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श्री ममल पाहुइ जी तं षिपन जयन जय लषन जिनाई रे, अन्मोय कलन कर्न सुइ सिद्धि लहाई रे ॥ ३३ ॥
॥ उव. ॥ सुदिप्ति सिरी जिन श्रेनि सहाई रे,
तं उवन उवने उव उवन सहाई रे। तं विपन श्रेनि गमन रंज सुभाई रे, सुवन श्रेनि रमन रंज सहाई रे ॥ ३४ ॥
॥ उव. ॥ उवन रंज लषन श्रेनि सहाई रे,
परम रंजु पर परम सुभाई रे । सुइ सुवनी उवनी उव उवन सुभाई रे, ___ अन्मोय कर्न तं मुक्ति लहाई रे ॥ ३५ ॥
॥ उव. ॥ जं मदन गमन उव उवन श्रेनि सहाई रे,
___ सुइ सुवनी उवनी सुइ न्यान सहाई रे । तं न्यान विन्यान सुव सुवन रमाई रे, अन्मोय कलन कर्न सिद्धि लहाई रे ॥ ३६ ॥
॥ उव. ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (40) भवियन राछड़ो फूलना
गाथा ११८३ से ११९६ तक
(विषय: नन्द-५, अर्थ-३, भय : विली) नंद अनंदह नंद जिनु भवियन, चेयननंद सहाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ सहजनंद ससहाउ लै भवियन, परमानंद सहाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १ ॥ अप्पा अप्पै सो मुनहु भवियन, सुद्धप्पा ममल सरूव ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ परम सुभावह परम मुनि भवियन, नमि परमप्प सहाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ २ ॥ पंच इस्टि परमिस्टि मउ भवियन, श्री सहकार सउत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ लषियो लष्य अलष्य मउ भवियन, षिपनिक रूव अरूव ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ३ ॥ मै मूरति न्यान विन्यान मौ भवियन, नौ उत्पन्न सहाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ समय संजुत्तउ समय मउ भवियन, पं. श्री लषिमन उत्तु ।।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ४ ॥ उर्वकार उवन मौ भवियन, उत्पन्नह उवन सहाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ममल सरूवे ममल पऊ भवियन, पं. श्री लषिमन भाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ५ ॥
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