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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी (१०७) उबन मिलन प्रिय चौबीसी फूलना
गाथा २२०९से २२३३ तक (विषय ! जनमन का मिलन स्वभाव, दिप्ति अंग-11,
नो उत्पन्न दिप्ति, कलन चरन रमन) जय जयवंतु जयं जय उवने,
जय जय जय जयो जिनंदं । जय समय जय जय उवन जयं जिनु,
जय उवन पियं सिद्धि रत्तं ॥ १ ॥ स्वामी हो बलिहारी तरन जिन केरी,
जिनु जिनय जिनय जिनु पाए । स्वामी हो बलिहारी परम जिन केरी,
मुक्ति रमन जिनु पाए । स्वामी हो बलिहारी अलष जिन केरी,
जिन अगमु अगमु दरसाए । अप्प परम पय परम रमन जिनु, परम मुक्ति रमि राए ॥ २ ॥
॥ आचरी॥ जनगन उत्तु पियं पिय रमनं,
पुहुप वास सम समयं ।
किं प्रियो दुरवास जु बसियो,
___ तेल प्रित पिय विलय सुयं ॥ स्वामी हो बलिहारी तरन जिन केरी,
सरनि रमनि जं विलय सुयं । स्वामी हो बलिहारी अगम जिन केरी,
मुक्ति रमन जं मिलियं ॥ स्वामी हो बलिहारी कलन कमल जिन केरी, __ अधुव विलय धुव उवने ॥ ३ ॥
॥स्वामी.॥ जनगन उत्तु पियं पिय उवने,
पानि प्यास जल जल मिलियं । किं जल षार प्यास डह उवने,
स्वाद रंग जल नहु मिलियं ॥ स्वामी हो बलिहारी समय जिन केरी, समय रमनु जिनु पाए ॥ ४ ॥
॥स्वामी.॥ जनगन उत्तु पियं पिय समयं,
हरद चूनु मिलि रक्त जयं । किं पिय नाम रूव गुन विलयं,
नितक जीवत किं पिय समयं ॥ स्वामी हो बलिहारी रमन जिन केरी, अमिय रमन विष विलयं ॥ ५ ॥
॥स्वामी.॥