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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी सुइ उवन उवने उवन जिनवर,
सह समय मुक्ति पयासिनो ॥ सिय सहन साह सु उवन धुव निहि,
धुव नंत रमन विलासु । सुइ ममल कमल सु उवन धुव जिनु,
धुव उवने मुक्ति निवासु । परम तत्तु पद विंद मौ ॥ १ ॥
॥बनिजारे हो.॥ धुव उवने कमल विलासु,
सुइ सुवन श्रवन सम समय जिनु, बनिजारे हो । हिय षट् रमन निवासु,
अर्क विंद आगंतु जिनु, बनिजारे हो । हिय हुव रमन विलासु,
सुइ सुवन उवन जिन जिनय जिनु, बनिजारे हो । सुइ सुवन उवन विगसंतु विलसंतु,
अवयास नंत पयासिनो ॥ सुइ नंत ढलन ढलन्तु जिनवर,
___ मुक्ति ढलन निवासिनो । सुइ मुक्ति सौष्य सु नंद नंदितु,
नंद रमन विलासिनो ॥ सुइ दिप्ति दिस्टि सु दिस्टि दिप्तिहि,
दिप्ति नंत प्रकासिनो ।
सुइ सुर्य दिप्ति सु दिस्टि सुइ जिनु,
भय विलय अभय विलासु ॥ सुइ भव्वु उवन उर्वन निहि जिनु,
सुइ सुर्कह मुक्ति विलासु । परम निरंजन परम मौ ॥ २ ॥
॥बनिजारे हो.॥ सुइ अर्थह अर्थ जिनुत्तु,
अर्थ समर्थ सदर्थ जिनु, बनिजारे हो । सुइ सहन साह अवयास,
__अवयास नंत अन्मोय मौ, बनिजारे हो ॥ सुइ षिपिगौ मुक्ति विलास,
नंत चतुस्टै सौष्य मौ, बनिजारे हो । सुइ नंत सौष्य उनु जिनवर,
नंत समय विगासिनो ॥ जं क्रिनि कमलह परिसु लोहए,
अमिय मुक्ति विलासिनो । सुइ विषय नंतु सु अमिय विलयौ,
सिय सिद्धि मुक्ति विगासिनो ॥ सुइ मलय नंत प्रवेसु जिनवरु,
नंत समय पयासिनो । सुइ नंत नंत सु विंद रमनह,
सुह नंत मुक्ति विगासु ॥