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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी
द्वितीय अध्याय
श्री चौबीस ठाणा जी
अर्क सुभाव उत्पन्न उत्पन्न अर्क। हितकार उत्पन्न उत्पन्न हितकार अर्क। कमल ठकार अर्क। षिपक इस्ट अर्क। षिपक उत्पन्न अर्क। जान इस्ट अर्क। जान उत्पन्न अर्क। पद परम तत्तु परम उत्पन्न। परम तत्तु विसेष उत्पन्न । अवधि न्यान सुयं रमन । मुक्ति सुभाव । संसार सरनि । न्यान विन्यान सरयंति सरनि॥
मुक्ति सुभाव न्यानस्य अंतरं विमुक्त विलयंति। मुक्त स्वभाव भय, सल्य, संक, राग, दोष, गारव, दर्स मोहांध, आवरन, घाति कम्म मल, कषाय, मिथ्या विलीयते॥
सुद्ध बुद्ध विमल केवलं न्यान विसेष न्यान सुभाव, न्यान अन्मोद, बंधन मुक्ति, न्यान अन्मोद अबलबली विषय विलयंति ।।
न्यानेन न्यान अन्मोद मुक्ति गर्ने ।
मुक्ति सुभाव मुक्ति सिदं भवति । तथाहि अर्कन दिस्यते नर्क । जीव अनंतानंत संसारु भ्रमनं करोति। अनंत दुष्यः । जदि अर्क सुभाव भ्रमत - भ्रमत अर्क सुभाव उत्पन्न तदि मनुष्य भवतु । मनुष्य मन षिपत-अर्क सुभाव - न्यान विन्यान कालांतर विली॥
अर्क सुभाव ग्रहनं मुक्ति गामिनो भवतु ॥ नर्कस्य सुभाव भेद गति -१॥
थावर सुभाव विसेष निरूपन -
अस्थान परिनाम, अनंत न्यान मई। न्यान सुभाव । न्यान रमन । न्यान नंद। न्यान रंज। न्यान लब्धि दर्स । अनंत दर्स । न्यान दर्स । विन्यान दर्स। सुभाव दर्स। उत्पन्न दर्स। हितकार दर्स। सहकार दर्स। षिपक दर्स। इस्ट दर्स । उत्पन्न इस्ट दर्स। जान दर्स। पद परम तत्तु दर्स। लष्य दर्स। अलष्य दर्स । गुपित दर्स । चष्य, अचष्य, अवधि, केवल दर्स । लब्धि दर्स । सुर्य लब्धि नितंति न्यान कमल सुभाव।।
कमल रमन । कमल उक्त । कमल परिनै । कमल प्रमान । कमल अर्थ। कमल तिअर्थ । कमल समर्थ । कमल समय अर्थ । कमल सहकार अर्थ । कमल औकास अर्थ । कमल अन्मोद अर्थ । कमल षिपक अर्थ । कमल मुक्ति अर्थ। कमल रमन । कमल लंक्रित । कमल विन्यान । कमल मई कमल । न्यान कमल । नाना प्रकार कमल । अनंत कमल परिनाम कंद अग्र, गिरा कंद अग्र परिनाम । भय विलय परिनाम । अस्थान अंगदि अंग। अस्थान अस्थान न्यान विन्यान, उत्पन्न कमल । कंठ मति कमल। हितकार श्रुति कमल । गुपित अवहि कमल । जान मनपर्जय कमल । पय केवल परिनाम । ममल अनंत तिअर्थ आयरन तीर्थकर । तिअर्थ आवर्न थावर । अस्थान अर्थ लोक अवलोक अनंत परिनाम । न्यान विन्यान अनंतानंत केवल सुभाव । अनंत चतुस्टै सरीर अस्थान परिनाम । दिप्ति अनंत । जं दिप्ति तं दिस्टि। जं अनंत दिप्ति तं अनंत दिस्टि। तस्य आवरन थावर पंच भेद उत्पन्न।
॥ इति थावर सुभाव विसेष निरूपनं ॥
॥ इति प्रथमोऽध्यायः समाप्तम् ॥
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