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श्री ममल पाहुइ जी परपंच नंत नंतं, पर्जय सहकार ससंक सल्यं च । पर पर्जय संक सहावं, न्यानं अन्मोय संक विलयंति ॥ १७ ॥ अचष्यं ससंक सहियं, जिन उत्तं भयभीउ ऊसर सर पसरं । दिट्ठी चंचल चवलं, भय षिपनिक सल्य संक विलयंति ॥ १८ ॥ अचष्यं ससंक सहावं, जिन उत्तं वयन अनंत भय उत्तं । दिस्टि अंग पदर्थं, वंकज रूवेन प्रपंच पर्जावं ॥ १९ ॥ वयनं च कम्म सल्यं, उत्पन्नं अनंत वेयनं उत्तं । अन्यानं पर्जय दिट्ठी, न्यानं अन्मोय ससंक विलयंति ॥ २० ॥ अचष्यं विभ्रम सहियं, अनंत रूवेन पर्जाव संक सल्यं च । विभ्रम नंत अनंतं, ममलं अन्मोय विभ्रमं विलयं ।। २१ ।। अचष्यं विभ्रम सहियं, ज्योतिष कलाप प्रपंच दसति । अनेयं भयभीयं, न्यानं अन्मोय विभ्रमं विलयं ॥ २२ ॥ अचयं सहाव स उत्तं, जनरंजन सहाव ससंक उप्पत्ती । जन उत्तं जन सहियं, न्यानं अन्मोय जनरंजनं विलयं ।। २३ ।। अचयं विसेष उत्तं, जन सहकार पर्जाव परु पिच्छं । अचष्यं ममल स उत्तं, न्यानं अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ २४ ॥ जन उत्तं सक सहियं, कल पर्जाव दिस्टि संदर्स । जिन उत्तं सुद्ध सारं, न्यानं अन्मोय विकल्पं विलयं ॥ २५ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (३५) सर्वार्थ सिद्धि छंद गाथा
गाथा ६७६ से ६८९ तक
(विषय! न्यान ५, दृष्टि १४, विषय २७) पय उववन्न परम परमिस्टिहि,
इस्टी दिस्टि च परम ममल अन्मोयह । पय संजोय अलषु तं लषियो,
भय षिपनिक अन्मोय ममल सहकारहं ॥ १ ॥ जं उववन्नु नंत अनंतह,
लोयालोय ममल सुद्ध अन्मोयह । तं भय षिपिय नंत जिन उत्तह,
पय कलन कमल न्यान सहकारहं ॥ २ ॥ उवन उवन नंत नंत सिद्धि सुद्ध ममल उत्त सुत्तऊ,
विन्यान न्यान सुद्ध झान विंद विंद सुद्ध सिद्धि जुत्तऊ । कंमट्ठ गट्ठ तं अनिट्ठ समल चित्त उत्त जुत्तऊ,
सु न्यान दिस्टि परम इस्टि ममल न्यान छिनिऊ ॥ ३ ॥ सर्वार्थसिद्धि लोयलोय अर्थ उत्त विंद विंद दर्सिऊ,
विन्यान न्यान सहज रूव परम नंद नंदिऊ । ॐकार विंद सहज नंद ममल न्यान उत्तऊ,
सु ममल भाव कमल उत्तु सिद्धि कमल जुत्तऊ ।। ४ ।। तं भौह उत्तु भय अनंतु पर पर्जाव जुत्तऊ,
तं न्यान उत्तु भय विनासु भौह भय विनट्ठिऊ । सो भव्वु जानि गुन निहानि ममल भाव जुत्तऊ,
सरूव रूव विक्त रूव परम रूव जुत्तऊ ॥ ५ ॥
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