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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री छपस्थवाणी जी कर्म सुन्न तप अवगाह ॥ ५२ ॥ स्वयं स्वल्प सुन्न अलह लाह सुन्न ॥ ५३ ॥ सुन्न देह स्वयं ॥ ५४ ॥ अधूव विली ध्रुव उत्पन्न ब्रह्म ॥ ५५ ॥ स्वयं दर्सन विसुद्धयं ॥ ५६ ॥ अर्क उत्पन्न स्वयं विनयं ।। ५७ ॥ स्वल्प स्वयं दोष रहियं चारित्रं ॥ ५८ ॥ विंद अनंत अर्क स्वभाव उत्पन्न ।। ५९ ॥ सुन्न संसार भयं अचिंत अनंतानंत ॥ ६० ॥ स्वयं स्वल्प हितकार दान अनंत स्वभाव ।। ६१ ।। स्वयं देह तप हुतकार मुक्त स्वभाव ॥ ६२ ॥ स्वयं उत्पन्न साह समाधि ॥ ६३ ॥ मुक्ति रमन साह चरण कमल सेव ॥ ६४ ॥ स्वयं दिप्त भक्ति उत्पन्न ।। ६५ ॥ सह साह स्वयं भक्ति उत्पन्न ॥ ६६ ॥ बहुश्रुत स्वयं रमन ।। ६७ ॥ स्वयं उक्त साह अनंतानंत प्रवेस भक्ति ॥ ६८ ॥ आवश्यक कार्य सुयं रमण ॥ ६९ ॥ स सल्य सुन्न मार्ग अनंतानंत प्रवेस ॥ ७० ॥ सजन मिलन प्रति रमन ॥ ७१ ॥
॥ इति नबमोऽधिकारः॥
दसम अधिकार क क का, प प पा, स स सा, र र रा, ल ल ला, ध ध धा, भरनु
औंजनु, भरनु अनंत औंजन, अनंत प्रवेस ॥१॥ दुंदुही सब्द बारह (१२), आयरन पति आयौरे, ऐरापति आयरन पति आराधि देषहुरे! अपनों आइ देषौ चौषठि मुषा आयरन पति, मागधी भाषा, दुंदुही सब्द, उत्पन्न दिव्य धुनि अनंत प्रवेसी ॥२॥ धुव रमन, करनावती आई, कमलावती कहु आई मिली, विनती करतहहिं, आनंद कोड महोछौ अनंत करत हई, उत्पन्न प्रवेस बहुरि बहुरि एक आरते मांगतु, निबांछने करतु, अनंत आभरन पहिरे, उत्पन्न प्रवेस उत्पन्न आयरन त्रिजोग कलस ॥ ३॥ उत्पन्न उत्पन्न आयरन उत्पन्न, अनंत आयरन अनंत उत्पन्न प्रवेस, आयरन त्रिलोकनाथ, अनंत प्रवेसी, अनंतानंत प्रवेस ।। ४ ।। अनंतानंतनाथ, अनंतानंत सासुते सुन्न प्रवेस पात्र पात्र पात्र उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न, आयरन जिनुत्तं लाइये, आराधि धरिय सम्हार, आलाप जिन सन्मुष भये, तं पात्र नंत विचारि, जिनवर सुल्प साह सम्हारि ॥ ५ ॥ जान तीनि (३), रयन तीनि (३), उत्पन्न ज्वाला, उत्पन्न वाऊ, उत्पन्न अग्नि ज्वाला बलात्, काल चौथो सम्पूर्न संजोग अबलबली उत्पन्न परसि, उत्पन्न हितकार परसि, उत्पन्न सहकार परसि, उत्पन्न साह परसि, उत्पन्न सर्वांग परसि-उत्पन्न परसि पांच । आयरन सब्द, आराध्य सब्द, आलाप सब्द, साह सब्द, सुवन सब्द, उत्पन्न सब्द, प्रवेस सब्द, नो उत्पन्न जो उत्पन्नी कही सो होई॥ ६॥
॥ इति दसमोऽधिकारः॥