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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी
-घत्ताइय उवन सहाउ सु सुवन पऊ,
अमिय पयोहर सुत्तऊ । भय षिपिय भव्वु तं परम जिनु,
सिहु समय सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ १५ ॥
श्री ममल पाहुइ जी सो अर्थ उवन्नऊ समय सहाउ,
हिययार संजुत्तु सु न्यान सहाऊ ॥ ९ ॥ उवनह दर्सिउ नंत अनंतु,
परिनामु न्यान विन्यान संजुत्तु । सो कमलह कमल सहाउ जिनुत्तु,
सो कमल रमन जिन मुक्ति संजुत्तु ॥ १० ॥ अवयासह नंतानंत पउत्तु,
अन्मोय दिस्टि सम समय संजुत्तु । सो न्यान अन्मोयह रसिय जिनुत्तु,
सो अमिय पयोहर मुक्ति संजुत्तु ॥ ११ ॥ संसार सरीर जिन सरनि विमुक्कु,
उववन्नु जिनुत्त दरस दसत । सो सूष्यम परिनड़ षिपनिक उत्तु,
सो न्यान अन्मोयह मुक्ति दसैंतु ॥ १२ ॥ जिन उवनऊ जिनय सहाउ जिनुत्तु,
जिन दर्स वयन जिन समय संजुत्तु । जिनुत्तु निसंक संक विलयंतु,
सो समय संजुत्तउ मुक्ति पहुंतु ॥ १३ ॥ जिनुत्तउ तारन तरन सहाउ,
सो न्यान अन्मोयह ममल सुभाउ । सो तरन सहावे सु समय पउत्तु,
सो न्यान अन्मोयह सिद्धि सम्पत्तु ॥ १४ ॥
(६२) हिययार रमन फूलना
गाथा १२५१ से १२९३ तक (विषय: सिध्द के गुण-८, दर्शन के अंग-८,
चार दर्शन की महिमा, लक्षण परिणाम- १०३२) उव उवनऊ उवन उवन पऊ,
उव उवनऊ न्यान विन्यान, सुर्य जिन ॥ १ ॥ हिययार रमन तं मुक्ति पऊ,
तं मुक्तिहि सिद्ध सरूव सहज रूड़ । हिययार रमन तं मुक्ति पऊ ॥ २ ॥
॥आचरी। जिन जिनयति जिनय जिनेन्द पऊ, जिन जिनियौ कम्मु अनंतु, रमन जिन ॥ ३ ॥
॥ हिय. जिन जिनवर उत्तउ ममल पऊ, तं ममलह सिद्ध सरूव, सहज जिन ॥ ४ ॥
॥ हिय. ॥
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