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श्री चौबीस ठाणा जी नो उत्पन्न नंतानंत अनंत चतुस्टै सहित अर्क, हितकार न दिस्यते स नर्क गतः। अनंतानंत दृष्य दारुन असहनी संसारिनो सुभाव। नर नारकादि दुष्य संतत अनंत विसेष नरक दुतिय ॥
जे जीव सुद्ध दिस्टिनो उत्पन्न अर्कस्य सर्व विसेष अनंतानंत हितकार उत्पन्न न्यान, सुद्ध न्यान, समय न्यान, परिनै न्यान, उत्पन्न न्यान, हितकार न्यान, सहकार न्यान विन्यान, न्यान पद न्यान, अर्थ न्यान, तिअर्थ न्यान, समर्थ न्यान, समय अर्थ न्यान, सहकार न्यान, औकास न्यान, अन्मोद न्यान, कम्म षिपक न्यान, मुक्ति सुभाव अर्क विसेष दिस्टते । सर्व सर्वे हितकार अर्क।
किंछ विसेष किंछ ससंक सक सत्रह इत्यादि -
आसा, स्नेह, लाज, लोभ, भय, गारव, आलस, प्रपंच, विभ्रम, जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्सन मोहांध, न्यानावन, दर्सनावर्न, मोह आवर्न, अंतर सहकार किंछु सुभाइ, अर्क सुभाव मुहूर्त दोई अर्क सुभाव विस्मरते स भव्य नर्क गत: दुतिय नर्क पतनं भवति ।।
जावत् नर्क दूजे, तावत् अर्क सुभाव सहित दिस्टि दुष्य असहनी सहितं, अस्तिति आयु विलीयते, तुच्छ आयु प्रवर्तते आऊगति चय मनुष्य गति ॥
अवधि लै उत्पन्न अर्क सुभाव सहकार - सर्व हितकार न्यान अन्मोद, सुयं उत्पन्न । अन्यान अन्मोद षिपक अन्यान, विरोध दिस्टि, न्यान अन्मोद अबलबली विषय गली। अन्मोद न्यान अबलबलीन्यान, अन्मोद न्यान, समय न्यान, औगाह न्यान, बाधा रहित अवगाहन, अगुरुलघु सुकीय
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुभाव समय सहकार । तारन तरन हितमित परिनत कोमल विसेष अर्क सुभाव । उक्त अन्मोद अनंतानंत - सक सल्य विवर्जित, राग विक्त, दोष विली, गारव षिपक । दर्स, अदर्स, दर्स- माया, मिथ्या, निदान सल्य रहित कषाय मल विली। कषाय जिन कषाय, राग जिन रंज, रंज रमन आनंद सहित विषय विली । दर्स अनंत दर्स, न्यान अनंत, नित चरन, अनंत चरन चारित्र, श्री समय दर्स, श्री समय हिययार, नित श्री संमिक चरन, चारित्र हितकार। अस्थान जस्स कर्मादि सहित, तस्य स्थान न्यान अन्मोद कम्म विलयंति । हितकार न्यान, अन्मोद न्यान, दिस्टि न्यान, इस्टि न्यान, रस्टि न्यान, रिस्टिन्यान, सम इस्टि न्यान, सस्टि न्यान, उत्पन्न दिस्टि न्यान, सहकार दिस्टि न्यान, औकास दिस्टि न्यान, अनंत इस्टि न्यान, अन्मोद इस्टि न्यान, कम्म विली तं मुक्ति ।
इस्टि न्यान - सब्द सर न्यान, असब्द सर न्यान, गुपित सर न्यान प्रगट सर । कमल हितकार, स्थान हितकार, अर्थ हितकार, परिनाम हितकार, उद्देस उत्पन्न हितकार, परिनै उत्पन्न हितकार, प्रमान उत्पन्न हितकार, उत्पन्न उत्पन्न हितकार, उत्पन्न हितकार हितकार, उत्पन्न सहकार हितकार, उत्पन्न विन्यान हितकार , उत्पन्न पय हितकार, उत्पन्न जिन हितकार, उत्पन्न परम जिन हितकार, हितकार कोडाकोडी, हितकार सुन्य सुन्य प्रवेस, कोडाकोडी सहकार हित कोडि अन्मोद न्यान ।।
सक, सल्य, भय विली, उत्पन्न केवल सभाव । मन पर्जय दिस्टि केवल अन्मोद न्यान । तिअर्थ आयरन तीर्थंकर भवति, तिअर्थ हितकार आयरन तीर्थकर, सुयं कलित सुक्ल लेश्या तीर्थकर भवति । अर्कस्य
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