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________________ श्री ममल पाहुड़ कलन जी सहयार कमल सुव कर्न स रत्तं, अन्मोय कमल सुइ विंद विन्यान समय दिपि सहियं, सु नंद सहिय हिययार जिनुत्तं । वज्र सुइ श्रेनि अन्मोयं, सह समय कमल कलि मुक्ति संजोयं ।। २६ ।। ॥ उव. ॥ जं सुवन सिरी जिन श्रेनि सहाई रे, सिद्धि सम्पत्तं ॥ २५ ॥ ॥ उव ॥ अन्मोय उवन सुइ कलन रमाई रे । सुइ उवनु रंजु जिन श्रेनि सहाई रे, तं दिप्ति रमन जिन रमनु जिनाई रे ।। २७ ।। ॥ उव. ॥ तं उवन उवनी सुइ सुवन सहाई रे, सुइ नयन सिरी तं पड मन लाई रे । जय जयन सिरी जिन रमन रमाई रे, अन्मोय कलन कर्न मुक्ति लहाई रे ॥ २८ ॥ ॥ उव. ॥ अवयास सिरी जं श्रेनि सहाई रे, तं उवन उवने सुव सप्त सहाई रे । २३५ तं सुवन रंजु सुव सुवन सहाई रे, तं कमल रंजु सहज रंजु सहाई रे ॥ २९ ॥ ॥ उव. ॥ तं मयन रंजु कर्न रंजु सहाई रे, तं तं उवन उवने सुई सहज सुभाई रे, तं निलय सिरी तं न्यान सहाई रे ॥ ३० ॥ ॥ उव ॥ तं उवन उवंनी सुइ सहज सुभाई रे, रमन रंजु लषन रंजु सुभाई रे । श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तं निलय सिरी तं न्यान सहाई रे । तं सहज सिरी जिन जिनय रमाई रे, अन्मोय कर्न सुइ सिद्धि लहाई रे ।। ३१ ।। ॥ उव. ॥ जं दिप्ति सिरी दिपि दिप्ति रमाई रे, लघन रंजु तं तं तं उवन उवने वय रयन सहाई रे । ममल सुभाई रे, रमन रंजु तं ममल सहाई रे ॥ ३२ ॥ ॥ उव ॥ तं रमन रंज तं सुवन सहाई रे, तं सुवनी उवनी सुइ रमन सहाई रे ।
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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