उवनऊ है समय संजुत्तु । दत्त पत्त सम भाउ मऊ ॥ कमलह कमल सहाउ पउत्तु, समय अन्मोय सु समय संजुत्तु । अन्मोय समय सम सिद्धि पऊ ॥ २७ ॥ ॥ सिद्धह.॥ उव उवनु तिअर्थह अर्थ संजुत्तु, अर्थ समर्थह ममलु मुनंतु । ममल सहावे सिद्धि पऊ ॥ अर्थ उवनऊ अर्थ समथु, अर्थ सिद्ध सर्वार्थ समिद्ध । समर्थ सिद्ध तं जिन भनिऊ ॥ २८ ॥ ॥सिद्धह.॥ अंग अर्थ सम अर्थ सम्पत्तु, दिस्टि अर्थ सहयार समथु । अर्थ सिद्ध सम सिद्ध मऊ ॥ सहयार अर्थ सम समय संजुत्तु, अवयास अर्थ तं नंतानंतु । अन्मोय अर्थ तं ममल पऊ ॥ २९ ॥ ॥ सिद्धह.॥ उत्पन्न सिद्ध हिययार संजुत्तु, सहयार सिद्ध तं नंतानंतु । उक्त सिद्ध जिन उत्त पऊ ॥ परिनै सिद्ध प्रमान सु सिद्ध, समय सिद्ध सहयार समिछु । अवयास सिद्ध जिन नंत मऊ ॥ ३० ॥ ॥ सिद्धह.॥ (२५१) Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी भय सल्य संक विलयंतु सुभाउ, निसंक सहावे ममल सहाउ । सिद्ध सरूवे ममल पऊ ॥ न्यान विन्यानह समय संजुत्तु, सुर्य लब्धि सो लहिय संजुत्तु । न्यान अन्मोय सु मुक्ति गऊ ॥ ३४ ॥ ॥ सिद्धह.॥ श्री ममल पाहुइ जी अन्मोय सिद्ध सम समय संजुत्तु, षिपक सिद्ध तं कम्मु गलंतु । विपि कम्मु मुक्ति संभाउ समु ॥ मुक्ति सिद्ध तं सिद्ध स उत्तु, रमन सिद्ध तं अमिय संजुत्तु । सिद्ध मुक्ति संजुत्त पऊ ॥ ३१ ॥ ॥सिद्धह.॥ विन्यान विंद तं विंद संजुत्तु, न्यान विन्यान सु सिद्धि पउत्तु । सिद्धि संजोए विंद मऊ ॥ अलषु लषिय तं विंद सहाउ, वीयराउ जिन उत्त पहाउ । राउ गलिय जिनरंज मऊ ॥ ३२ ॥ ॥ सिद्धह.॥ सिद्ध पउत्तउ राग गलंतु, जनरंजन राग उवन्नु विलंतु । कलरंजन दोष जु सुइ गलिऊ ॥ मनरंजन गार गलंतु सुभाउ, दर्सन मोहंध सु गलिय सहाउ । दत्तु कम्मु विलयतु सुई ॥ ३३ ॥ ॥ सिद्धह.॥ (६६) फाग फूलना गाथा १३४८ से १३६० तक (विषय : अर्क छत्तीस) जिन जिनयति जिनय जिनय पऊ, ___जिन जिनयति जिनय जिनेन्दु । उव उवन हिययार उवन पऊ, सहयार सिद्धि सम्पत्तु ॥ १ ॥ सिद्ध सरूव सुरति, तरन जिन लहि फागु । मुक्ति पंथु सुइ ऊवने, सह समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ अर्क सु अर्क सु अर्क, सुयं सुइ अर्क स उत्तु । सुयं सुइ अर्क ऊवने, अर्क विंद संजुत्तु ॥ ३ ॥ ॥ सिद्ध.॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी नंतानंत सु अर्क, नंत जिन नंत जिनुत्तु । नंतानंत सुभाइ, अर्क जिनु अर्क जिनुत्तु ॥ ११ ॥ ॥ सिद्ध.॥ अन्मोय अर्क सुइ ऊवने, जिन जिनयति जिनय जिनुत्तु । सरनि संक भय विलयं, मुक्ति पंथु दर्संतु ॥ १२ ॥ ॥ सिद्ध.॥ तारन तरन सहाइ, सहज जिन अर्क पउत्तु । । अन्मोय दिस्टि सुइ ऊवने, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥ । सिद्ध.॥ श्री ममल पाहुइ जी इस्ट इस्ट भय विलयं, उवन भय उवन विलंतु । अभय अभय सुइ ऊवने, भय सल्य संक विलयंतु ॥ ४ ॥ ॥ सिद्ध.॥ अर्क विंद सुइ ऊवने, विंद अर्क सुइ उत्तु । विंद सुयं सुइ अर्क, अर्क सुइ विंद अनंतु ॥ ५ ॥ ॥ सिद्ध.॥ नंत विंद सुइ अर्क, अर्क सुइ सुन्न पउत्तु । सुन्न सुयं सुइ उत्तु, जिनय जिन नंत अनंतु ॥ ६ ॥ ॥ सिद्ध.॥ कमल अर्क सुइ अर्क, अर्क सुइ इस्ट पउत्तु । इस्ट अर्क इस्टंतु, उवन पऊ उवन स उत्तु ॥ ७ ॥ ॥ सिद्ध.॥ पदम कमल सुइ अर्क, अर्क जिन अर्क पउत्तु । विंद अर्क उववन्न, अर्क सुइ विंद अनंतु ॥ ८ ॥ ॥ सिद्ध.॥ विंद अर्क सुइ ऊवने, कमल सब्द सुइ उत्तु । कमल विंद सुइ अर्क, अर्क जिन सब्द अनंतु ॥ ९ ॥ ॥ सिद्ध.॥ कमल अर्क सुइ ऊवने, केवल अर्क जिनुत्तु । केवल अर्क उवने, नंत चतुस्टै पउत्तु ।। १० ॥ ॥ सिद्ध.॥ (६७) पदवी फूलबा गाथा १३६१ से १३७० तक (विषय : पदवी सतक्षरी, विवान ५) पदवी न्यान चरन सम्मत्तं, रंज रमन नंद नंद जिनुत्तं । भय विनासु तं भव्वु स उत्तं, अन्मोय तरन जिनु सिद्धि सम्पत्तं ॥ १ ॥ पदवी उवन उवनु मै उवनं, उवन चरन अन्या सम रमनं । उवनु रंज रमन भय षिपनं, नंद कमल हिय कर्न सिद्धि गमनं ॥ २ ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिप्ति दिस्टि सुइ दिस्टि सु दिपियं, अन्मोय तरन सह समय सिद्धि रितियं ॥ ८ ॥ तारन तरन उवन जिन उवनं, उवन सब्द पिय पिय सुइ सब्दं । उवन साहि अवयास उव कमलं, कमल कर्न विवान सिद्धि रमनं ॥ ९ ॥ तारन तरन उवन उव उवनं, उवन समय विवान सह रमनं । रमन कमल कर्न चरनं तं, सह समय विवान सिद्धि सम्पत्तं ॥ १० ॥ श्री ममल पाहुइ जी पय आयरन उवन श्रुत न्यानं, न्यान चरन वेदक सुइ समयं । हिययार रंज सुइ अमिय रमनं तं, आनंद कमल सुइ कर्न सिद्धि रमनं ॥ ३ ॥ पदवी साधु उवन निहि अवहि, वीय चरन सुइ उवन सम्मत्तं । सहयार रंजु दिपि दिप्ति सु रमनं, चेयनंद कर्न कमल सिद्धि रमनं ॥ ४ ॥ अर्ह जिनं मनपर्जय न्यानं, तव आयरन सम्मत्त षिउ उवनं । विन्यान रंजु जिन रमन जिनुत्तं, सहजनंद कर्न कमल सिद्धि रत्तं ॥ ५ ॥ पदवी सिद्ध केवलं न्यानं, चरनु चरिय धुव उवन सम्मत्तं । जिन जिनय रंजु जिननाथ सु रमनं, परमनंद कर्न कमल सिद्धि रमनं ॥ ६ ॥ पदवी उवन उवन जिन उत्तं, उवन सुभाव जिनय जिन श्रुतं । उवन उवन उव उवन सु कन, उवन कलन कमल सिद्धि रमनं ॥ ७ ॥ सुइ तारन तरन विवान स उत्तं, विवान समय उव उवन जिन रंजं । (६८)बृत सुवा फूलना गाथा १३७१ से १३९४ तक (विषय : कमल दल, दिप्ति-१४, विवान-५, कलन चरन रमन-1) उव उवन उवन सुइ रमन पऊ नृत सुवा, नृत सुइ रमन स उत्तु सुवा । सुयं रमन सुइ उवन पऊ नृत सुवा, उव उवन दिप्ति विलसंतु सुवा ॥ १ ॥ उव उवन दिप्ति सुइ नंत मऊ नृत सुवा, दिप्ति ढलन सुइ नंत सुवा । ढलन जु न्यान विसेष मऊ नृत सुवा, ढलन न्यान नृतयंतु सुवा ॥ २ ॥ (२५४) Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी दिप्ति दिस्टि उव उवन मऊ नृत सुवा, उव उवन दिस्टि सुइ नृत सुवा । दिस्टि रमन सुइ नंत मऊ नृत सुवा, दिपि दिप्ति नंत प्रवेसु सुवा ॥ ३ ॥ उवन दिस्टि सुइ समय मऊ नृत सुवा, सुइ समय दिप्ति प्रवेसु सुवा । जं दिप्ति ढलनु सुइ समय मऊ नृत सुवा, तं उवन दिस्टि प्रवेसु सुवा ॥ ४ ॥ जं उवन दिप्ति सुइ नंत मऊ नृत सुवा, उव उवन ढलन सुइ नंत सुवा । दिप्ति ढलन सुर उवन मऊ नृत सुवा, उव समय दिस्टि सुइ नंत सुवा ॥ ५ ॥ नंत समय सुइ दिस्टि मौ नृत सुवा, उव उवन दिस्टि प्रवेसु सुवा दिस्टि समय सुइ रमन मौ नृत सुवा, ___उव उवन दिप्ति प्रवेसु सुवा ॥ ६ ॥ उव उवन दिप्ति सुइ ढलन जिनु नृत सुवा, ढलि ढलियौ समय सहाउ सुवा । उव उवन दिस्टि सुइ समय मौ नृत सुवा, सह समय सिद्धि सम्पत्तु सुवा ॥ ७ ॥ सह समय दिस्टि सुइ उवन मौ नृत सुवा, सुइ उवन दिप्ति प्रवेसु सुवा । दिस्टि दिप्ति सुइ सुर रमनु नृत सुवा, सुइ समय उवन सिद्धि रत्तु सुवा ॥ ८ ॥ सुइ उवन उवन उव कमल मौ नृत सुवा, कलि कमल उवन जिन उत्तु सुवा । सिय धुव रमन सु कमल मौ नृत सुवा, कम कमल उवन पौ उत्तु सुवा ॥ ९ ॥ जं जं उवनऊ कमल मौ नृत सुवा, उव उवन चरन सिद्धि रत्तु सुवा । तं तं सहियऊ समय सुइ नृत सुवा, तं कर्न विंद जिन रत्तु सुवा ॥ १० ॥ जं जं उवनऊ उवन पौ नृत सुवा, तं कर्न समय संजुत्तु सुवा । जं समय उवन पऊ साहियऊ नृत सुवा, तं उवन प्रिये जिन उत्तु सुवा ॥ जं उवन सब्द सुइ कर्न मौ नृत सुवा, ___ तं समय प्रिये जिन उत्तु सुवा । जं समय प्रिये सुइ सब्द मौ नृत सुवा, तं समय उवन सिद्धि रत्तु सुवा ॥ १२ ॥ जं जं उवन उवन मौ नृत सुवा, तं समय कर्न साहंतु सुवा । जं साहिउ तं उवन पिउ नृत सुवा, तं समय उवन सिद्धि रत्तु सुवा ॥ १३ ॥ कि (२५५ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जं ढलन चरन उव कमल मौ नृत सुवा, तं समय कर्न साहंतु सुवा । जं कर्न समय हुव उवन पौ नृत सुवा, तं उवन कमल जिन उत्तु सुवा ॥ १४ ॥ जं जं उवन उवन पौ नृत सुवा, अवयास उवन साहंतु सुवा । अवयास कर्न सुव हिय रमनु नृत सुवा, हिय हुव उवन अनंतु सुवा ॥ १५ ॥ उव उवन उवन अवयास मौ नृत सुवा, अवयास कमल जिन उत्तु सुवा । कमल कर्न सुइ समय मौ नृत सुवा, सुइ केवल कमल जिनुत्तु सुवा ॥ १६ ॥ उव उवन अन्मोये रमन मौ नृत सुवा, रै रमन मुक्ति विलसंतु सुवा मुक्ति सुभावे जिनय जिनु नृत सुवा, जिनु समय सिद्धि सम्पत्तु सुवा ॥ १७ ॥ सुइ तारन तरन सहाउ मौ नृत सुवा, सुइ कमल चरन जिन उत्तु सुवा । कमल चरन सुइ कर्न मौ नृत सुवा, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु सुवा ॥ १८ ॥ रुचि प्रियो उव उवन मौ नृत सुवा, सुइ रूव अरूव जिनुत्तु सुवा । रूव अरूव तं रमन मौ नृत सुवा, रमन चंदु जिन नंद सुवा ॥ १९ ॥ उव उवन सहावे कमल मौ नृत सुवा, कमल कर्न अन्मोय सुवा । कर्न अन्मोये रमन सियं नृत सुवा, कलि कमल मुक्ति दसैंतु सुवा ॥ २० ॥ उव उवन सहावे रमन मौ नृत सुवा, रमि रमन चन्द्र जिन उत्तु सुवा । रमन सियं सुइ कर्न पिऊ नृत सुवा, सुइ कर्न उवन पिउ रत्तु सुवा ॥ २१ ॥ सुइ रमन कर्न उव उवन मौ नृत सुवा, उव उवन श्रेनि जिन उत्तु सुवा । सुयं रमनु उव उव रमनु नृत सुवा, सुइ रमन सियं अन्मोय सुवा ॥ २२ ॥ साहिय सहज सु उवन पौ नृत सुवा, सुइ कलन कमल अन्मोय सुवा । उव उवन सहावे कर्न रुई नृत सुवा, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु सुवा ॥ २३ सुइ तारन तरन सु उवन मौ नृत सुवा, सुइ कर्न रमन जिन रत्तु सुवा । सुइ कमल कर्न अन्मोय मौ नृत सुवा, सुइ रमन सिद्धि सम्पत्तु सुवा ॥ २४ ॥ माहिय सहाई त मन्दि सम्पत - (२५६) Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममन पाहुइ जी (१९) सिय धुव गाथा गाथा १३९५ से १४१८ तक (विषय : विषय : - कमल दल) उव उवन सुर्य सुइ उवनं, ___उवन सुइ उवन उवन सुइ रमनं । रमन सियं सुइ उवनं, उवनं सुइ सब्द कर्न धुव रमनं ॥ १ ॥ जं जं अर्क उवन्नं, तं तं सिय साहि उवन सुइ रमनं । रमन उवन धुव वयनं, वयनं धुव कर्न साहियं ममलं ॥ २ ॥ उवन दिप्ति सुइ सुवनं, सुवनं उववन्न रमन तं उवनं । उवन साहि सिय रमनं, सिय धुव उववन्न कर्न साहियं ममलं ॥ ३ ॥ उवन विषय सुइ विलयं, बाधा सुइ विषय विलय सिय रमनं । सिय उवनं धुव ममलं, धुव उवनं कर्न साहियं सुवनं ॥ ४ ॥ उवन विलय सुइ ढलनं, अवधं सुइ विषय विलय सिय रमनं । सिय रमनं धुव उवनं, धुव उवनं कमल साहियं कनं ॥ ५ ॥ उवन विषय सुइ विलयं, सहजं सुइ विषय विलय सिय उवनं । उवन सियं धुव रमनं, धुव ममलं कमल साहियं कन ॥ ६ ॥ विषय विलय सुइ उवनं, उवनं सुइ विषय विलय सिय सुवनं । सिय सुवनं धुव गमनं, धुव गमनं कमल साहियं कर्न ॥ ७ ॥ जिन विषयं सिय विलयं, जिन सहकारेन जिनय जिन उवनं । जिन उवनं सिय सहियं, सिय धुव उवनं च साहियं कर्न ॥ ८ ॥ जिन उत्त उत्त सुइ नंतं, नंतं सुइ साहि कमल सिय रमनं । रमन धुवं जिन जिनयं, सिय धुव कमल साहियं कनं ॥ ९ ॥ जिन उवन सुभाव अनंतं, साहिय सुइ समय उवन सिय रमनं । धुव सिय धुव सुइ उवनं, उवनं सुइ कमल साहियं कर्न ॥ १० ॥ (२५७ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = श्री ममल पाहुइ जी जिन उत्त समय सुइ उवनं, उवनं सुइ उवन उवन सिय रमनं । रमन सियं धुव उवनं, उवनं धुव कमल साहियं कर्न ॥ ११ ॥ जिन परिनै सुइ उत्तं, नंतं सुइ उवन न्यान ममलं च । परिनै उवन सु रमनं, साहिय सिय परिनै जिनय जिन उवनं ॥ १२ ॥ जिन उवन उवन सुइ नंतं, उवनं सुइ न्यान रमन ममलं च सिय साहिय जिन उवनं, जिन उवनं कमल साहियं कनं ॥ १३ ॥ जिन वयन अनंत विसेषं, नंत सुभावेन नन्त जिन उत्तं । जिन वयन साहि सिय रमनं, जिन वयनं कमल साहियं कनं ॥ १४ ॥ जिन समयं सुइ उवनं, समयं सुइ गमन अगम सुइ उवनं । अगम साहि सिय सयनं, धुव उवनं कमल साहियं कन ॥ १५ ॥ जिन रमनं सुइ उवनं, सुइ उवनं रमन नंत सुइ चरनं । रमन चरन सिय समयं, समयं धुव कमल साहियं कर्न ॥ १६ ॥ जिन लषियं अलष सु उवनं, अलषं धुव रमन साहि सिय सुवनं । सिय रमनं धुव उवनं, अलषं सुइ कमल साहियं कनँ ॥ १७ ॥ जिन धरन उवन सुइ रमनं, जिन धरन उवन साहि सिय सुवनं । जिन धरनं धुव उवनं, धुव धरनं कमल साहियं कर्न ॥ जिन गहनं जिनय जिनुत्तं, जिनुत्तं गहन साहि सिय रमनं । सिय धुव रमन सहावं, सिय धुव कमलं च साहियं कर्न ॥ १९ ॥ जिन इच्छ रमन सुइ उवनं, उवनं विन्यान न्यान सुइ इच्छ धुवं सिय रमनं, सिय धुव रमन कमल कर्न च ॥ २० ॥ जिन चेय वेय सुइ उवनं, ____उवनं सुइ नंत चरन कमलं च । कमल उवन धुव रमनं, रमनं सिय कमल कर्न धुव उवनं ॥ २१ ॥ - - - - (२५८ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन दिस्टि इस्टि सुइ उवनं, सुइ उवनं दिप्ति दिस्टि जिन रमनं । जिन दिप्ति दिस्टि सिय समयं, समयं धुव उवन कमल कनं च ॥ २२ ॥ जिन दर्सन नंत अनंतं, नंतं सुइ न्यान वीय विन्यानं । नंत सौष्य सुइ उवनं, साहिय सिय कमल कर्न समयं च ॥ २३ ॥ जिन विषयं सुइ विलयं, जिन अन्मोय अबलबलि रमनं । सिय साहिय धुव उवनं, कमलं कनं च समय सिद्धानं ॥ २४ ॥ मै मूर्ति सुइ उवन ढलन सियं, उव उवन कमल धुव कर्न सियं ॥ २ ॥ उव उवन धुव रमनं, सम समय सिय चरनं । उव उवनु उव उत्तु, सम समय सिय इत्थु ॥ ३ ॥ उव उवन दिपि दिप्ति, सह समय सिय रमति । उव उवन दिस्टि दरसु, दिपि दिस्टि सिय सुरसु ॥ ४ ॥ उवन मै उवनु, सह सहइ सिय रमनु । उव उवन धुव ढलनु, उव उवन सिय सहनु ॥ ५ ॥ उव उवनु धुव रमनु, तत्काल सिय सुवनु । उव उवनु धुव वयनु, सम समय सिय चरनु ॥ ६ ॥ उव उवन पय समय, पय पयन सिय रमय । उव उवनु सुइ कमलु, सह सहै सिय ममलु ॥ ७ ॥ कम कमल सुइ कलन सिरी, सुइ समय सिय चरन सिरी । उव उवन धुव कलनु, सिय चरन चर रवनु ॥ ८ ॥ उव कलन धुव अगमु, सह समय सिय रमनु । धुव परिनु, सह समय धुव सरनु ॥ ९ ॥ उव उवन धुव उत्तु, सिय समय सुह रत्तु । उव उवन सुइ नन्तु, सिय मुक्ति विलसंतु ॥ १० ॥ उव उवन धुव सब्दु, सम समय सिय नंदु । धुव उवन अवयासु, सिय रमन धुव पासु ॥ ११ ॥ (७०) सिय थुव छंद गाथा गाथा १४१९ से १४४२ तक (विषय कमल दल, विवान-५, परमेष्ठी-सटीक) उव उवन उवन उव उवनु जिनु, उव उवन समय सिय धुव रमनं । गम अगम अलष जिनु धुव सिय सहिउ, धुव सिय सुइ कमल सु कर्न समू ॥ १ जं जं सुइ उवन उवन जिन नंतयं, नंतानंत सिय रमनु धुवं । ॥ (२५९) Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी धुव कलस ससि भवन, सिय ममल नृत रमन । धुव परम पद विंद, सिय कमल कलि नंद ॥ २२ ॥ धुव ममल सुड़ कमलु, सिय कर्न सम ममलु । धुव सिद्धि सुइ रमनु, सिय मुक्ति सुइ मिलनु ॥ २३ ॥ 444 - घत्ताइय धुव सिय ससहाउ मुनी, उवन साहि जिन उत्तियऊ । उव उवन धुवं सुइ सिय रमनु, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ २४ ॥ * श्री ममल पाहुइ जी उव उवन दिपि रमय, सिय रमन सम समय । उव उवन जिन जिनय, सिय समय धुव रमय ॥ १२ ॥ उव उवन धुव दिस्टि, सह समय सिय दिप्ति । उव उवन आनंदु, सिय चेय सुइ नंदु ॥ १३ ॥ उव उवन उव कमलु, सुइ कर्न सिय ममलु । उव कमल सुइ सब्द, सम कर्न सिय नंदु ॥ १४ ॥ सुइ समय सुइ कर्न, उव उवन हिय रमन । हिय उवनु अवयासु, सुइ कमल उवएसु ॥ १५ ॥ जं कमल कलि उवनु, तं कर्न धुव सुवनु । कलि कलिय सुइ कमलु, सिय कर्न सुइ ममलु ॥ १६ ॥ जं दिस्टि धुव दिप्ति, तं नंत सिय रमति । जं सरह धुव उवनु, तं समय सिय गमनु ॥ १७ ॥ हिययार धुव गहिर, सिय रमनु धुव अमर । धुव गुपित गुपितार, सिय रमन तत्काल ॥ १८ ॥ धुव उवनु छह पलय, सिय समय सम निलय । धुव जान पय उवन, सिय कमल सम कर्न ॥ १९ ॥ धुव कमल पय कमलु, सिय कदलु सुइ ममलु । धुव कदल सुइ पुलिनु, सिय पुलिन सुइ रमनु ॥ २० ॥ धुव पुलिन सुइ गगनु, सिय कलस सुइ उवनु । धुव गगन सुइ कलस, सिय कलस ससि रमन ॥ २१ ॥ * * * * * * * (७१) उमाहो फूलना गाथा १४४३ से १४५३ तक (विषय: विवान-१, षट् रमन) उव उवनौ हो, उवनौ दाता उवन उवएसा, उव उवनौ हो, उवन हिययार सु रमन सहेसा । उव उवनौ हो, साहै सहइ सु निलय निवासा, सर्वंगह हो, स उत्तउ स्वामी सुन्न निवासा ॥ १ ॥ हम बाहुलो हो, उमाहो स्वामी तुम्हरे उवएसा, अन्मोय सहावे, समई मुक्ति प्रवेसा ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (२६०) Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उव उवन हिययार, सहावे दिस्टि सुएसा, हिययार स दिस्टि, उवन पौ सहइ सएसा । सहयार हिययार, रमन रस उवन उवएसा, भय षिपनिक हो, समय सहावे मुक्ति प्रवेसा ॥ ३ ॥ ॥ हम. ॥ चलि चलहु न हो, जिनवर स्वामी अपनेउ देसा, उव उवनौ हो, विंद कमल रस मिलन सहेसा । तं मिलियो हो, अर्क विंद जिनु उवन उवएसा, हिययार सहयार, संजुत्तउ मुक्ति प्रवेसा ॥ ४ ॥ ॥ हम. ।। चलि चलहु न हो, जिनवर स्वामी अपनेउ भेसा, तुम्ह लषहु न हो, इस्ट उवन पौ उवन उवएसा । दर दर्सिउ हो, इस्ट उवन पौ उवन सहेसा, तं विंद कमल जिन, उत्तु सु मुक्ति प्रवेसा ॥ ५ ॥ ॥ हम. ॥ चलि चलह न हो, जिनवर स्वामी मिलन सहेसा, तं मिलियौ हो, मिलन विली जिननाथ उवएसा । तं जिनियौ हो, कम्मु अनंतु अन्मोय सहेसा, भय षिपनिक हो, भव्वु स उत्तउ समय सहेसा ॥ ६ ॥ || हम. ॥ चलि चलहु न हो, जिनवर स्वामी अपनेउ सेजा, सिंहासन हो, सुष्यम सहियौ जय जय जिनेसा । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तं विंद कमल रस, रमने मिलन सहेसा, जिन जिनवर हो, उवने स्वामी मुक्ति प्रवेसा ॥ ७ ॥ ॥ हम. ॥ चलि चलह न हो, जिनवर स्वामी अपनेउ साथा, सहकारह हो, अस्थान थान सुइ मिलन सहेसा । अस्थानह हो, अस्थान सुर्य जिनु न्यान निवासा, सुइ कमल सु विंद, रमन जिनु निलय निवासा ॥ ८ ॥ ॥ हम, ॥ चलि चलह न हो, जिनवर स्वामी सिद्ध सहेसा, सुइ सिद्ध सुयं जिन, उवने उवन सहेसा । भय षिपनिक हो, समय सहावे जिनय जिनेसा, सुइ विंद कमल रस, रमने मुक्ति सहेसा ॥ ९ ॥ ॥ हम ॥ तं तारन हो, तरन सहावे तरन उवएसा, तं दिप्तिहि हो, दिस्टि सब्द पिउ मुक्ति सहेसा । विवान जु हो, विंद कमल सुइ समय सुएसा, भय षिपनिक हो, भव्व सहावे मुक्ति प्रवेसा ॥ १० ॥ ॥ हम ॥ पंचाइनु हो, पंच न्यान मइ उवन उवएसा, भय षिपनिक हो, अमिय रमनु जिन ममल सहेसा । तं विंद विन्यान, कमल रस रमन जिनेसा, चतुस्टय हो, विवान तरन जिनु मुक्ति प्रवेसा ॥ ११ ॥ ॥ हम. ॥ २६१) Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (७२) मेवाड़ी छंद माथा गाथा १४५४ से १४७७ तक (विषय कमल दल) उव उवन उवन पौ साहियौ, उव उवनौ है दाता देउ । अलष जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १ ॥ जिन जिनयति जिनय सु जिनय जिनु, __ जिन जिनियौ कम्मु उवन्नु । रमन जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २ ॥ जं कम्मु उवन उव उवन सुइ, तं जिनियौ न्यान उवन्नु । उवन जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ३ ॥ जं लषन लषिय सुइ अलष पौ, तं अलषु लषिउ जिन उत्तु । उत्तु जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ४ ॥ जं गमन गमिय सुइ अगम पौ, तं अगम अगम दर्संतु । दर्स जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ५ ॥ जं ढलन ढलिय जिन ढलन पौ, तं ढलन समय सिद्धि रत्तु । सिद्ध जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ६ ॥ जं धरन धरिय सुइ जिन धरनु, तं धरन समय जिन उत्तु । समय जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ७ ॥ जं दिप्ति दिपिय जिन दिप्ति पौ, तं दिप्ति समय संजुत्तु । जिनय जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ८ ॥ जं दिस्टि इस्टि सुइ उवन पौ, तं दिस्टि समय सम उत्तु । षिपक जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ९ ॥ जं सब्द कमल जिन उवन पौ, तं कर्न समय प्रवेसु । सुयं जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १० ॥ जं दिप्ति दिस्टि जिन जिनय पौ, तं समय सहज प्रवेसु । ___स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ११ ॥ जं दिप्ति दिस्टि जिन नंत मौ, तं समय नंत प्रवेसु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १२ ॥ जं उवन उवन उव उवन पौ, तं उवन समय सम उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १३ ॥ (२६२ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जं उवन कमल सुइ चरन पौ, तं उवन कर्न साहंतु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १४ ॥ जं कमल कलन पौ उवन मौ, पय उवनु कर्न सिय उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १५ ॥ जं कलन कमल सिय उत्तु पौ, तं कर्न समय सिय नृतु ।। स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १६ ॥ जं कलन कमल चर उवन जिनु, तं उवन कर्न सम उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १७ ॥ जं कमल विसेषु सु नंत जिनु, तं उवन कर्न सुइ नंतु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १८ ॥ जं सब्द कमल हिय नंत पौ, तं उवन कर्न हुव उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १९ ॥ जं कमल कर्न हिय जिनय पौ, तं कर्न हुव कमल जिनुत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २० ॥ धुव कमल उवन सिय हिय रमनु, धुव कर्न समय सिय उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २१ ॥ जं कर्न हिययार सिय उवन पौ, तं कमल चरन धुव उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २२ ॥ धुव उवन उवनु सिय साहियौ, सिय उवन समय धुव उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २३ ॥ जं अबलबलि सिय तिहव मौ, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २४ ॥ (७३) संसर्ग सोलही फूलना गाथा १४७८ से १४९३ तक (विषय : सोलह नाते) परमं परम जिनं परम सु समयं, परमं सिवं सासुतं । परमं परम पदं पदर्थ ममलं, अर्थं तिअर्थं समं ॥ कमलं कमल सुभाव विंदति सु समयं, चष्यं अचष्यं बुधै । अवधि केवल दर्स दिस्टि ममलं, न्यानं च चरनं समं ॥ १ ॥ (२६३) Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तत्त्वं विंदति अर्थ सुद्ध सहज, सहजोपनीतं सुर्य । सुद्धं संमिक दर्सनं च ममलं, संमिक्तं सुद्धं परं ॥ न्यानं न्यान दिगन्तरं च सुरयं, नंतानंत ऊपमं । नंतानंत चतुस्टयं च ममलं, सर्वन्यं सिद्धं नम ॥ २ ॥ बारम्बार वियारनं सु समयं, पूजं च पूर्वं धुवं । पिच्छंतो सुद्ध न्यान दिस्टि ममलं, तारंतु तरनं सुयं ॥ बापं त्वं च पिता तिअर्थ सु समयं, सार्धति सुद्धात्मनं । लोकालोक विलोकि तत्तु ममलं, बापं पिता संस्थितं ॥ ३ ॥ माता मान प्रमान ममात्म ममलं, नासंति कम्मंकुरं । मै मूर्ति अर्थति अर्थ सुद्ध सु समयं, हेयं च मुक्ति पथं ।। तारं तत्तु विसेष नंत ममलं, रीयं ति ईज सुर्य । माता सुद्ध सुभाव सुयं च सुरयं, महतारी मुक्ति वरं ॥ ४ ॥ इस्ट इस्ट संजोय अनिस्ट विलयं, जानं च न्यानं वरं । अवध्यं दर्सन दर्सयंति ममलं, ईर्ज पंथस्य सास्वतं ।। आराध्यं सुभाव ति अर्थ सु समयं, औया च सुद्धं धुवं । ईज नंत विसेष समर्थ कमलं, सर्वन्यं सार्धं धुवं ॥ ५ ॥ न्यानं अर्थ समर्थ जयं च रखनं, जिनोक्तं सार्धं धुवं । नमनं सजन सुकिय सुभाव सहज, लीनं च न्यानं सुरं ।। जननी त्वं च विसेष कम्म विपनं, न्यानं च अन्मोदिनं । सुद्धं सुद्ध विबोध न्यान ममलं, अर्थं तिअर्थं सुयं ॥ ६ ॥ भावं भाव विसेष सुद्ध सुरयं, भयं च निर्मूलन सुर्य । रइयं ईर्ज सुभाव सुद्ध सुरयं, भाई च भव्यात्मनं परं ॥ भगिनी भद्र मनोन्य न्यान ममलं, भगिनी च अग्रं धुवं । भगिनी भय विनस्य सु दिस्टि ममलं, न्यानं च अन्मोदिनं सुयं ॥ ७ ॥ ग्रहिनी ग्रहन सुयं स न्यान ममलं, हियं च परमं पदं । लीनं सुद्ध सुकीय सुभाव ग्रहनं, अस्त्रियं च तिअर्थ सुयं ॥ अस्त्री अस्ति तिअर्थ अर्थ ममलं, न्यानं च अन्मोदिनं ।। रीनं कम्म कलंक मिथ्य विलयं, न्यानेन न्यान ममलं धुवं ॥ ८ ॥ पुत्रं पूर्व विसेष उक्त सहजं, सहजोपनीतं बुधै । पुलयं परम सुभाव सुद्ध सुरयं, कम्मं च निर्मूलनं ॥ पुत्रं अर्थति अर्थ दिस्टि ममलं, सर्वन्यं साधं धुवं ।। पुत्रं परम पदं तिअर्थ कमलं, विन्यान न्यानं सुरं ॥ ९ ॥ बेटा त्वं च विन्यान न्यान सु समय, टंकोत्कीन सुर्य । बेटा विंदति लोकालोक सुरयं, न्यानं च अवलोकनं ॥ बेटी सहज सुकीय सुभाव सुयं च ममलं, विंदंति लोकं धुवं । बेटी सहज विसेष कम्म षिपनं, न्यानं च अन्मोयं सुरं ॥ १० ॥ ससुरं सुयं तिअर्थ अर्थ समयं, श्रुतं च सुरयं पदं । सुरयं न्यान सुयं च दिस्टि ममलं, रंजंति न्यानं पदं ॥ सासं सुद्ध सरूव सुद्ध ममलं, साधं च सास्वतं पदं । सारी सार तिलोय सल्य रहियं, सुयं च सुद्धात्मनं ॥ ११ ॥ (२६४) Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (७४) कल्यानक फूलना गाथा १४९४ से १५३५ तक (विषय: कल्याणक पांच) श्री ममल पाहुइ जी सारी सहज सुकीय सु दिस्टि ममलं, संसारं विषमं षिपं । सारी सल्य विमुक्क ससंक रहियं, कम्मस्य निर्मूलनं ॥ सहकारं रमनं सु न्यान ममलं, रीनं च कम्मंकुरं । सारी सहज सुभाव अर्थ सु समयं, न्यानं च अन्मोदिनं परं ॥ १२ ॥ मित्रं मिस्रित न्यान पंच ममलं, पंचार्थ पंच दिप्तियं । मिस्ट इस्ट तिअर्थ सुद्ध ममलं, इस्ट च इस्ट पदं ॥ समयं सहज सुयं सु लष्य लषियं, सहजोपनीतं बुधै । मै मूर्ति ममलं ममात्म परमं, समयं च साधं धुवं ॥ १३ ॥ सहकारं सहज सुयं च रुचितं, सहकारं साध धुवं । हृदयं इस्टति नंत नंत ममलं, कमलं सुभावं सुरं ।। रीनं कम्म कलंक रहित राग विलयं, साधं च सुद्धात्मनं । सहकारं सहजोपनीत ति अर्थ समयं, संपून सास्वतं पदं ॥ १४ ॥ अन्मोदं नंतानंत सु दिस्टि ममलं, नृतंति नृतात्मनं । अप्पा अप्प विसेष न्यान समयं, सार्धं च सुद्धात्मनं ॥ न्यानं न्यान अन्मोय सुद्ध ममलं, दसति भुवनं त्रयं । सहकारं धुव निस्च सास्वतं पदं, कम्मस्य विलयं सुयं ॥ १५ ॥ ऐततु सुद्ध समयं च समयं, साधं च भव्यात्मनं । संसर्ग सहज सुयं च ममलं, कम्मस्य त्रिविधं गलं ॥ अप्पा अप्प सुरं च सुरयं, सुद्धात्म परमात्मनं । न्यानं न्यान अन्मोय सुद्ध ममलं, सार्धं च मुक्ति पयं ॥ १६ ॥ जब जिनु गर्भवास अवतरियौ, ऊर्ध ध्यान मन लायौ । दर्सन न्यान चरन तव यरियौ, उव उवन सिद्धि चितु लायौ ॥ १ ॥ अरी मै संमत्तु रयनु धरिये, जिहि रमन मुक्ति लहिये । अरी मै समय सरनि मिलिये, अरी मै जिन वयनु हिये धरिये ॥ २ ॥ अरी मै जिन उत्तु उत्तु धरिये, अरी मै जिन दर्स दर्स रसिये । अरी मै दिप्ति दिस्टि सिधिए, अरी मै जिन अर्थ अर्थ मिलिये ॥ ३ ॥ अरी मै अलष लष्य लषिये, अरी मै मुक्ति रमनि मिलिये । अरी मै संमत्तु रयनु धरिये, अरी मै तिअर्थ अर्थ मिलिये ॥ ४ ॥ अरी मै ममल भाव रहिये, अरी मै संमत्तु रयनु धरिये । अरी मै उवन न्यान मिलिये, अरी मै सम समय सुद्ध मिलिये ॥ ५ ॥ (२६५ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड अरी मै न्यान जी रमन रमिये, अरी मै सिद्धि मुक्ति मिलिये । अरी मै संमत्तु रयनु धरिये, अरी मै सुयं मुक्ति मिलिये ॥ (२) जब जिनु उवन उवन सुइ उवने, उवन उवन चितु लायौं । उव उवन हिययार सहयार उवन पौ, उव उवनु मुक्ति दरसायौ ॥ हां जिन उवन उवन मिलिये, जिहि उवन सिद्धि चलिये । हां जिन समय सरनि सरिये, जिहि उवन मुक्ति मिलिये ॥ हां जिन ममल भाव रमिये, जिहि सहज सिद्धि चलिये । हां जिन समय समय मिलिये, हां जिन सहयार सहज मिलिये, सहयार कम्मु जिहि रमन मुक्ति चलिये ॥ गलिये । जिहि रमन मुक्ति मिलिये ।। १० ।। विंद रमन रमिये । हां जिन गुप्ति न्यान मिलिये, ६ ॥ हां जिन षिपक भाव षिपिये, हां जिन हां जिन कमल कलन मिलिये, जिहि मुक्ति ७ ॥ ८ ॥ ९ ॥ रमन रमिये ॥ ११ ॥ २६६ अन्मोय तरन मिलिये, तं विंद कमल अरी मै न्यान रमन रमिये, जिननाथ सिद्धि सम समय मुक्ति मिलिये, जब जिनु रयन रमन जिन उवने, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हां जिन उत्तु वयन धरिये ॥ १३ ॥ (३) तं दिप्ति दिस्टि पिऊ सब्द रमन जिनु, अन्मोय न्यान चितु लायौ । रमिये । मिलिये ॥ १२ ॥ सह समय मुक्ति सिहु पायौ ॥ अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १४ ॥ तं तारन तरन समर्थ, अब मैं पाए हैं स्वामी, तं अर्क विंद संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब परम अगम दसैंतु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अर्क अर्क दसंतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। १५ ।। अब समउ न विहडै सोई, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। १६ ।। उत्पन्न मुक्ति संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तं विंद कमल संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ उत्पन्न अर्क संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अर्क अनंतानंतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। १७ ।। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उत्पन्न रंजु भय षिपक रमन जिनु, नंद नंद सुइ पाए । हिययार रंजु तं अमिय रमन जिनु, आनंद मुक्ति रमि पाए ॥ अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १८ ॥ जिन जिनयति जिनय जिनेंदु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब समउ न विहडै सोइ, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १९ ॥ नंद अनंद संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अन्मोय न्यान संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। २० । अलषु लषु जिनदेउ, अब मैं पाए हैं स्वामी । अगम गमिऊ जिन नंदु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २१ ॥ तं गुप्ति रमन जिन नंदु, अब मैं पाए हैं स्वामी । उत्पन्न नंत दर्सतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २२ ॥ उववन्न मुक्ति संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । उववन्न कमल जिन रत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २३ ॥ कमल कमल रस उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तं विंद रमन संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २४ ॥ सहयार रंजु वैदिप्ति रमन जिनु, अगम अगम दिपि पाए । अगम अगोचर अलष रमन जिनु, तं सिद्धि रमन जिन राए ॥ २५ ॥ जिन जिनयति जिनय जिनुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । विंद कमल रस उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २६ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ सोलहि संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तित्थयर भाव उवलद्ध, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २७ ॥ सुइ लष्यन कलस जिनुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । निधि दिप्ति रमन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २८ ॥ अष्यर रंज सुइ उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । ___मुक्ति रमनि सिद्धि रत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ २९ ॥ सहयार रंजु वैदिप्ति रमन जिनु, चेयनंद सुइ राए । विन्यान रंजु जिन रमन जिनय जिनु, सहजनंद सुइ पाए । अब मैं पाए हैं स्वामी ।। ३० तित्थयर उवन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । तारन तरन समथु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब समउ न विहडै सोइ, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३१ ॥ विंद कमल सुइ रत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अगम अगम दर्सतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। ३२ ॥ तरन विवान जिनय जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । सुयं रमन जिन उत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । सहज सुर्य दर्सतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३३ ॥ जिन जिनय रंजु जिननाथ रमन जिनु, रमन मुक्ति सुइ राए । परमनंद तं परम रमन जिनु, तं सिद्धि मुक्ति सुइ पाए । अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३४ ॥ तं विंद कमल सिद्धि रत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अर्क विंद संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ ३५ ॥ २६७) Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी विंद विन्यान रस रमनु जिनय जिनु पाए हैं, तरन विवान जिनय जिन उत्तु तरन जिनु पाए हैं । अर्क विंद दर्संतु अलष जिनु पाए हैं ॥ ३६ ॥ सम समय सिद्धि सम्पत्तु रमन जिनु पाए हैं, भय सल्य संक विलयंतु ममल जिनु पाए हैं। अप्प परम दर्सतु सहज जिनु पाए हैं ॥ ३७ ॥ परम गुप्ति उत्पन्न केवली पाए हैं, अन्मोय न्यान सिद्धि रत्तु सुयं जिनु पाए हैं। तं विंद कमल सिद्धि रत्तु सिद्ध जिनु पाए हैं ॥ ३८ ॥ सुइ समय समय सिद्धि रत्तु समय जिनु पाए हैं, उववन्न नंत दर्सतु दर्स जिनु पाए हैं। परम भाउ उवलब्धु लब्धि जिनु पाए हैं ॥ ३९ ॥ परम दर्स दर्सतु दर्स जिनु पाए हैं, __जिननाथ रमन रै जुत्तु रमन जिनु पाए हैं। परम मुक्ति सिद्धि रत्तु नंद जिनु पाए हैं ॥ ४० ॥ दिपि दिस्टि सब्द पिउ उत्तु सहज जिनु पाए हैं, विंद कमल रस अर्क समय जिनु पाए हैं। ___ तारन तरन समथु तरन जिनु पाए हैं ॥ ४१ ॥ सिह समय सिद्धि सम्पत्तु सिद्ध जिनु पाए हैं, अन्मोय नंद आनंद समय जिनु पाए हैं। सिह समय सिद्धि सम्पत्तु तरन जिनु पाए हैं ॥ ४२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी (७१) जिन अनिवारा फूलना गाथा १५३६ से १५४६ तक (विषय : ज्ञान-१, तत्त्व-२७) जिन जिनयति जिनय जिनेन्द जिनुत्तु, जिन जिनयति नंद नंद जिन श्रुतु । जिन चेयनंद चेयन जिन सारू, जिन परमनंद तं मुक्ति पियारू ॥ १ ॥ जिन जिनयति जिनय जिनय अनिवारा, जिन अन्मोय सु मुक्ति पियारा । तारन जिन दिप्ति दिस्टि विंद रमनं, कमल सब्द पिउ सिद्धि सु गमनं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जिन सहजनन्द सहजोति जिनत, जिन मुक्ति सुभावे सिद्धि सम्पत्तु । जिन जिनयति नंद नंद सम उत्तु, अन्मोय न्यान जिन सिद्धि सम्पत्तु ॥ ३ ॥ ॥ जिन. ॥ जिनवरु जिनय जिन उत्तु सउत्तु, ___जिनु संसारह सरनि विरत्तु । जिन उवनु लषु लषियं जिन तत्तु, जिन समय संजुत्तु सिद्धि सम्पत्तु ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ २६८) Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिन परम तत्तु परमान सउत्तु, परम समय तं सिद्धि सुभाउ । जिन परम लष्य परमान उवन्नु, परम निरंजन न्यान विन्यानु ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ जिनवर उत्तउ समय संजुत्तु, संसर्गह जिन कम्मु विलन्तु । जिनवर दिट्ठउ दिस्टि सु दिस्टि, अमिय रमन तं मुक्ति सु इस्टि ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन तत्तु अतत्तु विवान संजुत्तु, जिन इस्ट संजोये सिद्धि सम्पत्तु । अन्मोय न्यान जिन जिनय अपारू, जिन विंद संजोये मुक्ति पियारू ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन जिनयति जिन तत्तु पदार्थ संजुत्तु, जिन दिव्य दिस्टि जिन देउ स उत्तु । जिन काय बंध तं अस्ति जिनुत्तु, जिन विद संजोए मुक्ति पहुंतु ॥ ८ ॥ ॥जिन. ॥ जिन काय क्रांति सम कमल संजुत्तु, जिन परिनामु ममल जिन उत्तु । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन सहाउ तं समय संजुत्तु, जिन विंद संजोए सिद्धि सम्पत्तु ॥ ९ ॥ || जिन. ॥ जिनु अंगदि अंगह न्यान विन्यानु, जिन हितमित परिनै समय संजुत्तु । जिन पद परम तत्तु पद उत्तु, __ जिन विंद संजोए मुक्ति पहुंतु ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ जिनु ममल सहावे ममल सउत्तु, जिन तारन तरन विवान संजुत्तु । जिन समय ममल अन्मोय पउत्तु, जिनु विंद अन्मोए सिद्धि सम्पत्तु ॥ ११ ॥ || जिन. ॥ (७६) फुटकर माथा गाथा १५४७ से १५६७ तक (विषय : अ- उदिस्ट गाथा - तीन अर्थ और तीर्थकर की महिमा, ब- किं दिप्त गाथा - विवान-५, स- उवन उवन धुव गाथा -धुव स्वभाव की महिमा) (अ) उदिस्ट गाथाउदिस्टि दिस्टि दिस्टं, दिस्टि बंधान विगत विलयं च । उदिस्टि नंत नंतं, दिस्टं मोहंध षिपक रूवेन ॥ १ ॥ संसार अनिस्ट सुभावं, पर्जय भय विलय न्यान विन्यानं । नयनं न्यान सु रमनं, तारन अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २ ॥ (२६९ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उवन हिययार सहयारं, सहयारं हिययार उवन विन्यानं । तरन विवान अन्मोयं, न्यानह सुयं सहावेन सहज निर्वानं ॥ ३ ॥ हिययार उवन सहयारं, नंदं आनंद न्यान तह ममलं । भय षिपनिक अमिय रस रवनं, अन्मोयं तरन न्यान निर्वानं ॥ ४ ॥ दिपि दिस्टि उवन हिययारं, दिपि दिस्टि सहयार लंकृतं ममलं । भय षिपिय अमिय रस रूवं, अन्मोयं तरन सिद्धि सम्पत्तं ॥ ५ ॥ जिन असम समय सुइ उवनं, उवनं हिययार साह संजुत्तं । तित्थयर अर्थ आयरनं, साहिय सम समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ६ ॥ गम अगम समय सुइ उवनं, गम अगम भव्य साहि संजुत्तं । गम अगम न्यान सुइ उवनं, साहिय सुइ समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ७ ॥ तं तारन तरन अन्मोयं, भय विलयं अभय भव्व उव उवनं । अन्मोय तरन सुइ समय, दिपि दिस्टि सब्द पिय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ८ ॥ आयरन कोड सुइ उवनं, भय रहियं भव्य अभय संजुत्तं । सम समय साह भवियनं, रंज रमन नंद सिद्धि सम्पत्तं ॥ ९ ॥ तारन तरन सु उवनं, उवनं सुइ नंद कोड सुइ उवनं । अन्यान विरोह विनंद, सुव सुवन रंज विनंद विलयंति ।। १० ।। अवयास उवन उव उवनं, उवनं अन्मोय तारनं तरनं । सुव सुवन रंज जिन रमनं, कलनं अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ११ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी किंतिय दिस्टि उवनं, केय अस्थान दिस्टि इस्टं च । किं दिस्टि इस्टि सुइ पीऊ, किं अस्थान दिस्टि सस्टि उवनं च ॥ १३ ॥ दिप्ति दिस्टि संजोयं, सब्द सहावेन केय उप्पत्ति । किं सब्द इस्टि उव उवनं, किं संजोय मुक्ति गमनं च ॥ १४ ॥ दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द, पीऊ सभाव इस्टि उवनं च । किं अमिय रमन विष विलयं, किं सहकार मुक्ति गमनं च ॥ १५ ॥ किं रंज रमन आनंद, किं अर्क सु अर्क अर्क जिन अकै । किं अर्क विंद सुइ सुवनं, किं अर्क सि अर्क मुक्ति गमनं च ॥ १६ ॥ किं अर्क गम्य जिन गमनं, किं अर्क अगम्य नंत जिन नाहं । किं अर्क सुर्य सुइ ममलं, किं अर्क उन मुक्ति गमनं च ॥ १७ ॥ (स) उखन उवन धुव गाथाउव उवन धुवं उव उवन सुयं, तं अर्क विंद जिननाथ जयं । उव उवन समं उव समय सुयं, सिहु समय उवन सुइ सिद्धि जयं ॥ १८ ॥ उव उवन जयं उव उवन समं, उव उवन समय उववन्न सुयं । उव उवन पयं उत्पन्न समं, उव उवन स नंतानंत रयं । उव उवन सहं उत्पन्न ग्रहं, उव उवन सलष्य अलष्य पयं ॥ १९ ॥ (ब) किं दिप्त गाथा - किंतिय दिप्ति उवनं, के अस्थान केय दिपि दिपियं । केपि दिप्ति घन पीऊ, किंपि अस्थान न्यान पीयं च ॥ १२ ॥ (२७० Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उव उवन पयं दिपि दिस्टि रयं, उत्पन्न सब्द पिउ नंत सुयं । उत्पन्न साहि उत्पन्न ग्रहं, उव उवन अनंतानंत साहं ॥ २० ॥ जं उवन उवन उत्पन्न उवन, तं दिस्टि सब्द पिउ उवन उवं । उव उवन सुयं उव समय समं, सिहु समय उवन सुइ सिद्धि जयं ॥ २१ ॥ (७७) चितनोटा फूलना गाथा १५६८ से १५८७ तक (विषय : दर्शन-४, ज्ञान-१, अर्थ-१, सक-१७) जिन उवएसिउ न्यान मऊ हो, अर्थति अर्थह जोउ । यहु पंच दिप्ति परमिस्टि मऊ हो, है न्यान पंच संजुत्तु ॥ १ ॥ चितनौटा मेरे मन रहियो रे, यहु उपजिउ है ममल सुभाउ । चितनौटा मेरे मन रहियो रे, यहु भय षिपनिक है भव्वु ॥ चितनौटा मेरे मन रहियो रे ॥ सर्वंगह जोति कराई ॥ चित. ॥ पद विंदह केवल न्यानु || चित. ॥ मैं जानिऊ है अलष निरंजन देउ ॥ चित. ॥ आचरी ॥ २ ॥ यहु पंचाचार सु चरन मऊ हो, सम्मत्तह सहियौ उत्तु । यहु न्यान दिस्टि सम चित्त मऊ हो, है न्यानीय न्यान सउत्तु ॥ ३ ॥ ॥ चित. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी यह लषियौ लष्य अलष रुई हो, है लोयालोय प्रमानु । यहु अप्प सहावे परिनवै हो, है सुद्ध सचेयन सारू ॥ ४ ॥ ॥ चित. ॥ यहु ममल अन्मोयह पूरियौ हो, परम पय ममल सुभाउ । यहु परमनंद परमिस्टि मऊ हो, है मुक्ति रमनि सुभाउ ॥ ५ ॥ ॥ चित. ॥ यह अंगदि अंगह न्यान मऊ हो, सर्वगह ममल सहाउ । यह न्यान अन्मोयह नृत मऊ हो, है न्यानीय न्यान सउत्तु ॥ ६ ॥ ॥ चित. ॥ यहु दर्सन दर्सिऊ चष्य मऊ हो, अदर्सन गलिय सुभाऊ । यह न्यान दिस्टि परिनाम मउ हो, अन्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ७ ॥ चित. ॥ अचष्य सु दर्सन दर्सियौ रे, दर्सिउ है ममल सहाउ । अन्यान सुभाउ न उपजै हो, यह न्यान सहाउ अन्मोय ॥ ८ ॥ ॥ चित. ॥ यह अवधि हि ऊर्ध अंकुरै हो, वीरजु है नंतानंतु ।। यह न्यान दिस्टि नित सहियौ रे, अन्यान अनिस्ट गलंतु ॥ ९ ॥ ॥चित.॥ यह केवल ममल सहाउ मउ हो, है नंतानंत सु दिस्टि । जं भय विनास तं सहियौ रे, सो मुक्ति रमनि संजुत्तु ॥ १० ॥ || चित. ॥ २७१ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी निसंक संक रहियौ मुनहु रे, यह भय षिपनिकु है भव्यु । अन्यान दिस्टि विलयंतु सुइरे, है कम्म कलंक विमुक्कु ॥ ११ ॥ ॥चित. ॥ यह मति कमलासन दिस्टि मउ रे, है कमल सहाउ संजत्तु । श्रींकारह अवहि उन पऊ हो, यह ऊर्धह सुकिय सुभाउ ॥ १२ ॥ ॥चित. ॥ रिज़ विपुलह सहियौ विवान पऊरे, है मनपर्जय संजुत्तु । पद विंदह केवल ममल मउ रे, है परम तत्तु दर्सतु ॥ १३ ॥ ॥चित. ॥ यह न्यान अन्मोयह निपजै रे, जिन तारन तरन समथु । सो कम्मु कलंक विमुक्कु सुइ रे, है सिवपुरि ममल रमंतु ॥ १४ ॥ ॥ चित. ॥ जनरंजन राग जु विक्त मऊ रे, कलरंजन दोष गलंतु । मनरंजन गारव सुइ विलिऊ रे, यह मुक्ति पंथु दसतु ॥ १५ ॥ ॥ चित. ॥ दर्सन मोहंध सु दिस्टि गलिउ रे, आवर्न न्यान विलयतु । दर्सन आवर्नु न उपजै रे, मोहन आवर्न विमुक्कु ॥ १६ ॥ ॥ चित. ॥ यह न्यानंतरून दिठु सुइरे, है न्यान विन्यान संजुत्तु । यहु परम तत्तु दर्सतु सुइ रे, यह परम निरंजन उत्तु ॥ १७ ॥ ॥ चित. ॥ यहु उवनौ दाता देउ सुइ रे, यह परम उवनु दर्सेइ । यहु परम देउ स भावियौ रे, है परम तत्तु सम उत्तु ॥ १८ ॥ ॥ चित. ॥ यहु न्यान अन्मोयह ममल मउ रे, है तारन तरन समथु । यह ममलह ममल सहाउ मऊ रे, है भय षिपनिक संजुत्तु ॥ १९ ॥ ॥ चित. ॥ यह निर्मल ममल स उत्तु सुइ रे, है संक सल्य विलयंतु । यहु ममल न्यान केवल सहिउ रे, यह मुक्ति रमनि विलसंतु ॥ २० ॥ ॥ चित.॥ (७८) फुटकरचाल फूलना गाथा १५८८ से १६०७ तक (विषय: १- भुक्त विली की गाथा (भुक्त विली, विनंद विली, जिन अन्मोद अबलबली, विषय गली, संसार, अमिय रसी) २- पात्र गाथा (उपयोग की पर्याय से भिन्नता) -चोर चरपट गाथा (आठ कर्म, चार बंध) ४- चेला चेली गाथा (पाँच इन्द्रिय, मन की शुद्धि) ५- जुगयं पंड माथा (सम्यक्ज्ञान की महिमा) - आशीर्वाद गाथा (तीन अर्थ की महिमा) ७- उव उवन गाथा (स्वरूप की प्राप्ति, ओंकार स्वभाव की महिमा) ८- भरिउ मऊ गाथा (पुरुषार्थ विशेष) १. भुक्त विली गाथाभुक्तं संसार सुभावं, न्यानी दिस्टंति वंक सभावं । वंक अनिस्ट मैयौ, न्यानं अन्मोय भुक्त विलयंति ॥ १ ॥ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी ३ पर्जय विओय विनंदं पर्जय सहकार सरनि संसारे । जिन उत्त वंक रूवं, न्यानं अन्मोय विनंद विलयंति ॥ जिन अन्मोय सहावं, उववन्नं नंद सीह सभावं । गयंद गर्ज विलयं, जिन अन्मोय अबलबलियं च ॥ विषय सहाव अनंतं विषयं अनेय विंद विष सहियं । विषय विंद विष घट उत्तं, न्यानं अन्मोय विषय गलियं च ॥ भुक्त विनन्द सुभावं जिन उत्पन्न नंत भवयानं । सूषिम परिनाम विसेषं, जिन अन्मोय विनंद विलयंति ॥ विषय सुभाव अभावं विषयं परिनाम विविह भेयं च । अमिय पयोहर रसियं, अन्मोयं वसिय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ५ २ 11 ४ ६ || 11 II ॥ २- पात्र गाथा - ७ ॥ ८ ॥ यं तारन तं विनयं अहं पर्जाव अनिस्ट रूवेन । निर्गुन नंत विसेषं, तुम्हं अन्मोय सगुन पिच्छंति ॥ अहं पर्जावं सहियं निर्बुहि दोषं च नंत संजुतं । तुव स्रवनं पिसुन स उत्तं, तुम्हं अन्मोय अहं दोष विलयंति ॥ पर्जावं अहं विसेषं, नंत दोषं च पिसुन विस्थरियं । संसय तुव उववन्नं, तुम्हं अन्मोय दोष सुइ गलियं ॥ अहं पर्जाव असुद्धं, पिसुनं केनापि पयं पिय तुम्हं । तुम्ह विप्रिय संसयनं, तुम्हें अन्मोय अहं ममलं च ।। १० ।। ९ || २७३ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ३- चोर चरपट गाथा - उवनं, अन्यान न्यानं विलं । चोरं चरपट नंत नंत आवन सुइ रयनि रमन सुवनं, दुस्टं च साहू गुनं ।। ११ ।। चोरं चरपट गुनह साहु सुवनं, मरनं सुयं साहुवं । चोरं अग्र प्रवर्तते दिप्ति रयनी, पारं परं जीवनं ।। १२ ।। ४- चेला चेली गाथा - चेला रे चेली जाल जंजाला, चेला रे चेली प्रतष्य काला । चेला कर उतौ दुहु कुल सुद्धा, हीरा मानिक रयन अवेधा ॥ रसह गलहि जे विरस रसेई, गुरू के वयन अवध करि लेई । रूसे तूसे मनह अभंगा, ऐसे चेला लाऊ संगा ॥ १३ ॥ ५- जुगयं पंड गाथा - जुगयं षंड सुधार रयन अनुवं, निमिषं सु समयं जयं । घटयं तुंज मुहूर्त प्रहर प्रहरं, दुतिय पहरं ॥ चत्रु प्रहरं दिप्ति रखनी वर्ष सुभावं जिनं । वर्षं पिति सु आऊ काल कलनं, जिन दिप्ति मुक्ति जयं ॥ १४ ॥ ६- आसीर्वाद गाथा - उवनं उवन उवन्न उवं सु रमनं, दिप्तिं च दिस्टि मयं । हिययारं तं अर्क विंद रयन रमनं, सब्दं च प्रियो जुतं ॥ सहयारं सह नंत नंत रमन ममलं, उववन्नं साहं धुवं । श्रुतं देव उववन्न जय जयं च जयनं, उत्पन्नं मुक्ति जयं ।। १५ ।। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ७- उव उवन गाथा - उव उवन उवनु उव उवन जिनय जिनु, अगमु अगोचर अलष जिनु । मै नृततही जिनु अपनो पायौ, छोड़ न सकउ एकु षिनु ॥ १६ ॥ अन्तर ध्यान रहेइ जिनय जिनु, षट् रमन रमिय तं अरुह जिनु । उव उवन उवन दर्संतु सहज जिनु, सह समय उवन जिन मुक्ति जयं ॥ १७ ॥ मैं पाए हैं जिन तरन पियारे, अहु कमल रमन आधार हमारे ॥ मैं पाए हैं जिननाथ पियारे ॥ १८ ॥ ८- भरिउ मऊ गाथा - जं उवन उवन पौ भरिउ मऊ, तं लै गर्भिउ जिन उत्तु । स्वामी जिम भरियौ तिम आयरिऊ, जिन गर्भ उत्त जिन उत्तु ।। जिन उत्त वयन जिन आयरिऊ, जिन उत्तु सिद्धि सम्पत्तु ॥ १९ ॥ जिन उवन उवन पौ भरिऊ सुयं, लै गर्भिउ नंतानंतु । आयरन चरन तं परम पऊ, जिन कोड मुक्ति दर्संतु ॥ जिन उत्तु वयन जिन आयरिऊ ॥ २० ॥ (७९) कलसों की गाथा गाथा १६०८ से १६१४ तक (विषय : परिणाम भेद चार) चौ उववन्न सुभावं, दिगंतरं नंत नंताइ जिन दिळं । पय कमले सहकारं, क्रांति सहकार कलस जिन ढलियं ॥ १ ॥ सहकारं अर्थ तिअर्थ, अर्थं सहकार कलस जिन उत्तं । सुर विजन परिनाम, सहसं अटुंमि चौ उवन चौबीसं ॥ २ ॥ इस्टं दर्सति इन्द्रं, अप्प सहावेन इच्छ आछरयं । ऐरापति आयरनं, कमलं सहकार जिनेन्द विंदानं ॥ ३ ॥ कलसं सहाव उत्तं, कमल सरूवं च ममल सहकारं । भय विनस्य भवियनं, धम्मं सहकार सिद्धि सम्पत्तं ॥ ४ ॥ सिद्ध सरूवं रूवं, सिद्धं गुन विसेष ममल सहकारं । भय षिपिय कम्म गलियं, धम्मं पय पयडि मुक्ति गमनं च ॥ ५ ॥ जनमन जैवन्त सुभावं, जाता उववन्न जयकार ममलं च । भय षिपनिक भवियनं, जय जय जयवंत जन्म तित्थयरं ॥ ६ ॥ धम्म सहाव संजुत्तं, तारन तरनं च उवन ममलं च । लोयालोय पयासं, तिअर्थ आयरन सिद्धि सम्पत्तं ॥ ७ ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (८०) चतुर्विथि संघ गाथा गाथा १६१५ से १६५८ तक (विषय : कमल दल, ज्ञान पाँच, अर्थ पाँच, संज्ञा चार) जय जय जयवंत सुभावं, जय जय जय जयो जयो जिन उवनं । जय उवनं जय रमनं, जय जय जयवन्त जयो सिद्धानं ॥ १ ॥ जय इस्ट जय उत्तं, जय मय जय सहाव उव उत्तं । जय ढलनं जय उवनं, जय जय जयवंत जयो जय उवनं ॥ २ ॥ जय रमनं जय गमनं, जय तत्काल उवन जिन रमनं । जय गम अगम्य जय गमनं, जय नृतं जयो जय उवनं ॥ ३ ॥ जय इस्ट दर्स दर्स, जय उवनं जय उवन दर्स दर्सति । जय दर्सं जय लषनं, जय लषियं अलष्य उवन जिन जिनयं ॥ ४ ॥ जिन मइयं जिन सुइयं, जय मै जय सुइ उवन उवन निधि जैयं । जय जयो जयो मन पर्जयं, जय जय जयवंत केवलं ममलं ॥ ५ ॥ जय कमलं जय कलनं, जय जय जय जयो कमल ठह उवनं । जय कण्ठ कमल चर चरनं, ___ चरनं सिय जयो जयो सिय रमनं ॥ ६ ॥ जय उवन उवन सिय रमनं, जय सिय जय सुइ सुयं जय उवनं । जय नंत नंत उव उवनं, जय जय जयवंत जयो सिय रमनं ॥ ७ ॥ जय उवन उवन सिय जैयं, ___ जय सिय जय उवन उवन ममलं च । जय उवन उवन सिय जैयं, धुव कमलं कमल कलन धुव वयनं ॥ ८ ॥ धुव सिय धुव धुव उत्तं, जय धुव जय उत्तु जयो धुव वयनं । जय उत्त वयन जय उवनं, उवनं जय जयो कर्न सिय धुवनं ॥ ९ ॥ उव उवन उवन धुव उवनं, धुव सिय उव नंत कर्न सिय रमनं । जय उवन जयं सिय उवनं, जय धुव उव नंत कर्न जय समयं ॥ १० ॥ (२७५) Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी - - - श्री ममल पाहुइ जी धुव कमल कलन सिय उवनं, जय जय जयवंत कर्न जय समयं । जय कनँ जय सवनं, जय सुवनं सुवन नंत जय सुवनं ॥ ११ ॥ जय नंत नंत सुव कन, कर्न सुइ जयं जयो हिय उवनं । जय हिय हुव उवन सिय उवनं, जय हिय उवन अर्ह हिय रमनं ॥ १२ ॥ हिय रमनं जय रमनं, जाता उववन्न जयो षट् रमनं । हिय हुव जय सहयारं, सहयारं जयो जयो हिय उवनं ॥ १३ ॥ जय हिय हुव जय उवनं, जय सह हिय जय उवन अवयासं । अवयास जयं जय उवनं, उवनं अवयास साहि जय कमलं ॥ १४ ॥ जय कमलं जय कलनं, जय उवनं कमल केवलं ममलं । कमल ममल जय जयनं, कमलं जय जयो कर्न जय समयं ॥ १५ ॥ जिन उत्त कमल जय उवनं, जाता उववन्न अर्क जय रमनं । अर्क अर्क अनंतं, कमलं सुइ अर्क कर्न जय समयं ॥ १६ ॥ कमल उवन जय अर्क, ___ अकै सुइ समय जय जय कनँ । कर्न जयं जय हियनं, हिय हुव जय कमल कर्न निर्वानं ॥ १७ ॥ जय कमलं जय कन, जय हिय अर्क हुव अर्क अवयासं । जय सहयार सिय रमनं, जय जय जय उवन समय निर्वानं ॥ १८ ॥ समय जय जय समय, समय सुइ जयो उवन जय रमनं । समय संघ जय रमनं, जय रमनं उवन समय निर्वानं ॥ १९ ॥ उवन समय चौ संघ, संघं सुइ जयो उवन जय सुवनं । उवन जयं जय समयं, समयं सुइ उवन जयो निर्वानं ॥ २० ॥ जय जय जय संघ उवन्नं, रिसि जति मुनि अनयार उवन जय रमनं । रिसिनो रिसि जय उवनं, रिसियो सुइ रमन दिप्ति दिस्टं च ॥ २१ ॥ = Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिप्ति दिस्टि जय ममलं, ममलं जय दिस्टि दिप्ति सुइ नंतं । दिप्ति दिस्टि जय जयनं, जय जय जय रिसिय सब्द पिय रमनं ॥ २२ ॥ सब्द पियं जय रमनं, ___पिय सहकारेन जयो जिन सब्दं । सब्द प्रियो प्रिय सब्द, उवनं जय रिसिय समय निर्वानं ॥ २३ ॥ रिसियं रिहि जय रिहियं, ___ अबलबलेन जयं रिसि रिहियं । उवन कर्न हिय कमलं, कमलं सुइ कर्न रिसिय निर्वानं ॥ २४ ॥ जय जय जय जयंति सुइ जैयं, जय जय दिप्ति दिस्टि जय सब्द । जय सुवनं जय हियनं, जय हुव जय अवयास सुइ कमलं ॥ २५ ॥ कमल कर्न सुइ जयनं, जय उववन्न विषय सुइ विलयं । बाधा अवध सुइ सहजं, उवनं जिन विषय जिन जयनं ॥ २६ ॥ जय रमनं जय उवनं, जय सुवनं जय हिय उवन जय कमलं । रमन कषाय सु विलयं, जय उवनं जिनवरेन्द जिन वयनं ॥ २७ ॥ जय उत्तं जय वयनं, जय कर्न सहयार जयं जय रमनं । जय अर्क अर्क सुइ कमलं, कमलं सुइ कर्न जयं निर्वानं ॥ २८ ॥ मुनि सिय धुव सुइ रमनं, दिप्तिं सुइ दिस्टि सब्द पिय जयनं । जय न्यान विन्यान सु सुवनं, मै उवनं उवन केवलं न्यानं ॥ २९ ॥ जय सिय जय धुव जय कलनं, __ जय कमलं कर्न मुनिय जय रमनं । जय अर्क अर्क सुइ ममलं, सिय धुव मुनि अर्क समय निर्वानं ॥ ३० ॥ हिय हुव अर्क सु मुनियं, अवयासं उवन अर्क जय कमलं । कमलं कलन सु कन, कर्न सुइ विंद समय निर्वानं ॥ ३१ ॥ अनयार अर्क जय उवनं, कप्प वियप्प विलय जय उवनं । अन्मोय विरोह सु विलयं, विलयं सुइ सरनि जिनय जय उवनं ॥ ३२ ॥ २७७) Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन जय उवन सहावं, जिन दिप्ति दिस्टं च जिनय जिन सुवनं । जिन सब्द प्रियो जय जयनं, उवनं जय उवन साहि जिन वयनं ॥ ३३ ॥ जनमन गार सु विलयं, दर्सन मोहंध आवर्न विलयं च । जय जयवंत सु जैयं, जैयं सुइ कमल कर्न निर्वानं ॥ ३४ ॥ अनयार जय जय उवनं, आयरनं उवन अगम गम गमनं । लोय लोय जय उवनं, अनयारं सुइ समय जयो निर्वानं ॥ ३५ ॥ जय रमनं अनयार, जय कमलं कर्न उवन अवयासं । जय सुवनं जय सवनं, जय कलनं कमल कर्न निर्वानं ॥ ३६ ॥ संघ साहु सुइ जैयं, संघं सुइ जयो उवन जय समयं । समय उवन जय रमनं, उवनं जय समय सुयं निर्वानं ॥ ३७ ॥ भय विलय भव्य सुइ उवनं, जय उवनं कमल कर्न ममलं च । कमल विंद सुइ उवनं, कर्न सुइ विंद समय निर्वानं ॥ ३८ ॥ समय समय जय उवनं, उवनं जय समय कलन कमलं च । कलन कमल जय उत्तं, कमलं जय कर्न समय निर्वानं ॥ ३९ ॥ जय रंज रमन जय नंदं, रंजं जय उवन रमन हिय जयनं । जय नंद नंद जिन नंद, जय जय जयवंत जयो जय सिद्धं ॥ ४० ॥ रंज उवन हिय सहियं, विन्यानं रंज रंज जिन जिनयं । भय विलय रमन जय उवनं, अमियं वैदिप्ति रमन जय रमनं ॥ ४१ ॥ जिन रमन जयं जय उवनं, रमनं जिननाथ जय जय जयनं । नंद नंद जय नंदं, चेयन सुइ नंद जयं जिन जिनयं ॥ ४२ ॥ जिन सहजनंद जय उवनं, जय उवनं परमनंद जिननाहं । जिननाह जयं जय उवनं, जिन उवनं समय जयं सिद्धि रमनं ॥ ४३ ॥ (२७८) Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन उवनं जिन गमनं, जिन समयं जिनय जिनु रमनं । तारन तरन अन्मोयं, कमलं जय कर्न समय निर्वानं ॥ ४४ ॥ (८) हिय डोरिनी फूलना गाथा १६५९ से १६७३ तक (विषय: विवान पांच) उव उवनौ उवन उवन पऊ । उव उवनौ उवनौ समय संजुत्तु ॥ हिय डोरिनी. ॥ १ ॥ सम समय सहावे साहियौ । जिन साहिऊ सहिउ उवन स उत्तु ॥ हिय डोरिनी. ॥ २ ॥ उव उवन सउत्तउ जिनय पऊ । जिन जिनियौ जिनियौ नंत अनंतु ॥ हिय डोरिनी. ॥ ३ ॥ उव उवन अर्क सुइ उवन पऊ । उव उवनौ उवन उवन दर्संतु ॥ हिय डोरिनी.॥ ४ ॥ उव उवन झड़प सुइ सरनि पऊ।। जिन उवनउ उवन न्यान विलयंतु ॥ हिय डोरिनी. ॥ ५ ॥ उव उवन दिप्ति दिपि दिप्ति मऊ । जिन उवनउ उवन दिस्टि जिन उत्तु ॥ हिय डोरिनी. ॥ ६ ॥ दिपि दिप्ति दिस्टि सम साहियऊ । जिन दिस्टिहि दिस्टिहि दिप्ति जिनुत्तु ॥ हिय डोरिनी. ॥ ७ ॥ उव उवन सब्द पिउ जिनय जिनु । जिन विंद सुइ विंद कमल जिन उत्तु ।। हिय डोरिनी. ॥ ८ ॥ जिन कमल सब्द जिन उवन मऊ । जिन विंद सुइ विंद रुइय जिन उत्तु ।। हिय डोरिनी.॥ ९ ॥ हिययार उवन जिन उवन पऊ । जिन कमलह कमल कलन जिन उत्तु ।। हिय डोरिनी. ॥ १० ॥ दिपि दिप्ति दिस्टि पिउ सब्द मऊ । जिन हिय हुव हिय हुव कमल कलंतु ॥ हिय डोरिनी. ॥ ११ ॥ अन्मोय कलन कलि कमल मऊ । जिन हिय सह हिय सहयार जिनुत्तु ॥ हिय डोरिनी. ॥ १२ ॥ जं तारन तरन सहाउ मऊ। जिन उवने जिन उवने रयन जिनुत्तु ॥ हिय डोरिनी. ॥ १३ ॥ जं पूर्व तरन कलि कमल पऊ । जिन अन्मोय अन्मोय समय जिन उत्तु ।। हिय डोरिनी. ॥ १४ ॥ जिन उवन समय सुइ सहज जिनु । जिन समय सिह समय सिद्धि सम्पत्तु ।। हिय डोरिनी.॥ १५ ॥ जिन उवनाम २७९ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (८२) संजोय मुक्ति पचीसी फूलना गाथा १६७४ से १६९८ तक (विषय उत्पन्न सोलही) उव उवनऊ उवन उव उवन पऊ, उव उवनऊ रमन स उत्तु । रमन सहावे रे परम पर, सुइ रमन सिद्धि सम्पत्तु ॥ १ ॥ जिन जिनयति जिनय जिनेन्द पउ, जिन जिनिय कम्मु विलयंतु । जिन जिनय सहावे रे सुइ समय मउ, जिनु समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जिनु जिनय सहावे रे जिनु कलन मउ, जिनु कलन कमल जिन उत्तु । जिनु कलन चरन रे सुइ कर्न मउ, जिनु कलन समय सिद्धि रत्तु ॥ ३ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन अन्मोए रे सुइ कलन पउ, कलन उवन जिन उत्तु । कलन अन्मोए रे सुइ चरन पउ, सुइ कलन कर्न संजुत्तु ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ कलन उवने दिपि दिप्ति मउ, रुड़ रमन रयन संजुत्तु । कम कलन रंजु जिन उवन पउ, जं उवन समय संजुत्तु ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवने उवन सहाउ मुनी, दिपि दिप्ति अनंतानंतु । दिपि परिनामु रे सुइ दिप्ति मउ, दिपि दिप्ति दिस्टि संजुत्तु ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ सम समय उवनउ दिपि दिप्ति सुइ, जिननाह दिस्टि सुइ उत्तु । अंगदि अंगह रे सुइ लब्धि मउ, दिपि दिस्टि सिद्धि सम्पत्तु ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ रुइ रमनु जिनय जिनु रे समय मउ, रुइ सब्द प्रियो जिन उत्तु । रुइ नंत अनंतह रे जिन रमन मउ, रुइ समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ ८ ॥ ॥ जिन ॥ कम कमल उवनउ हो कलन पउ, कल कलन रंजु जिन उत्तु । (२८० Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ श्री ममल पाहुइ जी कलि कलियौ रे लोय अवलोय पउ, परिनामु कलन जिन रंजु ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ कल कलनह कलियौ हो कलन पउ, कम कमल कलिय जिन उत्तु । तं तरन सहावे रे कलन रंजु, कलि समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ कलियौ कमलह हो कलन पऊ, जिन कलन अनंतानंतु । कलन सहावे रे कमल पउ, सुइ केवल कमल जिनुत्तु ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह कलियौ हो चरन चरू, कमल कर्न सुइ उत्तु । कमलह चरियौ हो चरन पउ, चरि कमल सिद्धि सम्पत्तु ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह कलनह चरु चरन पउ, कलन कर्न संजुत्तु । तरन सहावे रे कलन सुड़, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह कलियौ हो उवन पर, सोलहि संजुत्तु । सुर्य लब्धि सुइ समय मउ, सुइ समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १४ ॥ ॥ जिन. ॥ सुयं अर्क सुइ अर्क जिनु, सुइ अर्क विंद जिन उत्तु । भय विलय अर्क स सहाउ लै, सुइ अर्क कमल कलयंतु ॥ १५ ॥ ॥ जिन. ॥ दिप्तिहि दिस्टि सुइ अर्क जिनु, __ सब्द हिययार जिनुत्तु । सब्द सहावे रे सुइ अर्क पर, उव उवन साहि सिद्धि रत्तु ॥ १६ ॥ ॥ जिन. ॥ अवयास अर्क जिन उवन मउ, कमल कंठ सुइ अर्क । अर्कह रमियौ हो रमन पउ, सुइ कमल कलिय सिद्धि रत्तु ॥ १७ ॥ ॥ जिन. ॥ नो उत्पन्न सुइ अर्क जिनु हो, नो नृत उवन रमंतु । (२८१) Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी नो उत्पन्न हो रमन पउ, सुइ न्यान रमन सिद्धि रत्तु ॥ १८ ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह कलियौ हो दर्स जिनु, कमल चतुर्दस दिस्टि । दानह दर्सिउ हो नंत पउ, सुइ लब्धि सिद्धि सम्पत्तु ॥ १९ ॥ ॥ जिन. ॥ कमल भुक्तउ हो कलन पर, कलनह केवल उत्तु । उव उवनह भुक्तह हो परम जिनु, सुइ समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २० ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह वीय हो विन्यान पउ, वीर्यहं फलु जिनु उत्तु । कलन सहावे हो मुक्ति पउ, उव कलन समय सिद्धि रत्तु ॥ २१ ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह कलियौ हो जिन वयनु, सम समय उवन संजुत्तु ।। उव उवन उवनउ हो समय पउ, सह समय उत्तु संमत्तु ॥ २२ ॥ ॥ जिन. ॥ कमलह कलियौ हो चरन पर, कर्नह चरन चरंतु । तारन तरन सहाउ मउ, सह समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २३ ॥ ॥ जिन. ॥ सुयं सहावे हो सुयं जिनु, सुयं लब्धि संजुत्तु । षोढसु भावे हो परिनवै, सुइ कलन मुक्ति सम्पत्तु ॥ २४ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ श्रेनि सहावे हो कलन मउ, सुइ तार कमल जिन उत्तु । अन्मोय सहावे हो परम जिनु, सह समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २५ ॥ ॥ जिन. ॥ (८३) परमिस्टि बत्तीसी फूलना गाथा १६९९ से १७३१ तक (विषय : कमल दल , परमेष्ठी चौबीस) जिन उवन उवन मौ इस्ट उवन पौ, उवन सब्द दसैंतु । जिन उवन अर्क रै विंद समय सुइ, विन्यानविंद दर्सतु ॥ १ ॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन गम्य गम्य उत्पन्न गम्य, श्री ममल पाहुइ जी जिन उवन मउ उत्पन्न मउ, जिन उवन सब्द दर्सतु । जिन हियइ रमनु सहयार गमनु, जिन गम अगम्य विलसंतु ॥ २ ॥ जिननाथ अमिय रस सिद्धि पउ ॥ आचरी ।। जिन उवन लषु उत्पन्न लषु, जिन परम लष्य लष्यंतु । उत्पन्न गम्य, जिन नंत गम्य जिन उत्तु ॥ ३ ॥ ॥जिन उवन.॥ उत्पन्न अर्क, ___ जिन अर्क समय सुइ उत्तु । जिन विंद मऊ विन्यान मऊ, परमिस्टि इस्टि जिन उत्तु ॥ ४ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन हियइ इस्ट उत्पन्न इस्ट, हिय गम अगम्य संजुत्तु । हिययार रमनु हिय समय सरनु, हिय अव्वावाह अनंतु ॥ ५ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन उवन इस्ट हिययार रिस्टि, सहयार समय संजुत्तु । जिन उवन लषु सह समय लषु, सहयार हिययार जिनुत्तु ॥ ६ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन सहै समय सहयार रमै, जिन गुपित दिस्टि दर्सतु । जिन गुप्ति उवन पौ गुप्ति रमन मौ, हिययार उवन विलसंतु ॥ ७ ॥ || जिन उवन.॥ जिन उवन सिरी उत्पन्न सिरी, हिययार सिरी रस उत्तु । जिन सहै समय हिययार रमय, सहयार सिरी सिद्धि रत्तु ॥ ८ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन भय षिपियं जिनु अमिय पियं, जिनु दिप्ति दिस्टि दसैंतु । जिन उवन जई हिययार जई, सहयार जई जयवंतु ॥ ९ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन इस्ट रमनु उत्पन्न रमनु, परमिस्टि रमन जिन उत्तु । जिन अबलबली अन्मोय मिली, विष विलय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १० ॥ ॥जिन उवन.॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन अमिय पियं जिन रंजु सुयं, जिननाथ सिद्धि सम्पत्तु ॥ १५ ॥ ॥जिन उवन.॥ परमिस्टि इस्टि उत्पन्न इस्टि, परमिस्टि सुयं सुइ परमिस्टि दर्स उत्पन्न दर्स, तं दर्सिउ उवन लषु । अलषु ॥ १६ ॥ ॥जिन उवन.॥ आह्वान अनंतु । श्री ममल पाहुइ जी जिन रमन उत्तु परमिस्टि जुत्तु, तं न्यान रमन संजुत्तु । अन्मोय अवलबली विषय विलय षलु, जिन रमन मुक्ति संजुत्तु ॥ ११ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन उवन विली उत्पन्न मिली, जिनु भुक्त विली दर्सतु । हिय रमन मिली हिय उवन विली, जिनु सिद्धि मुक्ति दर्संतु ॥ १२ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन गुपित मिली विनंद विली, जिनु न्यान रमन रस जुत्तु । अन्मोय वली विष विषम विली, जिनु रमन सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन इस्ट इस्टु उत्पन्न उस्टु, जिनु समय प्रमान सु इस्टु । जिन इस्ट दर्स उत्पन्न दर्स, जिनु न्यान सिरी इस्टंतु ॥ परमिस्टि रमन तं मुक्ति पऊ ॥ १४ ॥ ॥जिन उवन.॥ अन्मोय न्यान सुइ सुद्ध जानु, उव उवन सब्द दिस्टंतु । परमिस्टि पयं जिन न्यान मयं, तं न्यान जिनु भय षिपियं जिनु जीउ पियं, आह्वान मुक्ति दर्संतु ॥ १७ ॥ ॥जिन उवन.॥ अगम्य विलसंतु । परमिस्टि गमनु तं न्यान रमनु, तं गम परमिस्टि इस्टि उत्पन्न इस्टि, परमिस्टि नृत दर्संतु ॥ १८ ॥ ॥जिन उवन.॥ दिस्टि तं नृत नृत रै झड़प गलिय सुइ, तं नृत भय षिपिय भव्वु सुइ ममल न्यान मौ, तं अमिय संजुत्तु । दिस्टि दर्सतु ॥ १९ ॥ ॥ जिन उवन.॥ (२८४) Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन भय विलयं भय इस्ट गलं, भय उवन सुयं विलयंतु । परमिस्टि अभय उत्पन्न समय, परमिस्टि सिद्धि सम्पत्तु ॥ २० ॥ ॥जिन उवन.॥ परमिस्टि अर्क उत्पन्न अर्क, सर्वार्थ अर्क जिन उत्तु । परमिस्टि रमनु तं सिद्धि गमनु, सर्वार्थ अर्क संजुत्तु ॥ २१ ॥ ॥जिन उवन.॥ परमिस्टि इस्टि उत्पन्न इस्टि, जिनु अर्थ समर्थ संजुत्तु । जं अर्थ न्यान पय सर्वन्य अर्थ मय, परमिस्टि रमन सिद्धि रत्तु ॥ २२ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिनु विंद रमनु विन्यान गमनु, परमिस्टि रमन रस उत्तु । जिनु मग्ग अगम रै मुक्ति रमन सुइ, जिनु सुर्य रमन संजुत्तु ॥ २३ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिनु तरन इस्टु उत्पन्न श्रेस्टु, । जिनु विंद संजोय स उत्तु । परमिस्टि परम रै कम्मु गलिय सुइ, ___ अन्मोय विंद रस नंतु ॥ २४ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिनु षिपक इस्टु षिपि उवन इस्टु, परमिस्टि रमन जिन उत्तु । जिनु समय सुवनु जिन न्यान रमनु, विपि कम्मु मुक्ति दर्संतु ॥ २५ ॥ ॥जिन उवन.॥ अस्थान इस्टु उत्पन्न दिस्टु, आयरन न्यान जिन उत्तु । परमिस्टि रमन रय आयरन ममल पय, परमिस्टि अमिय रस जुत्तु ॥ २६ ॥ ॥जिन उवन.॥ अस्थान रमनु हिययार गमनु, उत्पन्न इस्ट दर्सतु । परमिस्टि रमन रस ममल न्यान जस, भय षिपनिक मुक्ति संजुत्तु ॥ २७ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन गहिर इस्टु उत्पन्न दिस्टु, परमिस्टि न्यान संजुत्तु । जिनु गुपित मिलय उत्पन्न निलय, परमिस्टि दर्स दर्संतु ॥ २८ ॥ ॥जिन उवन.॥ (२८५) Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिनु भय षिपियं जिनु अमिय पियं, भय सल्य संक विलयंत । जिनु ममल ममल सुइ विंद रमन रइ, परमिस्टि सिद्धि सम्पत्तु ॥ ३३ ॥ ॥जिन उवन.॥ श्री ममल पाहुइ जी जिनु गुपित गमनु तं अमिय रमनु, भय षिपनिक भव्व स उत्तु । जिनु न्यान रमनु विन्यान गमनु, जिननाथ रमन जिन उत्तु ॥ २९ ॥ ॥जिन उवन.॥ जिनु जान इस्टु उत्पन्न दिस्टु, तं न्यान विन्यान संजुत्तु । परमिस्टि इस्टि सुइ मनपर्जय रय, जिन लोय लोय दर्सतु ॥ ३० ॥ ॥जिन उवन.॥ जिन इस्ट पऊ उत्पन्न पऊ, जिन पय विंदह संजुत्तु । परमिस्टि परम पय न्यान उवन मय, पय विंद मुक्ति दर्संतु ॥ ३१ ॥ ॥जिन उवन.॥ अन्मोय न्यान सम समय जानु पय, विंद विन्यान संजुत्तु । तं तारन तरन मउ अमिय ममल रउ, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ ३२ ॥ ॥जिन उवन.॥ (८४) ग्यारह अंग फूलना गाथा १७३२ से १७४८ तक (विषय : अंग ग्यारह) उव उवन सुयं विंद समय समं, नै ममल मयं सिय धुव रमनं । सुर उवन सुयं सुइ रमन मयं, विंद विजन रमन जिन जिनय जिनं ॥ भवियन तं सब्द उवन पय परम पयं ॥ १ ॥ रै रंज उवन रै भय षिपिय रमन पै, सुइ नंद ममल रस उवन जिनं । हिय रंज उवन पय अमिय रमन मय, तं विंद रमन उव समय समं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (२८६) Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी पय उवन सुयं सुव अर्थ उवनयं, सुइ अर्थति अर्थ सम समय रयं । सहकार अर्थ रय अवयास ममल पय, तं नन्त नन्त सु जिन रमन पयं ॥ भवियन तं सब्द उवन पय परम पयं ॥ ३ ॥ ॥रैरंज.॥ अन्मोय उवन पय तं न्यान रमन स्य, अन्मोय अर्थ सुइ जिन रमनं । अन्मोय न्यान पय तं अमिय रमन जय, भय षिपनिक विलय सु कम्म पयं ॥ भवियन ममल रमन जिनु सिद्धि जयं ॥ ४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ उवन उवन रय श्रुतंग रमन पय, श्रुतंग रमनु जिन अर्थ सुयं । श्रुत समय समय पय उव उवन समय रय, श्रुत उवन हियं सहयार जयं ॥ भवियन श्रुत रमन जयं जय धुव ममलं ॥ ७ ॥ ॥रैरंज. ॥ सुइ सब्द उवन पय हिय उवन असब्द मय, __ जिनु गुपित सब्द सर रमन सुर्य । भय षिपिय षिपक रय तं अमिय रमन मय, जिन पदम कमल जिन उत्तु सुयं ॥ भवियन जिन सब्द दिप्ति जिन दिस्टि मयं ॥ ८ ॥ ॥रैरंज.॥ अस्थान दिप्ति रै तं ममल दिस्टि मै, तं दिप्ति दिस्टि जिनु रमन सुयं । दिपि दिस्टि समय मय सब्द सहज रय, जिन गम अगम्य जिनु मुक्ति जयं ॥ भवियन दिपि दिस्टि सब्द रै सिद्धि जयं ॥ ९ ॥ ॥रैरंज.॥ वय वयन वितिरै पय पदम कमल सुइ, जिनु न्यान दिप्ति सुइ रमन पयं । सुइ समय समय पय उव उवन हिययार रय, सहयार रमन जिनु समय जिनं ॥ भवियन अन्मोय तरन सम सिद्धि जयं ॥ १० ॥ विपि उवन षिपक पय अन्मोय मुक्ति रय, तं मुक्ति अर्थ जिनु मुक्ति रमै । सुष्यम सुइ रमन सु नन्त दर्स जिनु, सुइ नन्त सौष्य जिननाथ सुयं ॥ भवियन तं विंद रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ५ ॥ ॥रैरंज. ॥ अर्थ तिअर्थ रय तं उवन कमल पय, कमल रमन जिन जिनय रयं । अर्थग गमिय रै दिसि दिसिय अगम पै, पय अर्थ जिनय जिननाथ सुयं ॥ भवियन उव सम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ६ ॥ ॥रैरंज.॥ (२८७) Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी विन्यान ममल रै सुइ न्यान परम पै, पय दर्स नंत जिन समय समं । पय कमल कलिय सुइ पुलिन गगन पय, ससि विंद भवन विन्यान रयं ॥ भवियन पय नंत नंत केवलि उवनं ॥ ११ ॥ ॥रै रंज.॥ सम समय सरनु सम दिप्ति रमनु, ___सम दिस्टि सब्द रस रमन पर्य । सम उत्तु उवन पय सम समय सब्द रय, जिनु समय सहाव जिनु रमन सुयं ॥ भवियन सम समय जिनय जिन उवन रयं ॥ १२ ॥ ॥रैरंज.॥ अनंत नंत रै नंत ममल मै, तं नंत नंत जिन दिप्ति रयं । तं नंत न्यान रै विन्यान वीर्य मै, तं नंत सौष्य जिन रमन पयं ॥ भवियन तं नंत चतुस्टय मुक्ति रयं ॥ १३ ॥ ॥रैरंज.॥ नंत रंग रमन पय तरल तरंग मय, तं नंत नंत जिनु दर्स रयं । तं लोय लोय पय ममल रमन मय, तं नंत अमिय रस रमन जिनं ॥ भवियन तं नंत समय जिनु जिनय जिनं ॥ १४ ॥ ॥रैरंज.॥ पर परम परम पय सम समय रमन रय, सम दर्स रमनु जिनु सम उवन पयं । परमिस्टि इस्टि रै उव उवन दिस्टि पै, उव उवन समय जिनु मुक्ति जयं ॥ भवियन परमिस्टि समय तं परम पयं ॥ १५ ॥ ॥रैरंज.॥ तं सुयं रमन सरु विन्यान विनय पुरु, तं अवध रमन जिनु जिनय जिनं । अन्मोय न्यान रै भय षिपिय अमिय रै, तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन जिनु अवध रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ १६ ॥ ॥रैरंज.॥ जिनु अंग रमन जय जिन उत्तु जिनय पय, जिन विंद रमन उव उवन समं । भय षिपिय अमिय रय अन्मोय तरन जय, तं ममल रमन जिनु सिद्धि जयं ॥ भवियन अन्मोय न्यान सम सिद्धि जयं ॥ १७ ॥ ॥रैरंज.॥ (८१) चौदा पूर्व रासौ फूलना गाथा १७४९ से १७६७ तक (विषय | चौदह पूर्व) जिन जिनयति जिनय जिनेन्दं, उव उवन अर्क अर्थ विंदं । जं विंद रमन रस नंदं, तं सिद्धि रमन सुइ परम जिनेन्दं ॥ १ ॥ (२८८) Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जं न्यान अन्मोय पिओयं, तं दिप्ति दिस्टि रस जोयं । तं सब्द दिप्ति दिस्टि मिलियं, जिननाथ रमन सिद्धि चलियं ॥ २ ॥ || आचरी॥ उव उवन रंज जिन रंज, भय षिपिय अमिय रस नंदं । हिय सहयार रंज सह रंजे, तं विंद रमन जिन नंदं ॥ ३ ॥ ॥जंन्यान.॥ पूर्व सुइ सुयं सु रमन, जं पूर्व परम गुन गमनं । तं उवन भाव उवलयं, तं वीय विन्यान स लष्यं ॥ ४ ॥ ॥ जंन्यान.॥ जं लोय लोय अवयासं, भय षिपिय अमिय रस वासं । जं उवन हिययार रै रमियं, तं सहज रमन सिद्धि मिलियं ॥ ५ ॥ ॥जंन्यान.॥ अस्ति जु न्यान विन्यानं, तं सहज सुभाव सु रमनं । जिन उत्त वयनु जिन रमनं, तं ममल रमन सिद्धि रमनं ।। ६ ॥ ॥जंन्यान.॥ पर्जय भय नंत अनंतं, जनरंज वयन जं उत्तं ।। तं नास्ति राय भय संकं, अन्मोय न्यान सिद्धि रत्तं ॥ ७ ॥ ॥जंन्यान.॥ पर परम तत्तु परमप्पं, पर परम सुभाव सलष्यं । जं परम तत्तु उव उवनं, तं परम मुक्ति सुइ मिलियं ॥ ८ ॥ ॥ जंन्यान.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जं गुप्ति रमन जिन रयनं, हिय रमन उवन सइ मिलियं । भय षिपिय अमिय रस मिलियं, प्रतष्य मुक्ति सुइ चलियं ॥ ९ ॥ ॥जंन्यान.॥ जं नंत उवन हिययारं, सह रमन नंत सहयारं । भय सल्य संक सुइ विलयं, तं नंत धर्म सिद्धि मिलियं ॥ १० ॥ ॥जंन्यान.॥ जं दिप्ति दिस्टि सह रूवं, विन्यान विंद सुइ सुरयं । जं विद्यमान जिन उत्तं, तं वयन उत्त सिद्धि रत्तं ॥ ११ ॥ ॥जंन्यान.॥ जं कप्प वियप्प सु विलयं, तं कल्प न्यान रस रवनं । जं रमन विषय विष रमियं, तं न्यान रमन सुइ गलियं ॥ १२ ॥ ॥जं न्यान.॥ जं मध्य पदं पद विंद, तं उवन अर्क जिन नंदं । आगंतु विंद हुवयार, तं रमन सुयं सिद्धि मिलियं ॥ १३ ॥ ॥जं न्यान.॥ जं वयन व्रिति जिन रमनं, जिन समय सहाव स रवनं । जिन इस्टि दिस्टि दिपि समयं, तं सब्द समय सिद्धि मिलियं ॥ १४ ॥ ॥जं न्यान.॥ जिन अर्क विंद हिय रमनं, तिअर्थ अर्थ सुइ सुवनं । जिन लण्य अलष्य सुइ ममलं, जिन उवन रमन सिद्धि ममलं ॥ १५ ॥ ॥जंन्यान.॥ (२८९) Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जं अर्थति अर्थ दिपि दिपियं, तं दिस्टि सब्द रस रैयं । भय सल्य संक सुइ विलयं, तं दिप्ति दिस्टि सिद्धि मिलियं ॥ १६ ॥ ॥जंन्यान.॥ जं लोक विंद अवलोयं, परिनामु सरीर संजोयं । सहयार सरीर सु कलियं, भय विलय सिद्धि सुइ मिलियं ॥ १७ ॥ ॥जंन्यान.॥ भय षिपनिक भव्वु स उत्तं, सुइ अमिय रमन रस जुत्तं । विन्यान विंद रस रमियं, तं ममल रमन सिद्धि मिलियं ॥ १८ ॥ ॥ जंन्यान.॥ जं तारन तरन सुभावं, तं दिप्ति दिस्टि स सहावं । जं सब्द कमल जिन उत्तं, तं समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ १९ ॥ ॥ जंन्यान.॥ आयरन उवन हिययार गुपित जिनु, आयरन अमिय रस मुक्ति जयं । भय षिपनिक सुइ ममल रमन जिनु, तं विंद रमन रै जिनय जिनं ॥ भवियन अन्मोय तरन जिननाथ सुयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जय जय जयवंतु जय जय उवने, उव उवन जयं हिययार जयं । सहयार जयं जयवंत ममल रस, अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ ३ ॥ ॥ आयरन.॥ संवेउ सुयं सुइ उवन परम जिनु, परम तत्तु तं परम पयं । संवेउ हिय सहइ सहज जिनु, भय सल्य संक विलयंतु सुयं ॥ ४ ॥ || आयरन.॥ निव्वे निरु विक्त ममल जिनु, ___ ममल रमन जिनु ममल पयं । जं राग दोष गारव भय विलयं, पर पर्जय विलय सु मुक्ति पयं ॥ ५ ॥ ॥आयरन.॥ निंदा अन्यान दिप्ति नहु रमनं, दिस्टि गलिय भय मिच्छ पयं । (८६) संमिक्त अस्ट गुण फूलबा गाथा १७६८ से १७७९ तक (विषय : सम्यक्त्व के आठ गुण) उब उबन कमल उबबन्न परम पय, परम तत्तु पद विंद सुयं । आयरन चरन आयरन सुयं जिनु, अर्थति अर्थ सु ममल पयं ॥ आयरन परम जिन परम सुयं ॥ १ ॥ २९०) Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनुकम्पा अन्यान षिपक जिनु, न्यान अन्मोय सु रमन जिनं । न्यान दिप्ति तं दिस्टि रमन जिनु, तं न्यान दान अनुकम्प रयं ॥ ११ ॥ ॥आयरन.॥ इय अस्ट गुनं अस्टंग रमन जिनु, आयरन न्यान विन्यान सुयं । दिप्ति दिस्टि आयरन ममल पय, न्यान आयरन सु मुक्ति पयं ॥ आयरन परम जिन परम सुयं ॥ १२ ॥ । आयरन.॥ श्री ममल पाहुइ जी सुइ न्यान दिप्ति तं दिस्टि रमन जिनु, जन कल मन मोहंधु विलं ॥ ६ ॥ || आयरन.॥ गम अगम्य तं ग्रहन उवन जिनु, हिययार उवन उव उवन सुयं । सहयार उवन तं उवन जान पौ, तं वज्र ग्रहन जिननाथ सुयं ॥ ७ ॥ ॥आयरन.॥ उवसम संसार सरनि सुइ विलयं, षिपनिक सुइ षिपिय सुयं जिनियं । षिऊ उवसम तं षिपक रमन जिनु, तं विंद रमन उत्पन्न समं ॥ ८ ॥ |आयरन.॥ भय विनासु तं भत्ति रमन जिनु, अर्थ तिअर्थ सु भत्ति सुयं । भय षिपनिक तं ममल रमन जिनु, अमिय रमन तं विष विलयं ॥ ९ ॥ ॥आयरन.॥ बारम्बार इच्छ जिन जिनयति, इच्छ रमनु तं न्यान रमं । न्यान रमन विन्यान ममल जिनु, वाछिलु इच्छ तं परम पयं ॥ १० ॥ ॥ आयरन.॥ (८७) धम्म आयरन फूलना गाथा १७८० से १७९२ तक (विषय : धर्म के दशलक्षण) गुन आयरन धम्म आयरनं, आयरन न्यान पय परम पयं । तव आयरन जिनय जिन उत्तं, आयरन तिअर्थ सु ममल पयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ १ उव उवन पयं उव समय समं, तं विंद रमन उव सुन्न समं । ॥ (२९१) Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उव उवन सरनि विष विषम रमनि, उत्पन्न षिपिय जिननाथ सुयं ॥ भवियन भय षिपिय अमिय रस मुक्ति जयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उत्तम षिम उवन उवन जिनु रमनं, उववन्न कम्मु विलयंतु सुर्य । उत्पन्न षिपिय भय षिपक रमन जिनु, तं न्यान अमिय रस ममल पयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ३ ॥ ॥ उव उवन. ॥ मय मूर्ति तं अर्क रमन जिनु, दर्स दर्स उत्पन्न रसं । वारापार अपार रमन जिनु, दिस्टि सब्द उत्पन्न जिनं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ४ ॥ ॥ उव उवन. ॥ आर्जव आयरन सु चरन रमन जिनु, उववन्न समय सम समय जिनं । न्यान विन्यान सु आर्जव ममलं, न्यान अन्मोय सु विष विलयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ५ ॥ || उव उवन.॥ सत्यं तं सहजनंद जिनु रमनं, रमन विंद रै उवन समं । भय सल्य संक विलयंत जिनय जिन. निसंक सब्द दिपि दिप्ति रमं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ६ ॥ ॥ उव उवन. ।। सौच्य सहकार सहज रै रमनं, हिययार उवन पय उवन रमं । उव उवन मिलन उव उवन विलन, तं भुक्त उवनु सुइ भुक्त विलं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ७ ॥ ॥ उव उवन. ॥ अन्मोय अबलबली विषय विनंद विली, सहयार उवन पय मुक्ति मिलं । संजम सुइ जयो जयो जय रमनं, जाता उववन्न सु मुक्ति जयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ८ ॥ ॥ उव उवन. ॥ तप तत्काल उवन सुइ उवनं, उव उवन न्यान सुइ विषय विलं । उववन्न परम पय परम उवन जय, तं कम्मु विलय सुई मुक्ति पयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ९ ॥ ॥ उव उवन. ॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी त्यागं तिक्त तिक्त पर पर्जय, भय सल्य संक विलयंतु सुयं । दानं तं नंत नंत जिन रमनं, त्याग न्यान सुइ सिद्धि जयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ १० ॥ ॥ उव उवन.॥ आकिंचन आयरन जिनय जिनु, अर्थति अर्थ सु ममल रयं । षट् कमलह तह अंगदि अंगह, आयरन धम्म तं मुक्ति पयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ११ ॥ ॥ उव उवन.॥ बंभ चरन आयरन अरुह रुइ, षट् रमन रयन सुइ जिनय जिनं । अबंभ रमन सुइ विलय सहज जिनु, अन्मोय न्यान सुइ बंभ पयं ।। उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ १२ ॥ ॥ उव उवन. ॥ दह विहि आयरन सुर्य जिन रमनं, __ भय षिपनिक सुइ अमिय रसं । तारन तरन सु विंद रमन जिनु, अन्मोय समय सिह मुक्ति जयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ १३ ॥ ॥ उव उवन.॥ (८८) तप विसेष फूलना गाथा १७९३ से १८२६ तक (विषय : बारह प्रकार तप) उवंकार उनऊ विंद रमन जिनु, रमन विंद जिन रमिजै । जिन जिनयति जिनय विंद रै रमनह, रमन विंद सिद्धि रमिजै ॥ १ ॥ भवियन भय षिपिय रमन जिनु रमिजै, नंद अनन्दह कमल रमन जिनु । रमन विंद सिद्धि रमिजै, भवियन भय षिपिय रमन जिनु रमिजै ॥ २ ॥ || आचरी॥ विंद उवंनऊ सुद्ध समय जिनु, सुद्ध ममल जिन उत्तु सुयं । तरन विवान समय संजुत्तऊ, तं विंद रमन सुइ परम पयं ॥ ३ ॥ ॥भवियन.॥ भय विनासु तवयरन परम जिनु, तव आयरन चरन जिन उत्तु सुयं । सहज सुभावे विंद रमन जिनु, तं तरन विवान मुक्ति मिलियं ॥ ४ ॥ ॥ भवियन.॥ (२९३) Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी अनसन संसार सरनि पर्जय भय सयन नंत सुइ गलियं, सुइ विलयं, सयन विंद रस रमिय सुयं । सयन सरूवे सुर्य रमन जितु. तं विंद रमन सुइ भय विलयं ॥ ५ 11 ॥ भवियन ॥ पर पर्जय सयन नंत सुइ अप्प सरूवे पर अषय परम जिनु परम पयं । विलयं, विन्यान सयन तं मुक्ति पयं ॥ ६ ॥ ॥ भवियन ॥ आमोदर्ज सुर्य जिन पर्जय विलयंतु कलियं, मै मूर्ति मौ ममल विन्यान विंद रय रमन परम पय, पर्य । परम न्यान सुड़ सिद्धि जयं ॥ ७ II ॥ भवियन ॥ न्यान सहावे, विंद रमन रे रै जै जै । परम जिनु, दर्स परम वस्त संध्य सुइ षिपिय षिपक जिनु, दर्सीजै ॥ ८ ॥ ॥ भवियन ॥ संसरनि वस्त तं सुइ गलियं । २९४ पर्जय सरनि वस्त जं वसियं, विन्यान विंद रे विलय वस्त वसिय जं पर पर्जय रे, राग गलिय जनरंज भय सल्य संक सक गलिय जिनय जिनु, रस श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी परित्याग तिक्त जिन उत्तह, पर्जय रय रसिय सुयं गलियं । न्यान विन्यानह विंद रमन रस, सुयं । वस्त विलय तं मुक्ति पयं ॥ १० ॥ ॥ भवियन ॥ कलरंजन दोष रसिय पर्जय रै, पर ९ 11 सुयं ॥ ॥ भवियन ॥ पर पर्जय रसिय सुयं विलयं ॥ ११ ॥ ॥ भवियन ॥ पर पर्जय नंत नंत जं रसियं, विन्यान विंद रस सुइ विलयं । विविक्त सेजासन विक्त सयन रुइ, अन्मोय तरन तं सुइ गलियं ॥ १२ ॥ ॥ भवियन ॥ विक्त रूव पर्जय गलियं । पर्जय संजोय सुयं गलि न्यान अन्मोय सु सिद्धि जयं । १३ ।। ॥ भवियन ॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी पर्जय सरनि नंत सुइ चरियं, वय तव क्रित संसय सहियं । विक्त रूव तं विंद रमन रस, पर पर्जय विलय सु मुक्ति पयं ॥ १४ ॥ ॥भवियन.॥ कायकलेस कलह संजोए, कृत कारित जं उत्तु पयं । वय तव क्रिय अन्यान सहावे, न्यान अन्मोय सु विलय सुयं ॥ १५ ॥ ॥भवियन.॥ कल लंकृत काय कम्मु जन उत्तं, उत्पन्न न्यान तं सुइ विलयं । न्यान विन्यान सु विंद रमन रै, पर पर्जय विलयंतु सुर्य ॥ १६ ॥ ॥भवियन.॥ वाहिज तव आयरन परम जिनु, अर्थति अर्थ सु ममल पयं । षट् कमलह तं क्रांति कलिय जिनु, विन्यान विंद रस रमिय सुयं ॥ १७ ॥ ॥भवियन.॥ षट् तवयरन चरन सहयारह, भय विनासु तं भव्वु सुयं । अर्थति अर्थह नौ भय विलयं, अन्मोय न्यान षिपि पयडि सुयं ॥ १८ ॥ ||भवियन.॥ आभिंतर तवयरन सहज सुइ, पर पर्जय तं विलय सुयं ।। परम तत्तु तं परम पयं जिनु, परम न्यान तं रमन पयं ॥ १९ ॥ ॥भवियन.॥ परम सुभावह सुयं षिपक जिन. सुइ कम्मु षिपिय तं नंत पयं । नंत न्यान तं विंद रमन सुइ, तरन विवान सु मुक्ति पयं ॥ २० ॥ ॥भवियन.॥ विन्यान विंद तं रमन अमिय रस, वीर्य नंत तं सौष्य सुयं । सूष्यम परिनाम सुयं सुइ रूवे, सुर्य लब्धि तं परम पयं ॥ २१ ॥ ॥भवियन.॥ तारन तरन विन्यान परम पय, विंद रमन तं परम सुर्य । तरन विवान समय संजोये, विन्यान रमन सिद्धि रत्तु सुयं ॥ २२ ॥ ॥भवियन.॥ पद कमला न विन्यान विंद रस रमिघ सुर्य ॥ १० ॥ तारन तान विन्याबिंदास्मन त परम सुयं ।। (२९५) Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी वैयाविति तं विति न्यान मय, न्यान रमन उववन्न सुयं । रिजु विपुलं च विति सुइ उवनं, मनपर्जय सुइ विंद रयं ॥ २३ ॥ ॥भवियन.॥ न्यानावरनु सुयं सुइ विलयौ, भय सल्य संक विलयंतु सुयं । तरन विवान विंद सुइ रमनं, मनपर्जय अन्मोय सुयं ॥ २४ ॥ ॥भवियन.॥ सुद्धध्याय सुयं धुव ममलं, ___ममल विंद तं रमन सुयं । तरन विवान सहाइ समय सुइ, सम समय सिद्धि सुइ समय पयं ॥ २५ ॥ ॥भवियन.॥ सुद्ध सरूवे सहज सनंदे, तवयरन सुद्ध सुइ सुद्ध पयं । विन्यान विंद तं रमन सुभावे, अन्मोय न्यान सम समय धुवं ॥ २६ ॥ ॥भवियन.॥ काउत्सर्ग चरन तवयरनं, क्रांति कमल उत्पन्न सुयं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विंद रमन विन्यान तरन सुइ, विन्यान न्यान केवलि उवनं ॥ २७ ॥ ॥भवियन.॥ कप्प वियप विलय पर्जय रे, भुक्त विलय सुइ सुपिन विलं । विनंद विली तं सुपिन विली सुइ, ___ कम्मु विलय केवलि उवनं ॥ २८ ॥ ॥भवियन.॥ तं न्यान अन्मोय अबलबली उवनं, विन्यान विंद सुइ रमन पयं । तरन विवान अन्मोय वली सुइ, विषम विषय तं गलिय सुयं ॥ २९ ॥ ॥भवियन.॥ विषय गलिय तं न्यान अन्मोयह, न्यानेन न्यान सुइ मिलिय पयं । विंद रमन तं तरन सहावे, परम न्यान केवलि उवनं ॥ ३० ॥ |भवियन.॥ ध्यान स उत्तउ सुयं सहज जिनु, नंतानंत सु धुव रमनं । नंत चतुस्टय सहज सरूवे, तरन विवान सु धुव ममलं ॥ ३१ ॥ ॥ भवियन.॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जं केवल दिस्टि नंत नंता हिउ, जोग ध्यान तं जिन उवनं । तं विंद रमन विन्यान संजोये, तं तरन विवान सु परम जिनं ॥ ३२ ॥ ॥भवियन.॥ हितमित सहिय सु परिनै कोमल, केवल भाव सु ममल पयं । अन्मोय सहावे समय स उत्तं, बोध ममल तं मुक्ति पयं ॥ ३३ ॥ ॥भवियन.॥ सिद्ध सरूवे मुक्ति सहावे, न्यान विन्यान सु समय पयं । विंद रमन विन्यान तरन सुइ, तं नंत ध्यान सुइ सिद्धि जयं ॥ ३४ ॥ ॥भवियन.॥ (८९)अबयासीक छह फूलना गाथा १८२७ से १८३५ तक (विषय : छह आवश्यक गुण) अवयास यास आयरन ममल है, ___ अवयास नंत जिन उवन जिनं । जिन जिनयति सहज उवन आयरनं, अन्मोय न्यान आयरन पयं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ १ ॥ उव उवन पयं उव समय समं, तं विंद रमन उव सुन्न समं । उव उवन सरनि विष विषम रमनि, उत्पन्न षिपिय जिननाथ सुयं ॥ ___ भवियन भय षिपिय अमिय रस मुक्ति जयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ अस्ति संसार सरनि सुइ विलयं, तं अस्ति अमिय रस ममल पयं । अन्मोय न्यान भय षिपक रमन जिनु, तं विंद रमन उव अस्ति समं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ३ ॥ ॥ उव उवन.॥ वस्तुत्वं नंत नंत रमन रयन जिनु, बल वीर्य रमन जिन वस्तु वसं । वस्तुत्वं अर्थ जिन अर्थति अर्थह, सम अर्थ सुयं परमर्थ पयं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ४ ॥ ॥ उव उवन.॥ अप्रमेय अप्रमान रमन जिन, अयं अयं अप्प परमप्प पयं । सुड़ नंतानंत जिनय जिन उवनं, आयरन उवन सह सहै समं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ५ ॥ ॥ उव उवन. ॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अगुरुलघु तं नंत नंत जिनु, सह समय रमन जिनु हिय रमनं । भय षिपनिक सक सल्य विलय जिनु, अमिय रमन विष विलय जिनं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ६ ॥ ॥ उव उवन. ॥ चेयन अवयास नंत जिन रमनं, नंतानंत सु चेय जिनं । उव उवन सिरी हिययार रमन जिनु, सहयार चेय जिनु रयन रमं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ७ ॥ ॥ उव उवन.॥ अयं सुभाव न्यान सुइ रमनं, अन्मोय न्यान पिय परम पयं । संसय संसार सरनि सुइ विलयं, विक्त रूव अरूव पयं ॥ तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ८ ॥ ॥ उव उवन. ।। षट् अवयास षट् कमल रमन जिनु, आयरन कमल गम अगम रयं । षट् रमन हियं हिययार अरुह जिनु, अन्मोय तरन आयरन जिनं ॥ तं ममल रमन जिनु सिद्धि जयं ॥ ९ ॥ । उव उवन.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१०) साधु गुज वह दंसन भेद फूलना गाथा १८३६ से १८४८ तक (विषय: सम्यकदर्शन के दस भेद) उव उवन साधु उववन्न रमन जिनु, हिय उववंन षट् रमन पयं । सहयार उवन सुइ सहज रमन जिनु, हिय उवन दिप्ति सुइ दिस्टि जिनं ॥ अन्मोय न्यान सिय धुव रमनं ॥ १ ॥ भवियन उव उवन रंजु भय षिपक रमन जिनु, सुइ नंद नंद जिन नंद सुयं । हिय उवन रंजु तं अमिय रमन जिनु, तं नंद नंद सुइ नंद मयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ ममल पयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ न्यान विन्यान सुइ समय सु रमनं, सम समय संमत्तु सु धुव रमनं । सम दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द रमन पिउ, सम समय संमत्तु सु सिद्धि जयं ॥ अन्मोय तरन सुइ मुक्ति जयं ॥ ३ ॥ ॥भवियन.॥ उव उवन उदेसु उवन सुइ रमनं, उव उवन विंद हिय सहै समं । (२९८) Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उत्पन्न विली हिय भुक्त विली जिनु, सह गुपित विली उव विनंद विली ॥ अन्मोय उदेस सु परम पयं ॥ ४ ॥ ॥भवियन.॥ अर्थति अर्थह अर्थ रमन जिनु, अर्थ समय सम उवन पयं । सम समय दिगंतह सुयं रमन जिनु, तं गम्य अगम्य अर्थग सुयं ।। तं अमिय रमन जिनु सिद्धि जयं ॥ ५ ॥ ते अभय न ॥भवियन. ॥ विन्यान वीर्य तं विंद रमन जिनु, राय विलय जनरंजु सुयं । नंतानंतु सु न्यान रमन जिनु, तं न्यान वीर्य सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन अन्मोय तरन जिन मुक्ति जयं ॥ ६ ॥ ॥भवियन.॥ सूष्यम परिनाम सु षिपक रमन जिनु, विपि कम्मु नंत भय विलय सुयं । पर्जय जन कल मन अंधु सु विलयं, अन्मोय न्यान धुव मुक्ति जयं ॥ दिपि दिस्टि अन्मोय सु ममल पयं ॥ ७ ॥ ॥भवियन.॥ सुयं सु लषियं अलष रमन जिनु, गम्य अगम्य सुइ सूत्र जयं । तं इस्ट उस्ट उत्पन्न रमन जिनु, उत्पन्न गमिय सुइ सूत्र जयं ॥ अन्मोय दिस्टि सुइ सूत्र जयं ॥ ८ ॥ ॥भवियन.॥ विन्यान न्यान विवहार रमन जिनु, पर पर्जय विलय सु धुव रमनं । अर्थ तिअर्थ दिप्ति रै रमनं, भय सल्य संक विलयंतु सुयं ॥ अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ ९ ॥ ॥भवियन.॥ न्यानंकुर उत्पन्न रमन जिनु, लघु दीर्घ नहु दिस्टि जयं । अन्मोय न्यान सुइ दिप्ति दिस्टि रै, आदं आद सुइ सब्द जयं ॥ अन्मोय न्यान अवगहै जिनं ॥ १० ॥ ॥भवियन.॥ अहु परम तत्तु परमप्प परम जिनु, परम वयन तं परम पयं । तं परम उत्तु उदेसु परम पय, परम रमन रस गम अगमं ॥ केवल सुइ वयन सु सिद्धि जयं ॥ ११ ॥ ॥ भवियन.॥ (२९९) Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी परम सु परम परम जिन रमनं, परम तत्तु पद विंद रमं । परम सु लष्य अलष्य परम जिनु, परम विंद रै उवन समं ॥ अन्मोय अमिय रस सिद्धि जयं ॥ १२ ॥ ॥भवियन.॥ दंसन दह समय समय धुव रमनं, रमन विंद रस अमिय सुयं । भय षिपनिक तं ममल रमन जिनु, कमल रमन जिन जिनय जिनं ॥ अन्मोय तरन सुइ मुक्ति जयं ॥ १३ ॥ ॥भवियन.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विन्यान रंजु जिन रमन जिनय जिनु, सहजनंद तं सहज रयं ॥ भवियन ममल रमन जिननाथ सुर्य ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ पय मिलिय पयं पय अर्थ रमन जिनु, अर्थ सदर्थ तिअर्थ जिनु । सम समय संजुत्तौ अर्थ सु रमनं, सहयार जिनय जिनु अर्थ पयं ॥ भवियन कमल रमन जिनु ममल पयं ॥ ३ ॥ ॥सहयार.॥ अवयास अर्थ सुइ नंत परम जिनु, तं नंत नंत अन्मोय पयं । अन्मोय अर्थ सुइ षिपक रमन जिनु, पिपि नंत कम्मु जिनु मुक्ति जयं ॥ भवियन अन्मोय दिप्ति दिस्टि सिद्धि जयं ॥ ४ ॥ ॥ सहयार.॥ अर्थ उवन्नउ कमल रमन जिनु, लंक्रित विन्यान न्यान रमनं । मै मूर्ति तं नंत रमन जिनु, अन्मोय षिपिय तं मुक्ति जिनं ॥ भवियन तं विंद रमन सुइ जिनय जिनं ॥ ५ ॥ । सहयार.॥ (९१) न्यान रमन फूलना गाथा १८४९ से १८५९ तक (विषय : ज्ञान पांच) उव उवन उवन जिनु अषय रमन जिनु, सुयं रमन सुर सुइ उवनं । विंजन विन्यान न्यान सुइ रमनं, अष्यर सुर विजन परम पयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ १ ॥ सहयार रंजु वैदिप्ति रमन जिनु, तं चेयनंद सुइ चेय जिनु । ३००) Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी मै मूर्ति तं अर्थ रमन जिनु, अर्थ तिअर्थ सु ममल पयं । उववन्न रंजु भय षिपक रमन जिनु, नंद रूव मति ममल जयं ॥ भवियन मति समय रमन केवल उवनं ॥ ६ ॥ ॥सहयार.॥ श्रुतं सुइ अर्थ सब्द रमन जिनु, असब्द गुपित सुइ सब्द जिनं । श्रुतं सुइ लषियं अलष अगम जिनु, तं रंज रमन नंद श्रुत न्यान सुयं ॥ भवियन श्रुत अरुह रमन षट् केवल कलनं ॥ ७ ॥ ॥सहयार.॥ अवहिं तं अवहि गुपित रमन जिनु, गुपित न्यान तं अवहि पयं । गुपितं लोय लोय जिनु रमनं, अवहि परम केवलीय जयं ॥ भवियन अन्मोय तरन जिन जिनय जिनं ॥ ८ ॥ ॥सहयार.॥ मनपर्जय तं जानु जिनय जिनु, कम्मु विलय तं ममल पयं । रिजु विपुलं दिप्ति दिस्टि रमन जिन, मनु समय न्यान केवलि उवनं ॥ भवियन उत्तम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ९ ॥ ॥ सहयार.॥ भय षिपनिक तं नंत नंत जिनु, अमिय रमन सुइ ममल पयं । रंज रमन आनंद जिनय जिनु, केवल सुइ उवन सु सिद्धि जयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ मुक्ति जयं ॥ १० ॥ ॥ सहयार.॥ तं तारन तरन सहाइ ममल रस, भय षिपिय अमिय रस जिनय जिनं । तं विंद रमन सुड़ कमल कलिय जिनु, अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन भय षिपिय ममल रस मुक्ति जयं ॥ ११ ॥ ॥सहयार.॥ (१२) तेरह विधि चारित्र फूलना गाथा १८६० से १८७५ तक (विषय: तेरह प्रकार का चारित्र) चरन सहाइ तं चरन रमन जिनु, चरन चरिय जिननाथ सुयं । दर्सन तं न्यान चरन सुइ चरियौ, वीर्ज जिन चरन सु मुक्ति जयं ॥ भवियन तरन चरन जिनु सिद्धि जयं ॥ १ ॥ जिन जिनय रंजु जिननाथ रमन जिनु, परमनंद तं परम पयं । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी तं रंज रमन आनंद रमन जिनु, अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ।।। भवियन तं विंद रमन उव उवन समं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ हिंसा सहयार रमन पर्जय रै, दिप्ति दिस्टि पर्जय रमनं । अप्प सुभाव हिय न्यान रमन जिनु, अहिंसा विति पर्जय विलयं ॥ भवियन भय षिपनिक सल्य संक विलयं ॥ ३ ॥ || जिन. ॥ अनित संसार सरनि सुइ विलयं, तं अमिय रमन विष विलय जिनु । नितं तं नित न्यान दिपि रमनं, त्रित दिस्टि अत्रित पर्जय विलयं ॥ भवियन अनित भय षिपिय नित भवु सुयं ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ स्तेय रमन जिन वयन विरय सुइ, पर पर्जय रमन सु पद विरयं । सहकार स्तेय सु पर्जय विलयं, भय सल्य संक गलिय पय परम पदं ॥ भवियन अन्मोय तरन स्तेय विलं ॥ ५ ॥ || जिन. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अबंभ भाव पर्जय रै रमनं, पर पर्जय विलय सु बंभ रयं । जनरंजन राय कलरंजु विलय जिनु, मनरंजु विलय मोहंधु विलं ॥ भवियन तं न्यान अन्मोय सु बंभ पयं ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ परिग्रह प्रमान सु पर्जय विलयं, घाय कम्मु विलय मिथ्या विलयं । न्यान अन्मोय सु अमिय रमन जिनु, भय षिपिय ममल पय सिद्धि जयं ॥ भवियन अन्मोय दिप्ति पर्जय विलयं ॥ ७ ॥ ॥जिन. ॥ मन सहाइ पर पर्जय रमनं, गुपित न्यान पर्जय विलयं । गुपित दिस्टि तं गुपित सब्द जिनु, मन गुप्ति उवन सुइ न्यान मयं ॥ भवियन मन गुप्ति न्यान सुइ ममल पयं ॥ ८ ॥ ॥ जिन. ॥ वयन रमन पर पर्जय सहियौ, गुप्ति वयन सुइ न्यान रयं । गुपित रमन तं गुपित वयन रे, गुप्ति वयन रै ममल पयं ॥ भवियन गुप्ति वयन जिन वयन रमं ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी काय क्रांति कल जाति रमन रै, कल मनरंजु सु विलय काय गुप्ति सुइ न्यान क्रांति है, सुयं । अन्मोय न्यान क्रांति ममल रयं ॥ भवियन अन्मोय तरन क्रांति मुक्ति जयं ॥ ईर्ज सुभाउ ईर्ज पंथ रमन जिनु, क्रांति कमल रै भय सल्य संक पर्जय रय विलयं, भाषा अर्थ १० ॥ ॥ जिन. ॥ रयं । ईर्ज पंथ जिन् सिद्धि जयं ॥ भवियन अन्मोय ईर्ज सुइ मुक्ति पयं ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ उवन हिययार रमन जिनु, भय विलय भाष जिन जिनय जिनं । अन्मोय न्यान विन्यान रमन जिनु, एषना ऐ एय न्यान सुइ रमनं, षिपिय कम्मु तिविहेन पर्जय भय सल्य संक विलयं ॥ भवियन भय षिपिय भाष सुइ सिद्धि जयं, भवियन अन्मोय समिदि सुइ मुक्ति जयं ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ जयं । ३०३ ऐ ऐन सुभाव आद श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सहावेन न्यान रै रमनं, निषिपिय कम्मु जनरंजु न्यान विन्यान सु ममल रमन जिनु, भय सल्य संक विलयंतु भवियन आदान निषेप जिनु मुक्ति प्रति सुयं सुइ दर्सिउ, दिप्ति दिस्टि सुइ रमन जिनं ॥ भवियन ऐषन सुइ समिदि सु मुक्ति जयं ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ अस्थाप परम जिनु रमनं, परम भाव सुइ सुयं जयं । परम तत्तु तं अर्थ तिअर्थ रमन जिनु, सुयं । सुयं ॥ जयं ॥ १४ ॥ ॥ जिन. ॥ भय षिपिय सिद्धि सुइ रमन जयं ॥ भवियन प्रति अस्थाप परम जिनु सिद्धि जयं ॥ १५ ॥ ॥ जिन ॥ मूल गुनं तं नंत नंत जिन रमनं, रमन रंजु जिननाथ साधु सुद्ध धुव रमन परम जिनु, सुयं । परम सुभाव सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ १६ ॥ ॥ जिन. ॥ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१३) अतिसय चौतीस फूलना गाथा १८७६ से १९१३ तक (विषय! अरिहंत भगवान के ३४ अतिशय) उव उवनं उवन उवन सुइ रमनं, रमन विंद सुइ रमन जयं । विन्यान विंद सुइ सहज रमन जिनु, अन्मोय न्यान तं ममल पयं ॥ __ भवियन कमल रमन जिन जिनय जिनं ॥ १ ॥ उव उवन पयं जिननाथ सुयं, जिन जिनयति नंत अनंत रयं । पर्जय भय गलिय ममल पय मिलियं, भय षिपिय अमिय रस परम पयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ तं अर्क सु अर्क अर्क सुइ रमनं, अर्क अमिय रस रमन सुयं । तं अर्थ स अर्थ अर्थ सुइ दर्स, तं विंद रमन विन्यान पयं ॥ भवियन वैदिप्ति रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ३ ॥ ॥ उव उवन.॥ नितं तं नित नित रै रमनं, अयसय तं लोयलोय भुवनं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जं नितय नित त्रित पय कलियं, तं पय रवनं सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ४ ॥ ॥उव उवन.॥ नितं तं नंत नंत रै रमनं, उव उवन विली सुइ विषय विलं । भुक्त विनंद विली सुइ विलयं, अयसय सुइ ब्रित सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन जिनरंज रमन जिनु मुक्ति जयं ॥ ५ ॥ ॥ उव उवन.॥ निरु निस्चन मिलिय मै रमनं, न्यान विन्यान सुइ उवन पयं । मिस्टं तिअर्थ तं इस्ट ममल पय, उत्पन्न नंत धुव सिद्धि जयं ॥ भवियन धम्म रमन तं परम पयं ॥ ६ ॥ ॥ उव उवन.॥ षिपनिक सुइ रमन रमिय गो उवनं, धीर वीर विन्यान रयं । अयसय तं रमन नंत नंताहिउ, विन्यान वीय सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ७ ॥ ॥ उव उवन.॥ (३०४ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी आदि संहरन जिनय जिन उवनं, उववन्न न्यान सुइ ममल पयं । वज्रनराच न्यान सुइ रमनं, भय सल्य संक विलयंतु सुयं ।। भवियन विन्यान रमन सिय सिद्धि जयं ॥ ८ ॥ ॥उव उवन.॥ आदि अनादि स्थान सुइ रमनं, परिनामु नंत सु ममल पयं । दिप्ति दिस्टि सुइ रमन जिनय जिनु, अयसय अन्मोय सु सिद्धि पयं ॥ भवियन कमल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ९ ॥ ॥उव उवन.॥ सुह असुहं च रमन सुइ विलयं, सुद्ध रमन संसुद्ध पयं । अन्मोय विरोह सुयं सुइ गलियं, अयसय जयवंत सु ममल पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ १० ॥ ॥उव उवन.॥ सुयं सुस्कंध सुयं सुइ रमनं, अस्थान स्थान परिनामु रयं । नंतानंत सु परिनै ममलं, अयसय सुइ नंत सु सिद्धि पयं ॥ भवियन तं विंद रमन सुइ मुक्ति जयं ॥ ११ ॥ ॥ उव उवन.॥ सोइ लष्यन सुइ लषिय षिपक जिनु, नंतानंत सु ममल पयं । अंग दिगंतह अर्थ अर्थ हिउ, अन्मोय तरन सुइ सिद्धि पयं ॥ भवियन अयसय सुइ नंत सु लषिय पयं ॥ १२ ॥ ॥उव उवन.॥ नंतानंत सु वीरज रमनं, तं न्यान रमन अन्मोय पयं । विन्यान वीय तं नंत नंताहिउ, भय सल्य संक विलयंतु सुयं ॥ भवियन अयसय सुइ रमन सु मुक्ति पयं ॥ १३ ॥ ॥ उव उवन.॥ हितमित परिनै कोमल रमनं, रमन विंद सुइ परम पयं । लघु दीर्घ नहु ऊंच नीच पय, विन्यान रमन तं मुक्ति पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ १४ ॥ ॥ उव उवन.॥ सहजोपनीत तं सहज रमन जिनु, सहजनंद तं नंद सुयं । नंतानंत सु न्यान रमन सुइ, सहज अन्मोय सु सिद्धि पयं ॥ भवियन अयसय नंत सु सहज जयं ॥ १५ ॥ ॥ उव उवन.॥ (३०५) Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी सुयं सुभीष्य सुयं सुइ सुष्यम, सुयं षिपति सुइ न्यान पयं । सुव सुयं सु गम्य अगम्य सु रमियौ, सब्द दिस्टि सुइ मुक्ति पयं ॥ भवियन अयसय सुइ रमन सु सिद्धि जयं ॥ १६ ॥ ॥उव उवन.॥ बाधा विलय अभय भय गलियं, भय षिपनिक सुइ भव्वु रयं । न्यान विन्यान सु विंद रमन जिनु, अयसय सुइ अभय सु सिद्धि सुयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ १७ ॥ ॥ उव उवन.॥ गगन सु नंतानंत जिनय जिनु, गम्य अगम्य परिनाम धुवं । तं नंत रमन सुइ न्यान गमन जिनु, गम्य अगम्य अयसय ममलं ॥ भवियन चेतन सुइ रमन सु मुक्ति पयं ॥ १८ ॥ ॥उव उवन.॥ इन्द्री विषय अहार सु विलयं, न्यान अहार सु रमन पयं । बाधा विलय गलिय सुइ विषयं, न्यान विन्यान सु रमन पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ १९ ॥ ॥ उव उवन.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चेतन सुइ रमन रमिय जिन उत्तं, नंत चतुस्टै रमन पयं । परिनाम परमिस्टि इस्टि सुइ दर्स, नंत समय तं ममल पयं ॥ भवियन कमल रमन अयसय ममलं ॥ २० ॥ ॥ उव उवन.॥ सर्वन्य सर्व विधि अर्थ तिअर्थह, अंगदि अंगह रमन सुयं । सुर्य सुभावे सुयं रमन जिन, सुयमेव सु स्वामी नंत पयं ॥ भवियन वैदिप्ति रमन सुइ सिद्धि पयं ॥ २१ ॥ ॥ उव उवन.॥ छाया रहित न्यान विन्यानह, सुयं रमन जिनु सुयं रमै । सुर्य सु लषियौ सुयं षिपक जिनु, दिपि दिप्ति दिस्टि सुइ न्यान रमं ॥ भवियन अमिय रमन विष गलिय जिनय जिन सिद्धि जयं ॥ २२ ॥ ॥ उव उवन.॥ उत्पन्न न्यान तं देइ दिप्ति जिनु, देव दिस्टि तं ममल पयं । दिप्ति दिस्टि तं नंत नंताहिउ, विन्यान दिप्ति तं दिस्टि सुयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ २३ ॥ ॥ उव उवन.॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी न्यान विन्यान सु रमन परम जिनु, नष केस क्रितु तं सुइ विलयं । न्यान क्रांति सुइ रमन रयन जिनु, अन्मोय तरन सुइ विंद रमं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ २४ ॥ ॥उव उवन.॥ मन उवन सहाव सु विलय ममल जिनु, न्यान विन्यान सु मन विलयं । अन्मोय न्यान अधिमोय जिनय जिनु, भय सल्य संक विलयंतु सुयं ॥ भवियन अयसय अधिमोय सु सिद्धि जयं ॥ २५ ॥ ॥उव उवन.॥ सर्वन्य हितं तं न्यान रमन जिनु, अन्मोय न्यान सुइ समय जयं । न्यानेन न्यान सम समय संजुत्तउ, मै मूर्ति तं उवन सुयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ २६ ॥ ॥उव उवन.॥ सिद्धं सिद्ध विसुद्धि रमन जिनु, सिद्धि सुयं सुइ रमन सुयं । तं परम न्यान उत्पन्न पुहुप रै, मुक्ति रमन तं फल उवनं ॥ भवियन वीय विन्यान सु मुक्ति पयं ॥ २७ ॥ ॥ उव उवन.॥ मै मूर्ति हिय रमन परम जिनु, महिय देस उत्पन्न मयं । ममल विंद तं रमन समय जिनु, कमल रमन तं मुक्ति पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ २८ ॥ ॥ उव उवन.॥ वायं विन्यान सु वयन रमन जिनु, सुयं स्कंध धुव रमन पयं । जोयन जोजंति दिप्ति सुइ रमनं, पंचबीस विन्यानरयं ॥ भवियन परमिस्टि इस्टि सुइ सिद्धि जयं ॥ २९ ॥ ॥ उव उवन.॥ नंद अनंद सुइ नंद परम जिनु, चेयनंद सहजानंद सुयं । परमनंद सुइ नंद जिनय जिनु, जिनयति सुइ जय जय सिद्धि जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ३० ॥ ॥ उव उवन.॥ धुव लंक्रित धुव रमनु जिनय जिनु, धूलि कंट तं सुइ विलयं । नंतानंत सु दिप्ति रमन जिनु, तिन झड़प सुयं आवर्न विलं ॥ भवियन जिनु विंद रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ३१ ॥ || उव उवन.॥ (३०७) Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी गम्य अगम्य तं नंत गगन रुड़, ___ गंध रूव तं सुइ विलयं । सुयं स्कंध सुयं धुव रमनं, दिप्ति दिस्टि सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ३२ ॥ ॥उव उवन.॥ पदम प्रभ पद परम रमन जिनु, पद परम विंद विन्यान समं । भय सल्य संक सक राग विलय सुइ, . उत्पन्न परम पद मुक्ति जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ३३ ॥ ॥उव उवन.॥ अवयासं तं नंत जिनय जिन उवनं, ममल रमन तं सुइ रमनं । निसंक रूव तं अमिय रमन जिनु, अवयास ममल सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ३४ ॥ || उव उवन.॥ अंग दिगंत सु नंत ममल जिनु, नंतानंत सु धुव ममलं । भय षिपनिक तं अमिय रमन जिनु, तं विंद रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन धम्म रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ३५ ॥ । उव उवन.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी देव दिस्टि उव उवन जु दाता, अन्या सह संसय सहियं । परम न्यान तं परम रमन जिनु, परम अनंत सु परम रयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ३६ ॥ ॥उव उवन.॥ धम्मं धरयति अर्थ रमन जिनु, अर्थ तिअर्थ सु रमन सुयं । उव उवन हिययार सु सहय सहज जिनु, धम्म ममल रै सिद्धि जयं ॥ भवियन तं विंद कमल रस सिद्धि सुयं, भय षिपिय भव्वु तं मुक्ति पयं ॥ ३७ ॥ ॥ उव उवन.॥ अयसय जयवंतु सुर्य सुइ उवनं, जय जय जय जय सुइ सिद्धि जयं । दिप्ति दिस्टि सब्द विवान समय मय, अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन सिह समय अन्मोय सु मुक्ति पयं ॥ ३८ ॥ || उव उवन.॥ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१४) अस्ट प्रतीहार फूलना गाथा १९१४ से १९२५ तक (विषय : आठ प्रतिहार्य का वर्णन) अयं सुभाव जिनय जिन उवनं, उववन्न हिययार सहयार रमन जिनु । पर्जय तं विलय असोय सुर्य जिनु, भय विलय नंत सुइ सिद्धि जयं ॥ भवियन दिस्टि सब्द भय विलय सुयं ॥ १ ॥ उव उवन पयं जिननाथ सुयं, जिन जिनयति नंत अनंत रयं । पर्जय भय गलिय ममल पय मिलियं, भय षिपिय अमिय रस ममल पयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ सुयं रमन उत्पन्न दिस्टि जिनु, उव उवन दिप्ति उव उवन रमं । कम्मट्ठ गंठि भय सल्य विलय जिनु, निसंक सब्द दिपि मुक्ति पयं ॥ भवियन तं ममल रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ३ ॥ ॥उव उवन.॥ दिपि दिप्ति दिप्ति आयरन दिस्टि जिनु, धुव ममल रमन निय नित सुयं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिव्यधुनि नंत नंत जिन रमनं, भय विलय सिद्ध सुइ सिद्धि रमं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ४ ॥ ॥ उव उवन.॥ चौसठि चमर आयरन चरन जिनु, गुपित गठि भय विलय सुयं । तं गुपित न्यान अन्मोय चरन जिनु, तं विंद रमन जिन सिद्धि जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ५ ॥ ॥ उव उवन.॥ भय सल्य विलय पर्जय रय गलियं, उववन्न न्यान हिय उवन पयं । सहयार समय भय विलय जिनय जिनु, भामण्डल रमन सु सिद्धि जयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ६ ॥ ॥ उव उवन.॥ आसन सिंहासन रमन परम जिनु, न्यान अन्मोय सु गुपित रयं । गुरु गुपित विन्यान सु ममल रमन जिनु, भय षिपिय रमन जिनु सिद्धि जयं ॥ भवियन अमिय रमन विष विलय जिनय जिनु सिद्धि जयं ॥ ७ ॥ ॥ उव उवन.॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी नंद आनंद नंद जिन रमनं, दुंदुही सब्द सुइ जिनय जिनं । विवान दिप्ति सुइ सब्द समय सिहु, अन्मोय तरन सम सिद्धि धुवं ॥ भवियन तं विंद अमिय रस सिद्धि जयं ॥ १२ ॥ ॥ उव उवन.॥ श्री ममल पाहुइ जी षट् कमल रमन तिअर्थ गमन जिनु, क्रांति वयन मन रमन पयं । छत्र त्रय उवन उवन हिययारह, सहयार उवन सुइ छत्र त्रयं ॥ भवियन तं सेत नील आरक्त छत्र जिनु सिद्धि जयं ॥ ८ ॥ || उव उवन.॥ दिप्ति दिव्य आयरन दिस्टि जिनु, उत्पन्न दिप्ति तं दिव्य धुनी । धुव उवन ममल तं ममल रमन जिनु, भय गंठि विलय तं परम पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ९ ॥ ॥उव उवन.॥ प्रतीहार रमन तं नंत परम जिनु, तं परम तत्तु तिअर्थ रमं । मान प्रमान तं मान रमन जिनु, जनराग मान गलि जिनु रमनं ॥ भवियन तं अमिय रमन विष विलय जिनय जिन सिद्धि जयं ॥ १० ॥ ॥उव उवन.॥ दुंदुहि उत्पन्न दुंदुहि सब्द रमन जिनु, दिप्ति सब्द तं नंत पयं । अप्प इच्छ रमन आयरन रमन जिनु, नितंति नित आनंद मयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ११ ॥ ॥ उव उवन.॥ (९५) अहंत सर्वन्य रमन फूलना गाथा १९२६ से १९४१ तक (विषय : चार अनंत चतुष्टय) उव उवन न्यान विन्यान रमन जिनु, रमन विंद उववन्न समं । उव उवनं लोक लोक सुइ उवनं, अन्मोयं न्यान अनंत धुवं ॥ भवियन तं नंत न्यान सुइ मुक्ति जयं ॥ १ ॥ उव उवन पयं जिननाथ सुयं, जिन जिनयति नंत अनंत रयं । पर्जय भय गलिय ममल पय मिलियं, भय षिपिय अमिय रस परम पयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ दिपि दिप्ति दिप्ति आयरन दर्स जिनु, तं दिप्ति अनंतानंत सुयं । (३१०) Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तं दर्स नंत जिनु संक विलय पुनु, तं नंत दर्स जिन रमन पयं ॥ भवियन तं दर्स नंत जिनु सिद्धि जयं ॥ ३ ॥ ॥उव उवन.॥ विन्यान वीय तं नंत रमन जिनु, तं नंतानंत सु रमन पयं । गुपित न्यान विन्यान रमन सुइ, भय विलय वीय तं मुक्ति पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ४ ॥ ॥उव उवन.॥ तं नंत सौष्य तं नंत रमन जिनु, सूष्यम परिनाम सु नंत सुहं । सुष्यम सुइ षिपिय सु नंत नंत रै, नंत सौष्य सुइ ममल पयं ॥ भवियन सुष्यम सुइ रमन सु सिद्धि जयं ॥ ५ ॥ ॥उव उवन.॥ नंत चतुस्टय सुर्य रमन जिनु, गुन नंत नंत छयाल रयं । तं नंतानंत उवएस रमन जिनु, अन्मोय समय सिहु सिद्धि जयं ॥ भवियन अमिय रमन रस सिद्धि जयं ॥ ६ ॥ ॥ उव उवन.॥ इस्टं दर्सति इन्द्र रमन जिनु, इच्छ रमन आछर्य सुयं । एरापति परम तत्तु आयरनं, आयरन सु अर्थ तिअर्थ सुयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ७ ॥ ॥ उव उवन.॥ सुइ समय समय सुइ समय रमन जिनु, न्यान समय सुइ समय पयं । गुरु लघु दिस्टि विलय सम रमनं, सम समय दिस्टि जिननाथ सुयं ॥ भवियन भय षिपिय रमन सुइ सिद्धि जयं ॥ ८ ॥ ॥ उव उवन.॥ सम समय संजुत्तु श्रेनि रमन जिनु, अन्मोय समय सुइ न्यान पयं । सुइ तारन तरन विवान समय सुइ, अन्मोय तरन सम सिद्धि जयं ॥ भवियन भय षिपिय अमिय रस मुक्ति जयं ॥ ९ ॥ ॥उव उवन.॥ अर्क अर्क सुइ अर्क रमन जिनु, अर्क भाव सुइ अर्क धुवं । अर्क विंद विन्यान जिनय जिनु, अर्क अन्मोय सु परम पयं ॥ भवियन ममल रमन सुइ मुक्ति जयं ॥ १० ॥ ॥ उव उवन.॥ (३११) Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी विन्यान विंद उव उवन विंद रै, हिययार विंद उव हिय रमनं । सहयार विंद हिय उवन उवन पै, विंद रमन सुइ उवन समं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ११ ॥ ॥ उव उवन.॥ आगंतु रमन रै रमन परम जिनु, हिययार रमन सुइ सहै रमं । सहयार रमन तं गुपित उवन पौ, हिय उववन्न सु सुन्न समं ॥ भवियन उव उवन दिप्ति सुइ सब्द सुयं ॥ १२ ॥ ॥उव उवन.॥ हिययार रमन रस अमिय रमन जिनु, ____ उव उवन दिप्ति उव उवन जयं । उववन्न दिप्ति सहयार रमन जिनु, भय पिपिय रमन जिनु समय समं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ १३ ॥ ॥उव उवन.॥ हुवयार रमन हुव उवन सब्द जिनु, हुव दिप्ति उवन हिययार रमं । हुव दिप्ति रमन हुव सब्द रमन जिनु, हुव उवन पियं सुइ मुक्ति जयं ॥ भवियन अमिय रमन विष विलय जिनय जिनु सिद्धि जयं ॥ १४ ॥ ॥ उव उवन.॥ अर्क विंद आगंतु रमन जिनु, हिय हुवयार रस रमन जयं । उव उवन हिययार सहयार रमन जिनु, सहयार रमन उव हिय रमनं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ १५ ॥ ॥उव उवन.॥ अहंत सर्वन्य दिप्ति सुइ उवनं, __ दिस्टि दिप्ति रमन तं जिनय जिनु । तं तारन तरन सहाइ सहज जिनु, अन्मोय समय सिहु सिद्धि जयं ॥ भवियन तं विंद रमन सम मुक्ति पयं ॥ १६ ॥ ॥ उव उवन.॥ (१६) सिद्ध पचीसी फूलना गाथा १९४२ से १९६६ तक (विषय : सिध्द के आठ गुण) जिन जिनयति जिनय जिनेंदु जिनय पौ जिनय मऊ, जिन जिनियौ कम्मु अनंतु कमल रुइ परम पऊ । कमल कलिय जिन उत्तु न्यान रस रमन पऊ, तं विंद रमन विन्यान रमन रस मुक्ति गऊ ॥ १ ॥ उव उवनउ है उवन स उत्तु उवन मै उवन रई, उव उवनउ न्यान विन्यान परम रस परम पई । (३१२) Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी परम तत्तु दर्सतु परम जिन परम पऊ, परम विंद रस रमनु कमल कलि मुक्ति गऊ ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जिन उत्तु उवन्न उवन्न उवन्नउ समय मऊ, तं न्यान विन्यान संजुत्तु सु समय स उत्त पऊ । सम समय भाउ दर्सतु चतुस्टै सहिय रऊ, सुइ नंतानंतु जिनुत्तु सु समय संमत्तु पऊ ॥ ३ ॥ ॥उव उवन.॥ संमत्तु संमत्तु संजुत्तु सु समय स उत्तियऊ, ___सम समय सरन जिन उत्तु संमत्तु सु ममल पऊ । अन्मोय न्यान सुइ भेउ विन्यान सु समय पऊ, सम समय चतुस्टै संजुत्तु सु लषियी परम पऊ ॥ ४ ॥ ॥उव उवन.॥ सम समय जिनुत्तु संमत्तु उवन्नह उवन मऊ, उव उवन हिययार संजुत्तु अरुह रुइ रमन पऊ । तं अरुह भाउ सम उत्तु उवन रै दिस्टि मऊ, सहयार भाऊ उव लषु सु साहिउ नंत पऊ ॥ ५ ॥ ॥उव उवन.॥ हिययार विवान पौ समय सु साहिउ परम पऊ, पद परम तत्तु दसैंतु सु समय संजुत्तु पऊ । सम समय भाउ उवलषु सु समय सु दिस्टियऊ, अरुह भाउ दर्सतु सु रमनह इस्टियऊ ॥ ६ ॥ ॥ उव उवन.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अरुह रमन जिन उत्तु सु नंतानंतियऊ, सुइ रमन अर्क जिन उत्तु सु ममलह ममल पऊ । सु अर्क अनंतानंत नंत जिन उत्तियऊ, तं नंत कम्म विलयंतु सु मुक्ति संजुत्तियऊ ॥ ७ ॥ ॥ उव उवन.॥ विन्यान विंद जिन उत्तु सु रमनह रयन पऊ, सु सुर विजन स सहाउ सु रमन संजुत्तियऊ । आगंतु अनंतु जिनुत्तु सु जिनय जिनेन्द पऊ, आगंतु उवन्न उवन्न सु रमनह परम पऊ ॥ ८ ॥ ॥ उव उवन.॥ हिययार हिययार जिनुत्तु सु समय हिययार मऊ, हिययार उवन्न रमन्तु सु रमनह परम पऊ । हुवयार रमन जिन उत्तु सु हुव हुवयार पऊ, हुवयार नंतु विलसंतु सु रमनह मुक्ति गऊ ॥ ९ ॥ ॥ उव उवन.॥ तं रमनह रमन रमंत् रयन पौ रमिय सुइ, रमियौ न्यान विन्यान परम पै रमन पई । रम रमन विंद रस रमिय सु रमिय जिनुत्तियऊ, सु रमियौ लोय अलोय कमल रुइ मुक्ति गऊ ॥ १० ॥ ॥ उव उवन.॥ सुइ रमन नंद आनंद सु रमन पयासियऊ, सु रमियौ न्यान सहाउ कम्मु मल गलि गयऊ । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सम्मत्त सहाउ सुइठु सु चेयन नंद मऊ, चेय विंद विन्यान सु विंद रस रमन रऊ ॥ ११ ॥ ॥उव उवन.॥ सम्मत्त भाव जिन उत्तु सु समय स चेयइयऊ, चेयन नंद सनंद सहज रै समय मऊ । सु सहज नंद आनंद सुनंदिउ ममल पऊ, सु परमनंद जिन उत्तु सु परम पय समय मऊ ॥ १२ ॥ ॥ उव उवन.॥ सम्मत्त भाव जिन कहिय सु समयह समय पऊ, सु समय सहाउ संजुत्तु न्यान पौ समय मऊ । सु परमनंद आनंद सुनंदिउ समय मऊ, सु समल कम्मु विलयंतु सु ममलह ममल पऊ ॥ १३ ॥ ॥ उव उवन.॥ सम्मत्त भाव सुइ लषु सु जिनय जिनुत्तियऊ, जिनियौ कम्म सहाउ सु ममल स उत्तियऊ । सम्मत्तु स उत्तु सु इस्टु सु समय सरन सहियऊ, सु तरन विवान संजुत्तु समय जिनु मुक्ति गऊ ॥ १४ ॥ ॥उव उवन.॥ सम्मत्त भाव सुइ उवनु सु उवनह उवन मऊ, उववन्न विंद दर्संतु सु समय संजुत्त पऊ । तं नंतानंत सु न्यान न्यान पौ न्यान मऊ, उववन्न हिययार सहाउ उवन्नु सु न्यान पऊ ॥ १५ ॥ । उव उवन.॥ अष्यर अषय सउत्तु सु अष्यर रमिय पऊ, सु सुर विंजन स सहाउ सु रमनह परम पऊ । अर्थ तिअर्थ संजुत्तु सु उत्तु सु रमन रई, अन्मोय न्यान सुइ षिपक सु मुक्ति सु सिद्ध रई ॥ १६ ॥ ॥ उव उवन.॥ सु दर्सन दर्सिय नंतु सु लोयालोय मऊ, सु अर्क विंद विन्यान सुयं जिनु दर्सियऊ । सु दर्सिउ नंतानंत अर्थ सम अर्थ पऊ, सु अंगदि अंग अनंतु परिनाम सु नंत मऊ ॥ १७ ॥ ॥ उव उवन.॥ वीरिय वीय अनंत अनंत सु वीय विन्यान पऊ, सु न्यान अन्मोय अनंतु सु गम्य अगम्य पऊ । सु चरन सु चरइ अनंतु गुपित रुइ गुपित रई, __भय सल्य संक विलयंतु ममल रै वीय पई ॥ १८ ॥ ॥ उव उवन.॥ सुइ सुद्धह सुद्ध सहाउ सुद्ध धुव रमन मई, सुयं सुभाउ सु लषु अलष पऊ अगम रई । सम समय सहाउ संजुत्तु सुद्ध रस रमन मऊ, सर्वंग सु अंगदि अंग सर्वन्य मै दिप्ति पऊ ॥ १९ ॥ ॥ उव उवन.॥ सु हेय अनंतानंतु सु उवनह उवन मऊ, सु हितमित परिनै जुत्तु सु कोमल परिनमऊ । (३१४) Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सु सिद्धह सुद्ध सहाउ सुद्ध रै रमन मऊ, उव उवन हिययार अनंतु सहयार सु रमन पऊ । सु तारन तरन सहाउ सु साहिय परम पऊ, अन्मोय न्यान सुइ तरन समय सिह सिद्धि गऊ ॥ २५ ॥ ॥ उव उवन.॥ श्री ममल पाहुइ जी सु न्यान विन्यान उवन्नु सु दिप्तिहि दिस्टि मऊ, सु दिस्टि दिप्ति सुइ सब्द सु हेयह मुक्ति पऊ ॥ २० ॥ ॥उव उवन.॥ अवगाहिय नंतानंतु दिस्टि रै सब्द मऊ, सयनासन समभाउ प्रेम रस अमिय मऊ । अवगाहन न्यान अन्मोय न्यान पय न्यान रऊ, सु न्यान न्यान उववन्न अवगाहन मुक्ति पऊ ॥ २१ ॥ ॥ उव उवन. । गुरुलहु समय स उत्तु सु समय सु साहियऊ, सम समय सरन जिन उत्तु सु गुरुलहु गाहियऊ । ऊंच नीच नहु दिलु सु समय सु सिद्धि मऊ, अन्मोय न्यान सुइ उत्तु ममल रस मुक्ति पऊ ॥ २२ ॥ ॥उव उवन.॥ सु अव्वावाह अनंतु सु बाधा विलय मऊ, सु भय षिपनिक है भव्वु अमिय रस रमन पऊ । भय सल्य संक विलयंतु सु बाधा विलय मऊ, सु नंत चतुस्टय जुत्तु अभय जिनु मुक्ति पऊ ॥ २३ ॥ ॥ उव उवन.॥ सु सिद्ध भाउ उवलद्ध सु साहिय सिद्ध पऊ, सम समय संजुत्तु जिनुत्तु जिनेन्द सु समय मऊ । सु दिप्ति दिस्टि सु सब्द सु हेय रस रमन रऊ, सिह समय संजुत्तु स उत्तु ममल रै सिद्धि रऊ ॥ २४ ॥ । उव उवन.॥ (९७) परमिस्टि तीसी गाथा गाथा १९६७ से १९९६ तक (विषय: विवान-५, अक्षर, स्वर, व्यंजन, कमल दल) परमिस्टि उवन उव उत्तं, उत्तं उव उवन उवन जिन दिटुं । जिन दिस्टि इस्टि सुइ समयं, समयं सुइ उवन केवलं न्यानं ॥ १ ॥ सुर्य सुइ उवन सु उवनं, उवनं सुइ उवन उवन मै उवनं । उवन कमल सुइ कर्न, उवनं अवयास कमल सुवनं च ॥ २ ॥ उवन सुयं सुइ ममलं, ममलं सुइ अर्क हियन सह समयं । समयं सुइ उवन सु नंतं, नंतं सुइ उव उवन हियं सहियं च ॥ ३ ॥ (३१५) Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उवन दिप्ति सुइ दिपियं, दिपियं सुइ दिस्टि दिपिय ममलं च । दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द, सब्दं अवयास सुवन सम कनँ ॥ ४ ॥ उवन हियं सम सहियं, सहियं सुइ उवन उवन हिय रमनं । अर्क अर्क सुइ उवनं, उवन सहावेन सिद्धि सम्पत्तं ॥ ५ ॥ उवन अनयर रमनं, अष्यर प्रवेस अनष्यरं उवनं । उवन विंद सुइ अर्क, अर्क सुइ विंद रमन ममलं च ॥ ६ ॥ उवन सुयं सुइ रमनं, रमनं सुइ रमन विंजनं ममलं । सुर विंजन उव उवनं, उवनं सुइ रमन सिद्धि सम्पत्तं ॥ ७ ॥ उवन सुयं सुर रमनं, सुर सहकारेन विजनं उवनं । विंजन सुर सुइ उवनं, उवनं सुइ अर्क विंद पद रमनं ॥ ८ ॥ पद रमनं पय रमनं, सिय धुव सुइ उवन पदं पय रमनं । पद रमनं पय गमनं, पय गमनं अर्थ उवन उवनं च ॥ ९ ॥ उवन उवन दिपि दिस्टि, उवनं सुइ सब्द प्रियो जिन जिनयं ।। सब्द क सुइ समयं, समयं सुइ उवन समय उवनं च ॥ १० ॥ उवन उवन अवयासं, अवयासं सुइ उवन उवन अवयासं । अवयास उवन सुइ कमलं, कमलं सुइ उवन केवलं ममलं ॥ ११ ॥ उवन पयं सुइ उवनं, आयरनं उवन सब्द सुइ कर्न । साहु उवन अवयासं, अहँ सुइ उवन हिययार रमनं च ॥ १२ ॥ हिययार कर्न सम समयं, _ समयं सुइ उवन दिस्टि दिप्तिं च । दिस्टि दिप्ति अवयासं, अवयासं सुइ उवन कमल ममलं च ॥ १३ ॥ कमल कलन सुइ उवनं, कलनं अवयास नंत सुइ नंतं । सिय धुव उवन सहावं, सिद्धं सुइ उवन कमल ममलं च ॥ १४ ॥ (३१६) Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी कमल सुयं सुइ उवनं, उवनं सुइ अषय रमन सुर रमनं । सुर विजन पय पयडं, अर्थं सुइ उवन कमल कलनं च ॥ १५ ॥ कमल उत्त जिन उत्तं, जिन वयनं जिन जिनय अवयासं । जिन अर्थ उवन हिय सहियं, कमलं सुइ उवन साहियं कर्न ॥ १६ ॥ कर्न समय हिय उवनं, हिय अवयास अर्थ सुइ रमनं । अर्थं अर्थ अनंतं, नंतं सुइ उवन कमल कर्न च ॥ १७ ॥ कमलं उवन सहावं, उवनं सुइ सुवन कर्न सुइ समयं । समय हिययार हुव उवनं, उवनं अवयास कलन कमलं च ॥ १८ ॥ कलन कमल जय जइयं, जैयं जय जयो सज्जनं सुवनं । सज्जन हिय हुव जैयं, जयवंतो अवयास कमल कलनं च ॥ १९ ॥ कमल कलन जै जैयं, दिप्ति जयं दिप्ति दिस्टि जय समयं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी समय सब्द सुइ पीऊ, उवनं सुइ सब्द कर्न सम ममलं ॥ २० ॥ कमल उवन सुइ कलनं, ____सज्जन जय जयो चरन सिय जयनं । चरन कलन सुइ सुवनं, कलनं सुइ कमल सज्जनं सुवनं ॥ २१ ॥ कलन कमल हिय उवनं, हिय हुव सुइ गहिर गुपित गुरुवं च । नो उववन्न सु कमलं, __ समयं सुव सुवन कर्न विंदानं ॥ २२ ॥ कमल कलन सुइ उवनं, उवनं सुइ जान विवान पद कमलं । षिपनं हिय रस रमनं, आयरन कमल समय धुव कनं ॥ २३ ॥ उववन्न रमन सह सुवनं, केवल सुइ लब्धि अंग जिन अंगं । अंगं अनंग जिनुत्तं, कलनं सुइ कमल साहि सुव कन ॥ २४ ॥ उवन मयं सहकारं, ऊर्धं उववन्न ढलन अवयासं । इस्ट उवन जिन उवनं, उवनं सुइ कमल कर्न सुइ समयं ॥ २५ ॥ (३१७ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी तत्काल रमन सुइ उवनं, उवनं सुइ रमन रयन जिन जिनयं । जिन उवनं पय उवनं, पय उवन कमल साहि सुइ कनँ ॥ २६ ॥ रमनं रमन सु सुवनं, रमियौ सुइ चरन कलन अन्मोयं । कलन कमल चर चरनं, चरनं सम उवन कर्न सुव समयं ॥ २७ ॥ रमन कमल सुइ उवनं, उवनं सुइ उवन मुक्ति गमनं च । गम अगम लषिय अलष्यं, अलषं सुइ लषिय कर्न निर्वानं ॥ २८ ॥ कंठ कमल जिन जिनयं, जिनयं जय जयो जयो जय रमनं । नंत विसेष सु चरनं, चरनं सुइ कमल कर्न निर्वानं ॥ २९ ॥ कमल कलन सुइ उवनं, उवनं सुइ कलन कमल चर सुवनं । सुवन समय सुइ उवनं, उवनं सुइ कमल सुवन निर्वानं ॥ ३० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१८)धुव उवन साहि सिय अर्क गाथा गाथा १९९७ से २०२५ तक (विषय : अर्क-३६, विवान-१, पय-१२, दिप्ति-१४) उक्तं नंत जिनं जिनय जिन जिनं, जिनयं जिनं जय पदं । जैवंतं जय जय जयं च जिनयं, जिनयं जयं सास्वतं ॥ जैवतं जय नंत नंत ममलं, उत्पन्नं सज्जन जनं । उवनं कलन स कमल कर्न समयं, उत्पन्नं सज्जन जनं ॥ १ ॥ सज्जन जन उववन्न उवन उवनं, उववन्नं साध धुवं । उववन्नं धुव कलन कमल उवनं, कनं च सज्जनं समं ॥ दिप्तिं दिस्टि प्रवेस दिस्टि दिप्तिं, सब्दं च प्रियो जुतं । नंतानंत सु अर्क अर्क उवन कमलं, कर्न च सज्जनं जनं ॥ २ ॥ अकै अर्क उवन उवन्न उवनं, कलनं च कलनं धुवं । कलनं नंत अनंत नंत कलनं, कमलं च उवनं जिनं ॥ कमलं केवल उवन उवन उवनं, उत्पन्नं अकै मयं । कलनं कमल सुयं सुयं च रमनं, कलनं च कमलं धुवं ॥ ३ ॥ जं जं अर्क सु अर्क अर्क उवनं, अर्क सु अर्क मयं । नंतानंत सु अर्क अर्क रमनं, अर्क प्रवेसं धुवं । तं अकै आयरन उवन कलनं, अकं सु अर्क समं । सहयारं हिय रमन कलन कलियं, कलियं च जिनयं जिनं ॥ ४ ॥ कलनं कलन स नंत नंत ममलं, अर्क स अकै समं । अकै अर्क प्रवेस अर्क समयं, समयं सुयं धुव पदं ॥ सिय उवनं धुव अर्क अर्क रमनं, उत्पन्नं कर्न समं । कर्न सुवन उवन्न उवन कमलं, कमलं च जिनयं जिनं ॥ ५ ॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी १-कमल सी अर्क कमलं कलन सु उवन उवन चरनं, चरनं सु चरनं जुतं । चरनं चरन अनंत नंत रवनं, सहयार कमलं सुयं ॥ चर चरनं चर चरंति चरियं, चरनं चरं धुव पदं । चरनं चरन चरं चरं सु चरियं, सहयार कमलं धुवं ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ५-हंस सी अर्क अन्मोयं सुइ कमल चरन कर्न सुवनं, हंसं अनंतं हवं । हुव उवनं अवयास नंत नंत ममलं, अकै अनंतं परं ॥ अर्क नंत सुअर्क अर्क ममलं, अवयासं साहं सुर्य । नंतानंत सुदिप्ति दिस्टि कर्न उवन समयं, अन्मोयं कमलं जिनं ॥ १० ॥ ६ ॥ २-चरन सी अर्क कलनं कलन उवन्न कमल ममलं, चरनं समासं धुवं । जं कलनं जं कमल चरन उवनं, नंतं च कर्न समं ॥ नंतानंत सु अर्क अर्क उवनं, सुवनं च समयं धुवं । कलनं कमल सु चरन नंत उवनं, कर्न समं धुव पदं ॥ ७ ॥ ६-अवयास सी अर्क कमलं कर्न सुवन कलन चरनं, अवयास हंसं हवं । दिप्तिं दिप्ति सुदिप्ति दिस्टि दिप्ति समय, दिप्तिं प्रवेसं सुर्य ॥ दिप्तिं दिप्ति उन दिस्टि उवन ममलं, नंतं अनंतं समं । नंतानंत सुदिप्ति दिस्टि उवन समयं, विन्यान कमलं कल ॥ ११ ॥ .-दिप्ति सी अर्क कमलं कलन सुचरन उवन कन, अवयास सुवनं मयं । दिप्तिं दिप्ति प्रवेस नंत उवन सुवनं, दिप्ति सुदिप्तिं मयं ॥ सुद्धं बुद्ध सुबुद्ध अर्क अर्क ममलं, दिस्टि सुदिप्ति सुर्य । दिप्तिं दिस्टि अनंत दिप्ति दिप्ति सु समयं, अन्मोय कमलं जिनं ॥ १२ ॥ -कर्न सी अर्क कलनं कमल सु चरन कर्न समयं, अर्कस्य अर्क मयं । जं अकै सुइ नंत नंत रमनं, रमनं सुरं दिनयरं ॥ अकै अर्क प्रवेस नंत ममलं, हुवयार सुवनं जिनं । सुवनं उवन अनंत नंत ममलं, उववन्नं साहं धुवं । हुवयारं तं नंत नंत अर्क सुवनं, अन्मोयं कमलं सुयं ॥ ८ ॥ ४- सुवन सी अर्क कमलं चरन सुकर्न सुवन सुवनं, उवनं सुर्य सुइ जिनं । अर्क नंतानंत रमन सुवनं, हंसं च साहं धुवं ॥ हंस हंस सु अर्क अर्क समयं, साहं सुयं साहनं । हंस हंस उवन्न उवन सुवनं, अन्मोय कमलं जिनं ॥ ९ ॥ ८-सुदिप्ति सी अर्क कमलं कर्न सुयं सुयं सु उवनं, अवयास नंतं परं । अवयासं तं नंत नंत ममल उवनं, साहंति अभयं सियं ॥ अभयं अभय सु अर्क अर्क अभय ममलं, भय विलय अभयं सुयं । नंतानंत सु अर्क दिप्ति दिस्टि सब्द उवनं, कमलं च अभयं पदं ॥ १३ ॥ (३१९) Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी ९- अभय सी अर्क अभय अर्क सुदिप्ति अर्क दिस्टि ममलं, कमलं च कर्न मयं । उववन्नं उव उवन अर्क अर्क ममलं, अवयास सुकै मयं ।। सुकै सुर्क सुअर्क अर्क उवन ममलं, अवयास सुकै सुर्य ।। उववन्नं सुइ सुवन सुयं सुयं च सुवनं, सुकं सु ममलं धुवं ॥ १४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी १३-नंद सी अर्क जं जं अर्क सुनंद नन्द उवन रमनं, आनंदं नन्दं जयं । जयवंत जयवंत जय जयं च जयनं, अकै अनंतं धुवं ॥ दिप्तिं दिप्ति सुदिप्ति दिप्ति रमन दिपियं, दिस्टिं च ममलं पदं । नंतानंत सुदिप्ति दिस्टि उवन सुवनं, आनंदं कमलं जयं ॥ १८ ॥ १०-सुर्क सी अर्क अर्क अर्क सु अर्क अर्क उवन उवनं, अर्थ अनंतं परं । लष्यं लष्य सुलष्य लष्य उवनं, गम्यं अगम्यं सुर्य ।। दर्स दर्स सुदर्स दर्स उवन ममलं, सब्द अनंतं प्रियं । अवयासं तं नंत नंत उवन समयं, कमलं च अर्थं जिनं ॥ १५ ॥ १४ - आनंद सी अर्क जं जं अर्क अनंत नंत ममल रमनं, तं तं समं समयत्वं । सम उक्तं सम उवन उवन समयं, हिययार उवं सास्वतं ॥ जिन जिनयं जिन रमन उवन वयनं, दर्स जिनं दर्सितं । नन्तानंत समं सुयं च समयं, कमलं च कर्न समं ॥ १९ ॥ १५-समय सी अर्क जं उवनं उव उवन उवन रमनं, हिययार नंतं जिनं । हिययारं सुइ रमन रयन अहँ, अहं सहिय उवनं सुयं ॥ सहयारं सुइ रमन रयन ममलं, अकै च हिय उवनं जयं । हिय हुव नंत सुनंत नंत जयनं, हिय रमन कमलं जयं ॥ २० ॥ ११- अर्थ सी अर्क अर्थ अर्थ सु अर्थ अर्थ अर्क ममलं, कमलं च कर्न समं । हिययारं हुव सुवन अर्क उवनं, अवयासं ममलं समं ॥ उववन्नं उववन्न उवन उवन रमनं, नंतं अनंतं सुर्य । विन्यानं सुइ नंत नंत विंद समयं, विंदस्य कमलं जिनं ॥ १६ ॥ १२-विंद सी अर्क उवनं कमल सुकर्न चरन सुवन उवनं, अवयास दिप्तिं मयं । अभयं दिप्ति स दिप्ति सुर्क अर्थ समयं, विन्यान विंदं जयं ।। हिययारं सहयार सुयं सु विंद रमनं, नंदं सुर्य नंदनं । अकै अर्क समं स नंद नंद ममलं, नंदं सु उवन नंदनं ॥ १७ ॥ १५-हिय रमन सी अर्क कलनं कमल सु कर्न सुवन उवन रमनं, अवयास नंतं सुयं । दिप्तिं नंत सुदिप्ति दिप्ति अभय रमनं, सुकै सु अर्थं मयं ॥ विन्यानं सुइ विंद विंद सून्य समयं, नंदं आनंद जयं । समयं उवन हियं अलष लषियं, अलष सि कमलं जयं ॥ २१ ॥ (३२० Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी १७-अलष सी अर्क उवनं उवन सियं सुभाव सुयं सु रमनं, अगमं अनंतं परं । हिययारं सिय अर्क अर्क ममल रमनं, सुद्धं धुवं धुव पदं ॥ हिय हुव नंत सनंत नंत अगम अगमं, अर्क सु अकै सुयं । अषयं अषय पदं अषय सु रमनं, अगमं सु कमलं जयं ॥ २२ ॥ २१-सुरंज सी अर्क उवनं उवन सि अर्क अर्क उवन उवनं, उवनं उवनस्य उवनं पदं । उवनं झड़प स दिस्टि उवन सब्द उवनं, उवनं हियं हुव पदं । अवयासं सुइ उवन उवन कलन कमलं, उवनं स उवनं पदं । सहयारं सुइ उवन उवन हंस कमलं, उवनं कलन जिन पदं ॥ २६ ॥ १८- अगम सी अर्क उवन उवन सिय अर्क अर्क साह समयं, सहयारं सिद्धं धुवं । हिययारं सिय अर्क अर्क नंत ममलं, साहति अर्थ जिनं ।। साह साह जिन अर्क अर्क जिनय जिन समयं, अयं च दिप्तिं जयं । जयवंतं जय जय अबलबली जयं, सहकार कमलं जयं ॥ २३ ॥ २२ - सुइ उवन सी अर्क उवनं उवन सु उवन उवन विपनं, दिप्तिस्य अंधं षिपं । हिययारं हुव भुक्त भुक्त सु भुक्त षिपनं, सून्यं च सब्दं षिपं ॥ सहयारं सुइ षिपन षिपिय षिपनं, सीहं वनं गज जथयं । विपिनं सिय सुइ षिपन ममल उवन उवनं, कुन्यानं षिपन कमलयं ॥ २७ ॥ १९- सहयार सी अर्क उवनं उवन सि अर्क अर्क उवन रमनं, रमनं सियं सिय पदं । हिययारं सिय रमन अर्ह रमन ममलं, रमनं सुरं विंजनं ।। सुर विजन सह सह सहय जिन सह, कमलं च कर्न रमं । रमनं दिप्ति सुदिप्ति दिस्टि दिप्ति रमनं, कमलं च सर्व रमं ॥ २४ ॥ २३-विपन सी अर्क उवनं उवन सिय अर्क अर्क ममल उवनं, रयनं सि रमनं सुयं । हिययारं सुइ ममल अर्क अर्क ममलं, सूरस्य किरनं जयं ॥ सहयारं सुइ ममल नंत अर्क ममलं, नंतं पदं जिन पदं । ममलं सिय सुइ सुवन उवन ममलं, कमलं च जिन उक्तयं ॥ २८ ॥ २०- रमन सी अर्क उवन उवन सिय रंज रंज रयन दिप्ति, रंजं हियं हुव पदं । हिययारं सिय रंज रंज हंस कमलं, रंजं सियं पद अर्थयं ॥ सहयारं सिय रंज रंज कलन कमलं, रंजं जिनं जिन पदं । रंजं रंजसि लोय लोय उवन उवनं, नंतं अनंतं पदं ॥ २४ - ममल सी अर्क उवनं सिय सुइ उवन उवन ममलं, उवनं पदं सिय पदं । सिय उवनं धुव उवन उवन ममलं, उवनं सियं धुव पदं । उवनं सिय पय अर्थ सब्द सु सब्द उवनं, उवन सिय जयं सुइ धुव जयं । धुव उवनं तं नंत सियं कर्न उवन समयं, उवनं समय मुक्ति जयं ॥ २९ २५ ॥ ॥ (३२१) Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विनय विंद सुइ समयं, सुनंद हिययार वज्र सिय उवनं । जानं जयवंत जिनुत्तं, लषनं सुइ लीन जिनय जिन रमनं ॥ ८ ॥ भद्र न्यान उवन्नं, मै उववन्न मै मूर्ति जिन रमनं ।। अन्मोय उवन जिन श्रेनि, कलन सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ९ ॥ विंदसी अर्क ।। १॥ सुइ समैसी अर्क ॥२॥ सुनंदसी अर्क ॥ ३॥ हिययार सी अर्क ॥ ४ ॥ जान सी अर्क ॥ ५ ॥ जैन सी अर्क ॥ ६ ॥ लषन सी अर्क ॥ ७॥ लीन सी अर्क ॥ ८ ॥ भद्र सी अर्क ॥ ९॥ मै उवन सी अर्क॥१०॥ सहज सी अर्क॥११॥ पै उवन सी अर्क।।१२।। श्री ममल पाहुइ जी (९९) पयोमसी अर्क गाथा गाथा २०२६ से २०३४ तक (विषय: पय-१२, ज्ञान उपयोग, स्व समय की महिमा) उवन सियं जिन रमनं, वज्र सहावेन श्रेनि जिन रमनं । विंद अर्क सुइ समयं, अर्क सुइ नंत विंद समयं च ॥ १ ॥ समय सहाव जिनुत्तं, समय सियं समय उत्त जिन उत्तं । सुनन्द नंद आयरनं, नंद अनंद नंद जिन नंदं ॥ २ ॥ हिययार रमन हिययारं, हिय हव साहि समय जिन उवनं । वज सहाइ सु सियनं, अन्मोयं जिन श्रेनि सिद्धि संपत्तं ॥ ३ ॥ ॥ उवन रंज सुइ पुत्री - ४ ॥ ॥ अन्मोय जिन श्रेनि - ४ ॥ जानं लोयालोयं, जयवन्तं अर्क नंत ममलं च । जय नंत नंत जिन रमनं, जयवंतं लोयलोय भय विलयं ॥ ४ ॥ लषन लषिय जिन उवनं, उवनं सुइ अर्क अन्मोय उव उवनं । लीनं लीन जिनु अर्क, उवनं सुइ लीन विंजनं सुरयं ॥ ५ ॥ || अन्मोय रंज सुइ पुत्री-४॥ || अन्मोय जिन श्रेनि - ४॥ भद्रं भय विलयंती, न्यानं उववन्न उवन रंजेड़ । मै उवन उवन सुइ रमनं, मै मूर्ति अन्मोय उवन सुइ अर्क ॥ ६ ॥ सहज सहावं उवनं, सहजोपनीत सहज परम सुभावं । पय उवन उवन पय रमनं, परमं सभाव उवन विलसंती ॥ ७ ॥ (९००) जाकी उवन सेज फूलना गाथा २०३५ से २०४६ तक (विषय : दिष्टि चौदह) जाकी उवन सेज निमिष रति प्रलय पडै । ताके नयन कोइ मति अंजनु कहै ॥ १ ॥ हम बन्दे हो स्वामी तरन सनंदे । अन्मोय अबलबली तरन जिनंदे ॥ हम बन्दे हो स्वामी जिनय जिनंदे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जाकी उवन दिस्टि झड़प भी प्रल पडै । ___ताकी उवन दिस्टि कोई मति झड़प कहै ॥ ३ ॥ ॥ हम. ॥ (३२२) Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जाकी उवन रिस्टि इस्टि रै प्रलै पडै ।। ताकी उवन सिस्टि मति कोई रै रिस्टि कहै ॥ ४ ॥ ॥ हम.॥ जाकी उवन सस्टि रै सहि प्रलै पडै । ताकी उवन दिस्टि कोई मति रै दिस्टि कहै ॥ ५ ॥ ॥ हम. ॥ जाकी उवन साहि रै सहि प्रल पड़े। ताकी अवयास उवन मति कोई अवयासु कहै ॥ ६ ॥ ॥ हम. ॥ जाकी उवन अनंत अनंत रै प्रलै पडै । ताकी अनंत न्यान मति कोई अंतरु लहै ॥ ७ ॥ जं उवन कलन सिरि दिप्ति दिप्ति सरै । रुई रमनु कलनु रंजु उवनु लहै ॥ ११ ॥ ॥ हम. ॥ जं तरन कलन चर चरनु चरै । अन्मोय कमल कलि मुक्ति लहै ॥ १२ ॥ ॥ हम. ॥ ॥ हम. ॥ = (१०१) जय जय छन्दगाथा गाथा २०४७ से २०७४ तक (विषय : षिपक सोलही, दिष्टि चौदह) जय जय जयवंत जिनुत्तु पऊ, जय जयो जयो जय उवन पऊ । जय नंत नंत जिन श्रेनि जयं, जय कलन कमल जिनु मुक्ति जयं ॥ १ ॥ जय उवनं, उव उवन उवन उवन विलसंतऊ । जय उवन उवन जिन रमन पऊ, जय उवन सुइ समय सिद्धि संपत्तऊ ॥ २ ॥ जय उवन जयं जिननाथ पयं, जय कलन कमल सुइ मुक्ति जयं । जय हिय उवनं अवयास पयं, जय कमल कर्न सम मुक्ति जयं ॥ ३ ॥ जाके उवन अन्मोय न्यान निमिष रै प्रलै पडै । ताके मुकति रमनि जनि कोई मति अंतरु लहै ॥ ८ ॥ ॥ हम. ॥ जाके अन्मोय अबलबली मुक्ति लहै । ताके उवन सिद्धि सुहु रमनि लहै ॥ ९ ॥ ॥ हम. ।। जं तारन उवनु जिन समय सहै । तं समय अनंत सुइ सिद्धि लहै ॥ १० ॥ ॥ हम. ॥ = (३२३ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - = श्री ममल पाहुइ जी जय हिय रमनं हुव उवन पयं, जय कमल सुवन जिन जिनय जिनं । जय गुपित जिनं वैदिप्ति रम, जय जयो कमल सम कर्न जिनं ॥ ४ ॥ जय जान मयं जय जिनय पयं, जय कमल उवन सम कर्न जयं जय षिपक सुयं सु स्कंध जयं, जय कमल कर्न धुव मुक्ति जयं ॥ ५ ॥ जय कुनय विलं हिय न्यान रमं, जय कमल कर्न सम मुक्ति जय पय उवनं उव उवन समं, जय चेय कमल सम कर्न जयं । जय हिय उवनं अस्थान रम, आयरन कमल सम जय इच्छ पर्य गुरु गुपित रयं, गुरु इच्छ कमल सम कर्न जयं । पय पर्म पयं इस्ट उवन जयं, अर्थ उवन कमल सम कर्न जयं ॥ ८ ॥ जय ममल पयं सुइ झड़प विलं, जय उवन कमल सम श्रवन जयं । जय कलन जिनं जय जय उवनं, जय ईर्ज कमल सम श्रवन जयं ॥ ९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय उवन पयं तत्काल जिनं, जय उवन कमल सम कर्न जयं ॥ १० ॥ जय पदम पयं सुइ जिनय जयं, ___पय उवन कमल सम श्रवन जिनं । जय अप्प रयं गुरु गुपित जयं, सुइ गुपित कमल सम कर्न जयं ॥ ११ ॥ सिद्धि रयं, जय ठान कमल सम मुक्ति सुइ सुयं रमन सुइ लब्धि जिनं, सुइ लब्धि कमल सम कर्न जयं ॥ १२ ॥ जय जय जय जय तार तरं, जय तार कमल सम कर्न जयं ॥ १३ ॥ जय उव उवनं उववन्न पयं, जय उवन कमल सम कर्न जयं । जय उवन जयं सुइ उवन पयं, कमल जिननाथ जय उवन रमं कल कर्न जिनं, जय रमन कमल सम जिनय जिनं । जय चरन चरं सुइ धुव रमनं, उव उवन धुवं सुइ कर्न समं ॥ १५ ॥ सिय चरन सियं उव उवन धुवं, धुव उवन उवन सुइ मुक्ति जयं ॥ १६ ॥ - = - - - = - - - = (३२४) Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सिय उवन धुवं धुव उवन सियं, उव कमल सु नंतानंत धुवं । धुव उवन सुयं उव नंत समं, सम कर्न उवन सुई मुक्ति जयं ॥ १७ ॥ जय चरन धुव उवन, सुइ भुक्त सिय कर्न । जय चरन सुइ करन, जिन मुक्ति जय रमन । सिय चरन धुव कमल, सोई मुक्ति जय ममल ॥ १८ ॥ जय कमल धुव ममल, सुइ मुक्ति जय ममल । सुइ उवन जिन कमल, जय कर्न सम ममल ।। जय कर्न जिन उवन, धुव मुक्ति जय रमन ॥ १९ ॥ धुव कमल जिन उत्तु, सुइ कर्न जय रमतु । धुव कमल सम कर्न, सुइ मुक्ति जिन रत्तु ॥ २० ॥ उव समय जय कमल, उव भुक्त सिय ममल । सुइ कमल सुइ सुवनु, जिन जिनय सिद्धि ममल ॥ २१ ॥ उव उवन दिपि दिस्टि, सुइ कमल जिन इस्टि । उव उवन सम सिस्टि, सुइ मुक्ति जय रिस्टि ॥ २२ ॥ उव उवन सम उवन, अवयास जिन रमन । अवयास सुइ कमल, सुइ मुक्ति जिन ममल ॥ २३ ॥ जय नंत चर चरन, जय कमल जिन रमन । जय कमल कलि उवन, जय मुक्ति जिन रमन ॥ २४ ॥ जिन कमल उव समय, सुइ कर्न जिन समय । जय कमल जय कर्न, सम सिद्धि सिद्धि रमन ॥ २५ ॥ -घत्ताजय जय जयो सु उवन पउ, उव उवन उवन उव उत्तऊ । कलन कमल उव संत पऊ, सम कर्न सिद्धि संपत्तऊ ॥ २६ ॥ ममल ममल जिन उवन पऊ, ममल कमल धुव रत्तऊ । ममल सहावे कर्न समं, धुव समय सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ २७ ॥ ममल उवन सुइ उवनं, उवनं विवान समय जिन उवनं । जिन समय ममल ममलत्वं, उवनं सह समय सिद्धि संपत्तं ॥ २८ ॥ (१०२) उत्पन्न श्रेनि बधाऊ फूलना गाथा २०७५ से २०९१ तक (विषय अर्क-३६, पंचार्थ की महिमा, विवान-१, लब्धि -१) कवन श्रेनि उवनु, कवन श्रेनि वीया, कवन श्रेनि उवनु, विरधि धुव लीहा । कवन श्रेनि समय, कुसम श्रेनि कवना, कवन श्रेनि नंता, नंत फल उवना ॥ १ ॥ उवन श्रेनि उवनु, चरन श्रेनि वीया, कलन श्रेनि उवनु, विरधि धुव लीहा । (३२५ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी कर्न श्रेनि समय, कुसम श्रेनि सुवना, कमल श्रेनि कर्न, मुक्ति फल रमना ॥ २ ॥ कवन सिय उवरू, कवन सिय जाये, कवन सिय उवन, उवनु समुवाये । कवन सिय उवन, कवन सिय नंता, कवन सिय समय, सिद्धि संपत्ता ॥ ३ ॥ चरन सिय उवरू, कलन सिय जाये, कर्न सिय उवनु, उवनु समवाये । सुवन सिय उवनु, कमल सिय नंता, श्रवन सिय समय, सिद्धि संपत्ता ॥ ४ ॥ कवन श्रेनि हियए, कवन श्रेनि हुवा, कवन श्रेनि नंत, नंत अवयासा । कवन श्रेनि दिप्ति, सुदिप्ति श्रेनि कवना, कवन श्रेनि अभय, भय विलय जिन उवना ॥ ५ ॥ दिप्ति श्रेनि हियए, सुदिप्ति श्रेनि हुवा, अवयास श्रेनि अभय, कमल अन्मोया । हियं श्रेनि दिप्ति, सुदिप्ति हुव श्रेनि, अभय श्रेनि नंत, नंत जिन उवना ॥ ६ ॥ कवन श्रेनि गहिर, कवन श्रेनि गुपिता, कवन श्रेनि जानु, कवन पय उवना । कवन श्रेनि कमलु, कवन श्रेनि कलना, कवन श्रेनि समय, कवन उव उवना ॥ ७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हिययार श्रेनि गहिर, हुवन श्रेनि गुपिता, कलन श्रेनि जानु, कमल पय उवना । उवन श्रेनि कमलु, अवयास श्रेनि कलनु, सब्द श्रेनि समय, दिप्ति श्रेनि उवनु ॥ ८ ॥ कवन श्रेनि दिप्ति, कवन श्रेनि दिस्टि, कवन श्रेनि दिस्टि, दिप्ति सुइ रमनु । कवन श्रेनि सब्द, कवन पिउ श्रवनु, कवन श्रेनि पिउ, सब्द सिद्धि गमनु ॥ ९ ॥ उवन श्रेनि दिप्ति, हिययार श्रेनि दिस्टि, उवन श्रेनि दिस्टि, रमन श्रेनि दिप्ति । कमल श्रेनि सब्द, कर्न पिउ उत्तु, सुवन पिय सब्द, सिद्धि सम्पत्तु ॥ १० ॥ उवन सुइ श्रेनि, समय श्रेनि सुवना, उवन सम श्रेनि, कलन जिनु उवना । अवयास श्रेनि कमलु, कर्न सम उत्तु, ___ कमल कर्न समय, सिद्धि सम्पत्तु ॥ ११ ॥ कवन श्रेनि सहनु, कवन श्रेनि साहा, कवन श्रेनि नंत, नंत अवगाहा । कवन श्रेनि अन्मोय, षिपक श्रेनि कवना, कवन श्रेनि मुक्ति, नंत धुव रमना ॥ १२ ॥ अभय श्रेनि सहनु, अबलबली साहा, अवयास श्रेनि नंत, नंत अवगाहा । (३२६) Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी प्रिये श्रेनि अन्मोय, उवन श्रेनि विपकु, विपक श्रेनि मुक्ति, सिय सिद्धि रमनु ॥ १३ ॥ कवन श्रेनि न्यानु, दर्स श्रेनि कवना, कवन श्रेनि दानु, लब्धि श्रेनि कवना । कवन श्रेनि भोउ, उवभोउ श्रेनि कवना, कवन श्रेनि वीय, सम्मत्त श्रेनि कवना ॥ १४ ॥ सुभाइ श्रेनि न्यानु, उवन श्रेनि दर्स, अनंत श्रेनि दानु, सहज दिपि लब्धु । श्रेनि भोउ, हिय उवन उवभोउ, चरन श्रेनि वीय, कमल सम समऊ ॥ १५ ॥ कवन श्रेनि चरनु, सु चरन श्रेनि कवना, कवन श्रेनि कमलु, केवल श्रेनि कवना । कवन श्रेनि समय, मुक्ति सुह रमना, कवन श्रेनि निलय, नंत जिन रमना ॥ १६ ॥ हुवन श्रेनि चरनु, सु चरनु कर्न सुवनु, उव उवन श्रेनि कमलु, केवल कलि कमलु । सुवन कर्न समय, मुक्ति सुह उवनु, उव उवन उव अगमु, निलय जिन रमनु ॥ १७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१०) तार कमल सोहौ गाथा गाथा २०९२ से २१२३ तक (विषय : दृष्टि-१४, विवान-१, पय, कमल दल, पदवी सतक्षरी) उव उवनौ है उवन उवन्न पौ, उव उवनौ है मुक्ति दातारू । जिनजू अनादि तरन जिन सोहरौ ॥ १ ॥ जिन जिनवर उत्तौ जिनय पौ, जिन जिनियौ कम्मु अपारू । जिनजू अनादि रमन जिन सोहरी ॥ २ ॥ जिन जिनवर जोयौ उवन पौ, तं विंद रमन जिन उत्तु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ ३ ॥ उव उवनौ उवन सु समय जिनु, तं कमल रमन जिन उत्तु ।। जिनजू अनादि रमन जिन सोहरौ ॥ ४ ॥ उव उवनौ विंद विन्यान पौ, तं विंद अर्क संजुत्तु । जिनजू अनादि विंद जिन सोहरौ ॥ ५ ॥ उव उवनौ दिस्टि सु इस्टि पौ, तं रस्टि रिस्टि जिन उत्तु । जिनजू अनादि दिप्ति जिन सोहरौ ॥ ६ ॥ २७ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तं सस्टि सिस्टि जिन उवन पौ, उव उवन दिस्टि दसैंतु । जिनजू अनादि उवन जिन सोहरौ ॥ ७ ॥ सहयार दिस्टि जिन उवन पौ, अवयास उवन जिन उत्तु, जिनजू अनादि अलष जिन सोहरौ ॥ ८ ॥ तं नंत नंत जिन उवन पौ, अन्मोय न्यान जिन उत्तु । जिनजू अनादि षिपक जिन सोहरौ ॥ ९ ॥ तं षिपक इस्टि जिन उवन पौ, तं मुक्ति रमनि जिन उत्तु । जिनजू अनादि मुक्ति जिन सोहरौ ॥ १० ॥ तं मक्ति इस्टि जिन उवन सुइ, तं सौष्य सहिय सुइ नंतु । जिनजू अनादि ममल जिन सोहरौ ॥ ११ ॥ जिन दिप्ति दिस्टि सुइ उवन पौ, तं सब्द सुयं पिउ उत्तु । जिनजू अनादि सहज जिन सोहरौ ॥ १२ ॥ जिन जिनय स उत्तउ कमल पौ, ____तं कमल अर्क संजुत्तु । जिनजू अनादि परम जिन सोहरौ ॥ १३ ॥ जिन कमल रमन सुइ उवन पौ, जिन उत्तु वयनु दर्सतु ।। जिनजू अनादि सुयं जिन सोहरौ ॥ १४ ॥ जिन उवनु जु परिनै उवन मौ, अनंतानंतु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ १५ ॥ जिन समय सहावे उवन मौ, तं विंद रमन जिन उत्तु । जिनजू अनादि रयन जिन सोहरौ ॥ १६ ॥ जिन रमन सुलीन जिनुत्तु पौ, तं लंक्रित लीन जिनुत्तु । जिनजू अनादि अमिय जिन सोहरौ ॥ १७ ॥ जिन उवनु विन्यान सु उवन पौ, मै मूर्ति अंग सर्वंग । जिनजू अनादि समय जिन सोहरौ ॥ १८ ॥ जिन इस्ट दर्स उव उवन पौ, जिन उवन मुक्ति विलसतु । जिनजू अनादि तरन जिन सोहरौ ॥ १९ ॥ जिन गुपित इस्टि जिन उवन पौ, जिन गुपित गुहिज उव उत्तु । जिनजू अनादि नंत जिन सोहरौ ॥ २० ॥ (३२८ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी भय षिपनिक उवनु सु जिनय जिनु, जिनु अमिय दिस्टि दर्संतु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ २१ ॥ जिन लष्य अलष्य पौ उवन मौ, जिनु गुपित लष्य जिन उत्तु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ २२ ॥ जिन गम्य अगम्य सुइ उवन पौ, जिनु गुपित अगम रस उत्तु । जिनजू अनादि लवन जिन सोहरौ ॥ २३ ॥ जिन अषय रमनु जिन उवन पौ, जिनु सुर विजन सुइ उत्तु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ २४ ॥ जिन उवन उवन पौ उवन मौ, उत्पन्न लब्धि जिन उत्तु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ २५ ॥ उवझाय पयडि जिन उवन पौ, मति न्यान उवन संजुत्तु । जिनजू अनादि समय जिन सोहरौ ॥ २६ ॥ जिन आयरन सुदर्स मौ, जिनु अन्या समय जिनुत्तु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ २७ ॥ जिन उवन रंजु सुइ रमन पौ, भय षिपिय रमन विहसंतु । जिनजू अनादि नंद जिन सोहरौ ॥ २८ ॥ जिन नंद सुयं जिन नंद मौ, जिनु विनंद विली जिन उत्तु । जिनजू अनादि सिद्धि जिन सोहरौ ॥ २९ ॥ जिन तारन तरन सु समय मौ, जिनु विंद रमन सिद्धि रत्तु । जिनजू अनादि सहज जिन सोहरौ ॥ ३० ॥ जिन कमल कलन सुइ रमन पौ, जिनु अगम दिस्टि दर्सतु । जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ ३१ ॥ अन्मोय तरन जिनु अगम पौ, जिनु अगम मुक्ति विलसंतु । जिनजू अनादि परम जिन सोहरौ ॥ ३२ ॥ (१०४) जनगन बावलो फूलना गाथा २१२४ से २१३४ तक (विषय : ज्ञानी और अज्ञानी का तुलनात्मक विवेचन) जिन जिनय जिनय जिन रे, जिनियौ जिनय सुभाइ । उव उवन उवन जिनु रे, उवने उवन सहाइ ॥ जनगन बावलौ रे, न्यानी ममल सुभाइ । जनगन पागुलौ रे, उवनौ उवन सहाइ ॥ १ ॥ २ ॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जनगन आंधलौ रे, न्यानी दिप्ति सभाई । जनगन सुनाहलौ रे, न्यानी सब्द सहाई ॥ ३ ॥ जनगन काहलो रे, न्यानी सुवन सुभाई । जनगन वेकलौ रे, जिनवरु कलन सहाई ॥ ४ ॥ जनगन विवर मै रे, न्यानी कमल सुभाई । जनगन वादिलो रे, न्यानी धुव वयनाई ॥ ५ ॥ जनगन असमै सै रे, न्यानी समय सहाई । जनगन बंध मै रे, न्यानी मुक्ति सुभाई ॥ ६ ॥ जनगन अनय सै रे, न्यानी न्यान सियाई । जनगन असिद्धि मै रे, न्यानी सिद्ध सुभाई ॥ ७ ॥ जिनवर उवन मै रे, न्यानी उवन हियाई । जिनवर हिय सहिऊ रे, न्यानी सह उवनाई ॥ ८ ॥ जनगन हिय विली रे, न्यानी हिय उवनाई । जनगन असह सै रे, न्यानी सह उवनाई ॥ ९ ॥ जनगन गम विली रे, न्यानी अगम सुभाई । जनगन लष विली रे, न्यानी अलष लषाई ॥ १० ॥ जनगन पै रइ रे, न्यानी परम पयाई । जनगन सरनि सुइरे, न्यानी मुक्ति रमाई ॥ ११ ॥ (९०१) पूर्व जय पूजा माथा गाथा २१३५ से २१६२ तक (विषय : अर्क-३६, पाँच अर्थ की महिमा) उव उवन उवन सुइ उवनं, उवनं सह समय उवन मै उवनं । उव उवन उवन मै उवनं, उवनं अन्मोय उवन नय नमियं ॥ १ ॥ उव उवन पयडि आयरनं, उवनं आयरन उवन निहि समयं । उवन साहि सुइ ममलं, उवनं अन्मोय साहि सिय उवनं ॥ २ ॥ उवनं सियं सुद्ध सियं सि उवनं, सियं सुभावं कलनस्य उवनं । कलनं जिनुत्तं जिन नंत कलनं, नंतं अनंतं धुव नंत कमलं ॥ ३ ॥ कमलं जिनुत्तं चरनस्य चरनं, चरनस्य चरनं कलनस्य कमलं । कलनं सु चरनं कमलं अनंतं, नंतं सु समयं अन्मोय कन ॥ ४ ॥ नंतस्य उवनं अन्मोय नंतं, नंतं सु समयं अवयास नंतं । नंतं स चरनं कलनं अनंतं, नंतस्य कमलं अन्मोय कन ॥ ५ ॥ उवनस्य नंतं अन्मोय श्रवनं, अन्मोय श्रवनं उव उवन सुवनं । सु नंत साहं हिययार कर्न, हिययार कर्न हुव नंत उवनं ॥ ६ ॥ (३३०) Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी हुव नंत नंतं अवयास साह, अवयास नंतं अन्मोय कर्न । कर्न अन्मोयं सुइ दिप्ति उवनं, दिप्तिं सहावं उवनं सु दिप्तिं ॥ ७ ॥ दिप्तिं सु दिप्ति अवयास उवनं, अवयास कलनं अन्मोय कमलं । कमलं सु दिप्तिं सम साहि कर्न, अन्मोय कर्न सुइ दिप्ति उवनं ॥ ८ ॥ दिप्तिं सु नंतं दिस्टि प्रवेसं, दिस्टि अनंतं दिप्तिस्य चरनं । कलनस्य चरियं धुव उवन कमलं, अन्मोय कर्न सम सिद्धि सिद्धं ॥ ९ ॥ भय विलय कर्न अभयं स उवनं, अवयास नंतं दिप्तिं सु दिप्तिं । अभयं भय उत्तं विलयस्य कमलं, अन्मोय कर्न अभयं जिनुत्तं ॥ १० ॥ अभयस्य उवनं अवयास नंतं, ___ नंतं सुयं सुर्क सुइ अर्क उवनं । सुकै सुर्य सेस सु अर्क कमलं, कमलं सुयं सुर्क अन्मोय कर्न ॥ ११ ॥ सुकै सु उवनं अवयास दिप्ति, दिप्तिं सु अर्क सुदिप्ति अर्क । सु दिप्ति कमलं अभयं जिनुत्तं, अन्मोय कनं सुकं सु नंतं ॥ १२ ॥ सुर्कस्य उवनं अभयं जिनुत्तं, सुकै सु अर्क पद अर्थ अर्थं । पद अर्थ कमलं कलनं सु कन, अन्मोय श्रवनं सर्वार्थ अर्थं ॥ १३ ॥ सुर्क सु अर्थं सर्वार्थ अर्थ, अवयास कलनं चर नंत कमलं । कमलस्य सुकै अर्थ सु कन, कर्नस्य श्रवनं सर्वार्थ सिद्धं ॥ १४ ॥ अर्थस्य अर्थं हिय कर्न उवनं, __ हिय अर्थ उवनं कर्न सु समयं । समयं अनंतं कर्न अथाहं, गहिरस्य उवनं सुइ श्रवनस्य साहं ॥ १५ ॥ अर्थं पदार्थं सुइ विजनत्वं, पदं पदार्थ चतुस्टं च अर्थं । जानं जयं अर्थ सु गुपित गहिरं, हिय कर्न उवनं सर्वार्थ कमलं ॥ १६ ॥ कमलस्य कलनं चर अर्थ दिप्तिं, दिप्तिं सुयं अर्थ पदं पदार्थं । सर्वन्य अर्क कमलार्थ सिद्धं, अन्मोय कर्न सम समय मुक्तिं ॥ १७ ॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी अर्थस्य अर्क सर्वन्य अर्थ, लोकस्य कर्न श्रवनावलोकं । नंतं अनंत धुव नंत सिद्धं, अन्मोय कर्न सम मुक्ति विंदं ॥ १८ ॥ विंदस्य उवनं विंदं सु समयं, नंत विंद उवनं श्रवन विंद समयं । नंत कर्न समयं हिय उवन उवनं, उवनस्य कलनं धुव नंत कमलं ॥ १९ ॥ कमल विंद उवनं सर्वन्य अर्क, अर्क अनंतं हिय कर्न समयं । हिय उवन कलनं नंत दिप्ति दिपियं, अन्मोय श्रवनं सम मुक्ति विंदं ॥ २० ॥ मुक्तिस्य विंदं अन्मोय नंदं, नंदस्य विद्धि कलनस्य चरनं । कलनस्य कलियं हिय गुप्ति उवनं, गुपितस्य कमलं सम कर्न मुक्तिं ॥ २१ ॥ नंदस्य दिप्तिं दिस्टिं अनंतं, हिय उवन उवनं गुरु गुपित समयं । गुपितस्य गहिरं उव उवन कमलं, कमलस्य अन्मोयं सम कर्न मुक्तिं ॥ २२ ॥ आनंद हिययारं अन्मोय कर्न, कर्न सु समयं हिय उवन उवनं । हिय गहिर गुपितं सुइ श्रवन कमलं, कमलस्य कलनं सम कर्न मुक्तिं ॥ २३ ॥ उववन्न इस्टि विवान सिस्टि, दिस्टि सु नंतं नंत सुवन उवनं उव उवन चेयं कमलस्य कन, अन्मोय श्रवनं सम मुक्ति रमनं ॥ २४ ॥ हिय उवन उवन साहं जिननाथ रमनं, रंजं सनंदं जिन अर्क अर्क । जिन जिनय उवनं जिन नंत समयं, कर्नस्य श्रवनं हिय मुक्ति रमनं ॥ २५ ॥ अलषस्य लषियं अलषं जिनुत्तं, __ हिय उवन नंतं कमलं अनंतं । चरनस्य कलनं कलनस्य चरनं, अलषस्य अर्क सम कर्न मुक्तिं ॥ २६ ॥ अगमस्य गमनं सुइ दिप्ति रमनं, दिप्तिस्य दिस्टिं उव अगम अगमं । अगमस्य कलनं चरनं अनंतं, विवान कर्न सुइ उवन मुक्तिं ॥ २७ ॥ सहयार साहं उव नंत ग्राहं, गहिरस्य गुपितं उव नंत साहं । उव उवन उवनं उवनं विवानं, विवान कर्न उव मुक्ति सहनं ॥ २८ ॥ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = = = = = श्री ममल पाहुइ जी (१०) मुक्ति पैतालो गाथा गाथा २१६३से २२०८ तक (विषय! अर्क-३६, कमल दल) उव उवन उवन उव उवन अनंतु, उव उवन समय सुइ मुक्ति जन्तु ॥ १ ॥ जय जयन उपज्जै जय निवासु, जय जयो जयो जिन मुक्ति वासु ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ पय पयन उवन पय पय अनंतु, पय उवन पयं सुइ सिद्धि रत्तु ॥ ३ ॥ ॥ जय. ॥ जय जयो जयो जय जय अनंतु, जय रमन उवन सुइ सिद्धि रत्तु ॥ ४ ॥ ॥ जय. ॥ मय मय उवनं मय उव अनंतु, मय सुयं मयं जिन मुक्ति रत्तु ॥ ५ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ सुयं उवन सुइ सुयं जिनुत्तु, सुइ उवन समय सुइ सिद्धि रत्तु ॥ ६ ॥ ॥ जय. ॥ रै रमन उवन सुइ रमन नंतु, उव रमन सुर्य सुइ मुक्ति जन्तु ॥ ७ ॥ ॥ जय. ॥ = सह सहन उवन सुइ सह निवासु, सुइ उवन सहन सह सिद्धि वासु ॥ ८ ॥ ॥ जय. ॥ गम गमन उवन गम गम अनंतु, उव उवन गमन सुइ मुक्ति रत्तु ॥ ९ ॥ ॥जय, ॥ अग अगम उवन अग अगम नंतु, अग अगम उवन सुइ सिद्धि रत्तु ॥ १० ॥ ॥ जय. ॥ लष अलष उवन लष लष अनंतु, उव उवन लषन लषि सिद्धि रत्तु ॥ ११ ॥ ॥ जय. ॥ लष अलष उवन सुइ अलष जन्तु, __जय उवन अलष जय मुक्ति पंथु ॥ १२ ॥ ॥ जय. ॥ ढल ढलन उवन ढल ढल अनंतु, जय उवन ढलन सुइ सिद्धि रत्तु ॥ १३ ॥ ॥ जय. ॥ गह गहन उवन गह गह जिनुत्तु, जय गहन उवन गह मुक्ति जन्तु ॥ १४ ॥ ॥ जय. ॥ रह रहन उवन रह रह निवासु, रह उवन सुयं जय सिद्धि वासु ॥ १५ ॥ ॥ जय. ॥ = = = (३३३) Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = श्री ममल पाहुइ जी लह लहन उवन लह लह अनंतु, लह उवन लहन सुइ सिद्धि रत्तु ॥ १६ ॥ ॥ जय. ॥ धर धरन उवन धर धर समत्थु, धर उवन समय सुइ मुक्ति पंथु ॥ १७ ॥ ॥ जय. ॥ षिप षिपन उवन षिपि षिपि जिनुत्तु, विपि उवन समय सुइ मुक्ति रत्तु ॥ १८ ॥ ॥ जय. ॥ कलि कलन उवन कलि कलन रिद्धि, सुइ कलन कमल जिन उवन सिद्धि ॥ १९ ॥ ॥ जय. ॥ कलि कमल उवन सुइ कलन सुद्ध, जय कमल उवन जै सिद्धि सिद्ध ॥ २० ॥ ॥ जय. ॥ चर चरन उवन चर चरन नंतु, चर चरन उवन सुइ मुक्ति जंतु ॥ २१ ॥ ॥ जय. ॥ कलि कमल उवन उव कर्न समय, सुइ कर्न उवन जिन मुक्ति रमय ॥ २२ ॥ ॥ जय. ॥ सुव सुवन उवन सिय उवन हंसु, उव उवन कमल सुइ मुक्ति वासु ॥ २३ ॥ ॥ जय. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हंस हंस उवन सिय हंस वासु, हंस उवन समय सिय सुह निवासु ॥ २४ ॥ ॥ जय. ॥ अवयास उवन सिय उव अवयासु, अवयास उवन उव सुइ विलासु ॥ २५ ॥ ॥ जय. ॥ दिपि दिप्ति उवन सुइ दिपि अनंतु, दिपि उवन समय सुइ मुक्ति रत्तु ॥ २६ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ दिप्ति उवन सिय दिप्ति रत्त. सुइ दिप्ति उवन सिय सिद्धि रत्तु ॥ २७ ॥ ॥ जय. ॥ अभ अभय रंजु भय विलय रमनु, जिनु अभय नंदु सुइ सिद्धि गमनु ॥ २८ ॥ ॥ जय. ॥ सुर सुर्य अर्क सुइ ममल रमनु, सुइ उवन सुयं सिय मुक्ति गमनु ॥ २९ ॥ ॥ जय. ॥ अयं अर्थ उवन सर्वार्थ रमनु, सर्वार्थ सियं उव सिद्धि गमनु ॥ ॥ जय. ॥ विंद विंद अर्क सुइ विंद रमनु, विंद उवन विंद विंद मुक्ति गमनु ॥ ३१ ॥ ॥ जय. ॥ = = = = Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी नंद नंद सियं सुइ नंद रमन. नंद उवन नंद नंद मुक्ति गमनु ॥ ३२ ॥ = ॥ जय. ॥ = आनंद नंद उव नंद जयनु, आनंद सियं उव मुक्ति रमनु ॥ ३३ ॥ ॥ जय. ॥ = = = = रंज रंज उवनु सिय उवन उवनु, उव उवन रंज सम सिद्धि गमनु ॥ ४० ॥ ॥ जय. ॥ उव उवन सियं उव उवन उवनु, उव उवन रमनु सुइ मुक्ति गमनु ॥ ४१ ॥ ॥ जय. ॥ षिपि षिपन सियं उव षिपन रमनु, __बिपि रमन उवन सुइ मुक्ति गमनु ॥ जय. ॥ मौ ममल उवनु सिय ममल रत्तु, धुव ममल उवन सुइ सिद्धि रत्तु ॥ ४३ ॥ ॥ जय. ॥ उव उवन श्रेनि जिन श्रेनि कलनु, तर तार कमल सुइ सिद्धि गमनु । ॥ जय. ॥ उव उवन स उत्तउ सिय सुभाउ, सिय अर्क उवन सुइ मुक्ति राउ ॥ ४५ ॥ ॥जय, ॥ जिन श्रेनि उवनु कलि कलन रिद्धि, तर तार कमल उव समय सिद्धि ॥ ४६ ॥ ॥ जय. ॥ = सम समय सियं सुइ समय रमनु, सुइ समय उवन सुइ सिद्धि गमनु ॥ ३४ ॥ ॥ जय. ॥ हिय उवन हियं हिय रंज रमनु, हिय उवन सियं उव सिद्धि गमनु ॥ ३५ ॥ ॥ जय. ॥ लष अलष सियं सुइ उवन जयनु, उव उवन अलष लषि मुक्ति गमनु ॥ ३६ ॥ ॥ जय. ॥ गम अगम उवन सिय उव उव रमंतु, उव रमन अगम सम सिद्धि जन्तु ॥ ३७ ॥ ॥ जय. ॥ सहयार उवन सिय उवन साहि, सहयार उवन सम सिद्धि लाहि ॥ ३८ ॥ ॥ जय. ॥ रम रमन उवन उव रमनु उवनु, सुइ रमन उवन सिय मुक्ति गमनु ॥ ३९ ॥ || जय. ॥ = (३३५) Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (१०७) उबन मिलन प्रिय चौबीसी फूलना गाथा २२०९से २२३३ तक (विषय ! जनमन का मिलन स्वभाव, दिप्ति अंग-11, नो उत्पन्न दिप्ति, कलन चरन रमन) जय जयवंतु जयं जय उवने, जय जय जय जयो जिनंदं । जय समय जय जय उवन जयं जिनु, जय उवन पियं सिद्धि रत्तं ॥ १ ॥ स्वामी हो बलिहारी तरन जिन केरी, जिनु जिनय जिनय जिनु पाए । स्वामी हो बलिहारी परम जिन केरी, मुक्ति रमन जिनु पाए । स्वामी हो बलिहारी अलष जिन केरी, जिन अगमु अगमु दरसाए । अप्प परम पय परम रमन जिनु, परम मुक्ति रमि राए ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जनगन उत्तु पियं पिय रमनं, पुहुप वास सम समयं । किं प्रियो दुरवास जु बसियो, ___ तेल प्रित पिय विलय सुयं ॥ स्वामी हो बलिहारी तरन जिन केरी, सरनि रमनि जं विलय सुयं । स्वामी हो बलिहारी अगम जिन केरी, मुक्ति रमन जं मिलियं ॥ स्वामी हो बलिहारी कलन कमल जिन केरी, __ अधुव विलय धुव उवने ॥ ३ ॥ ॥स्वामी.॥ जनगन उत्तु पियं पिय उवने, पानि प्यास जल जल मिलियं । किं जल षार प्यास डह उवने, स्वाद रंग जल नहु मिलियं ॥ स्वामी हो बलिहारी समय जिन केरी, समय रमनु जिनु पाए ॥ ४ ॥ ॥स्वामी.॥ जनगन उत्तु पियं पिय समयं, हरद चूनु मिलि रक्त जयं । किं पिय नाम रूव गुन विलयं, नितक जीवत किं पिय समयं ॥ स्वामी हो बलिहारी रमन जिन केरी, अमिय रमन विष विलयं ॥ ५ ॥ ॥स्वामी.॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिनय जिन उत्तु पियं पिय उवने, चिंतामनि पिय मिलि रमनं । जं पिय दिप्ति दिस्टि सुइ मिलियं, चिंतामनि चित मिलि गमनं ॥ स्वामी हो बलिहारी सुवन जिन केरी, धुव समय उवन सिद्धि राए ॥ ६ ॥ ॥स्वामी.॥ पियं मिलनु जिनय जिन उत्तं, अमिय पियं विष विलय सुर्य । जं पिय उवन समय पिय उवने, सब्द पियं असब्द विलयं ॥ स्वामी हो बलिहारी पियं जिन केरी, दुस्ट विलय पिय मिलन सुयं ॥ ७ ॥ ॥स्वामी.॥ जिन जिनवर उत्तउ पियं समय सुइ, मलयागिरि वन वास सुयं । दिस्टि कर्न उव उवन हियं उव, अवयास अर्क नंत अर्क समं ॥ स्वामी हो बलिहारी उवन जिन केरी, उवन उवन सम साहं ॥ ८ ॥ ॥स्वामी.॥ मिलन पियं जिन जिनवर उत्तं, इस्ट मिलन इस्ट उवन पियं । इस्ट मिलन पिय सुवर्न मिलियं, दाह छेय कस धात मिलं ॥ स्वामी हो बलिहारी दिप्ति जिन केरी, दिप्ति दिस्टि रमि मिलियं ॥ ९ ॥ ॥स्वामी.॥ इस्ट मिलनु पिय सुवन सु रमियं, सुयं रमन इस्ट रमियं । किं पिय मिलन सुयं रमि रमनं, सम समय उवन नहु समयं ॥ स्वामी हो बलिहारी सुयं जिन केरी, सुयं उवन सम रमियं ॥ १० ॥ ॥स्वामी.॥ इस्ट मिलनु पिय जिनवर उत्तं, अप्प स्वाद रस रंग रमियं । समय सहाउ न स्वाद रंग रसु, मिलन पियं तं किं उवनं ॥ स्वामी हो बलिहारी जिनय जिन केरी, जंजिनियौ कम्मु समय सुवनं ॥ ११ ॥ ॥स्वामी.॥ इस्ट उवन मिलन पिय उत्तं, चंद तारगन रयनि मिलं । उव उवन उवन सुर उवन सु दिनयर, चंद तार पिय छंन सुयं ॥ (३३७) Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी स्वामी हो बलिहारी रुइय जिन केरी, रुइ उवन उवन रुइ उवन जिनं ॥ १२ ॥ ॥स्वामी.॥ मिलन पियं जिन जिनवर उत्तं, उवन मिलनु पिय पिय उवनं । नंत दिस्टि जं मिलनु पियं जिनु, दिस्टि समय सम मुक्ति जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी कलन जिन केरी, कलन कलिय सम समय रमं ॥ १३ ॥ ॥स्वामी.॥ मिलनु रमनु जिनय जिन उवनं, सब्द पियं मिलि रमि रमियं । सब्द सहाइ नंत पिय रमनं, उवन मिलनु पिय सिद्धि जयं ।। स्वामी हो बलिहारी पियं जिन केरी, जं सब्द पियं पिय मुक्ति जयं ॥ १४ ॥ ॥स्वामी.॥ उवन पियं पिय उवन सुयं सुइ, उवन अनंतानंत समं । नंत उवन हिय हुवं सुयं जिनु, ___उवन समय सुइ सिद्धि जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी तरन जिन केरी, चरन कमल सम सिद्धि जयं ॥ १५ ॥ ॥स्वामी.॥ उवनं उवन उवन धुव उवनं, उवन पियं धुव कर्न समं । उवन मिलन सम समय धुवं जिन, उव उवन सब्द धुव सिद्धि जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी सब्द जिन केरी, सब्द समय सुइ सिद्धि जयं ॥ १६ ॥ ॥स्वामी.॥ उवन मिलन पिय पियं सुयं जिन, अवयास अनंतानंत पियं । जं जं अर्क नंत सुइ उवनं, अवयास अर्क सम समय सुयं ॥ स्वामी हो बलिहारी सुयं जिन केरी, उवन समय सुइ मुक्ति जयं ॥ १७ ॥ ॥स्वामी.॥ उवनु मिलनु पियं जिन उवने, सह साह समय हिय हुव रमनं । गुप्ति गुप्ति सुइ अलष अगम जिनु, गुप्ति समय सम सिद्धि जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी गुप्ति जिन केरी, गुप्ति समय रमि मुक्ति जयं ॥ १८ ॥ ॥स्वामी.॥ उवनु मिलनु कलन जिन उवने, कलन अलष गम अगम कलं । (३३० Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी कलन कलिय जं नंत समय सुइ, उवन कलन सम सिद्धि जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी कलन जिन केरी, कलन रमन सम सिद्धि जयं ॥ १९ ॥ ॥स्वामी.॥ उवन रमन चरन पिय उवने, चरन चरिय जिन चरन चरं । चरन कलन सम समय सुयं जय, जय जय जयवंत सु समय जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी कलन जिन केरी, चरन कलन सम सिद्धि जयं ॥ २० ॥ ॥स्वामी.॥ उवन मिलन पिउ उवन उव उवनं, सह पय विपन आयरन सुयं । आयरन उवन हिय सहइ कलन जिन, कलन कमल उव मुक्ति जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी कलन कमल जिन केरी, कमल उवन सम सिद्धि जयं ॥ २१ ॥ ॥स्वामी.॥ उवन हिययार उवन जिन उत्तं, उवन पियं पिय मिलन सुयं । विवान अर्क सुइ सहज अर्क जिनु, सह समय मुक्ति मिलि सिद्धि धुवं ।। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्वामी हो बलिहारी अर्क जिन केरी, ___ अर्क समय सिद्धि राए ॥ २२ ॥ ॥स्वामी.॥ जिन श्रेनि उवन सुइकलन समय जिनु, कलन कमल उव उत्तु जिनं । कमल उवनु सुइ अलष धुवं जिन, धुव उवन कर्न सम सिद्धि जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी धुवं जिन केरी, धुव समय समय सिद्धि राए ॥ २३ ॥ ॥स्वामी.॥ जं तारन तरन कल कमल रमन जिनु, रमि रमिय समय उव उवनं । उवन समय उव उवन हियं जिनु, सम समय उवन सिद्धि गमनं ॥ स्वामी हो बलिहारी समय जिन केरी, सम समय विवान सिद्धि गमनं ॥ २४ ॥ |स्वामी.॥ नंत चतुस्टय रमन नंत जिनु, परमिस्टि इस्टि जिन रमनं । वीय विन्यान वीय सुइ रमनं, रमन उवन सुइ सिद्धि जयं ॥ स्वामी हो बलिहारी अयं जिन केरी, आइ नंत सम सिद्धि जयं ॥ २५ ॥ ॥स्वामी.॥ (३३९) Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१०८) अन्मोय फूलना गाथा २२३४ से २२४६ तक (विषय : पय-१२) उव उवन उवन उव उवनु सुयं जिनु, उव उवनु समय सम उत्तं । उव उवन सहावे समय उवन जिनु, उव उवन समय सिद्धि रत्तं ॥ १ ॥ जिनु अपने रंग मंदिर में रे, कोड उवन जिन स्वामी । कमल कर्न हंसि पूंछन लागे, जन काहे अकुलाने ॥ श्रेनिजू को कासिहु लागै, स्वामीजू को कासिहु रागै । पदमनाभि को कासिहु जागे, तीर्थंकर को कासिहु बूझै ॥ केवली को कासिहु मागै, उवन जिन उवन रमन पावे । सुयं जिन उवन रमन पावे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जै जयो जयं जै जयो जिनु, जय समय जयं जै उत्तं ॥ जै उवन जयं जै उवन जयं जिनु, जै उवन समय सिद्धि रत्तं ॥ ३ ॥ ॥ जिनु.॥ रम रमन रमन उव उवन रमन जिनु, रम रमन समय रमि रत्तं । उव उवन रमन सम समय उवन जिनु, उव उवन समय सिद्धि रत्तं ॥ ४ ॥ ॥ जिनु. ॥ सुवन सुवन सुव उवन सुवन जिनु, सुव सुयं समय सुव सुवनं । सुव कप्प वियप्प सुयं सुइ विलयं, सुव उवन समय सिद्धि रमनं ॥ ५ ॥ ॥ जिनु. ॥ सब्द सब्द उव उवन सब्द जिनु, उवन सब्द सम समयं । समय सब्द सम समय रमन जिनु, सब्द समय सिद्धि रमियं ॥ ६ ॥ ॥ जिनु.॥ हियं हियं हिय उवन रमन जिनु, हिय उवन समय सम रमनं । हिय उवन उवन हिय हियं उवन जिनु, हिय उवन समय सिद्धि गमनं ॥ ७ ॥ ॥ जिनु. ॥ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन श्रेनि जिन श्रेनि कलन जिनु, कलि श्रेनि समय सिद्धि गमनं ॥ १२ ॥ ॥ जिनु. ॥ तारन तरन सु तरन कमल जिनु, कमल समय सुइ उवनं । उवन कमल सुइ कर्न समय जिनु, सुइ उवन समय सिद्धि गमनं ॥ १३ ॥ || जिनु.॥ श्री ममल पाहुइ जी हुव हुवं हुवं हुव उवन रमन जिनु, हुव समय नंत हुव रमनं । हुव उवन सहावे उवन हुवन जिनु, हुव उवन समय सिद्धि गमनं ॥ ८ ॥ ॥ जिनु.॥ षिप षिपन उवन षिपि षिपन रमन जिनु, विपि रमन विवान सु उवनं । विवान रमन जिनु जिनय जयं जिनु, हुव उवन समय सिद्धि रमनं ॥ ९ ॥ ॥ जिनु. ॥ पियं पियं पिय उवन पियं जिनु, अन्मोय पियं जिन उवने । अन्मोय रंजु तं रमन समय जिनु, उव उवन नंद सिद्धि रमनं ॥ १० ॥ ॥ जिनु. ॥ मुक्ति मुक्ति जिनु उवनु मुक्ति जिनु, मुक्ति समय जिनु उवनं । मुक्ति सुभावे उवन मुक्ति जिनु, उव उवन मुक्ति सिद्धि गमनं ॥ ११ ॥ ॥ जिनु. ॥ श्रेनि श्रेनि उव कलन श्रेनि जिनु, उव कलन समय सम उवनं । (१०९) विन्यान रमन फूलना गाथा २२४७ से २२७४ तक (विषय : कमल दल, विवान-१, कलन चरन रमन) जिन जिनयति जिनय जिनय पौ, जिन जिनियौ उव नंतु । जिन जिनियौ कमल सब्द पिउ, जिन कर्न समं सुव नंतु ॥ १ ॥ जिन असह सहनु सुइ साहिऊ, ___जिन दिप्ति दिस्टि सुइ नंतु । गहनु विलय जिन गहन पौ, जिन उवन कम्मु विलयंतु ॥ २ ॥ जिन ढलन विलय जिन ढलन पौ, जिन उवन उवनु विलसंतु । (३४१) Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन उवन समय सुइ रमन पौ, जिन समय सिद्धि संपत्तु ॥ ३ ॥ जिन अर्क अर्क सुइ अर्क पौ, जिन अर्क विंद सम उत्तु । जिन उवन सहावे समय मौ, जिन समय दिप्ति दरसंतु ॥ ४ ॥ जिन अलष लषिउ सुइ अगम पौ, जिन अगम अगम दरसंतु । जिन इस्ट उवन सुइ विलय पौ, जिन उवन इस्ट इस्टंतु ॥ ५ ॥ जिन समय समय सुइ उवन पौ, जिन दिस्टि इस्टि रस उत्तु । जिन समय सब्द सुइ सब्द मौ, जिन सुवन सिद्धि संपत्तु ॥ ६ ॥ सुइ उवन मौ, जिन सुवन उवन इस्टंतु । जिन सुवन उवन सम साहिऊ, हिय दिप्ति सिद्धि संपत्तु ॥ ७ ॥ जिन उवन सुवन हिय साहिऊ, जिन जय जय जय सुइ उत्तु । जिन उवन उवन रस रमियौ, जिन रमन सिद्धि संपत्तु ॥ ८ ॥ जिन उवन समय सुइ उवन पौ, जिन उवन उवन अवयासु । अवयास समय जिनु नंत पौ, जिन समय नंतु सिद्धि रत्तु ॥ ९ ॥ अवयास समय सुइ नंत पौ, नंत चरन चरनंतु । चरन चरिय जिन चरन मौ, जिन चरन गर्भ जिन नंतु ॥ १० ॥ जिन उत्तु गर्भ जिन समय पौ, जिन कलन कलिय जिन नंतु । जिन जिनय गर्भ जिन ऊवने, जिन समय सुवन सिद्धि रत्तु ॥ ११ ॥ जिन कलन कलिय धुव कलन पौ, _____ जिन उवन नंत जिन उत्तु । जिन उवन उवन धुव नंत जिनु, धुव समय सिद्धि संपत्तु ॥ १२ ॥ दिप्ति दिस्टि सुइ समय मौ, सब्द प्रिये सुइ नंतु । अवयास नंत सुइ अवहि निहि, मन पर्जय अहँ सुव नंतु ॥ १३ ॥ उवन उवन सुइ सुवन मौ, सुवन उवन इस्टंतु । (B४२) Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उवन इस्टि सुइ कमल पौ, उव कमल सिद्धि संपत्तु ॥ १४ ॥ उव कमल कलन सुइ कमल पौ, कमल कर्न सम उत्तु । कमल सुवन जिनु जिनय पौ, जिनु समय सिद्धि संपत्तु ॥ १५ ॥ जिन कलन चरन चर चरन पौ, जिन रमन सुवन जिन उत्तु । तत्काल रमनु सुइ सुवन पौ, सुव उवन सिद्धि संपत्तु ॥ १६ ॥ सुइ सुयं सुयं जिन जिनय मौ, जिनु सुवन उवन सुइ उत्तु । जिन उवन सुवनु सुइ दर्सिउ, जिनु दर्स समय सिद्धि रत्तु ॥ १७ ॥ जिनु कलन उवनु उव उवन पौ, जिनु चरन चरिय चारित्तु । जिनु समय समय समदीय जिनु, जिनु समिदि सिद्धि संपत्तु ॥ १८ ॥ जिनु उवन चरन चर उवन पौ, जिनु चरन कलन कलयतु । जिनु कलन अगम गम अगम मौ, जिनु अगम सिद्धि संपत्तु ॥ १९ ॥ जिनु अगम अलष लष अलष मौ, जिनु अलष उवन अलषंतु । जिनु रमन रयन सुइ रमन पौ, जिनु रमन कलन जिन उत्तु ॥ २० ॥ जिनु मैय मैय मै उवन मौ, मै न्यान रमन मय उत्तु । मैय मैय मै सहकार मउ, सह उवन सिद्धि संपत्तु ॥ २१ ॥ सह सहन सहन जिन साह मौ, जिनु साह समय सम उत्तु । जिनु समय साह अवयास मौ, __अवयास जिनय जिन उत्तु ॥ २२ ॥ अवयास अर्क जिनु अर्क मौ, जिनु अर्क विंद सम उत्तु । जिनु समय उवनु कलि कमल मौ, कलि कमल सिद्धि संपत्तु ॥ २३ ॥ कलि कलियौ कलन सु कमल पौ, जिनु कमल उवन उव उत्तु । जिनु कमल उवन सम समय मौ, समय उवन सिद्धि संपत्तु ॥ २४ ॥ जिनु कमल कमल सम कमल मौ, जिनु कलन उवनु कलयंतु । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिनु कमल समय सुइ साहिऊ, जिनु उवन कमल सिद्धि रत्तु ॥ २५ ॥ जिनु तारन तरन सह समय मौ, जिनु उवन कलन सम उत्तु । जिनु कलन कमल उव उवन मौ, जिनु समय सिद्धि संपत्तु ॥ २६ ॥ जिनु जिनय जिनय जिनु श्रेनि मौ, जिनु कलन समय सम उत्तु । विन्यान वीय चौ उवन मौ, जिनु जिनय पयो पय उत्तु ॥ २७ ॥ जिनु तारन तरन सु तरन पौ, जिनु कमल कलन कलयंतु । जिनु उवन कमल सुइ सुवन मौ, जिनु समय सिद्धि संपत्तु ॥ २८ ॥ = श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिप्ति दिस्टि जिन उत्तु, जिन उत्तु रे, दिस्टि दिप्ति सुइ रमन पौ । सब्द प्रियो जिन उत्तु, जिन उत्तु रे, प्रिये सब्द सुइ मुक्ति पौ ॥ २ ॥ मैय उवनु सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, सुइ मैय सुबं जिन उवन मौ अढल ढलनु जिन दिटु, जिन दिलु रे, जिन जिनय ढलन सुइ मुक्ति पौ ॥ ३ ॥ अवयास ढलनु सुइ नंतु, सुइ नंतु रे, मै उवनु उवनु जिनु समय मौ । सम समय समय सम उत्तु, सम उत्तु रे, उव उवनु समय सुइ मुक्ति पौ ॥ ४ ॥ इस्ट उवन इस्टंतु, इस्टंतु रे, उवन इस्ट इस्ट ममल पौ । जं दिप्ति दिस्टि इस्टंतु, इस्टंतु रे, उवन इस्टि उव मुक्ति पौ ॥ ५ ॥ इस्ट उवन दर्संतु, दर्सतु रे, इस्ट उवनु सुइ समय मौ । उवन इस्टि दर्संतु, दर्सतु रे, उव उवन दिस्टि सुइ मुक्ति पौ ॥ ६ ॥ इस्ट उवन रमनंतु, रमनंतु रे, उवन इस्टि इस्ट समय मौ । - (११०) दोहा बसंत फूलना गाथा २२७५ से २२९९ तक (विषय : इष्ट दिप्ति, उत्पन्न दिप्ति, विवान-१) उव उवन उवन दर्सतु, दसैंतु रे, उव उवन सहावे समय मौ । उव उवन समय विलसंतु, विलसंतु रे, उव उवन सहावे मुक्ति पौ ॥ १ ॥ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी उव उवन रमन इस्टंतु, इस्टंतु रे, तत्काल रमनु जिन उव इस्ट रमन जिनु मुक्ति पौ ॥ उत्तु, जिन उत्तु रे, दिप्ति दिस्टि जिन रमन पौ । जं तारागन अवयास, अवयास रे, दिस्टि दिप्ति सुइ रमन मौ ॥ ८ ॥ नंत दिप्ति सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, ऐय दिप्ति नंत तं इस्ट दिप्ति सुइ नंतु, सुइ नंतु रे, जं तारा चंद्र दिपिनंतु, दिपिनंतु रे, रतिहि सहावे जं सूर दिप्ति दिपिनंतु, दिपिनंतु रे, तार चन्द्र नंत दिप्ति नंत दिपिनंतु, दिपिनंतु रे, रयन दिप्ति सुइ तं इस्ट दिप्ति दिपिनंतु, दिपिनंतु रे, छन्न उव उवन दिप्ति नंत छन्न मौ ॥ ९ ॥ दिप्ति मौ । छन्न सुई ॥ १० ॥ जं नंत दिप्ति फल उत्तु, फल उत्तु रे, दिप्ति चिंतामनि उवन छन्न तं नंत पयह संसारू, संसारू रे, मौ । ७ ॥ मौ । उवन रमन दिपि अमिय फलु । मौ ॥ १९ ॥ उवन पयह जिनु मुक्ति पौ ।। १२ ।। ३४५ तत्काल रमन सुइ उत्तु सुइ उत्तु रे, कमल नंद पिउ उत्तु जं सूर दिप्ति रति विलय मौ । पिउ उत्तु रे, दिस्टि दिप्ति सुइ रमन मौ ॥ १३ ॥ सहकार रमन सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, दिप्ति सहावे दिस्टि उवन दिप्ति दिपियंतु, दिपियंतु रे, जिनु । समय दिस्टि रमि मुक्ति पौ ।। १४ । दिप्ति दिपिय सुइ नंतु, सुइ नंतु रे, ऐय दिस्टि सुइ सम रमनु । तं समय दिप्ति सुइ नंतु, सुइ नंतु रे, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उवन दिस्टि सम मुक्ति पौ ।। १५ ।। सब्द नंत सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, अवयास सब्द सुइ नंत मौ । तं समय सब्द पिउ नंतु, पिउ नंतु रे, उव उवन सब्द पिउ मुक्ति पौ ॥ १६ ॥ साह रमनु सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, आद सहावे तं असम समय सहनंतु, सहनंतु रे, उवनु उवनु । उवन साह सम मुक्ति पौ ॥ १७ ॥ जं अर्क नंत सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, उवन अर्क बिनु विलय पौ । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जं उवनु जिनय जिन उत्तु, जिन उत्तु रे, समय साह सम नंत मौ । भय विलय भेउ सिय भव्वु, सिय भव्वुरे, उवन समय भत्ति मुक्ति पौ ॥ २४ ॥ उव उवन साहि सम उत्तु, सम उत्तु रे, ____सम समय साह जिन जिनय पौ । उव उवन समय सम उत्तु, सम उत्तु रे, सिद्ध समय सम मुक्ति पौ ॥ २५ ॥ श्री ममल पाहुइ जी तं असम समय सुइ नंतु, सुइ नंतु रे, उवन उवन बिनु सरनि पौ ॥ १८ ॥ जं उवन अर्क अवयास, अवयास रे, अर्क समय सुइ विलसियौ । तं उवन कमल अवयास, अवयास रे, कर्न समय सम मुक्ति पौ ॥ १९ ॥ जं अर्क समय सम उत्तु, सम उत्तु रे, कलन कलिय सुइ उवन पौ । जं चरन चरन सुइ उत्तु, सुइ उत्तु रे, तं उवन कलन सम मुक्ति पौ ॥ २० ॥ जं चरन कलन कलयंतु, कलयंतु रे, कलन कमल उव उवन पौ । उव उवन कर्नु साहंतु, साहंतु रे, सुवन कमल सम मुक्ति पौ ॥ २१ ॥ जं तारन तरन उवन्नु, उवन्नु रे, उवन समय सम पिऊ रमनु । तं उवन कमल कलयंतु, कलयंतु रे, उवन दिप्ति दिस्टि मुक्ति पौ ॥ २२ ॥ जं उवन श्रेनि जिन श्रेनि, जिन श्रेनि रे, कलन सहावे कलन मौ । जं तारन तरन जिनुत्तु, जिनुत्तु रे, तार कमल सम मुक्ति पौ ॥ २३ ॥ (११) जिन बत्तीसी फूलना गाथा २३०० तक २३३१ तक (विषय : विवान-१, परमेष्ठी सटीक) जिन जिनयति जिनय सु जिनय पौ, सुनि न्यानी हो । जिनु समय कम्मु विलयंतु, परम जिन स्वामी हो ॥ १ ॥ जिनु दिप्ति दिस्टि सुइ नंत पौ, सुनि न्यानी हो । जिनु दिस्टि दिप्ति प्रिये सुइ नंतु, जिनय जिन स्वामी हो ॥ २ ॥ जिनु दिस्टि दिप्ति सुइ नंत मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु दिप्ति दिस्टि जिननाहु, सुयं जिन स्वामी हो ॥ ३ ॥ जिनु मैय उवनु सुइ नंत मौ, सुनि न्यानी हो । मै उवनु जिनय जिननाहु, अलष जिन स्वामी हो ॥ ४ ॥ अन्मोय मैय जिन जिनय जिनु, सुनि न्यानी हो । जिनु मैय उवनु अन्मोय, समय जिन स्वामी हो ॥ ५ ॥ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिन दिप्ति सूर्य सुइ दिप्ति मौ, सुनि न्यानी हो । अन्मोय दिस्टि सिद्धि रत्तु, नंत जिन स्वामी हो ॥ ६ ॥ जिनु नंत दिप्ति दिस्टि दर्स मौ, सुनि न्यानी हो । अन्मोय दिस्टि सिद्धि रत्तु, उवन जिन स्वामी हो ॥ ७ ॥ जिनु सब्द प्रिये जिनु समय मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु सब्द समय सिद्धि रत्तु, नंद जिन स्वामी हो ॥ ८ ॥ जिनु सब्द प्रिये सम समय मौ, सुनि न्यानी हो । पिय उवन सिद्धि संपत्तु, निलय जिन स्वामी हो ॥ ९ ॥ जिनु दिस्टि दिप्ति दिपि दिस्टि मौ, सुनि न्यानी हो । मै उवन सिद्धि संपत्तु, अगम जिन स्वामी हो ॥ १० ॥ जिनु सब्द प्रिये पिय सब्द मौ, सुनि न्यानी हो । अन्मोय सब्द सिद्धि रत्तु, सहज जिन स्वामी हो ॥ ११ ॥ जिनु मैय उवनु उव उवन मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु उवन साहि सिद्धि रत्तु, सुवन जिन स्वामी हो ॥ १२ ॥ अवयास उवनु जिन उवन मौ, सुनि न्यानी हो । अवयासु सुयं सुइ नंतु, नंत जिन स्वामी हो ॥ १३ ॥ जिनु उवन साहि सम साहि मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु समय उवनु जिन नंतु, उवन जिन स्वामी हो ॥ १४ ॥ अवयास उवनु सुइ कलन मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु कमल कलन धुव नंतु, कलन जिन स्वामी हो ॥ १५ ॥ जिनु कलन चरन चर चरन मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु कमल सब्द धुव नंतु, कमल जिन स्वामी हो ॥ १६ ॥ 1111111111111111111111 श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिनु कमल कलन धुव नंत जिनु, सुनि न्यानी हो । धुव उवन सुवन सुइ साहि, साहि जिन स्वामी हो ॥ १७ ॥ सुवन साहि जिन रमन मौ, सुनि न्यानी हो । सुइ रमन उवन जिन नंत, रमन जिन स्वामी हो ॥ १८ ॥ जिनु रयन रमन उव उवन मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु रमन रयन जिननाहु, रयन जिन स्वामी हो ॥ १९ सुयं सु लषियौ अलष मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु अलष अगोचरु नंतु, चरन जिन स्वामी हो ॥ २० जिनु इस्ट उवन पौ उवन दिपि, सुनि न्यानी हो । जिनु उवन इस्ट दर्संतु, दर्स जिन स्वामी हो ॥ २१ पय कमल कलन जिन नंत मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु कदल कमल कलयंतु, कमल जिन स्वामी हो ॥ २२ ॥ जिनु कदल कलन पुलि पुलिन मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु पुलिन कमल कलयंतु, कर्न जिन स्वामी हो ॥ २३ जिनु पुलिन गगन जिन नंत मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु गगन कमल कलयंतु, हर्ष जिन स्वामी हो ॥ २४ जिनु गगन गमन सुइ कलस मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु कमल कलस कलि नंतु, गहिर जिन स्वामी हो ॥ २५ जिनु कलस कमल उव उवन मौ, सुनि न्यानी हो । ससि कमल कलन कलयंतु, कलन जिन स्वामी हो ॥ २६ ॥ ससि कमल कलन जिन साहि मौ, सुनि न्यानी हो । ससि साहि जिनय जिन उत्तु, उत्त जिन स्वामी हो ॥ २७ ॥ 111111111111111111111 (३४७) Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ॥ श्री ममल पाहुइ जी जिनु साहि सुयं सुइ उत्त मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु भवन विंद सम साहि, विंद जिन स्वामी हो ॥ २८ ॥ जिनु भवन कमल कलि कमल मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु कमल कमल सिद्धि रत्तु, दिप्ति जिन स्वामी हो ॥ २९ ॥ जिनु अर्क अर्क जिन जिनय मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु अर्क विंद सम संतु, संत जिन स्वामी हो ॥ ३० ॥ जिनु तारन तरन सु अर्क जिनु, सुनि न्यानी हो । जिनु समय अर्क सिव पंथु, पंथ जिन स्वामी हो ॥ ३१ ॥ जिनु तारन तरन विवान मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु समय सिद्धि संपत्तु, सिद्ध जिन स्वामी हो ॥ ३२ ॥ EEEEEEEEEET ॥ उव उवन जयं हिय उवन जयं, सह साह जयं उव समय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, सुयं जिन तुव पय हम सरनं ॥ ४ चर चरन जयं कलि कलन जयं, जय कलन कमल जिन धुव उवनं । जिन तुव पय हम सरनं, जिनय जिन तुव पय हम सरनं ॥ ५ धुव उवन सुयं सुइ सुवन सुयं, धुव उवन कर्न सम समय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, सहज जिन तुव पय हम सरनं ॥ ६ सुव सुवन समं सम सुवन सुयं, अवयास उवन सम साहि जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, परम जिन तुव पय हम सरनं ॥ ७ अवयास सुयं सुर रमन रम, सुइ अर्क उवन विंद समय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, नंद जिन तुव पय हम सरनं ॥ ८ इस्ट उवन जयं उव उवन जयं, उव उवन इस्टि उव समय जिनं । ॥ - - (११२) उवन इस्ट समयसार फूलना गाथा २३३२ से २३७२ तक (विषय : कमल दल, लब्धि-१) जिन जिनय जय जय जयो जयं, जिन उवन जयं जय समय जयं ॥ १ ॥ जिन तुव पय हम सरनं, अलष जिन तुव पय हम सरनं ॥ २ ॥ ||आचरी॥ तारै तरै समय सुइ तार, अबलबली जिन जिनय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, केवल जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३ ॥ ॥ - = ॥ (३४८) Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ॥ श्री ममल पाहुइ जी जिनु साहि सुयं सुइ उत्त मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु भवन विंद सम साहि, विंद जिन स्वामी हो ॥ २८ ॥ जिनु भवन कमल कलि कमल मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु कमल कमल सिद्धि रत्तु, दिप्ति जिन स्वामी हो ॥ २९ ॥ जिनु अर्क अर्क जिन जिनय मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु अर्क विंद सम संतु, संत जिन स्वामी हो ॥ ३० ॥ जिनु तारन तरन सु अर्क जिनु, सुनि न्यानी हो । जिनु समय अर्क सिव पंथु, पंथ जिन स्वामी हो ॥ ३१ ॥ जिनु तारन तरन विवान मौ, सुनि न्यानी हो । जिनु समय सिद्धि संपत्तु, सिद्ध जिन स्वामी हो ॥ ३२ ॥ EEEEEEEEEET ॥ उव उवन जयं हिय उवन जयं, सह साह जयं उव समय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, सुयं जिन तुव पय हम सरनं ॥ ४ चर चरन जयं कलि कलन जयं, जय कलन कमल जिन धुव उवनं । जिन तुव पय हम सरनं, जिनय जिन तुव पय हम सरनं ॥ ५ धुव उवन सुयं सुइ सुवन सुयं, धुव उवन कर्न सम समय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, सहज जिन तुव पय हम सरनं ॥ ६ सुव सुवन समं सम सुवन सुयं, अवयास उवन सम साहि जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, परम जिन तुव पय हम सरनं ॥ ७ अवयास सुयं सुर रमन रम, सुइ अर्क उवन विंद समय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, नंद जिन तुव पय हम सरनं ॥ ८ इस्ट उवन जयं उव उवन जयं, उव उवन इस्टि उव समय जिनं । ॥ - - (११२) उवन इस्ट समयसार फूलना गाथा २३३२ से २३७२ तक (विषय : कमल दल, लब्धि-१) जिन जिनय जय जय जयो जयं, जिन उवन जयं जय समय जयं ॥ १ ॥ जिन तुव पय हम सरनं, अलष जिन तुव पय हम सरनं ॥ २ ॥ |आचरी॥ तारै तरै समय सुइ तार, अबलबली जिन जिनय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, केवल जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३ ॥ ॥ - = ॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = - - श्री ममल पाहुइ जी जिन तुव पय हम सरनं, तरन जिन तुव पय हम सरनं ॥ २० ॥ तर तार जिनं उव तरन जिनं, उव तार तरन जिन जिनय जिनं जिन तुव पय हम सरनं, जिनय जिन तुव पय हम सरनं ॥ २१ ॥ इस्ट उवन समं उव समय सम, जिन तार तरन सम समय समं जिन तुव पय हम सरनं, समय जिन तुव पय हम सरनं ॥ २२ ॥ तर तार उवं उव उवन समं, धुव उवन समय सुइ सिद्धि रमं । जिन तुव पय हम सरनं, सिद्ध जिन तुव पय हम इस्ट लषन इस्टं उव उवन लषं, उव उवन लषं इस्ट लषन जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, लषन जिन तुव पय हम सरनं ॥ २४ ॥ इस्ट अलष इस्टं उव अलष उवं, उव उवन अलष इस्ट अलष जिनं जिन तुव पय हम सरनं, अलष जिन तुव पय हम सरनं ॥ २५ ॥ इस्ट गमन इस्टं उव उवन गर्म, उव उवन गमन इस्ट गमन जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, __गमन जिन तुव पय हम सरनं ॥ २६ ॥ इस्ट अगम इस्टं उव अगम उवं, उव उवन अगम इस्ट अगम जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, अगम जिन तुव पय हम सरनं ॥ २७ ॥ इस्ट आस इस्ट उव आस उवं, उव उवन आस इस्ट आस जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, आस जिन तुव पय हम सरनं ॥ २८ ॥ इस्ट अस्नेह इस्टं उव अस्नेह उवं, उव उवन अस्नेह इस्ट अस्नेह जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, अस्नेह जिन तुव पय हम सरनं ॥ २९ ॥ इस्ट न्यान इस्टं उव न्यान उवं, उव उवन न्यान इस्ट न्यान जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, न्यान जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३० ॥ इस्ट दर्स इस्टं उव दर्स उवं, उव उवन दर्स इस्ट दर्स जिनं । = - = - (३५०) Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = - - - श्री ममल पाहुइ जी जिन तुव पय हम सरनं, दर्स जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३१ ॥ इस्ट दान इस्टं उव दान उवं, उव उवन दान इस्ट दान जिन तुव पय हम सरनं, दान जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३२ ॥ इस्ट लाभ इस्टं उव लाभ उवं, उव उवन लाभ इस्ट लाभ जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, लाभ जिन तुव पय इस्ट भोग इस्टं उव भोग उवं, उव उवन भोग इस्ट भोग जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, भोग जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३४ ॥ इस्ट उवभोग इस्टं, उव उवभोग उवं, उव उवन उवभोग उवभोग जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, उवभोग जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३५ ॥ इस्ट वीर्ज इस्ट उव वीर्ज उवं, उव उवन वीय इस्ट वीय जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, वीय जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३६ ॥ इस्ट संमत्त इस्टं उव संमत्त उवं, उव उवन संमत्त इस्ट संमत्त जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, संमत्त जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३७ ॥ इस्ट चरन इस्टं उव उवन चरं, उव उवन चरन इस्ट चरन जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, चरन जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३८ ॥ इस्ट लब्धि इस्टं उवलब्धि उवं, उव उवन लब्धि इस्ट लब्धि जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, लब्धि जिन तुव पय हम सरनं ॥ ३९ ॥ इस्ट अलब्धि इस्टं उव अलब्धि उवं, उव उवन अलब्धि इस्ट अलब्धि जिनं । जिन तुव पय हम सरनं, अलब्धि जिन तुव पय हम सरनं ॥ ४० ॥ श्रेनि कलन जयं तार कमल जयं, तर तार कमल सम सिद्धि जयं । जिन तुव पय हम सरनं, सिद्ध जिन तुव पय हम सरनं ॥ ४१ ॥ - - - (३५१) Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (१९३) अर्क चौतीसी फूलना गाथा २३७३ से २४०६ तक (विषय : पंचार्थ की महिमा, ज्ञान-१, कलन चरन रमन) स्वामी उवन उवन जिनु उवन जिनु हो, उव उवन उवन दर्सतु हो । जिन जिनय उवन जिनु ॥ १ ॥ स्वामी जयो जयो जय जयो जिनु हो, जयो जयो जयवंतु हो। जिन जिनय जयो जिनु ॥ २ ॥ स्वामी मयो मयो मयवंतु जिनु हो, मयो उवन जिन उत्तु हो । जिन जिनय मयो जिनु ॥ ३ ॥ जिनु सुर्य सुर्य जिनु सुर्य जिनु हो, जिनु सुर्य उवनु जिननाहु हो। जिन जिनय सुयं जिनु ॥ ४ ॥ जिनु रमन रमन जिनु रमन जिनु हो, रमन उवन उव उत्तु हो । जिन जिनय रमन जिनु ॥ ५ ॥ जिनु सहन सहन जिनु सहन जिनु हो, जिनु उवन सहन सह नंतु हो । जिन जिनय सहन जिनु ॥ ६ ॥ जिनु साह साह जिनु साह जिनु हो, जिनु उवन साह साहंतु हो । जिन जिनय साह जिनु ॥ ७ ॥ जिनु राह राह जिनु राह जिनु हो, जिनु राह उवन राहंतु हो । जिन जिनय राह जिनु ॥ ८ ॥ जिनु हिय हिय हिय हिय उवन जिनु हो, जिनु हिय हिय जिन हिय उत्तु हो । जिन जिनय हियं जिनु ॥ ९ ॥ जिनु हुव हुव हुव हुव हुवन जिनु हो, जिनु हुव हुव जिन हुव उत्तु हो । जिन जिनय हुवन जिनु ॥ १० जिनु गुपित गुपित गुपितार जिनु हो, जिनु गुपित गुपित जिन उत्तु हो । जिन जिनय गुपित जिनु ॥ जिनु जान जान जिनु जान मउ हो, __ जिनु जान विवान स उत्तु हो । जिन जिनय जान जिनु ॥ १२ ॥ जिनु पयह पयह पय रमन जिनु हो, जिनु पय पय पय पय उत्तु हो । जिन जिनय पयं जिनु ॥ १३ ॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिनु अलष अलष गुपितार जिनु हो, जिनु अलष अलष दर्सतु हो । जिन जिनय अलष जिनु ॥ १४ ॥ जिनु अगम अगम गुपितार अगमु हो, जिनु अगम अगम विलसंतु हो । जिन जिनय अगम जिनु ॥ १५ ॥ जिनु दिप्ति दिप्ति सुइ दिप्ति जिनु हो, जिनु दिप्ति दिप्ति दिपि उत्तु हो । जिन जिनय दिप्ति जिनु ॥ १६ ॥ जिनु समय समय सम समय जिनु हो, जिनु समय समय सिद्धि रत्तु हो । जिन जिनय समय जिनु ॥ १७ ॥ जिनु कर्न कर्न आकर्न जिनु हो, जिनु कर्न कर्न सम साहि हो । जिन जिनय कर्न जिनु ॥ १८ ॥ जिनु सुवन सुवन सुव सुवन जिनु हो, जिनु सुवन सुवन सुइ उत्तु हो । जिन जिनय सुवन जिनु ॥ १९ ॥ जिनु उवन उवन उव साहि जिनु हो, जिनु साहि साहि सम साहि हो । जिन जिनय साहि जिनु ॥ २० ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिनु उवन उवन सम उवन जिनु हो, जिनु उवन साह सम उत्तु हो । जिन जिनय उत्तु जिनु ॥ २१ ॥ जिनु अर्क अर्क सम अर्क जिनु हो, जिनु अर्क अर्क उदयंतु हो । जिन जिनय अर्क जिनु ॥ २२ ॥ जिनु अर्क अर्क सुइ अर्क जिनु हो, जिनु अर्क अर्क कलयंतु हो । जिन जिनय कलन जिनु ॥ २३ ॥ जिनु कलन कलन कलि कलन जिनु हो, जिनु कलन अर्क कलयंतु हो । जिन जिनय कलन जिनु ॥ २४ ॥ जिनु रुइय रुइय रुइ कलन जिनु हो, जिनु रुइय रुइय कलयंतु हो । जिन जिनय रुइय जिनु ॥ जिनु चरन चरन चर कलन जिनु हो, जिनु चरन चरन कलयंतु हो । जिन चरन कलन जिनु ॥ २६ ॥ जिनु चरन कलन रुड़ कलन जिनु हो, जिनु कलन कमल जिन उत्तु हो । जिन चरन कमल जिनु ॥ २७ ॥ (३५३) Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिनु कलन चरन चर रुइय जिनु हो, जिनु कमल कलन कलयतु हो । जिन कलन कमल जिनु ॥ २८ ॥ जिनु उवन रमन रुइ कलन जिनु हो, जिनु कलन कमल कलयंतु हो ।। जिन उवन कमल जिनु ॥ २९ ॥ जिनु कलन कमल सुइ नंत जिनु हो, जिनु उवन कमल धुव नंतु हो । जिन उवन कमल जिनु ॥ ३० ॥ जिनु उवन श्रेनि कलि कलन मऊ हो, जिनु कलन श्रेनि जिन उत्तु हो । जिन उवन कमल जिनु ॥ ३१ ॥ जिनु तारन तरन सु कमल मउ हो, जिनु कमल सुवन सिद्धि रत्तु हो । जिन सिद्ध कमल जिनु ॥ ३२ ॥ जिनु तारन तरन विवान मऊ हो, विवान कमल सम उत्तु हो । जिन कमल धुवं जिनु ॥ ३३ ॥ जिनु तारन तरन कलि कमल मउ हो, सम समय सिद्धि संपत्तु हो । जिन जिनय सिद्ध जिनु ॥ ३४ ॥ (१९४) सुयं कमल जिन फूलना गाथा २४०७ से २४१९ तक (विषय: परमेष्ठी सटीक) उव उवन उवन उव उवन सरत्ते, उव उवन पयं पय सिद्धि जिनुत्ते । जिन जिनय जिनं जिन जिनवर उत्ते, जिन समय उवन जिन सिद्धि संपत्ते ॥ १ ॥ जिन जिन लडिया जिन जिनवरु पेषिऊ, सह समय रमन स्वामी मुक्ति पहुंते ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ पय पयं पयं पिय पिय जिन रत्ते, पिय पियं पियं पय समय संजुत्ते । सम समय समय सुइ समय जिनुत्ते, पिय सब्द समय जिनु मुक्ति स रत्ते ॥ ३ ॥ ॥ जिन. ॥ __ हिय हियं हियं हुव रमन जिनुत्ते, हुव हुवं हुवं अवयास संजुत्ते । अवयास असह सह साह सहते, सुइ साह सुवन धुव नंत जिनुत्ते ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ (३५४ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मै उवन गगन गम अगम गमंते, जय गगन कमल जिन सिद्धि संपत्ते ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ अवयास उवन सुइ रमन जिनुत्ते, तं रमन पियं पिय परिनय उत्ते । प्रमान जिनय जिन चरन जिनुत्ते, सुइ कलन कमल जिन सिद्धि संपत्ते ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ सुवन सुयं सुइ उवन संजुत्ते, सुइ रमन जिनय जिनु समय स उत्ते । साह रमनु जिनु कमल स उत्ते, सुइ कलन कमल जिन सिद्धि संपत्ते ॥ ६ ॥ ॥जिन. ॥ जयो जय जय जिनवर उत्ते, जय जय जय जय जयं जिनुत्ते । पय कमल कदल गम अगम स उत्ते, पय अगम समय जिनु सिद्धि संपत्ते ॥ ७ ॥ सुइ गगन सहावे चर कलन जिनुत्ते, सुइ कलन कलस जिन कमल कलंते । सुइ कलस कमल कलि कलन अनंते, सुइ गहिर अनंत जिन सिद्धि संपत्ते ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ कलस सहज जिनु ससि जिन उत्ते, ससि सिद्धि रमन जिनु जिनय स उत्ते । ससि कमल रमन जिनु कलन जिनुत्ते, ससि रमन समय जिनु सिद्धि संपत्ते ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ ससि रमन सुयं जिनु भवन जिनुत्ते, सुइ भवन विंद जिनु कमल कलंते । सुइ नंत विंद उव विंद स उत्ते, सुइ भवन विंद जिनु सिद्धि संपत्ते ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन जिनय श्रेनि जिनु कलन संजुत्ते, सुइ कलन साह जिनु श्रेनि जिनुत्ते । सुइ तारन तरन कलि कमल स उत्ते, जय तार कमल सम सिद्धि संपत्ते ॥ १३ ॥ ॥ जिन.॥ जिन. ॥ सुइ कदल कमल कल चरन स उत्ते, सुइ पुलिन सहावे जिन जान जिनुत्ते । सुइ जान जान रिजु विपुल स उत्ते, सुइ अलष समय जिनु सिद्धि संपत्ते ॥ ८ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ पुलिन सुर्य जय गगन जयवंते, सुइ गगन कमल चर कलन जिनुत्ते । जिन सुइ लकमल स उत्ते, सिद्धि संपत्ते ॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव चरन कमल धुव रमन रली, उव कमल चरन धुव कर्न मिली ॥ ८ ॥ ॥ हम. ॥ उव रमन कमल धुव रमन रली, उव कमल रमन धुव श्रवन मिली ॥ ९ ॥ श्री ममल पाहुइ जी (१११) चौबीस अर्क सिय रलि फूलना गाथा २४२० से २४५८ तक (विषय कमल दल, अर्क चौबीस) उव उवन उवन उव उवन रली, उव उवन समय रलि मुक्ति चली ॥ १ ॥ हम अपने उवन पै माडौगि रली, उव उवन समय रलि मुक्ति मिली ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ उव उवन उवन कलि कलन रली, उव कलन कमल रली मुक्ति चली ॥ ३ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन चरन उव चरन रली, उव चरन कमल रलि सिद्धि मिली ॥ ४ ॥ ___ उव कलन चरन धुव कमल रली, धुव कमल कर्न रलि मुक्ति मिली ॥ १० ॥ = EFEEEEEEET = = उव उवन रमन उव रमन रली, उव रमन कमल धुव मुक्ति मिली ॥ ५ ॥ उव उवन दर्स रलि कमल रली, उव कमल कर्न दर्स मुक्ति चली ॥ ११ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन इस्ट उव रमन रली, उव रमन कमल कर्न मुक्ति मिली ॥ १२ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन लषन रलि कमल रली, उव अलष कमल कर्न मुक्ति मिली ॥ १३ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन गमन कलि कमल रली, उव अगम कमल कर्न मुक्ति मिली ॥ १४ ॥ ॥ हम. ॥ = = उव उवन कमल धुव उवन रली, उव रमन धुवं सम कर्न मिली ॥ ६ ॥ = = उव कलन कमल धुव रमन रली, अन्मोय कमल धुव = कर्न रली ॥ ७ ॥ ॥ हम. ॥ (३५६) Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन अर्क रलि कमल रली, उव कमल अर्क कर्न मुक्ति मिली ॥ १५ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन समय कर्न सुवन रली, उव सुवन कमल रलि मुक्ति मिली ॥ १६ ॥ ॥ हम. ॥ उव सुवन रमन रलि हंस रली, उव हंस कमल रलि मुक्ति मिली ॥ १७ ॥ ॥ हम. ॥ उवन हंस अवयास रली, अवयास कमल रलि मुक्ति मिली ॥ १८ ॥ उव उवन अभय रलि सुर्क रली, उव सुर्क कमल रलि मुक्ति मिली ॥ २२ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन सुर्क रलि अर्थ रली, सर्वार्थ कमल रलि मुक्ति मिली ॥ २३ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन अर्क रलि विंद रली, उव विंद कमल रलि मुक्ति चली ॥ २४ ॥ = = = = = = = = = = = = उव उवन अवयास रलि दिप्ति रली, उव दिप्ति कमल रलि मुक्ति चली ॥ १९ ॥ = = = = = उव उवन विंद रलि नंद रली, जय नंद कमल रलि मुक्ति मिली ॥ २५ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन नंद आनंद रली, आनंद कमल रलि मुक्ति मिली ॥ २६ ॥ ॥ हम. ॥ आनंद उवन रलि समय रली, सुइ समय कमल रलि मुक्ति मिली ॥ २७ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन समय रलि हिय उवन रली, हिय कमल उवन रलि मुक्ति मिली ॥ २८ ॥ ॥ हम. ॥ = = = = = = सुइ दिप्ति रली, सुइ दिप्ति कमल रली मुक्ति मिली ॥ २० ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन सु दिप्ति रलि अभय रली, सुइ अभय कमल रलि मुक्ति मिली ॥ २१ ॥ ॥ हम. ॥ = = = = = = = (३५७ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी = = = = श्री ममल पाहुइ जी हिय उवन रमन रलि अलष रली, हिय अलष कमल रलि मुक्ति चली ॥ २९ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन अलष रलि अगम रली, उव अगम कमल रलि मुक्ति मिली ॥ ३० ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन अगम रलि सहयार रली, सहयार कमल जय मुक्ति मिली ॥ ३१ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन साह रलि रमन रली, कमल रमन रलि = = उव उवन षिपन रलि ममल रली, उव ममल कमल रलि सिद्धि मिली ॥ ३६ ॥ ॥ हम. ॥ उव उवन अर्क उव पट्ट रली, उव पट्ट कमल पय परम मिली ॥ ३७ ॥ ॥ हम. ॥ विन्यान वीय चौ उवन रली, सुइ अर्क कमल रलि सिद्धि मिली ॥ ३८ ॥ ॥ हम. ॥ चौबीस अर्क रलि कलन रली, कलि कलन कमल अर्क सिद्धि मिली ॥ ३९ ॥ ॥ हम. ॥ = = = उव उवन रमन रलि इय रंज रली, सुइ रंज कमल रलि मुक्ति चली ॥ ३३ ॥ = = उव सुयं रंज रलि उवन रली, सुइ उवन कमल रलि मुक्ति मिली ॥ ३४ ॥ ॥ हम. ॥ सुइ उवन उवन रलि षिपन रली, उव षिपन कमल रलि मुक्ति चली ॥ ३५ ॥ (११६) उपयोग सार फूलबा गाथा २४५९ से २४७६ तक (विषय : उपयोग की महिमा) पय पयह पयं रमि पयह जै रैया, पय उवन पयोग सिय मुक्ति रमैया ॥ १ ॥ उव उवन उवन सारू उवन जिनैया, जिन जिनय समय रमि मुक्ति मिलैया ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ = (३५८ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी पय पयह पयोग मई पयोग सि जैया, उव उवन पयोग सिय पयोग मिलैया ॥ ३ ॥ ॥ उव. ॥ उव उवन विंद रै विंद विन्यान समैया, विंद उवन कमल विंद कर्न रमैया ॥ ४ ॥ ॥ उव. ॥ सम समय समय सिय उवन समैया, सुइ कलन कमल अन्मोये उवनु जिनैया ॥ ५ ॥ ॥ उव. ॥ नंद नंद सिय उवन नंदैया, सुइ नंद कमल नंद मुक्ति मिलैया ॥ ६ ॥ ॥ उव. ॥ हियं हियं हिय उवन हिय रैया, हिय कमल कलन कलि हियन जिनैया ॥ ७ ॥ ॥ उव. ॥ जान जान सिय उव विवान रमैया, सुइ जान कमल जिनु मुक्ति मिलैया ॥ ८ ॥ ॥ उव. ॥ जड़ जैन सि उवन जै जयन रमैया, जइ जैन कमल कलि मुक्ति जिनैया ॥ ९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी लष लषन लषन लषि उव अलष लषैया, उव लषन कमल लषि अलष जिनैया ॥ १० ॥ ॥ उव. ॥ निल निलय निलय निल निलय सि रैया, जिन निलय कमल उव मुक्ति रमैया ॥ ११ ॥ ॥ उव. ॥ भद्र भद्र उव भद्र जिनैया, जय भद्र कमल कलि मुक्ति मिलैया ॥ १२ ॥ उव. ॥ मै उवन उवन उव उवन सि रैया, ___मै उवन कमल कलि सिद्धि रमैया ॥ १३ ॥ ॥ उव. ॥ सुइ सहज सहज उव सहज सि रैया, सुइ सहज कमल जय जयो जिनैया ॥ १४ ॥ ॥ उव. ॥ पय उवन उवन उव उवन सि रैया, पै उवन कमल कलि मुक्ति मिलैया ॥ १५ ॥ ॥ उव. ॥ पय पयं पयं पय रमन रमैया, रमि रमन पयोग सिय मुक्ति मिलैया ॥ १६ ॥ ॥ उव. ॥ = = = = = = = Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उव उवन श्रेनि जिन श्रेनि जिनैया, कलि कलन कमल उव मुक्ति रमैया ॥ १७ ॥ || उव. ॥ सुइ तारन तरन तर तार तरैया, तार तरन कमल कर्न मुक्ति मिलैया ॥ १८ ॥ ॥ उव. ॥ (११७) बंथ जिनाई फूलना गाथा २४७७ से २४८९ तक (विषय : विवान पांच) उव उवन उवन उव मिलन है, सुइ बंध जिनाई। जं उवन रमन रस परिनमै, सुइ बंध विलाई ॥ १ ॥ जय जयो जयो जय रमन सुइ, सुइ उवनु रमाई ।। उव उवन संजोये समय जिनु, जय मुक्ति मिलाई ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ दिप्ति दिप्ति सुइ दिप्ति जिनु, दिप्ति उवनु दिपाई । सुइ दिस्टि इस्टि रमि समय सुइ, रमि मुक्ति मिलाई ॥ ३ ॥ ॥ जय. ॥ दिपि दिप्ति दिप्ति नंत समय दिपि, दिपि समय दिपाई । सुइ दिस्टि इस्टि रमि उवन रिस्टि, रमि मुक्ति रमाई ॥ ४ ॥ ॥ जय. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय सब्द सब्द सुइ सब्द पिऊ, उव सब्द समाई । सुइ सब्द समय नंत रमन पिऊ, रमि मुक्ति मिलाई ॥ ५ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ सब्द समय नंत सब्द पिऊ, उव सब्द रमाई । उवन सब्द रस धुव रमनु, धुव मुक्ति मिलाई ॥ ६ ॥ ॥ जय. ॥ हिय हियं हियं हिय समय हियं, हिय समय रमाई । हिय उवन उवन धुव उवन हियं, रलि मुक्ति मिलाई ॥ ७ ॥ ॥ जय. ॥ हुव हुवन हुवन नंत हुव समय, हुव समय रमाई । हुव उवन उवन धुव हुव उवन, हुव मुक्ति मिलाई ॥ ८ ॥ जय. ॥ सहन समय नंत सहन रली, रलि समय सहाई । सुइ उवन सहन सम समय मौ, सह मुक्ति मिलाई ॥ ९ ॥ ॥ जय. ॥ साह समय नंत समय साह, रलि साह समाई । उव उवन साह धुव रमन रमि, सह मुक्ति मिलाई ॥ १० ॥ ॥ जय. ॥ समय रमनु उव उवन पौ, पिय उवनु रमाई । उवन रमनु सुइ अमिय रसु, रमि मुक्ति मिलाई ॥ ११ ॥ ॥ जय. ॥ (३६० Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी समय गमनु नंत उव गमनु, रमि गमनु रमाई । उव उवन गमनु चिंतामनि, चिंति मुक्ति मिलाई ॥ १२ ॥ ॥ जय. ॥ वस वास समय सम उवन वास, रलि वास समाई । उव उवन वास मलयागिरि, वसि मुक्ति वसाई ॥ १३ ॥ ॥ जय.॥ (१९८) जोगी जोग फूलना गाथा २४९० से २५०२ तक (विषय : विवान पांच) जय जय जय जय रमन सुइ, सुइ सुर्य उवनु जयवंतु । उव उवन सहावे जय समय सुइ, जय समय सिद्धि संपत्तु ॥ परमार्थ जोगी उवन सहिऊ ॥ १ ॥ उव उवन मुक्ति दर्सतु, जिनय जिन जोगी सिद्धि सहिऊ । उव उवनो है दाता देउ, रमन जिन जोगी मुक्ति रलिऊ ॥ सुइ समय रमन जिन देउ, __ अगम जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उव उवन दिप्ति सुइ दिप्ति मौ, उव उवन दिस्टि इस्टंतु । उव उवन साष छत्तीस मौ, उव उवन साष सिद्धि रत्तु ॥ जिनय जिन जोगी साष सहिऊ ॥ ३ ॥ उव उवन साष रमन जिन जोगी, पत्त उवन ढलको च ढलं । सुइ पुहुप उवन सम समय निलय जिनु, फल उवन समय सुइ सिद्धि ॥ जैवंत जोगी मुक्ति सहिऊ ॥ ४ ॥ उव उवन सब्द सुइ सब्द मौ, सुइ उवन सब्द पिउ उत्तु । पिय पियं पियं पिय उवन पियं जिनु, पिय सब्द समय सिद्धि रत्तु ॥ सिद्धि रत जोगी मुक्ति रलिऊ ॥ ५ ॥ सुइ सब्द समय सम कर्न मौ, सुड़ कर्न सुवन सुइ उत्तु । सुइ सुर्य सुर्य सुइ हिय सहिऊ, सुइ सुवन हुवन सिद्धि रत्तु ॥ रत्तु जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ ६ ॥ हुव उवन सुवन सुव सुवन पौ, अवयास नंत विगसंतु । (३६१) Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी जिन जिनय श्रेनि कलि कलन मौ, कलन श्रेनि जयवंतु । जिन श्रेनि जै, सुइ कलन श्रेनि सिद्धि रत्तु ॥ श्रेनि जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ १२ ॥ तारन तरन सु तरन कमल पौ, कलि कमल कर्न समसंतु । कलि कमल कर्न उव समय मौ, उव समय सिद्धि संपत्तु ॥ सिद्ध जिन जोगी मुक्ति सहिऊ ॥ १३ ॥ श्री ममल पाहुइ जी अवयास विगस सुइ कलन मौ, कलि समय कलनु सिद्धि रत्तु ॥ कलन जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ ७ ॥ कलन कलन कलि कलिय कलन जिनु, कलन चरन चरयंतु । चर चरिय चरन चर कलन मौ, कलि चरनु कलनु सिद्धि रत्तु ॥ उवन जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ ८ ॥ कलन चरन सुइ उवन पौ, उव उवन चरन कलयंतु । उव उवन दर्स ढल कलन मौ, उव उवन ढलन सिद्धि रत्तु । सुयं जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ ९ ॥ कलि कलन चरन चर उवन पौ, उव उवन दर्स ढलनंतु । अर्क सु अर्क सु अर्क अर्क जिन अर्क मौ, सम अर्क कमल उव नंतु ॥ कलन जिन जोगी सिद्धि सहिऊ ॥ १० ॥ कलि कलन कमल उव उवन पौ, उव उवन कमल सिद्धि रत्तु । कलि कलन कमल चरि कमल मौ, उव कमल समय सिद्धि रत्तु ॥ कमल जिन जोगी मुक्ति सहिऊ ॥ ११ ॥ (११९) उत्पन्न एली गाथा गाथा २५०३ से २५१८ तक (विषय : कमल दल, कमल पय) जय जयन जयन जय जय मिली, जय जयो जिनंदे । जय जयो जयो जय समय जयो, उव समय अनंदे ॥ १ ॥ अहु अपने उवन पै रलि रली । रलि रलत न संक करेई, उवन जिन रलि मिली । अहु उवन उवन दर्संतु दर्स जिन रलि मिली ॥ अहु उवन उवन विगसंतु विगस जिन रलि मिली । उव उवन उवन विलसंतु विलसि जिन रलि मिली ॥ उव उवन उवन साहंतु साह जिन रलि मिली ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ ३६२) Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = = - = श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जै वेय वेय उव वेय रली, जै वेय अनंदे । जै भेय भेय उव भेय रली, जय भेय जिनंदे ॥ १० ॥ ॥ अहु. ॥ जै नंद नंद उव नंद रली, जै नंद सनंदे । जै विंद विंद उव विंद रली, जय विंद जिनंदे ॥ ११ ॥ ॥ अहु. ॥ जै षिपन षिपन उव षिपन रली, जै षिपन सनंदे । जै मुक्ति मुक्ति उव मुक्ति रली, जै मुक्ति जिनंदे ॥ १२ ॥ ॥ अहु. ॥ जै श्रेनि श्रेनि जिन श्रेनि रली, जै कलन सनंदे । जै तारन तरन तर तरन रली, जै कलन अनंदे ॥ १३ ॥ = श्री ममल पाहुइ जी जै रमन रमन उव रमन रली, जै रमन सनंदे । जै मिलन मिलन उव मिलन रली, जै मिलन जिनंदे ॥ ३ ॥ ॥ अहु. ॥ जै चरन चरन उव चरन रली, चरि चरन अनंदे । जै कलन कलन उव कलन रली, जय कलिय जिनंदे ॥ ४ ॥ ॥ अहु. ॥ जै लषन लषन उव लषन रली, लषि लषन जिनंदे । जै अलष अलष उव अलष रली, रलि अलष सनंदे ॥ ५ ॥ ॥ अहु. ॥ जै गमन गमन उव गमन रली, गम अगम अनंदे । जै अगम अगम उव अगम रली, जै अगम जिनंदे ॥ ६ ॥ ॥ अहु. ॥ जै सहन सहन उव सहन रली, जै सहन सनंदे । जै रहन रहन उव रहन रली, जै रहन जिनंदे ॥ ७ ॥ ॥ अहु. ॥ जै गहन गहन उव गहन रली, जै गहन अनंदे । लहन लहन उव लहन रली, जै लहन जिनंदे ॥ ८ ॥ = = = = = - जै कमल कमल उव कमल रली, जै कमल सनंदे । जै कर्न कर्न उव सुवन रली, जै श्रवन जिनंदे ॥ १४ ॥ ॥ अहु. ॥ जै श्रेनि कलन उव कलन रली, जै श्रेनि सनंदे । जै तारन तरन सु कमल रली, उव कमल अनंदे ॥ १५ ॥ = || अहु. = जै इच्छ इच्छ उव इच्छ रली, जै इच्छ स कलने । जै चेय चेय उव चेय रली, जै चेय जिनंदे ॥ ९ ॥ ॥ अहु. ॥ जै श्रेनि तरन कलि कमल रली, जै कर्न सनंदे । जै तरन कमल कर्न उवन रली, जै मुक्ति जिनंदे ॥ १६ ॥ ॥ अहु.॥ (३६३) Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (१२०) उवन विंद सुभाव फूलना गाथा २५१९से २५३५ तक (विषय : उल्हसु, विगसु, विलसु, विवान ५) जय जयो जिनवर जय जयो, जय जयो उवन उल्हास । जय जयो जिनवर विगस मौ, जिन विगसिउ रे मुक्ति विलास ॥ १ ॥ विंदिया जिन उवन की, उव उवनउ रे चरन चर चरना । विंदिया कलि देउ की, कलि कलियौ रे कमल विलास ॥ विंदिया जिन उवन की ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ उव उवन उल्हसिऊ दिप्ति सुइ, सुइ सब्द कर्न उल्हास । सुव सुवनु उल्हसिऊ कमल मौ, धुव उल्हसिऊ रे कमल उल्हास ॥ ३ ॥ ॥विंदिया। उव उवनु विगसिऊ सु दिप्ति रे, उव सब्द सुवन विगास । सुव उवनु विगसिऊ कलन मौ, जिनु विगसिऊ रे कमल विगास ॥ ४ ॥ ॥विंदिया। उव उवनु विलसिऊ क्रिनि दिपि, उव सब्द श्रवन विलास । हुव हुवन विलसिऊ चर कलन मौ, धुव कमल सुर मुक्ति विलास ॥ ५ ॥ ॥विंदिया। दिपि दिप्ति उवनी होंस जिन दिपि, जिन दिप्ति होस उल्हास । जिन दिप्ति दिस्टि सु उवन उल्हसिय, आस उल्हसिय है मुक्ति विलास ॥ ६ ॥ ॥विंदिया। सुइ सब्द उवन सु कर्न विलसै, धुव होंस सुवन उल्हास । सुइ रंज रमन सुनंद नंदितु, आस रंजिउ है मुक्ति विलास ॥ ७ ॥ ॥विदिया॥ दिपि दिस्टि होंस सु सब्द कह, सुइ होंस हुवन विलास । सुइ होस हुवन हियार उवन सु, आस हुवनी है मुक्ति विलास ॥ ८ ॥ ॥विंदिया। दिपि दिस्टि सब्द सु हुवन उल्हसिऊ, अवयास उवन उल्हास । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अवयास होस सु उवन समयह, आस अवसि है मुक्ति विलास ॥ ९ ॥ । विंदिया॥ दिपि दिस्टि सब्द सु होस हिय हुव, सहयार उवन विलास । अवयास होस सु कलन चरनह, आस कलनि है मुक्ति विलास ॥ १० ॥ ॥विंदिया॥ दिपि दिस्टि सब्द सु होस हुव हिय, अवयास साह अनंत । कलि कलन चरन सु होस कलनह, आस कलियौ है मुक्ति विलास ॥ ११ ॥ ॥ विंदिया॥ दिपि आदि कलन सु होस उल्हसिऊ, चरन कलन उल्हास । कलि कलन कमल सु होस धुव जिन, आस कमल धुव मुक्ति विलास ॥ १२ ॥ ॥विंदिया। दिपि आदि कलन सु होस कमलह, उव कमल उवन उल्हास । उव कमल धुव सुइ सुवन उवने, आस कमल धुव मुक्ति विलास ॥ १३ ॥ ॥ विंदिया॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिपि आदि कमल सु होस सुवनह, सुव समय उवन उल्हास । उव कमल उवन सु होस समयह, आस कमल सुव मुक्ति विलास ॥ १४ ॥ ॥विंदिया॥ जिन श्रेनि उवन सु कलन कलने, सुइ होंस कलन उल्हास । श्रेनि होस सु कलन कलने, आस श्रेनि कलि मुक्ति विलास ॥ १५ ॥ ॥विंदिया। दिपि आदि कमल सु श्रेनि सुवनह, ___ होस तार कमल विगास । तर तार धुव उव कमल विलसित, आस तार सु मुक्ति विलास ॥ १६ ॥ ॥विंदिया॥ तर तार कमल सु उवन धुव निहि, धुव उवन सुवन विलास । धुव आस हाँस सु उवन समयह, सिहु समय सुइ मुक्ति विलास ॥ १७ ॥ ॥विंदिया। (३६५ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी (१२१) चिंता को फूलना गाथा २५३६ से २५४८ तक (विषय पिपक सोलही, इंछ सोलही) चिंता करो चिंतामनि जय रमना, अप्प परम पय उवनु जिना ॥ १ ॥ जिनवर उवनु रमंतु रे, उव उवन रमंतु रे, पय जिन परम गति जिनवर मुक्ति रमा तू रे ॥ षिप करो चिंतामनि षिप रमना, हित रमनि चिंतामनि उव रमना, षिप अस्कंध रमन ध्रुव धुर रमना ।। ३ 11 ॥ जिनवर । २ || ॥ आचरी ॥ उव उवन भुक्त बिन विलय जिना ॥ ४ 11 ॥ जिनवर ॥ उवन चिंतामनि उव रमना, उव चेय चिंतामनि जिनय जिना || ५ || ॥ जिनवर ॥ आयरन चिंतामनि रै रयन जिना, आयरन उवन इच्छ गुपित जिना ।। ६ 11 ॥ जिनवर ॥ ३६६ इच्छ गुपित चिंतामनि रमन जिना, पय ईर्ज चिंतामनि ईर्ज जिना | ७ ॥ ॥ जिनवर ॥ ति अर्थ चिंतामनि ईर्ज जिना, हिय मध्य रमन अर्क विंद जिना ॥ ८ 11 ॥ जिनवर ॥ हिय हुव चिंतामनि आगंतु जिना, रमि रमन उवन जिनु जिनय जिना ॥ ९ ॥ ॥ जिनवर ॥ उव उवन चिंतामन उवन जिना श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन रमन जिनु सिद्धि रमना ॥ १० ॥ ॥ जिनवर ।। अप्प उवन चिंतामनि गुपित जिना, उव ऊर्ध गमन ठिदि मुक्ति जिना ॥ ११ ॥ ॥ जिनवर । सुइ लब्धि चिंतामनि चित रमना, अन्मोय उवन स्वामी सिद्धि रमना ।। १२ ।। ॥ जिनवर ॥ तर तार चिंतामनि कमल जिना, सिहु समय उवन जिनु सिद्धि रमना ॥ १३ ॥ ॥ जिनवर ॥ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१२२) कीतड़ी फूलना गाथा २५४९ से २५५८ तक (विषय : इंछ सोलही) जिन इच्छ जिन इच्छ ति इच्छ चिंतामनि, इंर्ज चिंतामनि जिनय जिना । गुपित जिन गुपित रौ गुपित धुव उवन पौ, गुपित जिन मुक्ति सुइ उवन जिना ॥ १ ॥ स्वामी हो बलि कीतड़ी जिनय जिनाला, रमन दै मुक्ति जिनु रे मझुला उमवारा हो ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ रिस्टि जिन रिस्ट ति रिस्टि चिंतामनि, उवन सुइ रिस्टि सुइ उवन जिना । आयरन सुइ रमन जिनु नंत नंता हिय, नंत जिन जिनयति उवन जिना ॥ ३ ॥ ॥स्वामी हो.॥ उवन जिन उवन पै उवन चिंतामनि, उवन हिय उवन हुव उव उवन जिना । उवन सह उवन सुइ उवन धुव धुवं जिनं, धुव उवन धुव साहि धुव उवन हियं ॥ ४ ॥ ॥स्वामी हो.॥ दिप्ति सुइ दिस्टि सुइ दर्स चिंतामनि, सब्द सुइ उवन पिय न्यान जिना । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चरन सुइ चरन सुइ उवन चिंतामनि, दिप्ति सुइ सब्द चर उवन जिना ॥ ५ ॥ ॥स्वामी हो.॥ इस्ट इस्टंतु उव इस्ट चिंतामनि, इस्ट उव उवन सुइ इस्ट जयं । उव इस्ट इस्टंतु सुइ उवन चिंतामनि, उव उवन इस्टंतु सुइ जिनय जिना ॥ ६ ॥ ॥स्वामी हो.॥ ऊर्द्ध सुइ ऊर्द्ध सुइ ऊर्द्ध चिंतामनि, __ मध्य षट् रमन जिन रमन जिना । अर्द्ध अर्द्ध सह उवन चिंतामनि, ऊर्द्ध सुइ अर्द्ध महि रमन जिना ॥ ७ ॥ ॥स्वामी हो.॥ उवन ठिदि मुक्ति ठिदि उवन चिंतामनि, उव उवन हिय न्यान ठिदि जिनय जिना । उव उवन सहि उवन ठिदि समय समय जिनं, उवन हिय सहि जिन सिद्धि जिना ॥ ८ ॥ ॥स्वामी हो.॥ इच्छ सुइ लब्धि सुइ गुपित चिंतामनि, अवयास सुइ उवनु सुइ उवन जिनं । अवयास मल विलय धुव उवन चिंतामनि, इच्छ सुइ गुपित जिन जिनय जिनं ॥ ९ ॥ ॥स्वामी हो.॥ (३६७) Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री ममल पाहुइ जी तार सुइ तरन सुइ तार चिंतामनि, कलन सुइ कमल धुव उवन जिनं । समय सुइ समय सह समय चिंतामनि, समय सुइ सिद्धि सुइ मुक्ति जिनं ॥ १० ॥ ॥स्वामी हो.॥ (१२) उबन मिलन पचीसी फूलना गाथा २५५९ से २५८३ तक (विषय विवान-५, पदवी सतक्षरी, कमल दल, पांच अर्थ) जिन जिनयति जिनय उवन जिन उवने, उव उवन उवन उवएसा रे । जय जयवंत जिनय जिन उवने, जय समय मुक्ति प्रवेसा रे ॥ १ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, अपने उवन जिन पासा रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, दिप्ति दिस्टि प्रवेसा रे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, सब्द प्रिये जिन आसा रे ।। जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, हिय हुव उवन उवएसा रे ॥ ३ ॥ रमन रमन जिनु उवन रमन जिनु, रमन जै जयो जिनेसा रे। रंज रमन सुइ नंद रमन जिनु, सिहु समय मुक्ति प्रवेसा रे ॥ ४ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, अपने उवन जिन सेजा रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, अवयास साह जिन साहा रे ॥ ५ ॥ अलष अलष जिनु अलष उवन जिनु, ___ अलष अर्क जिनु अर्का रे । अलष समै सुइ अलष रमन जिनु, अलष विंद अवगाहा रे ॥ ६ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, आसन उवन सिंघासा रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, ___ अवयास कलन चर कलसा रे ॥ ७ ॥ अगम अगम जिनु अगम रमन जिनु, अगम लषन जिन कलसा रे । अगम सुर्य सुइ उवन अगम जिनु, आयरन अगम जिन सहसा रे ॥ ८ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, सिंहासन उवन सिद्धासा रे । जिन जै मिलि हो, वसा ॥ ३ ॥ (३६८ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, कलन कमल धुव आसा रे ॥ ९ ॥ असम असम जिनु असम रमन जिनु, असम समय सम साहा रे । असम असम सुइ असम उवन जिनु, सिहु समय मुक्ति जिन सहसा रे ॥ १० ॥ हौ, जिन जै मिलि हो, चमर चरन जिन चरना रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन कमल धुव उवना रे ॥ ११ ॥ असह सहनु सुइ असह सहन जिनु, असह साह जिन साहा रे । अगह गहनु जिनु अगह रमन जिनु, अगम समय सिद्धि साहा रे ॥ १२ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, धुव उवन कमल कर्न साहा रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन छत्र सम सेजा रे ॥ १३ ॥ अलह अलह जिनु अलह रमन जिनु, अलह लब्धि अवगाहा रे । बंध बंध जिनु अवध रमन जिनु, अवध मुक्ति सम साहा रे ॥ १४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हो, छत्र मुक्ति उव लाहा रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, धुव उवन सुवन सिद्धि राहा रे ॥ १५ ॥ दिप्ति चिंतामनि दिस्टि चिंतामनि, दिस्टि दिप्ति उव उवना रे । सब्द चिंतामनि पिय चिंतामनि, पियं सब्द पिय सुवना रे ॥ १६ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, __ अपने चिंतामनि उवना रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन चिंतामनि गमना रे ॥ हिय चिंतामनि गहिर चिंतामनि, साह चिंतामनि रमना रे। हुवन चिंतामनि उवएस चिंतामनि, उवएस उवन उव उवना रे ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन चिंतामनि वयना रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन चिंतामनि रमना रे ॥ १९ ॥ कलन चिंतामनि जान चिंतामनि, पय उवन चिंतामनि उवना रे । = - (३६९ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी कलि उवन चिंतामनि चरन चिंतामनि, कलि कमल चिंतामनि ध्रुवना रे ॥ २० ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन चिंतामनि सुवना रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन चिंतामनि मिलना रे ॥ २१ ॥ कमल चिंतामनि ध्रुव उवन चिंतामनि, सुवन चिंतामनि सयना रे । कलि कमल चिंतामनि सुवन चिंतामनि, उव समय मुक्ति जिन रमना रे ।। २२ ।। जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन जिन जै मिलि हौ, जिन जै चिंतामनि उल्हसा रे । मिलि हौ, चिंतामनि विगसा रे ॥ २३ ॥ उवन जिन श्रेनि चिंतामनि कलन चिंतामनि, श्रेनि कलन जिन सुवना रे । तर तार चिंतामनि कलि कमल चिंतामनि, सम समय सिद्धि सुइ गमना रे ॥ २४ ॥ जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उवन चिंतामनि विलसा रे । जिन जै मिलि हौ, जिन जै मिलि हौ, उव उवन समय सिद्धि सहसा रे ॥ २५ ॥ ३७० उव उवने उवन छुटि गइ जिन जू रे जिन जिनय जिनवरा, (१२४) जिनवर फूलना गाथा २५८४ से २५९९ तक (विषय विवान पाँच) 1 उवन सुइ उवनं, उव उवन समय सुड़ सिद्धि सु गमनं ॥ १ ॥ रमि रमने रमन श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय जयो जयं जय मुक्ति रमैरा ॥ २ ॥ आचरी ॥ जय जयने जयन जयन जय जयनं, सरनि टूटिगी गारी, रमि रमन समय जिन मुक्ति पियारौ ॥ ३ || ॥ जिन. ॥ || जय उवन समय सुड़ मुक्ति गमनं ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ दिपि दिप्ति दिप्ति उवन सुइ दिपियं उवन सुइ रमनं, उव उवन रमन सम सिद्धि सु गमनं ॥ ५ || ॥ जिन. ॥ सुइ उवन दिप्ति कालंतर षिपियं ॥ ६ || ॥ जिन. ॥ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी इस्ट कमल इस्ट उव कमल सुइ उवनं, उव उवन कमल सुइ सिद्धि सु गमनं ॥ १४ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन श्रेनि कलन उव उवनं, तारन तरन कमल सुइ उवनं ॥ १५ ॥ ॥ जिन. ॥ तारन तरन कमल सुइ रमनं, उव तार कमल सम सिद्धि सु गमनं ॥ १६ ॥ ॥ जिन. ॥ श्री ममल पाहुइ जी इस्ट दिप्ति इस्ट उवन दिपि उवनं, उव उवन दिप्ति इस्ट दिप्ति सु विलयं ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ इस्ट सब्द इस्ट उवन सुइ उवनं, उव उवन सब्द कालंतर विलयं ॥ ८ ॥ || जिन. ॥ इस्ट उवन इस्ट उव उवन सु उवनं, उव उवन सुवन सुइ सिद्धि सु गमनं ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ इस्ट हियन इस्टं उव हियन उव उवनं, उव उवन हियं सम सिद्धि सु गमनं ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ इस्ट साह इस्टं उवन सह उवनं, उव उवन साह सम सिद्धि सु गमनं ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ अवयास इस्ट उवन इस्ट उवनं, उव उवन इस्ट सम सिद्धि सु गमनं ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ इस्ट कमल इस्ट उव कलन सुइ उवनं, उव उवन कलन सम सिद्धि सु गमनं ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ (१२५) धुव केवलि बनजारौ फूलना गाथा २६०० से २६१६ तक (विषय: विवान-१, अक्षर-४८) जय जयो जय जय रमन पौ, रमन पियं पिय उत्तुंगा । जिन सब्द पियं पिय उवन पौ, सम समय सिद्धि संपत्तुंगा ॥ १ ॥ उव केवल बनिजारा रे, सुइ उवन जयं जयवंतुंगा । सुइ मुक्ति पियं पिय रमन पौ, सुइ सब्द पियं जिन नंदुंगा ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ सुइ सुयं सुयं सुइ उवन जयं, रंज रंज जिन रंजुंगा । जं जान जान जय उवन पौ, तं तार कमल जिन उत्तुंगा ॥ ३ ॥ ॥ उव. ॥ (३७१) Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी उव उवन उवन जै उवन पौ, तत्काल पिवं सिद्धि रत्तुंगा । पर परम परम सुड़ परम पौ, नय व्रित सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ४ ॥ ॥ उव. ॥ जं जयन जयन जय जयन पौ, तं तत्तु रमन आनंदूंगा । उव उवन सहावे जं उवनु, तं नंत सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ५ 11 ॥ उव ॥ जं जं अवगाहन उवन पौ, सासाहन उवनु समत्थुंगा । हा हलवं चिय सुड़ तरन पौ, सुइ सुयं सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ६ || ॥ उव. ॥ तत्काल क्रिनि सुइ उवन जै, सिय सिद्धि समय जिन उत्तुंगा । धिय बोधु न्यान केवल उवनु, उव उवन सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ७ || ॥ उव. ॥ जय जयन जल्प ध्रुव उवन पौ, उव उवन जयं जयवंतुंगा । तव तारन तरन जिन समय मौ, उव लब्धि सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ८ ॥ ॥ उव ॥ जो विलय काल कालंतर ए, कल कमल उवन विलसंतुंगा । रलि रमन रमन जिन उवन पौ, इय ईर्ज समय सिद्धि रत्तुंगा ॥ ९ ॥ ॥ उव ॥ सुइ सुयं सुयं सुइ जै रमनु, पा पार अपार तरंतुंगा । वा वारापार अनंत जै, ई ईर्ज सिद्धि संपत्तुंगा ॥ १० ॥ ॥ उव. ॥ ३७२ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जो जं सुइ उवन अनंत मौ, जै जयो जयो जिन नंदुंगा । ई इस्टि ईर्ज सुइ उवन पौ, सह समय सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ११ ॥ ॥ उव ॥ वन समय सुड़ साहि मौ, कलि कमल उवन धुव सिद्धुंगा । रै रमन सुवन सुइ कमल जै, ई ईर्ज धुवं सिद्धि रत्तुंगा ।। १२ ।। ॥ उव. ॥ सुइ सुयं सुयं जै रमन पौ, तत्काल मुक्ति दसैंतुंगा । ई ईर्ज समय सुइ उवन पौ, सह समय सिद्धि संपत्तुंगा ।। १३ ।। ॥ उव. ॥ उव उवन सहावे क्रिनि जै, पा पार अपार विलसंतुंगा । वा वारापार सुनंत पौ, इय ईर्ज कमल ध्रुव सिद्धुंगा ।। १४ ।। ॥ उव. ॥ सुइ श्रेनि उवनु जिनु नि पौ, जय जयो श्रेनि कलि श्रेनिंगा । सह साह कलन जिन श्रेनि पौ, जिन श्रेनि कलन सिद्धि रत्तुंगा ॥ १५ ॥ उव श्रेनि तार सुड़ तरन पौ, सुड़ कलन कमल ध्रुव उत्तुंगा ध्रुव उवन उत्तु सुइ समय मौ, सह समय सिद्धि संपत्तुंगा ॥ उव ॥ जय तारन तरन सु उवन पौ, सुइ उवन कमल विलसंतुंगा । सुड़ कलन चरन सुइ कमल पौ, सुइ कर्न समय सिद्धि रत्तुंगा ।। १६ ।। ॥ उव. ॥ । ॥ १७ ॥ ॥ उव. ।। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१२) जय रंजसी अर्क फूलना गाथा २६१७ से २६४९ तक (विषय: कलन चरन रमन, कमल दल, कमल पय, अर्क-३६) जय जयने जयने जयन जयवंतु, उवन जिनु उव रमै रे । जय किरने किरने किरनि अनंते, क्रांति जिनु सिद्धि रमै रे ॥ १ ॥ जय रंजे रंजे उवनु रंजेड़, चरन चरु उव चरै रे । जय रमने रमने उवनु रमेई, परम पउ उव उवन पौ रे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जिन कलने कलने कलन जिनुत्तु, कलनु जिनु चरन मऊ रे । चरने चरने चरन चरंतु, कलन उव चरन पौ रे ॥ ३ ॥ ॥जय रंजे.॥ जय चरने कलने उवनु कलंतु, उवनु सुइ उवनु जै रे । जय उवने उवने उवन लषंतु, अलष पौ उवन मौ रे ॥ ४ ॥ ॥जय रंजे.॥ अलषे अलषे अगम गमंतु, अगम जिनु उवन जैरे । जय अगमे अगमे दर्स रसंतु, दर्स जिनु दर्स मौ रे ॥ ५ ॥ ॥ जय रंजे.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय इस्टे इस्टे उवनु इस्टेई, इस्ट जिनु उवन मौ रे । उव उवने उवने उवन जिनुत्तु, उवन कंठ उवन पौ रे ॥ ६ ॥ ॥जय रंजे.॥ जिन कंठे कंठे उवनु उवंतु, कंठ जिनु जय रमै रे । जय गिरा गिर उवन गिर उत्तु, वानी गिरा जिनवानी रे ॥ ७ ॥ ॥जय रंजे.॥ जय लषने लषने लष्यन उत्तु, अलष पौ जिनु रमै रे । जय कलसे कलसे कलस ढलंतु, अगम गम कलस मौ रे ॥ ८ ॥ ॥जय रंजे.॥ जय लवने लवने लवन अनंतु, उवन लवन उवन जै रे । जय सुवने सुवने सुवन अनंतु, सुवन सुइ सुवन जै रे ॥ ९ ॥ ॥जय रंजे.॥ जय रुवने रुवने उवन रुइ उत्तु, रुइय जिनु कमल मौरे । जय धुवने धुवने धुव जै उत्तु, कमल धुव धुव रमै रे ॥ १० ॥ ॥जय रंजे.॥ जिन जय जय जय जय उत्तु, कमल जय धुव रमै रे । जय पयं पयं पय उत्तु, कमल पय परम पौ रे ॥ ११ ॥ ॥जय रंजे.॥ जय मिलने मिलने उवन मिलंतु, कमल कलि धुव मिलै रे । जय वयने वयने वयन जिनुत्तु, वयन जै कमल जै रे ॥ १२ ॥ ॥ जय रंजे.॥ (३७३) Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी । जय अर्कै अर्के अर्क जिनुत्तु, अर्क जिनु कमल मौ रे जय सुर्के सुर्के सुर्क जिनुत्तु, सुर्क जिनु कमल मौ रे जै सुइ कमले कमले कमल जिनुत्तु, कमल उव कमल जय कमले कमले कलन जिनुत्तु, कलन उव कमल जै रे जय व्रिते न्रिते नितु जिनुत्तु, न्रित जय कमल जै रे । जयषि षिपने पिन जिनुत्तु, षिपन जय कमल जै रे ।। १४ ।। ॥ जय रंजे. ॥ रे ॥ । जय मुक्ते मुक्ते मुक्ति जिनुत्तु, मुक्ति मौ कमल पौ रे जय सुष्ये सुष्ये सुष्य अनंतु, सुष्य जै कमल जै रे ॥ जय हंसे हंसे उवन हंसेइ, हुवन पौ हिय अवयासे यासे उवन रमंतु, उवन जिनु कमल मौ रे ॥ ।। १३ ।। जय रंजे. ॥ ॥ ॥ १५ ॥ जय रंजे. ॥ । जय उवन कमल ध्रुव नंतु, कर्न उव सुव समै जय कर्ने उवने सुवन संमत्तु, सुवन सुइ सुइ उवै रे ।। ।। १६ । जय रंजे. ॥ । १७ ।। जय रंजे. ॥ रमै रे । मौ रे ।। १८ ॥ ॥ जय रंजे. ॥ । दिपि दिप्तिं दिप्तिं दिप्ति दिपाई, सुयं दिस्टि रलि रमै रे सुइ सब्दे सब्दे सुवन समाई, सुवन सुइ उवन जै रे ।। १९ ।। ॥ जय रंजे. ॥ ३७४ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी । सुइ सुवने सुवने कलन कलाई, चरन चरु जिनु चरै रे जय चरने कलने कलन अनंतु, कलि कमल जिन ध्रुव रमै रे ॥ २० ॥ ॥ जय रंजे ॥ । सुइ दिप्तिं दिप्तिं दिप्ति सुइ दिप्ति, दिप्ति सुइ दिप्ति मौ रे जय अभये अभये अभय जिनुत्तु, अभय सुइ कमल पौ रे ॥ २१ ॥ ॥ जय रंजे. ॥ जय सुर्के सुर्के सुर्क सिय उत्तु, सुर्क जै कमल जै रे । जय अर्थे अर्थे अर्थ सर्वार्थ, सर्वार्थ जै कमल जै रे ॥ २२ ॥ ॥ जय रंजे ॥ जय विंदे विंदे विंद जिनुत्तु, विंद उव विंद जै रे । जय विंद विंद जिन उत्तु, कमल विंद धुव रमै रे ।। २३ ।। ॥ जय रंजे. ॥ जय नंद नंद जिन नंद, नंद आनंद जै जय समये समये समय जिनुत्तु, हिय रमन जै उव रमै रे । रे ॥ जै २४ ॥ ॥ जय रंजे. ॥ जय अलषे अलषे अलष जैवंतु, अलष जै कमल जै रे । जय अगमे अगमे अगम जैवंतु, अगम उव कमल जै रे ।। २५ ॥ ॥ जय रंजे ॥ जय सहने सहने सहयार जिनुत्तु, रमन सिय उवन जै रे । सुइ रंज रंज जिन रंजु, उवन जिनु उवन रे ।। २६ ।। ॥ जय रंजे. ॥ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी जय षिपने षिपने षिपक सिय उत्तु, ममल धुव ममल पौ रे । सुइ अर्क अर्क सिय उत्तु, अर्क सिय मुक्ति जै रे ।। २७ ।। ॥ जय रंजे. ॥ जय पयं पयं पय उत्तु पयोग सिय उवन जय विंद विन्यान पयोग, समय सिय उव सुइ नंद नंद सुव नंद, नंद हिययार सिय जय जान जान सुइ जान, जैन सिय उवन जय लषन लषन उव लषन, लीन सिय लीन जय भद्र भद्र उव भद्र, मै उवन सिय उवन जै रे । समै रे ॥ २८ ॥ ॥ जय रंजे. ॥ जै रे । जै रे ।। ॥ जै रे जै रे ॥ ॥ २९ ।। जय रंजे ॥ । ३० ॥ ॥ जय रंजे. ॥ । जय सहज सहज उव सहज, पै उवन सिय उवन पै रे पय पयं पयोग सिय उत्तु, कमल उव ध्रुव रमै रे ।। ॥ । जय श्रेनि श्रेनि जिन श्रेनि, कलन श्रेनि अर्क जै रे जय कलन चरन चर कलन, कलन श्रेनि जै रमै रे जय तारन तरन समर्थ, कमल कलि उवन जै रे । जै उवन समय सह उत्तु, समय सुड़ मुक्ति जै ।। ३१ ।। जय रंजे. ॥ ३२ ।। जय रंजे ॥ रे ।। ३३ ।। ॥ जय रंजे. ॥ ३७५ (१२७) रंज रमन नंद फूलना गाथा २६५० से २६६१ तक (विषय पढ़वी सतक्षरी) 1 उव उवन उवन जिन उवन पौ उव उवन जयं जयवंतु रे । उव उवन सहावे मुक्ति पौ, सम समय सिद्धि संपत्तु रे ॥ १ ॥ जिन जिनय उवन जिनु जिनवरा, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिनु उवन कम्मु विलि जाइ रे । जिन भोय विनंद विलि उवन पौ, जिनु उवन मुक्ति विलसाई रे ॥ जिनु उवन समय सुड़ मुक्ति पौ ॥ २ ॥ ॥ आचरी ॥ जय रंज उवन जिन रंज पौ, भय विलय रमन जिन उत्तु रे । सुइ नंद विनंद विलि नंद मौ सुइ रंज रमन नंद जुत्तु रे ॥ ३ 11 ॥ जिन. ॥ जय रंजु उवन हिय उवन मौ जय अमिय रमन जिननाहु रे । Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी आनंद उवन जिन नंद मौ, जिनु रंज रमन नंद साहु रे ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन रंज उवन सहयार मौ, वैदिप्ति रमन विगसंतु रे । सुइ चेयनंद जिनु चेय मौ, जिनु रंज रमन जिन जुत्तु रे ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन रंजु उवन सुइ जान मी, जिन रमनु जिनय जिन उत्तु रे । सुइ सहजनंद जिन सहज सुइ, जिन रंज रमन नंद लाहुरे ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन रंज उवन जिन रंज मौ, जिननाथ रमन जिन उत्तु रे । सुइ परमनंद जिन परम पौ, जिन रंज रमन नंद नंदु रे ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ श्रेनि उवन जिन श्रेनि मौ, जिन दिप्ति दिप्ति जिन उत्तु रे । जिन श्रेनि सब्द पिउ उवन पौ, जिन श्रवन श्रवन जिन उत्तु रे ॥ ८ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन श्रेनि उवन अवयास मौ, जिन हिय हुव रमन जिनुत्तु रे । जिन अभय अर्थ सुइ सुर्क जिनु, जिन विंद विन्यान संजुत्तु रे ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन श्रेनि चरन सह सह चरनु, जिनु कलन कलिय जिन उत्तु रे । जिन अर्क सुर्क सुइ कलन मौ, सम समय मुक्ति दर्संतु रे ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ जिन श्रेनि उवन पिय पिय रमनु, श्रवन सब्द पिउ उत्तु रे । सुइ उवन उवन पौ साहियो, सुइ समय साहि जिन उत्तु रे ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ तारन तरन सु उवन मौ, सुइ उवन कमल विलसंतु रे । समय मौ, सिहु समय सिद्धि संपत्तु रे ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ (३७६) Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी (१२८) सु रमन चिंतामनि फूलना गाथा २६६२ से २७०६ तक (विषय कमल दल, अर्क- ३६) रमना रे ॥ रखना रे । रमना रे ॥ रखना रे । उव रमना रे ॥ रखना रे । उव उवन चिंतामनि उवन पौ, जिन रखना रे । उव उवन उवन दर्पंतु, उवन जिन जिन जिनय चिंतामनि जिन उवन जिन जिन जिनयति जिनय जिनेन्दु, जिनय जिन जिन इस्ट चिंतामनि उवन पौ, जिन उवन इस्ट इस्टंतु, इस्ट जिन जिन लषन चिंतामनि अलष पौ, जिन जिन अलष अलष दर्पंतु, अलष जिन जिन गमन चिंतामनि अगम पौ, जिन जिन अगम अगम दिस्टंतु, अगम जिन जिन सुयं चिंतामनि उवन पौ, जिन जिन उवन रमन दसैंतु, रमन जिन जिन समय चिंतामनि उव समय, जिन जिन असम साहि साहंतु, समय जिन रमना रे ॥ रखना रे । जिन गुपित चिंतामनि गुपित जिन जिन जिन गुपित उवन दर्पंतु, गुप्ति जिन जिन पयं चिंतामनि परम जिनं, जिन जिन पयं मुक्ति दसैंतु, परम जिन रमना रे ॥ रखना रे । रमना रे ॥ रखना रे । रमना रे ॥ रखना रे । रमना रे ॥ रखना रे । रमना रे ॥ १ ॥ २ ३ ४ ६ 11 11 ५ || ८ || 11 ७ 11 ॥ ९ ॥ ३७७ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन धुवं चिंतामनि ध्रुव रमनु, जिन रखना रे । जिन धुवं मुक्ति विलसंतु, धुवं जिन रखना रे ।। १० ।। जिन चलन चिंतामनि अचल पौ, जिन रवना रे । जिन अचल उवन इस्टंतु, अचल जिन रखना रे ।। ११ ।। जिन ढलन चिंतामनि उब ढलनु, जिन रखना रे । जिन उवन ढलनु ढलनंतु, ढलन जिन रखना रे ॥ १२ ॥ जिन दिप्ति चिंतामनि दिप्ति जिनु, जिन रखना रे । जिन उवन दिप्ति दिपिनंतु, दिप्ति जिन रखना रे ।। १३ । जिन दिस्टि चिंतामनि दिस्टि जिनं, जिन रखना रे । जिन उवन दिस्टि दिस्टंतु, दिस्टि जिन रखना रे ।। १४ । जिन अर्क चिंतामनि अर्क जिनु जिन रखना रे । जिन उवन अर्क अकंतु, अर्क जिन रखना रे ।। १५ ।। जिन कलन चिंतामनि उव कलनु, जिन रवना रे । जिन सरनि कलन विलयंतु, कलन जिन रखना रे ॥ १६ ॥ जिन चरन चिंतामनि उव चरनु, जिन रखना रे । जिन सरनि चरनु विलयंतु, चरन जिन रखना रे ।। १७ ।। जिन कमल चिंतामनि उव कमल, जिन रखना रे । जिन विविर उवनु विलयंतु, कमल जिन रखना रे ॥ १८ ॥ जिन कमल चिंतामनि धुव कमलु, जिन रखना रे । जिन कमल धुवं ध्रुव उत्तु, कमल जिन रखना रे ।। १९ ।। ध्रुव कमल चिंतामनि धुव उवनु, जिन रखना रे । धुव उवन उवन सम श्रवन, श्रवन जिन रखना रे ॥ २० ॥ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन श्रवन चिंतामनि कर्न समय, जिन रखना रे । जिन सरनि समय विलयंतु, श्रवन जिन रखना रे ॥ २१ ॥ जिन श्रवन चिंतामनि सुव रमनु, जिन रखना रे । जिन सुवन हुवन विलसंतु, सुवन जिन रखना रे ॥ २२ ॥ जिन हिय चिंतामनि हिय हुवनु, जिन रवना रे । जिन हिय हुव सरनि विलंतु, हियं जिन रवना रे ॥ २३ ॥ अवयास चिंतामनि उवन पौ, जिन रखना रे । सुइ मल अवयासु विलंतु, उवन जिन रखना रे ॥ २४ ॥ अवयास जिनय जिनु उवन मौ, जिन रखना रे । अवयास नंत दर्सतु, रमन जिन रखना रे ॥ २५ ॥ सुइ दिप्ति चिंतामनि उवन दिप्ति, जिन रखना रे । उव उवन दिप्ति रस उत्तु, दिप्ति जिन रखना रे ॥ २६ ॥ जिन दिस्टि चिंतामनि दिस्टि उवन, जिन रखना रे । सुइ सरनि दिस्टि विलयंतु, दिस्टि जिन रखना रे ॥ २७ ॥ सुइ सुयं चिंतामनि दिप्ति सुइ, जिन रखना रे । दिपि दिस्टि उवन विलसंतु, उवन जिन रखना रे ॥ २८ ॥ सुइ अभय चिंतामनि उव अभय, जिन रखना रे । जिन अभय सल्य विलयंतु, अभय जिन रवना रे ॥ २९ ॥ जिन सुर्क चिंतामनि सुर्क जिनु, जिन रखना रे । जिन सुर्क सरनि विलयंतु, सुर्क जिन रखना रे ॥ ३० ॥ जिन अर्थ चिंतामनि अर्थ जिनु, जिन रवना रे । सर्वार्थ सुर्क विलसंतु, अर्थ जिन रखना रे ॥ ३१ ॥ EEEEEE #BETEE EE LEEEEEEE जिन विंद चिंतामनि विंद मौ, जिन रखना रे । जिन विंद विंद दर्संतु, विंद जिन रखना रे ॥ ३२ ॥ जिन विंद चिंतामनि विंद मौ, जिन रखना रे । लघु दीर्घ विंद जिन उत्तु, विंद जिन रखना रे ॥ ३३ ॥ विंद रमन जिन रमन मौ, जिन रखना रे । सम रोम विंद दर्संतु, दर्स जिन रखना रे ॥ ३४ नो उवन चिंतामनि विंद पौ, जिन रखना रे । सुइ विंद समय सम उत्तु, उवन जिन रखना रे ॥ ३५ ॥ जिन नंद चिंतामनि नंद जिनु, जिन रखना रे । आनंद समय सम सिद्धि, चेय जिन रखना रे ॥ जिन समय चिंतामनि चिंत जिनु, जिन रखना रे । हिय अलष अगम विलसंतु, हियं जिन रखना रे ॥ जिन अलष चिंतामनि अलष जिनु, जिन रखना रे । जिन अगम उवनु विलसंतु, उवन जिन रखना रे ।। सहयार चिंतामनि सहय जिनु, जिन रखना रे । जिन रमन मुक्ति विलसंतु, साह जिन रवना रे ॥ ३९ ।। जिन रंज चिंतामनि रंज जिनु, जिन रखना रे । जिन उवन उवन विलसंतु, विलस जिन रवना रे ॥ जिन षिपक चिंतामनि षिपक पिउ, जिन रखना रे । जिन ममल सिद्धि संपत्तु, ममल जिन रखना रे ॥ ४१ सुइ अर्क चिंतामनि सिय रमनु, जिन रखना रे । सिय सुयं समं धुव रत्तु, धुवं जिन रखना रे ॥ ४२ (३७८) Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ श्रेनि चिंतामनि कलन जिनु, जिन रवना रे । जिन श्रेनि कलन सिद्धि रत्तु, सुयं जिन रखना रे ॥ ४३ ॥ सुइ तारन तरन सु चिंतामनि, जिन रवना रे । जिन उवन कमल विलसंतु, उवन जिन रखना रे ॥ ४४ ।। तारन तरन चिंतामनि कमल मौ, जिन रखना रे । सिहु समय सिद्धि संपत्तु, सिद्ध जिन रवना रे ॥ ४५ ॥ (१२९) स्वामी तारन देवा फूलना गाथा २७०७ से २७१७ तक (विषय : कलन चरन रमन महिमा) जिनु जिनयति जिनय जिनय जिनु उवने, जिनु मुक्ति पंथ दर्संतु । सब्द प्रिये सुइ सुयं उवन जिनु, ___ जय जयो सिद्धि संपत्तु, हो स्वामी तारन देवा ॥ १ ॥ उत्पन्न अर्क दरसाइयौ, जिन स्वामी पाये, हो स्वामी तारन देवा । अलष लषाउन पाये, हो स्वामी तारन देवा । अगम गमाउन हो स्वामी तारन देवा, असह सहाउन हो स्वामी तारन देवा ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जिन न्यान विन्यानह उवन रमाई, तारन तरन समत्थु । जिन दिप्ति दिस्टि उत्पन्न मिली, सिहु समय सिद्धि संपत्तु ॥ ३ ॥ ॥होस्वामी.॥ रम रमयति रमन रमन जिन उवने, उव उवन अर्क अकंतु । अर्क सुभावे उवन अर्क जिनु, उव उवन सिद्धि संपत्तु ॥ ४ ॥ ॥होस्वामी.॥ चर चरन उवन सुइ चरन उवन जिनु, कलि कलिय अर्क जिन उत्तु । जिन जिनय सहावे उवन कलन जिनु, कलि चरन सिद्धि संपत्तु ॥ ५ ॥ ॥होस्वामी.॥ कलि कलन कलिय उव कलिय कलन जिनु, कलि कलिय अर्क जिन उत्तु । जिन जिनय सहावे उवन कलन जिनु, कलि उवन सिद्धि संपत्तु ॥ ६ ॥ ॥होस्वामी.॥ चरि चरन कलन सुइ उवन रमन जिनु, तत्काल रमनु जिन उत्तु । (३७९) Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी उव उवन सहावे रमन सुयं जिनु, सुइ रमन सिद्धि संपत्तु ॥ ७ ॥ ॥होस्वामी.॥ चरन कलन सुइ उवन रमन जिनु, कलि उवन कमल धुव उत्तु । सुइ उवन कमल तर तार रमन जिनु, उव कमल सिद्धि संपत्तु ॥ ८ ॥ ॥होस्वामी.॥ सुइ अर्क अर्क सुइ कमल अर्क जिनु, सुइ अर्क कमल जिन उत्तु । सह समय अर्क सुइ कमल अर्क जिनु, उव कमल सिद्धि संपत्तु ॥ ९ ॥ ॥होस्वामी.॥ उव उवन कमल सुइ धुवं उवन जिनु, धुव उवन समय सुव उत्तु । धुव उवन सुवन सुइ कमल रमन जिनु, उव कमल सिद्धि संपत्तु ॥ १० ॥ ॥होस्वामी.॥ सुइ तारन तरन सु कमल रमन जिनु, सुइ तार कमल जिन उत्तु । सुइ तरन सहावे उवन कमल जिनु, सह समय सिद्धि संपत्तु ॥ ११ ॥ ॥होस्वामी.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१३०) अर्क उवन फूलना गाथा २७१८ से २७४० तक (विषय : ३६ अर्क का उदय) जिन जिनयति जिनय नंत जिन उवना, नंत अनंत कमल सुइ रमना । कमल कलन सुइ उवन सुइ सुवना, कलन कमल धुव जिनय जिन उवना ॥ १ ॥ सुनहु सखी जिन जिनवर रखना, अर्क छत्तीस कमल धुव वयना । न्यान चरन सुइ समय सु सहना, रंज रमन नंद मुक्ति सु गमना ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ चरन चरिय धुव रमन सुइ उवना, तत्काल रमन जिन जिनय सु रमना । कलन चरन सुइ दर्सन कलना, उवन इस्ट सुइ कमल धुव उवना ॥ ३ ॥ ॥सुनहु.॥ उवन कमल जिन जय धुव उवना, उवन कर्न सुइ श्रवन सु रमना । श्रवन समय सिय उवन सु सुवना, सुवन उवन सिय कमल जिन रमना ॥ ४ ॥ ॥ सुनहु.॥ (३८०) Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी हंस रमन हिय उवन सुइ सहना, सहन साह उव छोह सुइ रमना । छोह उवन हुव अगम गम गमना, अगम हुवन सुइ कमल जिन उवना ॥ अवयास नंत सुइ उवन जिन उवना, दिप्ति दिप्ति सुइ दिप्ति जिन जयना, सहन साह इच्छ असह सिद्धि गमना । अवयास दिप्ति सुइ कमल जिन रमना ॥ ६ ॥ ॥ सुनहु ॥ अभय सियं सिय अभय भय गलना, अभय रंज भय विलय सु रमना । सुर्क सुयं सिय नंत जिन उवना, ५ ॥ ॥ सुनहु ॥ नंत समय सुइ सिद्धि सु गमना ॥ ७ ॥ ॥ सुनहु ॥ अर्थ सियं सुइ अर्थ सु गमना, सब्द सुयं पय पिय अर्थ सु रमना । विंद विन्यान विंद नंत श्रवना, सुन्न समय विंद कमल जिन उवना ॥ नंद नंद जिन नंद जिन सुवना, ८ ॥ ॥ सुनहु ॥ विली विनंद नंद जिन जयना । ३८१ आनंद नंद आनंद जिन रखना, समयं सम समं उवन सम रमना, आनंद सियं सम कमल जिन उवना ॥ ९ 11 ॥ सुनहु ॥ हियं अनंत नंत हिय अगमा, उवन उवन सम समय सुइ श्रवना । अलष लषिय सुइ अलष जिनुत्तं, हिय उवन चतुस्टै उवन रे रमना ॥ १० ॥ ॥ सुनहु ॥ रंज रंज सुइ अगम अनंत अगम जिन रखना, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अलष रमन जिन जिनवर श्रवना । सहबार साह असह सह सहना, अगम सियं सिय कमल जिन उवना ।। ११ ।। ॥ सुनहु ॥ रमन रमन सुइ रमन जिन रमना, सहन साह हिय हुव उव उवना । रमन कमल कलि कलन जिन श्रवना ॥ १२ ॥ ॥ सुनहु ॥ रंज उव उवना, रंज हियं सह जिनय जिन जयना । उवन उवन उव उवन जै उवना, उवन जयं जै कमल जय उवना ।। १३ ।। ॥ सुनहु ॥ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी षिपन षिपन बिपि विपन बिपि उवना, षिपन रमन जै जै जै उवना । ममल ममल सुइ ममल जिन रखना, ममल कमल उव उवन सिद्धि रमना ।। १४ ।। ॥ सुनहु.॥ सियं सुभाव भाव भय विलयं, उवन ईर्ज सुइ रमन जिन रमनं । जिननाथ रमन जिन नंद सुनंद, कमल कलिय सुइ मुक्ति जिनंदं ॥ १५ ॥ ॥ सुनहु.॥ पयोग पयं पिय जिन पय उवना, पय पयं पयं पिय धुव धुर रमना । धुव धुवं धुवं धुव धुव जिन वयना, धुव उवन नंत जिन श्रवन सु रखना ॥ १६ ॥ योग पयं पिय पय पर्व वयना, नंद हियं हिय हिय सुइ सुवना, हिययार सियं सिय सिद्धि जिन भवना ॥ १८ ॥ ॥ सुनहु.॥ जान जय जय जय जय जयना, जान रमन सुइ जान जिन भवना । जय जयवंत जय जय जयना, जयन सियं जय जिनवर सुवना ॥ १९ ॥ || सुनहु. ॥ लषन लषिय अलष जिन जयना, अलष अगम गम लषन जिन उवना । लीन लीन जिन लीन सिय रमना, लीन सियं सिय लीन पय सुवना ॥ २० ॥ ॥ सुनहु.॥ भद्र सियं सिय भद्र जिन जयना, भद्र मनोय मयं मय उवना । मय उवन मयं जिनय जिन वयना, मय उवन सियं सिय परम सिद्धि गमना ॥ २१ ॥ ॥ सुनहु.॥ सहज सियं सिय सहज जै जयना, सहज सरूव सुयं जिन उवना । पय उवन पयं पिय पिय पिय पियना, सब्द पियं पिय पियं सिद्धि गमना ॥ २२ ॥ ॥ सुनहु.॥ वन सु रखना , सुनहु ।। सुइ विंद विंद सुइ विंद जिन रवना, विंद विन्यान समय सुइ सुवना । विंद सियं सुइ उवन जिन उवना, विंद धुवं जिन जिनय सम सुवना ॥ १७ ॥ ॥ सुनहु.॥ नंद सियं सिय नंद जिन रखना, पयं पयोग परम धुव उवना । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी उवन पयोग परम पय गमना, परम प्रियं पिय पयोग जिन रमना । जिन जिनयति जिनय जिनय जिन उवना, उवन पयोग मुक्ति जिन रखना ॥ (१३१) गद्य गाथा गाथा २७४१ से २७४२ तक विषय: औकास) २३ ॥ ॥ सुनहु ॥ जय जय जय जयवंतु, जय जय जयो उवन जिनु । उव उवन उवनु उव उवनु, सम समय जिनय जिनु ॥ जिन जिनिय जिनिय जै जै, जिनिय सुड़ जिनिय सुयं जिनु । सुड़ सुयं सुयं सुड़ सुइ श्रवना, सुइ सुयं सुवन जिनु ॥ सुइ समय समय सुइ समय समय, सुड़ सुयं सुयं जसु । सुइ रमन रमन सुइ रमन सुयं, जिन जयो सिद्धि रत्तु ॥ पय पयन पयन पयपालु, पर्म पय पर्म पत्तु । पर्म पर्म चौ उवनु उवनु, जिनु जिनय जिनुत्तु ॥ आयरनह आयरिउ सुर्य, आयरन जिनुत्तु । आयरन उवन हिययार, सहय सहयार पउत्तु ॥ जिन इच्छ इच्छ इच्छन्तु रै, भवन विंद इच्छंतु जै । सुइ सुयं सुयं सुइ इच्छ जिनु, सुइ सुयं सिद्धि जिन मुक्ति जै ॥ १ ॥ २ ॥ ३८३ (१३२) उवन कमल बत्तीसी फूलना गाथा २७४३ से २७७५ तक (विषय कलन चरन रमन, विवान-५, कमल दल, लक्षण परिणाम) उव उवन उवनु सुइ उवनु पेषिक, सुइ उवन उवन चित लाऊंगा । उव उवन सहावे अन्धु विलीजे, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन उवन मिलनु दर्साऊंगा ॥ १ ॥ जय जय जय अमिय राऊंगा, सुइ दिप्ति दिस्टि परिनाऊंगा ॥ २ ॥ ॥ आचरी ॥ सुइ कलन कलिय सुड़ कलनु सु देषिउ सुइ कलन कमल रमि लाऊंगा । सुइ कलन कमल सुड़ उवनु जिनय जिनु, धुव उवनु सुयं दर्साऊंगा ॥ सुइ रमन रमन सुइ उवन रमन जिनु, ३ ॥ ॥ जय ॥ सुइ चरन चरिय चरि चरन जिनय जिनु, सुइ चरन कलन रमि राऊंगा । सुइ कलन चरन चरि कलिय उवन जिनु, सुइ चरन कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ ॥ ४ ॥ जय ॥ सुइ चरन कलन रमि राऊंगा । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी सुइ रमन चरन कलि कलिय रमन जिनु, सुइ रमन कमल धुव पाऊंगा ॥ ५ ॥ ॥ जय. ॥ तत्काल रमन सुइ उवन मिलन जिनु, सुइ दिप्ति दिस्टि रसहाऊंगा । सुइ सब्द प्रिये हिय हुवं रमन जिनु, धुव रमन कमल विलसाऊंगा ॥ ६ ॥ ॥ जय, ॥ सुइ सुयं रमन सुइ कलन रमन जिनु, सुइ उलटि चरन रचराऊंगा । उव उवन सहावे सुयं उवन निहि, धुव रमन कमल सिद्धि राऊंगा ॥ ७ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ चरन कलन जिनु, सुइ उलटि कलन कलि राऊंगा । हिय हवं सिद्धि जिनु, हिय हुवन कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ ८ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ उवन चरन सुइ उवन दर्स जिनु, सुइ चरन कलन दर्साऊंगा । सुइ रमन रयन सुइ दिप्ति दर्स जिनु, धुव कमल उवन विगसाऊंगा ॥ ९ ॥ ॥ जय. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मइ मयं मयं मय उवन उवन जिनु, सहयार ऊर्ध दर्साऊंगा । सुइ ढलन ढलिय सुइ उवन ढलन जिनु, धुव ढलन कमल सिद्धि राऊंगा ॥ १० ॥ ॥ जय. ॥ जिन जिनय जिनय सुइ उवन जिनय जिनु, सुइ हिय हुव रमन रमाऊंगा । बरंबूह सुइ उवन वरं जिनु, सुइ वरं कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ ११ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ दान दान सुइ उवन दान जिनु, सुइ नंत दान दर्साऊंगा। सुइ नंत नंत तत्काल रमन जिनु, तत्काल कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ १२ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ डाल डाल सुइ मूल रमन जिनु, सुइ पत्त सुपत्त रमाऊंगा । सुइ उवन उवन सुइ पुहुप रमन फल, सुइ ढलन उवन ढलाऊंगा ॥ १३ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ ढलन रमन जिन ढलन उवन जिनु, सुइ ढलन कमल सिद्धि राऊंगा । (३८४) Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी सुइ नंत ढलन ढल ढलिय उवन जिनु, सुइ मुक्ति ढलन ढलि राऊंगा ॥ १४ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ कंठ कंठ सुइ कंठ मुक्ति जिनु, सुइ कंठ कमल उल्हसाऊंगा । तं उल्हस विगस सुइ कंठ कलन जिनु, सुइ कंठ कमल सिद्धि राऊंगा ॥ १५ ॥ ॥ जय. ॥ रुइय रमन जिनु, रुड़ रमन चरन चरिराऊंगा । सुइ रुइय रमन जिनु, रुइ कमल मुक्ति विलसाऊंगा ॥ १६ ॥ ॥ जय. ॥ रुइ रमन चरन सुइ कलन उवन जिनु, सुइ कलन कमल जिनु राऊंगा । जिनयति नंत नंत धुव उवने, धुव उवन मुक्ति विलसाऊंगा ॥ १७ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ कलन कमल सुइ रमन कलन सुइ, सुइ चरन कमल चरिराऊंगा । सुइ नंत विसेषे नंत कमल जिनु, सुइ नंत मुक्ति विलसाऊंगा ॥ १८ ॥ ॥ जय. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ श्रेनि श्रेनि जिन श्रेनि रमन जिनु, सुइ कलन कलिय सिद्धि राऊंगा । सुइ तारन तरन सु कमल रमन जिनु, सह समय मुक्ति विलसाऊंगा ॥ १९ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ रमन रमन तत्काल रमन जिनु, सुइ चरन कंद रमि राऊंगा । सुइ सुयं सुयं सौ अट्ठ रमन जिनु, परिनामु सुयं दरसाऊंगा ॥ २० ॥ ॥ जय. ॥ तं चरन अग्र सुइ सुयं सुयं जिनु, चौसठि चरन रचराऊंगा । सुइ चरन चरन सुइ इच्छ चरन जिनु, सुइ इच्छ कमल सिद्धि राऊंगा ॥ २१ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ साह साह सुइ साह रमन जिनु, बत्तीस बत्तीस रमाऊंगा । सुइ सहस अठोत्तरु लष्यन लषिये, सुइ जिन चौबीस वंदाऊंगा ॥ २२ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ कमल कंद सौ अट्ठ रमन जिनु, सुइ कमल अग्र चौसठयाऊंगा । (३८५ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ सुयं सुर्य सुइ इच्छ सुयं जिनु, सुइ अलष कमल सिद्धि राऊंगा ॥ २३ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ सुर्य सुयं सुइ सहस बत्तीसी, सुइ लष्यन तित्थ पिषाऊंगा । सहसु अठोत्तर लष्यन लषिये, सुइ लषन कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ २४ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ सुर्य सुयं सुइ जिनवर उवने, तित्थयर भाउ दरसाऊंगा । सुइ सुयं उवन चौबीस जिनय जिनु, सुइ दर्स कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ २५ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ सुयं सुयं जय जयं मयं हिय, सुइ उवन डंडार पिछाऊंगा। सुइ जयं उवन उव उवन हियं मौ, सुइ उवन कमल सिद्धि राऊंगा ॥ २६ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ इस्ट जयं सुइ उवन जयं जिनु, जय जय जय जय राऊंगा । जय उवन जय जय रमन जयं जिनु, जय कमल मुक्ति जय जाऊंगा ॥ २७ ॥ ॥ जय. ॥ जय इस्ट इस्ट जय उवन रमन जिनु, जय उवन उवन जय लाऊंगा । जय इस्ट उवन जय उव उवन उवन पय, पै उवन कमल सिद्धि जाऊंगा ॥ २८ ॥ ॥ जय. ॥ जय कंठ चरन जय जयं चरन जिनु, जय चरन मयं दरसाऊंगा । जय रमन जय जय जयो जयं जिनु, जय कमल मुक्ति विलसाऊंगा ॥ २९ ॥ ॥ जय. ॥ जय जय जयं तत्काल रमन जिनु, तत्काल उवन विगसाऊंगा । तत्काल मयं उव ऊर्ध गमन जिनु, तत्काल कमल सिद्धि राऊंगा ॥ ३० ॥ ॥ जय. ॥ तत्काल दर्स सुइ जयं जयं जिनु, जय जयं जयं दरसाऊंगा । जय इस्ट जयं सुइ उवन जयं जिनु, जय कमल मुक्ति विलसाऊंगा ॥ ३१ ॥ ॥ जय. ॥ जय चरन जयं जय कमल जयं जिनु, जय रमन जयं उव रमाऊंगा । (३८६) Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जय उवन सहावे रमन जयं जिनु, जय उवन कमल सिद्धि राऊंगा ॥ ३२ ॥ ॥ जय. ॥ जय श्रेनि जयं जय कमल जयं जिनु, जय रमन मुक्ति विलसाऊंगा । तारन तरन उव कमल रमन जिनु, सम समय सिद्धि संपातुंगा ॥ ३३ ॥ ॥ जय. ॥ (१३३) तार कमल फूलना गाथा २७७६ से २७८८ तक (विषय : कलन चरन रमन, षट् रमन, तत्त्व स्वरूप) जय जय जय जय जिनवर उवने, उव उवन उवन जिनु रमिजै । जिन जिनयति जिनय विंद धुव रमनह, धुव रमनु मुक्ति सुइ मिलिजै ॥ १ ॥ सुनि सखि मिलिजै री जिना, जिन जिनय मुक्ति रमना ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जिन जिनयति श्रेनि श्रेनि जिनु उवने, जिन श्रेनि उवन जिनु रमिजै । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन सहावे सरनि विलीजै, जिन श्रेनि सुर्य सिद्धि रमिजै ॥ ३ ॥ ॥ सुनि. ॥ जिन श्रेनि सुर्य सुइ कलन सु रमने, कलि कलन उवन जिनु रमिजै । कलि कलन सहावे केवलि उवने, जिन श्रेनि कलन सिद्धि रमिजै ॥ ४ ॥ ॥ सुनि.॥ कलि कलन उवन जिन चरन सु चरिज, चरि चरन कलन चरि रमिजै । चरि चरन उवन सुइ चरन जिनय जिनु, चरि कलन मुक्ति सुइ मिलिजै ॥ ५ ॥ ॥ सुनि. ॥ चरि चरन रमन जिन रमन सु उवने, रमि रमन चरन जिनु रमिजै । चरि चरिय उवन षट् रमन जिनय जिनु, उव रमन मुक्ति सुइ मिलिजै ॥ ६ ॥ ॥ सुनि. ॥ जय उवन रमन तत्काल रमन जिनु, हिय हुव रमन रमन जय मिलिजै । रमि रमिय लोह सुइ परिस रमन जिनु, उव समय परस सिद्धि रमिजै ॥ ७ ॥ ॥ सुनि. ॥ (३८७) Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ दर्स उवन सुइ अर्क अलष जिनु, अवयास कमल सिद्धि रमिजै ॥ १२ ॥ ॥ सुनि.॥ सुइ नंत नंत अवयास रमन जिनु, सुइ श्रेनि कलन सिद्धि गमिजै । सुइ तारन तरन अवयास कमल जिनु, सह समय मुक्ति सुइ मिलिजै ॥ १३ ॥ ॥ सुनि. ॥ श्री ममन पाहुइ जी तत्काल रमन सुइ दर्स जिनय जिनु, उव दर्स उवन जिनु दर्सेई । रमि रमन दर्स सुइ नंत दर्स जिनु, उव दर्स मुक्ति सुइ दर्सेई ॥ ८ ॥ ॥ सुनि. ॥ उव दर्स उवन सुइ अर्क दर्स जिनु, सुइ अर्क अर्क जिनु रमिजै । अर्क सुभावे अर्क सुयं जिनु, सुइ अर्क मुक्ति जिनु रमिजै ॥ ९ ॥ ॥ सुनि. ॥ सुइ अर्क उवनु दिपि दिस्टि दिप्ति जिनु, सुइ समय हियं हुव रमिजै । आयरन चरन गुन लषन लषिय जिनु, ___ सुइ लषन मुक्ति सुइ मिलिजै ॥ १० ॥ ॥ सुनि. ॥ तत्तु पयं दिव्य दिस्टि दिप्ति जिनु, सुइ काय क्रांति जिनु रमिजै । सुइ नंतानंत चतुस्टै उवन जिनु, सुइ उवन कमल सिद्धि रमिजै ॥ ११ ॥ ॥ सुनि. ॥ सुइ कलन चरन रम रमन उवन जिनु, तत्काल रमन जिनु रमिजै । (१३४) न्यान बबिजारो फूलना गाथा २७८९ से २७९३ तक (विषय : नन्द ५, रमन ६, कमल दल, कलन चरन रमन, अर्थ पय) जिन जिनयति जिनय जिनेन्दु, जिन रंज रमन सुइ नंद मौ, बनिजारे हो । आनंद चेय सुइ नंदु, सुइ सहज परम जिन नंद मौ, बनिजारे हो ॥ सुइ सहज रूव सुरूव रूवउ, परमानंद पयासिनो । सड़ नंद नंदित नंद उल्हसितु, सुइ मुक्ति विगस विलासिनो ॥ सुइ कलन चरन सु चरन रमियौ, सुइ रमन दर्सिय जिन जिनो । (३८८ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ उवन उवने उवन जिनवर, सह समय मुक्ति पयासिनो ॥ सिय सहन साह सु उवन धुव निहि, धुव नंत रमन विलासु । सुइ ममल कमल सु उवन धुव जिनु, धुव उवने मुक्ति निवासु । परम तत्तु पद विंद मौ ॥ १ ॥ ॥बनिजारे हो.॥ धुव उवने कमल विलासु, सुइ सुवन श्रवन सम समय जिनु, बनिजारे हो । हिय षट् रमन निवासु, अर्क विंद आगंतु जिनु, बनिजारे हो । हिय हुव रमन विलासु, सुइ सुवन उवन जिन जिनय जिनु, बनिजारे हो । सुइ सुवन उवन विगसंतु विलसंतु, अवयास नंत पयासिनो ॥ सुइ नंत ढलन ढलन्तु जिनवर, ___ मुक्ति ढलन निवासिनो । सुइ मुक्ति सौष्य सु नंद नंदितु, नंद रमन विलासिनो ॥ सुइ दिप्ति दिस्टि सु दिस्टि दिप्तिहि, दिप्ति नंत प्रकासिनो । सुइ सुर्य दिप्ति सु दिस्टि सुइ जिनु, भय विलय अभय विलासु ॥ सुइ भव्वु उवन उर्वन निहि जिनु, सुइ सुर्कह मुक्ति विलासु । परम निरंजन परम मौ ॥ २ ॥ ॥बनिजारे हो.॥ सुइ अर्थह अर्थ जिनुत्तु, अर्थ समर्थ सदर्थ जिनु, बनिजारे हो । सुइ सहन साह अवयास, __अवयास नंत अन्मोय मौ, बनिजारे हो ॥ सुइ षिपिगौ मुक्ति विलास, नंत चतुस्टै सौष्य मौ, बनिजारे हो । सुइ नंत सौष्य उनु जिनवर, नंत समय विगासिनो ॥ जं क्रिनि कमलह परिसु लोहए, अमिय मुक्ति विलासिनो । सुइ विषय नंतु सु अमिय विलयौ, सिय सिद्धि मुक्ति विगासिनो ॥ सुइ मलय नंत प्रवेसु जिनवरु, नंत समय पयासिनो । सुइ नंत नंत सु विंद रमनह, सुह नंत मुक्ति विगासु ॥ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन जिनय उत्तु संमत्तु विंदह, सम समयह सिद्धि विलास । जिन जिनय उत्तु सुइ विंद जै ॥ ३ ॥ ॥बनिजारे हो.॥ हिययार रमन जिन उत्तु, जिनु जिनय जिनय जिनु रमन पौ, बनिज़ारे हो । रंज रमन सुइ नंद, अनंद नंद सुइ मुक्ति पौ, बनिजारे हो । सुइ समय अर्क सम उत्तु, कोमल केवल उक्त जिनु, बनिजारे हो । हिय अर्क अनंत विसेषु सुइ, अलष अगम गम जिनय जिनु, बनिजारे हो ॥ सुइ अलष अगमु जिनु, नंत नंतह रमन मुक्ति उल्हासिनो । सुइ रयन रमनह चिंतामनि जिनु, सह समय मुक्ति विगासिनो ॥ सह साह उवनु अनंत जिन पौ, सुइ उवन कमल प्रकासिनो । सह साह रमन सु उवन उव निहि, रंज जय जय जय जिनो ॥ जयवंत जिनवरु जय पयासतु, जय जय जयन विगासु । जय जयो जिनवरु नंत समयह, सह समयह सिद्धि विलासु ॥ मुक्ति रमनि जिनु मुक्ति पौ ॥ ४ ॥ ॥बनिजारे हो.॥ उव उवन अर्क सुइ नंत, नंतानंत सु जिन रमनु, बनिजारे हो । जिन जिनियौ ममल सुभाउ, ममल कमल जिन उवन पौ, बनिजारे हो । षिपि षिपनिक रूव जिनुत्तु, बिपि षिपन अर्क सह जिनय जिनु, बनिजारे हो । षिप षिपनिक ममल जिनुत्तु, ममल कमल षिपि ममल पौ, बनिजारे हो ॥ सुइ ममल कमल सु उवन धुव निहि, चरन चरिय पयासिनो । सुइ चरन चरनह नंत चरियौ, कलन कलिय सु उव जिनो ॥ सुइ कलन कलंतु सु रमन रमियौ, नंत दर्स सु दर्सनो । तत्काल रमन सुइ सुर्य उव निहि, धुव उवन कमल विलासिनो ॥ जिन श्रेनि उवन सु कलन कलियौ, तर तार कमल पयासु । - Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ तारन तरन सु कमल जिन पौ, सह समयह मुक्ति विलासु ॥ सम समय सिद्धि संपत्तु जिनु ॥ ५ ॥ ॥बनिजारे हो.॥ (१३५) उपयोग बत्तीसी फूलना गाथा २७९४ से २८२६ तक (विषय : ज्ञान-८, दर्शन-४, परिणाम-60 सहित) जय जय जय जय जयन रमन जिनु, जय उवन रमन जिनु मुक्ति जयं । जय मुक्ति मुक्ति जय नंत मुक्ति जिनु, सह समय जय जय मुक्ति जयं ॥ १ ॥ जिनु वंदिहउ, सुइ नंदिहउ, सुइ रंज रमन नंद सहज मुक्ति जिनु वंदिहउ ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जय पयं पयं पय पयं परम जिनु, पय पयोग रमन जिनु मुक्ति जयं । सुइ सुर्य सुयं सुइ पयोग उवन जिनु, पय पयोग रमन जिनु सिद्धि जयं ॥ ३ ॥ ॥ जिन.॥ जय न्यान रमन सुइ न्यान उवन जिनु, जिन उवन उत्तु जय अस्ट जयं । सुइ दर्स दर्स जय दर्स रमन जिनु, चौ उवन चतुस्टै मुक्ति जयं ॥ ४ ॥ || जिन.॥ मति कमल उवन सुइ ममल रमन जिनु, जय कमल सहज जिनु कंठ जयं । जय कंठ उवन सुइ कोडि लष्य दह, जय लष्य लष्य दह परम जिनं ॥ ५ ॥ | जिन. ॥ मति ममल कमल सुइ चरन चरिय जिनु, जय कलन रमन सुइ दर्स जयं । जय चरन कलन सुइ सुयं रमन जिनु, __मति कमल सहज जिनु मुक्ति जयं ॥ ६ ॥ ॥ जिन.॥ मति ममल कमल श्रुति हिययार रमन जिनु, हिययार कमल सुइ भुक्त विलं । हिय नंत नंत परिनामु सहज जिनु, सुइ सहज उवन जिनु मुक्ति जयं ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ जय लष्य अलष्य लष लषन रमन जिनु, विन्यान बीस सुइ कोडि जिनं । परिनामु उवन सुइ दर्स रमन जिनु, हिय ममल कमल जय मुक्ति जयं ॥ ८ ॥ || जिन. ॥ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जय अवहि अवहि जिनु गुपित रमन जिनु, जय चरनु पलटि जिन चरन चरं । सहयार कमल सुइ सहज ममल जिनु, सुइ नंत नंत सुइ साहि जिनं ॥ ९ ॥ ॥ जिन.॥ सुइ लष्य लष्य चालीस लष्य जिनु, जय कोडि कोडि सुइ कोडि जयं । परिनामु गुपित सुइ उवन दर्स जिनु, सुइ अवहि रिद्धि जिनु जयो जयं ॥ १० ॥ ॥ जिन.॥ जय मइ सुइ अवहि अवहि जिन उवने, उव उवन उवन उव अलष जिनं । जय अलष अगम सुइ अगम रमन जिनु, जय अगम उवन जिनु न्यान जयं ॥ ११ ॥ ॥ जिन.॥ जय उवन उवन सुइ उवन उवन मै, उव उवन कमल मै उवन जिनं । सुइ उवन कलन सुइ उवन चरन जिनु, जय उवन रमन सुइ दर्स जयं ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ लष्य लष्य सुइ कोडि रमन जिनु, परिनामु सुयं सुइ परम जिनं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ उवन उवन सुइ नंत उवन जिनु, . मै उवन कमल केवलि उवनं ॥ १३ ॥ || जिन.॥ सुइ उवन उवन हिय उवन कमल जिनु, सुइ समय सहज हिय उवन जिनं । तं अर्क नंत सुइ नंत विंद जिनु, आगं तु समय उव सिद्धि जयं ॥ १४ ॥ || जिन. ।। दुति कोडि सुयं सुइ लष्य लष्य जिनु, हिय हुव रमन जिन सुइ मुक्ति जयं । परिनामु नंत हिय कमल उवन जिनु, सुइ समय मुक्ति दिपि दिस्टि जयं ॥ १५ ॥ || जिन.॥ सुइ उवन उवन सुइ उवन अवहि निहि, सहयार कमल सुइ उवन जिनं । सुइ साहिय नंत नंत धुव रमनं, सर्वांग रमन धुव सिद्धि जयं ॥ १६ ॥ ॥ जिन.॥ सुइ सुयं चतुस्टै चौ उवन रमन जिनु, परिनामु लष्य लष्य कोडि जिनं । सुइ कोडि कोडि जय जयं रमन जिनु, उव कमल अवहि निहि मुक्ति जयं ॥ १७ ॥ | जिन.॥ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी जय जयं जयं जय जयन रमन जिनु, रिजु विपुल उवन सुइ सहज रमन जिनु, पय मन उवन उवन जय जय उवनं । सुइ सहस लक्ष्य लष लषिय कोडि जिनु, मनपर्जय परम सु मुक्ति जयं ॥ सुइ प्रान पयं पय चौदह उवने, चौदस सुइ उवन सु कमल जिनं । सुइ ममल कमल सुइ उवन उवन जिनु, नंतानंत मनपर्जय समय सु मुक्ति जयं ॥ ॥ सुइ रमन उवन तत्काल रमन जिनु, १८ ॥ ॥ जिन. ॥ जय उवन मुषारविंद रमनं । हिय हुवं सहज सुइ केवल उवनं, तत्काल दर्स हिय हुव गमनं ॥ ॥ लष लष कोडि तवयरन जिनं । चतुस्टै उवनं, केवल सुड़ समय सु मुक्ति जयं ॥ ॥ तं न्यान न्यान सुइ उवन न्यान जिनु, तं न्यान सुभाव सु जिनय जिनं । १९ ॥ जिन. ॥ २० ॥ जिन. ॥ २१ ॥ जिन. ॥ ३९३ जिन जिनयति दिस्टि इस्टि सुइ उवने, सुइ दर्सन दर्सिउ ममल पयं ।। २२ । ॥ जिन. ॥ जय चष्य चष्य सुइ चष्य उवन जिनु, चष्य रमन सुइ परम पयं । सुइ परम परम सुइ दर्स रमन जिनु, जय दर्स कमल जिनु सिद्धि जयं ॥ जय सहस लक्ष्य लष कोडि रमन जिनु, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी परिनवै परम जिनु परम दर्स जिनु, सुइ चष्य दर्स परिनामु जिनं । सुइ चष्य दर्स जिनु अचष्य दर्स जिनु, २३ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन जिनयति चष्य सुदर्स जिनं ॥ ॥ सुइ उवन दर्स जिनु सिद्धि जयं जिनु, सुइ उवन दर्स दर्स कमल जिनं । दुति सहस लक्ष्य लषि कोडि कोडि जिनु, जिनु अचष्य समय हिय मुक्ति जयं ॥ २५ ॥ ॥ जिन. ॥ २४ ॥ जिन. ॥ विन्यान बीस परिनाम जिनं । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी अचष्य रमन सुइ अलष रमन जिनु, अचष्य अगम सम सिद्धि जयं ॥ ॥ सुइ लक्ष्य लक्ष्य चालीस रमन जिनु, सुइ दर्स दर्स सुइ उवन अवहि निहि, जय कोडि कोडि सुइ उवन जिनं । सुइ गुपित उवन जिनु मुक्ति जयं ॥ ॥ सुइ उवन उवन सुइ प्रिये कमल जिनु, सुइ अवहि उवन निहि दर्स रमन दिहि, सुइ गुपित रमन कर्न कमल जिनं । दिसि अंग दर्स सुइ मुक्ति जयं ॥ ॥ सुड़ चष्य उवन जिनु अचष्य रमन जिनु, सुइ कमल उवन जिनु रमन नंत जिनु, सुइ अवहि उवन निहि उवन जिनं । सुइ केवल दर्सन मुक्ति जयं ॥ ॥ जय विमल विमल सुड़ ममल रमन जिनु, जय ममल पयं पय परम पयं । सुइ परम परम पय परम कमल जिनु, सुइ केवल परम सु सिद्धि जयं ॥ ॥ २६ ॥ जिन. ॥ २७ ॥ जिन. ॥ २८ ॥ जिन. ॥ २९ ॥ जिन. ॥ ३० ॥ जिन. ॥ ३९४ सुइ न्यान न्यान सुइ दर्स रमन जिनु, सुइ न्यान दर्स पय पयं जिनं । पय पयोग उवन सुइ उवन रमन जिनु, सुइ रमन पयोग जिन जिनय जिनं ॥ ॥ सुइ उवन उवन जिन श्रेनि उवन जिनु, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ कलन कलिय जिन चरन चरं । जिन चरन रमन तत्काल रमन जिनु, जिन श्रेनि कलन सुइ सिद्धि जयं ॥ ॥ जय तारन तरन उव रमन परम जिनु, जय उवन कमल सुइ रमन जिनं । सुइ उवन जिनय जिनु उवन रमन जिनु, सह समय उवन जिनु सिद्धि जयं ॥ ॥ (१३६) न्यानास्टक फूलना गाथा २८२७ से २८३५ तक (विषय आठ ज्ञान) उव उवन उवन उव उवन जिनैया, उव उवन सहावे कलि कलन कलैया । चरि चरन चरिय उव चरन चरैया, ३१ ॥ जिन. ॥ ३२ ॥ जिन. ॥ ३३ ॥ जिन. ॥ चरि कलन उवन जिनु मुक्ति मिलैया ॥ १ ॥ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अब हम वंदे हैं जिन जिनय जिनैया, कम कमल कलिय धुव मुक्ति रमैया ॥ अब हम वंदे हैं जिन जिनय जिनैया ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ मय ममल ममल मय ममल जिनैया, मति ममल कमल कंठ सहज उवैया । उव उवन उवन मै उवन नंदैया, मति उवन कमल जिनु मुक्ति मिलैया ॥ ३ ॥ ॥ अब. || मै ममल रमन चर चरिय चरैया, हिय कलन कमल सुइ सहज जिनैया । उव उवन उवन हिय रमन रमैया, हिय उवन कमल सुइ जिनय जिनैया ॥ ४ ॥ || अब. ॥ सुइ अवहि अवहि चर उलटि चरैया, सुइ गुपित कलन कलि अवहि जिनैया । उव उवन अवहि निहि अवहि जिनैया, उव साह कमल निहि मुक्ति मिलैया ॥ ५ ॥ ॥ अब. ॥ मन ममल रमन जिनु उवन जिनैया, रिजु विपुल सहज जिनु मुक्ति मिलैया । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी षट् रमन अरुह जिनु हिय हियइ जै रैया, जय जयो जयं जिनु मुक्ति जिनैया ॥ ६ ॥ ॥ अब. ॥ धुव धुवं धुवं धुव सिद्धि धुव रैया, सिय सहन साह धुव साह सहैया । सिय धुवं सहज जिनु जिनय जिनैया, धुव केवल ममल सिद्धि मुक्ति जिनैया ॥ ७ ॥ ॥ अब. ॥ जय जयो श्रेनि जिन श्रेनि जै रैया, जय उवन कमल कलि कलन कलैया । सुइ श्रेनि कलन चर कलिय जिनैया, जिन श्रेनि कलन सम मुक्ति मिलैया ॥ ८ ॥ ॥ अब. ॥ जय तार तरन तर तरन तरैया, जय तार कमल कम कमल जिनैया । सुइ तार समय कलि कमल जै रैया, सह समय रमन सिद्धि मुक्ति मिलैया ॥ ९ ॥ ॥ अब. ॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (९३७) कमल चतुर्दशी फूलना गाथा २८३६ से २८५० तक (विषय : कमल दल - कमल चतुर्दशी) जय जयो जयो जय जय उवनं, जय रमन रमन जिनु जिनय जिनं । जिन गमन गमन सुइ अगम जयं, जिनु नंत नंत सुइ मुक्ति जयं ॥ १ ॥ जिन जिनयति जिनय सु जिनय जयं, जिन उवन उवन स्वामी मुक्ति जयं । जिन अप्प परम पय परम पयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जय मयं मयं मय उव उवनं, जय सहन सहन जिन उवन सह । जय ऊर्ध ऊर्ध सुइ ऊर्ध जयं, जय उवन ऊर्ध जिन मुक्ति जयं ॥ ३ ॥ ॥ जिन ॥ जय ढलन ढलन जिन उव ढलनं, जय उवन उवन जिन उवन जिनं । जय लवन लवन जय उव लवनं, जय अलष लषिय जय सिद्धिगमनं ॥ ४ ॥ ॥ जिन.॥ जिनु इस्ट इस्ट जय इस्ट उवनं, जिन उवन उवन इस्ट उवन जिनं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय गिरय गिरय जिन गिर उवनं, जय उवन उवन गिर सिद्धि गमनं ॥ ५ ॥ || जिन.॥ जिन कंठ कंठ जय कंठ उवनं, उव उवन कंठ जिन जिनय जिनं । जिन रमन रमन जय उव रमनं, तत्काल रमन उव सिद्धि गमनं ॥ ६ ॥ | जिन.॥ जय ममल ममल सुइ ममल जयं, जय ममल साह जय साह जयं । सह साह जयं सिय उवन जयं, सिय उवन साहि जिन मुक्ति जयं ॥ ७ ॥ ॥ जिन.॥ सिय चरन जयं जय चरि उवनं, जिन उवन चरन जय जिन चरनं । धुव चरन, धुव चरन रमन जिन सिद्धि गमनं ॥ ८ ॥ ॥जिन.॥ जिन चरन रमन सम उवन चरं, सुइ न्यान चरन चौ उवन चरं । जय उवन लषन लषि लषिय चरं, जय अलष चरन जिन मुक्ति वरं ॥ ९ ॥ ।। जिन.॥ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय जयो जयो जय कलन जयं, जय रमन कमल जिन सिद्धि रमनं ॥ १४ ॥ || जिन ॥ जय श्रेनि कलन कलि कलिय जिनं, जय कलन कलिय जिन जिनय जिनं । जय तार कमल सम समय जिनं, सह समय साहि सुइ मुक्ति जयं ॥ १५ ॥ || जिन.॥ श्री ममल पाहुइ जी जय कलन कलन कलि कलन रयं, जय कलन रमन धुव जिनय जिनं । सुइ चरन चरिय जिन कलन जयं, जय उवन कलन जिन परम जयं ॥ १० ॥ ॥जिन.॥ जय कलन कलिय जिन कंठ उवनं, जय कलन कलिय जिन रमन जिनं । जय कलन रमन तत्काल जिनं, जिन कलन कलिय जिन धुव उवनं ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन कलन कलिय जय दर्स जिनं, जय नंत दर्स जिन कलन जिनं । जिन कलन कमल जय धुव उवनं, जय कलन उवन धुव मुक्ति जयं ॥ १२ ॥ ॥ जिन.॥ जिन कमल कलन पय धुव उवनं, जय चरन कमल सुइ कलन जिनं । जय पदम कमल पय परम जिनं, जय उवन कमल सिद्धि मुक्ति जयं ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ जय कलन कमल कलि कलिय जिनं, जय कमल सहज जिन उवन जिनं । (१३८) उव उवन अर्क सोलही फूलना गाथा २८५१ से २८६७ तक (विषय : अर्क चौबीस) जय जयो जयो जय जयो अनंदु, जय जयन सहावे स्वामी मुक्ति जिनंदु । जय जयो जय जय जयन स रिद्धि, जय जयो उवन सम समय सु सिद्धि ॥ १ ॥ उव उवन उवन उव उवन स वीरू, उव उवन समय जिन श्रेनि स धीरू । उव उवन कलन सिद्धि मुक्ति सु वासु, उव तार कमल जिन मुक्ति निवासु ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (३९७) Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी उव उवन कलन कलि कलिय अनंतु, उव कलन कमल धुव सिद्धि संपत्तु । उव उवन कमल चर चरिय सु नंदु चर चरिय कमल उव मुक्ति जिनंदु ॥ उव उवन कमल उव नंत अनंतु, कर्न उव उवन कमल सम सुवन स रिद्धि, उव उवन समय सिद्धि संपत्तु । सुव श्रवन रमन जिन मुक्ति सु सिद्धि ॥ उव श्रवन रमन सुइ सुवन अनंतु, सुइ सुवन हियं जिन उव उवन हियं उव मुक्ति सरत्तु, हुव समय सुवन जिन सिद्धि दिपि दिप्ति उवन सुइ दिप्ति सु नंतु, सिद्धि उव उवन सुवन अवयास जिनंदु, अवयास रमन दिपि मुक्ति अवयास यास दिपि नंत अनंतु, अवयास कमल धुव सिद्धि ३ ॥ ॥ उव. ।। ४ ॥ ।। उव. ।। संपत्तु । संपत्तु ॥ ५ 11 ।। उव. ।। संपत्तु । संपत्तु ॥ ६ ॥ ।। उव. ।। सुइ सुयं उवन दिपि मुक्ति स रत्तु । ३९८ दिपि सुयं दिप्ति सुइ सुर्क सहाउ, सुइ दिप्ति सुर्क जिन सुइ सुर्क उवन जिन अभय स नंदु सुइ अभय सुर्क जिन नंत अनंतु, जय सुर्क कमल धुव श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मुक्ति सुभाउ ॥ सुइ सुर्क अभय भय विलय जिनन्दु । 11 ॥ उव. ।। उव उवन विंद हिय नंद अनंदु, सुइ नंद नंद आनंद आनंद उवन आनंद स उत्तु, उव उव उवन आनंद सुइ विलिय विनंदु, उव उवन कमल धुव सम समय समय सम जिनय स उत्तु, धुव समय रमन हिय सिद्धि संपत्तु ॥ सुई सुर्क उवन सर्वार्थ सु अर्थ, सुर्कार्थ सियं ध्रुव मुक्ति अर्थ धुव समय स बिंदु, उव विंद रमन जिन जिनय जिनंदु ॥ सर्वार्थ ८ ॥ ।। उव. ।। وا सुपंथु । ९ || ॥ उव. ॥ जित्तु । उवन विनंद विलि सिद्धि संपत्तु ॥ १० ॥ ।। उव. ॥ समय जिनंदु | सिद्धि संपत्तु ॥ ११ ॥ ॥ उव. ।। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विन्यान बीस चौ उवन स नंतु, सिय धुवं धुवं सिय सिद्धि संपत्तु ॥ १६ ॥ ॥ उव.॥ उव उवन वीरु विन्यान संजुत्तु, सुइ उवन श्रेनि जिन कलन स उत्तु । उव तार तरन जिन कमल जिनुत्तु, सह समय उवन जिनु सिद्धि संपत्तु ॥ १७ ॥ ॥ उव. ॥ श्री ममल पाहुइ जी धुव समय हियं हिय उवन अलष्यु, उव उवन अलष्य हिय जिनय जिनुत्तु । उव उवन अलष्य अगम गम उत्तु, सुइ अगम रमन जिन सिद्धि संपत्तु ॥ १२ ॥ ॥ उव. ।। उव उवन अगम गम साह सहंतु, सहयार सुवन आयरन जिनुत्तु । साह रमन उव उवन अनंतु, उव रमन कमल धुव सिद्धि संपत्तु ॥ १३ ॥ ॥ उव. ॥ उवन रंज जय जयो जिनुत्तु, जय जय जय जय रंज सिद्धि रत्तु । सुइ रंज उवन उव उवन जिनंदु, जिन जिनय कमल सुइ परम जिनंदु ॥ १४ ॥ ॥ उव. ।। उव उवन उवन षिपि षिपिय अनंतु, बिपि विपन रमन जिन सिद्धि स रत्तु । उव उवन षिपन सुइ ममल अनंतु, उव ममल रमन धुव सिद्धि संपत्तु ॥ १५ ॥ ॥ उव.॥ उव उवन सियं सिय मुक्ति सहाउ, सिय रमन रसिय धुव उवन सुभाउ । सह रन बना लिया जाता (१३९) जै जै मेल समय फूलना गाथा २८६८ से २८८६ तक (विषय : षट् शब्द, हितकार सोलही) उव उवन उवन उव उवन जिना, उव उवन समय जय सिद्धि गमना । जय जयो जयो जय उवनु जिना, सह समय मुक्ति जिन सिद्धि रमना ॥ १ ॥ जै जै मेल समय फँचै उवनु जिना, जै जै मुक्ति गमनु जिनु सिद्धि रमना । सह समय मुक्ति जिन जिनय जिना ॥ २ ॥ ||आचरी॥ जै जै उवन हियं हिय समय जिना, जै जै उवन हियं अवगहै गिना । Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी अवगहै उवनु गुरु लघु रयना, जय अवहवाहु जिन जिनय जिना ॥ ३ ॥ ॥ जै जै. ॥ हिय हियं उवनु लष अलष जिना, मै उवन समय जिनु अगम जिना । मितु मिलनु उवनु दिपि दिस्टि जिना, जिन उवन सब्द पिउ सिद्धि गमना ॥ ४ ॥ परिनवे परम जिनु उवनु जिना, सह साह गमनु सिय धुव रमना । जै सब्द उवन पिउ श्रवन जिना, जै उवन कमल केवल उवना ॥ ५ ॥ ॥जै जै.॥ परिनतु सुइ समय मलय रमना, दिपि दिस्टि सब्द पिउ उवनु जिना । कोमल सुइ कमल सु हिय उवना, अवयास कमल सिय साहि जिना ॥ ६ ॥ ॥ जै जै.॥ कोमल कलि कलन उव उवन जिना, कलि कलन चरन जिनु सिद्धि रमना । दिपि दिस्टि रमन जिनु अगम गमा, हुव गमनु मुक्ति कोमल रमना ।। ७ ॥ ॥ जै जै.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कोमल सुइ उवनु सिय ललिय जिना, हिय रमन जिनय जिनु धुव रमना । किनि किरनि ललिय जय जय जयना, जय जयो जयं जय मुक्ति जिना ॥ ८ ॥ ॥जै जै. ॥ हिय हुवं रमनु गम अगम जिना, ___ जं जं रमन गमनु तं तं हुवनु जिना । जं जं सब्द सुवनु सुइ श्रवन समा, तं तं हुवनु उवनु जिनु मुक्ति रमा ॥ ९ ॥ ॥जै जै.॥ हिय उवं लब्धि जिन उवनु जिना, जय सुर्य लब्धि जिनु सुइ रमना । वे वेय विन्यान सु उवन जिना, वे विनंद विली नंद मुक्ति जिना ॥ १० ॥ ॥ जै जै.॥ का कमल कार्ज जिन जिनय जिना, सुइ क्रांति समय जिनु रमनु जिना । उव उवन क्रांति हिय उवन जिना, सुइ कलप रमन जिनु मुक्ति जिना ॥ ११ ॥ ॥जै जै.॥ जै जै फास रमनु अस्फटिक जिना, तं विगत रमनु अविगत उवना । (४०० Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तं विगत षिपनु अविगत श्रवना, तं परमनंद अविगत उवना ॥ १२ ॥ ||जै जै. ॥ सुइ सब्द रमनु लष अलष जिना, उव सब्द रमन गम अगम रमा । इस्ट उवन सब्द उव उवन जिना, उव उवन सब्द इस्ट मुक्ति जिना ॥ १३ ॥ ॥ जै जै.॥ इस्ट उवन सब्द वंस उवन जिना, उव उवन सब्द हुव हुव गमना । इस्ट उवन लषन लष अलष उवना, उव अगम अलष्य सिद्धि उव रमना ॥ १४ ॥ ॥जै जै.॥ इस्ट उवन रमनु लष उवन जिना, उव उवन रमन मुक्ति अलष रमा । इस्ट गमन रमनु गम उवन मना, उव उवन अगम हुव सिद्धि गमना ॥ १५ ॥ ॥ जै जै.॥ पर्जय इस्ट रमन सुइ उवन मना, पर्जय उव उवन सु मुक्ति मना । इस्ट लषन गमन गम लषय मना, उव अलष अगम मनु मुक्ति जिना ॥ १६ ॥ ॥ जै जै.॥ हिय हुव सुइ लब्धि सु जिनय जिना, ___उव कल्प उवन हिय हुव रमना । सुइ कलप सुयं लहि लब्धि जिना, उव उवन हियं हुव सिद्धि रमना ॥ १७ ॥ ||जै जै.॥ जय वीर समय उव उवन जिना, जय पूर्व रमन दिपि दिस्टि जिना । उव उवन कलन जिन श्रेनि जिना, सुइ श्रेनि कलन कलि सिद्धि रमना ॥ १८ ॥ ॥ जै जै. ॥ जय तार तरन जय जय रमना, जय उवन कमल जिन सिद्धि गमना । जय तार कमल जिन धुव उवना, उव उवन समय सिद्धि मुक्ति जिना ॥ १९ ॥ ॥ जै जै.॥ (१४00 विसि अंग फूलना गाथा २८८७ से २९०३ तक (विषय : दस दिशा, आठ अंग) उव उवन उवन पय उव उवन समय जय, उव उवन उवन उव उवन वरी । जय जयो जयो जय जयो जयं जिनु, जय रमन सुयं जिन मुक्ति वरी ॥ १ ॥ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जय जाऊ उवन पौ उवनु रस, उव उवन समय सुइ मुक्ति वसै ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जय जयो जय जय जय रमन उवन जय, जय जय जयं जिननाथ रसै । जय रमन रमन उव रमन जयं जिनु, उव रमन समय जिनु मुक्ति वसै ॥ ३ ॥ ॥जय जयो.॥ जय जयो उवन जिनु जय उवनु हियं जिनु, सहयार साह जिन रमन रसै । आयरन उवन हिययार सहज जिनु, सुइ नंद समय जिनु मुक्ति वसै ॥ ४ ॥ ॥जय जयो.॥ जय जानु जिनय रिजु विपुल रस, जय जय जय जय मुक्ति समै । पय पयं पयं पय परम रमन जिनु, पय पयं उवन जिनु मुक्ति रमै ॥ ५ ॥ ॥जय जयो.॥ पय पयह पयं जिनु पय विंद रमन जिनु, पय विंद उवन जिनु उवनु रसै । उव उवन अर्क सुइ विंद रमन जिनु, उव सुन्न रमन जिनु मुक्ति वसै ॥ ६ ॥ ॥ जय जयो.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिसि दिप्ति रसै दिपि दिस्टि वसै, ___ उव उवन पूर्व दिसि उवनु रमै । उव उवन सहावे सब्द पियं जिनु, दिसि अन उवन जिनु मुक्ति गमै ॥ ७ ॥ ॥जय जयो.॥ पूर्व पूर्व रमै अग्र उवन समै, अग्र पूर्व रमन आयरन रमै । दिपि दिस्टि रमन आयरन दर्स जिनु, दर्स नित उवनु सिद्धि सिद्ध गमै ॥ ८ ॥ ॥जय जयो.॥ ब्रित नित उवन जिनु प्रिये इच्छ समय जिनु, सुइ प्रिछ प्रियं प्रिय उवनु रमै । वाइव विगत सुइ अविगत विगत जिनु, अविनंद परम जिनु मुक्ति गमै ॥ ९ ॥ ॥जय जयो.॥ सुइ विगत अविगत जिनु उत्पन्न रमन जिनु, उत्पन्न रमन तत्काल रमै । उत्तर दिसि उवन रमन जिन उवने, उत्पन्न ईस जिनु मुक्ति गमै ॥ १० ॥ ॥जय जयो.॥ ईसा ईसइ सै नंतानंत रसै, सुइ लोय लोय सुइ ईस वसै । सुइ लोय लोय अवलोय परम जिनु, सुइ नंत उवन जिन मुक्ति रसै ॥ ११ ॥ ॥ जय जयो.॥ (४०२ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पय पयं उवन अस्टांग रमन जिनु, दिसि अंग समय सुइ मुक्ति रमै ॥ १६ ॥ ॥ जय जयो.॥ उव उवन श्रेनि जय कलि कलन रमन पै, जिन श्रेनि कलन जिन जयो जयं । सुइ तारन तरन धुव कमल उवन जिन, सह समय उवन जिन परम पयं ॥ १७ ॥ ॥जय जयो.॥ श्री ममल पाहुइ जी ऊर्ध ऊर्ध ऊर्ध जिन आगंतु समय जिन, अर्ध ऊर्ध नंत जिन उवन गमै । उव उवन उवन आयरन रमन जिन, दिसि दर्स समय जिन मुक्ति रसै ॥ १२ ॥ ॥जय जयो.॥ दिसि दर्स रमन जिन वसु अंग समय जिन, उव उवन अर्क धुव विंद रमै । उव उवन उवन आयरन कमल जिन, धुव कमल उवन जिन सिद्धि गमै ॥ १३ ॥ ॥जय जयो.॥ इस्ट इस्ट षिपक जिनु उव उवन षिपक जिनु, उव उवन इस्ट उव भुक्त षिपै । उव उवन भुक्त सुइ विनंद विली जिनु, हिययार रमन जिनु मुक्ति वसै ॥ १४ ॥ ॥जय जयो.॥ हिय रमन अर्क जिनु सुइ विंद समय जिनु, आगंतु हियं हुव रमन रमै । सुइ गहिर गुपित आयरन परम जिनु, सुइ गुपित जानु जिनु मुक्ति गमै ॥ १५ ॥ ॥जय जयो.॥ सुइ गुपित जान जिन मन उवन उवन जिन, जिन उवन उवन पय पयं गमै । (१४) समय उवन फूलमा गाथा २९०४ से २९४० तक (विषय : अंकुर लब्धि सोलही) उव उवन चिंतन जिन जयन सिरी, उव उवन समय जिन मुक्ति वरी ॥ १ ॥ जय जयं जयं जिन आवलिया, जय उवन समय मुक्तावलिया ॥ २ ॥ ||आचरी॥ मय मयं मयं मय ममल सिरी, ___ मय उवन ममल जिन मुक्ति वरी ॥ ३ ॥ ॥ जय. ॥ पय पयं पयं पय परम सिरी, पय उवन रमन जिन मुक्ति वरी ॥ ४ ॥ ॥ जय. ॥ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी धुव धुवं धुवं धुव उवन रली, धुव कमल उवन जिन मुक्ति मिली ॥ ५ ॥ ॥ जय. ॥ सुव सुयं सुयं सुव उवन सुर्य, सुव उवन परम जिन सिद्धि जयं ॥ ६ ॥ ॥ जय. ॥ पय उवन उवन जिन सिद्धि रयं, जिन उवन समय सुइ मुक्ति जयं ॥ ७ ॥ ॥ जय. ॥ गुरु गुपित गुपित उव गुपित रयं, उव उवन गुपित जिननाथ जयं ॥ १२ ॥ ॥ जय. ॥ गुरु गुपित समय सम रमन सुयं, उव गुपित समय जय जयो जयं ॥ १३ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ गुपित गहिर उव गहिर सुयं, उव उवन गहिर सम समय जयं ॥ १४ ॥ ॥ जय. ॥ जय रिद्धि रिद्धि उव रिद्धि मयं, उव उवन कमल रिद्धि मुक्ति जयं ॥ १५ ॥ ॥ जय. ॥ विद्धि ब्रिद्धि उवन जिन ब्रिद्धि जयं, उव उवन ब्रिद्धि जिन सिद्धि रयं ॥ १६ ॥ ॥ जय. ॥ जय न्यान उवन उव उवन पयं, पय उवन परम जिन परम पयं ॥ १७ ॥ ॥ जय. ॥ पय पयं पयं पय उवन पयं, इय इस्ट ईर्ज जिन जयो जयं ॥ १८ ॥ ॥ जय. ॥ जय दिप्ति सु दिप्ति जिन दिप्ति जयं, उव दिप्ति समय सम मुक्ति जयं ॥ ८ ॥ ॥ जय, ॥ जय दिस्टि इस्टि जिन दिस्टि जयं, उव दिस्टि रमन जिनु दिप्ति सुयं ॥ ९ ॥ ॥ जय. ॥ उव दिप्ति जयं जिन रमन रली, जय दिस्टि समय सुइ मुक्ति मिली ॥ १० ॥ ॥ जय. ॥ सुइ इच्छ इच्छ जय इच्छ जिनं, उव इच्छ रमन जिन सिद्धि रमनं ॥ ११ ॥ ॥ जय. ॥ = = = = (४०४) Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ___= = श्री ममल पाहुइ जी तिय तित्थ तित्थ उव तित्थ जिनं, इय ईर्ज क्रिनि जिननाथ सुयं ॥ १९ ॥ ॥ जय. ॥ मध्य ममल ममल उव ममल जिनं, हिय रमन उवन हिय हुव गमनं ॥ २० ॥ ॥ जय. ॥ धर धरन धरन जिन धरन सुयं, जय उवन धरन जिननाथ जयं ॥ २१ ॥ ॥ जय. ॥ जय अलष अगम गम उवन गम, उव उवन अगम जय मुक्ति जयं ॥ २२ ॥ ॥ जय. ॥ उव ऊर्थ ऊर्ध उव ऊर्ध सुयं, उव उवन ऊर्ध जिन जिनय जिनं ॥ २३ ॥ ॥ जय. ॥ वा वारवार आयरन जिनं, उव उवन आयरन जिन जयो जयं ॥ २४ ॥ ॥ जय. ॥ उव उवन उवन नै उवन मयं, उव उवन समय जय सहज जयं ॥ २५ ॥ ॥ जय. ॥ जय सियं सियं जिन उवन सियं, उव उवन कमल सिय मुक्ति जयं ॥ २६ ॥ ॥ जय. ॥ सिय सियं सियं सह साह सुयं, सह साह रमन धुव मुक्ति जयं ॥ २७ ॥ ॥ जय. धुव उवन कमल जय धुव उवनं, धुव समय उवन जय मुक्ति जयं ॥ २८ ॥ ॥ जय. ॥ जय अल्प अल्प जय अल्प जयं, सुइ सूष्यम अल्प जिन मुक्ति जयं ॥ २९ ॥ ॥ जय. ॥ जय गमन अगम ऊर्ध गमनं, ___उव ऊर्ध ऊर्ध जिन जिनय जिनं ॥ ३० ॥ ॥ जय. ॥ जय ठान ठान जिन ठान जिनं, जिन ठान कमल कोमल उवनं ॥ ॥ जय. ॥ जय कलन कमल कोमल उवनं, कोमल सहाइ केवल सु सुयं ॥ ३२ ॥ ॥ जय. ॥ = = = = = = = (४०५) Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जय उवन उवन जिन वीर जयं, जय वीर समय जिन मुक्ति जयं ॥ ३३ ॥ ॥ जय. ॥ जय वीर उवन जिन श्रेनि जयं, जय कलन कलिय जिन जिनय जिनं ॥ ३४ ॥ ॥ जय. ॥ जिन श्रेनि कलन जिन समय जयं, सम समय उवन जिननाथ जयं ॥ ३५ ॥ ॥ जय. ॥ जय तार तरन सम तरन जयं, जय कमल उवन तर तार जिनं ॥ ३६ ॥ ॥ जय. ॥ जय तार कमल जिन श्रेनि सुयं, सह समय साह जिन मुक्ति जयं ॥ ३७ ॥ ॥ जय. ॥ जय पियं पियं पिय पिय जिन रंजे, सुइ रंज रमन नंद जिन सहज जिनंदे । जय जय जय जय जयन जिनंदे, जय मुक्ति रमन सम समय सुनंदे ॥ जय जय जय जय जिनवर नंदे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ सुइ रमन रमन सुइ रमन सुनंदे, सुइ गमन गमन जिनु अगम जिनंदे । सुइ सहन सहन सुइ असह सहते, सह साह रमन जिनु मुक्ति सरत्ते ॥ ३ ॥ ॥ जय. ॥ आयरन अवहि निहि रिद्धि सनंदे, जय जयं रमन रिहि उवन जिनंदे । उव उवन उवन निहि रिहि जिन नंदे, आयरन मुक्ति जिन जिनय जिनंदे ॥ ४ ॥ ॥ जय. ॥ आ आस आस सुइ आस सनंदे, सुइ आस उवन जिन अगम जिनंदे । रा राय राय जिन राय अनंदे, सुइ ध्याय मुक्ति जिन समय जिनंदे ॥ ५ ॥ ॥ जय, ॥ (१४२) उवन पिय रमन फूलना गाथा २९४१ से २९४९ तक (विषय : कमल दल, अक्षर समुच्चय) जय जय जय जय जिनवर नंदे, जय जिनय जिनय जय परम जिनंदे । जय परम परम पय परम सुनंदे, जय कलन चरन जिनु कमल जिनंदे ॥ १ ॥ (४०६) Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय जय जय जयसी श्री ममल पाहुइ जी आ आय आय उव आय अनंदे, या याय अलष गम अगम जिनंदे । रा रमन रयन जिन जिनय जिनुत्ते, आयरन रमन जिन सिद्धि संपत्ते ॥ ६ ॥ ॥ जय. ॥ आ आदि अनादि नंत जिन नंदे, ला लाय लाय लऊ उवन जिनंदे । पा परम परम परमिस्टि सनंदे, आलाप परम जिन जिनय जिनंदे ॥ ७ ॥ ॥ जय ॥ आराह रमन जिनु नंत अनंते, आयरन उवन जिन मुक्ति सरत्ते । आलाप लाप उवलोय जिनुत्ते, सुइ रमन उवन जिन सिद्धि संपत्ते ॥ ८ ॥ ॥ जय. ॥ सुइ सुयं सुयं सुइ श्रेनि जिनुत्ते, सुइ कलन रमन जिन श्रेनि स उत्ते । सुइ तार तरन उव कमल सरत्ते, सह समय रमन जिन सिद्धि संपत्ते ॥ ९ ॥ ॥ जय. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१४३) उवन जिन पयोग फूलना गाथा २९५० से २९६३ तक (विषय : कमल चतुर्दशी) उव उवन उवन उवनी, उव उवन उवन पिय उत्तु । परम जिन उवन जिनी ॥ जय जयनी, जय जयो जयं पिउ उत्तु ।। अलष जिन जय उवनी ॥ १ ॥ जिन जिनय जिनी, जिन उवन उवन दरसायौ । परम जिन मुक्ति रमै ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जय अलष अलष रवनी, जय अलष अलष जैवंतु । जयं जिन जिन सुवनी ॥ सुइ अगम अगम गमनी, जय अगम अगम पिय नंतु । अगम जिन निल उवनी ॥ ३ ॥ ॥ जिन. ॥ जय उवन कमल उवनी, जय जय जयं जिन कमल ।। परम पय पय उवनी ॥ जय जय जयं धुवनी, धुव धुवं धुवं धुव उवन । उवन जिन धुव रखनी ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ जय चरन चरन चरनी, जय जय जय उव चरन । चरन जिन चर उवनी ॥ yolo Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी चर चरन उलटि चरनी, चर चरियौ नंतानंतु । ममल रस चर जयनी ॥ ५ 11 ॥ जिन. ॥ चर चरन कंठ चरनी, जिन कंठ चरन सम उत्तु । कमल सर ठव उवनी ॥ उव उवन अनंत रवनी, सुइ नंत सहन सुइ साह । जिनय जिन उव उवनी ॥ ॥ उव उवन उवन चरनी, सुइ तालु रमन जिन जिनय । जिनय पै जिन उवनी ॥ सुइ रमन रयन उवनी, तत्काल रमन सुइ उत्तु । रमन पय रय रयनी ॥ ॥ ६ || जिन. ॥ सुइ चरन उवन चरनी, सुड़ अर्क विंद सुड़ चरन । नंत अर्क जिन चरनी ॥ सुइ नंत विंद रवनी, सुइ सरन कलन कलि नंत । कलन जिन जिन रवनी ॥ ॥ ७ ॥ जिन. ॥ सुइ दर्स दर्स चरनी, सुड़ चरन दर्स जिननाहु । दर्स जिन रमन जिनी ॥ ध्रुव धुवं इस्ट उवनी, सुइ सुयं सुद्ध धुव रमन । उवन जिन ध्रुव रमनी ॥ ८ 11 ॥ जिन. ॥ ९ 11 जिन. ॥ ४०८ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ कलन रमन कलनी, कलि कलियौ नंत विसेष । कमल जिन पय रखनी ॥ जंकलन कलिय उवनी, कलि कलन कलिय जिननाहु । कमल पय पय रवनी ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ जय चरन कलन कलनी, सुइ रमन अनंतानंत । कमल सर सरन जिनी ॥ जय चरन कलन रवनी, धुव पयडि अनंतानंत । कमल सर सिद्धि रखनी ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ कमल ममल उवनी, ध्रुव मुक्ति रमन जिननाहु कमल जिन जय जयनी ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ उवन कमल रखनी सुइ केवल नंतानंतु । मुक्ति जिन सिद्धि रखनी ॥ जिन श्रेनि श्रेनि रवनी, सुड़ कलन कमल जिननाहु । समय जिन सिद्धि गमनी ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ तार तरन तरनी, सुइ तार कमल जिन सिद्धि । सिद्ध जिन जिनय जिनी ॥ सुइ तार समय रवनी, सुइ तरन समय सिद्धि रत्तु । कमल पय परम जिनी ॥ १४ ॥ ॥ जिन. ॥ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी (१४४) हिय उबन समय फूलना गाथा २९६४ से २९८५ तक (विषय: हितकार सोलही) जय जय जय जय जिन जयनं, जय अप्प परम पय परम जिनं । जिन उवन जिनं ॥ १ ॥ अहो जिन जिनवर जिनके हिये वस, अहो जिन तिनके हिय हुव मुक्ति रसै । अहो जिन जिनय जिनं ॥ २ ॥ ||आचरी॥ जय कलन कमल जय जयं कलै, अहो जिन उवन कमल सिय धुवं मिलै । अहो जिन उवन जिनं ॥ ३ ॥ || अहो. ॥ जय क्रांति कमल कलि कल्प रसै, जय उवन कमल क्रांति मुक्ति वसै ॥ ४ ॥ ॥ अहो. ॥ ममल कमल अस्फटिक रलै, __ जिन तार कमल वीय मुक्ति मिलै ॥ ५ ॥ ॥ अहो. ॥ जय जय जय जय रूव रहै, ___ जय रूव कमल जिनु मुक्ति लहै ॥ ६ ॥ ॥ अहो. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय लषन कमल जिन रूव लषै, जिन अलष कमल रूव मुक्ति अषै ॥ ७ ॥ ॥ अहो. ॥ जय जयं कमल मय सब्द मिले, उव कमल सब्द जिन मुक्ति रलै ॥ ८ ॥ ॥ अहो. ॥ जय अगम कमल सब्द अगम गमै, जिन उवन उवन सब्द मुक्ति रमै ॥ ९ ॥ ॥ अहो. ॥ जय अगम कमल मनु अगम सहै, उव उवन कमल मनु मुक्ति रहै ॥ १० ॥ ॥ अहो. ॥ जय षिपक कमल मनु षिपक गमै, जिन मुक्ति कमल मनु मुक्ति रमै ॥ ११ ॥ ॥ अहो. ॥ हिय रमन कमल जिन रमन रमै, हिय उवन कमल जिनु मुक्ति रमै ॥ १२ ॥ ॥ अहो. ॥ धुव उवन कमल धुव रमन रमै, जिन उवन उवन धुव मुक्ति गमै ॥ १३ ॥ ॥ अहो. ॥ जय जय जय जय षिपक रस, उव षिपक कमल जिन मुक्ति वसै ॥ १४ ॥ ॥ अहो. ॥ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी आयरन कमल आयरन गमै, जिन आयरन उवन जिन मुक्ति रमै ॥ १५ ॥ ॥ अहो. ॥ जय इच्छ कमल आयरन सहै, जिन इच्छ उवन कलि मुक्ति लहै ॥ १६ ॥ ॥ अहो. ॥ पय रमन कमल पय रमन रमै, पय उवन कमल सुइ मुक्ति रमै ॥ १७ ॥ ॥ अहो. ॥ मध्य रमन कमल षट् रमन रमै, मध्य उवन कमल रमि मुक्ति गमै ॥ १८ ॥ ॥ अहो. ॥ आयरन उवन उव उवन गमै, उव उवन कमल उव मुक्ति रमै ॥ १९ ॥ ॥ अहो. ॥ आयरन उवन उव कमल सहै, उव ठान कमल जिन मुक्ति लहै ॥ २० ॥ ॥ अहो. ॥ आयरन श्रेनि जिन श्रेनि गमै, आयरन कमल सिय सिद्धि रमै ॥ २१ ॥ ॥ अहो. ॥ आयरन तार तर तरन गमै, आयरन कमल सम सिद्धि रमै ॥ २२ ॥ ॥ अहो. ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१४१) अर्क पिय फूलना गाथा २९८६ से ३००१ तक (विषय: विपक सोलही, अर्थ पय) जय उवन उवन उवन पौ, उवनु उव रसावै । जय उवन रंज रमन नंद, मुक्ति रमन पावै ॥ जय रंज रमन नंदनं ॥ १ ॥ जिन ऐय ऐय गुपित अर्क, पिय नंत नंत सावै । जय नंद लीना कोड जिनवर, मुक्ति पंथु पावै ॥ अहो जिन नंदिनी सुहाई ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जय ममल कमल कलन कमल, उव उवन पौ रसावै । जय चरन चरिय उवन कमल, मुक्ति पंथ पावै ॥ ३ ॥ ॥ जय रंज.॥ जय कर्न क्रिनि श्रवन सुवन, उवन उव रसावै । जय उवन रमन हंस रयन, मुक्ति रमनि पावै ॥ ४ ॥ ॥जय रंज.|| जय सुवन हुवन हुव अनंत, नंत रमन रावै । अवयास नंत जय अनंत, नंत मुक्ति पावै ॥ ५ ॥ ॥जय रंज.॥ जय दिप्ति दिप्ति सुयं दिप्ति, उव उवन दिप्ति सावै । जय सुयं सुयं सुयं उवन, उवन मुक्ति पावै ॥ ६ ॥ ॥ जय रंज.॥ (४१०) Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जय षिपक षिपक उवन विपक, षिपक उवन सावै । जय ममल ममल उवन ममल, ममल मुक्ति पावै ॥ १४ ॥ ॥जय रंज.॥ जय अर्क अर्क श्रेनि अर्क, कलन अर्क रावै । जय अर्क अर्क तार तरन, अर्क मुक्ति पावै ॥ १५ ॥ ॥जय रंज.|| जय तार तरन तरन कमल, उवन कमल रावै । जय उवन कमल समय उवन, उवन मुक्ति पावै ॥ १६ ॥ ॥जय रंज.॥ श्री ममल पाहुइ जी जय अभय अभय अभय रंजु, अभय उवन रावै । जय सुर्क सुर्क उवन सुर्क, उवन मुक्ति पावै ॥ ७ ॥ ॥जय रंज.॥ जय अर्थ अर्थ उवन अर्थ, अर्थ उवन रावै । जय विंद विंद उवन विंद, सुन्न मुक्ति पावै ॥ ८ ॥ ॥जय रंज.॥ जय नंद नंद उवन नंद, नंद रमन लावै । आनंद नंद सहज नंद, नंद मुक्ति पावै ॥ ९ ॥ ॥जय रंज.॥ जय समय समय उवन समय, उवन उवन रावै । हिययार नंद ताग समय, उवन मुक्ति पावै ॥ १० ॥ ॥जय रंज.॥ जय अलष अलष अलष उवन, उवन उवन रावै । जय अगम अगम अगमनाथ, अगम मुक्ति पावै ॥ ११ ॥ ॥जय रंज.॥ जय साह साह अगम साह, उवन साह साहै । जय रमन रमन उवन रमन, उवन मुक्ति पावै ॥ १२ ॥ ॥जय रंज.॥ जय रंज रंज अगम रंज, उवन रंज रावै । जय उवन उवन उवन नंद, नंद मुक्ति पावै ॥ १३ ॥ ॥ जय रंज.॥ (९४६) साथु सिद्ध फूलबा गाथा ३००२ से ३००८ तक (विषय : पय बारह) जिन जिनयति हो जिन जिन वाली, जिन जिनियौ जिनय जिनाली । जिन जिनयति हो जिन जिन तार, जय जय हो तुम्ह मुक्ति वियाली ॥ १ ॥ साधउ धुव उव उवना, उव उवने हो जिन जिनय सु तार । साधउ धुव उव उवना, जिन धुव जिन हो जिन उवन स वीरू ॥ साधउ धुव ममल जिना ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (४११) Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ तारन हो जिन कमल सु तार, सह समय उवन जिन मुक्ति अपार ॥ ७ ॥ ॥साधउ.॥ श्री ममल पाहुइ जी जय जय हो जय जयनाली, जय जय जय कमल वियाली । जय जय जय हो कलि कलन पऊ, जय जय जय हो तुम मुक्ति जिनाली ॥ ३ ॥ || साधउ.॥ मय ममल जु हो जिन ममल जिनाली, धर अधर धुवं धुव जिन धरनं । उव उवने हो सुइ नंतानंतु, मै धुवं उवन सुइ मुक्ति वियाली ॥ ४ ॥ ||साधउ.॥ मय ममल ममल जिन जिनवाली, आयरन धुवं धुव उवन पऊ । आराहिय हो धुव नंतानंतु, आलाप रमन जिन मुक्ति वियाली ॥ ५ ॥ ॥साधउ.॥ आराहि उवन हिय सहयाली, आयरन उवन हिय साह सहं । आलाप उवन हिय सहन सह, आलाप जयं जय मुक्ति जिनाली ॥ ६ ॥ ||साधउ.॥ सुइ श्रेनि जु हो जिन श्रेनि जिनाली, सुइकलन कलिय जिन कलन पऊ । (१४७) मिलन रमन फूलना गाथा ३००९ से ३०२७ तक (विषय। कलन चरन रमन महिमा) संजोय विओय विलय सुइ होइ । संजोय विओय विलेई, जिन स्वामी उवन जिन रावै ॥ १ ॥ री सिय साहि उवन जिन रमन रलै, रलि रमन रलै सुइरे । सिय सिद्धि मुक्ति जिन स्वामी भावै ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ विओय संजोय रमन धुव होई, सिय रमन धुवं धुव जोई । धुव रमन सिद्धि जिन स्वामी भावै ॥ ३ ॥ ॥ री. ॥ निर्मल विमल जिनं धुव होई, सुइ ममल सुयं सुइ होई । सिय ममल मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ४ ॥ || री.॥ जिन उवन चरन रचरेई, जिन कलन उवन कलेई । कलि कलन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ५ ॥ ४१२) Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी चरि चरन उवन जिन चरन चरै, तत्काल रमन रमि जोड़ । रमि रमन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ॥ जिन दर्स उवन दरसावै, जिन अलब्धि लब्धि रलि होड़ । सुइ अलब्धि मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ || ॥ री ॥ । जिन इच्छ उवन जिन इच्छ रमै, जिन गुप्ति इच्छ धुव रे धुव इच्छ मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ पय परम तत्तु पद विंद रमै, पय ईर्ज पय ईर्ज मुक्ति जिन ६ ॥ री ॥ ८ ॥ री ॥ । जिन गुप्ति रमन सिय सिद्धि रमै, निहि रिद्धि गुप्ति जिनु रे सुइ गुप्ति मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ॥ रमन जिनु रे । स्वामी पावै ॥ ॥ ति अर्थ तिलोय रमन सुइ नेई, ति ईर्ज उवन तिथेई । इय रमन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ وا || ९ || री ॥ १० ॥ री ॥ ११ ॥ री ॥ ॥ मध्य ममल रमन जिन रावै, ध्याय नंत नंत जिनु रे । मध्य रमन मुक्ति जिन स्वामी पावै ।। १२ ।। ॥ री ॥ ४१३ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन रमन रलि रमन रलेई तत्काल रमन जिनु रे । पय नंत मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ || रलि उवन उवन सुइ रमन रलेई, सुइ उवन उवन सुइ रे उव उवन नंत जिन स्वामी पावै ।। ॥ आ अप्प उवन जिन रमन रलै, गुरु गुपित रमन जिनु रे । ठा ठवन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ॥ हा हलवं चिय चेयरमन जिन उवन रलै, ध्याय याय उवन जिनु रे । हा हल हुव हुव सुइ रमन रमै, री ईर्ज नंत नंत जिनु रे । ई ईर्ज मुक्ति जिन स्वामी पावै ।। १३ ॥ ॥ । आ अगम अगम जिन अगम रलै, या यास आस जिनु रे ई ईर्ज मुक्ति जिन स्वामी पावै ।। . || १४ ।। री ॥ हिय थान मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ १६ ॥ ॥ री ॥ १५ ॥ री ॥ १७ ।। री ॥ १८ ।। री ॥ ॥ । 9 जिन श्रेनि कलन जिन रमन रलै सुइ तार कमल जिनु रे तार कमल मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ १९ ॥ ।। री ॥ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (१४८) जिजय लड़ी फूलबा गाथा ३०२८ से ३०३१ तक (विषय ! कमल चतुर्दशी) ऐ मेरी जिनय लड़ी, जिन सों आरि करै, धुव रमन रलै, रलि चेयन पै भावै । ऐ धुव ढलन ढली, सुइ उवन मगै, ऐवलि सुवन चलै, ऐ दुति ताग संजोये ॥ ऐ तू ममल सु रे, सुयं दरसिय रे, ऐ विन्यानीय रे, जिन जिनवर चेला । सुइ जिनह जिनवर जिनह दरसिउ, ममल रमन रलि आउलौ ॥ सुइ जिनह जयनी, कमल कलनी, आयरन दिप्ति सुइ मुक्ति लौ ॥ १ ॥ ऐ मेरी जिनय लड़ी, जिन सों आरि करै, धुव रमन रलै, रलि चेयन पै भावै ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ अबहु मिलहु सुरी सम सम लड़िया, धुव रम लड़िया धुव रमनह मिलिजै । उव रमन चेला थाल निहि रिहि, पिय पिय दर्सिय मुक्ति लौ ॥ जय सुवन उवनह उवन उव निहि, सम समय मुक्ति सु सोहियौ । परवान उवनह उवन मिलियौ, सम समय मुक्ति सु मोहियौ ॥ ३ ॥ ॥ऐ मेरी.॥ ऐ चर चरन चरिया धुव रम लड़िया, जिन कलि लड़िया जिन जिनवर पैभावै । सुइ श्रेनि कलनह कलन पिय निहि, जिन श्रेनि कलन सुइ मुक्ति पौ ॥ जिन जिनय श्रेनि सु जिनय जिनवर, तर तार समय सुइ मुक्ति लौ । तर तार उवन सु कमल कलियौ, सम समय तार सु मुक्ति पौ ॥ ४ ॥ ॥ऐ मेरी.॥ (१४९) वर उवन लड़ी फूलना गाथा ३०३२ से ३०५१ तक (विषय : कमल दल, नंद पांच) ऐ वर उवन लड़ी, उव उवन सुहाग उवन जिनु पाये । ऐ तेरे वरन सुहाये, सुयं जिन जिनवर उवन मिलाये ॥ १ ॥ ऐ तेरे सुवन सुहाये, अभय जिन अभय मिलाये ।। ऐ तेरे रयन सुहाये, रयन जिन रमन मिलाये ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ (४१४) Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी ऐ तेरे गमन सुहाये, अगम जिन अगम पिषाये । ऐ तेरे अबल सुहाये, अबलबली जिनवर राये ॥ ३ ॥ ऐ तेरे विपक सुहाये, षिपक जिन षिपक मिलाये । ऐ अन्मोय सुहाये, सुर्य जिनु अन्मोय मिलाये ॥ ४ ॥ ऐ तेरे रंज सुहाये, ममल जिन ममल मिलाये । ऐ तेरे चरन सुहाये, उवन जिन उवन रमाये ॥ ५ ॥ ऐ तेरे नंद सुहाये, नंद जिन नंद मिलाये। ऐ तेरे आनंद सुहाये, चेयनंद सहज मिलाये ॥ ६ ॥ ऐ तेरे सहज सुहाये, परमनंद परम रमाये । ऐ तेरे मुक्ति सुहाये, मुक्ति जिन मुक्ति मिलाये ॥ ७ ॥ ऐ तेरे सियं सुहाये, धुव जिन धुव रमन रमाये । ऐ तेरे दर्स सुहाये, दर्स जिन दर्स मिलाये ॥ ८ ॥ ऐ तेरे रसन सुहाये, सहज जिन उव रसन रसाये । ऐ तेरे परस सुहाये, परस जिन परस मिलाये ॥ ९ ॥ ऐ तेरे वास सुहाये, वास जिन परम वास वसाये । ऐ तेरे चिंत सुहाये, अचिंत जिन अचिंत रमाये ॥ १० ॥ ऐ तेरे अमिय सुहाये, अमिय जिन मुक्ति रमाये । ऐ तेरे उवन सुहाये, उवन जिन उव मुक्ति मिलाये ॥ ११ ॥ ऐ तेरे अर्क सुहाये, अर्क जिन नंत अर्क रमाये । ऐ तेरे विंद सुहाये, विंद जिन नंत विंद मिलाये ॥ १२ ॥ ऐ तेरे सुन्न सुहाये, सहज जिन सहज मिलाये । ऐ तेरे कमल सुहाये, कमल जिन धुव कमल मिलाये ॥ १३ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ऐ तेरे कलन सुहाये, कलन जिन कलि मुक्ति मिलाये । ऐ तेरे अप्प सुहाये, अप्प जिन उव अप्प मिलाये ॥ १४ ॥ ऐ अवराहियऊ पंच उवन, सम समय उवन जिन हीरा । ऐ वर सम समय सहज जिन, झमकहि न्यानसिरी के हो वीरा ॥ १५ ॥ ऐ तेरे वयन लड़े वर, उव उवन रमन जिन राये । ऐ तेरे मै उवन उवन सषि, सहज सुर्य जिन रयन रमाये ॥ १६ ॥ ऐ तेरे कमल लड़े, चरि चरिय उवन जिन रमन रमाये । ऐ तेरे समन लड़े, गम अगम रमन जिन जिनवर राये ॥ १७ ॥ ऐ तेरे पेम लड़े, जिन श्रेनि कलन कलि जिनय जिन राये । ऐ सुइ तार तरन जिन, कमल जिनय जिनु जिनवर राये ॥ १८ ॥ ऐ तेरे समय लड़े, सम समय समय जिनु जिनवर राये । ऐ तेरे हिय उवन लड़े, चरि कमल कलन जिनु जिनय रमाये ॥ १९ ॥ ऐ तेरे जय जयन लड़े, जय जयो नंत जिन जिनवर राये । ऐ तेरे अबलबले, सम समय सुयं जिन जिनवर सिद्धि मिलाये ॥ २० ॥ (१०) समय उवन मिलन फूलना गाथा ३०५२ से ३०६२ तक (विषय : विवान पांच, कमल पय की महिमा) साही सही सुवन सुइ श्रवनी, ऐ सुइ धुव पद लाया रे । धुव जिन उवने समय सिय रमने, सह समय मुक्ति पथु पाया रे ॥ १ ॥ (४१५ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी गुपित अर्क सुइ मिलिय उवन जिन, अब सुइ जिनय जिनाला रे । अब सह समय उवन जिन उवने, जय जिनु मुक्ति पियारा रे ॥ उव समय सुयं सुइ सुवन उदेसी, जय जयवन्तु जयो जय जिनवर, सुइ उवन उवन जगराया रे । जय समय मुक्ति दरसाया रे || उव समय रमन रय रमिय वयन जिनु, सब्द प्रिये सुइ मिलिय उवन जिनु, २ 11 ॥ आचरी ॥ जिन जिनयति जिनय जिनाला रे । सुइ उवन समय तत्काल रमन जिनु, सुइ उवन स्वाद रंग मिलिय उवन पिय, ३ ॥ ॥ गुपित. ॥ सुइ हिय हुव मुक्ति पियारा रे ॥ दिप्ति दिस्टि सुर्क मिलिय उवन जिनु, ४ 11 ॥ गुपित. ॥ सुइ दिप्ति दिस्टि रमि राया रे । सह समय मुक्ति जिनाला रे ॥ ५ || ॥ गुपित. ॥ सुइ समय अवलबलिआला रे । ४१६ अबलबली उव सब्द प्रिये सम, सह समय मुक्ति सिद्धिआला रे ॥ उव समय दर्स सुइ मिलिय उवन जिनु, कमल उवन सुइ सुवन समय जिनु, सुइ कलन कमल धुवनाला रे 1 उव समय मिलन जय परिस रमन जिनु, 11 सुइ सुवन उवन सिद्धिआला रे ॥ ७ ॥ गुपित. ॥ सब्द साहि सुई सांति सत्य जिनु, जय मलय मिलन रलिआला रे । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव समय मिलनु सुइ अर्क अर्क जिनु, उव समय मुक्ति सिद्धिआला रे ॥ ६ 11 ॥ गुपित. ॥ अर्क अर्क सुइ सहज कमल मिलि, सम अर्क कमल कलि कमला रे । सुइ अर्क श्रेनि मिलि कलन कलिय जिनु, ८ ॥ ॥ गुपित. ॥ ध्रुव उवन मुक्ति सिद्धिआला रे ॥ ९ 11 ॥ गुपित. ॥ सुइ श्रेनि उवन जिन श्रेनि पियं जिनु, सुइ श्रेनि कलन कलि कमला रे । पिय उवन मुक्ति सिद्धिआला रे ॥ १० ॥ ॥ गुपित. ॥ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी सुइ तारन तरन सु उवन कमल जिनु, धुव उवन तरन पर पारा रे । सुइ तार कमल पिय उवन कमल जिनु, उव समय सहज सिद्धिआला रे ॥ ११ ॥ ॥ गुपित.॥ उखन भुक्त विलयत ॥ ६ (१५१) जिनेली फूलना गाथा ३०६३ से ३०७५ तक (विषय : हुलस, विगसु, विलसु) जिन जिनय जिनेली मै वई, जिन उत्पन्नी जोगु । सुइ सुर्य सु विलसै जिनय जिनु, सह समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १ ॥ जिनेली मेरी उल्हसति है, यहु अलष मेरे जन लोगु । जिनेली मेरी विगसति है, सुइ रंज रमन जिन नंदु ॥ जिनेली मेरी विलसति है ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उव उवन उवन पौ साहियौ, उव उवन मुक्ति संजोग । सह साह सुवन सुइ रमन जिनु, सह समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ ३ ॥ ॥जिनेली.॥ जिन जिनयति जिनय सु उवन जिनु, जिन जिनियौ नंतानंतु । यह नंत चतुस्टै समय मौ, सह समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ ४ ॥ ॥जिनेली.॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सह दर्स दर्स उव दर्स जिनु, परिनाम कोड संजत । सुइ अर्क विंद सम सुन्न पौ, सम अर्क समय सिद्धि रत्तु ॥ ५ ॥ ॥जिनेली.॥ सड उवन विली उव सन्न पौ, उव उवन भुक्त विलयंतु । सुइ विनंद विली जिन नंद मौ, सुइ नंद समय सिद्धि रत्तु ॥ ६ ॥ ॥जिनेली.॥ सुइ नंद विंद उव सुन्न पौ, सुइ सुन्न कम्मु विलयतु । सुइ सुन्न उवन हिय ताग मौ, हिय ताग समय सिद्धि रत्तु ॥ ७ ॥ ॥जिनेली.॥ सुइ सुन्न सहावे विंद मौ, सुइ विंद सुन्न जिन उत्तु । सुइ सुन्न विंद अर्क समय मौ, सुइ अर्क समय सिद्धि रत्तु ॥ ८ ॥ ॥जिनेली.॥ धुव दिप्ति दिस्टि उव दिप्ति मौ, उव उवन दिप्ति जयवंतु । जय जय जय जय अर्क मौ, जय समय सिद्धि संपत्तु ॥ ९ ॥ ॥ जिनेली.॥ आराहि उवन सह समय मौ, आलाप मुक्ति सिय सिद्ध । आयरन तित्थ तित्थयार पौ, तित्थयर समय सिद्धि रत्तु ॥ १० ॥ ॥जिनेली.॥ उव उवन दिप्ति हिययार पौ, हिय साहि समय धुव उत्तु । हिय साहि समय हुव उवन पौ, हुव समय मुक्ति विलसंतु ॥ ११ ॥ ॥जिनेली.॥ (४१७ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सइ वीर समय जिन श्रेनि पौ, सड़ श्रेनि कलन कलयंत । कलि कलन सहावे रमन पौ, सुइ श्रेनि कलन सिद्धि रत्तु ॥ १२ ॥ ॥जिनेली.॥ सुइ तारन तरन सु कमल मौ, सुइ उवन कमल विगसंतु ।। सुइ अर्क उवन उव कमल मौ, उव समय मुक्ति विलसंतु ॥ १३ ॥ ॥जिनेली.॥ (११२) सुन्न रमन चौतीसी माथा गाथा ३०७६ से ३११० तक (विषय : सुन्न बहतरी- ५७२ सुन्न) विलस रमन जिन अंकुर पाये, लवन साह जिन उव धुव आये ॥ १ ॥ जिन जिनवर के गुन रमन रलै, उव उवन उदय सम मुक्ति मिलै ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ रमनंतर हिय जोगी जिन जाने, विलस रमन सिद्धि पाये मान ॥ ३ ॥ || जिन. ॥ विंद सुन्न हिय सहै सु सोई, उव उवन रमन सिद्धि मुक्ति लहेई ॥ ४ ॥ | जिन. ॥ जय उवन सुन्न हुलसा दरसेई, जय सुन्न सुन्न उव उवन सु होई ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ जय रमन सुन्न सुइ साह सु लेई, जय तिस्ट सुन्न दह सहस सु सोई ॥ ६ ॥ | जिन. ॥ जय इस्ट सुन्न लषु अलषु लषेई, हिय रमन सुन्न दह अलषु रमेई ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ सरह सुन्न कलि कोडि जिनेई, सुइ दर्स सुन्न जिन कोडि रमेई ॥ ८ ॥ ॥जिन. ॥ नो उवन सुन्न सुइ कोडि सु सोई, सुइ लषन सुन्न सह साह रमेई ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ जय अंग सुन्न सुइ अगम सु सोई, पय पयोग सुन्न लषि उवन रमेई ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ जय चरन सुन्न दह अलषु लषेई, जय पूर्व सुन्न सुइ कोडि लष सोई ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ = = (४१८ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी तिथि रमन सुन्न सह सहै सु सोई, दह सहस लषन सुइ लब्धि सु सोई ॥ १२ ॥ || जिन. ॥ अंक सुन्न तेईस जिनेई, दह कोडा कोडि सुइ काल विलेई ॥ १३ ॥ ॥ जिन. ॥ सैंताल सुन्न उव उवन सु होई, सुइ कोडि उवन जिन कोड रमेई ॥ १४ ॥ | जिन. ॥ उव सब्द सुन्न सुइ समय रमेई, हिय डोर सुन्न सुइ कोड रमेई ॥ १५ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ उवन कोडि सुइ सुन्न समेई, सौ अट्ठ रमन सुइ सुन्न रमेई ॥ १६ ॥ ॥ जिन. ॥ हुव सुन्न रमन अवयास रमेई, सुइ चरन उवन दिपि जिनवर सोई ॥ १७ ॥ ॥ जिन. ॥ प्रकट प्रवेस कलन जिन होई, कलन कमल अर्ध कोड सु सोई ॥ १८ ॥ || जिन. ॥ सै तीन बयाल सु सुन्न समेई, अर्ध कोडि जिन जिनवर सोई ॥ १९ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ दिप्ति उवन दिपि सुन्न समेई, उत्पन्न समय सुन्न जिनवर सोई ॥ २० ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन हियार सुन्न रमन रमेई, हुव उवन सुन्न तित्थयर सु सोई ॥ २१ ॥ ॥ जिन. ॥ उव कंठ सुन्न कलि कलन सु सोई, उत्पन्न ताल जिन रमन रमेई ॥ २२ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन रमन सुन्न सह साह सु सोई, उव उवन साह जिन जिनवर होई ॥ २३ ॥ ॥ जिन. ॥ उव दर्स सुन्न सुइ दरसै सोई, उव चरन सुन्न जिन समय सु सोई ॥ २४ ॥ ॥ जिन. ॥ अवयास उवन सुन्न सुन्न समेई, उव उवन अवयास जिन जिनवर सोई ॥ २५ ॥ ॥ जिन. ॥ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी प्रकट कलन सुइ कमल रमेई, सुकलन कमल जिन मुक्ति लहेई ॥ ॥ कलन सु कलन सु सुन्न रमेई, सुन्न सुन्न उव कलन समेई ।। २७ ।। ॥ जिन. ॥ सुन्न प्रवेस अर्क जिन होई, दिसि अंग सुन्न जिन मुक्ति लहेई ॥ २८ ॥ ॥ जिन. ॥ बत्तीस चौक सु सुयं सु होई, पयोग रमन सुन्न मुक्ति लहेई ।। २९ ।। ॥ जिन. ॥ सुइ उवन बत्तीस पयोग सुन्न सोई, २६ ॥ जिन. ॥ कलन प्रवेस उवन जिन होई ॥। ३० || ॥ जिन. ॥ अस्ट प्रवेस कलन कलि सोई, कलन रमन जिन समय सिद्धि होई ॥ सुइ उवन श्रेनि जिन श्रेनि सु सोई, ३१ ॥ ॥ जिन. ॥ सुड़ कलन कमल जिन मुक्ति लहेई ॥ ॥ ३२ ॥ जिन. ॥ ४२० सुइ तारन तरन सु कलन कलेई, सुइ सुइ कलन कमल जिन मुक्ति लहेई ॥ ३३ ॥ ॥ जिन. ॥ श्रेनि कलन तार कमल सु सोई, सुइ तार समय जिन मुक्ति लहेई ॥ ३४ ॥ ॥ जिन. ॥ से पंच बहत्तर सुन्न समेई, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ सुन्न कलन जिन जिनवर सोई ॥ ३५ ॥ ॥ जिन. ॥ (१५३) जयना ले फूलना गाथा ३१११ से ३११४ तक जय उव (विषय: जिन स्वभाव की महिमा, जिनेन्द्र स्वभाव को प्रगटाने का पुरुषार्थ) जयना ले, जय जय जिनेंद जयना ले । उवन समय जिनु परमानंद, जयना ॥ कलि कलन कलिय सुइ कमल जिनेंद, जयना ले । कलि कमल उवन सुड़ जिनय जिनेंद, जयना ले ॥ जयना ले जिन जिनवर राउ, ले । मुक्ति रमन सम समय सहाउ, ले ॥ १ ॥ जयना जयना चर चरन चरना ले चरन कमल ध्रुव उवन सहाउ, सुभाउ, चरना चरना २ ॥ ॥ आचरी ॥ ले । ले ॥ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी कमल उवन धुव उवन सुभाउ, धुवना ले। धुव उवन कमल सम कर्न सहाउ, धुवना ले ॥ ३ ॥ ॥ जय. ॥ सम समय समय सम सुवन सहाउ, सुवना ले । सुव सुवन समय सम हियन सुभाउ, हियना ले । हिय उवन उवन हुव उवन सहाउ, हियना ले । हुव हुवन हुवन अवयास सुभाउ, हुवना ले ॥ ४ ॥ ॥ जय. ॥ (११४) परमानंद बिलासी फूलना गाथा ३११५ से ३१२० तक (विषय: कमल पय) नेय अनेय सहज सुइ रमन सु, परमानंद विलासी । निस्चलु अगमु अथहु कोमलु सुइ, उव उवन प्रवेस परसिये ॥ १ ॥ जिनु अपनौ विगसि मिलिये, स्वामी अपनौ, विलसि रमिये जिनवर अपनौ । उव उवन प्रवेस परसिये, धुव जिन अपनी ॥ २ ॥ ||आचरी॥ भेय अभेय अभय भय विलय सु, विगत अविगत अविनासी । पीय अपीय पियं पिय रमन सु, सुइ रयन रमन परसिये ॥ ३ ॥ || जिन. ॥ सेय असेय सेय सुइ सुवन सु, । उव लोय लोय प्रवेसिये । नंत अनंत नंत सुइ सुवन सु, सुइ सुवन सहज परसिये ॥ ४ ॥ || जिन. ॥ संध्य असंख्य संष्य सुइ लवन सु, लष अलषउ लष सुइ परसिये । दिस्टु सब्द उव विलय सु उवन सु, उव उवन प्रवेस परसिये ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ रंज रमन नंद सुवन जिन श्रेनि सु, जिन वीर समय सुइ परसिये । तर तार कलन उव कमल रमन जिनु, सह समय मुक्ति परसिये ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ १२१) Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जिन जिनयति जिनय जिनय जिन स्वामी, ___जिन अबलबली जिन पाये । जिन तारन तरन उवन जिन उवने, सह समय सिद्धि विलसाये ॥ ५ ॥ ॥ नयन. ॥ जिन जिनय श्रेनि जिन कलन श्रेनि जिनु, जिन वीर समय परसि पाये । जिन तारन तरन जिनु उव कमल रमन जिनु, उव समय मुक्ति विलसाये ॥ ६ ॥ || नयन. ॥ श्री ममल पाहुइ जी (११५) मुक्ति विलास फूलना गाथा ३१२१ से ३१२६ तक (विषय: औकास) अप्प परम पय परम रमन जिनु, परम समय सुइ राये । पर परम उवन जिनु परम धुवं जिनु, सह समय सिद्धि विलसाये ॥ १ ॥ नयन मेरे ममल मयं, ऐ जिन देषत तरन विवान । नयन मेरे ममल मयं, पर परसत उवन विवान ॥ वयन जिनके धुव रमनं ॥ उव उवन प्रवेस विवान परम पय परम पयं । रम रमयति उवन विवान उवन सम मुक्ति जयं ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जय जय जयं जिनु, जय उवन रमन जिनु, जय जयो जयं जिन पाये। जय जयो लोय उवलोय लोय जिनु, जय समय मुक्ति विलसाये ॥ ३ ॥ ॥ नयन. ॥ पय पयं पयं जिनु पय उवन रमन जिनु, पय परम अलष जिनु पाये । पय अलष अगम पय अथह समय जय, जय जयं मुक्ति विलसाये ॥ ४ ॥ ॥ नयन. ॥ (११६) रमन प्रवेस फूलना गाथा ३१२७ से ३१३४ तक (विषय : सुन्न स्वभाव रमन, सुन्न दहावरी) जय जयो जयं अवयास उवन जिनु, उव उवन अवयास रलाऊं । रलि रलिय उवन सु विस्व पय जिनवर, जिन जिनय मुक्ति विलसाऊं ॥ १ ॥ जिनवर मुक्ति रमाये स्वामी, उव उवन दिप्ति मिल जाऊं। जिनवर रमन रलाये ऐ स्वामी, रलि रलत न संक करेइ ॥ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुइ जी जिनवर उवन मिलाये स्वामी, सुइ सुन्न मुक्ति विलसाऊं । सो हिये उवन रमाये स्वामी, उव चरन सुन्न चरिराऊं ॥ जिनवर मुक्ति मिलाये स्वामी ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ पय पयं पर्य पय विंद रमन जिन, जिन अर्क सुन्न विलसाऊं। सुइ उवन कमल रमि विंद सुन्न जिन, सुई अर्क विंद सुन्न राऊं ॥ ३ ॥ ॥ जिन. ॥ जय जय जय जयवंतु विंद जिन, जय अर्ध विंद सुन्न पाऊं। जय अर्ध कमल उव कमल विंद जिन, सुइ सुन्न सिद्धि विलसाऊं ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ मय मयं मयं मय उवन ममल जिन, सुइ मध्य विंद सुन्न राऊं। सुइ मध्य कमल जिन रमन कमल रम, सुइ सुन्न सिद्धि विलसाऊं ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन सुन्न उव उवन रमन जिन, उव उवन विंद सुन्न राऊं । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन कमल जिन उवन रमन रम, ___ सुइ उवन मुक्ति विलसाऊं ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन सुन्न जिन अर्ध सुन्न जिन, जिन मध्य सुन्न विगसाऊं। जिन उवन सुन्न उव उवन सुन्न जिन, सुइ सुन्न मुक्ति विलसाऊं ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन वीर जिन उव समय रमन जिन, उव श्रेनि कलन कलिराऊं। तर तार उवन उव कमल रमन जिन, सह समय सिद्धि विलसाऊं ॥ ८ ॥ ॥ जिन. ॥ (१५७) अर्क फूलबा गाथा ३१३५ से ३१३७ तक (विषय : तार स्वभाव, औकास, अर्क स्वभाव महिमा) अर्क छत्तीसई तार सुभाऊ, दुंदुहि सब्द जिननाथ सहाऊ । जिनग्रह गुडी उछरी मागधि भाषा जिनय जिन उत्त ॥ दिव्य धुनी जिननाह संजुत्तु, जिननाथ समय सुइ मुक्ति पौ ॥ १ ॥ उव उवन उवन उव उवन समानी, उव उवन साहि सिय अलष लषानी । Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उव उवन अर्क सुइ विंद समानी, उव उवन मिलन सिद्धि मुक्ति विवानी ॥ २ ॥ न्यानी हो जिन अगम विवानी, न्यान विन्यान होय पहिचानी । दिप्ति दिस्टि उव सुन्न समानी, उव उवन उवन दरसायौ स्वामी ॥ न्यानी हो तुम अगम विवानी, न्यान विन्यान होय पहिचानी ॥ ३ ॥ (१५८) मिलन समय फूलना गाथा ३१३८ से ३१५२ तक (विषय: औकास - निज स्वभाव रमणता का पुरुषार्थ) विलस रमन जिन मो ले जाई, उव उवन स्वाद रंग मिलन मिलाई ॥ १ ॥ जिन हो साही जिनय जिना, जिन उवन समय सुइ सिद्धि रमना ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ जं सूर उदय सुइ रयन गलाई, तं उव उवन उदय सुइ सरनि विलाई ॥ ३ ॥ ॥जिन हो.॥ जिन दिप्ति उवन सुइ समय समाई, जिन दिप्ति दिस्टि सुइ रमन रमाई ॥ ४ ॥ ॥जिन हो.॥ जिन सुवन सुयं सुइ सम विलसाई, सम समय सरन सम मुक्ति लहाई ॥ ५ ॥ ॥ जिन हो.॥ जिन दिस्टि उवन सिद्धि सम विलसाई, जं सूर कमल जिन सुयं विगसाई ॥ ६ ॥ ॥जिन हो.॥ हिययार उवन सम उवन सहाई, हिय रमन सुन्न सम मुक्ति लहाई ॥ ७ ॥ ॥जिन हो.॥ उव उवन मिलन सुइ काल विलाई, जं जाइ नाम गुन सुन्न समाई ॥ ८ ॥ ॥जिन हो.॥ जिन उवन मिलन सुइ मुक्ति मिलाई, जं परिस रमन सुइ सुन्न समाई ॥ ९ ॥ ॥जिन हो.॥ जिन उवन अचिंत सुइ सुन्न प्रवेसु, जं मलय रमन सुइ सुन्न रमेसु ॥ १० ॥ ॥ जिन हो.॥ जिन उवन चिंत चिंतत अचिंतु, जिन अचिंत चिंतामनि मुक्ति मिलंतु ॥ ११ ॥ ॥जिन हो.॥ (४२४) Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी जिन उवन अर्क जं अर्क प्रवेसु, तं सुन्न साहि जिन मुक्ति लहेसु ।। १२ ।। ॥ जिन हो. ॥ जिन उवन साहि सुइ साह सु नंदु, सुइ परमनंद जिन जिनय जिनंदु ॥ जिन पद परचै सुइ उवन जिनुत्तु, १३ ॥ ॥ जिन हो. ॥ जिन सत्य साहि सुइ मुक्ति मिलंतु ॥ उव श्रेनि सहज जिन कलन रमाई, (१५९) तार कमल फूलना गाथा ३१५३ से ३१५७ तक (विषय: औकास तारन तरन स्वभाव की महिमा) १४ ॥ ॥ जिन हो. ॥ जिन तार कमल सम मुक्ति मिलाई ॥ १५ ॥ ॥ जिन हो. ॥ मिलना ॥ उव जिन तुम्हरे हो उवन साहि उव उवन सुइ रमना । उवन साहि जिनवर मुक्ति सुइ जिन जिनवर रमना, उव उवन रमन बिनु नाहि मुक्ति सुइ मिलना ॥ १ ॥ २ || ॥ आचरी ॥ ४२५ जिन दर्सन सुयं विवान स्वामी समय जिन समय उवन मुक्ति निल निलय जिन जिनय श्रेनि जिन अर्क सुइ तर तार समय सिद्धि मुक्ति सुइ उव तार कमल नंतानंत सुइ जिन नंत प्रवेस स्वामी मुक्ति सुइ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुड़ मिलना । सुड़ रमना ॥ ३ || ॥ जिन. ॥ रमना । मिलना ॥ (१६०) जिन तार फूलना गाथा ३१५८ से ३९६४ तक जिन जिनयति जिनय जिनय जिनु रमन सु, H (विषय औंकास वीतराग तारन तरन जिन स्वभाव निज स्वरुप में रमणता का पुरुषार्थ विशेष ) जय जय जयो जयं जय जिनवर, रमना । मिलना ॥ ५ 11 ॥ जिन. ॥ उव उवन साहि सम साही । ममल जिनवर उक्तु पेषित है रे साही, ४ ॥ ॥ जिन. ॥ जय धुव अवयासं जिनय जिनेसं, मुक्ति धुव साही ॥ १ ॥ मुक्ति रमन जिन समय समाही ॥ जय लोय लोय प्रवेसइया रे । २ ॥ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड जी पय परम परम जिन उव उवन समय है, जिन सिद्धि मुक्ति जिन विलसइया रे ॥ ३ ॥ जिन विंद उवन रै सुन्न समय है, सह सुवन जिन जिनयति जिनय जिनालीया रे । जयविंद सुन्न सम उवन उवन जिन, समय मुक्ति रलिआलीया रे ॥ जिन सुयं सुर्य जिन हो, सोहं श्रवन समय । सोहं सोहं सो जि हंउं, हंसो जिन तार पियारे हो, स्वामी रमन तित्थयर पियारे हो, स्वामी जिन श्रेनि श्रेनि सुइ श्रेनि, सुयं तित्थयर समय । तर तार कमल सुइ समय, कलन कलि मुक्ति रमै ॥ जिन तार पियारे हो स्वामी मुक्ति रमै ॥ रमै ॥ रमै । मुक्ति रमै ॥ (१६१) जै जै नंदिनी फूलना गाथा ३१६५ से ३९७३ तक (विषय: सुन्न प्रवेश) लोय अलोय बंध पद मिलने, दृग सुष यह चित लाई । सुड़ धुव सुष मुक्ति मिलाई । जै जै नंदिनी हो । बंध विलय सुइ उवन पद रमने, ४ ॥ ५ 11 ६ 11 ७ ॥ १ ॥ ४२६ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी बंध उवन विलय, सुड़ कलन कमल जिन जिनहि मिलै ॥ २ || ॥ आचरी ॥ आदि अनादि सुयं सिद्ध उवने, सु नंत प्रवेस समाई । सुयं सुबंध लोय अलोय सु, उव उवन सहज सु विलाई | ॥ ३ 11 ॥ जै. लोय बंध सु नंत बंध मनुवा, पुग्गल भवन सहाई । सुयं सिद्ध सुइ अलष निरालंब, सुइ सहजै मुक्ति मिलाई ॥ ॥ जै. ॥ ४ 11 अगमु अथाहु सु नंत प्रवेसी, नंतानंत जिनेई । नंत मिलन सुइ समय रमन जिनु, उव उवन मुक्ति सु रमेई ॥ ५ ॥ ॥ जै. ॥ वन समय सुप्रवेस रमन जिनु, सह साह चिंत सु अचिंतेई । जं परिचै तं सुयं प्रवेसी, मनु विलय सहज सु रमेई ॥ ६ 11 ॥ जै. ॥ जं परिचै तं पद प्रवेसी, सह साह गमन सु गमेई । सह गमन सुयं सुइ परिचै उवने, दह अठ उनतालसई ॥ ॥ जै. ७ ॥ नंतानंत काल सुइ षिपनिक, सुइ समय सुयं सु रमेई । तर तार कमल सुइ सहज मिलन मिलि, अन्मोय मुक्ति सु रमेई ॥ ८ ॥ ॥ जै. ॥ । सह साह समय सह गमन सुवन जिनु, जय रमन जयं जिनु सोई रै रंज रमन सु रयन जिन उवने, सह समय सिद्धि विलसेई ॥ ९ ॥ जै ॥ || ॥ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी (१६२) सन्य उबन फूलना गाथा ३१७४ से ३१८० तक (विषय : औकास - सून्य स्वभाव का उदय) उव उवन विंद विंद विंद जिनु होई, सुइ विंद सुन्न सुन्न विंद समेई ॥ १ ॥ समय उवन जिनवर बंध विलेई, कमल कलन जिन जिनवर सोई ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उवन उवन सुन्न सुन्न सुन्न जिन होई, सुइ सुन्न उवन जिन सुन्न समेई ॥ ३ ॥ ॥ समय.॥ सुइ सुन्न समय सुइ सुन्न विंद सोई, सुइ विंद सुन्न सम जिनवर होई ॥ ४ ॥ ॥समय.॥ जिन नंत सुन्न सुइ नंत विंद सोई, सुइ नंत नंत सुन्न विंद समेई ॥ ५ ॥ ॥ समय.॥ सुइ श्रेनि विंद सुन्न कलन जिन होई, सुइ कलन सुन्न जिन सुन्न समेई ॥ ६ ॥ ॥ समय.॥ सुइ कलन श्रेनि जिन कलन समेई, सुइ तार कमल जिन जिनवर सोई ॥ ७ ॥ ॥ समय.॥ (१३) सून्य प्रवेस फूलना गाथा ३१८१ से ३१९३ तक (विषय! औकास - सून्य स्वभाव में प्रवेश) उव उवन जयं नंत सुन्न प्रवेसा, सुइ सुन्न सुर्य सिद्धि नंत गमेसा ॥ १ ॥ जिनके रंज रमन मन मान, पियारे हो जिनाला। सुइ नंद नंद परमनंद, सुन्न मुक्ति वियाला ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ जय जयन जयं जय जयो जिनेसा, उव उवन उवं सुन्न सुन्न प्रवेसा ॥ ३ ॥ ॥ जिन. ॥ सुन्न नंत गमेसा, सुव सुन्न सुर्य अगम सुन्न प्रवेसा ॥ ४ ॥ ॥ जिन. ॥ सह सहन सहं नंत सुन्न सहेसा, सह असह सहं अगम सुन्न प्रवेसा ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ साह साह नंत सुन्न सहेसा, सुइ विंद सुन्न अगम विंद प्रवेसा ॥ ६ ॥ ॥ जिन. ॥ उव उवन सुन्न विंद नंत उवन प्रवेसा, उव उवन सहावे नंत सुन्न गमेसा ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ ___= = = = = = (४२७) Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ममल पाहुड़ जी जं जान जयं नंत सुन्न जयवन्ता, जय जयं जान जिन सुन्न विंद प्रवेसा ॥ मय ममल मान सुन्न मान प्रवेसा, मय ममल मान विंद सुन्न अगम गमेसा ॥ दर्स दान दान नंत सुन्न रमेसा, रम रमन रमिय सुन्न विंद रमेसा, ८ ॥ ॥ जिन. ॥ जय दान सुन्न गम अगम प्रवेसा ।। १० ।। ॥ जिन. ॥ सुइ सुन्न उवन श्रेनि जिन श्रेनि जैवंता, ९ || ॥ जिन. ॥ सुड़ सुन्न सहावे रमन मुक्ति प्रवेसा ॥ ॥ तर तार कमल सम समय संमत्ता, सुइ कलन कलिय नंत लोय प्रवेसा ॥ ॥ सुइ तार कमल समय मुक्ति विलसंता ॥ ॥ ११ ॥ जिन. ॥ १२ ॥ जिन. ॥ १३ ॥ जिन. ॥ ४२८ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१६४) तारन तरन फूलना गाथा ३१९४ से ३२०० तक (विषय: औकास आयरन जिनुत्तं लाइये) तार तरन मिलि मुक्ति रमाये, १ ॥ २ ३ ॥ सम समय पियारे, मेरे हो स्वामी ॥ जिनवर वयन तुम्हारे, जय जय मेरे हो स्वामी । ध्रुव जिन वयन तुम्हारे, केवल मेरे हो स्वामी ॥ सुइ इन्द्र धर्महि श्रेनि पूरित, सुइ कलन कमल राये । तर तार कमल सुनंद नंदित, सह समय मुक्ति पाये || मैं पाये जिनवर आपनौ, मैं पाये जिनवर आपनौ । मैं पाये स्वामी आपनी, मैं पाये धुव जिन आपनौ ॥ सुइ सुल्प साहि समाहि, मैं पाये तरन जिनु आपनौ । सुल्प साहि समाहि मैं पाये तरन जिनु आफ्नौ || * ॥ आयरन जिनुत्तं लाइये, आराधि धरिउ सम्हारि । आलाप जिन सन्मुष भये, तं पात्र नंत विचारि ॥ सुइ कलन कमल संजुत्त है, मैं पाये केवल आपनौ || सुल्प साहि समाहि, तं पात्र साह संजुत्त जिनवर । सुल्प साहि समाहि, तं पात्र कमल प्रवेस जिनवर || सुल्प साहि समाहि, मैं पाये तरन जिनु आपनौ ॥ ६ जिनवर जय जिनु जाई, जय जिनु जाई जिनवर प्यारो री केवल जय जिनु जाई, स्वामी जय जिनु जाई स्वामी प्यारो री ॥ ७ || ॥ मैं पाये. ॥ ५ || 11 । ॥ इति श्री भय पिपनिक ममलपाहुड नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ ॥ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घातिका विसेष जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी केवाल मत 5 श्री षातिका विसेष जी ॐ नम: सिद्धं ॥ १ ॥ जीव तो तत्तु पंच मई षिदि जरु मरु पवन आकास ॥ २ ॥ एका एकु एकु ॥ ३ ॥ काल छह विडरौ विली कीए ॥ ४ ॥ आधो आडिषो परो सागरु दस को ॥ ५ ॥ ܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܘܕ प्रथम काल दिस्टि, सागर कोडाकोडी - ४ ॥ ६ ॥ काल दूसरो सबद, सागर कोडाकोडी - ३ ॥ ७ ॥ काल तीसरो सुर्य अस्कंध, सागर कोडाकोडी - २॥ ८ ॥ काल चौथो पदम कमल, सागर कोडाकोडी - १॥ ९ ॥ केवल उक्त - सम्मत्त, न्यान, दर्सन, वीरी, सुहमंतहेव, अवगाहन, अगुरुलघु, अव्वावाहु, अट्ठ गुन ॥ १० ॥ केवल उक्त ये तो देषै नांहिं, षांडो देष्यो ॥ ११ ॥ तीन पुर्स जोई, भनि जोई, मिथ्या पंच ॥ १२ ॥ सकारा सहस्र दोई (२०००) पुरिस आउठ हाथा गहीराऊ, उत्तर भोगभूमि को गाडरन तिनि के रोम कतरनी कतरियो, षांडो भरै, बरस सै एक गये रोम एकु, जब सब रोम पांडे में ते कढ़े तब एक पल कहिये ॥ १३ ॥ एकु पदौ अढ़ाई सै अष्यर को (२५०) ॥ १४ ॥ गाथा सहस्र अष्यर की (१०००) ॥ १५ ॥ राजू चौदह उचंत, तीन सै तैताल (३४३) राजू प्रिथी को घनाकारु ॥ १६ ॥ अर्क न द्रिस्यते नर्क ॥ १७ ॥ अर्क सी विकलत्रयौ ॥ १८ ॥ अर्क न द्रिस्यते नर्क, अस्थान आवरन तदि थावर भवतु ॥ १९ ॥ त्रिजंच जमेग्य तिजंच भवतु कालादी ॥ २० ॥ दसते देव, विन्यान अंतर विंतर ॥ २१ ॥ नीली नील जोई जोयनी जोयो ॥ २२ ॥ जात उत्पन्न विसेष इस्ट उत्पन्न इस्ट इस्ट लषि उत्पन्न लष्यु ॥ २३ ॥ चतुस्टय उत्पन्न समई सही झड़प विली ॥ २४ ॥ आसम सहि उजेनि नग्री विक्रमाजीत कमल कालि काल विली ॥ २५ ॥ षांडो विली, पंच न्यान आयरन ॥ २६ ॥ पंच मेरु थार वेलु ॥ २७ ॥ पद उत्पन्न पल्लु विली ॥ २८ ॥ संसार उत्पन्न भ्रमन सुभाव ॥ २९ ॥ संसार सरनि सुभाव ॥ ३० ॥ सिद्ध ध्रुव सुभाव ॥ ३१ ॥ संसार सरनि ॥ ३२ ॥ उत्पन्न हितकार सहकार तिअर्थ उत्पन्न ॥ ३३ ॥ असंषि परिनाम दिस्टि अर्क सुभाव ॥ ३४ ॥ (४२९) Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घातिका विसेष जी तदि सुभाव अर्क न द्रिस्यते नर्क ॥ ३५ ॥ अर्कसी विकल विकलत्रयौ ॥ ३६ ॥ अर्क अस्थान आवरन थावर ॥ ३७ ॥ अर्क बिन तिअर्थ जाच त्रिजंच ॥ ३८ ॥ षिपक लीन बहल विलयंति पल बहल ॥ ३९ ॥ पद कमल बहल विली पंक कंपमा बहल ॥ ४० ॥ जिन उक्त वयन के सुभाव रमनं न द्रिस्यते तद किन्नर ॥ ४१ ।। पूर्व उक्त न रमन न सहकार तदि किं पुरुष ॥ ४२ ॥ समय मूरति हितकार न रमते तदि महोरघ ॥ ४३ ।। गम्य अगम्य जिन उक्त सहकार न रमते तदि गंधर्व ॥ ४४ ।। जिन उक्त जै षिपक न रमते तदि जष्य ॥ ४५ ॥ जिन रमनं न रमते तदि राक्षस ॥ ४६ ॥ अर्क बिन भुक्त तदि भूत ॥ ४७ ॥ जिन प्रियो न द्रिस्यते तदि पिसाच ॥ ४८ ॥ अर्क बिना दिति दिस्टि सुभाउ तदि देव मनु उत्पन्न ॥ ४९ ॥ तदि मानव मनु सहकार तदि मानस मनुष्य पात ॥ ५० ॥ तदि मनुष्य गति भ्रमन किं विसेष तिअर्थ अर्क न द्रिस्यते, ते भयभीत अर्कस्य भय तीनि ॥ ५१ ॥ तदि भै नौ, भै अर्थ उत्पन्न भय, झड़प भय, काय भय, तदि सुभाव भयभीत, ऊंच नीच द्रिस्यते ते सं पुंसंसा अस्थान नौ (९) ॥ ५२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मन भै, झड़प भै, वचन भै, दर्स भै, पांडो दर्सयंति, पद लोपन तदि उत्पन्न पलु ॥ ५३ ॥ वांडो सुभाइ षातिका, पद लोपन पलु कथते ॥ ५४ ॥ उत्पन्न भय रमन अन्यान गाडरा प्रवाह ॥ ५५ ॥ तदि सुभाई उत्तम भोगभूमि के गाडरा तिनके रोम कतरि पल्य प्रमान भरितं, तदि पद न दिस्यते ॥ ५६ ॥ पल्य कोड़ाकोड़ी विसेष ॥ ५७ ।। तदि सागर कोड़ाकोड़ी १० तदि काल छह (६) ॥ ५८ ॥ सर्पिणी हुन्डावति भै नौ (९) ।। ५९ ॥ तदि सहकार अर्थ जोइनी द्रिस्यते मिथ्या सहकार तदि विलण्यतं, तदि जोयनी द्रिस्यते ॥ ६० ॥ राजू भी नौ, रंज न द्रिस्यते ॥ ६१ ॥ राजू सुभाव उत्पन्न, राजू हितकार, राजू सहकार, राजू विन्यान, राजू जिनरंज रंज दिस्यते राजू -१४ ।। ६२ ।। तिअर्थ सहकार सुयं तत्काल रमन, तदि रंज न दिस्यते ॥ ६३ ॥ राजू तीन सौ तेतालीस (३४३) रमने ॥ ६४ ॥ तदि संसारी अनंत जीव ब्रह्म ॥ ६५ ॥ ऊंच नीच न द्रिस्यते, पांडो न द्रिस्यते, पद उत्पन्न द्रिस्यते ॥ ६६ ॥ तदि पल्य षातिका विलयं गतः ॥ ६७ ॥ सहकार जिन सुभाव, उत्पन्नता द्रिस्यते गारव विली ॥ ६८ ॥ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पातिका विसेष जी राजू उत्पन्नताई राजू विली, राजू सागर विली ॥ संसारी छेयं, मुक्ति गति सिद्धं भवतु ॥ न्यान उत्पन्न उत्पन्न सहकार ।। ७९ ।। अर्क उत्पन्न अर्क कमल ॥ ७२ ॥ औकास दिस्टि सब्द ॥ ७३ ॥ सु अर्क अस्कंध ह्रिदय उत्पन्न अनंत अवकास परमिस्टी चतुस्टय ॥ ७४ ॥ रत्नत्रय सुभाव, उत्पन्न औकास, उत्पन्न हितकार, उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न कमल अर्कस्य ॥ ७५ ॥ अर्क अर्क सिय सुयं ।। ७६ ।। अर्क उत्पन्न हितकार सहकार ।। ७७ ।। अर्क अर्क सिय जिन जिननाथ रमन अर्क रंज रमन, आनंद अर्क, अर्क अनंत उत्पन्न सुभाव ॥ ७८ ॥ गति छीन, पल्य षातिका छीन, सागर काल छीन, भ्रमन छीन सरनि दलनि विलयं विली ।। ७९ ।। मुक्ति सुभाव मुक्ति सिद्धं गतः ॥ ८० ॥ ॐ नमः सिद्धि मुक्ति प्रसाद ते ॥ ८१ ॥ साह सह धुव अस्थान कालकोडि जा उत्पन्न कोड साह सह उत्पन्न प्रवेस ॥ ८२ ॥ ६९ ॥ ७० ॥ प्रवन लषि अलषि गम्य अगम्य थाह अथाह उत्पन्न प्रवेस ॥ ८३ ॥ सर्व नी सर्व अर्क उत्पन्न प्रवेस ॥ ८४ ॥ ४३१ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जित निरषत असोक वृक्ष, अनंत दर्सन दिस्टि उत्पन्न सुभाव, प्रवेस प्रमान सुह गमन अर्क उत्पन्न ॥ ८५ ॥ अपर चौ विली, गन नंत चरन संतत अनु बाध, प्रतिगन उत्पन्न जार उत्पन्न निधि ॥ ८६ ॥ अवहि पट पयोग प्रवेस संजुक्त ।। ८७ ।। देव दिव्य ध्वनि सहन सिय भाव उवन विली ॥ ८८ ॥ उत्पन्न अन्मोद लीन ।। ८९ ।। सह असह, अगह, अलह लाह, लाह त्रिलोक बंदनीक, उत्पन्न जित प्रवेस अनवार विली ॥ ९० ॥ अनयार उत्पन्न प्रवेस, सरनि विली ॥ ९९ ।। उत्पन्न प्रवेस विली, उत्पन्न मुक्ति प्रवेस, उत्पन्न सह साह सति प्रवेस प्रवेस्यो ।। ९२ ।। असत्य अन्रित विली, व्रित सार उत्पन्न ॥ ९३ ॥ सहन साह मुक्ति प्रवेस धुव ।। ९४ ।। सिद्धं प्रवेस, सियं सह साह उत्पन्न सिद्धासन ।। ९५ ।। उत्पन्न छत्र, उत्पन्न समय मुक्ति सुयं सिद्धि अनंत चतुस्टय संप्राप्तं धुवं ॥ ९६ ॥ दुष्यान विली सुष्येन उत्पन्न सह मुक्ति सिद्धि संपत्तं ।। ९७ ।। विनंद विली, उत्पन्न परम आनंद सह गमन सिद्धि संपत्तं ॥ ९८ ॥ उत्पन्न सह गमन पट प्रवेस ।। ९९ ।। पयोग उत्पन्न साह गमन मन विलियाऊ ॥ १०० ॥ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी के जाल माता श्री सिद्ध सुभाव जी श्री सिद्ध सुभाव जी उत्पन्न सुह गम्य मुक्ति सिद्धि संपत्तु ॥ १०१ ॥ धुव साह उत्पन्न मिलन, अनयार विति सुभाव प्रवेस ॥ १०२ ॥ मिलन चेयनंद कुंवारु सिद्धि संपत्तं ॥ १०३ ॥ विलस कुंवारु सिद्धि संपत्तं ॥ १०४ ॥ ॥ इति श्री पाातिका विसेष नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। सिद्धह सिद्ध सुभाउ, देषै न कहइ, सुनी न कहइ, हित उपजाइ न कहइ, बोलै तौ न बोलै ॥ १॥ औकास समल न कहै ॥ २ ॥ उत्पन्न आयरन साधू अरहंत सिद्ध ॥ ३ ॥ इच्छा भोजन जसु उछाह ऐसो सिद्ध सुभाउ ॥ ४ ॥ उत्पन्न प्रवेस उपजै लहई तहां षिपड़, क्रोध षिपड़, देषी षिपइ, सुनी षिपड़, ऐसो सिद्ध सुभाउ ॥ ५ ॥ पूर्व सहकार उत्पन्न रंज रमन आनंद बाधा रहित सिद्ध सुभाउ ॥ ६ ॥ तिहि को दान देइ, सिद्ध पहिचान लेइ, रली आनंद देइ ॥ ७ ॥ दान चार प्रगट प्रवेस देइ ॥ ८ ॥ दात्र देइ, पात्र लेइ, जिन अन्मोद प्रियो ॥ ९ ॥ बाधा रहित, चोरी रहित, चोरी दान न रुचे अन्मोद ॥ १० ॥ अर्क भूलै नर्क ठिदि परै ॥ ११ ॥ चोरी विरोध चोर, विस्वास चोर, लब्धि चोर, अन्मोद चोर, अघ दुर्बुद्धि चोर ॥ १२ ॥ उत्पन्नी दाता देइ गुन दिषावै ॥ १३ ॥ चोरी कै लेड़, बंधोरी कै लेइ, पन्हाइ कै लेइ ॥ १४ ॥ गाढ़ो धरै तो पावै, ठान पावै ॥ १५ ॥ इह लष्यन दान देइ तो सिद्ध की पहिचान होई ॥ १६ ॥ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी केवल मत 8 श्री सुन्न सुभाव जी श्री सिद्ध सुभाव जी जहां सिद्ध पहिचान उपजै, तहां दान देइ, पात्र दान लेइ, सिद्ध परषि के लेइ, दात्र पात्र तदि विसेष ॥ १७ ॥ समय सहावेन समय संजुत्तं ॥ १८ ॥ समय न्यान संजुत्तं ॥ १९ ॥ उव उवन न्यान अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २० ॥ ॥ इति श्री सिद्ध सुभाव नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। सिद्धि संपातं विसेष सुन्न सुभाव ॥ १ ॥ दिप्ति - १४, दिस्टि - १४, इस्टि - १४, सर - ७, उत्पन्न - ९, उत्पन्न त्रिलोक - ३, ܂ ܘܘܘܘܘܨ ܘܘܘܘܘܨ ܘܘܘܘܘܨ ܘܘܘܘܘܨ ܘܘܘܘܘ ०००००,०००००,०००००,०००००,०० ॥ २ ॥ अड़तालीस कोस समोसरन, मिलन १, जोयनी १, जोजन भामण्डल ४८, मुकुट १, माल २, छोरी ३, नाम ४, ठाम ५, प्रसाद ६, तागा ७, उत्पन्न ठिकानो, जो इतनों को प्रसाद पावै तो मुक्ति नृत ॥ ३ ॥ छिगारौ ठिकानों न रहि जाइ, मिलन बहत्तरि जिनाले, औकास प्रवेस, अनंत विंजन विंद सुन्न, औकास प्रवेस, अनंत लह कोड हौंस आस मुक्ति तीर्थकर ॥ ४ ॥ दिप्ति, दिस्टि, सब्द, प्रिये, उत्पन्न साह एवं विवान पांच ॥ ५ ॥ सुर चौदह, संमिक्त हितकार, हुंतकार, औकास मुक्ति ॥ ६ ॥ पवन १, पानी २, पियासो ३, विजन ५२, वीर ५२, बावन अव्यर (५२), बावन तोले पाव रती ॥ ७ ॥ कोल्हू कांतर पांउ न देइ, रस की बेरे दोना लेड, सीधो रस पाहू को ढलै, मिल विहरै संसारु, बहुरि मिले तो मुक्ति मिले, सत प्रापत बहुत भिष्या, लष उत्पन्न लब्धि ॥ ८ ॥ (४३३) Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री सुन्न सुभाव जी जो बिन सुनै सयानौ होइ, तो गुरु सेवा करै न कोई ॥ ९ ॥ नाम नाम नाम मिलन ॥ १० ॥ नाम बारह - लिलाट सांकड़ो १, दिस्टि सांकड़ो २, सब्द सांकड़ो ३, सहकार सांकड़ो ४, घर सांकड़ो ५, बाहिर सांकड़ो ६, माथो सांकड़ो ७, कान सांकड़ो ८, हाथ सांकड़ो ९, पांव साकड़ो १०, पांवगहि बंध्येही ११, बांध्यौ मारिये सहै भलो १२ ॥ ११ ॥ उक्त भिनष्टि, उक्त भंभीरी, उक्त बहिली ॥ १२ ॥ तर्क पाहुड़ १, औझड़ पाहुड़ २, ठिसर पाहुड़ ३, वर्ग पाहुड ४, बहुल पाहुड़ ५, तमखुर पाहुड६ ॥ १३ ॥ गर्जसिरी १, भटकसिरी २, भहड़सिरी ३, बहुनाथसिरी ४, गनगचसिरी ५ ॥ १४ ॥ विकथा चार - स्त्री कथा १, भुक्त कथा २, चोर कथा ३, राज कथा ४ ॥ १५ ॥ हिंसानंदी १, अनृतानंदी २, स्तेयानंदी ३, अबंभानंदी ४ ॥ १६ ॥ सहकार १, चिकार २, उकार ३, मकार ४, तर्क५, जर्क ६, मर्क ७, नर्क ८, गचकुटा ९, वचकुटा १०, सनकुटा ११, नाम नाम नाम समल १२, नाम बारह ॥ १७ ॥ एक उक्त सुभाव, एक मुक्त सुभाव, मुक्ति प्रवेस उत्पन्न केवली उक्ति तीन ॥ १८ ॥ दल पड़हिं एक उक्त आवर्न, एक उक्त भिनष्टि, एक उक्त बहिली, एक उक्त भंभीरी ४ ॥ १९ ॥ परै गुनै मूढ़ न रहै ॥ २० ॥ तीन पात्र, दान चार, परिष्य एक, दिठारौ सुभाव, औकास न्यान की परिष्या ॥ २१ ॥ कलदिस्टि, सर्वदिस्टि, पापदिस्टि, पढ़ो सुवा विलाइ लियो । २२ ।। पयोगहीन जान विली, चरइ पियइ नहिन करइ, चरड़ पियइ उठि चलै, चरइ पियइ पूंछ डुलावइ, चरइ पियइ दिस्टि डुगडुगावइ, चरइ पियइ पड़ि रहइ, चरइ पियइ चौक बांधे, संहार दिस्टि, दर्प दिस्टि, पाषंड दिस्टि, चरइ पियइ घर आवड़, सींग सों नातो पूंछ सों बैर, पयोग हीन आचरो करइ ॥ २३ ॥ अन्तराय पांच-दान १, लाभ २, भोग३, उपभोग४, वीर्ज ५ ॥ २४ ॥ अनंत न्यान मोरें सो तोरें, तोरें सो मोरें ॥ २५ ॥ चोर कर्म, बंधोर कर्म, अन्मोद कर्म, जहां तहां सहकार अन्मोदहि अन्मोद कर्म ॥ २६ ॥ कुमति, कुश्रुति, कुअवधि ॥ २७ ॥ माया, मिथ्या, निदान ॥ २८ ॥ चतुरंग संन्या जयन कमल ॥ २९ ॥ पंच गन सु प्रगट राजू ॥ ३० ॥ गहिर गुप्ति २ ॥ ३१ ॥ मुक्ति प्रमान सो पात्र सासुतं ॥ ३२ ॥ ॥ इति श्री सुन्न सुभाव नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। ७ (४३४) Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केलाय माता श्री छयस्थवाणी जी श्री छनस्थवाणी जी प्रथम अधिकार उवं हियं श्रियं अर्हन्त सर्वन्यं सिद्ध सिद्ध धुवं जयं सुयं जयं जयं उत्पन्नं जयं ॥ १ ॥ उव उवन उत्पन्न जिन श्रेणि तारन तरन उवन कमल ॥ २ ॥ उत्पन्न कलनस्य कलियं, उत्पन्न कमल सुभाव ॥ ३ ॥ अर्क विन्द उत्पन्न ॥ ४ ॥ अर्क छत्तीस सरन कमल उत्पन्न कमल ॥ ५ ॥ अर्क धुव समवसरन उत्पन्न ॥ ६ ॥ उवन दिप्ति दिस्टि प्रवेसी ॥ ७ ॥ सुर्य सब्द उत्पन्न प्रियो ॥ ८ ॥ सुवन साहि उत्पन्न हिय हुव औकास ॥ ९ ॥ सह समय मुक्ति रमन गमन सिद्ध सिद्धं ॥ १० ॥ जिन सवीर्ज उत्पन्न अन्मोद वीर्ज ॥ ११ ॥ समय दिस्टि दिप्ति सब्द आकिर्न ॥ १२ ॥ हिय हुव औकास सर्वांग ॥ १३ ॥ अर्क उत्पन्न वीर्ज अन्मोद सह समय सिद्ध सिद्धं धुवं ॥ १४ ॥ उनईस सै तेतीस (१९३३) वर्ष दिन रयन सै तीनि उत्पन्न ॥ १५ ॥ सहजादि मुक्ति भेष उत्पन्न ॥ १६ ॥ मिथ्या विलि वर्ष ग्यारह (११) ॥ १७ ॥ समय मिथ्या विलि वर्ष दस (१०) ॥ १८ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी प्रकृति मिथ्या विलि वर्ष नौ (९) ॥ १९ ॥ माया विलि वर्ष सात (७) ॥ २० ॥ मिथ्या विलि वर्ष सात (७) ॥ २१ ॥ निदान विली वर्ष सात (७) ॥ २२ ॥ अन्या उत्पन्न वर्ष डेढ़ (१॥), वेदक वर्ष दोइ (२), उवसम वर्ष अढ़ाई (२॥), प्यायिक वर्ष तीन (३), एवं उत्पन्न वर्ष नौ (९) ॥ २३ ॥ उत्पन्न भेष उवसग्ग सहनं वर्ष छह, मास पांच, दिन पंच दस, संवत् पन्द्रह सौ बहत्तर (१५७२) गततिलकं सत सहजादि कल छूटो ॥ २४ ॥ तदि सर्वार्थसिद्धि उत्पन्न ॥ २५ ॥ कलन सह समय सिद्धि सिद्धं सुयं ॥ २६ ॥ उत्पन्न सुभाव अनदिठि अनश्रुत अनहोतो सब्द उत्पन्न धुव ॥ २७ ॥ उक्त साह उत्पन्न अषिर सुर विंजन सर्वार्थसिद्धि सिद्धं ॥ २८ ।। उत्पन्न सब्द हितमित परिनत ॥ २९ ॥ कोमल ललित हेव अवगाहन अगुरुलघु बाधा विलि मुक्ति सुभाव ॥ ३० ॥ उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न नो उत्पन्न रमन न्यान ॥ ३१ ॥ इति कार्ज सिद्धि तिलकं संवत् १५७२ स्वामी तारन तरन सर्वार्थ सिद्धि उत्पन्न ॥ ३२ ॥ इति तिलक बहत्तर को ॥ ३३ ॥ समय को मुक्ति प्रसाद ॥ ३४ ॥ सुष्येन सुष्येन सिद्धं धुवं ॥ ३५ ॥ (४३५ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छद्मस्थवाणी जी उवं उवन उवन उव उवन्न उवनं सोई लोय नंत प्रवेसं ॥ ३६ ॥ उवन सरनि सोई विलयं ॥ ३७ ॥ उवनं सोई तार कमल समय मुक्ति विलसंतं ।। ३८ ।। ॥ इति प्रथमोऽधिकारः ॥ द्वितीय अधिकार ॐ नमः उवन सिद्ध नमो नमः ॥ १ ॥ ३ ॥ उत्पन्न स्वामी तारन तरन केवली समय पांच लाख त्रेपन हजार तीन से उनईस ( ५५३३१९ ) ॥ २ ॥ अन्मोद कमलावती रुइया जिन विदी ॥ जोति केवली सात सौ मनपर्जय न्यानी पांच सौ गणधर ग्यारह (११) ॥ ६ ॥ प्रति गणधर चौदह सौ अवधि न्यानी तेरह सौ एक संतत केवली तीन (३) ॥ अनवधि केवली तीन (३) ॥ १० ॥ राजा दानपति एक ( १ ) ।। ११ ।। सौधर्म स्वर्गी आठ हजार (८००० ) जति सिद्ध गति आठ हजार (८००० ) अनुत्तर गति वैक्रियक चार हजार चार सौ (४४०० ) || १४ || पूर्वधर तीन हजार ( ३००० ) ।। १५ ।। ९ ॥ ।। १२ ।। ।। १३ ।। ( ७०० ) (५०० ) ( १४०० ) (१३०१) ॥ ॥ ४ ॥ ५ ॥ ॥ ७ ॥ ॥। ८ ।। ४३६ ।। ।। अजिंका छत्तीस हजार (३६००० ) ॥ श्राविका तीन लाख ( ३००००० ) श्रावक एक लाख (१००००० ) सिष्यक नव्वे हजार (९०००० ) ॥ कुवादी चार चौ (४०० ) ।। २० ।। पारनौ दिन पैंतालीस (४५) ।। २१ ।। १६ ॥ १७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी १८ ॥ १९ ॥ जोग ध्यान दिन छह (६) ।। २२ ।। ३९९९ सुष्येन सुष्येन मुक्ति गामिनो अन्मोय कमलावती रुइया जिन ।। २३ ।। ७०० जोति केवली संसर्ग मुक्ति गामिनो सुष्येन सुयेन विदी ॥ २४ ॥ उत्पन्न संसर्ग जोति सिर रुइया जिन ॥ २५ ॥ उत्पन्न संसर्ग जोति कमलावती ॥ २६ ॥ उत्पन्न जोति चरनावती ।। २७ ।। उत्पन्न जोति करनावती ।। २८ ।। उत्पन्न जोति विंदावती ।। २९ ।। उत्पन्न जोति भक्तावती ॥। ३० ।। उत्पन्न जोति जयनावती ॥ ३१ ॥ उत्पन्न जोति सुवनावती ।। ३२ ।। उत्पन्न जोति विगसावती ॥ ३३ ॥ उत्पन्न जोति रमनावती ॥ ३४ ॥ उत्पन्न जोति दिप्तावती ।। ३५ ।। Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छद्मस्थवाणी जी उत्पन्न जोति उक्तावती ।। ३६ ।। उत्पन्न जोति अतुलावती ।। ३७ ।। उत्पन्न जोति लखनावती ॥ ३८ ॥ उत्पन्न जोति उल्हसावती ॥ ३९ ॥ उत्पन्न जोति विलसावती ॥ ४० ॥ उत्पन्न जोति हरषावती ।। ४१ ।। उत्पन्न जोति विज्ञावती ।। ४२ ।। इति जोति संसर्ग सतसई सहगामिनी ।। ४३ ।। मनपर्जय न्यानी पांच सौ सुष्येन मुक्ति गामिनो विदी ॥ ४४ ॥ सुवन जिन ।। ४५ ।। दिप्ति जिन ।। ४६ ।। कलन जिन ॥। ४७ ।। अगम जिन ॥ ४८ ॥ रयन जिन ।। ४९ ।। सुष रमन ।। ५० ।। विगस रमन ॥ ५१ ॥ वसु रमन जिन ।। ५२ ।। सहज जिन ।। ५३ ।। रमनश्रेन राचंद, रैदनु ॥ ५४ ॥ प्रति गणधर चौदह सौ सुष्येन मुक्ति गामिनो अन्मोय कमलावती रुझ्या जिन ।। ५५ ।। ॥ इति द्वितीयोऽधिकारः ॥ ४३७ ॥ तृतीय अधिकार १ ॥ ॐ नमः सिद्धं पं. श्री विमलचंद ॥ पं. श्री पेमचंद ॥ पं. श्री पेमराज पांडे ॥ ७ ॥ सुहगावती ॥ ८ ॥ गुप्त रंज कुंवारु ॥ ९ ॥ विगसरंजु ॥ १० ॥ मिलन ॥ ११ ॥ धर्मसिरी ।। १२ ।। अभयावती ।। १३ ।। भीषा ।। १४ ।। पदमावती ।। १५ ।। चरनावती ।। १६ ।। हियनंद कुंवार हला ॥ १७ ॥ ममलावती ।। १८ ।। मनोवती ॥ १९ ॥ प्योराजु पांडे ।। २० ॥ हरसिनी ॥ २१ ॥ महासिरी ।। २२ ।। भावश्री ।। २३ ।। इति प्रति गनधर सौधर्म स्वर्गी ८००० सुष्येन मुक्ति गामिनो विदी || पं. श्री मैनरंज सुषेन ॥ १ ॥ सिंघई रूपरंज सुषेन ॥ २ ॥ पं. श्री नेमीदेव सुषेन ॥ ३ ॥ झान श्री सुषेन ॥ ४ ॥ रूपनिधि सुषेन ॥ ५ ॥ भुवनी भावसिरी सुषेन ॥ ७ ॥ हियरंज रूवा सुषेन ॥ ८ ॥ कनकश्री सुन ॥ ९ ॥ श्रीदत सुषेन ।। १० ।। रूपन महरी सुषेन ॥ ११ ॥ ब्रह्मदेव सुषेन ॥ १२ ॥ महाश्री सुषेन ।। १३ ।। रतनश्री सुषेन ।। १४ ।। माडन सुषेन ।। १५ ।। चौधरी राजधर सुषेन ।। १६ ।। चरनावती चन्द्रा सुषेन ॥ १७ ॥ हंसावती हंसा सुषेन ।। १८ ।। कमलश्रेणि ।। १९ ॥ बैनकुंवार ।। २० ।। राइचंद ॥ २१ ॥ विरऊ ब्रह्मचारी ।। २२ ।। नयनश्री ।। २३ ।। पालेन ॥ २४ ॥ महासिरी ।। २५ ।। सुषेन ॥ ६ ॥ ३ ॥ ५ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ।। पं. श्री धर्मचंद ॥ २ ॥ पं. श्री मलदास ।। ४ ।। पं. श्री भीषम ।। ६ ।। - Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री छयस्थवाणी जी हंसा ॥ २६ ॥ कुंवरसिरी ॥ २७ ॥ पाताले ॥ २८ ॥ वैद्य ॥ २९ ॥ मनसुष ॥ ३० ॥ इन्द्रा ईजरूवा ॥ ३१ ॥ अमरदेव ॥ ३२ ॥ डालू ॥ ३३ ॥ विरऊ ॥ ३४ ॥ जैनाश्री॥ ३५ ॥ अषयावती आल्हो॥ ३६ ॥ रामचंद्र ॥ ३७॥ रंजरमन ॥ ३८ ॥ हरषावती ॥ ३९ ॥ भक्तावती ॥ ४० ॥ सुवनावती ॥ ४१ ॥ रमनावती ॥ ४२ ॥ हीरा ॥ ४३ ॥ विगसावती ॥ ४४ ॥ सिवकुंवार ॥ ४५ ॥ अतुलश्री ॥ ४६ ॥ चंद्रावती ॥ ४७ ॥ हर्षाश्री ॥ ४८ ॥ विहसावती ॥ ४९ ॥ रत्नश्री ॥ ५० ॥ श्रीदीन ॥ ५१ ॥ कनकश्री ॥ ५२ ।। भोउश्री ॥ ५३ ॥ रूपनिधि ॥ ५४ ॥ भीषावती ॥ ५५ ॥ अमलावती ॥ ५६ ॥ सुधर्मा ॥ ५७ ॥ चन्दना ॥ ५८ ॥ ॥ इति तृतीयोऽधिकारः॥ चतुर्थ अधिकार ॐ नम: सिद्धं ॥ १ ॥ जिनवर स्वामी तू बड़ो ॥ २ ॥ मै जिनवर हौं भलो ॥ ३ ॥ बहत्तरि बहत्तरि बहत्तरि (७२) ॥ ४ ॥ चौउवन उत्पन्न बहत्तरि ॥ ५ ॥ बहतरि इकतीस (३१) ॥ ६ ॥ गणधर ११ कलनावती ॥ ७ ॥ रुइया जिन श्रेनि जू उत्पन्न भये ॥ ८ ॥ सोवत काहो रे ॥ ९॥ उठि कलस लेहु सत्ता एक सुन्न विंद उत्पन्न सुन्न सुभाव ॥ १० ॥ अर्थतिअर्थ सिद्धं धुवं ॥ ११ ॥ उव उवन उवन सुयं धुव सासुतं ॥ १२ ॥ बहत्तरि रमन चतुस्टय ॥ १३ ॥ चौरासी उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न अनंत भव ॥ १४ ।। आपनौ आपनौ उत्पन्न निमिष निमिष लेहु लेहु ॥ १५ ॥ जैसे ले सकहु लेहु ॥ १६ ॥ सक विली ॥ १७ ॥ उत्पन्न प्रवेस ॥ १८ ॥ घन उत्पन्न कोड अनंत ॥ १९ ।। दुंदुही सब्द ॥ २० ॥ रमनावती तीन लै उत्पन्न हुई हैं ॥ २१ ॥ बहत्तर (७२) समै लै उत्पन्न ।। २२ ।। निन्यानवे (९९) समै यहि लेह लै उत्पन्न ।। २३ ।। उवं ह्रियं श्रियं ग्रीवकं ॥ २४ ॥ तीन लै उत्पन्न गुप्ति ॥ २५ ॥ उत्पन्न औकास निधि ॥ २६ ॥ लय उत्पन्न अस्कंध तीन ॥ २७ ॥ तीन लय उत्पन्न कुन्यान हननं ॥ २८ ॥ तीन लय उत्पन्न जैनावति ॥ २९ ॥ तीन लय उत्पन्न छाया विमुक्त ॥ ३० ॥ (४३८ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छमस्थवाणी जी तीन लय उत्पन्न सुस्फटिक सुभाव उत्पन्न प्रवेस ।। ३१ ।। तीन लय उत्पन्न नाम विली ॥ ३२ ॥ निर्नाम उत्पन्न धुव अनंत उत्पन्न प्रवेस ॥ ३३ ॥ उत्पन्न व्युत्पन्न उत्पन्न जड़ ऊजड़ सांसें ॥ ३४ ॥ हुंतकार सात ॥ ३५ ॥ समै देषी सही कै देषी ॥ ३६ ॥ अविरल सब्द ॥ ३७ ॥ वाणी गणधर ।। ३८ ।। जिन साहु सतसई जिन प्रति गणधर ॥ ३९ ॥ औकास जिन ॥ ४० ॥ संतत गणधर उनतालीस सै के जु मिले कलनावती रुझ्या जिन ॥ ४१ ॥ दिप्ति जिन ॥ ४२ ॥ विगस रंज ॥ ४३ ॥ अस्थान रंज चांदनु ॥ ४४ ॥ आहितो ऊर्ध धारौ पुनि जो जानै कोई ॥ ४५ ॥ आहितो अयं जिन उत्पन्न जिन ॥ ४६ ॥ भक्तावती मोकों आइ मिली ॥ ४७ ॥ हों जानौ इतने पै गारौ है सो आइ मिली ॥ ४८ ॥ अब लेहु रे भाई लेहु ॥ ४९ ।। जिहि लेने होय सो लेहु ॥ ५० ॥ कलनावती अरु रुइया जिन ॥ ५१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चौसठि कलस जु जिन श्रेनि उत्पन्न भये, सो ये कलस ढलि है को नाहीं ॥ ५२ ॥ अंग आठ ॥ ५३ ॥ हुंतकार ग्यारह ॥ ५४ ॥ सर्वांग हुंतकार - १ ॥ ५५ ॥ दिति दिप्ति हुंतकार -२ ॥ ५६ ॥ चुटकी पंच ॥ ५७ ॥ उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न-३ ॥ ५८ ॥ महा उत्पन्न -१ ॥ ५९ ॥ महा उत्पन्न - ३ ॥ ६० ॥ सुयं उत्पन्न १, उछाह ३, सब्द ३ ।। ६१ ॥ लेहु रे लेहु काही करतु हो, पै लेहु ॥ २ ॥ सब्द तीन पायौ पायौ पायौ रे, कै सौवत हो रे, सत पायौ, स्वामी जू के प्रसाद ॥ ६३ ॥ विगस कहिऊ सो घुसी भये ॥ ६४ ॥ भलहि पायो धुव कमल समाधि देत हई । ६५ ।। कमल झड़तहहिं ।। ६६ ॥ पकड़ जाहि रे ॥ ६७ ।। लीजहि रे लीजहि, सम्हार लीजहि, छोड़ह जिन ॥ ६८ ॥ पय लीजहि, उत्पन्न समै मिलन ॥ ६९ ।। आरते उत्पन्न समै महोछो उत्पन्न प्रवेस ॥ ७० ॥ रयन महोछो उत्पन्न विलस रमन ॥ ७१ ।। (४३९) Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री छग्रस्थवाणी जी इन्द्र धरनिंद्र महोछो करतहहिं ॥ ७२ ॥ रयन लेहु रे लेहु, लूटहु रे ॥ ७३ ॥ ॥ इति चतुर्थोऽधिकारः॥ पंचम अधिकार उत्पन्न जय जय जय उत्पन्न प्रवेस ॥ १ ॥ नव निधि, चौदह रयन, तीन लोक अनंत महोछो करतहहि ॥ २ ॥ उछाह उत्पन्न अनंत ॥ ३ ॥ साढ़े बारह कोडि बाजे बाजै ॥ ४ ॥ दुंदुही सब्द उत्पन्न महोछौ ॥ ५ ॥ जो विनती करे चाहहु सो कमलावती रुइया जिन के आगे कहहु । कमलावती अरु रुइया जिन कियो सो प्रमान धुव ॥ ६ ॥ जो मैं कियो सो उन कियो, जो उन कियो सो मैं कियो, जो मैं कियो सो उन कियो, जो उन कियो सो मैं कियो, जो उन कियो सो प्रमान ॥ ७॥ अनंत धुव प्रमान प्रवेस, पै लेहु रे लेहु ॥ ८ ॥ भरहु भरि देषहु रे, भरि देष लेहु रे मूढ़, चतुस्टय लेहु रे लेहु, इह विधि लेहु ॥ ९ ॥ गुपित दान चिंतामनि हुंतकार ग्यारह (११) ॥ १० ॥ जो पै को ढलहिं सो सर्वन्य हई ॥ ११ ॥ नट नाट, घट घाट, सट साट, लट लाट, झट झाट, वट वाट, पेलनी पात्र और सर्व लषु प्रिय प्रमाण ॥ १२ ॥ गुपित गुपितार धुव उत्पन्न ॥ १३ ॥ छै के छत्तीस लेहु, पावहिं, आस पावहिं ॥ १४ ॥ इहि आस के लिये दुषी न होई ॥ १५ ॥ इन दिनहिं में को आयो रे, नव नव भासे ॥ १६ ॥ पंच मूठि उत्पन्न गुपितार ॥ १७ ॥ ए जु उत्पन्न मालेहहीं ॥ १८ ॥ सो को नहिं दिवि ॥ १९ ॥ अंकुर उत्पन्न दरसाये पंच गनती उत्पन्न प्रवेस अनंत ॥ २० ॥ हंसिऊ विहंसिऊ विलसिऊ ॥ २१ ॥ अनंत सुन्न प्रवेस ॥ २२ ॥ ए जु गणधर सिष्य आयेहहिं, चार दिन विनती करत हू भये, सो हमारो अभाग कहा है, जो और आगे न आये, जू हमको प्रसाद दिवावत नाहीं ॥ २३ ॥ इन्द्र धरनेन्द्र गंधर्व जष्य विनती करत हैं ॥ २४ ॥ गठरी दित्तं ॥ २५ ॥ जय जय जय तीनि पहिले तीनि बहुरि ॥ २६ ॥ एक जय लै जागहु ॥ २७ ॥ नित नित निरीषित उत्पन्न ॥ २८ ॥ जै जै जै जै जै जै जै जै जै नौ उत्पन्न जय ॥ २९ ॥ उत्पन्न जय इक्कीस ॥ ३० ॥ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री छमस्थवाणी जी उत्पन्न प्रवेस उवं उत्पन्न हुँतकार ॥ ३१ ॥ मागधी भाषा ॥ ३२ ॥ अंकुर उत्पन्न दरसाये तीन, अनंतानंत कोड प्रवेस प्रवेस्यो । ३३ ।। उत्पन्न विलस रमन ॥ ३४ ॥ उत्पन्न अर्क रोम रोम कोड उत्पन्न प्रवेस प्रवेस्यो ।॥ ३५ ॥ कोड सुयं कोड उत्पन्न ॥ ३६ ॥ हुंतकार उत्पन्न ॥ ३७ ॥ अंजुरी प्रसारी पदवी अनंत उत्पन्न अनंत कोड ॥ ३८ ॥ आनंद कोड हंसिक विहंसिउ अनंत प्रवेस प्रवेसिउ ।। ३९ ।। तालै दोइ तोड़ी अनंत विंद ॥ ४० ॥ अनंत सुन्न, अनंत सुन्न, अनंत विंद ॥ ४१ ।। आरते अठारह (१८), उत्पन्न जयवंत, सहाइ जयवंत, सहाइ जयवंत ॥ ४२ ॥ साह जयं जिन स्वामी तू इस्ट सुन्न अनंत उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न जयवंतहहिं ॥ ४३ ।। कौनइ जयवंतहं हिं ? ॥ ४४ ।। कौनइ अस्तिति उत्पन्न है ? ॥ ४५ ॥ अस्तिति उत्पन्न जैवंत जिन जैवंत जिन जै उत्पन्न अनंत प्रवेस ॥ ४६ ॥ तालै सात तोड़ी (७) ॥ ४७ ॥ अनंत अर्क अर्केउ अनंत कोडि उत्पन्न सोहं हंसो अनंत अर्क उत्पन्न ॥ ४८ ॥ गुपित सुन्न अनंत उत्पन्न ॥ ४९ ॥ अनंत आसन सिंहासन प्रचै उत्पन्न कमलावती अनंत कोड उत्पन्न ॥ ५० ॥ अचिंत चिंतामणि अंनत प्रवेस गुपित विंद अनंत सुन्न ॥ ५१ ॥ अचिंत चिंतामणि अनंत प्रवेस ॥ ५२ ॥ छत्र चंवर सिंहासन नो उत्पन्न निधि अनंत प्रवेस ॥ ५३ ।। लब्धि अलब्धि सुयं देव उत्पन्न ॥ ५४ ॥ देवाधिदेव उवलब्धि उत्पन्न दिव्य धुनि मागधी भाषा अरहंत पदवी ॥ ५५ ।। अनंत उत्पन्न सुयं लब्धि उत्पन्न अरहंत दियो, अरहंत देइ प्रचै प्रवेस अरहंत होइ ।। ५६ ॥ लेहु रे जयवंत होहु ।। ५७ ॥ कलन कमल जिन जिनहि मिले, गुप्त सुन्न उत्पन्न ॥ ५८ ॥ नाम प्रमान महोछो अनंत जयवंत ॥ ५९ ॥ जै जै जै जै जै जै जिन जै जिन जै जिन जै अरहंत किये हुंतकार ९ ।। ६० ॥ अरु दोइ अरु विमलसिरी आइ दिषाई दई, मिले भेंटे, देषिउ रे! अचिंत जु आये ॥ ६१ ॥ आसन सिंघासन कमलासन सिद्धासन चारि के चारि, पंच दिप्ति हैं अरु दोई है अरु सो है अनंत सुभाई ॥ ६२ ॥ अर्क अर्थ विंद उत्पन्न हुँतकार तीनि (३) ।। ६३ ।। हुंतकार सात (७) ॥ ६४ ॥ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छास्थवाणी जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पहुंचौवा बारह जनै साथ चाहिजै पहुंचौवा बारह - पयोग बारह (१२), छह अरु छहई, अनंत मिलन, अनंत अवगाह, अनंत प्रसाद ॥ ८४ ॥ सुन्न बारह (१२), विंद बारह (१२), आगौनी बारह (१२), नो उत्पन्न छह अरु छहई उत्पन्न जै छत्तीस (३६), बारह तो साथ चाहिजे पहुंचौवा बारह (१२) ।। ६५ ॥ जय चौबीस (२४), चौबीस तीर्थंकर रमन बहत्तरि (७२), ये गठरी कौने छोड़ी रे ! अनपूछे छोड़ी रयन सुभाव ॥ ६६ ॥ जिनाले बहत्तरि (७२), तिलक १२, अंजुलि १२ ॥ ८५ ॥ कुंजं जल रंज प्रवेस ॥ ६७ ॥ जो मैं कियो सो तुम कियो, जो तुम कियो सो मंगलवार मिलन बत्तीस (३२) ॥ ६८ ॥ प्रमाण, हौं का ऐसो कहत हों, कै तुम्ह काए ऐसौ मिलन रमन छत्तीस (३६) ॥ ६९ ॥ कियौ चिदानंद चिदानंद ॥ ८६ ॥ पंच अरु इकईस (२१) ॥ ७० ॥ इतनो तो तुम्हारे गुहिनारे साहि हों मैं जु कहिऊ रमन इकईस पंचोत्तरे ॥ ७१ ॥ सो तुम कियो सो प्रमान जै जै जै ॥ ८७ ॥ जय जय जय परिनाम सहितं ॥ ७२ ॥ ॥ इति पंचमोऽधिकारः॥ रुचितं सहितं सरूपं ॥ ७३ ॥ रुचितं उत्पन्न सहितं साहि ॥ ७४ ॥ षष्ठ अधिकार रुचितं सहितं बहत्तरि (७२), सुयं उत्पन्न बहत्तरि (७२) ॥ ७५ ॥ रुचितं सुयं उत्पन्न सुभाव ॥ ७६ ॥ उत्पन्न जै जै जै, हितकार जै जै जै, सहकार जै ॥ १ ॥ सहस दहोत्तरे (१०१०) पर्म परमात्मा सरूपं ॥ ७७ ।। उत्पन्न दुंदुहि सब्द ॥ २ ॥ बाईस सहस दहोत्तरे (२२०१०) रुचितं सहितं दुंदुहि सब्द ।। ७८ ॥ पटोहै उपरि जु बैठेहंहिं, सो कौन समै आहि, बत्तीस सै छयानवे (३२९६) सब्दार्थ प्रसिद्ध प्रमान ॥ ७९ ॥ आवहु रे ! भाई हो आवहु, प्रभावतिहि बुलावहु, अगम स्वरूप नित्त सुयं अरु धुवं रिद्धि दियौ ॥ ८० ॥ कै सु कलावतिहि बुलावहु ॥ ३ ॥ उत्पन्न अंकुर तीनि (३) अरु उत्पन्न मूठि ॥ ८१ ॥ उत्पन्न प्रसाद प्रवेस अनंत उत्पन्न तिलक तीनि (३), आरते उत्पन्न प्रवेस मिलन गये तीनि, पैपाल तो आयौ जय जय जय ॥ ४ ॥ दिवौकत को, अनंत उत्पन्न जु लहि न सकै ॥ ८२ ।। प्रवेस प्रसाद दिप्ति रंज बारे लहु की कमाई आगे आई ॥ ५ ॥ चारित्र उत्पन्न छद्मस्थ छह (६) अरु रिद्धि दोइ (२) नो उत्पन्न अंकुर दरसाये ॥ ६ ॥ चौ रिद्धि दीजै ॥ ८३ ॥ बहुरि के उत्पन्न हुँतकार छह (६), छह उत्पन्न हुँतकार जै जै जै ॥ ७ ॥ (४४२) Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छग्रस्थवाणी जी वेगे होहु रे ! वेगे होहु ! वेगे होहु रे ! वेगि लेहु यह जिन पद आहि ॥ ८ ॥ कहों कौन सों? आये तो भलहिं आये, लेह रे, अब लेहु, अपनेइ ही को कहों, जिनहि जान लेह ॥ ९ ॥ जिन उत्तौ अनंत तीनि लोक अनंत प्रवेस ॥ १० ॥ थरा बटका आरते महोछौ बहुत आये, अनंत महोछौ ॥ ११ ॥ अनंत उत्पन्न प्रवेस अचिंत चिंतामणि अनंत प्रवेसी दयाल प्रसाद समै को दियो सुषेन प्रसाद ।। १२ ।। पाछौ पुरिस छ्यानवे (९६) ॥ १३ ॥ श्री अड़तालीस और श्री पुरिस गुहिनारे अनंत आरते ले आये, कोड महोछौ करत आये, अनंत महोछौ कियो ॥ १४ ॥ उत्पन्नी आयरन आगौनी के लिये ॥ १५ ॥ आनंद तिलकु के बहुड़े ॥ १६ ॥ और दूसरे आये पुरिस छयानवे (९६), श्री अड़तालीस ॥ १७ ॥ गुहिनारे अनंत सीपै तीनि लै आये आरते अनंत कोड करत आये ॥ १८ ॥ दुंदुहि सब्द उत्पन्न अनंत गुडी उछारति आये आगौनी के लिए, महोछौ होन लागौ उत्पन्नी के, आसन सिंहासन बैठारे आरते तिलक महोछौ अनंत कोड के बहुड़े ॥ १९ ॥ आठे शुक्रवार सहज तिलकु उत्पन्न ॥ २० ॥ उत्पन्न प्रवेस धुव कमलावती रुइया जिन विंद ॥ २१ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अगम जिन, रयन जिनु, विगसरंज, सवनावती. भगतावती. रमनावती, रूपचंद, उकतावती, दिप्तिश्री, पं. श्री पसगैयत, विगसावती, अतुलावती, गुप्तकुंवार, षिपकरूवा, उल्हसरूवा, हियरंज रूवा, जैनावती, गौरूवा, हंसावती बाई, भक्ती, आल्हो षेमा, अगमी, धनकुंवार, असापति, लवनरंजु, तेजसिरी, विजैसिरी, दिप्तिरंज, परमलु, ठाकुरश्री, कनकश्री, अभा, पुहपा सिंधैनी, पल्हुवा, षैमलु, ममलसिरी, गुप्तसिरी, गुप्तिरंज की इजा - हंसा पजन, इन्द्रा, विमल की बेटी जयना, षेमु जिनरंज लवन की श्री, षेमल की बहू, देवराज को बेटा, अभय को भैया, अभय की इजा, अरुहदास मदन दाद के श्री रामचन्द, अरुहदास की श्री, अरुह की बेटी पुहपा, भीषमु, मिलन, रूपचंद की श्री, पेमल की श्री, हंसा को बेटा साहिकुंवार नरपति ॥ २२ ॥ जै सुन्न समाधि उत्पन्न साहि ॥ २३ ॥ हुंतकार ३, सुयं सुयं सुयं ॥ २४ ॥ सहजोपनीत सहि साहि लब्धि भवति ॥ २५ ॥ यह भोरौ को आहि रे ! प्रिये आरत किये ॥ २६ ॥ तिलकु रुइया जिन को नाम बार तीनि लियौ, तीनि बार विगसुवो कियो ॥ २७ ॥ स्वामी जी के षट् धारा रहित है और सबाव अभ्यंतर रहतु है ॥ २८ ॥ पेषियो स्वामी जू त्रिलोकनाथ, अनंत तीनि बार विगस प्रवेसी ॥ २९ ॥ (xxB Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छद्मस्थवाणी जी अचिंत चिंतामणि भय सल्य संक अनंत विली, अनंत बाधा विली ॥ ३० ॥ उत्पन्न प्रवेस अनंत भौ विली, जिन तारन तरन समर्थ, जिन जिनु पाये हैं ।। ३१ ।। चित्त प्रगट के न कहै, परोष्य के जो कहिये जै जै मिलि हौ जैनमती, रैनामती जै जै जै ॥ ३२ ॥ ॥ ।। संसार तो आवहि जाही, हम संसार छुड़ावा हैं ।। कमलावती यहु दिस्टि बहतरी, इहां बुलाए आवहि जाही अब बहतरी अगौनीवत अब ही तो बुलाये आवहि जाही ये दरवाजे दिवावहु, अवहि तो आगौनी बहु है, अब तो बुलाये आवहि जाही ।। ३६ ।। निज हेर बैठो नाहीं तो रार कीजे ।। ३७ ।। अब को है रे ऐसो, अब तो अभय उत्पन्न आयरन जै, आराधि जै, आलाप जै, उत्पन्न जै, हितकार जै, सहकार जै, उत्पन्न त्रिलोकनाथ अनंत प्रवेसी, अचिंत चिंतामणि, अनंत जय जय जय ॥ ३८ ॥ जानंतनि पायो, जे सात (७) की विधि लीजहिं रे विगस लीजहिं ।। ३९ ।। ३३ । ३४ ॥ ३५ ।। छै सै बहत्तर (६७२) जै पयोग, पयोग एक एक सुभाव साठि (६०), एक एक पयोग सहस आठ (१००८ ) ॥ ४० ॥ जान मान दान ।। ४९ ।। जान मलयागिरि के प्रवेस ।। ४२ ।। ૪૪૪ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मान श्रवन सुवन सुभाव ।। ४३ ।। दान उवन सुयं प्रवेस ।। ४४ ।। संजोग जोग ध्यान ।। ४५ ।। उत्पन्न जोग ध्यान दिन छह ।। ४६ ।। आगे छद्मस्थ जिहि अवहि के दिन पायौ तिहि मुक्ति कल को सुभाउ ।। ४७ ।। अवहि निधि इन दिनहु महिं लियौ सु पायौ, सु मुक्ति कलन प्रमान ध्रुव उत्पन्न प्रवेस ।। ४८ । हितकार हुंतकार साह संपत्ति आठ हरी, नौ प्रति हरी, चौ चक्कवे, श्रेणि समंतभद्र बलभद्र ये चौबीसई समै सुभाव कोड कोड चौबीस ही समै गर्भिऊ ।। ४९ ।। अपनी अपनी सामग्री करहु ॥ ५० ॥ चक्रवर्ती के अनंत कोड उत्पन्न ॥ ५१ ॥ अनंत अर्क अर्केड, अनंत उत्पन्न प्रवेस, सुयं इन्द्र कोड कियो, शत इन्द्र कोड कियो वंदितं वन्दे ।। ५२ ।। उत्पन्न समै कोड च चतुस्टय के चारई आरते उठे ।। ५३ ।। अनंत उत्पन्न दुंदुहि सब्द, अनंत इन्द्र, धरनिंद, गंधर्व, जण्य अनंत महोछे आये ॥ ५४ ॥ मानस्तंभ देषि मान गल्यौ, उत्पन्न उत्पन्न अनंत प्रवेस, अनंत प्रवेसिऊ अनंत अर्क अर्केऊ ।। ५५ ।। अनंत इच्छा निबांछने करत महोछौ, अनंत ध्रुव अस्थाप रोम रोम कोड उत्पन्न ।। ५६ । Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छद्मस्थवाणी जी असह साह अवलबली महोछौ ।। ५७ ।। आसन, सिंहासन, अनंत ध्रुव, जय धुव जय महोछौ लै उत्पन्न ॥ जयवंत पाँचइ सीपी अतवार उत्पन्न जै जै जै ॥ ॥ इति षष्ठोऽधिकारः ॥ सप्तम अधिकार सो सो सोहं तूं सो तूं सो तूं सो ॥ १ ॥ हों सो हों सो तूं सो सो तूं सोहं सोहं हंसो ।। २ ।। सोहं हंसो सोहं सो तूं सोहं ॥ ३ ॥ ५८ ॥ ५९ ॥ हुंजे तूंजे, तूंजे हुंजे, तूंजै सुभाइ सुभाइ मुक्ति विलसाइ ॥ ४ ॥ ५ ॥ नाम धरे मेरो का हो जाइ, सुभाइ सुयं ध्रुव मुक्ति विलसाड़ ॥ नाम धरे मेरो का हो जाइ, सुभाइ सुयं तं ध्रुव विलसाड़ ।। ६ । दिठारौ सुयं विली हुइ जाइ ॥ ७ ॥ सुभाइ सुयं ध्रुव जिन विलसाइ, नाम धरे मेरो कहा जाइ रयन सुभाव ॥ ८ ॥ पुंज जय हितकार ११ ।। ९ ।। कमल लीजहिं झुलपटे वारापार उत्पन्न प्रवेस ।। १० ।। कमल प्रगट उत्पन्न प्रवेस उत्पन्न उत्पन्न अंकुर चारि (४) दिषाये ॥ ११ ॥ कोड अनंत प्रवेस प्रवेसिऊ ।। १२ ।। सुभाव अनंत अर्क अर्केड उत्पन्न कोड अवगाहन ।। १३ ।। कलनावती जैवंत होड़, आरते लै आये आचरन परम इस्ट है ।। १४ ।। उत्पन्न पंच परमिस्टि, सो प्रसाद लेहु हमारो उवएस जो है ।। १५ ।। ४४५ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी बारह सुदेव उपजहिं ।। १६ ।। तीन अरु तीन छह (६), ऐसे कोमल परिनाम जे कलस आवहिं, एक दोइ हुंकार उत्पन्न एक ।। १७ ।। उत्पन्न रमन चतुस्टै चारि (४) ।। १८ ।। उत्पन्न दर्स, उत्पन्न न्यान, उत्पन्न चारित्र उत्पन्न प्रवेस प्रवेस्यो ॥ १९ ॥ अनंत विंद अनंत सुन्न समै बाउरि अर्क रमन सुभाव ॥ २० ॥ अनंत अर्क उत्पन्न प्रवेस ।। २१ ।। सुक्रवार, सनिचरु, आदित्यवार, उत्पन्न मिलन सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतीवार रमन चतुस्टै ॥ २२ ॥ उत्पन्न रमन प्रथम प्रवेस ।। २३ ।। पुंज अस्थापन उत्पन्न आयरन ।। २४ ।। उत्पन्न प्रवेस अवगाहन अनंत मिलन बेसक ६ ।। २५ ।। अवगाह अस्थापन, आसन, सिंहासन, पदवी उत्पन्न कोड अनंत प्रवेस ॥ २६ ॥ अनंत अर्क उत्पन्न कोड उत्पन्न विनोद लीला कोड प्रीतम मिलन उत्पन्न प्रवेस बार ३ ।। २७ ।। अवगाहन मिलन चतुस्टय सन्मुष संजोग लब्धि ॥ २८ ॥ अनंत प्रवेस अवगाहन, अव्वावाह अनंत प्रवेस प्रचै मिलन अन्मोद प्रिये ।। २९ ।। परम अवगाह बार तीनि ॥ ३० ॥ तीनि बारि (३), रुइया जिन झटि लेहु, झटि लेहु, छोड़ जिन लेहु हु छोड़हु जिन, लेहु हुंतकार तीन (३) ॥ ३१ ॥ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री छमस्थवाणी जी अनरघ थरा भरे आरते आये तीनि जे कोड हुँतकार है रे ॥ ३२ ॥ मेरी समै तीनि जो मोरी समय जीति, जै जै जै ॥ ३३ ॥ अरहंत किये, जोड़ी दोइ लागी (२) ॥ ३४ ॥ सीपें दोइ लै आये, अपछरा निवांछने करतहहिं ॥ ३५ ॥ अनंत आरते ले आये ॥ ३६ ॥ अनंत रयन पदार्थ जड़ित आरते महोछौ अनंत किये ॥ ३७ ।। जोग कलस, संजोग कलस, सुयं उत्पन्न जोग कलस, उत्पन्न जोग कलस, महा उत्पन्न उत्पन्न जोग कलस, चैत्र सुदी पाँचे (५) मंगलवार ॥ ३८ ॥ ॥ इति सप्तमोऽधिकारः॥ अष्टम अधिकार अयं अयं अयं, जय जय जयं, अर्ह जयं तुहं सुयं सुयं, सोहं सोहं सोह, सोहं जयं, अहं तुहं तुहं अहं जयं अहं तुहं तुहं अहं ॥ १ ॥ काके हाथ उत्पन्न महोछौ ॥ २ ॥ काके एक छह हाथ पाती ॥ ३ ॥ एक आठ हाथ पाती ॥ ४ ॥ एक बारह हाथ पाती ॥ ५ ॥ एक चौबीस हाथ पाती ॥ ६ ॥ एक चौसठ हाथ पाती ॥ ७ ॥ जो मोरी पाती फाटी तो हम न जानहिं ॥ ८ ॥ दयाल प्रसाद, ये तो बापुरे भोरे भोरी मार्ग, ये तो कछु गुप्तार न जानी, अरु हमारी पाती फाटी, आवहु रे भाई, हम बैठि मतो कीजै, ये तो बापुरे भोरे भोरी मार्ग साथ आवहि जाई ॥ ९ ॥ पृथ्वी आठ (८) ॥ १० ॥ रयनत्रय चौबीस (२४) ॥ ११ ॥ पयोग बारह (१२) ॥ १२ ॥ धर्म मागधी चौसठ (६४) वा नौ सै बारह ॥ १३ ॥ बारह अठे छ्यानवे (९६) ॥ १४ ॥ रमन तिहि में की पाती वरस पाती दिन छह (६), रमन की पाती एक दिन चैत्र वदि दसै (१०) ॥ १५ ॥ गुरऊ जोग ध्यान दिन छह (६) ॥ १६ ॥ पौष वदी दिन दोई (२) ॥ १७ ॥ उत्पन्न मिलन दिन तीनि (३) ॥ १८ ॥ उत्पन्न रमन दिन तीनि (३) ॥ १९ ॥ उत्पन्न चतुस्टै दिन चारि (४) ॥ २० ॥ पूष्य वदी दिन दोई (२) ॥ २१ ॥ उत्पन्न सात दिन एक (१) ॥ २२ ।। हुंतकार दिन तीनि (३) ॥ २३ ॥ हितकार चौबीस (२४) ॥ २४ ॥ उत्पन्न सुभाव रमन मिलन अनंत अवगाह, अनंत अन्मोद धुव अस्थापन उत्पन्न प्रवेस त्रिलोकनाथ अनंत प्रवेसी ।। २५ ।। अचिंत चिंतामणि अबलबली हितकार ॥ २६ ॥ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छद्मस्थवाणी जी उत्पन्न हुंतकार चौबीस (२४) ।। २७ ।। दयालप्रसाद अनंत अवगाहन प्रिय सुभाव उत्पन्न प्रवेस ।। २८ । उत्पन्न समै सुयमेव अदिस्ट दिस्य ।। २९ ।। इन्द्र धरनेन्द्र गन्धर्व जप्य राक्षस भूत पिसाच गुह्यक उत्पन्न अनंत ॥ ३० ॥ अनंत उत्पन्न समै महो आये, छत्र तीनि सुयमेव उत्पन्न हुई आये || ३१ ॥ दुंदुही सब्द ऐरापति संजुक्त साढ़े बारह कोडि बाजे बाजहिं सहित ।। ३२ ।। छत्र, चंवर, सिंहासन, नौ निधि, चौदह रयन, मणि माणिक, हीरा पदार्थ जड़ित आरते अनंत उत्पन्न महोछै आये, महोछौ कियो । ३३ ।। बेसक प्रमान कै दियो, बेसक उत्पन्न प्रवेस छत्र सेत उज्वल उत्पन्नी के माथे दियौ ।। ३४ ।। छत्र एक कमलावती के माथे दियौ ।। ३५ ।। छत्र एक रुइया जिन के माथे दियौ ।। ३६ । छत्र धारि भक्तावती, छत्र धारि सुवनावती, छत्र धारि रमनावती ।। ३७ ।। चंवर ढार अगम जिन, चंवर ढार रमन श्रेनि, चंवर द्वार विगस रंज ।। ३८ ।। जो मैं थापो सो प्रमान, आजु बड़े बड़े कहां पाऊं, मोरे बड़े आजु ए ही हैं, जो महोछौ मोरो करति हैं, सो महोछौ मोरो अस्थाप को करहु ।। ३९ ।। ४४७ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जो जैसे प्रचै उत्पन्न सुभाव प्रचै प्रवेस उत्पन्न महोछौ अनंत अन्मोद ॥ ४० ॥ प्रचै प्रवेस न पर चिंत किये, मुक्ति प्रवेस ॥। ४१ ।। ५५३३१९ बहुत को पूछे, मैं तो कमलावती रुइया जिन को तसलीम किया, हौं तुमहु कों पूंछ हों, जो तुम कियो सो मैं प्रमान के मानिऊं ॥। ४२ ।। पांच लक्ष्य त्रेपन सहस्र तीन से उनईस को तो तुम्हारो दाउन पकड़ी ।। ४३ ।। त्रिलोक मंडन उत्पन्न सुभाव पय पूजा उत्पन्न रमन चतुस्टय (४) ॥ ४४ ॥ त्रैलोक्यनाथ अनंत प्रवेसी हृिदये अरहंत सुभाव ।। ४५ ।। हृदय आभरन, हृदय अस्थापन ।। ४६ ।। हृदय तिलक उत्पन्न ।। ४७ ।। अंकुर आयरन आराधि आलाप लोक अवलोक असह साह उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न ॥ ४८ ॥ असह साह उत्पन्न उवएस प्रवेस ।। ४९ ।। दो सौ सोलह (२१६) सुभाउ, रयन तीनि (३), बहतरि ।। ५० ।। गम्य, अगम्य, अथाह, अलहु, अगहु, अभय भय रहित सहज सुकीय सुभाव उत्पन्न ।। ५१ ।। बालाग्र कोडि मितं ।। ५२ ।। सुल्प सुन्न अल्प सुन्न, प्रवर्तना प्रवेस सुल्प सुन्न उत्पन्न ।। ५३ ।। अनंतानंत, अनंतानंत, अनंतानंत, अनंतानंत अनंत उत्पन्न प्रवेस साह तं दिप्ति सुन्न सहाऊ बंधान विलयं जांति ।। ५४ ।। तदि पूजा आयरन सुन्न सहाऊ ।। ५५ ।। Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री छास्थवाणी जी आयरन उत्पन्न त्रिलोक, हितकार तिलक, सहकार तिलक, आयरन विंद प्रवेस ॥ ५६ ॥ उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न सुन्न सहाव ॥ ५७॥ छास्थ उत्पन्न छद्यस्थ उत्पन्न छास्थ उत्पन्न ॥ ५८ ॥ मागधी भाषा दिव्यधुनि सुन्न उत्पन्न सुन्न प्रवेस सुन्न सहाउ सुन्न त्रिलोक विजय ॥ ५९ ॥ उत्पन्न पद तिलक, त्रिलोक विजय उत्पन्न विजय ॥ ६० ॥ जय साह, जय साह, जय साह, जय साह, जय साह, जय साह, जय साह, जय साह, जय साह ॥ ६१ ॥ जय उत्पन्न तीनि (३) ।। ६२ ।। जय उत्पन्न दुंदुही सब्द सहकार उत्पन्न, जय दुंदुही सब्द आयरन ।। ६३ ॥ जय दंदुही सब्द आराध्य, जय दंदही सब्द आलाप, जय दुंदुही सब्द अन्मोद, जय दंदही सब्द साह, जय दुंदुही सब्द उत्पन्न साह, जय दुंदुही सब्द विपन, जय दुंदुही सब्द मुक्ति, जय दुंदुही सब्द अनंत सुष्य ॥ ६४ ।। अर्ध कोड, साढ़े बारह कोड मुक्ति विलास ॥ ६५ ॥ विंद उत्पन्न सुन्न सहाव अनंत प्रवेस अनंत धुव बालाग्र कोड मितं, मुक्ति सुभाव ।। ६६ ।। ॥ इति अष्टमोऽधिकारः॥ नवम अधिकार सुल्प सुन्न, अल्प सुन्न प्रवेस ॥१॥ सुल्प सुन्न उत्पन्न अनंत प्रवेस ॥२॥ अनंतानंत अनंतानंत अनंतानंत अनंतानंत अनंतानंत साह तदि उत्पन्न सुल्प सुन्न ॥ ३ ॥ सुल्प इस्ट सुन्न सुल्प सुन्न ।। ४ ॥ उत्पन्न सुन्न सुल्प सुन्न उत्पन्न उत्पन्न ॥ ५ ॥ चतुस्टै साह तं दिप्ति सुन्न, सुन्न अल्प सुन्न ॥ ६॥ अनंतानंत प्रवेस एक हजार चारि सै नब्बै (१४९०) ।। ७ ।। चौदह सै नब्बै कोडाकोड़ी सागर (१४९०), आठ सै चौरानवे (८९४) काल तुम लब्धि ऊपर लब्धि पावहु ॥ ८ ॥ तुम अपने किये हो, कब को कहत आही ॥ ९ ॥ बड़ो पहरु भयो, बड़ो पहरु आगे हुई है ॥ १० ॥ चन्दनु गलावहु रे, का हौं, आपनु कों चाहतु हों ? ॥ ११ ॥ सुल्प सुन्न सुल्प इस्ट सुन्न ।। १२ ।। उत्पन्न उत्पन्न सुल्प सुन्न, महा उत्पन्न उत्पन्न सुन्न, सुल्प सुर्य सुल्प सुन्न ॥ १३ ॥ सुर्य सुल्प उत्पन्न, सुयं सुल्प आयरन सुन्न ॥ १४ ॥ सुयं सुल्प आराध्य सुन्न, सुयं सुल्प आलाप सुन्न, सुयं सुल्प सह साह सुन्न, सुर्य सुल्प असह साह सुन्न, सुर्य सुल्प अगहगाह सुन्न, सुयं सुल्प अलहलाह सुन्न ॥ १५ ॥ सुन्न सुयं सुल्प अधुव विली, धुव उत्पन्न सुल्प सुन्न ॥ १६ ॥ (४४८) Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छद्मस्थवाणी जी सुयं सुल्प सुन्न अर्क उत्पन्न सुल्प सुन्न ।। १७ । सुयं सुल्पविंद अनंत सुभाव उत्पन्न सुल्प सुन्न ।। सुयं सुल्प अचिंत, अनंतानंत सुयं सुल्प सुन्न ॥ सुयं सुल्प हितकार अनंत सुभाव सुयं सुल्प सुन्न ।। सुयं सुल्प हुंतकार मुक्ति सुभाव सुयं उत्पन्न सुल्प सुन्न ।। २१ ।। सुयं सुल्प मुक्ति रमन सुल्प सुन्न सुयं उत्पन्न उत्पन्न दिप्ति उत्पन्न ।। २२ ॥ १८ ।। १९ ॥ २० ।। " सुर्य उत्पन्न सुल्प सुन्न अल्प सुन्न सुयं प्रवेस ॥ अल्प सुन्न प्रवेस अल्प सुन्न सुयं अनंत अनंतानंत प्रवेस ।। अल्प सुन्न सुयं धुव प्रवेस, अनंतानंत अल्प सुन्न ।। सुयं उक्त साह अनंतानंत प्रवेस ।। २६ । अल्प सुन्न सुयं श्रवण रमण अनंतानंत प्रवेस ।। २७ ।। अल्प सुन्न सुयं सुन्न उत्पन्न अनंतानंत प्रवेस ।। २८ ।। अल्प सुन्न सुल्प सुन्न प्रवेस जय जय जय ।। २९ ।। समोसन साढ़े बारह कोडि बाजे बाजै ॥ ३० ॥ मुक्ति विलास केवल उत्पन्न प्रवेस चार ।। ३१ ।। उत्पन्न चार के चार, चार के सोलह, सोलह के चौबीस, चौबीस के चौसठि, चौसठि के छ्यानवे ।। ३२ ।। मुकुट दोई आये, सोने की घुघरी, हीरा पदार्थ जड़ित और मालें अनंत असमूह उत्पन्न प्रवेस प्रसाद दियौ, जनै पांच छह लियौ ॥ ३३ ॥ २३ ॥ २४ । २५ ।। ४४९ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलावती, रुइया जिन, भगतावती, सुवनावती, विगसरंज, रमन श्रेनि, छत्र चारि उत्पन्न सुभाव आये आयरन छत्र, आराध्य छत्र, आलाप छत्र, सर्वांग छत्र ।। ३४ ।। पद तिलक के बैठे सुवृष्ट साढ़े बारह कोडि परम आनंद सुभाव ।। ३५ ।। चरि चरन चरिय, चरन धुव चरन चरिय अगमु अथाह असह अलह, सुर उवन चरी ।। ३६ ।। तदि इस्ट उत्पन्न कर्म सुन्न सुइ नष्ट || ३७ ॥ पुग्गव मिलन गलन उत्पन्न ।। ३८ ।। धर्म चलन उत्पन्न सुन्न ।। ३९ ।। अधर्म स्थिति सुन्न उत्पन्न ।। ४० ।। अवकास औकास उत्पन्न सुन्न अनंतानंत प्रवेस ।। ४९ ।। उत्पन्न चतुष्टय साह तद् अस्ति इति ।। ४२ ।। वर्तनादि प्रमाण ध्रुव ।। ४३ ।। सुभ इष्ट सुन्न स्वयं उत्पन्न ।। ४४ । सल्य सुन्न महा अनिष्ट उत्पन्न स्वयं ॥ ४५ ॥ क्रोध सुन्न स्वयं सुष्य उत्पन्न ।। ४६ । स्वयं सल्य आयरन सुन्न ।। ४७ ।। वक्र आराध्य सुन्न स्वयं उत्पन्न ।। ४८ ।। स्वयं स्वल्प सह साह सुन्न सौच स्वयं उत्पन्न ॥ ४९ ॥ स्वल्प असत साह सुन्न ।। ५० ।। स्वयं स्वल्प त्रियोग सुन्न संयम उत्पन्न ।। ५१ ।। Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री छपस्थवाणी जी कर्म सुन्न तप अवगाह ॥ ५२ ॥ स्वयं स्वल्प सुन्न अलह लाह सुन्न ॥ ५३ ॥ सुन्न देह स्वयं ॥ ५४ ॥ अधूव विली ध्रुव उत्पन्न ब्रह्म ॥ ५५ ॥ स्वयं दर्सन विसुद्धयं ॥ ५६ ॥ अर्क उत्पन्न स्वयं विनयं ।। ५७ ॥ स्वल्प स्वयं दोष रहियं चारित्रं ॥ ५८ ॥ विंद अनंत अर्क स्वभाव उत्पन्न ।। ५९ ॥ सुन्न संसार भयं अचिंत अनंतानंत ॥ ६० ॥ स्वयं स्वल्प हितकार दान अनंत स्वभाव ।। ६१ ।। स्वयं देह तप हुतकार मुक्त स्वभाव ॥ ६२ ॥ स्वयं उत्पन्न साह समाधि ॥ ६३ ॥ मुक्ति रमन साह चरण कमल सेव ॥ ६४ ॥ स्वयं दिप्त भक्ति उत्पन्न ।। ६५ ॥ सह साह स्वयं भक्ति उत्पन्न ॥ ६६ ॥ बहुश्रुत स्वयं रमन ।। ६७ ॥ स्वयं उक्त साह अनंतानंत प्रवेस भक्ति ॥ ६८ ॥ आवश्यक कार्य सुयं रमण ॥ ६९ ॥ स सल्य सुन्न मार्ग अनंतानंत प्रवेस ॥ ७० ॥ सजन मिलन प्रति रमन ॥ ७१ ॥ ॥ इति नबमोऽधिकारः॥ दसम अधिकार क क का, प प पा, स स सा, र र रा, ल ल ला, ध ध धा, भरनु औंजनु, भरनु अनंत औंजन, अनंत प्रवेस ॥१॥ दुंदुही सब्द बारह (१२), आयरन पति आयौरे, ऐरापति आयरन पति आराधि देषहुरे! अपनों आइ देषौ चौषठि मुषा आयरन पति, मागधी भाषा, दुंदुही सब्द, उत्पन्न दिव्य धुनि अनंत प्रवेसी ॥२॥ धुव रमन, करनावती आई, कमलावती कहु आई मिली, विनती करतहहिं, आनंद कोड महोछौ अनंत करत हई, उत्पन्न प्रवेस बहुरि बहुरि एक आरते मांगतु, निबांछने करतु, अनंत आभरन पहिरे, उत्पन्न प्रवेस उत्पन्न आयरन त्रिजोग कलस ॥ ३॥ उत्पन्न उत्पन्न आयरन उत्पन्न, अनंत आयरन अनंत उत्पन्न प्रवेस, आयरन त्रिलोकनाथ, अनंत प्रवेसी, अनंतानंत प्रवेस ।। ४ ।। अनंतानंतनाथ, अनंतानंत सासुते सुन्न प्रवेस पात्र पात्र पात्र उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न, आयरन जिनुत्तं लाइये, आराधि धरिय सम्हार, आलाप जिन सन्मुष भये, तं पात्र नंत विचारि, जिनवर सुल्प साह सम्हारि ॥ ५ ॥ जान तीनि (३), रयन तीनि (३), उत्पन्न ज्वाला, उत्पन्न वाऊ, उत्पन्न अग्नि ज्वाला बलात्, काल चौथो सम्पूर्न संजोग अबलबली उत्पन्न परसि, उत्पन्न हितकार परसि, उत्पन्न सहकार परसि, उत्पन्न साह परसि, उत्पन्न सर्वांग परसि-उत्पन्न परसि पांच । आयरन सब्द, आराध्य सब्द, आलाप सब्द, साह सब्द, सुवन सब्द, उत्पन्न सब्द, प्रवेस सब्द, नो उत्पन्न जो उत्पन्नी कही सो होई॥ ६॥ ॥ इति दसमोऽधिकारः॥ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छयस्थवाणी जी एकादश अधिकार स्तुति- जिन साह, जिन वाह, जिन उत्पन्न वाह, जिन हिययार वाह, जिन उत्पन्न हिययार वाह, जिन हिय उत्पन्न वाह, जिन साह वाह, जिन उत्पन्न साह वाह, जिन आयरन वाह, जिन उत्पन्न आराध्य वाह, जिन उत्पन्न आलाप वाह, जिन दिस्टि वाह, जिन उत्पन्न दिस्टि वाह, जिन सहज वाह, जिन उत्पन्न सहज वाह, जिन प्रमान वाह, जिन उत्पन्न प्रमान वाह, जिन अषय वाह, जिन उत्पन्न अषय वाह, जिन अनंतानंत प्रवेस वाह, जिन अल्प वाह, जिन उत्पन्न अल्प वाह, जिन सुल्प वाह, जिन उत्पन्न सुल्प वाह, जिन अथह वाह, जिन उत्पन्न अथह वाह, जिन अगम वाह, जिन उत्पन्न अनंत अगम वाह, जिन दिप्ति वाह, जिन उत्पन्न अनंतानंत दिप्ति वाह, जिन दिस्टि वाह, जिन उत्पन्न अनंत दिस्टि वाह ॥१॥ चौथे जो उत्पन्न जैसो ऐसो होई, साह होई, वाह होई, वर होई, वरयाई होई, संवर होई, संवराई होई, तप होई, तेज होई, लब्धि होई, अलब्धि होई, नन्द होई, आनन्द होई, रंज होई, रमन होई, दया होई, दयालु होई, अन्मोद होई, प्रिये होई, प्रवेस होई, प्रसाद होई ॥२॥ उत्पन्न त्रिक-समै साह, उत्पन्न हितकार सहकार. उत्पन्न त्रिक-समै साह, उत्पन्न आयरन आराधि आलाप धुव ॥ ३॥ दूसरी त्रिक - उत्पन्न दर्स त्रिक, समै साह, दर्सन न्यान चरन । उत्पन्न भय विलय त्रिक- भय सल्य संक विलयं समै साह उत्पन्न उक्त त्रिक-समै साह, उत्पन्न केवल सर्व केवल उत्सर्ग केवल । उत्पन्न उत्पन्न भुक्त चतुस्टै, भुक्त उत्पन्न परमिस्टि तस्य उक्त चतुस्टै। उत्पन्न उक्त साह, मोरी समै समै समै, उत्पन्न समै, हिययार समै, सहयार समै, मोरी समय पंच त्रिक पंच अमृत सुभाव त्रिलोकनाथ अनंत प्रवेसी ॥ ४ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी छद्मस्थ बुलाऊ आयौ, तुम चलहु हमारी समै निपजवे है, हमारो तिलकु बहत्तर को है, सो आगे आर्बल अनंत हई, उत्पन्न अनंत है। जै जै जै, जै जै जै, जै जै जै, जै एक नमोऽस्तु कियो । जै आऊ, जै आऊ, जै लियो, जै लियौ. जै जगत्रहि दियो, जै सुल्प, जै सुल्प, सु दिप्ति प्रवेस, सुल्प प्रवेस गुप्तार जानी, आयरन जानी, गुप्तार जानी, आराधि जानी, आलाप सुर्य, जो जैसे सो तैसे, जो अर्ध कोड है, गुप्तार जानी, आलाप सुर्य, जो तूं भयो सो तुव पास, जो तुव आस, जो ते लियौ सो जगत्रहि दियो। जु जैसो है सुतैसो है, हमारे जैसो है, जैसो तुव तैसों हौं, जो मोरे सो तोरे, जो तोरे सो मोरे, धुव जय जय, लेहुरे लेहु जय उत्पन्न लेहु, साह साह उत्पन्न जै जै जै, त्रिलोकनाथ गणधर लेहु सुभाव उत्पन्न प्रवेस, लेहु लेह लेह अपनो सुभाव, अपनो प्रवेस, उत्पन्न साह, लेहु लेहु लेहु, त्रिलोकनाथ अनंत प्रवेसी। पाछै भयौ सु विली, आगे अनंतानंत प्रवेस हुई है। अनंत समै अब तो कहो अनंत प्रवेस कै लेह रुइया जिन कहहिं थाती लेहु, कमलावती रुझ्या जिन कहहिं समै की थाती लेहु । तुम पायौ, सो त्रिलोक पायौ, जैसे लेहु तैसे देहु, जैसे लियौ तेसे दियौ, जु जैसे लियौ सु तैसे दियो, जो मोरी आस सो मोहि पास ॥ ५ ॥ बहुरि आये रे ! उत्पन्न समै बुलाये, जै जै अनंत जै बहुरि लेहु रे सर्व लेहु लेहु ॥ ६॥ कौन सुभाव हौं देत, पै लेहु रे लेहु, अब तो परिनाम पहिउ धुव अब लेह, अब जु जहां ते सो तहां ते लेहु, जु जहां ते सु तहां ते निकलउ एकेन्दिय इत्यादि निकलि निकलि आये। अर्क उत्पन्न उदै प्रवेस, उत्पन्न धुव अर्थ, अर्क समय समय अस्थाप आयरन प्रवेस, बेसक प्रसाद उत्पन्न सुभाउ, बेसक सर्वार्थ सुर्य प्रवेस अनंत सौष्य सतसई तीर्थकर साथ ॥ ७॥ (४५१) Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री छग्रस्थवाणी जी उत्पन्न आयरन, आराधि, आलाप, धुव अनंत विंद, रतन जड़ित हार आये, लेहु रे लेहु लेहु पहिरावहु रतन जड़ित माले॥ ८ ॥ दयालप्रसाद दियौ, लेहुरे पहिरहु जै मानिक मोती निवाही, जं जासु प्रापति सो लहै ॥ ९॥ पांच सौ बहत्तर (५७२) सुन्न देषत हो रे, सुन समूह बाउरे हिरदै देषौ ॥१०॥ आहूठ कोड सम्पूर्न, विंद उत्पन्न, चतुस्टय उत्पन्न, आदिहि सर्वार्थ उत्पन्न, गणधर रे पालकी लिवाउन आये। पालकी आगौनी अनंत, चौरासी आसन सिंहासन, सिंहासन प्रवेस, मनु विली, षिपक रासि, जिन सुभाव, असोक विछ, दिव्यधुनि, मागधी भाषा, दुंदुहि सब्द, इस्ट उत्पन्न राशि पुहुप विष्टी, हंतकार २१ दिव्यधुनि, अन्मोद विद्धि, सहज सुभाव, परम आनन्द, मिलन औकास, कहिउ हुँतकार चारि (४)। अषय उत्पन्न धुव साह सरनि विली, मुक्ति विलास, हुंतकार दोई (२)। कलनावती को धारि प्रिये प्रवेस, धुव साह प्रवेस, जिन दान रुइया जिन हुंतकार छह (६), जय बहत्तरि (७२), जय चौबीसी (२४), जय तीनि (३), तीन रत्न जड़ित पालने, रत्न जड़ित विवान हंतकार छह । सुयं उत्पन्न चतुस्टय, आयरन, आराधि, आलाप, मुक्ति प्रसाद अनंत चतुस्टय मुक्ति विलास, एक सुभाउ, पै एक सु एक, सुन्न विंद काहे रे लेहो नाहीं? नो उदंड वर्ग, ग्यारह उवदंड वर्ग, नित मूल उत्पन्न समै, कलनावती अरु रुइया जिन को दियौ, उत्पन्न केवल, अरु सर्व समै को दियौ, अनंत प्रवेस नौ उत्पन्न निधि, चौदह उत्पन्न रयन, अचिंत चिन्तामणि उत्पन्न प्रवेस प्रसाद, गन अस्मूह समै कह दियौ ॥ ११ ॥ दयाल होई दियौ, अनंत प्रवेस प्रवेस्यो, अनंत अनंत महोछौ, मानापमान काहैरे! अवहि की उपजी का लैहोनाही रे! कै सोवत हो, हौं देत हों अनंत श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी निधि, अनंत भ्रमन भवान्तर गयौ, अबहि के मुक्ति प्रवेस । रुइया जिन को प्रसाद दियौ, गणधर ग्यारह (११), ग्यारह के चौबीस (२४), चौबीस के बहत्तर (७२), और अनंत प्रसाद अनंत दिस्टि, अदिस्टि उत्पन्न प्रसाद । पहिले रुइया जिन पहिराये रतन जड़ित पहिरावन, तिलक ग्यारह (११), अनंत प्रसाद, अनंत समै संजुक्त प्रसाद । जो थाती मैं लिष प्रवेस दियौ, अनंत प्रिये संसर्ग अनंत प्रवेस, लेहु रे बड़े प्रिय प्रमान दयाल दियौ, प्रिये प्रमान धुव उत्पन्न साह एक हजार चार सै बहत्तर (१४७२) ॥ १२ ॥ ॥ इति एकादशोऽधिकारः॥ द्वादश अधिकार गया जिनका सम्बोधन :कलस अर्क एक प्रति कलस चौबीस (२४), उत्पन्न कमल द्रिस्यते, तीनि हजार छह सै बानवे (३६९२) कलस चतुस्टय उत्पन्न ॥ १॥ चौदह लाख सात सहस्र दोइ सै आठ कलस ढले (१४०७२०८)। तीन करोड़ साठ लाख आठ से दो (३६०००८०२) कलस कलस कलस, तिनको चार चतुस्टय । संवत् पन्द्रह सै बहत्तर (१५७२) वर्षे, जेठ वदी छठ (६),सुक्रवार की रात्रि सनिचर दिन सातें (७), जिन तारण तरण सरीर छूटो, तदि सर्वार्थ सिद्धि प्रवेस उत्पन्न, अनंत सौष्य उत्पन्न प्रवेस प्रसाद, समै को प्रसाद, सुष्येन सुष्येन प्रचै प्रवेस प्रवेस्यो प्रमाण धुव उत्पन्न ॥ २॥ ॥इति द्वादशोऽधिकारः॥ ॥ इति श्री छद्मस्थवाणी नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। (४५२) Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनाममाला जी केवाल यात श्री नाममाला जी नाम ठाम अर्क छत्तीस को, महा उत्पन्न कलि कमल न्यान श्री उत्पन्न अर्जिका कलन कमल कल कमल श्री उत्पन्न पट तारन तरन, तस्य उत्पन्न सुव पांच - दिप्ति जिन ५३१३१, रुइया जिन २१७७४, कलन जिन ३३७२, मेघ कुंवार ७७८४, सिव कुंवार ५७७२, अन्मोय रुइया जिन । सुवनी तीन - कल्पश्री, अल्पश्री, स्वल्पश्री, कमल कलि कलन प्रवेस सतसई । सखी बहिनी चार - सक्त श्री, विक्तश्री, विवानश्री, निलयश्री। विवानश्री के उत्पन्न पाँच-हियनंदश्री श्रेण हरकुंवार, कलनश्रेण कुंवरश्री, दर्सकुंवार दादे, चेयकुंवार चंदपारु, उवन श्रेण प्रदेस राठौर - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। सवनी दो- विपनश्री, मिलनश्री। विक्त श्री के उत्पन्न पांच - दिप्ति कुंवार देऊ श्री, सहजकुंवार सहजश्री, उक्तकुंवार उदैश्री, सुवन कुंवार सुषमलु, साहकुंवार प्रदेस । सुवनी तीन-दिप्तिश्री, सुवनश्री, संतश्री, अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो।निलयश्री के उत्पन्न पांच - सुवनरंज भीषम, कलनकुंवार मनसुष, कलनरंज कर्मचंद, निलयकुंवार नरदेव, नंदकुंवार प्रदेस । सुवनी तीन - सुर्यश्री, साहश्री, सुल्पश्री -अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। महा उत्पन्न अर्जिका पट तारन तरन चरनश्री, तस्य उत्पन्न दो-रैनचंद ४९६, अन्मोद विस्वसेन । सुवनी दो - मैनश्री, ममलश्री । महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन करनश्री, तस्य उत्पन्न तीन - पय रमन पदम, मयरमन मंडरिक, सुव रमन ६९, जयसिंधु १४७४, सुवनी दो- परमश्री, निलयश्री। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी फुटकर - अभैकुंवार ३७२, रंजकुंवार १४२, पदम कमल तस्य उत्पन्न पाँच - निलयरंज ३७२, गोविंद २४३, तिजैरंज तेल २७, ममलकुंवार मढ़ा २२७, दितिरंज प्रदेस ३०७, अचुरमन प्रदेस । सुवनी तीन - जानसुवा, मयन सुवा, लीनसुवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। फुटकर नाम - रमन रूवरूपा, रमनरंज गनेस, परमसुवा पारवती, नंद रूवा नाथ, दान रूवा देवला। महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन हंसश्री, तस्य उत्पन्न दो-अन्मोद षिम रमन ३७२, रयन रमन १४४ । सुवनी एक - रयनश्री-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पट तारन तरन सुवन श्री, तस्य उत्पन्न पाँच - ममल कुंवार नरसिंघ ८४, ममल रंज धारू ३४३, सुवन रंज कुंवार ३४, भुवनरंज ६४, सुवन रंज सेठि १०१, भेउ श्री अभयकुंवार। सुवनी तीन - अलष सिरी, ममल सिरी, दिप्ति सिरी। निलय श्रेन राजा, निलय श्री रानी, सतसई स्वरूप उत्पन्न सुवृत्ति बहनी चार - सुवन पट जिन श्रेणि परम श्री, अन्मोय जिन श्रेणि तस्य उत्पन्न हिय ममल कुंवार ५४, लीन कुंवार लषऊ ५२, लषन कुंवार ललऊ ७२, रंज श्रेन रमन ४१ । सुवनी तीन - नैनश्री, जित श्री, उवन श्री प्रदेस । विपन श्रेणि सतसई तस्य उत्पन्न तीन - रमन रंजराउ ३१, दिप्ति कुंवार सहस ३७, निल कुंवार ३ । श्री सुवनी दो - सील श्री, सरूप श्री, अन्मोय जिन श्रेणि धर्म धारि तस्य उत्पन्न - दिप्ति कुंवार देव श्री ८४, सिवकुंवार उपति ३१, उवनरंज देवसी २४, रैनरंज राईचंद १७, सहज रंज प्रदेस ४७ । सुवनी तीन - मैनश्री, पयनश्री, सुहागश्री, सुहागश्री की बहिनें तीन, रिसिरंज लाउन रमन श्री ६७ । महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन औकास श्री, तस्य (४५३) Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी उत्पन्न सात - सुवनरंज चांदनु माहरू १३७, कमलरंज धनपत पटवारी ३१२, सहजरंज चौधरी ३६, मैनरंज मानिक ३८३, करनरंज २८४, रमन रंज गूजर ३०७, लषन रंज इटाये ७। सुवनी तीन - निलय श्री नैना, न्यान श्री, सहज श्री गुजरात । महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पट तारन तरन दिप्ति श्री, तस्य उत्पन्न पांच - लषन रंज रतन सिरी ४७७, ममल रंज ३४७, चन्द्र रमन करम सिरी माहुर ५७६, मिलनरंज ८४, सोनेरे रमनरंज प्रदेस ७२। सुवनी तीनषिपन सिरी, जय उवनसिरी, जय लषनसिरी। महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन स्वयं दिप्तिसिरी, तस्य उत्पन्न सात - विपन श्रेन रामसिरी १९९७२, गमनरंज विमल १७१४, सुवन श्रेणि सिउपारू ७७४, रमनरंज पंचाइनु, उवन रंज सेउगनु ६८७, लषन श्रेन गुजरात, परम रंज इटाये । सुवनी तीन - महतसिरी, गमनसिरी, उवनसिरी लिंगछिमऊ मुक्ति गामिनो। महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन अभयसिरी, तस्य उत्पन्न पाँच - उवन श्रेन प्रदेस १३३, निसंक श्रेन प्रभु ११६, रमनरंज रमनचंद १८२, तर तार रंज छितरू ११५, अभय रमन अभैराज मुकजी ३३१ । सुवनी चार - भुवन श्री, ठाकुर श्री, रमन श्री, दर्स श्री। महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पट तारन तरन स्वर्क श्री, तस्य उत्पन्न सात - मैनकुंवार ३९७२, सलब्ध कुंवार लषन १५६, लीन रंज लाड़ १२७, नलिन रंज नान्हें १०७, असुरकुंवार प्रदेस २३३, सुवनकुंवार प्रदेस ३११, सुवनकुंवार ३४३। सुवनी तीन - अलष श्री, दिस्ट श्री, उवन श्री -अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी स्वर्क श्री की बहिनी चार - पुहुप श्री, प्रियश्री, भद्रश्री, भुवनश्री। पुहुपश्री के उत्पन्न पाँच - सुवनकुंवार सुमति १४८, दिप्तिरंज देवश्री २३७, मिलनरंज मानिक ३३९, सिवरंज लाल बिहारी पांडे ४३३, गुप्तिकुंवार प्रदेस ५१९ । सुवनी दो - दान श्री, रमनश्री - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। भुवन श्री के उत्पन्न पाँच- हर्षकुंवार हरु ३३, उक्तरंज उदऊ १०७, रयनरंज राम् ४१, झरूकुंवार उदउ को बेटा ३७, धुव कुंवार प्रदेस । सुवनी तीन - सहस सिरी, साह सिरी, गाह सिरी - अन्मोग जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। प्रिय सिरी तस्य उत्पन्न पाँच - षिपक रंज षेमु, गुप्तिरंज गना, दर्सरंज दादू, रमनरंज रायचंद, निलयरंज प्रदेसी । सुवनी दो - सुहश्री, सीलश्री अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। भद्रश्री तस्य उत्पन्न पाँच - कनकरंज करमश्री सेठी, स्वल्परंजश्री, मैनरंज माड़न, जयकुंवार रूपा, सहजरंज प्रदेसी । सुवनी दो - निलयश्री, पदमश्री- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन सर्वार्थ श्री, तस्य उत्पन्न सर्वार्थश्री की बहिनें तीन - लाड़श्री, लीनश्री, लवनश्री। लाड़श्री के उत्पन्न छह - अभयकुंवार प्रदेस, लीन श्री तस्य उत्पन्न पांच - रमनरंज १७१७, स्वल्प कुंवार सुमति ६४, साह कुंवार बसऊ४४, विमल रंज वीरदास ९७, दिप्ति कुंवार प्रदेस १११ । सुवनी तीन - रमनश्री, रुचिश्री, विगसश्री - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। (४५४) Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन विंदश्री, तस्य उत्पन्न पांच पदम रंज पुनपारू ३३५, साहरंज श्रीचंद ३९६, ममलरंज मलदास १७७४, जिनरंज धनपारू ४६४, सुईरमन ५८४ । सुवनी तीन सहजश्री, विमलश्री, अतुल श्री अपूर्व अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पट तारन तरन आनंदश्री, तस्य उत्पन्न पांच - जयरमन भारती २४७६, पदमरंज पूरन ७१०, निलयरंज, श्री धारन (धारू), सुवनकुंवार मिलनु । सुवनी तीन जयरमन श्री, धुवरमनश्री, सुवरमनश्री अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन समयश्री, तस्य उत्पन्न - अभयरंज ७१४, तप सिरी तिभुवा । सुवनी दो ममल सिरी, जयजिनय सिरी । साहकुंवार मलु ३९६, सुवनकुमार ठाकुर ७४ बामौरी, सहज रमन प्रदेस १११ - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पट तारन तरन हिय उवनश्री, तस्य उत्पन्न पांच कनकरंज कामदेउ, जयरमनरंज जैनश्री, ममलरंज माड़न, उत्पन्न रंज प्रदेस, सहज सरूव प्रदेस सुवनी तीन नंदश्री, व्रितश्री, निलयश्रीअन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन अलषश्री, तस्य उत्पन्न पाँच - उदयन उददु, सीलरंज सेठिस, पयरमन रंज प्रदेस, सयनरंज सौसार चंद, निलयरंज प्रदेस । सुवनी तीन मयन सिरी, पदम सिरी, सिरी । भुवन अलष सिरी की बहिनें पांच सर्वार्थ सिरी, साह सिरी, तिलक सिरी, सुवन सिरी, रमन सिरी । तिलक सिरी के उत्पन्न सात - त्रैकुंवार उदउ, सेउकुंवार सरौतु, धनकुंवार प्रदेस, दिप्तिरंज, सुवनी तीन कनक सिरी, जयरमन सिरी, - ४५५ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी - - साह सिरी । साह सिरी तस्य उत्पन्न पांच उभैरंज उदई, अमियरंज ठाकुर सिरी, निरतरंज पयने, मयनरंज माना, सेवकुंवार प्रदेस । सुवनी तीन सयन सिरी, गमन सिरी, ज्ञान सिरी । सुवनी तीन दिप्ति सिरी, सुवन सिरी, साह सिरी । सुवन सिरी तस्य उत्पन्न पांच ममलरंज मुनिदास, मनराज ध्यानी, पियकुंवार पंचान, गमनरंज ज्ञानचंद, साहरंज प्रदेसी । सर्वश्री तस्य उत्पन्न चार- हरश्रेणि हरपति, निलैरंज फूल, साहिकुंवार सहस, अभैरंज प्रदेसी। सुवनी तीन दिप्तिश्री, दर्सश्री, समयश्री । गमनश्री के उत्पन्न पांच दिप्तकुंवार अजित, नृतकुंवार पदमश्री, सिवकुंवार वैदश्री, सिवकुंवार मदनश्री, साहकुंवार प्रदेसी। सुवनी तीन नंदश्री, निलयश्री, भुवनश्री - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन अगमश्री, तस्य उत्पन्न चार ईसकुंवार प्रदेसी, लीनकुंवार प्रदेसी, पैपाल रंज कामराज, साहकुंवार साहिब रतनागरी । सुवनी दो रंजश्री, विनयश्री अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - - अगमश्री की बहिन सतसई अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । दर्सश्री, अभयश्री, सुवनश्री, सुहश्री, साहश्री एवं पांच तस्य उत्पन्न - हर्षरंज प्रदेस, हिययार रंज प्रदेस, रिसि कुंवार रतनश्री, परिस कुंवार ज्ञानचन्द, सेउकुंवार साते। सुवनी दो कल्पश्री, अल्पश्री अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्तिगामिनो । सुवनश्री, तस्य उत्पन्न पांच रैनकुंवार सौराजु १११, रंजकुंवार प्योराजु ५८७, वयकुंवार धनु ७११, साहकुंवार ६४, दिप्तिकुंवार प्रदेसी । सुवनी तीन रंजकुंवारी, मलयश्री प्रदेश, ममलश्री अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - - - Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मिलन सुवा तस्य उत्पन्न - रिसिकुंवार २८७, सिवकुंवार रैदनु ३१, षिमकुंवारु ७४, रंजकुंवारु मिलने ८९, रंजरमनु राजा, वैनकुंवारु ब्राम्हण, रैनकुंवारु रूपा, ममलरूवा कूवरी, विगसरूवा वैदा ब्राम्हण, मुक्ति रूवा पांचौ। श्री नाममाला जी दर्सश्री तस्य उत्पन्न पांच - निलयरंज उपति १७५८, कनक कुंवारु, सिउकुंवारु २४४, भुवनरंज भीषम २४, अभैकुंवार प्रदेस ७२ । सुवनी तीन - धरमश्री, प्रेमश्री, परमश्री - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अभयश्री तस्य उत्पन्न छह - कलनकुंवार कपिल २७, हरसरंज देवराज ११, रिसिकुंवार करन २१, पियरंज पयराजू २४, सहजरंज प्रदेसी ४४, सुवकुंवार श्रीधुव ३३ । सुवनी तीन-निलयश्री, नीलश्री, नन्दश्री-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । सुहश्री तस्य उत्पन्न पांच - रमन कुंवार १२५, रंजकुंवार पातल ११२, रयनरंज पियार वरड़ी ६०, उक्तरंज वरड़ी उरई ३२, अभयरंज प्रदेसी ५४४ । सुवनी दो - सहज सिरी, साह सिरी- अन्मोष जिन मेणि कलन मुक्ति गामिनो। महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन सहयारश्री, तस्य उत्पन्न पांच - चेयनंद कुंवार चौधरी ७८४, अषय कुंवार घटु ११४, उक्त कंवार उदद ८४, सिय कुंवार मिलने ३०७, धुवकुंवार मिलन १११ । सुवनी तीन - नृतश्री, नीलश्री, निलयश्री- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। सहयारश्री की बहिनें दो - अस्कंधश्री, मिलनसुवा १६४२, अस्कंधश्री तस्य उत्पन्न पाँच - विलसकुंवार वैदनु ३०९, कनक कुंवार रैदनु १०१, निलयरंज ८४, उत्पन्न कुंवार ओसवाल १८४, साहिकुंवार मिलने राठौर ११४ । सुवनी दो - रहजरूवा, सहजरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन उवनसिरी, तस्य उत्पन्न - रयनकुंवार रूपा, ममल रूपा कूवरी, विगस रूवा वैदा, चेयरूवा चाँदो, अल्परूपा आमिन, प्रियरूपा पांचौ, मुक्ति रूवा पांचौ। महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन रमनश्री, तस्य उत्पन्न- महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन उत्पन्नसिरी, तस्य उत्पन्न- उवनसिरी की बहिनें सतसई तीन - मलयसिरी, पदमसिरी, परमसिरी - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। मिलनकं वार मदन चंदेरी, रूपरंज, भेउकुंवार प्रदेसी । सुवनी तीन - नीलसिरी, निलयसिरी, रंजसिरी, सवन जिन रंज उक्ति प्रियो - अन्मोघ जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। ___महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन षिपनश्री, तस्य उत्पन्न - सुवनरंज थिरू १५७५, रूपरंज ११४, पदमरंज १८७ । सुवनी तीन - रूप सिरी, सुवनसिरी, षिपनसिरी । विपनसिरी की बहिनें सतसई चार - चित्र सिरी, चरन सिरी, सहन सिरी, निसंक सिरी, तस्य उत्पन्न - निलयरंज चांदन, देवराज, रयनकुंवार प्रदेसी । सुवनी तीन - जयन सिरी, जान सिरी, लषन सिरी- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। (४५६) Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी - महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पट तारन तरन ममलश्री, तस्य उत्पन्न दो - विनयरंज ३९३, लषन रंज २८७ । सुवनी दो साह सिरी, मैन रंज सिरी । महा उत्पन्न न्यान श्री अर्जिका पयोग विन्यान विंद श्री, तस्य उत्पन्न तीन सिवरमन १०७, नयरमन ७७४, उत्पन्न कुंवार १६४ । सुवनी तीन गमन सिरी, लषन सिरी, विंद सिरी । विंदसिरी की बहिनें तीन दानसिरी, मानसिरी, परमसिरी । परमसिरी के उत्पन्न चार कनैरंज प्रदेसी २३३, कलनकुंवार देउपति प्रदेसी ११, उक्त रंज उददु १३२, जयकुंवार जिना १७२ । सुवनी दो- सहजसिरी, साहसिरी अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - मानसिरी तस्य उत्पन्न पाँच नंदकुंवार नरपति, व्रितकुंवार नरविधु, षिपनरंज पेमल, धनकुंवार, सुवनरंज प्रदेस । सुवनी दो - कलनसिरी, कल्पसिरी अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पयोग पट तारन तरन समयश्री, तस्य उत्पन्न पांच सुवनरंज ३०९, सहजरंज पंचाइन २३१, सकलरंज प्रदेस ३६६, सिउकुंवार प्रदेस १८४, जिनकुंवार ८२ । सुवनी दो न्रितसिरी नैना, जानसिरी । जियारंजसिरी का बेटा सहसकुंवार सहस। धुवसिरी सतसई, लषनकुंवार लाला, जल्पकुंवार, जानसिरी, सयलकुंवार । महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पयोग पट तारन तरन सुन्न सुनंदसिरी, तस्य उत्पन्न - अन्मोद षिपन श्रेनि अन्मोय रंजु षेउपति वरड़ी । निलयरंज चाँदन षडैहो ३७७३, अभैरंज चांदा ७३५ कुकावली। उवन श्रेन २४२, जिन रमन होली षामषेड़ो ८८ । सुवनी तीन रमनसिरी, जानसिरी, भुवनसिरी । भुवनसिरी की बहिनें चार उलषिसिरी, ऊ र्धसिरी, आनंदसिरी, - ४५७ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुवनसिरी । भुवनश्रेन राजा, उवनसिरी रानी तस्य उत्पन्न सतसई। उलषश्री के उत्पन्न पाँच रमन श्रेणि रैहनु, धनकुंवार धना, जयकुंवार जयपति, विनयरंज बसाउन, मदनकुंवार वैद। - सुवनी दो व्रितसिरी, ऊर्धसिरी सतसई । नंदकुंवार नरपति, अमिय कुंवार अरहु, मैनरंज लड़उ, क्रांतिकुंवार, सब्दकुंवार प्रदेसी। सुवनी चार दर्ससिरी, नयनसिरी, ऊर्धसिरी विमत, सकलसिरी ईदा। उवनंदसिरी - तस्य उत्पन्न पांच ध्रुव रयन धारू वरही, अभयरंज भेउसिरी, कर्नकुंवार ठाकुर, अल्परंज अर्जुन, मिलनरंज मदनसिरी । सुवनी दो करनकुंवर, रमनकुंवरि अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - सुवनश्री तस्य उत्पन्न छह विगसरंज विमल, भुवनरंज भीषमु, कनकरंज कुंवरसी, किरनरंज करमचंद, मिलनरंज माइनु, चेयरंज चंदपारू । सुवनी दो - जानरूवा, जल्परूवा अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । रैनरंज रूपचंद, व्रितकुंवार नरपति, श्रीफूलकार, षिपकरूवा षेमा, दिप्तिरूवा देउला, दानरूवा देउमा, विक्तरूवा विमलश्री, मानसुवा मानिकदे, अषयरूवा अहिमनदे, सिवरूवा सिंगारदे, रैनरूवा रायचंद, रंजसुवा रूपिनी, हियरंज रूवा हरसिनी, सिय धुव, पदमरुवा पांचों, भुवनरूवा भिषनी, मिलन रूवा मूंगा, पियरूवा पुनश्री, परमरुवा पंवार श्री । - महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पयोग पट तारन तरन जिन श्रेणि हिययार श्री, तस्य उत्पन्न - अल्पकुंवार जौनसिरी, जल्पकुंवार जल्पु, जिनरंज जिनदास अगरवारो । हिययारश्री तस्य बहिनें चार लवनश्री, रमनश्री, ठानश्री, ममलश्री अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी सतसई सुभाव तस्य उत्पन्न चार रंजरूवा रंजन, दिप्ति रंजन देवगनु, सहजकुंवार होरिल, अयकुंवार प्रदेस । सुवनी चार- मैनश्री, मानश्री, लवनश्री, रमनश्री सरधना उरई। लवनश्री तस्य उत्पन्न तीन- उदयकुंवार उरदू, सयनरंज सुरजू, दिप्तिकुंवार प्रदेस सुवनी एक रयनश्री प्रदेस । रमनश्री तस्य उत्पन्न दस - मैनकुंवार मदन, वैनरंज वैद, रैनरंज रतन मुकाम बम्होरी, कल्परंज करमश्री विरदहा ७४, प्रियकुंवार रूपरथी मानिकपुर ४३, लीनरंज ७४, लवनश्री, षेमरंज पदरथपुर, सिमिरंज प्रदेस ४३१०७, गमनरंज प्रदेसी। सुवनी दो सुवनश्री, सहजश्री अषय जिनश्री तस्य उत्पन्न चारअषयरंज अनंता, मैनरंज महीपति, सुवन रंज मदन साह तेली वढ़वार, सुवनरंज दुदये। सुवनी एक सुवनश्री, अन्मोय कल्परंज दिस्टि प्रिये. अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । विपुलरूवा तस्य उत्पन्न छह - वैनकुंवार वैदनु श्री विरदहा ४१, रयनरंज रतनसी विरदहा ६४, लीनकुंवार लषनसी विरदहा ४१३३, अल्परंज अहिमदन विरदहा २७, सियकुंवार सहस ५४, दिप्तिकुंवार ६, रैनकुंवार रैन, भुवनरूवा भीषम २२७, जिनरूवा मिलनी ३ - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पयोग पट तारन तरन जिन श्रेणि जानश्री, तस्य उत्पन्न पाँच - मैनकुंवार माइन षड़ेहौ, वैनरंज वैदनु षड़ेहौ, विस्वकुंवार वसनमुष षड़ेहौ, ममलकुंवार सेठ सहनश्री, अयकुंवार पते । सुवनी दो- रमनश्री, सूर्यश्री सूर्यश्री की बहिन निलयश्री, तस्य उत्पन्न तीन पदमरंज प्रदेसी, मदनरंज पुनश्री, ब्रिद्धिकुंवार वीरू । सिद्ध सेठी की द्वितीय बहिनी विस्वश्री कनकरंज कुंवारश्री षड़े हौ, गयकुं वार गनेस- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । ४५८ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अभय श्री सतसई तस्य उत्पन्न जिनकुंवार धने विरदहा १४४, सहकुंवार धनरंज ठाकुर श्री बांभोरी (बम्होरी) ४९, मिलनकुंवार मानोरा परसोंगी ३०९, सहजकुंवार प्रदेसी १४४ । सुवनी दो ब्रितसिरी नैना, रैनसिरी, अन्मोय कल्परंज प्रिये अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - - - - राजा रे को कुटुम्ब - विनयरूवा वैदा, हियरंज हंसा, निलयरूवा सतसई, तस्य उत्पन्न सात रैनकुंवार रैदनु विरदहा ३३४, हियरंज होली आरडेला ४१७, मिलनकुंवार माड़न साजौ ३२, चेलरंज चांदन विरदहा ३७, वैकुंवार वैद २४, जिन कुंवार मिलने ११७, ब्रितरंज प्रदेसी २५६ । सुवनी दो - नंदरूवा, तिरूवा अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । - सहजरूवा साइति, मैनाउति महासिरी विरदहा, चरनरूवा चंदनसिरी विरदहा, लीनरूवा लाड़ौ, भुवनसुवा भाना सनाई, कलरंज विरदहा, श्री अजिता, सीलरूवा सिंगारदे बसहा, विनय सुवा वैदा, पियरूवा पुना विरदहा, लवनरूवा लषनसिरी, विगसरूवा वैदा, पियरूवा, अल्परूवा सजाइ बम्होरी, श्री रतना आछिरी बांमौरी, अगमरूवा आभा बांमौरी, मिलनरुवा, श्री रतन श्री विरदहा । महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पयोग पट तारन तरन जिन श्रेणि जैनसिरी, तस्य उत्पन्न - जयकुंवार जयपति षड़ेहौ, कर्नकुंवार कुबरू षड़ेहौ, विगसकुंवार विमल षहौ, माड़न को बसुकुंवार, रमनरंज राजा, रंजसिरी रानी, बहनी जैनसिरी, तस्य उत्पन्न चार सिवकुंवार सेऊदास पिपरिया, गमन रंजसी उपरैन, रमनरंज उरदु, हियरंज हेमराज, जिनयसिरी सतसई, Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी तस्य उत्पन्न तीन - नितकुंवार नैनसिरी, दिप्तिकुंवार देउचंद, उक्तनंद ठाकुरसिरी । सुवनी - जैनसिरी, जानसिरी, प्रेमसुवा पांचौ साजई (सनाई) । उक्तरूवा उदैसिरी, धुवरूवा धुवा, कमलरूवा कुंवरसिरी, ममलसवा मदनसिरी, जय षिपकसुवा षिउसिरी विरदहा (सनाई), उक्तरूवा ठाकुरसिरी विरदहा, ईर्जरूवा ईदा, गमनरूवा गाइति बांभौरी, अषैकुंवार अठुमहौड़ी। महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पयोग पट तारन तरन जिन श्रेनि लषनसिरी, तस्य उत्पन्न - लषनसिरी की बहिनें चार - रंजसिरी, वैनसिरी, विद्धिसिरी, सिवसिरी। दूसरी वैनसिरी के उत्पन्न तीन-रंजकुंवार रतनसिरी पचहाड़ा, पियकुंवार पतु सेमरखेड़ी, जिनकुंवार प्रदेस । सुवनी तीन - विपनसिरी,चरनसिरी, रिद्धिसिरी। रिद्धिसिरी तस्य उत्पन्न - अभैरंज भौंराज, जैनरूवा जीजी बहिनी मुड़ियाषेड़ौ, वैनकुंवार, रूवरंज रूपसिरी, दिप्तिकुंवार दीपा, पयरंज चाँदो, तिलकरूवा तिभुवा, भुवनरंज भीषम, अल्परंज अबला, कर्णकुंवार कपूर, कमलकुंवार कुबरू, रैनरंज राइता, पयकुंवार आसमल, रैनरूवा रमादे, सइसुवा रामश्री, कमलरूवा कुंवर सिरी, त्रितरूवा नैना, रंगरूवा रमा, भक्तरूवा भुवनी। महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पयोग पट तारन तरन जिन श्रेणि लीनसिरी, तस्य उत्पन्न- फुटकर-लीनरूवा लषनसिरी, निलयरूवा नाहा, चरनरूवा चांदनसिरी, लवनरूवा लाड़ो, रैनाउति रामश्री, प्रभावती पंवारसिरी, लषनरूवा लषनसिरी, ईषुरूवा छीता, विनयरूवा विमलश्री, सियकंवार लषनश्री, सियकुंवार रूपरथी, अलषरंज अषयराज, कल्परूवा कौरा, अभैरंज भीषन, कलन कपारू रामचंद। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पयोग पट तारन तरन भद्रसिरी, तस्य उत्पन्नता। महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पयोग पट तारन तरन मय उवनश्री, तस्य उत्पन्न - रिषि, कल्पकुंवार कुवरू ११३३, सिवकुंवार सिवदास ७७२, धुवकुंवार प्रदेस ३३२, जयकुंवार प्रदेस २८४, सुवन अन्मोय कर्नकुंवार। सुवनी- रमनश्री, विपनश्री विमात - कनकश्री, अन्मोय कर्नकुंवार । सुवन कुंवार घुटऊ राख ९८४, रमनरंज समोषनु ३३५, चन्द्ररंज २३३, रयनकुंवार प्रदेस ३०७, सहजकुंवार घेउसिरी, कल्पसिरी-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। कलन जिनकुंवार, इस्टकुंवार आसमल, सुवनी दो- लाड़श्री, सयन सिरी। कर्नकुंवार कर्नचन्द, हियरंज हंसराज, नितश्री अन्मोय, पय उवनश्री पयोग जिन मिलन श्रेणि विगसिश्री, विरतिश्री, कनकसिरी करमावाड़ी, सहजरंज संधैनपति (संघपति)। सहजसिरी की बहिनें चार - सतसई अगमरूवा, पयरूवा, अलषावती, पिय रमनरूवा । पियरमनरूवा तस्य उत्पन्न - इच्छकुंवार छितरू ८४, विगसकुंवार विमल ७४, सहजकुंवार छीतरू, षेउराज ३४, मिलनरंज महाराज ४७, रयनरंज राइचंद ४२, अयकुंवार प्रदेस ११९ । सुवनी दो - सयनरूवा, षिपकरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अलषाउती तस्य उत्पन्न छह - सहजकुंवार महनश्री २८७, अगमकुंवार जिना ४४, सेउकुंवार धारू ४२, सुल्पकुंवार मानिक ८२, सहजरंज महेस ८१, उक्तरंज प्रदेस ११७, सुवनी - कल्परूवा - अन्मोय जिन श्रेणिकलन मुक्ति गामिनो। Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी पयनरूवा तस्य उत्पन्न पाँच - हियरमनरंज हमास, विलसरंज हरिसिंघ, छोहरंज छितरू गहोई, लवनकुंवार छितरू, सुवनी दो - दानरूवा, जानरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। लब्धिरंज लाड, पियकुंवार परस, धुवरूवा धरमा, रमनरूवा रमनसिरी, प्रेमरूवा पदमा । महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पयोग पट तारन तरन पय उवनश्री, तस्य उत्पन्न सुवन पाँच - अल्परंज, परसकुंवार, अगमरंज, पदमरंज, कल्पकुंवार राइमल । सुवनी बहिनें तीन - रमनसिरी, वयनसिरी, अलषसिरी। रमनश्री के उत्पन्न-मैनकुंवार, ममलकुंवार, साहिकुंवार, श्री सिवकुंवार, वीरदास । वयनसिरी तस्य उत्पन्न - दर्सरंज देउराज, भद्रकुंवार महन, सुवनकुंवार सेउदास, सैनकुंवार प्रदेस । अलषसिरी तस्य उत्पन्न - जयकुंवार जिना, ममलरंज जल्पु कुंवर प्रदेस, अन्मोय नयरमन । अमरश्री तस्य उत्पन्न पांच - सकलरंज सहस, नंदरंज प्रदेस, ममलकुंवार मनसुष, धुवरमन प्रदेस, पयकुंवार प्रदेस । बहिन दुमाता - रूपश्री की सुवनी तीनरंजसिरी, रमनसिरी, लषनसिरी । वयनसिरी की पुत्री तीन - वदनसिरी, नयनसिरी, सहजसिरी। रमनसिरी कीबहिनें विमाता-जयसिरी तस्य उत्पन्न श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विगसरंज प्रदेस.विनयराज गजरात,विमात नैनकुंवार,संघ ठाकुर श्री पुरहा। सुवनी - निलयसिरी, राईसिरी, विरोहसिरी, अनंतसिरी कान्त विमल मन उत्पन्न समय - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अन्मोय साह प्रियं रुई जिन, विजय श्रेणि राजा तस्य उत्पन्न नंदसिरी तस्य उत्पन्न सुनंदसिरी, सहाई बनजंघ राजा अन्मोय जिन श्रेणि तस्य उत्पन्न बज़ जंघ राजा, तस्य उत्पन्न भ्राता, पयपालदास राजा तस्य पुत्री प्रेमसिरी, अन्मोय जिन श्रेणि तस्य उत्पन्न षिमनुरंज चांदन, चंदरंजवारा, ब्रह्मरंज सिउ सहसरंज, दिप्तिकुंवार प्रदेस, सुवनी मैनसिरी की सखी उत्पन्न हरषसिरी हंसा, रंजसिरी सुवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। बुधवेन राजा, पदमसिरी रानी तस्य उत्पन्न - रमनचंद रूपउ, षिमनचंद्र प्रवेस सिंघई राज उत्पन्न विरोध॥ सुवनी - कर्नसिरी, स्वयंवर श्रेणि जिन, रमनसिरी इस्ट अन्मोद, रमनचंद । अगम रूवा तस्य उत्पन्न - मिलनकुंवार मनसुख, मैनरंज मदन, ऐकुंवार अनंदु, भुवनरंज भुवन, अलषकुंवार हरसिंघअन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। __पियकुंवार पिरथी, गमनकुंवार ज्ञानचंद, कर्नचंद को बेटा जिनरंज अजित, भुवनरंज भानुचंद, निलयरंज नैनसिरी, षिपकरंजषाम्हऊ, श्री भुवन सुवभना, विपकरूवा षेमा, सीलरूवा सिंगारदे, विनय सुवा वैदा, दिप्ति रूवा छीता, लब्धि सुवा लाड़ौ, अगमावती अगमा, अलषावती अजयसिरी, अभयरूवा भीषमदे, विक्तरूवा विजयसिरी, नितरूवा नैना, सुवनसुवा षेमा, विलस रूवा वैदा, साहसुवा मारुति, जिनयकुंवार ठाकुर श्री, वयन रूवा विजयसिरी, नंदरूवा नैनसिरी, रंजरूवा राजुल, अलषरूवा आछिरी, धुव रूवा वयनसिरी, रंजराउ राजा उक्त कमलु - अन्मोय जिन श्रेणि। पुत्र। फुटकर नाम - हियरंज हरदास, रयनरंज रयदू हरदास, अल्परंज ८, अषयरंज आसमल, रयनकुंवार रामचंद, उक्तरंज उदयचंद, साहकुंवार श्रीपारू, ममलरंज करमश्री, मिलनरंज महनश्री, रुचिरंज रूपा, दिप्तिरंज दीपचंद, अलषरंज आसमल, कलनकुंवार पारू - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। षडग श्रेनि राजा तस्य पुत्री विपकसिरी, सखी पय उवनसिरी, पयोग अन्मोय जिन श्रेणि सतसई तस्य उत्पन्न चार - पयकुंवार पंचाइन भाउ, Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी नाम - अल्पसिरी तस्य उत्पन्न -आक्रिनरंज निलयरंज, साहकुंवार सहजोपनीत प्रदेस । विद्धि त्रिकाल अन्मोय प्रिये सहज कुंवारु, विगससिरी सतसई तस्य उत्पन्न पांच - मैनरंज बसावनु ६४, विगसकुंवार कुंवरू ८४, लीनरंज ९६, सीलरंज विलात ११३, परसरंज प्रदेस ३०७ । सुवनी - साहसिरी, सीलसिरी सिलवानी । वैनरंज वैदनु,उवनरंज धनपति छिऊली, कनकसिरी सतसई तस्य उत्पन्न दो-बलिकुंवार बसाऊन, बसरंज बसाऊन -अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। फुटकर नाम- अन्मोय रंज उदय, हियरंज महाराज, गमनरंज जैकुंवार, कनकरंज कुंवार, सुल्परंज कुंवार, कलभ्रत दिप्तिजिनु, धनकुंवार, नंदरंज नामदेउ, वयनरंज अर्जुन, विगसरंज विरम, रमनरंज पनपारू, गुप्तिकुंवार गोपी, मिलनरंज चांदनु, दिप्तिरंज देउगना, भाऊरंज भोगी पांडे, जयनसिरी सांगी, अभयसिरी, भावसिरी, लवनसिरी, लषुबालह, भक्तसिरी, भाउसिरी, कल्पसिरी, करमसिरी, लीनसिरी, लषनसिरी, भवनमैन की बेटी नीलसिरी, भुवन सिरोंज की, रयनसिरी रतना सिकारपुर की, ऐकुंवार असपति, हियरमनरूवा हीरा, पयपाल की महतारी पदमरूवा, विपन श्रेनि की बेटी हुलसरूवा, चांदसिरी, विनैरूवा, विजैसिरी, विलैसिरी, विमलसिरी, बोधसिरी पुरड़ सिंधैन, चेतश्रीचाँदा, मलयसिरीमतौ, तपसिरी कपूरा, अभय की इजा कपूराकुंवरि, रैतु की इजा पियरूवा पदमसिरी, अल्परूवा आमिनी रूपऊ की बहिनी सिकारपुर । मुक्तिसुवा तस्य उत्पन्न - वीरचंद वीरदास, धवलरंज धनपाल राजा, सुवनरंज समोषनु, कलनकुंवार प्रदेस, साहकुंवार इटाये के पांच। सुवनी दो-रंजसिरी, उत्पन्नसिरी-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी रयनश्री तस्य उत्पन्न चार - नैनरंज, हरिषरंज हरिराज, हेमकुंवार हंसा, दर्सरंजु प्रदेस-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। पदमसिरी तस्य उत्पन्न चार-विक्तरंज, मेघरंज,चेयकुंवार चांदन,कनककुंवारु करम सिरी। सुवनी - देउसिरी- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। परमसिरी तस्य उत्पन्न - सेऊरंज छीतम, रैनरूवा रूपनी, साहरमन सारंगु, सेउरंज, रमनरूवा रतनसिरी, इस्टरूवा ईदा, लवनसिरी लषमा, कर्नरूवा करमसिरी, सहनरूवा रूवा, रंजरूवा रूपनी, अभयरूवा भेउसिरी, मैनरूवा छीता, नितरूवा नैनसिरी, षिपकरूवा खेमा, विनयरूवा विजैसिरी, वैनरूवा वीरुदे, पदमरूवा पुषा, लीनरूवा लाड़सिरी, लीनरूवा नान्हा, पियरूवा पुरा, ममलरूवा महासिरी अहमदपुर। रंजरूवा तस्य उत्पन्न तीन, चेयरूवा तस्य उत्पन्न तीन - विनयरंज वीरा, रैरंज जिना, सुवनरंज प्रदेस - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। इटाये की श्री भुवनसिरी भना, हियरमन रूवा हरषिनी, कर्नरूवा ठाकुर श्री, निलयरूवा नैना, रूव रूवा रूपनी, वैनरूवा वैदा, राजमति रैनरूवा, रंजरूवा रूपा, रमनरूवा रूपनी पंवारदे, सैनरूवा सिंगारदे, सिरिरूवा ठाकुरसिरी, कमलरूवा कौरा, सहनसुवा सर्वश्री, भुवनरूवा भाउसिरी, उक्तरूवा उदैसिरी, गमन रूवा गढ़ा, मिलनरूवा मैनसिरी, रंजरूवा रतनसिरी, पियरूवा रूपसिरी, पैनरूवा पैनसिरी, षिपकरूवा घेउसिरी, वदनरूवा कमलू वैदा, सिवरूपा सेठी, आसरूवा अभयसिरी, भाऊरूवा भानमति, रैनरूवा राजी, ध्यानरूवा जैमती, अषयरूवा षहनी, सुल्परूवा सुहगा, रंजरूवा राजमती, षेमरूवा पंवारदे, वरनरूवा करमा, अभय रूवा भीषा, लीनरूवा लषना, चरनरूवा चांदन, धनरूवा धनश्री, (४६१) Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अल्परूवा आसा, रयनरंज राजा, साहरंज राई (रानी), सीलरूवा सिंगारदे, विलसरूवा विसनु, रैनरूवा रामश्री, लीनरूवा लाड़ौ, रैनकुंवार राइमल कुल्हाड, नित कुंवार नैनू कुल्हाड़। गमनसिरी तस्य उत्पन्न-रंजरमन कुंवारू, रूपचंद, विपकरंजु उपति, धनकुंवार धनपति, रयनकुंवार रयनसिरी, सिवकुंवारु प्रदेस । सुवनी - लीनरूवा, भुवनरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। सिव सिरी तस्य उत्पन्न चार - पियकुंवारु, अल्परंज अभई, दिप्तिरंज देउचंदु, पदमरंज पदारथ-अन्मोय जिने श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो॥ तपश्री के उत्पन्न पांच- भुवनरंज भीषम, जानरंज जल्पु, मैनरंज महेसुर ३४४२४, चरनरंज चांदनु २१, सुवनरंज प्रदेस ६४ । सुवनी दो- विक्तसिरी, सक्तसिरी- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। नित सिरी तस्य उत्पन्न पांच-धनरंज घाटम, उलषरंज उदद, कल्परंज कर्मचन्द, रूपरंज राम, परमरंज प्रदेस । सुवनी दो-नीलसिरी, जितसिरी - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अगम सिरी तस्य उत्पन्न चार - उक्तरंज उददु तूमैन, चेयरंज चांदनु, ठानरंजु ठाकुर, मेघरंजु माड़न। सुवनी -अषयसिरी - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अषयसिरी तस्य उत्पन्न चार-वैनरंजु बसु, मूलरंज महनश्री, विपकरंज ष्यौराजु, जिनकुंवार प्रदेस-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। फुटकर नाम - श्री रयनरूवा, रतनसिरी सेठिनी, मैनरूवा मूंगा, दानरूवा देउला, पियरूवा पदमा, विपकरूवा पदमा, ममलरूवा मदनसिरी, रमनरूवा रमनसिरी, गमनरूवा ज्ञानसिरी, रंजरूवा राइसिरी, मिलनरूवा रमनसिरी, अगमरूवा गरवा, जल्परूवा जसमा, लवनरूवा लाड़ो, सुवनरूवा रूवा, रूवरूवा रूपा, मेघ रूवा महना- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। फुटकर नाम, पुरुष - पियकुंवार पुनसिरी, नंदकुंवार नन्हा, उक्तरंज चौधरी जला, उक्तकुंवार उदद्, विगसरंजु भीषम, विपककंवार उपति, रतनसिरी, लीनरूवा तस्य उत्पन्न - मैनरंज माड़न, रतनसिरी, कमलकुंवार पंचाइन, अगमकुंवार, अभयचन्द, षिपकरंज उपति, देउराज, सुवनकुंवार सुरजन देउराज, दसरंज देउराज, रयनकुंवारु रतनपार, सुवनरंज ठाकुरसिरी, मानिक दिप्तिरंज देउसिरी अठु, जिनरंज ठाकुर पटवारी, कलनरंज पटवारी, कल्पकुंवार गोसी (घोसी) अमरू, हरिषरंजु हरदास सिंघई, जैकुंवारु जसराज, जानरंज जैतसिरी, सुवनकुंवार माइनु, सकलरंज उदैसिरी, रमनकुंवारु रतनसिरी होरिल (होरिली), हियरंज होरिल, मदन, सहजकुंवार सहसु, दर्सकुंवार देउराज, अभयकुमार भीषा, उवनरंज उरड़ षेउसी, हरिषरंज हरिगनु, पयरमन पदमसी, जैतु जलारंज, जिनकुंवारसिरी, उक्तसाह उपरमनु, दिप्तिकुंवार देउदास उगासरी, अपसुवनु पातले, रायरंज राइचंद्र, कलनकुंवार केसौ, सहजरंज सहसमल, अल्पकुंवार अमरसिरी, सिउकुंवार सिंगारश्री, पयरंज पंवार श्री। फुटकर श्री- हिय रंजरूवा हांसो, लीनरूवा लषनसिरी, सुवनरूवा सोना, गमनरूवा गौरा, भुवनरूवा भाउसिरी, कमलरूवा कीरा, अल्परूवा आमा, कलनरूवा वैदा, ईछरूवा छीता, कमल रूवा कुसया, हंसरूवा हंसा, धनरूवा धनसिरी, विक्तरूवा विमला केसो, रंजरूवा राइश्री, विनरूवा विमलश्री पटवारिनी, पियरूवा पीछा, विगसरूवा विंदा, (४६२) Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी अगमरूवा अभयसिरी, अषयरूवा अहिमनदे, हरषरूवा हांसो, पदमरूवा पदमा तूमैन । सिवसिरी तस्य उत्पन्न पांच - अल्पकुंवार २१, वयनकुंवार २३, पियकुंवार १४, जानकुंवार जापुर १४, रैनकुंवार प्रदेस ८१ । सुवनी दो- ऊर्धसिरी, साहसिरी- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। ___ सुवनश्री तस्य उत्पन्न चार - ऊर्ध कुंवार परम सिरी, कलन कुंवार लाला २७, कलनकुंवार कान्हों १७, अल्पकुंवार अमरसिरी १९। सुवनीसकलश्री-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। साहश्री तस्य उत्पन्न पांच - सुवनरंज सुरजू ६४, अषयकुंवार अहिमन २२, सिवकुंवार ठाकुरश्री १२, भुवनकुंवार भीषमु ९, रमनकुंवार प्रदेस ४१ - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। रावश्री तस्य उत्पन्न पांच - उक्तरंज उवदद ३५, अभैरंज भेऊश्री ३६, हरिषकुंवार हरिगनु ७४, पवनकुंवार २५, साहकुंवार प्रदेस ५४ । सुवनी दोनिरयसिरी, लीनसिरी - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। रमनरूवा तस्य उत्पन्न चार - षिमनकंवार, निलैरंजनाथ,विपककुंवार, लीनरंज प्रदेस- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। हरषरूवा हला, रंजरूवा रतो, ममलरूवा महाश्री, कलन रूवा कूवरी, विपकरूवा घेउसिरी। निलयसिरी तस्य उत्पन्न - सुवनकुंवारु, जैरमनु जागा, हियकुंवारु हरपति, विनयकुंवार वैनसिरी, अगम कुंवारु प्रदेस। सुवनी तीन - उवनसुवा, रमनसुवा, साहसुवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। पियसुवा तस्य उत्पन्न छह - रयनकुंवार राइचंद, एनकुंवार अजितु, भुवनकुंवारु भीषमु, मैनरंज सहनश्री, सिऊकुंवार श्री चन्द, ममलकुंवार श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी प्रदेस । सुवनी तीन-अल्परूवा अमरसिरी, कल्पसुवा कुंवरदे, दिप्तिरूवा प्रदेस- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अगमरूवा तस्य उत्पन्न चार - षिपकरंज घेऊपति, उक्त कुंवार उदयसिरी, हरषकुंवार, रंजकुंवार प्रदेस । सुवनी-रंजरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । धुव उवनरूवा तस्य उत्पन्न रैनरंज राम, अल्परंज अजितु, विपकरंज छितरू, सुरमनरंज सुरजु, नीलकुंवार मिलने। सुवनी दो - दिप्ति रूवा, स्वर्क रूवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। हिययाररूवा हांसो, धनरूवा धनसिरी, दिप्तिरूवा देवसिरी, लीनरूवा लषनसिरी । रमनरूवा तस्य उत्पन्न चार - सुवरंज रतनसिरी, सिवकुंवार उदयसिरी, चेयकुंवार वैदनु, धुवरंज कान्हर, सुवनी - सुवनरूवा - अन्मोय जिन मेणि कलन मुक्ति गामिनो। धुवरूवा तस्य उत्पन्न तीन - मेघरंज मदनसिरी ४४, सीलरंजसिरी ३२, ममलरंज मिलने ३९ । सुवनी दो - सयनश्री, रमनरूवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अलषरूवा तस्य उत्पन्न चार - सहजरंज सहस, हियरंज हरपति, विपक रंज उपति, दिप्तिकुंवार देउपति । सुवनी - निलय रूवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। नाम श्री- विस्व रूवा वामा, चेयरूवा चांदा, मैनरूवा मानिकदे, लवनरूवा लाड़ली, रंजरूवा राइश्री, उक्तरूवा उदयसिरी, पामाखेड़ी की श्री पियरूवा पदमसिरी, अभयरूवा अभयसिरी, परमरूवा युता, अल्परूवा अहिमनदे, मैनरूवा मानिकदे, मिलनरूवा मना, दानसिरी, धीर्जरूवा (४६३) Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी धनसिरी, चेयरूवा चांदो, विक्तरूवा विमलसिरी सिकारपुर की। सुवनरूवा सुहगा, ममलरंज मानिक, चेयरूवा चांदो, हरषरूवा हाँसल, वयनरूवा वैया, मैनरूवा महासिरी, पिपकरूवा षेमा, पुनरूवा पुनसिरी, रयनरूवा वैदा, वयकुंवार पूरनमल्लु, रुचिकुंवारु रूपचंद, देउकुंवार देउपति, ममलरंज पार को कुटमु - रमनरूवा रूपा, परमरूवा पुनसिरी, पियरूवा पदमसिरी, कमलरूवा । कनकरूवा तस्य उत्पन्न चार - ममलकुंवार माना ३३, तेजकुमार तारन, उक्तरंज उददु, ज्ञानरंज सकले, लीनरंज प्रदेस ८४, प्रियैरमन प्रमानु, रैनरंज रमनसिरी ग्यारसपुर । अगहरूवा तस्य उत्पन्न - चेयकुंवार चांदनु ८४, समकुंवार सहसु५७, लषनकुंवार लषमन ६८, दिप्तिरंज देवदास ४९, सहसरंजु मिलनु ११४। सुवनी तीन-रमनरूवा, रूप सिरी, विनयसिरी विमल - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। असहरूवा तस्य उत्पन्न छह - भावरंजु भीषम ३३, लीनरंज लषनु २७, छोहरंज छीरह ३३, हरषरंज हरदास ४१, साहरंज सेवदास ३७, ममलकुंवार प्रदेस ८७- अन्मोय जिन अणि कलन मुक्ति गामिनो । सुवनी अभयरूवा भाउश्री, सिवरूवा सिंगारदे । रंजरूवा तस्य उत्पन्न चार - मिलनरंज मड़े ३५, निलयरंज नगराज ३६, पियकुंवार पिरथी ३४, विस्वकुंवार विमल ५४ । सुवनी तीन - विक्रमरूवा वैदा,साहरूवा प्रदेस, रैन रूवा रानी- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। सिवकुंवार, श्री रयनरंजु रामजी, वयनरंज वाऊजी, विक्त रंज वीर जी, दिप्ति कुंवार देवसिरी, रूवरूवा रूपसिरी, चरनरूवा चांदो। मुक्तिरूवा तस्य उत्पन्न सात - दर्सरंजु देउपति, रयनरंज धीर, कलनकुंवार लषनसिरी, चरनरंज चांदन, रयनरंजु रजो, जैनरंजु जिना, पदमकुंवार प्रदेस । सुवनी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तीन - हियरूवा हीरा, कनकरूवा कूवरी, पदमरूवा मिलनी- अन्मोष जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। साहरूवा तस्य उत्पन्न पाँच - मेघरंजु माड्नु, चेयरंजु चांदनु, अभैकुंवार भीषम, कर्नकुंवार ठाकुर । सुवनी दो- जानरूवा, विपनरूवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। कलनरूवा तस्य उत्पन्न पांच - परमकुंवार पंवारे, रमनरंजु रामजी, चंदरंज रिधिरंज, ठानरंजु, दानरंज प्रदेस। सुवनी दो- जल्पसिरी,षिपनसिरीअन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । सुवन सुवा तस्य उत्पन्न चार - साहरंज श्रीचन्द्र, मैनकुंवार, पियरूवा पुना, धुवकुंवारु प्रदेस। सुवनी - निलयरूवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। सहजरूवा के उत्पन्न पांच - ममलरंजु माडन २४, दिप्तिरंज देउदास ३४, षिपककुंवारु षेउराजु ११४, मैनरंजु मानिकु २२, सुवनरंजुप्रदेस। सुवनी दो - सुवनरूवा, सुल्परूवा सुहगा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। साहरूवा तस्य उत्पन्न पांच-कमलरंजु ठाकुर नान्हें, अल्परंजु कुंवारु, सहजकुंवार सधारु, मदनरंज, मैनरंज मैनसी, दर्सकुंवार देउराज, नंदरंज नैनसी, धनरंज धना, अल्पकुंवार आसा। श्री नाम - अल्परूवा लषनश्री, गमनरूवा ज्ञानश्री, पदमरूवा पुरा, मैनसुवा मनि, कल्पसुवा करमश्री, लीनरूवा नैना, नितरूवा, लषनरूवा लाडौ, भक्तरूवा भाउश्री, साधुरूवा सिंगारदे, ईछुरूवा छीताई, परमरूवा पंवारदे, जानरूवा जैना, षिपकरूवा पेमा, मिलनरूवा मदन, चरनरूवा (४६४) Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी चंदनश्री. मैनरूवा मनश्री. हरषरूवा हर्षिनी, गुप्तिरूवा गौरी, रमनरूवा रूपश्री, परमरूवा मदनश्री, चरनरूवा चौवा, नैनरूवा नैनश्री, भक्तरूवा भाउश्री, सहजरूवा सहजा, जैनरूवा जैना, मिलनरूवा मला, हियरमन रूवा हीरा, विमलरूवा विमलश्री, विपकरूवा षेमदे, लषनरूवा लषनी, भुवनरूवा भानवती, मिस्टरूवा, हंसरूवा हंसा, षिपकरूवा, जान सुरूवा जैना, मिलनरूवा मदना, रूवरूवा रमनश्री, नंदकुंवार, परसरूवा पुना, विनरूवा वीठा, सुवनरंज सुमति, अभैरूवाभाना, रुचिरूवारूपा, पियरूवा पुना, भुवनरूवा भाउश्री, रंजरूवा विमलश्री, पियरूवा पुना, भुवनश्री, रंजरूवा रूपश्री। गुप्तिरूवा ज्ञानश्री, लीनरूवा लीनसिरी, मालरूवा माड़न, विगसरूवा विमलसिरी,चंद्ररूवा चंद्रसिरी। विस्वरूवा तस्य उत्पन्न चार - हियनंदकुंवार ५४, नंदकुंवार ४४, कल्परंज मिलने ७४, धुवकुंवार मिलने ३४ । सुवनी दो-नैनसुवा, अलषसुवा- अन्मोय जिन श्रेणिकलन मुक्ति गामिनो। सिलवानी हियनंद कुंवार तस्य उत्पन्न छह - सुवन कुंवार ७, चरनकुंवार चांदनु, रैनरंज राम, सुवनरंज सुमति, मैनरंज मड़े, धुवरंज प्रदेस । सुवनी तीन- भुवनसुवा, नितरूवा, मैनरूवा-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। अस्कंधरूवा तस्य उत्पन्न चार- सहजरंज समोषनु, उक्तरंज उददु, मिलन कुंवार मदन, मिलनरंज वैद। सुवनी तीन - रैनसुवा रमनश्री, अषयरूवा ईदा, हंसरूवा हांसो - अन्मोय जिन श्रेणिकलन मुक्ति गामिनो। उवनरूवा तस्य उत्पन्न पांच - अल्पकुंवार अर्जुन, गुप्तिरंज गुनिया, रूवरंज रतन, विक्तरूवा विमल, जयकुंवार जैपति। सुवनी तीन - मैनरूवा श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मदनश्री, हरषिरूवा मिलने, निलयरूवा ईदा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। सुवनसुवा तस्य उत्पन्न पांच - सयनरंज सीतल, जिनरंज ठाकुर, उवनरंज उदद, धर्मरंज धनेसुर, रिसिकुंवार मिलने। सुवनी दो- सहजरूवा, रैनरूवाअन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो ॥ सहजकुंवार सहस, मिलनकुंवार मदनश्री, नितरंज मानिक, रूपरंज नान्हें, वयनकुंवार वहोडिगु, सिवकुंवार श्रीचन्द्र, दिप्तिरंज देउपति, पियरंज पुना। श्री नाम-रैनरूवा रूपश्री, दिप्तिश्री देउली, अभयरूवा भोली, जयरूवा जैश्री, अल्परूवा अनभा, सुवनरूवा सुहागश्री, नैनरूवा नैनश्री चरुवा, विपकरूवा पेमा, इस्टरूवा ईदा, चेयरूवा चांदो, रूपकुंवार रूपसिरी, सुवनसुवा सुहगा, मैनरूवा मानिकदे, उक्तकुंवार उददु । कर्नरूवा को कुटुम्ब थिरकमपुर, सुवनकुंवार मुनिदास गगरवाड़ो (गाडरवारो) पड़रिया, नयकुंवार धनेसुर, मैनरंजसिरी, भुवनरंज भीषम, सिवकुंवारसिरी, विनैरंज वीरदास, विस्वकुंवार विमल, हंसरूवा हीरा, भयरूवा भाउसिरी, ममलरूवा महासिरी, पियरूवा पदम, सहजरूवा सहगा, रुवनसिरी, सहनरूवा। सहजरूवा तस्य उत्पन्न पांच - लीनकुंवारलषन १४, रैनकुंवार रतनसिरी २१, नन्दकुंवार छीतरू ४४, परसकुंवार पते ३४, हिय रमन रंज प्रदेस ५४ । सुवनी दो-मिलनरूवा, रैनरूवा-अन्मोय जिन श्रेणिकलन मुक्ति गामिनो। सुल्पकुंवार तस्य उत्पन्न पांच - हिय रमनरंज राजा १४७४, सहजरंज सहसु ३३, धुवरंज धनेसुर ४३, कल्पकुंवार सहस २४, साहरंज मिलने ८४ । सुवनी दो - भुवनरूवा, अगमरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। (४६५ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी इच्छरूवा छीता, जैनरमन वषानु उत्पन्न, हिय रमनरूवा हंसा, मिलनरूवा मया, सुवनरूवा सहिवा, मैनरूवा मदन, चरनरूवा चांदा, अषयरूवा, तिलकरंज कौंडिया, सवनरूवा सोनी, लवनरूवा लाडो, अल्पसुवा अनभा, मैनसुवा मानसिरी, लीनसुवा सेठ उदयसिरी की, गुप्तिरूवाधुता, पदमरूवा पदमजिना, लीनरूवा नैना, हियरंजरूवा हर्षिनी, रैनरूवा रूपनी, कमलरंज देउराज, परसरूवा पंवारदे, उक्तरूवा उदा पटवारी की, मिलन सुवा मूंगा, सनतकुंवार सरौतु, सुवनरूवा सिंगारदे, चेयनरूवा चांदो कुरवाई। रैनरूवा तस्य उत्पन्न चार - विगसरंज विमल, भुवनरंज भीषम, मैनरंज मनो, सुवनकुंवार मिलने - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। फुटकर नाम - अल्पकुंवार अमरसिरी, नैनरंज निसा, लीनरंज लाला सिंघई, श्रीवयनरूवा पुनसिरी, विपकरूवा षेमा, कर्मरूवा करमा, कलनकुंवार ठाकुर बेटा मानिक को, दीप्तिरूवा देवसिरी, पैकवार पराथ, पयकुंवार पुनसिरी, मैनकुंवार मांडन, रूपचन्द की बेटी कुंवर बाहिरा, विक्तरूवा वारा। फुटकर - दीप्तिरंज देव, भक्तरूवा भाउसिरी, रैनरूवा ठाकुरसिरी। कुटुम्ब धानराजा को कागपुर, गमनकुंवार राजा कलरंजकुंवार पारू, पिउरंज पुना, वैनरूवा वैदा, पदमकुंवार पदारथ, मैनरूवा मानिक, जैनरूवा जैपाल, कर्नरूवा रूवा, कुंवरश्री, कलरंज कौरा, निलयरूवा जैना, धुवरूवा धनसिरी, कमलरूवा कौरा, जानरूवा जैना, जैकुंवार जैनसिरी, नितकुंवार नैनासिरी, नितरूवा नैनसिरी, हरषरूवा हीरा, मिलनरूवा मदना, बैनकुंवार बसाउन वानपुर, गमनकुंवार गोलालारे अहमदपुर, कुकावली, वड़ोयपुरा। रैनसुवा तस्य उत्पन्न पांच - चेयरंज चांदनु, कर्नरंज कुंवरसिरी, मैनरंज महनसी, उक्तरंज हयरमन, सुवनरंज प्रदेस । सुवनी दो - सहजरूवा, दानरूवा- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। निलयसुवा तस्य उत्पन्न चार - रयनरंज रूपसिरी, जिनरंज जिना, देवरंज पहकरदास, भुवनकुंवार भोजा । सुवनी दो - नितसुवा, पवनसुवाअन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। ॐनमः प्रणम्य उत्पन्न परमानंद आनंद सुभाऊ सिद्ध समय साह, अन्मोय सुभाऊ सहजोपनीत, उत्पन्न सुभाऊ सब्द साह सब्द उक्त प्रियौ ३१३१ अन्मोय दिप्ति उत्पन्न साह रुइया जिन, उत्पन्न उत्पन्न कलन कमल जिन श्रेणि १२१७१४ अन्मोय रुइया जिन, साह उत्पन्न कलन कमल जिन श्रेणि उक्त कमल सब्द प्रियौ ३९९१२ षिपन श्रेणि साह अन्मोय, उत्पन्न सुदिप्ति जिन श्रेणि उक्तस्य प्रियो ४३७७३ निलयरंज चाँदन अन्मोय, विपक श्रेणि साह उत्पन्न समय उत्पन्न सुनंद जिन श्रेणि५७७८४ अन्मोय मेघकुंवार, उत्पन्न जिन श्रेणि कलन अन्मोय रुझ्या जिन उत्पन्न साह ६५७७२ अन्मोय सिवकुंवार, उत्पन्न जिन श्रेणि कलन उत्पन्न साह समयरंज अन्मोय रुइया जिन ७२३७, चेय जिन उत्पन्न साह ६७४, रमनचन्द दिस्ट साह उत्पन्न साह १११, हेमकुंवार साह उत्पन्न ३३, भुवन उत्पन्न साह ८४, सुवनरंज सुव १३३, रमन श्रेणि ७२, उदद लुनही ३९७२, पंडित श्री मैनकुंवार उत्पन्न सुर्क श्री २३१, सहजरमन के अजय रमनसाह उत्पन्न १८७, पयकुंवार भय दिस्ट उत्पन्न पंचाइन साह उत्पन्न श्री ३१, मैनश्री उत्पन्न साह ३४, संधै ठाकुर श्री २७२, पयन १७२,करमश्री विरदहा उक्त अन्मोय दिस्टि उत्पन्न उत्पन्न समय ३६०००, साह अर्क उत्पन्न अर्क छत्तीस ४२७२, कमलावती साह उत्पन्न (४६६) Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी २४७६, उत्पन्न कर्न श्री साह उत्पन्न १२९२, उत्पन्न चरनचर साह उत्पन्न १९२९, हंसश्री २१३१, सुवनश्री २२३२, औकासश्री ५३५, दिप्तिश्री ९९५, सुदिप्ती १०७२, सुर्कश्री १३३३, सर्वार्थश्री २७३७, विंदश्री १११७, अभयसिरी ८४८४, श्री ११२, जोड़ सर्व ३९६०५, पयोग १२१११७, विंदश्री ६१२, समय श्री ३००६, श्री १०, जोड़ सर्व ४३४५३३१ ।। पंडित उदऊ उक्त अन्मोय साह समय ३३१, पंडित सरउ उत्पन्न दिस्टि ४७४, पंडित भीषम उत्पन्न समय उक्त साह ६४, पंडित लषमनु उत्पन्न उक्त समय साह ४४, चरनश्री उक्तसाही १२७, लषनश्री उक्त उत्पन्न ७७४, नयरमन उत्पन्न उक्त साह ६४, विसुनदास अभयरमन ७६, करमचंद अन्मोय नयरमन १४७, धनउक्त उत्पन्न अन्मोद नयरमन २७२, सहस समै साह उत्पन्न १८७, साह समय अन्मोय नयरमन ७४, मानसाह अन्मोय नयरमन १४४, कुंवार साह उत्पन्न १५३, मिलनकुंवार मिलन प्रिये ७२, चेतकुंवार मिलन सुभाउ २४८, निलयरंज उक्त साह २४, अन्मोय रंज उक्त रमन ४२, हियरंज उक्त उक्त रमन ७३४, रैनकुंवार उक्त साह उत्पन्न १८७, रूपरंज उक्त रमन १३३, इच्छकुंवार २७३, साहिकुंवार २५८, रिसि कुंवार १६४, रैनकुंवार १३७, सहजकुंवार २७३ वयकुंवार ८९, धनकुंवार उक्त रमन ३३, गमनरंज उक्त रमन ३२४, उवनरंज उक्त साह मदनश्री ५७, लषनकुंवार उक्त रमन ३२४, सिवकुंवार उत्पन्न रंज १११, लीनकुंवार १०३, हरषरंज २८७, परसकुंवार १७७, रिसि दिप्तिकुंवार १४३, हिययार रंज पस्यते १७, अल्पश्री पट तस्य बहिनें सतसई सर्वांगश्री तस्य उत्पन्न ५६७, हरषश्रेणि हरपति ४५, लीनरंज फूल १६७, उक्त साह विगस १२७, साहकुंवर उक्तसाह अभयरंज प्रदेस ८४ ॥ ॥ इति श्री नाममाला नाम ग्रंथ जी...।। || आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।। ४६७ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री नाममाला जी - दोहा लाय । १ २ नाम माला ग्रन्थ का, वर्णन सुन मन नाम ठाम अरू जाति को, दीन्हों धर्म सुनाय ॥ आत्म ज्ञान जागो जिन्हें, आतम रुचि लौ लाय । आत्म ज्ञान निर्मल किये, मोक्ष लगन जग जाय ॥ आत्म ध्यान रुचि थिर भई, निर्मल कर निज गेह । निर्मल धारा उदय पद, तारन तरन कहेय ॥ जो धारा घट में बहै, जगे ज्ञान की रीति । किरिया कर जग हित धेरै, सो अनुभव की प्रीति ॥ अनुभव ही शुद्धात्मा, अनुभव अनुभव आतम ज्ञान का अनुभव पांचों ज्ञान ॥ ५. 11 अनुभव केवल ज्ञान हैं, द्वादशांग विस्तार । ३ ४ आत्म कमान । पायो भवदधि पार ॥ " जिन जिनने अनुभव लिया, नाम ठाम उन जीव के कहे ग्रंथ में सोय । जाति पांति पदवी सहित, खोल नयन अवलोय ॥ देखो अपनी जाति पद, लखो आपनो रूप । पर्यय दृष्टि विकार तज, आप बनों जग भूप ॥ आत्म नाम चेतन कहयो, दर्स ज्ञान मय देह में, सह कुटुम्ब औ राज सह पुत्री अपने ६ ७ ॥ || ॥ 11 ॥ 11 ८ 11 ९ || मोक्ष धाम शुभ ठाम । कर्यो सुभग विश्राम || मातु पिता सुत दार | पति सहित, धरौ धर्म हितकार ॥ १० ॥ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाममाला जी दोहा लाख तियालीस पांच अरु, चालिस और हजार । कहे तीन सौ तीस नर, ऊपर एक निहार ॥ ११ ॥ (४३४५३३१) नाम :उदउ सरउ और भीषमा, लखन चरन नय राम । विसुन अभय व रमन सिरी, शाहकुमार सु नाम ॥ १२ ॥ मदन वयन धनकुंवर जे, चेतन भानु कुंवार । निलय रमन इच्छ करम मिल, नाम अनेक सु सार ॥ १३ ॥ कमल श्री अरु नयन सिरी, रूपसिरी है सोय । वीर श्री चन्दन सिरी, अलख अनोखी जोय ॥ १४ ॥ इन आदिक सुवनी सहित, सकल संघ अवलोय । तारण स्वामी पंथ की, धर्म देशना होय ॥ १५ ॥ चरनागर अरु दुसके, गोलालारे असैटी जान । समैया अयोध्या संग लै, षट् संघ समय बखान ॥ १६ ॥ तारण स्वामी श्री गुरू, जाति पांति गढ़ तोड़ । आत्म धर्म की घोषणा, मिथ्यामत को मोड़ ॥ १७ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चन्द पारु औ लखाउरी, मढ़ा ललोई जान । __कहत इटावा नाम से, गुर्जर से गुजरान ॥ २० ॥ सेवपारु सेगोन के, लिंग छितरू पारु । मान वरडी औ घटू, बाम्हौरी विस्तारु ॥ २१ ॥ चन्देरी विरधा कह्यौ, कह्यौ खडैहो ग्राम । खेड़ो खाम कुकाउली, पदरथपुर बसऊ ठाम ॥ २२ वढ़वारे दुदये विरदहा, पिपरिया परसोंगी सोय । चांदो महोड़ा छीउली, मुड़ियाखेड़ो जोय ॥ २३ करमावाड़ी औ बसऊ, पुरहा और सिरोंज । अहमद और शिकारपुर, गढ़ा रतनपुर ओज ॥ २४ घाटम अहूं उगासरो, तूमैन हांसो इकवास । ग्यारसपुर माइन सहित, पामाखेड़ी खास ॥ २५ कागापुर सागर बड़ो, पाटन धनेसुर ठौर । सिलवानी औ कोड़िया, वारां कुरवाई और ॥ २६ तिभुवा पनपारू रहे, सनाई मानोरा ग्राम । उरइ महेसुर चारुवा, सेमरखेड़ी नाम ॥ २७ ॥ पनपारू औ वानपुर, जयपुर पुष्कर वास । आस पास जेते रहें, कीनों तिन में वास ॥ २८ ॥ ठाम :संवत् पन्द्रह सौ पांच में, जन्म पुष्पावति ग्राम । साढ़े छ्यासठ बरस लौ, धरियौ आतम राम ॥ १८ ॥ पन्द्रह ऊपर बहत्तरा, जेठ षष्ट तिथि श्याम । जन तन से नेहा तजो, सरवारथ कर ठाम ॥ १९ ॥ पद:राजा दादे राणा नान्हें नरपति, चौधरी और सेठ सह, पचहाड़ा मंडरीक । परतीक ॥ १ ॥ (४६८) Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री नाममाला जी दोहा पटवारी पटवारिनी, सिंधी और सिंधैन / राऊ रानी चौधरन, माते अरु मातेन // 2 // पांडे पंडा इन कही, ज्ञानी ध्यानी सोय / रथी कुवैती आदि सब, वैद्य गुनी अवलोय // 3 // परवारे रतनागरे चरनागरे अजध्या वासी और / ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मिल, दीन्हों आत्म प्रबोध // 4 // तेली वैश्य गहोई या, ठाकुर है राठौर / / कायथ घोसी माहुरा, गोलालारे और // 5 // गोलापूरव दोसके, लाल असहटी जान / ओसवाल पुरवाल मिलि, तारण पंथीय इकतान // 6 // इस प्रकार षट् संघ की, रचना कर इक ठौर / नाम समैया धर कह्यो, भारत में चहुंओर // 7 // पुष्पावती में जन्म ले, सेमरखेड़ी तज राग / आत्म ध्यान निसई धर्यो, जग्यो परम वैराग // 8 // विहरत देश विदेश में, सूखा कर विश्राम / गगन सकल चुम्बत रहै, चैत्यालय शुभ ठाम // 9 // ध्यानाध्यन जहं करत हैं, निशदिन ध्यान मनोज्ञ / कारण्य वन दग्धियो, मन वच तन कर योग // 10 // सिद्ध भूमि सुहावनी, मंगलमय सुखदाय / धर्म ध्यान नित प्रति करो, गुरुपद शीश नवाय // 11 // श्री शुभ सम्वत् 2043 मिती श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी का शुद्ध मूल पाठ सम्पादन श्री निसई जी तीर्थक्षेत्र पर सन् 1986 में सम्पन्न हुआ था। इसमें विशेष उपलब्धि आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज के संघ में सात मुनि - श्री हेमनन्दि मुनि, श्री चन्द्रगुप्त मुनि, श्री समंतभद्र मुनि, श्री चित्रगुप्त मुनि, श्री समाधिगुप्त मुनि, श्री जयकीर्ति मुनि, श्री भुवनन्द मुनि तथा 36 आर्यिका, 231 ब्रह्मचारिणी बहिनें, 60 ब्रह्मचारी व्रती श्रावक एवं अन्य श्रावकों का भी उल्लेख प्राप्त हुआ। यह सम्पादन फैजपुर (महाराष्ट्र) से प्राप्त वि.सं. 1585 -1590 की एवं गंजबासौदा से प्राप्त वि.सं.१५७२ की एवं अन्य हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर किया गया था, समापन श्री शुभ मिति कुंवार सुदी 15 संवत् 2043 को सानन्द सम्पन्न हुआ। ___ सन् 2011 में श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी के पुन: प्रकाशन हेतु पूर्व प्रकाशन मे छपाई सम्बंधी अशुद्धियों को सुधारकर शुद्ध एवं आदर्श प्रति तैयार की गई। इस पुनीत कार्य में सभी साधकजनों एवं सभी विद्वतजनों का सहयोग प्राप्त हुआ। // इति शुभम् // विनम्र सम्पादन TOGT // इति दोहा श्री नाममाला जी ग्रन्ध / (46)