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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जानु उवन्नऊ पय संजोए, पयह विंद दर्सतु । अमिय रसायन तारन सहियो, सम सहिय मुक्ति सम्पत्तु ॥ ११ ॥
॥ भवियन.॥ पय विंदह विन्यान ऊवनऊ, परम तत्तु जिन उत्तं । परम पयत्तह ममल सहावे, अमिय मै मुक्ति पहुंतं ॥ १२ ॥
॥भवियन.॥ सम अर्थह तं समय संजुत्तऊ, तारन तरन स उत्तु । भय षिपनिक तं अमिय सरूवे, तत्काल सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥
॥ भवियन.॥
श्री ममल पाहुइ जी जिनवर उत्तउ सुद्ध परम जिनु, सिद्ध सरूव स उत्तं । न्यान विन्यानह केवलु सहियौ, नंत चतुस्टै संजुत्तं ॥ ३ ॥
॥भवियन.॥ उवंकार उवनह सहियौ, उवनौ दाता देउ । न्यान विन्यानह उवनु जु दाता, परम देउ सम सोइ ॥ ४ ॥
॥भवियन.॥ हिययारह हिययार उनऊ, ह्रींकारह हिय दिट्ठी। अर्क विंद सो रमनह सहियो, पय कमल गुप्ति सुइ इट्ठी ॥ ५ ॥
॥भवियन. ॥ हिययारह हुवयारह सहियौ, उत्पन्न दिस्टि जिन उत्तं । भय विनासु तं भव्वु उवन्नऊ, अमिय रमन सिद्धि रत्तं ॥ ६ ॥
|भवियन.॥ श्रींकारह सहयार उवन्नऊ, श्री सिद्धि सहकारं । ममल सरूवे धम्मह सहियौ, सुद्ध दिस्टि हिययारं ॥ ७ ॥
॥ भवियन.॥ सहयारह हिययार उवन्नऊ, उवन दिस्टि सम उत्तं । भय षिपनिक तं अमिय सरूवे, रमन सिद्धि दर्सतु ॥ ८ ॥
॥भवियन.॥ सहयारह तं जानु ऊपजई, हिययारह उवन सहाउ । ममल सहावे धम्म सरूवे, सिद्धह मुक्ति सुभाउ ॥ ९ ॥
॥भवियन. ॥ जानह जान सहाउ संजुत्तऊ, तारन तरन पउत्तु । पय संजोए भय षिपनिक है, भव्वु सिद्धि सम्पत्तु ॥ १० ॥
॥ भवियन. ॥
(१२) विप्ति विवान गाथा गाथा १०३९ से १०६४ तक
(विषय : दिष्टि-१४, विवान-५) दिप्ति विवान स उत्तं, दिप्तिं दिपि दिपिय नंत सुइ रमनं । नंतानंत प्रवेसं, नंत सुभावेन दिप्ति सुइ दरसं ॥ १ ॥ दिप्ति सरूव सु लष्यं, दिप्तिं सुइ नंत नंत सुइ रमनं । नंत दिप्ति सुइ दिपियं, वर्न विसेषेन नंत सुइ रमनं ॥ २ ॥ चित्तं विचित्त दिपियं, सुर रमनं मनि रयन रयन सुइ रमनं । सुयं दिप्ति सुइ दिपियं, दिप्ति सुभावेन नंत दिपि रमनं ॥ ३ ॥ दिप्ति उवन सहावं, दिस्टि सुइ उवन प्रवेस सइ रमनं । दिस्टि अनंत सु गमनं, दिस्टि प्रवेस दिप्ति सुइ मिलियं ॥ ४ ॥ दिस्टि इस्टि सुइ रिस्टं, रिस्ट सिस्टं च सिस्टि सुइ सुवनं । उववन्न दिस्टि सुइ साह, अवयासं दिस्टि नंतनंताई ॥ ५ ॥
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