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________________ श्री चौबीस ठाणा जी अर्कस्य गहिर अर्क गम्य, अगम्य, गम्य अर्क। इच्छ, अइच्छ, इच्छ अर्क । ग्रहन, अग्रहन, ग्रहन अर्क। लष्य, अलष्य, लष्य अर्क । धुवस्य उत्पन्न धुव अर्क। रहन उत्पन्न रहन अर्क । सहन, असहन, सहन उत्पन्न अर्क । सहन, असहन उत्पन्न अर्क। रिस्टि, अरिस्टि, रिस्टि उत्पन्न अर्क। रिस्टि, अरिस्टि, रिस्टि अर्क। समय इस्टि, असमय इस्टि, समय इस्टि अर्क। सह इस्टि, असह इस्टि, सह इस्टि उत्पन्न अर्क। उत्पन्न इस्टि अर्क, उत्पन्न उत्पन्न इस्टि अर्क। पद, अपद, पद उत्पन्न अर्क । अर्थ, तिअर्थ, अर्थ उत्पन्न अर्क। अर्थ, समर्थ, अर्थ उत्पन्न अर्क । अर्थ, समय अर्थ,असमय समय उत्पन्न अर्क। सहकार अर्थ, असहकार. सहकार उत्पन्न अर्क। अर्थ औकास, अनंत औकास, उत्पन्न औकास अर्क। अर्थ, असदर्थ, उत्पन्न सदर्थ अर्क । अर्थ, अन्मोद अर्थ । अर्थ अन्मोद, अन्मोद अर्थ उत्पन्न अर्क। अर्थ विपक,अषिपक उत्पन्न षिपक उत्पन्न अर्क। मुक्ति हितकार, उत्पन्न मुक्ति उत्पन्न अर्क। हितस्य उत्पन्न हित अर्क हितकार अर्क ॥ ४॥ सहकार गुपित अर्क गुहिज गुपित न्यान - उत्पन्न अर्क । गपित विन्यान - उत्पन्न अर्क । गुपित कमल - उत्पन्न अर्क। गपित रमन रंज नंद चिदानंद परमानंद - उत्पन्न अर्क । जिन रमन जिन रंज जिननाथ रमन - उत्पन्न अर्क । तीर्थकर प्रभवति तिअर्थ आयरन रमन अन्मोद अबलबली। इस्टि परमिस्टी चौबीस, रत्नत्रय चौबीस, चतुस्टै चौबीस अन्मोद। रमन अबल, विषय अनंत विली - उत्पन्न अर्क । सहकार सहजोपनीत, सहज सुकीय सूषिम - उत्पन्न अर्क । आचरन चरन, न्यान चरन, दर्स अवहि, सम्मत्त श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उपसम, बीजं अनंत- उत्पन्न अर्क । विन्यान वीय पय पदार्थ वीय - उत्पन्न अर्क। अंगदि अंग स्थान दिप्त, दिस्टि - उत्पन्न अर्क। दिप्ति अनंत विसेष दिस्टि अनंत विसेष - उत्पन्न अर्क । लष्य अलप्य लष्य - उत्पन्न अर्क। तिअर्थ अर्थ उत्पन्न तीर्थकर सुभाव अर्क। पदवी साधु - उत्पन्न अर्क । नयोग आचरन - उत्पन्न अर्क । श्री अनंत श्री संमिक चरन - उत्पन्न अर्क। अर्कस्य गुपित गुहिज- उत्पन्न अर्क ॥५॥ अर्कस्य पंच अर्क सुभाव - उत्पन्न अर्क । अर्क सुभावेन अनंत चतुस्टय, छयाल गुन, सिद्ध सुद्ध तीर्थंकर उत्पन्न अर्क सुभाव । अर्क न दिस्यते सुभाव, सर्व सुभाव अर्कन दिस्यते नर्क गतः । पंचम, छट्टम, सप्तम नर्क गति, नीच इतर सुभाव नरक प्रथम, द्वितीय, त्रितिय, चतुर्थ प्रभवनं भवति ।। नर्क सात (७)॥ अर्क सुभाव दिस्टि-इस्टि सुभाव अनंत दिस्टि, एको उद्देस मुहूर्त समय, भय, सल्य, संक, आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम, जनरंजन, कलरंजन, मनरंजन, आवरन न्यान, दर्सन मोहांध, अंतर सुभाव सहितं, जेन केनापि अर्क सुद्ध औकास, संक सल्य, एको उद्देस न दिस्यते, सर्व भाव सहित एको उद्देस सहित प्रथम नरय प्रवेसं भवति॥ सुद्ध दिस्टि अर्क पंच भाव सम्पूर्न, मुहूर्त भय विलिय कछु संका जे जीव सुद्ध दिस्टि अर्क सुभाइ एको उद्देस न दिस्यते, सर्व सहकार प्रथम नरय मुहूर्त समय सुद्ध दिस्टि॥ सुद्ध दिस्टि छीन सुभाइ नर्क सुभाव अनंत अंतर रहित दुष्य असहनी (१३२)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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