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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी मनपर्जय हो, जानु उनउ ममल सहाए । रिजु विपुल संजोए, सहियो न्यान सुभाए ॥ १४ ॥
॥ दिपि दिस्टि.॥ षट् कमल तिअर्थ, संजोए दिप्ति उपत्ती । दिपि दिपियो हो, न्यान विन्यानह ममल स उत्तु ॥ पद दर्सिउ हो, परम तत्तु परमिस्टि सहाए । विन्यानह हो, विंदु जु दर्सिउ ममल सुभाए ॥ १५ ॥
॥ दिपि दिस्टि. ॥ सर्वंग जु हो, सर्व सु दर्सिउ ममल सहाए । तं नंता हो, नंत चतुस्टय सहज सुभाए ॥ सो केवल हो, सहियो स्वामी ममल सहाए । विपि कम्मु जु हो, मुक्ति पहुंतउ न्यान सहाए ॥ १६ ॥
|| दिपि दिस्टि. ॥ सो पत्तह हो, दत्त विसेषे परम सुभाए । सो तारन हो, तरन समर्थ जु ममल सुभाए ॥ सो निर्मलु हो, ममल जु केवलु न्यान संजुत्तु । सो न्यान अन्मोयह, स्वामी मुक्ति पहुंतु ॥ १७ ॥
॥ दिपि दिस्टि.॥
(७) विनती फूलना
गाथा १०३ से १११ तक (विषय | औकास, नंद ५, प्रश्नोत्तर शैली में साधना सिद्धांत,
चक्षु-अचक्षु दर्शन, तारण तरण स्वभाव की महिमा) भने विरमु तारन तरन जिन उवने, विनती एक सुनीजै । तुम्ह अन्मोय भव्य जिय उवने, तिन्ह उवएसु कहीजै ॥ १ ॥
हां जू तरन जिन विनती एक सुनीजै ॥ नंद अनंदह चिदानंद जिनु, कम्मु उर्वनु विलीजै । हां जू तरन जिन विनती एक सुनीजै ॥ २ ॥
॥आचरी॥ चौ गै भमत दुष भौ भारी, सुष न कहईं पायौ । ऐसे काल तरन जिन उवने, मुक्ति पंथु दरसायौ ॥ ३ ॥
॥हां जू.॥ कालु पंचमी चपल अनिस्ट है, इस्टि दिस्टि नह उपजै । न्यान बलेन इस्ट संजोए, भय षिपनिक कम्म विलीजै ॥ ४ ॥
॥हां जू.॥ संसय सरनि नंत भी भारी, भयहं दिस्टि भी भमिजै । भय विनासु तं भव्य उवंनऊ, कम्मु उवन्नु विलीजै ॥ ५ ॥
॥हां जू.॥ दव्व कम्मु आवरन ऊपजै, सल्य संक भय उत्तं । न्यान आवर्नु न्यान तं विलियो, भय षिपिय सिद्धि संपत्तं ॥ ६ ॥
॥ हां जू.॥
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