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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी ह्रींकारह हिययार मौ भवियन, ह्रीं हुतकार सरूव ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । भय षिपिय भव्यु तं मुक्ति पउ भवियन, पं. श्री लषिमन रूव ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ६ ॥ श्रींकारह ससहाउ मुनि भवियन, सहजनन्द ससरूव ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ अमिय सरूवे ममल पर भवियन, पं. श्री लषिमन उत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ७ ॥ उववंन दिस्टि हिययार मौ भवियन, सहकारह ममल सहाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । धम्मह सहियो तिअर्थ मौ भवियन, पं. श्री लषिमन भाउ ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ८ ॥ हिययारह सुभाउ मुनि भवियन, उत्पन्नह रिस्टि संजुत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ सहकारह ममल सहाउ मौ भवियन, भय षिपिय सिद्धि सम्पत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ९ ॥ सहकार इस्टि हिययार मौ भवियन, उववन्नह अमिय सरूव ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु । धम्म सहावे सु सिद्धि पी भवियन, पं. श्री लषिमन सूर ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १० ॥ अर्थति अर्थह ममल पौ भवियन, षट् कमलह संजुत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ।
कमल सहावे रमन मौ भवियन, भय षिपनिक लंकृत उत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ ११ ॥ अर्थति अर्थह भय रहिउ भवियन, भौहह भयह विनासु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ दिस्टि झडप भय गलि गई भवियन, पं. श्री लषिमन सूर ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १२ ॥ जानु उवनौ न्यान पौ भवियन, पद विंदह न्यान विन्यानु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ सर्वन्यह ससहाउ मौ भवियन, भय विनासु तं भव्वु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १३ ॥ अमिय पयोहर परम पौ भवियन, धम्मह ममल विन्यानु ।
___ भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ पं.श्री लषिमन लष्य मौ भवियन, भव्वु सिद्धि सम्पत्तु ।
भवियन गुरू गरूओ जिन नंद जिनु ॥ १४ ॥
(५९) ठहकार फूलना
गाथा ११९७ से १२०४ तक (विषय : पांच अर्थ, कर्म की उत्पत्ति- पिपति, अार, स्वर, व्यंजन) जिन जिनवर हो उत्तउ भवियन ममल सुभाए । जिन जिनियौ हो कम्मु अनंतु जु धम्म सहाए ॥ धरि धरियो हो झान ठान सो ममल सहाए । ठहकारे हो ममल न्यान सो मुक्ति सुभाए ॥ १
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