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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सुइ सिद्ध सहज गुन नंत मऊ, भय षिपनिक भव्वु स उत्तु, परम जिन ॥ ५ ॥ ॥ हिय. ॥ संमत्त सहिय गुन नंद मऊ, तं नंद अनंद स उत्तु, ममल जिन ॥ हिय. ॥ तं न्यान विन्यान अनंत पऊ, सुइ दर्सन नंत सहाउ, षिपक जिन ॥ ७ ॥ तं अमिय रमन रस सिद्धि पउ, तं रमियौ विंद विन्यान, मुक्ति जिन ॥ ८ ॥ तं हिय हुवयारह रमन पउ, तं अरुह रमन ससहाउ, परम जिन ॥ १२ ॥ ॥ हिय.॥ अवगाहन रमनह सिद्ध पऊ, सुइ गुरूलघु समय सुभाउ, सुर्य जिन ॥ १३ ॥ ॥ हिय. ॥ तं बाधा हो विलय सु समय मउ, सिहु समय सिद्धि सम्पत्तु, परम जिन ॥ १४ ॥ ॥ हिय.॥ निसंक सहावे सु दर्स मउ, भय सल्य संक विलयंतु, जिनय जिन ॥ १५ ॥ ॥ हिय.॥ तं कंष्या रहित सु ममल पउ, तं समल कम्मु विलयंतु, ममल जिन ॥ १६ ॥ ॥ हिय. ॥ तं नृविति वृिति न पिच्छिए, तं मूढ दिस्टि विलयंतु, अनन्द जिन ॥ १७ ॥ ॥ हिय. ॥ उवगूहन अंग जिनुत्तीयो, सुइ न्यानीय दोष गलंतु, परम जिन ॥ १८ ॥ ॥ हिय. ॥ ॥ हिय. ॥ विन्यान वीय तं उवन पर, तं सौष्य सु परमानंद, जिनय जिन ॥ ९ ॥ ॥हिय. ॥ सुहमंतह सुद्ध सरूव पउ, तं हिय हिययार संजुत्तु, सहज जिन ॥ हिय. ॥ तं अर्क सुभाव सु रमन पऊ, तं रमियौ विंद विन्यान, अलष जिन ॥ ११ ॥ ॥ हिय. ॥
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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