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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
मिलन सुवा तस्य उत्पन्न - रिसिकुंवार २८७, सिवकुंवार रैदनु ३१, षिमकुंवारु ७४, रंजकुंवारु मिलने ८९, रंजरमनु राजा, वैनकुंवारु ब्राम्हण, रैनकुंवारु रूपा, ममलरूवा कूवरी, विगसरूवा वैदा ब्राम्हण, मुक्ति रूवा पांचौ।
श्री नाममाला जी
दर्सश्री तस्य उत्पन्न पांच - निलयरंज उपति १७५८, कनक कुंवारु, सिउकुंवारु २४४, भुवनरंज भीषम २४, अभैकुंवार प्रदेस ७२ । सुवनी तीन - धरमश्री, प्रेमश्री, परमश्री - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो।
अभयश्री तस्य उत्पन्न छह - कलनकुंवार कपिल २७, हरसरंज देवराज ११, रिसिकुंवार करन २१, पियरंज पयराजू २४, सहजरंज प्रदेसी ४४, सुवकुंवार श्रीधुव ३३ । सुवनी तीन-निलयश्री, नीलश्री, नन्दश्री-अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो । सुहश्री तस्य उत्पन्न पांच - रमन कुंवार १२५, रंजकुंवार पातल ११२, रयनरंज पियार वरड़ी ६०, उक्तरंज वरड़ी उरई ३२, अभयरंज प्रदेसी ५४४ । सुवनी दो - सहज सिरी, साह सिरी- अन्मोष जिन मेणि कलन मुक्ति गामिनो।
महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन सहयारश्री, तस्य उत्पन्न पांच - चेयनंद कुंवार चौधरी ७८४, अषय कुंवार घटु ११४, उक्त कंवार उदद ८४, सिय कुंवार मिलने ३०७, धुवकुंवार मिलन १११ । सुवनी तीन - नृतश्री, नीलश्री, निलयश्री- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो।
सहयारश्री की बहिनें दो - अस्कंधश्री, मिलनसुवा १६४२, अस्कंधश्री तस्य उत्पन्न पाँच - विलसकुंवार वैदनु ३०९, कनक कुंवार रैदनु १०१, निलयरंज ८४, उत्पन्न कुंवार ओसवाल १८४, साहिकुंवार मिलने राठौर ११४ । सुवनी दो - रहजरूवा, सहजरूवा - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो।
महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन उवनसिरी, तस्य उत्पन्न - रयनकुंवार रूपा, ममल रूपा कूवरी, विगस रूवा वैदा, चेयरूवा चाँदो, अल्परूपा आमिन, प्रियरूपा पांचौ, मुक्ति रूवा पांचौ।
महा उत्पन्न न्यानश्री अर्जिका पट तारन तरन रमनश्री, तस्य उत्पन्न- महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन उत्पन्नसिरी, तस्य उत्पन्न- उवनसिरी की बहिनें सतसई तीन - मलयसिरी, पदमसिरी, परमसिरी - अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो।
मिलनकं वार मदन चंदेरी, रूपरंज, भेउकुंवार प्रदेसी । सुवनी तीन - नीलसिरी, निलयसिरी, रंजसिरी, सवन जिन रंज उक्ति प्रियो - अन्मोघ जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो। ___महा उत्पन्न न्यानसिरी अर्जिका पट तारन तरन षिपनश्री, तस्य उत्पन्न - सुवनरंज थिरू १५७५, रूपरंज ११४, पदमरंज १८७ । सुवनी तीन - रूप सिरी, सुवनसिरी, षिपनसिरी । विपनसिरी की बहिनें सतसई चार - चित्र सिरी, चरन सिरी, सहन सिरी, निसंक सिरी, तस्य उत्पन्न - निलयरंज चांदन, देवराज, रयनकुंवार प्रदेसी । सुवनी तीन - जयन सिरी, जान सिरी, लषन सिरी- अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो।
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