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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्मोय अर्थ सुइ अर्थ जिनु, सुइ कमल सनंदे । तं षिपियो नंतानंत पयडि, जिन परम जिनंदे ॥ ८ ॥
॥सोन्यानी.॥ सुइ षिपक भाउ सुइ उत्तु जिनु, सुइ जिनय जिनंदे । तं मुक्ति रमनि सिद्धि रत्तु, परम जिन परम सनंदे ॥ तं तरन विवान सहाउ मउ, सम समय सनंदे । सिहु समय सिद्धि संपत्तु, जिनय जिन सहज जिनंदे ॥ ९ ॥
॥सोन्यानी.॥
श्री ममल पाहुइ जी विन्यान न्यान रस रमनु जिनु, सुइ परम सनंदे । तं विंद रमनु विन्यान गमनु, सुइ सहज सविंदे ॥ सुइ अर्क सु अर्क सु अर्क पउ, सुइ लषिय सलष्ये । सर्वार्थ सिद्धि सुइ समय मउ, सुइ परम परिष्ये ॥ ४ ॥
॥सो न्यानी.॥ सो अर्थति अर्थ समर्थ पउ, सम अर्थ सु भवने । सम समय संमत्तु जिनुत्तु, जिनय जिन न्यान श्रवने ।। सहयार अर्थ जिन उत्तु सुइ, अवयास अनंते । तं नंतानंतु अनंतु, अलष जिन जिनय जिनुत्ते ॥ ५ ॥
॥सो न्यानी.॥ अन्मोय अर्थ सुइ ममल पउ, सुइ रमन संजोए । तं षिपियौ नंतानंतु, जिनय जिन न्यान अन्मोए । सुइ रमन सुयं सुइ रमन पउ, सुइ सहज जिनंदे । तं विंद कमल रस रमन, परम जिन परम सनंदे ॥ ६ ॥
॥सो न्यानी.॥ कमल सुभाव जिनुत्तु सुइ, जिन जिनय स उत्ते । सुइ नंतानंतु जिनुत्तु है, कलि कमल पयत्ते ॥ जिन उत्तु जिनुत्तु सु समय मउ, सुइ परिनै उत्ते । सुइ साहिय नंतानंत विसेष, परम जिनु परम पयत्ते ॥ ७ ॥
॥सो न्यानी.॥ सुइ समय सहाउ जिनुत्तु जिनु, सहयार जिनुत्ते । अवयासह नंतानंतु है, तं कमल पयत्ते ॥
(१२) दात्र पात्र विसेष फूलना
गाथा १९४ से २२० तक
(विषय : ३ पात्र, ४ दान का आध्यात्मिक विवेचन) न्यानी न्यान विन्यान मुनी, न्यानी न्यान स उत्तुरिना । न्यान सहावे दर्सियउ, वीरज अप्प सहाउरिना ॥ १ ॥ सूष्यम सहियो सो मुनहु, सूष्यम ममल सहाउरिना । नंत चतुस्टै न्यान मउ, सिद्ध सहाउ स उत्तुरिना ॥ २ ॥ पत्तह दत्त विसेष मुनी, दानह नंत विसेषुरिना । पत्त जु उत्तउ जिनवरहं, दत्तु जु दान संजुत्तुरिना ॥ ३ ॥ पत्तह दत्तु विसेष मुनी, रयनं रयन सरूवरिना । न्यान विन्यान सु समय मउ, पत्त दत्तु जिन उत्तुरिना ॥ ४ ॥ कमल सहावे पत्तु जई, सिद्ध सरूव स उत्तुरिना । कारन कार्जह कमल रुई, दत्तु सहाउ स उत्तुरिना ॥ ५ ॥
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