________________
श्री ममल पाहुइ जी अन्मोय दिस्टि सुइ रमनं, अन्मोयं विनंद विली विलयति । अबलबली अन्मोयं, अन्मोयं सुइ षिपिय कम्म बन्धानं ॥ ६ ॥ कम्मं विलय सुभावं, मुक्त सुभावेन मुक्ति सुइ रमनं । मुक्ति अनंत विसेषं, नंत चतुस्टय सुयं सुह रमनं ॥ ७ ॥ दिप्ति अनंत सुभावं, दिस्टि सुइ रमन दिप्ति प्रवेसं । दिस्टि अनंत सुभावं, दिप्ति प्रवेस नंत नंतानं ॥ ८ ॥ दिप्ति न्यान सरूवं, दिप्ति विसेषेन दिस्टि सुइ रमनं । न्यान रमन सुइ रमियं, कमलं आकिर्न कलन निर्वानं ॥ ९ ॥ दिप्ति दिस्टि सुइ दिपियं, दिप्ति सुइ सब्द सुवन सुइ रमनं । अवयासं कलन सु कर्न, कर्न सुइ कमल उवन निर्वानं ॥ १० ॥ दिप्ति रमन सुइ रमनं, दिप्ति उवन रोम सुइ रमनं । रोम रोम सुइ दिपियं, कलियं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ ११ ॥ इस्टि रोम दिपि उवनं, दसैं सुइ दिप्ति उवन दर्सति । मइ दिप्ति सह दिपियं, कलियं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ १२ ॥ दिप्ति उवन सहावं, ढलनं उववन्न नंतनंताई । लष्य अलष्य सु दिपियं, कलनं सुइ कलिय कमल निर्वानं ॥ १३ ॥ तत्काल रमन सुइ दिपियं, दिपियं सुइ चरन रमन सिय चरनं । दिप्ति सब्द सहयारं, कलनं सुइ कमल कर्न निर्वानं ॥ १४ ॥ दिप्ति नेत्र सुइ नृतं, सहसं अट्ठम्मि इस्ट उवनं च । दिप्ति विंद सुइ अर्क, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ १५ ॥ दिप्ति अर्थ सर्वार्थं, दिप्तिं सुइ मार्ग वीय विन्यानं । दिप्ति कर्न सुइ रमनं, दिस्टि उवनं च दिप्ति सुइ रमनं ॥ १६ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी दिप्ति कमल बन्धानं, दिप्ति दिस्टि च उवन सुइ उवनं । दिप्ति षिपन धुरअस्कंध, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ १७ ॥ दिप्ति हितकार पय उवनं, दिप्तिं चेयन्ति ममल आयरनं । दिप्ति इच्छ पय रमनं, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ १८ ॥ अंकुर दिप्ति सु दिपियं, हिययारं दिप्ति अस्थान दिपि उवनं । दिप्ति गहिर सुइ गुपितं, दिप्तिं गुहिजस्य उवन उव उवनं ॥ १९ ॥ दिप्ति जानु सुइ कदलं, पय कमले कलन रमन अंकुरयं । दिप्ति अनंत विसेष, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ २० ॥ दिप्ति सुयं सुइ दिस्टं, दिस्टि सुइ उवन रमन जिन उत्तं । दिप्ति विसेष अनंतं, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ २१ ॥ दिप्ति दिस्टि जिन उत्तं, दिप्ति सहावेन दिस्टि प्रवेसं । न्यानं न्यान उवनं, उवन सहावेन दिप्ति दिस्टं च ॥ २२ ॥ दिप्ति दिस्टि आयरनं, उवनं जै रमन उवन ससहावं । नंद नंद आनंद, कमलं सुइ कलिय कर्न निर्वानं ॥ २३ दिप्ति दिस्टि सुइ उवनं, उवन सहावेन उवन उवएसं । केवल कलन उवएस, कलनं कमलस्य कर्न निर्वानं ॥ २४ दिप्ति दिस्टि जिन उत्तं, उत्तं सुइ समय सुवन सुइ सुवनं । सुवनं श्रवन सहावं, आकीनं कमल कलन निर्वानं ॥ २५ ॥ जं तारन तरन सहावं, कलनं सुइ श्रेनि तरन सुइ कमलं । सहयार उववन्न सु चरनं, समयं सुइ कर्न कमल सिद्धानं ॥ २६ ॥
(२२६)