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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी जिन श्रवन चिंतामनि कर्न समय, जिन रखना रे । जिन सरनि समय विलयंतु, श्रवन जिन रखना रे ॥ २१ ॥ जिन श्रवन चिंतामनि सुव रमनु, जिन रखना रे । जिन सुवन हुवन विलसंतु, सुवन जिन रखना रे ॥ २२ ॥ जिन हिय चिंतामनि हिय हुवनु, जिन रवना रे । जिन हिय हुव सरनि विलंतु, हियं जिन रवना रे ॥ २३ ॥ अवयास चिंतामनि उवन पौ, जिन रखना रे । सुइ मल अवयासु विलंतु, उवन जिन रखना रे ॥ २४ ॥ अवयास जिनय जिनु उवन मौ, जिन रखना रे । अवयास नंत दर्सतु, रमन जिन रखना रे ॥ २५ ॥ सुइ दिप्ति चिंतामनि उवन दिप्ति, जिन रखना रे । उव उवन दिप्ति रस उत्तु, दिप्ति जिन रखना रे ॥ २६ ॥ जिन दिस्टि चिंतामनि दिस्टि उवन, जिन रखना रे । सुइ सरनि दिस्टि विलयंतु, दिस्टि जिन रखना रे ॥ २७ ॥ सुइ सुयं चिंतामनि दिप्ति सुइ, जिन रखना रे । दिपि दिस्टि उवन विलसंतु, उवन जिन रखना रे ॥ २८ ॥ सुइ अभय चिंतामनि उव अभय, जिन रखना रे । जिन अभय सल्य विलयंतु, अभय जिन रवना रे ॥ २९ ॥ जिन सुर्क चिंतामनि सुर्क जिनु, जिन रखना रे । जिन सुर्क सरनि विलयंतु, सुर्क जिन रखना रे ॥ ३० ॥ जिन अर्थ चिंतामनि अर्थ जिनु, जिन रवना रे । सर्वार्थ सुर्क विलसंतु, अर्थ जिन रखना रे ॥ ३१ ॥
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जिन विंद चिंतामनि विंद मौ, जिन रखना रे । जिन विंद विंद दर्संतु, विंद जिन रखना रे ॥ ३२ ॥ जिन विंद चिंतामनि विंद मौ, जिन रखना रे । लघु दीर्घ विंद जिन उत्तु, विंद जिन रखना रे ॥ ३३ ॥ विंद रमन जिन रमन मौ, जिन रखना रे । सम रोम विंद दर्संतु, दर्स जिन रखना रे ॥ ३४ नो उवन चिंतामनि विंद पौ, जिन रखना रे । सुइ विंद समय सम उत्तु, उवन जिन रखना रे ॥ ३५ ॥ जिन नंद चिंतामनि नंद जिनु, जिन रखना रे ।
आनंद समय सम सिद्धि, चेय जिन रखना रे ॥ जिन समय चिंतामनि चिंत जिनु, जिन रखना रे । हिय अलष अगम विलसंतु, हियं जिन रखना रे ॥ जिन अलष चिंतामनि अलष जिनु, जिन रखना रे । जिन अगम उवनु विलसंतु, उवन जिन रखना रे ।। सहयार चिंतामनि सहय जिनु, जिन रखना रे । जिन रमन मुक्ति विलसंतु, साह जिन रवना रे ॥ ३९ ।। जिन रंज चिंतामनि रंज जिनु, जिन रखना रे । जिन उवन उवन विलसंतु, विलस जिन रवना रे ॥ जिन षिपक चिंतामनि षिपक पिउ, जिन रखना रे । जिन ममल सिद्धि संपत्तु, ममल जिन रखना रे ॥ ४१ सुइ अर्क चिंतामनि सिय रमनु, जिन रखना रे । सिय सुयं समं धुव रत्तु, धुवं जिन रखना रे ॥ ४२
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