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________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनंत विसेष दिस्टते न्यान विन्यान, अर्क सुभाव, किंछु, सक, सल्य, संक, राग, दोष, बंधान, सहकार न्यान उत्पन्न अर्क सुभाव, किंछ विसेष मुहूर्त तीनि:३: अंतरं न्यान उत्पन्न अर्क न दिस्यते, विस्मरनं भवति तदि त्रितिय नरय पतनं भवति॥ जदि त्रितिय नर्क तदि अर्क सुभाव सहित दुष्य दिस्टि उत्पन्न सहित अनंतानंत सहित अर्कस्य न्यान सहकार अस्तिति आऊ बंधान विपक तुच्छ उत्पन्न भुक्त अर्क सुभावेन चय-मनुष्य गति उत्पन्न ॥ अरमन न्यान सहकार अर्क । न्यान कमल अर्क । न्यान उक्त अर्क । न्यान परिनै अर्क। न्यान प्रमान अर्क। न्यान कमल प्रमान अर्क। न्यान वयन अर्क । न्यान दर्स अर्क । न्यान सुभाव अर्क । न्यान रंज अर्क । न्यान रमन अर्क। न्यान आनंद अर्क । न्यान अन्मोद अर्क । न्यान हितकार अर्क। न्यान सहकार अर्क । न्यान प्रियो अर्क। न्यान दिस्टि अर्क । न्यान कमल अर्क । न्यान कलन अर्क । न्यान मिलन अर्क । न्यान इस्टि अर्क । न्यान रस्टि अर्क। न्यान रिस्टि अर्क। न्यान समड इस्टि अर्क। न्यान सह इस्टि अर्क। न्यान उत्पन्न इस्टि अर्क । न्यान सहकार अर्क । न्यान औकास अर्क । न्यान अनंत अर्क । न्यान अन्मोद अर्क। षिपक अर्क। अर्क न्यान लंक्रित अर्क । न्यान विन्यान न्यान अर्क । न्यान मई अर्क । न्यान अर्क। अर्क अनंत प्रकार । अर्क सुर्य रमन अर्क। अर्क सुर्य मिलन अर्क । अर्क अन्मोद मुक्ति अर्क। आचरन न्यान अंतर रहित अर्क । सहकार हितस्य अर्क। सल्य रहित अर्क। भय रहित अर्क । मल रहित अर्क। कषाय रहित अर्क। मिथ्यात रहित अर्क। विषय रहित अर्क । विलीमान विषय अर्क। अन्यान विली अर्क । न्यान अन्मोद तीर्थकर । तिअर्थ आयरन तीर्थंकर । सहकार अर्क तीर्थंकर । त्रिलोकनाथ तीर्थकर अन्मोद न्यान ।। अकस्य अकं सुभाव अस्थान अस्थान न्यान विन्यान विंद अर्क। षिपक अर्क। सुर्य अस्कंध अर्क। धुव रमन अर्क । कुन्यान विली अर्क । अस्थान हितकार अर्क। पद उत्पन्न अर्क । उत्पन्न उत्पन्न अर्क चेत उत्पन्न अर्क । अस्थान आयरन अर्क। इच्छ गम्य अगम्य गुपित रमन अर्क। पद ईर्ज जाता उत्पन्न तिअर्थ अर्क । मध्यम पद षट् रमन अर्क । उत्पन्न उत्पन्न न्यान विन्यान अर्क। अर्कस्य इस्ट दर्स अर्क । जदि सुभाव इस्ट अर्क तदि उत्पन्न अर्क सुभाव इस्ट । तदि षिपक अर्क। जान विन्यान अर्क। अर्क सुभाव भय विलय। विषय विलय अर्क। अर्कस्य मुक्ति अर्क । जदि अर्क सुभाव न दिस्टते तदि नर्कस्य वीय पततं भवति । जदि अर्क सुभाव सम्पून न दिस्टंति तदि नर्क, अंतर रहित दुष्य अनंत सहित संसारिनो जीव, जदि अर्क अर्क सुभावेन अनंत विसेष प्रतिपून दिस्टयंति॥ जदि कौन एक सुभाव संमिक्ती जीव संक, सल्य, भय, कषाय, राग, दोस, गारव, दर्सन मोहांध विसेषं पर्जाव अर्क मुहूर्त चौ : ४ : न दिस्टति, विस्मरनं भवति तदि नर्क चौथे पतनं करोति ॥ अर्क सुभाव दिस्टि सम्पूर्न लै उत्पन्न नर्क अस्तिति छीन आऊ, तुच्छ आऊ भुक्त, मानसिक दिस्टि सुभाव, दुष्य सहित चय उत्पन्न मनुष्य गति भवतु॥
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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