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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उववन्न हिययार सहयार मऊ । जिनु नंत चतुस्टय संजुत्तु परम जिन विंदरऊ ।। ३३ ।।
॥विन्यान.॥ जिनु न्यान विन्यान सु समय मऊ । सिह समय सिद्धि संपत्तु समय जिन विंदरऊ ॥ ३४ ॥
॥विन्यान.॥ जिन तारन तरन विवान मऊ । सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु सिद्ध जिन विंदरऊ ।। ३५ ॥
॥ विन्यान.॥
श्री ममल पाहुइ जी जं जिनवर उत्तउ अमिय जिनु । भय सल्य संक विलयंतु नंद जिन विंदरऊ ।। २६ ॥
॥ विन्यान.॥ जिन नंद नंद आनंद मऊ । जिन सहजनंद ससहाउ जिनय जिन विंदरऊ ॥ २७ ॥
॥ विन्यान.॥ जिन परमनंद परमप्प पऊ । जिन परम इस्टि दर्सतु इस्ट जिन विंदरऊ ॥ २८ ॥
॥ विन्यान.॥ जिन इस्ट सु इस्ट सु इस्ट पऊ। उववन्न इस्ट दर्संतु सुयं जिन विंदरऊ ॥ २९ ॥
॥ विन्यान.॥ जिन गम्य अगम्य सु नंत पऊ।। जिन नंत नंत दर्संतु रयन जिन विंदरऊ ॥ ३० ॥
॥ विन्यान.॥ जिन अर्थति अर्थह जिनय पऊ । जिन उवनउ नंतानंतु उवन जिन विंदरऊ ॥ ३१ ॥
॥ विन्यान.॥ जिन उवन हियार सु जिनय पऊ । सहयार न्यान सुइ उत्तु सुयं जिन विदरऊ ॥ ३२ ॥
॥ विन्यान.॥
(१९) चषु दर्सन गाथा
गाथा ३५३ से ३७८ तक
(विषय : चक्षु दर्शन की महिमा) भय विनासु भवियनं, न्यानी अन्मोय नंद आनंदं । अन्यान मिच्छ षिपनं, अनिस्ट अन्मोय विरय रूवेन ॥ १ ॥ चयं दर्सन उत्तं, चेतन सहकार कम्म सड़ षिपनं । भय ससंक षिपिऊनं, षिपिऊ संसार सरनि मोहंधं ॥ २ ॥ मल सुभाव संषिपनं, ममलं दिस्टि च कम्म षिपिऊनं । भय षिपनिक सहकारं, ममल सहावेन ममलन्यानस्य ॥ ३ ॥ ममलं ममल उवन्नं, भय षिपिय ससंक विलयंति । कम्म उवन्न विलयं, भय गलियं ममल न्यान सहकारं ॥ ४ ॥
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