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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी वज नराच संहनन जं सहिउ, भउ विनासु सुपएसं । तं सरीर औदारिक सहियो, भय षिपिय तरन सुपएसं ॥ ७ ॥
॥हां जू.॥ चष्य अचष्यह जं भौ उपजै, गुहिजह भौ जु अनंतु । तारन तरन सहावह जिनियो, न्यान दिस्टि विलयंतु ॥ ८ ॥
॥हां जू.॥ तारन तरन सहावह विलियो, सल्य संक विलयतु । न्यान विन्यानह ममल सरूवे, भय षिपनिक मुक्ति पहुंतु ॥ ९ ॥
॥हां जू.॥
जिन वयनु उत्तु जिन परिनमउ, जिन उत्तु प्रमान संजुत्तु । जिन दिस्टि इस्टि जिन दिप्ति मउ, जिन दर्स नंत जिन पत्तु ॥ ५ ॥ जिन रस्टि इस्टि जिन सिस्टि मउ,
जिन सह इस्ट उवन संजुत्तु । जिनु समय सहाव जिनु समय मउ,
सहयार नंत जिन उत्तु ॥ ६ ॥ जिन अन्मोय जिन षिपक पर, जिन मुक्त मुक्ति दर्सतु । जिन अर्थह अवयास पउ, अन्मोय अर्थ दिपि जुत्तु ॥ ७ ॥ जिन मुक्ति अर्थ जिन कमल मउ,
जिनु रमन लंक्रित जिन उत्तु । जिन विन्यान सु समय मउ,
जिन न्यान नंत सम चित्तु ॥ ८ ॥ जिन नाना प्रकार सु समय मउ, जिन अन्मोय सुभाव सु इस्टु । जिन षिपक रमन रै रमिय पर, जिन मुक्त मुक्ति दर्सतु ॥ ९ ॥ जिन उवएसिउ उवन मउ, जिन उवनौ उवन सहाउ । उव उवन सहाव परमिस्टि मउ, जिन नै उवन
(८) पात्र गर्भ गाथा गाथा ११२ से १२९ तक
(विषय : पय १२) पात्रं उवन विसेषु मुनि, पत्त सुयं जिन उत्तु । पत्त सहाउ सु न्यान मउ, पत्त गर्भ सम उत्तु ॥ १ ॥ जब जिनु गर्भवास अवतरियो, ऊर्ध ध्यान मनु लायो । दर्सन न्यान चरन तव यरियौ, सिद्धि मुक्ति फलु पायो ॥ २ ॥
॥आचरी॥ जिन उत्तु जिन वयनु मुनि, जिन दर्स सहाउ संजुत्तु । जिन लषु अलषु जिन इस्ट पउ, जिन उवनु उवनु इस्टंतु ॥ ३ ॥ जिन गंमु अगंमु जिन जिनय पउ, जिन अर्थतिअर्थ संउत्तु । जिनु समय सहाउ सु समय मउ, जिनु अवयास दर्स दर्संतु ॥ ४ ॥
जिन नै जिन मै जिन सिय रमनु, जिन धुव ममल सुभाउ । भय षिपनिक भव्वु स उत्तु सुई, अमिय रमन संजुत्तु ॥ ११ ॥ तारन तरन सहाव लई, ममल रमन सिवसंतु । भय षिपनिकु अमिय सु रमन पउ, जिनु पौ उवनु सहंतु ॥ १२ ॥ जिन उवएसिउ सुर रमनु, विंजन विन्यान संजुत्तु । विंजन रमनह सुर रमिउ, पय दर्स परम पय उत्तु ॥ १३ ॥