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________________ श्री चौबीस ठाणा जी अथ अपकाय निरूपन - अप सुभाव उत्पन्न लब्धि । गम्य अगम्य परिनाम । अनंत न्यान दर्स विन्यान षिपक सूषिम रमन । न्यान सुर्य सुर परिनाम उत्पन्न । न्यान रमन सुभाव कमल ठकार रमन परिनाम । ठहकार मुक्ति परिनाम । रेह रमनु इस्ट परिनाम । रेह रमनु उत्पन्न परिनाम । अनंत रेह रमनु न्यान परिनाम । नित निवंतर रमन परिनाम । तत्काल रमन परिनाम । इस्ट उस्ट इस्टि परिनाम । उत्पन्न उस्ट परिनाम । इस्ट दर्स सुर रमन परिनाम । उत्पन्न दर्स परिनाम। इस्ट लष्य परिनाम। उत्पन्न लष्य परिनाम । दर्स लष्य न्यान परिनाम । जीव उत्पन्न आह्वान परिनाम । जिन अर्क रमन उत्पन्न रमन परिनाम । अनंत रमन कमल कन्द परिनाम । कमल अग्र परिनाम । गिरा कंद परिनाम । गिरा अग्र परिनाम । मूल इच्छा परिनाम । गुपित इच्छा परिनाम । जाता उत्पन्न धुव ऊर्ध परिनाम । गम्य अगम्य लंक्रित इस्ट परिनाम । गम्य अगम्य लंक्रित उत्पन्न परिनाम । रमन न्यान सहकार सिद्धि रमन परिनाम । सुर्य स्कंध रमन परिनाम । दुरस्कंध विली सुयं स्कंध परिनाम । न्यान थुति इस्ट उत्पन्न परिनाम । न्यान थुति उत्पन्न इस्ट परिनाम । रमन वरं सेस्ट सहकार उत्पन्न परिनाम । दिस्टि इस्टि: १४ ॥ परिनाम दिस्टि उत्पन्न इस्ट: १४ : परिनाम। झड़प इस्ट उत्पन्न न्यान परिनाम। भय विलय इस्ट उत्पन्न झड़प इस्ट न्यान परिनाम । भय विलय, भय इस्ट विलय, भय उत्पन्न विलय परिनाम । रमन न्यान सुयं रमन अर्क परिनाम । रमन सर्वन्य, सर्व दिसि, सर्व अर्थ, नंत विसेष, अर्थ तिअर्थ, समर्थ, अध्यर, सुर, विंजन, पद, सब्द, अर्थ, सदर्थ, सहकार अर्थ, औकास, अन्मोद विपक, मुक्ति सौष्य अनंत सर्व अर्थ परिनाम । रमन इस्ट उत्पन्न विंद विन्यान अस्मूह परिनाम । सून्य सुभाव रमन । सूष्यम सरि इस्ट रमन । सरि उत्पन्न रमन । मै मूर्ति गम्य अगम्य मुक्ति रमन । सर्वन्य श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सु रमन । मूल उत्पन्न कमल टंकोत्कीर्न रमन । कमल न्यान परम तत्त टंकोत् ईर्ज रमन । इस्ट कमल न्यान परम तत्तु टंकोत् ईर्ज रमन । सुर स्ववर्न उत्पन्न रमन । मै मूरति श्री सास्वत कमल रमन । विन्यान न्यान नित ईर्ज सुभाव रमन । केवल सहकार रमन । इस्ट उत्पन्न उत्पन्न उवंकार रमन । विंद विन्यान नय, उत्पन्न न्यान नय, जिन सुभाव मइ मूर्ति उत्पन्न न्यान, उत्पन्न न्यान परिनाम । अनंत श्री सहकार श्री न्यान श्री मुक्ति सुभाव । मुक्ति श्री धुव रमन न्यान अंतर रहित धुव समयं न अंतर सिय सहकारनो धुव सिद्धं । अप्प परमप्प हितकार षिपक जान इस्ट उत्पन्न इस्ट मुक्ति रमन । न्यान आयरन तीर्थंकर मुक्ति सिद्ध अप्प सहकार न्यान रमन ।। जदि केन विसेष पथ्य जनरंजन, कलरंजन, मनरंजन, दर्सन मोहांध, आवर्न न्यान, भय, सल्य, संक, कषाय मल, मिथ्या सहकार न्यान रमन आवर्न, अंतराइ रहित, रमन अस्थान न्यान परमिस्टी, चतुस्टै, रयनत्रय, अन्मोद सहकारेन विसेष आवर्न, अंतर समय मुहूर्त आवर्न, अंतर सुभाइ अंतर हितकार आवर्न, सहकार आवर्न, हितकार आवर्न, जानु आवर्न, रमन न्यान आवर्न, तदि अप्प काय जीव उत्पन्न पयोग चतुस्टै हीन तदि सुभाव अंतर्मुहूर्त बारह सहस चौबीस (१२०२४) बार भ्रमनं करोति । अनंत काल कलन विसेष न दिस्यते । भ्रमत-भ्रमत जदि कदि परिनाम रमन न्यान अस्थान उत्पन्न होई, तदि काल तदि मुहूर्त तदि समय अप्प सुभाव न्यान रमन उत्पन्न होई, तदि अपकाय मुहर्त षिपनिक लै जस्य परिनाम आयरन अस्थान जदि काल आयरन उत्पन्न रमन भवति । तदिन्यान रमन विसेष कम्म षिपति मुक्ति जन्ति । ॥ इति अपकाय निरूपनं ॥ (१३७)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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