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श्री ममल पाहुइ जी
(२) मुक्ति श्री फूलना
गाथा १८ से २७ तक (विषय : औकास, ज्ञान स्वभाव में मुक्ति, ज्ञान स्वभाव की महिमा और उदय) चलि चलहुन हो, मुक्ति सिरी तुम्ह न्यान सहाए । कल लंक्रित हो, कम्म न उपजै ममल सुभाए ॥ जिन जिनवर हो, उत्तो स्वामी परम सुभाए । मुनि मुनहु न हो, भवियनगन तुम्ह अप्प सहाए ॥ १ ॥ तुम्हरी अषय रमन रै नारी हो,
न्यानी भौहौ भौर विनट्ठी । मन हरषिय लो जिन तारन को, ___ जब सब मुक्ति पहुंते हो न्यानी ॥ २ ॥
॥ आचरी॥ सो मनियो हो, उत्तउ जिनु हो ममल सुभाए । धरि धरियो हो, अर्थ तिअर्थह न्यान सहाए । कलि कलियो हो, ममल दिस्टि यहु कमल सुभाए । रै रमियो हो, पंच दिप्ति यहु आद सहाए ॥ ३ ॥
॥तुम्हरी.॥ उदि उदियो हो, इस्ट संजोगे परम सुभाए । दिपि दिपियो हो, परम जोति यह अप्प सहाए । लहि लहियो हो, अंगदि अंगह सुद्ध सुभाए । मै मइयो हो, अंग सर्वगह ममल सहाए ॥ ४ ॥
॥ तुम्हरी.॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी रहि रहियो हो, सुष्यम सहियो ममल सुभाए । गहि गहियो हो, नंतानंत सु गगन सहाए ॥ उगि उगियो हो, ऊर्धह सुद्धह मुक्ति सुभाए । मल रहियो हो, ममल बुद्धि यह विपक सहाए ॥ ५ ॥
॥ तुम्हरी.॥ उव उवनो हो, दिस्टि देइ सो देव सुभाए । सहकारे हो, देइ अनंतु जु अन्मोय सुभाए । दर दरसिउ हो, देइ सु दर्सन न्यान सहाए । औकासह हो, उपजै न्यानु सु रयन सुभाए ॥ ६ ॥
॥तुम्हरी.॥ गुरु गुरुवति हो, लोयालोय सु ममल सुभाए । गुरु गुपित सु हो, दिट्ठउ दीन्हउ चरन सहाए । चरि चरियो हो, ममल दिस्टि यह अप्प सुभाए । तव यरियो हो, सहकारे जिनु सहज सुभाए ॥ ७ ॥
॥तुम्हरी.॥ उप उपजै हो, कम्मु अनंतु अनिस्ट सुभाए । बिपि षिपियो हो, न्यान दिस्टि यहु ममल सहाए ॥ नंद नंदियो हो, चिदानंद जिनु कमल सुभाए । आनंदिउ हो, परम नंद सु मुक्ति सहाए ॥ ८ ॥
॥ तुम्हरी.॥ यहु जानहु हो, भय विनासु सु भव्व सुभाए । पर परजय हो, दिस्टि न देइ सु ममल सुभाए ॥