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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
सुइ
श्री ममल पाहुइ जी कलि कलियौ रे लोय अवलोय पउ, परिनामु कलन जिन रंजु ॥ ९ ॥
॥ जिन. ॥ कल कलनह कलियौ हो कलन पउ,
कम कमल कलिय जिन उत्तु । तं तरन सहावे रे कलन रंजु, कलि समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १० ॥
॥ जिन. ॥ कलियौ कमलह हो कलन पऊ,
जिन कलन अनंतानंतु । कलन सहावे रे कमल पउ, सुइ केवल कमल जिनुत्तु ॥ ११ ॥
॥ जिन. ॥ कमलह कलियौ हो चरन चरू,
कमल कर्न सुइ उत्तु । कमलह चरियौ हो चरन पउ, चरि कमल सिद्धि सम्पत्तु ॥ १२ ॥
॥ जिन. ॥ कमलह कलनह चरु चरन पउ,
कलन कर्न संजुत्तु । तरन सहावे रे कलन सुड़, अन्मोय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १३ ॥
॥ जिन. ॥
कमलह कलियौ हो उवन पर,
सोलहि संजुत्तु । सुर्य लब्धि सुइ समय मउ, सुइ समय सिद्धि सम्पत्तु ॥ १४ ॥
॥ जिन. ॥ सुयं अर्क सुइ अर्क जिनु,
सुइ अर्क विंद जिन उत्तु । भय विलय अर्क स सहाउ लै, सुइ अर्क कमल कलयंतु ॥ १५ ॥
॥ जिन. ॥ दिप्तिहि दिस्टि सुइ अर्क जिनु,
__ सब्द हिययार जिनुत्तु । सब्द सहावे रे सुइ अर्क पर, उव उवन साहि सिद्धि रत्तु ॥ १६ ॥
॥ जिन. ॥ अवयास अर्क जिन उवन मउ,
कमल कंठ सुइ अर्क । अर्कह रमियौ हो रमन पउ, सुइ कमल कलिय सिद्धि रत्तु ॥ १७ ॥
॥ जिन. ॥ नो उत्पन्न सुइ अर्क जिनु हो,
नो नृत उवन रमंतु ।
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