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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उवनं नंत स गमनं, गमनं सड़ गमिय अगम उव ममलं । ममल उत्तु सम कन, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ २९ ॥ उवनं सुइ दिप्ति दिस्टि, सब्दं सुइ उवन ममल अवयास । जिन उत्त उत्त सुइ कर्न, उवनं सुइ साहि कमल निर्वानं ॥ ३० ॥ तारन तरन सहावं, कलनं सुइ कमल कर्न सुइ चरनं । सिय धुव उत्त जिनुत्तं, कमलं सह समय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ३१ ॥ (६१)जयमाला छंदगाथा गाथा १२३६ से १२५० तक (विषय! अक्षर, स्वर, व्यंजन) उव उववन्नु उव उवन उववन्नऊ, उववन्न दिस्टि उववन्न पऊ । उववन्न समय सुइ सुद्ध पऊ, उववन्न परम जिन उत्त पऊ ॥ १ ॥ उवन उवन्नऊ उवन पउत्तु, उवन्नु जिनुत्तु सु समय संजुत्तु । उवन्नु पउत्तु सु न्यान पयत्तु, सु अष्यर सुर विन्यान संजुत्तु ॥ २ ॥ सु विजन सुर संजोय थुनंतु, सु अष्यर अषय भाऊ दर्संतु । सु अषय सु रमनह अमिय संजुत्तु, सो विष भंजनु सुइ भब्बु स उत्तु ॥ ३ ॥ सो भय षिपनिक सुर रमन पहानु, सो रमियौ रमनह न्यान विन्यानु । सुर सुर्य उवन्नऊ मंत संमत्तु, जिननाथ रमन सुइ समय संजुत्तु ॥ ४ ॥ सो विजन रमियौ सुरह सहाऊ, न फिटै तासु सुयं सुर ग्राहु । सो रमियौ न्यान अन्मोय अनंतु, सो हितमित परिनै समय संजुत्तु ॥ ५ ॥ अष्यर सुर विंजन रमन सहाऊ, सो पय अर्थह सुइ ममल सुभाऊ । सूष्यम सुर उवनऊ पयह पउत्तु, सो उवनऊ परम तत्तु दसैंतु ॥ ६ ॥ पद दर्सेड़ परम तत्तु दर्संतु, सु परम अमिय रस रसिय पउत्तु । सो भय विनासु है जिनह पउत्तु, सो सल्य ससंक भाउ विलयंतु ॥ ७ ॥ सो अभय सहाव जिनुत्तु पउत्तु, उव उवन सहावे दिस्टि दर्संतु । सो पदह स उत्तउ अर्थ सहाउ, सो अर्थति अर्थह समय सहाऊ ॥ ८ ॥ सो जिनह स उत्तउ ममल सउत्तु, सो कमलह कलियौ मुक्ति पहुंतु । (२४०)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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