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श्री छद्मस्थवाणी जी
सुयं सुल्प सुन्न अर्क उत्पन्न सुल्प सुन्न ।। १७ । सुयं सुल्पविंद अनंत सुभाव उत्पन्न सुल्प सुन्न ।। सुयं सुल्प अचिंत, अनंतानंत सुयं सुल्प सुन्न ॥ सुयं सुल्प हितकार अनंत सुभाव सुयं सुल्प सुन्न ।। सुयं सुल्प हुंतकार मुक्ति सुभाव सुयं उत्पन्न सुल्प सुन्न ।। २१ ।।
सुयं सुल्प मुक्ति रमन सुल्प सुन्न सुयं उत्पन्न उत्पन्न दिप्ति उत्पन्न ।। २२ ॥
१८ ।।
१९ ॥
२० ।।
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सुर्य उत्पन्न सुल्प सुन्न अल्प सुन्न सुयं प्रवेस ॥ अल्प सुन्न प्रवेस अल्प सुन्न सुयं अनंत अनंतानंत प्रवेस ।। अल्प सुन्न सुयं धुव प्रवेस, अनंतानंत अल्प सुन्न ।। सुयं उक्त साह अनंतानंत प्रवेस ।। २६ ।
अल्प सुन्न सुयं श्रवण रमण अनंतानंत प्रवेस ।। २७ ।। अल्प सुन्न सुयं सुन्न उत्पन्न अनंतानंत प्रवेस ।। २८ ।। अल्प सुन्न सुल्प सुन्न प्रवेस जय जय जय ।। २९ ।। समोसन साढ़े बारह कोडि बाजे बाजै ॥ ३० ॥ मुक्ति विलास केवल उत्पन्न प्रवेस चार ।। ३१ ।। उत्पन्न चार के चार, चार के सोलह, सोलह के चौबीस, चौबीस
के चौसठि, चौसठि के छ्यानवे ।। ३२ ।।
मुकुट दोई आये, सोने की घुघरी, हीरा पदार्थ जड़ित और
मालें अनंत असमूह उत्पन्न प्रवेस प्रसाद दियौ, जनै पांच छह लियौ ॥ ३३ ॥
२३ ॥ २४ ।
२५ ।।
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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलावती, रुइया जिन, भगतावती, सुवनावती, विगसरंज, रमन श्रेनि, छत्र चारि उत्पन्न सुभाव आये आयरन छत्र, आराध्य छत्र, आलाप छत्र, सर्वांग छत्र ।। ३४ ।। पद तिलक के बैठे सुवृष्ट साढ़े बारह कोडि परम आनंद सुभाव ।। ३५ ।।
चरि चरन चरिय, चरन धुव चरन चरिय अगमु
अथाह असह अलह, सुर उवन चरी ।। ३६ ।। तदि इस्ट उत्पन्न कर्म सुन्न सुइ नष्ट || ३७ ॥ पुग्गव मिलन गलन उत्पन्न ।। ३८ ।। धर्म चलन उत्पन्न सुन्न ।। ३९ ।। अधर्म स्थिति सुन्न उत्पन्न ।। ४० ।।
अवकास औकास उत्पन्न सुन्न अनंतानंत प्रवेस ।। ४९ ।।
उत्पन्न चतुष्टय साह तद् अस्ति इति ।। ४२ ।। वर्तनादि प्रमाण ध्रुव ।। ४३ ।।
सुभ इष्ट सुन्न स्वयं उत्पन्न ।। ४४ । सल्य सुन्न महा अनिष्ट उत्पन्न स्वयं ॥ ४५ ॥ क्रोध सुन्न स्वयं सुष्य उत्पन्न ।। ४६ । स्वयं सल्य आयरन सुन्न ।। ४७ ।। वक्र आराध्य सुन्न स्वयं उत्पन्न ।। ४८ ।।
स्वयं स्वल्प सह साह सुन्न सौच स्वयं उत्पन्न ॥ ४९ ॥
स्वल्प असत साह सुन्न ।। ५० ।।
स्वयं स्वल्प त्रियोग सुन्न संयम उत्पन्न ।। ५१ ।।