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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी नोट - यदि आठवें समय में गति बंध का योग न मिले तो नवमीं बार, मरण के अन्तर्मुहूर्त पहले तो अवश्य ही गति बंध हो जाता है । एक त्रिभाग में आयु बंध हो जाने पर आगे के त्रिभागों में गति बंध तो वही रहेगा, किन्तु परिणामों के आधार पर आयु की स्थिति कम या अधिक हो जायेगी। श्री त्रिभंगी सार जी आचरनं दर्सनाचारं, न्यानं चरनस्य वीर्जयं । तपाचार चारित्रं च, दर्सनं सुद्धात्मनं ॥ ६८ ॥ एतत् भावनां क्रित्वा, त्रिभंगी दल निरोधनं । सुद्धात्मा स्व स्वरूपेन, उक्तं च केवलं जिनं ॥ ६९ ॥ जिनवाणी ह्रिदयं चिंते, जिन उक्तं जिनागमं । भव्यात्मा भावये नित्यं, पंथं मुक्ति श्रियं धुवं ॥ ७० ॥ जिन उत्तं सुद्ध तत्त्वार्थ, सुद्धं संमिक् दर्सनं । किंचित् मात्र उवएसं च, जिन तारण मुक्ति कारनं ॥ ७१ ॥ ॥ इति द्वितीयोऽध्यायः समाप्तम् ।। विभाग में गति (आय)बंध का मानचित्र गाथा ३ में 'बर्ष पष्टानि निस्वयं' अर्थात् यदि ६० वर्ष की आयु मानी जाय तो गति बंध का समय निम्न प्रकार आएगा - पहला- ४० वर्ष बीत जाने पर, २० वर्ष शेष रहने पर। दूसरा-६ वर्ष ८ माह शेष रहने पर। तीसरा-२ वर्ष, २ माह, २० दिन शेष रहने पर। चौथा -८ माह, २६ दिन, १६ घंटे शेष रहने पर। पाँचा -२ माह, २८ दिन, २१ घंटे, २० मिनिट शेष रहने पर। छटवा - २९ दिन, १५ घंटे, ६ मिनिट, ४० सेकेण्ड शेष रहने पर। सातवा - ९ दिन, २१ घंटे, २ मिनिट, १३ सेकेण्ड शेष रहने पर। आठवा - ३ दिन, ७ घंटे, ० मिनिट, ४४५ सेकेण्ड शेष रहने पर। भोग भूमि, देव और बारकियों का आयुबंध भोग भूमि में ९ माह पहले, देव और नारकियों की ६ माह पहले से आठ त्रिभागों में गति (आयु) का बंध होता है। देव की आयु ६ माह शेष रहने पर पहला अवसर गति आयु के बंधने का आता है, दूसरा २ माह, तीसरा २० दिन शेष रहने पर समय आता है। इसी क्रम से जीवन के अन्त समय पर्यन्त का जानना। कर्माश्रव के १०८ मेवसमरंभ, समारंभ, आरंभ -३, मन, वचन, काय - ३, कृत, कारित, अनुमोदना-३, क्रोध, मान, माया, लोभ-४, इस प्रकार ३४३ % ९४३% २७४ ४ = १०८ भेद शुभ अशुभ कर्माश्रव के होते हैं। कर्माश्रव के अनुसार आयु के त्रिभाग में गति बन्ध होता है ; तथा गति बंध के समय के परिणामों के अनुसार गति बंध की स्थिति में न्यूनाधिकता हो जाती है। ॥ इति श्री त्रिभंगी सार नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ (१२७)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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