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श्री ममल पाहुइ जी जिन उवन उवन सुइ सहै पउ, जिन हिय रमन सहंतु । हिययार उवनु जु रमन पउ, षट् रमन ममल साहंतु ॥ १४ ॥ अर्क विंद आगंतु मुनी, जिन हिय हवयार संजुत्तु । जिन रमनु जिन गमनु मुनी, पत्तु भरहु लाहंतु ॥ १५ ॥ उवन सहाव जिन उत्तु पउ, हिययार उवन दर्सतु । उवन हिययार सह सहइ पउ, जिन पत्तु गर्भ सुइ उत्तु ॥ १६ ॥ जिन उववन्न पौ साहियउ, जिन दर्स दस साहंतु । जिन समय सहाव जिन समय मउ, जिन गम अगम पिछंतु ॥ १७ ॥ जिन उत्तु उवन पउ भरिय मउ, सुइ लै गर्भिउ जिन उत्तु । जं भरियौ तं आयरिऊ, तं गर्भ उवन जिन उत्तु ॥ १८ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुइ न्यान रमन सुरयं, उत्पन्न न्यान रमनं । स्रोवर सु सहज उवनं, तं नंत नंत गमनं ॥ ४ ॥
॥स न्यानी.॥ तं पदम परम सुरयं, तं पदम कमल धुरयं । पद विंद परम मिलियं, तं नंत कम्मु गलियं ॥ ५ ॥
॥स न्यानी.॥ महा पद्म सुरं सुरयं, मै सहज न्यान उवनं । हिययार कमल कलनं, तं सिद्धि मुक्ति गमनं ॥ ६ ॥
॥स न्यानी.॥ तिअर्थ अर्थ मिलनं, तं गम्य अगम्य गमनं । तं चरन सहज चरनं, अन्मोय मुक्ति मिलनं ॥ ७ ॥
॥स न्यानी.॥ केवल सुभाव कलियं, तं कमल कंठ मिलियं । हिययार कमल रैयं, तं नंत कम्मु विलयं ॥ ८ ॥
॥स न्यानी.॥ सहयार ईर्ज रितियं, पुंडरिय भाव धुरियं । तं गहिर कमल गहियं, हिययार रमन रमियं ॥ ९ ॥
॥स न्यानी.॥ तं अर्क रवन रवनं, विन्यान विंद भवनं । आगंतु अर्थ मिलनं, जिन अरुह रमन रमनं ॥ १० ॥
॥स न्यानी.॥ हिय हवयार सुरयं, सर्वन्य रमन अयरं । पुंडरिय महा सुरयं, तं गुहिज कमल अयरं ॥ ११ ॥
॥स न्यानी.॥
(९) गर्भ चौबीसी फूलना
गाथा १३० से १५४ तक
(विषय : षट् सरोवर, षट् कमल, षट् देवियां, षट् रमन) जिन जिनयति जिन उवनं, उववंन न्यान रमनं । विन्यान विंद भवन, सुइ ममल मुक्ति मिलनं ॥ १ ॥ स न्यानी जिननाथ रमन रमनं, भय षिपिय भव्यु मिलनं ।। स न्यानी अमिय कमल कलनं, जिन रंजु सिद्धि गमनं ॥ २ ॥
स न्यानी ममल अमिय वयनं ॥ आचरी ॥ जिन गर्भ उत्तु जिनयं, परिनामु नंत ममलं । तं नंत कम्मु गलनं, सुइ न्यान गर्भ मिलनं ॥ ३ ॥
॥ स न्यानी.॥
(१६०)