________________
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी अर्थस्य अर्क सर्वन्य अर्थ,
लोकस्य कर्न श्रवनावलोकं । नंतं अनंत धुव नंत सिद्धं,
अन्मोय कर्न सम मुक्ति विंदं ॥ १८ ॥ विंदस्य उवनं विंदं सु समयं,
नंत विंद उवनं श्रवन विंद समयं । नंत कर्न समयं हिय उवन उवनं,
उवनस्य कलनं धुव नंत कमलं ॥ १९ ॥ कमल विंद उवनं सर्वन्य अर्क,
अर्क अनंतं हिय कर्न समयं । हिय उवन कलनं नंत दिप्ति दिपियं,
अन्मोय श्रवनं सम मुक्ति विंदं ॥ २० ॥ मुक्तिस्य विंदं अन्मोय नंदं,
नंदस्य विद्धि कलनस्य चरनं । कलनस्य कलियं हिय गुप्ति उवनं,
गुपितस्य कमलं सम कर्न मुक्तिं ॥ २१ ॥ नंदस्य दिप्तिं दिस्टिं अनंतं,
हिय उवन उवनं गुरु गुपित समयं । गुपितस्य गहिरं उव उवन कमलं,
कमलस्य अन्मोयं सम कर्न मुक्तिं ॥ २२ ॥ आनंद हिययारं अन्मोय कर्न,
कर्न सु समयं हिय उवन उवनं ।
हिय गहिर गुपितं सुइ श्रवन कमलं,
कमलस्य कलनं सम कर्न मुक्तिं ॥ २३ ॥ उववन्न इस्टि विवान सिस्टि,
दिस्टि सु नंतं नंत सुवन उवनं उव उवन चेयं कमलस्य कन,
अन्मोय श्रवनं सम मुक्ति रमनं ॥ २४ ॥ हिय उवन उवन साहं जिननाथ रमनं,
रंजं सनंदं जिन अर्क अर्क । जिन जिनय उवनं जिन नंत समयं,
कर्नस्य श्रवनं हिय मुक्ति रमनं ॥ २५ ॥ अलषस्य लषियं अलषं जिनुत्तं,
__ हिय उवन नंतं कमलं अनंतं । चरनस्य कलनं कलनस्य चरनं,
अलषस्य अर्क सम कर्न मुक्तिं ॥ २६ ॥ अगमस्य गमनं सुइ दिप्ति रमनं,
दिप्तिस्य दिस्टिं उव अगम अगमं । अगमस्य कलनं चरनं अनंतं,
विवान कर्न सुइ उवन मुक्तिं ॥ २७ ॥ सहयार साहं उव नंत ग्राहं,
गहिरस्य गुपितं उव नंत साहं । उव उवन उवनं उवनं विवानं,
विवान कर्न उव मुक्ति सहनं ॥ २८ ॥