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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
जं भय विरत्तु षिपक उत्तु सो भय विनासु भव्वऊ,
सो अभय उत्तु ममल चित्तु तिविहि कम्म गलंतऊ । जो तत्तु उत्तु परम पत्तु उत्पन्न न्यान संजुत्तऊ, सो कमल उत्तु मुक्ति पंथु सिद्धि सुह सम्पत्तऊ ॥ १२ ॥
-घत्ताइय विसेष संजुत्तऊ, न्यान मई अनुरत्तऊ । तं कमल भाव संजुत्तऊ, ममल मुक्ति सम्पत्तऊ ॥ १३ ॥ नाना प्रकार न्यान सहिउ, नंतानंत सु ममल पऊ । भय विनासु भवु जु मुनहु, भय षिपिय मुक्ति संपत्तऊ ॥ १४ ॥
श्री ममल पाहुइ जी जं भय विनासु सल्य मुक्कु ससंक भय गलंतऊ,
निसंक भाउ अप्प सहाउ पर पर्जाव मुक्कऊ । तं नंत न्यान ममल झान कम्म मल विमुक्कऊ,
सो भय विनासु भवु उत्तु सिद्धि सुह संजुत्तऊ ॥ ६ ॥ जं भय विनासु भौह मुक्कु अभय दिस्टि दिस्टिऊ,
तं दिस्टि इस्टि रिस्टि उस्टि ममल दिस्टि रिस्टि जुत्तऊ । तं दर्स दर्स चष्य दर्स लोयलोय दिस्टि इस्टि दर्सिऊ,
सो झान दिस्टि परम इस्टि समल दिस्टि विमुक्कऊ ॥ ७ ॥ सु दिस्टि सुद्ध सुद्ध न्यान ममल दिस्टि इस्टि दर्सिऊ,
सु सुद्ध पंथ नंत थान भय विनस्ट दिस्टि दिस्टिऊ । अलषु लषु न्यान सुद्ध सहकार नासिका स उत्तऊ,
सुर्य सुद्ध ममल अस्कंध सुद्ध न्यान दर्सिऊ ॥ ८ ॥ दुरिस्ट नस्ट दुरस्कन्ध दुसह भय स उत्तऊ,
सो भय विनस्ट न्यान इस्ट ममल भाव जुत्तऊ । सु न्यान रूव रूव अरूव नासिका स उत्तऊ,
सहकार न्यान तह विन्यान कमल भाव जुत्तऊ ॥ ९ ॥ सो कमल कलिउ ममल मिलिउ न्यान दिस्टि उत्तऊ,
सो कमल उत्तु भय विनासु निसंक रूव जुत्तऊ । सो विवर मुक्कु मुंह विमुक्कु कमल ममल उत्तऊ,
सो वयन सुद्ध जिन स उत्त कमल भय विमुक्कऊ ॥ १० ॥ सो उत्त सुद्ध परिनै जुत्तु परम निह कलंकऊ,
जो परम भाउ जिन सहाउ ममल भाउ जुत्तऊ । सो कम्मु मुक्कु सल्य तिक्त मिथ्या मय विरत्तऊ,
सो न्यान दिस्टि इस्टि इस्टि ममल कमल उत्तऊ ॥ ११ ॥
(३६) अचष्य मनरंजन गाथा
गाथा ६९० से ७१९ तक (विषय : लक्षण परिणाम, भव हरित परिणाम, मन रंजन के विषय,
शास्त्र के भेद - प्रभेद, शुभाशुभ पर्याय के त्याग से मुक्ति) अचष्य सुभावं सहियं, कल सहकार पर्जाव दिस्टं च । पर्जय सरनि सक सल्यं, न्यानं अन्मोय पर्जाव गलियं च ॥ १ ॥ अचष्यं अनंत विसेषं, कलरंजन दोष दिस्टि सहकारं । जिन उत्त न्यान अन्मोयं, कलरंजन दोष नंत विलयति ॥ २ ॥ मनरंजन अचष्य रूवं, मन सहकारेन विषय पर्जावं । पर पर्जय सल्य सु विषयं, मनरंजन गलिय न्यान अन्मोयं ॥ ३ ॥ मनरंजनं च सहावं, अनेय कस्टं च अन्मोय उत्तं च । तव क्रियं च पर्जावं, मनरंजन विलय न्यान अन्मोयं ॥ ४ ॥
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