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श्री ममल पाहुइ जी
(१०) पात्र तीन दान चार रासौ गाथा
गाथा १५५ से १८४ तक
(विषय : पात्र तीन, दान चार, पात्र की विशेषता) तं पय उवन तं उवन मउ, उववंन न्यान सुई उत्तु । उत्तम अवहि उवन पऊ, मधिम सुइ न्यान संजुत्तु ॥ १ ॥ जं जहिन पत्तु उववंन पउ, मति समय संजुत्तु स उत्तु । सहयार समय सुइ उत्तियउ, हिय उवन सब्द दर्सतु ॥ २ ॥ उवनु उवनु जु देइ पउ, हिययार उवन हिय जुत्तु । सहयार उवनु सहाउ लई, हिय उवनु दिप्ति दर्सतु ॥ ३ ॥ उवन दिप्ति सुइ न्यान पउ, तं दिप्ति दिस्टि दसँतु । हिययार दिप्ति तं दिस्टि मउ, हिय उवन उवन जिन उत्तु ॥ ४ ॥ उव उवन दिप्ति सहयार सुड़, सहयार दिस्टि दर्सतु । सहयार सहाउ उववंन रुई, सहयार पंथु जिन उत्तु ॥ ५ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, उत्पन्न उवनु दर्सतु । जन कल मन रंज विलंतु सुइ, दर्सन मोहंध विमुक्कु ॥ ६ ॥ जिन वयनं जिन दर्स मउ, जिन समय सहाउ संजुत्तु । जिन अवयास अन्मोय मउ, जिन षिपक मुक्ति दर्सतु ॥ ७ ॥ मधिम पत्तु हिययार मउ, सहयार उवनु दर्सतु । सहइ संजुत्तउ ममल पउ, पर्जय भय सल्य विलंतु ॥ ८ ॥ हिययार दिप्ति सहयार रई, तं दिस्टि इस्टि दसैंतु । उव उवन दिप्ति सुइ दिप्ति मउ, सहयार उवनु जिन उत्तु ॥ ९ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सहयार दिप्ति हिय उवन पउ, तं दिस्टि इस्टि सुइ संतु । हिययार उवंनु सुभाउ लई, पर पर्जय विलयंतु ॥ १० ॥ जहिन पत्तु उववंन मउ, हिय दिप्ति दिस्टि दर्सतु । उवन हिययार सु समय पउ, तं नंत कम्मु विलयंतु ॥ ११ ॥ जहिन सुभाव स उत्त मउ, पत्त दत्त जिन उत्तु । सुभाइ हिययार उन पउ, दान भाउ जिन उत्तु ॥ १२ ॥ दानं चौविहि उत्तु जिनु, न्यान अहार संजुत्तु । भेषज दानु जु उत्तु जिनु, अभयं भय विलयंतु ॥ १३ ॥ उत्तम पत्तु विसेषु मुनि, उववंनु देइ सुइ नंतु । पर पर्जय विलयंतु सुइ, उववंनु मुक्ति दर्सतु ॥ १४ ॥ जहिन ग्रहन जं न्यान श्री, दान समत्थु संजुत्तु । उववनु पत्तु जं विहसमउ, उवन दिस्टि विगसंतु ॥ १५ ॥ नंद भाउ जो पय पयडै, पद पषलन जिन उत्तु । आहार दानु सुइ नंद मउ, उववंन पत्तु संजुत्तु ॥ १६ ॥ उवन दिस्टि तं दिप्ति मउ, तागा ममल सुभाउ | उत्पन्न भाउ सुइ रमन पउ, उत्पन्न मुक्ति दर्सतु ॥ १७ ॥ मधिम पत्तु जिन उत्तु सुइ, हिययार दिप्ति दिस्टंतु । उवनु देइ सुइ न्यान पउ, पर्जय उववंनु विलंतु ॥ १८ ॥ मधिम पत्तु सु दान मउ, आहार दान जिन उत्तु । पत्त दान सुइ सुष्य मउ, सुइ सूषिम कम्मु विलंतु ॥ १९ ॥ जहिन पत्तु जिन उत्तियउ, दत्त पत्त विन्यानु । विन्यान विंद सुइ सयन पउ, पत्त दत्तु सुइ उत्तु ॥ २० ॥
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