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श्री छग्रस्थवाणी जी वेगे होहु रे ! वेगे होहु ! वेगे होहु रे ! वेगि लेहु यह जिन पद आहि ॥ ८ ॥ कहों कौन सों? आये तो भलहिं आये, लेह रे, अब लेहु, अपनेइ ही को कहों, जिनहि जान लेह ॥ ९ ॥ जिन उत्तौ अनंत तीनि लोक अनंत प्रवेस ॥ १० ॥ थरा बटका आरते महोछौ बहुत आये, अनंत महोछौ ॥ ११ ॥ अनंत उत्पन्न प्रवेस अचिंत चिंतामणि अनंत प्रवेसी दयाल प्रसाद समै को दियो सुषेन प्रसाद ।। १२ ।। पाछौ पुरिस छ्यानवे (९६) ॥ १३ ॥ श्री अड़तालीस और श्री पुरिस गुहिनारे अनंत आरते ले आये, कोड महोछौ करत आये, अनंत महोछौ कियो ॥ १४ ॥ उत्पन्नी आयरन आगौनी के लिये ॥ १५ ॥ आनंद तिलकु के बहुड़े ॥ १६ ॥ और दूसरे आये पुरिस छयानवे (९६), श्री अड़तालीस ॥ १७ ॥ गुहिनारे अनंत सीपै तीनि लै आये आरते अनंत कोड करत आये ॥ १८ ॥ दुंदुहि सब्द उत्पन्न अनंत गुडी उछारति आये आगौनी के लिए, महोछौ होन लागौ उत्पन्नी के, आसन सिंहासन बैठारे आरते तिलक महोछौ अनंत कोड के बहुड़े ॥ १९ ॥ आठे शुक्रवार सहज तिलकु उत्पन्न ॥ २० ॥ उत्पन्न प्रवेस धुव कमलावती रुइया जिन विंद ॥ २१ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अगम जिन, रयन जिनु, विगसरंज, सवनावती. भगतावती. रमनावती, रूपचंद, उकतावती, दिप्तिश्री, पं. श्री पसगैयत, विगसावती, अतुलावती, गुप्तकुंवार, षिपकरूवा, उल्हसरूवा, हियरंज रूवा, जैनावती, गौरूवा, हंसावती बाई, भक्ती, आल्हो षेमा, अगमी, धनकुंवार, असापति, लवनरंजु, तेजसिरी, विजैसिरी, दिप्तिरंज, परमलु, ठाकुरश्री, कनकश्री, अभा, पुहपा सिंधैनी, पल्हुवा, षैमलु, ममलसिरी, गुप्तसिरी, गुप्तिरंज की इजा - हंसा पजन, इन्द्रा, विमल की बेटी जयना, षेमु जिनरंज लवन की श्री, षेमल की बहू, देवराज को बेटा, अभय को भैया, अभय की इजा, अरुहदास मदन दाद के श्री रामचन्द, अरुहदास की श्री, अरुह की बेटी पुहपा, भीषमु, मिलन, रूपचंद की श्री, पेमल की श्री, हंसा को बेटा साहिकुंवार नरपति ॥ २२ ॥ जै सुन्न समाधि उत्पन्न साहि ॥ २३ ॥ हुंतकार ३, सुयं सुयं सुयं ॥ २४ ॥ सहजोपनीत सहि साहि लब्धि भवति ॥ २५ ॥ यह भोरौ को आहि रे ! प्रिये आरत किये ॥ २६ ॥ तिलकु रुइया जिन को नाम बार तीनि लियौ, तीनि बार विगसुवो कियो ॥ २७ ॥ स्वामी जी के षट् धारा रहित है और सबाव अभ्यंतर रहतु है ॥ २८ ॥ पेषियो स्वामी जू त्रिलोकनाथ, अनंत तीनि बार विगस प्रवेसी ॥ २९ ॥
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