________________
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी दत्तु भाउ सुइ नंत समु, दिप्ति दिस्टि दर्सतु । दिस्टि मिलै दिप्तिहि सहिउ, दिस्टि विगस विगसंतु ॥ २१ ॥ दिप्ति दिस्टि तं सुइ रमनु, सब्द उत्तु जिन उत्तु । पय आचरनु सुभाउ मुनि, आहार विन्यान संजुत्तु ॥ २२ ॥ भेषज दानु जु भय रहिउ, बाधा विलय सुभाउ । संसार सरीर सु भोउ मउ, उवभोउ बाध विलयंतु ॥ २३ ॥ अभय दानु तं भय रहिउ, भय विनासु तं भव्वु । अभय रमनु भय विलय सुइ, अभय भय पर्जय विलयंतु ॥ २४ ॥ दत्तु देइ तं ममल पउ, ममल उत्तु जिन उत्तु । पत्त सुभाउ जिन समय मउ, सहयार सिद्धि संपत्तु ॥ २५ ॥ विगसिय जिन पय विहस मउ, पयाचरनु पद विंद । आहारह सुइ मुक्ति दलु, भेषज अव्वावाहु ॥ २६ ॥ अभय दानु सुइ अभय पउ, अभय मुक्ति दर्सतु । पत्त दिस्टि सुइ दिप्ति मउ, सहयार सिद्धि संपत्तु ॥ २७ ॥ पत्तु स उत्तउ विक्त रुइ, न्यान विन्यान स उत्तु ।। विक्त रूव सहकार जिनु, सह समय सिद्धि संपत्तु ॥ २८ ॥ सक्ति रूव अपत्तु मुनि, सहयारह नहु जुत्तु । धुव अधुव सुइ उत्तु समु, सिहु समय नरय संपत्तु ॥ २९ ॥ पत्तु विक्त पर्जय गलिउ, भय सल्य संक विलयतु । पत्तह दत्त सुभाउ मुनि, सह समय सिद्धि संपत्तु ।। ३० ॥
(११)चेतक हियरा फूलना
गाथा १८५ से १९३ तक
(विषय : लक्षण परिणाम, अर्थ पय) उर्वकार उन उन पउ, सुइ नंद अनंदे । विन्यान विंद रस रमनु है, जिन जिनय जिनंदे ॥ जिन जिनियौ कम्मु अनंतु है, जिन रमन सनंदे । सुइ चेयन नंद सनंदु, कमल जिन सहज सनंदे ॥ १ ॥ सो न्यानी तू चाहिलै, हो चेतक हियरा । विन्यान विंद रस रमनु, विपक जिन वेदक हियरा ॥ षट् रमन कमल रस रमनु है, हो चेतक हियरा । तं अमिय रमनु विष गलनु, सुयं जिन वेदक हियरा ॥ भय षिपनिक भवु स उत्तु है, हो चेतक हियरा । लषिमेव रमन परमत्थु, जिनय जिन वेदक हियरा ।। वैदिप्ति हियार रस रमन पउ, हो चेतक हियरा । सिह समय सिद्धि संपत्तु, ममल रस वेदक हियरा ॥ २ ॥
॥आचरी॥ उत्पन्न कमल जिन उत्तु है, उव उवन स उत्तं । परिनामु नंतानंत सुयं सुइ, पिपक स उत्तं ॥ तं कमल कंद जिन उत्तु है, जिन जिनय जिनंदं । तं विंद रमनु विन्यान चरनु, सुइ सहज जिनंदं ॥ ३ ॥
॥सोन्यानी.॥
(१६३)