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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
नंद आनंद नंद जिन रमनं,
दुंदुही सब्द सुइ जिनय जिनं । विवान दिप्ति सुइ सब्द समय सिहु,
अन्मोय तरन सम सिद्धि धुवं ॥ भवियन तं विंद अमिय रस सिद्धि जयं ॥ १२ ॥
॥ उव उवन.॥
श्री ममल पाहुइ जी षट् कमल रमन तिअर्थ गमन जिनु,
क्रांति वयन मन रमन पयं । छत्र त्रय उवन उवन हिययारह,
सहयार उवन सुइ छत्र त्रयं ॥ भवियन तं सेत नील आरक्त छत्र जिनु सिद्धि जयं ॥ ८ ॥
|| उव उवन.॥ दिप्ति दिव्य आयरन दिस्टि जिनु,
उत्पन्न दिप्ति तं दिव्य धुनी । धुव उवन ममल तं ममल रमन जिनु,
भय गंठि विलय तं परम पयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ९ ॥
॥उव उवन.॥ प्रतीहार रमन तं नंत परम जिनु,
तं परम तत्तु तिअर्थ रमं । मान प्रमान तं मान रमन जिनु,
जनराग मान गलि जिनु रमनं ॥ भवियन तं अमिय रमन विष विलय जिनय जिन सिद्धि जयं ॥ १० ॥
॥उव उवन.॥ दुंदुहि उत्पन्न दुंदुहि सब्द रमन जिनु,
दिप्ति सब्द तं नंत पयं । अप्प इच्छ रमन आयरन रमन जिनु,
नितंति नित आनंद मयं ॥ भवियन उवसम षिम रमन सु सिद्धि जयं ॥ ११ ॥
॥ उव उवन.॥
(९५) अहंत सर्वन्य रमन फूलना
गाथा १९२६ से १९४१ तक
(विषय : चार अनंत चतुष्टय) उव उवन न्यान विन्यान रमन जिनु,
रमन विंद उववन्न समं । उव उवनं लोक लोक सुइ उवनं,
अन्मोयं न्यान अनंत धुवं ॥
भवियन तं नंत न्यान सुइ मुक्ति जयं ॥ १ ॥ उव उवन पयं जिननाथ सुयं,
जिन जिनयति नंत अनंत रयं । पर्जय भय गलिय ममल पय मिलियं,
भय षिपिय अमिय रस परम पयं ॥ भवियन अन्मोय तरन सुइ सिद्धि जयं ॥ २ ॥
॥आचरी॥ दिपि दिप्ति दिप्ति आयरन दर्स जिनु,
तं दिप्ति अनंतानंत सुयं ।
(३१०)