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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कल लंकृत हो कम्मु जु उपजै समल सहाए । सो न्यान अन्मोयह विलयौ ममल सुभाए ॥ ७ ॥ निसंकह हो संक जु विलयौ धम्म सहाए । ठहकारे हो न्यान विन्यानह ममल सुभाए ॥ भय विनसिय हो भव्वु उवन्नउ ममल सुभाए । विपि कम्मु जु हो मुक्ति पहुंतऊ ममल सुभाए ॥ ८ ॥
श्री ममल पाहुइ जी उप उपजिऊ हो भय विनासु ठहकार सुभाए । जिन वयन जु हो उपजिऊ स्वामी ममल सुभाए ॥ उप उपजिऊ हो कम्मु जु विलयौ धम्म सहाए । षिपि कम्मु जु हो मुक्ति संजोये न्यान सहाए ॥ २ ॥ उव उवनउ हो अर्थति अर्थह ममल सहाए । ठहकारे हो न्यान विन्यान सु धम्म सुभाये ॥ जह कम्मु जु हो उपजिऊ भवियन समल सहाए । जो कम्मु जु हो विलयौ स्वामी न्यान सहाए ॥ ३ ॥ जो चष्य अचष्यह उपजिऊ भवियन अन्यान सहाए । सो कम्मु जु हो विलयौ चेयन धम्म सुभाए ॥ जं जानु उपजिऊ समई ममल सहाए । तं न्यान अन्मोयह मिलियौ ममल सुभाए ॥ ४ ॥ जं न्यान विन्यान उवनऊ ममल सहाए । तं न्यान अनंतु जु दर्सिउ धम्म सुभाए ॥ जं अयर सुर विंजन सहियो ठहकार सहाए । तं दर्सिउ हो दर्सन दिट्टिहि ममल सुभाए ॥ ५ ॥ पद दर्सिउ हो परम तत्तु परमप्प सहाए । विन्यानह हो दर्सिउ विंदु जु धम्म सहाए । पद अर्थ उवन्नऊ समई ठहकार सहाए । तं अर्थति अर्थह जोयो ममल सुभाए ॥ ६ ॥ सम अर्थ संजोए जोयो धम्म सहाए । परमर्थह पद अर्थह ठवियौ न्यान सुभाए ॥
(60) उत्पन्न साहि विवान माथा
गाथा १२०५ से १२३५ तक
(विषय : चार दर्शन की महिमा, विवान पाँच) उव उवन उवन जिन उत्तं, उव उवनं उवन साहि संजुत्तं । उव उवन उवन सुइ रमनं, उवनं सुइ साहि कर्न कमलं च ॥ १ ॥ उवन दिस्टि सुइ रमनं, उवनं सुइ समय समय संजुत्तं । उवन दिस्टि सुइ रमनं, उवनं सुइ कर्न कमल कलनं च ॥ २ ॥ उवन दिस्टि सुइ सुवनं, चौदस संजुत्त कलन जिन रमनं । कलन कर्न अन्मोयं, साहिय सुइ कमल उवन निर्वानं ॥ ३ ॥ दिस्टि चष्य जिन उत्तं, चष्यं सुइ दिस्टि न्यान विन्यानं । विन्यान न्यान सुइ कलनं, कलनं सुइ कर्न कमल जिन उत्तं ॥ ४ ॥ चष्य सुभाव जिनुत्तं, चष्यं सहकार अचष्य जिन भनियं । अचष्य हिययार उवन्न, उवनं सुइ कलन कर्न निर्वानं ॥ ५ ॥ अचष्य अदर्स जिनुत्तं, अदर्स सुइ सरनि कम्म विलयंति । अदर्स सरनि जिन विलयं, दर्सिय सुइ ममल कमल कन च ॥ ६ ॥
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