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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
जिनु भय षिपियं जिनु अमिय पियं,
भय सल्य संक विलयंत । जिनु ममल ममल सुइ विंद रमन रइ, परमिस्टि सिद्धि सम्पत्तु ॥ ३३ ॥
॥जिन उवन.॥
श्री ममल पाहुइ जी जिनु गुपित गमनु तं अमिय रमनु,
भय षिपनिक भव्व स उत्तु । जिनु न्यान रमनु विन्यान गमनु, जिननाथ रमन जिन उत्तु ॥ २९ ॥
॥जिन उवन.॥ जिनु जान इस्टु उत्पन्न दिस्टु,
तं न्यान विन्यान संजुत्तु । परमिस्टि इस्टि सुइ मनपर्जय रय, जिन लोय लोय दर्सतु ॥ ३० ॥
॥जिन उवन.॥ जिन इस्ट पऊ उत्पन्न पऊ,
जिन पय विंदह संजुत्तु । परमिस्टि परम पय न्यान उवन मय, पय विंद मुक्ति दर्संतु ॥ ३१ ॥
॥जिन उवन.॥ अन्मोय न्यान सम समय जानु पय,
विंद विन्यान संजुत्तु । तं तारन तरन मउ अमिय ममल रउ, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ ३२ ॥
॥जिन उवन.॥
(८४) ग्यारह अंग फूलना गाथा १७३२ से १७४८ तक
(विषय : अंग ग्यारह) उव उवन सुयं विंद समय समं,
नै ममल मयं सिय धुव रमनं । सुर उवन सुयं सुइ रमन मयं,
विंद विजन रमन जिन जिनय जिनं ॥
भवियन तं सब्द उवन पय परम पयं ॥ १ ॥ रै रंज उवन रै भय षिपिय रमन पै,
सुइ नंद ममल रस उवन जिनं । हिय रंज उवन पय अमिय रमन मय,
तं विंद रमन उव समय समं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ २ ॥
॥ आचरी॥
(२८६)