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श्री ममल पाहुजी
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
(२०) वैराग फूलबा
गाथा ३७९ से ३९९ तक (विषय: पाँच ज्ञान, चार दर्शन, संसार शरीर भोगों से वैराग्य) उव उवनउ हो न्यान सहाउ, विंद संजोए विदियऊ । लोया हो लोय प्रमानु, नंतानंत विन्यान मऊ ॥ १ ॥ अर्थह हो तिअर्थ संजुत्तु, अर्थति अर्थह पूरियऊ । मइ सुइ हो अवहि सहाऊ, पंच न्यान पद विंद मऊ ॥ २ ॥ न्यानी हो न्यान संजुत्तु, दर्सन दिस्टिहि दिस्टियो। दर्सन हो दर्सिउ लोय, संमिक दर्सन समय मऊ ॥ ३ ॥ अनंतह हो दर्सन दिस्टि, लोयालोय सु न्यान मऊ । अर्थह हो तिअर्थह जोउ, पंच दिप्ति परमिस्टि पऊ ॥ ४ ॥ दर्सिउ हो ममल सहाउ, न्यान विन्यान सु दिस्टि मऊ । अप्पा हो अप्प सहाउ, सहजनंद चेयन सहिऊ ॥ ५ ॥ बारह हो पयोग संजुत्तु, न्यान अन्मोयह ममल पऊ । न्यानी हो न्यान सहाउ, भय विनासु भवु जु मुनहु ॥ ६ ॥ ससंकह हो रहिउ निसंकु, कंष्या रहित सु ममल पऊ। जोइय हो जोउ सु इस्टु, अनिस्टह सरनि विमुक्कु परा ॥ ७ ॥ पर पर्जय हो दिस्टि न देइ, न्यान अन्मोय सु ममल पऊ। परिनै हो न्यान सहाउ, अवयासह नंतानंत पऊ ॥ ८ ॥ जोइय हो जोउ अनंतु, दर्सन दिस्टि सु न्यान मऊ । विंदहि हो लोयालोय, नंतानंत सु ममल सरू ॥ ९ ॥
दर्सन हो चौविहि उत्तु, चष्यह दर्सिउ मल रहिऊ। कम्मह हो उवन सहाउ, दिस्टिहि विलियौ कम्मु सुइ॥ १० ॥ कम्मु जु हो तस्कर उत्तु, चेयन दिस्टिहि गलि गयऊ । अचष्यह हो दिस्टि अनंतु, कम्मु कलंक विवर्जियऊ ॥ ११ ॥ कम्मु जु हो वंदोर संजुत्तु, घाय कम्म सो जिनु भनिऊ । आवर्नह हो न्यान सहाउ, न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १२ ॥ अवहिहि हो दिस्टि सहाउ, गुरु गुपितह रुचियो न्यान समु। अन्यानह हो अन्मोय संजुत्तु, पर्जय रत्तउ सरनि परा ॥ १३ ॥ विरोह हो चयन दिस्टि, अन्मोय संजोउ न दिस्टियऊ । कम्मह हो कम्म सहाउ, न्यान अन्मोयह विलय गऊ ॥ १४ ॥ त्रिविधि हो कम्म उपत्ति, न्यान अन्मोयह अर्थ परा। अर्थह हो तिअर्थह जोउ, न्यान अन्मोयह षिपि गयऊ ॥ १५ ॥ वैरागह हो उवनउ भाउ, संसारह सरनि विमुक्कु परा । सरीरह हो सरड़ सहाउ, न्यान दिस्टि विलयंत परा ॥ १६ ॥ भोगह हो भोउ उवभोउ, कल लंकृत कम्मु जु ऊपजड़ । कम्मह हो कम्म सहाउ, न्यान अन्मोयह विलय गयऊ ॥ १७ ॥ अवहि जु हो देसा उत्तु, न्यान अन्मोयह परिनवै । न्यानी हो न्यान अन्मोय, परम अवहि सो ममलु मुनी ॥ १८ ॥ मन पर्जय हो अंकुर उत्तु, रिजुमति विपुल उवन्न सुई। वैरागह हो तिविहि संजुत्तु, ग्रंथ मुक्कु निग्रंथ मुनी ॥ १९ ॥
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